दविंदर सिंह मुशकाबाद
भारत में विदेशी कृषि के मॉडल को लागू करके सफलता प्राप्त करता यह किसान
1992 में दविंदर सिंह ने विदेश जाने की योजना बनाई, पर वे अपने प्रयत्नों में असफल रहे और आखिर में उन्होंने खेतीबाड़ी शुरू करने का फैसला किया। उस समय वे इस तथ्य से अनजान थे कि विदेश में रहना आसान नहीं था क्योंकि वहां रहने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, पर खेतीबाड़ी से बढ़िया लाभ प्राप्त करना आसान नहीं है क्योंकि खेतीबाड़ी खून और पसीने की मांग करती है। उन्होंने खेती करनी शुरू की लेकिन जब वे मार्किटिंग में आए तब मध्यस्थों से धोखा खाने के डर से उन्होंने खुद अपने हाथ में तराजू लेने का फैसला किया।
“मैं मां की दी सफेद दरी, तराजू और हरी मिर्च की बोरी के साथ लिए चंडीगढ़ के सेक्टर 42 की सब्जी मंडी के दौरे के अपने पहले अनुभव को कभी नहीं भूल सकता, मैं वहां पूरा दिन बैठा रहा, मैं इतना परेशान और संकुचित सा महसूस कर रहा था कि ग्राहक से पैसे लूं या नहीं। समझ नहीं आ रहा था। मुझे ऐसा देखने के बाद, मेरे कुछ किसान भाइयों ने मुझे बताया कि यहां इस तरह काम नहीं चलेगा आपको अपने ग्राहकों को बुलाना होगा और अपनी फसल की बिक्री कीमत पर ज़ोर देना होगा। इस तरह से मैंने सब्जियों को बेचना सीखा।”
उस समय लड़खड़ाते कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए, दविंदर सिंह ने अपनी पहली फसल से 45 हज़ार रूपये कमाए और वे इससे बहुत खुश थे, खैर, उस समय तक दविंदर सिंह पहले ही जान चुके थे कि खेतीबाड़ी का मार्ग बहुत मजबूती और दृढ़ संकल्प की मांग करता है। वापिस मुड़े बिना, दविंदर सिंह ने कड़ी मेहनत और जुनून से काम करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे जब उन्होंने अपने खेती क्षेत्र का विस्तार किया और अपने कौशल को और बढ़ाने के लिए 2007 में अपने एक दोस्त के साथ एक ट्रेनिंग कैंप के लिए स्पेन का दौरा किया।
स्पेन में उन्होंने कृषि मॉडल को देखा और इससे वे बहुत चकित हुए। छोटी सी छोटी जानकारी को बिना खोए दविंदर सिंह ने सब कुछ अपने नोट्स में लिखा।
“मैंने देखा कि इटली में प्रचलित कृषि मॉडल भारत से बहुत अलग है। इटली के कृषि मॉडल में किसान समूह में काम करते हैं और वहां बिचौलिये नहीं है। मैंने यह भी देखा कि इटली की जलवायु स्थिति भारत की तुलना में कृषि के अनुकूल नहीं थी, फिर भी वे अपने खेतों से उच्च उत्पादकता ले रहे थे। लोग अपनी फसल की वृद्धि और विकास के लिए फसलों को उच्च वातावरण देने के लिए पॉलीहाउस का उपयोग कर रहे थे। यह सब देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। ”
उत्कृष्ट कृषि तकनीकों की खोज करने के बाद, दविंदर सिंह ने फैसला किया कि वे पॉलीहाउस का तरीका अपनाएंगे। शुरूआत में, उन्हें पॉलीहाउस का निर्माण करने के लिए कोई सहायता नहीं मिली, इसलिए उन्होंने इसे स्वंय बनाने का फैसला किया। बांस की सहायता से उन्होंने 500 वर्ग मीटर में अपना पॉलीहाउस स्थापित किया और इसमें सब्जियां उगानी शुरू की। जब आस पास के लोगों को इसके बारे में पता चला तो कई विशेषज्ञों ने भी उनके फार्म का दौरा किया लेकिन वे नकारात्मक प्रतिक्रिया देकर वापिस चले आये और कहा कि यह पॉलीहाउस सफल नहीं होगा। लेकिन फिर भी, दविंदर सिंह ने अपनी कड़ी मेहनत और उत्साहित भाव से इसे सफल बनाया और इससे अच्छी उपज ली।
उनके काम से खुश होकर, राष्ट्रीय बागबानी मिशन ने उन्हें पॉलीहाउस में सहायता करने और निर्माण करने में उनकी मदद करने का फैसला किया। जब कृषि विभाग उस समय दविंदर सिंह के पक्ष में था तब उनके पिता सुखदेव सिंह उनके पक्ष में नहीं थे। उनके पिता ने अपनी ज़मीन नहीं देना चाहते थे क्योंकि पॉलीहाउस तकनीक नई थी और उन्हें यकीन नहीं था कि इससे लाभ मिलेगा या नहीं और किसी मामले में ऋृण का भुगतान नहीं किया गया तो बैंक उनकी ज़मीन छीन लेगा।
अपने परिवार पर निर्भर हुए बिना, दविंदर सिंह ने पॉलीहाउस स्थापित करने के लिए एक एकड़ भूमि पर 30 लाख रूपये का ऋृण लेकर अपने दोस्त के साथ साझेदारी में अपना उद्यम शुरू करने का फैसला किया। उस वर्ष उन्होंने अपने पॉलीहाउस में रंग बिरंगी शिमला मिर्च उगाई उत्पादनऔर गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि उन्होंने एक वर्ष के अंदर अंदर अपनी कमाई से ऋृण का भुगतान कर दिया।
अगला चरण, जिस पर दविंदर सिंह ने कदम रखा। 2010 में उन्होंने एक समूह बनाया, उन्होंने धीरे धीरे उन लोगों और समूहों में काम का विस्तार किया जो एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह के तहत पॉलीहाउस तकनीक सीखने के लायक थे। दविंदर सिंह का यह कदम एक बहुत ही अच्छा कदम था क्योंकि उनके समूह ने बीज, खाद और अन्य आवश्यक कृषि इनपुट 25 से 30 प्रतिशत सब्सिडी दर पर लेकर शुरूआत की। इसके अलावा सभी किसान जो समूह के सदस्य हैं अब कृषि इनपुट इकट्ठा करने के लिए विभिन्न दरवाजों पर दस्तक नहीं देते उन्हें सब कुछ एक ही छत के नीचे मिल जाता है। समूह निर्माण ने किसानों को परिवहन शुल्क, मंडीकरण, पैकेजिंग और अधिकतम लाभ प्रदान किए और इसका परिणाम यह हुआ कि एक किसान ज्यादा खर्चे के बोझ से परेशान नहीं होता। एग्री मार्ट ब्रांड नाम है जिसके तहत समूह द्वारा उत्पादित फसलों को चंडीगढ़ और दिल्ली की सब्जी मंडी में बेचा जाता है, लोग उनके ब्रांड पर भरोसा करते हैं और मंडीकरण के लिए उन्हें अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता।
जब मैं अकेला था उस समय मंडीकरण का स्तर अलग था लेकिन आज हमारे पास एक समूह है और समूह में मंडीकरण करना आसान है लेकिन समूह की गुणवत्ता का अपना स्थान है। समूह एक बहुत शक्तिशाली चीज़ है क्योंकि लाभ को छोड़कर समूह में सब कुछ साझा किया जाता है — दविंदर सिंह मुशकाबाद ने कहा।
20 वर्ष की अवधि में, दविंदर सिंह के प्रयासों ने उन्हें एक साधारण विक्रता से एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह का प्रमुख बना दिया, जिसके तहत वर्तमान में 230 किसान उस समूह में हैं। एक छोटे से क्षेत्र से शुरूआत करके, वर्तमान में उन्होंने अपने खेती क्षेत्र को बड़े पैमाने पर विस्तारित किया जिसमें से साढ़े पांच एकड़ में पॉलीहाउस खेती की जाती है और इसके अलावा उन्होंने कुछ आधुनिक कृषि तकनीकों जैसे तुपका सिंचाई, स्प्रिंकलर को पानी वितरण के उचित प्रबंधन के लिए मशीनीकृत किया है। अपनी इस सफलता के लिए वे पी ए यू, लुधियाना और उनके संगठित कार्यक्रमों और समारोह को भारी श्रेय देते हैं जिन्होंने उन्हें अच्छे ज्ञान स्रोत के रूप में समर्थन दिया।
आज दविंदर सिंह का समूह नवीन तकनीकों और स्थायी कृषि तरीकों से कृषि क्षेत्र में विवधीकरण का मॉडल बन गया है। बागबानी के क्षेत्र में उनके जबरदस्त प्रयासों के लिए, दविंदर सिंह को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है और उन्होंने विदेशों में कई प्रतिनिधिमंडल में भाग लिया है।
• अक्तूबर 2016 में कृषि मंत्रालय, पंजाब सरकार के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल के प्रगतिशील किसान सदस्य के रूप में बाकी, अज़रबैजान का भी दौरा किया।
जब जल प्रबंधन की बात आती है तो जल कृषि में प्रमुख भूमिका निभाता है। किसान को अपने पानी की जांच करवानी चाहिए और उसके बाद नहर के पानी से अपना टैंक स्थापित करना चाहिए और फिर उसे पॉलीहाउस में इस्तेमाल करना चाहिए, इसके परिणामस्वरूप 25—30 प्रतिशत आय में वृद्धि होती है।”
उपभोक्ताओं को होम डिलीवरी प्रदान करने की योजना है ताकि वे कम रसायनों वाले पोषक तत्वों से समृद्ध ताजी सब्जियां खा सकें।
अपनी खेती के साथ अपने कृषि के अनुभव को साझा करते समय, दविंदर सिंह ने हमारे साथ अपनी ज़िंदगी का एक सुखद क्षण सांझा किया—
इससे पहले मैं विदेश जाने का सपना देखता था, बिना जाने कि मुझे वहां वास्तव में क्या करना है। लेकिन बाद में, जब मैंने मलेशिया और अन्य देशों के प्रतिनिधिमंडल टीम के सदस्य के रूप में दौरा किया तो मुझे बहुत खुशी और गर्व महसूस हुआ,यह सपना सच होने के जैसा था। मुझे “श्रमिक कार्य करने के लिए विदेश जाना” और “प्रतिनिधिमंडल टीम के सदस्य के रूप में विदेश जाने” के बीच के अंतर का एहसास हुआ।