अमरप्रीत सिंह

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अमरप्रीत सिंह जी चमकौर साहिब के एक सफल किसान हैं। जिन्होंने अपने 28 एकड़ खेत में एकीकृत खेती अपनाकर किसानों के बीच क्रांति लाने का बीड़ा उठाया है, उन्होंने अपने बड़ों से प्रेरणा लेकर और अपनी बुद्धिमत्ता से, भूमि की क्षमता को बढ़ाने और उसके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया है।

परिवर्तन को अपनाना: अमरप्रीत सिंह जी की कृषि में यात्रा 2010 में शुरू हुई, जब उन्होंने एचडीएफसी बैंक में सहायक प्रबंधक की अपनी नौकरी छोड़ दी। उनके पिता जी ने मछली पालन का काम शुरू किया, लेकिन अमरप्रीत का ध्यान एकीकृत खेती पर था। उन्होंने एम.बी.ए डिग्री से आधुनिक व्यावसायिक कौशल को बड़ों के ज्ञान के साथ जोड़ा, ताकि एक समृद्ध और टिकाऊ योजना तैयार की जा सके।

अमरप्रीत जी ने 21 एकड़ के फार्म में मछली पालन शुरू किया। उन्होंने आसपास के विक्रेताओं के साथ सहयोग किया, ताकि उन्हें मार्केटिंग के बारे में चिंता ना करनी पड़े। मांस विक्रेताओं के साथ साझेदारी करके, उन्होंने अपनी मछली के लिए एक स्थिर बाज़ार सुनिश्चित किया। मछली पालन विभाग, रोपड़ से प्राप्त तकनीकी विशेषज्ञता ने उन्हें मछली पालन में बहुत मदद की। पंजाब सरकार द्वारा सिफारिश की हुई पांच अलग-अलग नसले गोल्डन या कॉमन कार्प मछली, रोहू मछली, ग्रास कार्प मछली, कैटला मछली और मृगल एफआईएस का पालन किया गया, जिससे मछली का निरंतर और उच्च गुणवत्ता वाला उत्पादन हुआ। मछली पालन का प्रबंधन करना आसान नहीं है। अमरप्रीत सिंह जी बाजार की मांग के अनुसार मछली पालते हैं। पंजाब सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी के साथ, मछली पालन एक व्यवहार्य उद्यम बन जाता है। अमरप्रीत सिंह जी ने मछली पालन में भूमिगत पाइपलाइनों और उन्नत जाल प्रणाली का उपयोग किया है, जो पर्यावरण में योगदान देता है।

सुअर पालन: अमरप्रीत सिंह जी सुअर पालन का भी काम करते हैं, जिसमें वह मुख्य रूप से सुअरों की नस्ल सुधार पर काम करते हैं। औसतन एक मादा सुअर 10 बच्चों को जन्म देती है। अब उनके फार्म पर 63 सूअर हैं। जिनका औसत वजन 60 से 65 किलोग्राम के बीच होता है। उनके पास तीन मुख्य प्रकार की फ़ीड विधियाँ हैं – व्यावसायिक फ़ीड, घर पर बनाई फ़ीड या बचे खुचे उत्पादों से तैयार फ़ीड। अमरजीत सिंह जी व्यावसायिक फ़ीड का उपयोग करते हैं, क्योंकि इसमें सभी आवश्यक तत्व होते हैं और इसके उपयोग से उनका आकार बढ़ जाता है। उनके मुताबिक, अगर वे हर बार औसतन 10 बच्चे पैदा करें तो उनका वजन दोगुना हो जाता है। यहां सूअर भी बेचे जाते हैं. ग्राहक खरीदने से पहले इनका वजन करते हैं, जो औसतन 80 – 85 किलोग्राम होता है। बेचने की प्रक्रिया में किसान को नकद राशि प्राप्त होती है। कभी-कभी कुछ कारणों से बिक्री प्रभावित होती है, जैसे अफ्रीकन स्वाइन फ्लू लेकिन कुछ समय बाद यह सामान्य हो जाता है।

बकरी पालन: अमरप्रीत सिंह की कृषि यात्रा लगातार विकसित हो रही है क्योंकि वह बीटल नस्ल की बकरियां पालते हैं, जिसकी सिफारिश पंजाब सरकार ने की है। उन्होंने बकरी पालन में काफी विकास देखा। यह वृद्धि मुख्य रूप से गर्भवती बकरियों की देखभाल के कारण हुई, जिससे लगभग 20 बकरियों की सूची में वृद्धि हुई। विभिन्न कृषि व्यवसायों में सफलता प्राप्त करने के बाद, अमरप्रीत सिंह ने बत्तख पालन शुरू किया। अपने मछली पालन व्यवसाय में लाभ को देखते हुए, उन्होंने बत्तखों का व्यवसाय शुरू किया ताकि वह एकीकृत खेती को बढ़ा सके।

बढ़ती विविधता: अमरप्रीत सिंह जी ने मछली और सुअर पालन के साथ-साथ बकरी पालन भी शुरू किया। वे अपने खेतों में अनाज के साथ-साथ दालें, मक्का और हल्दी जैसी फसलें भी उगाते थे। उन्होंने अपनी भूमि का उपयोग इस प्रकार किया है कि वे विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से लाभ कमा सकें।

भविष्य की योजनाएं: अमरप्रीत सिंह जी बत्तख पालन को और अधिक विकसित करना चाहते हैं ताकि एक और बड़ा उद्यम उन्हें अपने वर्तमान कार्यों को पूरा करने में मदद कर सके। उनकी रुचि और परिश्रम को मुख्यमंत्री ने सम्मानित किया है।

परिवार, शिक्षा और सलाह: अमरप्रीत सिंह जी का परिवार उनका पूरा समर्थन करता है, यही कारण है कि उनका काम इतनी आसानी से चल रहा है। वे लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, ताकि लोग कृषि के साथ-साथ विभिन्न व्यवसायों से परिचित हो सकें और उनसे लाभ उठा सकें।

निष्कर्ष: अमरप्रीत सिंह जी की यह कहानी एक अच्छा उदाहरण है, कि प्राचीन कृषि नई पीढ़ी को इसके बारे में जागरूक करवाती है, कि हम इसके साथ विभिन्न व्यवसाय कर सकते हैं। और हम अपनी जगह का अधिकतम उपयोग कैसे कर सकते है। साथ ही वह नई पीढ़ी को उदाहरण भी दे रहे हैं कि इसका बेहतर इस्तेमाल कैसे किया जाए, साथ ही वह धरती पर इसकी पैदावार के लिए नई कोशिश भी कर रहे है।

मोहम्मद गफूर

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1 बीघा ज़मीन से शुरू करके 65 एकड़ ज़मीन तक का खेती सफरमोहम्मद गफूर

पंजाब के नामी शहर पटियाला के एक बहुत ही प्रतिभाशाली किसान मोहम्मद गफूर, जो अपनी कड़ी मेहनत से खुद का खेती व्यवसाय स्थापित करने में सफल हुए। केवल 1 बीघा ज़मीन से शुरुआत करके, उन्होंने अब अपने खेती व्यवसाय को 65 एकड़ तक बढ़ा लिया है। आज, गफूर जी खेती की बारीकियों में विशेषज्ञ हैं, और अपने दृढ़ संकल्प और अटूट भावना के माध्यम से उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर रहे हैं।

मलेरकोटला शहर के रहने वाले मोहम्मद गफूर के पिता की 1983 में अचानक ही मृत्यु हो गई और परिवार की पूरी जिम्मेदारी का बोझ गफूर के युवा कंधो पर गया। जिस वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और अपने परिवार का पालनपोषण करने का रास्ता खोजना पड़ा। सब्जियों की एक छोटी नर्सरी से गफूर के कृषि सफर की शुरूआत हुई। जल्दी ही उन्हें यह एहसास हुआ कि शायद यही वो रास्ता है जिस पर चलकर वे अपनी सभी जिम्मेदारियां पूरी कर सकते हैं।

खेती में गफूर जी की उन्नति असाधारण थी। 1992 में उन्हें खालसा कॉलेज की 6 से 7 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का मौका मिला, जो उनके कृषि सफर के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ। वर्ष 2000 में, गफूर ने अपनी खेती के काम को 20 एकड़ तक बढ़ाया और 2004 तक, उन्होंने अपनी ज़मीन बढ़ाकर 31 एकड़ कर ली। अपनी अपार मेहनत और प्रयासों से उन्हें बहुत अच्छे परिणाम मिले और 2017 में उनकी ज़मीन 41 एकड़ से बढ़कर 65 एकड़ हो गई और आज वे गर्व से गर्व सेठेके पर ली गई 65 एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं।

खेती की समस्याओं को अनुभव के माध्यम से समझने की योग्यता गफूर को दूसरों से अलग करती है। उन्हें किसी भी कृषि संस्थान से कोई औपचारिक ट्रेनिंग या मार्गदर्शन नहीं मिला। समय के साथ, उन्होंने खेती की कला में महारत हासिल कर ली और विभिन्न कृषि तकनीकों में निपुण हो गए। गफूर की सफलता, खेती में उनके अनुभव और अथक मेहनत का परिणाम है।

पूरे वर्षों में, गफूर ने उत्पादन बढ़ाने विभिन्न फसलों और सिंचाई तकनीकों का प्रयोग किया। शुरूआती दिनों में वे संगरूर नेहरू मार्केट और मोगा में काम करते थे जहां पर वे पनीरी बेचते थे। 1991 में वे राजपुरा गए और अंतत: पटियाला में बस गए। इसी समय के दौरान गफूर ने मल्चिंग सिंचाई ढंग का उपयोग करना शुरू किया, जिसका उपयोग वह पिछले 5 वर्षों से कर रहे हैं। इसके अलावा, वह अपनी 15 एकड़ ज़मीन पर ड्रिप प्रणाली का उपयोग करते हैं और इस पहल के लिए उन्हें पटियाला के अधिकारियों और केंद्र सरकार दोनों की तरफ से सब्सिडी भी मिलती है।

गफूर की विशेषज्ञता केवल खेती तक बल्कि फसल योजना तक भी फैली हुई है। गफूर जी ने सब्जियों के लिए 15 एकड़, गेहूं के लिए 5 एकड़ और धान के लिए 25 एकड़ जमीन आरक्षित रखी है। खेती में अधिक ज्ञान होने के कारण उन्हें साथी किसानों से सम्मान मिला, जो अक्सर उनकी सलाह और सहायता चाहते हैं। गफूर जी दूसरे किसानों की सब्जी की खेती करने में मदद करते हैं और दवाओं और स्प्रे के नामों के बारे में मार्गदर्शन करते रहते हैं।

मोहम्मद गफूर के परिवार ने उनके कृषि के सफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके तीन भाई सक्रिय रूप से खेती में लगे हुए हैं, और बाकी भाईबहनों ने बीज की दुकानें स्थापित की हैं। 2000 में, गफूर एक आर्मी के सब्जी ठेकेदार बन गए और उन्हें अपनी 10 एकड़ की उपज बेचनी शुरू कर दी। यह समझौता जारी है और इससे दोनों पक्षों को लाभ होता है। भविष्य में गफूर जब तक संभव हो खुद खेती करना चाहते हैं। वर्तमान में, उनके बच्चे अपने खुद के सफल व्यवसायों में शामिल हैं और सीधे तौर पर खेती से जुड़े हुए नहीं हैं।

गफूर की खेती के प्रयास लाभदायक रहे। अनुबंधित ज़मीन पर गेहूं और धान की खेती से प्रति एकड़ लगभग 10,000 से 15,000 रुपये की कमाई होती है। सब्जियों की खेती से और भी अधिक 50,000 से 100,000 रुपये प्रति एकड़ मुनाफा कमाने की क्षमता है। हालांकि, गफूर सिर्फ इन आंकड़ों पर निर्भर रहने के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि बाजार दरों में उतारचढ़ाव होता रहता है। वह किसानों को सलाह देते हैं कि वे अपने निवेश पर सावधानीपूर्वक विचार करें और छोटे पैमाने से शुरुआत करें, धीरेधीरे अपना काम बढ़ाएं।

खेती में मदद के लिए, गफूर सीज़न के दौरान 40 से 50 श्रमिकों को रोज़गार देते हैं। जैसेजैसे सीज़न ख़त्म होता है, संख्या घटकर लगभग 20 हो जाती है। गफूर अपने फार्म के प्रति समर्पित है और भविष्य में रिटायर होने की उनकी कोई योजना नहीं है। वह विनम्र और ज़मीन से जुड़े रहना चाहते हैं और इसके लिए किसी भी पुरस्कार को स्वीकार नहीं करना चाहते। गफूर का खेती से प्रेम, त्याग और कड़ी मेहनत पूरे क्षेत्र के किसानों को प्रेरित करती है। गफूर की विरासत निस्संदेह किसानों की नई पीढ़ी को चुनौतियों का सामना करने और कृषि के क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रेरित करेगी।

किसानों को संदेश

साथी किसानों के लिए गफूर जी का संदेश स्पष्ट है: केवल दूसरों पर निर्भर रहें, छोटी शुरुआत करें, अनुभव हासिल करें और लगातार बढ़ते रहें।

करमजीत सिंह

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बब्बनपुर में गुड़ उत्पादन को पुनर्जीवित करके किसानों के लिए बना एक मिसाल: करमजीत सिंह

करमजीत सिंह उत्तर भारत के मध्य में स्थित गांव बब्बनपुर के निवासी हैं जो अपने समर्पण, नवीनता (इनोवेशन) और गुणवत्ता के माध्यम से गुड़ उत्पादन और बिक्री में क्रांति लेकर आए। गन्ने की खेती के पारिवारिक विरासत को करमजीत जी एक नई ऊंचाइयों तक ले गए और उन्होंने गुड़ के नए-नए उत्पाद तैयार किये और जिसके बाद सीमाओं के पार भी अपने उत्पाद पहुंचाए। आज करमजीत न केवल निर्यात में उत्तम होने की इच्छा रखते हैं, बल्कि पंजाबी व्यंजनों को बढ़ावा देने का भी सपना देखते हैं। उनकी सफलता की कहानी साथी किसानों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शक का काम करती है।

करमजीत सिंह का गुड़ उत्पादन एक लाभदायक व्यवसाय साबित हुआ है क्योंकि मंडियों में पारंपरिक फसल की बिक्री के मुकाबले उनके द्वारा तैयार किये गए उत्पाद में अधिक मुनाफा प्राप्त हुआ। एक स्टैंडर्ड सेट-अप स्थापित करने के लिए लगभग 18 लाख रुपये की आवश्यकता होती है। करमजीत ने दृढ़ संकल्प और सावधानीपूर्वक योजना के तहत 25 से 30 एकड़ में गन्ने की खेती करनी शुरू की और अपनी पूरी फसल को गुड़ उत्पादन करने में समर्पित किया। फसल को मिल में भेजने के बजाय, वह सभी कच्चे माल को अपने प्रोसेसिंग यूनिट में भेजते हैं, जिससे उत्पादों और गुणवत्ता पर पूर्ण नियंत्रण होता है।

करमजीत सिंह ने पारंपरिक फसल की बिक्री की तुलना में गुड़ उत्पादन से अधिक मुनाफा प्राप्त किया। उनके गुड़ और उससे बने उत्पादों की मांग की वृद्धि ने उनकी कुल कमाई में 40% का इज़ाफ़ा किया। इस उघमी बदलाव ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाया है बल्कि क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित की। कृषि के क्षेत्र में करमजीत जी की सफलता की कहानी विविधता और मूल्यवर्धन की क्षमता को दर्शाती है।

करमजीत जी के द्वारा गुड़ उत्पादन को प्राथमिकता देने और आवश्यक बुनियादी चीज़ों में निवेश करने का निर्णय उनके लिए फलदायी साबित हुआ। मंडियों में कच्चा गन्ना बेचने से मिलने वाले अनिश्चित आमदन पर भरोसा करने की बजाए, उन्होंने लाभदायक गुड़ उत्पादन और उसके विभिन्न स्वादों के लिए लाभदायक बाजार में कदम रखा । उनके इस कदम ने न केवल बेहतर वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित की, बल्कि करमजीत को उद्योग में अपनी पहचान स्थापित करने में भी सक्षम बनाया।

गुड़ उत्पादन के कार्य में करमजीत जी का सफर उनके दादा के साथ शुरू हुआ, जिन्होंने गन्ने की खेती शुरू की और पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना से कई प्रशंसाएं हासिल कीं। दादा जी की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, करमजीत के पिता जी ने 11 साल पहले गन्ने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की, जिसने करमजीत के भविष्य में करने वाले उद्यम की नींव रखी गई।

करमजीत जी ने अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग ली और पी.ए.यू. से मार्गदर्शन प्राप्त किया। अपनी नई विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, उन्होंने अपने गुड़ उत्पादन में पंद्रह तरह के फ्लेवर पेश किए। शुरुआत में, करमजीत जी को अपने गांव के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी लगन और उत्पादों की उच्च गुणवत्ता, अपग्रेड मशीनरी के साथ करमजीत जी ने धीरे-धीरे गाँव वालों का दिल जीत लिया। आज गांव के लोग न केवल उनके उत्पादों की सराहना करते हैं बल्कि उनकी उपलब्धियों पर भी गर्व करते हैं।

मार्केटिंग पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ करमजीत ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को अपनाया और किसान मेलों में हिस्सा लिया, जो व्यवसाय में उनका नाम स्थापित करने में सहायक साबित हुआ। इन इवेंट के माध्यम से उन्होंने अपने द्वारा पेश किए गए विभिन्न प्रकार के फ्लेवर को प्रदर्शित किया, जिससे दूर-दूर से आये ग्राहक आकर्षित हुए। उनके गुड़ उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मार्किट में भी जगह मिली, जो उनकी उद्यमशीलता यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

करमजीत सिंह ने गुड़ उत्पादन में बेमिसाल सफलताएं हासिल की। खेतबाड़ी के क्षेत्र में अपने ज्ञान और समर्पण की वजह से अनेकों पुरस्कार प्राप्त किए, जिससे उन्हें पंजाब डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) में शामिल होने का अवसर मिला। 2019 में, करमजीत जी के शानदार प्रयासों से उन्हें पंजाब खेतीबाड़ी यूनीवर्सिटी से पहला पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा, खेती के तरीकों में उनके अनुभवों ने उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित शीर्ष पांच किसानों में शामिल किया। उनकी प्रतिभा को नैशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) करनाल से पुरस्कार से भी मान्यता मिली।

करमजीत के आगे बढ़ने का काम डेयरी फार्मिंग पर ही नहीं रुका। कृषि के लिए उनके जुनून ने उन्हें अपने प्रयासों में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया। गन्ने की खेती के अलावा, वह अपनी 25 एकड़ ज़मीन पर मक्का और कपास की खेती करते हैं। करमजीत ने अपने गन्ना उत्पादन के उप-उत्पादों को एक मूल्यवान स्रोत के रूप में उपयोग किया। इसके अपशिष्ट का भी दोहरे उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है, इसका उपयोग नवीकरणीय ईंधन स्रोत और पोषक तत्वों से भरपूर जैविक उर्वरक दोनों के रूप में किया जाता है। करमजीत सिंह जी ने डेयरी फार्मिंग में प्रशंसा पत्र भी हासिल किए हैं। वर्तमान में, उनके पशु पालन में उनके पास पाँच गाय और पाँच भैंस हैं, जो उनके बढ़ते कृषि उद्योग में योगदान देती हैं।

करमजीत को कार्य करते समय अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निरंतरता और उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए श्रम की कड़ी निगरानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पादों की प्रभावी ढंग से मार्केटिंग करने के लिए रचनात्मक योजना और निरंतर जुड़ाव की आवश्यकता होती है। हालाँकि, दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के साथ, करमजीत ने इन बाधाओं को पार किया और बाजार में मजबूत पकड़ बनाई।

करमजीत की सफलता उनके संयुक्त परिवार के अटूट सहयोग के बिना संभव नहीं थी। उनकी दृष्टि, समर्पण और परिवार के विश्वास ने उनके सफर को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, करमजीत के बच्चों ने भी उनके काम में काफी रुचि दिखाई है, जिससे उनके उज्ज्वल भविष्य का मार्ग साफ़ हुआ है।

करमजीत जी का लक्ष्य अपने निर्यात व्यवसाय का बढ़ाने और प्रामाणिक पंजाबी व्यंजनों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना है, जिसमें मक्की की रोटी, सरसों का साग और मक्खन आदि शामिल हैं। वह अपने क्षेत्र के समृद्ध स्वादों को उजागर करते हुए उन्हें दुनिया के हर कोने में ले जाने की कल्पना करते हैं। इसके अलावा, करमजीत अपनी अधिक ज़मीन पर मक्की और कपास की खेती करते हुए विविध खेती अभ्यासों में शामिल होते रहना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश

करमजीत जी गुड़ उत्पादन में उद्यम करने की इच्छा रखने वाले लोगों का मार्गदर्शन करने की इच्छा रखते हैं। वह किसानों से शुरूआती उत्पादन स्थापित करने से लेकर अंतिम उत्पादों के मंडीकरण तक, अपने कार्यों को बारीकी से जानने के लिए प्रेरित करते हैं। करमजीत का मानना है कि कृषि समुदाय की वृद्धि और समृद्धि के लिए ज्ञान और अनुभव सांझा करना महत्वपूर्ण है।

गुरविंदर सिंह

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मछली पालन के व्यवसाय में नवीनता की मिसाल- गुरविंदर सिंह

गुरविंदर सिंह जी दसुआ, जिला होशियारपुर के निवासी हैं जो कृषि के क्षेत्र में एक इन्नोवेटर के तौरपर उभर कर आये। उन्होंने मधुमक्खी पालन में अपना सफर तीन साल पहले 30 बक्सों के साथ शुरू किया था और आज वह 300 बक्सों के साथ मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। अपने दोस्तों से प्रेरित होकर और उनके द्वारा दी गई ट्रेनिंग के साथ गुरविंदर जी अब स्थानीय दुकानों और बाजारों में शहद बेचते हैं।

विविधीकरण की क्षमता को पहचानते हुए, गुरविंदर जी ने मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया, जिसमें उन्होनें RAS तकनीक का प्रयोग किया। उनके फार्म पर 15 टैंक हैं, जिनमें से प्रत्येक का व्यास 4 फीट और गहराई 4.5 फीट हैइसके एक टैंक में 7000 मछलियां रख सकते हैं। अच्छी फीड देने और बढ़िया रख-रखाव से मछलियां 5-6 महीने में बिक्री के लिए तैयार हो जाती हैं, जिससे प्रति टैंक से 70,000 रूपये तक का लाभ मिलता है।

गुरविंदर जी की सफलता का श्रेय उनके दृष्टिकोण और निरंतर सीखते रहने की इच्छा रखने को दिया जा सकता है। उन्होंने हरियाणा के एक सरकारी केंद्र से 5-दिनों की ट्रेनिंग ली और इस विषय में अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन रिसर्च की। विशेष रूप से, उन्होंने Vietnamese और सिंघी नस्ल की मछली से काम शुरू किया, जो रोगों के प्रति कम संवेदनशीलता होती है।

गुरविंदर जी के खेती का कार्य कम मजदूरों से संपूर्ण हो जाता है। एक व्यक्ति मधुमक्खी पालन का प्रबंधन कर सकता है, और मछलियों का व्यापार सीधे खरीदारों के साथ या लुधियाना में मंडी के माध्यम से किया जा सकता है। अनुकूल स्थितियों को बनाए रखने के लिए, फार्म में छत को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है जो पूरे साल तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है। सर्दियों में, टैंकों को पूरी तरह से ढक दिया जाता है, जबकि गर्मियों में, हरे रंग के नेट का उपयोग किया जाता है, जो RAS सिस्टम फिल्टर द्वारा पूरक होता है। सही नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए तापमान की जाँच करने वाले मीटर भी लगाए गए हैं।

गुरविंदर सिंह की सफलता की कहानी स्थाई और लाभदायक खेती अभ्यासों की समर्था को प्रदर्शित करती है। अपनी उत्सुकता और परिवार के समर्थन से, उन्होंने अपने छोटे व्यवसाय को एक बड़े व्यापार उद्यमों में बदल दिया है। इच्छुक किसान उनके अनुभवों से सीख सकते हैं और नवीन दृष्टिकोणों को अपनाकर और घर के पास उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाकर कृषि में बदलाव लाने का प्रयास कर सकते हैं।

किसानों को संदेश

गुरविंदर सिंह की उपलब्धियां उनके साथी किसानों के लिए एक प्रेरणा हैं। वह साथी किसानों को अपने आस-पास मौजूदा अवसरों को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वह उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों में रुचि रखने वाले किसानों को फ्री में ट्रेनिंग देकर अपना समर्थन देते हैं। 

चमकौर सिंह

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खेती में सफलता: खेती और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में चमकौर सिंह का सफर

पंजाब के एक छोटे से गाँव ‘इना बाजा’ में रहने वाले चमकौर सिंह जिनका कृषि के क्षेत्र में बहुत नाम है। खेती में समर्पित होने वाले चमकौर सिंह जी ने एक छोटे स्तर से शुरुआत की और आज उनका बहुत नाम हैं। वह विभिन्न प्रकार की फसलें उगाते हैं और पचास व्यक्तियों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं।

चमकौर जी का सफर 1991 में शुरू हुआ, जब उन्होंने खेती की दुनिया में अपना पहला कदम रखा। अपने मित्र के भरपूर खेतों से प्रेरित होकर, उन्होंने खेती में आने वाली समसयाओं को हल करने के बारे में सीखा। जिसके चलते उन्होंने किसी यूनिवर्सिटी से जानकारी प्राप्त की, जिसने उन्हें कृषि उद्यम को शुरू करने के लिए आवश्यक चीजों के बारे में बताया।

चमकौर सिंह जी ने 2 कनाल जमीन में आलू की खेती से शुरुआत की। इस प्रयास में मिली सफलता ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे उन्होंने अपने व्यवसाय को दो एकड़ जमीन तक बढ़ाया। समय के साथ, उन्होंने टमाटर, कपास, धान, गेहूं, शिमला मिर्च और फूलगोभी जैसी अलग-अलग फसलें उगाई। उनका व्यवसाय तेज़ी से ऊपर उठता गया जो आज पचास एकड़ जमीन में फैला हुआ है।

चमकौर सिंह जी 25 एकड़ जमीन पर टमाटर की ही खेती करते हैं। अपनी फसल की बढ़िया उपज को देखते हुए क्रेमिका (Cremica) कंपनी के साथ सांझेदारी की। हर दिन, ताज़े टमाटरों से लदे दो ट्रक उनके खेत से निकलते हैं ताकि क्रेमिका (Cremica) के ग्राहकों की मांगों को पूरा किया जा सके । टमाटर की खेती में अपनी माहिरता बढ़ाने के लिए, चमकौर सिंह जी ने हिसार में बलविंदर सिंह भालिमंसा जी से टमाटर बीज के चयन और प्रबंधन के बारे में ट्रेनिंग ली।

चमकौर जी की कड़ी मेहनत और लगन किसी से भी छुपी नहीं रही। 2008 में, उन्हें कृषि में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फसल में रोगों और उसके प्रबंधन में उनकी माहिरता ने उन्हें निजी कंपनियों के लिए एक भरोसेयोग्य स्रोत बना दिया है, जो अक्सर अपने नए कृषि उत्पादों के प्रदर्शन के लिए उनके खेतों को चुनते हैं। अपनी उपलब्धियों के बावजूद, चमकौर जी मंच पर कम ही बोलते हैं, पर वहां उनका काम बोलता है।

अपनी उपलब्धियों के अलावा, चमकौर बागवानी विभाग से विभिन्न सब्सिडी का लाभ ले रहे हैं। इन सब्सिडी ने क्रेट, स्प्रे पंप, पावर मीटर और यहां तक कि एक छोटा एयर कंडीशनर जैसे आवश्यक उपकरण की प्राप्ति के लिए सुविधा प्रदान की है। चमकौर जी मानते है कि समस्याएं जीवन का एक हिस्सा हैं, और उनके आगे झुकने की बजाय, हमें चुनौतियों को सामना करना चाहिए और मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए।

चमकौर सिंह जी द्वारा किये गए कामों में से एक महत्वपूर्ण काम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी है। 1994 में उन्होंने टमाटर की खेती करनी शुरू की और अपनी उपज को बेचने का फैसला किया। उनकी उपज का आधा हिस्सा एक स्थानीय कारखाने (फैक्ट्री) को बेच दिया गया, जिससे एक स्थिर आमदन सुनिश्चित हुई, जबकि बाकि उपज बाजार में बिकने लगी। समय के साथ, उन्होंने पंजाब एग्रो और क्रेमिका के साथ सांझेदारी की, जो बेहद फायदेमंद साबित हुई।

अपने अनुभव से चमकौर सिंह जी ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की खूबियों के बारे में जाना। इस तरह की व्यवस्थाओं में प्रस्तावित निश्चित दरें, अनिश्चित बाजार कीमतों से जुड़े जोखिमों को कम करती हैं, जिससे किसानों को स्थिरता और सुरक्षा मिलती है। इसके अलावा, कंपनियों के साथ सहयोग करना तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है जो किसानों की समझ को बढ़ाता है और उनके विकास में सहयोग करता है। चमकौर सिंह जी का कहना है कि प्रत्येक किसान को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करनी चाहिए और साथी किसानों की मदद के लिए स्वयं को एक उदहारण के रूप में पेश करना चाहिए। वह ट्रेनिंग और नर्सरी सुविधाएं प्रदान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इस बात पर महत्त्व देते हैं कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत ज़रूरी है।

चमकौर सिंह की उपलब्धियां खेती तक ही सीमित नहीं हैं, उन्होंने G2 और G3 लेवल के आलू के उत्पादन और बिक्री पर भी (व्यापार) काम कर रहे हैं।

किसानों के लिए संदेश

यदि आप उद्यमी, मेहनती किसान हैं और मदद चाहते हैं तो चमकौर सिंह जी से संपर्क करें, वे न केवल इसके बारे में बताते हैं बल्कि ट्रेनिंग और नर्सरी सेवाएं भी प्रदान करवाते हैं। अपने कौशल को बढ़ाने, स्रोत तक पहुंच करने और एक समृद्ध भविष्य की खेती करने के लिए मौके का लाभ उठाएं।

सरबजीत सिंह गरेवाल

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मुश्किलों का सामना करके प्रगतिशील किसान बनने तक का सफर-सरबजीत सिंह गरेवाल

पटियाला शहर, जहां पर जितनी दूर तक आपकी निगाह जाती है आपको हरे और फैले हुए खेत दिखाई देते हैं, ऐसे शहर के निवासी है प्रगतिशील किसान सरबजीत सिंह गरेवाल। 6.5 एकड़ उपजाऊ जमीन का होना उनके बागवानी सफर की शुरुआत बनी और उन्होंने खेती की जानकारी प्राप्त की और साल 1985 में विभिन्न प्रकार के फलों की खेती करनी शुरू की।

खेती के प्रति उनके जुनून के अलावा सरबजीत का पारिवारिक इतिहास भी उनके खेती जीवन में एक प्रेरणा बना। उनके पिता, सरदार जगदयाल सिंह जी 1980 में पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के बागवानी विभाग से सेवामुक्त हुए थे और बठिंडा में फल अनुसंधान केंद्र (फ्रूट रिसर्च सेंटर) की स्थापना में भी शामिल थे। सरबजीत सिंह अपने पिता जी की विशेषज्ञता से प्रेरित होकर उनके मार्गदर्शन पर चले और 1983 में उन्होंने खेतीबाड़ी करने का फैसला किया।

असफलताओं से निराश न होकर, सरबजीत ने खेती के तरीकों के बारे में ओर जानना शुरू किया, पंजाबी यूनिवर्सिटी से जीव-विज्ञान में मास्टर और पी.एच.डी. के साथ, सरबजीत की एक मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि थी जिसने उनकी ज्ञान के प्रति प्यास को उत्साहित किया। उन्होंने बागवानी की किताबें पढ़ीं और इंटरनेट से जानकारी इकट्ठी की और अपने द्वारा की गयी रिसर्च के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जिस ने भविष्य में खेती के फैसले लेने में सहायता की।

2018 में, अमरूद, भारतीय करौदा (Indian gooseberry) और अनार जैसी विभिन्न फसलों के साथ लगभग 15 वर्षों के प्रयोग के बाद, सरबजीत ने बेर, अमरूद और आड़ू की खेती पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया। अपने पिछले अनुभवों से सीखकर उन्होंने आड़ू के पेड़ों की अनूठी आवश्यकताओं का अध्ययन किया, यह सुनिश्चित करते हुए कि मिट्टी, पानी और जलवायु की स्थिति उनके विकास के लिए आदर्श थी। उन्होंने पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी (पी.ए.यू.) द्वारा सिफारिश पैकेज ऑफ़ प्रक्टिक्स को भी अपनाया और बागवानी अफसरों से सहायता ली।

सरबजीत जी के आड़ू का बाग फलने-फूलने लगा और उन्हें चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। बाग़ में आई चुनौतियों को समझकर सीख गए थे कि प्रत्येक पौधे को देखभाल और निगरानी की आवश्यकता होती है जिसमें उचित छंटाई, कीट नियंत्रण और रोग की रोकथाम आदि शामिल हैं। कड़ी मेहनत के साथ, उन्होंने अपने बाग़ की देखरेख में घंटों बिताए जिसके परिणामस्वरूप भरपूर फसल हुई।

अपनी उपज के लिए एक मार्किट स्थापित करने के लिए, सरबजीत एक बिचौलिये की सेवाओं पर निर्भर थे। उन्होंने खरीदारों से जुड़ने के लिए एक मजबूत नेटवर्क बनाने और फलों का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के महत्व को पहचाना। इससे वह खेती की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने लगे, उन्हें विश्वास था कि उनके फल उपभोक्ताओं तक पहुंचेंगे।

जैसे ही सरबजीत के आड़ू के बगीचे में सूरज ढलता है, उसके परिश्रम का फल उसके अटूट समर्पण के प्रमाण के रूप में सामने आता है। आड़ू की शान-ए-पंजाब प्रजाति के साथ-साथ सेब, आलूबुखारा और यहां तक कि ड्रैगन फ्रूट जैसे विदेशी फलों की खेती के लिए उनकी पसंद, फलों की खेती में नए तरीकों के बारे में तलाशने की उनकी अनुकूलन क्षमता और इच्छा को दर्शाती है। सरबजीत की सफलता की कहानी कृषि उत्कृष्टता प्राप्त करने में ज्ञान, मुश्किलों का सामना और भूमि के प्रति प्यार के महत्व के बारे में स्पष्ट करती है।

किसानों के लिए संदेश

सरबजीत सिंह जी अपने साथी किसानों को बागवानी में आने वाले निश्चित उतराव-चढ़ाव का डटकर सामना करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि बागवानी को समर्पित जीवन अंत में आपको असीमित खुशी और संतुष्टि देता है। उनका मानना है कि बागवानी में आमदनी सिमित है लेकिन इससे मिलने वाली खुशी पैसों से बढ़कर है।

गुर रजनीश

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कॉर्पोरेट से कंपोस्टर बनने तक का सफरगुर रजनीश

किसान के बारे: गुर रजनीश जी ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से स्कूल ऑफ बिजनेस स्टडीज की डिग्री हासिल की। इन्हे बैंकिंग और फाइनांस में 16 सालों का कॉर्पोरेट का अनुभव है और उन्होंने सिटी ग्रुप, एच.डी.एफ.सी. बैंक और एक्सिस बैंक में काम किया है। 2019 वह वर्ष था जब उन्होंने विचार बनाया और बाद में काफी रिसर्च के बाद उन्होंने वर्मीकम्पोस्ट और वर्मीकल्चर के उत्पादन के लिए एक कमर्शियल वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट “नेचर्स आशीर्वाद” नाम से अपना व्यापार बनाया।

क्या है वर्मीकम्पोस्टिंग: वर्मीकम्पोस्टिंग का अर्थ है “केंचुए की खेती” जहां केंचुए जैविक अपशिष्ट पदार्थों को खाते हैं और “वर्मीकास्ट” के रूप में मल त्याग करते हैं जो कि फास्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटाशियम जैसे नाइट्रेट और खनिजों से भरपूर होते हैं। इनका उपयोग उर्वरकों के रूप में किया जाता है और मिट्टी की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

आगे का सफर: गुर रजनीश का सफर तब शुरू हुआ जब वे निर्माण और विचार करने की अवस्था में थे, उनके उपयोगकर्ता को लाभ पहुंचाने के लिए सही उत्पाद और प्रक्रिया बनाने के लिए बहुत सी रिसर्च और जाँच चल रही थी। यह समय कोविड 19 द्वारा देखा गया, जिसने उनके कुछ पहलुओं में देरी की, लेकिन वेबसाइट, लोगो डिजाइनिंग, ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन, पैकिंग डिजाइन, पैकिंग सामग्री और अन्य उपकरणों के लिए विक्रेताओं की खोज जैसे कई बढ़िया काम किए। बाद में, जून 2020 के दौरान, उनके द्वारा कुछ जमीन ठेके पर ली गई और केवल 15 बैड्स के साथ एक वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट की स्थापना की और वहाँ से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंत उन्होंने अक्तूबर के महीने में नौकरी से अपना इस्तीफ़ा  दे दिया और इस समय तक उनकी उत्पादन, पैकिंग सामग्री वेबसाइट तैयार हो चुकी थी और ऑनलाइन डिजिटल मार्केटिंग अभियान चल रहे थे।

क्योंकि पहले कुछ Lots में उत्पादन बहुत कम था, इसलिए पहले कृषि क्षेत्र को लक्षित करना उचित नहीं था। संभव विकल्प शहरी बागवानी स्थान को टारगेट करना था, इसलिए वर्मीकम्पोस्ट का “मुफ्त नमूना” प्राप्त करने के लिए एक अभियान चलाया। लोगों ने फ्री सैंपल सप्लाई करने के लिए अपना पता दिया और वह खुद घर-घर जाकर बागवानी के लिए फ्री सैंपल दे रहे थे, जिसे ट्राइसिटी के लोगों ने खूब पसंद किया। आखिरकार उन्हें व्यापर के लिए अच्छे ऑर्डर और रेफरेंस मिलने लगे। इसके बाद वह अलग अलग बाजारों जैसे (एमाज़ोन /फ्लिपकार्ट/मीशो/जियोमार्ट आदि) पर अपना उत्पाद लॉन्च करने के लिए आगे बढ़े। ब्रांडिंग और पैकिंग बहुत ही आकर्षक होने के कारण समान रूप से प्रतिक्रिया मिली।

खेती के अलावा: मिट्टी को उपजाऊ बनाने पर ध्यान देने के साथ, हम सभी को यह जानने और समझने की आवश्यकता है कि खेती के लिए आर्गेनिक खेती सबसे अच्छी शिक्षक है, इसलिए हमें व्यापक रूप से सोचने की आवश्यकता है और यह सोचने का सही समय है कि हमारी मिट्टी को शुद्ध जैविक फ़ीड प्रदान की जाए और वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से बेहतर क्या हो सकता है। यह प्रदूषण मुक्त वातावरण और पारिस्थितिक तरीके से बनाए रखने के लिए एक विधि है। गुर रजनीश जी ने ऐसे उत्पाद बनाए जो स्थाई जैविक खेती/बागवानी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक आदर्श विकल्प हैं। उन्होंने किसानों को अपने प्लांट में लाना शुरू किया और जैसे-जैसे अधिक से अधिक किसान खेत में आने लगे, नई पहल होने लगी और बाद में उन्होंने इसे “पंजाब वर्मीकम्पोस्टिंग ट्रेनिंग सेंटर” का नाम दिया।

उनकी संस्था का उद्देश्य पंजाब में जैविक खेती को लोकप्रिय बनाना, शहर के लोगों और किसानों के बीच जागरूकता पैदा करना और देश में जैविक खाद्य पदार्थों के लिए बाजार विकसित करने में मदद करना है। पंजाब वर्मीकम्पोस्टिंग ट्रेनिंग सेंटर किसानों को अपने स्थान पर एक यूनिट शुरू करने के लिए उचित ट्रेनिंग प्रदान करता है, उन्होंने उन्हें अच्छी गुणवत्ता के केंचुए उपलब्ध कराने में मदद की और शुरुआत से उत्पादन तक वर्मीबेड, गड्ढे स्थापित करने के लिए उचित ट्रेनिंग प्रदान करने के साथ शुरुआत करने में भी मदद की।

उनके मोहाली फार्म में हर शनिवार सुबह 11 बजे से ट्रेनिंग दी जाती हैं। इसके अलावा यदि कोई किसान या अन्य लोग जो वर्मीकम्पोस्टिंग के बारे में सीखना चाहते हैं उनके लिए एक मुफ्त ट्रेनिंग दी जाती है। इसके अलावा वे अलग अलग वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट्स और जैविक उत्पादकों को सलाह भी प्रदान करते हैं।

यह सांझा करते हुए बहुत खुशी हो रही है कि उन्होंने 500 से अधिक किसानों और युवा कृषि उद्यमियों को निशुल्क आधार पर ट्रेनिंग दी है।

वर्तमान में वह घरों, रिज़ॉर्टस, आवासीय प्रोजेक्ट्स, निवास सोसाइटी, किसान, नर्सरी और होटलों सप्लाई करेंगे।

दृष्टिकोण

भारत में जैविक खेती के लिए प्रामाणिक जैविक इनपुट उत्पाद, समाधान प्रदान करने और शहरी बागवानी के क्षेत्र में घरेलू नाम बनने के लिए एक भरोसेमंद और प्रगतिशील लीडर बनना।

लक्ष्य

व्यापक जैविक इनपुट्स के साथ भारतीय किसानों के भविष्य को रूप देना है जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

महत्व

  • शुद्धता
  • गुणवत्ता के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता
  • प्रकृति के प्रति सम्मान और समर्पण
  • हम जो हैं उससे कोई समझौता नहीं

वचनबद्धता

  • हमारे उपभोक्ताओं को वास्तविक जैविक इनपुट उत्पाद प्रदान करना।
  • एक अलग और सफल व्यवसाय मॉडल पेश करना जो सेवा और एकता के लिए प्रतिबद्ध है, और सभी को लाभ प्रदान करना।
  • प्राकृतिक, स्थायी, जैविक, कृषि अभ्यास का समर्थन करना जो प्रकृति की सेवा और रक्षा करते हैं।
  • ग्रामीण भारत में किसानों की आजीविका और कल्याण का समर्थन करने के लिए।
  • युवाओं में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करना।

राम विलास

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ऐसा बगीचा जो आपने पहले कभी नहीं देखा होगा

क्या आपने कभी ऐसी छत की कल्पना की है जो खिलते हुए फूलों की घाटी की तरह दिखती है, जो हिबिस्कस, चमेली, गुलाब, सूरजमुखी, डाहलिया, गुलदाउदी, डायन्थस और बहुत सी किस्मों से सजी है, सपने की तरह लगता है ?

हरियाणा के राम विलास जी ने उनकी चार मंजिला छत पर हज़ारों सब्जियां, फल, फूल और सजावटी पौधे उगाना संभव बनाया। प्लास्टिक की पुरानी बाल्टियों, कंटेनरों, मिट्टी और सीमेंट के गमलों और ड्रमों सहित 4,000 से अधिक गमलों को हरी छत वाली फर्श पर व्यवस्थित किये गए जो तेज गर्मी में भी ठंडा रहता है।

राम विलास व्यापरक तौरपर कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बिजनेसमैन हैं, लेकिन लगन और दिल से बागबान हैं। उनका दावा है कि लगभग 25 साल पहले उन्होंने महज आठ छोटे गमलों से शुरुआत की थी।

यह सब कैसे शुरू हुआ?

कई सालों तक, श्री विलास ने अपनी छत पर एक “टैरेस गार्डन” बनाया और अपने सैलानियों को दिखाने के लिए इसकी सुंदरता को रिकॉर्ड किया। एक दिन इन वीडियो को यूट्यूब पर अपलोड करने के बारे में फैसला किया और वे बहुत लोकप्रिय हो गए। बहुत से लोग उनके छोटे छत वाले बगीचे से प्रेरित थे, और उन्हें बागवानी के क्षेत्र में अन्य वीडियो बनाने के लिए कई लोगो ने अनुरोध किया।

उनके बगीचे के फूल पूरी दुनिया में दूसरे लोगों के बगीचों में उगने और खिलने लगे। समय के साथ, उन्हें उन लोगों के संदेश मिलने लगे जो अपने बगीचों में ऐसे रिजल्ट प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे थे, इसलिए उन्होंने जैविक खाद देना शुरू कर दिया। इससे एक ब्रांड का निर्माण हुआ, जिसे अब “ग्रेस ऑफ गॉड ऑर्गेनिक” कहा जाता है। उन्होंने इस ब्रांड की स्थापना साल 2020 में की।

आज रामविलास प्रकृति की हरियाली को वापस लाने में विश्व स्तर पर 20-30 लाख से अधिक लोगों की मदद कर रहे है।

जब घरेलु बागबानी की बात आती है, तो लोग ऑनलाइन मदद मांगते समय रिजल्ट प्राप्त करने, व्यावहारिक समाधान प्राप्त करने और तुरंत जवाब प्राप्त करने को प्राथमिकता देते हैं। यहीं पर वह उत्तम होने का प्रयास करते हैं।

वह अपने यूट्यूब चैनल पर बागवानी के हर पहलू के बारे में व्यावहारिक जानकारी प्रदान करते हैं और जैविक समाधानों का उपयोग करके प्राप्त किए जाने वाले परिणामों को प्रदर्शित करते हैं।

4000 से अधिक गमलों वाली छत पर उनका बगीचा कई घरेलू बागवानों के लिए एक आदर्श बन गया है। बागवानी तकनीकों की सफलता को प्रदर्शित करके, उनका उद्देश्य लोगों को बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रेरित और उनकी मदद करना है।

वह अपनी छत पर लगभग सभी प्रकार के फल और सब्जियां उगाते हैं, वह फल या सब्जियां नहीं बेचते हैं, लेकिन पौधों के बीज और छोटे पौधे जरूर बेचते हैं, जिससे उनके ग्राहकों को बढ़ने और वही फल प्राप्त करने में मदद मिलती है जो वह अपने से ले रहे हैं। छत का बगीचा।

वह अपनी छत पर लगभग सभी प्रकार के फल और सब्जियां उगाते हैं, वह फल और सब्जियां नहीं बेचते हैं, लेकिन पौधों के बीज और छोटे पौधे ज़रूर बेचते हैं, जिससे उनके ग्राहकों को बढ़ने और वही फल प्राप्त करने में मदद मिलती है जो वह अपने छत के बगीच से ले रहे हैं।

राम विलास के बगीचे में खिलने वाली वनस्पतियों की सूची:

  • गर्मियों-सर्दियों के सभी प्रकार के फूलों के बीज और पौधे
  • गर्मियों-सर्दियों के सभी प्रकार के सब्जियों के बीज और पौधे
  • गर्मियों-सर्दियों के सभी प्रकार के फूल वाले बलबस (Bulbous) पौधे
  • सभी प्रकार के फल और सब्जियों के पौधे(छोटे पौधे)

इन सभी पौधों को राम विलास जी ने खुद जैविक खाद का इस्तेमाल कर उगाया है। वे रासायनिक खाद के प्रयोग की निंदा करते हैं।

भूमि क्षेत्र: 13500 वर्ग फ़ीट

बागवानी के अलावा, राम विलास का एक यूट्यूब चैनल भी है जिसके तीन लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं जहां वह बागवानी के टिप्स सांझा करते हैं। वह पिछले दो वर्षों से ऑनलाइन बागवानी के बारे में भी पढ़ा रहे हैं, जिसमें 100 से अधिक छात्र पहले ही नामांकित हैं।

किस चीज ने उन्हें बागवानी करने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि उनका जुनून और प्यार पौधों के लिए था।

उन्होंने यह शौंक ऑनलाइन पढ़ने, वीडियो देखने, या दूसरों को ऐसा करते देखकर नहीं लिया। यह एक कौशल है जो अभ्यास, धैर्य और अनुभव के साथ आता है। आभासी दर्शक होने के अलावा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पड़ोसी राज्यों के लोग नियमित रूप से उनके छत के बगीचे को देखने जाते थे, और इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों के लोग उनके बगीचे को देखने में जाते थे।

यह स्वाभाविक रूप से उनमें पाया गया था; उन्हें बचपन से ही गार्डनिंग का शौंक रहा है। विभिन्न रंगों के फूल उन्हें हमेशा आकर्षित करते थे। जब भी वह रंग-बिरंगे फूलों को देखते तो उनका मन करता कि एक पौधा लेकर उसे उगा लें। यह उनके टैरेस गार्डन के पीछे का विचार था। धीरे-धीरे पेड़-पौधों की संख्या बढ़ती चली गई। पिछले कुछ सालों में उन्होंने बगीचे में कई मौसमी, आम फल और सब्जियों के पेड़ भी लगाए हैं।

यह फूल न केवल बगीचे को सुंदर बनाते हैं बल्कि वायु गुणवत्ता सूचकांक को भी नियंत्रण में रखते हैं। करनाल एक प्रदूषित शहर है, यह टैरेस गार्डन पूरी तरह ताज़ा और प्रदूषण मुक्त रहता है।

राम विलास जी छत पर सब्जियां जैसे सफेद बैंगन, नींबू, मशरूम, मूली, मिर्च, लौकी, पेठा, टमाटर, फूलगोभी, तोरी, बीन्स, गोभी, चुकंदर, धनिया पत्ती, पुदीने की पत्तियां, पालक, तुलसी, अश्वगंधा (विंटर चेरी) और फल में से केला, आलूबुखारा, चीकू, अमरूद, ड्रैगन फ्रूट, पपीता, आड़ू, आम और स्ट्रॉबेरी उगाते हैं।

उनका का कहना है कि वह रोजाना कम से कम पांच किस्मों की कटाई करता है।

राम विलास कहते हैं, “ये सभी पौधे घर में बनी खाद के इस्तेमाल से जैविक रूप से उगाए गए हैं। रासायनिक खाद के इस्तेमाल के बाद पौधों की अचानक वृद्धि केवल अस्थायी है। यह मिट्टी को ख़राब करता है और ऐसी उपज का सेवन करना ज़हर खाने जैसा है। जैविक फसलों के नियमित सेवन से नुकसान होगा। “आप एक स्वस्थ जीवन जीते हैं,” वह कहते हैं, जीवन में उनका लक्ष्य लोगों को “जैविक उगाना और जैविक खाना” की ओर बढ़ाना है।

हालांकि उनकी खेती विशाल है, लेकिन राम विलास जी बागवानी को आमदनी का ज़रिया नहीं मानते हैं। वह अपने पड़ोसियों, दोस्तों और परिवार के साथ फसल सांझा करने से ज्यादा खुश हैं, लेकिन वित्ति बिक्री उनके लिए सख्त नहीं है। वह कहते हैं, “कभी-कभी लोग आते हैं और पौधों के कुछ पौधे मांगते हैं जो मुफ्त में भी दिए जाते हैं, जब तक कि वह दुर्लभ पौधे न हों।”

वह कहते हैं कि “सभी पौधे हरियाणा के अनुभवी बागवानों या बगीचे की नर्सरियों से इकट्ठे किए जाते हैं। मुझे दुनिया के किसी भी हिस्से में जाने के बाद पौधे लाने की आदत है।”

राम विलास जी का मानना है कि उनके लिए बागवानी का आदर्श वाक्य आत्म-संतुष्टि और खुशी है। आपके द्वारा लगाए गए पौधे में एक नया फूल देखने के आनंद के बराबर क्या है? यही एकमात्र कारण है कि वह अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद एक बगीचे का प्रबंधन करते हैं।

वह आने वाले वर्षों में अपने संग्रह में अन्य किस्में शामिल करने और लोगों को पौधे उगाने के लिए प्रेरित की योजना बना रहे हैं जो शहर में वायु प्रदूषण को कम करने में भी मदद करेंगे। उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “खराब हवा की गुणवत्ता के बावजूद, मेरा परिवार घर पर बेहतर हवा में सांस लेने का प्रबंध करता है। मुझे उम्मीद है कि लोग अपने चारों ओर हरियाली के महत्व को समझेंगे और एक छोटा बगीचा बनाएंगे।”

सपना

राम विलास जी अपने सपनों के बागों को बनाने में अरबों लोगों की मदद करना जारी रखना चाहते हैं। अंतत: प्रकृति की हरियाली और स्वच्छता को वापस वहीं पर लाना जहां वह पहले थी।

उनके दर्शक उनके सबसे बड़े समर्थक रहे हैं और उन्हें टैरेस फार्मिंग के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए अधिक सामग्री तैयार करने और बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। राम विलास कभी भी किसी को अपना उत्पाद खरीदने के लिए मज़बूर नहीं करते; उनका उद्देश्य लोगों को उनके बगीचों के लिए जैविक समाधान प्रदान करना है।

संदेश

राम विलास जी के अनुसार, लोगों को रसायनों के बजाय जैविक तरीकों का उपयोग करना शुरू करना चाहिए, यह थोड़ा महंगा और समय लेने वाली प्रक्रिया है लेकिन जैविक खेती मनुष्यों को होने वाली लगभग 80% बीमारियों को रोकने में मदद करेगी।

जगमोहन सिंह नागी

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पंजाब का मक्की की फसल का राजा

जगमोहन सिंह नागी, जो पंजाब के बटाला से हैं, उनकी हमेशा से ही कृषि और खाद्य उद्योग में बहुत रुचि रही है। उनके पिता आटा चक्कियों की मुरम्मत करते थे और चाहते थे कि उनका बेटा खाद्य उद्योग में काम करे।

जगमोहन (63), जो 300 एकड़ ज़मीन पर एक कॉन्ट्रैक्ट फार्मर के रूप में काम करते हैं, जिसमें मक्की, सरसों, गेहूं जैसी फसलें और गाजर, फूलगोभी, टमाटर और चुकंदर जैसी सब्जियां उगाते हैं।

वह पंजाब और हिमाचल प्रदेश में 300 किसानों के साथ मिलकर काम करते हैं और पेप्सिको, केलॉग्स (Kellogg’s) और डोमिनोज़ पिज़्ज़ा को उत्पाद की आपूर्ति करते हैं। वह उपज को इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, दुबई और हांगकांग को भी भेजते हैं।

बँटवारा से पहले उनका परिवार कराची में रहता था। जगमोहन जी के पिता नागी, पंजाब में रहने से पहले मुंबई आ गए। अधिक मांग के बावजूद, उस समय आटा चक्की की मुरम्मत का काम करने वाले बहुत कम लोग थे। इसलिए, उनके पिता ने इस मौके का लाभ उठाया।

जगमोहन जी के पिता की इच्छा थी कि वह फूड इंडस्ट्री में काम करें। हालाँकि, उस समय पंजाब में कोई कोर्स उपलब्ध न होने के कारण, उन्होंने यूनाइटेड किंगडम, बर्मिंघम विश्वविद्यालय में फ़ूड और अनाज मिलिंग और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।

भारत लौटने के बाद, उन्होंने एक कृषि व्यवसाय, कुलवंत न्यूट्रीशन की स्थापना की। उनकी शुरुआत खराब रही क्योंकि उन्हें मक्के की अच्छी फसल लेने के लिए मदद की ज़रूरत थी। कुलवंत न्यूट्रीशन, जिसकी शुरुआत 1989 में एक पौधे और मक्के की फसल से हुई थी, अब यह कंपनी साल का 7 करोड़ रुपये से अधिक कमाने वाली कंपनी बन गई है।

जगमोहन ने एक प्लांट शुरू किया, लेकिन पंजाब में तब मक्का की फसल अच्छी नहीं थी। इसलिए, उन्होंने हिमाचल प्रदेश से मक्का मंगवाना शुरू किया, लेकिन लाने के लिए आवाजाई लागत बहुत अधिक थी। बाद में, उन्होंने अच्छी फसल सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय-उद्योग लिंक के माध्यम से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के साथ सहयोग किया। श्री नागी ने कहा “विश्वविद्यालय किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज देगा, और मैं उनके उत्पाद खरीदूंगा”।

जैसा कि वे कहते हैं, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। उनका पहला क्लाइंट केलॉग्स था।

जगमोहन ने 1991 में ठेके पर खेती करनी शुरू की, वह खुद फसल उगाना चाहते थे, और धीरे-धीरे खुद से ही उत्पादन करना शुरू कर दिया।

1992 में, उन्होंने पेप्सिको के लिए काम करना शुरू किया, उनके स्नैक, कुरकुरे के लिए मक्की की सप्प्लाई की। उनका दावा है कि हर महीने करीब 1000 मीट्रिक टन मक्की की मांग होती है। 1994 में, उन्होंने डोमिनोज पिज़्ज़ा की भी आपूर्ति शुरू की। 2013 में, उन्होंने डिब्बाबंद खाद्य व्यवसाय में प्रवेश किया और अन्य सब्जियां भी उगाना शुरू किया।

जब उनका व्यवसाय बहुत फलता-फूलता नज़र आ रहा था, तब महामारी इस कृषि उद्यमी के लिए कई चुनौतियां लेकर आई।

दुनिया भर में महामारी की चपेट में आने के बाद, COVID का इस पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। जबकि कई कारखाने और व्यवसाय बंद हो गए, किराना स्टोर खुले रहे क्योंकि उन चीजों की सभी को ज़रुरत होती है। परिणामस्वरूप, जगमोहन सिंह ने जैविक गेहूं और मक्की के आटे जैसी किराना वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। जगमोहन कहते हैं, ”मेरी योजना सरसों के तेल की प्रोसेसिंग शुरू करने और इसे बढ़ाने के लिए चावल और चिया के बीज उगाने की है।

अपनी कंपनी के माध्यम से, वह 70 लोगों को रोजगार देते हैं और कृषि छात्रों और किसानों को मुफ्त में ट्रेनिंग प्रदान करते हैं। वह किसानों को उन्नत कृषि तकनीक सिखाते हैं और उन्हें अपनी उपज को लाभकारी तरीके से बेचने के तरीके भी बताते हैं। फलस्वरूप दूध को घी या दही में परिवर्तित करना अधिक लाभदायक होगा।

जगनमोहन कहते हैं, ”युवाओं को खेती के लिए प्रेरित करने के लिए सरकार को स्थानीय स्तर पर प्रोत्साहन देना चाहिए और कृषि आधारित व्यवसायों को बढ़ावा देना चाहिए। “उन्हें खाद्य सुरक्षा और कृषि तकनीक को भी बढ़ावा देना चाहिए।”

वह किसानों को अच्छे परिणाम प्राप्त करने और नुकसान से बचने के लिए दिशा-निर्देश का सख्ती से पालन करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।

वे कहते हैं “किसानों को उन फसलों का चयन करना चाहिए जो उनके क्षेत्र में अच्छी तरह से विकसित होती हैं”, “इससे उन्हें पैसा बनाने में मदद मिलेगी”।

संदेश

श्री नेगी किसानों को खेती के अलग-अलग पहलुओं के बारे में प्रयोग करने और खुद को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। किसानों को नकदी फसलों पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए बाजरा, सब्जियां और फलदार पौधों को अपने खेतों के चारों ओर रखना चाहिए। वह किसानों को कच्चा दूध बेचने के बजाए दूध वाले उत्पाद बनाने की सलाह देते हैं; बल्कि उन्हें दूध से बनी बर्फी और अन्य भारतीय मिठाइयों को बेचना चाहिए।

देवेंद्र परमार

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वह शख्स जिसने अपना खुद का ईंधन बनाया- देवेंद्र परमार

कृषि को लाभदायक धंधा बनाने का मंत्र मध्य प्रदेश (एमपी) के शाजापुर के किसान देवेंद्र परमार से सीखा जा सकता है। आठवीं पास देवेंद्र के हुनर की वजह से उन्हें अब “गैस गुरु” के नाम से पुकारा जाने लगा है। देवेंद्र परमार अपने बायोगैस प्लांट से बिजली और बायो-सी.एन.जी. बनाते हैं। इसी बायो सी.एन.जी. से वह अपनी कार और ट्रैक्टर चलाते हैं।

देवेंद्र परमार की कहानी बड़ी दिलचस्प है। उनका खेती के साथ-साथ डेयरी का व्यवसाय भी है। वह आस-पास के गांवों से दूध खरीदते है और इसे कारों और ट्रैक्टरों के माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाते हैं।

उन्हें रोज़ाना 3 हजार रुपए का डीजल और पेट्रोल गाड़ियों में डालना पड़ता था। इसके अलावा उन्हें डीजल और पेट्रोल के लिए 3 हजार रुपये गाय के गोबर के उपलों में डालने पड़े। इस खर्च से परेशान होकर उन्होंने अपने ही गोबर गैस प्लांट को बायोगैस प्लांट में तब्दील कर दिया।

बिहार के एक इंजीनियर ने प्लांट लगाने में मदद की, जिसकी लागत उन्हें 25 लाख रुपये लगी। अब खेत में ही प्लांट से प्रतिदिन 70 किलो गैस गुब्बारों में बन रही है। इसे सी.एन.जी. के रूप में इस्तेमाल कर बोलेरो पिकअप वाहन, अल्टो कार, ट्रैक्टर व बाइक बिना किसी खर्च के चलाई जा रही है।

इस प्रकार बायोगैस प्लांट से बिजली, खाद और ईंधन बनाया जाता है

शाजापुर जिला के हेडक्वार्टर से 55 किमी दूर पतलावाड़ा गांव के देवेंद्र परमार ने सिर्फ 8वीं पास की है। देवेंद्र 100 दुधारू पशुओं की देखभाल करते हैं। वह खेत में लगे बायोगैस प्लांट से न सिर्फ अपने वाहन चला रहे हैं बल्कि वर्मीकम्पोस्ट के साथ बिजली भी पैदा कर रहे हैं।

प्लांट से रोजाना 70 किलो गैस के अलावा 100 यूनिट बिजली पैदा हो रही है। वह केंचुआ खाद बेचकर तीन हजार रुपये और दूध बेचकर चार हजार रुपये रोज़ाना कमा रहे हैं। इस तरह उन्हें एक महीने में करीब 2 लाख 10 हजार रुपये और सालाना करीब 25 लाख रुपये की आमदनी हो रही है।

बायोगैस को बिजली में बदलने का तरीका

देवेंद्र का कहना है कि उनके पास सात बीघा जमीन है। उन्होंने पिछले चार साल से रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया। साथ ही 100 दुधारू पशु भी हैं। इससे रोजाना 25 क्विंटल गोबर जमा हो जाता है। एक ऑटोमैटिक मशीन के माध्यम से गाय के गोबर को 100 घन मीटर के बायोगैस प्लांट में डाला जाता है। जिससे 100 यूनिट या 12 किलोवाट बिजली पैदा होती है। गाय के गोबर के कचरे का उपयोग केंचुआ खाद बनाने में किया जाता है। 300 किलो जैविक खाद 10 रुपए किलो बिक रही है। खाद केवल आसपास के गांवों के किसान ही लेते हैं।

ऐसे बनता है वाहनों का ईंधन

देवेंद्र ने बताया कि बायोगैस प्लांट में 2500 किलो गोबर से बनने वाली गैस में 60 फीसदी मीथेन और 40 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड होता है। कार्बन डाइऑक्साइड को पानी और तेल से शुद्ध करके अलग किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड और पानी एक साथ एक पाइप से बाहर निकलते हैं। दूसरे पाइप से मीथेन गैस गुब्बारे में आती है। कंप्रेसर इस गैस को कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) के रूप में वाहनों तक पहुंचाता है। माइलेज के मामले में यह प्रति किलोग्राम 15 किलोवाट-घंटे के हिसाब से डीजल से बेहतर काम करती है।

परमार की कहानी इस बात की सच्ची प्रेरणा की कहानी है कि जहां चाह है वहां राह है। उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ता ने उन्हें “भारत के गैस गुरु” का खिताब हासिल करने में मदद की है।

किसानों के लिए संदेश

श्री परमार का मानना है कि किसानों को अपने वित्त का प्रबंधन करने के लिए खुद का कौशल बढ़ाते रहना चाहिए। किसानों को हमेशा खेती के पुराने तरीकों को छोड़ कर कमाई के नए अवसरों और तरीकों की तलाश करनी चाहिए।

अदनान अली खान

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TUFA नाम ब्रांड के तहत बनाये विभिन्न तरह के उत्पाद

यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो बचपन से ही खेती से जुड़ा हुआ है। शोपियां, जम्मू और कश्मीर से यह चौथी पीढ़ी के किसान और एक उद्यमी जिन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट प्रबंधन, कृषि व्यवसाय, उत्पाद विकास, इनोवेशन, उत्पादन और नियोजन प्रबंधन में दस साल का अनुभव है। अदनान अली खान जी ने पुणे में भारती विद्यापीठ यूनिवर्सिटी से इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में बी.ई. पूरी की और जम्मू-कश्मीर के अवंतीपोरा में इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से मार्केटिंग और एच.आर. में एम.बी.ए. की।

उन्होंने ए.एल. करीम Souq Pvt. Ltd ब्रांड नाम “TUFA” के साथ 2019 में अपना स्टार्टअप शुरू किया जिसका उदेश्य जम्मू और कश्मीर के किसानों को समर्थ बनाना है। अरबी में “TUFA” का अर्थ सेब होता है।

उनके स्टार्टअप, “TUFA” का मुख्य काम कृषि और बागवानी से बिचौलियों हटाना और ब्रांडिंग, मार्केटिंग,उत्पादों को ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से सीधे ग्राहकों को या बिज़नेस-से-बिज़नेस तक सीधा बेचना था, जिससे  30% से 40% तक किसानों को लाभ हुआ। साथ ही, कई अन्य एग्रीटेक स्टार्टअप इस दिशा में पहल करने के लिए आगे आएंगे। इनका मुख्य लक्ष्य कश्मीरी उत्पादों जैसे सेब, अखरोट, बादाम, केसर और अन्य उत्पादों की कीमत को बढ़ाना है और ग्राहकों के खरीदने योग्य बनाना है।

सेब को सफलतापूर्वक बेचने के बाद, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सेबों को नए तरीके से पैकेज करने का फैसला किया, जिससे उन्हें कश्मीर के अन्य प्रीमियम उत्पादों जैसे केसर, अखरोट, बादाम, शिलाजीत, लैवेंडर का तेल, कहवा और अन्य उत्पादों को पूरे भारतीय मार्किट में लाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

अदनान अली जी को देश और विदेश के ग्राहकों से बहुत प्यार मिला। वह न केवल उत्पाद बनाते हैं बल्कि बिना किसी बिचौलियों के अपने उत्पादों का ब्रांड, मार्किट और बेचते भी हैं। इससे किसानों की आमदन में वृद्धि हुई है और वह व्यापारिक बातचीत करने के समर्थ भी हुए। इनका मुख्य उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में एक स्टार्टअप इकोसिस्टम बनाना था ताकि कृषि और बागवानी उद्योग नई ऊंचाई तक पहुंच सके।

2010 में रिसर्च करते समय उन्होंने यह समझा कि बिचौलियों द्वारा किसानों को बहुत नुक्सान हो रहा है, किसानों को मूल्य का केवल 20% प्राप्त होता है। अदनान अली खान जी का प्रबंधन पृष्ठभूमि है, तो उन्होंने रिसर्च करना शुरू किया और यह जाना कि थोक मूल्य और रिटेल रेट में बहुत बड़ा अंतर है।

अदनान ने देखा कि कश्मीरी उत्पादों की भारी मांग है, जो कि प्रीमियम उत्पाद हैं। TUFA ने सेब के छोटे पैक के साथ शुरुआत की और उन्हें कश्मीर के सुपरमार्केट में सप्लाई किया, और यह ग्राहकों को काफी पसंद आया। फिर उन्होंने अन्य उत्पादों जैसे केसर, अखरोट, बादाम, लैवेंडर का तेल आदि के साथ शुरुआत की।

अदनान अली खान इक्विटी, समावेश और स्थिरता के सिद्धांतों का उपयोग करके सीमांत किसानों की मदद करके कृषि-उत्पाद विकास में उत्कृष्टता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

उनका मिशन मार्किट की खोज में कृषि-किसानों को मार्किट सहायता, सीधी और सहज प्रदान करके कनेक्टिविटी की प्राप्ति और तकनीकी दखल अंदाजी द्वारा मुख्यधारा की मार्किट एकीकरण में सहायता प्रदान करके राष्ट्रीय स्तर पर एक सफल कृषि-किसान बनना है।

“TUFA” एक तरह से प्रकृति की देन है, क्योंकि सभी उत्पाद प्राकृतिक और सीधे फार्म वाले होते हैं, जिनमें कोई मिलावट या केमिकल नहीं होता। ज़्यादातर उत्पादों में मिनरल्स, पौष्टिक तत्व और औषधीय मूल्य होते हैं, जैसे कि अखरोट, बादाम, केसर, लैवेंडर का तेल आदि। अच्छी बात यह है कि जैविक उत्पाद बाजार में अन्य ब्रांडों की तुलना में 30% कम महंगे होते हैं और इनमें गुण बेमिसाल होते हैं।

उत्पादों की सूची

  • सेब, अखरोट, बादाम, केसर, शिलाजीत, लैवेंडर तेल, गुलकंद।
  • अंजीर, क्रैनबेरी, ब्लूबेरी, राजमा दाल।
  • कहवा चाय, शहद, मसाला टिक्की, लाल मिर्च पाउडर।
  • लैवेंडर की चाय, खुबानी, अखरोट का तेल, बादाम का तेल, सेब का आचार और सेब की चटनी आदि।

खान जी अपने इस कार्य को शुरू करने में भाग्यशाली रहे, क्योंकि उन्हें इस काम में सभी का समर्थन मिला। उनका परिवार और सलाहकार हमेशा समर्थन के स्रोत रहे हैं। इसके अलावा, उन्हें इस काम के लिए एन.आई.ए.एम. जयपुर, वाइस चांसलर SKUAST कश्मीर, वाइस चांसलर IUST कश्मीर, डायरेक्टर CIED IUST, और डायरेक्टर जनरल हॉर्टिकल्चर कश्मीर जैसे कई उच्च अधिकारीयों द्वारा समर्थन और प्रशंसा मिली। वहां शामिल लोगों में जम्मू-कश्मीर के माननीय उपराज्यपाल, यूटी अध्यक्ष श्री मनोज सिन्हा और जम्मू-कश्मीर के किसान शामिल थे।

भविष्य की योजना

उनकी योजना प्रीमियम कश्मीरी उत्पाद बेचने के लिए एक फ्रैंचाइजी मॉडल तैयार करने की है। अदनान जी की पूरे भारत में पहचान होगी और हम कश्मीर से अन्य अधिक तरह के उत्पादों को लेकर आने का प्रयास करेंगे। वह फ्लिपकार्ट और ऐमाज़ॉन पर भी उत्पाद बेचना चाहते हैं ताकि वह सभी ग्राहकों तक पहुँच कर सके। वह फ्रैंचाइज़ी मॉडल के माध्यम से पूरे भारत में स्टोर खोलने का भी प्रयास कर रहे हैं। वह अपने कार्य को पूरे भारतीय स्तर पर बढ़ाना चाहते है।

चुनौतियां

अदनान जी को शुरुआत में पूंजी निवेश, ज्ञान की कमी और माहिरता के मामले में बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। COVID-19 के दौरान, सभी कार्य रोक दिए गए थे। अब चीजें आसान हो गई हैं और हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

अदनान अली जी ने अगले 10 वर्षों में ‘TUFA’ को जम्मू-कश्मीर का पहला यूनिकॉर्न बनाने की इच्छा व्यक्त करते हैं। वह किसानों को बिचौलियों के बिना सीधे ग्राहकों तक अपनी उपज बेचने के लिए एक प्लेटफार्म प्रदान करना चाहते हैं। उनका मानना है कि हर दिन वह प्रीमियम कश्मीरी उत्पादों के लिए एक ब्रांड बनाने के अपने उद्देश्य की दिशा में काम कर रहे हैं जो उचित कीमत पर गुणवत्ता वाले उत्पाद पेश करेगा।

किसानों के लिए संदेश

किसानों को आत्मविश्वासी होना चाहिए, अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहिए, अपने उत्पादों को बेचना और बिचौलियों को कृषि व्यवसाय से निकाल देना चाहिए। हमें हर किसान की आय को दोगुना करने के लिए भारत के माननीय प्रधान मंत्री के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

धर्मबीर कंबोज

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रिक्शा चालक से सफल इनोवेटर बनने तक का सफर

धर्मबीर कंबोज, एक रिक्शा चालक से सफल इनोवेटर का जन्म 1963 में हरियाणा के दामला गांव में हुआ। वह पांच भाई-बहन में से सबसे छोटे हैं। अपनी छोटी उम्र के दौरान, धर्मबीर जी को अपने परिवार को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी। धर्मबीर कंबोज, जो किसी समय गुज़ारा करने के लिए संघर्ष करते थे, अब वे अपनी पेटेंट वाली मशीनें 15 देशों में बेचते हैं और उससे सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं।
80 दशक की शुरुआत में, धर्मबीर कांबोज उन हज़ारों लोगों में से एक थे, जो अपने गांवों को छोड़कर अच्छे जीवन की तलाश में दिल्ली चले गए थे। उनके प्रयास व्यर्थ थे क्योंकि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी, इसलिए उन्होंने गुज़ारा करने के लिए छोटे-छोटे काम किए।
धर्मबीर सिंह कंबोज की कहानी सब दृढ़ता के बारे में है जिसके कारण वह एक किसान-उद्यमी बन गए हैं जो अब लाखों में कमा रहे हैं। 59 वर्षीय धर्मबीर कंबोज के जीवन में मेहनत और खुशियां दोनों रंग लाई।
धर्मबीर कंबोज जिन्होनें सफलता के मार्ग में आई कई बाधाओं को पार किया, इनके अनुसार जिंदगी कमज़ोरियों पर जीत प्राप्त करने और कड़ी मेहनत को जारी रखने के बारे में है। कंबोज अपनी बहुउद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन के लिए काफी जाने जाते हैं, जो किसानों को छोटे पैमाने पर कई प्रकार के कृषि उत्पादों को प्रोसेस करने की अनुमति देता है।
दिल्ली में एक साल तक रिक्शा चालक के रूप में काम करने के बाद, धर्मबीर को पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक पब्लिक लाइब्रेरी मिली। वह इस लाइब्रेरी में अपने खाली समय में, वह खेती के विषयों जैसे ब्रोकोली, शतावरी, सलाद, और शिमला मिर्च उगाने के बारे में पढ़ते थे। वे कहते हैं, ”दिल्ली में उन्होंने ने बहुत कुछ सीखा और बहुत अच्छा अनुभव था। हालाँकि, दिल्ली में एक दुर्घटना के बाद, वह हरियाणा में अपने गाँव चले गए।
दुर्घटना में घायल होने के बाद वह स्वस्थ होकर अपने गांव आ गए। 6 महीने के लिए, उन्होंने कृषि में सुधार करने के बारे में अधिक जानने के लिए ग्राम विकास समाज द्वारा चलाए जा रहे एक ट्रेनिंग कार्यक्रम में भाग लिया।
2004 में हरियाणा बागवानी विभाग ने उन्हें राजस्थान जाने का मौका दिया। इस दौरान, धर्मबीर ने औषधीय महत्व वाले उत्पाद एलोवेरा और इसके अर्क के बारे में जानने के लिए किसानों के साथ बातचीत की।
धर्मबीर राजस्थान से वापिस आये और एलोवेरा के साथ अन्य प्रोसेस्ड उत्पादों को फायदेमंद व्यापार के रूप में बाजार में लाने के तरीकों की तलाश में लगे। 2002 में, उनकी मुलाकात एक बैंक मैनेजर से हुई, जिसने उन्हें फ़ूड प्रोसेसिंग के लिए मशीनरी के बारे में बताया, लेकिन मशीन के लिए उन्हें 5 लाख रुपये तक का खर्चा बताया।
धर्मबीर जी ने एक इंटरव्यू में कहा कि, “मशीन की कीमत बहुत अधिक थी।” बहु-उद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन का मेरा पहला प्रोटोटाइप 25,000 रुपये के निवेश और आठ महीने के प्रयास के बाद पूरा हुआ।
कंबोज की बहु-उद्देश्यीय मशीन सिंगल-फेज़ मोटर वाली एक पोर्टेबल मशीन है जो कई प्रकार के फलों, जड़ी-बूटियों और बीजों को प्रोसेस कर सकती है।
यह तापमान नियंत्रण और ऑटो-कटऑफ सुविधा के साथ एक बड़े प्रेशर कुकर के रूप में भी काम करती है।
मशीन की क्षमता 400 लीटर है। एक घंटे में यह 200 लीटर एलोवेरा को प्रोसेस कर सकती है। मशीन हल्की और पोर्टेबल है और उसे कहीं पर भी लेकर जा सकते हैं। यह एक मोटर द्वारा काम करती है। यह एक तरह की अलग मशीन है जो चूर्ण बनाने, मिक्स करने, भाप देने, प्रेशर कुकिंग और जूस, तेल या जेल्ल निकालने का काम करती है।
धर्मबीर की बहु-उद्देश्यीय प्रोसेसिंग मशीन बहुत प्रचलित हुई है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने उन्हें इस मशीन के लिए पेटेंट भी दिया। यह मशीन धर्मबीर कंबोज द्वारा अमेरिका, इटली, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, केन्या, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे और युगांडा सहित 15 देशों में बेची जाती है।
2009 में, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया (NIF) ने उन्हें पांचवें राष्ट्रीय दो-वर्षीय पुरस्कार समारोह में बहु-उद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन के आविष्कार के लिए हरियाणा राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया।
धर्मबीर ने बताया, “जब मैंने पहली बार अपने प्रयोग शुरू किए तो लोगों ने सहयोग देने की बजाए मेरा मज़ाक बनाया।” उन्हें मेरे काम में कभी दिलचस्पी नहीं थी। “जब मैं कड़ी मेहनत और अलग-अलग प्रयोग कर रहा था, तो मेरे पिता जी को लगा कि मैं अपना समय बर्बाद कर रहा हूं।”
‘किसान धर्मबीर’ के नाम से मशहूर धर्मबीर कंबोज को 2013 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। कांबोज, जो राष्ट्रपति के अतिथि के रूप में चुने गए पांच इनोवेटर्स में से एक थे, जिन्होनें फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन बनाई, जो प्रति घंटे 200 किलो टमाटर से गुद्दा निकाल सकती है।
वह राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अतिथि के रूप में रुके थे, यह सम्मान उन्हें एक बहु-उद्देश्यीय फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन बनाने के लिए दिया गया था जो जड़ी बूटियों से रस निकाल सकती है।
धर्मवीर कंबोज की कहानी बॉलीवुड फिल्म की तरह लगती है, जिसमें अंत में हीरो की जीत होती है।
धर्मबीर की फूड प्रोसेसिंग मशीन 2020 में भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मदद करने के लिए पॉवरिंग लाइवलीहुड्स प्रोग्राम के लिए विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन एंड काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) द्वारा चुनी गई छह कंपनियों में से एक थी। प्रोग्राम की शुरुआत मोके पर CEEW के एक बयान के अनुसार 22 करोड़ रुपये का कार्य, जिसमें स्वच्छ ऊर्जा आधारित आजीविका समाधानों पर काम कर रहे भारतीय उद्यमों को पूंजी और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। इन 6 कंपनियों को COVID संकट से निपटने में मदद करने के लिए कुल 1 करोड़ रुपये की फंडिंग भी प्रदान की।
“इस प्रोग्राम से पहले, धर्मवीर का उत्पादन बहुत कम था।” अब इनका कार्य एक महीने में चार मशीनों से बढ़कर 15-20 मशीनों तक चला गया है। आमदनी भी तेजी से बढ़ने लगी। इस कार्य ने कंबोज और उनके बेटे प्रिंस को मार्गदर्शन दिया कि सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीनों जैसे तरीकों का उपयोग करके उत्पादन को बढ़ाने और मार्गदर्शन करने में सहायता की। विलग्रो ने कोविड के दौरान धर्मवीर प्रोसेसिंग कंपनी को लगभग 55 लाख रुपये भी दिए। धर्मबीर और उनके बेटे प्रिंस कई लोगों को मशीन चलाने के बारे में जानकारी देते और सोशल मीडिया के माध्यम से रोजगार पैदा करते है।

भविष्य की योजनाएं

यह कंपनी आने वाले पांच सालों में अपनी फ़ूड प्रोसेसिंग मशीनों को लगभग 100 देशों में निर्यात करने की योजना बना रही है जिसका लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष में 2 करोड़ रुपये और वित्तीय वर्ष 27 तक लगभग 10 करोड़ तक ले जाना है। अब तक कंबोज जी ने लगभग 900 मशीनें बेच दी हैं जिससे लगभग 8000 हज़ार लोगों को रोज़गार मिला है।

संदेश

धर्मबीर सिंह का मानना है कि किसानों को अपने उत्पाद को प्रोसेस करने के योग्य होना चाहिए जिससे वह अधिक आमदनी कमा सके। सरकारी योजनाओं और ट्रेनिंग को लागू किया जाना चाहिए, ताकि किसान समय-समय पर सीखकर खुद को ओर बेहतर बना सकें और उन अवसरों का लाभ उठा सकें जो उनके भविष्य को सुरक्षित करने में मदद करेंगे।

दीपक सिंगला और डॉ. रोज़ी सिंगला

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प्रकृति के प्रति उत्साह की कहानी

यह एक ऐसे जोड़े की कहानी है जो पंजाब का दिल कहे जाने वाले शहर पटियाला में रहते थे और एक-दूसरे के सपनों को हवा देते थे। इंजीनियर दीपक सिंगला पेशे से एक सिविल इंजीनियर हैं और शोध-उन्मुख है इसके साथ ही अच्छी बात यह है कि उनकी पत्नी, डॉ. रोज़ी सिंगला एक खाद्य वैज्ञानिक हैं। दोनों ने फलों और सब्जियों के कचरे पर काफी रिसर्च किया और ऑर्गेनिक तरल खाद का आविष्कार किया, जो हमारे समाज के लिए वरदान है।
एक पर्यावरणविद् और एक सिविल इंजीनियर होने के नाते, उन्होंने हमेशा एक ऐसा उत्पाद बनाने के बारे में सोचा जो हमारे समाज की कई समस्याओं को हल कर सके और स्वच्छ भारत अभियान ने इसे हरी झंडी दे दी। यह उत्पाद फल और सब्जी के कचरे से तैयार किया जाता है, जो कचरे को कम करने में मदद करता है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है, जो पंजाब और भारत में दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है।
 दीपक और उनकी पत्नी रोज़ी ने 2016 में अच्छी किस्म के हर्बल, जैविक और पौष्टिक-औषधीय उत्पादों को the brand Ogron: Organic Plant Growth Nutrient Solution के तहत जारी किया ।
उनका मानना है कि जैविक पदार्थों के इस्तेमाल से रासायनिक आयात कम होगा और हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह रसायनों और कीटनाशकों के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को हल करेगा। जैविक उत्पादों का प्रयोग होने पर वायु, जल और मिटटी प्रदूषण की रोकथाम भी की जा सकेगी।
प्रोफेसर दीपक ने किसानों को एक प्राकृतिक उत्पाद देकर उनकी समस्याओं को हल करने की कोशिश की, जो उनकी भूमि के उर्वरता स्तर को बढ़ा सकता है। कीटनाशकों के अवशेषों को कम कर सकता है, और इसके निरंतर उपयोग से तीन से चार वर्षों में इसे जैविक भूमि में परिवर्तित कर सकता है। यह सभी प्रकार के पौधों और फसलों के विकास को बढ़ावा देता है। यह एक प्राकृतिक जैविक खाद है और जैव उपचार में भी मदद करता है।
यह उत्पाद तरल रूप में है, इसलिए पौधे द्वारा ग्रहण करना आसान है। उन दोनों ने एक समान दृष्टि और कुछ मूल्यों को आधार बना रखा था जो एक-दूसरे के व्यावसायिक जुनून को बढ़ावा देने में उनका सबसे शक्तिशाली उपकरण बन गया। उनका उद्देश्य यह था की वो ऐसे ब्रांड को जारी करे जिसका प्राथमिक कार्य मानकीकृत जड़ी-बूटियों और जैविक कचरे का प्रयोग करके उनको सबसे अच्छे उर्वरकों की श्रेणी में शामिल किया जा सके।
उनकी प्रेरक शक्ति कैंसर, लैक्टोज असहिष्णुता और गेहूं की एलर्जी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को कम करना था जिनका लोगों द्वारा आमतौर पर सामना किया जा रहा है, जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अधिक से अधिक उपयोग के कारण दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। साथ ही, उन्होंने जैविक उत्पादों का विकास किया जो पर्यावरण के अनुकूल और प्रकृति के अनुरूप हैं, इस प्रकार आने वाली पीढ़ियों के लिए भूमि, पानी और हवा का संरक्षण किया जा सकता हैं।
इससे उन्हें कचरे का उपयोग करने के साथ-साथ पौधों के विकास और किचन गार्डन के लिए रसायनों का उपयोग करने के जगह एक स्वस्थ विकल्प के साथ समाज की सेवा करने में मदद मिली।
अब तक, इस जोड़ी ने 30 टन कचरे को सफलतापूर्वक कम किया है। आस-पास के क्षेत्रों और नर्सरी के जैविक किसानों से लगभग उन्हें 15000/- प्रति माह से अधिक की बिक्री दे रहे हैं और जागरूकता के साथ बिक्री में और भी वृद्धि हो रही हैं ।
साल 2021 में डॉ. रोज़ी सिंगला ने सोचा, क्यों ना अच्छे खाने की आदत  से समाज की सेवा की जाए? एक स्वस्थ आहार समग्र दवा का एक रूप है जो आपके शरीर और दिमाग के बीच संतुलन को बढ़ावा देने पर केंद्रित होता है। फिर वह 15 साल के मूल्यवान अनुभव और ढेर सारे शोध और कड़ी मेहनत के साथ रोज़ी फूड्स की परिकल्पना की।
एक फूड टेक्नोलॉजिस्ट होने के नाते और खाद्य पदार्थों के रसायन के बारे में अत्यधिक ज्ञान होने के कारण, वह हमेशा लोगों को सही आहार सन्तुलन के साथ उनके स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का इलाज करने में मदद करने के लिए उत्सुक रहती थीं। उसने खाद्य प्रौद्योगिकी पर काफी शोध किया है, और उनके पति एक पर्यावरणविद् होने के नाते हमेशा उनका समर्थन करते थे। हालाँकि नौकरी के साथ प्रबंधन करना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन उनके पति ने उनका समर्थन किया और उन्हें मिल्लेट्स आधारित खाद्य उत्पाद शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उसने दो फर्मों के लिए परामर्श किया और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए भी आहार की योजना बनाई।
उत्पादों की सूचि:
  • चनाओट्स
  • रागी पिन्नी:
  • चिया प्रोटीन लड्डू
  • न्यूट्रा बेरी डिलाइट (आंवला चटनी)
  • मैंगो बूस्ट (आम पन्ना)
  • नाशपाती चटका
  • सोया क्रंच
  • हनी चॉको नट बॉल्स
  • रागी चकली
  • बाजरे के लड्डू
  • प्राकृतिक पौधा प्रोटीन पाउडर
  • मिल्लेट्स दिलकश
सरकार द्वारा जारी विभिन्न योजनाओं जैसे आत्मानिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और कई अन्य ने रोजी फूड्स को बढ़ावा देने के लिए मुख्य रूप में काम किया है।
इस विचार का मुख्य काम पंजाब के लोगों और भारतीयों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करना है। हलाकि  डॉ. रोज़ी का दृढ़ विश्वास है कि एक आहार में कई बीमारियों को ठीक करने की शक्ति होती है। इसलिए वो हमेशा ऐसा कहती है की “Thy Medicine, Thy Food.”
डॉ रोज़ी इन मुद्दों को अधिक विस्तार से संबोधित करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने ऐसे खाद्य पदार्थों को निर्माण किया जो उनके उदेश्य को पूरा करें
  • बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं में भी कुपोषण,
  • समाज की सेवा के लिए एक स्वस्थ विकल्प के रूप में परित्यक्त अनाज (मिल्लेट्स) का उपयोग करना।
  • लोगों के विशिष्ट समूहों, जैसे मधुमेह रोगियों और हृदय रोगियों के लिए चिकित्सीय प्रभाव वाले खाद्य पदार्थ तैयार करना।
  • बाजरे के उपयोग से पर्यावरण संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए, जैसे मिट्टी में पानी का स्तर और कीटनाशक की आवश्यकता।
डॉ रोज़ी ने सफलतापूर्वक एक पंजीकृत कार्यालय सह स्टोर ग्रीन कॉम्प्लेक्स मार्केट, भादसों रोड, पटियाला में में खोला है। ग्राहकों की सहूलियत और  के लिए वे अपने उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री शुरू करेंगे।

इंजीनियर दीपक सिंगला की तरफ से किसानों के लिए सन्देश

लम्बे समय तक चलने वाली बीमारियाँ अधिक प्रचलित हो रही हैं। मुख्य कारणों में से एक रासायनिक खेती है, जिसने फसल की पैदावार में कई गुना वृद्धि की है, लेकिन इस प्रक्रिया में हमारे सभी खाद्य उत्पादों को जहरीला बना दिया है। हालाँकि, वर्तमान में रासायनिक खेती के लिए कोई तत्काल प्रतिस्थापन नहीं है जो किसानों को जबरदस्त फसल की पैदावार प्राप्त करने और दुनिया की खाद्य जरूरतों को पूरा करने की अनुमति देगा। भारत की आबादी 1.27 अरब है। लेकिन एक और मुद्दा जो हम सभी को प्रभावित करता है वह है चिकित्स्य रगों में तेजी से वृद्धि। हमें इस मामले को बेहद गंभीरता से लेना चाहिए। सबसे अच्छा विकल्प जैविक खेती हो सकती है। यह सबसे सस्ती तकनीक है क्योंकि जैविक खाद के उत्पादन के लिए सबसे कम संसाधनों और श्रम की आवश्यकता होती है।

डॉक्टर रोज़ी सिंगला द्वारा किसानों के लिए सन्देश

2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मिल्लेट्स ईयर होने के आलोक में मिल्लेट्स और मिल्लेट्स आधारित उत्पादों के लिए मूल्य श्रृंखला, विशेष रूप से खाने के लिए झटपट तैयार होने वाली श्रेणी को बढ़ावा देने और मजबूत करने की आवश्यकता है। मिल्लेट्स महत्वपूर्ण पोषण और स्वास्थ्य लाभों के साथ जलवायु-स्मार्ट फसलों के रूप में प्रसिद्ध हो रहे हैं। पारिस्थितिक संतुलन और आबादी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए, मिल्लेट्स की खेती को अधिक व्यापक रूप से अभ्यास करने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है। हमारा राज्य वर्तमान में चावल के उत्पादन द्वारा लाए गए जल स्तर में तेज गिरावट के कारण गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। चावल की तुलना में मिल्लेट्स द्वारा टनों के हिसाब से अनाज पैदा करने के लिए बहुत कम पानी का उपयोग करता है।
मिल्लेट्स हमारे लिए , ग्रह के लिए और  किसान के लिए भी अच्छा है।

नीरज कुमार

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जैविक खेती के प्रति जागरूक करने वाली एक आजीवन साइकिल यात्रा

जिंदगी के सफर में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जो इंसान को बदल देते हैं। एक ऐसा वाक्यात नीरज कुमार प्रजापति के साथ हुआ जो की आहुलाना गांव, गोहाना, हरियाणा के रहने वाले हैं। इससे उनके विचार तो बदले ही लेकिन इसके साथ उनकी जिंदगी को एक नया मोड़ मिल गया।
उन्होंने एक दृश्य देखा जिसमे एक ट्रैन कैंसर मरीजों को ले जा रही थी, जिसके बाद उन्होंने बी-टेक का पांचवा समेस्टर छोड़ दिया। उन्होंने साइकिल यात्रा के जरिये जहर मुक्त खेती, यानि जैविक खेती की जागरूकता के लिए अपने करियर की चिंता छोड़ दी। नीरज के निस्वार्थ भाव से उठाए गए इस कदम को देखते हुए उन्हें “द साइकिल मैन ऑफ इंडिया” का नाम दिया गया है।
प्रजापति, नीरज कुमार ने कहा, “जब मैंने पंजाब में बठिंडा से बीकानेर जा रही ट्रेन में कैंसर मरीजों को इलाज के लिए जाते हुए देखा तो मेरा मन उदास हो गया । उस ट्रैन में जो मरीज सफर कर रहे थे उनमें से ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के रहने वाले थे।
उनका मानना था कि खेतीबाड़ी में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग भी कैंसर के प्रमुख कारणों में से एक है। इसे देखते हुए उन्होंने फैसला किया कि वह किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करेंगे।
नीरज ने उन्हें ना केवल जैविक खेती की तकनीक सिखाई, बल्कि उन्होंने मार्केटिंग के लिए चैनल भी तैयार किए। आज अपनी उपज के विक्रय केन्द्रों के साथ-साथ ये सभी किसान ना केवल अधिक पैसा कमा रहे हैं बल्कि कम संसाधनों के साथ अधिक उत्पादन भी कर रहे हैं।
नीरज अब लगभग 70,000 किसानों को प्रशिक्षित कर चुके हैं और प्रति माह 1,000 किलोग्राम भोजन के उत्पादन में उनकी सहायता कर रहे हैं। उन्होंने 2018 में फसल बेचने के लिए अंतरराष्ट्रीय कृषि संस्थानों और हाउसिंग सोसाइटियों के साथ सफलतापूर्वक भागीदारी की। उनके प्रयास यहीं समाप्त नहीं हुए। अपने दृष्टिकोण और संचार कौशल के माध्यम से, उन्होंने किसानों को अपनी साइकिल पर देश भर में यात्रा करने और सब्जियों और अनाज के लिए बाजार स्थापित करने में सक्षम बनाया।
खेती के साथ साइकिल यात्रा के रोमांच के बाद, उन्होंने “किसानों का जीवन” नामक पुस्तक में अपने अनुभवों के बारे में लिखने का फैसला किया। जैविक खेती के बारे में सीखने और इसके तरीकों को लागू करने के लिए, उन्होंने अब किसानों को समझाने से लेकर प्रशिक्षण और उनकी उपज बेचने में उनकी सहायता करने तक सब कुछ किया है।
नीरज प्रजापति यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी विशेष क्षेत्र की यात्रा के दौरान, वह जैविक खेती पर शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से मिले और फिर इन नई तकनीकों को विभिन्न गांवों के किसानों तक पहुंचाएं।
वह किसानों के काम में मदद करते है। वह किसानों की चिंताओं को सुनते हैं और फिर समाधान खोजने के लिए विशेषज्ञों से सलाह लेते हैं।
COVID प्रतिबंधों और लॉकडाउन के कारण, नीरज का मिशन रुका हुआ था
“यह हमारे लिए युवा और होनहार किसानों पर ध्यान केंद्रित करने का समय है, खासकर उन लोगों पर जिन्होंने हाल ही में खेतों में काम करना शुरू किया है।” 25 वर्षीय नीरज कहते हैं, “युवा किसानों को उचित तकनीकों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि वे कृषि में काम करना जारी रखने के लिए प्रेरित महसूस करें।”
जैविक खेती और फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग से जुड़ी समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रजापति देश भर में 111,111 किलोमीटर तक साइकिल चलाने के मिशन पर हैं। वह कहते है, यह सबसे अधिक उत्साहपूर्ण भावनाओं में से एक था जिसे मैंने कभी अनुभव किया था। नीरज प्रजापति कहते हैं, “मुझे बी-टेक से बाहर हुए तीन साल हो गए, लेकिन मुझे लगा कि बदलाव रंग ला रहा है।”
शुरुआत से बात करते है: कैसे नीरज प्रजापति नाम का एक बी-टेक ड्रॉपआउट विद्यार्थी किसान बन गया और भारत के किसान समुदाय में साइकिल यात्रा के माध्यम से जैविक खेती और जीएपी को अपनाने के लिए जागरूक किया और उनकी मदद की।
उन्होंने अपनी बचत का इस्तेमाल कुछ साल बाद साइकिल खरीदने के लिए किया। विस्तृत खोज करने के बाद, उन्होंने विभिन्न शोध संस्थानों, कॉलेजों और गांवों में जाना और जानकारी प्राप्त करना शुरू किया।
तीन साल तक जैविक खेती का ज्ञान प्राप्त करने के बाद उनको विश्वास हो गया वो पंजाब और हरियाणा के आस पास वाले जिलों में किसानो को इसके लिए ट्रेनिंग प्रदान कर सकते हैं।
इस इंजीनियरिंग ड्रॉपआउट ने कई उत्तरी राज्यों में किसानों को जैविक खेती के लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिए 44,817 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की।
उन्होंने राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में किसानों को उनकी फसलों पर कीटनाशकों के उपयोग के खतरों के बारे में शिक्षित करने के लिए साइकिल चलाई है। वह इस बारे में जागरूकता बढ़ा रहे है कि इन रसायनों का उत्पादन कैसे किया जाता है। जिस कारण देश में फेफड़ों की बीमारी और कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं।
नीरज अब तक हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में 44817 किलोमीटर का सफर तय कर लोगों को जागरूक कर चुके हैं। नीरज ने जैविक जागरूकता के लिए 1 लाख 11 हजार 111 किलोमीटर साइकिल यात्रा का लक्ष्य रखा है।
नीरज ने कहा, “मैं 45,000 किमी का आंकड़ा पार करने वाला हूं।” वह आने वाले वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में अपने आगामी साइकिलिंग कार्यक्रमों के माध्यम से और अधिक किसानों की भर्ती करने की योजना बना रहे है और वह जैविक उत्पादों और जीएपी के उपभोग के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना चाहतें है।
उन्होंने बिना अपने करियर की चिंता करे किसानों को जहर मुक्त खेती के बारे में जागरूक करने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक यात्रा करने का निर्णय किया और अपना सफर शुरू कर दिया था। वह जहां भी जाते हैं खेतों में जाते हैं और लोगों को कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले नुकसान के बारे में बताते हैं।

किसानों के लिए संदेश

नीरज ने एग्रोकेमिकल्स के उपयोग को कम से कम करने पर अपनी राय व्यक्त की है। जैविक खेती की ओर रुख करना और मिट्टी के स्वास्थ्य की रक्षा करना और मूल्यवान फसल के लिए मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की मात्रा बढ़ाना महत्वपूर्ण है।

नरेंद्र और लोकेश

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दो दोस्तों की कहानी

अगर भारत की बात करें तो यहां काफी लोग पशुपालन करते हैं। जानवरों के प्रति लोगों का लगाव, उनकी देखरेख यहां देखने को मिलती है।
आपको बता दें कि दुनिया में भैंसों की संख्या के मामले में भारत का पहला स्थान है, गाय और बकरी पालन के मामले में दूसरा और भेड़ों के मामले में तीसरा स्थान है। पशुपालन से यहां हर साल करोड़ों रुपये की कमाई होती है। आज आप भारत के हरियाणा के निवासी नरेंद्र और लोकेश के बारे में जानेंगे, जिन्होंने “यदुवंशी बकरी फार्म” शुरू किया और बकरी पालन करके करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। दोनों आर्मी स्कूल में पढ़े। नरेंद्र और उसका दोस्त लोकेश हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल के रहने वाले हैं। दोनों बचपन से दोस्त थे और दोनों ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आर्मी स्कूल में पूरी की। फिर नरेंद्र ने बी.टेक. किया, जबकि उनके दोस्त लोकेश ने एम.सी.ए. की पढ़ाई पूरी की। दोनों में ऐसी दोस्ती हुई कि दोनों ने साथ में पढ़ाई पूरी की।
नरेंद्र ने बताया कि जब वह और उसका दोस्त लोकेश साथ पढ़ते थे तो दोनों बिजनेस नहीं करना चाहते थे। बाद में नौकरी करते हुए उन्होंने अपने व्यवसाय को बढ़ाने की योजना बनाई। दोनों को अपनी नौकरी पसंद थी और लाखों रुपये कमा रहे थे, लेकिन दोनों ने अपना व्यवसाय करने की योजना बनाई। इसी सोच के साथ दोनों ने बकरी पालन शुरू किया और 2016 में “यदुवंशी बकरी” फार्म की स्थापना हुई थी।
बकरियों के फार्म के बारे में बात करते हुए नरेंद्र कहते हैं कि अगर कोई बकरी पालन करने के बारे में सोच रहा है तो सबसे पहले उसके लिए एक बड़ा फार्म होना जरूरी है। नरेंद्र और लोकेश ने बकरी पालन के लिए करीब 3.5 एकड़ का कैंपस भी तैयार किया। उनके पास डेढ़ एकड़ बकरियों के लिए और 2 एकड़ बकरियों के हरे चारे के लिए है। वे विशेष रूप से बकरी की किस्म तोतापारी का व्यवसाय करते हैं।
नरेंद्र और लोकेश हरियाणा में सबसे बड़े स्टाल-फीडिंग फार्म के साथ बकरियों की नस्ल पर काम करते हैं। . नरेंद्र के खेत पर उन्होंने यहां बकरियों की उम्र के हिसाब से रहने की व्यवस्था की है। जो बकरियां युवा है उन्हें एक जगह रखा जाता है और साथ ही उनके पास एक साल की उम्र के बकरों के लिए अलग से व्यवस्था है। बकरियों को उनकी उम्र और सेहत के आधार पर रखा जाता है।
एक साल से बड़ी बकरियों के लिए भी अलग से व्यवस्था है। वे कहते हैं कि बकरियों वाले कमरों में खिड़कियां ज़मीन के थोड़ा करीब हों तो बेहतर है, क्योंकि इससे जमीन ठंडी रहती है। वह लोगों को सलाह भी देते हैं कि खिड़कियां अधिक ऊंचाई पर न रखें। यदुवंशी बकरी फार्म खोलने से पहले नरेंद्र और लोकेश ने बकरियों की विशेष देखभाल का पूरा ध्यान रखा। यदुवंशी बकरी फार्म पर बकरियों के रहने की पूरी व्यवस्था की गई है। बकरियों को लगातार छाया मिले इसके लिए फार्म के अंदर पेड़ लगाए गए हैं। फार्म के अंदर बकरियों के घूमने के साथ ही खाने और पानी का पूरा इंतजाम है। घुमाने वाला आयरन फीडिंग स्ट्रक्चर लगाया गया है और पानी पीने के लिए प्लास्टिक के छोटे-छोटे ड्रम भी लगाए गए हैं ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो।
शुरू से ही दोनों की दोस्ती बहुत गहरी रही है, उनके परिवारों को भी उनकी दोस्ती पर गर्व है और उनके उतार-चढ़ाव में उनका साथ देते हैं।
नरेंद्र और लोकेश के यदुवंशी बकरी फार्म में बकरियों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है। नरेंद्र कहते हैं कि मैं इन बकरियों की अपने बच्चों की तरह देखभाल करता हूं। जब से वे पैदा होते हैं तब से लेकर युवा होने तक, वह उनके स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होता है। जन्म के बाद उनके लिए टीके, दवाइयां और भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है।
समय-समय पर सेहत की जांच भी कराई जाती है। बकरियों को पशु चिकित्सक की देखरेख में वेक्सीनेशन करवाई जाती है, और बकरियों को संतुलित आहार भी दिया जाता है जिसमें सभी जरुरी तत्व होते हैं और उनमें रपीट की समस्या या ओर बीमारियां कम होती है।
नरेंद्र कहते हैं कि बकरियों में ब्रुसेला नाम का वायरस जल्दी होता है। यह वायरस बहुत खतरनाक है और इंसानों में फैल सकता है जिसके कारण बकरियों के खून की जाँच नियमित रूप पर की जाती है। यदुवंशी बकरी फार्म में बकरियों का चारा उनकी ग्रोथ के हिसाब दिया जाता है। इन बकरियों के पालन पोषण और रख-रखाव का विशेष ध्यान रखा जाता है।
अब उनके फार्म पर एक हजार से अधिक बकरियां हैं। यदुवंशी बकरी फार्म में बकरियों की देखरेख बहुत अच्छे से की जाती है, पहले इनकी संख्या 500-600 थी, लेकिन अब बकरियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वैसे नरेंद्र और लोकेश के बनाए फार्म पर 3000 बकरियां तक रखी जा सकती हैं।
यदुवंशी बकरी फार्म के मुनाफे की बात करें तो आज नरेंद्र और लोकेश मांस और बकरी के दूध के लिए बकरियां बेचकर करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। वह बकरियों की मेंगन से बनी खाद भी बेचते हैं, जिसकी एक ट्रॉली की कीमत गाय के गोबर की कीमत 2,000 रुपये तक होती है। इससे भी अच्छी आमदनी होती है। जिसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है और जो खेतों के लिए बहुत फायदेमंद होती है।
नरेंद्र और लोकेश बकरी पालन के साथ-साथ बकरी पालन की ट्रेनिंग भी देते हैं अगर किसी के पास पैसे की कमी है तो ऐसे लोगों को फ्री ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें बकरी पालन के बारे में सब कुछ सिखाया जाता है और बकरी पालन में आ रही दिक्कतों के बारे में भी बताया जाता है। आज कई लोग उनसे ट्रेनिंग प्राप्त कर अपना व्यवसाय खोल रहे हैं। उनके इलाके में ऐसा माना जाता है कि इन दोनों दोस्तों ने बकरी फार्म खोलकर एक मिसाल कायम की है। इन दोनों दोस्तों ने सबसे पहले अपने क्षेत्र के लोगों को बकरी पालन के बारे में जागरूक किया।
दोनों मित्र अपनी नीतियों को साझा करते हैं: बकरे का मांस तो सभी खाना चाहते हैं, लेकिन रखना कोई नहीं चाहता। अगर मांस खाना है तो बकरियों को भी ठीक से पालना होगा। बकरी पालन के लिए उनका कहना है कि यह व्यवसाय तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक बकरियों के जन्म से लेकर उनके बड़े होने तक उनकी देखभाल सही तरह से नहीं की जाती। अगर इस काम में थोड़ी सी भी कमी या लापरवाही हुई तो यह आपके बिजनेस को नुकसान पहुंचा सकता है और अगर सब कुछ सही तरीके से किया गया तो यह बिजनेस आपको करोड़ों रुपए भी दिलाएगा। बकरी पालन और इस काम में रुचि रखने वालों के लिए, वे यदुवंशी बकरी फार्म के नाम से एक YouTube चैनल चलाते हैं ताकि लोगों को बकरियों के पालन-पोषण के संबंध में जानकारी दी जा सके।

भविष्य का लक्ष्य

नरेंद्र और लोकेश अधिक लाभ कमाने के लिए अपनी बकरियों को विदेशों में निर्यात करना चाहते हैं, जहां कीमतें बहुत अधिक हैं। वे नए फार्म खोलने की भी योजना बना रहे हैं ताकि विदेशों में होने वाली बकरियों की मांग को पूरी किया जा सके।

चुनौतियों

इसमें मुख्य चुनौती मजदूर प्रबंधन है। कच्चे माल में हर साल वृद्धि के साथ लागत भी बढ़ जाती है। पहले इन्हें बकरी पालन की मार्किट के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था जो नरेंद्र और लोकेश ने अपने व्यवसाय को फलने-फूलने के लिए स्थापित किया था।

किसानों के लिए संदेश

 कोई भी पशुधन व्यवसाय शुरू करने से पहले धैर्य रखें और उचित ट्रेनिंग प्राप्त करें। साथ ही लाभ पाने के लिए बकरी पालन में कम से कम 2 साल का इंतजार करें। कृपया अपने क्षेत्र और वहां मार्किट में मांग के अनुसार एक नस्ल चुनें, सुनिश्चित करें कि आपके पास अच्छी तरह काम करने वाले मज़दूर हैं जो बकरियों पर नज़र रखें और खुद भी इस काम में पूरा ध्यान रखें।

श्याम रॉड

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पेशे से एक कलाकार, बेहतर ज़िंदगी के लिए किसान बनने तक का सफर- श्याम रॉड

यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिन्होंने कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का मूल्य सीखा। एक पूर्व कला शिक्षक से किसान बने, श्याम रॉड जी 50 से अधिक विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों के साथ एक अनोखा खाद्य वन तैयार किया। इसके साथ ही वह भूमि नेचुरल फार्म्स के संस्थापक भी है क्योंकि उन्हें हमेशा से ही बागवानी का शौक रहा है। आप सभी को यह जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने बिना किसी रसायन या कीटनाशक पदार्थ का इस्तेमाल किये 1 एकड़ ज़मीन पर 1,500 पौधे लगाए। खाद्य वन की खेती करने का निर्णय लेने से पहले उन्होंने वर्ष 2017 में लखनऊ में एक जैविक वृक्षारोपण पर ट्रेनिंग प्राप्त की।
भूमि प्राकृतिक फार्म भारत के केंद्र में एक परिवार के द्वारा चलाया जाने वाला एक छोटा सा फार्म है। फार्म पर धान, गेहूं और सब्जियों सहित कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं। श्याम बागवानी और खेती के प्रति अपने जुनून और इसके इलावा भोजन को खुद उगाने से प्राप्त होने वाली ख़ुशी के बारे में बताते हैं। खाद वन में विभिन्न फलों और सब्जियों के पेड़ शामिल हैं जहां प्रत्येक प्रकार का पेड़ दूसरे प्रकार के पौधे को पालने में मदद करता है।
श्याम रॉड एक कलाकार थे जिन्होंने इस खाद्य वन की स्थापना की थी, उनका एक बेटा है जिसका नाम अभय रॉड है जिसने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन पूरी की और अभी वो एलएलबी की डिग्री करने के साथ ही वह खाद्य वन का काम भी संभाल रहे हैं। इसमें शामिल होने और इसे शुरू करने का कारण दिल्ली का प्रदूषण है क्योंकि वो स्वच्छ हवा में रहना चाहते हैं। श्याम रॉड को उनकी पत्नी, बेटे और उनके पूरे परिवार का समर्थन प्राप्त है। उनका परिवार हमेशा ही नई कृषि पद्धतियों को शुरू करने में उनकी सहायता करता है। अभय रॉड एक खिलाडी है जिसने ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट जीती हुई है और जिसने अपने कौशल और प्रतिभा के साथ राष्ट्रीय स्तर पर कई मैडल जीते हैं। उनका ध्यान अभी जैविक खेती और पूरे भारत में कई खाद्य वनों की खेती पर है।
उनके बारे में फेसबुक के माध्यम से लोग अधिक जान सकते हैं कि श्याम रॉड किस तरह फसल उगाने में प्रकृति पर निर्भर हैं। वह बताते हैं कि कैसे वह कीटों को नियंत्रण में रखने के लिए प्राकृतिक शिकारियों का उपयोग करते है और कैसे वह मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अपने खेतों में सुरक्षित फसलों को उगाते है। उनका यह भी मानना है कि रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए क्योंकि वे हमारे शरीर के लिए हानिकारक हैं और कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं।
मिट्टी को पोषक तत्वों और जीवाणुओं से भरपूर बनाने के लिए खेत में गोबर और गोमूत्र का उपयोग आवश्यक है। इस प्रक्रिया को “मल्चिंग” कहा जाता है। सदियों से किसानों द्वारा इस तरह की प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा रहा है और आज भी कई किसान इस विधि का प्रयोग करते हैं। खेत में इन दोनों उत्पादों का उपयोग करने का मुख्य कारण मिट्टी को स्वस्थ रखना और पौधों की वृद्धि करना है। वह एक प्रक्रिया का इस्तेमाल करते है जिसमें पौधों की जड़ों को गर्मी या ठंड से बचाने के लिए एक पदार्थ (जैसे पुआल या छाल) को जमीन पर रखा जाता है जो कि मिट्टी को गीला रखता है और खरपतवार को उगने से रोकता है।
श्याम जी के फार्म पर खाद्य जंगल मौजूद है वो एक सुंदर और भरपूर जगह है। पेड़ एक साथ लगाए जाते हैं और प्रचुर मात्रा में फल और सब्जियां प्रदान करते हैं। फलों और सब्जियों की प्राप्त होने वाली किस्में भरपूर गुणवत्ता वाली है। जो लोग फार्म को देखने आते हैं वह हमेशा पेड़ों के आकार और स्वास्थ्य के साथ-साथ पेड़ों की मात्रा और उपज की विविधता से प्रभावित होते हैं। खाद्य वन इस बात की एक उदाहरण है कि कैसे एक उत्पादक और टिकाऊ कृषि प्रणाली बनाने के लिए पर्माकल्चर का उपयोग किया जा सकता है। एक प्राकृतिक वन की संरचना की नकल करके खाद्य वन जानवरों और पौधों की कई अलग-अलग प्रजातियों के लिए एक आवास प्रदान करता है। यह एक विभिन्न और लचीला इकोसिस्टम बनाता है जो कीटों के प्रकोप और अन्य चुनौतियों का सामना कर सकता है।
वह अपनी “भूमि” की तुलना एक कैनवास के साथ करते हैं जिसे वह विभिन्न फलों और सब्जियों के साथ रंगना पसंद करते हैं। वह भूमि एक सामान्य जगह से भरपूर भरे हुए खाद्य वन में तब्दील हो गई है। खाद्य वन में नींबू, कटहल, नाशपाती, बेर, केला, पपीता, आड़ू, लीची, हल्दी, अदरक, मौसमी सब्ज़ियां, गेहूं और अलग-अलग किस्मों के बासमती धान उगाए जाते हैं। वह विभिन्न प्रकार के पौधे उगाने के लिए उत्सुक है। वह अपने लक्ष्य के प्रति बहुत समर्पित व्यक्ति हैं जो प्राकृतिक कृषि अभ्यास को अपनाने से पीछे नहीं हटते।
उनको जैविक खेती से प्रेरणा मिलती है, उनका मानना है कि खेती पहले की तरह जैविक तरीके से की जानी चाहिए। यह अतिरिक्त संसाधनों की सहायता और खतरनाक पदार्थों के उपयोग के बिना ही की जानी चाहिए। मनुष्य शरीर पर उर्वरकों के बुरे प्रभाव भी पड़ते हैं। महामारी के दौरान, लोगों ने महसूस किया कि उनका स्वास्थ्य कितना महत्वपूर्ण है और उन्हें जैविक भोजन को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।
वह अक्सर कहते है कि “मेरे परिवार ने हमेशा मेरा समर्थन किया और मुझे सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है”।
जब वह पहली बार जैविक खेती की ओर बढ़े तो उन्होंने कृषि उत्पादन में मामूली कमी देखी लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, उन्होंने उत्पादों को बाजार से अधिक कीमत पर बेचकर लाभ कमाना शुरू कर दिया।
उनकी संस्था न केवल ज़हरीले रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किये बिना मिट्टी की संभाल कर रही है, बल्कि एक एकड़ ज़मीन पर टैंक बनाकर बारिश के पानी को भी जमा कर रही है। इसके अलावा उन्होंने अपने खेतों में ट्यूबवेल के माध्यम से पानी निकालने और बिजली बनाने के लिए अपने खेतों में सौर पैनलों का उपयोग करने के लिए आगे आये। वह पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि “हम दुनिया से जो लेते हैं, हमें वह वापस देना चाहिए।” उन्होंने अपने शहर में टिकाऊ खेती करने का विचार पेश किया। उनके गाँव के अन्य किसान भी उनके जैविक खेती के प्रयासों से प्रेरित हैं और उनसे नए तरीके सीखने आते हैं।

चुनौतियां

वह दूसरों के साथ मिलकर काम करने के महत्व को संबोधित करते हैं कि हर किसी के पास खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्द हो। वह भारत में भोजन की परंपराओं और रीति-रिवाजों के बारे में बात करते हैं और बताते हैं कि कैसे एक क्षेत्र का भोजन दूसरे क्षेत्र में बदलते हैं।

संदेश

उनका मानना है कि रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि वे हमारे शरीर के लिए हानिकारक हैं और कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं। जैविक उत्पाद अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं और किसान इससे अधिक लाभ कमा सकते हैं। श्याम सिंह रॉड एक प्रकृति और पर्यावरण से प्यार करने वाले इंसान हैं जो कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने और उसका विस्तार करने के लिए जैविक खेती के मूल्य के बारे में दूसरों को शिक्षित करने के लिए सभी प्राकृतिक प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए काम करते हैं।

नवनूर कौर

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गुड़ से भरा चम्मच- नवनूर कौर

नवनूर की जिज्ञासा ने उन्हें गुड़ बनने वाले स्थानों का दौरा करने के लिए प्रेरित किया, जहां उन्हें साथ ही गन्ने के रस की सफाई की प्रक्रिया में रसायनों के उपयोग के साथ-साथ बाज़ार में मिलावटी और बिना ब्रांडेड गुड़ के होने के बारे में पता चला।
पर जब से स्वस्थ जीवन की दिशा में अचानक बदलाव आया है, तब से उन्होंने जीवन को स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए चीनी की जगह गुड़ शुरुआत की। हालांकि, दूसरों को यह समझाना एक चुनौती थी कि यह स्वास्थ्य है।
साल 2019 में, नवनूर ने अपने ब्रांड “जैगरकेन” का विचार बनाया और उन्होंने 2021 में अपने ब्रांड के नमूनों का परीक्षण शुरू किया। अच्छी प्रतिक्रिया मिलने के बाद, उन्होंने अपने ब्रांड की प्रोसेसिंग और बिक्री करनी शुरू की। उनकी योजना लोगों को गुड़ का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना था, जो एक अधिक पौष्टिक और खाने में स्वादिष्ट है, जिसका थोड़ी मात्रा में सेवन करने पर व्यक्ति को तीस प्रतिशत तक आयरन प्रदान करता है।
नवनूर और उनके सह-संस्थापक, कौशल सिंह, जिन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से कृषि व्यवसाय से एम.बी.ए. की है, और इनका सपना था कि स्टोर में पड़े गुड़ को “सैड पैक गुड” से एक ट्रेंडी गुड में बदलना था। जो लोगों की नज़रों में आए और लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ले। नवनूर ने कौशल सिंह जी के फार्म का दौरा किया और देखा कि यह तो बहुत ही हाइजेनिक है।
नवनूर और कौशल जी का कहना है कि गुड़ को आधार के रूप में उपयोग करते हुए, हम नट्स और बीजों जैसे पौष्टिक मूल्य परिवर्धन को जोड़कर उत्पाद के लाभों को बढ़ाते हैं।
वह गुणवत्ता को महत्त्व देते हैं और सुनिश्चित करते है कि उनका उत्पाद उनके सामान्य काम करने वालों की तुलना में उत्तम है, क्योंकि उनकी प्रकिर्या में सफाई के तरीके और गन्ने की सफाई के लिए भिंडी की जड़ों का उपयोग किया जाता है।
उनके पोल के परिणाम ने उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुंचाया है कि अधिकतर व्यक्ति गुड़ का स्वाद पसंद नहीं करते। जैगरकेन ऐसे उत्पाद बनाता है जिनका मूल्य अधिक है पर स्वादिष्ट, स्टाइलिश और नए युग के सभी उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त हैं। इन वस्तुओं का सेवन नियमित रूप से स्नेक्स के रूप में भी किया जा सकता है।
नवनूर और कौशल जी की इच्छा चीनी को गुड़ से बदलने की है।
दोनों ने ध्यान दिया कि वह दो रास्तों के माध्यम से आमदनी कमा सकते हैं: व्यापार-से-व्यापार और सीधा उपभोक्ता के साथ।
अन्य व्यवसायों को बेचने से हमें उसी समय भुगतान प्राप्त करने में मदद मिलती है, जैसे कि व्हाइट लेबलिंग। हम उस पैसे का उपयोग अपने ब्रांड को बनाने के लिए सीधे उपभोक्ता तक मार्केट में करते हैं, जो अपने दम पर करना मेहंगा है।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि “भले ही हम चाय और कॉफी में बेहतर मीठे विकल्पों का उपयोग करेंगे, फिर भी स्टाटर्स में चीनी शामिल होगी।
इसके अलावा, जैगरकेन कई प्रकार के स्वादिष्ट उत्पाद प्रदान करता है जो आयरन और प्रोटीन से भरपूर होते हैं और आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा होने के साथ-साथ कुछ मीठा खाने की आपकी लालसा को पूरा कर सकते हैं।

खास उत्पाद

  • ऑर्गैनिक गुड़ के टुकड़े
  • ऑर्गैनिक गुड़ पाउडर
  • बादाम इलाइची गुड़ के टुकड़े
  • कद्दू बीज गुड़ के टुकड़े
  • कुरकुरे गुड़ ग्रेनोला
  • नारियल गुड़ के टुकड़े
कंपनी एक सामाजिक प्रभाव-संचालित व्यवसाय मॉडल के आधार पर काम करती है, और इसके नेतृत्व में उद्देश्य-संचालित महिलाएं शामिल हैं। इसके आलावा ज़्यादातर कंपनी के उत्पाद के उत्पादन और पैकेजिंग की ज़िम्मेदारी के लिए महिलाएं शामिल हैं।
दूसरी तरफ पंजाब के मुख्यमंत्री, भगवंत मान द्वारा जैगरकेन को पंजाब राज्य में उभरते स्टार्टअप्स के रूप में मान्यता दी गई। अब पंजाब में बढ़ रहे व्यवसायों में से एक जैगरकेन भी है।

चुनौतियां

नवनूर जी किसी व्यावसायिक पृष्ठभूमि से नहीं थे, जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो उन्हें समस्यायों का सामना करना पड़ा, क्योंकि मार्केटिंग और प्रोसेसिंग के साथ जुडी वित्ति खर्चे महत्वपूर्ण थे।

संदेश

आज कृषि कार्य के सभी पहलुओं में सुधार की काफी गुंजाइश है। इन दिनों लोगों का अपने मूल स्थान पर वापस जाने का विचार है। लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए किसानों को अपना पूरा विश्वास एम.एस.पी. पर नहीं लगाना चाहिए, बल्कि इसके बजाए कुछ नए समाधान विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।

महावीर धारीवाल

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मैंने सपने भी देखे और उनको पूरा भी किया -महावीर धारीवाल

महावीर धारीवाल एक मुख्य जीवन बीमा अधिकारी हैं, जिन्होंने अजमेर, राजस्थान में एल.आई.सी के साथ 25 वर्षों से अधिक समय तक काम किया है। उन्होंने सफलता के लिए अपना रास्ता खुद बनाया और अपने बगीचे में गुलकंद पैदा करने के लिए गुलाब उगाना शुरू कर दिया। आज वह राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध गुलकंद “पी.एफ.आई गोल्ड गुलकंद” के गौरवशाली मालिक हैं।

जैसा कि उनके नाम का अर्थ स्वयं मनुष्य के लिए है, ‘महावीर’, जिसका अर्थ है साहसी, क्योंकि उनका परिवार वर्षों से खेती के साथ जुड़ा हुआ था। उनके मन की इच्छा थी वह खुद का काम शुरू करें, जिसने भवता, सरधना जिले, अजमेर में “पुष्कर खाद्य उद्योग” को जन्म दिया। गुलकंद बनाने के लिए 12 एकड़ के खेत में डैमस्क और चाइनीज जैसे गुलाबों की विभिन्न किस्मों को उगाना शुरू किया।

शुरू से उनका मानना था कि लोगों की भलाई अच्छा खाना खाने में है तो क्यों न वह इसे खुद से ही शुरू करें। उन्होंने वर्षों में गुलकंद का उत्पादन करने के लिए गुलाब उगाए, लेकिन छोटे स्तर पर अपने इस्तेमाल के लिए। एक किसान के रूप में, वह जानते थे कि गुलकंद एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर है और एक ऊर्जा बूस्टर है। नियमित रूप से गुलकंद का सेवन करने से लोगों को गंभीर अल्सर, कब्ज और गैस से राहत मिल सकती है। उन्हें पता था कि राजस्थान भारत के सबसे गर्म राज्यों में से एक है। गर्मियों में गुलकंद का सेवन सनस्ट्रोक, (लू) नाक से खून बहने और चक्कर आने से रोकने में मदद करता है। एक कदम आगे बढ़ाते हुए वह बिना पीछे देखे आगे बढ़ने लगा। पिछले 15 वर्षों से नर्सरी होने के बाद से उनका परिवार हमेशा उनका सहयोगी रहा है।

 एक मुख्य जीवन बीमा अधिकारी के रूप में काम करते हुए, उन्होंने अपने खेत में गुलाब उगाकर अपनी मुश्किलों को अपने पक्ष में कर लिया। बाद में, महामारी के दौरान, उन्होंने उच्च गुणवत्ता वाले जैविक आंवला उत्पाद बनाये। आज उनके पास गुलकंद से बनें 3-4 और आंवला से बनें 6-7 तरह के उत्पाद है।

जैसे-जैसे हम समय के साथ बढ़ते गए , वैसे ही पुष्कर खाद्य उद्योग भी बढ़ा। विकास के एक नए रास्ते पर चलते हुए, महावीर जी सुधार कर रहे हैं और नए उत्पादों के साथ आने के लिए हर दिन कड़ी मेहनत कर रहे हैं। महावीर जी के ब्रांड में 14-15 खाद्य उत्पाद शामिल हैं जिन्हें वह अपनी देखरेख में पैक और लेबलिंग करते है। उनकी कंपनी द्वारा निर्मित सभी उत्पाद FSSAI द्वारा स्वीकृत (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) हैं।

उत्पादों की सूची

  • आंवला उत्पाद जैसे- मुरब्बा, आंवला पाउडर और आंवला ऑर्गेनिक लड्डू।
  • आंवला कैंडीज की एक किस्म
  • पान, आइसक्रीम और गुलकंद और शहद से बने शेक
  • हल्दी, कस्तूरी मेथी और पुदीना जैसे मसाले भी उगाए जाते हैं।
वह हाल ही में पैशनफ्रूट और ड्रैगन फ्रूट की किस्में लेकर आये हैं, जो केवल पूरे राजस्थान राज्य में सिर्फ उनके पास उपलब्ध हैं।
उनके आंवला के लड्डू बहुत स्वादिष्ट हैं, जिसे उनके इलाके के ज्यादातर लोग बड़े चाव से खाते और आनंद लेते हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग ही एक अलग उत्पाद बनाने का उद्देश्य था।
उनसे बात करते हुए, उन्होंने कहा कि लोग काजू बर्फी पर 600-700 रुपये खर्च करने को तैयार हैं, जबकि हमारे लड्डू 300 रुपये के हैं और उन लोगों के लिए खाने का बढ़िया उत्पाद हैं।

और इसके साथ, उन्होंने कहा कि यह एक खुद का बनाया हुआ रास्ता है जहां वह सफल हो रहे हैं और हर दिन सीख रहें है। वह अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ता को बेचते हैं क्योंकि उनका मानना है कि वह गुणवत्ता से समझौता नहीं कर सकते।

इससे पहले, पुष्कर खाद्य उद्योग को कवर किया गया था और उनके गुणवत्ता वाले उत्पादों और श्री महावीर के दृढ़ संकल्प के लिए दूरदर्शन टीवी पर इसका प्रसारण किया गया था।
महावीर जी की कहानी हमें विश्वास दिलाती है कि यदि आप में साहस और विश्वास है तो आप बहुत आगे बढ़ सकते हैं। जैसा कि कहा जाता है, “विश्वास चीजों को आसान नहीं बनाता है, लेकिन यह उन्हें संभव बनाता है।”

चुनौतियां

उनका मानना है कि किसानों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण भाग यह है कि वे उन सरकारी नीतियों से अनजान हैं जो उनके लिए बनाई गई हैं और उनकी जरूरतों को पूरा करती हैं और इससे संबंधित जानकारी देने वाले भी उपलब्ध नहीं है।

भविष्य की योजनाएं

महावीर जी का लक्ष्य अपने कारोबार को पूरे भारत में फैलाना और कई वॉक-इन स्टोर खोलना है। सबसे पहले उनका पहला स्टोर जयपुर में खुल रहा है और अगला स्टोर दिल्ली होगा।

संगीता तोमर

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जैविक गुड़ बेच कर बहन-भाई को जोड़ी ने चखा सफलता का स्वाद

बेशक आपने भाई-बहनों को लड़ते हुए देखा है लेकिन क्या आपने उन्हें एक साथ बिजनेस चलाने के लिए एक साथ काम करते देखा है?
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश की संगीता तोमर जी और भूपिंदर सिंह जी भाई-बहन बिजनेस पार्टनर्स का एक आदर्श उदाहरण हैं, जिन्होंने एक साथ बिजनेस शुरू किया और अपने दृढ़ संकल्प और जुनून के साथ सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचे। संगीता जी और भूपिंदर जी का जन्म और पालन पोषण मुजफ्फरनगर में हुआ, संगीता जिनका विवाह नजदीकी गांव में हुआ था वहअपने नए परिवार के साथ अच्छी तरह से सेटल हैं। उत्तर प्रदेश राज्य की आगे वाली बेल्ट सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले गन्ने के लिए जाने जाती है, हालांकि यह फसल अन्य राज्यों में भी उगाई जाती है लेकिन गन्ना गुणवत्ता और स्वाद में अलग होता है। दोनों ने अपनी 9.5 एकड़ जमीन पर गन्ना उगाने के बारे में सोचा और 2019 में उन्होंने ‘किसान एग्रो-प्रोडक्ट्स’ नाम से गन्ना उत्पादों की प्रोसेसिंग शुरू किया।

उत्पादों की सूची

  • गुड़
  • शक़्कर
  • देसी चीनी
  • जामुन का सिरका
जैविक फलों से बने गुड़ से विभिन्न स्वादों वाले कुल 12 उत्पाद तैयार किए जाते हैं। वे फ्लेवर्ड चॉकलेट, आम, सौंफ, इलायची, अदरक, मिक्स, अजवाइन, सूखे मेवे और मूंगफली का गुड़ में शामिल करने से परहेज करते हैं।
भूपिंदर सिंह जी ने इस क्षेत्र में कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली था लेकिन उनके पूर्वज पंजाब में गन्ने की खेती करते थे। वह इस अभ्यास के साथ-साथ आज के उपभोक्ताओं की आवश्यकता को भी समझते थे जो अपने भोजन के बाद मीठे में चीनी खाना पसंद करते हैं। उन्होंने गुड़ को छोटे-छोटे टुकड़ों में बनाने के बारे में सोचा। उन्होंने गुड़ को बर्फी के रूप में बनाने के बारे में सोचा जहां 1 टुकड़े का वजन लगभग 22gm है, जोकि भोजन या दूध के साथ एक बार में खाना आसान था, जैविक था और चीनी से कहीं बढ़िया था।
“अच्छी गुणवत्ता और स्वादिष्ट गुड़ पैदा करने की तकनीक हमारे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है” भूपिंदर सिंह
संगीता जी मार्केटिंग का काम देखते हैं और प्लांट में शरीरक रूप से मौजूद न होने पर भी नियमित निरीक्षण करते हैं। स्टील-इनफ्यूज्ड मशीनरी का उपयोग प्रोसेसिंग के लिए किया जाता है जिसे किसी भी प्रदूषण से बचाने के लिए अच्छी तरह से कवर किया जाता है। क्योंकि सभी उत्पाद मशीन द्वारा बनाए जाते हैं, इसलिए स्वाद में कोई बदलाव नहीं होता है। भूपिंदर जी, संगीता जी और उनकी टीम दिल्ली के 106 सरकारी स्टोर और 37 निजी स्टोर में अपने उत्पाद पहुंचाती है।
प्रतिदिन उपयोग किए जाने वाले गन्ने की मात्रा 125 क्विंटल है और इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्हें अपने गाँव के अन्य किसानों से इस फसल को खरीदने की आवश्यकता है। गुड़ का उत्पादन आमतौर पर सितंबर से मई तक होता है लेकिन जब उपज मौसमी कारकों से प्रभावित होती है तो यह सितंबर से अप्रैल तक ही होती है।

प्रारंभिक जीवन

भूपिंदर सिंह जी 2009 में भारतीय सेना से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के रूप में सेवानिवृत्त हुए और फिर खाद्य उद्योग में अनुभव हासिल करने के लिए एक फाइव स्टार होटल में काम किया। 2019 में, उन्होंने अपने गाँव में सीखी गई पारंपरिक प्रथाओं से कुछ बड़ा करने का फैसला किया। उन्होंने अपने उत्पादन पलांट और अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए रोजगार भी पैदा किया और अन्य किसानों से गन्ना खरीदकर किसानों को आय का एक स्रोत भी प्रदान किया।
संगीता तोमर, जिन्होंने अंग्रेजी मेजर में मास्टर डिग्री पूरी की है, एक स्वतंत्र महिला हैं। उनके सभी बच्चे विदेश में बसे हुए हैं लेकिन वह अपने गांव में रह कर खेती करना चाहते हैं।

चुनौतियां

एक अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद की पहचान एक ऐसे उपभोक्ता द्वारा की जा सकती है जो जैविक उत्पाद और डुप्लिकेट उत्पाद के बीच का अंतर जानता हो। उनके गांव में ऐसे किसान हैं जो जुलाई में भी चीनी और केमिकल से गुड़ बना रहे हैं. यह किसान अपना उत्पाद कम कीमत पर बेचते हैं जो खरीदार को रासायनिक रूप से बने गुड़ की ओर आकर्षित करता है।

प्राप्तियां

  • लखनऊ में गुड़ महोत्सव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।
  • मुजफ्फरनगर के गुड़ महोत्सव में सम्मानित किया गया।

किसानों के लिए संदेश

वह चाहते हैं कि लोग खेती की ओर वापिस आएं। आज के दौर में नौकरी के लिए आवेदनकर्ता अधिक हैं लेकिन नौकरी कम। इसलिए बेरोजगार होने के बजाय अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का समय आ गया है। इसके अलावा, कृषि में विभिन्न क्षेत्र हैं जिन्हें कोई भी अपनी रुचि के अनुसार चुन सकता है।

योजनाएं

भूपिंदर सिंह जी बिचौलियों के बिना अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं को बेचना चाहते हैं, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और उपभोक्ता भी कम कीमत पर जैविक उत्पाद खरीद सकेंगे।

खुशी राम

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सीखने के ईशुक व्यक्ति के लिए कोई सीमा नहीं

खुशी राम जी उत्तराखंड के टिहरी के रहने वाले हैं और यह है उनका आम किसान से प्रगतिशील किसान बनने एक अनोखा सफ़र।

शुरुआत

उनके माता-पिता पारंपरिक खेती करते थे और फिर खुशी राम जी ने अपने बड़ों के अनुभव को वैज्ञानिक तकनीकों के साथ जोड़ा जिसका प्रशिक्षण उन्होंने के.वी.के., रानीचौरी से प्राप्त किया। उन्होंने 2002 तक खेती को एक पेशे के रूप में शुरू करने की योजना नहीं बनाई थी, लेकिन खुशी राम जी को अपने माता-पिता के बिगड़ते स्वास्थ्य और पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के कारण यह जिम्मेदारी उठानी पड़ी। बाद में उन्हें खेती पसंद आने लगी और कुछ ही समय में वे प्रकृति के दीवाने हो गए और अपने खेत में अलग-अलग फसलें उगाने के प्रयोग करने लगे।

फसल उत्पादन और टेक्नोलॉजी

उनके पास कुल 4 एकड़ जमीन है, जिसमें वह तरह-तरह की सब्जियां और फल उगाते हैं, जिनमें टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, बैगन, मशरूम, गेहूं, राजमा, स्ट्रॉबेरी और कीवी कुछ प्रमुख फसलें हैं। उन्होंने 5 पॉलीहाउस बनाए हैं, जिनमें से वे दो पॉलीहाउस में टमाटर उगाते हैं, एक पॉलीहाउस में उनकी नर्सरी है और अन्य दो में वह खीरे और शिमला मिर्च उगाते हैं।
वे ब्रोकोली और केल,पार्सले और मिजुना की जापानी किस्में भी उगाते हैं। इसके अलावा उन्होंने अपनी जमीन पर 350 आड़ू के पेड़ भी लगाए हैं। वह छोटे पैमाने पर एक्वाकल्चर और पोल्ट्री फार्मिंग भी करते हैं। वह आम तौर पर जैविक खेती का अभ्यास करते हैं जहां वह अपने खेत में मवेशियों के मलमूत्र, ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास जैसे जैविक उर्वरकों का उपयोग करते हैं, लेकिन कभी-कभी उन्हें कीट प्रबंधन के लिए आवश्यक कीटनाशकों का भी उपयोग करना पड़ता है।
खुशी राम जी ऐसे इलाके में रहते हैं जहां पानी की कमी है। इस समस्या से निपटने के लिए, उन्होंने वर्षा जल संचयन, ड्रिप सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, प्लास्टिक मल्चिंग और सूक्ष्म सिंचाई सहित कई उन्नत तकनीकों को अपनाया है।
उन्होंने कभी भी सीखना बंद नहीं किया और कृषि के विशाल क्षेत्र में सीखे गए नए ज्ञान के साथ प्रयोग करना जारी रखा। उनका मुख्य उद्देश्य उनकी आय में वृद्धि करना था और इस प्रकार उन्होंने मुर्गी पालन शुरू किया जो सफल नहीं रहा और बाद में उन्होंने मशरूम की खेती करने का फैसला किया जिससे उन्होंने काफ़ी लाभ कमाया।

एक उदाहरण स्थापित की

उनकी सफलता दूसरों के लिए एक उदाहरण बन गई जिसने अन्य किसानों को कड़ी मेहनत करने और सफल होने के लिए प्रेरित किया। कटाई के सीज़न में जब काम का बोझ बढ़ जाता है तो वे अपने गांव की महिलाओं की मदद लेते हैं। खुशी राम जी महिलाओं के लिए रोज़गार पैदा करते हैं और उन्हें काम करने और खुद कमाने के लिए स्वतंत्र बनाते हैं। पिछले सीज़न में काम करने वाली महिलाएं अपने व्यस्त शेड्यूल के कारण अगले सीज़न में काम नहीं कर पाती हैं, तो एक नया ग्रुप ता है और ख़ुशी राम जी उन्हें ट्रेनिंग देते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं।

सहायक स्तंभ

वह सरकार की किसानों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद करने वाली सभी योजनाओं के आभारी हैं। उनके सभी पॉलीहाउस और कृषि मशीनरी 80% सब्सिडी के आधीन हैं और उन्हें केवल 24000 रुपये प्रति पॉलीहाउस का भुगतान करना पड़ा है। कृषि विज्ञान केंद्र, रानीचौरी ने शुरू से ही उन्हें कृषि योजनाओं को समझने और कृषि में नई तकनीकों को पेश करने में मदद की है। उन्होंने बागवानी विभाग की मदद से अपने खेत में 500 सेब के पेड़ लगाए हैं। कुछ वर्षों से उनके इलाके में बर्फ कम पद रही है इस लिए उन्होने अपने क्षेत्र में सेब की एम-9 और एम-26 किस्मों की खेती कर रहे हैं, वे अपने क्षेत्र में इन किस्मों को उगाने वाले पहले किसान हैं और वह उपज को देखते हुए भविष्य में इसकी खेती को लेकर काफ़ी सकारात्मक हैं।

चुनौतियां

सबसे पहले उनके क्षेत्र में उत्पादन जंगली जानवरों के कारण होने वाले विनाश से प्रभावित होता है।  दिन में बंदरों से और रात में सूअरों से खेत का निरीक्षण करने के लिए एक व्यक्ति ऐसा चाहिए होता है जो के हर पल खेती की देखभाल कर सके। उनके सामने एक और चुनौती ‘मार्किट लिंकेज’ है क्योंकि उनका क्षेत्र छोटा है और उनकी व्यापार सिर्फ चंबा, ऋषिकेश और देहरादून तक सीमित है। वार्षिक लाभ 7 लाख रूपये प्रति वर्ष तक जाता है लेकिन प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, बादल फटने आदि के कारण नुकसान ज्यादातर कमाई से अधिक होता है।

उपलब्धियां

  • 2022 में ICAR – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा अभिनव किसान पुरस्कार से रूप में सम्मानित किया गया
  • मशरूम की खेती के क्षेत्र में निरंतर प्रयासों के लिए उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह द्वारा 2022 में सराहना की गई।
  • 2019 में ISHRD देव भूमि बगवानी पुरस्कार (2014-2018) से सम्मानित किया गया।

किसानों के लिए संदेश

उन्होंने किसानों को रासायनिक खाद का प्रयोग कम करने की सलाह दी। उनका कहना है कि इन विषाक्त पदार्थों के उपयोग को कम करके या जैविक खेती की ओर मुड़कर व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकता है।

भविष्य की योजनाएं

उनका मुख्य उद्देश्य अपनी उपज को नज़दीकी और दूर के बाजारों में ले जाना और एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर अपनी आय में वृद्धि करना है।

रजत सल्गोत्रा

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एक MBA ग्रेजुएट ने की गाय के गोबर से लाखों की कमाई

हाजी अपने ठीक पढ़ा, जम्मू से रजत सल्गोत्रा गणेश चतुर्थी के लिए गाय के गोबर से दीप, प्रयोग किये फूल से अगरबत्ती, फ्लोवेर्पोट और बायोडीग्रेडेबल गणेश जी जैसे वातावरण अनुकूल उत्पाद बनाता है।
हालाँकि भारत में गायों की पूजा की जाती है, फिर भी उन्हें बहुत उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। जब तक गाय स्तनपान करा रही है, तब तक वह कीमती है लेकिन जैसे ही यह दूध देना बंद कर देती है, उन्हें सड़क पर छोड़ दिया जाता है, जहां वे सड़क दुर्घटना में मर जाती हैं या प्लास्टिक खाने से उनका दम घुट जाता है। दूसरी ओर गौशाला गाय के गोबर को नालों में फेंक देती है, जहां वह जमा हो जाता है और भयानक बीमारियों का कारण बनता है। उन्होंने महसूस किया कि इस मुद्दे को हल करने का समय आ गया है और इसलिए उन्होंने इन बेजुबान प्राणियों के कल्याण के लिए काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने जम्मू विश्वविद्यालय से एम.बी.ए. किया है। अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने की योजना बनाई और 2019 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद योजना को लागू किया। 2021 में कंपनी समस्त इको, प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना हुई। शुरुआती निवेश करीब 2 लाख रुपये था। सभी शोध कार्य 2021 तक किए गए जिसमें कच्चे माल यानी गाय के गोबर की आसान उपलब्धता और प्रबंधन और गाय के गोबर का उपयोग करके कितने उत्पाद बनाए जा सकते हैं। इसके बारे में रिसर्च की गई,  कई असफल प्रयासों के बाद, उन्होंने पाया कि सभी दीपक देसी गाय के गोबर से बने थे।
उन्होंने तुरंत इस काम को शुरू नहीं किया लेकिन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना में यू.एन.डी.पी., जम्मू से पहले ज्ञान और अनुभव प्राप्त किया। जहां उन्होंने सतत विकास और हमारी पीढ़ी के लिए संसाधनों का उपयोग करने के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनका उपयोग कैसे किया जा सकता है, के बारे में सीखा।
फिर दिशा फाउंडेशन (एन.जी.ओ.) की मदद से उन्होंने गाय के गोबर से दीपक बनाना शुरू किया। गोबर के प्रयोग से दो समस्याओं का समाधान हुआ; किसानों ने सोचा कि गायें दूध पिलाने के बाद भी आमदन पैदा कर सकती हैं और अपशिष्ट प्रबंधन तकनीकों के कारण उनके शहर के नालों को अब साफ कर दिया गया है।
शुरुआती दिनों में, परिवार ने उनसे इन फैसलों के बारे में सवाल किया क्योंकि उनके परिवार में से पहले किसी ने खेती नहीं की थी, और एक एम.बी.ए ग्रेजुएट अच्छी नौकरियां ठुकरा देगा और गोबर के साथ काम करेगा। लेकिन उन्होंने कभी खुद पर शक नहीं किया। उन्हें इस समय विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा; अगरबत्ती में प्राकृतिक तत्व की सुगंध उपभोक्ताओं को पसंद नहीं आई और मुख्य मुद्दा किसानों से गोबर को उत्पादन यूनिट तक तक ले जाना था। शुरुआती दिनों से लेकर आज तक, दिशा फाउंडेशन ने हर कदम पर उनका साथ देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
किसी भी अन्य शहर की तरह जम्मू में भी कई मंदिर हैं और मंदिरों में इस्तेमाल होने वाले फूलों की कभी कमी नहीं होती है। उन्होंने जम्मू शहर में 2-3 मंदिरों का चयन किया है जो उन्हें इस्तेमाल किए हुए फूल प्रदान करते हैं जहां से वे अगरबत्ती बनाने के लिए फूलों को सुखाते हैं और फिर प्रोसेसिंग करते हैं। गाय के गोबर को पहले ग्राइंडर से पीसा जाता है और फिर दीपक के लिए एक पेस्ट बनाया जाता है, जिसे बाद में आकार के लिए एक सांचे में डाला जाता है जबकि अगरबत्ती को हाथ से बनाई जाती है। फिर उत्पादों को सूखने के लिए धूप में रखा जाता है। वे प्रतिदिन किसानों से कुल 500 किलो गोबर एकत्र करते हैं।
टीम में रजत और वही एन.जी.ओ. के 3 ओर लोग शामिल है,  जिसमें सेल्फ हेल्प समूहों की 40 महिलाएं शामिल है । महिलाओं को दीये बनाने के लिए सांचों का उपयोग करने और अगरबत्ती और दीये के डिजाइन को आकर्षक बनाने के लिए सिखलाई दी गई। रजत की पहल ने उनके लिए रोजगार पैदा किया है। अब, ये महिलाएं स्वतंत्र हैं और अपने लिए कमा रही है।
इन महिलाओं को सभी कच्चे उत्पाद उपलब्ध कराए जाते हैं और उन्हें बस सुंदर पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने होते हैं। रजत सेल्स और मार्केटिंग का काम खुद करते हैं, जहां उनकी शिक्षा ने मदद की है।
जम्मू सरकार कई बार उनकी तारीफ कर चुकी है. उन्होंने बताया कि जम्मू के डी.सी. ने  इस कार्य के लिए अपना पूरा सहयोग दिया है और इस समर्थन के लिए हमेशा उनकी सराहना करते हैं। उन्हें जम्मू-कश्मीर वन विभाग, नगर निगमों, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इंडियन ऑयल का भी समर्थन प्राप्त था।
वे किसानों को अपनी आजीविका शुरू करने के लिए गाय का गोबर भी उपलब्ध कराते हैं, और वे विभिन्न शहरों में फ्रेंचाइजी आउटलेट खोलने में भी रुचि रखते हैं।

उपलब्धियां

  • शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी द्वारा 2022 में यूनिक आइडिया में पहला पुरस्कार
  • 2021 में जम्मू नगर निगम द्वारा वेस्ट-टू-आर्ट प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार
  • 2021 में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा अद्वितीय विचारों में तीसरा पुरस्कार
  •  2021 में जम्मू के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रशंसा पुरस्कार

भविष्य की योजनाएं

वे जल्द ही अपने पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को अमेज़न जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर बेचने की योजना बना रहे हैं और अपने उत्पादों को पूरे भारत के बाजारों में बेचने पर विचार कर रहे हैं।

किसानों के लिए संदेश

जीवन में लक्ष्य का होना बहुत जरूरी है। अगर आप खुद पर विश्वास करेंगे तो दूसरे आप पर विश्वास करेंगे। मैं हमेशा से जानता हूं कि पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को मार्किट में खड़ा करने की क्षमता है और मैंने अपने लक्ष्यों के लिए कड़ी मेहनत की है।

राजवीर सिंह

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यूरोप में काम कर रहा राजस्थान का एक व्यक्ति किस तरह से बना एक प्रगतिशील किसान

राजस्थान के रामनाथपुरा के निवासी राजवीर की बचपन से ही कृषि में रुचि थी और वह इस क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों के बारे में जानने के इच्छुक थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन्होंने साल 2000 में ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। उन्होंने 2003 में जोजोबा की जैविक खेती शुरू की लेकिन फिर 2006 में यूरोप चले गए और वहां कई सालों तक कंस्ट्रक्शन लाइन में काम किया लेकिन उनका दिल हमेशा कृषि से जुड़ा रहा। यूरोप में जब वे वीकेंड पर फ़्रांस के ख़ूबसूरत फ़सल के खेतों से गुज़रे तो उन्हें अपने देश की बहुत याद आती थी। वह यूरोप की जैविक खेती से प्रेरित थे।उन्होंने देखा कि वहां का तापमान ठंडा था लेकिन फिर भी पॉली-हाउस की मदद से किसान मौसम की परवाह किए बिना सभी सब्जियां उगा रहे हैं। जब वे 2011 में यूरोप से लौटे तो उन्होंने फलों और सब्जियों की जैविक खेती का अभ्यास शुरू किया। फिर 2014 में उन्होंने अपने खेत पर एक पॉलीहाउस बनाया जिसके लिए उन्हें राजस्थान सरकार से सब्सिडी भी मिली।

“मनुष्य के शरीर पर खादों के बुरे प्रभाव बहुत हैं लोगों ने कोरोना वायरस के समय में अपनी सेहत की कीमत को समझा है और जैविक भोजन के लिए प्रेरित हुए ” राजवीर सिंह

उन्होंने झुंझुनू जिले के अपने गांव में ‘प्रेरणा ऑर्गेनिक फार्महाउस’ की स्थापना की और राजस्थान स्टेट ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसी (आर.एस.ओ.सी.ए) से अपने खेत को रजिस्ट्रेड करवाया। वे लगभग 3 हेक्टेयर में खेती कर रहे हैं, जिसमें से लगभग 1 हेक्टेयर तेल उत्पादन के लिए जोजोबा की खेती के लिए उपयोग किया जाता है, 4000 वर्ग मीटर पॉली-हाउस के अंदर खीरे की खेती की जाती है और शेष क्षेत्र में 152 खजूर के पेड़ होते हैं। 100 लाल सेब के पौधे और 200 अमरूद के पौधे हैं। तरबूज की खेती गर्मी के मौसम में और स्वीट कॉर्न की खेती बरसात के मौसम में की जाती है। खजूर को कच्चे रूप में और सुखाने के बाद ‘पिंड-खजूर’ के रूप में बेचा जाता है।

“मेरे पिता रिटायर्ड फौजी हैं उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया है और हमेशा मुझे सही दिशा की तरफ जाने के लिए प्रेरित किया है”  राजवीर सिंह

वे ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए जैविक शहद ₹300/किलो की कम कीमत पर बेचते हैं और साहीवाल और राठी नस्ल के दूध से बने जैविक घी को ₹1800/किलो पर बेचते हैं। वे ‘प्रेरणा ऑर्गेनिक फार्महाउस’ नाम के फेसबुक पेज और व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए ग्राहकों से ऑर्डर लेते हैं। बाजार में केवल खीरा ही बिकता है जबकि तरबूज, खजूर, बेर और अमरूद जैसे सभी उत्पाद सीधे ग्राहकों को बेचे जाते हैं। वे जैविक काला गेहूं भी उगाते हैं जिसके कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं और ऑर्डर द्वारा सीधे ग्राहकों को भी बेचा जाता है। राजवीर के बीज चयन और गुणवत्ता वाले जैविक उत्पादों की कला के कारण, जो ग्राहक एक बार खरीदता है, वह हमेशा उत्पाद की सराहना करता है और एक स्थायी खरीदार बन जाता है। शुरुआती दिनों में जब उन्होंने जैविक खेती की ओर रुख किया तो उन्होंने भूमि उत्पादकता में थोड़ी गिरावट देखी लेकिन फिर जैसे-जैसे समय बीतता गया उन्होंने बाजार की तुलना में अधिक दर पर उपज बेचकर लाभ कमाना शुरू कर दिया।
हालांकि उनके पास 5-6 गाय हैं और वे अपनी जैविक खाद खुद बनाते हैं लेकिन मात्रा पर्याप्त नहीं है और इसके लिए उन्हें पास के किसानों से 50,000 रुपये की खाद खरीदनी पड़ती है। उन्होंने खेत में मदद के लिए दो मजदूरों को काम पर रखा है। राजवीर के पिता देवकरण सिंह, पत्नी सुमन सिंह और बच्चे प्रेरणा और प्रतीक भी उसकी दैनिक गतिविधियों में मदद करते हैं।
राजवीर ‘चिड़ावा फार्मर प्रोडूसर’ कंपनी लिमिटेड नाम किसान उत्पादक संगठन (FPO) के डायरेक्टर हैं, जोकि साल 2016 में एक रेजिस्ट्रेड हुआ था। हाल ही में, उन्होंने किसानों से सरसों लेकर बेची है।
वे हानिकारक रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न करके न केवल मिट्टी को बचा रहे हैं, बल्कि एक हेक्टेयर भूमि में टैंक बनाकर बारिश के पानी को सेव  करने का अभ्यास भी कर रहे हैं। इसके अलावा, वे अपने खेतों में ट्यूबवेल के माध्यम से पानी की ड्रिलिंग के लिए सौर पैनलों का उपयोग भी करते हैं और वे अपने घरों के लिए बिजली का भी उपयोग करते हैं। वह 2001 से अपने गांव में पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों को लागू कर रहे हैं और पर्यावरण को बचाकर दूसरों के लिए एक मिसाल कायम की है। उनके गाँव के अन्य किसान भी इस तरह की प्रथाओं से प्रोत्साहित होते हैं और नई तकनीक सीखने के लिए उनके जैविक फार्म में जाते हैं।

उपलब्धियां

उन्हें जिला स्तर पर के.वी.के. अबुसर द्वारा आत्मा योजना के तहत वर्ष 2016-17 में सम्मानित किया गया था।

भविष्य की योजनाएं

अब वह किन्नू की खेती शुरू करने वाले हैं।ग्रेडिंग के बाद फलों की प्रोसेसिंग की जाएगी, जिसकी काफी मांग है। वह कृषि-पर्यटन (एग्रो टूरिज़म) की भी योजना बना रहें है, जहां वह उन पर्यटकों के लिए छोटे कॉटेज बनाने की योजना बना रहा है जो प्रकृति का आनंद लेना चाहते हैं।

                                         किसानों के लिए संदेश

रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को बंद करने की आवश्यकता है क्योंकि यह हमारे शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है और कई बीमारियों का कारण बनता है। जैविक उत्पाद अब बढ़ रहे हैं और किसान ऐसे उत्पादों से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

मुकेश मंजू

ऐसा प्रगतिशील किसान, जिसने बदली लोगों की मानसिकता

हमारा देश कृषि को एक ऐसे पेशे के रूप में देखता है जो अच्छी आमदन पैदा नहीं कर सकती। जब हम किसानों की बात करते हैं तो बंजर भूमि के पास बैठे एक बूढ़े आदमी की छवि हमारे दिमाग में आती है, एक किसान को हमेशा एक असहाय प्राणी के रूप में देखा जाता है। आज की कहानी में आप एक ऐसे प्रगतिशील किसान के बारे में जानेंगे जो समाज की इस मानसिकता को बदलना चाहता था।
राजस्थान के पिलानी के रहने वाले मुकेश मंजू दिल्ली एयरपोर्ट पर राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रमुख के रूप में काम करते थे लेकिन 2018 में उनके पिता को कैंसर हो गया और उन्हें वी.आर.एस (वलंटरी रिटायरमेंट स्कीम) के अधीन अचानक रिटायरमेंट लेनी पड़ी। बचपन में जब उन्होंने अपने दादा और पिता को खेती करते देखा तो उनकी भी खेती में रुचि पैदा हो गई।
उनके पास खेती के तहत 20 एकड़ जमीन है और उन्होंने 2014 में खेती शुरू की जब उन्होंने अपने खेत में 4 हेक्टेयर में किन्नू और मौसमी फसलें लगाईं और अपने जैविक फार्म का नाम ‘द मंजू फार्म’ रखा। फिर 2016 में, उन्होंने 4 एकड़ जमीन पर जैतून की खेती शुरू की, उसके बाद 2016 में खजूर, 2019 में थाई सेब बेर और 2020 में सांगरी की खेती शुरू की। 2022 में फिल्म ‘पुष्पा’ देखने के बाद उन्होंने अपनी जमीन में चंदन लगाया।
वे इंटरक्रॉपिंग का अभ्यास भी करते हैं और आयुर्वेदिक औषधीय पौधे अश्वगंधा जैसी फसलों की खेती के इलावा  तरबूज जैसी नकदी फसलों की बिजाई भी करते हैं। उनकी खेती की मुख्य विशेषता प्रामाणिक पारंपरिक खेती है जिसका वे अभ्यास करते हैं, वे अपनी भूमि में गोबर और गोमूत्र, लस्सी आदि से बनी खाद का उपयोग करते हैं। वे दो मुख्य कारणों से अपने खेत में भारी कृषि मशीनरी का उपयोग नहीं करते हैं:
1) वे मजदूरों को रोजगार प्रदान करके जरूरतमंदों के लिए रोजगार पैदा करना चाहते हैं।
2) उनका मानना है कि मशीनरी मिट्टी की भीतरी परत को संकुचित कर देती है, जिससे मिट्टी की जल धारण क्षमता कम हो जाती है और मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो जाता है।

प्रकृति में असंतुलन पैदा किये बिना वातावरण और प्राकृतिक स्रोत का प्रयोग करना चाहिए- मुकेश मंजू

वे एक एकीकृत कृषि प्रणाली का पालन करते हैं, फसल उत्पादन के इलावा, वे मछली पालन, pao(कड़कनाथ नस्ल), मधुमक्खी पालन (50 बक्से) और दूध से संबद्ध उत्पादों के लिए साहीवाल नस्ल की गायों जैसे कई घरेलू पशुओं के मालिक। वे खेती के लिए ऊँट और अपने बच्चों को घोड़सवारी सिखाने के लिए दो घोड़े भी रखें हैं।
राजस्थान के अधिकांश हिस्से सूखे हैं और हमेशा पानी की कमी बनी रहती है। मुकेश जल संरक्षण में विश्वास रखते हैं और उन्होंने अपने खेत में रेन वाटर हार्वेस्टिंग फैसिलिटी बनाई है। वे पानी की बर्बादी को कम करने के लिए विभिन्न सिंचाई अभ्यास का भी उपयोग करते हैं, उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई और बारिश के पाइप का उपयोग करना जो कि केवल 15 मिनट में खेत की सिंचाई करते हैं और इन तकनीकों से वे पानी बचाते हैं। करने में सफल होते हैं।
उनके भाई प्रमोद मंजू, जिन्होंने 2018 तक हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एच.ए.एल.) में सतर्कता अधिकारी के रूप में काम किया है, उनके खेत में उनकी मदद करते हैं और हमेशा पूरा समर्थन दिखाते हैं। शुरू में उन्हें ऐसे ग्राहकों को खोजने में मुश्किल हुई जो स्वास्थ्य को महत्व देते थे और जैविक भोजन के लाभों से अवगत थे। उनके लिए ऐसे ग्राहक ढूंढना मुश्किल था। हालाँकि, अपने दोस्तों और कड़ी मेहनत की बदौलत सफलता ने उनके पैर चूमे और आज वह कृषि से अच्छा लाभ कमा रहे हैं।    उनका मुख्य ध्यान विभिन्न फसलों की खेती पर था, जिससे वे पूरे वर्ष आय अर्जित कर सके, इसलिए उन्होंने मौसमी फसलों के साथ-साथ फलों की भी खेती की, जिनकी पूरे वर्ष मांग रहती है।

जब भी मेहमान मेरे घर आते हैं, तो मैं उन्हें कभी चाय, कॉफी या जूस नहीं देता, लेकिन मैं अपने खेतों के ताजे जैविक उत्पादों जैसे तरबूज, किन्नू और खजूर से उनका स्वागत करता हूं- मुकेश मंजू

मुकेश बाजार में कोई फसल नहीं बेचते हैं। उनके अनुसार बड़े पैमाने पर किसान बनने के लिए सही मंडी की स्थापना की जानी चाहिए और सही दिशा में रणनीतिक रूप से कड़ी मेहनत करनी चाहिए। वे ग्राहकों की जरूरतों के अनुसार सभी उत्पादों को विकसित करते हैं और उनके ग्राहक पिलानी, राजस्थान से लेकर दिल्ली और गुड़गांव जैसे महानगरों तक फैले हुए हैं।     इसी तरह जैतून का फल 250 रुपये प्रति किलो और जैतून का तेल 1,000 रुपये प्रति लीटर पर बेचते हैं। उनका जैतून का फल और जैतून का तेल दिल्ली के ताज होटल में जाता है। उनकी सफलता काफी हद तक वर्ड-ऑफ-माउथ मार्केटिंग तकनीकों के कारण है। एक बार जब कोई ग्राहक जैविक रूप से उगाए गए फल का स्वाद चख लेता है, तो वह एक स्थायी ग्राहक बन जाता है। उनके जैविक उत्पादों की गुणवत्ता और उनके काम में विश्वास ने उन्हें एक प्रगतिशील किसान बना दिया है।

उपलब्धियां

  •  2021 में राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा राज्य स्तर पर सम्मानित किया गया
  • 2020 में कृषि मंत्री, राजस्थान द्वारा सम्मानित किया गया
  • आत्मा योजना के तहत 2019 में जिला स्तर पर सम्मानित किया गया
  • गायों की देसी नस्लों को बढ़ावा देने के लिए 2018 में सम्मानित किया गया

भविष्य की योजनाएं

वह अपने फार्म पर झोपड़ियां बनाकर कृषि पर्यटन (एग्रो टूरिज़म) शुरू करने की योजना बना रहे हैं ताकि लोग एक बार फिर प्रकृति की गोद में रहने  का अनुभव ले सकें।

किसानों के लिए संदेश

वे चाहते हैं कि अन्य सभी किसान भी अपने काम पर उतना ही गौरव महसूस करें  जितना कि दफ्तरों में काम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति को होता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में कृषि में बहुत बदलाव आया है और आने वाले वर्षों में यह नई ऊंचाइयों को छुएगी।

अब्दुल रहमान

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एक मेहनती व्यक्ति को कोई नहीं रोक सकता- अब्दुल रहमान

जहां चाह, वहां राह, वैसे ही अगर ज़िंदगी में कुछ करने का सोच लिया तो उसे पूरा करके ही चैन की सांस लें। कृषि के क्षेत्र में कुछ इंसान ऐसे होते है, जो पारंपरिक खेती को छोड़कर कुछ ऐसा करते हैं जोकि बाकि लोगों के लिए मिसाल बनकर सामने आते हैं।

वर्ष 2009 में, राजस्थान सरकार ने गुजरात में स्थित एक कंपनी के साथ समझौता किया जिसका नाम अतुल लिमिटेड है और राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में खजूर की खेती पर काम करना शुरू कर दिया, जिसके परिणाम भी सफल रहे। इसके बाद सरकार ने किसानों को खेती की नई तकनीकों को अपनाने और उत्पाद की बाजार में मांग के बारे में प्रोत्साहित करना शुरू किया। फिर सरकार द्वारा खजूर के पौधे जोधपुर के किसानों को 90 प्रतिशत की सब्सिडी पर दिए गए, जिसमें एक पौधे की कीमत ₹2500 से घटाकर ₹225 कर दी गई।

अतुल कंपनी की टीम जोधपुर के हर एक क्षेत्र का निरीक्षण करती थी और किसानों को खजूर की खेती के बारे में बताती थी। जिसमें आने वाले वर्षों में खजूर की खेती करने का क्या फायदा होगा, उसके बारे में किसानों को जागरूक करती थी। एक दिन वह जब निरीक्षण करने गए थे तो उनकी मुलाकात श्री अब्दुल रहमान से हुई जो राजस्थान के जैसलमेर के एक गाँव तवारीवाला के रहने वाले है। जो कि वर्ष 1995 से पारंपरिक खेती करते आ रहे है जिसमें वे अरंडी, सरसों, प्याज और गेहूं उगाते थे लेकिन पूरी तरह से नई तकनीकों को अपनाना इतना आसान काम नहीं होता।

अब्दुल रहमान पहले तो झिझक रहे थे लेकिन अतुल टीम ने उन्हें भरोसा दिया कि वह उनका पूरा साथ देंगे। उसके बाद उन्हें 3 हेक्टेयर भूमि में खेती के लिए 465 पौधे दिए गए, जो खजूर की उगाई जाने वाली खुनैज़ी किस्म के थे। इस किस्म की खजूरें सबसे अच्छी गुणवत्ता के साथ स्वाद में भी लाजवाब होती है। इसकी पहली कटाई 5 साल बाद की जाती है। अब्दुल ने इसकी खेती 100 प्रतिशत जैविक तरीके से की और जब खजूर थोड़ी पकने लगी तो उस स्तिथि में ही खजूरों को बेचा। खजूर के पौधों की शाखाएं से बहुत मुनाफा होता है क्योंकि एक शाखा भी 800-900 रूपये में बिकती है। जबकि एक पौधे में कम से कम 10 शाखाएं होती हैं। अब्दुल रहमान शाखाओं को बेचकर प्रति वर्ष 8-9 लाख रुपए कमा लेते हैं। साल 2016 में सरकार ने खजूर की खेती की नई तकनीकें सीखने के लिए उनको इज़रायल भेज दिया। शुरुआती दिनों में, उन्हें काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा क्योंकि खरीदने वाले कम थे और उस समय लोगों को खजूरों के फायदों के बारे में पता भी नहीं था। उन्हें निकट के जिले पोखरण जाना पड़ता था जो कि 125 किलोमीटर दूर था। इसके अलावा, पानी और बिजली जैसे अन्य महत्वपूर्ण और बुनियादी संसाधन भी पर्याप्त नहीं थे।

श्री अब्दुल ने एक फार्म तैयार किया हुआ है, जिसमें पशुपालन के साथ मुर्गी पालन, बकरी पालन और डेयरी का भी काम रहे हैं। उनके पास स्थानीय नस्ल की ही पशु है, जिसमें 4 से 5 गायें हैं जो 15-20 लीटर दूध देती हैं और इसके अलावा 70-80 बकरियां और 100 मुर्गियां भी रखी हुई हैं। उनके द्वारा फसलों के लिए किया गया जैविक कचरे का उपयोग बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। आज उनकी प्रति वर्ष आय 10-15 के करीब होती है।

उपलब्धियां

  • आईसीएआर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इनोवेटिव फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया।
  • राजस्थान सरकार द्वारा 2016 में बेस्ट एग्री एंटरप्रेन्योर पुरस्कार दिया गया।
  • 2013 में गुजरात में 51000 के चैक के साथ राज्य स्तर पर पुरस्कार दिया गया।
  • 2011-12 में जिला स्तर पर पुरस्कार दिया गया।

भविष्य की योजनाएं

श्री अब्दुल खजूर की खेती को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते है और उसके साथ विभिन्न किस्मों की खेती करके प्रयोग करना चाहते हैं।

संदेश

श्री अब्दुल चाहते हैं कि अन्य किसान खजूर की खेती करें क्योंकि इस खेती में कम श्रम की आवश्यकता होती है। मौसम की बदलती परिस्थितियों से पौधा प्रभावित नहीं होता बस जड़ों को पानी में डुबाने और पौधे पर धूप की आवश्यकता होती है।

श्रीमती मधुलिका रामटेके

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एक सामाजिक कार्यकर्ता से उद्यमी बनी एक महिला जिन्होंने बाकि महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए प्रेरित किया।

ऐसा माना जाता है कि केवल पुरुष ही आर्थिक रूप से घर का नेतृत्व कर सकते हैं लेकिन कुछ महिलाएं रूढ़िवादी विचारधारा को तोड़ती हैं और खुद को साबित करती हैं कि वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं बल्कि समान रूप से सक्षम हैं। यह कहानी छत्तीसगढ़ के राजनांद गांव की एक ऐसी ही सामाजिक कार्यकर्ता की है।

श्रीमती मधुलिका रामटेके एक ऐसे समुदाय से आती हैं, जहाँ जातिगत भेदभाव अभी भी गहराई से निहित है। उन्हें इस जातिगत भेदभाव का एहसास छोटी उम्र में ही हो गया था जब उन्हें बाकि बच्चों के साथ खेलने की अनुमति नहीं मिलती थी। तब उनके पिता ने उन्हें डॉ. बी.आर. अंबेडकर जी का उदाहरण दिया कि कैसे उन्होंने शिक्षा के माध्यम से अपना जीवन बदल दिया और वह सम्मान अर्जित किया जिसके वे हकदार थे। मधुलिका ने तब उनके कदमों और उनकी शिक्षाओं का पालन किया। वह अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान एक उज्ज्वल छात्रा रही और अन्य माता-पिता को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित भी करती थी। उन्होंने पहले अपने माता-पिता को पढ़ना-लिखना सिखाया और फिर अपने घर के आस-पास की अन्य अनपढ़ लड़कियों की मदद की।

श्रीमती मधुलिका जी ने फिर एक और कदम उठाया जहाँ उन्होंने अपने गाँव की अन्य महिलाओं के साथ एक सेल्फ हेल्प समूह बनाया और गाँव की सेवा करना शुरू कर दिया, जिसका गाँव में रहने वाले पुरुषों ने बहुत विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि महिलाएँ गाँव की भलाई के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने शिक्षा, पुरुष नसबंदी, स्वच्छता, नशीली दवाओं के उपयोग, जल संरक्षण आदि जैसे गंभीर मुद्दों पर कई शिविरों का आयोजन भी किया।

2001 में, उन्होंने और उनकी महिला साथियों ने एक बैंक शुरू किया जिसमें उन्होंने सारी बचत जमा की और इसका नाम ‘माँ बम्लेश्वरी बैंक’ रखा। यह बैंक पूरी तरह से महिलाओं द्वारा चलाया जाता है। इस बैंक ने महिलाओं को सशक्त महसूस करवाया और जब भी महिलाओं को किसी कार्य के लिए पैसों की जरूरत पड़ती थी तो वह बैंक में जमा राशि में से कुछ राशि का प्रयोग कर सकती है। इस बैंक में आज कुल राशि ₹40 करोड़ है।

एकता बहुत शक्तिशाली है, अकेले रहना मुश्किल है लेकिन समूह में शक्ति है। मैं आज जो कुछ भी हूँ अपने ग्रुप की वजह से हूँ – मधुलिका

वर्ष 2016 में मधुलिका जी और उनके सेल्फ-हेल्प समूह ने 3 सोसाइटीयों का निर्माण किया। पहली सोसाइटी के अंतर्गत दूध उत्पादन का काम  शुरू किया और उसमें 1000 लीटर दूध का उत्पादन हुआ।  उन्होंने इस दूध को स्थानीय स्तर पर और होटल, रेस्टोरेंट्स में बेचना शुरू किया। दूसरी सोसाइटी के अंतर्गत उन्होंने हरा-बहेड़ा की खेती जो एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है उसका उत्पादन शुरू किया। यह जड़ी-बूटी  खांसी, सर्दी को ठीक करने में मदद करती है और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। इसके साथ ही उन्होंने चावल की खेती भी की लेकिन कम मात्रा में। तीसरी सोसाइटी के अंतर्गत  उन्होंने सीताफल की खेती की शुरुआत की और आइस क्रीम की प्रोसेसिंग करनी भी शुरू की। इन सबके पीछे उनका मुख्य उद्देश्य अन्य महिलाओं को स्वतंत्र बनाना और उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाना था। उन्होंने हमेशा न केवल खुद को बल्कि अपने आसपास की महिलाओं को भी सशक्त बनाने के बारे में सोचा।
नाबार्ड की आजीविका और उद्यम विकास कार्यक्रम (एल.ई.डी.पी) की योजना के तहत, मधुलिका सहित 10 महिलाओं ने 10,000 ₹ प्रत्येक के योगदान के साथ एक कंपनी की स्थापना की और इसका नाम बमलेश्वरी महिला निर्माता कंपनी लिमिटेड रखा। कंपनी के पास अब ₹100-₹10,000 की शेयर रेंज है। यह कंपनी वर्मीकम्पोस्ट और वर्मीवाश बनाती है, ये दोनों जैविक खाद हैं जो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा कर फसल की उपज बढ़ाते हैं और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डालते हैं। मधुलिका ने एक बार 2 खेतों में एक प्रयोग किया था, जिसमें उन्होंने एक खेत में रासायनिक उर्वरक और दूसरे में वर्मीकम्पोस्ट डाला और उन्होंने देखा कि उत्पाद की गुणवत्ता और स्वाद उस क्षेत्र में बेहतर था जिसमें वर्मीकम्पोस्ट डाला गया था। इसके इलावा इस कंपनी में अन्य उत्पाद भी बनाये जाते हैं पर कम मात्रा में उनमें से कुछ प्रोडक्ट्स है जैसे अगरबत्ती, पलाश के फूलों से बना हर्बल गुलाल। यह सारे प्रोडक्ट 100% हर्बल है।
हम अपने लिए कमा रहे हैं लेकिन रासायनिक छिड़काव वाला भोजन खाने से सभी पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं और हमारी मेहनत की कमाई उन दवाओं पर बर्बाद हो जाती है जो उर्वरकों के अति प्रयोग से होती हैं“-मधुलिका रामटेके
                                                      उपलब्धियां:
  • नारी शक्ति पुरस्कार, 2021 भारत के राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविंद द्वारा प्रदान किया गया
  • अखिल भारतीय महिला क्रांति परिषद- 2017
  • राज्य महिला सम्मान – 2014
                                                    भविष्य की योजनाएं:
वह ‘गाँववाली’ नाम से एक नया ब्रांड खोलना चाहती हैं जिसमें वह खुद और सेल्फ हेल्प समूह पहले हल्दी, मिर्ची, धनिया का निर्माण करेंगे और फिर बड़े पैमाने पर अन्य मसालों का निर्माण करेंगे।
                                               किसानों के लिए संदेश:
आज की कृषि पद्धतियों को देखते हुए जिसमें कुछ भी शामिल नहीं है, रसायनों के उपयोग से बचना चाहिए, बल्कि अन्य किसानों को जैविक खादों का उपयोग करना चाहिए। वह बच्चों को अपने बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम में डालने की बात को भी गलत बताती है। ये वही माता-पिता हैं जिन्होंने बचपन में हमारा पालन-पोषण किया था और अब जब उन्हें बुढ़ापे में मदद की ज़रूरत है, तो उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए, बल्कि उसी तरह दुलारना चाहिए जैसे हम उनके साथ थे।

उडीकवान सिंह

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कम उम्र में मुश्किलों को पार कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाला 20 वर्षीय युवा किसान

“छोटी उम्र बड़ी छलांग” मुहावरा तो सभी ने सुना होगा पर किसी ने भी मुहावरे का पालन करने की कोशिश नहीं की, लेकिन बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो कि ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते।

लेकिन यहां इस मुहावरे की बात एक ऐसे युवक पर बिल्कुल फिट बैठती है जिसने इस मुहावरे को सच साबित कर दिया है और बाकि लोगों के लिए भी एक मिसाल कायम की है। इन्होंने ठेके पर जमीन ली और कम उम्र में सब्जी की खेती की और बुलंदियों को हासिल कर परिवार और गांव का नाम रोशन किया है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि हर इंसान का कुछ न कुछ करने का लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करता है। आज हम जिस युवक की हम बात करने वाले हैं, शुरू से ही उनकी दिलचस्पी खेती में थी और पढ़ाई में उनका ज़रा भी मन नहीं लगता था। इनका नाम उडीकवान सिंह है जो ज़िला फरीदकोट के गांव लालेयाणा के रहने वाले है। स्कूल में भी उनके मन में यही बात घूमती रहती थी कि कब वह घर जाकर अपने पिता जी के साथ खेत का दौरा करके आएंगे, मतलब कि उनका सारा ध्यान खेतों में ही रहता था।

उनके पिता मनजीत सिंह जी, जो मॉडर्न क्रॉप केयर केमिकल्स में कृषि सलाहकार के रूप में काम करते हैं, उनको हमेशा इस बात की चिंता रहती थी कि उनका एकलौता बेटा पढ़ाई को छोड़कर खेती के कामों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है लेकिन वह इसे बुरा नहीं कह रहे थे। उनका मानना था कि “बच्चे को खेत से जुड़ा रहना चाहिए पर अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और पढ़ाई छोड़नी नहीं चाहिए।”

लेकिन उनके पिता को क्या पता था कि एक दिन यह बेटा अपना नाम मशहूर करेगा, उडीकवान जी को बचपन से ही खेतों से लगाव था लेकिन इस प्यार के पीछे उनकी विशाल सोच थी जो हमेशा सवाल पूछती थी और फिर वह यह सवाल दूसरे किसानों से पूछते थे। जब उनके पिता खुद खेती करते थे और फसल बेचने के लिए बाजार जाते थे तो उडीकवान जी दूसरे किसनों से सवाल पूछने लग जाते थे कि अगर हम इस फसल को इस विधि से उगाएं तो इससे कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, जिस पर किसान हंसने लगते थे जो कि उडीकवान जी की सफलता का कारण बना।

इसके बाद उडीकवान जी के पिता मनजीत सिंह जी हमेशा काम के सिलसिले में दिन भर बाहर रहने लगे जिससे उनका ध्यान खेतों की तरफ कम होने लगा। तब उडीकवान जी ने खेती के कार्यों की तरफ ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और वह रोज़ाना खेतों में जाकर काम करने लगे। उस समय उडीकवान जी को लगा कि अब कुछ ऐसा करने का समय आ गया है जिसका उनको काफी लंबे समय से इंतज़ार था।

उस समय उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी। फिर उन्होंने खेती से जुड़े बड़े काम करने भी शुरू कर दिए और अपने पिता के कहने अनुसार पढ़ाई भी नहीं छोड़ी। लंबे समय तक उन्होंने पारम्परिक खेती की और महसूस किया कि कुछ अलग करना होगा।

उन्होंने इस मामले पर अपने पिता से चर्चा की और सब्जियों की खेती शुरू कर दी जिसमें मूल रूप से खाने वाली सब्ज़ियां ही हैं। वह अपने मन में आने वाले सवाल पूछते रहते थे और जब भी उडीकवान जी को खेती के कार्यों में कोई समस्या आती थी तो उनके पिता जी उनकी मदद करते थे और खेती के कई अन्य तरीकों से भी अवगत करवाते थे। वह हमेशा खेतों में अपने तरीकों का इस्तेमाल करते थे लेकिन परिणाम उन्हें थोड़े समय बाद मिला जब सब्जियां पककर तैयार हुईं। जिसमें से उनकी कद्दू की फसल काफी मशहूर हुई जिसमें से एक कद्दू 18 से 20 किलो का हुआ। अभी तक उडीकवान जी के सभी तरीके सब्ज़ियों की खेती में खरे उतरते आ रहे हैं जिनसे उनके पिता जी काफ़ी खुश हैं। इसके बाद उडीकवान जी ने खुद ही सब्ज़ियों को मंडी में बेचा। वह जिन सब्ज़ियों की मूल रूप से खेती करते थे उनके पकने पर वह सुबह उन्हें ले जाते थे और उन्होंने मंडी में उनकी मार्केटिंग करनी शुरू कर दी। उन्हें इस काम में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि मार्केटिंग करनी कैसे है।

लंबे समय तक सब्जियों की मार्केटिंग नहीं होने से उडीकवान जी काफ़ी निराश रहने लगे और उन्होंने बाजार में सब्जियां न बेचने का मन बनाकर मार्केटिंग बंद करने का फैसला किया। इस दौरान उनकी मुलाकात डॉ. अमनदीप केशव जी से हुई जो कि आत्मा में प्रोजेक्ट निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं और कृषि के बारे में किसानों को बहुत जागरूक करते हैं और उनकी काफी मदद भी करते हैं। इसलिए उन्होंने उडीकवान जी से पहले सब कुछ पूछा और खुश भी हुए क्योंकि कोई ही होगा जो इतनी छोटी उम्र में खेती के प्रति यह बातें सोच सकता है।

पूरी बात सुनने के बाद डॉ.अमनदीप ने उडीकवान जी को मार्केटिंग के कुछ तरीके बताये और उडीकवान जी के सोशल मीडिया और ग्रुप्स के ज़रिये खुद मदद की। जिससे उडीकवान जी की मार्केटिंग का सिलसिला शुरू हो गया जिससे उडीकवान जी काफ़ी खुश हुए।

इस बीच आत्मा किसान कल्याण विभाग ने आत्मा किसान बाजार खोला और उडीकवान जी को सूचित किया और उन्हें फरीदकोट में हर गुरुवार और रविवार को होने वाली सब्जियों को बाजार में बेचने के लिए कहा। तब उडीकवान जी हर गुरुवार और रविवार को सब्जी लेकर जाने लगे जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होने लगा और हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानने लगा और इस मंडी में उनकी मार्केटिंग भी अच्छे से होने लगी और 2020 तक आते-आते उनका सब्ज़ियों की मार्केटिंग में काफ़ी ज्यादा प्रसार हो गया और अभी वह इससे काफ़ी ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं और उनकी सफलता का राज उनके पिता मनजीत सिंह और आत्मा किसान कल्याण विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ.अमनदीप केशव जी हैं।

उडीकवान सिंह जी जिन्होंने 20 साल की उम्र में साबित कर दिया था कि सफलता के लिए उम्र जरूरी नहीं, इसके लिए केवल समर्पण और कड़ी मेहनत ज़रूरी है, भले ही उम्र छोटी ही क्यों न हो। 20 साल की उम्र में वह सोचते हैं कि आगे क्या करना है।

उडीकवान जी अब घरेलू उपयोग के लिए सब्ज़ियों की खेती कर रहे हैं जिसमें वह मल्चिंग विधि द्वारा भी सब्ज़ियां उगा रहे हैं।

भविष्य की योजनाएं

वह सब्जियों की संख्या बढ़ाकर और अंतरफसल पद्धति अपनाकर और अधिक प्रयोग करना चाहते हैं।

संदेश

यदि कोई व्यक्ति सब्जियों की खेती करना चाहता है, तो उसे सबसे पहले उन सब्जियों की खेती और विपणन करना चाहिए जो बुनियादी स्तर पर खाई जाती हैं, जिससे खेती के साथ-साथ आय भी होगी।

पिंदरपाल सिंह

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शौंक को पूरा करने के लिए छोड़ी वकालत और हुए कामयाब

शुरू से ही किसी न किसी का कोई शौंक होता है, जिसमें पंजाब का नाम पहले नंबर पर आता है। पंजाब में यदि कोई व्यक्ति किसी नाम के कारण जाना जाता है तो वह उसके शौंक के कारण जाना जाता है। जिसे घोड़े पालना और उसकी सवारी।

आजकल घोड़े पालने का शौंक कम हो गया है लेकिन यदि 50 साल पहले की बात करे तो हर एक परिवार ने घोड़े रखे होते थे, क्योंकि उस समय आने जाने का एक मात्रा साधन यदि होते थे। पर आजकल इनकी जगह कम हो गई है पर फिर भी कई जगह इस शौंक को लोग पाल रहे हैं।

आज जिनकी बात करने जा रहे है वह पेशे से तो वकील है और ऑस्ट्रेलिया में स्थायी रूप से रहने वाले निवासी है। पर शौंक को पूरा करने के लिए पिंदरपाल सिंह जी बाहर से आ गए और पंजाब में आकर अपने परिवार के साथ घोड़े का काम करना शुरू किया और इसे बड़े स्तर पर ले गए।

साल 1994 में वह वकालत की पढ़ाई कर रहे थे पर पढ़ाई के दौरान उनके मन में कभी भी घोड़े का व्यापार करने के बारे में नहीं आया, पर वह कुछ न कुछ करना चाहते थे, इसलिए वह घर आकर फार्म में चले जाते हैं और पूरा समय वहां ही व्यतीत करते थे। एक दिन जब वह कॉलेज से घर जा रहे थे तो उनके एक मित्र ने कहा कि तुम घोड़े का व्यापार करने के बारे में क्यों नहीं सोचता, घोड़े भी हैं।

उसके बाद उन्होंने घोड़े का व्यापार करना शुरू कर दिया पर उन्हें कुछ नहीं मुनाफा नहीं हो रहा था फिर उन्होंने सोचा कि मेले में जाना चाहिए ताकि घोड़े का व्यापार सही से चल पड़े और इसके साथ वकालत की पढ़ाई भी पूरी करते रहे।

पढ़ाई करते समय उनका अधिक समय पढ़ाई में निकल जाता था, और मुनाफा भी नहीं हो रहा था क्योंकि मेले में जाने के लिए बहुत समय पहले तैयार करनी पड़ती थी पर पढ़ाई के कारण वह तैयार सही से नहीं हो रही थी। 3 साल के बाद पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने अपना पूरा समय फार्म में बिताना शुरू किया और हर काम खुद करने लगे और जब भी कोई मेला आता तो उसमें पूरी तैयार के साथ जाते। घोड़े बेचते और उन्हें कभी भी घोड़े बेचने में मुश्किल नहीं आई क्योंकि शुरू से ही घर में घोड़े होने के कारण उन्हें घोड़े के बारे में पूरी जानकारी थी जिससे ग्राहक खुश होकर घोड़े खरीद लेते थे।

इस दौरान पिंदरपाल जी ने ऑस्ट्रेलिया के पक्के निवासी होने के फॉर्म भी भर दिए थे और साल 2000 तक घोड़े कोई खरीदने बेचने की तरफ ओर अधिक ध्यान देने लगे। हर मेले में जाने लगे। थोड़े समय बाद वह ऑस्ट्रेलिया के पक्के निवासी भी बन गए पर वह बाहर नहीं जाना चाहते थे क्योंकि उन्हें फार्म में रहना अच्छा लगता था, और परिवार के अकेले बेटे होने के कारण परिवार को छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे। पर 2002 में उन्हें जाना पड़ा और वहां जाकर काम करने लगे , 2 साल निकल गए पर उनका मन पंजाब में ही रहता था, पर 2004 में ऑस्ट्रेलिया छोड़ कर अपने गांव चक्क शेरेवाला, जिला मुक्तसर, पंजाब में आ गए।

पंजाब आकर उन्हें सुकून मिला और खुश हुए और फिर से घोड़े के व्यापार करने के बारे में सोचा और काम शुरू कर दिया, पर इस बार उन्होंने सोचा क्यों न घोड़े की ब्रीडिंग करनी शुरू की जाए और बच्चे बेचना शुरू किया जिससे कम समय में बहुत मुनाफा हुआ।

काम करते करते पता ही नहीं चला 2004 से 2007 कब आ गया और उन्होंने अपने शौंक को पूरा भी किया और कामयाब भी हो गए। उन्हें यह शौंक अपने दादी पड़दादे से रहा था, क्योंकि वह घोड़सवारी किया करते थे जिन्हे देखकर उनके मन भी घोड़े पलने का काम करने के बारे में बिचार आया और बड़े होकर उन्होंने यह काम करना शुरू किया और कामयाब भी हुए।

इसके साथ-साथ वह खेती भी करते है और खुद ही खेती करते हैं।

भविष्य की योजना

पिंदरपाल जी घोड़े की ब्रीडिंग तो कर ही रहे हैं उसके साथ साथ अब घोड़े को खेल मुकाबले के लिए तैयार करके उसमें भाग भी लेना चाहते हैं।

संदेश

शौंक को कभी न मरने दें बल्कि उसे पूरा करने के बारे में सोचे ताकि आप अपने शौंक के साथ ही कामयाब हो।

रशपाल सिंह

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एक ऐसा किसान जिसकी किस्मत मशरुम ने बदली और मंजिलों के रास्ते पर पहुंचाया

खेती वह नहीं जो हम खेत में हल के साथ जुताई करना, बीज, पानी लगाना बाद में फसल पकने पर उसकी कटाई करते हैं, पर हर एक के मन में खेती को लेकर यही विचारधारा बनी हुई है, खेती में ओर बहुत सी खेती आ जाती है जोकि खेत को छोड़ कर बगीचा, छत, कमरे में भी खेती कर सकते हैं पर उसके लिए ज़मीनी खेती से ऊपर उठकर इंसान को सोचना पड़ेगा तभी खेती के अलग-अलग विषय के बारे में पढ़कर महारत हासिल कर सकता है।

ऐसे किसान जो शुरू से खेती के साथ जुड़े हुए हैं पर उन्होंने खेती से ऊपर होकर कुछ ओर करने के बारे में सोचा और कामयाब होकर अपने गांव में नहीं बल्कि अपने शहर में भी नाम बनाया। जिन्होनें जो भी व्यवसाय को करने के बारे में सोचा उसे पूरा किया जो असंभव लगता था पर परमात्मा मेहनत करने वालों का साथ हमेशा देता है।

इस स्टोरी द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं उनका नाम रशपाल सिंह है जोकि गांव बल्लू के, ज़िला बरनाला के रहने वाले हैं। रशपाल जी अपने गांव के ऐसे इंसान थे जिन्होनें अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद फ्री बैठने की बजाए कुछ करने के बारे में सोचा और इसकी तैयारी करनी शुरू कर दी।

साल 2012 की बात है रशपाल को बहुत-सी जगह पर मशरुम की खेती के बारे में सुनने को मिलता था पर कभी भी इस बात पर गौर नहीं किया पर जब फिर मशरुम के बारे में सुना तो मन में सवाल आया यह कौन सी खेती है, क्या पता था एक दिन यदि खेती किस्मत बदल देगी। उसके बारे रशपाल जी ने मशरुम की खेती के बारे में जानकारी इक्क्ठी करनी शुरू की।क्योंकि उस समय किसी किसी को ही इसके बारे में जानकारी थी, उनके गांव बल्लू के, के लिए यह नई बात थी। बहुत समय बिताने के बाद रशपाल जी ने पूरी जानकारी इक्क्ठी कर ली और बीज लेने के लिए हिमाचल प्रदेश चले गए, पर वहां किस्मत में मशरुम की खेती के साथ साथ स्ट्रॉबेरी की खेती का नाम भी सुनहरी अक्षरों में लिखा हुआ था।

जब मशरुम के बीज लेने लगे तो किसी ने कहा “आपको स्ट्रॉबेरी की खेती भी करनी चाहिए” सुनकर रशपाल बहुत हैरान हुआ और सोचने लगा यह भी काम नया है जिसके बारे में लोगों को कम ही पता था, मशरुम के बीज लेने गए रशपाल जी स्ट्रॉबेरी के पौधे भी ले साथ आए और मशरुम के बीज एक छोटी सी झोंपड़ी बना कर उसमें लगा दिए और इसके साथ खेत में स्ट्रॉबेरी के पौधे भी लगा दिए।

मशरुम लगाने के बाद देखरेख की और जब मशरुम तैयार होने लगा तो खुश हुए पर पर ख़ुशी अधिक समय के लिए नहीं थी, क्योंकि एक साल दिन रात मेहनत करने के बाद यह परिणाम निकला कि मशरुम की खेती बहुत समय मांगती है और देखरेख अधिक करनी पड़ती है । वह बटन मशरुम की खेती करते थे और आखिर उन्होनें साल 2013 में बटन मशरुम की खेती छोड़ने का फैसला किया और बाद में स्ट्रॉबेरी की खेती पर पूरा ध्यान देने लगे।

बटन मशरुम में असफलता का कारण यह भी था कि उन्होनें किसी प्रकार की ट्रेनिंग नहीं ली थी।

2013 के बाद स्ट्रॉबेरी की खेती को लगातार बरकरार रखते हुए “बल्लू स्ट्रॉबेरी” नाम के ब्रांड से बरनाला में बड़े स्तर पर मार्केटिंग करने लग गए जोकि 2017 तक पहुंचते-पहुंचते पूरे पंजाब में फैल गई, पर सफल तो इस काम में भी हुए पर भगवान ने किस्मत में कुछ ओर ही लिखा हुआ था जो 2013 में अधूरा काम छोड़ा था उसे पूरा करने के लिए।

रशपाल ने देरी न करते हुए 2017 में अपने शहर के नजदीक के वी के से मशरुम की ट्रेनिंग के बारे में पता किया जिसमें मशरुम की हर किस्म के बारे में अच्छी तरह से जानकारी और ट्रेनिंग दी जाती है, उस समय वह ऑइस्टर मशरुम की ट्रेनिंग लेने के लिए गए थे जोकि 5 दिनों का ट्रेनिंग प्रोग्राम था, जब वह ट्रेनिंग ले रहे थे तो उसमें मशरुम की बहुत से किस्मों के बारे में जानकारी दी गई पर जब उन्होनें कीड़ा जड़ी मशरुम के बारे में सुना जोकि एक मेडिसनल मशरुम है जिसके साथ कई तरह की बीमारियां जैसे कैंसर, शुगर, दिल का दौरा, चमड़ी आदि के रोगो को ठीक किया जा सकता है। जिसकी कीमत हजारों से शुरू और लाखों में खत्म होती है, जैसे 10 ग्राम एक हज़ार, 100 ग्राम 10 हज़ार, के हिसाब से बिकती है।

जब रशपाल को कीड़ा जड़ी मशरुम के फायदे के बारे में पता लगा तो उसने मन बना लिया कि कीड़ा जड़ी मशरुम की खेती ही करनी है, जिसके लिए रिसर्च करनी शुरू कर दी और बाद में पता लगा कि इसके बीज यहां नहीं थाईलैंड देश में मिलते है, पर यहां आकर रशपाल के लिए मुश्किल खड़ी हो गई क्योंकि कोई भी उसे जानने वाला बाहर देश में नहीं था जो उसकी सहायता कर सकता था। पर रशपाल जी ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और मेहनत करके बाहर देश में किसी के साथ संम्पर्क बनाया और फिर पूरी बात की।

जब रशपाल को बरोसा हुआ तो उन्होनें थाईलैंड से बीज मंगवाए जिसमें उनका खर्चा 2 लाख के नजदीक हुआ था। उन्होनें रिसर्च तो की थी और सब कुछ पहले से त्यार किया हुआ था जो मशरुम लगाने और उसे बढ़ने के लिए जरुरी थी और 2 अलग-अलग कमरे इस तरह से तैयार किये थे जहां पर मशरुम को हर समय आवश्यकता अनुसार तापमान मिलता रहे और मशरुम को डिब्बे में डालकर उसका ध्यान रखते।

रशपाल जी पहले ही बटन मशरुम और स्ट्रॉबेरी की खेती करते थे जिसके बाद उन्होनें कीड़ा जड़ी नामक मशरुम की खेती करनी शुरू कर दी। जब कीड़ा जड़ी मशरुम पकने पर आई तो नजदीकी गांव वालों को पता चला कि नजदीकी गांव में कोई मेडिसनल मशरुम की खेती कर रहा है, क्योंकि उनके नजदीक इस नाम के मशरुम की खेती कोई नहीं करता था, जिसके कारण लोगों में जानने के लिए उत्सुकता पैदा हो गई, जब वह रशपाल से मशरुम और इसके फायदे के बारे में पूछने लगे तो उन्होनें बहुत से अच्छे से उसके अनेकों फायदे के बारे में बताया, वैसे उन्होनें इसकी खेती घर के लिए ही की थी पर उन्हें क्या पता था कि एक दिन यही मशरुम की खेती व्यापार का रास्ता बन जाएगी।

सबसे पहले मशरुम का ट्रायल अपने और परिवार वालों पर किया और ट्रायल में सफल होने पर बाद में इसे बेचने के बारे में सोची और धीरे-धीरे लोग खरीदने लगे जिसका परिणाम थोड़े समय में मिलने लगा बहुत कम समय में मशरुम बिकने लगे।

जिसके साथ मार्केटिंग में इतनी जल्दी प्रसार हुआ, फिर उन्होनें मार्केटिंग करने के तरीके को बदला और मशरुम को एक ब्रांड के द्वारा बेचने के बारे में सोचा जिसे cordyceps barnala के ब्रांड नाम से रजिस्टर्ड करवा कर, खुद प्रोसेसिंग करके और पैकिंग करके मार्केटिंग करनी शुरू कर दी जिससे ओर लोग जुड़ने लगे और मार्केटिंग बरनाला शहर से शुरू हुई पूरे पंजाब में फैल गई, जिससे थोड़े समय में मुनाफा होने लगा। जिसमें वह 10 ग्राम 1000 रुपए के हिसाब से मशरुम बेचने लगे।

उन्होनें जहां से मशरुम उत्पादन की शुरुआत 10×10 से की थी इस तरह करते वह 2017 में प्राप्ति के शिखर पर थे, आज उनकी मशरुम की इतनी मांग है की उन्हें मशरुम खरीदने के लिए फोन आते हैं और बिलकुल भी खाली समय नहीं मिलता। अधिकतर उनकी मशरुम खिलाड़ियों की तरफ से खरीदी जाती है।

उन्हें इस काम के लिए आत्मा, के वी के और ओर बहुत सी संस्था की तरफ से इनाम भी प्रपात हो चुके हैं।

भविष्य जी योजना

वह 2 कमरे से शुरू किए इस काम को ओर बड़े स्तर पर करके अलग अलग कमरे तैयार करके मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश

यदि किसी छोटे किसान ने कीड़ा जड़ी मशरुम की खेती करनी है तो पैसे लगाने से पहले उसके ऊपर अच्छे से रिसर्च करें जानकारी लें और ट्रेनिंग ले कर ही इस काम शुरू करना चाहिए।

प्रदीप नत्त

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छोटी उम्र में ही कन्धों पर पड़ी जिम्मेवारियों को अपनाकर उन ऊपर जीत हांसिल करने वाला नौजवान

जिंदगी का सफर बहुत ही लंबा है जोकि पूरी जिंदगी काम करते हुए भी कभी खत्म नहीं होता, इस जिंदगी के सफर में हर एक इंसान का कोई न कोई मुसाफिर या साथी ऐसा होता है जोकि उसके साथ हमेशा रहता है, जैसे किसी के लिए दफ्तर में सहायता करने वाला कोई कर्मचारी, जैसे किसी पक्षी की थकावट दूर करने वाली पौधे की टहनी, इस तरह हर एक इंसान की जिंदगी में कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आज जिनके बारे में बात करने जा रहे हैं उनकी जिंदगी की पूरी कहानी इस कथन के साथ मिलती सी है, क्योंकि यदि एक साथ देने वाला इंसान जो आपके अच्छे या बुरे समय में आपके साथ रहता था, तो यदि वह अचानक से आपका साथ छोड़ दे तो हर एक काम जो पहले आसान लगता था वह बाद में अकेले करना मुश्किल हो जाता है, दूसरा आपको उस काम के बारे में कोई जानकारी नहीं होती।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान प्रदीप नत्त, जोकि गांव नत्त का रहने वाला है, जिसने छोटी आयु में अकेले ही कामयाबी की मंजिलों पर जीत पाई और अपने ज़िले बठिंडे में ऑर्गनिक तरीके के साथ सब्जियों की खेत और खुद ही मार्केटिंग करके नाम चमकाया।

साल 2018 की बात है जब प्रदीप अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेती करने लगा और उन्होंने शुरू से ही किसी के नीचे काम करने की बजाए खुद का काम करने के बारे में सोच रखा था, इसलिए वह खेती करने लगे और धीरे धीरे अपने पिता जी के बताएं अनुसार खेती करने लगे और लोग उन्हें खेतों का बेटा कहने लगे।

जब प्रदीप को फसल और खाद के बारे में जानकारी होने लगी उस समय 2018 में प्रदीप के पिता का देहांत हो गया जो उनके हर काम में उनके साथ रहते थे। जिससे घर की पूरी जिम्मेदारी प्रदीप जी पर आ गई और दूसरा उनकी आयु भी कम थी। प्रदीप ने हिम्मत नहीं हारी और खेती करने के जैविक तरीकों को अपनाया।

2018 में उन्‍होंने एक एकड़ में जैविक तरीके के साथ खेती करनी शुरू कर दी, बहुत से लोगों ने उसे इस काम को करने से रोका, पर उन्होनें किसी की न सुनी, उन्‍होंने सोचा कि अभी तक रसायनिक ही खा रहे हैं और पता नहीं कितनी बीमारियों को अपने साथ लगा लिया है, तो अभी शुद्ध और जैविक खाए जिससे कई बीमारियों से बचाव किया जा सके।

जैविक तरीके के साथ खेती करना 2018 से शुरू कर दिया था और जब जैविक खेती के बारे में पूरी जानकारी हो गई तो प्रदीप ने सोचा कि क्यों न कुछ अलग किया जाए और उनका ख्याल पारंपरिक खेती से हट कर सब्जियों की खेती करने का विचार आया। सितम्बर महीने की शुरुआत में उनहोंने कुछ मात्रा में भिंडी, शिमला मिर्च, गोभी आदि लगा दी और जैविक तरीके के साथ उनकी देखरेख करने लगे और जब समय पर सब्जियां पक कर तैयार हो जाए तो सबसे पहले प्रदीप ने घर में बना कर देखी और जब खाई तो स्वाद बहुत अलग था क्योंकि जैविक और रसायनिक तरीके के साथ उगाई गई फसल में जमीन आसमान का फर्क होता है।

फिर प्रदीप ने सब्जी बेचने के बारे में सोचा पर ख्याल आया कि लोग रसायनिक देख कर जैविक सब्जी को कैसे खरीदेंगे। फिर प्रदीप ने खुद मार्किट करने के बारे में सोचा और गांव गांव जाकर सब्जियां बेचने लगे और लोगों को जैविक के फायदे के बारे में बताने लगे जिससे लोगों को उस पर विश्वास होने लगा।

फिर रोजाना प्रदीप सब्जी बेचने मोटरसाइकिल पर जाता और शाम को घर वापिस आ जाता।एक बार वह अपने साथ नर्सरी के कार्ड छपवा कर ले गए और सब्जी के साथ देने लगे

फिर प्रदीप ने सोचा कि क्यों न बठिंडा शहर जाकर सब्जी बेचीं जाए और उसने इस तरह ही किया और शहर में लोगो की प्रतिक्रिया अच्छी थी जिसे देखकर वह खुद हुए और साथ साथ मुनाफा भी कमाने लगे।

इस तरह से 1 साल निकल गया और 2020 आते प्रदीप को पूरी तरह से सफलता मिल गई। जो प्रदीप ने 1 एकड़ से काम शुरू किया था उसे धीरे धीरे 5 एकड़ में फैला रहे थे जिसमें उनहोंने सब्जियों की खेती में विकास तो किया उसके साथ ही नरमे की खेती भी जैविक तरीके के साथ करनी शुरू की।

आज प्रदीप को घर बैठे ही सब्जियां खरीदने के लिए फ़ोन आते हैं और प्रदीप अपने ठेले पर सब्जी बेचने चले जाते हैं जिसमें सबसे अधिक फोन बठिंडे शहर से आते हैं जहां पर उनकी मार्केटिंग बहुत होती है और बहुत अधिक मुनाफा कमा रहे हैं।

छोटी आयु में ही प्रदीप ने बड़ा मुकाम पा लिया था, किसी को भी मुश्किलों से भागना नहीं चाहिए, बल्कि उसका मुकाबला करना चाहिए, जिसमें आयु कभी भी मायने नहीं रखती, जिसने मंजिलों को पाना होता है वह छोटी आयु में ही पा लेते हैं।

भविष्य की योजना

वह अपनी पूरी जमीन को जैविक में बदलना चाहते हैं और खेती जो रसायनिक खादों में बर्बाद की है उसे जैविक खादों द्वारा शक्तिशाली बनाना चाहते हैं।

संदेश

किसान चाहे बड़ा हो या छोटा हो हमेशा पहल जैविक खेती को देनी चाहिए, क्योंकि अपनी सेहत से अच्छा कुछ भी नहीं है और मुनाफा न देखकर अपने और दूसरों के बारे में सोच कर शुरू करें, आप भी शुद्ध चीजें खाएं और दूसरों को भी खिलाएं।

सिकंदर सिंह बराड़

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कृषि विभिन्ता को अपनाकर एक सफल किसान बनने वाले व्यक्ति की कहानी

कुछ अलग करने की इच्छा इंसान को धरती से आसमान तक ले जाती है। पर उसके मन में हमेश आगे बढ़ाने के इच्छा होनी चाहिए। आप चाहे किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हो, अपनी इच्छा और सोचा को हमेशा जागृत रखना चाहिए।

इस सोच के साथ चलने वाले सरदार सिकंदर सिंह बराड़, जोकि बलिहार महिमा, बठिंडा में रहते हैं और जिनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता सरदार बूटा सिंह पारंपरिक तरीके के साथ खेतीबाड़ी कर रहे हैं, जैसे गेहूं,धान आदि। क्या इस तरह नहीं हो सकता कि खेतीबाड़ी में कुछ नया या विभिन्ता लेकर आई जाए।

मेरे कहने का मतलब यह है कि हम खेती करते हैं पर हर बार हर साल वही फसलें उगाने की बजाए कुछ नया क्यों नहीं करते- सिकंदर सिंह बराड़

वह हमेशा खेतीबाड़ी में कुछ अलग करने के बारे में सोचा करते थे, जिसकी प्रेरणा उन्हें अपने नानके गांव से मिली। उनके नानके गांव वाले लोग आलू की खेती बहुत अलग तरीके के साथ करते थे, जिससे उनकी फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती थी।

जब मैं मामा के गांव की खेती के तरीकों को देखता था तो मैं बहुत ज्यादा प्रभवित होता था – सिकंदर सिंह बराड़

जब सिकंदर सिंह ने 1983 में सिरसा में डी. फार्मेसी की पढ़ाई शुरू की उस समय एस. शमशेर सिंह जो कि उनके बड़े भाई हैं, पशु चिकित्सा निरीक्षक थे और अपने पिता के बाद खेती का काम संभालते थे। उस समय जब दोनों भाइयों ने पहली बार खेतीबाड़ी में एक अलग ढंग को अपनाया और उनके द्वारा अपनाये गए इस तकनिकी हुनर के कारण उनके परिवार को काफी अच्छा मुनाफ़ा हुआ।

जब अलग तरीके अपनाने के साथ मुनाफा हुआ तो मैंने 1984 में D फार्मेसी छोड़ने का फैसला कर लिया और खेतबाड़ी की तरह रुख किया- सिकंदर सिंह बराड़

1984 में D फार्मेसी छोड़ने के बाद उन्होंने खेतीबाड़ी करनी शुरू कर दी। उन्होंने सबसे पहले नरमे की अधिक उपज वाली किस्म की खेती करनी शुरू की।

इस तरह छोटे छोटे कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए वह सब्जियों की खेती ही करते रहे, जहां पर उन्होंने 1987 में टमाटर की खेती आधे एकड़ में की और फिर बहुत सी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किए और अपने इस व्यवसाय को आगे से आगे बढ़ाते रहे।

1990 में विवाह के बाद उन्होंने आलू की खेती बड़े स्तर पर करनी शुरू की और विभिन्ता अपनाने के लिए 1997 में 5000 लेयर मुर्गियों के साथ पोल्ट्री फार्मिंग की शुरुआत की, जिसमें काफी सफलता हासिल हुई। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के 5 ओर किसानों को पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय को सहायक व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के लिए उत्साहित किया, जिसके साथ उन किसानों को स्व निर्भर बनने में सहायता मिली। 2005 में उन्होंने 5 रकबे में किन्नू का बाग लगाया। इसके इलावा उन्होंने नैशनल सीड कारपोरेशन लिमिटेड के लिए 15 एकड़ जमीन में 50 एकड़ रकबे के लिए गेहूं के बीज तैयार किया।

मुझे हमेशा कीटनाशकों और नुकसानदेह रसायन के प्रयोग से नफरत थी, क्योंकि इसका प्रयोग करने के साथ शरीर को बहुत नुक्सान पहुंचता है- सिकंदर सिंह बराड़

सिकंदर सिंह बराड़ अपनी फसलों के लिए अधिकतर जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। वह अब 20 एकड़ में आलू, 5 एकड़ में किन्नू और 30 एकड़ में गेहूं के बीजों का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही 2 एकड़ में 35000 पक्षियों वाला पोल्ट्री फार्म चलाते हैं।

बड़ी बड़ी कंपनी जिसमें पेप्सिको,नेशनल सीड कारपोरेशन आदि शामिल है, के साथ साथ काम कर सकते हैं, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना की तरफ से प्रमुख पोल्ट्री फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया। उन्हें बहुत से टेलीविज़न और रेडियो चैनल में आमंत्रित किया गया, ताकि खेती समाज में बदलाव, खोज, मंडीकरण और प्रबंधन संबंधी जानकारी ओर किसानों तक भी पहुँच सके।

वे राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खेती मेले और संस्था का दौरा कर चुके हैं।

भविष्य की योजना

सिकंदर सिंह बराड़ भविष्य में भी अपने परिवार के साथ साथ अपने काम को ओर आगे लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें नए नए बदलाव आते रहेंगे।

संदेश

जो भी नए किसान खेतीबाड़ी में कुछ नया करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि कुछ भी शुरू करने से पहले उससे संबंधित माहिर या संस्था से ट्रेनिंग ओर सलाह ली जाए। उसके बाद ही काम शुरू किया जाए। इसके इलावा जितना हो सके कीटनाशकों और रसायन से बचना चाहिए और जैविक खेती को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

बलजिंदर सिंह

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एक मधुमक्खी पालक की कहानी जो अपने शौक के जरिए सलफता हासिल कर चुका है

दिशा कहीं से भी मिल जाए, चाहे समय कोई भी हो, चाहे दिन हो या रात, वह समय सुनहरा होता है।

यह बात हर क्षेत्र में लागू है, क्योंकि आज के समय में यदि किसी ने कोई मुकाम हासिल करना हो, तो ज्ञान और मार्गदर्शन की जरुरत होती है। आज एक ऐसे ही किसान के बारे में बात करेंगे जिन्होंने इस बात को सच साबित किया है।

कहा जाता है कि इंसान और पानी का चलते रहना बहुत जरुरी होता है, क्योंकि इनके एक जगह खड़े रहने से इनकी महत्ता कम हो जाती है। इसी सोच के साथ श्री कतसर साहिब जिला के रहने वाले बलजिंदर सिंह जी को कुछ नया करने की इच्छा रहती थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अलग अलग मेले और प्रदर्शनियों में जाना शुरू किया। इन प्रदर्शनियों में उनकी मुलाकात श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी के साथ हुई जिनकी सफलता ने बलजिंदर सिंह जी को बहुत प्रभावित किया।

श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी जोकि खुद एक प्रगतिशील किसान है, उन्हें देखकर विचार आया, यदि एक महिला होकर इतना कुछ कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं- बलजिंदर सिंह

श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी एक प्रगतिशील किसान है, जिन्होंने अपने बनाए सेल्फ हेल्प ग्रुप के साथ अपनी अलग पहचान बना रखी है, जिससे वह अपने उत्पाद जैसे कि चटनी, अचार आदि का मंडीकरण भी करते हैं। उन्हें बहुत से पुरस्कार भी मिल चुके हैं, जोकि ओर महिलाओं के लिए एक उदाहरण है।

बलजिंदर सिंह जी श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी के काम से उत्साहित हो कर मधु मक्खी पालन का व्यवसाय अपनाने का मन बनाया। उनके साथ मिलकर मधु मक्खी पालन की प्राथमिक ट्रेनिंग ली।

मैं और श्रीमती गुरदेव कौर देयोल ही मिलकर KVK बठिंडा में समय समय पर ट्रेनिंग प्राप्त करवाते रहते हैं और सरदारनी गुरदेव कौर देयोल के साथ अलग अलग फार्म पर जाते रहे- बलजिंदर सिंह

बलजिंदर जी ने एक से डेढ़ साल तक ट्रेनिंग करने के बाद गुरदेव कौर देयोल जी के पास से 15 बक्से खरीद कर साल 2000 में मधु मक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया। मधु मक्खियों की नस्ल से उन्होंने इटालियन नस्ल की मक्खियों के साथ शुरू किया, जोकि PAU की तरफ से सिफारिश की गई थी। इन बक्सों को उन्होंने गंगानगर के इलाके में रखा। बिना किसी सरकारी और गैर सरकारी सहायता से उन्होंने 15 बक्से से अपना काम शुरू किया।

मुझे इस व्यवसाय में कोई अधिक समस्या नहीं आई, पर दुःख इस बात का होता है कि कंपनियां शहद में मिलावट करके बेचती है और अपने मुनाफे के लिए लोगों की सेहत के साथ खेल रही है- बलजिंदर सिंह।

उनका काम बड़े स्तर पर फैल चुका है, कि वह अपना शहद सिर्फ भारत में नहीं बल्कि बाहरी देश जैसे अमेरिका, कनाडा, आदि में भी बेच रहे हैं। उन्होंने कंपनियों के साथ लिंक बनाए हुए हैं और शहद सीधा कंपनी को बेचते हैं।

वर्तमान में उनके पास 2500 के आस पास बक्से हैं। वह अपने बक्से केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि पंजाब के बाहर जैसे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, श्रीनगर आदि शहरों में लगाते हैं। इस काम में उनके साथ 20 ओर मजदूर जुड़े हैं और उनके साथ उनके सहयोगी कुलविंदर सिंह गांव बुर्ज कलां से हैं, जोकि हर समय उनका साथ देते हैं।

बलजिंदर सिंह जी ने अपना शहद ग्राहक की जरुरत अनुसार जैसे 100 ग्राम, 250 ग्राम, 500 ग्राम, और 1 किलो की पैकिंग को घर-घर में पहुंचाना शुरू किया। उन्हें मधु मक्खी पालन के व्यवसाय में बहुत से पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

बलजिंदर सिंह जी की तरफ से अलग अलग तरह का शहद तैयार किया जाता है-

  • सरसों का शहद
  • नीम का शहद
  • टाहली का शहद
  • सफेदे का शहद
  • बेरी का शहद
  • कीकर का शहद आदि।

भविष्य की योजना

वह मधु मक्खी पालन के व्यवसाय को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें 5000 तक बक्से लगाना चाहते हैं।

संदेश

जो नए किसान मधु मक्खी पालन में आना चाहते हैं, सबसे पहले उन्हें अच्छी तरह से ट्रेनिंग प्राप्त करनी चाहिए। उसके बाद मेहनत करें ये न हो कि उत्साहित होकर पैसे लगा लें पर ज्ञान की कमी होने के कारण बाद में नुक्सान सहना पड़े। सबसे पहले अच्छी तरह से ट्रेनिंग लेने के बाद ही किसी व्यवसाय को करें। क्योंकि इस तरह का व्यवसाय अपनी देखरेख में ही किया जा सकता है।

मलविंदर सिंह

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खेती के तरीकों को बदलकर क्रांति लेकर आने वाला यह प्रगतिशील युवा किसान

ज्यादातर इस दुनिया में कोई भी किसी का कहना नहीं मानता बेशक वह बात हमारी भलाई के लिए ही क्यों ना की जाए पर उसका अहसास बहुत समय बाद जाकर होता है, पर किसी द्वारा एक छोटी सी हंसी में ही बोली गई बात पर अमल करके अपने खेती के तरीके को बदल लेना, किसी ने सोचा नहीं था और क्या पता था कि एक दिन वह उसकी कामयाबी का ताज बनकर सिर पर सज जाएगा।

इस स्टोरी के द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं उन्होंने आर्गेनिक तरीके को अपनाकर और फूड प्रोसेसिंग करके मंडीकरण में ऐसी क्रांति लेकर आए कि ग्राहकों द्वारा हमेशा ही उनके उत्पादों की प्रशंसा की गई, जो कि तब मलविंदर सिंह जो पटियाला जिले के रहने वाले हैं, उनकी तरफ से एक छोटे स्तर पर शुरू किया कारोबार था जो आज पूरे पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा और दिल्ली में बड़े स्तर पर फैल गया है।

आज कल की इस भागदौड़ की दुनिया में बीमार होना एक आम बात हो गई है इसी दौरान ही मलविंदर जी जब छोटे होते बीमार हुए जिसका कारण एलर्जी था तो उनके पिता दवाई लेने के लिए डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने दवाई देकर आगे से कहा कि भाई, कीटनाशक स्प्रे के उपयोग को घटाएं, यदि बीमारियों से छुटकारा पाना चाहते है। यह बात सुनकर मलविंदर के पिता जी के मन में बात इस तरह बैठ गई कि उन्होंने स्प्रेओं का उपयोग करना ही बंद कर दिया।

उसके बाद वे बिना स्प्रे से खेती करने लगे जिसमें गेहूं, बासमती, सरसों और दालें जो कि एक एकड़ में करते थे, जो 2014 में पूरी तरह जैविक हो गई और इस तरह खेती करते-करते बहुत समय हो गया था और वर्ष 2014 में ही मलविंदर के पिता जी स्वर्ग सिधार गए जिसका मलविंदर और उनके परिवार को बहुत ही ज्यादा दुख हुआ क्योंकि हर समय परछाई बनकर साथ रहने वाला हाथ सिर से सदा के लिए उठ गया था और घर की ज़िम्मेवारी संभालने वाले उनके पिता जी थे, उस समय मलविंदर अपने पढ़ाई कर रहे थे।

जब यह घटना घटी तो मलविंदर जी को कोई ख्याल नहीं था कि घर की पूरी ज़िम्मेवारी उन्हें ही संभालनी पड़नी है, जब थोड़े समय बाद घर में माहौल सही हुआ तो मलविंदर ने महसूस किया और पढ़ाई के साथ-साथ खेती में आ गए और कम समय में ही खेती को अच्छी तरह जानकर काम करने लगे जो कि बहुत हिम्मत वाली बात है, इस दौरान वे खेती संबंधी रिसर्च करते रहते थे क्योंकि एक पढ़ा लिखा नौजवान जब खेती में आता है तो वह कुछ ना कुछ परिवर्तन लेकर ही आएगा। मलविंदर ने वैसे तो पढ़ाई में बी ए, एम ए, एम फिल की हुई है।

मलविंदर जी जब रिसर्च कर रहे थे उस दौरान उन्हें फूड प्रोसेसिंग और मार्केटिंग करने का ख्याल आया, पर उसे वास्तविक रूप में लेकर नहीं आ रहे थे। उनके पास कुल 30 एकड़ ज़मीन हैऔर वे 2 भाई हैं, उस समय जब उन्होंने खेती को संभाला था तब वे एक एकड़ में ही स्प्रे रहित खेती करते थे जिसमें वे सिर्फ अपने घर के लिए ही उगा रहे थे पर कभी भी मार्केटिंग करने के बारे में सोचा नहीं था।

इस तरह खेती करते उन्हें 5 साल हो गए थे और उसके बाद सोचा कि अब की हुई रिसर्च को वास्तविक रूप में लेकर आने का समय आ गया है क्योंकि 2014 में वे पूरी तरह आर्गेनिक खेती करने लग गए थे, बेशक वे पहले भी स्प्रे रहित खेती करते थे पर अब पूरी तरह आर्गेनिक तरीकों से ही खेती कर रहे थे। मलविंदर ने सोचा कि यदि आर्गेनिक दालें, हल्दी, गेहूं और बासमती की प्रोसेसिंग करके बेचा जाए तो इस संबंधित देरी ना करते हुए सभी उत्पाद तैयार कर लिए क्योंकि आज कल बीमारियों ने घर-घर में राज़ कर लिया है जिस कारण हर कोई साफ, शुद्ध और देसी खाना चाहता है ताकि बीमारियों से बचा जा सके। यह ही मलविंदर की सबसे महत्तवपूर्ण धारणा थी पर इसलिए उस तरह के इंसान भी जरूरी थे जिन्हें इन सब उत्पादों की अहमियत के बारे में पता हो।

फिर मलविंदर ने अपने उत्पादों की मार्केटिंग करने के लिए एक ऐसा ही रास्ता सोचा कि जिससे उसके बारे में सभी को पता चल सके जो सोशल मीडिया थी वहां उन्होंने नीलोवालिया नैचुरल फार्म नाम से पेज बनाया और उत्पाद की फोटो खींच कर डालने लग गए और बहुत लोग उनसे जुड़ने लग गए पर किसी ने भी पहल नहीं की। इस संबंधी उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से बात की जो शहर में रहते थे उनके साथ और भी बहुत लोग जुड़े हुए थे जो कि हमेशा अच्छे उत्पादों की मांग करते थे जो कि मलविंदर के लिए बहुत बड़ी सफलता थी। इसमें सभी जान पहचान वालों ने पूरा साथ दिया जिस तरह धीरे-धीरे करके उनके एक-एक उत्पाद की मार्केटिंग होने लग गई, जिससे बेशक उनके मार्केटिंग का काम चल पड़ा था और इस दौरान वे पढ़ाई भी साथ-साथ कर रहे थे और जब कॉलेज जाते थे वहां हमेशा ही उनके प्रोफेसर मलविंदर से बातचीत करते और फिर वे अपने आर्गेनिक उत्पादों के बारे में उन्हें बताने लग जाते जिससे उनके उत्पाद प्रोफेसर भी लेने लगे और मार्केटिंग में प्रसार होने लग गया।

इससे मलविंदर ने सोचा कि क्यों ना शहर के लोगों के साथ मीटिंग करके अपने उत्पादों के बारे में अवगत करवाया जाए जिसमें उनके प्रोफेसर, रिश्तेदारों और दोस्तों के द्वारा जो अच्छे तरीके से उन्हें जानते थे मीटिंग बुला ली। जब उन्होंने अपने उत्पादों के बारे में लोगों को अवगत करवाया तो एक-एक उत्पाद करके लेकर जाना शुरू कर दिया।

इस तरह करते हुए साल 2016 के अंत तक मलविंदर ने अपने साथ पक्के ग्राहक जोड़ लिए जो कि तकरीबन 80 के करीब हैं और हमेशा ही उनसे सामान लेते हैं और साथ ही उन्होंने अपने खेती में भी वृद्धि कर दी एक एकड़ से शुरू की खेती को 3 एकड़ में करना शुरू कर दिया जिससे उनका मार्केटिंग में इतनी जल्दी प्रसार हुआ कि जहां वे एक उत्पाद खरीदते थे वहीं उनके और उत्पाद की भी बिक्री होने लग गई।

2016 में मलविंदर जी कामयाब हुए और उस समय उन्होंने 2018 में सब्जियों की काश्त करनी भी शुरू कर दी, जिसकी बहुत ज्यादा मांग है साल 2021 तक आते आते उन्होंने 3 एकड़ की खेती को 8 एकड़ में फैला दिया जिसमें घर में हर एक उपयोग में आने वाली वस्तुएं उगाने लगे और उनकी प्रोसेसिंग करते हैं। इस दौरान एक ट्रॉली भी तैयार की हुई है जो कि पूरी तरह पोस्टर लगाकर सजाई हुई है और इसके साथ एक किसान हट भी खोली हुई है जहां सारा शुद्ध, साफ और आर्गेनिक सामान रखा हुआ है, उन्होंने प्रोसेसिंग करने के लिए मशीनें रखी हुई हैं और उत्पाद की बढ़िया तरीके से पैकिंग करके नीलोवालिया नैचुरल फार्म नाम से बेच रहे हैं।

जिससे जो काम उन्होंने पहले छोटे स्तर पर शुरू किया था उसके चर्चे अब पूरे पंजाब में है और पढ़े लिखे इस नौजवान ने साबित किया कि खेती केवल खेतों में मिट्टी से मिट्टी होना ही नहीं, बल्कि मिट्टी में से निकलकर लोगों के सामने निखर कर सामने लेकर आना और उसे रोजगार बनाना ही खेती है।

भविष्य की योजना

वे खेती में हर एक चीज़ का तज़ुर्बा करना चाहते हैं और मार्केटिंग चैनल बनाना चाहते हैं जिससे वे अपने और साथ के किसानों की सारी उपज स्वयं मंडीकरण करके बेच सकें और किसानों को अपनी मेहनत का मुल्य मिल सके।

संदेश

खेती बेशक करो पर वह करो जिससे किसी की सेहत के साथ खिलवाड़ ना हो और यदि हो सके तो ओरगैनिक खेती को ही पहल दें यदि खुशहाल इस दुनिया को देखना चाहते हैं और कोशिश करते रहें कि अपनी फसल स्वंय मंडीकरण करके बेच सकें।

हरप्रीत सिंह

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एक सफल शिक्षक से एक सफल सुअर पालक तक का अनोखा सफर

सुअर पालन को लेकर हर इंसान के मन में यह धारणा होती है कि सुअर पालन केवल एक सहायक पेशा हो सकता है, इसके इलावा कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि सुअर बहुत गंदा जानवर है जो हमेशा गंदगी में रहता है और सूअर पालन कभी भी मुख्य व्यवसायों में अपनी जगह नहीं बना सकता।

आज हम जिला मुक्तसर के गांव लालबाई के एक युवक हरप्रीत सिंह की सफल कहानी पढ़ेंगे, जिन्होंने इस धारणा को गलत साबित कर दिया। उन्होंने अपनी BA और B.ED की पढ़ाई पूरी करने के बाद 10 साल तक 10वीं कक्षा के शात्रों को पढ़ाया और बाद एक शिक्षक से सफल किसान बने, उनकी सफलता की कहानी सोशल मीडिया से शुरू होती है, एक दिन जब वह खाली बैठे थे, उन्हें सोशल मीडिया पर सुअर पालन से संबंधित एक वीडियो मिला, जिसमें सुअर पालन के बारे में बहुत विस्तार से जानकारी दी गई थी जिसने हरप्रीत जी को सोचने पर मजबूर कर दिया था। सुअर पालन एक अच्छा पेशा है लेकिन लोग इसे गलत क्यों कहते हैं। उन्होंने और जानकारी इकट्ठी करनी शुरू की और अपना सारा ध्यान उसी पर केंद्रित कर दिया। जैसे-जैसे जानकारी धीरे-धीरे इकट्ठी होने लगी, उस पल उन्हें ऐसा लगा जैसे समुद्र में खड़ी नाव को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें एक चप्पू मिल गया हो।

हरप्रीत जी ने सोचा, मैंने बहुत सारी जानकारी इकट्ठी कर ली है लेकिन अब मुझे अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी फार्म का दौरा करना है और यह जानना है कि हम सुअर पालन को एक प्रमुख व्यवसाय के रूप में अपनाकर वास्तव में सफल कैसे हो सकते हैं और वह जिस फार्म में भी जाते थे वहां से अपने सवालों की पुष्टि करके ही वापिस आते थे। जानकारी एकत्रित करने में काफी समय लगा लेकिन उन्होंने इस जानकारी को अमल में लाने का मन बना लिया था। जिसे लेकर हरप्रीत ने अपने परिवार से बात की, उन्होंने हरप्रीत की एक भी बात नहीं मानी क्योंकि सबके मन में यही बात थी. कि सुअर बहुत गंदा जानवर है जिसे गंदगी पसंद है, लेकिन जब हरप्रीत जी ने सुअर पालन के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी दी, तो परिवार के सदस्य सहमत हो गए लेकिन उनकी पूरी सहमति हरप्रीत जी के पास नहीं थी,जिससे वह काफी निराश थे।

इसी बीच गृह मंत्रालय में वरिष्ठ पद पर आसीन उनके दादा जी के मुलाकात साल 2018 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल से हुई और उस समय हरप्रीत जी भी अपने दादा के साथ थे। बैठक के दौरान हरप्रीत जी ने कहा कि उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा पूछे जाने पर, वह एक शिक्षक थे और अब वे सुअर पालन का पेशा शुरू करने की सोच रहे थे। इस पर सहानुभूति प्रकट करते हुए सरदार प्रकाश बादल ने कहा, “बेटा, जब आप यह काम शुरू कर रहे हैं तो मेरे पास एक बहुत अच्छा विचार है। फार्म शुरू कब कर रहे हो, जब भी शुरू करना तो मेरे पी. ए. को फोन कर देना हम तुम्हारा फार्म देखने आयेंगे।”

हरप्रीत जी पहले से ही कुछ अलग करना चाहते थे और उसके ऊपर जब पूर्व मुख्यमंत्री ने काम के प्रति सहानुभूति व्यक्त की, तो उन्हें विश्वास हो गया कि हाँ, यह पेशा भी एक प्रमुख पेशा बन सकता है और फिर से परिवार के सदस्यों ने हरप्रीत को शुरू करने के लिए अपनी सहमति दी। इस पर हरप्रीत बहुत खुश थे।

हरप्रीत के पास सुअर पालन से जुड़ी सारी जानकारी थी इसलिए उसने अपना व्यवसाय शुरू करने से पहले उन्होंने पहले फार्म तैयार करवाया और पंजाब के बाहर से 2 नर सूअर और 20 मादा सूअर लाकर जुलाई 2018 में सुअर पालन शुरू किया। उसे लिया और उस पर पूरा ध्यान दिया। उस समय उनके पास एक यॉर्कशायर और दूसरा क्रॉस-ब्रीड थी।

जब सुअर पालन शुरू हुआ और एक महीने बाद उसने सरदार प्रकाश बादल के पी.ए. को बुलाकर अपने खेत में आने का निमंत्रण दिया, जैसे ही खबर सरदार बादल तक पहुंची, वह हरप्रीत के फार्म को देखने गए और बहुत खुश हुए और हरप्रीत जी से कहा, “बेटा, तुम्हे जिस भी चीज़ की ज़रुरत हो बस बता देना।” जब सरदार बादल साहब हरप्रीत के खेत में गए, तो इसकी खबर आसपास के अन्य गांवों में फैल गई और गांव के साथ-साथ अन्य गांवों के लोग भी फार्म को देखने आने लगे। जैसे-जैसे उनके फार्म में देखने वालों की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती गई, इसकी बात धीरे-धीरे उन व्यापारियों तक फैल गई जो सूअर खरीदते थे और वे भी खेतों को देखने आते थे और हरप्रीत के साथ सूअरों का व्यापार करते थे। वहीं से मार्केटिंग की शुरुआत हुई।

कुछ ही समय में सूअरों की बिक्री इतनी तेजी से बढ़ी कि पंजाब में उनकी चर्चा होने लगी और बहुत ही कम समय में उन्होंने लाभ कमाना शुरू कर दिया। उस समय बेशक उनके फार्म का खर्च मुनाफे में से निकल रहा था लेकिन उनकी किस्मत तब बदल गई जब गर्भवती सूरी के बच्चे हुए, तो प्रति सूरी लगभग 10 से 15 बच्चे, जिन्हें व्यापारियों ने भारी मात्रा में खरीदा और इससे हरप्रीत जी को काफी हुआ, फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न फार्म को बड़ा स्तर पर शुरू कर दिया जाए और और सूअर रख कर उनकी सही तरीके से मार्केटिंग की जाए।

इसके बाद 2018 से 2020 तक उन्होंने बड़े पैमाने पर मार्केटिंग शुरू की जहां वे पंजाब के साथ-साथ विदेशों में भी व्यापारियों के चर्चा का विषय बने। काम शुरू हुआ तो उनके पेशे से उनकी पहचान ऐसी हो गई कि हर को सूअर खरीदने हरप्रीत जी के पास ही आता था और इनकी मार्केटिंग काफी फैली जहां साल 2020 में इन्होंने पूरा मुनाफा कमाना शुरू कर दिया और सफल हो गए। एक तरह से मार्केटिंग में सरदार बादल साहब का बड़ा हाथ है जिन्होंने हरप्रीत को सुअर पालन में काम करने के लिए कहा और हरप्रीत अपनी लगन और मेहनत से सफल हुए और लोगों को दिखाया कि अगर आपको कड़ी मेहनत करनी है तो सुअर पालन एक प्रमुख व्यवसाय हो सकता है।

आजकल वे ज्यादातर खुद मार्केटिंग के लिए जाते हैं क्योंकि साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और उस समय उन्होंने डायरेक्ट मार्केटिंग करना सीख लिया था।

भविष्य की योजना

वे अन्य किसान भाइयों को सुअर पालन के बारे में जागरूक करने के लिए इस तरह से काम जारी रखते हुए फार्म को बड़ा करना और सूअरों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं।

संदेश

अगर किसी को को भी काम करना है तो उसे विदेश जाने की जरूरत नहीं है, अगर आप यहाँ रहकर ही एक काम को अपने पुरे मन से करते हैं तो वह काम आपकी ज़िंदगी बदल सकता है।

सुखजिंदर सिंह

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शौंक को पेशे में बदलकर कामयाब होना सीखें इस इंसान से

हर इंसान की जिंदगी में एक ही कोशिश रहती है कि वह ऐसा काम करे जिससे उसकी पहचान उसके नाम की जगह उसके काम से हो, क्योंकि एक नाम जैसे तो बहुत होते हैं। ऐसी उदाहरण हर कोई दुनिया के सामने पेश करना चाहता है।

इस स्टोरी के द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं वह पहले डेयरी फार्मिंग के कार्य को संभालते थे और उसमें मुनाफा भी हो रहा था लेकिन उनका शौंक एक दिन पेशा बन जाएगा ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था और पंजाबी अपने शौंक पूरे करने के लिए ही जाने जाते हैं और उसे पूरा करके ही सांस लेते हैं। ऐसे ही सुखजिंदर सिंह जो मुक्तसर पंजाब के रहने वाले है, जिन्हें शौंक था कि क्यों ना घर में 2-3 बकरियों को रखकर देखभाल की जाए, इसलिए उन्होंने बरबरी जो देखने में बहुत सुंदर नस्ल है उसका एक बकरा और चार बकरियां ले आए ,जिसमें उनके घरवालों ने भी पूरा साथ दिया और वह उनकी देखभाल में लग गए और साथ-साथ अपना डेयरी फार्मिंग का काम भी संभालते रहे।

इस दौरान ही जब वह बकरियों की देखभाल कर रहे तो बकरियों के ब्याने के बाद जब उनके बच्चे थोड़े बड़े हुऐ तो लोग उन्हें देखने के लिए आते थे वह उनसे बच्चे लेकर जाने लगे क्योंकि बरबरी नस्ल की बकरी देखने में बहुत सुंदर और प्यारी होती है जिसे देखकर ही खरीदने का मन हो जाता है, जिससे बकरियों के बच्चे बिकने लगे लेकिन अभी भी सुखजिंदर जी बकरियों को शौंक के लिए ही रख रहे थे और उन्होंने बकरी पालन के काम के बारे में भी नहीं सोचा था।

साल 2017 के फरवरी में शुरू किए काम को धीरे-धीरे बढ़ाना शुरू किया और फार्म में बकरियों की संख्या को बढ़ाया और उनकी देखभाल करते रहे। इस दौरान उन्होंने विचार किया कि डेयरी फार्म के काम में मुनाफा नहीं हो रहा क्योंकि जितनी वह बकरियों की देखभाल कर रहे थे उससे कहीं ज्यादा डेयरी फार्म की तरफ ध्यान देते थे और इतनी मेहनत के बाद भी दूध का सही रेट नहीं मिल रहा था।

फिर उन्होंने थोड़ा समय अपने परिवार के साथ विचार करके डेयरी फार्मिंग के काम को कम करके बकरी पालन के फार्म को बढ़ाने के बारे में सोचा और 2-2, 4-4 करके उन्हें बढ़ाने लगे जिससे उनका बकरी पालन का काम सही तरीके से चलने लगा जिसमें मेहनत करते उन्हें 4 साल हो गए थे। इसके बाद उन्होंने सोचा कि डेयरी फार्म को बंद करके सिर्फ बकरी पालन के फार्म को बढ़ाएं और उसमें ही पूरे ध्यान से काम करें।

बकरी पालन को बढ़ाने से पहले वह साल 2019 में पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी से बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने चले गए ताकि बकरी पालन में कभी भी समस्या आए तो वह खुद उसका सामना कर सके, उसमें बिमारियों, खुराक और देखभाल की जानकारी दी जाती है।

साल 2019 में ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने बहुत सारे फार्मों का दौरा किया और इस काम की जानकारी लेकर बरबरी नस्ल को छोड़कर बीटल नस्ल की बकरियां लेकर आए जोकि लगभग 20 के आसपास थी। वह उनकी पूरी देखभाल करने लगे और फिर उन्होंने ब्रीडिंग की तरफ भी ध्यान देना शुरू कर दिया।

जैसे कि लोग पहले से ही उनके पास बकरियां लेने आते थे अब उससे भी ज्यादा लोग बकरियां लेकर जाने लगे जिसमें अच्छा मुनाफा होने लगा और मार्केटिंग भी होने लगी, उन्हें मार्केटिंग में ज्यादा समस्या नहीं आयी क्योंकि वह पहले भी डेयरी फार्मिंग का काम करते थे और लोग उनके पास आते जाते रहते थे फिर जब बकरी पालन का काम किया तब लोगों को जानकारी हो गई और उनसे बकरियां के बच्चे लेकर जाने लगे।

इसके साथ साथ वह मंडी में भी बकरियां लेकर जाते थे और वहां भी मार्केटिंग करते इस तरह वह साल 2019 के आखिर में इस काम में पूरी तरह कामयाब हो गए और अपने शौंक को पेशे में बदलकर लोगों को भी उदाहरण पेश की है क्योंकि यदि आप शौंक ही आपको पेशा बन जाए तो कभी भी असफलता देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

आज वह अपने फार्म में मार्केटिंग करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

भविष्य की योजना

बकरी फार्म को बढ़ाकर मार्केटिंग का प्रसार बड़े स्तर पर करना चाहते हैं जिससे पंजाब के बकरी पालकों को बकरियां पंजाब के बाहर से लाने ज़रूरत ना पड़े।

संदेश

यदि कोई नौजवान बकरी पालन का काम करना चाहता है तो सबसे पहले बकरी पालन की ट्रेनिंग और इस काम की सारी जानकारी प्राप्त करे ताकि यदि बाद में कोई समस्या आती है तो उसका खुद समाधान किया जा सके।

करनबीर सिंह

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अन्नदाता फूड्स के नाम से किसान हट चलाने वाला प्रगतिशील किसान

आज के समय में हर कोई दूसरों के बारे में नहीं बल्कि अपने फायदे के बारे में सोचता है पर कुछ इंसान ऐसे होते हैं जिन्हें भगवान ने लोगों की सहायता करने के लिए भेजा होता है, वह दूसरे का भला सोचता भी है और इस तरह के इंसान बहुत ही कम देखने को मिलते हैं।

इस बात को सही साबित करने वाले करनबीर सिंह जो गांव साफूवाला, जिला मोगा के रहने वाले हैं जिन्होंने MSC फ़ूड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की हुई है और प्राइवेट कंपनी में काम करते थे और नौकरी छोड़ कर खेत और फ़ूड प्रोसेसिंग करने के बारे में सोचा और उसमें सफल होकर दिखाया।

साल 2014 की बात है जब करनबीर एक कंपनी में काम करते थे और जिस कंपनी में काम करते थे वहां क्या देखते हैं कि किस तरह किसानों से कम कीमत पर वस्तु लेकर अधिक कीमतों पर बेचा जा रहा है और जिसके बारे में किसानों को जानकारी नहीं थी। बहुत समय वह इस तरह ही चलता रहा पर उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी क्योंकि जो ऊगा रहे थे वह कमा नहीं रहे थे और जो कमा रहे थे वह पहले से ही बड़े लोग थे।

यह सब देखकर करनबीर को बहुत दुःख हुआ और करनबीर ने आखिर में नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और खुद आकर घर खेती और प्रोसेसिंग करने लगा। करनबीर के परिवार वाले शुरू से ही फसली विभिन्ता को अपनाते हुए खेती करते थे और इसके इलावा करनबीर के लिए फायदेमंद बात यह थी कि करनबीर के पिता सरदार गुरप्रीत सिंह गिल जोकि KVK मोगा और PAU लुधियाना के साथ पिछले कई सालों से जुड़े हुए हैं, जो किसानों को फसलों से संबंधित सलाह देते रहते थे।

फिर करनबीर ने अपने पिता के नक्शे कदम पर चलकर खेती माहिरों द्वारा बताएं गए तरीके के साथ खेती करनी शुरू की और कई तरह की फसलों की खेती करनी शुरू कर दी। फिर करनबीर के दिमाग में ख्याल आया कि जब फसल पककर तैयार होगी तो इसकी मार्केटिंग किस तरह की जाए।

फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न पहले छोटे स्तर पर मार्केटिंग की जाए, उसके बाद जब करनबीर गांव से बाहर जाते तो अपने साथ प्रोसेसिंग की अपनी वस्तुएं साथ ले जाते जहां छोटे-छोटे समूह के लोग दिखाई देते उन्हें फिर वह अपने उत्पादों के बारे में बताता और उत्पाद बेचता। उनके दोस्त नवजोत सिंह और शिव प्रीत ने इस काम में उनका पूरा साथ दे रहे हैं ।

फिर उन्होंने इसकी मार्केटिंग बड़े स्तर पर करने के बारे में सोचा और 2016 में “फ्रेंड्स ट्रेडिंग” नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई और ट्रेडिंग का काम शुरू कर दिया, जहां पर वह अपनी फसल तो मार्किट ले जाते, साथ ही ओर किसानों की फसल भी ले जानी शुरू कर दी, जोकि खेती माहिरों की सलाह से उगाई गई थी। इस तरीके के साथ उगाई गई फसल की पैदावार अधिक और बढ़िया होने के करने इसकी मांग बढ़ी जिससे करनबीर और किसानों को बहुत मुनाफा हुआ। जिसके साथ वह बहुत खुश हुए।

इस दौरान ही उनकी मुलाकात खेती व्यापार विषय के माहिर प्रोफेसर रमनदीप सिंह जी के साथ हुई जोकि हर एक किसान की बहुत सहायता करते हैं और उन्हें मार्केटिंग करने के तरीके के बारे में जागरूक करवाते रहते हैं और इसे दिमाग में रखते हुए फिर मार्केटिंग करने के तरीके को बदलने के बारे में सोचा।

फिर दिमाग में आया कि पैदा की फसल की प्राथमिक स्तर पर प्रोसेसिंग करके अगर मार्केटिंग की जाए तो क्या पता इससे बढ़िया लाभ मिल सकता है। फिर उन्होंने शुरू में जिस फसल की प्रोसेसिंग हो सकती थी प्रोसेसिंग करके उन्हें बेचने का काम शुरू कर दिया, जिसकी शुरुआत उन्होंने किसान मेले से की और उनको लोगों की अच्छी प्रतिकिर्या मिली।

इसे आगे चलाने के लिए करनबीर सिंह जी ने एक किसान हट खोलने के बारे में सोचा जहां पर उनकी फसलों की प्रोसेसिंग और किसानों की फसलों की प्रोसेसिंग का सामान रख कर बेचा जा सके, जिसका मुनाफा सीधा किसान के खाते में ही जाए न कि बिचौलिए के हाथ और जिसके साथ उसकी मार्केटिंग बनी रहेगी और दूसरा लोगों को साफ-सफाई और बढ़िया वस्तुएं मिलती रहेगी।

फिर 2019 में करनबीर ने अन्नदाता फूड्स नाम से ब्रांड रजिस्टर्ड करवा कर मोगा शहर में अपनी किसान हट खोली और प्रोसेसिंग किया हुआ सामान रख दिया। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया, वैसे ही लोग सामान लेने आते रहे।

जिस में बाकि किसान द्वारा प्रोसेसिंग किया सामान जैसे शहद, दाल, GSC 7 कनोला सरसों का तेल, चने आदि बहुत वस्तुएं रख कर बेचते हैं।

बहुत कम समय में मार्केटिंग में प्रसार हुआ और लोग उन्हें अन्नदाता फूड्स के नाम से जानने लगे। इस तरह 2019 में वह सफल हुए जिसमें उनकी सफलता का मुख्य श्रेय GSC 7 कनोला सरसों का तेल को जाता है क्योंकि तेल की मांग इतनी अधिक है कि मांग को पूरा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि यह तेल बाकि तेल से अलग है क्योंकि इस तेल में बहुत मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है और जिससे उन्हें मुनाफा तो होता पर उनके साथ ओर किसानों को भी हो रहा है।

मेरा मानना है कि यदि हम किसान और ग्राहक में से बिचौलीए को निकाल दें तो हर इंसान बढ़िया और साफ-सफाई की वस्तुएं खा सकता है दूसरा किसान को अपनी फसल का सही मूल्य भी मिल जाएगा- करनबीर सिंह

भविष्य की योजना

वह चाहते हैं कि किसानों का समूह बनाकर वही फसलें उगाएं जिसकी खपत राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत मांग है।

संदेश

यदि कोई किसान खेती करता है तो उन्हें चाहिए कि खेती माहिरों द्वारा दिए गए दिशा निर्देश पर चल कर ही रेह स्प्रे का प्रयोग करें, जितनी फसल के विकास के लिए जरुरत है।

चरणजीत सिंह

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एक ऐसा किसान जो मुश्किलों से लड़ा और औरों को लड़ना भी सिखाया

किसान को हमेशा अन्नदाता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि किसान का काम अन्न उगाना और देश का पेट भरना होता हैं पर आज के समय में किसान को उगाने के साथ-साथ फसल की प्रोसेसिंग और बेचना आना भी बहुत जरुरी है। पर जब मंडीकरण की बात आती है तो किसान को कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है, क्योंकि मन में डर होता है कहीं अपनी किसानी के अस्तित्व को कायम रखने में कमजोर न हो जाए।

किसान का नाम चरणजीत सिंह जिसने अपने आप पर भरोसा किया और आगे बढ़ा और आज कामयाब भी हुआ जो गांव गहिल मजारी, नवांशहर के रहने वाले हैं। वैसे तो चरणजीत सिंह शुरू से ही खेती करते हैं जिसमें उन्होंने अपनी अधिक रूचि गन्ने की खेती की तरफ दिखाई है। जिसमें वह 145 एकड़ में 70 से 80 एकड़ में सिर्फ गन्ने की खेती करते थे और बाकि जमीन में पारंपरिक खेती ही करते थे और कर रहे हैं।

गन्ने की खेती में अच्छा अनुभव हो गया, लेकिन कुछ कारणों के कारण उन्हें 80 से कम करके 45 एकड़ में खेती करनी पड़ी, क्योंकि जब गन्ने की फसल उग जाती थी तो पहले तो यह सीधी मिल में चली जाती थी पर एक दिन ऐसा आया कि उनकी फसल की कटाई के लिए मज़दूर ही नहीं मिल रहे थे, पर जब मज़दूर मिलने लगे तब फसल बिकने के लिए मिल में चली जाती थी और फसल का मूल्य बहुत कम मिलता था। पहले आसमान को छू रहे थे और फिर वे आकर जमीन पर गिर गए जैसे कि उनकी मंजिल के पंख ही काट दिए गए हों।

वह बहुत परेशान रहने लगे और इसके बारे में सोचने लगे और फैसला लिया यदि मुझे सफल होना तो यहीं काम करके होना है और काम करने लगे।

“वह समय और वह फैसला लेना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि 145 एकड़ में आधा में गन्ने की खेती कर रहा था जहां से मुझे आमदन हो रही थी- चरणजीत सिंह

जब उन्होंने फैसला लिया तो 45 एकड़ में ही गन्ने की खेती करनी शुरू कर दी। अनुभव भी उनके पास पहले से ही था पर उस अनुभव को उपयोग करने की जरुरत थी। फिर धीरे-धीरे चरणजीत ने खेत में ही बेलना लगा लिया और उन्होंने पारंपरिक तरीके से गुड़ निकालना जारी रखा।

वह गुड़ बना रहे थे और गुड़ बिक भी रहा था पर चरणजीत को काम करके ख़ुशी नहीं मिल रही थी।

परिणामस्वरूप, गुड़ बनाने में उनकी रुचि कम होने लगी। फिर उन्हें पुराने दिन और बातें याद आती जो उन्होंने उस दिन काम करने के बारे में सोची थी और वह उन्हें होंसला देती थी।

बहुत सोचने के बाद उन्होंने बहुत सी जगह पर जाना शुरू किया और प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी इक्क्ट्ठी करनी शुरू कर दी। जैसे-जैसे जानकारी मिलती रही काम करने की इच्छा जागती रही पर फिर भी संतुष्ट न हो पाए, क्योंकि उन्हें किसान तो मिले पर कुछ किसान ही थे जो साधारण गुड़ बनाने के इलावा कुछ ख़ास बनाने की कोशिश कर रहे थे जोकि यह बात उनके मन में बैठ गई। फिर उन्होंने ट्रेनिंग करने के बारे में सोचा।

मैंने PAU लुधियाना से ट्रेनिंग प्राप्त की- चरणजीत सिंह

ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने फिर प्रोसेसिंग पर काम करना शुरू कर दिया। अधिक समय काम करने के बाद फिर चरणजीत ने 2019 में नए तरीके से शुरुआत की और सिंपल गुड़ और शक्कर के साथ-साथ मसाले वाला गुड़ भी बनाना शुरू कर दिया। मसाले वाले गुड़ में वह कई तरह की वस्तुओं का प्रयोग करते थे।

वह प्रोसेसिंग का पूरा काम अपने ही फार्म पर करते हैं और देखरेख उनके पुत्र सनमदीप सिंह जी करते हैं जो अपने पिता जी के साथ मिलकर काम करते हैं। जिससे उनका काम साफ़ सुथरा और देखरेख से बिना किसी परेशानी से हो जाता है।

उन्होंने 12 कनाल में अपना फार्म जिसमें 2 कनाल में वेलन और बाकि के 10 कनाल में सूखी लकड़ियां बिछाई हैं जो बंगे से मुकंदपुर रोड पर स्तिथ है। गुड़ बनाने के लिए उन्होंने अपनी खुद के मज़दूर रखे हुए हैं जिन्हे अनुभव हो चूका है और फार्म पर वही गुड़ निकालते हैं और बनाने हैं। उनके द्वारा 3 से 4 तरह के उत्पाद तैयार किये जाते हैं। जिसके अलग-अलग रेट हैं जिसमें मसाले वाले गुड़ की मांग बहुत अधिक है।

उनके द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पाद

  • गुड़
  • शक्कर
  • मसाले वाला गुड़ आदि।

जिसकी मार्केटिंग करने के लिए उन्हें कहीं भी बाहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि उनके द्वारा बनाये गुड़ की मांग इतनी अधिक है कि उन्हें गुड़ के आर्डर आते हैं। जिनमें अधिकतर शहर के लोगों द्वारा आर्डर किया जाता है।

रोज़ाना उनका 70 से 80 किलो गुड़ बिक जाता है और आज अपने इसी काम से बहुत मुनाफा कमा रहे हैं। वह खुद हैं जो उन्होंने सोचा था वह करके दिखाया। इसके साथ-साथ वह गन्ने के बीज भी तैयार करते हैं और बाकि की जमीन में मौसमी फसलें उगाते हैं और मंडीकरण करते हैं।

भविष्य की योजना

वह अपने इस गन्ने के व्यापार को दोगुना करना चाहते हैं और फार्म को बड़े स्तर पर बनाना चाहते हैं और आधुनिक तरीके के साथ काम करने की सोच रहे हैं।

संदेश

किसी भी नौजवान को बाहर देश जाने की जरुरत नहीं है यदि वह यहीं रह कर मन लगा कर काम करना शुरू कर दें तो उनके लिए यही जन्नत है, बाकि सरकार को नौजवानों को सही दिशा में जाने के लिए और खेती के लिए भी प्रेरित करना चाहिए।

राजविंदर सिंह खोसा

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अपाहिज होने के बाद भी बिना किसी सरकारी सहायता से कामयाबी हासिल करने वाला यह किसान

नए रास्ते में बाधाएं आती हैं, लेकिन उनका समाधान भी जरूर होता है।

आज आप जिस किसान की कहानी पढ़ेंगे वह शारीरिक रूप से विकलांग है, लेकिन उसका साहस और जज्बा ऐसा है कि वह दुनिया को जीतने का दम रखता है।

जिला फरीदकोट के गांव धूड़कोट का साहसी किसान राजविंदर सिंह खोसा जिसने बारहवीं, कंप्यूटर, B.A और सरकारी आई टी आई फरीदकोट से शार्ट हैंड स्टेनो पंजाबी टाइपिंग का कोर्स करने के बाद नौकरी की तलाश की, पर कहीं पर भी नौकरी न मिली और हार कर वह अपने गांव में गेहूं/धान की खेती करने लगे।

यह बात साल 2009 की है जब राजविंदर सिंह खोसा पारंपरिक खेती ही करते थे और इसके साथ-साथ अपने घर खाने के लिए ही सब्जियों की खेती करते थे जिसमें वह सिर्फ कम मात्रा में ही थोड़ी बहुत सब्जियां ही लगाते और बहुत बार जैसे गांव वाले आकर ले जाते थे पर उन्होंने कभी सब्जियों के पैसे तक नहीं लिए थे।

यह बहुत दिनों तक चलता रहा और वे सब्जियों की खेती करते रहे, लेकिन कम मात्रा में, लेकिन 2019 में कोविड की वजह से लॉकडाउन के कारण दुनिया को सरकार के आदेश के अनुसार अपने घरों तक ही सीमित रहना पड़ा और खाने-पीने की समस्या हो गई। खाना या सब्जी कहाँ से लेकर आए तो इसे देखते हुए जब राजविंदर खोसा जी घर आए तो वह सोच रहे थे कि यदि पूरी दुनिया घर बैठ गई तो खाना-पीना कैसे होगा और इसमें सबसे जरुरी था शरीर की इम्युनिटी बनाना और वह तब ही मजबूत हो सकती थी यदि खाना-पीना सही हो और इसमें सब्जियों की बहुत महत्ता है।

इसे देखते हुए राजविंदर ने सोचा और सब्जी के काम को बढ़ाने के बारे में सोचा। धीरे-धीरे राजविंदर ने 12 मरले में सब्जियों की खेती में जैसे भिंडी, तोरी, कद्दू, चप्पन कद्दू, आदि की सब्जियों की गिनती बढ़ानी शुरू कर दी और जो सब्जियां अगेती लगा और थोड़े समय में पक कर तैयार हो जाती है, सबसे पहले उन्होनें वहां से शुरू किया।

जब समय पर सब्जियां पक कर तैयार हुई तो उन्होनें सोचा कि इसे मंडी में बेच कर आया जाए पर साथ ही मन में ख्याल आया कि क्यों न इसका मंडीकरण खुद ही किया जाए जो पैसा बिचौलिए कमा रहे हैं वह खुद ही कमाया जाए।

फिर राजविंदर जी ने अपनी मारुती कार सब्जियों में लगा दी, सब्जियां कार में रख कर फरीदकोट शहर के नजदीकी लगती नहरों के पास सुबह जाकर सब्जियां बेचने लगे, पर एक दो दिन वहां बहुत कम लोग सब्जी खरीदने आए और घर वापिस निराश हो कर आए, लेकिन उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और सोचा कल किसी ओर जगह लगा कर देखा जाए जहां पर लोगों का आना जाना हो। जैसे राजविंदर जी कार में बैठ कर जाने लगे तो पीछे जसपाल सिंह नाम के व्यक्ति ने आवाज लगाई कि सुबह-सुबह लोग डेयरी से दूध और दही लेने के लिए आते हैं क्या पता तेरी सब्जी वाली कार देखकर सब्जी खरीदने लग जाए, सुबह के समय सब्जी बेच कर देखें।

राजविंदर सिंह जी उसकी बात मानते फिर DC रिहाइश के पास डेयरी के सामने सुबह 6 बजे जाकर सब्जी बेचने लगे, जिससे कुछ लोगों ने सब्जी खरीदी। राजविंदर सिंह खोसा को थोड़ी ख़ुशी भी हुई और अंदर एक उम्मीद की रौशनी जगने लगी और अगले दिन सुबह 6 बजे जाकर फिर सब्जी बेचने लगे और कल से आज सब्जी की खरीद अधिक हुई देखकर बहुत खुश हुए।

राजविंदर जी ने सुबह 6 बजे से सुबह 9 बजे तक का समय रख लिया और इस समय भी वह सब्जियों को बेचते थे। ऐसा करते-करते उनकी लोगों के साथ जान-पहचान बन गई जिसके साथ उनकी सब्जियों की मार्केटिंग में दिनों दिन प्रसार होने लगा।

राजविंदर सिंह जी ने देखा कि मार्केटिंग में प्रसार हो रहा है तो अगस्त 2020 खत्म होते उनके 12 मरले से शुरू किए काम को धीरे-धीरे एक एकड़ में फैला लिया और बहुत सी नई सब्जियां लगाई, जिसमें गोभी, बंदगोभी, मटर, मिर्च, मूली, साग, पालक, धनिया, मेथी, अचार, शहद आदि के साथ-साथ राजविंदर सिंह विदेशी सब्जियां भी पैदा करने लगे, जैसे पेठा, सलाद पत्ता, शलगम, और कई सब्जियां लगा दी और उनकी मार्केटिंग करने लगे।

वैसे तो राजविंदर जी सफल तो तभी हो गए थे जब उनके पास एक औरत सब्जी खरीदने के लिए आई और कहने लगी, मेरे बच्चे सेहतमंद चीजें जैसे मूलियां आदि नहीं खाते, तो राजविंदर ने कहा, एक बार आप मेरी जैविक बगीची से उगाई मूली अपने बच्चों को खिला कर देखें, औरत ने ऐसा किया और उसके बच्चे मूली स्वाद से खाने लगे। जब औरत ने राजविंदर को बताया तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई। फिर शहर के लोग उनसे जुड़े और सब्जी का इंतजार करने लगे।

इसके साथ साथ वह पिछले बहुत अधिक समय से धान की सीधी बिजाई भी करते आ रहे हैं ।

आज उनकी मार्केटिंग में इतना अधिक प्रसार हो चूका है कि फरीदकोट के सफल किसानों की सूची में राजविंदर का नाम भी चमकता है ।

राजविंदर खेती का पूरा काम खुद ही देखते हैं, सब्जियों के साथ वह ओर खेती उत्पाद जैसे शहद, अचार का खुद मंडीकरण कर रहे है, जिससे उनके बहुत से लिंक बन गए हैं और मंडीकरण में उन्हें कोई समस्या नहीं आती ।

खास बात यह भी है कि उन्होंने यह सारी सफलता बिना किसी सरकारी सहायता से अपनी मेहनत द्वारा हासिल की है।

सिर्फ मेहनत ही नहीं राजविंदर सिंह खोसा टेक्नोलॉजी के मामले भी अप टू डेट रहते है, क्योंकि सोशल मीडिया का सही प्रयोग करके अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करते हैं।

भविष्य की योजना

वे सब्जियों की खेती तो कर रहे हैं पर वह सब्जियों की मात्रा ओर बढ़ाना चाहते हैं ताकि लोगों को साफ सब्जी जोकि जहर मुक्त पैदा करके शहर के लोगों को प्रदान की जाए, जिससे खुद को स्वास्थ्य बनाया जाए।

कम खर्चे और कड़ी मेहनत करने वाले राजविंदर सिंह जी अच्छे मान-सम्मान के पात्र है।

संदेश

यदि कोई छोटा किसान है तो उसने पारंपरिक खेती के साथ-साथ कोई ओर छोटे स्तर पर सब्जियों की खेती करनी है तो वह जैविक तरीके के साथ ही शुरू करनी चाहिए और सब्जियों को मंडी में बेचें की बजाए खुद ही जाकर बेचे तो इससे बड़ी बात कोई भी नहीं, क्योंकि व्यवसाय कोई भी हो हमें काम करने के समय शर्म नहीं महसूस होनी चाहिए, बल्कि अपने आप पर गर्व होना चाहिए।

धरमजीत सिंह

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एक सफल अध्यापक के साथ साथ एक सफल किसान बनने तक का सफर

कोई भी पेशा आसान नहीं होता, मुश्किलें हर क्षेत्र में आती हैं। चाहे वह क्षेत्र कृषि हो या कोई और व्यवसाय। अपने रोज़ाना के काम को छोड़ना और दूसरे पेशे को अपनाना एक चुनौती ही होती है, जिसने चट्टान की तरह चुनौतियों का सामना किया है, आखिरकार वही जीतता है।

इस कहानी के माध्यम से हम एक प्रगतिशील किसान के बारे में बात करेंगे, जो एक स्कूल शिक्षक के रूप में एक तरफ बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर रहें है और दूसरी तरफ जैविक खेती के माध्यम से लोगों के जीवन को स्वास्थ्य कर रहे हैं, क्योंकि कोई कोई ही ऐसा होता है जो खुद का नहीं, दूसरों का भला सोचता है।

ऐसे ही किसानों में से एक “धर्मजीत सिंह” हैं, जो गांव माजरी, फतेहगढ़ साहिब के निवासी हैं। जैसा कि कहा जाता है, “जैसे नाम वैसा काम” अर्थ कि जिस तरह का धरमजीत सिंह जी का नाम है वे उस तरह का ही काम करते हैं। दुनिया में इस तरह के बहुत कम देखने को मिलते हैं।

काम की सुंदरता उस व्यक्ति पर निर्भर करती है जिसके लिए उसे सौंपा गया है। ऐसा काम, जिनके बारे में वे जानते भी नहीं थे और न कभी सुना था।

जब सूरज चमकता है, तो हर उस जगह को रोशन कर देता है जहां केवल अंधेरा होता है। उसी तरह से, धर्मजीत सिंह के जीवन पर यह बात लागू होती है क्योंकि बेशक वे उस रास्ते से जा रहे थे, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं थी, वह खेती तो कर रहे थे लेकिन जैविक नहीं।

जब समय आता है, वह पूछ कर नहीं आता, वह बस आ जाता है। एक ऐसा समय तब आया जब उन्हें रिश्तेदार उनसे मिलने आये थे। एक दूसरे से बात करते हुए, अचानक, कृषि से संबंधित बात होने लगी। बात करते करते उनके रिश्तेदारों ने जैविक खेती के बारे में बात की, तो धर्मजीत सिंह जी जैविक खेती का नाम सुनकर आश्चर्यचकित थे। जैविक और रासायनिक खेती में क्या अंतर है, खेती तो आखिर खेती है। तब उनके रिश्तेदार ने कहा, “जैविक खेती बिना छिड़काव, दवाई, रसायनिक खादों के बिना की जाती है और प्राकृतिक से मिले तोहफे को प्रयोग कर जैसे केंचए की खाद, जीव अमृत आदि बहुत से तरीके से की जाती है।

पर मैंने तो कभी जैविक खेती की ही नहीं यदि मैंने अब जैविक खेती करनी हो तो कैसे कर सकता हूँ- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने एक अभ्यास के रूप में एक एकड़ में गेहूं की फसल लगाई। उन्होंने फसल की काश्त तो कर दी और रिश्तेदार चले गए, लेकिन वे दोनों चिंतित थे और फसल के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे, कि फसल की कितनी पैदावार होगी। वे इस बात से परेशान थे।

जब फसल पक चुकी थी, तो उसका आधा हिस्सा उसके रिश्तेदारों ने ले लिया और बाकी घर ले आए। लेकिन पैदावार उनकी उम्मीद से कम थी।

जब मैंने और मेरे परिवार ने फसल का प्रयोग किया तो चिंता ख़ुशी में बदल गई- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने मन बनाया कि अगर खेती करनी है, तो जैविक खेती करनी है। इसलिए उन्होंने मौसम के अनुसार फिर से खेती शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने 11 एकड़ में जैविक खेती शुरू की।

जैविक खेती उनके लिए एक चुनौती जैसी थी जिसका सामना करते समय उन्हें कठिनाइयां भी आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस साहस को ध्यान में रखते हुए, वह अपने रस्ते पर चलते रहे और जैविक खेती के बारे में जानकारी लेते रहे और सीखते रहें। जब फसल पक गई और कटाई के लिए तैयार हो गई तो वह बहुत खुश थे।

फसल की पैदावार कम हुई थी, जिससे ग्रामीणों ने मजाक उड़ाया कि यह रासायनिक खेती से लाभ कमा रहा था और अब यह नुकसान कर रहा है।

जब मैं अकेला बैठ कर सोचता था, तो मुझे लगा कि मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं- धर्मजीत सिंह

एक ओर वे परेशान थे और दूसरी ओर वे सोच रहे थे कि कम से कम वह किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे। जो भोजन मैं स्वयं खाता हूं और दूसरों को खिलाता हूं वह शुद्ध और स्वच्छ होता है।

ऐसा करते हुए, उन्होंने पहले 4 वर्षों बहु-फसल विधि को अपनाने के साथ-साथ जैविक खेती सीखना शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने गन्ना, दलहन और अन्य मौसमी फसलों की खेती शुरू की।

अच्छी तरह से सीखने के बाद, उन्होंने पिछले 4 वर्षों में मंडीकरण करना भी शुरू किया। वैसे, वे 8 वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं। जैविक खेती के साथ-साथ उन्होंने जैविक खाद बनाना भी शुरू किया, जिसमें वर्तमान में केवल केंचए की खाद और जीव अमृत का उपयोग करते हैं।

इसके बाद उन्होंने सोचा कि प्रोसेसिंग भी की जाए, धीरे-धीरे प्रोसेसिंग करने के साथ उत्पाद बनाना शुरू कर दिया। जिसमें वे लगभग 7 से 8 प्रकार के उत्पाद बनाते हैं जो बहुत शुद्ध और देसी होते हैं।

उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद-

  • गेहूं का आटा
  • सरसों का तेल
  • दलहन
  • बासमती चावल
  • गुड़
  • शक़्कर
  • हल्दी

जिसका मंडीकरण गाँव के बाहर किया जाता है और अब पिछले कई वर्षों से जैविक मंडी चंडीगढ़ में कर रहे है। वे मार्केटिंग के माध्यम से जो कमा रहे हैं उससे संतुष्ट हैं क्योंकि वे कहते हैं कि “थोड़ा खाएं, लेकिन साफ खाएं”। इस काम में केवल उनका परिवार उनका साथ दे रहा है।

अगर अच्छा उगाएंगे, तो हम अच्छा खाएंगे

भविष्य की योजना

वह अन्य किसानों को जैविक खेती के महत्व के बारे में बताना चाहते हैं और उन किसानों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जो जैविक खेती न कर रासायनिक खेती कर रहे हैं। वे अपने काम को बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं, क्योंकि वे यह बताना चाहते हैं कि जैविक खेती एक सौदा नहीं है, बल्कि शरीर को स्वस्थ रखने का राज है।

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हर किसान जो खेती करता है, जब वह खेती कर रहा होता है, तो उसे सबसे पहले खुद को और अपने परिवार को देखना चाहिए, जो वे ऊगा रहे हैं वह सही और शुद्ध उगा रहे है, तभी खेती करनी चाहिए।

नवरीत कौर

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खाना बनाने के शौक को व्यवसाय में बदलने वाली एक सफल महिला किसान

जिन्होंने मंजिल तक पहुंचना होता है वह मुश्किलों की परवाह नहीं करते, क्योंकि मंजिल भी उन्हीं तक पहुंचती है जिन्होंने मेहनत की होती है। सभी को अपनी काबिलियत पहचानने की जरुरत होती है. जिसने अपनी काबिलियत और खुद पर भरोसा कर लिया, मंजिल खुद ही उनकी तरफ आ जाती है।

इस स्टोरी में हम बात करेंगे एक महिला के बारे में जो अपने आप में गर्व वाली बात है, क्योंकि आजकल ऐसा समय है जहाँ औरत आदमी के साथ मिलकर काम करती है। पहले से ही औरत पढ़ाई, डॉक्टर, विज्ञान आदि के क्षेत्र में काम करती है लेकिन आज के समय में कृषि के क्षेत्र में भी अपना नाम बना रही है।

एक ऐसी महिला किसान “नवरीत कौर” जो जिला संगरूर के “मिमसा” गांव के रहने वाले हैं। जिन्होंने MA, M.ED की पढ़ाई की है। जो कॉलेज में पढ़ाते थे, पर कहते हैं कि परमात्मा ने इंसान को धरती पर जिस काम के लिए भेजा होता है, वह उसके हाथों से ही होना होता है।

यह बात नवरीत कौर जी पर लागू होती है, जिनके मन में कृषि के क्षेत्र में कुछ अलग करने का इरादा था और इस इरादे को दृढ़ निश्चय बनाने वाले उनके पति परगट सिंह रंधावा जी ने उनका बहुत साथ था। उनके पति ने M.Tech की हुई हैं, जोकि हिन्दुस्तान यूनीलिवर लिमिटेड, नाभा में सीनियर मैनेजर हैं और PAU किसान क्लब के सदस्य भी हैं। उनके पति नौकरी के साथ साथ कृषि नहीं कर सकते हैं थे इसलिए उन्होंने खुद खेती करनी शुरू की जिसमें उनके पति ने उनका साथ दिया।

खेती करना मुख्य व्यवसाय तो था पर मैं सोचती थी कि परंपरागत खेती को छोड़ कर कुछ नया किया जाए- नवरीत कौर

उन्होंने 2007 में निश्चित रूप से जैविक खेती करना शुरू कर दिया और 4 एकड़ में दालें और देसी फसल के साथ शुरुआत की। कुछ समय बाद ही यह समस्या आई कि इतनी फसल की खेती कर तो ली है लेकिन इसका मंडीकरण कैसे किया जाए। उनके पति के इलावा इस काम में उनके साथ में कोई नहीं था, क्योंकि परिवार का मुख्य व्यवसाय परंपरागत खेती ही था, पर परंपरागत खेती से अलग कुछ ऐसा करना जिसका कोई अनुभव नहीं था। यदि परंपरागत खेती कामयाब नहीं हुई तो परिवार वाले क्या बोलेंगे।

मुझे जब भी कहीं खेती में मुश्किलें आईं वे हर समय मेरे साथ होते थे- नवरीत कौर

उन्होंने सबसे पहले घर में खाने वाली दालों से शुरुआत की, जो आसान था। इसके इलावा तेल बीज वाली फसलें और इसके साथ मंडीकरण की तरफ भी ध्यान देना शुरू किया।

मुझे खाना बनाने का शोक था, फिर मैंने सोचा क्यों न देसी गेहूं, चावल, तेल बीज, गन्ने की प्रोसेसिंग और मंडीकरण किया जाए- नवरीत कौर

जब उन्होंने ने अच्छे से खेती करना सीख लिया तो उनका अगला काम प्रोसेसिंग करना था, प्रोसेसिंग करने से पहले उन्होंने दिल्ली IARI, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना, सोलन के साथ साथ ओर बहुत सी जगह से ट्रेनिंग ली है। ट्रेनिंग करने से प्रोसेसिंग करना शुरू कर दिया। अब वह शोक और उत्साह से प्रोसेसिंग कर रहे हैं।

2015 में उन्होंने बहुत से उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। इस समय वह घर की रसोई में ही उत्पाद तैयार करते हैं। इसके साथ गांव की महिलाओं को रोजगार भी मिल गया और प्रोसेसिंग की तरह भी ध्यान देने लगी।

उनकी तरफ से 15 तरह के उत्पादों को तैयार किया जाता है, वह सीधे तरह से बनाये गए उत्पाद को बेच रहे हैं जो इस तरह हैं:

  • देसी गेहूं की सेवइयां
  • गेहूं का दलिया
  • बिस्कुट
  • गाजर का केक
  • चावल के कुरकुरे
  • चावल के लड्डू की बड़ियां
  • मांह की बड़ियां
  • स्ट्रॉबेरी जैम
  • नींबू का अचार
  • आंवले का अचार
  • आम की चटनी
  • आम का अचार
  • मिर्च का आचार
  • च्यवनप्राश आदि।

पहले वह मंडीकरण अपने गांव और शहर में ही करते थे पर अब उनके उत्पाद कई जगह पर पहुँच गए हैं। जिसमें वह मुख्य तौर पर अपने द्वारा बनाये गए उत्पादों का मंडीकरण चंडीगढ़ आर्गेनिक मंडी में करते हैं। वह धीरे धीरे अपने उत्पादों को ऑनलइन बेचने के बारे में सोच रहे हैं।

मैं आज खुश हूं कि जिस काम को करने के बारे में सोचा था आज उसमे सफल हो गई हूं- नवरीत कौर

नवरीत कौर जी खाद भी खुद तैयार करते हैं जिसमें वर्मीकम्पोस्ट तैयार करके किसानों को दे भी रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि यदि इससे किसी का भला होता है तो बहुत बढ़िया होगा। इसके इलावा उन्हें हाथ से बनाई गई वस्तुओं के लिए MSME यूनिट्स की तरफ से इनाम भी प्राप्त है।

भविष्य की योजना

वह एक स्टोर बनाना चाहते हैं जहां पर वह अपने द्वारा तैयार किए गए उत्पाद का मंडीकरण खुद ही कर सकें। जिसमें किसी तीसरे की जरुरत न हो। किसान से उपभोक्ता तक का मंडीकरण सीधा हो। वह अपना फार्म बनाना चाहते हैं जहां पर वह प्रोसेसिंग के साथ साथ उसकी पैकिंग भी कर सकें।

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खेती कभी करते हैं, पर एक ही तरह की खेती नहीं करनी चाहिए। उसे बड़े स्तर पर ले जाने के बारे में सोचना चाहिए। जो भी फसल उगाई जाती है उसके बारे में सोच कर फिर आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें लाभ ही लाभ है। यदि हो सके तो खुद ही प्रोसेसिंग कर खुद ही उत्पादों को बेचना चाहिए।

हरभजन सिंह

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एक किसान जो एक ही फार्म पर 5 अलग-अलग व्यवसाय करने में सफल रहा और इसलिए वह किसानों के शक्तिमान के रूप में जाना जाता है

इस तेजी से बदल रही, तेजी से भागती दुनिया में सफल परिणाम प्राप्त करने के लिए विविधीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसे अपनाना मुश्किल है लेकिन आजकल बहुत ज़रूरी है क्योंकि पूरी दुनिया में हर कोई कुछ अनोखा और विशिष्ट करने के लिए आया है। हालाँकि, बहुत से लोग परिवर्तन से डरते हैं और इसलिए, वे विविधीकरण पर अपने विचारों को रोकते हैं। केवल कुछ लोग ही अपने अनोखेपन को महसूस कर सकते हैं और दुनिया को बदलने के लिए उचाईयों तक पहुंच सकते हैं। यह कहानी एक ऐसे ही व्यक्ति की है।

जहां ज़्यादातर किसान गेहूं और धान की खेती के पारंपरिक तरीके से चलते हैं, वहीं मानसा के मलकपुर गांव के एक किसान हरभजन सिंह कृषि में विविधता की दिशा में अपने प्रयासों में योगदान देते हैं। वह अपनी 11 एकड़ जमीन पर सफलतापूर्वक एकीकृत फार्म चला रहे हैं जहाँ पर वह मछली, सुअर, मुर्गियां, बकरी और बटेर आदि का पालन करते हैं। इसके अलावा उन्होंने 55 एकड़ पंचायती जमीन भी किराए पर ली हुई है जिसमें वह मछली पालन करते हैं।

हरभजन सिंह जी ने 1981 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक मैकेनिकल वर्कशॉप शुरू की और वह इसके साथ ही अपने परिवार की कृषि कार्य में सहायता करते थे। उस समय हरभजन सिंह जी के दोस्त ने उन्हें मछली पालन शुरू करने का सुझाव दिया। इसलिए उन्होंने मछली पालन की प्रक्रिया पर रिसर्च करना शुरू कर दिया और जल्द ही मछली पालन करने के लिए किराए पर गाँव का तालाब ले लिया।

मछली पालन करके मैंने बहुत मुनाफा कमाया और इसलिए मैंने अपनी खुद की ज़मीन पर काम करने का फैसला किया- हरभजन सिंह

इस काम से उन्हें फायदा हुआ, इसलिए 1995 में उन्होंने पंजाब राज्य मछली पालन बोर्ड, मानसा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और अपनी ज़मीन पर अधिक बढ़िया ढंग से काम करना शुरू कर दिया। हरभजन सिंह जी ने अपनी ज़मीन पर 2.5 एकड़ में एक तालाब तैयार किया और बाद में अपने तालाब के नज़दीक में 2.5 एकड़ जमीन खरीदी। उस समय उनका मछली उत्पादन 6 टन प्रति हेक्टेयर था।

बाद में, उन्होंने उत्पादन को बढ़ाने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, ओडिशा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और मछली की 6 नस्लें (रोहू, कतला, मुराख़, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प और सिल्वर कार्प) और 3 एरेटर भी खरीदे। इन एरेटर पर सरकार ने आधी सब्सिडी भी प्रदान की। एरेटर के उपयोग के बाद मछली की उत्पादकता बढ़कर 8 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।

मुझे सरकारी हैचरी से मछली के बीज खरीदने पड़े, जो एक महंगी प्रक्रिया थी, इसलिए मैंने अपनी खुद की एक हैचरी तैयार की- हरभजन सिंह

उन्होंने मछली पालन के साथ-साथ मछली के सीड पैदा करने के लिए एक हैचरी तैयार की क्योंकि अन्य हैचरी से बीज खरीदना महंगा था। आमतौर पर हैचरी सरकार द्वारा बनाई जाती है, लेकिन हरभजन सिंह इतने मेहनती और सक्षम थे कि उन्होंने अपनी खुद की हैचरी की शुरुआत बड़े निवेश के साथ की। हैचरी मछलियों को प्रजनन में मदद करने के लिए कृत्रिम वर्षा प्रदान करती है। उन्होंने हैचरी में लगभग 20 लाख उंगली के आकार के मछली के बच्चे तैयार किए और उन्हें 50 पैसे से 1 रुपये प्रति बीज के हिसाब से बेचा।

समय के साथ-साथ उन्होंने 2009 में Large White Yorkshire नस्ल के 50 सुअरों के साथ सुअर पालन का काम शुरू किया और उन्हें जीवित बेचने का फैसला किया। इस प्रकार की मार्केटिंग ज़्यादा सफल नहीं थी, इसलिए उन्होंने सुअर के मीट की प्रोसेसिंग शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने CIPHET, पीएयू और गड़वासु से मीट उत्पादों में ट्रेनिंग ली और सुअर के मीट को आचार में प्रोसेस किया। मीट के आचार की मार्केटिंग एक बड़ी सफलता थी, पर उनकी आमदनी लगभग दोगुनी हो गई।

वर्तमान में, हरभजन जी के पास लगभग 150 सुअर हैं और वह सुअर के व्यर्थ पदार्थों का उपयोग मछलियों को खिलाने के लिए करते हैं। इससे उनकी लागत का 50-60% बच गया और मछलियों का उत्पादन लगभग 20% बढ़ गया। अब वह प्रति हेक्टेयर 10 टन मछली का उत्पादन करते हैं।

उन्होंने फिश पोर्क प्रोसेसिंग सेल्फ हेल्प ग्रुप 11 मेंबर का शुरू किया। इससे कई लोगों को रोज़गार मिला और उनकी आय में वृद्धि हुई। हरभजन सिंह को एकीकृत खेती में उनकी सफलता के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया गया था।

बात यहीं नहीं रुकी! उनको रास्ता लंबा तय करना है। जैसे-जैसे पानी की कमी बढ़ती जा रही, तो हरभजन जी ने पानी को रिसाइकिल करके प्रकृति को बचाने का एक तरीका खोजा। वह सुअरों को नहलाने के लिए पहले पानी का उपयोग करके उसको दोबारा फिर उपयोग करते हैं। फिर उसी पानी को मछली के तालाब में डाला जाता है और मछली तालाब के अपशिष्ट जल का उपयोग खेतों में फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है। यह पानी जैविक होता है और फसलों को उर्वरक प्रदान करता है; इसलिए उर्वरकों की केवल आधी मात्रा को कृत्रिम रूप से देने की आवश्यकता होती है। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जी ने हरभजन सिंह जी के यत्नों से प्रभावित होकर उनके खेत का दौरा किया।

बकरी पालन शुरू करने के लिए मुझे केवीके, मानसा से ट्रेनिंग मिली- हरभजन सिंह

इसके अलावा, उन्होंने अपनी फार्मिंग में बकरियों को शामिल करने का फैसला किया, इसलिए उन्होंने केवीके, मानसा से ट्रेनिंग प्राप्त की और शुरुआत में बीटल और सिरोही के साथ 30 बकरियों के साथ काम करना शुरू किया और वर्तमान में हरभजन के पास 150 बकरियां हैं। 2017 के बाद उन्होंने पीएयू के किसान मेले का दौरा करना शुरू किया, जहाँ से उन्हें बटेर और मुर्गी पालन की प्रेरणा मिली। इसलिए, उन्होंने चंडीगढ़ से 2000 बटेर और 150 कड़कनाथ मुर्गियाँ खरीदी। यह मुर्गियां खुलेआम घूम सकती हैं और अन्य जानवरों के चारे के बचे हुए भोजन से अपना चारा खोज लेती हैं। वह इस समय अपने खेत में 3000 बटेर का पालन करते हैं।

पशुओं/जानवरों के लिए सारा चारा उनके द्वारा मशीनों की मदद से खेत में तैयार किया जाता है। आज हरभजन सिंह जी अपने दो बेटों के साथ सफलतापूर्वक अपने खेत पर काम करते हैं और वह खेत के कार्यों में उनकी मदद करते हैं। वह केवल एक सहायक की सहायता से पूरी खेती का प्रबंधन करते है। वह मछली के बच्चे 2 रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से बेचते हैं। इसके अलावा वह बकरा ईद के अवसर पर मलेरकोटला में बकरियों को बेचते हैं और बकरी के मीट से अचार तैयार करते हैं। कड़कनाथ मुर्गी के अंडे 15-20 रुपये और मुर्गे का मीट 700-800 रुपये में बिकता है। इसके बाद हरभजन जी ने ICAR-CIFE, कोलकाता से मछली का आचार, मछली का सूप आदि बनाने की ट्रेनिंग ली और घरेलू बाजार में उत्पाद का विपणन किया। वह अपना उत्पाद “ख़िआला पोर्क एंड फिश प्रोडक्ट्स” के नाम से बेचते हैं।

सभी उत्पादों की मार्केटिंग मेरे फार्म पर ही होती है- हरभजन सिंह

उनके फार्म पर ही मार्केटिंग की सारी प्रक्रिया की जाती है, उनको अपने उत्पाद बेचने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं। उन्होंने बहुत से युवा किसानों को प्रेरित किया और वे एकीकृत खेती के बारे में उनकी सलाह लेने के लिए उनसे मिलने जाते हैं। वह दूसरों के लिए प्रेरणा बने और कई अन्य लोगों को खेती की एकीकृत खेती करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

भविष्य की योजना

हरभजन सिंह जी अपनी आमदन बढ़ाना चाहते हैं और अपनी खेती को उच्च स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं। वह एकीकृत खेती में और भी अधिक सफल होना चाहता है और लोगों को जैविक और विविध खेती के फायदों के बारे में सिखाना चाहता है।

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हरभजन सिंह जी युवा किसानों को जैविक खेती करने की सलाह देते हैं। यदि कोई किसान एकीकृत खेती शुरू करना चाहता है तो उसकी शुरुआत छोटे स्तर से करनी चाहिए और धीरे-धीरे अन्य पहलुओं को अपने व्यवसाय में जोड़ना चाहिए।

तरनजीत संधू

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एक किसान जिसने अपने जीवन के 25 साल संघर्ष करते हुए और बागवानी के साथ-साथ अन्य सहायक व्यवसायों में कामयाब हुए- तरनजीत संधू

जीवन का संघर्ष बहुत विशाल है, हर मोड़ पर ऐसी कठिनाइयाँ आती हैं कि उन कठिनाइयों का सामना करते हुए चाहे कितने भी वर्ष बीत जाएँ,पता नहीं चलता। उनमें से कुछ ऐसे इंसान हैं जो मुश्किलों का सामना करते हैं लेकिन मन ही मन में हारने का डर बैठा होता है, लेकिन फिर भी साहस के साथ जीवन की गति के साथ पानी की तरह चलते रहते हैं, कभी न कभी मेहनत के समुद्र से निकल कर बुलबुले बन कर किसी के लिए एक उदाहरण बनेंगे।

जिंदगी के मुकाम तक पहुँचने के लिए ऐसे ही एक किसान तरनजीत संधू, गांव गंधड़, जिला श्री मुक्तसर के रहने वाले हैं, जो लगातार चलते पानी की तरह मुश्किलों से लड़ रहे हैं, पर साहस नहीं कम हुआ और पूरे 25 सालों बाद कामयाब हुए और आज तरनजीत सिंह संधू ओर किसानों और लोगों को मुश्किलों से लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

साल 1992 की बार है तरनजीत की आयु जब छोटी थी और दसवीं कक्षा में पड़ते थे, उस दौरान उनके परिवार में एक ऐसी घटना घटी जिससे तरनजीत को छोटी आयु में ही घर की पूरी जिम्मेवारी संभालने के लिए मजबूर कर दिया, जोकि एक 17-18 साल के बच्चे के लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि उस समय उनके पिता जी का निधन हो गया था और उनके बाद घर संभालने वाला कोई नहीं था। जिससे तरनजीत पर बहुत सी मुश्किलें आ खड़ी हुई।

वैसे तरनजीत के पिता शुरू से ही पारंपरिक खेती करते थे पर जब तरनजीत को समझ आई तो कुछ अलग करने के बारे में सोचा कि पारंपरिक खेती से हट कर कुछ अलग किया जाए और कुछ अलग पहचान बनाई जाए। उन्होंने सोच रखा था कि जिंदगी में कुछ ऐसा करना है जिससे अलग पहचान बने।

तरनजीत के पास कुल 50 एकड़ जमीन है पर अलग क्या उगाया जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था, कुछ दिन सोचने के बाद ख्याल आया कि क्यों न बागवानी में ही कामयाबी हासिल की जाए। फिर तरनजीत जी ने बेर के पौधे मंगवा कर 16 एकड़ में उसकी खेती तो कर दी, पर उसके लाभ हानि के बारे में नहीं जानते थे, बेशक समझ तो थी पर जल्दबाजी ने अपना असर थोड़े समय बाद दिखा दिया।

उन्होंने न कोई ट्रेनिंग ली थी और न ही पौधों के बारे में जानकारी थी, जिस तरह से आये थे उसी तरह लगा दिए, उन्हें न पानी, न खाद किसी चीज के बारे में जानकारी नहीं थी। जिसका नुक्सान बाद में उठाना पड़ा क्योंकि कोई भी समझाने वाला नहीं था। चाहे नुक्सान हुआ और दुःख भी बहुत सहा पर हार नहीं मानी।

बेर में असफलता हासिल करने के बाद फिर किन्नू के पौधे लाकर बाग़ में लगा दिए, पर इस बार हर बात का ध्यान रखा और जब पौधे को फल लगना शुरू हुआ तो वह बहुत खुश हुए।

पर यह ख़ुशी कुछ समय के लिए ही थी क्योंकि उन्हें इस तरह लगा कि अब सब कुछ सही चल रहा है क्यों न एक बार में पूरी जमीन को बाग़ में बदल दिया जाए और यह चीज उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव लेकर आई जिससे उन्हें बहुत मुश्किल समय में से गुजरना पड़ा।

बात यह थी कि उन्होंने सोचा इस तरह यदि एक-एक फल के पौधे लगाने लगा तो बहुत समय निकल जाएगा। फिर उन्होंने हर तरह के फल के पौधे जिसमें अमरुद, मौसमी फल, अर्ली गोल्ड माल्टा, बेर, कागजी नींबू, जामुन के पौधे भरपूर मात्रा में लगा दिए। इसमें उनका बहुत खर्चा हुआ क्योंकि पौधे लगा तो लिए थे पर उनकी देख-रेख उस तरीके से करने लिए बैंक से काफी कर्जा लेना पड़ा। एक समय ऐसा आया कि उनके पास खर्चे के लिए भी पैसे नहीं थे। ऊपर से बच्चे की स्कूल की फीस, घर संभालना उन्हीं पर था।

कुछ समय ऐसा ही चलता रहा और समय निकलने पर फल लगने शुरू हुए तो उन्हें वह संतुष्ट हुए पर जब उन्होंने अपने किन्नू के बाग़ ठेके पर दे दिए तो बस एक फल के पीछे 2 से 3 रुपए मिल रहे थे।

16 साल तक ऐसे ही चलता रहा और आर्थिक तौर पर उन्हें मुनाफा नहीं हो रहा था। साल 2011 में जब समय अनुसार फल पक रहे तो उनके दिमाग में आया इस बार बाग़ ठेके पर न देकर खुद मार्किट में बेच कर आना है। जब वह जिला मुक्तसर साहिब की मार्किट में बेचने गए तो उन्हें बहुत मुनाफा हुआ और वह बहुत खुश हुए।

तरनजीत ने जब इस तरह से पहली बार मार्किट की तो उन्हें यह तरीका बहुत बढ़िया लगा, इसके बाद उन्होंने ठेके पर दिया बाग़ वापिस ले लिया और खुद निश्चित रूप से मार्केटिंग करने के बारे में सोचा। फिर सोचा मार्केटिंग आसानी से कैसे हो सकती है, फिर सोचा क्यों न एक गाडी इसी के लिए रखी जाए जिसमें फल रख कर मार्किट जाया जाए। फिर साल 2011 से वह गाडी में फल रख कर मार्किट में लेकर जाने लगे, जिससे उन्हें दिन प्रतिदिन मुनाफा होने लगा, जब यह सब सही चलने लगा तो उन्होंने इसे बड़े स्तर पर करने के लिए अपने साथ पक्के बंदे रख लिए, जो फल की तुड़ाई और मार्किट में पहुंचाते भी है।

जो फल की मार्केटिंग श्री मुक्तसर साहिब से शुरू हुई थी आज वह चंडीगढ़, लुधियाना, बीकानेर, दिल्ली आदि बड़े बड़े शहरों में अपना प्रचार कर चुकी है जिससे फल बिकते ही पैसे अकाउंट में आ जाते हैं और आज वह बाग़ की देख रेखन करते हैं और घर बैठे ही मुनाफा कमा रहे हैं जो उनके रोजाना आमदन का साधन बन चुकी है।

तरनजीत ने सिर्फ बागवानी के क्षेत्र में ही कामयाबी हासिल नहीं की, बल्कि साथ-साथ ओर सहायक व्यवसाय जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन में भी कामयाब हुए हैं और मीट के अचार बना कर बेच रहे हैं। इसके इलावा सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं जोकि जैविक तरीके के साथ कर रहे हैं। उनके फार्म पर 30 से 35 आदमी काम करते हैं, जो उनके परिवार के लिए रोजगार का जरिया भी बने हैं। उसके साथ वह टूरिस्ट पॉइंट प्लेस भी चला रहे हैं।

इस काम के लिए उन्हें PAU, KVK और कई संस्था की तरफ से उन्हें बहुत से अवार्ड द्वारा सम्मानित किया जा चूका है।

यदि तरनजीत आज कामयाब हुए हैं तो उसके पीछे उनकी 25 साल की मेहनत है और किसी भी समय उन्होंने कभी हार नहीं मानी और मन में एक इच्छा थी कि कभी न कभी कामयाबी मिलेगी।

भविष्य की योजना

वह बागवानी को पूरी जमीन में फैलाना चाहते हैं और मार्केटिंग को ओर बड़े स्तर पर करना चाहते हैं, जहां भारत के कुछ भाग में फल बिक रहा है, वह भारत के हर एक भाग में फल पहुंचना चाहते हैं।

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यदि मुश्किलें आती है तो कुछ अच्छे के लिए आती है, खेती में सिर्फ पारंपरिक खेती नहीं है, इसके इलावा ओर भी कई सहायक व्यवसाय है जिसे कर कामयाब हुआ जा सकता है।

संदीप सिंह

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नौकरी छोड़ कर अपने पिता के रास्ते पर चलकर आधुनिक खेती कर कामयाब हुआ एक नौजवान किसान- संदीप सिंह

एक ऊँचा और सच्चा नाम खेती, लेकिन कभी भी किसी ने कृषि के पन्नों को खोलकर नहीं देखा यदि हर कोई खेती के पन्नों को खोलकर देखना शुरू कर दें तो उन्हें खेती के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त हो जाएगी और हर कोई खेती में सफल हो सकता है। सफल खेती वह है जिसमें नए-नए तरीकों से खेती करके ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा सकते है।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं, संदीप सिंह जो गाँव भदलवड, ज़िला संगरूर के रहने वाले हैं और M Tech की हुई है जो अपने पिता के बताए हुए रास्ते पर चलकर और एक अच्छी नौकरी छोड़कर खेती में आज इस मुकाम पर पहुंच चुके है, यहाँ हर कोई उनसे कृषि के तरीकों के बारे में जानकारी लेने आता है। छोटी आयु में सफलता प्राप्त करने का सारा श्रेय अपने पिता हरविंदर सिंह जी को देते हैं, क्योंकि उनके पिता जी पिछले 40 सालों से खेती कर रहे हैं और खेती में काफी अनुभव होने से प्रेरणा अपने पिता से ही मिली है।

उनके पिता हरविंदर सिंह जो 2005 से खेती में बिना कोई अवशेष जलाए खेती करते आ रहे हैं। उसके बाद 2007 से 2011 तक धान के पुआल को आग न लगाकर सीधी बिजाई की थी, जिसमें वे कामयाब हुए और उससे खेती की उपजाऊ शक्ति में बढ़ावा हुआ और साथ ही खर्चे में कमी आई है। हमेशा संदीप अपने पिता को काम करते हुए देखा करता था और खेती के नए-नए तरीकों के बारे जानकारी प्रदान करता था।

2012 में जब संदीप ने M Tech की पढ़ाई पूरी की तब उन्हें अच्छी आय देने वाले नौकरी मिल रही थी लेकिन उनके पिता ने संदीप को बोला, तुम नौकरी छोड़कर खेती कर जो नुस्खे तुम मुझे बताते थे अब उनका खेतों में प्रयोग करना। संदीप अपने पिता की बात मानते हुऐ खेती करने लगे।

मुझे नहीं पता था कि एक दिन यह खेती मेरी ज़िंदगी में बदलाव करेगी- संदीप सिंह

जब संदीप परंपरागत खेती कर रहा था तो सभी कुछ अच्छे तरीके से चल रहा था और पिता हरविंदर ने बोला, बेटा, खेती तो कब से ही करते आ रहे हैं, क्यों न बीजों पर भी काम किया जाए। इस बात के ऊपर हाँ जताते हुए संदीप बीजों वाले काम के बारे में सोचने लगा और बीजों के ऊपर पहले रिसर्च की, जब रिसर्च पूरी हुई तो संदीप ने बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का फैसला लिया।

फिर मैंने देरी न करते हुए के.वी.के. खेड़ी में बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स पूरा किया- संदीप सिंह

2012 में ही फिर उन्होंने गेहूं, चावल, गन्ना, चने, सरसों और अन्य कई प्रकार के बीजों के ऊपर काम करना शुरू कर दिया जिसकी पैकिंग और प्रोसेसिंग का सारा काम अपने तेग सीड प्लांट नाम से चला रहे फार्म में ही करते थे और उसकी मार्केटिंग धूरी और संगरूर की मंडी में जाकर और दुकानों में थोक के रूप में बेचने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा।

संदीप ने बीजों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम तो करना शुरू किया था तो उसका बीजों के कारण और PAU के किसान क्लब के मेंबर होने के कारण पिछले 4 सालों से PAU में आना जाना लगा रहता था। लेकिन जब सूरज ने चढ़ना है तो उसने रौशनी हर उस स्थान पर करनी है, यहाँ पर अंधेरा छाया हुआ होता है।

साल 2016 में जब वह बीजों के काम के दौरान PAU में गए थे तो अचानक उनकी मुलाकात प्लांट ब्रीडिंग के मैडम सुरिंदर कौर संधू जी से हुई, उनकी बातचीत के दौरान मैडम ने पूछा, आप GSC 7 सरसों की किस्म का क्या करते है, तो संदीप ने बोला, मार्केटिंग, मैडम ने बोला, ठीक है बेटा। इस समय संदीप को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैडम कहना क्या चाहते हैं। तब मैडम ने बोला, बेटा आप एग्रो प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स करके, सरसों का तेल बनाकर बेचना शुरू करें, जो आपके लिए बहुत फायदेमंद है।

जब संदीप सिंह ने बोला सरसों का तेल तो बना लेंगे पर मार्केटिंग कैसे करेंगे, इस के ऊपर मैडम ने बोला, इसकी चिंता तुम मत करो, जब भी तैयार हो, मुझे बता देना।

जब संदीप घर पहुंचा और इसके बारे में बहुत सोचने लगा, कि अब सरसों का तेल बनाकर बेचेंगे, पर दिमाग में कहीं न कहीं ये भी चल रहा था कि मैडम ने कुछ सोच समझकर ही बोला होगा। फिर संदीप ने इसके बारे पिता हरविंदर जी से बात की और बहुत सोचने के बाद पिता जी ने बोला, चलो एक बार करके देख ही लेते हैं। फिर संदीप ने के.वी.के. खेड़ी में सरसों के तेल की प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स किया।

2017 में जब ट्रेनिंग लेकर संदीप सरसों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम करने लगे तो यह नहीं पता चल रहा था कि सरसों की प्रोसेसिंग कहाँ पर करेंगे, थोड़ा सोचने के बाद विचार आया कि के.वी.के. खेड़ी में ही प्रोसेसिंग कर सकते हैं। फिर देरी न करते हुए उन्होंने सरसों के बीजों का तेल बनाना शुरू कर दिया और घर में पैकिंग करके रख दी। लेकिन मार्केटिंग की मुश्किल सामने आकर खड़ी हो गई, बेशक मैडम ने बोला था।

PAU में हर साल जैसे किसान मेला लगता था, इस बार भी किसान मेला आयोजित होना था और मैडम ने संदीप की मेले में ही अपने आप ही स्टाल की बुकिंग कर दी और बोला, बस अपने प्रोडक्ट को लेकर पहुँच जाना।

हमने अपनी गाड़ी में तेल की बोतलें रखकर लेकर चले गए और मेले में स्टाल पर जाकर लगा दी- संदीप सिंह

देखते ही देखते 100 से 150 लीटर के करीब कनोला सरसों तेल 2 घंटों में बिक गया और यह देखकर संदीप हैरान हो गया कि जिस वस्तु को व्यर्थ समझ रहा था वे तो एक दम ही बिक गया। वे दिन संदीप के लिए एक न भूलने वाला सपना बन गया, जिसको सिर्फ सोचा ही था और वह पूरा भी हो गया।

फिर संदीप ने यहां-यहां पर भी किसान मेले, किसान हट, आत्मा किसान बाज़ार में जाना शुरू कर दिया, लेकिन इन मेलों में जाने से पहले उन्होंने कनोला तेल के ब्रैंड के नाम के बारे में सोचा जो ग्राहकों को आकर्षित करेगा। फिर वह कनोला आयल को तेग कनोला आयल ब्रैंड नाम से रजिस्टर्ड करके बेचने लगे।

धीरे-धीरे मेलों में जाने से ग्राहक उनसे सरसों का तेल लेने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा और बहुत से ग्राहक ऐसे थे जो उनके पक्के ग्राहक बन गए। वह ग्राहक आगे से आगे मार्केटिंग कर रहे थे जिससे संदीप को मोबाइल पर ऑर्डर आते हैं और ऑर्डर को पूरा करते हैं। आज उनको कहीं पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि घर बैठे ही आर्डर पूरा करते हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जिस का सारा श्रेय वे अपने पिता हरविंदर को देते हैं। बाकि मार्केटिंग वह संगरूर, लुधियाना शहर में कर रहे हैं।

आज मैं जो भी हूँ, अपने पिता के कारण ही हूँ- संदीप सिंह

इस काम में उनका साथ पूरा परिवार देता है और पैकिंग बगेरा वे अपने घर में ही करते हैं, लेकिन प्रोसेसिंग का काम पहले के.वी.के. खेड़ी में ही करते थे, अब वे नज़दीकी गांव में किराया देकर काम करते हैं।

इसके साथ वे गन्ने की भी प्रोसेसिंग करके उसकी मार्केटिंग भी करते हैं और जिसका सारा काम अपने फार्म में ही करते हैं और 38 एकड़ ज़मीन में 23 एकड़ में गन्ने की खेती, सरसों, परंपरागत खेती, सब्जियां की खेती करते हैं, जिसमें वह खाद का उपयोग PAU के बताए गए तरीकों से ही करते हैं और बाकि की ज़मीन ठेके पर दी हुई है।

उनको किसान मेले में कनोला सरसों आयल में पहला स्थान प्राप्त हुआ है, इसके साथ-साथ उनको अन्य बहुत से पुरस्कारों से सन्मानित किया जा चूका है।

भविष्य की योजना

वे प्रोसेसिंग का काम अपने फार्म में ही बड़े स्तर पर लगाकर तेल का काम करना चाहते हैं और रोज़गार प्रदान करवाना चाहते हैं।

संदेश

हर एक किसान को चाहिए कि वह प्रोसेसिंग की तरफ ध्यान दें, ज़रूरी नहीं सरसों की, अन्य भी बहुत सी फसलें हैं जिसकी प्रोसेसिंग करके आप खेती में मुनाफा कमा सकते हैं।

गुरप्रीत सिंह

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अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ते हुऐ इस किसान ने बनाया ऐसा उत्पाद जो इसकी सफलता का कारण बना- गुरप्रीत सिंह

जिंदगी हर पहलू पर सीखने और सिखाने का अवसर है, पर यदि समय पर प्राकृतिक के इशारे को समझ जाए तो इंसान हर वह असंभव वस्तु को संभव कर सकता है। बस उसे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, चाहे वह खेती व्यवसाय हो या फिर कोई ओर व्यवसाय। उसका हमेशा एक ही जुनून होना चाहिए।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान गुरप्रीत सिंह हैं जो गांव मुल्लांपुर के रहने वाले हैं। जिनके पास अपनी जमीन न होते हुए भी सोयाबीन के प्रोडक्ट्स बना कर Daily Fresh नाम से बेच रहे हैं और उनके साथ एक ऐसा हादसा हुआ जिसने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी और एक लाभकारी प्रोडक्ट मार्किट में लेकर आये, जिसके बारे में सभी को पता था पर उसके फायदे के बारे में कोई-कोई ही जानता था।

साल 2017 की बात है, गुरप्रीत सिंह जी को पीलिया हुआ था जोकि बहुत ही अधिक बढ़ गया और ठीक नहीं हो रहा था।

मैं गांव के डॉक्टर के पास अपना चेकअप करवाने के लिए चल गया- गुरप्रीत सिंह

जब उन्होंने ने चेकअप करवाया तो डॉक्टर ने कमज़ोरी को देखते ही ताकत के टीके लगवा दिए, जिसका सीधा असर लिवर पर पड़ा और लिवर में इन्फेक्शन हो गया क्योंकि पीलिया के कारण पहले ही अंदर गर्मी होती है, दूसरा ताकत के टीके ने अंदर ओर गर्मी पैदा कर दी थी।

जब हालत में सुधार नहीं हुआ और सेहत दिन-ब-दिन बिगड़ती गई तो उन्होंने बड़े अस्पताल में जाने का फैसला किया और जब वहां डॉक्टर ने देखा तो उनके होश उड़ गए और गर्मी का कारण जानने के लिए टेस्ट करवाने के लिए भेज दिया। जब गुरप्रीत ने टेस्ट करवाया तो डॉक्टर बोला आप शराब पीते हो तो गुरप्रीत जी ने कहा कि “अमृतधारी हूँ, इन सभी चीजों से दूर रहता हूँ” जब रिपोर्ट आई तो डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में भर्ती किया और इलाज शुरू हो गया।

जब वह अस्पताल में थे तो खाली समय में फोन का प्रयोग करने लगे और सोचा कि देसी तरीके के साथ कैसे ठीक हो सकते है इस पर रिसर्च की जाए। फिर रिसर्च करते समय सबसे ऊपर Wheat Grass आया और उनके मन में उसके बारे में रिसर्च करने की इच्छा जागरूक होने लगी और अच्छी तरह जाँच पड़ताल की और उसके फायदे के बारे में जानकर हैरान हो गए।

अस्पताल के बैड पर बैठ कर की रिसर्च मेरी जिंदगी में बदलाव लेकर आने का पहला पड़ाव था- गुरप्रीत सिंह

रिसर्च तो उन्होंने अस्तपाल में कर ली थी पर उसे प्रयोग करके उसके फायदे देखना बाकी था। इस दौरान अपनी पत्नी को बताया और घर में ही कुछ गमलों में गेहूं के बीज लगा दिए। जिसका फायदा यह है कि 12 से 15 दिन में तैयार हो जाती है।

थोड़ा ठीक होकर गुरप्रीत जी घर आये तो उनकी पत्नी ने रोज Wheat Grass का जूस बना कर उन्हें पिलाना शुरू कर दिया, जैसे-जैसे वह जूस का सेवन करते रहे दिन प्रतिदिन सेहत में फर्क आने लगा और बहुत कम समय में बिलकुल स्वाथ्य हो गए।

उन्होंने सोचा कि यदि इसके अनेक फायदे हैं और बी.पी, शुगर और ओर बहुत सी बीमारियों को खत्म करता है और इम्यूनिटी को मजबूत बनाता है तो क्यों न इसके बारे में ओर लोगों को बताया जाए और उनके पास प्रोडक्ट के रूप में पहुँचाया जाए। उसे मार्किट में लाने के लिए फिर से रिसर्च करने लगे ताकि ओर लोगों की भी सहायता हो सके।

मैंने परिवार के साथ इसके बारे में बात की- गुरप्रीत सिंह

घरवालों से बात करने के बाद उन्होंने सोचा कि इसे पाउडर के रूप में बनाकर लोगों तक पहुँचाया जाए। जिससे एक तो पाउडर खराब नहीं होगा दूसरा उनके पास सही से पहुंचेगा। पर यह नहीं पता था कि पाउडर कैसे बनाया जाए।

इस दौरान मैंने PAU के डॉक्टर रमनदीप सिंह जी के साथ संम्पर्क किया, जो अग्रि बिज़नेस विषय के माहिर हैं और हमेशा ही किसानों की सहायता के लिए तैयार रहते हैं। जिन्होंने प्रोडक्ट बनाने से लेकर मार्केटिंग में लाने तक बहुत सहायता की। आखिर उन्होंने Wheat Grass की प्रोसेसिंग अपने फार्म पर की जो वह मौसम के दौरान घर के गमलों में उगाई हुई थी जहां पर वह पहले ही सोयाबीन के प्रोडक्ट तैयार करते हैं, फिर उन्होंने Wheat Grass का पाउडर बनाकर उसे चैक करवाने के लिए रिसर्च केंद्र ले गए और जब रिपोर्ट आई तो उनका दिल ख़ुशी से भर गया, क्योंकि पाउडर की क्वालिटी जैविक और शुद्ध आई थी।

फिर मैंने सोचा मार्किट में लाने से पहले क्यों न अपने नज़दीकी रिश्तेदार में सैंपल के तौर पर दिया जाए- गुरप्रीत सिंह

जब प्रोडक्ट सैंपल के तौर पर भेजे तो उन्हें अनेक फायदे मिलने लगे और उनसे बहुत होंसला मिला।

होंसला मिलते ही देरी न करते हुए इसे मार्किट में लेकर आने का फैसला किया, इस दौरान उनके सामने एक बड़ी मुश्किल यह आई कि अब तो मौसम के अनुसार उग जाती है जब इसका मौसम नहीं होगा तो क्या करेंगे, फिर उन्होंने सोचा कि हैदराबाद में उनके रिश्तेदार है जो पहले से ही Wheat Grass का काम कर रहे हैं और वहां के मौसम में बदलाव होने के कारण क्यों न वहां से ही मंगवाया जाए इस तरह इस मुश्किल का समाधान हो गया, पर मन में अभी भी डर था लोगों को इसके फायदे के बारे में कैसे बताया जाए, जोकि सबसे बड़ी मुश्किल बन कर सामने आई। बस फिर भगवान को याद करते हुए उन्होंने दुकानदार और मेडिकल स्टोर वालों से जाकर बात की और मेडिकल स्टोर और दुकानदार को Wheat Grass के फायदे के बारे में ग्राहक को बताने के लिए कहा।

कुछ समय वह ऐसे ही मार्किटिंग करते रहे और जब उन्हें लगा कि मार्कटिंग सही से हो रही है, तो सोचा इसे ब्रांड का नाम देकर बेचा जाए, जिससे इसकी अलग पहचान बनेगी। इस दौरान श्री दरबार साहिब जाकर हुक्मनामे के पहले शब्द “” से Perfect Nutrition ब्रांड नाम रखा और उसकी पैकिंग करके बढ़िया तरीके से मार्कटिंग में बेचने लगे।

गुरप्रीत जी किसान मेलों में जाकर, गांव और शहरों में कैनोपी लगाकर इसके फायदे के बारे में बताने लगे और मार्कटिंग करने लगे जिससे उनकी मार्केटिंग में बहुत अधिक प्रसार हुआ।

2019 में वह पक्के तौर पर Wheat Grass पर काम करने लगे और लोगों को कम ही इसके फायदे के बारे में बताना पड़ता है और पाउडर बेचने के लिए मार्किट में नहीं जाना पड़ता बल्कि आजकल इतनी मांग बढ़ गई है कि उन्हें थोड़े समय के लिए भी फ्री समय नहीं मिलता। आज पाउडर की मार्केटिंग पूरे लुधियाना शहर में कर रहे हैं और साथ-साथ मार्कटिंग सोशल मीडिया के द्वारा भी करते हैं जिसमें कोरोना के समय Wheat Grass पाउडर की बहुत मांग बढ़ी और बहुत मुनाफा हुआ।

भविष्य की योजना

वह अपने प्रोडक्ट को बड़े स्तर पर और लोगों को इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी देना चाहते हैं ताकि कोई भी रह न जाए और आजकल जो बीमारियां शरीर को लग रही है उसे बचाव किया जा सके।

संदेश

हर एक इंसान को चाहिए वह अच्छा उगाये और अच्छा खाए, क्योंकि बीमारियों से तभी बचेंगे जब खाना पीना शुद और साफ होगा और इम्यूनिटी मज़बूत रहेगी।

श्रुती गोयल

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खुद को चुनौती देकर फिर उससे लड़ना और सफल होना सीखें इस उद्यमी महिला से- श्रुती गोयल

हर इंसान की हमेशा यही कोशिश होती है कि वह जिंदगी में कुछ अलग करे जिससे उसकी पहचान उसके नाम से नहीं बल्कि उसके काम से हो और बहुत इंसान ऐसे होते हैं जिनके पास पहचान तो होती है पर वह यह सोचते हैं कि पहचान मैं किसी के नाम की नहीं बल्कि अपने नाम और काम की बनानी है।

भारत की पहली ऐसी महिला श्रुती गोयल जिनको फ़ूड प्रोसेसिंग में 2 लाइसेंस सरकार की तरफ से प्राप्त हुए हैं, जो गांव जगराओं, ज़िला लुधियाना की रहनी वाली हैं। इनकी सोच इतनी विशाल है कि इन्होंने अपने परिवार का नाम और पहचान होते हुए भी अपनी अलग पहचान बनाने का काम किया और उसमें कामयाब होकर दिखाया।

मैं खुद कुछ अलग करना चाहती थी- श्रुती गोयल

वैसे श्रुति की पहचान उनकी मां अनीता गोयल के कारण ही बनी थी। जो ज़ाइका फ़ूड नाम का एक ब्रांड बाज़ार में लेकर आए और आज बहुत बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं। वहां हर कोई अच्छी तरह से उन्हें जानता है और पहले श्रुति जी आमला कैंडी पर काम कर रही थी जो ज़ाइका फ़ूड को पेश कर रहा था।

शुरू के समय में श्रुती अपने माता अनीता गोयल जी के साथ काम करते थे और खुश भी थे, जहां पर श्रुती को फ़ूड प्रोसेसिंग मार्केटिंग के बारे में बहुत कुछ पता चल चुका था और अक्सर जब कभी भी मार्केटिंग करने जाते थे तो अधिकतर वह ही जाते है थे। जिससे दिन प्रतिदिन इन उत्पादों के बारे में जानकारी मिलती रही। पर मन में हमेश एक बात थी यदि कोई काम करना है तो खुद का ही करना है और अलग पहचान बनानी है।

साल 2020 के फरवरी महीने में श्रुती जी ज़ाइका फ़ूड को पेश करते हुए एक SIDBI के मेले में गए थे, वहां उनकी मुलाकात SIDBI बैंक के GM राहुल जी के साथ हुई। मुलाकात के दौरान राहुल जी ने बोला, बेटा आप खुद की पहचान बनाने के लिए काम करें क्योंकि आपके काम करने का तरीका सबसे अलग और अच्छा है, तुम अपना काम अलग से करने के बारे में ज़रूर सोचना।

मेरे मन में बहुत से सवाल खड़े होने लगे, मैं ऐसा क्यों करूं जिससे मेरी पहचान बने- श्रुती गोयल

उन्हें चुनौती लेना बहुत पसंद है और इसे ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ते गए पर उन्हें यह नहीं पता था कि करना क्या है। एक दिन वह कहीं प्रोग्राम में गए, तो वहां उन्होंने सजावट की तरफ देख रहे थे तो उनका ध्यान गुलाब के फूलों की ओर गया और जब प्रोग्राम खत्म हुआ तो देखते हैं कि कर्मचारी ताजे फूलों को कचरे में फेंक रहे थे। जिसे देखकर उनका मन उदास हो गया क्योंकि गुलाब एक ऐसा फूल है जो सुंदरता के लिए पहले नंबर पर आता है।

जब वह घर आए तो वह बार-बार उसी के बारे में सोचने लगे कि क्या किया जाए जिससे फूल बेकार न हो और फूलों का सही प्रयोग किया जाए।

बहुत समय रिसर्च करने के बाद उनके मन में यह ख्याल आया क्यों न गुलाब की पत्तियों को इकट्ठा करके जैम बनाया जाए जो गुलकंद मुक्त हो और उसमें किसी भी प्रकार की मिलावट न हो। उन्होंने फ़ूड नुट्रिशन पर पहले से ही एक साल की ट्रेनिंग की हुई थी, श्रुती जी के लिए एक बात बहुत ही फायदेमंद साबित हुई, क्योंकि उन्हें जानकारी तो बहुत थी और दूसरा वह अपने माता जी के साथ प्रोसेसिंग और मार्केटिंग का काम करते थे।

पर इतना रिसर्च करने के बाद एक समस्या थी कि परिवार वाले अलग काम करने के लिए मानेंगे या नहीं, और जब हुई तो परिवार वालों ने मना कर दिया। उस समय माता जी कहा बेटा जायका फ़ूड का काम बहुत अच्छा चल रहा है, उसमें है ही मेहनत करते हैं। पर श्रुती जी का होंसला अटूट था और बाद में श्रुती जी ने उन्हें मना लिया ।

इसके बाद श्रुती जी ने गुलाब की पत्तियों को इकट्ठा करके उस पर काम करना शुरू कर दिया इसमें उनका साथ डॉक्टर मरीदुला मैडम ने दिया। श्रुती ने CIPHET लुधियाना से ट्रेनिंग तो ली ही थी तो इकट्ठा किए गुलाब की पत्तीयों को तोड़ कर अपनी माता जी के साथ अपने घर में ही प्रोसेसिंग करनी शुरू कर दी और पहली बार जैम बनाया, उन्होंने बाद में जिसे Rose Petal Jam का नाम दिया। जिसका फायदा यह था कि आप दूध में डालकर या फिर वैसे ही चम्मच भरकर खा सकते है और जो खाने में भी स्वादिष्ट है। इसके साथ ही उन्होंने गुलाब के फूलों का शर्बत बनाया, जिसमें सभी पोषक तत्व वाली चीजें मौजूद है जो शरीर की इम्युनिटी और ताकतवर बनाने के लिए जरुरी होती है ।

लंबे समय से श्रुति बिना ब्रांड और पैकिंग से ही अपनी दूकान पर मार्केटिंग कर रही थी पर उन्हें कुछ नहीं मिला । जिससे निराश हुए और कहा जब मुसीबत आती है तो वह हमारे भले के लिए ही आती है। इस तरह ही श्रुती गोयल जी के साथ हुआ।

एक दिन वह बैठे ही थे कि मन में ख्याल आया कि क्यों न इसकी अच्छे से पैकिंग करके और ब्रांड के साथ मार्किट में लाया जाए, जिससे एक तो लोगों को इसके ऊपर लिखी जानकारी पढ़ कर पता चलेगा दूसरा एक अलग ब्रांड नाम लोगों को आकर्षित करेगा।

मैं ब्रांड के बारे में रिसर्च करनी लगी जोकि अलग और जिसमें पुराने संस्कृति की महक आती हो- श्रुती गोयल

बहुत अधिक रिसर्च करने पर उनके दिमाग में एक संस्कृत का नाम आया जिससे वह बहुत खुश हुए, फिर “स्वादम लाभ” ब्रांड रखें का फैसला किया, जिसके पीछे भी एक महत्ता है, जैसे स्व मतलब स्वाद हो, दम वे ताकतवर हो, लाभ का मतलब खा कर शरीर को कोई फायदा हो। इस तरह ब्रांड का नाम रखा।

फिर देरी न करते हुए वह जैम और शर्बत को मार्किट में ले कर आए और उसकी मार्केटिंग करनी शुरू कर दी, जिसमें उनकी बहुत सी सहायता डॉक्टर रमनदीप सिंह जी ने की जोकि PAU में एग्री बिज़नेस विषय के प्रोफेसर हैं और बहुत से किसानों को और उघमियों को उच्च स्तर पर पहुंचाने में हमेशा तैयार रहते हैं। इस तरह ही डॉक्टर रमनदीप जी ने श्रुती की बहुत से चैनल के साथ इंटरव्यू करवाई जहां से श्रुती जी के बारे में लोगों को पता चलने लगा और उनके जैम और शर्बत की मांग बढ़ने लगी और मार्केटिंग भी होने लगी।

जब पता लगा कि मार्केटिंग सही तरीके से चल रही है तो जैम के साथ आंवला केंडी, कद्दू के बीजों पर काम करना शुरू कर दिया। जिसमें उनहोंने कद्दू के बीजों से 3 से 4 प्रॉडक्ट त्यार किए जो कि ग्लूटन मुक्त है। इस तरह धीरे-धीरे मार्केटिंग में पैर स्थिर हो गए। सितंबर 2020 में सफल हुए।

उनके द्वारा त्यार किए जा रहे उत्पाद

  • जैम
  • शर्बत
  • केक
  • पंजीरी
  • बिस्कुट
  • लड्डू
  • ब्रेड आदि।

आज मार्केटिंग के लिए कहीं बाहर या दूकान पर उत्पाद के बारे में बताना नहीं पड़ता बल्कि लोगों की मांग के आधार पर बिक जाते हैं। श्रुती जी अपनी मार्केटिंग लुधियाना और चंडीगढ़ शहर में करते हैं, जिसके कारण उन्हें बहुत से लोग जानते हैं और मार्केटिंग हो जाती है।वह खुश है और इस ओर बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं।

श्रुती को बहुत जगह पर उनके काम के लिए सम्मानित किया जा चुका है। श्रुती जी ऐसे एक महिला उघमी है जिन्होंने खुद को चुनौती दी थी कि खुद के साथ लड़ कर कामयाबी हासिल करनी है, जिस पर वह सफल साबित हुए ओर आज उन्हें अपने आप पर गर्व है और अपने परिवार का नाम रोशन किया।

भविष्य की योजना

वह आगे भी इसे ओर बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं। बाकि उद्देश्य यह है कि उनके उत्पादों के बारे में लोग इतना जागरूक हों कि जो थोड़ा बहुत बताना पड़ता है, वह भी न बताना पड़े। बल्कि अपने आप ही बिक जाए। इसके साथ-साथ हरी मिर्च का पाउडर बना कर मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश

हर एक महिला को चाहिए कि वह किसी पर निर्भर न रह कर खुद का कोई व्यवसाय शुरू करे जिसका उसे शोक भी हो और उसे बड़े स्तर पर लेकर जाने की हिम्मत भी हो।

लिंगारेडी प्रसाद

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सफल किसान होना ही काफी नहीं, साथ साथ दूसरे किसानों को सफल करना इस व्यवसायी का सूपना था और इसे सच करके दिखाया- लिंगारेडी प्रसाद

खेती की कीमत वही जानता है जो खुद खेती करता है, फसलों को उगाने और उनकी देखभाल करने के समय धरती मां के साथ एक अलग रिश्ता बन जाता है, यदि हर एक इंसान में खेती के प्रति प्यार हो तो वह हर चीज को प्रकृति के अनुसार ही बना कर रखने की कोशिश करता है और सफल भी हो जाता है। हर एक को चाहिए वह रसायनिक खेती न कर प्रकृति खेती को पहल दे और फिर प्रकृति भी उसकी जिंदगी को खुशियों से भर देती है।

ऐसा ही एक उद्यमी है किसान, जो कृषि से इतना लगाव रखते हैं कि वह खेती को सिर्फ खेती ही नहीं, बल्कि प्रकृति की देन मानते हैं। इस उपहार ने उन्हें बहुत प्रसिद्ध बना दिया। उस उद्यमी किसान का नाम लिंगारेड़ी प्रशाद है, जो चितूर, आंध्रा प्रदेश के रहने वाले हैं। पूरा परिवार शुरू से ही खेती में लगा हुआ था और जैविक खेती कर रहा था पर लिंगारेड़ी प्रशाद कुछ अलग करना चाहते थे, लिंगारेड़ी प्रशाद सोचते थे कि वह खुद को तब सफल मानेंगे जब उन्हें देखकर ओर किसान भी सफल होंगे। पारंपरिक खेती में वह सफलतापूर्वक आम के बाग, सब्जियां, हल्दी ओर कई फसलों की खेती कर रहे थे।

फसली विभिन्ता पर्याप्त नहीं थी क्योंकि यह तो सभी करते हैं- लिंगारेड़ी प्रशाद

एक दिन वे बैठे पुराने दिनों के बारे में सोच रहे थे, सोचते-सोचते उनका ध्यान बाजरे की तरफ गया क्योंकि उन्हें पता था कि उनके पूर्वज बाजरे की खेती करते थे जोकि सेहत के लिए भी फायदेमंद है ओर पशुओं के लिए भी बढ़िया आहार होने के साथ अनेक फायदे हैं। आखिर में उन्होंने बाजरे की खेती करने का फैसला किया क्योंकि जहां पर वह रहते थे, वहां बाजरे की खेती के बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे, दूसरा इसके साथ गायब हो चुकी परंपरा को पुनर्जीवित करने की सोच रहे था।

शुरू में लिंगारेड़ी प्रशाद को यह नहीं पता था कि इस फसल के लिए तापमान कितना चाहिए, कितने समय में पक कर तैयार होती है, बीज कहाँ से मिलते है, और कैसे तैयार किये जाते है। फिर बिना समय बर्बाद किए उन्होंने सोशल मीडिया की मदद से मिल्ट पर रिसर्च करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने गांव में एक बुजुर्ग से बात की और उनसे बहुत सी जानकरी प्राप्त हुई और बुजुर्ग ने बिजाई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी के बारे में लिंगारेड़ी प्रशाद को बताया। जितनी जानकारी मिलती रही वह बाजरे के प्रति मोहित होते रहे और पूरी जानकारी इकट्ठा करने में उन्हें एक साल का समय लग गया था। उसके बाद वह तेलंगाना से 4 से 5 किस्मों के बीज (परल मिलट, फिंगर मिलट, बरनयार्ड मिलट आदि) लेकर आए और अपने खेत में इसकी बिजाई कर दी।

फसल के विकास के लिए जो कुछ भी चाहिए होता था वह फसल को डालते रहते थे और वह फसल पकने के इंतजार में थे। जब फसल पक कर तैयार हो गई थी तो उस समय वह बहुत खुश थे क्योंकि जिस दिन का इंतजार था वह आ गया था और आगे क्या करना है बारे में पहले ही सोच रखा था।

फिर लिंगारेड़ी प्रशाद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बाजरे की खेती के साथ उन्होंने प्रोसेसिंग करने के बारे में सोचा और उस पर काम करना शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्होंने फसल के बीज लेकर मिक्सी में डालकर प्रोसेसिंग करके एक छोटी सी कोशिश की जोकि सफल हुई और इससे जो आटा बनाया (उत्पाद ) उन्हें लोगों तक पहुंचाया। फायदा यह हुआ कि लोगों को उत्पाद बहुत पसंद आया और हौसला बढ़ा।

जब उन्हें महसूस हुआ कि वह इस काम में सफल होने लग गए हैं तो उन्होंने काम को बड़े स्तर पर करना शुरू कर दिया। आज के समय में उन्हें मार्केटिंग के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता क्योंकि ग्राहक पहले से ही सीधा उनके साथ जुड़े हुए हैं क्योंकि आम और हल्दी की खेती करके उनकी पहचान बनी हुई थी।

लिंगारेड़ी प्रशाद के मंडीकरण का तरीका था कि वह लोगों को पहले मिलट के फायदे के बारे में बताया करते थे और फिर लोग मिलट का आटा खरीदने लगे और मार्किट बड़ी होती गई।

साल 2019 में उन्होंने देसी बीज का काम करना शुरू कर दिया और मार्केटिंग करने लगे। सफल होने पर भी वह कुछ ओर करने के बारे में सोचा और आज वह अन्य सहायक व्यवसाय में भी सफल किसान के तौर पर जाने जाते हैं।

नौकरी के बावजूद वे अपने खेत में एक वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, मछली पालन भी चला रहे हैं। उन्हें उनकी सफलता के लिए वहां की यूनिवर्सिटी द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। उनके पास 2 रंग वाली मछली है। अपनी सफलता का श्रेय वह अपनी खेती एप को भी मानते हैं, क्योंकि वह अपनी खेती एप के जरिये उन्हें नई-नई तकनीकों के बारे में पता चलता रहता है।

उन्होंने अपने खेत के मॉडल को इस तरह का बना लिया है कि अब वह पूरा वर्ष घर बैठ कर आमदन कमा रहे हैं।

भविष्य की योजना

वह मुर्गी पालन और झींगा मछली पालन का व्यवसाय करने के बारे में भी योजना बना रहे हैं जिससे वह हर एक व्यवसाय में माहिर बन जाए और देसी बीज पर काम करना चाहते हैं।

संदेश

यदि किसान अपनी परंपरा को फिर से पुर्नजीवित करना चाहता है तो उसे जैविक खेती करनी चाहिए जिससे धरती सुरक्षित रहेगी और दूसरा इंसानों की सेहत भी स्वास्थ्य रहेगी।

अमरजीत शर्मा

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ऐसा उद्यमी किसान जो प्रकृति के हिसाब से चलकर एक खेत में से लेता है 40 फसलें

प्रकृति हमारे जीवन का वह अभिन्न अंग है, जिसके बिना कोई भी जीव चाहे वह इंसान है, चाहे पक्षी, चाहे जानवर है, हर कोई अपना पूरा जीवन प्रकृति के साथ ही बिताता है और प्रकृति के साथ उसका प्यार पड़ जाता है। पर कुछ लोग यह भूल जाते हैं और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से नहीं कतराते और इस तरह से खिलवाड़ करते हैं जो सीधा सेहत पर असर करती है।

आज जिस इंसान की कहानी आप पढ़ेंगे यह सभी बातें उस इंसान के दिल और दिमाग में रह गई और फिर शुरू हुआ प्रकृति के साथ उसका प्यार। इस उद्यमी किसान का नाम है “अमरजीत शर्मा” जो गांव चैना, जैतो मंडी, ज़िला फरीदकोट के रहने वाले हैं। लगभग 50 साल के अमरजीत शर्मा का प्रकृति के साथ खेती का सफर 20 साल से ऊपर है। इतना अधिक अनुभव है कि ऐसा लगता है जैसे अपने खेतों से बातें करते हों। साल 1990 से पहले वह नरमे की खेती करते थे, उस समय उन्हें एक एकड़ में 15 से 17 क्विंटल के लगभग फसल प्राप्त हो जाती थी, पर थोड़े समय के बाद उन्हें नरमे की फसल में नुक्सान होना शुरू हो गया और 2 से 3 साल तक ऐसे ही चलता रहा जिसके कारण वह बहुत परेशान हो गए और नरमे की खेती न करने का निर्णय लिया क्योंकि एक तो उन्हें फसल का मूल्य नहीं मिल रहा दूसरा सरकार भी साथ नहीं दे रही थी जिसके कारण वह बहुत दुखी हुए थे।

वह थक कर फिर से परंपरागत खेती करने लग गए, पर उन्होंने शुरू से ही गेहूं की फसल को पहल दी और आजतक धान की फसल नहीं उगाई और ना ही वह उगाना चाहते हैं। उनके पास 4 एकड़ जमीन है जिसमें उन्होंने रासायनिक तरीके से गेहूं और सब्जियों की खेती करनी शुरू कर दी। जब वह रासायनिक खेती कर रहे थे तो उन्हें प्रकृति खेती करने के बारे में सुनने को मिला और उसके बारे में पूरी जानकारी लेने के लिए पता करने लगे।

धीरे-धीरे मुझे प्रकृति खेती के बारे में पता चला- अमरजीत शर्मा

वैसे तो वह बचपन से ही प्रकृति खेती के बारे में सुनते आए थे पर उन्हें यह नहीं पता था कि प्रकृति खेती कैसे की जाती है क्योंकि उस समय सोशल मीडिया नहीं होता था जिससे पता चल सके पर उन्होंने पूरी तरह से जाँच पड़ताल करनी शुरू की।

कहा जाता है कि हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए क्योंकि यदि हम निराश होकर बैठ जाए तो भगवान भी साथ नहीं देता।

वह कोशिश करते रहे और एक दिन कामयाबी उनकी तरफ आ गई, जब अमरजीत सिंह प्रकृति खेती के बारे में जानकारी लेने के लिए जांच पड़ताल करने लगे तो उन्होंने कोई भी अखबार नहीं छोड़ा जो न पढ़ा हो ताकि कोई जानकारी रह न जाए और एक दिन जब वह अखबार पढ़ रहे थे तो उन्होंने खेती विरासत मिशन संस्था के बारे में छपे आर्टिकल को पढ़ना शुरू किया।

जब मैंने आर्टिकल पढ़ना शुरू किया तो मैं बहुत खुश हुआ- अमरजीत शर्मा

उस आर्टिकल को पढ़ते वक्त उन्होंने देखा कि खेती विरासत मिशन नाम की एक संस्था है, जो किसानों को प्रकृति खेती के बारे में जानकारी प्रदान और ट्रेनिंग भी करवाती है, फिर अमरजीत जी ने खेती विरासत मिशन द्वारा उमेन्द्र दत्त जी के साथ संम्पर्क किया।

उस समय खेती विरासत मिशन वाले गांव-गांव जाकर किसानों को प्रकृति खेती के बारे में ट्रेनिंग देते थे और अभी भी ट्रेनिंग देते हैं। इसका फायदा उठाते हुए अमरजीत ने ट्रेनिंग लेनी शुरू की। बहुत समय तक वह ट्रेनिंग लेते रहे, जब धीरे-धीरे समझ आने लगा तो अपने खेतों में आकर तरीके अपनाने लगे। फसल पर इसका फायदा कुछ समय बाद हुआ जिसे देखकर वह बहुत खुश हुए ।

धीरे-धीरे वह पूरी तरह से प्रकृति खेती करने लगे और प्रकृति खेती को पहल देने लगे। जब वह प्रकृति खेती करके फसल की बढ़िया पैदावार लेने लगे तो उन्होंने सोचा कि इसे ओर बड़े स्तर पर ले कर जाया जाए।

मैंने कुछ ओर नया करने के बारे में सोचा -अमरजीत शर्मा

फिर उन्होंने बहु-फसली विधि अपनाने के बारे में सोचा, पर उनकी यह विधि औरों से अलग थी क्योंकि जो उन्होंने किया वह किसी ने सोचा भी नहीं था।

जिस तरह कहा जाता है “एक पंथ दो काज” को सच साबित करके दिखाया। क्योंकि उन्होंने वृक्ष के नीचे उसे पानी हवा पहुंचाने वाली ओर फसलों की खेती करनी शुरू कर दी, जिसके चलते उन्होंने एक जगह पर कई फसलें उगाई और लाभ कमाया।

जब अमरजीत की तकनीकों के बारे में लोगों को पता चला तो लोग उन्हें मिलने के लिए आने लगे, जिसका फायदा यह हुआ कि एक तो उन्हें पहचान मिल गई, दूसरा वह ओर किसानों को प्रकृति खेती के बारे में जानकारी देने में सफल हुए।

अमरजीत जी ने बहुत मेहनत की, क्योंकि 1990 से अब तक का सफर चाहे मुश्किलों वाला था पर उन्होंने होंसला नहीं छोड़ा और आगे बढ़ते रहे।

जब उन्हें लगा कि वह पूरी तरह से सफल हो गए हैं तो फिर स्थायी रूप से 2005 में प्रकृति खेती के साथ देसी बीजों पर काम करना शुरू कर दिया और आज वह देसी बीज जैसे कद्दू, अल, तोरी, पेठा, भिंडी, खखड़ी, चिब्बड़ अदि भी बेच रहे हैं। किसानों तक इन्हे पहुंचाने लगे, जिससे बाहर से किसी भी किसान को कोई रासायनिक वस्तु न लेकर खानी पड़े, बल्कि खुद अपने खेतों में उगाए और खाएं।

आज अमरजीत शर्मा जी इस मुकाम पर पहुँच गए हैं कि हर कोई उनके गांव को उनके नाम “अमरजीत” के नाम से जानते हैं, उनकी इस कामयाबी के कारण खेती विरासत मिशन और ओर संस्था की तरफ से अमरजीत को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

भविष्य की योजना

वह प्रकृति खेती के बारे में लोगों को जानकारी प्रदान करवाना चाहते हैं ताकि इस रस्ते पर चल कर खेती को बचाया जा सके।

संदेश

यदि आपके पास जमीन है तो आप रासायनिक नहीं प्रकृति खेती को पहल दें बेशक कम है, लेकिन जितना खाना है वे कम से कम साफ तो खाएं।

सुरभी गुप्ता त्रेहन

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एक ऐसी महिला जो खुद समस्याओं से लड़कर दूसरों को सेहत के लिए प्रेरित कर रही है

कठिनाइयाँ हमेशा हर इंसान के रास्ते में आती हैं, लेकिन उस समय हारने की जगह हिम्मत दिखाने की जरुरत होती है, जो इंसान को उस रास्ते की तरफ लेकर जाती है जहां से उसे अपनी मंजिल नजदीक लगती है। फिर वह अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए इतनी कोशिश करता है जिससे परमात्मा भी उसका पूरा साथ देता है।

जिसकी बात करने जा रहे हैं उनका नाम सुरभी गुप्ता त्रेहन है, जो लुधियाना ज़िले के रहने वाले हैं। जिन्होंने लोगो की सेहत को स्वास्थ्य करने के बारे सोचा और उसे पूरा करने में सफल भी हुए। उन्होंने ने पहले घर में सोचा कि इसके लिए क्या किया जा सकता है, जिससे लोग पैकेट वाली वस्तुओं का प्रयोग न करें जिसमें मिलावट होती है और उससे लोगों का बचाव किया जा सके। इस कोशिश को जारी रखते वह फिर अपनी मंजिल की तरफ चल पड़े।

कुछ समय पहले वह अपने आप को बहुत कमजोर महसूस कर रहे थे फिर थोड़े समय बाद पता चला कि उन्हें एनीमिया नाम की बीमारी है, जो खून की कमी के कारण होती है। इस दौरान उन्होंने बहुत सी अंग्रेजी दवाइयों का सेवन किया, जितना समय उन्होंने दवाइयों का प्रयोग किया उतना समय तो ठीक रहते और दवाई बंद करने पर फिर से समस्या आनी शुरू हो जाती।

कई साल दवाई खाने के बाद वह सोचने लगे कि अब क्या किया जाए। परिणामस्वरूप यह देखा गया कि उनकी बीमारी का कारण सही खुराक की कमी है या फिर स्प्रे वाली खुराक खाने का असर है।

उन्होंने रिसर्च करनी शुरू कर दी और जाँच की कि रागी और मिल्ट में आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में डाला जाता है, इसलिए इसका सेवन करना शुरू कर दिया और इसका असर बीमारी और सेहत पर भी दिखाई देता है।

इसके बारे में उन्होंने तब सोचा जब उनकी सेहत पर फर्क पड़ा और उन्होंने फिर से शुरू करने के बारे में सोचा और कहते हैं

जिस तन लागे वो तन जानें

फिर मैंने अपनी माता जी के साथ बात की और काम करना शुरू कर दिया- सुरभी गुप्ता त्रेहन

पहली बार उन्होंने रागी और विटामिन्स को मिलाकर रागी मिल्ट बनाया, जिससे उनका काम तो शुरू हो गया पर उनके सामने बहुत सी मुश्किलें आई। पहले उन्हें मार्केटिंग के बारे में कुछ भी नहीं पता था कि मार्केटिंग कैसे करनी है और पैसे की कमी के कारण भी बहुत सी मुश्किलें आई। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने काम को जारी रखा।

धीरे-धीरे उन्होंने छोटे स्तर पर उत्पाद बनाने शुरू कर दिए पर मार्केटिंग की समस्या अभी भी उनके सामने आ रही थी। पर कहते हैं इंसान को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, जब भी कभी इंसान हिम्मत हारने लग जाए उसे धरती से दिवार पर चढते कीड़ों की तरफ देखना चाहिए, कैसे वह बार बार गिर कर चढ़ने की कोशिश करते रहते हैं और हिम्मत नहीं हारते। इस तरह इंसान को बिना थके मेहनत करते रहना चाहिए।

मुझे मार्केटिंग के बारे में जानकारी नहीं थी- सुरभी गुप्ता त्रेहन

वह मार्केटिंग की समस्या का समाधान करने के लिए रिसर्च करने लगे और इस दौरान उन्होंने बहुत से आर्टिकल, जो कि सेहत से संबंधित होते थे उन्हें बहुत पढ़ा। पढ़ने का फायदा यह हुआ कि उन्हें वहां से मार्केटिंग के बारे जानकारी मिली और सेहत कैसे स्वास्थ्य रखी जाए।

उनके दिमाग में यह बात बैठ गई। उनके लिए लुधियाना शहर में रहना एक सुनहरी मौका बन गया क्योंकि लुधियाना के लोग अपनी सेहत को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं और रोज सुबह सैर के लिए पार्क में आते हैं। इस मौके का लाभ उठाने के लिए वह अपने उत्पाद को पार्क में ले जाते और अपने उत्पाद के बारे में लोगों को जानकारी देते।

इसके बारे में वह चिंतित थे पर कहते हैं यदि आप किसी का भला करने की कोशिश करते हैं या भला मांगते हैं तो भगवान भी खुद उनकी मदद करने के लिए आगे आ जाता है। जब उन्होंने लोगों को उत्पाद और उसके फायदे के बारे में बताना शुरू किया तो बहुत से लोग यकीन करने लगे और लोगों ने उत्पाद लेने शुरू कर दिए। इस तरह धीरे-धीरे उनके उत्पाद की मार्केटिंग होनी शुरू हो गई।

जब वह मार्केटिंग कर रहे थे तो उनकी जान पहचान डॉ. रमनदीप सिंह जी के साथ हुई जो पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी में खेती व्यापार विषय के प्रोफेसर हैं और अभी तक बहुत से किसानों की सहायता कर चुके हैं और किसानों की सहायता करने से पीछे नहीं हटते। डॉ. रमनदीप सिंह जी के साथ बहुत से प्रगतिशील किसान जुड़ें हैं। फिर डॉ. रमनदीप सिंह जी सुरभी जी को मार्केटिंग के बारे में जानकारी दी और इसके साथ तजिंदर सिंह रिआड़ जी उन्हें किसानों के साथ मिलवाया। जिससे उन्हें पहचान मिली और दिनों दिन मार्केटिंग भी होने लगी।

सुरभी गुप्ता जी ने साथ 2020 में निश्चित तौर पर इस काम को बड़े स्तर पर करना शुरू कर दिया और इसके साथ साथ वह कई तरह के उत्पाद भी बनाने लग पड़े। जिसमें गुड़, काली मिर्च और अशवगंधा डालकर टर्मेरिक सुपर ब्लेंडेड नाम का ड्रिंक मिक्स बनाया, जोकि सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है, जिसे बच्चे से लेकर हर कोई इस ड्रिंक का प्रयोग कर सकता है। जिसे मैपिक फ़ूड ब्रांड के तहत बेचना शुरू कर दिया, इसके इलावा वह 5 से 6 तरह के उत्पाद बनाते हैं।

उनके द्वारा तैयार किए जाते उत्पाद-

  • टर्मेरिक सुपर ब्लेंडेड
  • मिल्ट बिस्कुट
  • रागी हेल्थ मिक्स

सभी उत्पाद की पैकिंग, लेबलिंग करने के लिए सुरभी गुप्ता ने से स्टोर बनाया है, जहां सारा काम उनकी देख-रेख में होता है, ड्रिंक बनाने के समय किसी भी केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता और उत्पादों की प्रोसेसिंग के लिए फसलें भी सीधी किसानों से खरीदते हैं।

वह अपने उत्पाद की मार्केटिंग किसान मेले और ओर अलग-अलग खेती के समागमों में जा कर करते हैं। इसके इलावा वह फेसबुक ओर इंस्टाग्राम द्वारा भी अपने उत्पादों का मंडीकरण करते हैं जहां पर उन्हें बहुत प्रतिक्रिया मिलती है।

भविष्य की योजना

वह उत्पादों की मार्केटिंग बड़े स्तर पर करना चाहते हैं और इसके साथ साथ वह इसकी मार्केटिंग ऑनलइन तरीके से करना चाहते हैं । जिससे उनके उत्पादों की विक्री बड़े स्तर पर हो सके, दूसरा लोगों में इसकी महत्ता बढ़ सके।

संदेश

यदि हम बाहर के बने उत्पाद छोड़ कर प्राकृतिक पदार्थ से बनाये गए उत्पादों की तरफ ध्यान दें तो इससे हमारी सेहत भी स्वास्थ्य रहेगी और साथ ही कई बिमारियों से बचाव रहेगा।

ज्योति गभीर

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एक ऐसी महिला जिसने न केवल अपने लक्ष्यों के बारे में सपना देखा बल्कि उन्हें पाने और सफलता हासिल करने का साहस भी किया – ज्योति गंभीर

ज्योति गंभीर एक ऐसी महिला हैं जिनकी न केवल ख्वाहिश थीं बल्कि उन्हें हासिल करने और सफल होने का साहस भी था।
अगर सही समय पर सही दिशा में निर्देशित किया जाए, तो आपका जुनून आपको ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद कर सकता है।  हम में से हर एक के लक्ष्य और इच्छाएं होती हैं, लेकिन हर किसी में उसे पाने का साहस नहीं होता है। असफल होने के डर से व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोकता है। फिर भी, कुछ ऐसे भी हैं जो कभी हार नहीं मानते।
ऐसी ही लुधियाना से एक महिला ज्योति गंभीर, जिन्होनें न केवल अपने शोक को एक व्यवसाय में बदलने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रही, बल्कि दूसरों के लिए भी आदर्श बने।
ज्योति गंभीर जी हमेशा खाना पकाने की शौक़ीन थी और यही शौक उन्हें  ख़ुशी देता था, पर यह शौक उनका रसोई तक ही सिमित था फिर उनकी ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जब उन्हें लगा अब समय है जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने का।

खाना बनाना मेरा शौक था और मैंने अपने परिवार के लिए घर पर अलग-अलग खाने की चीजें बनाई – ज्योति गंभीर

जैसा कि वे कहते हैं, ”जहाँ चाह होती है, वहाँ राह होती है।” ज्योति की बेटी lactose intolerance से पीड़ित थी और बाहर का खाना खाने के बाद अक्सर बीमार पड़ जाती थी। उसकी बेटी की बीमारी ने उन्हें मजबूत बनाया और उन्होंने अपनी बेटी के लिए ताजा बिस्कुट पकाना शुरू कर दिया, क्योंकि उसके बिस्कुट ग्लूटन और स्वादिष्ट थे। जोकि उनकी बेटी और परिवार ने खूब पसंद किये और उनकी तारीफ भी की। वह अपना खुद का काम शुरू करने के लिए प्रेरित हुई। उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों को देने के लिए बिस्कुट बनाये। उनकी तरफ से बढ़िया प्रोत्साहन मिलने के बाद उन्होंने खुद में आशा की किरण जगाई और आगे बढ़ती गई। उसने प्रेरित महसूस किया और सोचा कि वह उन लोगों के लिए गुणवत्ता वाले बिस्कुट और बेकरी आइटम प्रदान कर सकती है जो ग्लूटेन एलर्जी, lactose intolerance से पीड़ित हैं। और जो ऑर्गनिक खाना पसंद करते हैं।
मैं अपनी नई शुरुआत को लेकर परिवार की मेरे प्रति प्रतिक्रिया के लिए बहुत उत्तेजित थी। उनके इस फैसले को उनके पति ने पूरा समर्थन दिया। समर्थन मिलने के बाद वह सातवें आसमान पर थी। वह इसके बारे में आशावादी थी। उसने सोचा कि उसने सभी चुनौतियों को पार कर लिया है और वह देख सकती है कि उसका रास्ता साफ हो गया है।
फिर उन्होंने खाना बनाने की ट्रेनिंग लेने के बारे में सोचा। जैसे ही उन्होंने अपनी रिसर्च शुरू की, उन्होंने अपने उत्पादों को “डिलीशियस बाइट्स” नाम से लेबल करना शुरू किया।  लुधियाना शहर में रहने के कारण उन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.)  से ट्रेनिंग की। उन्होंने पी.ए.यू. में अपनी ट्रेनिंग शुरू करने में एक सेकंड भी बर्बाद नहीं किया।

मैंने पी.ए.यू. में अपना प्रशिक्षण शुरू किया और फिर, बाद में, केक और कुकीज़ के लिए लिए घर से काम किया। —ज्योति गंभीर

अपना कोर्स पूरा करने के बाद, उन्होनें दिन में कुछ घंटे काम करना शुरू कर दिया। इस बीच, उनकी मुलाकात पी.ए.यू. के मार्केटिंग हेड डॉ. रमनदीप सिंह से हुई, जिन्होंने सफलता पाने में कई किसानों का मार्गदर्शन किया है और हमेशा उनकी सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। डॉ. सिंह,  ज्योति जी के काम से बहुत प्रभावित हुए, जब उन्होंने उन्हें अपनी खुद के लिए कुछ शुरू करने की उनकी आजीवन खोज के बारे में बताया।  उन्होनें उनमें दृढ़ संकल्प देखा। इसलिए, फिर उन्होंने ज्योति जी को पी.ए.यू. की सोशल मीडिया टीम से मिलवाया और उन्हें स्ट्रैटेजिक मार्केटिंग आइडिया दिए।
डॉ. रमनदीप ने तब अपनी खेती ऐप पर ज्योति जी की पहल को बढ़ावा देने पर विचार किया और फिर अपनी खेती टीम ने ज्योति जी की कहानी को ओर लोगों तक  पहुंचाया।
ज्योति जी के पास इस पर अनगिनत प्रतिक्रियाएँ थीं, और उन्हें जल्द ही पूरे शहर से ग्राहकों से फोन आने लगे जो ऑर्डर देना चाहते थे। इस बीच पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के स्रोतों का उपयोग करते हुए, उन्होंने मार्केटिंग का अधिक ज्ञान प्राप्त करने के साथ ही अपने व्यवसाय का विस्तार करना शुरू कर दिया। कुछ हफ्तों के बाद, जब केक और कुकीज बनाने का उनका व्यवसाय अच्छी तरह से स्थापित हो गया, तो उन्होंने ओर अधिक उत्पादों का उत्पादन करने का निर्णय लिया।
जैसे ही डिलीशियस बाइट्स ने सफलता का रास्ता पकड़ा, ज्योति जी ने अपने उत्पादों को पैकेज और लेबल करना शुरू कर दिया।

वह इन उत्पादों में से 14-15 विभिन्न प्रकार के बेकरी उत्पाद बनाती है:

  • बिस्कुट
  • केक
  • ब्रेड
  • गुड़
  • गन्ना
  • जैम
  • स्क्वैश
बिस्कुट बनाने के लिए आवश्यक सामग्री पूरी तरह से जैविक होती है। अन्य सामान जिनमें गुड़ शामिल हैं, वे हैं केक, ब्रेड और कई तरह के बिस्कुट। उसने एक कदम आगे बढ़ाया, फिर अन्य जैविक खेती करने वाले किसानों के साथ सम्पर्क बनाया और उनसे सीधे तौरआवश्यक सामग्री खरीदना शुरू कर दिया।
डॉ. रमनदीप ने ज्योति जी को अपना करियर बनाने में सहायता करके यह सब संभव किया।
वर्तमान में, ज्योति जी इंस्टाग्राम और फेसबुक पेजों पर ‘डिलिशियस बाइट्स’ की मार्केटिंग और प्रचार का प्रबंधन खुद करती हैं।
2019 में, उन्हें परिरक्षक मुक्त उत्पादों की एक बड़ी पहल करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-कृषि और संबद्ध क्षेत्र कायाकल्प (RKVY-RAFTAAR) के लिए लाभकारी दृष्टिकोण से 16 लाख रूपये से पुरस्कृत किया गया था।
ज्योति गंभीर 2021 में सेलिब्रेटिंग फार्मर्स एज इंटरनेशनल (C.F.E.I.) प्राइवेट लिमिटेड के साथ पार्टनर बन गए,  जहां वह कई किसानों को प्राकृतिक रूप से उगाए गए गन्ने की प्रोसेसिंग में गन्ना जैम और क्षारीय गन्ने के रस की चाय जैसे स्वस्थ उत्पादों में सहायता कर रही है। सी.एफ.ई.आई. कंपनी के माध्यम से पहले ही दो किसान हित समूह (एफ.आई.जी.) स्थापित कर चुके हैं,   उनके प्रौद्योगिकी भागीदार एस.बी.आई. कोयंबटूर और आई.आई.टी मुंबई की सहायता से इस साल के अंत तक 100 एफ.आई.जी. स्थापित करने का उनका लक्षण है।  ये किसान समूह समर्थन, शिक्षित और उन्हें अपने उत्पादों की मार्केटिंग करने में मदद करते हैं।

“वहां न जाए जहाँ रास्ता ले जा सकता है।” “बल्कि वहाँ जाओ जहाँ कोई रास्ता नहीं है और एक निशान छोड़ दो।”

हम सभी के सपने होते हैं, लेकिन कई उन्हें पूरा नहीं कर पाते। श्रीमती ज्योति गंभीर जी डिलीशियस बाइट्स की गर्वित ओनर हैं और C.F.E.I के साथ साझेदारी के तहत महाराष्ट्र में अपना पहला आउटलेट खोलकर अपने आजीवन सपने की खोज को पूरा करने में कामयाब रही है। वह इस साल अपने कारोबार का ओर विस्तार करने की योजना बना रही है और अपने इलाके लुधियाना में एक और आउटलेट खोल रही है।
यह सब एक होम बेकरी, बेकिंग केक और कुकीज और ऑर्डर देने के साथ शुरू हुआ। उसने धीरे-धीरे लोगों की विभिन्न प्रकार की पसंद की चीजों के बारे में जाना और शाकाहारी और ग्लूटन मुक्त उत्पादों को बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने प्रति दिन 15 यूनिट बेचने से लेकर प्रतिदिन 1,000 यूनिट बेचे और अपना खुद का ब्रांड लॉन्च किया।
जैसा वे कहते हैं, “सपने तब तक काम नहीं करते जब तक आप नहीं करते।”
2021 में, भारत सरकार ने दुबई एक्सपो इंडिया पवेलियन में अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने के लिए पंजाब की एक प्रिजर्वेटिव और केमिकल-फ्री बेकरी, डिलीशियस बाइट्स,को चुना।

भविष्य की योजना

वह अपने व्यवसाय को इस हद तक बढ़ाना चाहती है कि वह एक छत के नीचे अपने उत्पादों का पैकेज और मर्केटिंग करने में सक्षम हो।

संदेश

हर महिला को अपने सपनों को पूरा करना चाहिए अगर व्यक्ति पूरी तरह से दृढ़ संकल्प और जुनूनी है तो उन लक्ष्यों को पूरा करने की कोई सीमा नहीं है।

रमन सलारिया

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एक ऐसा किसान जो सफल इंजीनियर के साथ-साथ सफल किसान बना

खेती का क्षेत्र बहुत ही विशाल है, हजारों तरह की फसलें उगाई जा सकती है, पर जरुरत होती है सही तरीके की और दृढ़ निश्चय की, क्योंकि सफल हुए किसानों का मानना है कि सफलता भी उनको ही मिलती है जिनके इरादे मजबूत होते हैं।

ये कहानी एक ऐसे किसान की है जिसकी पहचान और शान ऐसे ही फल के कारण बनी। जिस फल के बारे में उन्होंने कभी भी नहीं सुना था। इस किसान का नाम है “रमन सलारिया” जो कि जिला पठानकोट के गांव जंगल का निवासी है। रमन सलारिया पिछले 15 सालों से दिल्ली मेट्रो स्टेशन में सिविल इंजीनयर के तौर 10 लाख रुपए सलाना आमदन देने वाली आराम से बैठकर खाने वाली नौकरी कर रहे थे। लेकिन उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव आया कि आज वह नौकरी छोड़ कर खेती कर रहे हैं। खेती भी उस फसल की कर रहे हैं जो केवल उन्होंने मार्किट और पार्टियों में देखा था।

वह फल मेरी आँखों के आगे आता रहा और यहां तक कि मुझे फल का नाम भी पता नहीं था- रमन सलारिया

एक दिन जब वे घर वापिस आए तो उस फल ने उन्हें इतना प्रभावित किया और दिमाग में आया कि इस फल के बारे में पता लगाना ही है। फिर यहां वहां से पता किया तो पता चला कि इस फल को “ड्रैगन फ्रूट” कहते हैं और अमरीका में इस फल की काश्त की जाती है और हमारे देश में बाहर देशों से इसके पौधे आते हैं।

फिर भी उनका मन शांत न हुआ और उन्होंने ओर जानकारी के लिए रिसर्च करनी शुरू कर दी। फिर भी कुछ खास जानकारी प्राप्त न हुई कि पौधे बाहर देशों से कहाँ आते हैं, कहाँ तैयार किये जाते हैं और एक पौधा कितने रुपए का है।

एक दिन वे अपने दोस्त के साथ बात कर रहे थे और बातें करते-करते वे अपने मित्र को ड्रैगन फ्रूट के बारे में बताने लगे, एक ड्रैगन फ्रूट नाम का फल है, जिस के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा,तो उनके दोस्त ने बोला अपने सही समय पर बात की है, जो पहले से ही इस फल की जानकारी लेने के लिए रिसर्च कर रहे थे।

उनके मित्र विजय शर्मा जो पूसा में विज्ञानी है और बागवानी के ऊपर रिसर्च करते हैं। फिर उन्होंने मिलकर रिसर्च करनी शुरू कर दी। रिसर्च करने के दौरान दोनों को पता चला कि इसकी खेती गुजरात के ब्रोच शहर में होती है और वहां फार्म भी बने हुए हैं।

हम दोनों गुजरात चले गए और कई फार्म पर जाकर देखा और समझा- रमन सलारिया

सब कुछ देखने और समझने के बाद रमन सलारिया ने 1000 पौधे मंगवा लिए। जब कि उनके पूर्वज शुरू से ही परंपरागत खेती ही कर रहे हैं पर रमन जी ने कुछ अलग करने के बारे में सोचा। पौधे मंगवाने के बाद उन्होंने अपने गांव जंगल में 4 कनाल जगह पर ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगा दिए और नौकरी छोड़ दी और खेती में उन्होंने हमेशा जैविक खेती को ही महत्त्व दिया।

सबसे मुश्किल समय तब था जब गांव वालों के लिए मैं एक मज़ाक बन गया था- रमन सलारिया

2019 में वे स्थायी रूप से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने लगे। जब उन्होंने पौधे लगाए तो गांव वालों ने उनका बहुत मजाक बनाया था कि नौकरी छोड़ कर किस काम को अपनाने लगा और जो कभी मिट्टी के नजदीक भी नहीं गया वे आज मिट्टी में मिट्टी हो रहा है, पर रमन सलारिया ने लोगों की परवाह किए बिना खेती करते रहें।

ड्रैगन फ्रूट का समय फरवरी से मार्च के बीच होता है और पूरे एक साल बाद फल लगने शुरू हो जाते हैं। आजकल भारत में इसकी मांग इतनी बढ़ चुकी है कि हर कोई इसे अपने क्षेत्र की पहचान बनाना चाहता है।

जब फल पक कर तैयार हुआ, जिनके लिए मजाक बना था आज वे तारीफ़ करते नहीं थकते- रमन सलारिया

फल पकने के बाद फल की मांग इतनी बढ़ गई कि फल बाजार में जाने के लिए बचा ही नहीं। उन्होंने इस फल के बारे में सिर्फ अपने मित्रों और रिश्तेदारों को बताया था, पर फल की मांग को देखते हुए उनकी मेहनत का मूल्य पड़ गया।

मैं बहुत खुश हुआ, मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि बिना बाजार गए फल का मूल्य पड़ गया- रमन सलारिया

उस समय उनका फल 200 से 500 तक बिक रहा था हालांकि ड्रैगन फ्रूट की फसल पूरी तरह तैयार होने को 3 साल का समय लग जाता है। वह इसके साथ हल्दी की खेती भी कर रहें और पपीते के पौधे भी लगाए हैं।

आज वह ड्रैगन फ्रूट की खेती कर बहुत मुनाफा कमा रहे हैं और कामयाब भी हो रहे हैं। खास बात यह है कि उनके गांव जंगल को जहां पहले शहीद कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया जी के नाम से जाना जाता था, जिन्होंने देश के लिए 1961 की जंग में शहीदी प्राप्त की थी और धर्मवीर चक्क्र से उन्हें सन्मानित किया गया था। वहां अब रमन सलारिया जी के कारण गांव को जाना जाता है जिन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती कर गांव का नाम रोशन किया।

यदि इंसान को अपने आप पर भरोसा है तो वह जिंदगी में कुछ भी हासिल कर सकता है

भविष्य की योजना

वह ड्रैगन फ्रूट की खेती और मार्केटिंग बड़े स्तर पर करना चाहते हैं। वह साथ साथ हल्दी की खेती की तरफ भी ध्यान दे रहे हैं ताकि हल्दी की प्रोसेसिंग भी की जाए। इसके साथ ही वह अपने ब्रांड का नाम रजिस्टर करवाना चाहते हैं, जिससे मार्केटिंग में ओर बड़े स्तर पर पहचान बन सके। बाकि बात यह है कि खेती लाभदायक ही होती है यदि सही तरीके से की जाए।

संदेश

यदि कोई ड्रैगन फ्रूट की खेती करना चाहता है तो सबसे पहले उसे अच्छी तरह से रिसर्च करनी चाहिए और अपनी इलाके और मार्केटिंग के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद ही शुरू करनी चाहिए, क्योंकि अधूरी जानकारी लेकर शुरू कर तो लिया जाता जाता है पर वे सफल न होने पर दुःख भी होता, क्योंकि शुरुआत में सफलता न मिले तो आगे काम करनी की इच्छा नहीं रहती।

नवजोत सिंह शेरगिल

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विदेश से वापिस आकर पंजाब में स्ट्रॉबेरी की खेती के साथ नाम बनाने वाला नौजवान किसान

जिंदगी में हर एक इंसान किसी भी क्षेत्र में प्रगति और कुछ अलग करने के बारे में सोचता है और यह विविधता इंसान को धरती से उठाकर आसमान तक ले जाती है। यदि बात करें विविधता की तो यह बात खेती के क्षेत्र में भी लागू होती है क्योंकि कामयाब हुए किसान की सफलता का सेहरा पारंपरिक तरीके का प्रयोग न कर कुछ नया करने की भावना ही रही है।

यह कहानी एक ऐसे ही नौजवान की है, जिसने पारंपरिक खेती को न अपना कर ऐसी खेती करने के बारे में सोचा जिसके बारे में बहुत कम किसानों को जानकारी थी। इस नौजवान किसान का नाम है नवजोत सिंह शेरगिल जो पटियाला ज़िले के गांव मजाल खुर्द का निवासी है, नवजोत सिंह द्वारा अपनाई गई खेती विविधता ऐसी मिसाल बनकर किसानों के सामने आई कि सभी के मनों में एक अलग अस्तित्व बन गया।

मेरा हमेशा से सपना था जब कभी भी खेती के क्षेत्र जाऊ तो कुछ ऐसा करूं कि लोग मुझे मेरे नाम से नहीं बल्कि मेरे काम से जानें, इसलिए मैंने कुछ नया करने का निर्णय किया -नवजोत सिंह शेरगिल

नवजोत सिंह शेरगिल का जन्म और पालन-पोषण UK में हुआ है, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उन्हें अपने अंदर एक कमी महसूस होने लगी, जोकि उसकी मातृभूमि की मिट्टी की खुशबू के साथ थी। इस कमी को पूरा करने के लिए, वह पंजाब, भारत लौट आया। फिर उन्होंने आकर पहले MBA की पढ़ाई पूरी की और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद निर्णय किया कि कृषि को बड़े पैमाने पर किया जाए, उन्होंने कृषि से संबंधित व्यवसाय शुरू करने के उद्देश्य से ईमू फार्मिंग की खेती करनी शुरू कर दी, लेकिन पंजाब में ईमू फार्मिंग का मंडीकरण न होने के कारण, वह इस पेशे में सफल नहीं हुए, असफल होने पर वह निराश भी हुए, लेकिन नवजोत सिंह शेरगिल ने हार नहीं मानी, इस समय नवजोत सिंह शेरगिल को उनके भाई गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने प्रोत्साहित किया, जो एक प्रगतिशील किसान हैं।जिन्हें पंजाब में फूलों के शहनशाह के नाम के साथ जाना जाता है, जिन्होंने पंजाब में फूलों की खेती कर खेतीबाड़ी में क्रांति लेकर आए थे। जो कोई भी सोच नहीं सकता था उन्होंने वह साबित कर दिया था।

नवजोत सिंह शेरगिल ने अपने भाई के सुझावों का पालन करते हुए स्ट्रॉबेरी की खेती करने के बारे में सोचा, फिर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया। सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने के बाद, उन्होंने फिर वास्तविक रूप से करने के बारे में सोचा, क्योंकि खेती किसी भी तरह की हो, उसे खुद किए बिना अनुभव नहीं होता।

मैं वास्तविक देखने और अधिक जानकारी लेने के लिए पुणे, महाराष्ट्र गया, वहां जाकर मैंने बहुत से फार्म पर गया और बहुत से किसानों को मिलकर आया -नवजोत सिंह शेरगिल

वहाँ उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में बहुत कुछ सीखा, जैसे स्ट्रॉबेरी के विकास और फलने के लिए आवश्यक तापमान, एक पौधे से दूसरे पौधे कैसे उगाए जाते हैं, और इसका मुख्य पौधा कौन-सा है और यह भारत में कहाँ से आता है।

हमारे भारत में, मदर प्लांट कैलिफ़ोर्निया से आता है और फिर उस पौधे से दूसरे पौधे तैयार किए जाते हैं -नवजोत सिंह शेरगिल

पुणे से आकर, उन्होंने पंजाब में स्ट्रॉबेरी के मुख्य पहलुओं पर पूरी तरह से जाँच पड़ताल की। जांच के बाद, वे फिर से पुणे से 14,000 से 15,000 पौधे लाए और आधे एकड़ में लगाए थे, जिसकी कुल लागत 2 से 3 लाख रुपये आई थी, उन्हें यह काम करने में ख़ुशी तो थी पर डर इस बात का था कि फिर मंडीकरण की समस्या न आ जाए, लेकिन जब फल पक कर तैयार हुआ और मंडियों में ले जाया गया, तो वहां फलों की मांग को देखकर और बहुत अधिक मात्रा में फल की बिक्री हुई और जो उनके लिए एक समस्या की तरह थी वह अब ख़ुशी में तब्दील हो गई।

मैं बहुत खुश हुआ कि मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि जो लोग मुझे स्ट्रॉबेरी की खेती करने से रोकते थे, आज वे मेरी तारीफ़ करते नहीं थकते, क्योंकि इस पेशे के लिए पैसा और समय दोनों चाहिए -नवजोत सिंह शेरगिल

जब स्ट्रॉबेरी की खेती सफलतापूर्वक की जा रही थी, तो नवजोत सिंह शेरगिल ने देखा कि जब फल पकते थे, तो उनमें से कुछ छोटे रह जाते थे, जिससे बाजार में फलों की कीमत बहुत कम हो जाती थी। इसलिए इसका समाधान करना बहुत महत्वपूर्ण था।

एक कहावत है, जब कोई व्यक्ति गिर कर उठता है, तो वह ऊंची मंजिलों पर सफलता प्राप्त करता है।

बाद में उन्होंने सोचा कि क्यों न इसकी प्रोसेसिंग की जाए, फिर उन्होंने छोटे फलों की प्रोसेसिंग करनी शुरू की।

प्रोसेसिंग से पहले मैंने कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से ट्रेनिंग लेकर फिर मैंने 2 से 3 उत्पाद बनाना शुरू किया -नवजोत सिंह शेरगिल

जब फल पक कर तैयार हो जाते थे तो उन्हें तोड़ने के लिए मजदूर की जरुरत होती थी, फिर उन्होंने गांव के लड़के और लड़कियों को खेतों में फल की तुड़ाई और छांट छंटाई के लिए रखा। जिससे उनके गांव के लड़के और लड़कियों को रोजगार मिल गया। जिसमें वे छोटे फलों को अलग करते हैं और उन्हें साफ करते हैं और फिर फलों की प्रोसेसिंग करते हैं।फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न उत्पाद बनाने के लिए एक छोटे पैमाने की मशीन स्थापित की जाए, मशीन को स्थापित करने के बाद उन्होंने स्ट्रॉबेरी उत्पाद बनाना शुरू किया। उनके ब्रांड का नाम Coco-Orchard रखा गया।

वे जो उत्पाद बनाते हैं, वे इस प्रकार हैं-

  • स्ट्रॉबेरी क्रश
  • स्ट्रॉबेरी जैम
  • स्ट्रॉबेरी की बर्फी।

वे प्रोसेसिंग से लेकर पैकिंग तक का काम स्वयं देखते हैं। उन्होंने पैकिंग के लिए कांच की बोतलों में जैम और क्रश पैक किए हैं और जैसा कि स्ट्रॉबेरी पंजाब के बाहर किसी अन्य राज्य में जाती हैं वे उसे गत्ते के डिब्बे में पैक करते हैं, जो 2 किलो की ट्रे है उनका रेट कम से कम 500 रुपये से 600 रुपये है। स्ट्रॉबेरी के 2 किलो के पैक में 250-250 ग्राम पनट बने होते हैं।

मैंने फिर से किसान मेलों में जाना शुरू किया और स्टाल लगाना शुरू कर दिया -नवजोत सिंह शेरगिल

किसान मेलों में स्टाल लगाने के साथ, उनकी मार्केटिंग में इतनी अच्छी तरह से पहचान हो गई कि वे आगामी मेलों में उनका इंतजार करने लगे। मेलों के दौरान, उन्होंने कृषि विभाग के एक डॉक्टर से मुलाकात की, जो उनके लिए बहुत कीमती क्षण था।जब कृषि विभाग के एक डॉक्टर ने उनसे जैम के बारे में पूछा कि लोगों को तो स्ट्रॉबेरी के बारे में अधिक जानकारी नहीं हैं, पर आपने तो इसका जैम भी तैयार कर दिया है। उनका फेसबुक पर Coco-Orchard नाम से एक पेज भी है, जहां वे सोशल मीडिया के जरिए लोगों को स्ट्रॉबेरी और स्ट्रॉबेरी उत्पादों के बारे में जानकारी देते हैं।

आज नवजोत सिंह शेरगिल एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां वे मार्केटिंग में इतने मशहूर हो गए हैं कि उनकी स्ट्रॉबेरी और उनके उत्पादों की बिक्री हर दिन इतनी बढ़ गई है कि उन्हें अपने उत्पादों या स्ट्रॉबेरी को के लिए मार्केटिंग में जाने की जरूरत नहीं पड़ती।

भविष्य की योजना

वे अपने स्ट्रॉबेरी व्यवसाय को बड़े पैमाने पर लेकर जाना चाहते हैं और 4 एकड़ में खेती करना चाहते हैं। वे दुबई में मध्य पूर्व में अपने उत्पाद को पहुंचाने की सोच रहे हैं, क्योंकि स्ट्रॉबेरी की मांग विदेशों में अधिक हैं।

संदेश

“सभी किसान जो स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं, उन्हें पहले स्ट्रॉबेरी के बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए और फिर इसकी खेती करनी चाहिए, क्योंकि स्ट्रॉबेरी की खेती निस्संदेह महंगी है और इसलिए समय लगता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक ऐसी फसल है जिसे बिना देखभाल के नहीं उगाया जा सकता है।”

परमजीत सिंह

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एक ऐसे किसान जिन्होंने कम आयु में ही ऊँची मंज़िलों पर जीत हासिल की

प्रकृति के अनुसार जीना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। आज हम जो कुछ भी कर रहे हैं, खा रहे हैं या पी रहे हैं वह सभी प्रकृति की देन है। इसको ऐसे ही बनाई रखना हमारे ही ऊपर निर्भर करता है। यदि प्रकृति के अनुसार चलते है तो कभी भी बीमार नहीं होंगें।

ऐसी ही मिसाल है एक किसान परमजीत सिंह, जो लुधियाना के नज़दीक के गाँव कटहारी में रहते हैं, जो प्रकृति की तरफ से मिले उपहार को संभाल कर रख रहे हैं और बाखूबी निभा भी रहे हैं। “कहते हैं कि प्रकृति के साथ प्यार होना हर किसी के लिए संभव नहीं है, यदि प्रकृति आपको कुछ प्रदान कर रही है तो उसको वैसे ही प्रयोग करें जैसे प्रकृति चाहती है।

प्रकृति के साथ उनका इतना स्नेह बढ़ गया कि उन्होंने नौकरी छोड़कर प्रकृति की तरफ से मिली दात को समझा और उसका सही तरीके से इस्तेमाल करते हुए, बहुत से लोगों का बी.पी, शूगर आदि जैसी बहुत सी बीमारियों को दूर किया।

जब मनुष्य का मन एक काम करके खुश नहीं होता तो मनुष्य अपने काम को हास्यपूर्ण या फिर मनोरंजन तरीके के साथ करना शुरू कर देता है, ताकि उसको ख़ुशी हासिल हो। इस बात को ध्यान में रखते हुए परमजीत सिंह ने बहुत से कोर्स करने के बाद देसी बीजों का काम करना शुरू किया। देसी बीज जैसे रागी, कंगनी का काम करने से उनकी जिंदगी में इतने बदलाव आए कि आज वह सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।

जब में मिलट रिसर्च सेंटर में काम कर रहा था तो मुझे वहां रागी, कंगनी के देसी बीजों के बारे में पता चला और मैंने इनके ऊपर रिसर्च करनी शुरू कर दी -परमजीत सिंह

पारंभिक जानकारी मिलने के बाद, उन्होंने तजुर्बे के तौर पर सबसे पहले खेतों में रागी, कंगनी के बीज लगाए थे। यह काम उनके दिल को इतना छुआ कि उन्होंने देसी बीजों की तरफ ही अपना ध्यान केंद्रित किया। फिर देसी बीजों के काम के ज़रिये वह अपना रोज़गार बढ़ाने लगे और अपने स्तर पर काम करना शुरू कर दिया।

जैसे-जैसे काम बढ़ता गया, हमने मेलों में जाना शुरू कर दिया, जिसके कारण हमें अधिक लोग जानने लगे -परमजीत सिंह

इस काम में उनका साथ उनके मित्र दे रहे हैं जो एक ग्रुप बनाकर काम करते हैं और मार्केटिंग करने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं। उनके गाँव की तरफ एक रोड आते राड़ा साहिब गुरुद्वारे के पास उनकी 3 एकड़ ज़मीन है, जहां वह साथ-साथ सब्जियों की पनीरी की तरफ भी हाथ बढ़ा रहे हैं। वहां ही उनका पन्नू नेचुरल फार्म नाम का एक फार्म भी है, जहां किसान उनके पास देसी बीज के साथ-साथ सब्जियों की पनीरी भी लेकर जाते हैं।

उनके सामने सबसे बड़ी मुश्किल तब पैदा हुई जब उनको देसी बीज और जैविक खेती के बारे में लोगों को समझाना पड़ता था, उनमें कुछ लोग ऐसे होते थे जो गांव वाले थे, वह कहते थे कि “तुम आए हो हमें समझाने, हम इतने सालों से खेती कर रहे हैं क्या हमको पता नहीं”। इतनी फटकार और मुश्किलों के बावजूद भी वह पीछे नहीं हुए बल्कि अपने काम को आगे बढ़ाते गए और मार्कीटिंग करते रहे।

जब उन्होंने काम शुरू किया था तब वे बीज पंजाब के बाहर से लेकर आए थे। जिसमे वह रागी का एक पौधा लेकर आए थे और आज वही पौधा एकड़ के हिसाब से लगा हुआ है. वे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद गए थे और ट्रेनिंग लेने के बाद वापिस पंजाब आकर बीजों पर काम करना शुरू कर दिया। बीजो पर रिसर्च करने के बाद फिर उन्होंने नए बीज तैयार किये और उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। वह उत्पाद बनाने से लेकर पैकिंग तक का पूरा काम स्वंय ही देखते हैं। जहां वह उत्पाद बनाने का पूरा काम करते हैं वहां ही उनके एक मित्र ने अपनी मशीन लगाई हुई है। उन्होंने अपने डिज़ाइन भी तैयार किए हुए है।

हमने जब उप्ताद बनाने शुरू किए तो सभी ने मिलकर एक ग्रुप बना लिया और ATMA के ज़रिये उसको रजिस्टर करवा लिया -परमजीत सिंह

फिर जब उन्होंने उत्पाद बनाने शुरू किए, जिसमें ग्राहकों की मांग के अनुसार सबसे ज्यादा बिकने वाले उत्पाद जैसे बाजरे के बिस्कुट, बाजरे का दलिया और बाजरे का आटा आदि बनाए जाने लगे।

उनकी तरफ से बनाये जाने वाले उत्पाद-

  • बाजरे का आटा
  • बाजरे के बिस्कुट
  • बाजरे का दलिया
  • रागी के बिस्कुट
  • हरी कंगनी के बिस्कुट
  • चुकंदर का पाउडर
  • देसी शक़्कर
  • देसी गुड़
  • सुहांजना का पाउडर
  • देसी गेहूं की सेवइयां आदि।

जहां वह आज देसी बीजों के बनाये उत्पाद बेचने और खेतों में बीज से लेकर फसल तक की देखभाल स्वंय ही कर रहे हैं क्योंकि वह कहते हैं “अपने हाथ से किए हुए काम से जितना सुकून मिलता है वह अन्य किसी पर निर्भर होकर नहीं मिलता”। यदि वह चाहते तो घर बैठकर इसकी मार्केटिंग कर सकते हैं, बेशक उनकी आमदन भी बहुत हो जाती है पर वह स्वंय हाथ से काम करके सुकून से जिंदगी बिताने में विश्वास रखते हैं।

परमजीत सिंह जी आज सबके लिए एक ऐसे व्यक्तित्व बन चुके हैं, आज कल लोग उनके पास देसी बीज के बारे में पूरी जानकारी लेने आते हैं और वह लोगों को देसी बीज के साथ-साथ जैविक खेती की तरफ भी ज़ोर दे रहे हैं। आज वह ऐसे मुकाम पर पहुँच चुके हैं जहां पर लोग उनको उनके नाम से नहीं बल्कि काम से जानते हैं।

परमजीत सिंह जी के काम और मेहनत के फलस्वरूप उनको यूनिवर्सिटी की तरफ से यंग फार्मर, बढ़िया सिखलाई देने के तौर पर, ज़िला स्तर पुरस्कार और अन्य यूनिवर्सिटी की तरफ से कई पुरस्कार से निवाजा गया है। उनको बहुत सी प्रदर्शनियों में हिस्सा लेने के अवसर मिलते रहते हैं और जिनमें से सबसे प्रचलित, दक्षिण भारत में सन्मानित किया गया, क्योंकि पूरे पंजाब में परमजीत सिंह जी ने ही देसी बीजों पर ही काम करना शुरू किया और देसी बीजों की जानकारी दुनिया के सामने लेकर आए।

मैंने कभी भी रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया, केवल कुदरती खाद जो अपने आप फसल को धरती में से मिल जाती है, वह सोने पर सुहागा का काम करती है -परमजीत सिंह

उनकी इस कड़ी मेहनत ने यह साबित किया है कि प्रकृति की तरफ से मिली चीज़ को कभी व्यर्थ न जाने दें, बल्कि उस को संभालकर रखें। यदि आप बिना दवाई वाला खाना खाते है तो कभी दवा खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि प्रकृति बिना किसी मूल्य के प्रदान करती है। जो भी लोग उनसे सामान लेकर जाते हैं या फिर वह उनके द्वारा बनाये गए सामान को दवा के रूप में खाते हैं तो कई लोगों की बी पी, शुगर जैसी बीमारियों से छुटकारा मिल चुका है।

भविष्य की योजना

परमजीत सिंह जी भविष्य में अपने रोज़गार को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं और उत्पाद तैयार करने वाली प्रोसेसिंग मशीनरी लगाना चाहते हैं। जितना हो सके वह लोगों को जैविक खेती के बारे जागरूक करवाना चाहते हैं। ताकि प्रकृति के साथ रिश्ता भी जुड़ जाए और सेहत की तरफ से भी तंदरुस्त हो।

संदेश

खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए हमें जैविक खेती की तरफ ध्यान देने की जरूरत है, पर उन्हें जैविक खेती की शुरुआत छोटे स्तर से करनी चाहिए। आज कल के नौजवानों को जैविक खेती के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि रासायनिक मुक्त खेती करके मनुष्य की सेहत के साथ होने वाले नुक्सान से बचाव किया जा सके।

संदीप सिंह और राजप्रीत सिंह

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किसानों के लिए बन कर आये नई मिसाल, बकरी पालन के व्यवसाय को इंटरनेशनल स्तर पर लेकर जाने वाले दो दोस्तों की कहानी

बकरी पालन का व्यवसाय बहुत लाभकारी व्यवसाय है क्योंकि इसमें बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है, यदि बात करें पशु—पालन के व्यवसाय की, तो ज्यादातर पशु पालन डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय से संबंधित हैं। पर आज कल बकरी पालन का व्यवसाय, पशु पालन में सबसे सफल व्यवसाय माना जाता है और बहुत सारे नौजवान भी इस व्यवसाय में सफलता हासिल कर रहे हैं। यह कहानी है ऐसे ही दो नौजवानों की, जिन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बकरी पालन का व्यवसाय शुरू किया और सफलता हासिल करने के साथ साथ अन्य किसानों को भी इससे संबंधित ट्रेनिंग दे रहे हैं।

हरियाणा के जिला सिरसा के गांव तारूआणा के रहने वाले संदीप सिंह और राजप्रीत सिंह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद नौकरी करने की बजाय अपना कोई कारोबार करना चाहते थे। राजप्रीत ने एम.एस.सी. एग्रीकलचर की पढ़ाई की हुई थी, इसलिए राजप्रीत के सुझाव पर दोनों दोस्तों ने खेती या पशु पालन का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने पहले पॉलीहाउस लगाने के बारे में सोचा पर किसी कारण इसमें वे सफल नहीं हो पाए।

इसके बाद उन्होंने पशु पालन का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने पशु पालन के माहिरों से मुलाकात की, तो माहिरों ने उन्हें बकरी पालन का व्यवसाय अपनाने की सलाह दी।

माहिरों की सलाह से उन्होंने बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करने से पहले ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग लेने के लिए वे मथुरा गए और 15 दिनों की ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने तारूआणा गांव में 2 कनाल जगह में SR COMMERCIAL बकरी फार्म शुरू किया।

आज कल यह धारणा आम है कि यदि कोई व्यवसाय शुरू करना है तो बैंक से लोन लेकर आसानी से काम शुरू किया जा सकता है पर संदीप और राजप्रीत ने बिना किसी वित्तीय सहायता के अपने पारिवारिक सदस्यों की मदद से वर्ष 2017 में बकरी फार्म शुरू किया।

जैसे कहा ही जाता है कि किसी की सलाह से रास्ते तो मिल ही जाते हैं पर मंज़िल पाने के लिए मेहनत खुद ही करनी पड़ती है।

इसलिए इस व्यवसाय में सफलता हासिल करने के लिए उन दोनों ने भी मेहनत करनी शुरू कर दी। उन्होंने समझदारी से छोटे स्तर पर सिर्फ 10 बकरियों के साथ बकरी फार्म शुरू किया था, ये सभी बकरियां बीटल नस्ल की थी। इन बकरियों को वे पंजाब के लुधियाना,रायकोट,मोगा आदि की मंडियों से लेकर आए थे। धीरे धीरे उन्हें बकरी पालन में आने वाली मुश्किलों के बारे में पता लगा। फिर उन्होंने इन मुश्किलों का हल ढूंढना शुरू कर दिया।

बकरी पालकों को जो सबसे अधिक मुश्किल आती है, वह है बकरी की नस्ल की पहचान करने की। इसलिए हमेशा ही बकरियों की पहचान करने के लिए जानकारी लेनी चाहिए। — संदीप सिंह

अपने दृढ़ संकल्प और परिवारिक सदस्यों से मिले सहयोग के कारण उन्होंने बकरी पालन के व्यवसाय को लाभदायक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संदीप और राजप्रीत ने अपने फार्म में बकरियों की नस्ल सुधार पर काम करना शुरू कर दिया। अपने मेहनत के कारण, आज 2 वर्षों के अंदर अंदर ही उन्होंने फार्म में बकरियों की गिनती 10 से 150 तक पहुंच गई है।

बकरी पालन के व्यवसाय में कभी भी लेबर पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यदि इस व्यवसाय में सफलता हासिल करनी है तो हमें खुद ही मेहनत करनी पड़ती है। — राजप्रीत सिंह

बकरी पालन में आने वाली मुश्किलों को जानने के बाद उन्होंने अन्य बकरी पालकों की मदद करने के लिए बकरी पालन की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी ताकि बकरी पालकों को इस व्यवसाय से अधिक मुनाफा हो सके। संदीप और राजप्रीत अपने फार्म पर प्रैक्टीकल ट्रेनिंग देते हैं जिससे शिक्षार्थियों को अधिक जानकारी मिलती है और वे इन तकनीकों का प्रयोग करके बकरी पालन के व्यवसाय से लाभ कमा रहे हैं।

बकरी पालन की ट्रेनिंग देने के साथ साथ SR Commercial बकरी फार्म से पंजाब और हरियाणा ही नहीं, बल्कि अलग अलग राज्यों के बकरी पालक बकरियां लेने के लिए आते हैं।

भविष्य की योजना

आने वाले समय में संदीप और राजप्रीत अपना बकरी पालन ट्रेनिंग स्कूल शुरू करना चाहते हैं और बकरी पालन के व्यवसाय के साथ साथ खेती के क्षेत्र में भी आगे आना चाहते हैं। इसके अलावा वे बकरी की फीड के उत्पाद बनाकर इनकी मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश
“बकरी पालकों को छोटे स्तर से बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहिए यदि किसी को भी बकरी पालन में कोई समस्या आती है तो वे कभी भी हमारे फार्म पर आकर जानकारी और सलाह ले सकते हैं।”

बैजुलाल कुमार

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एक ऐसे नौजवान किसान की कहानी, जिसने अपने गांव के बाकी किसानों से किया कुछ अलग और कर दिया सभी को हैरान

पुराने समय में ज्यादातर किसानों की सोच यही थी कि सिर्फ वही खेती करनी चाहिए जो हमारे बुज़ुर्ग करते थे। पर आज—कल की नौजवान पीढ़ी खेती में भी कुछ नया करने की इच्छा रखती है, क्योंकि यदि एक नौजवान किसान अपनी सोच बदलेगा तो ही अन्य किसान कुछ नया करने के बारे में सोचेंगे।

यह कहानी भी एक ऐसे किसान की है जो अपने पिता के साथ रवायती खेती करने के अलावा कुछ अलग कर रहा है। बिहार के युवा किसान बैजुलाल कुमार जिनके पिता अपने 3—4 एकड़ ज़मीन पर गेहूं, धान आदि की खेती करते थे और डेयरी उद्देश्य के लिए उन्होंने 2 गायें और एक भैंस रखी हुई थी।

B.Sc. Physics की पढ़ाई के बाद बैजुलाल ने घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए अपने पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। पर बैजुलाल के मन में हमेशा कुछ अलग करने की इच्छा थी। इसलिए वे अपने खाली समय में यू—ट्यूब पर खेती से संबंधित वीडियो देखते रहते थे। एक दिन उन्होंने मशरूम फार्मिंग की वीडियो देखी और इसमें उनकी दिलचस्पी पैदा हुई।

मशरूम की खेती के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने इंटरनेट के ज़रिए मशरूम उत्पादकों से संपर्क किया, जिससे उन्हें मशरूम की खेती करने के लिए उत्साह मिला। पर इस काम के लिए कोई भी उनसे सहमत नहीं था, क्योंकि गांव में किसी ने भी मशरूम की खेती नहीं की थी। पर बेजूलाल ने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया था कि सभी को ज़रूर कुछ अलग करके दिखाएंगे।

मेरे मशरूम की खेती शुरू करने के फैसले को किसी ने भी स्वीकार नहीं किया। वे सब मुझे कह रहे थे कि जिस काम के बारे में समझ ना हो, वह काम नहीं करना चाहिए। — बैजुलाल कुमार

मशरूम की खेती शुरू करने के लिए वे PUSA यूनिवर्सिटी से 5 किलो स्पॉन लेकर आए। इसके लिए उन्होंने पराली को उबालना शुरू कर दिया। बैजुलाल को इस तरह करते देख गांव वालों ने उनका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया। पर उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और काम को और मेहनत एवं लग्न से करना शुरू कर दिया।

मेरे इस काम को देखकर सभी गांव वाले मुझे पागल बुलाने लग गए और इस काम को छोड़ने के लिए कहने लगे पर मैं गांव वालों से कुछ अलग करने के अपने फैसले पर अटल था। — बैजुलाल कुमार

मशरूम उगाने के लिए जो भी जानकारी उन्हें चाहिए होती थी वह या तो इंटरनेट पर देखते या फिर माहिरों की सलाह लेते। समय बीतने पर मशरूम तैयार हो गए और उनके रिश्तेदारों को इनका स्वाद बहुत अच्छा लगा। उन्होंने बैजुलाल को उसकी इस कामयाबी के लिए शाबाशी भी दी एवं और ज्यादा मेहनत करने के लिए कहा।

फिर बैजुलाल तैयार की मशरूम अपनी लोकल मार्केट में बेचने के लिए गए, जहां ग्राहकों को भी मशरूम बहुत पसंद आई तथा वे और मशरूम की मांग करने लगे। इससे उत्साहित होकर बैजुलाल ने बड़े स्तर पर मशरूम की खेती करनी शुरू कर दी। अब वे मिल्की और बटन मशरूम उगाते हैं और इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

सफल होने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष का परिणाम ही सफलता है। इसी तरह, बैजुलाल जी ने संघर्ष के बाद मिली सफलता के कारण, उन्होंने “चंपारण द मशरूम एक्सपर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी” शुरू की।

अब बैजुलाल इस काम में निपुण हो चुके हैं और वे अन्य किसान भाइयों और महिलाओं को मशरुम उत्पादन के साथ-साथ मशरुम की मार्केटिंग की ट्रेनिंग भी देते हैं। उनसे ट्रेनिंग लेने वाले किसानों को मशरूम की खेती शुरू करने के लिए 2 किलो स्पान, PPC बैग, फोर्मालिन, बेवास्टिन तथा स्प्रे मशीन भी देते है।

इसके इलावा मशरूम उत्पादकों के जो फ्रेश मशरूम नहीं बच जाते है, बैजुलाल उनको खरीदकर, उन्हें ड्राई कर के उनके उत्पाद तैयार करते है, जैसे कि सूप पाउडर, मशरूम आचार, मशरूम बिस्कुट, मशरूम पेड़ा इत्यादि।

जो गांव वाले मुझे पागल कहते थे, अब वे मेरे इस काम को देखकर मुझे शाबाशी देते हैं एवं और बढ़िया काम करने के लिए उत्साहित करते हैं। — बैजुलाल कुमार
भविष्य की योजना

बैजुलाल भविष्य में अपने एक किसान ग्रुप के द्वारा मशरूम से उत्पाद बनाकर, उन्हें बड़े स्तर पर बेचना चाहते हैं।

संदेश
“पराली को खेतों में जलाने से अच्छा है कि किसान पराली का इस्तेमाल मशरूम उत्पादन या फिर पशुओं के चारे के रूप में करें। इसके अलावा रवायती खेती के साथ साथ यदि कोई सहायक व्यवसाय शुरू किया जाए तो किसान इससे भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।”

बलविंदर कौर

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एक ऐसी गृहणी की कहानी, जो अपने हुनर का बाखूबी इस्तेमाल कर रही है

हमारे समाज की शुरू से ही यही सोच रही है कि शादी के बाद महिला को बस अपनी घरेलू ज़िंदगी की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए। पर एक गृहणी भी उस समय अपने हुनर का बाखूबी इस्तेमाल कर सकती है जब उसके परिवार को उसकी ज़रूरत हो।

ऐसी ही एक गृहणी है पंजाब के बठिंडा जिले की बलविंदर कौर। एम.ए. पंजाबी की पढ़ाई करने वाली बलविंदर कौर एक साधारण परिवार से संबंध रखती हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी शादी सरदार गुरविंदर सिंह से हो गई, जो कि एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे पर कुछ कारणों से, उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने घर की आर्थिक हालत में सहयोग देने के लिए बलविंदर जी ने काम करने का फैसला किया और उनके पति ने भी उनके इस फैसले में उनका पूरा साथ दिया। जैसे कि कहा ही जाता है कि यदि पत्नी पति के कंधे से कंधा मिलाकर चले तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। अपने पति की सहमति से बलविंदर जी ने घर में पी.जी. का काम शुरू किया। पहले—पहल तो यह पी.जी. का काम सही चलता रहा पर कुछ समय के बाद यह काम उन्हें बंद करना पड़ा। फिर उन्होंने अपना बुटीक खोलने के बारे में सोचा पर यह सोच भी सही साबित नहीं हुई। 2008—09 में उन्होंने ब्यूटीशन का कोर्स किया पर इसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी।

शुरू से ही मेरी दिलचस्पी खाना बनाने में थी सभी रिश्तेदार भी जानते थे कि मैं एक बढ़िया कुक हूं, इसलिए वे हमेशा मेरे बनाए खाने को पसंद करते थे आखिरमें मैंने अपने इस शौंक को व्यवसाय बनाने के बारे में सोचा — बलविंदर कौर

बलविंदर जी के रिश्तेदार उनके हाथ के बने आचार की बहुत तारीफ करते थे और हमेशा उनके द्वारा तैयार किए आचार की मांग करते थे।

अपने इस हुनर को और निखारने के लिए बलविंदर जी ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फूड प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी, लिआसन ऑफिस बठिंडा से आचार और चटनी बनाने की ट्रेनिंग ली। यहीं उनकी मुलाकात डॉ. गुरप्रीत कौर ढिल्लो से हुई, जिन्होंने बलविंदर जी को गाइड किया और अपने इस काम को बढ़ाने के लिए और उत्साहित किया।

आज—कल बाहर की मिलावटी चीज़ें खाकर लोगों की सेहत बिगड़ रही है मैंने सोचा क्यों ना घर में सामान तैयार करवाकर लोग को शुद्ध खाद्य उत्पाद उपलब्ध करवाए जाएं — बलविंदर कौर

मार्केटिंग की महत्तता को समझते हुए इसके बाद उन्होंने मैडम सतविंदर कौर और मैडम हरजिंदर कौर से पैकिंग और लेबलिंग की ट्रेनिंग ली।

के.वी.के. बठिंडा से स्क्वैश बनाने की ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपना काम घर से ही शुरू किया। उन्होंने एक सैल्फ हेल्प ग्रुप बनाया जिसमें 12 महिलाएं शामिल हैं। ये महिलाएं उनकी सामान काटने और तैयार सामान की पैकिंग में मदद करती हैं।

इस सैल्फ हेल्प ग्रुप से जहां मेरी काम में बहुत मदद होती है वहीं महिलाओं को भी रोज़गार हासिल हुआ है, जो कि मेरे दिल को एक सुकून देता है — बलविंदर कौर

हुनर तो पहले ही बलविंदर जी में था, ट्रेनिंग हासिल करने के बाद उनका हुनर और भी निखर गया।

मुझे आज भी जहां कहीं मुश्किल या दिक्कत आती है, उसी समय मैं फूड प्रोसेसिंग आफिस चली जाती हूं जहां डॉ. गुरप्रीत कौर ढिल्लों जी मेरी पूरी मदद करती हैं — बलविंदर कौर
बलविंदर कौर के द्वारा तैयार किए जाने वाले उत्पाद
  • आचार — मिक्स, मीठा, नमकीन, आंवला (सभी तरह का आचार)
  • चटनी — आंवला, टमाटर, सेब, नींबू, घीया, आम
  • स्क्ववैश — आम, अमरूद
  • शरबत — सेब, लीची, गुलाब, मिक्स
हम इन उत्पादों को गांव में ही बेचते हैं और गांव से बाहर फ्री होम डिलीवरी की जाती है —बलविंदर कौर

बलविंदर जी Zebra smart food नाम के ब्रांड के तहत अपने उत्पाद तैयार करती हैं और बेचती हैं।

इन उत्पादों को बेचने के लिए उन्होंने एक व्हॉट्स एप ग्रुप भी बनाया है जिसमें ग्राहक आर्डर पर सामान प्राप्त कर सकते हैं।

भविष्य की योजना

बलविंदर जी भविष्य में अपने उत्पादों को दुनिया भर में मशहूर करवाना चाहती हैं।

संदेश
“हमें जैविक तौर पर तैयार की चीज़ों का इस्तेमाल करना चाहिए और अपने बच्चों की सेहत का ध्यान रखना चाहिए।
इसके साथ ही जो बहनें कुछ करने का सोचती हैं वे अपने सपनों को हकीकत में बदलें। खाली बैठकर समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। यह ज़रूरी नहीं कि वे कुकिंग ही करें, जिस काम में भी आपकी दिलचस्पी है आपको वही काम करना चाहिए। परमात्मा में विश्वास रखें और मेहनत करते रहें।”

खुशपाल सिंह

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खेती के साथ साथ गन्ने से ज़हर—मुक्त गुड़—शक्कर तैयार करके बढ़िया कमाई करने वाला किसान

हमारे देश में खेती करने वाले परिवारों में रवायती खेती का रूझान ज्यादा है। पर कुछ किसान ऐसे भी हैं जो समय के साथ बदल रहे हैं और खेती के व्यवसाय को और भी लाभदायक व्यवसाय बनाकर अन्य किसानों में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। यह कहानी भी एक ऐसे किसान की है जिसने रवायती खेती के साथ साथ कुछ अलग करने के बारे में सोचा और अपनी मेहनत और लगन से अपनी एक अलग पहचान बनायी।

पंजाब के जिला संगरूर के गांव मानां के किसान खुशपाल सिंह के पिता सरदार जियून सिंह जी 22 एकड़ ज़मीन पर रवायती खेती करते थे। किसानी परिवार में पैदा हुए खुशपाल सिंह का भी खेती की तरफ ही रूझान था। पिता के अचानक देहांत के बाद खेती की सारी जिम्मेवारी खुशपाल जी के कंधों पर आ गई। जब खुशपाल जी ने खेती करनी शुरू की तो उन्होंने रवायती खेती के साथ साथ अन्य फसलें जैसे सरसों, हल्दी, धान, बासमती, आलू, मक्की और गन्ना आदि की खेती करनी भी शुरू कर दी। समय बीतने पर उन्होने खेती के साथ ही मधु—मक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग का काम करना भी शुरू कर दिया। मधु—मक्खी के काम में वह शहद की मक्खियों को राजस्थान, अफगानगढ़ आदि इलाकों में लेकर जाते थे, पर कुछ समय बाद कुछ कारणों के कारण उन्हें मधु—मक्खी पालन का व्यवसाय छोड़ना पड़ा।

फिर खुशपाल जी ने सोचा कि क्यों ना अपने खेती के काम के साथ ही कुछ अलग किया जाए। इसलिए उन्होंने अपने खेतों में गन्ने की खेती करनी शुरू की। गन्ने की खेती के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए उन्होंने पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना और के.वी.के. रौणी (पटियाला) से ट्रेनिंग भी ली।

धीरे — धीरे उन्होंने गन्ने से गुड़ तैयार करना शुरू कर दिया। उनकी तरफ से तैयार किए गए गुड़ को लोगों की तरफ से बहुत पसंद किया जाने लगा। लोगों की मांग पर उन्होंने गुड़ से शक्कर और अन्य उत्पाद तैयार करने भी शुरू कर दिए। इसके बाद खुशपाल जी ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ग्राहकों की मांग को पूरा करने के लिए मेहनत करनी शुरू कर दिया। खुशपाल जी की मेहनत से आस—पास के गांव के लोग भी उन्हें जानने लगे।

हम गन्ने की फसल में खादों का प्रयोग पी ए यू की तरफ से सिफारिश मात्रा के अनुसार ही करते हैं और इससे तैयार गुड़ पूरी तरह रसायन—मुक्त होता है और इसमें किस भी तरह का रंग नहीं मिलाया जाता — खुशपाल सिंह
खुशपाल सिंह जी के द्वारा तैयार किये हुए उत्पादों की सूची:
  • साधारण गुड़
  • शक्कर
  • सौंफ वाला गुड़
  • अलसी का चूरा
  • तिल वाली टिक्की
  • ड्राई फ्रूट वाला गुड़
  • मेडीकटेड गुड़
  • आम हल्दी गुड़

अपने द्वारा तैयार किए इन उत्पादों को बेचने के लिए वे पटियाला — संगरूर रोड पर “ज़िमीदारा घुलाड़ सराओ और गिल” के नाम से घुलाड़ चला रहे हैं। दूर — दूर से लोग उनसे गुड़ और अन्य उत्पाद खरीदने के लिए आते हैं।उनके बहुत सारे ग्राहक उनसे अपनी मांग के आधार पर भी गुड़ तैयार करवाते हैं। घुलाड़ के अलावा वे किसान मेलों में भी अपना स्टॉल लगाते हैं और ग्राहकों से मिल रहा प्रोत्साहन उन्हें और भी अच्छी क्वालिटी के उत्पाद तैयार करने के लिए प्रेरित करता है।

इस पूरे कारोबार में खुशपाल जी को अपने पारिवारिक सदस्यों की तरफ से पूरा सहयोग मिलता है, जिनमें से उनका भाई हरबख्श सिंह हर समय उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता है।

हमारी घुलाड़ पर आकर कोई भी अपनी पसंद और मांग के आधार पर पास खड़ा होकर गुड़ तैयार सकता है। — खुशपाल सिंह
भविष्य की योजना

खुशपाल जी भविष्य में अपने उत्पादों की सूची और बड़ी करना चाहते हैं और अच्छी पैकिंग के द्वारा मार्केट में उतारना चाहते हैं।


संदेश
“नौजवानों को पढ़—लिखकर नौकरी करने के साथ साथ खेती के क्षेत्र में भी सहयोग देना चाहिए। हमें इस सोच को मन में से निकाल देना चाहिए कि खेती पिछड़े वर्ग का व्यवसाय है। आज—कल बहुत सारे नौजवान खेती में भी नाम कमा रहे हैं। किसानों को खेती के साथ—साथ मंडीकरण भी स्वयं करना चाहिए।”

जसकरन सिंह

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इस किसान ने साबित किया कि एक आम किसान भी कर सकता है कुछ विशेष, कुछ नया

भीड़ में चलने से कभी किसी की पहचान नहीं बनती, पहचान बनाने के लिए कुछ नया करना पड़ता है। जहां हर कोई एक दूसरे के पीछे लगकर काम कर रहा था, एक किसान ने लिया कुछ नया करने का फैसला। यह किसान स. बलदेव सिंह का पुत्र गांव कौणी तहसील गिदड़बाहा जिला मुक्तसर साहिब, पंजाब का रहने वाला है, जिसका नाम है — स. जसकरन सिंह।

स. बलदेव जी 27 एकड़ में रवायती खेती करते थे। पारिवारिक व्यवसाय, खेती होने के कारण बलदेव जी ने अपने पुत्र जसकरन को भी बहुत छोटी उम्र में ही खेतों में अपने साथ काम करवाना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया गया और पढ़ाई बीच में ही रह गई। 17—18 वर्ष की उम्र में जब खेतों में पैर रखा तो मिट्टी के साथ एक अलौकिक रिश्ता बन गया। शुरू से ही उनके पिता जी गेहूं—चने की रवायती खेती करते थे पर जसकरन सिंह जी के मन में कुछ और ही चल रहा था।

जब मैं बाहर देखता था कि रवायती खेती के अलावा खेती की जाती है, तो मेरा मन भी चाहता था कि कुछ अलग किया जाए कुछ नया किया जाए।— स. जसकरन सिंह

यही सोच मन में रखकर जसकरन जी ने स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फैसला किया। जसकरन जी के इस फैसले ने उनके पिता जी को बहुत निराश कर दिया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि एक ऐसी फसल लगानी जिसकी जानकारी ना हो एक बहुत बड़ा कदम था। पर उन्होंने अपने पिता जी को समझाकर अपने 2 दोस्तों के साथ मिलकर 8 एकड़ में स्ट्रॉबेरी का फार्म लगा लिया। मन में एक डर भी बना हुआ था कि जानकारी ना होने के कारण कहीं नुकसान ना हो जाए, पर एक विश्वास भी था कि मेहनत की हुई कभी व्यर्थ नहीं जाती। इसलिए खेती शुरू करने से पहले उन्होंने बागबानी से संबंधित ट्रेनिंग भी ली।

स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने में उन्हें ज्यादा कोई रूकावट नहीं आई। अपने दोस्तों से सलाह करके, उन्होंने पहले वर्ष दिल्ली से स्ट्रॉबेरी का बीज लिया। मजदूर ज्यादा लगने और मेहनत ज्यादा होने के कारण किसान यह खेती करना पसंद नहीं करते। पर थोड़े समय के बाद ही उनके दोस्तों को यह महसूस हुआ कि स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में कोई जानकारी ना होने के कारण उनके एक दोस्त ने इसके साथ ही अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए साथ ही और व्यापार करना शुरू कर दिया और दूसरा दोस्त जाने के प्रयास करने लग गया। पर जसकरन जी ने अपने मन में पक्का इरादा किया हुआ था कि कुछ भी हो जाए पर वे स्ट्रॉबेरी की खेती ज़रूर करेंगे।

बाहर की रंग—बिरंगी दुनिया नौजवानों को बहुत आकर्षित करती है, और नौजवान भी अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए बाहर को भाग रहे हैं। मैं चाहता था कि विदेश जाने की बजाए, यहां अपने देश में रहकर ही कुछ ऐसा किया जाए जिससे पंजाब और नई पीढ़ी की सोच में भी बदलाव आए और वे अपना भविष्य यहीं सुरक्षित कर सकें। — स. जसकरन सिंह

पहले वर्ष जसकरन जी को उम्मीद से ज्यादा फायदा हुआ। जिस कारण उन्होंने इस खेती की तरफ अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया। उसके बाद उन्होंने हिमाचल की एक किस्म भी लगायी और अब वे पूणे जिसे स्ट्रॉबेरी का हाथ कहा जाता है, वहां से बीज लाकर स्ट्रॉबेरी लगाते हैं। जसकरन जी बठिंडा,  मुक्तसर साहिब और मलोट की मंडी में स्ट्रॉबेरी बेचते हैं।

स्ट्रॉबेरी के साथ साथ जसकरन जी खरबूजा और खीरा भी उगाते हैं। अब उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करते हुए 4—5 वर्ष हो गए हैं और वे इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अपनी मेहनत से जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की नर्सरी लगा चुके हैं और इस नर्सरी में वे सब्जियां उगाते हैं।

हर वर्ष पानी का स्तर नीचे जा रहा है। इसलिए हमें तुपका सिंचाई का इस्तेमाल करना चाहिए। — जसकरन सिंह

भविष्य की योजना

भविष्य में जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की प्रोसेसिंग करके उससे उत्पाद तैयार करके मार्केटिंग करना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी इसके बारे में प्रेरित करना चाहते हैं।

संदेश
“मैं यही कहना चाहता हूं कि किसानों के खर्चे बढ़ रहे हैं पर गेहूं धान के मूल्य में कुछ ज्यादा फर्क नहीं आ रहा, इसलिए किसान भाइयों को रवायती खेती के साथ साथ कुछ अलग करना पड़ेगा। आज के समय में हमें पंजाब में फसली—विभिन्नता लाने की जरूरत है।”

सुरिंदर सिंह नागरा

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ऐसा किसान जिसने शौंक से शुरू की जड़ी—बूटियों की खेती और किसान से बना वैद्य

सूरेन्द्र सिंह नागरा पंजाब के जिला जालंधर में स्थित गांव कोहाला के निवासी हैं और आजकल वह करतारपुर साहिब में रेशम आयुर्वेदिक नर्सरी चला रहे हैं । नागरा जी ने कई तरह के चिकित्सक पौधों की खेती करके अपनी विलक्षण पहचान बनाई है।

सुरिंदर सिंह नागरा अपने पिता पहलवान नसीब सिंह और माता रेशम कौर के इकलौते पुत्र हैं। नसीब सिंह जी खेती के साथ — साथ आड़तिये का सामान टांगे पर लादकर जालंधर भी छोड़कर आते थे, जिससे उनके परिवार का गुज़ारा चलता था। घर में आर्थिक तंगी देखते हुए सुरिंदर जी ने पिता के साथ, हाथ बंटाने के लिए 17—18 वर्ष की उम्र में टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया। हालात ठीक होते देख सुरिंदर जी की शादी कर दी गई। कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण उन्होंने अपनी पत्नी से तलाक ले लिया। कुछ समय बाद नागरा जी की दूसरी शादी हुई। दूसरी पत्नी के तौर पर उन्हें नछत्तर कौर का साथ मिला। पारिवारिक जिम्मेवारियों को और अच्छे ढंग से निभाने के लिए उन्होंने शराब के ठेके पर बतौर सुपरवाइज़र काम करना शुरू कर दिया। पर कुछ समय बाद उन्हें यह एहसास हुआ कि नशों का कारोबार ज़ुर्म जैसा है और नागरा जी ने यह नौकरी छोड़ दी। इस दौरान पिता के अचानक देहांत के बाद घर की पूरी ज़िम्मेवारी सुरिंदर जी के सिर पर आ गई। इसके बाद सुरिंदर जी ने कीड़ेमार दवाइयों और खाद की दुकान खोली। पर इस कारोबार में भी सफलता ना मिली। दुकान में चोरी होने के कारण उन्हें काफी नुकसान हुआ।

दुकान में चोरी होने के कारण, सभी लोग बोल रहे थे कि बहुत बुरा हुआ, पर मैंने सभी को हंसकर कहा कि मेरे पापा की कमाई निकल गई, बहुत अच्छा हुआ। — सुरेंन्द्र सिंह नागरा

इसके बाद उन्होने आड़त के साथ साथ ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया। पर खास बात यह है कि वे आड़तिये के काम में ज़िमींदारों से ब्याज नहीं लेते थे। नागरा जी कभी भी किसी किसान को निराश और खाली हाथ वापिस नहीं भेजते, बल्कि आवश्यकतानुसार नकद भी दे देते थे। इस तरीके से काम करने में किसानों का भला तो था ही पर उन्हें बहुत नुकसान हो रहा था, जिस कारण आखिरकार आड़त का काम भी बंद करना पड़ा। फिर उन्होंने अपना सारा ध्यान ट्रांसपोर्ट के काम पर केंद्रित कर दिया। इस कारोबार में मेहनत करके धीरे धीरे उनके पास स्वंय की 4—5 गाड़ियां हो गई।

पारिवारिक ज़िम्मेवारियों के साथ, उनका अपना एक अलग शौंक भी था, जिसने उन्हें प्रसिद्धि दिलवाई उन्हें बचपन से ही जड़ी—बूटियों के बारे में ज्ञान रखने का शौंक था और अपना खाली समय वे अक्सर इस शौंक को पूरा करने में व्यतीत करते थे।

जड़ी—बूटियों के बारे में जानने का शौंक मुझे मेरे दोस्त शिव कुमार के कारण पड़ा, जो कि जालंधर में कानूंगो लगा था। — सुरेंन्द्र सिंह नागरा

ज़िंदगी अपनी रफ्तार पकड़ ही रही थी, कि फिर सुरेंन्द्र जी को कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ा। एक दुर्घटना में सुरिंदर जी की टांग टूट गई। इस हादसे की खबर सुनकर उनके मित्र शिव कुमार उन्हें मिलने आए। शिव कुमार जी शूगर के मरीज़ थे और उनके छाले पड़े हुए थे, पर फिर भी वे सुरिंदर जी को मिलने आए और 10,000 रूपए और अपनी एक घड़ी दे गए।

शूगर की बीमारी के कारण शिव कुमार की बहूत भयावह मृत्यु हुई, जिसने मेरी आत्मा को झिंझोड़ कर रख दिया। इसलिए मैंने कुछ ऐसा करने के बारे में सोचा कि लोगों को ऐसी स्थितियों का सामना ना करना पड़े। — सुरिंदर सिंह नागरा

फिर उन्होंने जड़ी—बूटियों के बारे में और गंभीरता से जानकारी हासिल करनी शुरू की। इस उद्देश्य के लिए वे केरला के पहाड़ों में भी गए और अपने साथ अपने बेटे को भी ले गए, ताकि उन्हें दूसरी भाषा समझने में कोई दिक्कत ना आए। उस उद्देश्य को पूरा करने के चक्कर में उनकी गाड़ियां बिक गई। बैंक से लोन लेकर उन्होंने जो दुकान खोली थी, उससे संबंधित बैंक वालों ने भी घर आकर ज़लील करना शुरू कर दिया।

फिर मुझे पता लगा कि बैंक में नया मेनेजर आया है। मैं उससे मिला और अपने हालातों के बारे में बताया। उसने भी एक अच्छे इंसान की तरह मेरी मजबूरियों को समझा और पिछले लोन उतारने के लिए मुझे 12—13 लाख रूपए के लोन की मंज़ूरी दिलवाई। — सुरेंन्द्र सिंह नागरा

इन सबसे खाली होकर उन्होंने सबसे पहले स्टीविया का एक पौधा लगाया, जो कि वे पालमपुर से लेकर आए थे। इसके बाद उन्होंने अन्य चिकित्सक पौधे लगाने शुरू कर दिए। इस काम में उनके दोनों बेटों और बेटी ने भी पूरा सहयोग दिया। अब उनके सभी पारिवारिक मेंबर चिकित्सक पौधों से पाउडर तैयार करते हैं और इन पौधे की देख-भाल करते हैं।

धीरे धीरे उन्होंने अपने द्वारा लगाए गए चिकित्सक पौधों से दवाइयां तैयार करके बेचनी शुरू कर दी, जिससे मरीज़ों को बहुत लाभ होने लगा।

इस काम में सफलता हासिल करके वे अब बहुत खुशी महसूस करते हैं। इस काम को उनकी बेटी, वैद्य गुरदीप कौर भी अच्छे से संभाल रही है। सुरिंदर जी का छोटा बेटा डेयरी फार्मिंग का काम करता है। वह दूध से उत्पाद तैयार करके बाज़ार में बेचता है।अब उनके सभी पारिवारिक मेंबर चिकित्सक पौधों से पाउडर तैयार करते हैं और पौधों की देख-भल करते हैं।

सुरेंन्द्र सिंह नागरा जी द्वारा उगाए गए चिकित्सक पौधे
  • इंसुलिन
  • स्टीविया
  • सुहाजना
  • छोटी इलायची
  • बड़ी इलायची
  • ब्राह्मी
  • बनक्शा
  • बांसा
  • कपूर
  • अर्जन
  • तेज पत्ता
  • मघ
  • ज़रेनियम
  • हड्ड जोड़ बूटी
  • सदाबहार
  • अश्वगंधा
  • शतावरी
  • अजवायन
  • ओडोमास
  • सीता अशोका
  • सफेद चंदन
  • रूद्राक्श (तीन मुखी)
  • पुत्रनजीवा
  • लहसुन बेल
  • कपूर तुलसी
  • रोज़मेरी
  • नाग केसर
  • अकरकरा
  • सर्पगंधा
  • हार-सिंगार

    जो मरीज़ दवाइयों के पैसे नहीं दे सकते, हम उन्हें दवाई मुफ्त भी देते हैं। — सुरिंदर सिंह नागरा

    इस कार्य के कारण उन्हें शिरोमणि वैद्य कमेटी की तरफ से काफी सम्मान भी मिला है और के साथ भी उनके संबंध बहुत अच्छे हैं। अब सुरिंदर जी केंद्र सरकार के साथ मिलकर किसानों को चिकित्सक पौधों की खेती की तरफ उत्साहित करने वाले प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।

    भविष्य की योजना
    सुरिंदर जी चाहते हैं कि उनके द्वारा शुरू किए गए इस काम को उनके बच्चे संभालें और इसी तरह ही लोगों का इलाज और मदद करें।

    संदेश
    “नौजवान पीढ़ी को चिकित्सिक पौधों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए ताकि घर—घर में वैद्य हों और लोगों को डॉक्टरों के पास जाकर महंगी — महंगी फीसों से इलाज ना करवाना पड़े। सुरिंदर नागरा जी का मानना है कि किसान से बढ़िया और कोई डॉक्टर नहीं हो सकता। इसलिए किसान को जैविक तरीके से खेती करनी चाहिए।”

जपिंदर वधावन

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खेती मशीनरी में तेजी से छा रहा नौजवान इंजीनियर — जपिंदर वधावन

कहा जाता है कि यदि किसी काम को करने का पक्का निश्चय कर लिया जाए तो फिर सफलता पीछे — पीछे भागती है और इसी कहावत को सच कर दिखाया है एक नौजवान इंजीनियर ने जिसका नाम है जपिंदर वधावन।

जपिंदर जी ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई को खेती के क्षेत्र से जोड़ा, क्योंकि किसान और खेती का समाज में बहुत बड़ा योगदान है। खेती के लिए मशीन की आवश्यकता भी समय समय पर बदलती रहती है। नई मशीनरी से फसल बोने से लेकर प्रोसेसिंग तक के सभी काम आसानी से और कम समय में हो जाते हैं। पर इन महंगी मशीनों को खरीदना हर किसान के बस में नहीं होता। किसानों की इस मुश्किल को समझा, नौजवान इंजीनियर जपिंदर वधावन ने, जिन्हें “रफ्तार इंजीनियर” के नाम से भी जाना जाता है। मोहाली के रहने वाले इस नौजवान इंजीनियर का नाम, कम पैसे में और किसान की आवश्यकता और मांग के अनुसार मशीनें तैयार करने के लिए अलग तौर पर प्रसिद्ध है।

मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले जपिंदर वधावन पहले खेती क्षेत्र के बारे में बिल्कुल अनजान थे। उन्होंने पहले असिस्टेंट प्रोफेसर और मेंटेनेंस इंजीनियर के तौर पर नौकरी की। अचानक ही किस्मत से उन्हें दिल्ली में हुए मेक इन इंडिया इवेंट में जाने का अवसर मिला और इस इवेंट में उनकी मुलाकात एक किसान सरदार हरपाल सिंह गरेवाल जी से हुई जो वहां पर रोटावेटर लेने के लिए आए थे। जपिंदर जी ने उनकी आवश्यकता को समझते हुए उन्हें 10 फुट रोटावेटर तैयार करके देने का वादा कर दिया। हरपाल जी ने मशीन तैयार करने के लिए जपिंदर के बैंक अकाउंट में 40000 रूपए भी डलवा दिए। पर जपिंदर ने कभी भी इस तरह की कोई मशीन तैयार नहीं की थी, पर वे अपना किया हुआ वादा तोड़ना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी जिम्मेवारी को समझते हुए रोटावेटर तैयार करना शुरू कर दिया। अपनी मेहनत से उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक महीने में ही रोटावेटर तैयार कर दिया। जपिंदर की यह पहली कोशिश ही सफल रही और उन्हें किसानों की तरफ से काफी प्रोत्साहन भी मिला। इसके बाद जपिंदर ने अपने खाली समय में किसानों से मिलना और उन्हें प्रोसेसिंग के लिए प्रयोग की जाने वाली मशीनरी संबंधी पेश आती मुश्किलों के बारे में जानना शुरू किया।

इस दौरान जपिंदर की मुलाकात पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के खेती व्यापार विषय के माहिर और प्रोफेसर डॉ. रमनदीप सिंह और प्रगतिशील किसान सुक्खी लोंगिया जी से हुई। इन हस्तियों से जपिंदर ने किसानों को प्रोसिंसग में आने वाली दिक्कतों के बारे में और बारीकी से जाना और आगे बढ़ने का हौंसला भी मिला।

आज हमारे देश में बहुत सारे किसान आत्महत्या कर रहे हैं, जो कि हमारे देश के लिए एक शर्मनाक बात है। आत्महत्या का एक बड़ा कारण है खेती मशीनों के महंगे मूल्य। इन महंगी मशीनों को बहुत कम किसान ही खरीदते हैं। अत: हम किसान की आवश्यकता को समझते हुए कम मूल्य में मशीनें तैयार करने की कोशिश करते हैं — जपिंदर वधावन

जपिंदर को दूसरा प्रोजेक्ट मिला हल्दी उबालने वाली मशीन का। यह प्रोजेक्ट भी उन्हें किस्मत से ही मिला। एक बस में उनकी मुलाकात एक किसान से हुई, जो कि हल्दी बॉयलर मशीन बनाना चाहते हैं। एक महीने के अंदर अंदर जपिंदर ने हल्दी बॉयलर तैयार कर दिया। इसके बाद जपिंदर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें किसानों की तरफ से जो भी प्रोजेक्ट मिले उन्होंने अपनी मेहनत से किसानों की उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश की और वे इस काम में सफल भी हुए।

इन प्रोजेक्टों में मिली सफलता के बाद जपिंदर ने अपने सहयोगी साथियों के साथ मिलकर एक टीम बनाई और इस टीम को नाम दिया गया — रफ्तार प्रोफेशनल इंजीनियरिंग कंपनी। इनकी इस टीम में लगभग 15 अलग अलग विषयों के इंजीनियर और कॉलेज के विद्यार्थी शामिल हैं, जो कि अपने विषय में पूरी महारत रखते हैं।

अपने हुनर को अन्य किसानों और लोगों तक पहुंचाने के लिए जपिंदर अपनी टीम द्वारा तैयार की गई मशीनों की वीडियो सोशल मीडिया के द्वारा अन्य किसानों के साथ शेयर करते हैं। जिससे और भी किसान उनसे जुड़ते हैं।

यदि हम आसान शब्दों में कहें, तो हम किसानों की मुश्किलों को समझते हैं। हम किसान की आवश्यकतानुसार मशीन तैयार करते हैं, जिससे वे नई तकनीक को अपना सकें और अपनी कमाई में वृद्धि कर सकें — जपिंदर वधावन

रफ्तार इंजीनियरिंग टीम से जुड़े लगभग 300 किसान में से 120 किसान जैविक खेती करते हैं और जपिंदर स्वंय भी किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित करते हैं। सिर्फ पंजाब ही नहीं, बल्कि हरियाणा, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित कई क्षेत्रों के किसान जपिंदर के पास मशीनरी तैयार करवाने के लिए आते हैं।

कहा जाता है कि इंसान की ज़िंदगी में सफलता के साथ साथ असफलता भी आती है। रफ्तार इंजीनियरिंग टीम अब तक 20 प्रोजेक्ट पर काम कर चुकी है, जिनमें से 17 प्रोजेक्ट में उन्हें सफलता मिली और 3 प्रोजेक्ट में असफलता। पर इस असफलता ने उनकी हिम्मत टूटने नहीं दी और उन्होंने अपने काम को और कुशलता से करने का फैसला किया। जपिंदर के साथ उनकी 15 सहयोगियों की टीम है, जो हर काम में उनकी मदद करते हैं।

जपिंदर के द्वारा तैयार की गई मशीनें

  • रोटावेटर
  • गार्लिक अनियन पीलर
  • जैगरी प्रोसेसिंग फ्रेम
  • टरमरिक स्टीम बॉयलर
  • टरमरिक पुलवेराईज़र
  • टरमरिक पॉलिशर
  • पावर वीडर
  • पल्सिस मिल्ल
  • पुलवेराईज़र
  • इरीगेशन शेड्यूलर

किसानों के लिए मशीनें तैयार करने के साथ साथ जपिंदर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को उनके प्रोजेक्ट पूरे करने में भी मदद करते हैं, जो कि आने वाले समय में किसानों के लिए लाभदायक साबित होंगे।

किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से जपिंदर, जैविक खेती करने वाले किसानों को मशीनरी तैयार करने पर भारी छूट भी देते हैं।

भविष्य की योजना

भविष्य में जपिंदर अपनी कंपनी को बड़े स्तर पर लेकर जाने के लिए, स्वंय की इंडस्ट्री लगाना चाहते हैं और अपने द्वारा बनाई हुई मशीनरी का आयात निर्यात का काम करना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश

“किसानों को रासायनिक खेती को छोड़कर, जैविक खेती की तरफ ध्यान देना चाहिए। किसानों को सोच समझकर निवेश करना चाहिए। किसी के पीछे लगकर कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। सलाह सब से लेनी चाहिए, पर अपने पैसे निवेश करने से पहले अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।”

मिलन शर्मा

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जज़्बा हो तो महिलाओं के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है….ऐसी ही एक मिसाल है मिलन शर्मा

अक्सर ही माना जाता है कि डेयरी फार्मिंग का काम ज़्यादातर कम पढ़े-लिखे लोग ही करते हैं। पर अब इस काम में ज़्यादा कमाई होती देखकर पढ़े लिखे लोग भी इस काम में शामिल हो रहे हैं। आज-कल डेयरी फार्मिंग के काम में पुरुषों के साथ-साथ महिलायें में आगे आ रही हैं। इस कहानी में हम एक ऐसी महिला की बात करने जा रहे हैं जो डेयरी फार्मिंग का काम अपनाकर कामयाब हुई और अब अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन रही है।

हरियाणा की रहनी वाली मिलन शर्मा जी ने M.Sc Biochemistry की पढ़ाई की है। पढ़ाई के दौरान ही उनका विवाह चेतन शर्मा जी, जो कि एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं, उनके साथ हो गया। विवाह के बाद दो बेटे होने के कारण वह अपने गृहस्थ में शामिल हो गए । बेटों के स्कूल जाने के बाद उन्होंने खाली समय में जर्मन भाषा सीखनी शुरू की और बाद में उनको एक स्कूल में जर्मन भाषा सिखाने के लिए अध्यापक के तौर पर नौकरी मिल गई। इसके साथ ही उन्होंने जर्मन कल्चर सेंटर के साथ प्रोजेक्ट मैनेजर के तौरपर कई सालों काम किया। इस प्रोजेक्ट के तहत बच्चों को जर्मन भाषा सिखाकर उच्च पढ़ाई के लिए जर्मन में जाने के लिए तैयार किया जाता था।

आगे जाकर दोनों बच्चों को बढ़िया नौकरी मिल गई तो हम दोनों (पति-पत्नी) ने वातावरण और समाज के लिए कुछ बेहतर करने के बारे में सोचा – मिलन शर्मा

मिलन जी के ससुर जी के पास गाँव में 4 गाय थी, जिनकी देखभाल स्वयं करते थे। 2017 में उनके देहांत के बाद मिलन और उनके पति ने अपने पिता की रखी 4 गायों की देखभाल करनी शुरू की और इसके साथ उन्होंने 2 और साहीवाल नस्ल की गाय खरीदी। समय के साथ उनका डेयरी का काम बढ़ने लगा और मिलन जी को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। पर उन्हें डेयरी फार्मिंग के बारे में कुछ ज़्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी जानकारी में वृद्धि करने के लिए करनाल और LUVAS और GADVASU से ट्रेनिंग हासिल की। उनके पास धीरे-धीरे 30 गाय हो गई। इसके बाद उन्होंने 6 एकड़ में “रेवनार” नाम का एक फार्म शुरू किया। रेवनार नाम रेवती और नारायण के सुमेल से लिया गया है, जो कि मिलन जी के पति के दादा-दादी का नाम है। इस फार्म को उन्होंने FSSAI से रजिस्टर करवा लिया। इस समय उनके पास साहीवाल, थारपारकर, राठी और गिर नस्ल की 140 गाय हैं।

मैं पहले गाय के पास जाने से भी डरती थी, पर अब मेरा पूरा दिन गायों के बीच में ही गुजरता है। अब गाय मेरे साथ ऐसे रहती है जैसे वह मेरी सहेली हो – मिलन शर्मा

गायों की संख्या ज़्यादा होने के कारण उनके पास दूध की मात्रा भी बढ़ने लगी। पहले उनसे रिश्तेदार और गाँव के कुछ लोग ही दूध लेकर जाते थे, पर दूध की गुणवत्ता बढ़िया होने के कारण और लोगों ने दूध खरीदना शुरू कर दिया है। पहले वह ड्रम में डालकर ग्राहक तक पहुंचाते थे, पर कुछ समय के बाद उन्हें महसूस हुआ कि इसमें कोई बदलाव आना चाहिए। अब वह कांच की बोतलों में दूध डालकर ग्राहकों को बेचते हैं। उनके द्वारा जिन कांच की बोतलों में ग्राहकों को दूध बेचा जाता है, अगले दिन ग्राहक उन बोतलों को वापिस कर देते हैं। इस तरह फिर अगले दिन कांच की बोतलों में दूध भरकर ग्राहकों तक पहुँचाया जाता है। उनके द्वारा दूध और दूध द्वारा तैयार किये उत्पाद (पनीर, दहीं, मक्खन, लस्सी, देसी घी) ऑनलाइन भी बेचे जाते हैं। मिलन जी अपनी डेयरी का दूध दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद के ग्राहकों को बेचते हैं।

डेयरी फार्म के साथ ही वह मथुरा में 15 एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं। यहाँ फसलों में वह गेहूं, धान, सरसों के साथ ही चारे की फसलें जई, बरसीम, बाजरा, मक्की, लोबिया, ग्वार, चने आदि की खेती करते हैं।

इनके द्वारा डेयरी में गायों के गोबर और मूत्र का भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने एक बायोगैस प्लांट भी लगाया है , जिसमें गायों के गोबर से गैस तैयार की जाती है, जिसका प्रयोग गायों के लिए खुराक जैसे दलिया आदि तैयार करने के लिए करते हैं।

इसके अलावा मिलन जी ने अपने फार्म पर अलग-अलग तरह के फलदार, चकित्सिक और विरासती पेड़ लगाए हैं, जैसे कि नीम, टाहली, कदम, पपीता, गिलोय, आंवला, अमरुद, बेलपत्र, नींबू, इमली आदि।

इन सभी पेड़ों के पत्तों को गाय के मूत्र में मिलाकर जीव अमृत तैयार करते हैं, जिसका प्रयोग फसलों के लिए किया जाता है। इसके अलावा कीड़ेमार दवाइयों की जगह वह खट्टी लस्सी आदि का प्रयोग करते हैं।

मिलन जी के पति, चेतन जी घरों और कंपनियों में सोलर पैनल लगाने के काम करते हैं। उन्होंने ने अपने फार्म में भी 800 किलोवाट का सोलर पैनल लगाया हुआ है।

उपलब्धियां
मिलन जी के संकल्प और मेहनत के ज़रिये उनके द्वारा हसिल की उपलब्धिया नीचे लिखे अनुसार हैं:
  • पशु पालन विभाग, हरियाणा की तरफ से प्रगतिशील किसान का दर्जा दिया गया है।
  • रेवनार फार्म की 2 गायों ने फरीदाबाद पशु मेले में ईनाम जीते।
  • केवल एक साल के समय में 30 से 140 गायों तक संख्या बढ़ाई और 5 घरों से 200 से ज़्यादा ग्राहकों को अपने साथ जोड़ा।
भविष्य की योजना

मिलन जी अपने पूरे गाँव को रसायन मुक्त वातावरण देना चाहते हैं। वह आगे चलकर अपने डेयरी फार्म को एक स्किल सेंटर के तौरपर पशु पालकों को ट्रेनिंग देना चाहते हैं। वह सरकार के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट शुरू करना चाहते हैं, जिसमें उनके गाँव में सभी के लिए एक कम्युनिटी बायोगैस प्लांट लगाया जाये। इस प्रोजेक्ट के साथ जहाँ गाँव वालों को मुफ्त गैस मिलेगी, वहां ही उन्हें अपने पशुओं के गोबर के सही प्रयोग के बारे में जानकारी हासिल होगी और वह गोबर गैस के व्यर्थ को खेतों में खाद के तौरपर प्रयोग करके रसायन के होने वाले खर्चे को कम कर सकते हैं।

संदेश
“नौजवानों को डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में आगे आना चाहिए। इस क्षेत्र में रोज़गार के बहुत से अवसर होते हैं। हमे अपने बच्चों को भी शुरू से ही इस काम में आने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”

जसवंत सिंह सिद्धू

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जसवंत सिंह सिद्धू फूलों की खेती से जैविक खेती को प्रफुल्लित कर रहे हैं

जसवंत सिंह जी को फूलों की खेती करने के लिए प्रेरणा और दिलचस्पी उनके दादा जी से मिली और आज जसवंत सिंह जी ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जो जैविक तरीके से फूलों की खेती कर रहे हैं। खेतीबाड़ी के क्षेत्र में जसवंत सिंह जी की यात्रा बहुत छोटी उम्र में ही शुरू हुई, जब उनके दादा जी अक्सर उन्हें बगीची की देख—रेख में मदद करने के लिए कहा करते थे। इस तरह धीरे—धीरे जसवंत जी की दिलचस्पी फूलों की खेती की तरफ बढ़ी। पर व्यापारिक स्तर पर उनके पूर्वजों की तरह ही उनके पिता भी गेहूं—धान की ही खेती करते थे और उनके पिता जी कम ज़मीन और परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण कोई नया काम शुरू करके किसी भी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहते थे।

परिवार के हलातों से परिचित होने के बावजूद भी 12वीं की पढ़ाई के बाद जसवंत सिंह जी ने पी ए यू की तरफ से आयोजित बागबानी की ट्रेनिंग में भाग लिया। हालांकि उन्होंने बागबानी की ट्रेनिंग ले ली थी, पर फिर भी फूलों की खेती में असफलता और नुकसान के डर से उनके पिता जी ने जसवंत सिंह जी को अपनी ज़मीन पर फूलों की खेती करने की आज्ञा ना दी। फिर कुछ समय के लिए जसवंत सिंह जी ने गेहूं—धान की खेती जारी रखी, पर जल्दी ही उन्होंने अपने पिता जी को फूलों की खेती (गेंदा, गुलदाउदी, ग्लेडियोलस, गुलाब और स्थानीय गुलाब) के लिए मना लिया और 1998 में उन्होंने इसकी शुरूआत ज़मीन के छोटे से टुकड़े (2 मरला = 25.2929 वर्ग मीटर) पर की।

“जब मेरे पिता जी सहमत हुए, उस समय मेरा दृढ़ निश्चय था कि मैं फूलों की खेती वाले क्षेत्र को धीरे धीरे बढ़ाकर इससे अच्छा मुनाफा हासिल करूंगा। हालांकि हमारे नज़दीक फूल बेचने के लिए कोई अच्छी मंडी नहीं थी, पर फिर भी मैंने पीछे हटने के बारे में नहीं सोचा।”

जब फूलों की तुड़ाई का समय आया, तो जसवंत सिंह जी ने नज़दीक के क्षेत्रों में शादी या और खुशी के समागमों वाले घरों में जाना शुरू किया ओर वहां फूलों से कार और घर सजाने के कॉन्ट्रेक्ट लेने शुरू किए। इस तरीके से उन्होंने आय में 8000 से 9000 रूपये का मुनाफा कमाया। जसवंत सिंह जी की तरक्की देखकर उनके पिता जी और बाकी परिवार के सदस्य बहुत खुश हुए और इससे जसवंत सिंह जी की हिम्मत बढ़ी। धीरे धीरे उन्होंने फूलों की खेती का विस्तार 2½ एकड़ तक कर लिया और इस समय वे 3 एकड़ में फूलों की खेती कर रहे हैं। समय के साथ साथ जसवंत सिंह जी अपने फार्म पर अलग अलग किस्मों के पौधे और फूल लाते रहते हैं। अब उन्होंने फूलों की नर्सरी तैयार करनी भी शुरू की है, जिससे वे बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं और अब मंडीकरण वाला काम भी खुद संभाल रहे हैं।

खैर जसवंत सिंह जी की मेहनत व्यर्थ नहीं गई और उनके प्रयत्नों के लिए उन्हें सुरजीत सिंह ढिल्लो पुरस्कार 2014 से सम्मानित किया गया।

भविष्य की योजना

भविष्य में जसवंत सिंह जी फूलों की खेती का विस्तार करना चाहते हैं और ज़मीन किराए पर लेकर पॉलीहाउस के क्षेत्र में प्रयास करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
सरकारी योजनाएं और सब्सिडियों पर निर्भर होने की बजाए किसानों को खेतीबाड़ी के लिए स्वंय प्रयत्न करने चाहिए।

मुकेश देवी

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मीठी सफलता की गूंज — मिलिए एक ऐसी महिला से जो शहद के व्यवसाय से 70 लाख की वार्षिक आय के साथ मधुमक्खीपालन की दुनिया में आगे बढ़ रही है

“ऐसा माना जाता है कि भविष्य उन लोगों से संबंधित होता है जो अपने सपने की सुंदरता पर विश्वास करते हैं।”

हरियाणा के जिला झज्जर में एक छोटा सा गांव है मिल्कपुर, जो कि अभी तक अच्छे तरीके से मुख्य सड़क से जुड़ा हुआ नहीं है और यहां सीधी बस सेवा की कोई सुविधा नहीं है। किसी व्यक्ति के लिए ऐसी जगह पर रहने के दौरान किसी भी खेती संबंधित गतिविधि या व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोचना भी असंभव सा लगता है। लेकिन मधुमक्खीपालन के क्षेत्र में मुकेश देवी के सफल प्रयासों ने साबित कर दिया है कि यदि आपके पास कुछ भी करने का जुनून है तो कुछ भी असंभव नहीं है। मधुमक्खियों के दर्दनाक जहरीले डंक से पीड़ित होने के बाद भी मुकेश देवी और उनके पति ने कभी भी रूकने का नहीं सोचा और उन्होंने उत्तरी भारत में सर्वश्रेष्ठ शहद उत्पादन करने का अपना जुनून जारी रखा।

वर्ष 1999 में, मुकेश देवी के पति — जगपाल फोगाट ने अपने रिश्तेदारों से प्रेरित होकर मधुमक्खीपालन की शुरूआत की, जो मधुमक्खीपालन कर रहे थे। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान की गई ट्रेनिंग की सहायता से मुकेश देवी भी 2001 में अपने पति के उद्यम में शामिल हो गईं। जिस काम को उन्होंने कुछ मधुमक्खियों के साथ शुरू किया, धीरे धीरे वह काम समय के साथ बढ़ने लगा और अब वह दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली के क्षेत्रों में भी विस्तृत हो गया है।

स्वास्थ्य लाभ और शहद के लिए बढ़ती बाज़ार की मांग को देखते हुए, अब मुकेश देवी ने अपने ही ब्रांड- नेचर फ्रेश के तहत शहद बेचना शुरू कर दिया है। वर्तमान में, उनके पास शहद के संग्रह के लिए मधुमक्खियों के 2000 बक्से हैं।

मुकेश देवी ने ना केवल अपने परिवार की स्थिति को वित्तीय रूप से स्थिर बनाया बल्कि उन्होंने 30 से अधिक लोगों को रोज़गार भी प्रदान किया है। अपने नियोजित कार्यबल की सहायता से 5 अलग अलग राज्यों में मधुमक्खियों के बक्से भेजकर मुकेश देवी और उनके पति वार्षिक 600 से 700 क्विंटल शहद इक्ट्ठा करते हैं, और शहद से, इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्वाद का साधारण शहद है बल्कि उनके पास 7 से अधिक विभिन्न फ्लेवर में शहद है जो तुलसी, अजवायन, धनिया, शीशम, सफेदा, इलायची, नीम, सरसों और अरहर के पौधों से एकत्र किए जाते हैं। तुलसी का शहद उनकी विस्तृत बाज़ार मूल्यों के साथ सबसे अच्छे शहद में से एक है।

जब शहद इक्ट्ठा करने की बात आती है तब यह पति पत्नी का जोड़ा विभिन्न राज्यों के समय और मौसम पर विशेष ध्यान देते हैं और उनके अनुसार उन्होंने अपने मधुमक्खियों के बक्सों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया है। जैविक शहद के लिए बक्सों को विभिन्न राज्यों में जंगलों में भेजा जाता है,विभिन्न स्थानों से शहद इक्ट्ठा करने के कुछ समय काल नीचे दिए गए हैं—

  • तुलसी शहद के लिए — बक्सों को मध्यप्रदेश के जंगलों में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • अजवायन शहद के लिए — बक्सों को राजस्थान के जंगलों में दिसंबर से जनवरी में भेजा जाता है।
  • अजवायन के लिए — बक्सों को जम्मू कश्मीर और पंजाब में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • और फरवरी से अप्रैल में बक्सों को हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया जाता है।

इसके अलावा, इस जोड़ी की आय शहद उत्पादन और इसकी बिक्री तक ही सीमित नहीं है बल्कि वे कॉम्ब हनी, हनी आंवला मुरब्बा, हनी कैरट मुरब्बा, बी पॉलन, बी वैक्स, प्रोपोलिस और बी वीनॉम भी बेचते हैं जो बाज़ार में अच्छे दामों में बिक जाते हैं।

वर्तमान में, मुकेश देवी और उनके पति सिर्फ मधुमक्खीपालन से ही लगभग 70 लाख वार्षिक आय कमा रहे हैं।

मुकेश देवी और जगपाल फोगाट के प्रयासों को कई संगठनों और अधिकारिकों द्वारा सराहा गया है उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं—

  • 2016 में IARI,नई दिल्ली,राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेले में मधुमक्खीपालन और विभिन्न तरह के शहद उत्पादन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • मुकेश देवी और जगपाल फोगाट को सूरजकुंड, फरीदाबाद में एग्री लीडरशिप पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह द्वारा अच्छे शहद उत्पादन के लिए सम्मानित किया गया।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्री, परषोत्तम खोदाभाई रूपला द्वारा सम्मानित किया गया।
  • उनकी उपलब्धियों को प्रगतिशील किसान अधीता और अभिनव किसान नामक पत्रिका में अन्य 39 प्रगतिशील किसानों के साथ प्रकाशित किया गया।

मुकेश देवी एक प्रगतिशील मधुमक्खी पालनकर्ता हैं और उनकी पहल ने अन्य महिला उद्यमियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। कि यदि आपके प्रयास सही दिशा में हैं यहां तक कि मधुमक्खीपालन के व्यवसाय में भी तो आप करोड़पति बन सकते हैं।

भविष्य की योजनाएं

मुकेश देवी और उनके पति ने अपने गांव में ज़मीन खरीदी है जहां पर वे बाज़ार की मांग के अनुसार अपने उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, किसानों को बेहतर वित्तीय स्थिरता के लिए रवायती खेती के साथ संबंधित कृषि गतिविधियों को आगे बढ़ाना चाहिए।

अमरनाथ सिंह

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अमरनाथ सिंह जी के जीवन पर जैविक खेती ने कैसे अच्छा प्रभाव डाला और कैसे उन्हें इस काम की तरफ आगे ले जाने के लिए प्रेरित कर रही है।

स्वस्थ भोजन खाने और रासायन- मुक्त जीवन जीने की इच्छा बहुत सारे किसानों को जैविक खेती की तरफ लेकर गई है। बठिंडे से एक ऐसे किसान अमरनाथ सिंह जो जैविक खेती को अपनाकर सफलतापूर्वक अपने खेतों में से अच्छा मुनाफा ले रहे हैं।

खेतीबाड़ी में आने से पहले अमरनाथ जी ने 5 वर्ष (2005-2010) ICICI  जीवन बीमा सलाहकार के तौर पर काम किया और विरासत में मिली ज़मीन अन्य किसानों को किराये पर दी हुई थी। इस ज़मीन की विरासती कहानी इतनी ही नहीं है। सब कुछ बढ़िया चल रहा था, अमरनाथ जी के पिता — निर्भय सिंह जी ने 1984 तक इस ज़मीन पर खेती की। 1984 में हालात बहुत बिगड़ चुके थे और पंजाब के कई क्षेत्रों में यह मामला बहुत बढ़ चुका था। उस समय अमरनाथ जी के पिता ने रामपुरा फूल, जो बठिंडा जिले का कस्बा है, को छोड़ने का फैसला किया और वे बरनाला जिले के तपा मंडी कस्बे में जाकर बस गए, जो अमरनाथ जी के पिता के नाना का गांव था।

निर्भय सिंह का अपनी ज़मीन से बहुत लगाव था, इसलिए रामपुरा फूल छोड़ने के बाद भी वे तपा मंडी से रोज़ अपने खेतों की तरफ चक्कर लगाने जाते थे। पर एक दिन (वर्ष 2000) जब निर्भय सिंह जी अपने खेतों से वापिस आ रहे थे तो एक हादसे में उनकी मौत हो गई। तब से ही अमरनाथ जी अपने परिवार और ज़मीन की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं।

2010 में ज़मीन के किराए का मूल्य कम हो जाने के कारण ज़मीन का सही मूल्य नहीं मिलने लगा। इसलिए उन्होंने स्वंय खेती करने का फैसला किया। इसके अलावा 2007 में जब वे खेती करने की सोच रहे थे, तब उनके मित्र निर्मल सिंह ने उन्हें जैविक खेती करने वाले प्रगतिशील किसानों के बारे में बताया।

राजीव दिक्षित वे व्यक्ति थे, जिन्होंने अमरनाथ जी को खेती करने के लिए बहुत प्रेरित किया। और मदद लेने के लिए 2012 में अमरनाथ जी खेती विरासत मिशन में शामिल हुए और उन्होंने सभी कैंपों में उपस्थित होना शुरू किया, जहां से खेती संबंधित जानकारी, भरपूर सूचना हासिल की।

शुरू में अमरनाथ जी ने व्यापारिक तौर पर नरमे और धान की खेती की और घरेलु उद्देश्य के लिए कुछ सब्जियां भी उगायीं। 2012 में उन्होंने 11 एकड़ में खरीफ की फसल ग्वारा उगायी, जिसमें से उन्हें ज्यादा मुनाफा हुआ, पर इससे प्राप्त आय उनके घरेलु और खेती खर्चों को पूरा करने के लिए काफी थी। धीरे-धीरे समय के साथ अमरनाथ जी ने कीटनाशकों का प्रयोग कम कर दिया और 2013 में उन्होंने पूरी तरह कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दिया। 2015 में उन्होंने रासायनिक खादों का प्रयोग भी कम करना शुरू कर दिया। पूरी ज़मीन (36 एकड़) में से वे 26 एकड़ में स्वंय खेती करते हैं और बाकी ज़मीन किराए पर दी है।

“अमरनाथ — रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग बंद करने के बाद मैं अपने और अपने परिवार के जीवन में आया सकारात्मक बदलाव देख सकता हूं।”

इसके फलस्वरूप 2017 में अमरनाथ जी ने अपने वास्तविक गांव वापिस आने का फैसला किया और आज वे अपने परिवार के साथ खुशियों से भरपूर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उन्होंने फार्म का नाम अपने पिता के नाम पर निर्भय फार्म रखा, ताकि उन्हें इस फार्म द्वारा हमेशा याद रखा जा सके।

जैविक खेती को और प्रफुल्लित करने के लिए अमरनाथ जी घर में स्वंय ही डीकंपोज़र और कुदरती कीटनाशक तैयार करके मुफ्त में अन्य किसानों को बांटते हैं आज अमरनाथ जी ने जो कुछ भी हासिल किया है, यह सब उनकी अपनी मेहनत और दृढ़ इरादे का परिणाम है।

भविष्य की योजना

आने वाले समय में मैं अपने बच्चों को खेती अपनाने के लिए प्रेरित करने की योजना बना रहा हूं। मैं चाहता हूं कि वे मेरे साथ खड़े रहें और खेती में मेरी मदद करें।

संदेश
मेरा संदेश नई पीढ़ी के लिए है, आज कल नई पीढ़ी सोशल मीडिया साइट जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हॉट्स एप आदि से बहुत प्रभावित हुई है। उन्हें सोशल मीडिया को, व्यर्थ समय गंवाने की बजाय खेती संबंधित जानकारी हासिल करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।

अमरजीत सिंह ढिल्लों

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आखिर क्यों एम.टैक की पढ़ाई बीच में छोड़कर यह नौजवान करने लगा खेती?

हर माता-पिता का सपना होता है उनके बच्चे पढ़-लिखकर किसी अच्छी नौकरी पर लग जाएं ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो जाये। ऐसा ही सपना अमरजीत सिंह ढिल्लों के माता-पिता का था। इसलिए उन्होंने ने अपने बेटे के बढ़िया भविष्य के लिए उसे बढ़िया स्कूल में पढ़ाया और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने दाखिला बी.टेक मैकेनिकल में करवाया। मैकेनिकल इंजीनियर में ग्रेजुएशन करने के बाद अमरजीत ने एम.टेक करने का फैसला किया और अपना दाखिला भी करवा लिया। पर एम.टेक की पढ़ाई में उनकी कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उन्होंने पढ़ाई बीच ही छोड़ने का फैसला किया।

अमरजीत जी के परिवार के पास 24 एकड़ ज़मीन थी, जिस पर उनके पिता जी और भाई पारंपरिक खेती करते हैं। एक साल तक अमरजीत जी भी अपने पिता के साथ खेती करते रहे, पर नौजवान होने के कारण अमरजीत पारंपरिक खेती के चक्र में नहीं फसना चाहते थे। कृषि के बारे में अपने ज्ञान को अधिक बढ़ाने के लिए उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना जाना शुरू कर दिया।

उन्होंने ने पीएयू में यंग फार्मर कोर्स दाखिला लिया। कोर्स पूरा होने के बाद उन्होंने बागवानी फसल करने का फैसला किया। सबसे पहले उन्होंने अपने फार्म जिसका नाम “ग्रीन एनर्जी फार्म” है,  में फलों की खेती शुरू की।। वह बाद में साथ-साथ सब्जियां, फूलों की खेती और मधु मक्खी पालन का काम भी करने लगे।

“मैंने एक साल के अंदर-अंदर यह सब छोड़कर केवल फलों और सब्जियों की खेती करने का फैसला किया, क्योंकि फलों और सब्जियों का मंडीकरण आसानी से एक ही मंडी में हो जाता है। इसमें दुकानदारी की तरह रोज़ाना कमाई हो जाती है” – अमरजीत सिंह ढिल्लों

अमरजीत जी ने पूरे साल के लिए एक टाइम-टेबल बनाया, जिसके अनुसार वह अलग-अलग महीने बोई हुई फसलों की कटाई करते हैं।

अमरजीत जी जैविक खेती नहीं करते, पर वह सबसे पहले जैविक तरीकों से कीड़ों और बिमारियों पर नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर पीएयू की तरफ से सिफारिश की गई स्प्रे का प्रयोग सिफारिश मात्रा में ही करते हैं। आज भी अमरजीत के.वी.के. और यूनिवर्सिटी और जिला स्तर ट्रेनिंग में भी हिस्सा लेते हैं। आज भी यहाँ अमरजीत जी कोई भी समस्या आती है तो वह पीएयू के माहिरों की सलाह लेते हैं।

“मेरे अनुसार, फल तोड़ने के बाद पौधों पर स्प्रे करनी चाहिए ताकि तोड़ाई और स्प्रे के समय में 24 से 48 घंटे का फासला हो “– अमरजीत सिंह ढिल्लों
उपलब्धियां
अमरजीत जी ने राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से सन्मान हासिल किये हैं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
  • पीएयू की तरफ से मुख्य मंत्री पुरस्कार (2006)
  • आत्मा की तरफ से राज्य स्तरीय पुरस्कार (2009)
  • एग्रीकल्चर समिट चप्पड़चिड़ी में स्टेट पुरस्कार
  • इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वेजिटेबल रिसर्च की तरफ से ज़ोनल पुरस्कार (2018)
  • IARI की तरफ से इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार (नेशनल अवार्ड 2018)
भविष्य की योजना

भविष्य में अमरजीत सिंह ढिल्लों अपना पूरा ध्यान फलों और सब्जियों की सेल्फ मार्केटिंग और प्रोसेसिंग पर केंद्र करना चाहते हैं।

संदेश
“बागवानी क्षेत्र में आने के चाहवान नौजवानों को अच्छी तरह पढ़ाई करके और ट्रेनिंग लेकर खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। छोटे स्तर पर खेती करनी शुरू करनी चाहिए, किसी की बातों में आकर शुरू में ही ज़्यादा पैसे का निवेश नहीं करना चाहिए। खेतीबाड़ी से संबंधित किताबें पड़नी चाहिए और हमेशा सीखते रहना चाहिए।”

प्रियंका गुप्ता

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एक होनहार बेटी जो अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए मेहनत कर रही है

आज-कल के ज़माने में जहाँ बच्चे माता-पिता को बोझ समझते हैं, वहां दूसरी तरफ प्रियंका गुप्ता अपने पिता के देखे हुए सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है।

एम.बी.ए. फाइनांस की पढ़ाई पूरी कर चुकी प्रियंका का बचपन पंजाब के नंगल में बीता। प्रियंका के पिता बदरीदास बंसल बिजली विभाग, भाखड़ा डैम में नियुक्त थे जो कि नौकरी के साथ-साथ अपने खेती के शौंक को भी पूरा कर रहे थे। उनके पास घर के पीछे थोड़ी सी ज़मीन थी, जिस पर वह सब्जियों की खेती करते थे। 12 साल नंगल में रहने के बाद प्रियंका के पिता का तबादला पटियाला में हो गया और उनका पूरा परिवार पटियाला में आकर रहने लगा। यहाँ इनके पास बहुत ज़मीन खाली थी जिस पर वह खेती करने लग गए। इसके साथ ही उन्होंने अपना घर बनाने के लिए संगरूर में अपना प्लाट खरीद लिया।

बदरीदास जी बिजली विभाग में से चीफ इंजीनियर रिटायर हुए। इसके साथ ही उनके परिवार को पता लगा कि प्रियंका के माता जी (वीना बंसल) कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं और इस बीमारी से लड़ते-लड़ते वह दुनिया को अलविदा कह गए।

वीना बंसल जी के देहांत के बाद बदरीदास जी ने इस सदमे से उभरने के लिए अपना पूरा ध्यान खेती पर केंद्रित किया। उन्होंने संगरूर में जो ज़मीन घर बनाने के लिए खरीदी थी उसके आस-पास कोई घर नहीं और बाजार भी काफी दूर था तो उनके पिता ने उस जगह की सफाई करवाकर वहां पर सब्जियों की खेती करनी शुरू की। 10 साल तक उनके पिता जी ने सब्जियों की खेती में काफी तजुर्बा हासिल किया। रिश्तेदार भी उनसे ही सब्जियां लेकर जाते हैं। पर अब बदरीदास जी ने खेती को अपने व्यवसाय के तौरपर अपनाने के मन बना लिया।

पर बदरीदास जी की सेहत ज़्यादा ठीक नहीं रहती थी तो प्रियंका ने अपने पिता की मदद करने का मन बना लिया और इस तरह प्रियंका का खेती में रुझान और बढ़ गया।

वह पहले पंजाब एग्रो के साथ काम करते थे पर पिता की सेहत खराब होने के कारण उनका काम थोड़ा कम हो गया। इस बात का प्रियंका को दुख है क्योंकि पंजाब एग्रो के साथ मिलकर उनका काम बढ़िया चल रहा था और सामान भी बिक जाता था। इसके बाद संगरूर में 4-5 किसानों से मिलकर एक दुकान खोली पर कुछ कमियों के कारण उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी।

अब उनका 4 एकड़ का फार्म संगरूर में है पर फार्म की ज़मीन ठेके पर ली होने के कारण वह अभी तक फार्म का रजिस्ट्रेशन नहीं करवा सके क्योंकि जिनकी ज़मीन है, वह इसके लिए तैयार नहीं है।

पहले-पहले उन्हें मार्केटिंग में समस्या आई पर उनकी पढ़ाई के कारण इसका समाधान भी हो गया। अब वह अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय खेती को देने लगे। वह पूरी तरह जैविक खेती करते हैं।

ट्रेनिंग:

प्रियंका ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना से बिस्कुट और स्कवैश बनाने की ट्रेनिंग के साथ-साथ मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग भी ली, जिससे उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।

प्रियंका के पति कुलदीप गुप्ता जो एक आर्किटेक्ट हैं, के बहुत से दोस्त और पहचान वाले प्रियंका द्वारा तैयार किये उत्पाद ही खरीदते हैं।

“लोगों का सोचना है कि आर्गेनिक उत्पाद की कीमत ज़्यादा होती है पर कीमत का कोई ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता। कीटनाशकों से तैयार किये गए उत्पाद खाकर सेहत खराब करने से अच्छा है कि आर्गेनिक उत्पादों का प्रयोग किया जाये, क्योंकि सेहत से बढ़कर कुछ नहीं”- प्रियंका गुप्ता
प्रियंका द्वारा तैयार किये कुछ उत्पाद:
  • बिस्कुट (बिना अमोनिया)
  • अचार
  • वड़ियाँ
  • काले छोले
  • साबुत मसर
  • हल्दी
  • अलसी के बीज
  • सोंफ
  • कलोंजी
  • सरसों
  • लहसुन
  • प्याज़
  • आलू
  • मूंगी
  • ज्वार
  • बाजरा
  • तिल
  • मक्की देसी
  • सभी सब्जियां
पेड़
  • ब्रह्मी
  • स्टीविया
  • हरड़
  • आम
  • मोरिंगा
  • अमरुद
  • करैनबेरी
  • पुदीना
  • तुलसी
  • नींबू
  • खस
  • शहतूत
  • आंवला
  • अशोका

यह सब उत्पाद बनाने के अलावा प्रियंका मधुमक्खी पालन और पोल्ट्री का काम भी करते हैं, जिसमें उनके पति भी उनका साथ देते हैं।

“हम मोनो क्रॉपिंग नहीं करते, अकेले धान और गेहूं की बिजाई नहीं करते, हम अलग-अलग फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, मक्की इत्यादि की बिजाई भी करते हैं।” – प्रियंका गुप्ता
उपलब्धियां:
  • प्रियंका 2 बार वोमेन ऑफ़ इंडिया ऑर्गेनिक फेस्टिवल में हिस्सा ले चुकी है।
  • छोटे बच्चों को बिस्कुट बनाने की ट्रेनिंग दी।
  • जालंधर रेडियो स्टेशन AIR में भी हिस्सा ले चुके हैं।
भविष्य की योजना:

भविष्य में यदि कोई उनसे सामान लेकर बेचना चाहता है तो वह सामान ले सकते हैं ताकि प्रियंका अपना पूरा ध्यान क्वालिटी बढ़ाने में केंद्रित कर सकें और अपने पिता का सपना पूरा कर सकें।

किसानों को संदेश
“मेहनत तो हर काम में करनी पड़ती है। मेहनत के बाद तैयार खड़ी हुई फसल को देखकर और ग्राहकों द्वारा तारीफ सुनकर जो संतुष्टि मिलती है , उसकी शब्दों में व्याख्या नहीं की जा सकती।”

मनदीप वर्मा

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जानिए कैसे यह किसान बंजर भूमि पर खेती कर कमा रहा है लाखों रुपए

एक किसान के लिए उसकी भूमि ही सब कुछ होती है। फसल की पैदावार भूमि के उपजाऊपन पर ही निर्भर करती है, पर यदि भूमि ही बंजर हो तो किसान की उम्मीदें हो टूट जाती है। पर हिमाचल का एक ऐसा किसान है जो बंजर भूमि पर खेती कर आज लाखों रूपये कमा रहा है।

एम.बी.ए. की पढ़ाई करने वाले मनदीप वर्मा ने मैनेजर के रूप में विपरो कंपनी में 4-5 साल नौकरी की। पर इस नौकरी से उनको संतुष्टि नहीं मिली और फिर उन्होंने अपनी पत्नी के साथ अपने शहर सोलन आने का फैसला किया। उन्होंने ने सोलन वापिस आकर बंजर भूमि पर खेती करने के बारे में सोचा। पर वह सभी किसानों की तरह पारंपरिक खेती नहीं करना चाहते थे। उन्होंने सबसे अलग करने का फैसला किया और बागवानी करने के विचार बनाया।

अपने इस विचार को हकीकत (वास्तविकता) का रूप देने के लिए उन्होंने ने पहले अपने इलाके के मौसम के बारे में जानकारी हासिल की और यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों से मिलकर सभी जानकारी हासिल की और अंत में उन्होंने कीवी की खेती करने का फैसला किया।

कीवी के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए मैं पुस्तकालय (लाइब्रेरी) में गया, बहुत सी किताबें पड़ी और यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों से भी मिले और सभी जानकारी हासिल करने के बाद कीवी की खेती शुरू की- मनदीप वर्मा

सोलन के बागवानी विभाग और डॉ.यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से बात करने के बाद 2014 में कीवी का बाग तैयार करने का मन बनाया। उन्होंने ने 14 बीघा भूमि पर कीवी का बगीचा बनाया।

उन्होंने ने इस बगीचे में कीवी की उन्नत किस्में एलिसन और हैबर्ड के पौधे लगाए। लगभग 14 लाख रूपये में बगीचा तैयार करने के बाद 2017 में मनदीप सिंह जी ने कीवी बेचने के लिए वेबसाइट बनाई।

बाग से फल सीधा ग्राहक तक पहुँचाने की मेरी यह कोशिश सफल रही। – मनदीप वर्मा

कीवी की सप्लाई वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग के बाद की जाती है। हैदराबाद, बंगलौर, दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में ऑनलाइन कीवी फल बेचा जाता है।

कीवी के डिब्बे के ऊपर फल की कब तोड़ाई की, कब डिब्बे में पैक किया सभी जानकारी डिब्बे के ऊपर दी जाती है। एक डिब्बे में एक किलो कीवी फल पैक किया जाता है और इसकी कीमत 350 रूपये प्रति/बॉक्स है। जबकि सोलन में कीवी 150 रूपये प्रति किलोग्राम बेचा जाता है।

मनदीप मुताबिक देश में कीवी की खेती की शुरुआत हिमाचल प्रदेश से ही हुई। आज देश का कुल 60 प्रतिशत कीवी उत्पादन अरुणाचल प्रदेश में तैयार होता है।

मनदीप कीवी फल पूरी तरह जैविक तरीके से तैयार करते हैं। जैविक खेती के उद्देश्य को अपनाते हुए वह कंपोस्ट और जैविक अमृत भी आप तैयार करते हैं।

हमारे फार्म में तैयार हुए कीवी डेढ़-दो महीने तक खराब नहीं होता- मनदीप वर्मा

कीवी की खेती में सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने 2018 में सेब की खेती शुरू की। मनदीप जीरो बजट खेती में विश्वास रखते हैं।

उपलब्धियां

कीवी की खेती में सफलता हासिल करने के कारण उन्हें 2019 में कृषि मेला हिमाचल प्रदेश में प्रगतिशील किसान पुरस्कार दिया गया।

भविष्य की योजना

इस समय मनदीप वर्मा की दो नर्सरी है और वे ऐसी और नर्सरी तैयार करना चाहते हैं।

संदेश
“किसी भी तरह की खेती करने से पहले उस जगह के मौसम संबंधी जानकारी हासिल करनी चाहिए। आज-कल सोशल मीडिया पर सभी जानकारी उपलब्ध है। हमें सोशल मीडिया का उपयोग सहज तरीके से करना चाहिए। हमे जैविक खेती और जीरो बजट खेती साथ में करनी चाहिए, क्योंकि इसमें ज़्यादा मुनाफा है।”

रिषभ सिंगला

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हरियाणा का 23 साल का नौजवान बन रहा है दूसरे नौजवानों के लिए मिसाल

बेरोज़गारी के इस दौर में एक तरफ जहाँ हमारी युवा पीढ़ी नशों की तरफ जा रही है या विदेशों में रहने के बारे में सोच रही है, वहां ही दूसरी तरफ हरियाणा का 23 साल का नौजवान कुछ अनोखा करके बाकि लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन रहे है। जी हां हरियाणा के रिषभ सिंगला, जो कि अपनी BBA पढ़ाई पूरी कर चुके हैं, अपनी ज़िन्दगी में कुछ अलग करने की इच्छा रखते थे। आज-कल बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग सभी ही चॉकलेट के शौक़ीन हैं। इसलिए रिशभ चॉकलेट बनाने के बारे में सोचने लगे। रिशभ को पढ़ाई करते हुए ही पता चला कि कोको प्लांट्स की आर्गेनिक खेती कर्नाटक में होती है, पर उन्हें इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, क्योंकि रिशभ के पिता धूप-अगरबत्ती की ट्रेडिंग का व्यापार करते हैं। इसके लिए कोको प्लांट्स के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने के लिए COORG (कर्नाटक) गए। उन्होंने जानकारी हासिल करने के बाद चॉकलेट तैयार करने का इरादा बनाया।

फरवरी 2018 में पहली बार कर्नाटक के किसानों से आर्गेनिक कोको बीन्स लेकर रिशभ ने घर पर ही मिक्सर ग्राइंडर के साथ कोको बीन्स पीसकर चॉकलेट तैयार की। हालाँकि पहले उनको इस काम में कठिनाई आई पर उन्होंने हार नहीं मानी। रिशभ ने अन्य कई किस्मों की चॉकलेट तैयार की और उनको इस काम में सफलता भी मिली। इस तरह उनके द्वारा घर में चॉकलेट तैयार करने का सिलसिला शुरू हो गया। पहले उनके परिवार के सदस्य ही इस काम में उनकी मदद करते थे, पर काम ज़्यादा होने के कारण उन्होंने 8 घरेलू महिलाओं को अपने काम में शामिल कर लिया और उनको रोज़गार उपलब्ध करवाया।

“मेरे अनुसार, भले ही इस व्यवसाय में मुनाफा कम हो लेकिन चॉकलेट की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि आज कल के दौर में मिलावटी चीजें बहुत बेची जाती हैं, जो लोगों के स्वस्थ के लिए हानिकारक होती हैं।” – रिशभ सिंगला

अपनी सोच के अनुसार ही रिशभ केवल आर्गेनिक तौर पर कोको बीन्स ही खरीदते हैं और इनसे ही चॉकलेट तैयार करते हैं। अब रिशभ बंगाल में तैयार किये आर्गेनिक कोको बीन्स ही चॉकलेट तैयार करने के लिए खरीदते हैं।

कोको बीन्स के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने और उनसे चॉकलेट तैयार करने के बाद रिशभ अब चॉकलेट की पैकिंग भी स्वयं करते हैं। रिशभ चॉकलेट की पैकिंग इतने आकर्षक तरीके से करते हैं कि चॉकलेट की पैकिंग देखकर ही उसकी गुणवत्ता का अंदाज़ा लग जाता है। वह चॉकलेट की पैकिंग इस तरीके से करते हैं कि जो भी उसे देखता है चॉकलेट खाने के बिना नहीं रह सकता।

नौजवान होने के कारण रिशभ सब की ज़िंदगी में सोशल मीडिया के महत्व को अच्छी तरह से समझते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया को सार्थक रूप में उपयोग करते हुए अपने ब्रांड “शियाम जी चॉकलेट” की मार्केटिंग ऑनलाइन करनी शुरू की। इससे उनके व्यवसाय को एक नई दिशा मिली।

“जो काम हाथों से अच्छी तरह और सफाई से हो सकता है, वह काम मशीनों से नहीं किया जा सकता। पर मशीनें काम को बहुत आसान बना देती हैं।” –  रिशभ सिंगला

शियाम जी चॉकलेट द्वारा तैयार किये गए उत्पाद:-

  • 85% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार
  • 75% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार
  • 55% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार
  • 19% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार इन डिफरेंट फ्लेवर्स
  • सी साल्ट आर्गेनिक चॉकलेट बार

खोज

  • माइंड बूस्टर चॉकलेट बार
  • जैगरी चॉकलेट बार
  • चिआ सीड्स चॉकलेट बार
  • फाइबर बूस्टर चॉकलेट बार
  • ब्लैक पैपर चॉकलेट बार
  • फ्लेक्स सीड्स चॉकलेट बार

फेस्टिवल आइटम

  • फेस्टिव सेलिब्रेशन एसोरटिड असॉर्टेड 15 पीस चॉकलेट बॉक्स

भविष्य की योजना:

रिशभ अब भी घर में ही चॉकलेट तैयार करते हैं, पर वह भविष्य में अपनी चॉकलेट की फैक्टरी लगाना चाहते हैं, जिसमें वह प्रोसेसिंग के लिए नई मशीनें और तकनीक इस्तेमाल करेंगे।

भले ही रिशभ को इस काम को शुरू किये हुए अभी एक साल का समय हुआ है, पर वह आगे भी इस क्षेत्र में अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं और चॉकलेट की गुणवत्ता को बढ़ाना चाहते हैं।

संदेश
“रिशभ सिंगला आर्गेनिक उत्पाद तैयार करते हैं और वह दूसरे नौजवानों को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि वह आर्गेनिक तौर पर तैयार किये गए उत्पादों का प्रयोग करें और बिमारियों से दूर रहें, क्योकि स्वास्थ्य सबसे ज़रूरी है।”

नारायण लाल धाकड़

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जानिये कैसे यह 19 वर्षीय युवा किसानों को स्थायी खेती के तरीकों को सिखाने के लिए यूट्यूब और फेसबुक का उपयोग कर रहा है

युवा किसान कृषि का भविष्य हैं और इस 19 वर्षीय लड़के ने खेती की ओर अपने जुनून को दिखाकर सही साबित किया है। नारायण लाल धाकड़ राजाओं, विरासत, पर्यटन, और समृद्ध संस्कृति की भूमि— राजस्थान के एक नौजवान हैं और उनका व्यक्तित्व भी उनकी मातृभूमि की तरह ही विशिष्ट है।

आजकल, हम कई उदाहरण देख रहे हैं जहां भारत के शिक्षित लोग अपने कार्यस्थल के रूप में कृषि का चयन कर रहे हैं और एक स्वतंत्र कृषि उद्यमी के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं, वैसे ही नारायण लाल धाकड़ हैं। बुनियादी सुविधाओं और पर्यटन संसाधनों की कमी के बावजूद, इस युवा ने कृषि समाज की सहायता के लिए ज्ञान का प्रसार करने के लिए युट्यूब और फेसबुक को माध्यम चुना। वर्तमान में उनके 60000 यूट्यूब सबस्क्राइबर और 30000 फेसबुक फोलोअर है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस लड़के के पास वीडियो एडिट करने के लिए कोई लैपटॉप, कंप्यूटर सिस्टम और किसी प्रकार का वीडियो एडिटिंग उपकरण नहीं है। अपने स्मार्टफोन की मदद से वे कृषि की सूचनात्मक वीडियो बनाते हैं।

“मेरे जन्म से कुछ दिन पहले ही मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी और यह मेरे परिवार के लिए एक बहुत ही विकट स्थिति थी। मेरे परिवार को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन फिर भी मेरी मां ने खेती और मजदूरी दोनों काम करके हमें अच्छे से बड़ा किया। पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए, मैनें बहुत कम उम्र में खेती शुरू की और इसे बहुत जल्दी सीख लिया” — नारायण

गुज़ारे योग्य स्थिति में रहकर नारायण ने महसूस किया कि दैनिक आम कीट और खेत की समस्याओं से निपटने के लिए संसाधनों का आसान नुस्खों से प्रयोग करना सबसे अच्छी बात हैं। नारायण ने यह भी स्वीकार किया कि खेती के खर्च का बड़ा हिस्सा सिर्फ खादों और कीटनाशकों के उपयोग के कारण है और यही कारण है कि किसानों पर कर्ज़े का एक बड़ा पहाड़ बनाता है।

“जब बात जैविक खेती को अपनाने की आती है, तो हर किसान सफलतापूर्वक ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि इसमें उत्पादकता कम होती है और दूरदराज के स्थानों पर जैविक स्प्रे और उत्पाद आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।” — नारायण

अपने क्षेत्र की समस्या को समझते हुए, नारायण ने नीलगाय, कीट और फसल की बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए कई आसान तकनीकों का आविष्कार किया। नारायण द्वारा विकसित सभी तकनीकें सफल रहीं और वे इतनी सस्ती है कि कोई भी किसान इन्हें आसानी से अपना सकता है और हर तकनीक को उपलब्ध करवाने के लिए वे अपने फोन में वीडियो बनाते हैं इसमें सब कुछ समझाते हैं और इसे यूट्यूब और फेसबुक पर शेयर करते हैं।अपने फोन द्वारा वीडियो बनाने में आई कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद उन्होंने किसानों की मदद करने के अपने विचार को कभी नहीं छोड़ा। नारायण अपने क्षेत्र के कई किसानों तक पहुंचते हैं और कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि वैज्ञानिकों तक पहुंचकर उनकी समस्या हल कर देते हैं।

नारायण लाल धाकड़ ने 19 वर्ष की उम्र में अपनी सफलता की कहानी लिखी। सतत कृषि तकनीकों के प्रति सामंज्सयपूर्ण तरीके से काम करने के अपने जुनून और दृढ़ संकल्प को देखते हुए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने उन्हें 2018 में कृषि पुरस्कार के लिए नामांकित किया है।

आज, नारायण लाल धाकड़ भारत में उभरती हुई आवाज़ बन गए हैं जिसमें किसानों की खराब परिस्थितियों को बदलने की क्षमता है।


संदेश
“किसानों को जैविक खेती को अपनाना चाहिए क्योंकि उनके खेत में रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है बल्कि उनके अपने लोगों को भी नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा, जैविक खेती करने वाले किसान कीटनाशकों और नदीननाशकों पर बिना खर्च किए स्वस्थ उपज ले सकते हैं।”

रवि शर्मा

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कैसे एक दर्जी बना मधुमक्खी पालक और शहद का व्यापारी

मक्खी पालन एक उभरता हुआ व्यवसाय है जो सिर्फ कृषि समाज के लोगों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि भविष्य के लाभ के कारण अलग अलग क्षेत्र के लोगों को भी आकर्षित करता है। एक ऐसे ही व्यक्ति हैं- रवि शर्मा, जो कि मक्खीपालन का विस्तार करके अपने गांव को एक औषधीय पॉवरहाउस स्त्रोत बना रहे हैं।

1978 से 1992 तक रवि शर्मा, जिला मोहाली के एक छोटे से गांव गुडाना में दर्जी का काम करते थे और अपने अधीन काम कर रहे 10 लोगों को भी गाइड करते थे। गांव की एक छोटी सी दुकान में उनका दर्जी का काम तब तक अच्छा चल रहा था जब तक वे राजपुरा, पटियाला नहीं गए और डॉ. वालिया (एग्री इंस्पैक्टर) से नहीं मिले।

डॉ. वालिया ने रवि शर्मा के लिए मक्खी पालन की तरफ एक मार्गदर्शक के तौर पर काम किया। ये वही व्यक्ति थे जिन्होंने रवि शर्मा को मक्खीपालन की तरफ प्रेरित किया और उन्हें यह व्यवसाय आसानी से अपनाने में मदद की।

शुरूआत में श्री शर्मा ने 5 मधुमक्खी बॉक्स पर 50 प्रतिशत सब्सिडी प्राप्त की और स्वंय 5700 रूपये निवेश किए। जिनसे वे 1 ½ क्विंटल शहद प्राप्त करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। पहली कमाई ने रवि शर्मा को अपना काम 100 मधुमक्खी बक्सों के साथ विस्तारित करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह उनका काम मक्खीपालन में परिवर्तित हुआ और उन्होंने 1994 में दर्जी का काम पूरी तरह छोड़ दिया।

1997 में रेवाड़ी, हरियाणा में एक खेतीबाड़ी प्रोग्राम के दौरे ने मधुमक्खी पालन की तरफ श्री शर्मा के मोह को और बढ़ाया और फिर उन्होंने मधुमक्खियों के बक्सों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया। अब उनके फार्म पर मधुमक्खियों के विभिन्न 350-400 बक्से हैं।

2000 में, श्री रवि ने 15 गायों के साथ डेयरी फार्मिंग करने की कोशिश भी की, लेकिन यह मक्खीपालन से अधिक सफल नहीं था। मज़दूरों की समस्या होने के कारण उन्होंने इसे बंद कर दिया। अब उनके पास घरेलु उद्देश्य के लिए केवल 4 एच. एफ. नसल की गाय हैं और एक मुर्रा नसल की भैंस हैं और कई बार वे उनका दूध मार्किट में भी बेच देते हैं। इसी बीच मक्खी पालन का काम बहुत अच्छे से चल रहा था।

लेकिन मक्खीपालन की सफलता की यात्रा इतनी आसान नहीं थी। 2007-08 में उनकी मौन कॉलोनी में एक कीट के हमले के कारण सारे बक्से नष्ट हो गए और सिर्फ 35 बक्से ही रह गए। इस घटना से रवि शर्मा का मक्खी पालन का व्यवसाय पूरी तरह से नष्ट हो गया।

लेकिन इस समय ने उन्हें और ज्यादा मजबूत और अधिक शक्तिशाली बना दिया और थोड़े समय में ही उन्होंने मधुमक्खी फार्म को सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया। उनकी सफलता देखकर कई अन्य लोग उनसे मक्खीपालन व्यवसाय के लिए सलाह लेने आये। उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को 20-30 मधुमक्खी के बक्से बांटे और इस तरह से उन्होंने एक औषधीय स्त्रोत बनाया।

“एक समय ऐसा भी आया जब मधुमक्खी के बक्सों की गिणती 4000 तक पहुंच गई और वे लोग जिनके पास इनकी मलकीयत थी उन्होंने भी मक्खी पालन के उद्यम में मेरी सफलता को देखते हुए मक्खीपालन शुरू कर दिया।”

आज रवि मधुमक्खी फार्म में, फार्म के काम के लिए दो श्रमिक हैं। मार्किटिंग भी ठीक है क्योंकि रवि शर्मा ने एक व्यक्ति के साथ समझौता किया हुआ है जो उनसे सारा शहद खरीदता है और कई बार रवि शर्मा आनंदपुर साहिब के नज़दीक एक सड़क के किनारे दुकान पर 4-5 क्विंटल शहद बेचते हैं जहां से वे अच्छी आमदन कमा लेते हैं।

मक्खीपालन रवि शर्मा के लिए आय का एकमात्र स्त्रोत है जिसके माध्यम से वे अपने परिवार के 6 सदस्यों जिनमें पत्नी, माता, दो बेटियां और एक बेटा है, का खर्चा पानी उठा रहे हैं।

“मक्खी पालन व्यवसाय के शुरूआत से ही मेरी पत्नी श्रीमती ज्ञान देवी, मक्खीपालन उद्यम की शुरूआत से ही मेरा आधार स्तम्भ रही। उनके बिना मैं अपनी ज़िंदगी के इस स्तर तक नहीं पहुंच पाता।”

वर्तमान में, रवि मधुमक्खी फार्म में शहद और बी वैक्स दो मुख्य उत्पाद है।

भविष्य की योजनाएं:
अभी तक मैंने अपने गांव और कुछ रिश्तेदारों में मक्खीपालन के काम का विस्तार किया है लेकिन भविष्य में, मैं इससे बड़े क्षेत्र में मक्खीपालन का विस्तार करना चाहता हूं।

संदेश
“एक व्यक्ति अगर अपने काम को दृड़ इरादे से करे और इन तीन शब्दों “ईमानदारी, ज्ञान, ध्यान” को अपने प्रयासों में शामिल करे तो जो वह चाहता है उसे प्राप्त कर सकता है।”

श्री रवि शर्मा के प्रयासों के कारण आज गुडाना गांव शहद उत्पादन का एक स्त्रोत बन चुका है और मक्खीपालन को और अधिक प्रभावकारी व्यवसाय बनाने के लिए वे अपने काम का विस्तार करते रहेंगे।

अंकुर सिंह और अंकिता सिंह

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सिम्बॉयसिस से ग्रेजुएटड इस पति-पत्नी की जोड़ी ने पशु पालन के लिए उनकी एक नई अवधारणा के साथ एग्रीबिज़नेस की नई परिभाषा दी

भारत की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से एग्रीबिज़नेस में एम बी ए करने के बाद आप कौन से जीवन की कल्पना करते हैं। शायद एक कृषि विश्लेषक, खेत मूल्यांकक, बाजार विश्लेषक, गुणवत्ता नियंत्रक या एग्रीबिजनेस मार्केटिंग कोऑर्डिनेटर की।

खैर, एम.बी.ए (MBA) कृषि स्नातकों के लिए ये जॉब प्रोफाइल सपने सच होने जैसा है, और यदि आपने एम.बी.ए (MBA) किसी सम्मानित यूनिवर्सिटी से की है तो ये तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी। लेकिन बहुत कम लोग होते हें जो एक मल्टीनेशनल संगठन का हिस्सा बनने की बजाय, एक शुरूआती उद्यमी के रूप में उभरना पसंद करते हैं जो उनके कौशल और पर्याप्तता को सही अर्थ देता है।

अरबन डेयरी- कच्चे रूप में दूध बेचने के अपने विशिष्ट विचार के साथ पशु पालन की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने के लिए एक उद्देश्य के साथ इस प्रतिभाशाली जोड़ी- अंकुर और अंकिता की यह एक पहल है। यह फार्म कानपुर शहर से 55 किलोमीटर की दूरी पर उन्नाव जिले में स्थित है।

इस दूध उद्यम को शुरू करने से पहले, अंकुर विभिन्न कंपनियों में एक बायो टैक्नोलोजिस्ट और कृषक के रूप में काम कर रहे थे (कुल काम का अनुभव 2 वर्ष) और 2014 में अंकुर अपनी दोस्त अंकिता के साथ शादी के बंधन में बंधे, उन्होंने उनके साथ पुणे से एम.बी.ए (MBA) की थी।

खैर, कच्चा दूध बेचने का यह विचार सिद्ध हुआ, अंकुर के भतीजे के भारत आने पर। क्योंकि वह पहली बार भारत आया था तो अंकुर ने उसके इस अनुभव को कुछ खास बनाने का फैसला किया।

अंकुन ने विशेष रूप से गाय की स्वदेशी नसल -साहिवाल खरीदी और उसे दूध लेने के उद्देश्य से पालना शुरू किया, हालांकि यह उद्देश्य सिर्फ उसके भतीजे के लिए ही था लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास हुआ कि गाय का दूध, पैक किए दूध से ज्यादा स्वस्थ और स्वादिष्ट है। धीरे-धीरे पूरे परिवार को गाय का दूध पसंद आने लगा और सबने उसे पीना शुरू कर दिया।

अंकुर को बचपन से ही पशुओं का शौंक था लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने सोचा कि स्वास्थ्य के साथ क्यों समझौता करना, और 2015 में दोनों पति – पत्नी (अंकुर और अंकिता) ने पशु पालन शुरू करने का फैसला किया। अंकुर ने पशु पालन शुरू करने से पहले NDRI करनाल से छोटी सी ट्रेनिंग ली और इस बीच उनकी पत्नी अंकिता ने खेत के सभी निर्माण कार्यों की देख-रेख की। उन्होंने 6 होलस्टिन से प्रजनित गायों से शुरूआत की और अब 3 वर्ष बाद उनके पास उनके गोशाला में 34 होलस्टीन/जर्सी प्रजनित गायें और 7 स्वदेशी गायें (साहिवाल, रेड सिंधी, थारपारकर) हैं।

अरबन डेयरी वह नाम था जिसे उन्होंने अपने ब्रांड का नाम रखने के बारे में सोचा, जो कि ग्रामीण विषय को शहरी विषय में सम्मिलित करता है, दो ऐसे क्षेत्रों को जोड़ता है जो कि एक दूसरे से बिल्कुल ही विपरीत हैं।

उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए डेयरी फार्म के प्रबंधन से लेकर उत्पाद की मार्किटिंग और उसका विकास करने के लिए एक भी कदम नहीं छोड़ा । पूरे खेत का निर्माण 4 एकड़ में किया गया है और उसके रख-रखाव के लिए 7 कर्मचारी हैं। पशुओं को नहलाना, भोजन करवाना, गायों की स्वच्छता बनाए रखना और अन्य फार्म से संबंधित कार्य कर्मचारियों द्वारा हाथों से किए जाते हैं और गाय की सुविधा देखकर दूध, मशीन और हाथों से निकाला जाता है। अंकुर और अंकिता दोनों ही बिना एक दिन छोड़े दिन में एक बार फार्म जाते ही हैं। वे अपने खेत में अधिकतर समय बिताना पसंद ही नहीं करते बल्कि कर्मचारियों को अपने काम को अच्छे ढंग से करने में मदद भी करते हैं।

“अंकुर: हम गाय की फीड खुद तैयार करते हैं क्योंकि दूध की उपज और गाय का स्वास्थ्य पूरी तरह से फीड पर ही निर्भर करता है और हम इस पर कभी भी समझौता नहीं करते। गाय की फीड का फॉर्मूला जो हम अपनाते हैं वह है – 33% प्रोटीन, 33% औद्योगिक व्यर्थ पदार्थ (चोकर), 33% अनाज (मक्की, चने) और अतिरिक्त खनिज पदार्थ।

पशु पालन के अलावा वे सब्जियों की जैविक खेती में भी सक्रिय रूप से शामिल हैं। उन्होंने अतिरिक्त 4 एकड़ की भूमि किराये पर ली है। इससे पहले अंकिता ने उस भूमि का प्रयोग एक घरेलु बगीची के रूप में किया था। उन्होंने गाय के गोबर के अलावा उस भूमि पर किसी भी खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया। अब वह भूमि पूरी तरह से जैविक बन गई है। जिसका इस्तेमाल गेहूं, चना, गाजर, लहसुन, मिर्च, धनिया और अन्य मौसमी सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है। वे कृषि फसलों का प्रयोग गाय के चारे और घर के उद्देश्य के लिए करते हैं।

शुरूआत में, मेरी HF प्रजनित गाय 12 लीटर दूध देती थी, दूसरे ब्यांत के बाद उसने 18 लीटर दूध देना शुरू किया और अब वह तीसरे ब्यांत पर हैं और हम 24 लीटर दूध की उम्मीद कर रहे हैं। दूध उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी की संभावना है।

मार्किटिंग:

दूध को एक बड़े दूध के कंटेनर में भरने और एक पुराने दूध मापने वाले यंत्र की बजाय वे अपने उत्पादन की छवि को बढ़ाने के लिए एक नई अवधारणा के साथ आए। वे कच्चे दूध को छानने के बाद सीधा कांच की बोतलों में भरते हैं और फिर सीधे ग्राहकों तक पहुंचाते हैं।

लोगों ने खुली बाहों से उनके उत्पाद को स्वीकार किया है आज तक अर्थात् 3 साल उन्होंने अपने उत्पादों की बिक्री के लिए कोई योजना नहीं बनाई और ना ही लोगों को उत्पाद का प्रयोग करने के लिए कोई विज्ञापन दिया। जितना भी उन्होंने अब तक ग्राहक जोड़ा है। वह सब अन्य लोगों द्वारा उनके मौजूदा ग्राहकों से उनके उत्पाद की प्रशंसा सुनकर प्रभावित हुए हैं। इस प्रतिक्रिया ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि उन्होंने पनीर, घी और अन्य दूध आधारित डेयरी उत्पादों का उत्पादन शुरू कर दिया है। ग्राहकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उनकी बिक्री में वृद्धि हुई है।

दूध की बिक्री के लिए उनके शहर में उनका अपना वितरण नेटवर्क है और उनकी उन्नति देखकर यह समय के साथ और ज्यादा बढ़ जायेगा।

भविष्य की योजनाएं:

स्वदेशी गाय की नस्ल की दूध उत्पादन क्षमता इतनी अधिक नहीं होती और वे प्रजनित स्वदेशी गायों द्वारा गाय की एक नई नसल को विकसित करना चाहते हैं जिसकी दूध उत्पादन की क्षमता ज्यादा हो क्योंकि स्वदेशी नसल के गाय की दूध की गुणवत्ता ज्यादा बेहतर होती है और मुनष्यों के लिए इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी साबित हुए हैं।

उनके अनुसार, स्वस्थ हालातों में दूध को एक हफ्ते के लिए 2 डिगरी सेंटीग्रेड पर रखा जा सकता है और इस प्रयोजन के लिए वे आने वाले समय में दूध को लंबे समय तक स्टोर करने के लिए एक चिल्लर स्टोरेज में निवेश करना चाहते हैं ताकि वे दूध को बहु प्रयोजन के लिए प्रयोग कर सकें।

संदेश:
“पशु पालकों को उनकी गायों की स्वच्छता और देखभाल को अनदेखा नहीं करना चाहिए, उन्हें उनका वैसा ही ध्यान रखना चाहिए जैसा कि वे अपने स्वास्थ्य का रखते हैं और पशु पालन शुरू करने से पहले हर किसान को ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और बेहतर भविष्य के लिए मौजूदा पशु पालन पद्धतियों से खुद को अपडेट रखना चाहिए। पशु पालन केवल तभी लाभदायक हो सकता है जब आपके फार्म के पशु खुश हों। आपके उत्पाद का बिक्री मुल्य आपको मुनाफा कमाने से नहीं मिलेगा लेकिन एक खुश पशु आपको अच्छा मुनाफा कमाने में मदद कर सकता है।”

जगदीप सिंह

पूरी जानकारी देखें

जानें कैसे इस किसान की व्यावहारिक पहल ने पंजाब को पराली जलाने के लिए ना कहने में मदद की

पराली जलाना और कीटनाशकों का प्रयोग करना पुरानी पद्धतियां हैं जिनका पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव आज हम देख रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के कारण भारत के उत्तरी भागों को वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कई वर्षों में वायु की गुणवत्ता खराब हो गई है और यह कई गंभीर श्वास और त्वचा की समस्याओं को जन्म दे रही है।

हालांकि सरकार ने पराली जलाने की समस्या को रोकने के लिए कई प्रमुख कदम उठाए हैं फिर भी वे किसानों को पराली जलाने से रोक नहीं पा रहे। किसानों में ज्ञान और जागरूकता की कमी के कारण पंजाब में पराली जलाना एक बड़ा मुद्दा बन रहा है। लेकिन एक ऐसे किसान जगदीप सिंह ने ना केवल अपने क्षेत्र में पराली जलाने से किसानों को रोका बल्कि उन्हें जैविक खेती की तरफ प्रोत्साहित किया।

जगदीप सिंह पंजाब के संगरूर जिले के एक उभरते हुए किसान हैं। अपनी मातृभूमि और मिट्टी के प्रति उनका स्नेह बचपन में ही बढ़ गया था। मिट्टी प्रेमी के रूप में उनकी यात्रा उनके बचपन से ही शुरू हुई। जन्म के तुरंत बाद उनके चाचा ने उन्हें गोद लिया जिनका व्यवसाय खेतीबाड़ी था। उनके चाचा उन्हें शुरू से ही फार्म पर ले जाते थे और इसी तरह खेती की दिशा में जगदीप की रूचि बढ़ गई।

बढ़ती उम्र के साथ उनका दिमाग भी विकासशील रहा और पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्राथमिकता खेती को ही दी। अपनी 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और खेती में अपने पिता मुख्तियार सिंह की मदद करनी शुरू की। खेती के प्रति उनकी जिज्ञासा दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी, इसलिए अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए उन्होंने 1989 से 1990 के बीच उन्होंने पी ए यू का दौरा किया। पी ए यू का दौरा करने के बाद जगदीप सिंह को पता चला कि उनकी खेती की मिट्टी का बुनियादी स्तर बहुत अधिक है जो कई मिट्टी और फसलों के मुद्दे को जन्म दे रहा है और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए दो ही उपाय थे या तो रूड़ी की खाद का प्रयोग करना या खेतों में हरी खाद का प्रयोग करना।

इस समस्या का निपटारा करने के लिए जगदीप एक अच्छे समाधान के साथ आये क्योंकि रूड़ी की खाद में निवेश करना उनके लिए महंगा था। 1990 से 1991 के बीच उन्होंने पी ए यू के समर्थन से happy seeder का प्रयोग करना शुरू किया। happy seeder के प्रयोग से वे खेत में से धान की पराली को बिना निकाले मिट्टी में बीजों को रोपित करने के योग्य हुए। उन्होंने अपने खेत में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए धान की पराली को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया। धीरे-धीरे जगदीप ने अपनी इस पहल में 37 किसानों को इकट्ठा किया और उन्हें happy seeder प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया और पराली जलाने से परहेज करने को कहा। उन्होंने इस अभियान को पूरे संगरूर में चलाया जिसके तहत उन्होंने 350 एकड़ से अधिक ज़मीन को कवर किया।

2014 में मैंने IARI (Indian Agricultural Research Institute) से पुरस्कार प्राप्त किया और उसके बाद मैनें अपने गांव में ‘Shaheed Baba Sidh Sweh Shaita Group’ नाम का ग्रुप बनाया। इस ग्रुप के तहत हम किसानों को हवा प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए, पराली ना जलाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इन दिनों वे 40 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से 32 एकड़ भूमि उन्होंने किराये पर दी है और 4 एकड़ की भूमि पर वे जैविक खेती कर रहे हैं और बाकी की भूमि पर वे बहुत कम मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उनका मुख्य मंतव जैविक की तरफ जाना है। वर्तमान में वे अपने पिता, माता, पत्नी और दो बेटों के साथ कनोई गांव में रह रहे हैं।

जगदीप सिंह के व्यक्तित्व के बारे में सबसे आकर्षक चीज़ यह है कि वे बहुत व्यावहारिक हैं और हमेशा खेतीबाड़ी के बारे में नई चीज़ें सीखने के लिए इच्छुक रहते हैं। वे पशु पालन में भी बहुत दिलचस्पी रखते हैं और घर के उद्देश्य के लिए उनके पास 8 भैंसे हैं। वे भैंस के दूध का प्रयोग सिर्फ घर के लिए करते हैं और कई बार इसे अपने पड़ोसियों या गांव वालों को भी बेचते हैं खेतीबाड़ी और दूध की बिक्री से वह अपने परिवार के खर्चों को काफी अच्छे से संभाल रहे हैं और भविष्य में वे अच्छे मुनाफे के लिए अपनी उत्पादकता की मार्किटिंग शुरू करना चाहते हैं।

संदेश
दूसरे किसानों के लिए जगदीप सिंह का संदेश यह है कि उन्हें अपने बच्चों को खेती के बारे में सिखाना चाहिए और उनके मन में खेती के बारे में नकारात्मक विचार ना डालें अन्यथा वे अपने जड़ों के बारे में भूल जाएंगे।

बलजीत सिंह कंग

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जानें कैसे एक शिक्षक ने जैविक खेती शुरू की और कैसे वे जैविक खेती में क्रांति ला रहे हैं

मिलें बलजीत सिंह कंग से जो एक शिक्षक से जैविक किसान बन गए। जैविक खेती मुख्य विचार नहीं था जिसके कारण श्री कंग अपने शिक्षक व्यवसाय से जल्दी रिटायर हो गए। ये उनके बच्चे थे जिनकी वजह से उन्होंने जल्दी रिटायरमैंट ली और इसके साथ ही खेतीबाड़ी शुरू की।

बलजीत सिंह हमेशा कुछ अलग करना चाहते थे और नीरसता और पुरानी पद्धतियों का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे और उन्होंने जैविक खेती में कुछ अलग पाया। खेतीबाड़ी उनके परिवार का मूल व्यवसाय नहीं था क्योंकि उनके पिता और भाई पहले से ही विदेश में बस चुके थे। लेकिन बलजीत अपने देश में रहकर कुछ बड़ा करना चाहते थे।

पंजाबी में एम ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बलजीत को स्कूल में शिक्षक के तौर पर जॉब मिल गई। एक शिक्षक के तौर पर कुछ समय के लिए काम करने के बाद उन्होंने 2003-2010 में अपना रेस्टोरेंट खोला। 2010 में रेस्टोरेंट का व्यवसाय छोड़कर जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया। 2011 में उनकी शादी हुई और कुछ समय बाद उन्हें दो सुंदर बच्चों – एक बेटी और एक बेटा के साथ आशीर्वाद मिला। उनकी बेटी अब 4 वर्ष की है और पुत्र 2 वर्ष का है।

इससे पहले वे रसायनों का प्रयोग कर रहे थे लेकिन बाद  में वे जैविक खेती की तरफ मुड़ गए। उन्होंने एक एकड़ भूमि पर मक्की की फसल बोयी। लेकिन उनके गांव में हर कोई उनका मज़ाक उड़ा रहा था क्योंकि उन्होंने सर्दियों में मक्की की फसल बोयी थी। बलजीत इतने दृढ़ और आश्वस्त थे कि कभी भी बुरे शब्दों और नकारात्मकता ने उन्हें प्रभावित नहीं किया। जब कटाई का समय आया तो उन्होंने मक्की की 37 क्विंटल उपज की कटाई की और यह उनकी कल्पना से ऊपर था। इस कटाई ने उन्हें अपने खेती के काम को और बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने 1.5 एकड़ ज़मीन किराये पर ली।

रसायन से जैविक खेती की तरफ मुड़ना बलजीत के लिए एक बड़ा कदम था, लेकिन उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 6 एकड़ भूमि पर सब्जियां उगाना शुरू किया। उनके खेत में उन्होंने हर तरह के फल के वृक्ष उगाये और उन्होंने वर्मीकंपोस्ट को भी व्यवस्थित किया जिससे उन्हें काफी लाभ मिला। वे अपने काम के लिए अतिरिक्त श्रमिक नहीं रखते और जैविक खेती से वे बहुत अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

भविष्य की योजना:
वर्तमान में, वे अपने खेत में बासमती, गेहूं, सरसों और सब्जियां उगा रहे हैं। भविष्य में वे अपने स्वंय के उत्पादों को बाज़ार में लाने के लिए ‘खेती विरासत मिशन’ के भागीदार बनना चाहते हैं।
किसानों को संदेश-
किसानों को अपना काम स्वंय करना चाहिए और मार्किटिंग के लिए किसी तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। दूसरी बात यह, कि किसानों को समझना चाहिए कि बेहतर भविष्य के लिए जैविक खेती ही एकमात्र समाधान है। किसानों को रसायनों का प्रयोग करना बंद करना चाहिए और जैविक खेती को अपनाना चाहिए।

राजा राम जाखड़

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राजस्थान के भविष्यवादी किसान, जो घीकवार की खेती से पारंपरिक खेती में परिवर्तन ला रहे हैं

बेशक, राजस्थान आज भी पारंपरिक खेती वाले ढंगों के लिए जाना जाता है और यहां की मुख्यफसलें बाजरा, ग्वार और ज्वार हैं। बहुत सारे किसान तरक्की कर रहे हैं, पर आज भी बहुत किसान ऐसे हैं, जो अपनी पारंपरिक खेती की रूढ़ीवादी सोच से बाहर निकलकर कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं और खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं।

राजस्थान की धरती पर राजा राम सिंह जी जन्मे और पले बढ़े हैं। उन्होंने बी एस सी एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन की और उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी, ताकि वे खेती के प्रति अपने जुनून को पूरा कर सकें। उन्होंने मौके का फायदा लेना और उससे लाभ कमाना भी सीखा। आज वे राजस्थान में घीकवार के सफल किसान हैं, जो अपनी उपज के मंडीकरण के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं हैं, क्योंकि उनकी उपज केवल खेत से ही खप्तकारों को बेची जाती है।

राजा राम जाखड़ जी का परिवार बचपन से ही खेतीबाड़ी से जुड़ा है और उन्होंने अपने बचपन से ही अपने परिवार के सभी सदस्यों को खेती करते देखा। पर 1980 में उन्होंने डी ए वी कॉलेज संघरिया (राजस्थान) से बी एस सी एग्रीकल्चर की डिग्री पूरी की और उन्हें एक अलग पेशे में नौकरी (सैंट्रल स्टेट फार्म, सूरतगढ़ में सुपरवाइज़र) का मौका मिला। पर वे 3-4 महीनों से ज्यादा, वहां काम नहीं कर सके क्योंकि उनकी इस काम में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने घर वापिस आकर पिता प्रधान व्यवसाय -जो कि खेती था, इसे अपनाने का फैसला किया।

उन्होंने अपने बुज़ुर्गों वाले ढंग से ही खेती करनी शुरू की, पर इसमें कुछ विशेष लाभ नहीं मिल रहा था। धीरे-धीरे उनके परिवार की रोज़ी रोटी चलनी भी मुश्किल हो रही थी, क्योंकि उनका मुनाफा केवल गुज़ारे योग्य ही था। पर उस समय उन्होंने पतंजली ब्रांड और इसके एलोवेरा उत्पादों के बारे में सुना। उन्हें यह भी सुनने को मिला कि इन उत्पादों को बनाने के लिए पतंजली में एलोवेरा की बहुत मात्रा में उपज की जरूरत है। इसलिए इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने केवल 15000 रूपये के निवेश से 1 एकड़ एलोवेरा की खेती Babie Densis नाम की किस्म से शुरू की।

इन सब के चलते, एक बार तो उनका परिवार भी उनके विरूद्ध हो गया, क्योंकि वे जो भी काम कर रहे थे, उस पर परिवार को कोई यकीन नहीं था और उस समय अपने क्षेत्र (जिला गंगानगर) में एलोवेरा की खेती करने वाले वे पहले किसान थे। पर राजा राम जी ने अपना मन नहीं बदला, क्योंकि उन्हें खुद पर यकीन था। एक वर्ष बाद, आखिर जब एलोवेरा के पौधे पककर तैयार हो गए, कुछ खरीददारों ने उनकी उपज खरीदने के लिए संपर्क किया और तब से ही वे अपनी उपज फार्म से ही बेचते हैं, वो भी बिना कोई प्रयत्न किए। वे एक वर्ष में एक एकड़ से एक लाख रूपये तक का मुनाफा लेते हैं।

जैसे कि राजस्थान में एलोवेरा के उत्पाद तैयार करने वाली बहुत फैक्टरियां हैं, इसलिए हर 50 दिन बाद खरीददारों के द्वारा दो ट्रक उनके फार्म पर भेजे जाते हैं, और उनका काम केवल मजदूरों की मदद से ट्रकों को लोड करना होता है। अब उन्होंने अधिक मुनाफा लेने के लिए अंतर फसली विधि द्वारा एलोवेरा के खेतों में मोरिंगा पौधे भी लगाए हैं।

इस समय वे खुशी खुशी अपने परिवार (पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र) के साथ रह रहे हैं और पूरे फार्म का काम काज खुद ही संभालते हैं। उनके पास खेती के लिए एक ट्यूबवैल और ट्रैक्टर है। वे अपने खेतों में एलोवेरा, मोरिंगा और कपास की खेती के लिए केवल जैविक खेती तकनीक ही अपनाते हैं। इन तीन फसलों के अलावा वे भिंडी, तोरी, खीरा, लौकी, ग्वार की फलियां और अन्य मौसमी सब्जियों की खेती घरेलू उपयोग के लिए करते हैं।

राजा राम जाखड़ जी ने अंतर फली के लिए मोरिंगा के पौधों को इस लिए चुना, क्योंकि इसमें बहुत सारे चिकित्सक गुण होते हैं और इसे बहुत कम देखभाल करके भी आसानी से उगाया जा सकता है। अब उन्होंने पौधे बेचने का काम भी शुरू किया है और जो किसान एलोवेरा की खेती के लिए ट्रेनिंग लेना चाहते हैं, उन्हें मुफ्त सिखलाई भी देते हैं। राजा राम जी अपने भविष्यवादी विचारों से खेतीबाड़ी के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाना चाहते हैं। अभी तक कभी भी उन्होंने सरकार या किसी अन्य स्त्रोत से मदद नहीं ली और जो कुछ किया खुद से ही किया। वे भविष्य में अपने काम को और बढ़ाना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी एलोवेरा की खेती के प्रति जागरूक करवाना चाहते हैं।


किसानों के लिए संदेश
“कुछ भी नया करने से पहले, किसानों को मंडीकरण के बारे में सोचना चाहिए ओर फिर खेती करनी चाहिए। किसानों को बहुत सारे मौके मिलते रहते हैं, बस उन्हें इन मौकों का फायदा उठाना चाहिए और इन्हें खोना नहीं चाहिए।”

 

अमनदीप कौर

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एक ऐसी लड़की की कहानी, जो उभरते हुए कौशल के साथ अपने पैरों पर खड़ा होने और रसोई कला से समाज में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रही है

यह कहा जाता है कि जो लोग अपने जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए केवल एक छोटी सी प्रेरणा ही पर्याप्त होती है। भगवान ने हर किसी को उपहार के साथ भेजा है, उनमें से कुछ ही उस अपनी प्रतिभा को पहचान पाते हैं और अधिकांश लोग विश्वास की कमी के कारण ऐसा करने की हिम्मत नहीं करते। लेकिन मोगा की एक लड़की ने अपनी प्रतिभा को पहचाना और आत्मनिर्भर होने के लिए अपने पैरों पर खड़े होने की हिम्मत की।

अमनदीप कौर (25 वर्षीय) एक उभरती उद्यमी है जो समाज में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रही है जैसे कि हम सब जानते हैं कि हर नेता के पीछे एक संघर्ष का अनुभव होता है जो उसे उस स्थान तक पहुंचाने के लिए उत्साहित करता है, उसी तरह अमनदीप के साथ भी है। वह अन्य लड़कियों के समान एक युवा और उत्साही लड़की है लेकिन उसका दृढ़ संकल्प है, जो उसे दूसरों से अलग करता है। वर्तमान में वह अपने भाई और मां के साथ रह रही है, उसके पिता का बहुत समय पहले निधन हो गया था और आर्थिक तंगी के कारण उसने 10 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी, लेकिन जैसा कि हम सबने सुना है कि, जो लोग कुछ बड़ा करना चाहते हैं और भीड़ से बाहर खड़े होते हैं, उन्हें किसी प्रकार की कठिनाइयों से रोका नहीं जा सकता।

आज अमनदीप 7 लड़कियों के (स्वाति महिला सहकारी संस्था) ग्रुप का नेतृत्व कर रही है और इस ब्रांड नाम के तहत वह सफलता के कुछ कदम उठा रही है। इस समूह गठन के पीछे महिला लोक हितैषी श्री मती सुंदरा का हाथ है। श्रीमती सुंदरा ने एक छोटी सी प्रेरणा अमनदीप को दी जो उसके लिए लड़कियों को इक्ट्ठा करने और अपने घर से तैयार चटनी और आचार का व्यवसाय शुरू करने के लिए काफी थी।

अमनदीप कौर ने बताया कि श्री मती सुंदरा ने 2003 में उनके गांव का दौरा किया, उन्हें इक्ट्ठा कर जागरूक किया कि उनके पास क्या क्षमताएं है और वे बेकार रहने की बजाय अपने कौशल को कैसे उपयोगी बना सकते हैं। वह अमनदीप और अन्य लड़कियों को आचार, चटनी और कई अन्य खाद्य उत्पादों, जैसे घर के उत्पादों को बनाने की ट्रेनिंग में दाखिला लेने में भी मदद करती है और उन्हें आगे अध्ययन करने के लिए प्रेरित करती हैं।

अमनदीप ना केवल कमाने और अपने परिवार को समर्थन देने के लिए काम कर रही है बल्कि समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए भी काम कर रही है। वह अपने काम के प्रति काफी भावुक है और उसने घर से बने उत्पादों में शिक्षा लेने की योजना बनाई है ताकि वह विभिन्न खाद्य उत्पादों को बाज़ार में बिक्री के लिए ला सके। अन्य लड़कियों के नाम परमिंदर, बलजीत, रणजीत, गुरप्रीत, चन्नी, मंजीत, पवनदीप। ये लड़कियां शुरूआती 20 वें वर्ष या उससे कम उम्र की हैं लेकिन कुछ परिस्थितयों के कारण उन्हें अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी। उनके अध्ययन को जारी रखने, नई चीज़ों का पता लगाने, अपनी आजीविका अर्जित करने और आत्मनिर्भर होने के लिए उनमें उत्साह अभी भी है। सभी लड़कियां अपने काम के प्रति बहुत उत्साहित हैं और वे व्यवसाय के साथ अपने अध्ययन को जारी रखने में रूचि रखती हैं।

अमनदीप और उसके ग्रुप के बाकी सदस्य काफी मेहनती हैं और जानते हैं कि अपने काम का कुशलता से कैसे प्रबंध करना है। वे आचार, चटनी और इत्र बनाने के लिए स्वंय बाज़ार (सब्जी मंडी) से कच्चा माल खरीदते हैं। वे 10 प्रकार के आचार, 2 प्रकार की चटनी, और 3 प्रकार का इत्र और कैंडिज़ भी बनाते हैं। सब कुछ उनके द्वारा हाथों से बनाया गया है और बिना किसी रसायन के शुद्ध रूप से प्राकृतिक हैं। उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों में आचार, चटनी और कैंडिज़ बहुत स्वादिष्ट होते हैं और वास्तविक स्वाद वाले हैं और आपको अपनी दादी के हाथ का स्वाद याद दिलायेंगे।

आम की चटनी, लच्छा निंबू का आचार, अदरक का आचार और लहसुन का आचार सबसे अधिक बिकने वाले उत्पाद हैं। वे कई प्रदर्शनियों और इवेंट्स में जाते हैं ताकि वे अपने हाथों से बने प्राकृतिक उत्पादों को बेच सकें और इसके अलावा वे अपने उत्पाद को बेचने के लिए व्यक्तिगत रूप से विभिन्न समाजों और विभिन्न जिलों के समितियों का दौरा करते हैं। अब तक वे फतेहगढ़, फिरोज़पुर, लुधियाना और मोगा में गए हैं और आने वाले समय में अधिक से अधिक शहरों में जायेंगे। आमतौर पर वे एक दिन में लगभग 100 डिब्बे बनाते हैं।

वर्तमान में इस ग्रुप की कुल आय केवल 20000 रूपये प्रति महीना है और उनके लिए इस तरह की कम आमदन में प्रबंधन करना बहुत मुश्किल है। इसका कारण यह है कि उनके उत्पाद को बेचने के लिए उनके पास उचित प्लेटफॉर्म नहीं है और बहुत कम लोग स्वाति महिला सहकारी समिति के बारे में जानते हैं। उनके अनुसार यह सिर्फ शुरूआत है और इस प्रकार की कठिनाइयां कभी भी उन्हें निराश नहीं कर सकती और जो काम वे कर रही हैं वो करने से उन्हें नहीं रोक सकती।


अमनदीप कौर द्वारा संदेश
हर लड़की को अपना कौशल पहचानना चाहिए और उन्हें अपने दम पर आत्मनिर्भर होने के लिए बुद्धिमानी से इसका उपयोग करना चाहिए। आज, महिलाओं को दूसरों पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें आत्म निर्धारित और स्व- नियंत्रण होना चाहिए क्योंकि यह अच्छा लगता है जब आप में अपनी इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति होती है। रास्ता दिखाने में शिक्षा बहुत आवश्यक है। काम और आत्मनिर्भरता आपको महसूस करवाते हैं कि आप क्या हैं। इसलिए हर लड़की को अपनी शिक्षा पूरी करनी चाहिए और रूचि के अनुसार उन्हें अपना रास्ता चुनना चाहिए जो उन्हें अच्छा जीवन जीने में मदद करता है।

हरनाम सिंह

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एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जिसने विदेश जाने की बजाय अपने देश में मातृभूमि के लिए कुछ करने को चुना

पंजाब के नौजवान विदेशी सभ्याचार को इतना अपनाने लगे हैं कि विदेश जाना एक प्रवृत्ति बन चुकी है। अपने देश में पर्याप्त संसाधन होने के बावजूद भी युवाओं में विदेशों के प्रति आकर्षण है और वे विदेश में जाना और बसना पसंद करते हैं। पंजाब के अधिकांश लोगों के लिए, विदेशों में जाकर रहना पहचान पत्र की तरह बन गया है जब कि उन्हें पता भी नहीं होता कि वे किस मकसद से जा रहे हैं। विदेशों में जाकर पैसा कमाना आसान है पर इतना भी आसान नहीं है।

इसी सपने के साथ, लुधियाना के एक युवक हरनाम सिंह भी अपने अन्य दोस्तों की तरह ही कनाडा जाने की योजना बना रहे थे, लेकिन बीच में, उन्होंने अपना विचार छोड़ दिया। दोस्तों से बातचीत करने के बाद पता चला कि विदेश में रहना आसान नहीं है, आपको दिन-रात काम करना पड़ता है। यदि आप पैसा बनाना चाहते हैं तो आपको अपने परिवार से दूर रहना होगा। अपने दोस्तों के अनुभव को जानने के बाद उन्होंने सोचा कि विदेश जाने के बाद भी, अगर उन्हें आसान जीवन जीने में कठिनाइयों का सामना करना पड़े तो अपने देश में परिवार के साथ रहना और काम करना ज्यादा बेहतर है। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लिया और खेती में अपने पिता की मदद भी की।

उस फैसले के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ना ही दूसरे किसी विचार को अपने दिमाग में आने दिया। आज हरनाम सिंह नामधारी स्ट्राबेरी फार्म के मालिक हैं जो अपने मूल स्थान पर 3.5 एकड़ ज़मीन में फैला है और लाखों में मुनाफा कमा रहे हैं यह सब 2011 में शुरू हुआ जब उनके पिता मशरूम की खेती की ट्रेनिंग के लिए पी ए यू गए और वापिस आने के बाद उन्होंने घरेलू बगीची के लिए स्ट्रॉबेरी के 6 छोटे नए पौधे लगाए और तब हरनाम सिंह के मन में स्ट्रॉबेरी की खेती करने का विचार आया। धीरे-धीरे समय के साथ पौधे 6 से 20, 20 से 50, 50 से 100, 100 से 1000 और 1000 से लाख बन गए। आज उनके खेत में 1 लाख के करीब स्ट्रॉबेरी के पौधे हैं। स्ट्रॉबेरी के पौधों की संख्या को बनाए रखने के लिए उन्होंने शिमला में 1 क्षेत्र किराये पर लेकर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू कर दी। ज्यादातर वे अपने खेत में रसायनों और खादों का प्रयोग नहीं करते और खेती के कुदरती तरीके को पसंद करते है और स्ट्रॉबेरी पैक करने के लिए उनके पास पैकिंग मशीन है और बाकी का काम मजदूरों (20-30) द्वारा किया जाता है, जो ज्यादातर स्ट्रॉबेरी के मौसम में काम करते हैं। उनका स्ट्रॉबेरी का वार्षिक उत्पादन बहुत अधिक है, जिस कारण हरमन को कुछ उत्पादन स्वंय बेचना पड़ता है और बाकी वह बड़े शहरों की दुकानों या सब्जी मंडी में बेचते हैं।

इसी बीच, हरनाम ने अपनी पढ़ाई को कभी नहीं रोका और आज उनकी डिग्रियों की सूचि काफी अच्छी है। उन्होंने आर्ट्स में ग्रेजुएशन, सोफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और वर्तमान में बी एस सी एग्रीकल्चर में डिप्लोमा कर रहे हैं। वे किसानों से बिना कोई फीस लिए स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में शिक्षण और सलाह देते हैं।

वर्तमान में हरनाम सिंह अपनी छोटी और खुशहाल फैमिली (पिता, पत्नी, एक बेटी और एक बेटा) के साथ लुधियाना में रह रहे हैं।

भविष्य की योजना
वे भविष्य में स्ट्रॉबेरी की खेती को अधिक विस्तारित करने और अन्य किसानों को इसकी खेती के बारे में जागरूक करने की योजना बना रहे हैं।

 

संदेश
“हरनाम एक ही संदेश देना चाहते हैं जैसे उन्होंने खुद के जीवन में अनुभव किया है कि यदि आपके पास पर्याप्त संसाधन हैं, तो और संसाधन ढूंढने की बजाय उन्हीं संसाधनों का प्रयोग करें। पंजाब के युवाओं को विदेश जाने की बजाय अपनी मातृभूमि में योगदान देना चाहिए क्योंकि यहां रहकर भी वे अच्छा लाभ कमा सकते हैं।”

 

सरदार भरपूर सिंह

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भरपूर सिंह ने कृषि से लाभ कमाने के लिए फूलों की खेती का चयन किया

कृषि एक विविध क्षेत्र है और किसान कम भूमि में भी इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं, उन्हें सिर्फ खेती के आधुनिक ढंग और इसे करने के सही तरीकों से अवगत होने की अवश्यकता है। यह पटियाला के खेड़ी मल्लां गांव के एक साधारण किसान भरपूर सिंह की कहानी है, जो हमेशा गेहूं और धान की खेती से कुछ अलग करना चाहते थे।

भरपूर सिंह ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता सरदार रणजीत सिंह की खेती में मदद करने का फैसला किया, लेकिन बाकी किसानों की तरह वे गेहूं धान के चक्कर से संतुष्ट नहीं थे। हालांकि उन्होंने खेतों में अपने पिता की मदद की, लेकिन उनका दिमाग और आत्मा कुछ अलग करना चाहते थे।

1999 में, उन्होंने अपने परिवार के साथ गुरुद्वारा राड़ा साहिब का दौरा किया और गुलदाउदी के फूलों के कुछ बीज खरीदे और यही वह समय था जब उन्होंने फूलों की खेती के क्षेत्र में प्रवेश किया। शुरुआत में, उन्होंने जमीन के एक छोटे टुकड़े पर गुलदाउदी उगाना शुरू किया और समय के साथ उन्होंने पाया कि उनका उद्यम लाभदायक है इसलिए उन्होंने फूलों के खेती के क्षेत्र का विस्तार करने का फैसला किया।

समय के साथ, जैसे ही उनके बेटे बड़े हुए, तो वे अपने पिता के व्यवसाय में रुचि लेने लगे। अब भरपूर सिंह के दोनों पुत्र फूलों की खेती के व्यवसाय में समान रूप से व्यस्त रहते हैं।

फूलों की खेती
वर्तमान में, उन्होंने अपने खेत में चार प्रकार के फूल उगाए हैं – गुलदाउदी, गेंदा, जाफरी और ग्लैडियोलस। वे अपनी भूमि पर सभी आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते हैं। वे 10 एकड़ में फूलों की खेती करते हैं। और कभी-कभी वे अन्य फसलों की खेती के लिए ज़मीन किराए पर भी ले लेते हैं।

बीज की तैयारी
खेती के अलावा उन्होंने जाफरी और गुलदाउदी के फूलों के बीज स्वंय तैयार करने शुरू किये, और वे हॉलैंड से ग्लैडियोलस और कोलकाता से गेंदे के बीज सीधे आयात करते हैं। बीज की तैयारी उन्हें एक अच्छा लाभ बनाने में मदद करती है, कभी-कभी वे फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बीज भी प्रदान करते हैं।

बागवानी में निवेश और लाभ
एक एकड़ में ग्लेडियोलस की खेती के लिए उन्होंने 2 लाख रूपये का निवेश किया है और बदले में उन्हें एक एकड़ ग्लैडियोलस से 4-5 लाख रुपये मिल जाते हैं, जिसका अर्थ लगभग 50% लाभ या उससे अधिक है।

मंडीकरण
वे मंडीकरण के लिए तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं हैं। वे पटियाला, नभा, समाना, संगरूर, बठिंडा और लुधियाना मंडी में अपनी उपज का मंडीकरण करते हैं। उनका ब्रांड नाम निर्माण फ्लावर फार्म है। कृषि से संबंधित कई कैंप बागवानी विभाग द्वारा उनके फार्म में आयोजित किए जाते हैं जिसमें कई प्रगतिशील किसान भाग लेते हैं और नियमित किसानों को फूलों की खेती के बारे में ट्रेनिंग प्रदान की जाती है।

सरदार भरपूर सिंह डॉ.संदीप सिंह गरेवाल (बागवानी विभाग, पटियाला), डॉ कुलविंदर सिंह और डॉ.रणजीत सिंह (पी.ए.यू) को अपने सफल कृषि उद्यम का अधिकांश श्रेय देते हैं क्योंकि वे उनकी मदद और सलाह के बिना अपने जीवन में इस मुकाम तक न पहुँचते।

उन्होंने किसानों को एक संदेश दिया कि उन्हें अन्य किसानों के साथ मुकाबला करने के लिए कृषि का चयन नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें खुद के लिए और पूर्ण रुचि के साथ कृषि का चयन करना चाहिए, तभी वे मुनाफा कमाने में सक्षम होंगे।

एक छोटे से स्तर से शुरू करना और जीवन में सफलता को हासिल करना, भरपूर सिंह ने किसानों के लिए एक आदर्श मॉडल के रूप में एक उदाहरण स्थापित की है जो फूलों की खेती को अपनाने की सोच रहे हैं।

संदेश
“मेरा किसानों को यह संदेश है कि उन्हें विविधीकरण के लाभों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। गेहूं और धान की खेती के दुष्चक्र से किसान बहुत सारे कर्जों में फंस गए हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है और किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक रसायनों का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। विविधीकरण ही एकमात्र तरीका है जिसके द्वारा किसान सफलता प्राप्त कर सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठा सकते हैं। इसके अलावा, किसानों को अन्य किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए कृषि का चयन नहीं करना चाहिए, बल्कि खुद के लिए और पूरी दिलचस्पी से कृषि का चयन करना चाहिए तभी वे अपनी इच्छा अनुसार मुनाफा कमाने के सक्षम होंगे।”

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”

कांता देष्टा

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एक किसान महिला जिसे यह अहसास हुआ कि किस तरह वह रासायनिक खेती से दूसरों में बीमारी फैला रही है और फिर उसने जैविक खेती का चयन करके एक अच्छा फैसला लिया

यह कहा जाता है, कि यदि हम कुछ भी खा रहे हैं और हमें किसानों का हमेशा धन्यवादी रहना चाहिए, क्योंकि यह सब एक किसान की मेहनत और खून पसीने का नतीजा है, जो वह खेतों में बहाता है, पर यदि वही किसान बीमारियां फैलाने का एक कारण बन जाए तो क्या होगा।

आज के दौर में रासायनिक खेती पैदावार बढ़ाने के लिए एक रूझान बन चुकी है। बुनियादी भोजन की जरूरत को पूरा करने की बजाय खेतीबाड़ी एक व्यापार बन गई है। उत्पादक और भोजन के खप्तकार दोनों ही खेतीबाड़ी के उद्देश्य को भूल गए हैं।

इस स्थिति को, एक मशहूर खेतीबाड़ी विज्ञानी मासानुबो फुकुओका ने अच्छी तरह जाना और लिखते हैं।

“खेती का अंतिम लक्ष्य फसलों को बढ़ाना नहीं है, बल्कि मानवता के लिए खेती और पूर्णता है।”

इस स्थिति से गुज़रते हुए, एक महिला- कांता देष्टा ने इसे अच्छी तरह समझा और जाना कि वह भी रासायनिक खेती कर बीमारियां फैलाने का एक साधन बन चुकी है और उसने जैविक खेती करने का एक फैसला किया।

कांता देष्टा समाला गांव की एक आम किसान थी जो कि सब्जियों और फलों की खेती करके कई बार उसे अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों में बांटती थी। पर एक दिन उसे रासायनिक खादों के प्रयोग से पैदा हुए फसलों के हानिकारक प्रभावों के बारे में पता लगा तो उसे बहुत बुरा महसूस हुआ। उस दिन से उसने फैसला किया कि वह रसायनों का प्रयोग बंद करके जैविक खेती को अपनाएगी।

जैविक खेती के प्रति उसके कदम को और प्रभावशाली बनाने के लिए वह 2004 में मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग द्वारा चलाए जा रहे एक प्रोग्राम में शामिल हो गई। उसने कई तरह के फल, सब्जियां, अनाज और मसाले जैसे कि सेब, नाशपाति, बेर, आड़ू, जापानी खुबानी, कीवी, गिरीदार, मटर, फलियां, बैंगन, गोभी, मूली, काली मिर्च, प्याज, गेहूं, उड़द, मक्की और जौं आदि को उगाना शुरू किया।

जैविक खेती को अपनाने पर उसकी आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और यह बढ़कर वार्षिक 4 से 5 लाख रूपये हुई। केवल यही नहीं, मोरारका फाउंडेशन की मदद से कांता देष्टा ने अपने गांव में महिलाओं का एक ग्रुप बनाया और उन्हें जैविक खेती के बारे में जानकारी प्रदान की, और उन्हें उसी फाउंडेशन के तहत रजिस्टर भी करवाया।

“मैं मानती हूं कि एक ग्रुप में लोगों को ज्ञान प्रदान करना बेहतर है क्योंकि इसकी कीमत कम है और हम एक समय में ज्यादा लोगों को ध्यान दे सकते हैं।”

आज उसका नाम सफल जैविक किसानों की सूची में आता है उसके पास 31 बीघा सिंचित ज़मीन है जिस पर वह खेती कर रही है और लाखों में लाभ कमा रही है। बाद में वह NONI यूनिवर्सिटी , दिल्ली, जयपुर और बैंगलोर में भी गई, ताकि जैविक खेती के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके और हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा उसे उसके प्रयत्नों के लिए दो बार सरकारी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। शिमला में बेस्ट फार्मर अवार्ड के तौर पर सम्मानित किया गया और 13 जून 2013 को उसे जैविक खेती के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रशंसा और सम्मान भी मिला।

एक बड़े स्तर पर इतनी प्रशंसा मिलने के बावजूद यह महिला अपने आप पूरा श्रेय नहीं लेती और यह मानती है कि उनकी सफलता का सारा श्रेय मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग को जाता है। जिसने उसे सही रास्ता दिखाया और नेतृत्व किया।

खेती के अलावा, कांता के पास दो गायें और 3 भैंसें भी हैं और उसके खेतों में 30x8x10 का एक वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट भी है जिस में वह पशुओं के गोबर और खेती के बचे कुचे को खाद के तौर पर प्रयोग करती है। वह भूमि की स्थितियों में सुधार लाने के लिए और खर्चों को कम करने के लिए कीटनाशकों के स्थान पर हर्बल स्प्रे, एप्रेचर वॉश, जीव अमृत और NSDL का प्रयोग करती है।

अब, कांता अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में सब्जियां और फल बांटने के दौरान खुशी महसूस करती है क्योंकि वह जानती है कि जो वह बांट रही है वह नुकसानदायक रसायनों से मुक्त है और इसे खाकर उसके रिश्तेदार और दोस्त सेहतमंद रहेंगे।

कांता देष्टा की तरफ से संदेश –
“यदि हम अपने पर्यावरण को साफ रखना चाहते हैं तो जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है।”

 

यादविंदर सिंह

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पंजाब के इस किसान ने गेहूं-धान की पारंपरिक खेती के स्थान पर एक सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना और इससे दोहरा लाभ कमा रहे हैं

पंजाब में जहां आज भी धान और गेहूं की खेती जारी है वहीं कुछ किसानों के पास अभी भी विकल्पों की कमी है। किसानों के पास भूमि का एक छोटा टुकड़ा होता है और कम जागरूकता वाले किसान अभी भी गेहूं और धान के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। लेकिन बठिंडा जिले के चक बख्तू गांव के यादविंदर सिंह ने खेतीबाड़ी की पुरानी पद्धति को छोड़कर नर्सरी की तैयारी और सब्जियों की जैविक खेती शुरू की।

अपने लाखों सपनों को पूरा करने की इच्छा रखने वाले एक युवा यादविंदर सिंह ने अपनी ग्रेजुएशन के बाद होटल मैनेजमेंट में अपना डिप्लोमा पूरा किया और उसके बाद दो साल के लिए सिंगापुर में एक प्रतिष्ठित शेफ रहे। लेकिन वे अपने काम से खुश नहीं थे और सब कुछ होने के बावजूद भी अपने जीवन में कुछ कमी महसूस करते थे। इसलिए वे वापिस पंजाब आ गए और पूरे निश्चय के साथ खेतीबाड़ी के क्षेत्र में प्रवेश करने का फैसला किया।

2015 में उन्होंने अपना जैविक उद्यम शुरू किया लेकिन इससे पहले उन्होंने भविष्य के नुकसान से बचने के लिए बुद्धिमानी से काम लिया। अपनी चतुराई का प्रयोग करते हुए उन्होंने इंटरनेट की मदद ली और किसान मेलों में भाग लिया और जैविक सब्जियों को नर्सरी में तैयार करना शुरू किया। अपने ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए यादविंदर ने अपने व्यापार का लोगो (LOGO) भी डिज़ाइन किया।

अपने खेतीबाड़ी उद्यम के पहले वर्ष उन्होंने 1 लाख कमाया और आज वे सिर्फ 2 कनाल (5 एकड़) से 2.5 लाख से भी ज्यादा कमा रहे हैं। खेतीबाड़ी के साथ उन्होंने नर्सरी प्रबंधन भी शुरू किया जिसमें कि बीज की तैयारी, मिट्टी प्रबंधन शामिल है। यहां तक कि उन्हें नए पौधे बेचने के लिए मार्किट जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पौधे खरीदने के लिए किसान स्वंय उनके फार्म का दौरा करते हैं।

आज यादविंदर सिंह अपने व्यवसाय और अपनी आमदन से बहुत खुश हैं। भविष्य में वे अपनी खेतीबाड़ी के व्यवसाय को बढ़ाना चाहते हैं और अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कुछ और फसलें उगाना चाहते हैं।

संदेश:
“हम जानते हैं कि सरकार साधारण किसानों के समर्थन के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करती। लेकिन किसानों को निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि मजबूत दृढ़ संकल्प और सही दृष्टिकोण से वे जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं।”

गुरदेव कौर देओल

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एक महिला की कहानी जो उद्यमशीलता के द्वारा महिला समाज में एक बड़ा बदलाव लेकर आई

वर्षों से महिलाओं ने बहुत से क्षेत्रों में एक महत्तवपूर्ण प्रभाव डाला और सफलता हासिल की है, लेकिन फिर भी ऐसी कई महिलाएं है जो पीछे रहती हैं और सिर्फ घरेलू कामकाज तक ही सीमित हैं। आज, हमें महिलाओं को कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा बनाने और उनके कौशल विकसित करने के लिए बढ़ावा देने की आवश्यकता है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था के विकास में तेजी लाने की शक्ति महिलाओं में है और महिलाओं को सशक्त बनाने का सबसे अच्छा तरीका उद्यमशीलता है ना कि दान द्वारा। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई लोग स्वेच्छा से काम कर रहे है, लेकिन सबसे अच्छा व्यक्ति जो एक महिला को सशक्त कर सकता है वह स्वंय महिला है। ऐसी एक महिला जो महिलाओं के हित में काम कर रही हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं वे हैं श्री मती गुरदेव कौर देओल।

गुरदेव कौर एक प्रगतिशील किसान हैं और ग्लोबल सैल्फ हैल्प ग्रुप की अध्यक्ष हैं। पंजाब की धरती में पैदा हुई, पली बढ़ी गुरदेव कौर देओल, शुरुआत से ही एक मजबूत इच्छुक लड़की थीं। वे बहुत सक्रिय और उत्साही थी और हमेशा अपने साथ की महिलाओं को मदद करने और उन्हें सशक्त बनाने में पहल करना चाहती थी।

अन्य महिलाओं की तरह ही पढ़ाई (खालसा कॉलेज, गुरूसर सदर, लुधियाणा से एम ए- बी एड की) पूरी होने के बाद उनकी शादी हुई। लेकिन शादी के बाद उन्होंने महसूस किया कि यह वह सब नहीं है जो वह चाहती थी। 1995 में उन्होंने 5 बक्सों के साथ मक्खी पालन का काम शुरू किया और साथ ही खुद के द्वारा बनाये गये उत्पाद जैसे आचार, चटनी आदि का मंडीकरण भी शुरू किया।

2004 में वे पी ए यू के साथ जुड़ी और फिर उन्होंने समझा कि अब तक उन्हें केवल सैद्धांतिक ज्ञान ही था इसलिए उन्होंने पी ए यू से प्रैक्टिकल ज्ञान लेना शुरू किया। वे पी ए यू के मक्खी पालन एसोसिएशन की मैंबर भी बनीं। अपने आप पर बहुत कुछ करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें अपने समाज की अन्य महिलाओं को भी अपनी क्षमताओं के बारे में पता होनी चाहिए। इसलिए 2008 में उन्होंने अपने गांव की 15 महिलाओं को इकट्ठा करके एक सहकारी ग्रुप बनाया जिसका नाम ग्लोबल सैल्फ हैल्प ग्रुप रखा। उन्होंने अपने ग्रुप की सभी महिलाओं को पी ए यू के ट्रेनिंग प्रोग्राम में नामांकित करने में मदद की ताकि वे उचित कौशल सीख सकें।

शुरू में उनके ग्रुप ने आचार, चटनी, जैम, हनी, सोसेज़, स्क्वैश जूस और मुरब्बा आदि बनाने का काम शुरू किया। जल्दी ही उनके ग्रुप ने अच्छा लाभ कमाया और 6 महीने के बाद बैंक ने उन्हें उनके काम के लिए लोन प्रदान किया। उन्होंने अपने काम को थोड़ा थोड़ा बढ़ाना शुरू किया और जैविक खेती भी शुरू कर दी और अपने ग्रुप में और अधिक उत्पादों को जोड़ा।

2012 में उन्होंने NABARD के साथ भागीदारी की और अपने ग्रुप को उनके साथ रजिस्टर कर लिया और इसे एक एन जी ओ में बदल दिया और उसके बाद उनके ग्रुप के सदस्यों ने काम करना शुरू कर दिया। NABARD के साथ पंजीकरण करने के बाद महिलाओं को अपने कौशल विकसित करने और आत्म निर्भर होने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए 100 सैल्फ हैल्प ग्रुप्स बनाने का लक्ष्य रखा गया। अब तक उन्होंने 25 ग्रुप बनाये हैं और पी ए यू भी अधिक ग्रुप बनाने में उनकी मदद कर रहा है। 2015 में उन्होंने Farmer Producer Organization के साथ ग्लोबल सैल्फ हैल्प ग्रुप को पंजीकृत किया । अब तक वे 400 से अधिक महिलाओं और पुरुषों से जुड़ चुकी हैं और उनमें से अलग अलग ग्रुप्स बनाये हैं।

NABARD भी उन्हें फंड मुहैया कराने में सहायता कर रहा है, ताकि वे जरूरतमंद महिलाओं को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दे सकें और अपने ग्रुप बना सकें। वे हमेशा महिलाओं से कहती हैं कि वे अपने परिवार, बच्चों और रिश्तेदारों के लिए व्यंजन बनाने शुरू करे। उनका मानना है कि यदि एक गृहिणी अपने घर की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती, तो वे एक ही चीज़ बाहर कैसे करेंगी।

वर्तमान में, श्री मती गुरदेव कौर देओल अपने पति श्री गुरदेव सिंह देओल के साथ गांव दशमेश नगर, लुधियाणा में रह रही हैं और सफलतापूर्वक अपना ग्रुप चला रही हैं और अन्य महिलाओं और किसानों की बेहतरी के लिए उनका मार्गदर्शन कर रही हैं। अब तक उनके कुल 32 उत्पादों में कार्बनिक दालें, मसूर, स्क्वैश और मसाले शामिल हैं। मधुमक्खी पालन उनका पसंदीदा शौंक है और अब उनके ग्रुप में मधुमक्खी के 450 बक्से हैं। वे डेयरी फार्मिंग का काम भी करती हैं और बेचने के लिए दूध से तैयार उत्पाद बनाती हैं। वे किसानों से जैविक दालें खरीदती हैं, उन्हें पैक करती हैं और बेचती भी हैं। वे ग्लोबल एग्रो फूड प्रोडक्ट्स के नाम पर अपने ग्रुप द्वारा बनाये गये सभी उत्पादों को बेचती हैं। वे ग्लोबल सैल्फ हैल्प ग्रुप से काफी अच्छा लाभ कमा रही हैं।

भविष्य में वे, अपने ग्रुप के नाम पर एक दुकान खोलने की योजना बना रही हैं, ताकि अपने उत्पादों को बेचने के लिए उचित मंच स्थापित कर सकें और वे हिमाचल प्रदेश के किसानों से जैविक दालें, सब्जियों और मक्का आदि के व्यापार के लिए जुड़ना चाहती हैं।

अभी तक उन्होंने अपने काम के लिए काफी पुरस्कार और प्राप्तियां हासिल की हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • 2009 में सरदारनी जगबीर कौर अवार्ड
  • 2010 में एग्रीकल्चर डिपार्टमैंट अंडर स्कीम से राज्य पुरस्कार
  • 2011 में डेयरी फार्मिंग के लिए नेशनल अवार्ड
  • 2012 में NABARD से ग्लोबल सैल्फ हैल्प ग्रुप के लिए राज्य पुरस्कार

गुरदेव कौर देओल द्वारा दिया गया संदेश
“गुरदेव कौर का उन किसानों का विशेष संदेश है जिनके पास कम भूमि है। यदि एक किसान के पास 3-4 एकड़ भूमि है तो उन्हें गेहूं और धान की बजाय सब्जियों और दालों को जैविक तरीके से उगाना चाहिए क्योंकि जैविक खेती एक संरक्षित तरीके से अच्छा लाभ कमाने में मदद करती है और प्रत्येक औरत को अपने कौशल का उपयोग करना शुरू करना चाहिए और उत्पादक होना चाहिए।”