चमकौर सिंह

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खेती में सफलता: खेती और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में चमकौर सिंह का सफर

पंजाब के एक छोटे से गाँव ‘इना बाजा’ में रहने वाले चमकौर सिंह जिनका कृषि के क्षेत्र में बहुत नाम है। खेती में समर्पित होने वाले चमकौर सिंह जी ने एक छोटे स्तर से शुरुआत की और आज उनका बहुत नाम हैं। वह विभिन्न प्रकार की फसलें उगाते हैं और पचास व्यक्तियों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं।

चमकौर जी का सफर 1991 में शुरू हुआ, जब उन्होंने खेती की दुनिया में अपना पहला कदम रखा। अपने मित्र के भरपूर खेतों से प्रेरित होकर, उन्होंने खेती में आने वाली समसयाओं को हल करने के बारे में सीखा। जिसके चलते उन्होंने किसी यूनिवर्सिटी से जानकारी प्राप्त की, जिसने उन्हें कृषि उद्यम को शुरू करने के लिए आवश्यक चीजों के बारे में बताया।

चमकौर सिंह जी ने 2 कनाल जमीन में आलू की खेती से शुरुआत की। इस प्रयास में मिली सफलता ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे उन्होंने अपने व्यवसाय को दो एकड़ जमीन तक बढ़ाया। समय के साथ, उन्होंने टमाटर, कपास, धान, गेहूं, शिमला मिर्च और फूलगोभी जैसी अलग-अलग फसलें उगाई। उनका व्यवसाय तेज़ी से ऊपर उठता गया जो आज पचास एकड़ जमीन में फैला हुआ है।

चमकौर सिंह जी 25 एकड़ जमीन पर टमाटर की ही खेती करते हैं। अपनी फसल की बढ़िया उपज को देखते हुए क्रेमिका (Cremica) कंपनी के साथ सांझेदारी की। हर दिन, ताज़े टमाटरों से लदे दो ट्रक उनके खेत से निकलते हैं ताकि क्रेमिका (Cremica) के ग्राहकों की मांगों को पूरा किया जा सके । टमाटर की खेती में अपनी माहिरता बढ़ाने के लिए, चमकौर सिंह जी ने हिसार में बलविंदर सिंह भालिमंसा जी से टमाटर बीज के चयन और प्रबंधन के बारे में ट्रेनिंग ली।

चमकौर जी की कड़ी मेहनत और लगन किसी से भी छुपी नहीं रही। 2008 में, उन्हें कृषि में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फसल में रोगों और उसके प्रबंधन में उनकी माहिरता ने उन्हें निजी कंपनियों के लिए एक भरोसेयोग्य स्रोत बना दिया है, जो अक्सर अपने नए कृषि उत्पादों के प्रदर्शन के लिए उनके खेतों को चुनते हैं। अपनी उपलब्धियों के बावजूद, चमकौर जी मंच पर कम ही बोलते हैं, पर वहां उनका काम बोलता है।

अपनी उपलब्धियों के अलावा, चमकौर बागवानी विभाग से विभिन्न सब्सिडी का लाभ ले रहे हैं। इन सब्सिडी ने क्रेट, स्प्रे पंप, पावर मीटर और यहां तक कि एक छोटा एयर कंडीशनर जैसे आवश्यक उपकरण की प्राप्ति के लिए सुविधा प्रदान की है। चमकौर जी मानते है कि समस्याएं जीवन का एक हिस्सा हैं, और उनके आगे झुकने की बजाय, हमें चुनौतियों को सामना करना चाहिए और मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए।

चमकौर सिंह जी द्वारा किये गए कामों में से एक महत्वपूर्ण काम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी है। 1994 में उन्होंने टमाटर की खेती करनी शुरू की और अपनी उपज को बेचने का फैसला किया। उनकी उपज का आधा हिस्सा एक स्थानीय कारखाने (फैक्ट्री) को बेच दिया गया, जिससे एक स्थिर आमदन सुनिश्चित हुई, जबकि बाकि उपज बाजार में बिकने लगी। समय के साथ, उन्होंने पंजाब एग्रो और क्रेमिका के साथ सांझेदारी की, जो बेहद फायदेमंद साबित हुई।

अपने अनुभव से चमकौर सिंह जी ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की खूबियों के बारे में जाना। इस तरह की व्यवस्थाओं में प्रस्तावित निश्चित दरें, अनिश्चित बाजार कीमतों से जुड़े जोखिमों को कम करती हैं, जिससे किसानों को स्थिरता और सुरक्षा मिलती है। इसके अलावा, कंपनियों के साथ सहयोग करना तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है जो किसानों की समझ को बढ़ाता है और उनके विकास में सहयोग करता है। चमकौर सिंह जी का कहना है कि प्रत्येक किसान को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करनी चाहिए और साथी किसानों की मदद के लिए स्वयं को एक उदहारण के रूप में पेश करना चाहिए। वह ट्रेनिंग और नर्सरी सुविधाएं प्रदान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इस बात पर महत्त्व देते हैं कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत ज़रूरी है।

चमकौर सिंह की उपलब्धियां खेती तक ही सीमित नहीं हैं, उन्होंने G2 और G3 लेवल के आलू के उत्पादन और बिक्री पर भी (व्यापार) काम कर रहे हैं।

किसानों के लिए संदेश

यदि आप उद्यमी, मेहनती किसान हैं और मदद चाहते हैं तो चमकौर सिंह जी से संपर्क करें, वे न केवल इसके बारे में बताते हैं बल्कि ट्रेनिंग और नर्सरी सेवाएं भी प्रदान करवाते हैं। अपने कौशल को बढ़ाने, स्रोत तक पहुंच करने और एक समृद्ध भविष्य की खेती करने के लिए मौके का लाभ उठाएं।

सिकंदर सिंह बराड़

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कृषि विभिन्ता को अपनाकर एक सफल किसान बनने वाले व्यक्ति की कहानी

कुछ अलग करने की इच्छा इंसान को धरती से आसमान तक ले जाती है। पर उसके मन में हमेश आगे बढ़ाने के इच्छा होनी चाहिए। आप चाहे किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हो, अपनी इच्छा और सोचा को हमेशा जागृत रखना चाहिए।

इस सोच के साथ चलने वाले सरदार सिकंदर सिंह बराड़, जोकि बलिहार महिमा, बठिंडा में रहते हैं और जिनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता सरदार बूटा सिंह पारंपरिक तरीके के साथ खेतीबाड़ी कर रहे हैं, जैसे गेहूं,धान आदि। क्या इस तरह नहीं हो सकता कि खेतीबाड़ी में कुछ नया या विभिन्ता लेकर आई जाए।

मेरे कहने का मतलब यह है कि हम खेती करते हैं पर हर बार हर साल वही फसलें उगाने की बजाए कुछ नया क्यों नहीं करते- सिकंदर सिंह बराड़

वह हमेशा खेतीबाड़ी में कुछ अलग करने के बारे में सोचा करते थे, जिसकी प्रेरणा उन्हें अपने नानके गांव से मिली। उनके नानके गांव वाले लोग आलू की खेती बहुत अलग तरीके के साथ करते थे, जिससे उनकी फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती थी।

जब मैं मामा के गांव की खेती के तरीकों को देखता था तो मैं बहुत ज्यादा प्रभवित होता था – सिकंदर सिंह बराड़

जब सिकंदर सिंह ने 1983 में सिरसा में डी. फार्मेसी की पढ़ाई शुरू की उस समय एस. शमशेर सिंह जो कि उनके बड़े भाई हैं, पशु चिकित्सा निरीक्षक थे और अपने पिता के बाद खेती का काम संभालते थे। उस समय जब दोनों भाइयों ने पहली बार खेतीबाड़ी में एक अलग ढंग को अपनाया और उनके द्वारा अपनाये गए इस तकनिकी हुनर के कारण उनके परिवार को काफी अच्छा मुनाफ़ा हुआ।

जब अलग तरीके अपनाने के साथ मुनाफा हुआ तो मैंने 1984 में D फार्मेसी छोड़ने का फैसला कर लिया और खेतबाड़ी की तरह रुख किया- सिकंदर सिंह बराड़

1984 में D फार्मेसी छोड़ने के बाद उन्होंने खेतीबाड़ी करनी शुरू कर दी। उन्होंने सबसे पहले नरमे की अधिक उपज वाली किस्म की खेती करनी शुरू की।

इस तरह छोटे छोटे कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए वह सब्जियों की खेती ही करते रहे, जहां पर उन्होंने 1987 में टमाटर की खेती आधे एकड़ में की और फिर बहुत सी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किए और अपने इस व्यवसाय को आगे से आगे बढ़ाते रहे।

1990 में विवाह के बाद उन्होंने आलू की खेती बड़े स्तर पर करनी शुरू की और विभिन्ता अपनाने के लिए 1997 में 5000 लेयर मुर्गियों के साथ पोल्ट्री फार्मिंग की शुरुआत की, जिसमें काफी सफलता हासिल हुई। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के 5 ओर किसानों को पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय को सहायक व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के लिए उत्साहित किया, जिसके साथ उन किसानों को स्व निर्भर बनने में सहायता मिली। 2005 में उन्होंने 5 रकबे में किन्नू का बाग लगाया। इसके इलावा उन्होंने नैशनल सीड कारपोरेशन लिमिटेड के लिए 15 एकड़ जमीन में 50 एकड़ रकबे के लिए गेहूं के बीज तैयार किया।

मुझे हमेशा कीटनाशकों और नुकसानदेह रसायन के प्रयोग से नफरत थी, क्योंकि इसका प्रयोग करने के साथ शरीर को बहुत नुक्सान पहुंचता है- सिकंदर सिंह बराड़

सिकंदर सिंह बराड़ अपनी फसलों के लिए अधिकतर जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। वह अब 20 एकड़ में आलू, 5 एकड़ में किन्नू और 30 एकड़ में गेहूं के बीजों का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही 2 एकड़ में 35000 पक्षियों वाला पोल्ट्री फार्म चलाते हैं।

बड़ी बड़ी कंपनी जिसमें पेप्सिको,नेशनल सीड कारपोरेशन आदि शामिल है, के साथ साथ काम कर सकते हैं, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना की तरफ से प्रमुख पोल्ट्री फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया। उन्हें बहुत से टेलीविज़न और रेडियो चैनल में आमंत्रित किया गया, ताकि खेती समाज में बदलाव, खोज, मंडीकरण और प्रबंधन संबंधी जानकारी ओर किसानों तक भी पहुँच सके।

वे राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खेती मेले और संस्था का दौरा कर चुके हैं।

भविष्य की योजना

सिकंदर सिंह बराड़ भविष्य में भी अपने परिवार के साथ साथ अपने काम को ओर आगे लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें नए नए बदलाव आते रहेंगे।

संदेश

जो भी नए किसान खेतीबाड़ी में कुछ नया करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि कुछ भी शुरू करने से पहले उससे संबंधित माहिर या संस्था से ट्रेनिंग ओर सलाह ली जाए। उसके बाद ही काम शुरू किया जाए। इसके इलावा जितना हो सके कीटनाशकों और रसायन से बचना चाहिए और जैविक खेती को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

गुरमेल सिंह

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कैसे इस किसान ने कृषि को स्थायी कृषि प्रथाओं के साथ वास्तव में लाभदायक व्यवसाय में बदल दिया

खैर, खेती के बारे में हर कोई सोचता है कि यह एक कठिन पेशा है, जहां किसानों को तेज धूप और बारिश में घंटों तक काम करना पड़ता है लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गुरमेल सिंह को जैविक खेती में शांति और जीवन की संतुष्टि मिलती है।

68 वर्षीय, गुरमेल सिंह ने 2000 मे खेती शुरू की और तब से वे उसी काम को आगे बढ़ा रहे हैं । लेकिन जैविक खेती से पहले उन्होनें मोटर मकैनिक, इलेक्ट्रीशियन जैसे कई व्यवसायों पर हाथ आज़माया और फेब्रिकेशन और वेल्डिंग का काम भी सीखा, लेकिन कोई भी नौकरी उन्हें उपयुक्त नहीं लगी क्योंकि इन्हें करने से ना उन्हें संतुष्टि मिल रही थी और ना ही खुशी ।

2000, में जब उनकी पुश्तैनी ज़मीन उनके और उनके भाई में बंटी, उस समय उन्हें भी 6 एकड़ भूमि यानि संपत्ति का 1 तिहाई हिस्सा मिला। खेती करने के बारे में सोचते हुए उन्होंने दोबारा अपनी इलेक्ट्रीशियन की नौकरी छोड़ दी और गेहूं और धान की रवायिती खेती करनी शुरू की। गुरमेल सिंह ने अपने क्षेत्र में पूरी निष्ठा के साथ हर वो चीज़ की जिसे करने में वे सक्षम थे, लेकिन उपज कभी संतोषजनक नहीं थी। 2007 तक, रवायिती खेती को करने के लिए जो निवेश चाहिए था उसे पूरा करने के कारण वे इतना कर्जे में डूब गए थे कि इससे बाहर आना उनके लिए लगभग असंभव था। अंतत: वे खेती के व्यवसाय से भी निराश हुए।

लेकिन 2007 में अमुत छकने (अमृत संचार-एक सिख अनुष्ठान प्रक्रिया) के बाद उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ जिसकी वजह से उनकी खेती की धारणा पूरी तरह बदल गई उन्होंने 1 एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया और धीरे धीरे पूरे क्षेत्र में इसे बढ़ाने का फैसला किया। गुरमेल सिहं के जैविक खेती के इरादे को जानने के बाद उनके परिवार ने उनका साथ छोड़ दिया और उन्होंने अकेले रहना शुरू कर दिया।

एक ऐसी भूमि पर जैविक खेती करना जहां पर पहले से रासायनिक खेती की जा रही हो, एक बहुत मुश्किल काम है। परिणामस्वरूप उपज कम हुई, लेकिन जैविक खेती के लिए गुरमेल सिंह के इरादे एक शक्तिशाली पहाड़ की तरह मजबूत थे। शुरूआत में सुभाष पालेकर की वीडियो से उन्हें बहुत मदद मिली और उसके बाद 2009 में उन्होंने खेती विरासत मिशन, नाभा फाउंडेशन और NITTTR, जैसे कई संगठनों में शामिल हुए, जिन्होंने उन्हें जैविक खेती के सर्वोत्तम उपयुक्त परिणाम और मंडीकरण के विषयों के बारे में शिक्षित किया। गुरमेल सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर कई समारोह और कार्यक्रमों में हिस्सा लिया जिन्होंने उन्हें वैश्विक स्तर पर जैविक खेती के ढंगों से अवगत करवाया। धीरे धीरे समय के साथ उपज भी बेहतर हो गई और उन्हें अपने उत्पादन को एक अच्छे स्तर पर बेचने का अवसर भी मिला। 2014 में NITTTR की मदद से, गुरमेल सिंह को चंडीगढ़ सब्जी मंडी में अपना खुद का स्टॉल मिला, जहां वे हर शनिवार को अपना उत्पादन बेच सकते थे। 2015 में, मार्कफेड के सहयोग से उन्हें अपने उत्पादन को बेचने का एक और अवसर मिला।

“समय के साथ मैनें अपने परिवार का विश्वास जीत लिया और वे मेरे खेती करने के तरीके से खुश थे। 2010 में, मेरा बेटा भी मेरे उद्यम में शामिल हो गया और उस दिन से वह मेरे खेती जीवन के हर कदम पर मेरे साथ है।”

वे अपने फार्म की 20 से अधिक स्वंय की उगायी हुई फसलों को बेचते हैं, जिसमें मटर, गन्ना, बाजरा, ज्वार, सरसों, आलू, हरी मूंगी, अरहर,मक्की, लहसुन, प्याज, धनिया और बहुत कुछ शामिल हैं। खेती के अलावा, गुरमेल सिंह ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से 1 महीने की बेकरी की ट्रेनिंग लेने के बाद खाद्य प्रसंस्करण की प्रोसेसिंग शुरू की।

गुरमेल सिंह ना केवल स्वंय की उपज की प्रोसेसिंग करते हैं बल्कि नाभा फाउंडेशन के अन्य समूह सदस्यों को उनकी उपज की प्रोसेसिंग करने में भी मदद करते हैं। आटा, मल्टीग्रेन आटा, पिन्नियां, सरसों का साग और मक्की की रोटी उनके कुछ संसाधित खाद्य पदार्थ हैं जो वे सब्जियों के साथ बेचते हैं।

जब बात मंडीकरण की आती है तो अधिकारियों और संगठन के सदस्यों में, दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत और प्रसिद्ध व्यक्तित्व के कारण यह हमेशा गुरमेल सिंह के लिए एक आसान बात रही। वर्तमान में, वे अपने परिवार के साथ नाभा के गांव में रह रहे हैं, जहां 4—5 श्रमिकों की मदद से, वे फार्म में सभी श्रमिकों के कामों का प्रबंधन करते हैं, और प्रोसेसिंग के लिए उन्हें आवश्यकतानुसार 1—2 श्रमिकों को नियुक्त करते हैं।

भविष्य की योजनाए:
भविष्य में, गुरमेल सिंह एक नया समूह बनाने की योजना बना रहे हैं, जहां सभी सदस्य जैविक खेती, प्रोसेसिंग और मंडीकरण करेंगे।
संदेश
“किसानों को समझना होगा कि किसी चीज़ की गुणवत्ता उसकी मात्रा से ज्यादा मायने रखती है, और जिस दिन वे इस बात को समझ जायेंगे उस दिन उपज, मंडीकरण और अन्य मसले भी सुलझ जायेंगे। और आज किसान को बिना किसी उदृदेश्य के रवायिती फसलें उगाने की बजाय मांग और सप्लाई पर ध्यान देना चाहिए।”
 

शुरूआत में, गुरमेल सिंह ने कई समस्याओं का सामना किया इसके अलावा उनके परिवार ने भी उनका साथ छोड़ दिया, लोग उन्हें जैविक खेती अपनाने के लिए पागल कहते थे, लेकिन कुछ अलग करने की इच्छा ने उन्हें अपने जीवन में सफलता प्राप्त करवायी। वे उन शालीन लोगों में से एक हैं जिनके लिए पुरस्कार या प्रशंसा कभी मायने नहीं रखती, उनके लिए उनके काम का परिणाम ही पुरस्कार हैं।

गुरमेल सिंह खुश हैं कि वे अपने जीवन की भूमिका को काफी अच्छे से निभा रहे हैं और वे चाहते हैं कि दूसरे किसान भी ऐसा करें।

खुशदीप सिंह बैंस

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कैसे एक 26 वर्षीय नौजवान लड़के ने सब्जी की खेती करके अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी को हासिल किया

भारत के पास दूसरी सबसे बड़ी कृषि भूमि है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव बहुत बड़ा है। लेकिन फिर भी आज अगर हम युवाओं से उनकी भविष्य की योजना के बारे में पूछेंगे तो बहुत कम युवा होंगे जो खेतीबाड़ी या एग्रीबिज़नेस कहेंगे।

हरनामपुरा, लुधियाना के 26 वर्षीय युवा- खुशदीप सिंह बैंस, जिसने दो विभिन्न कंपनियों में दो वर्ष काम करने के बाद खेती करने का फैसला किया और आज वह 28 एकड़ की भूमि पर सिर्फ सब्जियों की खेती कर रहा है।

खैर, खुशदीप ने क्यों अपनी अच्छी कमाई वाली और आरामदायक जॉब छोड़ दी और खेतीबाड़ी शुरू की। यह एग्रीकल्चर की तरफ खुशदीप की दिलचस्पी थी।

खुशदीप सिंह बैंस उस परिवार की पृष्ठभूमि से आते हैं जहां उनके पिता सुखविंदर सिंह मुख्यत: रियल एसटेट का काम करते थे और घर के लिए छोटे स्तर पर गेहूं और धान की खेती करते थे। खुशदीप के पिता हमेशा चाहते थे कि उनका पुत्र एक आरामदायक जॉब करे, जहां उसे काम करने के लिए एक कुर्सी और मेज दी जाए। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उनका पुत्र धूप और मिट्टी में काम करेगा। लेकिन जब खुशदीप ने अपनी जॉब छोड़ी और खेतीबाड़ी शुरू की उस समय उनके पिता उनके फैसले के बिल्कुल विरूद्ध थे  क्योंकि उनके विचार से खेतीबाड़ी एक ऐसा व्यवसाय है जहां बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती है और यह वह काम नहीं है जो पढ़े लिखे और साक्षर लोगों को करना चाहिए।

लेकिन किसी भी नकारात्मक सोच को बदलने के लिए आपको सिर्फ एक शक्तिशाली सकारात्मक परिणाम की आवश्यकता होती है और यह वह परिणाम था जिसे खुशदीप अपने साथ लेकर आये।

यह कैसे शुरू हुआ…

जब खुशदीप ईस्टमैन में काम कर रहे थे उस समय वे नए पौधे तैयार करते थे और यही वह समय था जब वे खेती की तरफ आकर्षित हुए। 1 वर्ष और 8 महीने काम करने के बाद उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) के साथ काम करना शुरू किया। लेकिन वहां भी उन्होंने 2-3 महीने काम किया। वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और वे कुछ और करना चाहते थे। इसलिए ईस्टमैन और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) कंपनी में 2 वर्ष काम करने के बाद खुशदीप ने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया।

उन्होंने आधे – आधे एकड़ में कद्दू, तोरी और भिंडी की रोपाई की। वे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे और अपनी कल्पना से अधिक फसल की तुड़ाई करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने खेती के क्षेत्र को बढ़ाया और सब्जियों की अन्य किस्में उगायी। उन्होंने हर तरह की सब्जी उगानी शुरू की। चाहे वह मौसमी हो और चाहे बे मौसमी। उन्होंने मटर और मक्की की फसल के लिए Pagro Foods Ltd. से कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किया और उससे काफी लाभ प्राप्त किया। उसके बाद 2016 में उन्होंने धान, फलियां, आलू, प्याज, लहसुन, मटर, शिमला मिर्च, फूल गोभी, मूंग की फलियां और बासमती को बारी-बारी से उसी खेत में उगाया।

खेतीबाड़ी के साथ खुशदीप ने बीज और लहसुन और कई अन्य फसलों के नए पौधे तैयार करने शुरू किए और इस सहायक काम से उन्होंने काफी लाभ प्राप्त किया। पिछले तीन वर्षों से वे बीज की तैयारी को पी ए यू लुधियाना किसान मेले में दिखा रहे हैं और हर बार उन्हें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

आज खुशदीप के पिता और माता दोनों को अपने पुत्र की उपलब्धियों पर गर्व है। खुशदीप अपने काम से बहुत खुश है और दूसरे किसानों को इसकी तरफ प्रेरित भी करते हैं। वर्तमान में वे सब्जियों की खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं और भविष्य में वे अपनी नर्सरी और फूड प्रोसेसिंग का व्यापार शुरू करना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों को अपने मंडीकरण के लिए किसी तीसरे इंसान पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें अपना काम स्वंय करना चाहिए। एक और बात जिसका किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें किसी एक के पीछे नहीं जाना चाहिए। उन्हें वो काम करना चाहिए जो वे करना चाहते हैं।
किसानों को विविधता वाली खेती के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें एक से ज्यादा फसलों को उगाना चाहिए क्योंकि यदि एक फसल नष्ट हो जाये तो आखिर में उनके पास सहारे के लिए दूसरी फसल तो हो। हर बार एक या दो माहिरों से सलाह लेनी चाहिए और उसके बाद ही अपना नया उद्यम शुरू करना चाहिए।

मोहिंदर सिंह गरेवाल

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एक ऐसे इंसान की कहानी जिसने कृषि विज्ञान में महारत हासिल की और खेती विभिन्नता के क्षेत्र में अपने कौशल दिखाए

हर कोई सोच सकता है और सपने देख सकता है, पर ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो अपनी सोच पर खड़े रहते हैं और पूरी लग्न के साथ उसे पूरा करते हैं। ऐसे ही दृढ़ संकल्प वाले एक जल सेना के फौजी ने अपना पेशा बदलकर खेतीबाड़ी की तरफ आने का फैसला किया। उस इंसान के दिमाग में बहु उदेशी खेती का ख्याल आया और अपनी मेहनत और जोश से आज विश्व भर में वह किसान पूरे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है।

मोहिंदर सिंह गरेवाल पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पहले सलाहकार किसान के तौर पर चुने गए, जिनके पास 42 अलग अलग तरह की फसलें उगाने का 53 वर्ष का तर्ज़ुबा है। उन्होंने इज़रायल जैसे देशों से हाइब्रिड बीज उत्पादन और खेती की आधुनिक तकनीकों की सिखलाई हासिल की। अब तक वे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में अपने काम के लिए 5 अंतरराष्ट्रीय, 7 राष्ट्रीय और 16 राज्य स्तरीय पुरस्कार जीत चुके हैं।

स. गरेवाल जी का जन्म 1 दिसंबर 1937 में लायलपुर, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ। उनके पिता का नाम अर्जन सिंह और माता का नाम जागीर कौर है। यदि हम मोहिंदर सिंह गरेवाल की पूरी ज़िंदगी देखें तो उनकी पूरी ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी और उन्होंने हर संघर्ष और मुश्किल को चुनौती के रूप में समझा। पूरी लग्न और मेहनत से उन्होंने अपने और अपने परिवार के सपने पूरे किये।

अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में, मोहिंदर सिंह गरेवाल बड़े उत्साह से फुटबॉल खेलते थे और बहुत सारे स्कूलों की टीमों के कप्तान भी रहे। वे एक अच्छे एथलीट भी थे, जिस कारण उन्हें भारतीय जल सेना में पक्के तौर पर नौकरी मिल गई। 1962 में INS नाम के समुंद्री जहाज पर मोहिंदर सिंह गरेवाल काले पानी अंडेमान निकोबार द्वीप समूह, मलेशिया, सिंगापुर और इंडोनेशिया की यात्रा की। इंडोनेशिया में मैच खेलते समय उनके दायीं जांघ पर गंभीर चोट लगी। इस चोट और परिवार के दबाव के कारण उन्होंने 1963 में भारतीय जल सेना की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद कुछ देर के लिए उनकी ज़िंदगी में ठहराव आ गया।

नौकरी छोड़ने के बाद उनके पास अपने विरासती व्यवसाय खेतीबाड़ी के अलावा कोई ओर अन्य विकल्प नहीं था। उन्होंने शुरूआती 4 वर्षों में गेहूं और मक्की की खेती की। मोहिंदर सिंह जी ने अपनी पत्नी जसबीर कौर के साथ मिलकर खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए एक ठोस योजना बनाई और आज वे अपनी खेती क्रियाओं के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध इंसान हैं। हालांकि उनके पास 12 एकड़ का एक छोटा सा खेत है, पर फसल चक्र के प्रयोग से वे इससे अधिक लाभ ले रहे हैं। मोहिंदर सिंह गरेवाल जी अपने खेतों में लगभग 42 तरह की फसलें उगाने में सक्षम हैं और अच्छी क्वालिटी की पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। उनके कौशल अकेले पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में जाने जाते हैं।

बहुत सारी जानी पहचानी कमेटियों और कौंसल के साथ काम करके मोहिंदर सिंह गरेवाल जी के काम को और अधिक प्रसिद्धि मिली। राज्य स्तर पर उन्हें गवर्निंग बोर्ड के मैंबर, पंजाब राज्य बीज सर्टीफिकेशन अथॉरिटी, पी ए यू पब्लीकेशन कमेटी और पी ए यू फार्मज़ एडवाइज़री कमेटी के तौर पर काम किया। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कमिश्न फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड पराइसिस के मैंबर, भारत सरकार, सीड एक्ट सब-कमेटी के मैंबर, भारत सरकार एडवाइज़री कमेटी के मैंबर, प्रसार भारतीय, जालंधर, पंजाब और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शूगरकेन रिसर्च लखनउ के मैंबर के तौर पर काम किया।

इस समय वे एग्रीकल्चर और हॉर्टीकल्चर कमेटी, पी ए यू, गवर्निंग बोर्ड, एग्रीकल्चर टैक्नोलोजी मैनेजमैंट एजंसी के मैंबर हैं। वे पंजाब फार्मरज़ कल्ब, पी ए यू के संस्थापक और चार्टर प्रधान भी हैं।

खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए उन्हें इंगलैंड, मैक्सिको, इथियोपिया और थाइलैंड जैसे देशों के द्वारा सम्मानित किया गया और वे अलग अलग स्तर पर 75 से ज्यादा पुरस्कार जीत चुके हैं। उन्हें 1996 में ऑटोबायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट, यू एस ए की तरफ से मैन ऑफ द ईयर पुरस्कार के साथ और 15 अगस्त 1999 को श्री गुरू गोबिंद सिंह स्टेडियम, जालंधर में माननीय गवर्नर एस एस राय द्वारा गोल्ड मैडल और लोई से सम्मानित किया। उन्हें पश्चिमी पंजाब के लोगों को खेती में से ज्यादा लाभ लेने और पाकिस्तान में एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को फसली विभिन्नता के बारे में सिखाने के लिए फार्मरज़ इंस्टीट्यूट, पाकिस्तान की तरफ से दो बार निमंत्रण भेजा गया। उनकी ज्यादा ज़िंदगी यात्रा में ही गुज़री और वे बहुत सारे देशों जैसे कि यू एस ए, कैनेडा, मैक्सिको, थाइलैंड, इंगलैंड और पाकिस्तान में वैज्ञानिक किसान और प्रतीनिधि मैंबर के तौर पर गये और जब भी वे गये उन्होंने स्थानीय किसानों को टैक्नीकल जानकारी दी।

स. मोहिंदर सिंह गरेवाल एक बढ़िया लेखक भी हैं और उन्होंने खेतीबाड़ी की सफलता की कुंजी, तेरे बगैर ज़िंदगी कविताएं, रंग ज़िंदगी के स्वै जीवनी, ज़िंदगी एक दरिया और सक्सेसफुल साइंटिफिक फार्मिंग आदि शीर्षक के अधीन पांच किताबें लिखीं। उनके लेखन विदेशी अखबारों, नैशनल डेली, राज्य स्तरीय अखबार, खेतीबाड़ी मैगनीज़ और रोटरी मैगनीज़ आदि में छप चुकी हैं। उन्होंने मुफ्त आंखों का चैकअप कैंप, रोड सेफ्टी, खून दान कैंप, वृक्ष लगाओ, फील्ड डेज़ और मिट्टी टैस्ट जैसे प्रोजैक्टों का हिस्सा बनकर उन्होंने समाज सेवा में भी अपना हिस्सा डाला।

खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मोहिंदर सिंह गरेवाल जी ने बहुत सफलता हासिल की और खेती के लिए ऊंचे मियार बनाये। उनकी प्राप्तियां अन्य किसानों के लिए जानकारी और प्रेरणा का स्त्रोत हैं।

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”

रत्ती राम

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एक उम्मीद की किरण जिसने रत्ती राम की खेतीबाड़ी को एक लाभदायक उद्यम में बदल दिया

रत्ती राम मध्य प्रदेश के हिनोतिया गांव के एक साधारण सब्जियां उगाने वाले किसान हैं। उन्नत तकनीकों और सरकारी स्कीमों का लाभ लेकर उन्होंने अपना सब्जियों का फार्म स्थापित किया जिससे कि आज वे करोड़ों में लाभ कमा रहे हैं। लेकिन यदि हम पहले की बात करें तो रत्ती राम एक हारे हुए किसान थे जिनके लिए जूते खरीदना भी मुश्किल काम था। आज उनके पास अपनी बाइक है जिसे वे गर्व से अपने गांव में चलाते हैं।

हालांकि रत्ती राम के पास खेती के लिए कम भूमि थी लेकिन जल संसाधनों की कमी ने उनके प्रयासों और भूमि के बीच प्रमुख हस्तक्षेप का काम किया। बारिश के मौसम में जब वे खेती करने की कोशिश करते थे तब अत्याधिक बारिश उनकी फसलों को खराब कर देती थी। ये सभी जलवायु परिस्थितियों और अन्य खमियां उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने का मुख्य कारण थी।

कम आमदन जो उन्हें खेती से प्राप्त होती थी उसे वे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में खर्च कर देते थे और ये स्थितियां कई वित्तीय समस्याओं को जन्म दे रही थीं लेकिन एक दिन रत्ती राम को बागबानी विभाग के बारे में पता चला और वे नंगे पांव अपने गांव हिनोतिया के कलेक्टर राजेश जैन के ऑफिस जिला मुख्यालय (Head Quarter) की तरफ चल दिए। जब कलेक्टर ने रत्ती राम को देखा तो उन्होंने उनके दर्द को महसूस किया और अगला कदम जो उन्होंने उठाया, उसने रत्ती राम की ज़िंदगी को बदल दिया।

कलेक्टर ने रत्ती राम को बागबानी विभाग के अधिकारी के पास भेजा, जहां श्री रत्ती को विभिन्न बागबानी योजनाओं के बारे में पता चला। उन्होंने अमरूद, आंवला, हाइब्रिड टमाटर, भिंडी, आलू, लहसुन, मिर्च आदि के बीज लिए और बागबानी योजनाओं और सब्सिडी की मदद से उन्होंने ड्रिप सिंचाई प्रणाली, स्प्रेयर, बिजली स्प्रे पंप, पावर ड्रिलर की भी स्थापना की। इसके अलावा, कलेक्टर ने उन्हें सब्सिडी दर के तहत एक पैक हाउस लगाने में मदद की।

रत्ती राम ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती शुरू कर दी और एक साल में रत्ती राम ने 1 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया जिससे उन्होंने मैटाडोर वैन, दो बाइक और दो ट्रैक्टर खरीदे। वाहनों में निवेश करने के अलावा उन्होंने अन्य संसाधनों में भी निवेश किया और 3 पानी के कुएं बनवाए, 12 ट्यूबवैल और 4 घर विभिन्न स्थानों पर खरीदे। उन्होंने खेती के लिए 20 एकड़ भूमि खरीदकर अपनी खेती के क्षेत्र का विस्तार किया और किराये पर 100 एकड़ ज़मीन ली। आज वे अपने परिवार के साथ खुशी से रह रहे हैं और कुछ समय पहले उन्होंने अपने दो बेटों और एक बेटी की शादी भी धूमधाम से की।

रत्ती राम भारत में उन सभी किसानों के लिए एक आदर्श हैं जो खुद को असहाय और अकेला महसूस करते हैं और उम्मीदों को खो बैठते हैं, क्योंकि रत्ती राम ने अपने मुश्किल समय में कभी भी अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ा।