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मोहन सिंह

(नर्सरी की तैयारी)

एक व्यक्ति की कहानी जिसने अपने बचपन के जुनून खेतीबाड़ी को अपनी रिटायरमेंट के बाद पूरा किया

जुनून एक अद्भुत भावना है या फिर ये कह सकते हैं कि ऐसा जज्बा है जो कि इंसान को कुछ भी करने के लिए प्रेरित कर सकता है और मोहन सिंह जी के बारे में पता चलने पर जुनून से जुड़ी हर सकारात्मक सोच सच्ची प्रतीत होती है। पिछले दो वर्षों से ये रिटायर्ड व्यक्ति – मोहन सिंह, अपना हर एक पल बचपन के जुनून या फिर कह सकते हैं कि शौंक को पूरा करने में जुटे हुए हैं आगे कहानी पढ़िए और जानिये कैसे..

तीन दशकों से भी अधिक समय से BCAM की सेवा करने के बाद मोहन सिंह आखिर में 2015 में संस्था से जनरल मेनेजर के तौर से रिटायर हुए और फिर उन सपनों को पूरा करने के लिए खेती के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया जिसे करने की इच्छा बरसों पहले उनके दिल में रह गई थी ।

एक शिक्षित पृष्ठभूमि से आने पर, जहां उनके पिता मिलिटरी में थे मोहन सिंह कभी व्यवसाय विकल्पों के लिए सीमित नहीं थे उनके पास उनके सपनों को पूरा करने की पूरी स्वतंत्रता थी। अपने बचपन के वर्षों में मोहन सिंह को खेती ने इतना ज्यादा प्रभावित किया कि इसके बारे में वे खुद ही नहीं जानते थे।

बड़े होने पर मोहन सिंह अक्सर अपने परिवार के छोटे से 5 एकड़ के फार्म में जाते थे जिसे उनका परिवार घरेलू उद्देश्य के लिए गेहूं, धान और कुछ मौसमी सब्जियां उगाने के लिए प्रयोग करता था। लेकिन जैसे ही वे बड़े हुए उनकी ज़िंदगी अधिक जटिल हो गई पहले शिक्षा प्रणाली, नौकरी की जिम्मेदारी और बाद में परिवार की ज़िम्मेदारी।

2015 में रिटायर होने के बाद मोहन सिंह ने प्रकाश आयरन फाउंडरी, आगरा में एक सलाहकार के तौर पर पार्ट टाइम जॉब की। वे एक महीने में एक या दो बार यहां आते हैं 2015 में ही उन्होंने अपने बचपन की इच्छा की तरफ अपना पहला कदम रखा और उन्होंने काले प्याज और मिर्च की नर्सरी तैयार करनी शुरू कर दी।

उन्होंने 100 मिट्टी के क्यारियों से शुरूआत की और धीरे धीरे इस क्षेत्र को 200 मिट्टी के क्यारियों तक बढ़ा दिया और फिर उन्होंने इसे 1 एकड़ में 1000 मिट्टी के क्यारियों में विस्तारित किया। उन्होंने ऑन रॉड स्टॉल लगाकर अपने उत्पादों की मार्किटिंग शुरू की। उन्हें इससे अच्छा रिटर्न मिला जिससे प्रेरित होकर उन्होंने सब्जियों की नर्सरी भी तैयार करनी शुरू कर दी। अपने उद्यम को अगले स्तर तक ले जाने के लिए एक व्यक्ति के साथ कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग शुरू की जिसमें उन्होंने मिर्च की पिछेती किस्म उगानी शुरू की जिससे उन्हें अधिक लाभ हुआ।

काले प्याज की फसल मुख्य फसल है जो प्याज की पुरानी किस्मों की तुलना में उन्हें अधिक मुनाफा दे रही है। क्योंकि इसके गलने की अवधि कम है और इसकी भंडारण क्षमता काफी अधिक है। कुछ मज़दूरों की सहायता से वे अपने पूरे फार्म को संभालते हैं और इसके साथ ही प्रकाश आयरन फाउंडरी में सलाहकार के तौर पर काम भी करते हैं। उनके पास सभी आधुनिक तकनीकें हैं जो उन्होने अपने फार्म पर लागू की हुई हैं जैसे ट्रैक्टर, हैरो, टिल्लर और लेवलर।

वैसे तो मोहन सिंह का सफर खेती के क्षेत्र में कुछ समय पहले ही शुरू हुआ है पर अच्छी गुणवत्ता वाले बीज और जैविक खाद का सही ढंग से इस्तेमाल करके उन्होंने सफलता और संतुष्टि दोनों ही प्राप्त की है।

वर्तमान में, मोहन सिंह, मोहाली के अपने गांव देवीनगर अबरावन में एक सुखी किसानी जीवन जी रहे हैं और भविष्य में स्थाई खेतीबाड़ी करने के लिए खेतीबाड़ी क्षेत्र में अपनी पहुंच को बढ़ा रहे हैं।

मोहन सिंह के लिए, अपनी पत्नी, अच्छे से व्यवस्थित दो पुत्र (एक वैटनरी डॉक्टर है और दूसरा इलैक्ट्रोनिक्स के क्षेत्र में सफलतापूर्वक काम कर रहा है), उनकी पत्नियां और बच्चों के साथ रहते हुए खेती कभी बोझ नहीं बनीं, वे खेतीबाड़ी को खुशी से करना पसंद करते हैं।उनके पास 3 मुर्रा भैंसे है जो उन्होंने घर के उद्देश्य के लिए रखी हुई है और उनका पुत्र जो कि वैटनरी डॉक्टर है उनकी देखभाल करने में उनकी मदद करता है।

संदेश

“किसानों को नई पर्यावरण अनुकूलित तकनीकें अपनानी चाहिए और सब्सिडी पर निर्भर होने की बजाये उन ग्रुपों में शामिल होना चाहिए जो उनकी एग्रीकल्चर क्षेत्र में मदद कर सकें। यदि किसान दोहरा लाभ कमाना चाहते हैं और फसल हानि के समय अपने वित्त का प्रबंधन करना चाहते हैं तो उन्हें फसलों की खेती के साथ साथ आधुनिक खेती गतीविधियों को भी अपनाना चाहिए।”

 

यह बुज़ुर्ग रिटायर्ड व्यक्ति लाखों नौजवानों के लिए एक मिसाल है, जो शहर की चकाचौंध को देखकर उलझे हुए हैं।