नरेश कुमार

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32 प्रकार के जैविक उत्पाद बनाता है हरियाणा का यह प्रगतीशील किसान

हम अपने घरों में जो चीनी खाते हैं, वह हमारे शरीर को भीतर से नष्ट कर रही है। हमारी जीवन  की अधिकांश बीमारियां जैसे हार्मोनल असंतुलन, उच्च रक्तचाप, शुगर, मोटापा किसी न किसी रूप में शुगर से संबंधित हैं। जबकि इस समस्या को एक स्वस्थ पदार्थ से हल किया जा सकता है और वह है ‘गुड़’।
नरेश कुमार एक प्रगतिशील किसान हैं जो खड़क रामजी, जिला जींद, हरियाणा में रहते हैं और जैविक गुड़, शक़्कर, चीनी और इन तीनों से बने 32 विभिन्न उत्पादों का व्यापार करते हैं।
उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा का अध्ययन करके अपने करियर की शुरुआत की, बाद में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के अपने ज्ञान के साथ उन्होंने 2006 में नशामुक्ति के लिए एक दवा विकसित की। उन्होंने उस दवा का नाम ‘वाप्सी’ रखा जिसका मतलब होता है नशे से वापिस आना। उन्होंने ‘आपनी खेती’ टीम के साथ साझा किया कि नशे से छुटकारा पाने के लिए कई एलोपैथिक दवाएं की बजाए एक आयुर्वेदिक दवा अधिक उपयोगी है। क्योंकि आयुर्वेद सबसे पुरानी विधि है और इसमें उन बीमारियों को ठीक करने की क्षमता है जो प्राचीन काल से असंभव थी।
2018 में, उन्होंने अपना ध्यान दवाइयों से फ़ूड प्रोसेसिंग की और किया और 32 विभिन्न प्रकार के जैविक उत्पादों को पेश किया। उन्होंने उपभोक्ता की मांग के अनुसार गुड़ की कई किस्में बनाईं जैसे – चाय के लिए गुड़, पाचन के लिए गुड़, अजवाइन, इलायची, सौंफ, चॉकलेट गुड़। अन्य उत्पादों में गाजर और चुकंदर की चटनी, सेब, अनानास, आंवले का जैम शामिल हैं।
“हम अपने दैनिक जीवन में जो चीनी खाते हैं, वह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। जितनी जल्दी हम इसे समझेंगे और गुड़ का उपयोग करेंगे, यह हमारे शरीर के लिए उतना ही अच्छा होगा।” – नरेश कुमार
उन्होंने 4 एकड़ जमीन पर प्रोसेसिंग यूनिट लगा रखी है। ये सभी उत्पाद पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके बनाए गए हैं जो उन्हें 100% जैविक बनाते हैं। जब गुड़ बनाया जाता है, तो उसमें प्रोसेसिंग किये फल और सब्जियां डाली जाती हैं और फिर मिट्टी के बर्तन में जमा कर दी जाती हैं। इन उत्पादों के निर्माण में पानी या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।
एक अन्य उत्पाद जो वे पशुओं के लिए बनाते हैं वह है ‘दूध का अर्क’ जो पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है। यह बार बार रपीट होने पशुओं के लिए एक बहुत बढ़िया उत्पाद है। उन्होंने इस उत्पाद की फार्मूलेशन पहले ही कर दी थी  इसलिए उन्होंने पहले इसे लागू करने के बारे में सोचा। उन्होंने इसे किसी ओर द्वारा बनाने के बारे में भी सोचा था पर उन्हें डर था कि रासायनिक सूत्र में कुछ उतार-चढ़ाव तो न आ जाए। इस मामले में किसी पर भरोसा करना आसान नहीं था। इस शिरा की खासियत यह है कि इसे देसी खंड के राव से बनाया गया है।
जींद, में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र  पांडु , पिंडारा और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने इस व्यवसाय के शुरुआती दिनों में उनकी बहुत मदद की। इन संस्थानों से उन्होंने वह तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जिसकी उन्हें इस व्यवसाय को स्थापित करने के लिए सख्त जरूरत थी। उनका मार्गदर्शन डॉ. विक्रम ने किया, जो हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन  केंद्र (ABIC) में मार्केटिंग के मैनेजर हैं।   नरेश जी ने इसी केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त किया जिसके बाद वह RAFTAR स्कीम  के तहत अपने उत्पाद “मिल्क शीरा” को प्रमोट करने के लिए 20 लाख रुपये प्राप्त करने में कामयाब हुए।
‘वापसी ‘ दवा 2015 से बाजार में है। वे 2015 से सीधे ग्राहकों को दवा बेच रहे हैं। आज उनके मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों से 20 वितरक हैं। शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि बाजार में हर दूसरा उत्पाद नकली था जबकि उनके दाम ज्यादा थे क्योंकि उनके उत्पाद जैविक थे और जब उन्होंने शुरुआत की तो उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।  लेकिन बाद में ग्राहकों को ऑर्गेनिक और नकली उत्पादों के बीच अंतर के बारे में पता चला और अब उनके उत्पादों को ग्राहकों द्वारा सराहा जाता है। उन्होंने कहा कि लोगों को यह समझाना आसान नहीं था कि अन्य सभी उत्पाद मिलावटी हैं और शरीर के लिए अच्छे नहीं हैं। सीजन के दौरान उन्हें हर महीने 3 लाख रुपये का मुनाफा होता है।
जब सीजन में अधिक काम होता है, तो वे 15 मजदूरों को काम पर रखते हैं, जो आमतौर पर ऑफ सीजन में 5 होते हैं। यद्यपि वे उच्च मांग के कारण गन्ने की खेती करते हैं, फिर भी उन्हें जैविक किसानों से कुछ गन्ना खरीदना पड़ता है। वह पीलुखेड़ा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के सदस्य भी हैं जहां वे निदेशक के रूप में कार्य करते हैं।

उपलब्धियां

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा 2019 में प्रगतिशील किसान की उपाधि से सम्मानित किया गया।

भविष्य की योजनाएं

नरेश कुमार अपने व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं और बड़े पैमाने पर गुड़ और उसके उत्पादों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश

वह अन्य किसानों को अपनी पैदा की फसल की प्रोसेसिंग शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं क्योंकि कच्चे माल को बेचने की तुलना में पूरे उत्पाद को बनाने में अधिक मार्जिन है। गेहूं बोने वाले किसान को गेहूं के आटे की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करनी चाहिए, सूरजमुखी की बुवाई करने वाले किसान को बीज से तेल निकालना चाहिए और अन्य सभी फसलों के लिए भी प्रोसेसिंग संभव है।

शहनाज़ कुरेशी

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जानें कैसे इस महिला ने फूड प्रोसेसिंग और एग्रीबिज़नेस के माध्यम से स्वस्थ भोजन के रहस्यों को प्रत्यक्ष किया

बहुत कम परोपकारी लोग होते हैं जो समाज के कल्याण के बारे में सोचते हैं और कृषि के रास्ते पर अपने भविष्य को निर्देशित करते हैं क्योंकि कृषि से संबंधित रास्ते पर मुनाफा कमाना आसान नहीं है। लेकिन हमारे आस -पास कई अवसर हैं जिनका लाभ उठाना हमें सीखना होगा। ऐसी ही एक महिला है श्री मती शहनाज कुरेशी जो कि अपने अभिनव सपनों और कृषि के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित करने की सोच रही थी।
बहुत कम उम्र में शादी करने के बावजूद शहनाज़ कुरेशी ने कभी सपने देखना नहीं छोड़ा। शादी के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और फैशन डिज़ाइनिंग में M.Sc भी की। उन्हें विदेशों से नौकरी के कई प्रस्ताव मिले लेकिन उन्होंने अपने देश में रह कर, समाज के लिए कुछ अच्छा करने का फैसला किया।

इन सभी चीज़ों के दौरान उनके माता पिता के स्वास्थ्य ने खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता की ओर उनका नज़रिया बदल दिया। उनके माता-पिता दोनों ही गठिया, डायबिटिज़ और किडनी की समस्या से पीड़ित थे। उन्होंने सोचा कि यदि भोजन इन समस्याओं के पीछे का कारण है तो भोजन ही इनका एकमात्र इलाज होगा। उन्होंने अपने परिवार की खाने की आदतों को बदल दिया और केवल अच्छी और ताजी सब्जियां चीज़ें खानी शुरू कर दीं। इस आदत ने उनके माता-पिता के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ। इसी बड़े सुधार को देखते हुए उन्होंने फूड प्रोसेसिंग व्यापार में दाखिल होने का फैसला लिया। इसके अलावा वे खाली बैठने के लिए नहीं बनी थी इसलिए उन्होंने एग्रीबिज़नेस के क्षेत्र में अपने कदम रखे और जरूरतमंद किसानों की मदद करने का फैसला किया।

एग्रीबिज़नेस के क्षेत्र में कदम रखने का उनका फैसला सिर्फ सफलता का पहला चरण था और पूरा बठिंडा उनके बारे में जानने लगा। उन्होंने और उनके परिवार ने, के वी के बठिंडा से मधु मक्खी पालन की ट्रेनिंग ली और 200 मधुमक्खी बक्सों के साथ व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने मार्किटिंग की और उनके पति ने प्रोसेसिंग का काम संभाला। व्यवसाय से अधिक लाभ लेने के लिए उन्होंने शहद के फेस वॉश, साबुन और बॉडी सक्रब बनाना शुरू किया। ग्राहकों ने इन्हें पसंद करना शुरू किया और उनकी सिफारिश और होने लगी। कुछ समय के बाद उन्होंने सब्जियों और फलों की खेती की ट्रेनिंग ली और इसे चटनी, मुरबा और आचार बनाकर लागू करना शुरू किया।
एक समय था जब उनके पति ने काम के लिए उनकी आलोचना की क्योंकि वे व्यवसाय से होने वाले लाभों को लेकर अनिश्चित थे। इसके अलावा उन्होंने यह भी सोचा कि ये उत्पाद पहले से ही बाज़ार में उपलब्ध हैं जो इन उत्पादों को लोग क्यों खरीदेंगे। लेकिन वे कभी भी इन बातों से वंचित नहीं हुई क्योंकि उनके पास उनके बच्चों का समर्थन हमेशा था। कुछ महान शख्सियतों जैसे ए पी जे अब्दुल कलाम, बिल गेट्स, अकबर और स्वामी विवेकानंद से वे प्रेरित हुई। खाली समय में वे उनके बारे में किताबें पढ़ना पसंद करती थी।

समय के साथ-साथ उन्होंने अपने उत्पादों को बढ़ाया और इनसे काफी लाभ कमाना शुरू किया। जल्दी ही उन्होंने फल के स्क्वैश, चने के आटे की बड़ियां और पकौड़े और भी काफी चीज़े बनानी शुरू की। अंकुरित मेथी का आचार उनके प्रसिद्ध उत्पादों मे से एक है क्योंकि अदभुत स्वास्थ्य लाभों के कारण इसकी मांग फरीदकोट, लुधियाना और अन्य जगहों में पी ए यू द्वारा करवाये जाते मेलों और समारोह में हमेशा रहती है। उन्होंने मार्किट में अपने उत्पादों की एक अलग जगह बनाई है जिसके चलते उन्होंने व्यापक स्तर पर अच्छे ग्राहकों को अपने साथ जोड़ा है।

2014 में उन्होंने बठिंडा के नज़दीक महमा सरजा गांव में किसान सैल्फ हैल्प ग्रुप बनाया और इस ग्रुप के द्वारा उन्होंने अन्य किसानों के उत्पादों को बढ़ावा दिया। कभी कभी वे उन किसानों की मदद और समर्थन करने के लिए अपने मुनाफे की अनदेखी कर देती थीं, जिनके पास आत्मविश्वास और संसाधन नहीं थे। 2015 में उन्होंने FRESH HUB नाम की एक फर्म बनायी और वहां अपने उत्पादों को बेचना शुरू किया। आज उनके कलेक्शन में कुल 40-45 उत्पाद हैं जिसका कच्चा माल वे खुद खरीदती हैं, प्रोसेस करती हैं, पैक करती हैं और मंडीकरण करती हैं। ये सब वे उत्पादों की शुद्धता और स्वस्थता सुनिश्चित करने के लिए करती हैं ताकि ग्राहक के स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव ना हो। यहां तक कि जब वे आचार तैयार करती हैं तब भी वे घटिया सिरके का इस्तेमाल नहीं करती और अच्छी गुणवत्ता के लिए हमेशा सेब के सिरके का प्रयोग करती हैं।

2016 में उन्होंने सिरके की भी ट्रेनिंग ली और बहुत जल्द इसे लागू भी करेंगी। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष 10 लाख लाभ कमा रही हैं। एक चीज़ जो उन्होंने बहुत जल्दी समझी और उसे लागू किया। वह थी उन्होने हमेशा मात्रा या स्वाद को ध्यान ना देकर गुणवत्ता की ओर ध्यान दिया। मंडीकरण के लिए वे आधुनिक तकनीकों जैसे व्हाट्स एप द्वारा किसानों और अन्य आवश्यक विवरणों के साथ जुड़ती हैं। खरीदने से पहले वे हमेशा सुनिश्चित करती हैं कि रासायनिक मुक्त सब्जियां ही खरीदें और किसानों को वे जैविक खेती शुरू करने के लिए प्रोत्साहित भी करती हैं। उनके काम में सिर्फ प्रोसेसिंग और मंडीकरण ही शामिल नहीं हैं बल्कि वे अन्य महिलाओं को अपनी तकनीक के बारे में जानकारी भी देती हैं। क्योंकि वे चाहती हैं कि अन्य लोग भी प्रगति करें और समाज के लिए कुछ अच्छा करें।

शुरू से ही शहनाज़ कुरेशी की मानसिकता उनके काम के लिए बहुत सपष्ट थी। वे चाहती हैं कि समाज में प्रत्येक इंसान आत्म निर्भर और आत्मविश्वासी बनें। उन्होंने अपने बच्चों को ऐसी परवरिश दी कि उन्हें किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता, सभी को अपनी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए आत्म निर्भर होना चाहिए। वर्तमान में उनका मुख्य ध्यान युवाओं, विशेष रूप से लड़कियों पर है। उन्होंने अपनी सोच और कौशल को अखबार और रेडियो के माध्यम से अधिक लोगों तक पहुंचाती हैं वे इनके माध्यम से ट्रेनिंग और जानकारी भी देती हैं। वे व्यक्तिगत तौर पर किसान ट्रेनिंग कार्यक्रमों और मीटिंग का दौरा करती हैं, विशेषकर कौशल प्रदान करती हैं। 2016 में उन्होंने कॉलेज के छात्रों के लिए टिफिन सेवा भी शुरू की। आज उनके काम ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया है कि उनका अपना रेडियो शो है जो हर शुक्रवार को दोपहर के 1 से 2 तक प्रसारित होता है, जहां पर वे लोगों को पानी के प्रबंधन, हेल्थ फूड रेसिपी और भी बहुत कुछ, के बारे में सुझाव देती हैं।

जन्म से कश्मीरी होने के कारण शहनाज़ हमेशा अपने काम और उत्पादों में अपने मूल स्थान का एक सार लाने की कोशिश करती हैं। उन्होंने “शाह के कश्मीरी और मुगलई चिकन” नाम से बठिंडा में एक रेस्टोरेंट भी खोला है और वहीं पर एक ग्रामीण कश्मीरी इंटीरियर देने और अपने रेस्टोरेंट में कश्मीरी क्रॉकरी सेट का उपयोग करने की भी योजना बना रही है। यहां तक कि उनका एक प्रसिद्ध उत्पाद है, कश्मीरी चाय जो कि कश्मीरी परंपरा और व्यंजनों के मूल को दर्शाता है। वे हर स्वस्थ, फायदेमंद और पारंपरिक नुस्खा सांझा करना चाहती हैं जो उन्होंने अपने उत्पादों, रेस्टोरेंट और ट्रेनिंग के माध्यम से जाना है। कश्मीर में उनके बाग भी है जो उनकी गैर मौजूदगी में उनके चचेरे भाई की देख रेख में है। बाग में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने और अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए वे जैविक तरीकों का पालन करती हैं।

शहनाज़ कुरेशी की ये सिर्फ कुछ ही उपलब्धियां थी। आने वाले समय में वे समाज के हित में और ज्यादा काम करेंगी। उनके प्रयासों को कई संगठनों द्वारा प्रशंसा मिली है और उन्हें मुक्तसर साहिब के फूड प्रोसेसिंग विभाग द्वारा सम्मानित भी किया गया है। इसके अलावा 2015 में उन्हें पी ए यू द्वारा जगबीर कौर मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।

किसानों को संदेश

हर समय सरकार को दोष नहीं देना चाहिए क्योंकि जिन समस्याओं का आज हम सामना कर रहे हैं उनके लिए सिर्फ हम ही जिम्मेदार हैं। आजकल किसानों को पता ही नहीं है कि अवसरों का लाभ कैसे उठाया जाए, क्योंकि यदि किसान आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें अपनी सोच को बदलना होगा। इसके अलावा इसका पालन करना आवश्यक नहीं है। आप दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा हो सकते हैं। किसानों को यह समझना होगा कि कच्चे माल की तुलना में फूड प्रोसेसिंग में अधिक मुनाफा है।

सत्या रानी

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सत्या रानी: अपनी मेहनत से सफल एक महिला, जो फूड प्रोसेसिंड उदयोग में सूर्य की तरह उभर रही हैं

जब बात विकास की आती है तो इसमें कोई शक नहीं है कि महिलाएं भारत के युवा दिमागों को आकार देने और मार्गदर्शन करने में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। यहां तक कि खेतीबाड़ी के क्षेत्र में भी महिलायें पीछे नहीं हैं वे टिकाऊ और जैविक खेती के मार्ग का नेतृत्व कर रही हैं। आज, कई ग्रामीण और शहरी महिलायें खेतीबाड़ी में प्रयोग होने वाले रसायनों के प्रति जागरूक हैं और वे इस कारण इस क्षेत्र में काम भी कर रही हैं। सत्या रानी उन महिलाओं में से एक हैं जो जैविक खेती कर रही हैं और फूड प्रोसेसिंग के व्यापार में भी क्रियाशील हैं।

बढ़ते स्वास्थ्य मुद्दों और जलवायु परिर्वतन के साथ, खाद्य सुरक्षा से निपटना एक बड़ी चुनौती बन गई है और सत्या रानी एक उभरती हुई एग्रीप्रेन्योर हैं जो इस मुद्दे पर काम कर रही हैं। कृषि के क्षेत्र में योगदान करना और प्राकृति को उसका दिया वापिस देना सत्या का बचपन का सपना था। शुरू से ही उसके माता पिता ने उसे हमेशा इसकी तरफ निर्देशित और प्रेरित किया और अंतत: एक छोटी लड़की का सपना एक महिला का दृष्टिगोचर बन गया।

सत्या के जीवन में एक बुरा समय भी आया जिसमें अगर कोई अन्य लड़की होती तो वह अपना आत्म विश्वास और उम्मीद आसानी से खो देती। सत्या के माता पिता ने उन्हें वित्तीय समस्याओं के कारण 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई रोकने के लिए कहा। लेकिन उसका अपने भविष्य के प्रति इतना दृढ़ संकल्प था कि उसने अपने माता-पिता से कहा कि वह अपनी उच्च शिक्षा का प्रबंधन खुद करेगी। उसने खाद्य उत्पाद जैसे आचार और चटनी बनाने का और इसे बेचने का काम शुरू किया।

इस समय के दौरान उसने कई नई चीज़ें सीखीं और उसकी रूचि फूड प्रोसेसिंग व्यापार में बढ़ गई। हिंदू गर्ल्स कॉलेज, जगाधरी से अपनी बी ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे उसी कॉलेज में होम साइंस ट्रेनर की जॉब मिल गई। इसके तुरंत बाद उसने 2004 में राजिंदर कुमार कंबोज से शादी की, लेकिन शादी के बाद भी उसने अपना काम नहीं छोड़ा। उसने अपने फूड प्रोसेसिंग के काम को जारी रखा और कई नये उत्पाद जैसे आम के लड्डू, नारियल के लड्डू, आचार, फ्रूट जैम, मुरब्बा और भी लड्डुओं की कई किस्में विकसित की। उसकी निपुणता समय के साथ बढ़ गई जिसके परिणाम स्वरूप उसके उत्पादों की गुणवत्ता अच्छी हुई और बड़ी संख्या में उसका ग्राहक आधार बना।

खैर, फूड प्रोसेसिंग ही ऐसा एकमात्र क्षेत्र नहीं है जिसमें उसने उत्कृष्टा हासिल की। अपने स्कूल के समय से वह खेल में बहुत सक्रिय थीं और कबड्डी टीम की कप्तान थी। वह अपने पेशे और काम के प्रति बहुत उत्साही थी। यहां तक कि उसने हिंदू गर्ल्स कॉलेज से सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग पुरस्कार भी प्राप्त किया। वर्तमान में वह एक एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती कर रही है और डेयरी फार्मिंग में भी सक्रिय रूप से शामिल है। वह अपने पति की सहायता से हर तरह की मौसमी सब्जियां उगाती है। सत्या ऑरगैनिक ब्रांड नाम है जिसके तहत वह अपने प्रोसेस किए उत्पादों (विभिन्न तरह के लड्डू, आचार, जैम और मुरब्बा ) को बेच रही है।

आने वाले समय में वह अपने काम को बढ़ाने और इससे अधिक आमदन कमाने की योजना बना रही है वह समाज में अन्य लड़कियों और महिलाओं को फूड प्रोसेसिंग और जैविक खेती के प्रति प्रेरित करना चाहती है ताकि वे आत्म निर्भर हो सकें।

किसानों को संदेश
यदि आपको भगवान ने सब कुछ दिया है अच्छा स्वास्थ्य और मानसिक रूप से तंदरूस्त दिमाग तो आपको एक रचनात्मक दिशा में काम करना चाहिए और एक सकारात्मक तरीके से शक्ति का उपयोग करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को स्वंय में छिपी प्रतिभा को पहचानना चाहिए ताकि वे उस दिशा में काम कर सके जो समाज के लिए लाभदायक हो।

कुलवंत कौर

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“हर सफल औरत के पीछे वह स्वंय होती हैं।”
-कैसे कुलवंत कौर ने इस उद्धरण को सही साबित किया

भारत में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो असाधारण व्यक्तित्व रखती हैं, जिनका दिखने का उद्धरण नहीं, लेकिन उनका कौशल और आत्म विश्वास उन्हें दूसरों से अद्भुत बनाता है। कोई भी चीज़ उन्हें उनके उद्देश्य को पूरा करने से रोक नहीं सकती और उनके इस अद्वितीय व्यक्तित्व के पीछे उनकी स्वंय की प्रेरणा होती है।

ऐसी ही एक महिला – कुलवंत कौर, जिन्होंने अपने अंदर की पुकार को सुना और एग्रीव्यापार को अपने भविष्य की योजना के तौर पर चुना। खेती की पृष्ठभूमि से आने के कारण कुलवंत कौर और उनके पति जसविंदर सिंह, धान और गेहूं की खेती करते थे और डेयरी फार्मिंग में भी निष्क्रिय रूप से शामिल थे। शुरू से ही परिवार का ध्यान मुख्य तौर पर डेयरी बिज़नेस पर था क्योंकि वे 2.5 एकड़ भूमि के मालिक थे और जरूरत पड़ने पर भूमि को किराये पर दे सकते थे। डेयरी फार्म में 30 भैंसों के साथ, उनका दूध व्यवसाय बहुत अच्छे से विकास कर रहा था और खेती की तुलना में बहुत अधिक लाभदायक था।

कुलवंत कौर की खेतीबाड़ी में बहुत रूचि थी और इससे संबंधित व्यापार भी करते थे और एक दिन उन्होंने के वी के फतेहगढ़ साहिब के बारे में पढ़ा और इसमें शामिल होने का फैसला किया। उन्होंने 2011 में वहां से फलों और सब्जियों के प्रबंधन की 5 दिन की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग के आखिरी दिन उन्होंने एक प्रतियोगिता में भाग लिया और सेब की जैम और हल्दी का आचार बनाने में पहला पुरस्कार जीता। उनकी ज़िंदगी में यह पहला पुरस्कार था, जो उन्होंने जीता और इस उपलब्धि ने उन्हें इतना दृढ़ और प्रेरित किया कि उन्होंने यह काम अपने आप शुरू करने का फैसला किया। उनके उत्पाद इतने अच्छे थे कि जल्द ही उन्हें एक अच्छा ग्राहक आधार मिला।

धीरे-धीरे उनके काम की गति, निपुणता और उत्पाद की गुणवत्ता समय के साथ बेहतर हो गई और हल्दी का आचार उनके उत्पादों में सबसे अधिक मांग वाला उत्पाद बन गया। उसके बाद अपने कौशल को बढ़ाने के लिए फिनाइल, साबुन, आंवला जूस, चटनी और आचार की ट्रेनिंग के लिए वे के वी के समराला में शामिल हो गए। अपनी ली गई ट्रेनिंग का प्रयोग करने के लिए वे विशेष तौर पर आंवला जूस की मशीन खरीदने के लिए दिल्ली गई। बहुत ही जल्दी उन्होंने एक ही मशीन से एलोवेरा जूस, शैंपू, जैल और हैंड वॉश बनाने की तकनीक को समझा और उत्पादों की प्रक्रिया देखने के बाद वे बहुत उत्साहित हुई और उन्होंने आत्मविश्वास हासिल किया।

ये उनका आत्मविश्वास और उपलब्धियां ही थी, जिन्होंने कुलवंत कौर को और ज्यादा काम करने के लिए प्रेरित किया। आखिर में उन्होंने उत्पादों का विनिर्माण घर पर ही शुरू किया और उनकी मंडीकरण भी स्वंय किया। एग्रीबिज़नेस की तरफ उनकी रूचि ने उन्हें इस क्षेत्र की तरफ और बढ़ावा दिया। 2012 में वे पी ए यू किसान क्लब की मैंबर बनी। उन्होंने उनके द्वारा दी जाने वाली हर ट्रेनिंग ली। खेतीबाड़ी की तरफ उनकी रूचि बढ़ती चली गई और धीरे धीरे उन्होंने डेयरी फार्म का काम कम कर दिया।

धान और गेहूं के अलावा, अब कुलवंत कौर और उनके पति ने मूंग, गन्ना, चारे की फसल, हल्दी, एलोवेरा, तुलसी और स्टीविया भी उगाने शुरू किए। हल्दी से वे , हल्दी का पाउडर, हल्दी का आचार और पंजीरी (चना पाउडर, आटा, घी से बना मीठा सूखा पाउडर) पंजीरी और हल्दी के आचार उनके सबसे ज्यादा मांग वाले उत्पाद हैं।

खैर, उनकी यात्रा आसान नहीं थी, उन्होंने कई समस्याओं का भी सामना किया। उन्होंने स्टीविया के 1000 पौधे उगाए जिनमें से केवल आधे ही बचे। हालांकि वे जानती थीं कि स्टीविया की कीमत बहुत ही ज्यादा है (1500 रूपये प्रति किलो), जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर है। इसलिए उन्होंने इसे बेचने का एक अलग तरीका खोजा। उन्होंने मार्किट से ग्रीन टी खरीदी और स्टीविया को इसमें मिक्स कर दिया और इसे 150 रूपये प्रति ग्राम के हिसाब से बेचना शुरू किया क्योंकि शूगर के मरीजों के लिए स्टीविया के काफी स्वास्थ्य लाभ हैं इसलिए कई स्थानीय लोगों और अन्य ग्राहकों द्वारा भी टी को खरीदा गया।

वर्तमान में वे 40 उत्पादों का निर्माण कर रही है और नज़दीक की मार्किट और पी ए यू के मेलों में बेच रही हैं। उनका एक और उत्पाद है जिसे सत्र कहा जाता है (तुलसी, सेब का सिरका, शहद, अदरक, लहसुन, एलोवेरा और आंवला से बनता है) विशेषकर दिल के रोगियों के लिए है और बहुत प्रभावशाली है।

कौशल के साथ, कुलवंत कौर सभी नवीनतम कृषि मशीनरी और उपकरणों से अपडेट रहती हैं। उनके पास सभी खेती मशीनरी हैं और वे खेतों में लेज़र लेवलर का प्रयोग करती हैं। उनका पूरा परिवार उनकी मदद कर रहा है विशेषकर उनके पति उनके साथ काम कर रहे हैं। उनकी बेटी सरकारी नौकरी कर रही है और उनका बेटा उनके व्यापार में उनकी मदद कर रहा है। वर्तमान में उनके परिवार का मुख्य ध्यान मार्किटिंग पर है और उसके बाद कृषि पर है। कृषि व्यवसाय क्षेत्र में अपने प्रयासों से उन्होंने हल्दी उत्पादों के लिए पटियाला में किसान मेले में पहला पुरस्कार जीता है। इसके अलावा उन्होंने (2013 में पंजाब एग्रीकल्चर लुधियाना द्वारा आयोजित) किसान मेले में सरदारनी जगबीर कौर गरेवाल मेमोरियल अवार्ड भी प्राप्त किया।

आज कुलवंत कौर ने जो भी हासिल किया है वह सिर्फ अपने विश्वास पर किया है। भविष्य में वे अपने सभी उत्पादों की मार्किटिंग स्वंय करना चाहती हैं। वे समाज में अन्य महिलाओं को भी ट्रेनिंग प्रदान करना चाहती हैं ताकि वे अपने दम पर खड़े हो सकें और आत्मनिर्भर हो सकें।

किसानों को संदेश
महिलाओं को अपने व्यर्थ के समय में उत्पादक होना चाहिए क्योंकि यह घर की आर्थिक स्थिति को प्रभावी रूप से प्रबंध करने में मदद करता है। उन्हें फूड प्रोसेसिंग का लाभ लेना चाहिए और कृषि व्यवसाय के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए। कृषि क्षेत्र बहुत ही लाभदायक उद्यम है, जिसमें लोग बिना किसी बड़े निवेश के पैसे कमा सकते हैं।