सतवीर सिंह

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एक सफल एग्रीप्रेन्योर की कहानी जो समाज में अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनें – सतवीर फार्म सधाना

यह कहा जाता है कि महान चीज़ें कभी भी आराम वाले क्षेत्र से नहीं आती और यदि एक व्यक्ति वास्तव में कुछ ऐसा करना चाहता है, जो उसने पहले कभी नहीं किया तो उसे अपना आराम क्षेत्र छोड़ना होगा। ऐसे एक व्यक्ति सतवीर सिंह हैं, जिन्होंने अपने आसान जीवनशैली को छोड़ दिया और वापिस पंजाब, भारत आकर अपने लक्ष्य का पीछा किया।

आज श्री सतवीर सिंह एक सफल एग्रीप्रेन्योर हैं और गेहूं और धान की तुलना में दो गुणा अधिक लाभ कमा रहे हैं। उन्होंने सधाना में सतवीर फार्म के नाम से अपना फार्म भी स्थापित किया है। वे मुख्य रूप से स्वंय की 7 एकड़ भूमि में सब्जियों की खेती करते हैं और उन्होंने अपनी 2 एकड़ ज़मीन किराये पर दी है।

सतवीर सिंह ने जीवन के इस स्तर पर पहुंचने के लिए जिस रास्ते को चुना वह आसान नहीं था। उन्हें कई उतार चढ़ाव का सामना किया, लेकिन फिर भी लगातार प्रयासों और संघर्षों के बाद उन्होंने अपनी रूचि को आगे बढ़ाया और इसमें सफलता हासिल की। यह सब शुरू हुआ जब उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई खत्म की और चार साल बाद वे नौकरी के लिए दुबई चले गए। लेकिन कुछ समय बाद वे भारत लौट आए और उन्होंने खेती शुरू करने का फैसला किया और वापिस दुबई जाने का विचार छोड़ दिया। शुरूआत में उन्होंने गेहूं और धान की खेती शुरू की, लेकिन अपने दोस्तों के साथ एक सब्जी के फार्म का दौरा करने के बाद वे बहुत प्रभावित हुए और सब्जी की खेती की तरफ आकर्षित हो गये।

करीब 7 साल पहले (2010 में) उन्होने सब्जी की खेती शुरू की और शुरूआत में कई समस्याओं का सामना किया। फूलगोभी पहली सब्जी थी जिसे उन्होंने अपने 1.5 एकड़ खेत में उगाया और एक गंभीर नुकसान का सामना किया। लेकिन फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और सब्जी की खेती करते रहें। धीरे धीरे उन्होने अपने सब्जी क्षेत्र का विस्तार 7 एकड़ तक कर दिया और कद्दू, लौकी, बैंगन, प्याज और विभिन्न किस्मों की मिर्चें और करेले को उगाया और साथ ही उन्होंने नए पौधे तैयार करने शुरू किए और उन्हें बाज़ार में बेचना शुरू किया। धीरे धीरे उनके काम को गति मिलती रही और उन्होंने इससे अच्छा लाभ कमाया।

फूलगोभी के गंभीर नुकसान का सामना करने के बाद, भविष्य में ऐसी स्थितियों से बचने के लिए सतवीर सिंह ने सब्जी की खेती बहुत ही बुद्धिमानी और योजना बनाकर की। पहले वे ग्राहक और मंडी की मांग को समझते हैं और उसके अनुसार वे सब्जी की खेती करते हैं। वे एक एकड़ में सब्जी की एक किस्म को उगाते हैं फिर मंडीकरण की समस्याओं का समाधान करते हैं। उन्होंने पी ए यू के समारोह में भी हिस्सा लिया जहां उनहें विभिन्नि खेतों को देखने का मौका मिला और नेट हाउस फार्मिंग के ढंग को सीखा और वर्तमान में वे अपनी सब्जियों को संरक्षित वातावरण देने के लिए इस ढंग का प्रयोग करते हैं। उन्होंने थोड़े समय पहले टुटुमा चप्पन कद्दू की खेती की और दिसंबर में सही समय पर बाज़ार में उपलब्ध करवाया था। इससे पहले इसी सब्जी का स्टॉक गुजरात से बाज़ार में पहुंचा था। इस तरह उन्होंने अपने सब्जी उत्पाद को बाज़ार में अच्छी कीमत पर बेच दिया। इसके इलावा, वे हर बार अपने उत्पाद को बेचने के लिए मंडी में स्वंय जाते हैं और किसी पर भी निर्भर नहीं होते।

सर्दियों में वे पूरे 7 एकड़ भूमि में सब्जियों की खेती करते हैं और गर्मियों में इसे कम करके 3.5 एकड़ में खेती करते हैं और बाकी की भूमि धान और गेहूं की खेती के लिए प्रयोग करते हैं। पूरे गांव में सिर्फ उनका ही खेत सब्जियों की खेती से ढका होता है और बाकी का क्षेत्र धान और गेहूं से ढका होता है। अपनी कुशल कृषि तकनीकों और मंडीकरण नीतियों के लिए, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से चार पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उनकी अनेक उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह है कि उन्होंने कद्दू की एक नई किस्म को विकसित किया है और उसका नाम अपने बेटे के नाम पर कबीर पंपकीन रखा है।

वर्तमान में वे अपने परिवार (माता, पिता, पत्नी, दो बेटों और बड़े भाई और उनकी पत्नी सिंगापुर में बस गए हैं) के साथ सधाना गांव में रह रहे हैं जो कि पंजाब के बठिंडा जिले में स्थित है। उनके पिता उनकी मुख्य प्रेरणा थे जिन्होंने खेती की शुरूआत की, लेकिन अब उनके पिता खेत में ज्यादा काम नहीं करते। वे सिर्फ घर पर रहते हैं और बच्चों के साथ समय बिताते हैं। आज उनके सफलतापूर्वक खेती अनुभव के पीछे उनके परिवार का समर्थन है और वे पूरा श्रेय अपने परिवार को देते हैं।

सतवीर सिंह अपने खेत का प्रबंधन केवल एक स्थायी कर्मचारी की मदद से करते हैं और कभी कभी महिला श्रमिकों को सब्जियां चुनने के लिए नियुक्त कर लेते हैं। सब्जियों की कीमत के आधार पर वे एक एकड़ ज़मीन से एक मौसम में 1-2 लाख कमाते हैं।

भविष्य कि योजना
भविष्य में वे जैविक खेती करने की योजना बना रहे हैं और वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए उन्होंने 3 दिन की ट्रेनिंग भी ली है। वे लोगों को जैविक और गैर कार्बनिक सब्जियों और खाद्य उत्पादों के बीच के अंतर से अवगत करवाना चाहते हैं। वे ये भी चाहते हैं कि सब्जियों को अन्य किराने के सामान जैसे पैकेट में भी आना चाहिए ताकि लोग समझ सकें कि वे कौन से खेत और कौन से ब्रांड की सब्जी खरीद रहे हैं।

किसानों को संदेश
“मैंने अपने ज्ञान में कमी होने के कारण शुरू में बहुत कठिनाइयों का सामना किया। लेकिन अन्य किसान जो कि सब्जियों की खेती करने में दिलचस्पी रखते हैं उन्होंने मेरी तरह गल्ती नहीं करनी चाहिए और सब्जियों की खेती शुरू करने से पहले किसी माहिर से सलाह लेनी चाहिए और सब्जियों की मंडी का विश्लेषण करना चाहिए। इसके इलावा, जिन किसानों के पास पर्याप्त संसाधन है उन्हें अपनी प्राथमिक जरूरतों को बाज़ार से खरीदने की बजाय स्वंय पूरा करना चाहिए।”

अमरजीत सिंह भट्ठल

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जानें एक रिटायर्ड फौजी के बारे में, जो एग्रीप्रेन्योर बन गए और एग्री बिज़नेस के क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं

आज कल बहुत कम लोग अपने भविष्य में खेतीबाड़ी के क्षेत्र में जाने के बारे में सोचते हैं। जिस दौर में हम रह रहे हैं, इसमें ज्यादातर लोग बड़े शहरों का हिस्सा बनना चाहते हैं और सेवा मुक्ति के बाद की ज़िंदगी को लोग आमतौर पर आसान और आरामदायक तरीके से जीना चाहते हैं, जिसमें उनके पास कोई काम ना होना, घर में खाली बैठना, अखबार पढ़ना, बच्चों के साथ समय बिताना और थोड़ी बहुत कसरत करना आदि शामिल हो। बहुत कम लोग होते हैं, जो कुदरत की चिंता करते हैं और अपनी जिम्मेदारियां निभाते हैं और अपने जीवन में उन्होंने मिट्टी से जो कुछ हासिल किया, उसे वापिस देने की कोशिश करते हैं।

स. अमरजीत सिंह भट्ठल एक रिटायर्ड फौजी हैं, जो कुदरत के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और इस जिम्मेदारी को उन्होंने अपना शौंक और आराम का तरीका बना लिया। वे आराम वाली ज़िंदगी को छोड़कर लुधियाना में स्थित अपने गांव में अपने पिता और पत्नी सहित रह रहे हैं और जट्ट सौदा के नाम से एक दुकान चला रहे हैं।

सड़क के साथ लगती और भी दुकानें और रिटेल स्टोर हैं, पर जट्ट सौदे में खास क्या है दुकान के पीछे स्वंय के खेत में उगाई जैविक सब्जियां, दालें, फल और मसाले आदि जट्ट सौदे को दूसरों से अलग और विलक्षण बनाते हैं। वास्तव में उनकी ऑन रोड फार्म मार्किट है, जहां पर आप सब कुछ ताजा और जैविक खरीद सकते हैं। इसके अलावा उनके पास एक छोटा पॉल्टरी फार्म भी है, जहां उनके पास लगभग 100 देसी मुर्गियां हैं। मुर्गियों की गिनती कम ज्यादा होती रहती है, पर देसी अंडों की मांग कभी भी नहीं घटती और स्टोर में पहुंचने के साथ-साथ ही सारे अंडे बिक जाते हैं।

उन्होंने विरासत मिशन से ट्रेनिंग लेने के बाद दिसंबर 2012 में जैविक खेती शुरू की। उस दिन से लेकर आज तक वे खेती का काम पूरी लगन से कर रहे हैं। वे सुबह से शाम तक का समय अपने फार्म स्टोर पर ही व्यतीत करते हैं, जहां उनके पिता भी उनका साथ देते हैं। ये पिता-पुत्र अपनी ज़मीन के छोटे से हिस्से को अपने पुत्र की तरह पालते हैं।

उन्होंने अपनी दुकान की दिखावट ग्रामीण तरीके से तैयार की है, जिसके एक ओर आप ताज़ी मौसमी सब्जियां डिस्पले पर लगी देख सकते हैं और छत से नीचे लटकती लहसुन की गांठे देख सकते हैं। दुकान के बीच में से एक रास्ता पीछे बने फार्म की तरफ जाता है, जहां आपको भिंडी, टमाटर, करेले, अरहर अलग अलग तरह के लैट्टस (सलाद पत्ता) की किस्में और अन्य बहुत तरह की सब्जियां मिलती हैं। उनके अनुसार फार्म देखने के लिए सबसे उचित समय जल्दी सुबह से शाम तक का होता है क्योंकि उस समय आप बहुत अच्छे कुदरत के रंगों को फार्म की खूबसूरती से मिलते देख सकते हैं। फार्म के एक कोने पर पोल्टरी फार्म बना है जहां आप किल्ली से बंधा कुत्ता देख सकते हैं। सब कुछ मिलाकर यह फार्म एक संपूर्ण फार्म का दीदार करवाता है। उनके पास खेती के कामों के लिए 2-3 मजदूर हैं।

अमरजीत सिंह जी ने पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से एम एस सी की डिग्री पूरी की और देश की सेवा करना उनके द्वारा चुना गया पेशा था। खेती से पहले, स. अमरजीत सिंह एक इमीग्रेशन कंपनी में सलाहकार के तौर पर भी काम करते थे, जहां वे बच्चों के साथ बात करके भविष्य की ज़िंदगी के लक्ष्यों और उद्देश्यों के बारे में चर्चा करते थे और उन्हें सलाह देते थे। इसके अलावा वे पंजाब के मुख्य मंत्री अमरिंदर सिंह जी के भी प्रसिद्ध सलाहकार रहे हैं। अपनी ज़िंदगी में इतने मशहूर पद हासिल करने के बाद भी आज वे किसी भी चीज़ का घमंड नहीं करते। वे सादा जीवन व्यतीत करने में यकीन रखते हैं और कुदरत की इज्ज़त भी करते हैं। वे जैविक खेती के द्वारा कुदरत को बचाने और समाज को तंदरूस्त भोजन देने की कोशिश कर रहे हैं। अमरजीत सिंह जी का एक छिपा हुआ गुण भी है। उनके कॉलेज के समय से ही वे साहित्य में रूचि रखते थे और उन्हें लियो टॉलस्टॉये को पढ़ने का बहुत शौंक था। वे बहुत बढ़िया लेखक भी हैं और अब भी जब खेती के कामों से समय मिलता है तो अपने विचारों और सोच को शब्दों में लिखते हैं।

उनसे बातचीत करने के बाद उन्होंने ग्राहकों की मांग बारे में चर्चा की और उनके अनुसार आज कल ग्राहकों की मांग स्वास्थ्य के हित में नहीं है। आधुनिक तकनीकों और नए तरीकों से खाना बचाकर आज आप गर्मियों में मटर और गाजर और सर्दियों में लौकी खा सकते हैं। जैसे कि हम सब जानते हैं कि सब्जियां मानवी पाचन क्रिया में मुख्य हिस्सा है और प्रत्येक मौसम हमें बहुत सारी ताजी उपज प्रदान करता है। इसलिए यदि आप अपने भोजन में अन्य जैविक, मौसमी फल और सब्जियों को शामिल करते हैं, तो यह और भी ज्यादा लाभदायक होगा, क्योंकि खुराक में मौसमी फल शामिल करने से आप अधिक तत्वों वाली सब्जियां, जो कि बिना किसी रसायनों से होती हैं, उनका अच्छा स्वाद ले सकते हैं। यह भोजन आपके शरीर के लिए भी मौसम के अनुसार सहायक होगा। उन्होंने यह भी कहा कि जिस दिन ग्राहकों को जैविक भोजन के फायदों के बारे में पता लगेगा, उस दिन से जैविक सब्जियों और फलों की मांग अपने आप बढ़ जायेगी और जागरूकता बढ़ाने के लिए किसानों और ग्राहकों में संपर्क होना बहुत जरूरी है।

वे स्वंय लोगों को जैविक खेती के बारे में जागरूक करने की कोशिश करते हैं और उन्होंने स्कूल के बच्चों को जैविक खेती और भोजन की महत्वत्ता पर प्रैज़ैनटेशन भी दी। इस समय वे जैविक खेती को जारी रखने और अन्य लोगों को जैविक खेती के फायदों से जागरूक करवाने की योजना बना रहे हैं।

भविष्य में उनकी योजनाएं इस प्रकार हैं:

• अपनी ऑन रोड मार्किट के ढांचे को अपग्रेड करना

• 2000 गज में नैट हाउस बनाना

• अपने फार्म में फसलों को संरक्षित वातावरण प्रदान करना

• सिंचाई का हाइब्रिड सिस्टम लगाना

• पानी की स्टोरेज बढ़ाना

अमरजीत सिंह भट्ठल जी के द्वारा दिया गया संदेश
“उन्होंने आज के किसानों को बड़ी समझदारी वाला संदेश दिया कि आप उत्पाद का मुल्य नियंत्रण नहीं कर सकते, क्योंकि वह सरकार पर निर्भर करता है, आपको वह करना चाहिए, जो आप कर सकते हैं। किसानों को लागत मुल्य पर नियंत्रण करना चाहिए और जैविक खेती करनी चाहिए, क्योंकि इससे ज्यादा खर्चा नहीं आता। एक समय आयेगा, जब लोगों को अहसास होगा कि पारंपरिक खेती उनकी मांगों को पूरा नहीं कर रही है। इसलिए अच्छा होगा, यदि हम समय की जरूरत को समझ लें और इसके अनुसार ही काम करें।”