चमकौर सिंह

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खेती में सफलता: खेती और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में चमकौर सिंह का सफर

पंजाब के एक छोटे से गाँव ‘इना बाजा’ में रहने वाले चमकौर सिंह जिनका कृषि के क्षेत्र में बहुत नाम है। खेती में समर्पित होने वाले चमकौर सिंह जी ने एक छोटे स्तर से शुरुआत की और आज उनका बहुत नाम हैं। वह विभिन्न प्रकार की फसलें उगाते हैं और पचास व्यक्तियों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं।

चमकौर जी का सफर 1991 में शुरू हुआ, जब उन्होंने खेती की दुनिया में अपना पहला कदम रखा। अपने मित्र के भरपूर खेतों से प्रेरित होकर, उन्होंने खेती में आने वाली समसयाओं को हल करने के बारे में सीखा। जिसके चलते उन्होंने किसी यूनिवर्सिटी से जानकारी प्राप्त की, जिसने उन्हें कृषि उद्यम को शुरू करने के लिए आवश्यक चीजों के बारे में बताया।

चमकौर सिंह जी ने 2 कनाल जमीन में आलू की खेती से शुरुआत की। इस प्रयास में मिली सफलता ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे उन्होंने अपने व्यवसाय को दो एकड़ जमीन तक बढ़ाया। समय के साथ, उन्होंने टमाटर, कपास, धान, गेहूं, शिमला मिर्च और फूलगोभी जैसी अलग-अलग फसलें उगाई। उनका व्यवसाय तेज़ी से ऊपर उठता गया जो आज पचास एकड़ जमीन में फैला हुआ है।

चमकौर सिंह जी 25 एकड़ जमीन पर टमाटर की ही खेती करते हैं। अपनी फसल की बढ़िया उपज को देखते हुए क्रेमिका (Cremica) कंपनी के साथ सांझेदारी की। हर दिन, ताज़े टमाटरों से लदे दो ट्रक उनके खेत से निकलते हैं ताकि क्रेमिका (Cremica) के ग्राहकों की मांगों को पूरा किया जा सके । टमाटर की खेती में अपनी माहिरता बढ़ाने के लिए, चमकौर सिंह जी ने हिसार में बलविंदर सिंह भालिमंसा जी से टमाटर बीज के चयन और प्रबंधन के बारे में ट्रेनिंग ली।

चमकौर जी की कड़ी मेहनत और लगन किसी से भी छुपी नहीं रही। 2008 में, उन्हें कृषि में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फसल में रोगों और उसके प्रबंधन में उनकी माहिरता ने उन्हें निजी कंपनियों के लिए एक भरोसेयोग्य स्रोत बना दिया है, जो अक्सर अपने नए कृषि उत्पादों के प्रदर्शन के लिए उनके खेतों को चुनते हैं। अपनी उपलब्धियों के बावजूद, चमकौर जी मंच पर कम ही बोलते हैं, पर वहां उनका काम बोलता है।

अपनी उपलब्धियों के अलावा, चमकौर बागवानी विभाग से विभिन्न सब्सिडी का लाभ ले रहे हैं। इन सब्सिडी ने क्रेट, स्प्रे पंप, पावर मीटर और यहां तक कि एक छोटा एयर कंडीशनर जैसे आवश्यक उपकरण की प्राप्ति के लिए सुविधा प्रदान की है। चमकौर जी मानते है कि समस्याएं जीवन का एक हिस्सा हैं, और उनके आगे झुकने की बजाय, हमें चुनौतियों को सामना करना चाहिए और मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए।

चमकौर सिंह जी द्वारा किये गए कामों में से एक महत्वपूर्ण काम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी है। 1994 में उन्होंने टमाटर की खेती करनी शुरू की और अपनी उपज को बेचने का फैसला किया। उनकी उपज का आधा हिस्सा एक स्थानीय कारखाने (फैक्ट्री) को बेच दिया गया, जिससे एक स्थिर आमदन सुनिश्चित हुई, जबकि बाकि उपज बाजार में बिकने लगी। समय के साथ, उन्होंने पंजाब एग्रो और क्रेमिका के साथ सांझेदारी की, जो बेहद फायदेमंद साबित हुई।

अपने अनुभव से चमकौर सिंह जी ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की खूबियों के बारे में जाना। इस तरह की व्यवस्थाओं में प्रस्तावित निश्चित दरें, अनिश्चित बाजार कीमतों से जुड़े जोखिमों को कम करती हैं, जिससे किसानों को स्थिरता और सुरक्षा मिलती है। इसके अलावा, कंपनियों के साथ सहयोग करना तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है जो किसानों की समझ को बढ़ाता है और उनके विकास में सहयोग करता है। चमकौर सिंह जी का कहना है कि प्रत्येक किसान को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करनी चाहिए और साथी किसानों की मदद के लिए स्वयं को एक उदहारण के रूप में पेश करना चाहिए। वह ट्रेनिंग और नर्सरी सुविधाएं प्रदान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इस बात पर महत्त्व देते हैं कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत ज़रूरी है।

चमकौर सिंह की उपलब्धियां खेती तक ही सीमित नहीं हैं, उन्होंने G2 और G3 लेवल के आलू के उत्पादन और बिक्री पर भी (व्यापार) काम कर रहे हैं।

किसानों के लिए संदेश

यदि आप उद्यमी, मेहनती किसान हैं और मदद चाहते हैं तो चमकौर सिंह जी से संपर्क करें, वे न केवल इसके बारे में बताते हैं बल्कि ट्रेनिंग और नर्सरी सेवाएं भी प्रदान करवाते हैं। अपने कौशल को बढ़ाने, स्रोत तक पहुंच करने और एक समृद्ध भविष्य की खेती करने के लिए मौके का लाभ उठाएं।

शमशेर सिंह संधु

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जानिये क्या होता है जब नर्सरी तैयार करने का उद्यम कृषि के क्षेत्र में अच्छा लाभ देता है

जब कृषि की बात आती है तो किसान को भेड़ चाल नहीं चलना चाहिए और वह काम करना चाहिए जो वास्तव में उन्हें अपने बिस्तर से उठकर, खेतों जाने के लिए प्रेरित करता है, फिर चाहे वह सब्जियों की खेती हो, पोल्टरी, सुअर पालन, फूलों की खेती, फूड प्रोसेसिंग या उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना हो। क्योंकि इस तरह एक किसान कृषि में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है।

जाटों की धरती—हरियाणा से एक ऐसे प्रगतिशील किसान शमशेर सिंह संधु ने अपने विचारों और सपनों को पूरा करने के लिए कृषि के क्षेत्र में अपने रास्तों को श्रेष्ठ बनाया। अन्य किसानों के विपरीत, श्री संधु मुख्यत: बीज की तैयारी करते हैं जो उन्हें रासायनिक खेती तकनीकों की तुलना में अच्छा मुनाफा दे रहा है।

कृषि के क्षेत्र में अपने पिता की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, शमशेर सिंह ने 1979 में अपनी पढ़ाई (बैचलर ऑफ आर्ट्स) पूरी करने के बाद खेती को अपनाने का फैसला किया और अगले वर्ष उन्होंने शादी भी कर ली। लेकिन गेहूं, धान और अन्य रवायती फसलों की खेती करने वाले अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना उनके लिए मुश्किल था और वे अभी भी अपने पेशे को लेकर उलझन में थे।

हालांकि, कृषि क्षेत्र इतने सारे क्षेत्र और अवसरों के साथ एक विस्तृत क्षेत्र है, इसलिए 1985 में उन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के युवा किसान ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में पता चला, यह प्रोग्राम 3 महीने का था जिसके अंतर्गत डेयरी जैसे 12 विषय थे जैसे डेयरी, बागबानी, पोल्टरी और कई अन्य विषय। उन्होंने इसमें भाग लिया। ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उन्होंने बीज तैयार करने शुरू किए और बिना सब्जी मंडी या कोई अन्य दुकान खोले बिना उन्होंने घर पर बैठकर ही बीज तैयार करने के व्यवसाय से अच्छी कमाई की।

कृषि गतिविधियों के अलावा, शमशेर सिंह सुधु एक सामाजिक पहल में भी शामिल हैं जिसके माध्यम से वे ज़रूरतमंदों को कपड़े दान करके उनकी मदद करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से अवांछित कपड़े इक्ट्ठे करने और अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करने के लिए किसानों का एक समूह बनाया है।

बीज की तैयारी के लिए, शमशेर सिंह संधु पहले स्वंय यूनिवर्सिटी से बीज खरीदते, उनकी खेती करते, पूरी तरह पकने की अवस्था पर पहुंच कर इसकी कटाई करते और बाद में दूसरे किसानों को बेचने से पहले अर्ध जैविक तरीके से इसका उपचार करते। इस तरीके से वे इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं उनका उद्यम इतना सफल है कि उन्हें 2015 और 2018 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और फैलो फार्मर अवार्ड के साथ आई.ए.आर.आई ने उत्कृष्ट प्रयासों के लिए दो बार सम्मानित किया है।

वर्तमान में शमशेर सिंह संधु बीज की तैयारी के साथ, ग्वार, गेहूं, जौ, कपास और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इससे अच्छे लाभ कमा रहे हैं। भविष्य में वे अपने संधु बीज फार्म के काम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि अन्य पड़ोसी राज्यों में भी बीज की आपूर्ति कर सकें।

संदेश
किसानों को अन्य बीज आपूर्तिकर्ताओं के बीज भी इस्तेमाल करके देखने चाहिए ताकि वे अच्छे सप्लायर और बुरे के बीच का अंतर जान सकें और सर्वोत्तम का चयन कर फसलों की बेहतर उपज ले सकें।

बलविंदर सिंह संधु

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एक किसान की कहानी जिसने खेतीबाड़ी के पुरानी ढंगों को छोड़कर कुदरती तरीकों को अपनाया

आज, किसान ही सिर्फ वे व्यक्ति हैं जो अन्य किसानों को खेतीबाड़ी के जैविक ढंगों की तरफ प्रेरित कर सकते हैं और बलविंदर सिंह उन किसानों में से एक हैं जिन्होंने प्रगतिशील किसान से प्रेरित होकर पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हाल ही के वर्षों में जैविक खेती को अपनाया।

खैर, जैविक की तरफ मुड़ना उन किसानों के लिए आसान नहीं होता जो रवायती ढंग से खेती करते हैं और अच्छी उपज प्राप्त करते हैं। लेकिन बलविंदर सिंह संधु ने अपनी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से इस बाधा को पार किया।

इससे पहले, 1982 से 1983 में, वे कपास, सरसों और ग्वार फसलों की खेती करते थे लेकिन 1997 से उन्होंने कपास की फसल पर बॉलवार्म कीट के हमले का सामना किया जिस कारण उन्हें आगे चल कर बार बार बड़ी हानि का सामना करना पड़ा। इसलिए उसके बाद उन्होंने धान की खेती शुरू करने का फैसला किया लेकिन फिर भी वे पहले जितना मुनाफा नहीं कमा पाये। जैविक खेती की तरफ उन्होंने अपना पहला कदम 2011 में उठाया। जब उन्होंने मनमोहन सिंह के जैविक सब्जी फार्म का दौरा किया।

इस दौरे के बाद, बलविंदर सिंह का नज़रिया काफी विस्तृत हुआ और उन्होंने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने मिर्च से शुरूआत की। पहली गल्तियों को सुधारने के लिए वे कपास के अच्छी किस्म के बीजों को खरीदने के लिए गुजरात तक गए और वहां उन्होंने बीजरहित खीरे, स्ट्रॉबेरी और तरबूज की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। लगातार 3 वर्षों से वे अपनी भूमि पर कीटनाशकों के प्रयोग को कम कर रहे हैं।

उस वर्ष, मिर्च की फसल की उपज बहुत अच्छी हुई अैर उन्होंने 2 एकड़ से 500000 रूपये का लाभ कमाया। बलविंदर सिंह ने अपने फार्म की जगह का भी लाभ उठाया। उनका फार्म रोड पर था इसलिए उन्होंने सड़क के किनारे एक छोटी सी दुकान खोल ली जहां पर उन्होंने सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने मिर्च की प्रोसेसिंग करके मिर्च पाउडर बनाना भी शुरू कर दिया।

“जब मैंने मिर्च पाउडर की प्रोसेसिंग शुरू की तो बहुत से लोग शिकायत करते थे कि आपका मिर्च पाउडर का रंग लाल नहीं है। तब मैंने उन्हें समझाया कि मिर्च पाउडर कभी भी लाल रंग का नहीं होता। आमतौर पर बाजार से खरीदे जाने वाले पाउडर में अशुद्धता और रंग की मिलावट होती है।”

2013 में, बलविंदर सिंह ने खीरे, टमाटर, कद्दू और शिमला मिर्च जैसी सब्जियों की खेती शुरू कर दी।

“ज्यादा फसलों को ज्यादा क्षेत्र की आवश्यकता होती है इसलिए खेती के क्षेत्र को बढ़ाने के लिए मैंने अपने चचेरे और सगे भाइयों से ठेके पर 40 एकड़ ज़मीन ली। शुरूआत में सब्जियों का मंडीकरण करना एक बड़ी समस्या थी लेकिन समय के साथ इस समस्या का भी हल हो गया।”

वर्तमान में, बलविंदर सिंह 8-9 एकड़ में सब्जियों की और एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की और बाकी की ज़मीन पर धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं। इसके अलावा उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्होंने सभी आधुनिक कृषि उपकरणों और पर्यावरणीय अनुकूल तकनीकों जैसे ट्रैक्टर, बैड प्लांटर, रोटावेटर, कल्टीवेटर, लेवलर, सीडर, तुपका सिंचाई, मलचिंग, कीटनाशकों के स्थान पर घर पर तैयार जैविक खाद और खट्टी लस्सी  स्प्रे को अपनाया है।

पिछले चार वर्षों से वे 2 एकड़ भूमि पर पूरी तरह से जैविक खेती कर रहे हैं और शेष भूमि पर कीटनाशक और फंगसनाशी का प्रयोग कम कर रहे हैं। बलविंदर सिंह की कड़ी मेहनत ने कई लोगों को प्रभावित किया, यहां तक कि उनके क्षेत्र के डी. सी. (DC) ने भी उनके फार्म का दौरा किया। विभिन्न प्रिंट मीडिया में उनके काम के बारे में कई लेख प्रकाशित किए गए हैं और जिस गति से वे प्रगति कर रहे ऐसा प्रतीत होता है कि भविष्य में भी उनकी अलग ही पहचान साबित होगी ।

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“अब किसानों को लाभ कमाने के लिए अपने उत्पादन बेचने के लिए तराजू को अपने हाथों में लेना होगा, क्योंकि यदि वे अपनी फसल बेचने के लिए बिचौलियों या डीलरों पर निर्भर रहेंगे तो वे प्रगति नहीं कर पायेंगे और बार बार ठगों से धोखा खाएंगे। बिचौलिये उन सभी लाभों को दूर कर देते हैं जिन पर किसान का अधिकार होता है।”

करमजीत कौर दानेवालिया

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कैसे एक महिला ने शादी के बाद अपने खेती के प्रति जुनून को पूरा किया और आज सफलतापूर्वक इस व्यवसाय को चला रही है

आमतौर पर भारत में जब बेटियों की शादी कर दी जाती है और उन्हें अपने पति के घर भेज दिया जाता है तो वे शादी के बाद अपनी ज़िंदगी में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वे अपनी रूचि और अपने शौंक के बारे में भूल ही जाती हैं। वे घर की चारदिवारी में बंध कर रह जाती हैं। लेकिन एक ऐसी महिला हैं – श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया । जिसने शादी के बाद भी अपने जुनून को आगे बढ़ाया । घर में रहने की बजाय उन्होंने घर के बाहर कदम रखा और बागबानी के अपने शौंक को पूरा किया।

श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया एक ऐसी महिला है जिन्होंने एक छोटे से गांव के एक ठेठ पंजाबी किसान के परिवार में जन्म लिया। खेती की पृष्ठभूमि से होने पर श्री मती करमजीत हमेशा खेती के प्रति आकर्षित थी और खेतों में अपने पिता की मदद करने में भी रूचि रखती थी। लेकिन शादी से पहले उन्हें कभी खेती में अपने पिता की मदद करने का मौका नहीं मिला।

जल्दी ही उनकी शादी एक बिजनेस क्लास परिवार के श्री जसबीर सिंह से हो गई। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि शादी के बाद उन्हें अपने सपनों को पूरा करने और इन्हें अपने व्यवसाय के रूप में करने का अवसर मिलेगा। शादी के कुछ वर्ष बाद 1975 में अपने पति के समर्थन से उन्होंने फलों का बाग लगाने का फैसला किया और अपनी दिलचस्पी को एक मौका दिया। लेवलर मशीन और मजदूरों की सहायता से, उन्होंने 45 एकड़ की भूमि को समतल किया और इसे बागबानी करने के लिए तैयार किया। उन्होंने 20 एकड़ की भूमि पर किन्नू उगाए और 10 एकड़ की भूमि पर आलूबुखारा, नाशपाति, आड़ू, अमरूद, केला आदि उगाए और बाकी की 5 एकड़ भूमि पर वे सर्दियों में गेहूं और गर्मियों में कपास उगाती हैं।

उनका शौंक जुनून में बदल गया और उन्होंने इसे जारी रखने का फैसला किया। 1990 में उन्होंने एक तालाब बनाया और इसमें बारिश के पानी को स्टोर किया। वे इससे बाग की सिंचाई करती थी। लेकिन उसके बाद उन्होंने इसमें मछली पालन शुरू किया और इसे दोनों मंतवों मछली पालन और सिंचाई के लिए प्रयोग किया। अपने व्यापार को एक कदम और बढ़ाने के लिए उन्होंने नए पौधे स्वंय तैयार करने का फैसला किया।

2001 में उन्होंने भारत में किन्नू के उत्पादन का एक रिकॉर्ड बनाया और किन्नू के बाग के व्यापार को और सफल बनाने के लिए, किन्नू की पैकेजिंग और प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग के लिए वे विशेष तौर पर 2003 में कैलीफॉर्निया गई। वापिस आने के बाद उन्होंने उस ट्रेनिंग को लागू किया और इससे काफी लाभ कमाया। जिस वर्ष से उन्होने किन्नू की खेती शुरू की तब से उनके किन्नुओं की गुणवत्ता प्रतिवर्ष जिला स्तर और राज्य स्तर पर नंबर 1 पर रही है और किन्नू उत्पादन में बढ़ती लोकप्रियता के कारण 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने उन्हें ‘किन्नुओं की रानी’ के नाम से नवाज़ा।

खेती के उद्देश्य के लिए, आधुनिक तकनीक के हर प्रकार के खेतीबाड़ी यंत्र और मशीनरी उनके फार्म पर मौजूद है। बागबानी के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्धि ने उन्हें कई प्रतिष्ठित समुदायों का सदस्य बनाया और कई पुरस्कार दिलवाए। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।

• 2001-02 में कृषि मंत्री श्री गुलज़ार रानीका द्वारा राज्य स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2004 में शाही मेमोरियल इंटरनेशनल सेवा सोसाइटी, लुधियाना में रवी चोपड़ा द्वारा देश सेवा रत्व पुरस्कार से पुरस्कृत हुईं।
• 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्य मंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा ‘किन्नुओं की रानी’ का शीर्षक मिला।
• 2005 में कृषि मंत्री श्री जगजीत सिंह रंधावा द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक पुरस्कार मिला।
• 2012 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2012 में जिला स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में जिला स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010 में कृषि मंत्री श्री सुचा सिंह लंगाह द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक महिला का पुरस्कार मिला।
• 2012 में श्री शरनजीत सिंह ढिल्लों और वी.सी पी ए यू, लुधियाना द्वारा किसान मेले में अभिनव महिला किसान के रूप में राज्य स्तरीय पुरस्कार मिला।
• 2012 में कृषि मंत्री श्री शरद पवार -भारत सरकार द्वारा 7th National conference on KVK at PAU, लुधियाना में उत्कृष्टता के लिए चैंपियन महिला किसान पुरस्कार मिला।
• 2013 में पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा अमृतसर में 64वें गणतंत्र दिवस पर प्रगतिशील महिला किसान के सम्मान में पुरस्कार मिला।
• 2013 में कृषि मंत्री Dr. R.R Hanchinal, Chairperson PPUFRA- भारत सरकार द्वारा indian agriculture at global agri connect (NSFI) IARI, नई दिल्ली में भारतीय कृषि में अभिनव सहयोग के लिए प्रशंसा पत्र मिला।
• 2012 में में पंजाब की सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
• 2013 में तामिलनाडू और आसाम के गवर्नर डॉ. भीष्म नारायण सिंह द्वारा कृषि में सराहनीय सेवा, शानदार प्रदर्शन और उल्लेखनीय भूमिका के लिए भारत ज्योति पुरस्कार मिला।
• 2015 में नई दिल्ली में पंजाब के पूर्व गवर्नर जस्टिस ओ पी वर्मा द्वारा भारत का गौरव बढ़ाने के लिए उनके द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों को देखते हुए भारत गौरव पुरस्कार मिला।
• कृषि मंत्री श्री तोता सिंह और कैबिनेट मंत्री श्री गुलज़ार सिह रानीका और ज़ी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल के संपादक श्री दिनेश शर्मा द्वारा बागबानी के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट सहयोग और किन्नू की खेती को बढ़ावा देने के लिए Zee Punjab/Haryana/Himachal एग्री पुरस्कार मिला।
• श्रीमती करमजीत पी ए यू किसान क्लब की सदस्या हैं।
• वे पंजाब AGRO की स्दस्या हैं
• वे पंजाब बागबानी विभाग की सदस्या हैं।
• मंडी बोर्ड की सदस्या हैं।
• चंगी खेती की सदस्या हैं।
• किन्नू उत्पादक संस्था की सदस्या हैं।
• Co-operative Society की सदस्या हैं।
• किसान सलाहकार कमेटी की सदस्या हैं।
• PAU, Ludhiana Board of Management की सदस्या हैं।

इतने सारे पुरस्कार और प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद, वे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए उत्सुक हैं और यही वजह है कि वे कभी भी किसी भी जिला स्तर के कृषि मेलों और मीटिंगों में भाग लेना नहीं छोड़ती । वे कुछ नया सीखने के लिए और ज्ञान प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से उन किसानों के खेतों का दौरा करती हैं जो पी ए यू और हिसार कृषि विश्वविद्लाय से जुड़े हैं।

आज वे प्रति हेक्टेयर में 130 टन किन्नुओं की तुड़ाई कर रही हैं और इससे 1 लाख 65 हज़ार आय कमा रही हैं। अन्य फलों के बागों से और गेहूं और कपास की फसलों से वे प्रत्येक मौसम में 1 लाख आय कमा रही हैं।

अपनी सभी सफलताओं के पीछे का सारा श्रेय वे अपने पति को देती हैं जिन्होंने उनके सपनों का साथ दिया और इन सभी वर्षों में खेती करने में उनकी मदद की। खेती के अलावा वे समाज के लिए एक बहुत अच्छे कार्य में सहयोग दे रही हैं। वे गरीब लड़कियों को वित्तीय सहायता और शादी की अन्य सामग्री प्रदान कर उनकी शादी में मदद भी करती हैं उनकी भविष्य योजना है – खेतीबाड़ी को और लाभदायक व्यापारिक उद्यम बनाना है।

किसानों को संदेश –
किसानों को अपने खर्चों को अच्छी तरह बनाकर रखना शुरू करना होगा और जो उनके पास नहीं है, उन्हें उसका दिखावा बंद करना होगा। आज, कृषि क्षेत्र को अधिक ध्यान की आवश्यकता है इसलिए युवा बच्चों को जिनमें बेटियों को भी शामिल किया जाना चाहिए और इस क्षेत्र के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए और हर किसी को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि कृषि के क्षेत्रा में हर इंसान पहले एक किसान है और फिर एक व्यापारी।

राजा राम जाखड़

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राजस्थान के भविष्यवादी किसान, जो घीकवार की खेती से पारंपरिक खेती में परिवर्तन ला रहे हैं

बेशक, राजस्थान आज भी पारंपरिक खेती वाले ढंगों के लिए जाना जाता है और यहां की मुख्यफसलें बाजरा, ग्वार और ज्वार हैं। बहुत सारे किसान तरक्की कर रहे हैं, पर आज भी बहुत किसान ऐसे हैं, जो अपनी पारंपरिक खेती की रूढ़ीवादी सोच से बाहर निकलकर कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं और खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं।

राजस्थान की धरती पर राजा राम सिंह जी जन्मे और पले बढ़े हैं। उन्होंने बी एस सी एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन की और उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी, ताकि वे खेती के प्रति अपने जुनून को पूरा कर सकें। उन्होंने मौके का फायदा लेना और उससे लाभ कमाना भी सीखा। आज वे राजस्थान में घीकवार के सफल किसान हैं, जो अपनी उपज के मंडीकरण के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं हैं, क्योंकि उनकी उपज केवल खेत से ही खप्तकारों को बेची जाती है।

राजा राम जाखड़ जी का परिवार बचपन से ही खेतीबाड़ी से जुड़ा है और उन्होंने अपने बचपन से ही अपने परिवार के सभी सदस्यों को खेती करते देखा। पर 1980 में उन्होंने डी ए वी कॉलेज संघरिया (राजस्थान) से बी एस सी एग्रीकल्चर की डिग्री पूरी की और उन्हें एक अलग पेशे में नौकरी (सैंट्रल स्टेट फार्म, सूरतगढ़ में सुपरवाइज़र) का मौका मिला। पर वे 3-4 महीनों से ज्यादा, वहां काम नहीं कर सके क्योंकि उनकी इस काम में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने घर वापिस आकर पिता प्रधान व्यवसाय -जो कि खेती था, इसे अपनाने का फैसला किया।

उन्होंने अपने बुज़ुर्गों वाले ढंग से ही खेती करनी शुरू की, पर इसमें कुछ विशेष लाभ नहीं मिल रहा था। धीरे-धीरे उनके परिवार की रोज़ी रोटी चलनी भी मुश्किल हो रही थी, क्योंकि उनका मुनाफा केवल गुज़ारे योग्य ही था। पर उस समय उन्होंने पतंजली ब्रांड और इसके एलोवेरा उत्पादों के बारे में सुना। उन्हें यह भी सुनने को मिला कि इन उत्पादों को बनाने के लिए पतंजली में एलोवेरा की बहुत मात्रा में उपज की जरूरत है। इसलिए इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने केवल 15000 रूपये के निवेश से 1 एकड़ एलोवेरा की खेती Babie Densis नाम की किस्म से शुरू की।

इन सब के चलते, एक बार तो उनका परिवार भी उनके विरूद्ध हो गया, क्योंकि वे जो भी काम कर रहे थे, उस पर परिवार को कोई यकीन नहीं था और उस समय अपने क्षेत्र (जिला गंगानगर) में एलोवेरा की खेती करने वाले वे पहले किसान थे। पर राजा राम जी ने अपना मन नहीं बदला, क्योंकि उन्हें खुद पर यकीन था। एक वर्ष बाद, आखिर जब एलोवेरा के पौधे पककर तैयार हो गए, कुछ खरीददारों ने उनकी उपज खरीदने के लिए संपर्क किया और तब से ही वे अपनी उपज फार्म से ही बेचते हैं, वो भी बिना कोई प्रयत्न किए। वे एक वर्ष में एक एकड़ से एक लाख रूपये तक का मुनाफा लेते हैं।

जैसे कि राजस्थान में एलोवेरा के उत्पाद तैयार करने वाली बहुत फैक्टरियां हैं, इसलिए हर 50 दिन बाद खरीददारों के द्वारा दो ट्रक उनके फार्म पर भेजे जाते हैं, और उनका काम केवल मजदूरों की मदद से ट्रकों को लोड करना होता है। अब उन्होंने अधिक मुनाफा लेने के लिए अंतर फसली विधि द्वारा एलोवेरा के खेतों में मोरिंगा पौधे भी लगाए हैं।

इस समय वे खुशी खुशी अपने परिवार (पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र) के साथ रह रहे हैं और पूरे फार्म का काम काज खुद ही संभालते हैं। उनके पास खेती के लिए एक ट्यूबवैल और ट्रैक्टर है। वे अपने खेतों में एलोवेरा, मोरिंगा और कपास की खेती के लिए केवल जैविक खेती तकनीक ही अपनाते हैं। इन तीन फसलों के अलावा वे भिंडी, तोरी, खीरा, लौकी, ग्वार की फलियां और अन्य मौसमी सब्जियों की खेती घरेलू उपयोग के लिए करते हैं।

राजा राम जाखड़ जी ने अंतर फली के लिए मोरिंगा के पौधों को इस लिए चुना, क्योंकि इसमें बहुत सारे चिकित्सक गुण होते हैं और इसे बहुत कम देखभाल करके भी आसानी से उगाया जा सकता है। अब उन्होंने पौधे बेचने का काम भी शुरू किया है और जो किसान एलोवेरा की खेती के लिए ट्रेनिंग लेना चाहते हैं, उन्हें मुफ्त सिखलाई भी देते हैं। राजा राम जी अपने भविष्यवादी विचारों से खेतीबाड़ी के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाना चाहते हैं। अभी तक कभी भी उन्होंने सरकार या किसी अन्य स्त्रोत से मदद नहीं ली और जो कुछ किया खुद से ही किया। वे भविष्य में अपने काम को और बढ़ाना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी एलोवेरा की खेती के प्रति जागरूक करवाना चाहते हैं।


किसानों के लिए संदेश
“कुछ भी नया करने से पहले, किसानों को मंडीकरण के बारे में सोचना चाहिए ओर फिर खेती करनी चाहिए। किसानों को बहुत सारे मौके मिलते रहते हैं, बस उन्हें इन मौकों का फायदा उठाना चाहिए और इन्हें खोना नहीं चाहिए।”

 

श्री कट्टा रामकृष्ण

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जानिये कैसे कट्टा रामकृष्ण ने उच्च घनत्व में रोपाई की तकनीक से कपास की खेती को और दिलचस्प बनाया

कट्टा रामकृष्ण आंध्र प्रदेश राज्य के प्रकाशम जिले में नागुलूप्पलडु के नज़दीक ओबन्न पलेम गांव के एक प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों के सुझाव अनुसार अपने कपास के खेत में उच्च घनत्व रोपाई तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया जिसके परिणामस्वरूप बेहतर उत्पादकता के साथ उच्च पैदावार प्राप्त की।

कट्टा रामकृष्ण की एक छोटे से क्षेत्र में अधिक पौधों को लगाने के लिए इस अभिनव पहल ने अंतत: उपज में वृद्धि की। इस कदम से उन्होंने 10 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन किया जिसने उन्हें भारतीय कृषि परिषद से राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करवाई और उन्हें 2013 में “बाबू जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

बाद में, जिला कृषि सलाहकार और ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलोजी सेंटर के मार्गदर्शन से, कट्टा रामकृष्ण ने एक एकड़ में 12500 पौधे लगाए और इसे अपने 5 एकड़ प्लॉट में लागू किया और एक एकड़ से 22 क्विंटल उपज प्राप्त की।

“मेरे द्वारा निवेश की गई हर राशि के लिए, मुझे बदले में लाभ के बराबर राशि मिली”

— कट्टा रामकृष्ण ने गर्व से अपना पुरस्कार दिखाकर कहा जो उन्हें नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन से प्राप्त किया।

“सामान्यत: एक किसान एक एकड़ में 8000 कपास के पौधे लगाता है और 10 से 15 क्विंटल उपज प्राप्त करता है लेकिन वे नहीं जानते कि पौधे की घनता में वृद्धि कपास की उपज में वृद्धि कर सकती है”

— डी ओ टी सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक वरप्रसाद राव ने कहा।

सफेद सोने की अच्छी उत्पादकता से उत्साहित होकर कट्टा रामकृष्ण ने कहा कि

– “आने वाले समय में मैं 16000 पौधे प्रति एकड़ में लगाकर 25 से 20 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकता हूं।”

उपलब्धियां

• उन्हें विभिन्न राज्यों और राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है।

• श्री रामकृष्ण ने कपास की सघन रोपाई अपनाई जिसमें 90 सैं.मी. x 30 सैं.मी. का फासला रखा (90 सैं.मी. x 45 सैं.मी. के स्थान पर), जिसके फलस्वरूप बारानी परिस्थितियों में अच्छी उपज (45.10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर) प्राप्त हुई है।

• कपास के खेत में अधिकतम जल संरक्षण के लिए हाइड्रोजैल तकनीक कोअपनाया, जिसके फलस्वरूप उपज में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

• उन्होंने अपने खेतों में चना, उड़द, मूंग के प्रक्षेत्र परीक्षण लगाए, जिसके परिणामस्वरूप प्रकाशम जिले में किसानों के खेतों के लिए उपयुक्त प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिली।

• चने की फसल में जैविक खादों जैसे राइजोबियम और फॉस्फोबैक्टीरिया का प्रयोग किया जिससे उपज में बढ़ोत्तरी हुई।

• वे खेती के लिए जैविक खादों और हरी खाद को पहल देते हैं।

• कीटों की नियंत्रण के लिए वे नीम के बीजों का प्रयोग करते हैं।

• उन्होंने सी.टी.आर.आई कंडुकर प्रकाशम जिले के सहयोग से तंबाकू के व्यर्थ पदार्थ को अपने खेतों में खाद के रूप में प्रयोग करके नई तकनीक विकसित की।

• उन्होंने सीड कम फर्टिलाइजर को मॉडीफाई किया, ताकि बीज और खाद को मिट्टी की विभिन्न गहराई पर एक समय में बोया जा सके। यह मॉडीफाइड सीड कम फर्टीलाइज़र ड्रिल स्थानीय किसानों के लिए सभी प्रकार की दालों की बिजाई के लिए उपयुक्त है।

• उनके द्वारा तैयार की गई आविष्कारी तकनीकें और संशोधित पैकेज प्रैक्टिसिज़ स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित हैं। इसके अलावा, उनके फार्म पर होने वाले अनुभवों की अलग अलग रेडियो और सार्वजनिक मीटिंगों में चर्चा की जाती है।

• वे अपने क्षेत्र में दूसरे किसानों के लिए आदर्श मॉडल और प्रेरणा बन गए हैं।

संदेश
“फसल के बेहतर विकास के लिए किसानों को मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन करने के लिए विशेषज्ञों से अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए और इसी तरीके से वे कम रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके कीट प्रबंधन के सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।”

 

हरतेज सिंह मेहता

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जैविक खेती के लिए दूसरों को प्रोत्साहित करके बेहतर भविष्य के लिए एक आधार स्थापित कर रहे हैं

पहले जैविक एक ऐसा शब्द था जिसका प्रयोग बहुत कम किया जाता था। बहुत कम किसान थे जो जैविक खेती करते थे और वह भी घरेलु उद्देश्य के लिए। लेकिन समय के साथ लोगों को पता चला कि हर चमकीली सब्जी या फल अच्छा दिखता है लेकिन वह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।

यह कहानी है – हरतेज सिंह मेहता की जिन्होंने 10 वर्ष पहले एक बुद्धिमानी वाला निर्णय लिया और वे इसके लिए बहुत आभारी भी हैं। हरतेज सिंह मेहता के लिए, जैविक खेती को जारी रखने का निर्णय उनके द्वारा लिया गया एक सर्वश्रेष्ठ निर्णय था और आज वे अपने क्षेत्र (मेहता गांव – बठिंडा) में जैविक खेती करने वाले एक प्रसिद्ध किसान हैं।

पंजाब के मालवा क्षेत्र, जहां पर किसान अच्छी उत्पादकता प्राप्त करने के लिए कीटनाशक और रसायनों का प्रयोग बहुत उच्च मात्रा में करते हैं। वहीं, हरतेज सिंह मेहता ने प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रखने को चुना। वे बचपन से ही अपने पैतृक व्यवसायों के प्रति समर्पित है और उनके लिए अपनी उपलब्धियों के बारे में फुसफुसाने से अच्छा, एक साधारण जीवन व्यतीत करना है।

उच्च योग्यता (एम.ए. पंजाबी, एम.ए. पॉलिटिकल साइंस) होने के बावजूद, उन्होंने शहरी जीवन और सरकारी नौकरी की बजाय जैविक खेती करने को चुना। वर्तमान में उनके पास 11 एकड़ ज़मीन है जिसमें वे कपास, गेहूं, सरसों, गन्ना, मसूर, पालक , मेथी, गाजर, मूली, प्याज, लहसुन और लगभग सभी सब्जियां उगाते हैं। वे हमेशा अपने खेतों को कुदरती तरीकों से तैयार करना पसंद करते हैं जिसमें कपास (F 1378), गेहूं (1482) और बंसी नाम के बीज अच्छे परिणाम देते हैं।

“अंसतोष, निरक्षरता और किसानों की उच्च उत्पादकता की इच्छा रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है, जिसके कारण किसान जो कि उद्धारकर्त्ता के रूप में जाने जाते हैं वे अब समाज को विष दे रहे हैं। आजकल किसान कीट प्रबंधन के लिए कीटनाशकों और रसायनों का इस्तेमाल करते हैं जो मिट्टी के मित्र कीटों और उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाते हैं। वे इस बात से अवगत नहीं हैं कि वे अपने खेत में रसायनों को उपयोग करके पूरी खाद्य श्रंख्ला को विषाक्त बना रहे हैं। इसके अलावा, रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके वे ना केवल पर्यावरण की स्थिति को बिगाड़ रहे हैं बल्कि कर्ज में बढ़ोतरी के कारण प्रमुख आर्थिक नुकसान का भी सामना कर रहे हैं।”– हरतेज सिंह ने कहा।

मेहता जी हमेशा खेती के लिए कुदरती ढंग को अपनाते हैं और जब भी उन्हें कुदरती खेती के बारे में जानकारी की आवश्यकता होती है तो वे अमृतसर के पिंगलवाड़ा सोसाइटी और एग्रीकल्चर हेरीटेज़ मिशन से संपर्क करते हैं। वे आमतौर पर गाय के मूत्र और पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिए करते हैं और यह मिट्टी के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण अनुकूलन भी है।

मेहता जी के अनुसार कुदरती तरीके से उगाए गए भोजन के उपभोग ने उन्हें और उनके परिवार को पूरी तरह से स्वस्थ और रोगों से दूर रखा है। इसी कारण श्री मेहता का मानना है कि वे जैविक खेती के प्रति प्रेरित हैं और भविष्य में भी इसे जारी रखेंगे।

संदेश
“मैं देश भर के किसानों को एक ही संदेश देना चाहता हूं कि हमें निजी कंपनियों के बंधनों से बाहर आना चाहिए और समाज को स्वस्थ बनाने के लिए स्वस्थ भोजन प्रदान करने का वचन देना चाहिए।”