छेवांग नोर्फेल
नक्ली ग्लेशियरों का निर्माण करके यह लद्दाखी व्यक्ति पहाड़ियों को कायम रख रहा है
छेवांग नोर्फेल— एक 83 वर्षीय व्यक्ति जिसे लखनऊ से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा पूरा करने के बाद, जम्मू और कश्मीर में एक सिविल इंजीनियर के तौर पर सरकारी नौकरी में 36 वर्ष तक सेवा की। फिर वे सेहत खराब होने के कारण जल्दी सेवा मुक्त हो गए और अपने विरासती शहर लद्दाख में बस गए। पर समाज के लिए उनका काम अपनी रिटायरमैंट के बाद भी जारी रहा।
असाधारण नायक असल जीवन में भी होते हैं और जिस नायक के बारे में हम बात करने जा रहे हैं, उसके पास कोई भी शक्ति नहीं है, बल्कि उसके पास असाधारण हुनर, असाधारण ज्ञान, असाधारण समझदारी और असाधारण विद्वता है, जिससे उसने भारत के ठंडे मारूस्थल में खेतीबाड़ी को खत्म होने से बचा लिया।
एक ठंडी सुबह, श्री नोर्फेल अपने घर के बाहर बैठे हुए थे, जब उन्होंने देखा कि नदी में चलता पानी ठोस रूप से बदल रहा है और जैसे यह ज़मीन पर आकर गिरता है तो यह एक ठंडे बर्फीले बर्फ के गड्ढे के रूप में बदल जाता है।
लद्दाख में, आमतौर पर पानी के बहाव को रोकने के लिए टूटी को खुला रखा जाता है, ताकि पाइप को फटने से रोका जा सके।
यह उस समय हुआ जब श्री नोर्फेल जी को इसका अहसास हुआ और उन्होंने लद्दाख में पानी की समस्या को रोकने के लिए हल निकाला।
पिछले कुछ वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को पिछले स्तर से 100 मीटर और उससे अधिक बर्फ की लाइन बना दी थी, जिस कारण बसंत ऋतु के शुरू में किसानों को अपनी ज़मीन की सिंचाई में बहुत मुश्किल हुई।
लद्दाख में सही बिजाई का समय अप्रैल से मई तक होता है, पर पिछले समय में पानी की कमी के कारण, किसान अपनी ज़मीन को सही ढंग से नम नहीं कर सकते और कोई बिजाई के समय में एक दिन भी देरी कैसे कर सकता है। इसके अलावा, जून में पहाड़ियों में ग्लेशियर का पानी आ जाता है, जिस से किसानों को बहुत देर होती है।
पर सिविल इंजीनियर, छेवांग नोर्फेल ने लद्दाख क्षेत्र के लोगों को राहत देने और मौसमी स्थिति को ठीक करने के लिए इस मुद्दे पर काम किया।
देर रात तक काम करके, उन्होंने हर चीज़ की योजना बनाई और अपने क्षेत्र के कुछ किसानों के साथ इस बारे में चर्चा की। इसके बाद 1994 में वे लेह पोषण प्रोजेक्ट में शामिल हो गए, जो सबसे पुराना है और 1978 से लद्दाख के वासियों की सेवा करता है।
छेवांग नोर्फेल — “जब मैं किसानों से अपने विचारों पर चर्चा की, उनमें से कुछ इस पर हस पड़े, पर उनमें से कई किसानों ने यह करने का विचार किया।”
अब तक, श्री नोर्फेल ने 10 ग्लेशियर बनाए, जिनमें से लद्दाख के सबसे छोटा उमला क्षेत्र में 500 फुट लंबा और सबसे बड़ा फुतसे इलाके में 2 किलोमीटर लंबा है।
नोर्फेल जी के नकली ग्लेशियर पहाड़ों से चलने वाले पानी को चलाने के लिए साधारण सिद्धांत पर आधारित है। पहाड़ी क्षेत्रों में पानी का प्रवाह बहुत तेज ढलानों वाला होता है, इसलिए नदियों में पानी जमता नहीं और इसे छांव वाले क्षेत्रों की तरफ मोड़ा जाता है। जहां सूर्य की किरणे सीधी नहीं पड़ती। जब पानी स्टोर करने वाली जगह पर पहुंचता है तो इसकी रफ्तार घटाने के लिए कम मात्रा में बांटा जाता है और फिर इसे बर्फ वाले पानी के रूप में बर्फ वाली दीवारों पर स्टोर कर लिया जाता है।
नकली ग्लेशियरों का निर्माण गांव के नज़दीक किया जाता है। ताकि जैसे ही बसंत ऋतु लद्दाख क्षेत्र से शुरू हो तो पानी खेतों तक जल्दी पहुंच सके। इस तरीके से एक महीने से अधिक समय के लिए बहुत सारा पानी खेतों तक पहुंचता है और गांव वासियों को चैन की सांस मिलती है।
पानी एक ऐसी ज़रूरत है जिसकी आवश्यकता हवा में पक्षियों और मिट्टी में कीड़े मकौड़ों को होती है। छेवांग नोर्फेल जी की इस पहल से, कुदरती तालाबों के निर्माण में 90000 रूपये का निवेश किया गया, जो आज गांव के 700 लोगों को पानी उपलब्ध करवाते हैं।
आज, लद्दाख में नोर्फेल जी के द्वारा कई सड़कों, सिंचाई प्रणालियों और अन्य बनतरें बनाई गई हैं। जिस कारण लद्दाख के लोगों के लिए वे एक सुपरहीरों हैं।
उनके काम के सम्मान में दिए गए कुछ शीर्षक और नाम हैं – वातावरण हीरो, आइसमैन और नकली ग्लेशियर बनाने वाला मनुष्य…
“पानी बचाने के बहुत सारे तरीके हैं, जैसे कि डैम, डाइवर्ज़न्स, चैक डैम आदि, पर नक्ली ग्लेशियम एक विलक्षण तरीका है …” इसलिए उन्होंने मुझे आइसमैन कहा — छेवांग नोर्फेन ने मुस्कुराते हुए बताया।