मनप्रीत कौर

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पश्चिमी सभ्यता के इस युग में…पंजाब की बेटी एक बेटी जो विरासत संभालने के लिए यत्नशील है

आजकल पश्चिमी सभ्यता अपनाने के चक्कर में हम अपने पंजाब की अमीर विरासत को भूलते जा रहे हैं। हमारी संस्कृति विरासत और पिछोकड़ प्रदर्शनियों का हिस्सा बन कर रह गई है। पुराने समय में दरियां, खेसियां और फुलकारियां बनाना पंजाबी औरतों का शौंक हुआ करता था। पर आजकल फुलकारियां बनाना तो दूर की बात, पंजाब की लड़कियां फुलकारी लेती भी नहीं। हमारी नई पीढ़ी को तो यह भी नहीं पता होगा कि फुलकारी कहते किसे हैं?

पश्चिमी सभ्यता के इस दौर में पंजाब की एक ऐसी बेटी है, जो अपनी विरासत संभालने में यत्नशील है। तरनतारन जिले की अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने वाली मनप्रीत कौर फुलकारी बनाने का काम करती है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद घर में आर्थिक समस्याओं के कारण मनप्रीत अपने परिवार की मदद करना चाहती थी। मनप्रीत के दादी और माता जी फुलकारियां बनाया करते थे। एक दिन अचानक मनप्रीत की नज़र अपनी दादी के ट्रंक में पड़ी फुलकारी पर गई, तो उसने सोचा कि क्यों न फुलकारी बनाने के काम को एक कारोबार के तौर पर शुरू किया जाए। अपने इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए मनप्रीत ने अपने दोस्तों से बातचीत की। पर उसके दोस्तों ने यह कह कर मना कर दिया कि इस व्यवसाय में कोई मुनाफा नहीं है और न ही आजकल लोग यह सब पसंद करते हैं।

“मेरे दोस्तों ने कहा कि यह बैकवर्ड चीज़ है, इसे कोई पसंद नहीं करता। इस बात ने मुझे यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया लोग इसे बैकवर्ड क्यों समझते हैं ? इस क्यों का जवाब ढूंढ़ना बहुत ज़रूरी था।” – मनप्रीत कौर

इसके बाद मनप्रीत ने अपनी इस विरासत को फिर बहाल करने कोशिशें शुरू कर दीं। साल 2015 में 5 औरतों के एक ग्रुप की मदद से सब से पहले उन्होंने पांच फुलकारियां बनाईं। फुलकारियां बनाने के बाद सवाल यह था कि अब इन्हें बेचा कहां जाए? इस उदेश्य के लिए उन्होंने इंटरनेट पर खोज आरंभ की, जिस से उन्हें फुलकारी खरीदने वाली एक सरकारी संस्था के बारे में पता चला। मनप्रीत ने उस संस्था को यह फुलकारियां दिखाईं और वे पांच फुलकारियां बेचने के लिए ले गए। यह संस्था फुलकारियों के पैसे फुलकारी बिकने के बाद देती थी। इस वजह से अक्सर पैसे दो-तीन महीने बाद मिलते थे, जिस कारण घर का खर्चा चलाना भी मुश्किल था। एक वर्ष तक यही सिलसिला जारी रहा।

“मेरे मां-बाप ने अपना एक एक पैसा इस काम में लगा दिया, क्योंकि उन्हें मुझ पर विश्वास था कि मैं यह काम कर सकती हूँ।” – मनप्रीत कौर

एक साल ऐसे ही चलने के बाद उन्होंने सोचा कि इस तरह काम नहीं चल सकता, क्योंकि उन्होंने ग्रुप के बाकी मैंबरों को भी पैसे देने होते थे। इस उन्होंने फिर इंटरनेट की मदद ली। सोशल मीडिया पर पेज बनाए। पर यहां भी कोई ख़ास सफलता नहीं मिली। तब मनप्रीत ने सोचा कि जिस चीज़ को लोग बैकवर्ड कह रहे हैं, उसे एक मॉडर्न दिखावट दी जाए?

हम अपनी सभ्यता को थोड़ा सा मॉडर्न करके नई दिखावट देने के लिए हल्के दुपट्टों पर फुलकारी बनाए, ताकि इन्हें जीन्स के साथ भी इस्तेमाल कर सकें। – मनप्रीत कौर

मनप्रीत का यह विचार काफी हद तक सफल सिद्ध हुआ। इस से उनकी फुलकारियों की बिक्री काफी बढ़ गई। इस ग्रुप में शहर की 20-30 महिलाएं काम करती थीं, पर मनप्रीत इस काम में गांव की महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ना चाहती थीं, क्योंकि गांव की औरतों को अपनी विरासत और सभ्यता के बारे में अधिक ज्ञान होता है और वे इस काम में काफी अनुभवी होती हैं। पर गांव की महिलाओं के लिए बाहर आ कर काम करना बहुत मुश्किल होता है, इस लिए मनप्रीत गांव की महिलाओं को खुद घर जा कर फुलकारी बनाने का सामान दे के आती हैं ताकि उन्हें कोई समस्या न आए। इनके इस उद्यम से उन महिलाओं को रोज़गार मिला, जो घर से निकल कर काम नहीं कर सकती थीं।

इंटरनेट पर मनप्रीत को सब से पहले जो विदेश से आर्डर मिला, उसमें तोहफों के साथ देने के लिए 40 फुलकारियों का आर्डर था। इस आर्डर में भेजी गई फुलकारियों को बहुत पसंद किया गया, जिस से विदेशों में भी उनकी फुलकारियों की मांग बढ़ गई। विदेशी मीडिया ने भी इस ग्रुप की बहुत मदद की। उन्होंने कॉल के ज़रिये ली गई इंटरव्यू वाला वीडियो प्रमोट किया, जिस से उन्हें विदेशों जैसे कि कनेडा, अमरीका में से भी बहुत सारे आर्डर मिलने शुरू हो गए। सीनियर पत्रकार बलतेज सिंह पंनू जी ने भी मनप्रीत की पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर की, जिस से काफी फायदा हुआ।

पंजाब से ज्यादा विदेश में फुलकारियां खरीदी जाती हैं और हमारे ज्यादातर ग्राहक भी विदेशों से ही हैं। – मनप्रीत कौर

इसके साथ साथ मनप्रीत जी के पास कई कॉलेज के विद्यार्थी इंटर्नशिप पर ट्रेनिंग के लिए भी आते हैं।

उपलब्धियां
अपनी विरासत को संभालने के लिए किये गए उद्यमों के लिए मनप्रीत को बहुत सारे अवार्ड भी मिले, जिन में से कुछ नीचे दिए हैं:
  • हमदर्द विरासती मेले में विशेष सम्मान
  • पी टी सी पंजाबी चैनल की तरफ से सिरजनहारी अवार्ड

विरासत को कायम रखने के लिए किये गए यत्नों को देखते हुए मनप्रीत को तरनतारन जिले की ब्रैंड अम्बैस्डर भी बनाया गया।

भविष्य की योजनाएं

आने वाले समय में मनप्रीत फुलकारी के इस कारोबार को विदेशों के साथ-साथ अपने देश में भी प्रसिद्ध करना चाहती हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी अमीर संस्कृति को समझ और जान सके।

सन्देश
“नौजवान पीढ़ी को अपनी विरासत संभालने के यत्न करने चाहिए। इस काम में रोज़गार के मौके पैदा हो सकते हैं। जो महिलाएं घर से निकल कर काम नहीं कर सकतीं, वे घर में रह कर ही यह काम कर सकती हैं और यह उनकी कमाई का स्त्रोत बन सकता है।”

हरबंत सिंह

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पिता पुत्र की जोड़ी जिसने इंटरनेट को अपना शोध हथियार बनाकर जैविक खेती की

खेतीबाड़ी मानवी सभ्यता का एक महत्तवपूर्ण भाग है। तकनीकों और जीवन में उन्नति के साथ साथ कई वर्षों में खेती में भी बदलाव आया है। लेकिन फिर भी, भारत में कई किसान परंपरागत तरीके से ही खेती करते हैं, लेकिन ऐसे ही एक किसान हैं या हम कह सकते हैं कि एक पिता पुत्र की जोड़ी-हरबंत सिंह (पिता) और सतनाम सिंह (पुत्र), जिन्होंने खेती के क्षेत्र में उन्नति के लिए इंटरनेट को अपना अनुसंधान हथियार बनाया।

जब तक उनका बेटा जैविक तरीके से बागबानी करने के विचार से पहले अन्य किसानों की तरह, हरबंत सिंह भी पहले परंपरागत खेती करते थे। हां, ये सतनाम सिंह ही थे जिन्होंने अपने 1 वर्ष की रिसर्च के बाद, अपने पिता से ड्रैगन फल की खेती करने की सिफारिश की।

यह सब 1 वर्ष पहले शुरू हुआ जब सतनाम सिंह अपने एक दोस्त के माध्यम से गुजरात के एक व्यकित विशाल डोडा के संपर्क में आए, विशाल डोडा 15 एकड़ के क्षेत्र में ड्रैगन फल की खेती करते हैं। सतनाम सिंह ने ड्रैगल फल पौधे के बारे में सब कुछ रिसर्च किया और अपने पिता से इसके बारे में चर्चा की और जब हरबंत सिंह ने ड्रैगन फल की खेती के बारे में और इसके फायदों के बारे में जाना, तो उन्होंने बहुत प्रसन्नता से अपने पुत्र को इसे शुरू करने के लिए प्रेरित किया, फिर चाहे इसमें कितना भी निवेश करना हो। जल्द ही उन्होंने गुजरात का दौरा किया और ड्रैगन फल के पौधों को खरीदा और विशाल डोडा से इसकी खेती के बारे में कुछ दिशा निर्देश लिये।

आज इस पिता पुत्र की जोड़ी पहली है जिसने पंजाब में ड्रैगन फल की खेती शुरू कर और अब इन पौधों ने फल देना भी शुरू कर दिया है। उन्होंने डेढ़ बीघा क्षेत्र में ड्रैगन फल के 500 नए पौधे लगाए हैं। एक पौधा 4 वर्ष में 4-20 किलो फल देता है। उन्होंने सीमेंट का एक स्तम्भ बनाया है जिसके ऊपर पहिये के आकार का ढांचा है जो कि पौधे को सहारा देता है। जब भी उन्हें ड्रैगन फल की खेती से संबंधित मदद की जरूरत होती है तो वे इंटरनेट पर उसकी खोज करते हैं या विशाल डोडा से सलाह लेते हैं।

वे सिर्फ ड्रैगन फल की ही खेती नहीं करते बल्कि उन्होंने अपने खेत में चंदन के भी पौधे लगाए हुए हैं। चंदन की खेती का विचार सतनाम सिंह के मन में उस समय आया जब वे एक न्यूज चैनल देख रहे थे जहां उन्होंने जाना कि एक मंत्री ने चंदन के पौधे का एक बड़ा हिस्सा मंदिर में दान किया जिसकी कीमत लाखों में थी। उस समय उनके दिमाग में अपने भविष्य को पर्यावरण की दृष्टि और वित्तीय रूप से सुरक्षित और लाभदायक बनाने का विचार आया। इसलिए उन्होंने जुलाई 2016 में चंदन की खेती में निवेश किया और 6 कनाल क्षेत्र में 200 पौधे लगाए।

हरबंत सिंह के अनुसार, वे जिस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं उसे भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं क्योंकि ड्रैगनफल और चंदन दोनों को कम पानी की आवश्यकता होती है (इसे केवल बारिश के पानी से ही सिंचित किया जा सकता है) और किसी विशेष प्रकार की खाद की जरूरत नहीं होती। इसके अलावा वे ये भी अच्छी तरह से जानते हैं कि आने वाले समय में धान और गेहूं की खेती पंजाब से गायब हो जाएगी क्योंकि भूजल की कमी के कारण और बागबानी आने वाले समय की आवश्यकता बन जाएगी।

हरबंत सिंह ड्रैगन फल और चंदन की खेती के लिए जैविक तरीकों का पालन करते हैं और धीरे धीरे समय के साथ वे अपनी अन्य फसलों में भी रसायनों का प्रयोग कम कर देंगे। हरबंत सिंह और उनके बेटे का रूझान जैविक खेती की तरफ इसलिए है क्योंकि समाज में बीमारियां बहुत ज्यादा बढ़ रही हैं। वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए वातावरण को सेहतमंद और रहने योग्य बनाना चाहते हैं। जैसा उनके पूर्वज उनके लिए छोड़ गए थे। एक कारण यह भी है कि सतनाम सिंह ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद जैविक खेती करने लगे थे और शुरूआत से ही उनकी रूचि खेती में थी।

आज सतनाम सिंह, अपने पिता की आधुनिक तरीके से खेती करने में पूरी मदद कर रहे हैं। वे गाय के गोबर और गऊ मूत्र का प्रयोग करके घर पर ही जीव अमृत और खाद तैयार करते हैं। वे कीटनाशकों और खादों का प्रयोग नहीं करते। हरबंत सिंह अपने गांव में पानी के प्रबंधन का भी काम कर रहे हैं और अन्य गांवों को भी इसके बारे में शिक्षा दे रहे हैं ताकि वे ट्यूबवैल का कम प्रयोग कर सकें। उनके खुद के पास 12 एकड़ खेत के लिए केवल एक ही ट्यूबवैल है। सामान्य फसलों के अलावा उनके पास अमरूद, केला, आम और आड़ू के पेड़ भी हैं।

सतनाम सिंह ने चंदन और ड्रैगन फल की खेती करने से पहले रिसर्च में एक वर्ष लगाया क्योंकि वे एक ऐसी फसल में निवेश करना चाहते थे। जिसमें कम सिंचाई की जरूरत हो और उसके स्वास्थ्य और वातावरणीय लाभ भी हो। वे चाहते हैं कि अन्य किसान भी ऐसे ही करें खेतीबाड़ी की ऐसी तकनीक अपनायें जो पर्यावरण के अनुकूल हो और जिसके विभिन्न लाभ हो।

भविष्य की योजना
वे भविष्य में लहसुन और महोगनी वृक्ष उगाने चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अन्य किसान भी इसकी संभावना को पहचाने और अपने अच्छे भविष्य के लिए इसमें निवेश करें।

किसानों को संदेश
हरबंत सिंह और उनके बेटे दोनों ही चाहते हैं कि अन्य किसान जैविक खेती शुरू करें और भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्यावरण को बचाएं। तभी वे जीवित रह सकते हैं और धरती को बेहतर रहने की जगह बना सकते हैं।