सरबजीत सिंह गरेवाल

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मुश्किलों का सामना करके प्रगतिशील किसान बनने तक का सफर-सरबजीत सिंह गरेवाल

पटियाला शहर, जहां पर जितनी दूर तक आपकी निगाह जाती है आपको हरे और फैले हुए खेत दिखाई देते हैं, ऐसे शहर के निवासी है प्रगतिशील किसान सरबजीत सिंह गरेवाल। 6.5 एकड़ उपजाऊ जमीन का होना उनके बागवानी सफर की शुरुआत बनी और उन्होंने खेती की जानकारी प्राप्त की और साल 1985 में विभिन्न प्रकार के फलों की खेती करनी शुरू की।

खेती के प्रति उनके जुनून के अलावा सरबजीत का पारिवारिक इतिहास भी उनके खेती जीवन में एक प्रेरणा बना। उनके पिता, सरदार जगदयाल सिंह जी 1980 में पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के बागवानी विभाग से सेवामुक्त हुए थे और बठिंडा में फल अनुसंधान केंद्र (फ्रूट रिसर्च सेंटर) की स्थापना में भी शामिल थे। सरबजीत सिंह अपने पिता जी की विशेषज्ञता से प्रेरित होकर उनके मार्गदर्शन पर चले और 1983 में उन्होंने खेतीबाड़ी करने का फैसला किया।

असफलताओं से निराश न होकर, सरबजीत ने खेती के तरीकों के बारे में ओर जानना शुरू किया, पंजाबी यूनिवर्सिटी से जीव-विज्ञान में मास्टर और पी.एच.डी. के साथ, सरबजीत की एक मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि थी जिसने उनकी ज्ञान के प्रति प्यास को उत्साहित किया। उन्होंने बागवानी की किताबें पढ़ीं और इंटरनेट से जानकारी इकट्ठी की और अपने द्वारा की गयी रिसर्च के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जिस ने भविष्य में खेती के फैसले लेने में सहायता की।

2018 में, अमरूद, भारतीय करौदा (Indian gooseberry) और अनार जैसी विभिन्न फसलों के साथ लगभग 15 वर्षों के प्रयोग के बाद, सरबजीत ने बेर, अमरूद और आड़ू की खेती पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया। अपने पिछले अनुभवों से सीखकर उन्होंने आड़ू के पेड़ों की अनूठी आवश्यकताओं का अध्ययन किया, यह सुनिश्चित करते हुए कि मिट्टी, पानी और जलवायु की स्थिति उनके विकास के लिए आदर्श थी। उन्होंने पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी (पी.ए.यू.) द्वारा सिफारिश पैकेज ऑफ़ प्रक्टिक्स को भी अपनाया और बागवानी अफसरों से सहायता ली।

सरबजीत जी के आड़ू का बाग फलने-फूलने लगा और उन्हें चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। बाग़ में आई चुनौतियों को समझकर सीख गए थे कि प्रत्येक पौधे को देखभाल और निगरानी की आवश्यकता होती है जिसमें उचित छंटाई, कीट नियंत्रण और रोग की रोकथाम आदि शामिल हैं। कड़ी मेहनत के साथ, उन्होंने अपने बाग़ की देखरेख में घंटों बिताए जिसके परिणामस्वरूप भरपूर फसल हुई।

अपनी उपज के लिए एक मार्किट स्थापित करने के लिए, सरबजीत एक बिचौलिये की सेवाओं पर निर्भर थे। उन्होंने खरीदारों से जुड़ने के लिए एक मजबूत नेटवर्क बनाने और फलों का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के महत्व को पहचाना। इससे वह खेती की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने लगे, उन्हें विश्वास था कि उनके फल उपभोक्ताओं तक पहुंचेंगे।

जैसे ही सरबजीत के आड़ू के बगीचे में सूरज ढलता है, उसके परिश्रम का फल उसके अटूट समर्पण के प्रमाण के रूप में सामने आता है। आड़ू की शान-ए-पंजाब प्रजाति के साथ-साथ सेब, आलूबुखारा और यहां तक कि ड्रैगन फ्रूट जैसे विदेशी फलों की खेती के लिए उनकी पसंद, फलों की खेती में नए तरीकों के बारे में तलाशने की उनकी अनुकूलन क्षमता और इच्छा को दर्शाती है। सरबजीत की सफलता की कहानी कृषि उत्कृष्टता प्राप्त करने में ज्ञान, मुश्किलों का सामना और भूमि के प्रति प्यार के महत्व के बारे में स्पष्ट करती है।

किसानों के लिए संदेश

सरबजीत सिंह जी अपने साथी किसानों को बागवानी में आने वाले निश्चित उतराव-चढ़ाव का डटकर सामना करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि बागवानी को समर्पित जीवन अंत में आपको असीमित खुशी और संतुष्टि देता है। उनका मानना है कि बागवानी में आमदनी सिमित है लेकिन इससे मिलने वाली खुशी पैसों से बढ़कर है।

कुलविंदर सिंह नागरा

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अच्छे वर्तमान और भविष्य की उम्मीद से कुलविंदर सिंह नागरा मुड़े कुदरती खेती के तरीकों की ओर

उम्मीद एकमात्र सकारात्मक भावना है जो किसी व्यक्ति को भविष्य के बारे में सोचने की ताकत देती है, भले ही इसके बारे में सुनिश्चित न हो। और हम जानते हैं कि जब हम बेहतर भविष्य के बारे में सोचते है तो कुछ नकारात्मक परिणामों को जानने के बावजूद भी हमारे कार्य स्वचालित रूप से जल्दी हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ जिंला संगरूर के गांव नागरा के एक प्रगतिशील किसान कुलविंदर सिंह नागरा के साथ हुआ जिनकी उम्मीद ने उन्हें कुदरती खेती की तरफ बढ़ाया।

“जैविक खेती में करने से पहले, मुझे पता था कि मुझे लगातार दो साल तक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इस स्थिति से अवगत होने के बाद भी मैंने कुदरती ढंगों को अपनाने का फैसला किया। क्योंकि मेरे लिए मेरा परिवार और आसपास का वातावरण पैसे कमाने से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, मैं अपने परिवार और खुद के लिए कमा रहा हूं, क्या होगा यदि इतने पैसे कमाने के बाद भी मैं अपने परिवार को स्वस्थ रखने में योग्य नहीं… तब सब कुछ व्यर्थ है।”

खेती की पृष्ठभूमि से आने पर कुलविंदर सिंह नागरा ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने का का फैसला किया। 1997 में, अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार की पुरानी तकनीकों को अपनाकर धान और गेहूं की खेती करनी शुरू की। 2000 तक, उन्होंने 10 एकड़ भूमि में गेहूं और धान की खेती जारी रखी और एक एकड़ में मटर, प्याज, लहसुन और लौकी जैसी कुछ सब्ज़ियां उगायी । लेकिन वह गेहूं और धान से संतुष्ट नहीं थे। इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने सब्जी की खेती के क्षेत्र को एक एकड़ से 7 एकड़ तक और किन्नू और अमरूद को 1½ एकड़ में उगाना शुरू किया।

“किन्नू कम सफल था लेकिन अमरूद ने अच्छा मुनाफा दिया और मैं इसे भविष्य में भी जारी रखूगा।”

बागवानी में सफलता के अनुभव ने कुलविंदर सिंह नागरा के आत्मविश्वास को बढ़ाया और तेजी से उन्होंने अपनी कृषि गतिविधियों को, और अधिक लाभ कमाने के लिए विस्तारित किया। उन्होंने सब्जी की खेती से लेकर नर्सरी की तैयारी तक सब कुछ करना शुरू कर दिया। 2008-2009 में उन्होंने शाहबाद मारकंडा , सिरसा और पंजाब के बाहर विभिन्न किसान मेलों में मिर्च, प्याज, हलवा कद्दू, करेला, लौकी, टमाटर और बेल की नर्सरी बेचना शुरू कर दिया।

2009 में उन्होंने अपनी खेती तकनीकों को जैविक में बदलने का विचार किया, इसलिए उन्होंने कुदरती खेती की ट्रेनिंग पिंगलवाड़ा से ली, जहां पर किसानों को ज़ीरो बजट पर कुदरती खेती की मूल बातें सिखाई गईं। एक सुरक्षित और स्थिर शुरुआत को ध्यान में रखते हुए कुलविंदर सिंह नागरा ने 5 एकड़ के साथ कुदरती खेती शुरू की।

वह इस तथ्य से अच्छी तरह से अवगत थे कि कीटनाशक और रासायनिक उपचार भूमि को जैविक में परिवर्तित करने में काफी समय लग सकता है और वह शुरुआत में कोई लाभ नहीं कमाएंगे। लेकिन उन्होंने कभी भी शुरुआत करने से कदम पीछे नहीं उठाया, उन्होंने अपने खेती कौशल को बढ़ाने का फैसला किया और उन्होंने फूड प्रोसेसिंग, मिर्च और खीरे के हाइब्रिड बीज उत्पादन, सब्जियों की नैट हाउस में खेती और ग्रीन हाउस प्रबंधन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ट्रेनिंग ली । लगभग दो वर्षों के बाद, उन्होंने न्यूनतम लाभ प्राप्त करना शुरू किया।

“मंडीकरण मुख्य समस्या थी जिस का मैंने सबसे ज्यादा सामना किया था चूंकि मैं नौसिखिया था इसलिए मंडीकरण तकनीकों को समझने में कुछ समय लगा। 2012 में, मैंने सही मंडीकरण तकनीकों को अपनाया और फिर सब्जियों को बेचना मेरे लिए आसान हो गया।”

कुलविंदर सिंह नागरा ने प्रकृति के लिए एक और कदम उठाया वह था पराली जलाना बंद करना। आज पराली को जलाना प्रमुख समस्याओ में से एक है जिस का पंजाब सामना कर रहा है और यह विश्व स्तर का प्रमुख मुद्दा भी है। पंजाब और हरियाणा में किसान धन बचाने के लिए पराली जला रहे है, पर कुलविंदर सिंह नागरा ने पराली जलाने की बजाय इस की मल्चिंग और खाद बनाने के लिए इस्लेमाल किया।

कुलविंदर सिंह नागरा खेती के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए हैप्पी सीडर, किसान, बैड्ड, हल, रीपर और रोटावेटर जैसे आधुनिक और नवीनतम पर्यावरण-अनुकूल उपकरणों को पहल देते हैं।

वर्तमान में, वे 3 एकड़ पर गेहूं, 2 एकड़ पर चारे वाली फसलें, सब्जियां (मिर्च, शिमला मिर्च, खीरा, पेठा, तरबूज, लौकी, प्याज, बैंगन और लहसुन) 6 एकड़ पर और और फल जैसे आड़ू, आंवला और 1 एकड़ पर किन्नू की खेती करते हैं। वह अपने खेत पर पानी का सही उपयोग करने के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं।

वे अपनी कृषि गतिविधियों का समर्थन करने के लिए डेयरी फार्मिंग भी कर रहे है। उनके पास उनके बाड़े में 12 पशू हैं, जिनमें मुर्रा भैंस, नीली रावी और साहीवाल शामिल है। इनका दूध उत्पादन प्रति दिन 90 से 100 किलो है, जिससे वह बाजार में 70-75 किलोग्राम दूध बेचते हैं और शेष घर पर इस्तेमाल करते हैं । अब, मंडीकरण एक बड़ी समस्या नहीं है, वे संगरूर, सुनाम और समाना मंडी में सभी जैविक सब्जियां बेचते हैं। व्यापारी फल खरीदने के लिए उनके फार्म पर आते हैं और इस प्रकार वे अपने फसल उत्पादों की अच्छी कीमत कमा रहे हैं।

वे अपनी सभी उपलब्धियों का श्रेय पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी और अपने परिवार को देते हैं। आज, वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरों को अपनी कुदरती सब्जियों की खेती के कौशल के साथ प्रेरित करते है और उन्हें इस पर गर्व है। सब्जियों की कुदरती खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए, उन्हें कई पुरस्कार और प्रशंसा मिली, और उनमें से कुछ है…

• 19 फरवरी 2015 को सूरतगढ़ (राजस्थान) में भारत के माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रगतिशील किसान का कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त किया।

• संगरूर के डिप्टी कमिश्नर श्री कुमार राहुल द्वारा ब्लॉक लेवल अवॉर्ड प्राप्त किया।

• पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना से पुरस्कार प्राप्त किया।

• कृषि निदेशक, पंजाब से पुरस्कार प्राप्त किया।

• सर्वोत्तम सब्जी की किस्म की खेती में कई बार पहला और दूसरा स्थान हासिल किया।

खैर, ये पुरस्कार उनकी उपलब्धियों को उल्लेख करने के लिए कुछ ही हैं। कृषि समाज में उन्हें मुख्य रूप से उनके काम के लिए जाना जाता है।

कृषि के क्षेत्र में किसानों को मार्गदर्शन करने के लिए अक्सर उनके फार्म हाउस पर वे के वी के और पी ए यू के माहिरों को आमंत्रित करते हैं कि वे फार्म पर आये और कृषि संबंधित उपयोगी जानकारी सांझा करें, साथ ही साथ किसानों के बीच में वार्तालाप भी करवाते हैं ताकि किसान एक दूसरे से सीख सकें। उन्होंने वर्मीकंपोस्ट प्लांट भी स्थापित किया है वे अंतर फसली और लो टन्नल तकनीक अपनाते हैं, मधुमक्खीपालन करते हैं। कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बिजाई बैड पर करते हैं। नो टिल ड्रिल हैपी सीडर का इस्तेमाल करके गेहूं की खेती करते हैं, धान की रोपाई से पहले ज़मीन को लेज़र लेवलर से समतल करते हैं, मशीनीकृत रोपाई करते हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन और एकीकृत निमाटोड प्रबंधन करते हैं।

कृषि तकनीकों को अपनाने का प्रभाव:

विभिन्न कृषि तकनीकों को लागू करने के बाद, उनके गेहूं उत्पादन ने देश भर में उच्चतम गेहूं उत्पादन का रिकॉर्ड बनाया जो कुदरती खेती के तरीकों से 2014 में प्रति हेक्टेयर 6456 किलोग्राम था और इस उपलब्धि के लिए उन्हें कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनके आस पास रहने वाले किसानों के लिए वे प्रेरक हैं और वातावरण अनुकूलन तकनीकों को अपनाने के लिए किसान अक्सर उनकी सलाह लेते है।

भविष्य की योजना:
भविष्य में, कुलविंदर सिंह नागरा सब्जियों को विदेशों निर्यात करने की बना रहे हैं।
संदेश
“जो किसान अपने कर्ज और जिम्मेदारियों के बोझ से राहत पाने के लिए आत्मघाती पथ लेने का विकल्प चुनते हैं उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहिए। भगवान ने हमारे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई अवसर और क्षमताओं को दिया है और हमें इस अवसर को कभी भी छोड़ना चाहिए।”

करमजीत कौर दानेवालिया

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कैसे एक महिला ने शादी के बाद अपने खेती के प्रति जुनून को पूरा किया और आज सफलतापूर्वक इस व्यवसाय को चला रही है

आमतौर पर भारत में जब बेटियों की शादी कर दी जाती है और उन्हें अपने पति के घर भेज दिया जाता है तो वे शादी के बाद अपनी ज़िंदगी में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वे अपनी रूचि और अपने शौंक के बारे में भूल ही जाती हैं। वे घर की चारदिवारी में बंध कर रह जाती हैं। लेकिन एक ऐसी महिला हैं – श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया । जिसने शादी के बाद भी अपने जुनून को आगे बढ़ाया । घर में रहने की बजाय उन्होंने घर के बाहर कदम रखा और बागबानी के अपने शौंक को पूरा किया।

श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया एक ऐसी महिला है जिन्होंने एक छोटे से गांव के एक ठेठ पंजाबी किसान के परिवार में जन्म लिया। खेती की पृष्ठभूमि से होने पर श्री मती करमजीत हमेशा खेती के प्रति आकर्षित थी और खेतों में अपने पिता की मदद करने में भी रूचि रखती थी। लेकिन शादी से पहले उन्हें कभी खेती में अपने पिता की मदद करने का मौका नहीं मिला।

जल्दी ही उनकी शादी एक बिजनेस क्लास परिवार के श्री जसबीर सिंह से हो गई। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि शादी के बाद उन्हें अपने सपनों को पूरा करने और इन्हें अपने व्यवसाय के रूप में करने का अवसर मिलेगा। शादी के कुछ वर्ष बाद 1975 में अपने पति के समर्थन से उन्होंने फलों का बाग लगाने का फैसला किया और अपनी दिलचस्पी को एक मौका दिया। लेवलर मशीन और मजदूरों की सहायता से, उन्होंने 45 एकड़ की भूमि को समतल किया और इसे बागबानी करने के लिए तैयार किया। उन्होंने 20 एकड़ की भूमि पर किन्नू उगाए और 10 एकड़ की भूमि पर आलूबुखारा, नाशपाति, आड़ू, अमरूद, केला आदि उगाए और बाकी की 5 एकड़ भूमि पर वे सर्दियों में गेहूं और गर्मियों में कपास उगाती हैं।

उनका शौंक जुनून में बदल गया और उन्होंने इसे जारी रखने का फैसला किया। 1990 में उन्होंने एक तालाब बनाया और इसमें बारिश के पानी को स्टोर किया। वे इससे बाग की सिंचाई करती थी। लेकिन उसके बाद उन्होंने इसमें मछली पालन शुरू किया और इसे दोनों मंतवों मछली पालन और सिंचाई के लिए प्रयोग किया। अपने व्यापार को एक कदम और बढ़ाने के लिए उन्होंने नए पौधे स्वंय तैयार करने का फैसला किया।

2001 में उन्होंने भारत में किन्नू के उत्पादन का एक रिकॉर्ड बनाया और किन्नू के बाग के व्यापार को और सफल बनाने के लिए, किन्नू की पैकेजिंग और प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग के लिए वे विशेष तौर पर 2003 में कैलीफॉर्निया गई। वापिस आने के बाद उन्होंने उस ट्रेनिंग को लागू किया और इससे काफी लाभ कमाया। जिस वर्ष से उन्होने किन्नू की खेती शुरू की तब से उनके किन्नुओं की गुणवत्ता प्रतिवर्ष जिला स्तर और राज्य स्तर पर नंबर 1 पर रही है और किन्नू उत्पादन में बढ़ती लोकप्रियता के कारण 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने उन्हें ‘किन्नुओं की रानी’ के नाम से नवाज़ा।

खेती के उद्देश्य के लिए, आधुनिक तकनीक के हर प्रकार के खेतीबाड़ी यंत्र और मशीनरी उनके फार्म पर मौजूद है। बागबानी के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्धि ने उन्हें कई प्रतिष्ठित समुदायों का सदस्य बनाया और कई पुरस्कार दिलवाए। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।

• 2001-02 में कृषि मंत्री श्री गुलज़ार रानीका द्वारा राज्य स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2004 में शाही मेमोरियल इंटरनेशनल सेवा सोसाइटी, लुधियाना में रवी चोपड़ा द्वारा देश सेवा रत्व पुरस्कार से पुरस्कृत हुईं।
• 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्य मंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा ‘किन्नुओं की रानी’ का शीर्षक मिला।
• 2005 में कृषि मंत्री श्री जगजीत सिंह रंधावा द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक पुरस्कार मिला।
• 2012 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2012 में जिला स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में जिला स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010 में कृषि मंत्री श्री सुचा सिंह लंगाह द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक महिला का पुरस्कार मिला।
• 2012 में श्री शरनजीत सिंह ढिल्लों और वी.सी पी ए यू, लुधियाना द्वारा किसान मेले में अभिनव महिला किसान के रूप में राज्य स्तरीय पुरस्कार मिला।
• 2012 में कृषि मंत्री श्री शरद पवार -भारत सरकार द्वारा 7th National conference on KVK at PAU, लुधियाना में उत्कृष्टता के लिए चैंपियन महिला किसान पुरस्कार मिला।
• 2013 में पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा अमृतसर में 64वें गणतंत्र दिवस पर प्रगतिशील महिला किसान के सम्मान में पुरस्कार मिला।
• 2013 में कृषि मंत्री Dr. R.R Hanchinal, Chairperson PPUFRA- भारत सरकार द्वारा indian agriculture at global agri connect (NSFI) IARI, नई दिल्ली में भारतीय कृषि में अभिनव सहयोग के लिए प्रशंसा पत्र मिला।
• 2012 में में पंजाब की सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
• 2013 में तामिलनाडू और आसाम के गवर्नर डॉ. भीष्म नारायण सिंह द्वारा कृषि में सराहनीय सेवा, शानदार प्रदर्शन और उल्लेखनीय भूमिका के लिए भारत ज्योति पुरस्कार मिला।
• 2015 में नई दिल्ली में पंजाब के पूर्व गवर्नर जस्टिस ओ पी वर्मा द्वारा भारत का गौरव बढ़ाने के लिए उनके द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों को देखते हुए भारत गौरव पुरस्कार मिला।
• कृषि मंत्री श्री तोता सिंह और कैबिनेट मंत्री श्री गुलज़ार सिह रानीका और ज़ी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल के संपादक श्री दिनेश शर्मा द्वारा बागबानी के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट सहयोग और किन्नू की खेती को बढ़ावा देने के लिए Zee Punjab/Haryana/Himachal एग्री पुरस्कार मिला।
• श्रीमती करमजीत पी ए यू किसान क्लब की सदस्या हैं।
• वे पंजाब AGRO की स्दस्या हैं
• वे पंजाब बागबानी विभाग की सदस्या हैं।
• मंडी बोर्ड की सदस्या हैं।
• चंगी खेती की सदस्या हैं।
• किन्नू उत्पादक संस्था की सदस्या हैं।
• Co-operative Society की सदस्या हैं।
• किसान सलाहकार कमेटी की सदस्या हैं।
• PAU, Ludhiana Board of Management की सदस्या हैं।

इतने सारे पुरस्कार और प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद, वे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए उत्सुक हैं और यही वजह है कि वे कभी भी किसी भी जिला स्तर के कृषि मेलों और मीटिंगों में भाग लेना नहीं छोड़ती । वे कुछ नया सीखने के लिए और ज्ञान प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से उन किसानों के खेतों का दौरा करती हैं जो पी ए यू और हिसार कृषि विश्वविद्लाय से जुड़े हैं।

आज वे प्रति हेक्टेयर में 130 टन किन्नुओं की तुड़ाई कर रही हैं और इससे 1 लाख 65 हज़ार आय कमा रही हैं। अन्य फलों के बागों से और गेहूं और कपास की फसलों से वे प्रत्येक मौसम में 1 लाख आय कमा रही हैं।

अपनी सभी सफलताओं के पीछे का सारा श्रेय वे अपने पति को देती हैं जिन्होंने उनके सपनों का साथ दिया और इन सभी वर्षों में खेती करने में उनकी मदद की। खेती के अलावा वे समाज के लिए एक बहुत अच्छे कार्य में सहयोग दे रही हैं। वे गरीब लड़कियों को वित्तीय सहायता और शादी की अन्य सामग्री प्रदान कर उनकी शादी में मदद भी करती हैं उनकी भविष्य योजना है – खेतीबाड़ी को और लाभदायक व्यापारिक उद्यम बनाना है।

किसानों को संदेश –
किसानों को अपने खर्चों को अच्छी तरह बनाकर रखना शुरू करना होगा और जो उनके पास नहीं है, उन्हें उसका दिखावा बंद करना होगा। आज, कृषि क्षेत्र को अधिक ध्यान की आवश्यकता है इसलिए युवा बच्चों को जिनमें बेटियों को भी शामिल किया जाना चाहिए और इस क्षेत्र के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए और हर किसी को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि कृषि के क्षेत्रा में हर इंसान पहले एक किसान है और फिर एक व्यापारी।

हरबंत सिंह

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पिता पुत्र की जोड़ी जिसने इंटरनेट को अपना शोध हथियार बनाकर जैविक खेती की

खेतीबाड़ी मानवी सभ्यता का एक महत्तवपूर्ण भाग है। तकनीकों और जीवन में उन्नति के साथ साथ कई वर्षों में खेती में भी बदलाव आया है। लेकिन फिर भी, भारत में कई किसान परंपरागत तरीके से ही खेती करते हैं, लेकिन ऐसे ही एक किसान हैं या हम कह सकते हैं कि एक पिता पुत्र की जोड़ी-हरबंत सिंह (पिता) और सतनाम सिंह (पुत्र), जिन्होंने खेती के क्षेत्र में उन्नति के लिए इंटरनेट को अपना अनुसंधान हथियार बनाया।

जब तक उनका बेटा जैविक तरीके से बागबानी करने के विचार से पहले अन्य किसानों की तरह, हरबंत सिंह भी पहले परंपरागत खेती करते थे। हां, ये सतनाम सिंह ही थे जिन्होंने अपने 1 वर्ष की रिसर्च के बाद, अपने पिता से ड्रैगन फल की खेती करने की सिफारिश की।

यह सब 1 वर्ष पहले शुरू हुआ जब सतनाम सिंह अपने एक दोस्त के माध्यम से गुजरात के एक व्यकित विशाल डोडा के संपर्क में आए, विशाल डोडा 15 एकड़ के क्षेत्र में ड्रैगन फल की खेती करते हैं। सतनाम सिंह ने ड्रैगल फल पौधे के बारे में सब कुछ रिसर्च किया और अपने पिता से इसके बारे में चर्चा की और जब हरबंत सिंह ने ड्रैगन फल की खेती के बारे में और इसके फायदों के बारे में जाना, तो उन्होंने बहुत प्रसन्नता से अपने पुत्र को इसे शुरू करने के लिए प्रेरित किया, फिर चाहे इसमें कितना भी निवेश करना हो। जल्द ही उन्होंने गुजरात का दौरा किया और ड्रैगन फल के पौधों को खरीदा और विशाल डोडा से इसकी खेती के बारे में कुछ दिशा निर्देश लिये।

आज इस पिता पुत्र की जोड़ी पहली है जिसने पंजाब में ड्रैगन फल की खेती शुरू कर और अब इन पौधों ने फल देना भी शुरू कर दिया है। उन्होंने डेढ़ बीघा क्षेत्र में ड्रैगन फल के 500 नए पौधे लगाए हैं। एक पौधा 4 वर्ष में 4-20 किलो फल देता है। उन्होंने सीमेंट का एक स्तम्भ बनाया है जिसके ऊपर पहिये के आकार का ढांचा है जो कि पौधे को सहारा देता है। जब भी उन्हें ड्रैगन फल की खेती से संबंधित मदद की जरूरत होती है तो वे इंटरनेट पर उसकी खोज करते हैं या विशाल डोडा से सलाह लेते हैं।

वे सिर्फ ड्रैगन फल की ही खेती नहीं करते बल्कि उन्होंने अपने खेत में चंदन के भी पौधे लगाए हुए हैं। चंदन की खेती का विचार सतनाम सिंह के मन में उस समय आया जब वे एक न्यूज चैनल देख रहे थे जहां उन्होंने जाना कि एक मंत्री ने चंदन के पौधे का एक बड़ा हिस्सा मंदिर में दान किया जिसकी कीमत लाखों में थी। उस समय उनके दिमाग में अपने भविष्य को पर्यावरण की दृष्टि और वित्तीय रूप से सुरक्षित और लाभदायक बनाने का विचार आया। इसलिए उन्होंने जुलाई 2016 में चंदन की खेती में निवेश किया और 6 कनाल क्षेत्र में 200 पौधे लगाए।

हरबंत सिंह के अनुसार, वे जिस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं उसे भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं क्योंकि ड्रैगनफल और चंदन दोनों को कम पानी की आवश्यकता होती है (इसे केवल बारिश के पानी से ही सिंचित किया जा सकता है) और किसी विशेष प्रकार की खाद की जरूरत नहीं होती। इसके अलावा वे ये भी अच्छी तरह से जानते हैं कि आने वाले समय में धान और गेहूं की खेती पंजाब से गायब हो जाएगी क्योंकि भूजल की कमी के कारण और बागबानी आने वाले समय की आवश्यकता बन जाएगी।

हरबंत सिंह ड्रैगन फल और चंदन की खेती के लिए जैविक तरीकों का पालन करते हैं और धीरे धीरे समय के साथ वे अपनी अन्य फसलों में भी रसायनों का प्रयोग कम कर देंगे। हरबंत सिंह और उनके बेटे का रूझान जैविक खेती की तरफ इसलिए है क्योंकि समाज में बीमारियां बहुत ज्यादा बढ़ रही हैं। वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए वातावरण को सेहतमंद और रहने योग्य बनाना चाहते हैं। जैसा उनके पूर्वज उनके लिए छोड़ गए थे। एक कारण यह भी है कि सतनाम सिंह ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद जैविक खेती करने लगे थे और शुरूआत से ही उनकी रूचि खेती में थी।

आज सतनाम सिंह, अपने पिता की आधुनिक तरीके से खेती करने में पूरी मदद कर रहे हैं। वे गाय के गोबर और गऊ मूत्र का प्रयोग करके घर पर ही जीव अमृत और खाद तैयार करते हैं। वे कीटनाशकों और खादों का प्रयोग नहीं करते। हरबंत सिंह अपने गांव में पानी के प्रबंधन का भी काम कर रहे हैं और अन्य गांवों को भी इसके बारे में शिक्षा दे रहे हैं ताकि वे ट्यूबवैल का कम प्रयोग कर सकें। उनके खुद के पास 12 एकड़ खेत के लिए केवल एक ही ट्यूबवैल है। सामान्य फसलों के अलावा उनके पास अमरूद, केला, आम और आड़ू के पेड़ भी हैं।

सतनाम सिंह ने चंदन और ड्रैगन फल की खेती करने से पहले रिसर्च में एक वर्ष लगाया क्योंकि वे एक ऐसी फसल में निवेश करना चाहते थे। जिसमें कम सिंचाई की जरूरत हो और उसके स्वास्थ्य और वातावरणीय लाभ भी हो। वे चाहते हैं कि अन्य किसान भी ऐसे ही करें खेतीबाड़ी की ऐसी तकनीक अपनायें जो पर्यावरण के अनुकूल हो और जिसके विभिन्न लाभ हो।

भविष्य की योजना
वे भविष्य में लहसुन और महोगनी वृक्ष उगाने चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अन्य किसान भी इसकी संभावना को पहचाने और अपने अच्छे भविष्य के लिए इसमें निवेश करें।

किसानों को संदेश
हरबंत सिंह और उनके बेटे दोनों ही चाहते हैं कि अन्य किसान जैविक खेती शुरू करें और भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्यावरण को बचाएं। तभी वे जीवित रह सकते हैं और धरती को बेहतर रहने की जगह बना सकते हैं।

हरिमन शर्मा

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एक किसान की कहानी जिसने अपना कर्म करते हुए, अपनी मेहनत से सफलता का स्वाद चखा

ऐसा कहा जाता है कि मानव इच्छा शक्ति के आगे कोई भी चीज़ टिकी नहीं रह सकती। ऐसी ही इच्छा और शक्ति के साथ एक ऐसे व्यक्ति आये जिन्होंने अपने निरंतर प्रयास के साथ उस ज़मीन पर सेब की एक नई किस्म का विकास किया, जहां पर यह लगभग असंभव था।

श्री हरिमन शर्मा एक सफल किसान हैं जिनके पास  सेब, आम, आडू, कॉफी, लीची और अनार के बगीचे हैं। एक उष्णकटिबंधीय स्थान (गांव पनीला कोठी, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश), जहां तापमान 45 डिग्री तक बढ़ जाता है और भूमि में 80 %चट्टानें हैं और 20% मिट्टी है। यहां पर सेब उगाना लगभग असंभव था लेकिन हरिमन शार्मा की लगातार कोशिशों ने इसे संभव किया।

इससे पहले हरिमन शर्मा एक किसान नहीं थे और जो सफलता उन्होंने आज हासिल की है उसके लिए उन्हें अपने जीवन में कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 1971 से 1982 तक वे मजदूर थे, 1983 से 1990 तक उन्होंने पत्थर तोड़ने का और सब्जियों की खेती का काम किया। 1991 से 1998 तक उन्होंने सब्जी की खेती के साथ-साथ आम के बाग भी लगाए।

1999 में एक मोड़ ऐसा आया जब उन्होंने अपने आंगन में एक सेब का बीज अंकुरित होते देखा।उन्होंने उस अंकुर को संरक्षित किया और अपने खेती के अनुभव के दौरान प्राप्त ज्ञान से इसका पोषन करना शुरू कर दिया। क्वालिटी को सुधारने के लिए उन्होंने आलूबुखारा के वृक्ष के तने पर सेब के वृक्ष की शाखा की ग्राफ्टिंग कर दी और इसका परिणाम असाधारण था। दो वर्ष बाद सेब के पेड़ ने फल देना शुरू कर दिया। आखिरकार उन्होंने एक अलग प्रकार का सेब विकसित किया, जो कि गर्म जलवायु के साथ बहुत कम पहाड़ियों पर व्यापारिक रूप से उगाया जा सकता है।

धीरे-धीरे समय के साथ हरिमन शर्मा के द्वारा खोजी गई सेब की नई किस्म की बात फैल गई। अधिकांश लोगों ने इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया और कुछ आश्चर्यचकित हुए। लेकिन 7 जुलाई 2008 को हरिमन शर्मा शिमला गए और उन्होंने उनके द्वारा विकसित किए गए सेब की एक टोकरी की पेशकश की, जो हिमाचल के मुख्यमंत्री के लिए थी। मुख्यमंत्री ने तुरंत अपने मंत्रीमंडल के सहयोगियों को इकट्ठा किया और उन सभी ने उन सेबों को चखा और जल्द ही मुख्यमंत्री ने इस सेब को हरिमन नाम दिया। बागबानी विश्वविद्यालय और विभाग के कई विशेषज्ञ विशेष रूप से उनके बगीचे में गए और वास्तव में आश्चर्यचकित और उनके काम से आश्वस्त हुए।

उन्होंने एक ही किस्म के सेब के 8 वृक्ष विकसित किए हैं जो कि बाग में आम के वृक्ष के साथ बढ़ रहे हैं और अब तक अच्छी उपज दे रहे हैं। हरिमन शर्मा द्वारा विकसित की गई किस्म का नाम उन्हीं के नाम पर HRMN-99  है। उन्होंने देश भर में किसानों, माली, उद्यमियों और सरकारी संगठनों को 3 लाख से अधिक पौधों को विकसित और वितरित किया है और HRMN-99  किस्म के 55 सेब के पौधे राष्ट्रपति भवन में लगाए हैं। उन्होंने आम, लीची, अनार, कॉफी और आड़ू फलों के बाग भी बनाए हैं।

हरिमन शर्मा द्वारा विकसित सेब की किस्म को कम  तापमान की जरूरत होती है और उप उष्णकटिबंधीय मैदानों में फूलों और फलों का उत्पादन होता है। उनकी उपलब्धि बागबानी के क्षेत्र में बहुत महत्तव रखती है, आज समाज में हरिमन शर्मा का योगदान केवल महान ही नहीं बल्कि दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी है।

आज हरिमन एप्पल को भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में उगाया और पोषित किया जाता है। उनकी कड़ी मेहनत ने साबित कर दिया है कि गर्म जलवायु के साथ बहुत कम पहाड़ियों पर सेब को व्यापारिक तौर पर उगाया जा सकता है।  श्री शर्मा अपनी बेहतर तकनीकों को अपने किसान साथियों के साथ शेयर कर रहे हैं और फैला रहे हैं।

कृषि के क्षेत्र में हरिमन शर्मा को उनके काम के लिए कई पुरस्कार और प्रशंसा मिली है उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

• भारतीय कृशि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली में प्रगतिशील किसान के रूप में सम्मानित किया गया।

• राष्ट्रपति भवन में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के प्रोग्राम में अपनी नई खोज के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त किया।

• 2010 के सर्वश्रेष्ठ हिमाचली किसान शीर्षक से सम्मानित।

• 15 अगस्त 2009 में प्रेरणा स्त्रोत सम्मान पुरस्कार।

• 15 अगस्त 2008 में राज्य स्तरीय सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार।

• ऊना (2011 में) सेब का सफलतापूर्वक उत्पादन पुरस्कार।

• 19 जनवरी 2017 को कृषि पंडित पुरस्कार।

• इफको की जयंति के शुभ अवसर पर 29.4.2017 को उत्कृष्ट कृषक पुरस्कार।

• पूसा भवन दिल्ली केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री द्वारा 17.3.2-10 में IARI Fellow Award

• 21 मार्च 2016 में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री भारत सरकार – राधा मोहन सिंह द्वारा राष्ट्रीय नवोन्मेषी कृषक सम्मान।

• सेब उत्पादन के लिए 3 फरवरी 2016 को हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल द्वारा।

• नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित, 4 मार्च 2017 को राष्ट्रीय द्वितीय अवार्ड।

• 9 मार्च 2017 को राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ वैटर्नरी एंड एनीमल साइंसिज़ बीकानेर द्वारा फार्मर साइंटिस्ट अवार्ड।

हरिमन शर्मा द्वारा दिया गया संदेश
कर्म मनुष्य का अधिकार है फल को प्राप्त करने के लिए कर्म नहीं किया जाता। एक खेत में किसान का काम बीज बोना है, लेकिन अनाज का बढ़ना किसान के हाथों में नहीं है। किसान को अपना काम कभी भी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए और उसे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। मैंने उस सेब के अंकुर को विकसित करने और उसके साथ कुछ नया करने की कोशिश की। यही कारण है कि मैं यहां हूं और यही कारण है कि सेब की किस्म का नाम मेरे नाम पर है। हर किसान को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए और कर्म करते रहना चाहिए।

गुरजतिंदर सिंह विर्क

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एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जिसने मज़बूरी में मछली पालन शुरू किया, लेकिन आज वह दूसरे किसानो के लिए एक मिसाल बन चुके हैं

कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि जो ज़मीन पिछले 100 वर्षों से खाली पड़ी थी, वह आज उपजाऊ और उपयोगी होगी। इसके पीछे का कारण है कि किसी ने वहां कुछ भी करने की कोशिश नहीं की क्योंकि वहां साल के 11 महीने पानी खड़ा रहता था, लेकिन हर आने वाली नई पीढ़ी के साथ नई सोच आती है। हम सभी जानते हैं कि हमारे आस-पास और वातावरण में थोड़ा बदलाव करने के लिए एक बड़ी कोशिश की आवश्यकता होती है। यह कोशिश सिर्फ केवल मजबूत इच्छाशक्ति और जुनून के साथ प्रयोग में आ सकती है और इस तरह एक अलग नज़रिए, बुद्धि और उत्साह के साथ अपनी मातृ भूमि और अपने समुदाय के लिए कुछ करने के लिए गुरजतिंदर सिंह विर्क आए।

गुरजतिंदर सिंह विर्क गांव कंडोला, जिला रूपनगर के रहने वाले हैं, उन्होंने वर्ष 1985 में 5 एकड़ की जल जमाव वाली ज़मीन पर मछली पालन का काम शुरू किया, यह ज़मीन उन्हें पैतिृक संपत्ति से मिली थी। चूंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने गुरदासपुर का दौरा किया और वहां से 5 दिन की ट्रेनिंग लेकर मछली पालन का काम शुरू कर दिया। उन्होंने तकरीबन 30 साल पहले मछली पालन का काम शुरू किया और अब तक अपनी मेहनत और लगन से इस कार्य को 5 एकड़ से 30 एकड़ तक फैलाया है। मछली पालन के इस कार्य की दिशा में उनके इस क्रांतिकारी कदम ने कई अन्य किसानों को प्रेरित किया और अंतत: इससे कई अनुकूल प्रभाव दिखे जिन्होंने एक बंजर भूमि को मछली पालन के क्षेत्र में विकसित किया। उसी क्षेत्र में आज लगभग 300-400 एकड़ बंजर भूमि को मछली पालन के लिए उपयोग किया जाता है।

यह सब काफी वर्ष पहले एक बंजर ज़मीन और एक इंसान की मेहनत द्वारा शुरू हुआ और आज इससे काफी लोग प्रेरित हैं। आखिरकार यह छोटा कदम किसानों और कई अन्य इलाकों की जीविका को सुधारने में मदद कर रहा है ताकि उनके जीवन स्तर को उन्नत किया जा सके। अब उस क्षेत्र में आवेशपूर्ण मछली पकड़ने वाले किसानों का एक समुदाय बनाया गया है और इनके प्रयासों से अंतत: उस क्षेत्र का आर्थिक विकास हो रहा है जो राज्य और राष्ट्र के आर्थिक विकास को जोड़ रहा है।

अब विर्क जी की खेती पद्धति और आर्थिक प्रगति पर आते हैं। गुरजतिंदर सिंह विर्क के फार्म पर सामान्य कार्प मछलियां जैसे कतला और रोहू की किस्में हैं। एक एकड़ तालाब के लिए 2000 मछली के बच्चों की आवश्यकता होती है, इसीलिए वे 2000 मछली के बच्चों को पानी में छोड़ते हैं। मछलियों की वृद्धि, पानी की गुणवत्ता, आहार की गुणवत्ता और पानी में मौजूद शिकारियों के आधार पर निर्भर होती है। आमतौर पर वे तालाब में मछली की दो किस्मों को डालते हैं और उनकी अच्छी पैदावार के लिए उचित हालात बनाकर रखते हैं। वे मछलियों को 80 रू प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं जबकि बाज़ार में वह मछली 120 रू प्रति किलो के हिसाब से बिकती है और कम कीमतों पर मछलियों को बेचने के बावजूद भी वे लाखों कमा रहे हैं और पर्याप्त लाभ कमा रहे हैं।

गुरजतिंदर सिंह विर्क ने वातावरण के संरक्षण के लिए काफी कदम उठाए हैं, उनमें से एक महत्तवपूर्ण कार्य यह है कि उन्होंने अपने रसोई उद्यान की सिंचाई और तालाब को भरने के लिए सौर पंप सेटों का उपयोग करके कार्बन को कम किया है। श्री विर्क द्वारा किए गए अच्छे कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कार और उपलब्धियां मिली हैं। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।

उन्हें Agriculture Technology Management के लिए जिला स्तरीय पुरस्कार मिला है और सर्वोत्तम कृषि प्रणाली के लिए उन्हें Roopnagar Administration द्वारा प्रशंसा पत्र मिला है। उन्हें क्षेत्र को विकसित करने के लिए Zee Networks द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। 2011 में उन्हें Best Citizen India Award से नवाज़ा गया। उसके बाद उन्हें Bharat Jyoti Award और Fish Farmer Award भी मिला।

खेती के क्षेत्र में उनके अच्छे काम से उन्हें कई प्रतिष्ठित समितियों और समाज में मैंबरशिप मिली। आज वे Advisory Committee (ATMA) और Board of Management at GADVASU के मैंबर हैं। वे किसान विकास चैंबर के 11 मैंबरों की सूचि में भी शामिल हैं जिन्होंने भारत की मुख्य उद्योग संघ को स्थापित किया जैसे CII, FICCI और ASSOCHAM और इस संघ का कार्य, राज्य की बिगड़ती कृषि अर्थव्यवस्था को अपग्रेड करना और खेती से संबंधित तकनीकों का प्रयोग करना जो किसान पहले से ही प्रयोग कर रहे थे। वे रूपनगर और मोहाली जिलों के लिए NABARD के तहत गांव Cooperative Society की तरफ से (वन विभाग) में भूतपूर्व वार्डन भी थे।

गुरजतिंदर सिंह विर्क द्वारा लिया गया एक महत्तवपूर्ण कदम था कि भूतपूर्व मंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ देखे गए चीन में मछली पालन के ढंग के बारे में ओर जानने के लिए चीने के मछली पालन के तरीके को अपनाया।

उनकी इन उपलब्धियों के इलावा उन्होंने हरियाली से भरी एक सुंदर जगह बनाने में बहुत मेहनत की है। उन्होंने तालाब के मध्य में अपना घर बनाया है और उस भूमि के टुकड़े पर जहां उनका घर है, उन्होंने सभी प्रकार की सब्जियां और फलों को विकसित किया है। उनके खेत में आडू, बादाम, किन्नू, मैड्रिन, आम, अनार, सेब, अनानास और 17 से अधिक सब्जियां और दालें हैं। उन्होंने अपने घर के आस-पास की ज़मीन को इस तरह विकसित किया है कि बाज़, किंगफिशर, fork tail, geese, तोते और मोर की कई दुर्लभ और आम प्रजातियां को उनके फार्म पर चहचहाते हुए आसानी से देखा जा सकता है। संक्षेप में उनके अपने देश के विकास कार्यों ने पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों की एक विविधता बनाई है।

आज वे जो कुछ भी हैं उसके पीछे उनकी प्रेरणा और साथी उनकी पत्नी रूपिंदर कौर विर्क हैं जिन्होने ज़िंदगी के हर कदम पर उनका साथ दिया और उनके प्रत्येक काम में उनकी मदद की। वे उनकी ज़िंदगी में एक पेशेवर भूमिका भी निभाती हैं और उनके फार्म के सभी लेखों का रिकार्ड बनाकर रखती हैं। खाली समय में वे अपने खेत में उगाए फलों का बेचने के उद्देश्य से आचार और कैडिज़ बनाना पसंद करती हैं। गुरजतिंदर सिंह विर्क अपनी पत्नी और सिर्फ दो नौकरों की सहायता से फार्म के सभी कार्यों को संभालते हैं और भविष्य के विकास के लिए वे अपने फार्म को पर्यटन स्थल बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं।

चीन की यात्रा के बाद गुरजतिंदर सिंह विर्क ने निष्कर्ष निकाला कि बेहतर तकनीकों का उपयोग करके बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है इसलिए वे चाहते हैं कि किसान बेहतर उत्पादन के लिए नई तकनीकों को अपनायें। उन्होंने ये भी कहा कि उनके गांव में 24 घंटे बिजली नहीं रहती जिसके कारण खेती का उत्पादन कम होता है और भविष्य में, यदि उन्हें 24 घंटे बिजली सुविधा उपलब्ध की जाती है तो वे खेती क्षेत्र में बेहतर परिणाम दे सकते हैं। वे सोचते हैं कि कड़ी मेहतन से आप ज़मीन के किसी भी टुकड़े से कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं, अंतर बस फल और सब्जी के आकार में होगा।

कृष्ण दत्त शर्मा

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जानें कैसे जैविक खेती ने कृष्ण दत्त शर्मा को कृषि के क्षेत्र में सफल बनाने में मदद की

जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जो लोगों को अपने जीवन के खोये हुए उद्देश्य का एहसास करवाती हैं और इसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं। यही चीज़ चिखड़ गांव, (शिमला) के साधारण किसान कृष्ण दत्त शर्मा, के साथ हुई और उन्हें जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया।

जैविक खेती में कृष्ण दत्त शर्मा की उपलब्धियों ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया है कि आज उनका नाम कृषि के क्षेत्र में महत्तवपूर्ण लोगों की सूची में गिना जाता है।

यह सब शुरू हुआ जब कृष्ण दत्त शर्मा को कृषि विभाग की तरफ से हैदराबाद (11 नवंबर, 2002) का दौरा करने का मौका मिला। इस दौरे के दौरान उन्होंने जैविक खेती के बारे में काफी कुछ सीखा। वे जैविक खेती के बारे में और अधिक जानने के लिए उत्सुक थे और इसे अपनाना भी चाहते थे।

मोरारका फाउंडेशन (2004 में) के संपर्क में आने के बाद उनका जुनून और विचार अमल में आया। उस समय तक वे कृषि क्षेत्र में रसायनों के बढ़ते उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में अच्छी तरह से जान चुके थे और इससे वे बहुत परेशान और चिंतित थे। जैसे कि वे जानते थे कि आने वाले भविष्य में उन्हें खाद और कीटनाशकों के परिणाम का सामना करना पड़ेगा इसलिए उन्होंने जैविक खेती को पूरी तरह से अपनाने का फैसला किया।

उनके पास कुल 20 बीघा ज़मीन है, जिसमें से 5 बीघा सिंचित क्षेत्र हैं और 15 बीघा बारानी क्षेत्र हैं। शुरूआत में उन्होंने बागबानी विभाग से सेब का एक मुख्य पौधा खरीदा और उस पौधे से उन्होंने अपने पूरे बाग में सेब के 400 पौधे लगाए। उन्होंने नाशपाती के 20 वृक्ष, चैरी के 20 वृक्ष, आड़ू के 10 वृक्ष और अनार के 15 वृक्ष भी उगाए। फलों के साथ साथ उन्होंने सब्जियां जैसे फूल गोभी, मटर, फलियां, शिमला मिर्च और ब्रोकली भी उगायी।

आमतौर पर कीटनाशकों और रसायनों से उगायी जाने वाले ब्रोकली की फसल आसानी से खराब हो जाती है, लेकिन कृष्ण दत्त शर्मा द्वारा जैविक तरीके से उगाई गई ब्रोकली का जीवन काफी ज्यादा है। इस कारण किसान अब ब्रोकली को जैविक तरीके से उगाते हैं और उसे बिक्री के लिए दिल्ली की मंडी में ले जाते हैं। इसके अलावा जैविक तरीके से उगाई गई ब्रोकली की बिक्री 100-150 रूपये प्रति किलो के हिसाब से होती है और इसी को अगर किसानों की आय में जोड़ दिया जाये तो उनकी आय 500000 तक पहुंच जाती है, और इस छ अंकों की आमदनी में आधा हिस्सा ब्रोकली की बिक्री से आता है।

जैविक खेती की तरफ अन्य किसानों को प्रेरित करने के लिए कृष्ण दत्त शर्मा ने अपने नेतृत्व में अपने गांव में एक ग्रुप बनाया है। उनकी इस पहल ने कई किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया है।

जैविक खेती के क्षेत्र में कृष्ण दत्त शर्मा की उपलब्धियां काफी बड़ी हैं और यहां तक कि हिमाचल सरकार ने उन्हें जून 2013 में, “Organic Fair and Food Festival” में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित भी किया है। लेकिन अपनी नम्रता के कारण वे अपनी सफलता का सारा श्रेय मोरारका फाउंडेशन और कृषि विभाग को देते हैं।

वे अपने खेत और बगीचे में गाय (3), बैल (1) और बछड़े (2) के गोबर का उपयोग करते हैं और वे अच्छी उपज के लिए वर्मी कंपोस्ट भी खुद तैयार करते हैं। उन्होंने अपने खेत में 30 x 8 x 10 के बैड तैयार किए हैं जहां पर वे प्रति वर्ष 250 केंचुओं की वर्मी कंपोस्ट तैयार करते हैं। कीटनाशकों के स्थान पर वे हर्बल स्प्रे, एपर्चर वॉश, जीवामृत और NSDL का उपयोग करते हैं। इस तरह रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर कुदरती कीटनाशकों ने प्रयोग से उनकी ज़मीन की स्थितियों में सुधार हुआ और उनके खर्चे भी कम हुए।

संदेश:
बेहतर भविष्य और अच्छी आय के लिए वे अन्य किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।