रशपाल सिंह
एक ऐसा किसान जिसकी किस्मत मशरुम ने बदली और मंजिलों के रास्ते पर पहुंचाया
खेती वह नहीं जो हम खेत में हल के साथ जुताई करना, बीज, पानी लगाना बाद में फसल पकने पर उसकी कटाई करते हैं, पर हर एक के मन में खेती को लेकर यही विचारधारा बनी हुई है, खेती में ओर बहुत सी खेती आ जाती है जोकि खेत को छोड़ कर बगीचा, छत, कमरे में भी खेती कर सकते हैं पर उसके लिए ज़मीनी खेती से ऊपर उठकर इंसान को सोचना पड़ेगा तभी खेती के अलग-अलग विषय के बारे में पढ़कर महारत हासिल कर सकता है।
ऐसे किसान जो शुरू से खेती के साथ जुड़े हुए हैं पर उन्होंने खेती से ऊपर होकर कुछ ओर करने के बारे में सोचा और कामयाब होकर अपने गांव में नहीं बल्कि अपने शहर में भी नाम बनाया। जिन्होनें जो भी व्यवसाय को करने के बारे में सोचा उसे पूरा किया जो असंभव लगता था पर परमात्मा मेहनत करने वालों का साथ हमेशा देता है।
इस स्टोरी द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं उनका नाम रशपाल सिंह है जोकि गांव बल्लू के, ज़िला बरनाला के रहने वाले हैं। रशपाल जी अपने गांव के ऐसे इंसान थे जिन्होनें अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद फ्री बैठने की बजाए कुछ करने के बारे में सोचा और इसकी तैयारी करनी शुरू कर दी।
साल 2012 की बात है रशपाल को बहुत-सी जगह पर मशरुम की खेती के बारे में सुनने को मिलता था पर कभी भी इस बात पर गौर नहीं किया पर जब फिर मशरुम के बारे में सुना तो मन में सवाल आया यह कौन सी खेती है, क्या पता था एक दिन यदि खेती किस्मत बदल देगी। उसके बारे रशपाल जी ने मशरुम की खेती के बारे में जानकारी इक्क्ठी करनी शुरू की।क्योंकि उस समय किसी किसी को ही इसके बारे में जानकारी थी, उनके गांव बल्लू के, के लिए यह नई बात थी। बहुत समय बिताने के बाद रशपाल जी ने पूरी जानकारी इक्क्ठी कर ली और बीज लेने के लिए हिमाचल प्रदेश चले गए, पर वहां किस्मत में मशरुम की खेती के साथ साथ स्ट्रॉबेरी की खेती का नाम भी सुनहरी अक्षरों में लिखा हुआ था।
जब मशरुम के बीज लेने लगे तो किसी ने कहा “आपको स्ट्रॉबेरी की खेती भी करनी चाहिए” सुनकर रशपाल बहुत हैरान हुआ और सोचने लगा यह भी काम नया है जिसके बारे में लोगों को कम ही पता था, मशरुम के बीज लेने गए रशपाल जी स्ट्रॉबेरी के पौधे भी ले साथ आए और मशरुम के बीज एक छोटी सी झोंपड़ी बना कर उसमें लगा दिए और इसके साथ खेत में स्ट्रॉबेरी के पौधे भी लगा दिए।
मशरुम लगाने के बाद देखरेख की और जब मशरुम तैयार होने लगा तो खुश हुए पर पर ख़ुशी अधिक समय के लिए नहीं थी, क्योंकि एक साल दिन रात मेहनत करने के बाद यह परिणाम निकला कि मशरुम की खेती बहुत समय मांगती है और देखरेख अधिक करनी पड़ती है । वह बटन मशरुम की खेती करते थे और आखिर उन्होनें साल 2013 में बटन मशरुम की खेती छोड़ने का फैसला किया और बाद में स्ट्रॉबेरी की खेती पर पूरा ध्यान देने लगे।
बटन मशरुम में असफलता का कारण यह भी था कि उन्होनें किसी प्रकार की ट्रेनिंग नहीं ली थी।
2013 के बाद स्ट्रॉबेरी की खेती को लगातार बरकरार रखते हुए “बल्लू स्ट्रॉबेरी” नाम के ब्रांड से बरनाला में बड़े स्तर पर मार्केटिंग करने लग गए जोकि 2017 तक पहुंचते-पहुंचते पूरे पंजाब में फैल गई, पर सफल तो इस काम में भी हुए पर भगवान ने किस्मत में कुछ ओर ही लिखा हुआ था जो 2013 में अधूरा काम छोड़ा था उसे पूरा करने के लिए।
रशपाल ने देरी न करते हुए 2017 में अपने शहर के नजदीक के वी के से मशरुम की ट्रेनिंग के बारे में पता किया जिसमें मशरुम की हर किस्म के बारे में अच्छी तरह से जानकारी और ट्रेनिंग दी जाती है, उस समय वह ऑइस्टर मशरुम की ट्रेनिंग लेने के लिए गए थे जोकि 5 दिनों का ट्रेनिंग प्रोग्राम था, जब वह ट्रेनिंग ले रहे थे तो उसमें मशरुम की बहुत से किस्मों के बारे में जानकारी दी गई पर जब उन्होनें कीड़ा जड़ी मशरुम के बारे में सुना जोकि एक मेडिसनल मशरुम है जिसके साथ कई तरह की बीमारियां जैसे कैंसर, शुगर, दिल का दौरा, चमड़ी आदि के रोगो को ठीक किया जा सकता है। जिसकी कीमत हजारों से शुरू और लाखों में खत्म होती है, जैसे 10 ग्राम एक हज़ार, 100 ग्राम 10 हज़ार, के हिसाब से बिकती है।
जब रशपाल को कीड़ा जड़ी मशरुम के फायदे के बारे में पता लगा तो उसने मन बना लिया कि कीड़ा जड़ी मशरुम की खेती ही करनी है, जिसके लिए रिसर्च करनी शुरू कर दी और बाद में पता लगा कि इसके बीज यहां नहीं थाईलैंड देश में मिलते है, पर यहां आकर रशपाल के लिए मुश्किल खड़ी हो गई क्योंकि कोई भी उसे जानने वाला बाहर देश में नहीं था जो उसकी सहायता कर सकता था। पर रशपाल जी ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और मेहनत करके बाहर देश में किसी के साथ संम्पर्क बनाया और फिर पूरी बात की।
जब रशपाल को बरोसा हुआ तो उन्होनें थाईलैंड से बीज मंगवाए जिसमें उनका खर्चा 2 लाख के नजदीक हुआ था। उन्होनें रिसर्च तो की थी और सब कुछ पहले से त्यार किया हुआ था जो मशरुम लगाने और उसे बढ़ने के लिए जरुरी थी और 2 अलग-अलग कमरे इस तरह से तैयार किये थे जहां पर मशरुम को हर समय आवश्यकता अनुसार तापमान मिलता रहे और मशरुम को डिब्बे में डालकर उसका ध्यान रखते।
रशपाल जी पहले ही बटन मशरुम और स्ट्रॉबेरी की खेती करते थे जिसके बाद उन्होनें कीड़ा जड़ी नामक मशरुम की खेती करनी शुरू कर दी। जब कीड़ा जड़ी मशरुम पकने पर आई तो नजदीकी गांव वालों को पता चला कि नजदीकी गांव में कोई मेडिसनल मशरुम की खेती कर रहा है, क्योंकि उनके नजदीक इस नाम के मशरुम की खेती कोई नहीं करता था, जिसके कारण लोगों में जानने के लिए उत्सुकता पैदा हो गई, जब वह रशपाल से मशरुम और इसके फायदे के बारे में पूछने लगे तो उन्होनें बहुत से अच्छे से उसके अनेकों फायदे के बारे में बताया, वैसे उन्होनें इसकी खेती घर के लिए ही की थी पर उन्हें क्या पता था कि एक दिन यही मशरुम की खेती व्यापार का रास्ता बन जाएगी।
सबसे पहले मशरुम का ट्रायल अपने और परिवार वालों पर किया और ट्रायल में सफल होने पर बाद में इसे बेचने के बारे में सोची और धीरे-धीरे लोग खरीदने लगे जिसका परिणाम थोड़े समय में मिलने लगा बहुत कम समय में मशरुम बिकने लगे।
जिसके साथ मार्केटिंग में इतनी जल्दी प्रसार हुआ, फिर उन्होनें मार्केटिंग करने के तरीके को बदला और मशरुम को एक ब्रांड के द्वारा बेचने के बारे में सोचा जिसे cordyceps barnala के ब्रांड नाम से रजिस्टर्ड करवा कर, खुद प्रोसेसिंग करके और पैकिंग करके मार्केटिंग करनी शुरू कर दी जिससे ओर लोग जुड़ने लगे और मार्केटिंग बरनाला शहर से शुरू हुई पूरे पंजाब में फैल गई, जिससे थोड़े समय में मुनाफा होने लगा। जिसमें वह 10 ग्राम 1000 रुपए के हिसाब से मशरुम बेचने लगे।
उन्होनें जहां से मशरुम उत्पादन की शुरुआत 10×10 से की थी इस तरह करते वह 2017 में प्राप्ति के शिखर पर थे, आज उनकी मशरुम की इतनी मांग है की उन्हें मशरुम खरीदने के लिए फोन आते हैं और बिलकुल भी खाली समय नहीं मिलता। अधिकतर उनकी मशरुम खिलाड़ियों की तरफ से खरीदी जाती है।
उन्हें इस काम के लिए आत्मा, के वी के और ओर बहुत सी संस्था की तरफ से इनाम भी प्रपात हो चुके हैं।
भविष्य जी योजना
वह 2 कमरे से शुरू किए इस काम को ओर बड़े स्तर पर करके अलग अलग कमरे तैयार करके मार्केटिंग करना चाहते हैं।
संदेश
यदि किसी छोटे किसान ने कीड़ा जड़ी मशरुम की खेती करनी है तो पैसे लगाने से पहले उसके ऊपर अच्छे से रिसर्च करें जानकारी लें और ट्रेनिंग ले कर ही इस काम शुरू करना चाहिए।