अमितेश त्रिपाठी और अरूणेश त्रिपाठी

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अपने पिता के केले के खेती के व्यवसाय को जारी रखते हुए उनके सपने को पूरा कर रहे दो भाइयों की कहानी

कहा जाता है कि यदि परिवार का साथ हो तो इंसान सब कुछ कर सकता है, फिर चाहे वह कुछ नया करने के बारे में हो या फिर पहले से शुरू किए किसी काम को सफलता की बुलंदियों पर लेकर जाने की बात हो।

ऐसी ही एक कहानी है दो भाइयों की जिन्होंने विरासत में मिली केले की खेती को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने के लिए खूब मेहनत की और अपनी एक अलग पहचान बनाई। अपने पिता हरी सहाय त्रिपाठी की तरफ से शुरू की हुई केले की खेती करते हुए दोनों भाइयों ने अपनी मेहनत से पूरे शहर में अपने पिता का नाम रोशन किया।

उत्तर प्रदेश में बहराइच के रहने वाले अमितेश और अरूणेश के पिता गांव के प्रधान थे और अपनी 65 बीघा ज़मीन में वे रवायती खेती के साथ साथ केले की खेती भी करते थे। अपने गांव में केले की खेती शुरू करने वाले पहले किसान त्रिपाठी जी थे। उस समय दोनों भाई पढ़ाई करते थे। अमितेश (बड़ा भाई) बी एस सी एग्रीकल्चर की पढ़ाई करके किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे और अरूणेश भी बी एस सी बायोलोजी की पढ़ाई के साथ SSC की तैयारी कर रहे थे। इसी समय दौरान हरी सहाय त्रिपाठी जी का देहांत हो गया।

इस मुश्किल समय में परिवार का साथ देने के लिए दोनों भाई अपने गांव वापिस आ गए। गांव के प्रधान होने के कारण, गांव के लोगों ने त्रिपाठी के बड़े पुत्र अमितेश को गांव का प्रधान बनाने का फैसला किया। इसके साथ ही उन्होंने अपने पिता के द्वारा शुरू की हुई केले की खेती को संभालने का फैसला किया। पर इस दौरान गांव में तूफान आने के कारण पहले से लगी केले की सारी फसल नष्ट हो गई। इस मुश्किल की घड़ी में दोनों भाइयों ने हिम्मत नहीं हारी और कोशिश करने के बाद उन्हें सरकार के द्वारा प्रभावित फसल का मुआवज़ा मिल गया।

इस हादसे के बाद दोनों ने इस मुआवज़े की राशि से एक नई शुरूआत करने का फैसला किया। दोनों ने अपने पिता की तरफ से लगाई जाती केले की जी 9 किस्म लगाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी 30 बीघा ज़मीन में केले की खेती शुरू की और बाकी 35 बीघा में रवायती खेती जारी रखी।

इस दौरान जहां भी कोई दिक्कत आई हमने केले की खेती के माहिरों से सलाह लेकर मुश्किलों का हल किया। — अरूणेश त्रिपाठी

दोनों भाइयों के द्वारा की गई इस नई शुरूआत के कारण उनकी फसल का उत्पादन काफी बढ़िया हुआ, जो कि लगभग 1 लाख प्रति बीघा था। उनके खेत में तैयार हुई केले की फसल की गुणवत्ता काफी बढ़िया थी, जिसके परिणामस्वरूप कई कंपनियों वाले उनसे सीधा व्यापार करने के लिए संपर्क करने लगे।

केला सदाबहार, पौष्टिक फल है। केले की मार्केटिंग करने में हमें कोई मुश्किल नहीं आती, क्योंकि व्यापारी सीधे हमारे खेतों में आकर केले लेकर जाते हैं।केले की खेती के साथ साथ हम गेहूं की पैदावार भी बड़े स्तर पर करते हैं। — अमितेश त्रिपाठी

दोनों भाइयों ने अपनी मेहनत और सोच समझ से अपने पिता की तरफ से शुरू, की हुई केले की खेती के कारोबार को बड़े स्तर पर लेकर जाने के सपने को सच कर दिखाया।

किसान होने के साथ साथ अमितेश गांव के प्रधान होने के कारण अपने फर्ज़ों को भी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। इसी कारण पूरे शहर के अच्छे किसानों में दोनों भाइयों का नाम काफी प्रसिद्ध है।

भविष्य की योजना

आने वाले समय में दोनों भाई मिलकर अपने फैक्टरी लगाकर केले के पौधे खुद तैयार करना चाहते हैं और अपने पिता की तरह एक सफल किसान बनना चाहते हैं।

संदेश
“यदि हम रवायती खेती के साथ साथ खेती के क्षेत्र में कुछ अलग करते हैं तो हम खेती से भी बढ़िया मुनाफा ले सकते हैं। हमारी नौजवान पीढ़ी को खेती के क्षेत्र में अपनी सोच समझ से नई खोजें करनी चाहिए, ताकि घाटे का सौदा कही जाने वाली खेती से भी बढ़िया मुनाफा लिया जा सके।”

रविंदर सिंह और शाहताज संधु

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कैसे संधु भाइयों ने अपने पारंपरिक आख्यान को जारी रखा और पोल्टरी के व्यवसाय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया

यह कहानी सिर्फ मुर्गियों और अंडो के बारे में ही नहीं है। यह कहानी है भाइयों के दृढ़ संकल्प की, जिन्होंने अपने छोटे परिवार के उद्यम को कई बाधाओं का सामना करने के बाद एक करोड़पति परियोजना में बदल दिया।

खैर, कौन जानता था कि एक साधारण किसान- मुख्तियार सिंह संधु द्वारा शुरू किया गया पोल्टरी फार्मिंग का सहायक उद्यम उनकी अगली पीढ़ी द्वारा नए मुकाम तक पहुंचाया जायेगा।

तो, पोलटरी व्यवसाय की नींव कैसे रखी गई…

यह 1984 की बात है जब मुख्तियार सिंह संधु ने खेतीबाड़ी के साथ पोल्टरी फार्मिंग में निवेश करने का फैसला किया। श्री संधु ने वैकल्पिक आय के अच्छे स्त्रोत के रूप में मुर्गी पालन के व्यवसाय को अपनाया और परिवार की बढ़ती हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें खेतीबाड़ी के साथ यह उपयुक्त विकल्प लगा। उन्होंने 5000 ब्रॉयलर मुर्गियों से शुरूआत की और धीरे-धीरे समय और आय के साथ इस व्यवसाय का विस्तार किया।

उनके भतीजे का इस व्यवसाय में शामिल होना…

समय बीतने के साथ मुख्तियार सिंह ने इस व्यवसाय में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और 1993 में उनके भतीजे रविंदर सिंह संधु (लाडी) ने अपने चाचा जी के व्यवसाय में शामिल होने और ब्रॉयलर उद्यम को नई ऊंचाइयों तक लेकर जाने का फैसला किया।

जब बर्ड फ्लू की मार मार्किट पर पड़ी और कई पोल्टरी व्यवसाय प्रभावित हुए…

2003-04 वर्ष में बर्ड फ्लू फैलने से पोल्टरी उद्योग को एक बड़ा नुकसान हुआ। मुर्गी पालकों ने अपनी मुर्गियां नदी में फेंक दी और पोल्टरी उद्यम शुरू करने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। संधु पोल्टरी को भी इस बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा लेकिन रविंदर सिंह संधु बहुत दृढ़ थे और वे किसी भी कीमत पर अपने व्यवसाय को शुरू करना चाहते थे। वे थोड़ा डरे हुए भी थे क्योंकि उनका कारोबार बंद हो जाएगा, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और लक्ष्य के बीच कुछ भी खड़ा नहीं रहा। उन्होंने बैंक से लोन लिया और मुर्गी पालन दोबारा शुरू किया।

“पोल्टरी उद्योग दोबारा शुरू करने का कारण यह था कि मेरे चाचा जी (मुख्तियार सिंह) का इस उद्योग से काफी लगाव था क्योंकि इस व्यवसाय को शुरू करने वाले वे पहले व्यक्ति थे।इसके अलावा हमारे परिवार में प्रत्येक सदस्य की शिक्षा (प्राथमिक से उच्च शिक्षा) का खर्च और परिवार के प्रत्येक सदस्य का खर्च इसी उद्यम से लिया गया। आज मेरी एक बहन कैलिफोर्निया में सरकारी अफसर के रूप में कार्यरत है। एक बहन करनाल के सरकारी हाई स्कूल में लैक्चरार है। कुछ वर्षों पहले शाहताज सिंह (रविंदर सिंह का चचेरा भाई) ने फ्लोरिडा की यूनिवर्सिटी से मकैनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स पूरी की है। दोनों बेटी और बेटे की शादी का खर्च … सब कुछ पोल्टरी फार्म की आमदन से किया गया है।”

बहुत कम लोगों ने फिर से अपना पोल्टरी व्यवसाय शुरू किया और रविंदर सिंह संधु उनमें से एक थे। व्यवसाय दोबारा खड़ा करने के बाद संधु पोल्टरी फार्म जोश के साथ वापिस आए और पोल्टरी व्यवसाय से अच्छे लाभ कमाये।

व्यापार का विस्तार…

2010 तक, रविंदर ने अपने अंकल के साथ फार्म की उत्पादकता 2.5 लाख मुर्गियों तक बढ़ा दी। उसी वर्ष में, उन्होंने 40000 पक्षियों की क्षमता के साथ एक हैचरी की स्थापना की जिसमें से उन्होंने रोजाना औसतन 15000 पक्षी प्राप्त करने शुरू किए।

जब शाहताज व्यवसाय में शामिल हुए…

2012 में, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, शाहताज सिंह संधु अपने चचेरे भाई (रविंदर उर्फ लाडी पाजी) और पिता (मुख्तियार सिंह) के पोल्टरी व्यवसाय में शामिल हुए। पहले वे दूसरी कंपनियों से खरीदी गई फीड का प्रयोग करते थे लेकिन कुछ समय बाद दोनों भाई संधु पोल्टरी फार्म को नई ऊंचाइयों पर लेकर गए और संधु फीड्स की स्थापना की। संधु पोल्टरी फार्म और संधु फीड दोनों ही अधिकृत संगठन के तहत पंजीकृत हैं।

वर्तमान में उनके पास जींद रोड, असंध (हरियाणा) में स्थित, 22 एकड़ में पोल्टरी फार्म की 7-8 यूनिट, 4 एकड़ में हैचरी, 4 एकड़ में फीड प्लांट हैं और 30 एकड़ में वे फसलों की खेती करते हैं। अपने फार्म को हरे रंग के परिदृश्य और ताजा वातावरण देने के लिए उन्होंने 5000 से अधिक वृक्ष लगाए हैं। फीड प्लांट का उचित प्रबंधन 2 लोगों को सौंपा गया है और इसके अलावा पोल्टरी फार्म के कार्य के लिए 100 कर्मचारी हैं जिनमें से 40 आधिकारिक कर्मचारी हैं।

जब बात स्वच्छता और फार्म की स्थिति की आती है तो यह संधु भाइयों की कड़ी निगरानी के तहत बनाकर रखी जाती है। पक्षियों के प्रत्येक बैच की निकासी के बाद, पूरे पोल्टरी फार्म को धोया जाता है और साफ किया जाता है और उसके बाद मुर्गियों के बच्चों को ताजा और सूखा वातावरण प्रदान करने के लिए धान की भूसी की एक मोटी परत (3-3.5 इंच) ज़मीन पर फैला दी जाती है। तापमान बनाकर रखना दूसरा कारक है जो पोल्टरी फार्म को चलाने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए उन्होंने गर्मियों के मौसम में फार्म को हवादार बनाए रखने के लिए कूलर लगाए हुए हैं और सर्दियों के मौसम के दौरान पोल्टरी के अंदर भट्ठी के साथ ताप बनाकर रखा जाता है।

“एक छोटी सी अनदेखी से काफी बड़ा नुकसान हो सकता है इसलिए हम हमेशा मुर्गियों की स्वच्छता और स्वस्थ स्थिति बनाकर रखने को पहल देते हैं। हम सरकारी पशु चिकित्सा हस्पताल और कभी कभी विशेष पोल्टरी हस्पतालों में रेफर करते हैं जिनकी फीस बहुत मामूली है।”

मंडीकरण

पोल्टरी उद्योग में 24 वर्षों के अनुभव के साथ रविंदर संधु और 5 वर्षों के अनुभव के साथ शाहताज संधु ने अपने ही राज्य के साथ-साथ पड़ोसी राज्य जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में एक मजबूत मार्किटिंग नेटवर्क स्थापित किया है। वे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में विभिन्न डीलरों के माध्यम से और कभी कभी सीधे ही किसानों को मुर्गियां और उनके चूज़ों को बेचते हैं।

“यदि कोई पोल्टरी फार्म शुरू करने में दिलचस्पी रखता है तो उसे कम से कम 10000 पक्षियों के साथ इसे शुरू करना चाहिए शुरूआत में यह लागत 200 रूपये प्रति पक्षी और एक पक्षी तैयार करने के लिए 130 रूपये लगते हैं। आपका खर्चा लगभग 30 -35 लाख के बीच होगा और यदि फार्म किराये पर है तो 10000 पक्षियों के बैच के लिए 13-1400000 लगते हैं – यह संधु भाइयों का कहना है।”

भविष्य की योजनाएं

“फार्म का विस्तार करना और अधिक पक्षी तैयार करना हमारी चैकलिस्ट में पहले से ही है लेकिन एक नई चीज़ जो हम भविष्य में करने की योजना बना रहे हैं वो है पोल्टरी के उत्पादों की फुटकर बिक्री के उद्योग में निवेश करना।”
भाईचारे के अपने अतुल मजबूत बंधन के साथ दोनों भाई अपने परिवार के व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं और वे इसे भविष्य में भी जारी रखेंगे।

संदेश
पोल्टरी व्यवसाय आय का एक अच्छा वैकल्पिक स्त्रोत है जिसमें किसानों को निवेश करना चाहिए यदि वे खेती के साथ अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं। कुछ चीज़ें हैं जो हर पोल्टरी किसान को ध्यान में रखनी चाहिए यदि वे अपने पोल्टरी के कारोबार को सफलतापूर्वक चलाना चाहते हैं जैसे -स्वच्छता, तापमान बनाकर रखना और अच्छी गुणवत्ता वाले मुर्गी के चूज़े और फीड।

प्रेम राज सैनी

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कैसे उत्तर प्रदेश के एक किसान ने फूलों की खेती से अपने व्यापार को बढ़ाया

फूलों की खेती एक लाभदायक आजीविका पसंद व्यवसाय है और यह देश के कई किसानों की आजीविका को बढ़ा रहा है। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के पीर नगर गांव के श्री प्रेम राज सैनी एक उभरते हुए पुष्पविज्ञानी हैं और हमारे समाज के अन्य किसानों के लिए एक आदर्श उदाहरण हैं।

प्रेम राज के पुष्पविज्ञानी होने के पीछे उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा उनके पिता है। यह 70 के दशक की बात है जब उनके पिता दिल्ली से फूलों के विभिन्न प्रकार के बीज अपने खेत में उगाने के लिए लाये थे। वे अपने पिता को बहुत बारीकी से देखते थे और उस समय से ही वे फूलों की खेती से संबंधित कुछ करना चाहते थे। हालांकि प्रेम राज सैनी B.Sc ग्रेजुएट हैं और वे खेती के अलावा विभिन्न व्यवसाय का चयन कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपने सपने के पीछे जाने को चुना।

20 मई 2007 को उनके पिता का देहांत हो गया और उसके बाद ही प्रेम राज ने उस कार्य को शुरू करने का फैसला किया जो उनके पिता बीच में छोड़ गये थे। उस समय उनका परिवार आर्थिक रूप से स्थायी था और उनके भाई भी स्थापित हो चुके थे। उन्होंने खेती करनी शुरू की और उनके बड़े भाई ने एक थोक फूलों की दुकान खोली जिसके माध्यम से वे अपनी खेती के उत्पाद बेचेंगे। अन्य दो छोटे भाई नौकरी कर रहे थे लेकिन बाद में वे भी प्रेम राज और बड़े भाई के उद्यम में शामिल हो गए।

प्रेम राज द्वारा की गई एक पहल ने पूरे परिवार को एक धागे में जोड़ दिया। सबसे बड़े भाई कांजीपुर फूल मंडी में फूलों की दो दुकानों को संभालते हैं। प्रेम राज स्वंय पूरे फार्म का काम संभालते हैं और दो छोटे भाई नोयडा की संब्जी मंडी में अपनी दुकान संभाल रहे हैं। इस तरह उन्होंने अपने सभी कामों को बांट दिया है जिसके फलस्वरूप उनकी आय में वृद्धि हुई है। उन्होंने केवल एक स्थायी मजदूर रखा है और कटाई के मौसम में वे अन्य श्रमिकों को भी नियुक्त कर लेते हैं।

प्रेम राज के फार्म में मौसम के अनुसार हर तरह के फूल और सब्जियां हैं। अच्छी उपज के लिए वे नेटहाउस और बेड फार्मिंग के ढंगों को अपनाते हैं। दूसरे शब्दों में वे अच्छी गुणवत्ता वाली उपज के लिए रसायनों का उपयोग नहीं करते हैं और आवश्यकतानुसार ही बहुत कम नदीननाशक का प्रयोग करते हैं। इस तरह उनके खर्चे भी आधे रह जाते हैं। वे अपने फार्म में आधुनिक खेती यंत्रों जैसे ट्रैक्टर और रोटावेटर का प्रयोग करते हैं।

भविष्य की योजनाएं-
सैनी भाई अच्छी आमदन के लिए विभिन्न स्थानों पर और अधिक दुकानें खोलने की योजनाएं बना रहे हैं। वे भविष्य में अपने खेती के क्षेत्र और व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं।

परिवार-
वर्तमान में वे अपने संपूर्ण परिवार (माता, पत्नी, दो पुत्र और एक बेटी) के साथ अपने गांव में रह रहे हैं। वे काफी खुले विचारों वाले इंसान हैं और अपने बच्चों पर कभी भी अपनी सोच नहीं डालते। फूलों की खेती के व्यापार और आमदन के साथ आज प्रेम राज सैनी और उनके भाई अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा कर रहे हैं।

संदेश-
वर्तमान में नौकरियों की बहुत कमी है, क्योंकि अगर एक जॉब वेकेंसी है तो वहीं आवेदन भरने के लिए कई आवेदक हैं। इसलिए यदि आपके पास ज़मीन है तो इससे अच्छा है कि आप खेती शुरू करें और इससे लाभ कमायें। खेतीबाड़ी को निचले स्तर का व्यवसाय के बजाय अपनी जॉब के तौर पर लें।

गुरदीप सिंह बराड़

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एक व्यक्ति का जागृत परिवर्तन- रासायनिक खेती से जैविक खेती की तरफ

लोगों की जागृति का मुख्य कारण यह है कि जो चीज़ें उन्हें संतुष्ट नहीं करती हैं उन पर उन्होंने सहमति देना बंद कर दिया है। यह कहा जाता है कि जब व्यक्ति सही रास्ता चुनता है तो उसे उस पर अकेले ही चलना पड़ता है वह बहुत अकेला महसूस करता है और इसके साथ ही उसे उन चीज़ों और आदतों को छोड़ना पड़ता है जिसकी उसे आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही एक व्यक्ति गुरदीप सिंह बराड़ हैं, जिन्होंने सामाजिक प्रवृत्ति के विपरीत जाकर, जागृत होकर रासायनिक खेती को छोड़ जैविक खेती को अपनाया।

गुरदीप सिंह बराड़ गांव मेहमा सवाई जिला बठिंडा के निवासी हैं। 17 वर्ष पहले श्री गुरदीप सिंह के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया जिसने उनके विचारों और खेती करने के ढंगों को पूरी तरह बदल दिया। आज गुरदीप सिंह एक सफल किसान हैं और बठिंडा में जैविक किसान के नाम से जाने जाते हैं और उनकी कमायी भी अन्य किसानों के मुकाबले ज्यादा हैं जो पारंपरिक या रासायनिक खेती करते हैं।

जैविक खेती करने से पहले गुरदीप सिंह बराड़ एक साधारण किसान थे जो कि वही काम करते थे जो वे बचपन से देखते आ रहे थे। उनके पास केवल 2 एकड़ की भूमि थी जिस पर वे खेती करते थे और उनकी आय सिर्फ गुज़ारा करने योग्य थी।

1995 में वे किसान सलाहकार सेवा केंद्र के माहिरों के संपर्क में आये। वहां वे अपने खेती संबंधित समस्याओं के बारे में बातचीत करते थे और उनका समाधान और जवाब पाते थे। वे के वी के बठिंडा ब्रांच के माहिरों से भी जुड़े थे। कुछ समय बाद किसान सलाहकार केंद्र ने उन्हें सब्जियों के बीजों की किट उपलब्ध करवाकर क्षेत्र के 1 कनाल में एक छोटी सी घरेलु बगीची लगाने के लिए प्रेरित किया। जब घरेलु बगीची का विचार सफल हुआ तो उन्होंने 1 कनाल क्षेत्र को 2 कनाल में फैला दिया और सब्जियों का अच्छा उत्पादन करना शुरू किया।

सिर्फ चार वर्ष बाद 1999 में वे अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के संपर्क में आये। उन्होने उनके साथ मिलकर काम किया और कई विभिन्न खेतों का दौरा भी किया।

उनमें से कुछ हैं
• नाभा ऑरगैनिक फार्म
• गंगानगर में भगत पूर्ण सिंह फार्म
• ऑरगैनिक फार्म

इन सभी विभिन्न खेतों का दौरा करने के बाद वे जैविक खेती की तरफ प्रेरित हुए और उसके बाद उन्होंने सब्जियों के साथ मौसमी फल उगाने शुरू किए। वे बीज उपचार, कीटों के नियंत्रण और जैविक खाद तक तैयार करने के लिए जैविक तरीकों का प्रयोग करते थे। बीज उपचार के लिए वे नीम का पानी, गाय का मूत्र, चूने के पानी का मिश्रण और हींग के पानी के मिश्रण का प्रयोग करते हैं। वे सब्जियों की उपज को स्वस्थ और रसायन मुक्त बनाने के लिए घर पर तैयार जीव अमृत का प्रयोग करते हैं। कीटों के हमले के नियंत्रण के लिए वे खेतों में लस्सी का प्रयोग करते हैं। वे पानी के प्रबंधन की तरफ भी बहुत ध्यान देते हैं। इसलिए वे सिंचाई के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करते हैं।

गुरदीप सिंह ने अपने फार्म पर वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी लगाई है ताकि वे सब्जियों और फलों के लिए शुद्ध जैविक खाद उपलब्ध कर सकें। उन्होंने प्रत्येक कनाल में दो गड्ढे बनाये हैं जहां पर वे गाय का गोबर, भैंस का गोबर और पोल्टरी खाद डालते हैं।

खेती के साथ साथ वे कद्दू, करेले और काली तोरी के बीज घर पर ही तैयार करते हैं। जिससे उन्हें बाज़ार जाकर सब्जियों के बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कद्दू की मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए वे विशेष तौर पर कद्दू की बेलों को उचित सहारा देने के लिए रस्सी का प्रयोग करते हैं।

आज उनकी सब्जियां इतनी प्रसिद्ध हैं कि बठिंडा, गोनियाना मंडी और अन्य नज़दीक के लोग विशेष तौर पर सब्जियों खरीदने के लिए उनके फार्म का दौरा करने आते हैं। जब बात सब्जियों के मंडीकरण की आती है तो वे कभी तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं होते। वे 500 ग्राम के पैकेट बनाकर उत्पादों को स्वंय बेचते हैं और आज की तारीख में वे इससे अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

खेती की तकनीकों और ढंगों के लिए उन्हें कई स्थानीय पुरस्कार मिले हैं और वे कई खेती संस्थाओं और संगठनों के सदस्य भी हैं। 2015 में उन्होंने पी ए यू से सुरजीत सिंह ढिल्लों पुरस्कार प्राप्त किया। उस इंसान के लिए इस स्तर पर पहुंचना जो कभी स्कूल नहीं गया बहुत महत्तव रखता है। वर्तमान में वे अपनी माता, पत्नी और पुत्र के साथ अपने गांव में रह रहे है। भविष्य में वे जैविक खेती को जारी रखना चाहते हैं और समाज को स्वस्थ और रासायन मुक्त भोजन उपलब्ध करवाना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के कारण आज लोगों में कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं। मैं ये नहीं कहता कि किसानों को खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए लेकिन उन्हें इनका प्रयोग कम कर देना चाहिए और जैविक खेती का अपनाना चाहिए। इस तरह वे मिट्टी और जल प्रदूषण को बचा सकते हैं और कैंसर जैसी अन्य बीमारियों को रोक सकते हैं।

खुशदीप सिंह बैंस

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कैसे एक 26 वर्षीय नौजवान लड़के ने सब्जी की खेती करके अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी को हासिल किया

भारत के पास दूसरी सबसे बड़ी कृषि भूमि है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव बहुत बड़ा है। लेकिन फिर भी आज अगर हम युवाओं से उनकी भविष्य की योजना के बारे में पूछेंगे तो बहुत कम युवा होंगे जो खेतीबाड़ी या एग्रीबिज़नेस कहेंगे।

हरनामपुरा, लुधियाना के 26 वर्षीय युवा- खुशदीप सिंह बैंस, जिसने दो विभिन्न कंपनियों में दो वर्ष काम करने के बाद खेती करने का फैसला किया और आज वह 28 एकड़ की भूमि पर सिर्फ सब्जियों की खेती कर रहा है।

खैर, खुशदीप ने क्यों अपनी अच्छी कमाई वाली और आरामदायक जॉब छोड़ दी और खेतीबाड़ी शुरू की। यह एग्रीकल्चर की तरफ खुशदीप की दिलचस्पी थी।

खुशदीप सिंह बैंस उस परिवार की पृष्ठभूमि से आते हैं जहां उनके पिता सुखविंदर सिंह मुख्यत: रियल एसटेट का काम करते थे और घर के लिए छोटे स्तर पर गेहूं और धान की खेती करते थे। खुशदीप के पिता हमेशा चाहते थे कि उनका पुत्र एक आरामदायक जॉब करे, जहां उसे काम करने के लिए एक कुर्सी और मेज दी जाए। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उनका पुत्र धूप और मिट्टी में काम करेगा। लेकिन जब खुशदीप ने अपनी जॉब छोड़ी और खेतीबाड़ी शुरू की उस समय उनके पिता उनके फैसले के बिल्कुल विरूद्ध थे  क्योंकि उनके विचार से खेतीबाड़ी एक ऐसा व्यवसाय है जहां बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती है और यह वह काम नहीं है जो पढ़े लिखे और साक्षर लोगों को करना चाहिए।

लेकिन किसी भी नकारात्मक सोच को बदलने के लिए आपको सिर्फ एक शक्तिशाली सकारात्मक परिणाम की आवश्यकता होती है और यह वह परिणाम था जिसे खुशदीप अपने साथ लेकर आये।

यह कैसे शुरू हुआ…

जब खुशदीप ईस्टमैन में काम कर रहे थे उस समय वे नए पौधे तैयार करते थे और यही वह समय था जब वे खेती की तरफ आकर्षित हुए। 1 वर्ष और 8 महीने काम करने के बाद उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) के साथ काम करना शुरू किया। लेकिन वहां भी उन्होंने 2-3 महीने काम किया। वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और वे कुछ और करना चाहते थे। इसलिए ईस्टमैन और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) कंपनी में 2 वर्ष काम करने के बाद खुशदीप ने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया।

उन्होंने आधे – आधे एकड़ में कद्दू, तोरी और भिंडी की रोपाई की। वे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे और अपनी कल्पना से अधिक फसल की तुड़ाई करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने खेती के क्षेत्र को बढ़ाया और सब्जियों की अन्य किस्में उगायी। उन्होंने हर तरह की सब्जी उगानी शुरू की। चाहे वह मौसमी हो और चाहे बे मौसमी। उन्होंने मटर और मक्की की फसल के लिए Pagro Foods Ltd. से कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किया और उससे काफी लाभ प्राप्त किया। उसके बाद 2016 में उन्होंने धान, फलियां, आलू, प्याज, लहसुन, मटर, शिमला मिर्च, फूल गोभी, मूंग की फलियां और बासमती को बारी-बारी से उसी खेत में उगाया।

खेतीबाड़ी के साथ खुशदीप ने बीज और लहसुन और कई अन्य फसलों के नए पौधे तैयार करने शुरू किए और इस सहायक काम से उन्होंने काफी लाभ प्राप्त किया। पिछले तीन वर्षों से वे बीज की तैयारी को पी ए यू लुधियाना किसान मेले में दिखा रहे हैं और हर बार उन्हें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

आज खुशदीप के पिता और माता दोनों को अपने पुत्र की उपलब्धियों पर गर्व है। खुशदीप अपने काम से बहुत खुश है और दूसरे किसानों को इसकी तरफ प्रेरित भी करते हैं। वर्तमान में वे सब्जियों की खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं और भविष्य में वे अपनी नर्सरी और फूड प्रोसेसिंग का व्यापार शुरू करना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों को अपने मंडीकरण के लिए किसी तीसरे इंसान पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें अपना काम स्वंय करना चाहिए। एक और बात जिसका किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें किसी एक के पीछे नहीं जाना चाहिए। उन्हें वो काम करना चाहिए जो वे करना चाहते हैं।
किसानों को विविधता वाली खेती के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें एक से ज्यादा फसलों को उगाना चाहिए क्योंकि यदि एक फसल नष्ट हो जाये तो आखिर में उनके पास सहारे के लिए दूसरी फसल तो हो। हर बार एक या दो माहिरों से सलाह लेनी चाहिए और उसके बाद ही अपना नया उद्यम शुरू करना चाहिए।