करमजीत सिंह भंगु

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मिलिए आधुनिक किसान से, जो समय की नज़ाकत को समझते हुए फसलें उगा रहा है

करमजीत सिंह के लिए किसान बनना एक धुंधला सपना था, पर हालात सब कुछ बदल देते हैं। पिछले सात वर्षों में, करमजीत सिंह की सोच खेती के प्रति पूरी तरह बदल गई है और अब वे जैविक खेती की तरफ पूरी तरह मुड़ गए हैं।

अन्य नौजवानों की तरह करमजीत सिंह भी आज़ाद पक्षी की तरह सारा दिन क्रिकेट खेलना पसंद करते थे, वे स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंट में भी हिस्सा लेते थे। उनका जीवन स्कूल और खेल के मैदान तक ही सीमित था। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी ज़िंदगी एक नया मोड़ लेगी। 2003 में जब वे स्कूल में ही थे उस दौरान उनके पिता जी का देहांत हो गया और कुछ समय बाद ही, 2005 में उनकी माता जी का भी देहांत हो गया। उसके बाद सिर्फ उनके दादा – दादी ही उनके परिवार में रह गए थे। उस समय हालात उनके नियंत्रण में नहीं थे, इसलिए उन्होंने 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और अपने परिवार की मदद करने के बारे में सोचा।

उनका विवाह बहुत छोटी उम्र में हो गया और उनके पास विदेश जाने और अपने जीवन की एक नई शुरूआत करने का अवसर भी था पर उन्होंने अपने दादा – दादी के पास रहने का फैसला किया। वर्ष 2011 में उन्होंने खेती के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने छोटे रकबे में घरेलु प्रयोग के लिए अनाज, दालें, दाने और अन्य जैविक फसलों की काश्त करनी शुरू की। उन्होंने अपने क्षेत्र के दूसरे किसानों से प्रेरणा ली और धीरे धीरे खेती का विस्तार किया। समय और तज़ुर्बे से उनका विश्वास और दृढ़ हुआ और फिर करमजीत सिंह ने अपनी ज़मीन ठेके पर से वापिस ले ली।
उन्होंने टिंडे, गोभी, भिंडी, मटर, मिर्च, मक्की, लौकी और बैंगन आदि जैसी अन्य सब्जियों में वृद्धि की और उन्होंने मिर्च, टमाटर, शिमला मिर्च और अन्य सब्जियों की नर्सरी भी तैयार की।

खेतीबाड़ी में दिख रहे मुनाफे ने करमजीत सिंह की हिम्मत बढ़ाई और 2016 में उन्होंने 14 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का फैसला किया और इस तरह उन्होंने अपने रोज़गार में ही खुशहाल ज़िंदगी हासिल कर ली।

आज भी करमजीत सिंह खेती के क्षेत्र में एक अनजान व्यक्ति की तरह और जानने और अन्य काम करने की दिलचस्पी रखने वाला जीवन जीना पसंद करते हैं। इस भावना से ही वे वर्ष 2017 में बागबानी की तरफ बढ़े और गेंदे के फूलों से ग्लैडियोलस के फूलों की अंतर-फसली शुरू की।

करमजीत सिंह जी को ज़िंदगी में अशोक कुमार जी जैसे इंसान भी मिले। अशोक कुमार जी ने उन्हें मित्र कीटों और दुश्मन कीटों के बारे में बताया और इस तरह करमजीत सिंह जी ने अपने खेतों में कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया।

करमजीत सिंह जी ने खेतीबाड़ी के बारे में कुछ नया सीखने के तौर पर हर अवसर का फायदा उठाया और इस तरह ही उन्होंने अपने सफलता की तरफ कदम बढ़ाए।

इस समय करमजीत सिंह जी के फार्म पर सब्जियों के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली और पैक हाउस उपलब्ध है। वे हर संभव और कुदरती तरीकों से सब्जियों को प्रत्येक पौष्टिकता देते हैं। मार्किटिंग के लिए, वे खेत से घर वाले सिद्धांत पर ताजा-कीटनाशक-रहित-सब्जियां घर तक पहुंचाते हैं और वे ऑन फार्म मार्किट स्थापित करके भी अच्छी आय कमा रहे हैं।

ताजा कीटनाशक रहित सब्जियों के लिए उन्हें 1 फरवरी को पी ए यू किसान क्लब के द्वारा सम्मानित किया गया और उन्हें पटियाला बागबानी विभाग की तरफ से 2014 में बेहतरीन गुणवत्ता के मटर उत्पादन के लिए दूसरे दर्जे का सम्मान मिला।

करमजीत सिंह की पत्नी- प्रेमदीप कौर उनके सबसे बड़ी सहयोगी हैं, वे लेबर और कटाई के काम में उनकी मदद करती हैं और करमजीत सिंह खुद मार्किटिंग का काम संभालते हैं। शुरू में, मार्किटिंग में कुछ समस्याएं भी आई थी, पर धीरे धीरे उन्होने अपनी मेहनत और उत्साह से सभी रूकावटें पार कर ली। वे रसायनों और खादों के स्थान पर घर में ही जैविक खाद और स्प्रे तैयार करते हैं। हाल ही में करमजीत सिंह जी ने अपने फार्म पर किन्नू, अनार, अमरूद, सेब, लोकाठ, निंबू, जामुन, नाशपाति और आम के 200 पौधे लगाए हैं और भविष्य में वे अमरूद के बाग लगाना चाहते हैं।

संदेश

“आत्म हत्या करना कोई हल नहीं है। किसानों को खेतीबाड़ी के पारंपरिक चक्र में से बाहर आना पड़ेगा, केवल तभी वे लंबे समय तक सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा किसानों को कुदरत के महत्तव को समझकर पानी और मिट्टी को बचाने के लिए काम करना चाहिए।”

 

इस समय 28 वर्ष की उम्र में, करमजीत सिंह ने जिला पटियाला की तहसील नाभा में अपने गांव कांसूहा कला में जैविक कारोबार की स्थापना की है और जिस भावना से वे जैविक खेती में सफलता प्राप्त कर रहे हैं, उससे पता लगता है कि भविष्य में उनके परिवार और आस पास का माहौल और भी बेहतर होगा। करमजीत सिंह एक प्रगतिशील किसान और उन नौजवानों के लिए एक मिसाल हैं, जो अपने रोज़गार के विकल्पों की उलझन में फंसे हुए हैं हमें करमजीत सिंह जैसे और किसानों की जरूरत है।

कैप्टन ललित

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कैसे एक व्यक्ति ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुना और बागबानी को अपनी रिटायरमेंट योजना के रूप में चुना

राजस्थान की सूखी भूमि पर अनार उगाना, एक मज़ाकिया और असफल विचार लगता है लेकिन अपने मजबूत दृढ़ संकल्प, जिद और उच्च घनता वाली खेती तकनीक से कैप्टन ललित ने इसे संभव बनाया।

कई क्षेत्रों में माहिर होने और अपने जीवन में कई व्यवसायों का अनुभव करने के बाद, आखिर में कैप्टन ललित ने बागबानी को अपनी रिटायरमेंट योजना के रूप में चुना और राजस्थान के गंगानगर जिले में अपने मूल स्थान- 11 Eea में वापिस आ गए। खैर, कई शहरों में रह रहे लोगों के लिए, खेतीबाड़ी एक अच्छी रिटारमेंट योजना नहीं होती, लेकिन श्री ललित ने अपनी अंर्तात्मा की आवाज़ को सही में सुना और खेतीबाड़ी जैसे महान और मूल व्यवसाय को एक अवसर देने के बारे में सोचा।

शुरूआती जीवन-
श्री ललित शुरू से ही सक्रिय और उत्साही व्यक्ति थे, उन्होंने कॉलेज में पढ़ाई के साथ ही अपना पेशेवर व्यवसाय शुरू कर दिया था। अपनी ग्रेजुऐशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने व्यापारिक पायलेट का लाइसेंस भी प्राप्त किया और पायलेट का पेशा अपनाया। लेकिन यह सब कुछ नहीं था जो उन्होंने किया। एक समय था जब कंप्यूटर की शिक्षा भारत में हर जगह शुरू की गई थी, इसलिए इस अवसर को ना गंवाते हुए उन्होंने एक नया उद्यम शुरू किया और जयपुर शहर में एक कंप्यूटर शिक्षा केंद्र खोला। जल्दी ही कुछ समय के बाद उन्होंने ओरेकल टेस्ट पास किया और एक ओरेकल प्रमाणित कंप्यूटर ट्रेनर बन गए। उनका कंप्यूटर शिक्षा केंद्र कुछ वर्षों तक अच्छा चला लेकिन लोगों में कंप्यूटर की कम होती दिलचस्पी के कारण इस व्यवसाय से मिलने वाला मुनाफा कम होने के कारण उन्होंने अपने इस उद्यम को बंद कर दिया।

उनके कैरियर के विकल्पों को देखते हुए यह तो स्पष्ट है कि शुरूआत से ही वे एक अनोखा पेशा चुनने में दिलचस्पी रखते थे जिसमें कि कुछ नई चीज़ें शामिल थी फिर चाहे वह प्रवृत्ति, तकनीकी या अन्य चीज़ के बारे में हो और अगला काम जो षुरू किया, उन्होंने जयपुर शहर में किराये पर एक छोटी सी ज़मीन लेकर विदेशी सब्जियों और फूलों की खेती व्यापारिक उद्देश्य के लिए की और कई पांच सितारा होटलों ने उनसे उनके उत्पादन को खरीदा।

“जब मैंने विदेशी सब्जियां जैसे थाईम, बेबी कॉर्न, ब्रोकली, लेट्स आदि को उगाया उस समय इलाके के लोग मेरा मज़ाक बनाते थे क्योंकि उनके लिए ये विदेशी सब्जियां नई थी और वे मक्की के छोटे रूप और फूल गोभी के हरे रूप को देखकर हैरान होते थे। लेकिन आज वे पिज्ज़ा, बर्गर और सलाद में उन सब्जियों को खा रहे हैं।”

जब विचार अस्तित्व में आया-
जब वे विदेशी सब्जियों की खेती कर रहे थे उस समय के दौरान उन्होंने महसूस किया कि खेतीबाड़ी में निवेश करना सबसे अच्छा है और उन्हें इसे बड़े स्तर पर करना चाहिए। क्योंकि उनके पास पहले से ही अपने मूल स्थान में एक पैतृक संपत्ति (12 बीघा भूमि) थी इसलिए उन्होंने इस पर किन्नू की खेती शुरू करने का फैसला किया वे किन्नू की खेती शुरू करने के विचार को लेकर अपने गांव वापिस आ गए लेकिन कईं किसानों से बातचीत करने के बाद उन्हे लगा कि प्रत्येक व्यक्ति एक ही चीज़ कर रहा है और उन्हें कुछ अलग करना चाहिए।

और यह वह समय था जब उन्होंने विभिन्न फलों पर रिसर्च करना शुरू किया और विभिन्न शहरों में अलग -अलग खेतों का दौरा किया। अपनी रिसर्च से उन्होंने एक उत्कृष्ट और एक आम फल को उगाने का निष्कर्ष निकाला। उन्होंने (केंद्रीय उपोष्ण बागबानी लखनऊ) से परामर्श लिया और 2015 में अनार और अमरूद की खेती शुरू की। उन्होंने 6 बीघा क्षेत्र में अनार (सिंदूरी किस्म) और अन्य 6 बीघा क्षेत्र में अमरूद की खेती शुरू की। रिसर्च और सहायता के लिए उन्होंने मोबाइल और इंटरनेट को अपनी किताब और टीचर बनाया।

“शुरू में, मैंने राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से भी परामर्श लिया लेकिन उन्होंने कहा कि राजस्थान में अनार की खेती संभव नहीं है और मेरा मज़ाक बनाया।”

खेती करने के ढंग और तकनीक-
उन्होंने अनार की उच्च गुणवत्ता और उच्च मात्रा का उत्पादन करने के लिए उच्च घनता वाली तकनीक को अपनाया। खेतीबाड़ी की इस तकनीक में उन्होंने कैनोपी प्रबंधन को अपनाया और 20 मीटर x 20 मीटर के क्षेत्र में अनार के 7 पौधे उगाए। ऐसा करने से, एक पौधा एक मौसम में 20 किलो फल देता है और 7 पौधे 140 किलो फल देते हैं। इस तरीके से उन्होंने कम क्षेत्र में अधिक वृक्ष लगाए हैं और इससे भविष्य में वे अच्छा कमायेंगे। इसके अलावा, उच्च घनता वाली खेती के कारण, वृक्षों का कद और चौड़ाई कम होती है जिसके कारण उन्हें पूरे फार्म के रख रखाव के लिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

कैप्टन ललित ने अपनी खेती के तरीकों को बहुत मशीनीकृत किया है। बेहतर उपज और प्रभावी परिणाम के लिए उन्होंने स्वंय एक टैंक- कम- मशीन बनाई है और इसके साथ एक कीचड़ पंप को जोड़ा है इसके अंदर घूमने के लिए एक शाफ्ट लगाया है और फार्म में सलरी और जीवअमृत आसानी से फैला दी जाती है। फार्म के अंदर इसे चलाने के लिए वे एक छोटे ट्रैक्टर का उपयोग करते हैं। जब इसे किफायती बनाने की बात आती है तो वे बाज़ार से जैविक खाद की सिर्फ एक बोतल खरीदकर सभी खादों, फिश अमीनो एसिड खाद, जीवाणु और फंगस इन सभी को अपने फार्म पर स्वंय तैयार करते हैं।

उन्होंने राठी नसल की दो गायों को भी अपनाया जिनकी देख रेख करने वाला कोई नहीं था और अब वे उन गायों का उपयोग जीवअमृत और खाद बनाने के लिए करते हैं। एक अहम चीज़ – “अग्निहोत्र भभूति”, जिसका उपयोग वे खाद में करते हैं। यह वह राख होती है जो कि हवन से प्राप्त होती है।

“अग्निहोत्र भभूति का उपयोग करने का कारण यह है कि यह वातावरण को शुद्ध करने में मदद करती है और यह आध्यात्मिक खेती का एक तरीका है। आध्यात्मिक का अर्थ है खेती का वह तरीका जो भगवान से संबंधित है।”

उन्होंने 50 मीटर x 50 मीटर के क्षेत्र में बारिश का पानी बचाने के लिए और इससे खेत को सिंचित करने के लिए एक जलाशय भी बनाया है। शुरूआत में उनका फार्म पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल था क्योंकि वे सब कुछ प्रबंधित करने के लिए सोलर ऊर्जा का प्रयोग करते थे लेकिन अब उन्हें सरकार से बिजली मिल रही है।

सरकार की भूमिका-
उनका अनार और अमरूद की खेती का पूरा प्रोजेक्ट राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया गया है और उन्हें उनसे सब्सिडी मिलती है।

उपलब्धियां-
उनके खेती के प्रयास की सराहना कई लोगों द्वारा की जाती है।
जिस यूनिवर्सिटी ने उनका मज़ाक बनाया था वह अब उन्हें अपने समारोह में अतिथि के रूप में आमंत्रित करती है और उनसे उच्च घनता वाली खेती और कांट-छांट की तकनीकों के लिए परामर्श भी लेती है।

वर्तमान स्थिति-
आज उन्होंने 12 बीघा क्षेत्र में 5000 पौधे लगाए हैं और पौधों की उम्र 2 वर्ष 4 महीने है। उच्च घनता वाली खेती के द्वारा अनार के पौधों ने फल देना शुरू भी कर दिया है, लेकिन वे अगले वर्ष वास्तविक व्यापारिक उपज की उम्मीद कर रहे हैं।

“अपनी रिसर्च के दौरान मैंने कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों का भी दौरा किया और वहां पर पहले से ही उच्च घनता वाली खेती की जा रही है। उत्तर भारत के किसानों को भी इस तकनीक का पालन करना चाहिए क्योंकि यह सभी पहलुओं में फायदेमंद हैं।”

यह सब शुरू करने से पहले, उन्हें उच्च घनता वाली खेती के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान था, लेकिन उनके पास व्यावहारिक अनुभव नहीं था, लेकिन धीरे धीरे समय के साथ वह इसे भी प्राप्त कर रहे हैं उनके पास 2 श्रमिक हैं और उनकी सहायता से वे अपने फार्म का प्रबंधन करते हैं।

उनके विचार-
जब एक किसान खेती करना शुरू करता है तो उसे उद्योग की तरह निवेश करना शुरू कर देना चाहिए तभी वे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा आज हर किसान को मशीनीकृत होने की ज़रूरत है यदि वे खेती में कुशल होना चाहते हैं।

किसानों को संदेश-
“जब तक किसान पारंपरिक खेती करना नहीं छोड़ते तब तक वे सशक्त और स्वतंत्र नहीं हो सकते। विशेषकर वे किसान जिनके पास कम भूमि है उन्हें स्वंय पहल करनी पड़ेगी और उनहें बागबानी में निवेश करना चाहिए। उन्हें सिर्फ सही दिशा का पालन करना चाहिए।”

अंग्रेज सिंह भुल्लर

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कैसे इस किसान के बिगड़ते स्वास्थ्य ने उसे अपनी गल्ती सुधारने और जैविक खेती को अपनाने के लिए उकसाया

गिदड़बाहा के इस 53 वर्षीय किसान- अंग्रेज सिंह भुल्लर ने अपनी गल्तियों को पहचानने के बाद कि उसने क्या बनाया और कैसे यह उसके स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, अपने जीवन का सबसे प्रबुद्ध फैसला लिया।

4 वर्ष की युवा उम्र में अंग्रेज सिंह भुल्लर ने अपने पिता को खो दिया। उसके परिवार की स्थितियां दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी क्योंकि उनके परिवार में कोई रोटी कमाने वाला नहीं था। उन्हें पैसे भी रिश्तेदारों को अपनी ज़मीन किराये पर देकर मिल रहे थे। परिवार में उनकी दो बड़ी बहनें थी और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करना उनकी मां के लिए दिन प्रतिदिन बहुत मुश्किल हो रहा था। बिगड़ती वित्तीय परिस्थितियों के कारण, अंग्रेज सिंह को 9वीं कक्षा तक शैक्षिक योग्यता प्राप्त हुई और उनकी बहनें कभी स्कूल नहीं गई।

स्कूल छोड़ने के बाद अंग्रेज सिंह ने कुछ समय अपने अंकल के फार्म पर बिताया और उनसे खेती की कुछ तकनीकें सीखीं। 1989 तक ज़मीन रिश्तेदारों के पास किराये पर थी। लेकिन उसके बाद अंग्रेज सिंह ने परिवार की ज़िम्मेदारी लेने का बड़ा फैसला लिया। इसलिए उन्होंने अपनी ज़मीन वापिस लेने का निर्णय लिया और इस पर खेती शुरू की।

अपने अंकल से उन्होंने जो कुछ सीखा और गांव के अन्य किसानों को देखकर उन्होंने रासायनिक खेती शुरू की। उन्होंने अच्छी कमाई करनी शुरू की और अपने परिवार की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ। जल्दी ही कुछ समय बाद उन्होंने शादी की और एक सुखी परिवार का जीवन जी रहे थे।

लेकिन 2006 में वे बीमार पड़ गये और प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो गए। इससे पहले वे इस समस्या को हल्के ढंग से लेते थे लेकिन डॉक्टर की जांच के बाद उन्हें पता चला कि उनकी आंत में सोजिश आ गई है जो कि भविष्य में गंभीर समस्या बन सकती है। उस समय बहुत से लोग उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछने के लिए आते थे और किसी ने उन्हें बताया कि स्वास्थ्य बिगड़ने का कारण खेती में रसायन का उपयोग करना है और आपको जैविक खेती शुरू करनी चाहिए।

हालांकि कई लोगों ने उन्हें इलाज के लिए काफी चीज़ें करने को कहा लेकिन एक बात जिसने मजबूती से उनके दिमाग में दस्तक दी वह थी जैविक खेती शुरू करना। उन्होंने इस मसले को काफी गंभीरता से लिया और 2006 में 2.5 एकड़ की भूमि पर जैविक खेती शुरू की उन्होंने गेहूं, सब्जियां, फल, नींबू, अमरूद, गन्ना और धान उगाना शुरू किया और इससे अच्छा लाभ प्राप्त किया। अपने लाभ को दोगुना करने के लिए उन्होंने स्वंय ही उत्पादों की प्रोसेसिंग शुरू की और बाद में उन्होंने गन्ने से गुड़ बनाना शुरू किया । उन्होंने हाथों से ही गुड़ बनाने की विधि को अपनाया क्योंकि वह इस उद्यम को अपने दम पर शुरू कर रहे थे। शुरूआत में वे अनिश्चित थे कि उन्हें इसका कैसा फायदा होगा लेकिन धीरे धीरे गांव के लोगों ने गुड़ को पसंद करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे गुड़ की मांग एक स्तर तक बढ़ी जिससे उन्होंने एडवांस बुकिंग पर गुड़ बनाना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने अपने खेत में वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट लगाया ताकि वे घर पर बनी खाद से अच्छी उपज ले सकें।

उन्होंने कई पुरस्कार, उपलब्धियां प्राप्त की और कई ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लिया| उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
• 1979 में 15 से 18 नवंबर के बीच उन्होंने जिला मुक्तसर विज्ञान मेले में भाग लिया।
• 1985 में वेरका प्लांट बठिंडा द्वारा आयोजित Artificial Insemination के 90 दिनों की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• 1988 में पी.ए.यू, लुधियाना द्वारा आयोजित हाइब्रिड बीजों की तैयारी के 3 दिनों की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• पतंजली योग समिती में 9 जुलाई से 14 जुलाई 2009 में भाग लेने के लिए योग शिक्षक की ट्रेनिंग के लिए प्रमाण पत्र मिला।
• 28 सितंबर 2012 में खेतीबाड़ी विभाग, पंजाब के निदेशक से प्रशंसा पत्र मिला।
• 9 से 10 सितंबर 2013 को आयोजित Vibrant Gujarat Global Agricultural सम्मेलन में भाग लिया।
• कुदरती खेती और पर्यावरण मेले के लिए प्रशंसा पत्र मिला जिसमें 26 जुलाई 2013 को खेती विरासत मिशन द्वारा मदद की गई थी।
• खेतीबाड़ी विभाग जिला श्री मुक्तसर साहिब पंजाब द्वारा आयोजित Rabi Crops Farmer Training Camp में भाग लेने के लिए 21 सितंबर 2014 को Agricultural Technology Management Agency (ATMA) द्वारा राज्य स्तर पर प्रशंसा पत्र प्राप्त किया।
• 21 सितंबर 2014 को खेतीबाड़ी विभाग, श्री मुक्तसर साहिब द्वारा State Level Farmer Training Camp के लिए प्रशंसा पत्र मिला।
• 12 -14 अक्तूबर 2014 को पी ए यू द्वारा आयोजित Advance training course of Bee Breeding 7 Mass Bee Rearing Technique में भाग लिया।
• Sarkari Murgi Sewa Kendra, Kotkapura में पशु पालन विभाग, पंजाब द्वारा आयोजित 2 सप्ताह की पोल्टरी फार्मिंग ट्रेनिंग में भाग लिया।
• National Bee Board द्वारा मक्खीपालक के तौर पर पंजीकृत हुए।
• CRI पुरस्कार मिला|
• KVK, गोनिआना द्वारा आयोजित Kharif Crop Farming के 1 दिन की ट्रेनिंग कैंप में भाग लिया।
• PAU Ludhiana द्वारा आयोजित 10 दिनों की मक्खी पालन की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• KVK, गोनिआना द्वारा आयोजित 1 दिन की Pest Control in Grains stored in Storehouse की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• Department of Rural Development, NITTTR, Chandigarh द्वारा आयोजित Organic & Herbal Products Mela में भाग लिया।
• PAMETI (Punjab Agriculture Management & Extension Training Institute), PAU द्वारा आयोजित workshop training programme- “MARKET LED EXTENSION” में भाग लिया।
अंग्रेज सिंह भुल्लर पंजाब के वे भविष्यवादी किसान है जो जैविक खेती की महत्तता को समझते हैं। आज खराब पर्यावरण परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें उनके जैसे अधिक किसानों की जरूरत है।

किसानों को संदेश

यदि हम अब जैविक खेती शुरू नहीं करते है तो यह हमारी भविष्य की पीढ़ी के लिए बड़ी समस्या होगी।

हरबंत सिंह

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पिता पुत्र की जोड़ी जिसने इंटरनेट को अपना शोध हथियार बनाकर जैविक खेती की

खेतीबाड़ी मानवी सभ्यता का एक महत्तवपूर्ण भाग है। तकनीकों और जीवन में उन्नति के साथ साथ कई वर्षों में खेती में भी बदलाव आया है। लेकिन फिर भी, भारत में कई किसान परंपरागत तरीके से ही खेती करते हैं, लेकिन ऐसे ही एक किसान हैं या हम कह सकते हैं कि एक पिता पुत्र की जोड़ी-हरबंत सिंह (पिता) और सतनाम सिंह (पुत्र), जिन्होंने खेती के क्षेत्र में उन्नति के लिए इंटरनेट को अपना अनुसंधान हथियार बनाया।

जब तक उनका बेटा जैविक तरीके से बागबानी करने के विचार से पहले अन्य किसानों की तरह, हरबंत सिंह भी पहले परंपरागत खेती करते थे। हां, ये सतनाम सिंह ही थे जिन्होंने अपने 1 वर्ष की रिसर्च के बाद, अपने पिता से ड्रैगन फल की खेती करने की सिफारिश की।

यह सब 1 वर्ष पहले शुरू हुआ जब सतनाम सिंह अपने एक दोस्त के माध्यम से गुजरात के एक व्यकित विशाल डोडा के संपर्क में आए, विशाल डोडा 15 एकड़ के क्षेत्र में ड्रैगन फल की खेती करते हैं। सतनाम सिंह ने ड्रैगल फल पौधे के बारे में सब कुछ रिसर्च किया और अपने पिता से इसके बारे में चर्चा की और जब हरबंत सिंह ने ड्रैगन फल की खेती के बारे में और इसके फायदों के बारे में जाना, तो उन्होंने बहुत प्रसन्नता से अपने पुत्र को इसे शुरू करने के लिए प्रेरित किया, फिर चाहे इसमें कितना भी निवेश करना हो। जल्द ही उन्होंने गुजरात का दौरा किया और ड्रैगन फल के पौधों को खरीदा और विशाल डोडा से इसकी खेती के बारे में कुछ दिशा निर्देश लिये।

आज इस पिता पुत्र की जोड़ी पहली है जिसने पंजाब में ड्रैगन फल की खेती शुरू कर और अब इन पौधों ने फल देना भी शुरू कर दिया है। उन्होंने डेढ़ बीघा क्षेत्र में ड्रैगन फल के 500 नए पौधे लगाए हैं। एक पौधा 4 वर्ष में 4-20 किलो फल देता है। उन्होंने सीमेंट का एक स्तम्भ बनाया है जिसके ऊपर पहिये के आकार का ढांचा है जो कि पौधे को सहारा देता है। जब भी उन्हें ड्रैगन फल की खेती से संबंधित मदद की जरूरत होती है तो वे इंटरनेट पर उसकी खोज करते हैं या विशाल डोडा से सलाह लेते हैं।

वे सिर्फ ड्रैगन फल की ही खेती नहीं करते बल्कि उन्होंने अपने खेत में चंदन के भी पौधे लगाए हुए हैं। चंदन की खेती का विचार सतनाम सिंह के मन में उस समय आया जब वे एक न्यूज चैनल देख रहे थे जहां उन्होंने जाना कि एक मंत्री ने चंदन के पौधे का एक बड़ा हिस्सा मंदिर में दान किया जिसकी कीमत लाखों में थी। उस समय उनके दिमाग में अपने भविष्य को पर्यावरण की दृष्टि और वित्तीय रूप से सुरक्षित और लाभदायक बनाने का विचार आया। इसलिए उन्होंने जुलाई 2016 में चंदन की खेती में निवेश किया और 6 कनाल क्षेत्र में 200 पौधे लगाए।

हरबंत सिंह के अनुसार, वे जिस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं उसे भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं क्योंकि ड्रैगनफल और चंदन दोनों को कम पानी की आवश्यकता होती है (इसे केवल बारिश के पानी से ही सिंचित किया जा सकता है) और किसी विशेष प्रकार की खाद की जरूरत नहीं होती। इसके अलावा वे ये भी अच्छी तरह से जानते हैं कि आने वाले समय में धान और गेहूं की खेती पंजाब से गायब हो जाएगी क्योंकि भूजल की कमी के कारण और बागबानी आने वाले समय की आवश्यकता बन जाएगी।

हरबंत सिंह ड्रैगन फल और चंदन की खेती के लिए जैविक तरीकों का पालन करते हैं और धीरे धीरे समय के साथ वे अपनी अन्य फसलों में भी रसायनों का प्रयोग कम कर देंगे। हरबंत सिंह और उनके बेटे का रूझान जैविक खेती की तरफ इसलिए है क्योंकि समाज में बीमारियां बहुत ज्यादा बढ़ रही हैं। वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए वातावरण को सेहतमंद और रहने योग्य बनाना चाहते हैं। जैसा उनके पूर्वज उनके लिए छोड़ गए थे। एक कारण यह भी है कि सतनाम सिंह ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद जैविक खेती करने लगे थे और शुरूआत से ही उनकी रूचि खेती में थी।

आज सतनाम सिंह, अपने पिता की आधुनिक तरीके से खेती करने में पूरी मदद कर रहे हैं। वे गाय के गोबर और गऊ मूत्र का प्रयोग करके घर पर ही जीव अमृत और खाद तैयार करते हैं। वे कीटनाशकों और खादों का प्रयोग नहीं करते। हरबंत सिंह अपने गांव में पानी के प्रबंधन का भी काम कर रहे हैं और अन्य गांवों को भी इसके बारे में शिक्षा दे रहे हैं ताकि वे ट्यूबवैल का कम प्रयोग कर सकें। उनके खुद के पास 12 एकड़ खेत के लिए केवल एक ही ट्यूबवैल है। सामान्य फसलों के अलावा उनके पास अमरूद, केला, आम और आड़ू के पेड़ भी हैं।

सतनाम सिंह ने चंदन और ड्रैगन फल की खेती करने से पहले रिसर्च में एक वर्ष लगाया क्योंकि वे एक ऐसी फसल में निवेश करना चाहते थे। जिसमें कम सिंचाई की जरूरत हो और उसके स्वास्थ्य और वातावरणीय लाभ भी हो। वे चाहते हैं कि अन्य किसान भी ऐसे ही करें खेतीबाड़ी की ऐसी तकनीक अपनायें जो पर्यावरण के अनुकूल हो और जिसके विभिन्न लाभ हो।

भविष्य की योजना
वे भविष्य में लहसुन और महोगनी वृक्ष उगाने चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अन्य किसान भी इसकी संभावना को पहचाने और अपने अच्छे भविष्य के लिए इसमें निवेश करें।

किसानों को संदेश
हरबंत सिंह और उनके बेटे दोनों ही चाहते हैं कि अन्य किसान जैविक खेती शुरू करें और भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्यावरण को बचाएं। तभी वे जीवित रह सकते हैं और धरती को बेहतर रहने की जगह बना सकते हैं।

रत्ती राम

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एक उम्मीद की किरण जिसने रत्ती राम की खेतीबाड़ी को एक लाभदायक उद्यम में बदल दिया

रत्ती राम मध्य प्रदेश के हिनोतिया गांव के एक साधारण सब्जियां उगाने वाले किसान हैं। उन्नत तकनीकों और सरकारी स्कीमों का लाभ लेकर उन्होंने अपना सब्जियों का फार्म स्थापित किया जिससे कि आज वे करोड़ों में लाभ कमा रहे हैं। लेकिन यदि हम पहले की बात करें तो रत्ती राम एक हारे हुए किसान थे जिनके लिए जूते खरीदना भी मुश्किल काम था। आज उनके पास अपनी बाइक है जिसे वे गर्व से अपने गांव में चलाते हैं।

हालांकि रत्ती राम के पास खेती के लिए कम भूमि थी लेकिन जल संसाधनों की कमी ने उनके प्रयासों और भूमि के बीच प्रमुख हस्तक्षेप का काम किया। बारिश के मौसम में जब वे खेती करने की कोशिश करते थे तब अत्याधिक बारिश उनकी फसलों को खराब कर देती थी। ये सभी जलवायु परिस्थितियों और अन्य खमियां उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने का मुख्य कारण थी।

कम आमदन जो उन्हें खेती से प्राप्त होती थी उसे वे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में खर्च कर देते थे और ये स्थितियां कई वित्तीय समस्याओं को जन्म दे रही थीं लेकिन एक दिन रत्ती राम को बागबानी विभाग के बारे में पता चला और वे नंगे पांव अपने गांव हिनोतिया के कलेक्टर राजेश जैन के ऑफिस जिला मुख्यालय (Head Quarter) की तरफ चल दिए। जब कलेक्टर ने रत्ती राम को देखा तो उन्होंने उनके दर्द को महसूस किया और अगला कदम जो उन्होंने उठाया, उसने रत्ती राम की ज़िंदगी को बदल दिया।

कलेक्टर ने रत्ती राम को बागबानी विभाग के अधिकारी के पास भेजा, जहां श्री रत्ती को विभिन्न बागबानी योजनाओं के बारे में पता चला। उन्होंने अमरूद, आंवला, हाइब्रिड टमाटर, भिंडी, आलू, लहसुन, मिर्च आदि के बीज लिए और बागबानी योजनाओं और सब्सिडी की मदद से उन्होंने ड्रिप सिंचाई प्रणाली, स्प्रेयर, बिजली स्प्रे पंप, पावर ड्रिलर की भी स्थापना की। इसके अलावा, कलेक्टर ने उन्हें सब्सिडी दर के तहत एक पैक हाउस लगाने में मदद की।

रत्ती राम ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती शुरू कर दी और एक साल में रत्ती राम ने 1 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया जिससे उन्होंने मैटाडोर वैन, दो बाइक और दो ट्रैक्टर खरीदे। वाहनों में निवेश करने के अलावा उन्होंने अन्य संसाधनों में भी निवेश किया और 3 पानी के कुएं बनवाए, 12 ट्यूबवैल और 4 घर विभिन्न स्थानों पर खरीदे। उन्होंने खेती के लिए 20 एकड़ भूमि खरीदकर अपनी खेती के क्षेत्र का विस्तार किया और किराये पर 100 एकड़ ज़मीन ली। आज वे अपने परिवार के साथ खुशी से रह रहे हैं और कुछ समय पहले उन्होंने अपने दो बेटों और एक बेटी की शादी भी धूमधाम से की।

रत्ती राम भारत में उन सभी किसानों के लिए एक आदर्श हैं जो खुद को असहाय और अकेला महसूस करते हैं और उम्मीदों को खो बैठते हैं, क्योंकि रत्ती राम ने अपने मुश्किल समय में कभी भी अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ा।