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हरजीत सिंह बराड़

(बागवानी, किन्नु)

कई मुश्किलों का सामना करने के बावजूद भी इस नींबू वर्गीय संपदा के मालिक ने सर्वश्रेष्ठ किन्नुओं के उत्पादन में सफल बने रहने के लिए अपना एक नया तरीका खोजा

फसल खराब होना, कीड़े/मकौड़ों का हमला, बारानी भूमि, आर्थिक परिस्थितियां कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो किसानों को कभी-कभी असहाय और अपंग बना देती हैं और यही परिस्थितियां किसानों को आत्महत्या, भुखमरी और निरक्षरता की तरफ ले जाती हैं। लेकिन कुछ किसान इतनी आसानी से अपनी असफलता को स्वीकार नहीं करते और अपनी इच्छा शक्ति और प्रयासों से अपनी परिस्थितियों पर काबू पाते हैं। डेलियांवाली गांव (फरीदकोट) से ऐसे ही एक किसान है जिनकी प्रसिद्धि किन्नू की खेती के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध है।

श्री बराड़ को किन्नू की खेती करने की प्रेरणा अबुल खुराना गांव में स्थित सरदार बलविंदर सिंह टीका के बाग का दौरा करने से मिली। शुरूआत में उन्होंने कई समस्याओं जैसे सिटरस सिल्ला, पत्ते का सुरंगी कीट और बीमारियां जैसे फाइटोपथोरा, जड़ गलन आदि का सामना किया लेकिन उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं लिए और ना ही अपने किन्नू की खेती के फैसले से निराश हुए। बल्कि धीरे-धीरे समय के साथ उन्होंने सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त की और अपने बाग का विस्तार 6 एकड़ से 70 एकड़ तक कर दिखाया।

बाग की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने उच्च घनता वाली खेती की तकनीक को लागू किया। किन्नू की खेती के बारे में अधिक जानने के लिए पूरी निष्ठा और जिज्ञासा के साथ उन्होंने सभी समस्याओं को समाधान किया और अपने उद्यम से अधिक लाभ कमाना शुरू किया।

अपनी खेतीबाड़ी के कौशल में चमक लाने और इसे बेहतर पेशेवर स्पर्श देने के लिए उन्होंने पी.ए.यू., के.वी.के फरीदकोट और बागबानी के विभाग से ट्रेनिंग ली।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जुनून:
वे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति बहुत ही उत्साही हैं वे हमेशा उन खेती तकनीकों को लागू करने की कोशिश करते हैं जिसके माध्यम से वे संसाधनों को बचा सकते हैं। पी.ए.यू के माहिरों के मार्गदर्शन के साथ उन्होंने तुपका सिंचाई प्रणाली (drip irrigation system) स्थापित किया और 42 लाख लीटर क्षमता वाले पानी का भंडारण टैंक बनाया, जहां वे नहर के पानी का भंडारण करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने सौर ऊर्जा के संरक्षण के लिए सौर पैनल में भी निवेश किया ताकि इसके प्रयोग से वे भंडारित पानी को अपने बगीचों तक पहुंचा सके। उन्होंने अधिक गर्मी के महीनों के दौरान मिट्टी में नमी के संरक्षण के लिए मलचिंग भी की।

मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए वे हरी खाद का उपयोग करते हैं और अन्य किसानों को भी इसका प्रयोग करने की सिफारिश करते हैं। उन्होंने किन्नू की खेती के लिए लगभग 20 मीटर x 10 मीटर और 20 मीटर x 15 मीटर के मिट्टी के बैड तैयार किए हैं।

कैसे करते हैं कीटों का नियंत्रण…
सिटरस सिल्ला, सफेद मक्खी और पत्तों के सुरंगी के हमले को रोकने के लिए उन्होंने विशेष रूप से स्वदेशी एरोब्लास्ट स्प्रे पंप लागू किया है जिसकी मदद से वे कीटनाशक और नदीननाशक की स्प्रे एकसमान कर सकते हैं।

अभिनव प्रवृत्तियों को अपनाना…
जब भी उन्हें कोई नई प्रवृत्ति या तकनीक अपनाने का अवसर मिलता है, तो वे कभी भी उसे नहीं गंवाते। एक बार उन्होंने गुरराज सिंह विर्क- एक प्रतिष्ठित बागबानी करने वाले किसान से, एक नया विचार लिया और कम लागत वाली किन्नू क्लीनिंग कम ग्रेडिंग मशीन (साफ करने वाली और छांटने वाली) (क्षमता 2 टन प्रति एकड़) डिज़ाइन की और अब 2 टन फलों की सफाई और छंटाई के लिए सिर्फ 125 रूपये खर्चा आता है जिसका एक बहुत बड़ा लाभ यह है कि वे इससे 1000 रूपये बचाते हैं। आज वे अपने बागबानी उद्यम से बहुत लाभ कमा रहे हैं। वे अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा हैं।

संदेश
“हर किसान, चाहे वे जैविक खेती कर रहे हों या परंपरागत खेती उन्हें मिट्टी का उपजाऊपन बनाए रखने के लिए तत्काल और दृढ़ उपाय करने चाहिए। किन्नू की खेती के लिए, किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए।”