विवेक उनियाल

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देश की सेवा करने के बाद धरती मां की सेवा कर रहा देश का जवान और किसान

हम सभी अपने घरों में चैन की नींद सोते हैं, क्योंकि हमें पता है कि देश की सरहद पर हमारी सुरक्षा के लिए फौज और जवान तैनात हैं, जो कि पूरी रात जागते हैं। जैसे देश के जवान देश की सुरक्षा के लिए अपने सीने पर गोली खाते हैं, उसी तरह किसान धरती का सीना चीरकर अनाज पैदा करके सब के पेट की भूख मिटाते हैं। इसीलिए हमेशा कहा जाता है — “जय जवान जय किसान”

हमारे देश का ऐसा ही नौजवान है जिसने पहले अपने देश की सेवा की और अब धरती मां की सेवा कर रहा है। नसीब वालों को ही देश की सेवा करने का मौका मिलता है। देहरादून के विवेक उनियाल जी ने फौज में भर्ती होकर पूरी ईमानदारी से देश और देशवासियों की सेवा की।

एक अरसे तक देश की सेवा करने के बाद फौज से सेवा मुक्त होकर विवेक जी ने धरती मां की सेवा करने का फैसला किया। विवेक जी के पारिवारिक मैंबर खेती करते थे। इसलिए उनकी रूचि खेती में भी थी। फौज से सेवा मुक्त होने के बाद उन्होंने उत्तराखंड पुलिस में 2 वर्ष नौकरी की और साथ साथ अपने खाली समय में भी खेती करते थे। फिर अचानक उनकी मुलाकात मशरूम फार्मिंग करने वाले एक किसान दीपक उपाध्याय से हुई, जो जैविक खेती भी करते हैं। दीपक जी से विवेक को मशरूम की किस्मों  ओइस्टर, मिल्की और बटन के बारे में पता लगा।

“दीपक जी ने मशरूम फार्मिंग शुरू करने में मेरा बहुत सहयोग दिया। मुझे जहां भी कोई दिक्कत आई वहां दीपक जी ने अपने तजुर्बे से हल बताया” — विवेक उनियाल

इसके बाद मशरूम फार्मिंग में उनकी दिलचस्पी पैदा हुई। जब इसके बारे में उन्होंने अपने परिवार में बात की तो उनकी बहन कुसुम ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। दोनों बहन — भाई ने पारिवारिक सदस्यों के साथ सलाह करके मशरूम की खेती करने के लिए सोलन, हिमाचल प्रदेश से ओइस्टर मशरूम का बीज खरीदा और एक कमरे में मशरूम उत्पादन शुरू किया।

मशरूम फार्मिंग शुरू करने के बाद उन्होंने अपने ज्ञान में वृद्धि और इस काम में महारत हासिल करने के लिए उन्होंने मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग भी ली। एक कमरे में शुरू किए मशरूम उत्पादन से उन्होंने काफी बढ़िया परिणाम मिले और बाज़ार में लोगों को यह मशरूम बहुत पसंद आए। इसके बाद उन्होंने एक कमरे से 4 कमरों में बड़े स्तर पर मशरूम उत्पादन शुरू कर दिया और ओइस्टर  के साथ साथ मिल्की बटन मशरूम उत्पादन भी शुरू कर दिया। इसके साथ ही विवेक ने मशरूम के लिए कंपोस्टिंग प्लांट भी लगाया है जिसका उद्घाटन उत्तराखंड के कृषि मंत्री ने किया।

मशरूम फार्मिंग के साथ ही विवेक जैविक खेती की तरफ भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। पिछले 2 वर्षों से वे जैविक खेती कर रहे हैं।

“जैसे हम अपनी मां की देखभाल और सेवा करते हैं, ठीक उसी तरह हमें धरती मां के प्रति अपने फर्ज़ को भी समझना चाहिए। किसानों को रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए ” — विवेक उनियाल

विवेक अन्य किसानों को जैविक खेती और मशरूम उत्पादन के लिए उत्साहित करने के लिए अलग अलग गांवों में जाते रहते हैं और अब तक वे किसानों के साथ मिलकर लगभग 45 मशरूम प्लांट लगा चुके हैं। उनके पास कृषि यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी  मशरूम उत्पादन के बारे में जानकारी लेने और किसान मशरूम उत्पादन प्लांट लगाने के लिए उनके पास सलाह लेने के लिए आते रहते हैं। विवेक भी उनकी मदद करके अपने आपको भाग्यशाली महसूस करते हैं।

“मशरूम उत्पादन एक ऐसा व्यवसाय है जिससे पूरे परिवार को रोज़गार मिलता है” — विवेक उनियाल

भविष्य की योजना
विवेक जी आने वाले समय में मशरूम से कई तरह के उत्पाद जैसे आचार, बिस्किट, पापड़ आदि तैयार करके इनकी मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश
“किसानों को अपनी आय को बढ़ाने के लिए खेती के साथ साथ कोई ना कोई सहायक व्यवसाय भी करना चाहिए। पर छोटे स्तर पर काम शुरू करना चाहिए ताकि इसके होने वाले फायदों और नुकसानों के बारे में पहले ही पता चल जाए और भविष्य में कोई मुश्किल ना आए।”

संदीप सिंह और राजप्रीत सिंह

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किसानों के लिए बन कर आये नई मिसाल, बकरी पालन के व्यवसाय को इंटरनेशनल स्तर पर लेकर जाने वाले दो दोस्तों की कहानी

बकरी पालन का व्यवसाय बहुत लाभकारी व्यवसाय है क्योंकि इसमें बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है, यदि बात करें पशु—पालन के व्यवसाय की, तो ज्यादातर पशु पालन डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय से संबंधित हैं। पर आज कल बकरी पालन का व्यवसाय, पशु पालन में सबसे सफल व्यवसाय माना जाता है और बहुत सारे नौजवान भी इस व्यवसाय में सफलता हासिल कर रहे हैं। यह कहानी है ऐसे ही दो नौजवानों की, जिन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बकरी पालन का व्यवसाय शुरू किया और सफलता हासिल करने के साथ साथ अन्य किसानों को भी इससे संबंधित ट्रेनिंग दे रहे हैं।

हरियाणा के जिला सिरसा के गांव तारूआणा के रहने वाले संदीप सिंह और राजप्रीत सिंह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद नौकरी करने की बजाय अपना कोई कारोबार करना चाहते थे। राजप्रीत ने एम.एस.सी. एग्रीकलचर की पढ़ाई की हुई थी, इसलिए राजप्रीत के सुझाव पर दोनों दोस्तों ने खेती या पशु पालन का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने पहले पॉलीहाउस लगाने के बारे में सोचा पर किसी कारण इसमें वे सफल नहीं हो पाए।

इसके बाद उन्होंने पशु पालन का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने पशु पालन के माहिरों से मुलाकात की, तो माहिरों ने उन्हें बकरी पालन का व्यवसाय अपनाने की सलाह दी।

माहिरों की सलाह से उन्होंने बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करने से पहले ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग लेने के लिए वे मथुरा गए और 15 दिनों की ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने तारूआणा गांव में 2 कनाल जगह में SR COMMERCIAL बकरी फार्म शुरू किया।

आज कल यह धारणा आम है कि यदि कोई व्यवसाय शुरू करना है तो बैंक से लोन लेकर आसानी से काम शुरू किया जा सकता है पर संदीप और राजप्रीत ने बिना किसी वित्तीय सहायता के अपने पारिवारिक सदस्यों की मदद से वर्ष 2017 में बकरी फार्म शुरू किया।

जैसे कहा ही जाता है कि किसी की सलाह से रास्ते तो मिल ही जाते हैं पर मंज़िल पाने के लिए मेहनत खुद ही करनी पड़ती है।

इसलिए इस व्यवसाय में सफलता हासिल करने के लिए उन दोनों ने भी मेहनत करनी शुरू कर दी। उन्होंने समझदारी से छोटे स्तर पर सिर्फ 10 बकरियों के साथ बकरी फार्म शुरू किया था, ये सभी बकरियां बीटल नस्ल की थी। इन बकरियों को वे पंजाब के लुधियाना,रायकोट,मोगा आदि की मंडियों से लेकर आए थे। धीरे धीरे उन्हें बकरी पालन में आने वाली मुश्किलों के बारे में पता लगा। फिर उन्होंने इन मुश्किलों का हल ढूंढना शुरू कर दिया।

बकरी पालकों को जो सबसे अधिक मुश्किल आती है, वह है बकरी की नस्ल की पहचान करने की। इसलिए हमेशा ही बकरियों की पहचान करने के लिए जानकारी लेनी चाहिए। — संदीप सिंह

अपने दृढ़ संकल्प और परिवारिक सदस्यों से मिले सहयोग के कारण उन्होंने बकरी पालन के व्यवसाय को लाभदायक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संदीप और राजप्रीत ने अपने फार्म में बकरियों की नस्ल सुधार पर काम करना शुरू कर दिया। अपने मेहनत के कारण, आज 2 वर्षों के अंदर अंदर ही उन्होंने फार्म में बकरियों की गिनती 10 से 150 तक पहुंच गई है।

बकरी पालन के व्यवसाय में कभी भी लेबर पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यदि इस व्यवसाय में सफलता हासिल करनी है तो हमें खुद ही मेहनत करनी पड़ती है। — राजप्रीत सिंह

बकरी पालन में आने वाली मुश्किलों को जानने के बाद उन्होंने अन्य बकरी पालकों की मदद करने के लिए बकरी पालन की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी ताकि बकरी पालकों को इस व्यवसाय से अधिक मुनाफा हो सके। संदीप और राजप्रीत अपने फार्म पर प्रैक्टीकल ट्रेनिंग देते हैं जिससे शिक्षार्थियों को अधिक जानकारी मिलती है और वे इन तकनीकों का प्रयोग करके बकरी पालन के व्यवसाय से लाभ कमा रहे हैं।

बकरी पालन की ट्रेनिंग देने के साथ साथ SR Commercial बकरी फार्म से पंजाब और हरियाणा ही नहीं, बल्कि अलग अलग राज्यों के बकरी पालक बकरियां लेने के लिए आते हैं।

भविष्य की योजना

आने वाले समय में संदीप और राजप्रीत अपना बकरी पालन ट्रेनिंग स्कूल शुरू करना चाहते हैं और बकरी पालन के व्यवसाय के साथ साथ खेती के क्षेत्र में भी आगे आना चाहते हैं। इसके अलावा वे बकरी की फीड के उत्पाद बनाकर इनकी मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश
“बकरी पालकों को छोटे स्तर से बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहिए यदि किसी को भी बकरी पालन में कोई समस्या आती है तो वे कभी भी हमारे फार्म पर आकर जानकारी और सलाह ले सकते हैं।”

बैजुलाल कुमार

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एक ऐसे नौजवान किसान की कहानी, जिसने अपने गांव के बाकी किसानों से किया कुछ अलग और कर दिया सभी को हैरान

पुराने समय में ज्यादातर किसानों की सोच यही थी कि सिर्फ वही खेती करनी चाहिए जो हमारे बुज़ुर्ग करते थे। पर आज—कल की नौजवान पीढ़ी खेती में भी कुछ नया करने की इच्छा रखती है, क्योंकि यदि एक नौजवान किसान अपनी सोच बदलेगा तो ही अन्य किसान कुछ नया करने के बारे में सोचेंगे।

यह कहानी भी एक ऐसे किसान की है जो अपने पिता के साथ रवायती खेती करने के अलावा कुछ अलग कर रहा है। बिहार के युवा किसान बैजुलाल कुमार जिनके पिता अपने 3—4 एकड़ ज़मीन पर गेहूं, धान आदि की खेती करते थे और डेयरी उद्देश्य के लिए उन्होंने 2 गायें और एक भैंस रखी हुई थी।

B.Sc. Physics की पढ़ाई के बाद बैजुलाल ने घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए अपने पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। पर बैजुलाल के मन में हमेशा कुछ अलग करने की इच्छा थी। इसलिए वे अपने खाली समय में यू—ट्यूब पर खेती से संबंधित वीडियो देखते रहते थे। एक दिन उन्होंने मशरूम फार्मिंग की वीडियो देखी और इसमें उनकी दिलचस्पी पैदा हुई।

मशरूम की खेती के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने इंटरनेट के ज़रिए मशरूम उत्पादकों से संपर्क किया, जिससे उन्हें मशरूम की खेती करने के लिए उत्साह मिला। पर इस काम के लिए कोई भी उनसे सहमत नहीं था, क्योंकि गांव में किसी ने भी मशरूम की खेती नहीं की थी। पर बेजूलाल ने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया था कि सभी को ज़रूर कुछ अलग करके दिखाएंगे।

मेरे मशरूम की खेती शुरू करने के फैसले को किसी ने भी स्वीकार नहीं किया। वे सब मुझे कह रहे थे कि जिस काम के बारे में समझ ना हो, वह काम नहीं करना चाहिए। — बैजुलाल कुमार

मशरूम की खेती शुरू करने के लिए वे PUSA यूनिवर्सिटी से 5 किलो स्पॉन लेकर आए। इसके लिए उन्होंने पराली को उबालना शुरू कर दिया। बैजुलाल को इस तरह करते देख गांव वालों ने उनका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया। पर उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और काम को और मेहनत एवं लग्न से करना शुरू कर दिया।

मेरे इस काम को देखकर सभी गांव वाले मुझे पागल बुलाने लग गए और इस काम को छोड़ने के लिए कहने लगे पर मैं गांव वालों से कुछ अलग करने के अपने फैसले पर अटल था। — बैजुलाल कुमार

मशरूम उगाने के लिए जो भी जानकारी उन्हें चाहिए होती थी वह या तो इंटरनेट पर देखते या फिर माहिरों की सलाह लेते। समय बीतने पर मशरूम तैयार हो गए और उनके रिश्तेदारों को इनका स्वाद बहुत अच्छा लगा। उन्होंने बैजुलाल को उसकी इस कामयाबी के लिए शाबाशी भी दी एवं और ज्यादा मेहनत करने के लिए कहा।

फिर बैजुलाल तैयार की मशरूम अपनी लोकल मार्केट में बेचने के लिए गए, जहां ग्राहकों को भी मशरूम बहुत पसंद आई तथा वे और मशरूम की मांग करने लगे। इससे उत्साहित होकर बैजुलाल ने बड़े स्तर पर मशरूम की खेती करनी शुरू कर दी। अब वे मिल्की और बटन मशरूम उगाते हैं और इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

सफल होने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष का परिणाम ही सफलता है। इसी तरह, बैजुलाल जी ने संघर्ष के बाद मिली सफलता के कारण, उन्होंने “चंपारण द मशरूम एक्सपर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी” शुरू की।

अब बैजुलाल इस काम में निपुण हो चुके हैं और वे अन्य किसान भाइयों और महिलाओं को मशरुम उत्पादन के साथ-साथ मशरुम की मार्केटिंग की ट्रेनिंग भी देते हैं। उनसे ट्रेनिंग लेने वाले किसानों को मशरूम की खेती शुरू करने के लिए 2 किलो स्पान, PPC बैग, फोर्मालिन, बेवास्टिन तथा स्प्रे मशीन भी देते है।

इसके इलावा मशरूम उत्पादकों के जो फ्रेश मशरूम नहीं बच जाते है, बैजुलाल उनको खरीदकर, उन्हें ड्राई कर के उनके उत्पाद तैयार करते है, जैसे कि सूप पाउडर, मशरूम आचार, मशरूम बिस्कुट, मशरूम पेड़ा इत्यादि।

जो गांव वाले मुझे पागल कहते थे, अब वे मेरे इस काम को देखकर मुझे शाबाशी देते हैं एवं और बढ़िया काम करने के लिए उत्साहित करते हैं। — बैजुलाल कुमार
भविष्य की योजना

बैजुलाल भविष्य में अपने एक किसान ग्रुप के द्वारा मशरूम से उत्पाद बनाकर, उन्हें बड़े स्तर पर बेचना चाहते हैं।

संदेश
“पराली को खेतों में जलाने से अच्छा है कि किसान पराली का इस्तेमाल मशरूम उत्पादन या फिर पशुओं के चारे के रूप में करें। इसके अलावा रवायती खेती के साथ साथ यदि कोई सहायक व्यवसाय शुरू किया जाए तो किसान इससे भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।”

जसकरन सिंह

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इस किसान ने साबित किया कि एक आम किसान भी कर सकता है कुछ विशेष, कुछ नया

भीड़ में चलने से कभी किसी की पहचान नहीं बनती, पहचान बनाने के लिए कुछ नया करना पड़ता है। जहां हर कोई एक दूसरे के पीछे लगकर काम कर रहा था, एक किसान ने लिया कुछ नया करने का फैसला। यह किसान स. बलदेव सिंह का पुत्र गांव कौणी तहसील गिदड़बाहा जिला मुक्तसर साहिब, पंजाब का रहने वाला है, जिसका नाम है — स. जसकरन सिंह।

स. बलदेव जी 27 एकड़ में रवायती खेती करते थे। पारिवारिक व्यवसाय, खेती होने के कारण बलदेव जी ने अपने पुत्र जसकरन को भी बहुत छोटी उम्र में ही खेतों में अपने साथ काम करवाना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया गया और पढ़ाई बीच में ही रह गई। 17—18 वर्ष की उम्र में जब खेतों में पैर रखा तो मिट्टी के साथ एक अलौकिक रिश्ता बन गया। शुरू से ही उनके पिता जी गेहूं—चने की रवायती खेती करते थे पर जसकरन सिंह जी के मन में कुछ और ही चल रहा था।

जब मैं बाहर देखता था कि रवायती खेती के अलावा खेती की जाती है, तो मेरा मन भी चाहता था कि कुछ अलग किया जाए कुछ नया किया जाए।— स. जसकरन सिंह

यही सोच मन में रखकर जसकरन जी ने स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फैसला किया। जसकरन जी के इस फैसले ने उनके पिता जी को बहुत निराश कर दिया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि एक ऐसी फसल लगानी जिसकी जानकारी ना हो एक बहुत बड़ा कदम था। पर उन्होंने अपने पिता जी को समझाकर अपने 2 दोस्तों के साथ मिलकर 8 एकड़ में स्ट्रॉबेरी का फार्म लगा लिया। मन में एक डर भी बना हुआ था कि जानकारी ना होने के कारण कहीं नुकसान ना हो जाए, पर एक विश्वास भी था कि मेहनत की हुई कभी व्यर्थ नहीं जाती। इसलिए खेती शुरू करने से पहले उन्होंने बागबानी से संबंधित ट्रेनिंग भी ली।

स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने में उन्हें ज्यादा कोई रूकावट नहीं आई। अपने दोस्तों से सलाह करके, उन्होंने पहले वर्ष दिल्ली से स्ट्रॉबेरी का बीज लिया। मजदूर ज्यादा लगने और मेहनत ज्यादा होने के कारण किसान यह खेती करना पसंद नहीं करते। पर थोड़े समय के बाद ही उनके दोस्तों को यह महसूस हुआ कि स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में कोई जानकारी ना होने के कारण उनके एक दोस्त ने इसके साथ ही अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए साथ ही और व्यापार करना शुरू कर दिया और दूसरा दोस्त जाने के प्रयास करने लग गया। पर जसकरन जी ने अपने मन में पक्का इरादा किया हुआ था कि कुछ भी हो जाए पर वे स्ट्रॉबेरी की खेती ज़रूर करेंगे।

बाहर की रंग—बिरंगी दुनिया नौजवानों को बहुत आकर्षित करती है, और नौजवान भी अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए बाहर को भाग रहे हैं। मैं चाहता था कि विदेश जाने की बजाए, यहां अपने देश में रहकर ही कुछ ऐसा किया जाए जिससे पंजाब और नई पीढ़ी की सोच में भी बदलाव आए और वे अपना भविष्य यहीं सुरक्षित कर सकें। — स. जसकरन सिंह

पहले वर्ष जसकरन जी को उम्मीद से ज्यादा फायदा हुआ। जिस कारण उन्होंने इस खेती की तरफ अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया। उसके बाद उन्होंने हिमाचल की एक किस्म भी लगायी और अब वे पूणे जिसे स्ट्रॉबेरी का हाथ कहा जाता है, वहां से बीज लाकर स्ट्रॉबेरी लगाते हैं। जसकरन जी बठिंडा,  मुक्तसर साहिब और मलोट की मंडी में स्ट्रॉबेरी बेचते हैं।

स्ट्रॉबेरी के साथ साथ जसकरन जी खरबूजा और खीरा भी उगाते हैं। अब उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करते हुए 4—5 वर्ष हो गए हैं और वे इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अपनी मेहनत से जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की नर्सरी लगा चुके हैं और इस नर्सरी में वे सब्जियां उगाते हैं।

हर वर्ष पानी का स्तर नीचे जा रहा है। इसलिए हमें तुपका सिंचाई का इस्तेमाल करना चाहिए। — जसकरन सिंह

भविष्य की योजना

भविष्य में जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की प्रोसेसिंग करके उससे उत्पाद तैयार करके मार्केटिंग करना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी इसके बारे में प्रेरित करना चाहते हैं।

संदेश
“मैं यही कहना चाहता हूं कि किसानों के खर्चे बढ़ रहे हैं पर गेहूं धान के मूल्य में कुछ ज्यादा फर्क नहीं आ रहा, इसलिए किसान भाइयों को रवायती खेती के साथ साथ कुछ अलग करना पड़ेगा। आज के समय में हमें पंजाब में फसली—विभिन्नता लाने की जरूरत है।”

मनदीप वर्मा

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जानिए कैसे यह किसान बंजर भूमि पर खेती कर कमा रहा है लाखों रुपए

एक किसान के लिए उसकी भूमि ही सब कुछ होती है। फसल की पैदावार भूमि के उपजाऊपन पर ही निर्भर करती है, पर यदि भूमि ही बंजर हो तो किसान की उम्मीदें हो टूट जाती है। पर हिमाचल का एक ऐसा किसान है जो बंजर भूमि पर खेती कर आज लाखों रूपये कमा रहा है।

एम.बी.ए. की पढ़ाई करने वाले मनदीप वर्मा ने मैनेजर के रूप में विपरो कंपनी में 4-5 साल नौकरी की। पर इस नौकरी से उनको संतुष्टि नहीं मिली और फिर उन्होंने अपनी पत्नी के साथ अपने शहर सोलन आने का फैसला किया। उन्होंने ने सोलन वापिस आकर बंजर भूमि पर खेती करने के बारे में सोचा। पर वह सभी किसानों की तरह पारंपरिक खेती नहीं करना चाहते थे। उन्होंने सबसे अलग करने का फैसला किया और बागवानी करने के विचार बनाया।

अपने इस विचार को हकीकत (वास्तविकता) का रूप देने के लिए उन्होंने ने पहले अपने इलाके के मौसम के बारे में जानकारी हासिल की और यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों से मिलकर सभी जानकारी हासिल की और अंत में उन्होंने कीवी की खेती करने का फैसला किया।

कीवी के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए मैं पुस्तकालय (लाइब्रेरी) में गया, बहुत सी किताबें पड़ी और यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों से भी मिले और सभी जानकारी हासिल करने के बाद कीवी की खेती शुरू की- मनदीप वर्मा

सोलन के बागवानी विभाग और डॉ.यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से बात करने के बाद 2014 में कीवी का बाग तैयार करने का मन बनाया। उन्होंने ने 14 बीघा भूमि पर कीवी का बगीचा बनाया।

उन्होंने ने इस बगीचे में कीवी की उन्नत किस्में एलिसन और हैबर्ड के पौधे लगाए। लगभग 14 लाख रूपये में बगीचा तैयार करने के बाद 2017 में मनदीप सिंह जी ने कीवी बेचने के लिए वेबसाइट बनाई।

बाग से फल सीधा ग्राहक तक पहुँचाने की मेरी यह कोशिश सफल रही। – मनदीप वर्मा

कीवी की सप्लाई वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग के बाद की जाती है। हैदराबाद, बंगलौर, दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में ऑनलाइन कीवी फल बेचा जाता है।

कीवी के डिब्बे के ऊपर फल की कब तोड़ाई की, कब डिब्बे में पैक किया सभी जानकारी डिब्बे के ऊपर दी जाती है। एक डिब्बे में एक किलो कीवी फल पैक किया जाता है और इसकी कीमत 350 रूपये प्रति/बॉक्स है। जबकि सोलन में कीवी 150 रूपये प्रति किलोग्राम बेचा जाता है।

मनदीप मुताबिक देश में कीवी की खेती की शुरुआत हिमाचल प्रदेश से ही हुई। आज देश का कुल 60 प्रतिशत कीवी उत्पादन अरुणाचल प्रदेश में तैयार होता है।

मनदीप कीवी फल पूरी तरह जैविक तरीके से तैयार करते हैं। जैविक खेती के उद्देश्य को अपनाते हुए वह कंपोस्ट और जैविक अमृत भी आप तैयार करते हैं।

हमारे फार्म में तैयार हुए कीवी डेढ़-दो महीने तक खराब नहीं होता- मनदीप वर्मा

कीवी की खेती में सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने 2018 में सेब की खेती शुरू की। मनदीप जीरो बजट खेती में विश्वास रखते हैं।

उपलब्धियां

कीवी की खेती में सफलता हासिल करने के कारण उन्हें 2019 में कृषि मेला हिमाचल प्रदेश में प्रगतिशील किसान पुरस्कार दिया गया।

भविष्य की योजना

इस समय मनदीप वर्मा की दो नर्सरी है और वे ऐसी और नर्सरी तैयार करना चाहते हैं।

संदेश
“किसी भी तरह की खेती करने से पहले उस जगह के मौसम संबंधी जानकारी हासिल करनी चाहिए। आज-कल सोशल मीडिया पर सभी जानकारी उपलब्ध है। हमें सोशल मीडिया का उपयोग सहज तरीके से करना चाहिए। हमे जैविक खेती और जीरो बजट खेती साथ में करनी चाहिए, क्योंकि इसमें ज़्यादा मुनाफा है।”

रिषभ सिंगला

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हरियाणा का 23 साल का नौजवान बन रहा है दूसरे नौजवानों के लिए मिसाल

बेरोज़गारी के इस दौर में एक तरफ जहाँ हमारी युवा पीढ़ी नशों की तरफ जा रही है या विदेशों में रहने के बारे में सोच रही है, वहां ही दूसरी तरफ हरियाणा का 23 साल का नौजवान कुछ अनोखा करके बाकि लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन रहे है। जी हां हरियाणा के रिषभ सिंगला, जो कि अपनी BBA पढ़ाई पूरी कर चुके हैं, अपनी ज़िन्दगी में कुछ अलग करने की इच्छा रखते थे। आज-कल बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग सभी ही चॉकलेट के शौक़ीन हैं। इसलिए रिशभ चॉकलेट बनाने के बारे में सोचने लगे। रिशभ को पढ़ाई करते हुए ही पता चला कि कोको प्लांट्स की आर्गेनिक खेती कर्नाटक में होती है, पर उन्हें इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, क्योंकि रिशभ के पिता धूप-अगरबत्ती की ट्रेडिंग का व्यापार करते हैं। इसके लिए कोको प्लांट्स के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने के लिए COORG (कर्नाटक) गए। उन्होंने जानकारी हासिल करने के बाद चॉकलेट तैयार करने का इरादा बनाया।

फरवरी 2018 में पहली बार कर्नाटक के किसानों से आर्गेनिक कोको बीन्स लेकर रिशभ ने घर पर ही मिक्सर ग्राइंडर के साथ कोको बीन्स पीसकर चॉकलेट तैयार की। हालाँकि पहले उनको इस काम में कठिनाई आई पर उन्होंने हार नहीं मानी। रिशभ ने अन्य कई किस्मों की चॉकलेट तैयार की और उनको इस काम में सफलता भी मिली। इस तरह उनके द्वारा घर में चॉकलेट तैयार करने का सिलसिला शुरू हो गया। पहले उनके परिवार के सदस्य ही इस काम में उनकी मदद करते थे, पर काम ज़्यादा होने के कारण उन्होंने 8 घरेलू महिलाओं को अपने काम में शामिल कर लिया और उनको रोज़गार उपलब्ध करवाया।

“मेरे अनुसार, भले ही इस व्यवसाय में मुनाफा कम हो लेकिन चॉकलेट की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि आज कल के दौर में मिलावटी चीजें बहुत बेची जाती हैं, जो लोगों के स्वस्थ के लिए हानिकारक होती हैं।” – रिशभ सिंगला

अपनी सोच के अनुसार ही रिशभ केवल आर्गेनिक तौर पर कोको बीन्स ही खरीदते हैं और इनसे ही चॉकलेट तैयार करते हैं। अब रिशभ बंगाल में तैयार किये आर्गेनिक कोको बीन्स ही चॉकलेट तैयार करने के लिए खरीदते हैं।

कोको बीन्स के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने और उनसे चॉकलेट तैयार करने के बाद रिशभ अब चॉकलेट की पैकिंग भी स्वयं करते हैं। रिशभ चॉकलेट की पैकिंग इतने आकर्षक तरीके से करते हैं कि चॉकलेट की पैकिंग देखकर ही उसकी गुणवत्ता का अंदाज़ा लग जाता है। वह चॉकलेट की पैकिंग इस तरीके से करते हैं कि जो भी उसे देखता है चॉकलेट खाने के बिना नहीं रह सकता।

नौजवान होने के कारण रिशभ सब की ज़िंदगी में सोशल मीडिया के महत्व को अच्छी तरह से समझते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया को सार्थक रूप में उपयोग करते हुए अपने ब्रांड “शियाम जी चॉकलेट” की मार्केटिंग ऑनलाइन करनी शुरू की। इससे उनके व्यवसाय को एक नई दिशा मिली।

“जो काम हाथों से अच्छी तरह और सफाई से हो सकता है, वह काम मशीनों से नहीं किया जा सकता। पर मशीनें काम को बहुत आसान बना देती हैं।” –  रिशभ सिंगला

शियाम जी चॉकलेट द्वारा तैयार किये गए उत्पाद:-

  • 85% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार
  • 75% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार
  • 55% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार
  • 19% आर्गेनिक डार्क चॉकलेट बार इन डिफरेंट फ्लेवर्स
  • सी साल्ट आर्गेनिक चॉकलेट बार

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  • फेस्टिव सेलिब्रेशन एसोरटिड असॉर्टेड 15 पीस चॉकलेट बॉक्स

भविष्य की योजना:

रिशभ अब भी घर में ही चॉकलेट तैयार करते हैं, पर वह भविष्य में अपनी चॉकलेट की फैक्टरी लगाना चाहते हैं, जिसमें वह प्रोसेसिंग के लिए नई मशीनें और तकनीक इस्तेमाल करेंगे।

भले ही रिशभ को इस काम को शुरू किये हुए अभी एक साल का समय हुआ है, पर वह आगे भी इस क्षेत्र में अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं और चॉकलेट की गुणवत्ता को बढ़ाना चाहते हैं।

संदेश
“रिशभ सिंगला आर्गेनिक उत्पाद तैयार करते हैं और वह दूसरे नौजवानों को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि वह आर्गेनिक तौर पर तैयार किये गए उत्पादों का प्रयोग करें और बिमारियों से दूर रहें, क्योकि स्वास्थ्य सबसे ज़रूरी है।”

शमशेर सिंह संधु

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जानिये क्या होता है जब नर्सरी तैयार करने का उद्यम कृषि के क्षेत्र में अच्छा लाभ देता है

जब कृषि की बात आती है तो किसान को भेड़ चाल नहीं चलना चाहिए और वह काम करना चाहिए जो वास्तव में उन्हें अपने बिस्तर से उठकर, खेतों जाने के लिए प्रेरित करता है, फिर चाहे वह सब्जियों की खेती हो, पोल्टरी, सुअर पालन, फूलों की खेती, फूड प्रोसेसिंग या उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना हो। क्योंकि इस तरह एक किसान कृषि में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है।

जाटों की धरती—हरियाणा से एक ऐसे प्रगतिशील किसान शमशेर सिंह संधु ने अपने विचारों और सपनों को पूरा करने के लिए कृषि के क्षेत्र में अपने रास्तों को श्रेष्ठ बनाया। अन्य किसानों के विपरीत, श्री संधु मुख्यत: बीज की तैयारी करते हैं जो उन्हें रासायनिक खेती तकनीकों की तुलना में अच्छा मुनाफा दे रहा है।

कृषि के क्षेत्र में अपने पिता की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, शमशेर सिंह ने 1979 में अपनी पढ़ाई (बैचलर ऑफ आर्ट्स) पूरी करने के बाद खेती को अपनाने का फैसला किया और अगले वर्ष उन्होंने शादी भी कर ली। लेकिन गेहूं, धान और अन्य रवायती फसलों की खेती करने वाले अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना उनके लिए मुश्किल था और वे अभी भी अपने पेशे को लेकर उलझन में थे।

हालांकि, कृषि क्षेत्र इतने सारे क्षेत्र और अवसरों के साथ एक विस्तृत क्षेत्र है, इसलिए 1985 में उन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के युवा किसान ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में पता चला, यह प्रोग्राम 3 महीने का था जिसके अंतर्गत डेयरी जैसे 12 विषय थे जैसे डेयरी, बागबानी, पोल्टरी और कई अन्य विषय। उन्होंने इसमें भाग लिया। ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उन्होंने बीज तैयार करने शुरू किए और बिना सब्जी मंडी या कोई अन्य दुकान खोले बिना उन्होंने घर पर बैठकर ही बीज तैयार करने के व्यवसाय से अच्छी कमाई की।

कृषि गतिविधियों के अलावा, शमशेर सिंह सुधु एक सामाजिक पहल में भी शामिल हैं जिसके माध्यम से वे ज़रूरतमंदों को कपड़े दान करके उनकी मदद करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से अवांछित कपड़े इक्ट्ठे करने और अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करने के लिए किसानों का एक समूह बनाया है।

बीज की तैयारी के लिए, शमशेर सिंह संधु पहले स्वंय यूनिवर्सिटी से बीज खरीदते, उनकी खेती करते, पूरी तरह पकने की अवस्था पर पहुंच कर इसकी कटाई करते और बाद में दूसरे किसानों को बेचने से पहले अर्ध जैविक तरीके से इसका उपचार करते। इस तरीके से वे इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं उनका उद्यम इतना सफल है कि उन्हें 2015 और 2018 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और फैलो फार्मर अवार्ड के साथ आई.ए.आर.आई ने उत्कृष्ट प्रयासों के लिए दो बार सम्मानित किया है।

वर्तमान में शमशेर सिंह संधु बीज की तैयारी के साथ, ग्वार, गेहूं, जौ, कपास और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इससे अच्छे लाभ कमा रहे हैं। भविष्य में वे अपने संधु बीज फार्म के काम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि अन्य पड़ोसी राज्यों में भी बीज की आपूर्ति कर सकें।

संदेश
किसानों को अन्य बीज आपूर्तिकर्ताओं के बीज भी इस्तेमाल करके देखने चाहिए ताकि वे अच्छे सप्लायर और बुरे के बीच का अंतर जान सकें और सर्वोत्तम का चयन कर फसलों की बेहतर उपज ले सकें।

इंदर सिंह

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जानिये कैसे आलू और पुदीने की खेती से इस किसान को कृषि के क्षेत्र में सफलता के साथ आगे बढ़ने में मदद मिल रही है

पंजाब के जालंधर शहर के 67 वर्षीय इंदर सिंह एक ऐसे किसान है जिन्होंने आलू और पुदीने की खेती को अपनाकर अपना कृषि व्यवसाय शुरू किया।

19 वर्ष की कम उम्र में, इंदर सिंह ने खेती में अपना कदम रखा और तब से वे खेती कर रहे हैं। 8वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ने के बाद, उन्होंने आलू, गेहूं और धान उगाने का फैसला किया। लेकिन गेहूं और धान की खेती वर्षों से करने के बाद भी लाभ ज्यादा नहीं मिला।

इसलिए समय के साथ लाभ में वृद्धि के लिए वे रवायती फसलों से जुड़े रहने की बजाय लाभपूर्ण फसलों की खेती करने लगे। एक अमेरिकी कंपनी—इंडोमिट की सिफारिश पर, उन्होंने आलू की खेती करने के साथ तेल निष्कर्षण के लिए पुदीना उगाना शुरू कर दिया।

“1980 में, इंडोमिट कंपनी (अमेरिकी) के कुछ श्रमिकों ने हमारे गांव का दौरा किया और मुझे तेल निकालने के लिए पुदीना उगाने की सलाह दी।”

1986 में, जब इंडोमिट कंपनी के प्रमुख ने भारत का दौरा किया, वे इंदर सिंह द्वारा पुदीने का उत्पादन देखकर बहुत खुश हुए। इंदर सिंह ने एक एकड़ की फसल से लगभग 71 लाख टन पुदीने का तेल निकालने में दूसरा स्थान हासिल किया और वे प्रमाणपत्र और नकद पुरस्कार से सम्मानित हुए। इससे श्री इंदर सिंह के प्रयासों को बढ़ावा मिला और उन्होंने 13 एकड़ में पुदीने की खेती का विस्तार किया।

पुदीने के साथ, वे अभी भी आलू की खेती करते हैं। दो बुद्धिमान व्यक्तियों डॉ. परमजीत सिंह और डॉ. मिन्हस की सिफारिश पर उन्होंने विभिन्न तरीकों से आलू के बीज तैयार करना शुरू कर दिया है। उनके द्वारा तैयार किए गए बीज, गुणवत्ता में इतने अच्छे थे कि ये गुजरात, बंगाल, इंदौर और भारत के कई अन्य शहरों में बेचे जाते हैं।

“डॉ. परमजीत ने मुझे आलू के बीज तैयार करने का सुझाव दिया जब वे पूरी तरह से पक जाये और इस तकनीक से मुझे बहुत मदद मिली।”

2016 में इंदर सिंह को आलू के बीज की तैयारी के लिए पंजाब सरकार से लाइसेंस प्राप्त हुआ।

वर्तमान में इंदर सिंह पुदीना (पिपरमिंट और कोसी किस्म), आलू (सरकारी किस्में: ज्योती, पुखराज, प्राइवेट किस्म:1533 ), मक्की, तरबूज और धान की खेती करते हैं। अपने लगातार वर्षों से कमाये पैसों को उन्होंने मशीनरी और सर्वोत्तम कृषि तकनीकों में निवेश किया। आज, इंदर सिंह के पास उनकी फार्म पर सभी आधुनिक कृषि उपकरण हैं और इसके लिए वे सारा श्रेय पुदीने और आलू की खेती को अपनाने को देते हैं।

इंदर सिंह को अपने सभी उत्पादों के लिए अच्छी कीमत मिल रही है क्योंकि मंडीकरण में कोई समस्या नहीं है क्योंकि तरबूज फार्म पर बेचा जाता है और पुदीने को तेल निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है जो उन्हें 500 प्रति लीटर औसतन रिटर्न देता है। उनके तैयार किए आलू के बीज भारत के विभिन्न शहरों में बेचे जाते हैं।

कृषि के क्षेत्र में उनके जबरदस्त प्रयासों के लिए, उन्हें 1 फरवरी 2018 को पंजाब कृषि विश्वद्यिालय द्वारा सम्मानित किया गया है।

भविष्य की योजना
भविष्य में इंदर सिंह आलू के चिप्स का अपना प्रोसेसिंग प्लांट खोलने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
“खादों, कीटनाशकों और अन्य कृषि इनपुट के बढ़ते रेट की वजह से कृषि दिन प्रतिदिन महंगी हो रही है इसलिए किसान को सर्वोत्तम उपज लेने के लिए स्थायी कृषि तकनीकों और तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।”

प्रतीक बजाज

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बरेली के नौजवान ने सिर्फ देश की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने और किसानों को दोहरी आमदन कमाने में मदद करने के लिए सी ए की पढ़ाई छोड़कर वर्मीकंपोस्टिंग को चुना

प्रतीक बजाज, अपने प्रयासों के योगदान द्वारा अपनी मातृभूमि को पोषित करने और देश की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने में कृषि समाज के लिए एक उज्जवल उदाहरण है। दृष्टि और आविष्कार के अपने सुंदर क्षेत्र के साथ, आज वे देश की कचरा प्रबंधन समस्याओं को बड़े प्रयासों के साथ हल कर रहे हैं और किसानों को भी वर्मीकंपोस्टिंग तकनीक को अपनाने और अपने खेती को हानिकारक सौदे की बजाय एक लाभदायक उद्यम बनाने में मदद कर रहे हैं।

भारत के प्रसिद्ध शहरों में से एक — बरेली शहर, और एक बिज़नेस क्लास परिवार से आते हुए, प्रतीक बजाज हमेशा सी.ए. बनने का सपना देखते थे ताकि बाद में वे अपने पिता के रियल एस्टेट कारोबार को जारी रख सकें। लेकिन 19 वर्ष की छोटी उम्र में, इस लड़के ने रातों रात अपना मन बदल लिया और वर्मीकंपोस्टिंग का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया।

वर्मीकंपोस्टिंग का विचार प्रतीक बजाज के दिमाग में 2015 में आया जब एक दिन उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, आई.वी.आर.आई, इज्ज़तनगर में अपने बड़े भाई के साथ डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग में भाग लिया जिन्होंने हाल ही में डेयरी फार्मिंग शुरू की थी। उस समय, प्रतीक बजाज ने पहले से ही अपनी सी.पी.टी की परीक्षा पास की थी और सी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे और अपनी महत्वाकांक्षी भावना के साथ वे सी.ए. भी पास कर सकते थे लेकिन एक बार ट्रेनिंग में भाग लेने के बाद, उन्हें वर्मीकंपोस्टिंग और बायोवेस्ट की मूल बातों के बारे में पता चला। उन्हें वर्मीकंपोस्टिंग का विचार इतना दिलचस्प लगा कि उन्होंने अपने करियर लक्ष्यों को छोड़कर जैव कचरा प्रबंधन को अपनी भविष्य की योजना के रूप में अपनाने का फैसला किया।

“मैंने सोचा कि क्यों हम अपने भाई के डेयरी फार्म से प्राप्त पूरे गाय के गोबर और मूत्र को छोड़ देते हैं जबकि हम इसका बेहतर तरीके से उपयोग कर सकते हैं — प्रतीक बजाज ने कहा 

उन्होंने आई.वी.आर.आई से अपनी ट्रेनिंग पूरी की और वहां मौजूद शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों से कंपोस्टिंग की उन्नत विधि सीखी और सफल वर्मीकंपोस्टिंग के लिए आवश्यक सभी जानकारी प्राप्त की।

लगभग, छ: महीने बाद, प्रतीक ने अपने परिवार के साथ अपनी योजना सांझा की,यह पहले से ही समझने योग्य था कि उस समय उनके पिता सी.ए. छोड़ने के प्रतीक के फैसले को अस्वीकार कर देंगे। लेकिन जब पहली बार प्रतीक ने वर्मीकंपोस्ट तैयार किया और इसे बाजार में बेचा तो उनके पिता ने अपने बेटे के फैसले को खुले दिल से स्वीकार कर लिया और उनके काम की सराहना की।

मेरे लिए सी ए बनना कुछ मुश्किल नहीं था, मैं घंटों तक पढ़ाई कर सकता था और सभी परीक्षाएं पास कर सकता था, लेकिन मैं वही कर रहा हूं जो मुझे पसंद है बेशक कंपोस्टिंग प्लांट में काम करते 24 घंटे लग जाते हैं लेकिन इससे मुझे खुशी महसूस होती है। इसके अलावा, मुझे किसी भी काम के बीज किसी भी अंतराल की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि मेरा जुनून ही मेरा करियर है और यह मेरे काम को अधिक मज़ेदार बनाता है — प्रतीक बजाज ने कहा।

जब प्रतीक का परिवार उसकी भविष्य की योजना से सहमत हो गया तो प्रतीक ने नज़दीक के पर्धोली गांव में सात बीघा कृषि भूमि में निवेश किया और उसी वर्ष 2015 में वर्मीकंपोस्टिंग शुरू की और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

वर्मीकंपोस्टिंग की नई यूनिट खोलने के दौरान प्रतीक ने फैसला किया कि इसके माध्यम से वे देश के कचरा प्रबंधन समस्याओं से निपटेंगे और किसान की कृषि गतिविधियों को पर्यावरण अनुकूल और आर्थिक तरीके से प्रबंधित करने में भी मदद करेंगे।

अपनी कंपोस्ट को और समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने एक अलग तरीके से समाज के कचरे का विभिन्न तकनीकों के साथ उपयोग किया। उन्होंने मंदिर से फूल, सब्जियों का कचरा, चीनी का अवशिष्ट पदार्थ इस्तेमाल किया और उन्होंने वर्मीकंपोस्ट में नीम के पत्तों को शामिल किया, जिसमें एंटीबायोटिक गुण भरपूर होते हैं।

खैर, इस उद्यम को एक पूर्ण लाभप्रद परियोजना में बदल दिया गया, प्रतीक ने गांव में कुछ और ज़मीन खरीदकर वहां जैविक खेती भी शुरू की। और अपनी वर्मीकंपोस्टिंग और जैविक खेती तकनीकों से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यदि गाय मूत्र और नीम के पत्तों का एक निश्चित मात्रा में उपयोग किया जाये तो मिट्टी को कम खाद की आवश्यकता होती है। दूसरी तरफ यह फसल की उपज को भी प्रभावित नहीं करती। कंपोस्ट में नीम की पत्तियों को शामिल करने से फसल पर कीटों का कम हमला होता है और इससे फसल की उपज बेहतर होती है और मिट्टी अधिक उपजाऊ बनती है।


अपने वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट में, प्रतीक दो प्रकार के कीटों का उपयोग करते हैं जय गोपाल और एसेनिया फोएटाइडा, जिसमें से जय गोपाल आई.वी.आर.आई द्वारा प्रदान किया जाता है और यह कंपोस्टिंग विधि को और बेहतर बनाने में बहुत अच्छा है।

अपनी रचनात्मक भावना से प्रतीक ज्ञान को प्रसारित करने में विश्वास करते हैं और इसलिए वे किसान को मुफ्त वर्मीकंपोस्टिंग की ट्रेनिंग देते हैं जिसमें से वे छोटे स्तर से खाद बनाने के एक छोटे मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते हैं। शुरूआत में, उनसे छ: किसानों ने संपर्क किया और उनकी तकनीक को अपनाया लेकिन आज लगभग 42 किसान है जो इससे लाभ ले रहे हैं। और सभी किसानों ने प्रतीक की प्रगति को देखकर इस तकनीक को अपनाया है।

प्रतीक किसानों को यह दावे से कहते हैं कि वर्मीकंपोस्टिंग और जैविक खेती में निवेश करके एक किसान अधिक आर्थिक रूप से अपनी ज़मीन को उपजाऊ बना सकता है और खेती के जहरीले तरीकों की तुलना में बेहतर उपज भी ले सकता है। और जब बात मार्किटिंग की आती है जो जैविक उत्पादों का हमेशा बाजार में बेहतर मूल्य होता है।

उन्होंने खुद रासायनिक रूप से उगाए गेहूं की तुलना में बाजार में जैविक गेहूं बेचने का अनुभव सांझा किया। अंतत: जैविक खेती और वर्मीकंपोस्टिंग को अपनाना किसानों के लिए एक लाभदायक सौदा है।


प्रतीक ने अपना अनुभव बताते हुए हमारे साथ ज्ञान का एक छोटा सा अंश भी सांझा किया — वर्मीकंपोस्टिंग में गाय का गोबर उपयोग करने से पहले दो मुख्य चीज़ों का ध्यान रखना पड़ता है —गाय का गोबर 15—20 दिन पुराना होना चाहिए और पूरी तरह से सूखा होना चाहिए।

वर्तमान में, 22 वर्षीय प्रतीक बजाज सफलतापूर्वक अपना सहयोगी बायोटेक प्लांट चला रहे हैं और नोएडा, गाजियाबाद, बरेली और उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखंड के कई अन्य शहरों में ब्रांड नाम येलो खाद के तहत कंपोस्ट बेच रहे हैं। प्रतीक अपने उत्पाद को बेचने के लिए कई अन्य तरीकों को भी अपनाते हैं।

मिट्टी को साफ करने और इसे अधिक उपजाऊ बनाने के दृढ़ संकल्प के साथ, प्रतीक हमेशा कंपोस्ट में विभिन्न बैक्टीरिया और इनपुट घटकों के साथ प्रयोग करते रहते हैं। प्रतीक इस पौष्टिक नौकरी का हिस्सा होने का विशेषाधिकार प्राप्त और आनंदित महसूस करते हैं जिसके माध्यम से वे ना केवल किसानों की मदद कर रहे हैं बल्कि धरती को भी बेहतर स्थान बना रहे हैं।

प्रतीक अपना योगदान दे रहे हैं। लेकिन क्या आप अपना योगदान कर रहे हैं? प्रतीक बजाज जैसे प्रगतिशील किसानों की और प्रेरणादायक कहानियां पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर पर जाकर अपनी खेती एप डाउनलोड करें।

संतवीर सिंह बाजवा

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जानिये कैसे एक वकील पॉलीहाउस में फूलों की खेती करके कृषि को एक सफल उद्यम बना रहा है

आपके पास केवल ज़मीन का होना भारी कर्ज़े और रासायनिक खेती के दुष्चक्र से बचने का एकमात्र साधन नहीं है क्योंकि यह दिन प्रतिदिन किसानों को अपाहिज बना रहा है। किसान को एक ऐसा व्यक्ति माना जाता है जिसे भविष्य के परिणामों को ध्यान में रखकर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और यदि भविष्य के परिणामों में से कोई भी विफल रहता है तो किसान को अन्य विकल्पों के साथ तैयार भी रहना पड़ता है। और केवल वे किसान जो आधुनिक तकनीकों, आदर्श मंडीकरण रणनीतियों और निश्चित रूप से कड़ी मेहनत की मदद से अपने आप को टूटने नहीं देते और खेती के सही तरीके को समझते हैं, सिर्फ उनकी अगली पीढ़ी ही इस पेशे को खुशी से अपनाती है।
यह कहानी है होशियारपुर स्थित वकील संतवीर सिंह बाजवा की जो बागबानी के क्षेत्र में अपने पिता जतिंदर सिंह लल्ली बाजवा की सफलता को देखने के बाद सफल युवा किसान बने। अपने पिता के समान उन्होंने पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने का फैसला किया और इस उद्यम को सफल भी बनाया।

संतवीर सिंह बाजवा अपने विचार साझा करते हुए — वर्तमान में अगर हम आज के युवाओं को देखे तो हमें एक स्पष्ट चीज़ का पता चल सकता है कि या तो आजकल के नौजवान विदेश जा रहे हैं या फिर वे खेती के अलावा कोई और पेशे का चयन कर रहे हैं और इसके पीछे का मुख्य कारण कृषि में कोई निश्चित आय ना होना है, और तो और इसमें नुकसान का डर भी रहता है। इसके अलावा मौसम और सरकारी योजना भी किसान को ढंग से सहारा नहीं दे पाता।

अपने पिता के समान कौशल जिन्होंने विवधीकरण को सफलतापूर्वक अपनाया और महलांवाली गांव में एक सुंदर फलों के बाग की स्थापना की , संतवीर सिंह ने भी अपना फूलों की खेती के पॉलीहाउस की स्थापना की जहां पर उन्होंने जरबेरा की खेती शुरू की। सजावटी फूलों के बाजार की मांग के बारे में अवगत होने के कारण, संतवीर ने गुलाब ओर कारनेशन की खेती भी शुरू कर दी जिससे उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त हुआ।

पॉलीहाउस में खेती करने के अपने अनुभव से, मैं अन्य किसानों के साथ एक महत्तवपूर्ण जानकारी साझा करना चाहता हूं कि पॉलीहाउस में काश्त की फसलों और उचित कृषि तकनीकों की देखभाल करने की आवश्यकता होती है, केवल तभी आप अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से फूलों के विशेषज्ञयों और प्रगतिशील किसानों से परामर्श करता हूं और अपना सर्वश्रेष्ठ कोशिश देन के लिए इंटरनेट से भी मदद लेता हूं। — संतवीर सिंह बाजवा।

अब भी संतवीर सिंह बाजवा अपने पिता की नई मंडीकरण रणनीतियों से मदद कर रहे हैं और फलों की खेती से भी अच्छा लाभ कमा रहे हैं।
संदेश
यदि किसान कृषि तकनीकों से अच्छी प्रकार से अवगत हैं तो पॉलीहाउस में खेती करना एक बहुत ही लाभदायक उद्यम है। युवा किसानों को पॉलीहाउस में खेती करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में उनके लिए बहुत संभावनाएं हैं और वे इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं 

सपिंदर सिंह

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सपिंदर सिंह ने सुअर पालन के साथ मछली पालन को समेकित कर पंजाब में कृषि संबंधित गतिविधियो को अगले स्तर तक पहुंचाया

भारत के अधिकांश भागों में, किसान अपनी घरेलु आर्थिकता को समर्थन देने के लिए समेकित कृषि संबंधित गतिविधियों को अपना रहे हैं और अपनाये भी क्यों ना । समेकित कृषि प्रणाली ना सिर्फ ग्रामीण समुदाय को उचित आजीविका प्रदान करती है बल्कि एक व्यवसाय में किसी कारणवश हानि होने पर अतिरिक्त व्यवसाय के रूप में समर्थन प्रदान करती है। इस उदाहरण के साथ संगरूर के प्रगतिशील किसान सपिंदर सिंह ने सुअर पालन के साथ मछली पालन को अपनाकर पंजाब के अन्य किसानों के लिए उदाहरण स्थापित किया है।

यह कहानी एक रिटायर्ड व्यक्ति— सपिंदर सिंह की है, जिन्होंने अपने 18 वर्ष मिल्टिरी इंजीनियरिंग सर्विस को समर्पित करने के बाद वापिस पंजाब आने का फैसला किया और अपना बाकी का जीवन खेतीबाड़ी को समर्पित कर दिया। कृषि पृष्ठभूमि से आने के कारण, सपिंदर सिंह के लिए दोबारा खेतीबाड़ी शुरू करना कुछ मुश्किल नहीं था। लेकिन मुख्य फसलें गेहू और धान उगाना उनके लिए लाभदायक उद्यम नहीं था। जिसका एक कारण उनका संबंधित कृषि गतिविधियों की तरफ प्रभावित होना था।

इस समय के दौरान, एक बार सपिंदर सिंह कुछ व्यक्तिगत कामों के लिए संगरूर शहर गए और वहां पर उन्होंने एक मछली बीज फार्म में मछली बीज उत्पादन की प्रक्रिया के बारे में पता चला। मछली फार्म में श्रमिकों से बात करने पर उन्हें पता चला कि महीने में एक बार उन अभिलाषी किसानों की ट्रेनिंग के लिए 5 दिनों का ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किया जाता है। जो कि मछली पालन के व्यवसाय को अपने करियर के रूप में अपनाना चाहते हैं।

“और यह तब हुआ जब मैंने मछली पालन करने का फैसला किया। मेरी मां और मैंने अक्तूबर 2013 में पांच दिनों की ट्रेनिंग ली। वहां से मुझे पता चला कि मछली का बच्चा केवल मार्च से अगस्त तक ही प्रदान किया जाता है।”

ट्रेनिंग के बाद एक भी पल बिना गंवाए सपिंदर सिंह ने अपना स्वंय का प्री कल्चर टैंक (नर्सरी टैंक) तैयार करने और उसमें मछली के पूंग संग्रहित करने का फैसला किया। टैंक की तैयारी के लिए उन्होंने मिट्टी और पानी की जांच के तहत अपनी ज़मीन की जांच के बाद अपनी ज़मीन पर एक तालाब खोदा। मछली पालन विभाग ने उन्हें लोन एप्लेकेशन में भी मदद की और सपिंदर सिंह के लिए लोन की किश्तों की प्रक्रिया बहुत ही आसान थीं।

“मछली पालन के लिए मैंने 4.50 लाख रूपये के लोन के लिए आवेदन किया और कुछ समय बाद 1.50 लाख रूपये पहली लोन की किश्त प्राप्त हुई। समय पर लोन भी चुकाया गया था, जिसके कारण मुझे अपना मछली फार्म स्थापित करने के दौरान किसी भी प्रकार की वित्तीय समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।”

मछली पालन के अधिकारियों ने सपिंदर सिंह को सही समय पर जानकारी देने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने श्री सिंह को एकीकृत खेती का सुझाव दिया ओर फिर सपिंदर सिंह ने सुअर पालन का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। ट्रेनिंग लेने के बाद सपिंदर सिंह ने पिग्गरी शैड स्थापित करने के लिए 4.90 लाख रूपये के लोन के लिए आवेदन किया।

वर्तमान में, सपिंदर सिंह 200 सुअरों के साथ 3.25 एकड़ में मछली पालन कर रहे हैं। सुअर पालन के साथ मछली पालन की समेकित कृषि प्रणाली से उन्हें 8 लाख का शुद्ध लाभ मिलता है। मछली पालन और पशु पालन दोनों विभागों ने 1.95 लाख और 1.50 लाख की सब्सिडी दी। दोनों विभागों और जिला प्रशासन दोनों ने उन्हें अपना उद्यम बढ़ाने में पूरी सहयोग और सभी अवसर उन्हें प्रदान किए।

वर्तमान में, सपिंदर सिंह अपने फार्म को सफलतापूर्वक चला रहे हैं और जब भी उन्हें मौका मिलता है तो वे किसानों को उचित कृषि ज्ञान हासिल करने के लिए द्वारा आयोजित के वी के ट्रेनिंग कैंप में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करते हैं।

अपनी तीव्र जिज्ञासा के साथ वे हमेशा एक कदम आगे रहना चाहते हैं सपिंदर सिंह ये भी जानते है। कि उन्नति के लिए उनका अगला कदम क्या होना चाहिए और यही कारण है कि वे सुअर — मछली युनिट के प्रोसेसिंग प्लांट में निवेश करने की योजना बना रहे हैं।

सपिंदर सिंह एक आधुनिक प्रगतिशील किसान हैं जिन्होंने आधुनिक पद्धति के अनुसार अपने खेती करने के तरीकों को बदला और प्रत्येक अवसर का लाभ उठाया। अन्य किसान यदि कृषि क्षेत्र में प्रगति करना चाहते हैं तो उन्हें सपिंदर सिंह के दृष्टिकोण को समझना होगा।

संदेश

यदि किसान अच्छी कमाई करना चाहते हैं और आर्थिक रूप से घरेलु स्थिति में सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें फसल की खेती के साथ कृषि संबंधी व्यवसायों को अपनाना चाहिए।

विनोद कुमार

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जानें इस नौजवान के बारे में जिसने मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़कर मोती उत्पादन शुरू किया, और अब है वार्षिक कमाई 5 लाख से भी ज्यादा

विनोद कुमार जो पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर थे, वे अक्सर अपनी व्यस्त व्यवसायी ज़िंदगी से समय निकालकर खेती में अपनी दिलचस्पी तलाशने के लिए नई आधुनिक कृषि तकनीकों की खोज करते थे। एक दिन इंटरेनेट पर विनोद कुमार को मोती उत्पादन के बारे में पता चला और वे इसकी तरफ आकर्षित हुए और उन्होंने इसकी गहराई से जानकारी प्राप्त की जिससे उन्हें पता चला कि मोती उत्पादन कम पानी और कम क्षेत्र में किया जा सकता है।

जब उन्हें यह पता चला कि मोती उत्पादन की ट्रेनिंग देने वाला एकमात्र इंस्टीट्यूट सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर में स्थित है तो विनोद कुमार ने बिना समय गंवाए, अपने दिल की बात सुनी और अपनी नौकरी छोड़कर मई 2016 में एक सप्ताह की ट्रनिंग के लिए भुवनेश्वर चले गए।

उन्होंने मोती उत्पादन 20 x 10 फुट क्षेत्र में 1000 सीप से शुरू की थी और आज उन्होंने अपना मोती उत्पादन का व्यवसाय का विस्तार कर दिया है जिसमें वे 2000 सीप से, 5 लाख से भी ज्यादा का मुनाफा कमा रहे हैं। खैर, यह विनोद कुमार का कृषि की तरफ दृढ़ संकल्प और जुनून था जिसने उन्होंने सफलता का यह रास्ता दिखाया।

विनोद कुमार ने हमसे मोती उत्पादन शुरू करने वाले नए लोगों के लिए मोती उत्पादन की जानकारी सांझा की –

• न्यूनतम निवेश 40000 से 60000
• मोती उत्पादन के लिए आवश्यक पानी का तापमान — 35°सेल्सियस
• मोती उत्पादन के लिए एक पानी की टैंकी आवश्यक है।
• सीप मेरठ और अलीगढ़ से मछुआरों से 5—15 रूपये में खरीदे जा सकते हैं।
• इन सीपको पानी की टैंकी में 10—12 महीने के लिए रखा जाता है और जब शैल अपना रंग बदलकर सिल्वर रंग का हो जाता है तब मोती तैयार हो जाता है।
• खैर, यह अच्छा गोल आकार लेने में 2 —2.5 वर्ष लगाता है।
• शैल को इसकी आंतरिक चमक से पहचाना जाता है।
• आमतौर पर शैल का आकार 8—11 सैं.मी. होता है।
• मोती के लिए आदर्श बाजार राजकोट, दिल्ली, दिल्ली के नज़दीक के क्षेत्र और सूरत हैं।

मोती उत्पादन के मुख्य कार्य:
मुख्य कार्य सीप की सर्जरी है और इस काम के लिए संस्थान द्वारा विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। मोती के अलावा सीप के अंदर विभिन्न तरह के आकार और डिज़ाइन बनाए जा सकते हैं।

विनोद ना केवल मोती उत्पादनकर रहे हैं बल्कि वे अन्य किसानों को भी ट्रेनिंग प्रदान कर रहे हैं। उन्हें उद्यमिता विकास के लिए ताजे पानी में मोती की खेती की ट्रेनिंग में ICAR- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर द्वारा प्रमाणित किया गया है। अब तक 30000 से अधिक लोगों ने उनके फार्म का दौरा किया है और उन्होंने कभी भी किसी को निराश नहीं किया है।

संदेश
“आज के किसान यदि अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें अलग सोचना चाहिए लेकिन यह भावना भी धैर्य की मांग करती है क्योंकि मेरे कई छात्र ट्रेनिंग के लिए मेरे पास आए और ट्रेनिंग के तुरंत बाद ही उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू करने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। लोगों को यह समझना चाहिए कि सफलता धैर्य और लगातार अभ्यास से मिलती है।”

फारूखनगर तहसील, गुरूग्राम के एक छोटे से गांव जमालपुर में रहने वाले श्री विनोद कुमार ने अपने अनुभव और दृढ़ संकल्प के साथ साबित कर दिया है कि फ्रैश वॉटर सीपकल्चर में विशाल क्षमता है।

उमा सैनी

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उमा सैनी – एक ऐसी महिला जो धरती को एक बेहतर जगह बनाने के लिए अपशिष्ट पदार्थ को सॉयल फूड में बदलने की क्रांति ला रही हैं

कई वर्षों से रसायनों, खादों और ज़हरीले अवशेष पदार्थों से हमारी धरती का उपजाऊपन खराब किया जा रहा है और उसे दूषित भी किया जा रहा है। इस स्थिति को समझते हुए लुधियाना की महिला उद्यमी और एग्रीकेयर ऑरगैनिक फार्मस की मेनेजिंग डायरेक्टर उमा सैनी ने सॉयल फूड तैयार करने की पहल करने का निर्णय लिया जो कि पिछले दशकों में खोए मिट्टी के सभी पोषक तत्वों को फिर से हासिल करने में मदद कर सकते हैं। प्रकृति में योगदान करने के अलावा, ये महिला सशिक्तकरण के क्षेत्र में भी एक सशक्त नायिका की भूमिका निभा रही हैं। अपनी गतिशीलता के साथ वे पृथ्वी को बेहतर स्थान बना रही हैं और इसे भविष्य में भी जारी रखेंगी…

क्या आपने कभी कल्पना की है कि धरती पर जीवन क्या होगा जब कोई भी व्यर्थ पदार्थ विघटित नहीं होगा और वह वहीं ज़मीन पर पड़ा रहेगा!

इसके बारे में सोचकर रूह ही कांप उठती है और इस स्थिति के बारे में सोचकर आपका ध्यान मिट्टी के स्वास्थ्य पर जायेगा। मिट्टी को एक महत्तवपूर्ण तत्व माना जाता है क्योंकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लोग इस पर निर्भर रहते हैं। हरित क्रांति और शहरीकरण मिट्टी की गिरावट के दो प्रमुख कारक है और फिर भी किसान, बड़ी कीटनाशक कंपनियां और अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसे समझने में असमर्थ हैं।

रसायनों के अंतहीन उपयोग ने उमा सैनी को जैविक पद्धतियों की तरफ खींचा। यह सब शुरू हुआ 2005 में जब उमा सैनी ने जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया। खैर, जैविक खेती बहुत आसान लगती है लेकिन जब इसे करने की बात आती है तो कई विशेषज्ञों को यह भी नहीं पता होता कि कहां से शुरू करना है और इसे कैसे उपयोगी बनाना है।

“हालांकि, मैंने बड़े स्तर पर जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया लेकिन अच्छी खाद अच्छी मात्रा में कहां से प्राप्त की जाये यह सबसे बड़ी बाधा थी। इसलिए मैंने अपना वर्मीकंपोस्ट प्लांट स्थापित करने का निर्णय लिया।”

शहर के मध्य में जैविक फार्म और वर्मीकंपोस्ट की स्थापना लगभग असंभव थी, इसलिए उमा सैनी ने गांवों में छोटी ज़मीनों में निवेश करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे एग्रीकेयर ब्रांड वास्तविकता में आया। आज, उत्तरी भारत के विभिन्न हिस्सों में एग्रीकेयर के वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट और ऑरगैनिक फार्म की कई युनिट्स हैं।

“गांव के इलाके में ज़मीन खरीदना भी बहुत मुश्किल था लेकिन समय के साथ वे सारी मुश्किलें खत्म हो गई हैं। ग्रामीण लोग हमसे कई सवाल पूछते थे जैसे यहां ज़मीन खरीदने का आपका क्या मकसद है, क्या आप हमारे क्षेत्र को प्रदूषित कर देंगे आदि…”

एग्रीकेयर की उत्पादन युनिट्स में से एक , लुधियाना के छोटे से गांव सिधवां कलां में स्थापित है जहां उमा सैनी ने महिलाओं को कार्यकर्त्ता के रूप में रखा हुआ है।

“मेरा मानना है कि, एक महिला हमारे समाज में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए महिला सशिक्तकरण के उद्देश्य से, मैंने सिधवां कलां गांव और अन्य फार्म में गांव की काफी महिलाओं को नियुक्त किया है।”

महिला सशिक्तकरण की हिमायती के अलावा, उमा सैनी एक महान सलाहकार भी हैं। वे कॉलेज के छात्रों, विशेष रूप से छात्राओं को जैविक खेती, वर्मीकंपोस्टिंग और कृषि व्यवसाय के इस विकसित क्षेत्र के बारे में जागरूक करने के लिए आमंत्रित करती हैं। युवा इच्छुक महिलाओं के लिए भी उमा सैनी फ्री ट्रेनिंग सैशन आयोजित करती हैं।

“छात्र जो एग्रीकल्चर में बी.एस सी. कर रहे हैं उनके लिए कृषि के क्षेत्र में बड़ा अवसर है और विशेष रूप से उन्हें जागरूक करने के लिए मैं और मेरे पति फ्री ट्रेनिंग प्रदान करते हैं। विभिन्न कॉलेजों में अतिथि के तौर पर लैक्चर देते हैं।”

उमा सैनी ने लुधियाना के वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट में एक वर्मी हैचरी भी तैयार की है जहां वे केंचुएं के बीज तैयार करती हैं। वर्मी हैचरी एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। हम सभी जानते हैं कि केंचुएं मिट्टी को खनिज और पोषक तत्वों से समृद्ध बनाने में असली कार्यकर्त्ता हैं। इसलिए इस युनिट में जिसे Eisenia fetida या लाल कृमि (धरती कृमि की प्रजाति) के रूप में जाना जाता है को जैविक पदार्थों को गलाने के लिए रखा जाता है और इसे आगे की बिक्री के लिए तैयार किया जाता है।

एग्रीकेयर की अधिकांश वर्मीकंपोस्टिंग युनिट्स पूरी तरह से स्वचालित है, जिससे उत्पादन में अच्छी बढ़ोतरी हो रही है और इससे अच्छी बिक्री हो सकती है। इसके अलावा, उमा सैनी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में 700 से अधिक किसानों को जैविक खेती में बदलने के लिए कॉन्ट्रेक्टिंग खेती के अंदर अपने साथ जोड़ा है।

“जैविक खेती और वर्मीकंपोस्टिंग के कॉन्ट्रैक्ट से हमारा काम हो रहा है, लेकिन इसके साथ ही समाज के रोजगार और स्वस्थ स्वभाव के लाभ भी मिल रहे हैं।”

आज जैविक खाद के ब्रांड TATA जैसे प्रमुख ब्रांडों को पछाड़ कर, उत्तर भारत में एग्रीकेयर – सॉयल फूड वर्मीकंपोस्ट का सबसे बड़ा विक्रेता बन गया है। वर्तमान में हिमाचल और कश्मीर सॉयल फूड की प्रमुख मार्किट हैं। एग्रीकेयर वर्मीकंपोस्ट-सॉयल फूड के उत्पादन में नेस्ले, हिंदुस्तान लीवर, कैडबरी आदि जैसी बड़ी कंपनियों के खाद्यान अपशिष्ट प्रयोग किए जाते हैं। बड़ी-बड़ी मल्टी नेशनल कंपनियों के खाद्यान अपशिष्ट का इस्तेमाल करके एग्रीकेयर पर्यावरण को स्वस्थ बनाने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

जल्दी ही उमा सैनी और उनके पति श्री वी.के. सैनी लुधियाना में ताजी जैविक सब्जियों और फलों के लिए एक नया जैविक ब्रांड लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं जहां वे अपने उत्पादों को सीधे ही घर घर जाकर ग्राहकों तक पहुंचाएगे।

“जैविक की तरफ जाना समय की आवश्यकता है, लोगों को अपने ज़मीनी स्तर से सीखना होगा सिर्फ तभी वे प्रकृति के साथ एकता बनाए रखते हुए कृषि के क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं।”

प्रकृति के लिए काम करने की उमा सैनी की अनन्त भावना यह दर्शाती है कि प्रकृति अनुरूप काम करने की कोई सीमा नहीं है। इसके अलावा, उमा सैनी के बच्चे – बेटी और बेटा दोनों ही अपने माता – पिता के नक्शेकदम पर चलने में रूचि रखते हैं और इस क्षेत्र में काम करने के लिए वे उत्सुकता से कृषि क्षेत्र की पढ़ाई कर रहे हैं।

संदेश
“आजकल, कई बच्चे कृषि क्षेत्र में बी.एस सी. का चयन कर रहे हैं लेकिन जब वे अपनी डिग्री पूरी कर लेते हैं, उस समय उन्हें केवल किताबी ज्ञान होता है और वे उससे संतुष्ट होते हैं। लेकिन कृषि क्षेत्र में सफल होने के लिए यह काफी नहीं है जब तक कि वे मिट्टी में अपने हाथ नहीं डालते। प्रायोगिक ज्ञान बहुत आवश्यक है और युवाओं को यह समझना होगा और उसके अनुसार ही प्रगति होगी।”

जगदीप सिंह

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जानें कैसे इस किसान की व्यावहारिक पहल ने पंजाब को पराली जलाने के लिए ना कहने में मदद की

पराली जलाना और कीटनाशकों का प्रयोग करना पुरानी पद्धतियां हैं जिनका पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव आज हम देख रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के कारण भारत के उत्तरी भागों को वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कई वर्षों में वायु की गुणवत्ता खराब हो गई है और यह कई गंभीर श्वास और त्वचा की समस्याओं को जन्म दे रही है।

हालांकि सरकार ने पराली जलाने की समस्या को रोकने के लिए कई प्रमुख कदम उठाए हैं फिर भी वे किसानों को पराली जलाने से रोक नहीं पा रहे। किसानों में ज्ञान और जागरूकता की कमी के कारण पंजाब में पराली जलाना एक बड़ा मुद्दा बन रहा है। लेकिन एक ऐसे किसान जगदीप सिंह ने ना केवल अपने क्षेत्र में पराली जलाने से किसानों को रोका बल्कि उन्हें जैविक खेती की तरफ प्रोत्साहित किया।

जगदीप सिंह पंजाब के संगरूर जिले के एक उभरते हुए किसान हैं। अपनी मातृभूमि और मिट्टी के प्रति उनका स्नेह बचपन में ही बढ़ गया था। मिट्टी प्रेमी के रूप में उनकी यात्रा उनके बचपन से ही शुरू हुई। जन्म के तुरंत बाद उनके चाचा ने उन्हें गोद लिया जिनका व्यवसाय खेतीबाड़ी था। उनके चाचा उन्हें शुरू से ही फार्म पर ले जाते थे और इसी तरह खेती की दिशा में जगदीप की रूचि बढ़ गई।

बढ़ती उम्र के साथ उनका दिमाग भी विकासशील रहा और पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्राथमिकता खेती को ही दी। अपनी 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और खेती में अपने पिता मुख्तियार सिंह की मदद करनी शुरू की। खेती के प्रति उनकी जिज्ञासा दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी, इसलिए अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए उन्होंने 1989 से 1990 के बीच उन्होंने पी ए यू का दौरा किया। पी ए यू का दौरा करने के बाद जगदीप सिंह को पता चला कि उनकी खेती की मिट्टी का बुनियादी स्तर बहुत अधिक है जो कई मिट्टी और फसलों के मुद्दे को जन्म दे रहा है और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए दो ही उपाय थे या तो रूड़ी की खाद का प्रयोग करना या खेतों में हरी खाद का प्रयोग करना।

इस समस्या का निपटारा करने के लिए जगदीप एक अच्छे समाधान के साथ आये क्योंकि रूड़ी की खाद में निवेश करना उनके लिए महंगा था। 1990 से 1991 के बीच उन्होंने पी ए यू के समर्थन से happy seeder का प्रयोग करना शुरू किया। happy seeder के प्रयोग से वे खेत में से धान की पराली को बिना निकाले मिट्टी में बीजों को रोपित करने के योग्य हुए। उन्होंने अपने खेत में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए धान की पराली को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया। धीरे-धीरे जगदीप ने अपनी इस पहल में 37 किसानों को इकट्ठा किया और उन्हें happy seeder प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया और पराली जलाने से परहेज करने को कहा। उन्होंने इस अभियान को पूरे संगरूर में चलाया जिसके तहत उन्होंने 350 एकड़ से अधिक ज़मीन को कवर किया।

2014 में मैंने IARI (Indian Agricultural Research Institute) से पुरस्कार प्राप्त किया और उसके बाद मैनें अपने गांव में ‘Shaheed Baba Sidh Sweh Shaita Group’ नाम का ग्रुप बनाया। इस ग्रुप के तहत हम किसानों को हवा प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए, पराली ना जलाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इन दिनों वे 40 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से 32 एकड़ भूमि उन्होंने किराये पर दी है और 4 एकड़ की भूमि पर वे जैविक खेती कर रहे हैं और बाकी की भूमि पर वे बहुत कम मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उनका मुख्य मंतव जैविक की तरफ जाना है। वर्तमान में वे अपने पिता, माता, पत्नी और दो बेटों के साथ कनोई गांव में रह रहे हैं।

जगदीप सिंह के व्यक्तित्व के बारे में सबसे आकर्षक चीज़ यह है कि वे बहुत व्यावहारिक हैं और हमेशा खेतीबाड़ी के बारे में नई चीज़ें सीखने के लिए इच्छुक रहते हैं। वे पशु पालन में भी बहुत दिलचस्पी रखते हैं और घर के उद्देश्य के लिए उनके पास 8 भैंसे हैं। वे भैंस के दूध का प्रयोग सिर्फ घर के लिए करते हैं और कई बार इसे अपने पड़ोसियों या गांव वालों को भी बेचते हैं खेतीबाड़ी और दूध की बिक्री से वह अपने परिवार के खर्चों को काफी अच्छे से संभाल रहे हैं और भविष्य में वे अच्छे मुनाफे के लिए अपनी उत्पादकता की मार्किटिंग शुरू करना चाहते हैं।

संदेश
दूसरे किसानों के लिए जगदीप सिंह का संदेश यह है कि उन्हें अपने बच्चों को खेती के बारे में सिखाना चाहिए और उनके मन में खेती के बारे में नकारात्मक विचार ना डालें अन्यथा वे अपने जड़ों के बारे में भूल जाएंगे।

लवप्रीत सिंह

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कैसे इस B.Tech ग्रेजुएट युवा की बढ़ती हुई दिलचस्पी ने उसे कृषि को अपना फुल टाइम रोज़गार चुनने के लिए प्रेरित किया

मिलिए लवप्रीत सिंह से, एक युवा जिसके हाथ में B.Tech. की डिग्री के बावजूद उसने डेस्क जॉब और आरामदायक शहरी जीवन जीने की बजाय गांव में रहकर कृषि से समृद्धि हासिल करने को चुना।

संगरूर के जिला हैडक्वार्टर से 20 किलोमीटर की दूरी पर भवानीगढ़ तहसील में स्थित गांव कपियाल जहां लवप्रीत सिंह अपने पिता, दादा जी, माता और बहन के साथ रहते हैं।

2008-09 में लवप्रीत ने कृषि क्षेत्र में अपनी बढ़ती दिलचस्पी के कारण केवल 1 एकड़ की भूमि पर गेहूं की जैविक खेती शुरू कर दी थी, बाकी की भूमि अन्य किसानों को दे दी थी। क्योंकि लवप्रीत के परिवार के लिए खेतीबाड़ी आय का प्राथमिक स्त्रोत कभी नहीं था। इसके अलावा लवप्रीत के पिता जी, संत पाल सिंह दुबई में बसे हुए थे और उनके पास परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अच्छी नौकरी और आय दोनों ही थी।

जैसे ही समय बीतता गया, लवप्रीत की दिलचस्पी और बढ़ी और उनकी मातृभूमि ने उन्हें वापिस बुला लिया। जल्दी ही अपनी डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने खेती की तरफ बड़ा कदम उठाने के बारे में सोचा। उन्होंने पंजाब एग्रो (Punjab Agro) द्वारा अपनी भूमि की मिट्टी की जांच करवायी और किसानों से अपनी सारी ज़मीन वापिस ली।

अगली फसल जिसकी लवप्रीत ने अपनी भूमि पर जैविक रूप से खेती की वह थी हल्दी और साथ में उन्होंने खुद ही इसकी प्रोसेसिंग भी शुरू की। एक एकड़ पर हल्दी और 4 एकड़ पर गेहूं-धान। लेकिन लवप्रीत के परिवार द्वारा पूरी तरह से जैविक खेती को अपनाना स्वीकार्य नहीं था। 2010 में जब उनके पिता दुबई से लौट आए तो वे जैविक खेती के खिलाफ थे क्योंकि उनके विचार में जैविक उपज की कम उत्पादकता थी लेकिन कई आलोचनाओं और बुरे शब्दों में लवप्रीत के दृढ़ संकल्प को हिलाने की शक्ति नहीं थी।

अपनी आय को बढ़ाने के लिए लवप्रीत ने गेहूं की बजाये बड़े स्तर पर हल्दी की खेती करने का फैसला किया। हल्दी की प्रोसेसिंग में उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया क्योंकि उनके पास इसका कोई ज्ञान और अनुभव नहीं था। लेकिन अपने प्रयासों और माहिर की सलाह के साथ वे कई मुश्किलों को हल करने के काबिल हुए। उन्होंने उत्पादकता और फसल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए गाय और भैंस के गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया।

परिणाम देखने के बाद उनके पिता ने भी उन्हें खेती में मदद करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्होंने पंजाब एग्रो से भी हल्दी पाउडर को जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संपर्क किया और इस वर्ष के अंत तक उन्हें यह प्राप्त हो जाएगा। वर्तमान में वे सक्रिय रूप से हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग में शामिल हैं। जब भी उन्हें समय मिलता है, वे PAU का दौरा करते हैं और यूनीवर्सिटी के माहिरों द्वारा सुझाई गई पुस्तकों को पढ़ते हैं ताकि उनकी खेती में सकारात्मक परिणाम आये। पंजाब एग्रो उन्हें आवश्यक जानकारी देकर भी उनकी मदद करता है और उन्हें अन्य प्रगतिशील किसानों के साथ भी मिलाता है जो जैविक खेती में सक्रिय रूप से शामिल हैं। हल्दी के अलावा वे गेहूं, धान, तिपतिया घास (दूब), मक्की, बाजरा की खेती भी करते हैं लेकिन छोटे स्तर पर।

भविष्य की योजनाएं:
वे भविष्य में हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग के काम का विस्तार करना चाहते हैं और जैविक खेती कर रहे किसानों का एक ग्रुप बनाना चाहते हैं। ग्रुप के प्रयोग के लिए सामान्य मशीनें खरीदना चाहते हैं और जैविक खेती करने वाले किसानों का समर्थन करना चाहते हैं।

संदेश

एक संदेश जो मैं किसानों को देना चाहता हूं वह है पर्यावरण को बचाने के लिए जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है। सभी को जैविक खेती करनी चाहिए और जैविक खाना चाहिए, इस प्रकार प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।

राजिंदर पाल सिंह

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एक इंसान की कहानी जिसने अपनी गल्तियों से सीखकर बुद्धिमता के रास्ते को चुना – जैविक खेती

प्राकृति हमारे सबसे महान शिक्षकों में से एक है और वह कभी भी हमें सिखाने से रूकी नहीं है, जिसकी हमें जानने की जरूरत होती है। आज हम धरती पर इस तरीके से रह रहे हैं कि जैसे हमारे पास एक और ग्रह भी है। हम इस बात से अवगत नहीं है कि हम प्राकृति के संतुलन को कैसे परेशान कर रहे हैं और यह हमें कैसे प्रतिकूल प्रभाव दे सकती है। आजकल हम मनुष्यों और जानवरों में बीमारियों, असमानताओं और कमियों के कई मामलों को देख रहे हैं। लेकिन फिर भी ज्यादातर लोग गल्तियों की पहचान करने में सक्षम नहीं हैं वे आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे हैं। जैसे कि कुछ गलत हो ही नहीं रहा। पर इनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो कि अपनी गल्तियों से सीखते हैं और समाज में एक बड़ा बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसा कहा जाता है कि गल्तियों में आपको पहले से अच्छा बनाने की शक्ति होती है और एक ऐसे व्यक्ति हैं राजिंदर पाल सिंह जो कि बेहतर दिशा में अपना रास्ता बना रहे हैं और आज वे जैविक खेती के क्षेत्र में एक सफल शख्सियत हैं। उनके उत्पादों की प्रशंसा और अधिक मांग केवल भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, कैनेडा और यहां तक कि लंदन के शाही परिवार में भी है।

खैर, एक सफल यात्रा के पीछे हमेशा एक कहानी होती है।राजिंदरपाल सिंह जिला बठिंडा के गांव कलालवाला के वसनीक; एक समय में ऐसे किसान थे जो कि पारंपरिक खेती करते थे लेकिन रसायनों और कीटनाशकों के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वे रसायनों का प्रयोग करके अपने पर्यावरण और अपनी सेहत को प्रभावित कर रहे हैं। वे फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते थे, लेकिन एक दिन उस स्प्रे ने उनके नर्वस सिस्टम को प्रभावित किया और ऐसा ही उनके एक रिश्तेदार के साथ हुआ। उस दिन से उन्होंने रसायनों के प्रयोग को छोड़कर कृषि के लिए जैविक तरीका अपनाया।

शुरूआत में उन्होंने और उनके चाचा जी ने 4 एकड़ भूमि में जैविक खेती करनी शुरू की और धीरे धीरे इस क्षेत्र को बढ़ाया 2001 में वे उत्तर प्रदेश से गुलाब के पौधे खरीद कर लाये और तब से वे अन्य फसलों के साथ गुलाब की खेती भी कर रहे हैं। उन्होंने जैविक खेती के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं ली। उनके चाचा जी ने किताबों से सभी जानकारी इकट्ठा करके जैविक खेती करने में उनकी मदद की। वर्तमान में वे अपने संयुक्त परिवार अपनी पत्नी, बच्चे, चाचा, चाची और भाइयों के साथ रह रहे हैं और अपनी सफलता के पीछे का पूरा श्रेय अपने परिवार को देते हैं।

वे बठिंडा के मालवा क्षेत्र के पहले किसान हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर जैविक खेती को चुना। जब उन्होंने जैविक खेती शुरू की, उस समय उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया और कई लोगों ने उन्हें यह कहते हुए भी निराश किया कि वे सिर्फ पैसा बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन आज उनके उत्पाद एडवांस बुकिंग में बिक रहे हैं और वे पंजाब के पहले किसान भी हैं जिन्होंने अपने फार्म पर गुलाब का तेल बनाया और 2010 में फतेहगढ़ साहिब के समारोह में प्रिंस चार्ल्स और उनकी पत्नी को दिया था।

वे जो काम कर रहे हैं उसके लिए उन्हें फूलों का राजा नामक टाइटल भी दिया गया है। उनके पास गुलाब की सबसे अच्छी किस्म है जिसे Damascus कहा जाता है और आप गुलाबों की सुगंध उनके गुलाब के खेतों की कुछ ही दूरी पर से ले सकते हैं जो कि 6 एकड़ की भूमि पर फैला हुआ है। उन्होंने अपने फार्म में तेल निकालने का प्रोजैक्ट भी स्थापित किया है जहां पर वे अपने फार्म के गुलाबों का प्रयोग करके गुलाब का तेल बनाते हैं। गुलाब की खेती के अलावा वे मूंग दाल, मसूर, मक्की, सोयाबीन, मूंगफली, चने, गेहूं, बासमती, ग्वार और अन्य मौसमी सब्जियां उगाते हैं। 12 एकड़ में वे बासमती उगाते हैं और बाकी की भूमि में वे उपरोक्त फसलें उगाते हैं।

राजिंदरपाल सिंह जिन गुलाबों की खेती करते हैं वे वर्ष में एक बार दिसंबर महीने में खिलते हैं और इनकी कटाई मार्च और अप्रैल तक पूरी कर ली जाती है। एक एकड़ खेत में वे 12 से 18 क्विंटल गुलाब उगाते हैं और आज एक एकड़ गुलाब के खेतों से उनका वार्षिक मुनाफा 1.25 लाख रूपये है। उनके उत्पादों की मांग अमेरिका, कैनेडा और अन्य देशों में है। यहां तक कि उनके द्वारा बनाये गये गुलाब के तेल को भी निर्यातकों द्वारा अच्छी कीमत पर खरीदा जाता हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि वे तेल, शुद्ध जैविक गुलाबों से बनाते हैं। बेमौसम में वे गुलाब की अन्य किस्में उगाते हैं और उनसे गुलकंद बनाते हैं और उसे नज़दीक के ग्रोसरी स्टोर में बेचते हैं। गुलाब का तेल, रॉज़ वॉटर और गुलकंद के इलावा अन्य फसलें जैविक मसूर, गेहूं, मक्की, धान को भी बेचते हैं। सभी उत्पाद उनके द्वारा बनाये जाते है और उनके ब्रांड नाम भाकर जैविक फार्म के नाम से बेचे जाते हैं।

आज राजिंदर पाल सिंह जैविक खेती से बहुत संतुष्ट हैं। हां उनके उत्पादों की उपज कम होती है लेकिन उनके उत्पादों की कीमत, पारंपरिक खेती का प्रयोग करके उगाई अन्य फसलों की कीमत से ज्यादा होती है। वे अपने खेतों में सिर्फ गाय की खाद और नदी के पानी का प्रयोग करते हैं और बाज़ार से किसी भी तरह की खाद या कंपोस्ट नहीं खरीदते। जैविक खेती करके वे मिट्टी के पोषक तत्व और उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने में सक्षम हैं। शुरूआत में उन्होंने अपने उत्पादों के मंडीकरण में छोटी सी समस्या का सामना किया लेकिन जल्दी ही लोगों ने उनके उन्पादों की क्वालिटी को मान्यता दी, फिर उन्होंने अपने काम में गति प्राप्त करनी शुरू की और वे जैविक खेती करके अपनी फसलों में बहुत ही कम बीमारियों का सामना कर रहे हैं।

अब उनके पुरस्कार और प्राप्तियों पर आते हैं। ATMA स्कीम के तहत केंद्र सरकार द्वारा उनकी सराहना की गई और देश के अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में प्रस्तुत किया गया। वे भूमि वरदान फाउंडेशन के मैंबर भी हैं जो कि रोयल प्रिंस ऑफ वेलस के नेतृत्व में होता है और उनके सभी उत्पाद इस फाउंउेशन के द्वारा प्रमाणित हैं। उन्होंने पटियाला के पंजाब एग्रीकल्चर विभाग से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त किया और यहां तक कि पंजाब के पूर्व कृषि मंत्री श्री तोता सिंह ने उन्हें प्रगतिशील किसान के तौर पर पुरस्कृत किया।

भविष्य की योजना
भविष्य में वे जैविक खेती के क्षेत्र में अपने काम को जारी रखना चाहते हैं और जैविक खेती के बारे में ज्यादा से ज्यादा किसानों को जागरूक करना चाहते हैं ताकि वे जैविक खेती करने के लिए प्रेरित हो सकें।

राजिंदर पाल सिंह द्वारा दिया गया संदेश-
आज हमारी धरती को हमारी जरूरत है और किसान के तौर पर धरती को प्रदूषन से बचाने के लिए हम सबस अधिक जिम्मेदार व्यक्ति हैं। हां, जैविक खेती करने से कम उपज होती है लेकिन आने वाले समय में जैविक उत्पादों की मांग बहुत अधिक होगी, सिर्फ इसलिए नहीं कि ये स्वास्थ्यवर्धक हैं अपितु इसलिए क्योंकि यह समय की आवश्यकता बन जाएगी। इसके अलावा जैविक खेती स्थायी है और इसे कम वित्तीय की आवश्यकता होती है। इसे सिर्फ श्रमिकों की आवश्यकता होती है और यदि एक किसान जैविक खेती करने में रूचि रखता है तो वह इसे बहुत आसानी से कर सकता है।

 

अशोक वशिष्ट

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मशरूम की जैविक खेती और मशरूम के उत्पादों से पैसा बनाने वाले एक किसान की उत्साहजनक कहानी

बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने के लिए कृषि का विज्ञान परिष्कृत और अधिक समय तक सिद्ध हुआ है और उन्नति के साथ कृषि की तकनीकों में भी बदलाव आया है। वर्तमान में ज्यादातर किसान अपनी फसलों के ज्यादा उत्पादन के लिए परंपरागत / औद्योगिक कृषि तकनीकों, रासायनिक खादों, कीटनाशकों, जी एम ओ और अन्य औद्योगिक उत्पादों पर आधारित हैं। इनमें से कुछ ही किसान रसायनों का प्रयोग किए बिना खेती करते हैं। आज हम आपकी ऐसी शख्सीयत से पहचान करवाएंगे जो पहले परंपरागत खेती करते थे लेकिन बाद में कुदरती खेती के तरीकों के लाभ जानकर, उन्होंने कुदरती खेती के ढंगो से खेती करनी शुरू की।

अशोक वशिष्ट हरियाणा गांव के साधारण किसान हैं जिन्होंने परंपरागत खेती तकनीकों को उपयोग करने की रूढ़ी सोच को छोड़कर, मशरूम की खेती के लिए जैविक ढंगो का उपयोग करना शुरू किया। मशरूम के रिसर्च सेंटर के दौरे के बाद अशोक वशिष्ट को कुदरती ढंग से मशरूम की खेती करने की प्रेरणा मिली, जहां उन्हें मुख्य वैज्ञानिक डॉ. अजय सिंह यादव ने मशरूम के फायदेमंद गुणों से अवगत कराया और इसकी खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

शुरूआत में जब उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की, तब वैज्ञानिक अजय सिंह यादव के अलावा उन्हें खेती के लिए प्रोत्साहन और सहायता करने वाली उनकी पत्नी थी। उनके परिवार के अन्य छ: सदस्यों ने भी उनकी मदद की और उनका साथ दिया।

अशोक वशिष्ट मशरूम की खेती करने के लिए महत्तवपूर्ण तीन कार्य करते हैं:

पहला कार्य: पहले वे धान की पराली, गेहूं की पराली, बाजरे की पराली आदि का उपयोग करके खाद तैयार करते हैं। वे पराली को 3 से 4 सैं.मी. काट लेते हैं और उसे पानी में भिगो देते हैं।

दूसरा  कार्य: वे घर में खाद तैयार करने के लिए पराली को 28 दिनों के लिए छोड़ देते हैं।

तीसरा कार्य: जब खाद तैयार हो जाती है, तब उनमें मशरूम के बीजों को बोया जाता है जो विशेषकर लैब में तैयार होते हैं।

मशरूम की खेती करने के लिए वे हमेशा ये तीन कार्य करते हैं और मशरूम की खेती के इलावा वे अपने खेत में गेहूं और धान की भी खेती करते हैं। योग्यता से वे सिर्फ 10वीं पास है लेकिन इस चीज़ ने उन्हें नई चीज़ों को सीखने और तलाशने में कभी भी उजागर नहीं किया। अपनी नई सोच और उत्साह के साथ वे मशरूम से अलग उत्पाद बनाने की कोशिश करते हैं और अब तक उन्होंने शहद का मुरब्बा, मशरूम का आचार, मशरूम का मुरब्बा, मशरूम की भुजिया, मशरूम के बिस्कुट, मशरूम की जलेबी और लड्डू जैसे उत्पाद बनाये हैं। उन्होंने हमेशा विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए एक बात का ध्यान रखा है वह है सेहत। इसीलिए वे मीठे व्यंजनों को मीठा बनाने के लिए स्टीविया पौधे की प्रजातियों से तैयार स्टीविया पाउडर का प्रयोग करते हैं। स्टीविया सेहत के लिए एक अच्छा मीठा पदार्थ होता है और इसमें पोषक तत्व भी होते हैं, शूगर के मरीज़ बिना किसी चिंता के स्टीविया युक्त मीठे उत्पादों का प्रयोग कर सकते हैं।

अशोक वशिष्ट की यात्रा बहुत छोटे स्तर से, लगभग शून्य से ही शुरू हुई और आज उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से अपना खुद का व्यवसाय स्थापित किया है जहां वे FSSAI द्वारा पारित घरेलू उत्पादों को बेचते हैं। महर्षि वशिष्ट मशरूम वह ब्रांड नाम है जिसके तहत वे अपने उत्पादों को बेच रहे हैं और कई विशेषज्ञ, अधिकारी, नेताओं और मीडिया उनके आविष्कार किए तरीकों और मशरूम की खेती के पीछे के विचार और स्वादिष्ट मशरूम उत्पादों के लिए समय-समय पर उनके फार्म पर जाते रहते हैं।

महर्षि वशिष्ट की उपलब्धियां इस प्रकार हैं:

• HAIC Agro Research and Development Centre की तरफ से मशरूम प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए र्स्टीफिकेट मिला।

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार की तरफ से ट्रेनिंग र्स्टीफिकेट मिला।

• 2nd Agri Leadership Summit 2017 का पुरस्कार और र्स्टीफिकेट मिला।

• आमना तरनीम, DC जींद की तरफ से प्रशंसा पुरस्कार मिला।

मशरुम का बीज:
हाल ही में अशोक जी ने मशरूम का बीज तैयार किया है, जिसे स्पान की जगह पर इस्तेमाल किया जा सकता है और ऐसा करने वाले वह देश के पहले किसान है।

खैर, अशोक वशिष्ट के बारे में उल्लेख करने के लिए ये सिर्फ कुछ पुरस्कार और उपलब्धियां ही हैं। यहां तक कि उनकी भैंस ने 23 किलो दूध देकर प्रतियोगिता जीती, जिससे उन्हें 21 हज़ार रूपये का नकद पुरस्कार मिला। उनके पास 4.5 एकड़ ज़मीन है और 6 मुर्रा भैंस हैं, जिनमें से वे सबसे अच्छी कमाई और लाभ कमाने की कोशिश करते हैं। वे विभिन्न प्रदर्शनियों और इवेंट्स में भी जाते हैं जो उनके उत्पादों को दिखाने और उनके खेती तकनीक के बारे में जागरूक करवाने में उनकी मदद करते हैं। अपनी कड़ी मेहनत और जुनून के साथ वे भविष्य में निश्चित ही खेती की क्षेत्र में अधिक सफलताएं और प्रशंसा प्राप्त करेंगे।

अशोक वशिष्ट का किसानों के लिए एक विशेष संदेश
मशरूम बेहद पौष्टिक और मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। मैंने कुदरती तरीके से मशरूम की खेती करके बहुत लाभ कमाया है। जैसे कि हम जानते हैं कि भविष्य में खाद्य उत्पाद तैयार करना एक बहुत बड़ी बात होगी, इसलिए इस अवसर का लाभ उठाएं। आने वाले समय में, मैं अपने मशरूम की खेती का विस्तार करने की योजना बना रहा हूं ताकि इनसे तैयार उत्पादों को बेचने के लिए भारी मात्रा में उत्पादों को उत्पादन किया जा सके। अन्य किसानों के लिए मेरा संदेश यह है कि उन्हें भी मशरूम की खेती करनी चाहिए और बाज़ार में मशरूम से बने विभिन्न उत्पाद बेचने चाहिए। भूमिहीन किसान भी मशरूम की खेती से बड़ी कमाई कर सकते हैं और उन्हें खेती के लिए इस क्षेत्र का चयन करना चाहिए।

गुरप्रीत शेरगिल

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जानिये कैसे ये किसान पंजाब में फूलों की खेती में क्रांति ला रहे हैं

हाल के वर्षों में, भारत में उभरते कृषि व्यवसाय के रूप में फूलों की खेती उभर कर आई है और निर्यात में 20 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि फूलों के उद्योग में देखी गई है। यह भारत में कृषि क्षेत्र के विकास का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अच्छा संकेत है जो कुछ महान प्रगतिशील किसानों के योगदान के कारण ही संभव हुआ है।

1996 वह वर्ष था जब पंजाब में फूलों की खेती में क्रांति लाने वाले किसान गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने फूलों की खेती की तरफ अपना पहला कदम रखा और आज वे कई प्रतिष्ठित निकायों से जुड़ें फूलों की पहचान करने वाले प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

गुरप्रीत सिंह शेरगिल – “1993 में मकैनीकल इंजीनियरिंग में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, मैं अपने पेशे के चयन को लेकर उलझन में था। मैं हमेशा से ऐसा काम करता चाहता था जो मुझे खुशी दे ना कि वह काम जो मुझे सांसारिक सुख दे।”

गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने कृषि के क्षेत्र का चयन किया और साथ ही उन्होंने डेयरी फार्मिंग अपने पूर्ण कालिक पेशे के रूप में शुरू किया। वे कभी भी अपने काम से संतुष्टि नहीं महसूस करते थे जिसने उन्हें अधिक मेहनती और गहराई से सोचने वाला बनाया। यह तब हुआ जब उन्हें एहसास हुआ कि वे गेहूं — धान के चक्र में फंसने के लिए यहां नहीं है और इसे समझने में उन्हें 3 वर्ष लग गए। फूलों ने हमेशा ही उन्हें मोहित किया इसलिए अपने पिता बलदेव सिंह शेरगिल की विशेषज्ञ सलाह और भाई किरनजीत सिंह शेरगिल के समर्थन से उन्होंने फूलों की खेती करने का फैसला किया। गेंदे के फूलों की उपज उनकी पहली सफल उपज थी जो उन्होंने उस सीज़न में प्राप्त की थी।

उसके बाद कोई भी उन्हें वह प्राप्त करने से रोक नहीं पाया जो वे चाहते थे… एक मुख्य व्यक्ति जिसे गुरप्रीत सिंह पिता और भाई के अलावा मुख्य श्रेय देते हैं वे हैं उनकी पत्नी। वे उनके खेती उद्यम में उनकी मुख्य स्तंभ है।

गेंदे के उत्पादन के बाद उन्होंने ग्लैडियोलस, गुलज़ाफरी, गुलाब, स्टेटाइस और जिप्सोफिला फूलों का उत्पादन किया। इस तरह वे आम किसान से प्रगतिशील किसान बन गए।

उनके विदेशी यात्राओं के कुछ आंकड़े

2002 में, जानकारी के लिए उनके सवाल उन्हें हॉलैंड ले गए, जहां पर उन्होंने फ्लोरीएड (हर 10 वर्षों के बाद आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फूल प्रदर्शनी) में भाग लिया।

उन्होंने आलसमीर, हॉलैंड में ताजा फूलों के लिए दुनिया की सबसे बड़ी नीलामी केंद्र का भी दौरा किया।

2003 में ग्लासगो, यू.के. में विश्व गुलाब सम्मेलन में भी भाग लिया।

कैसे उन्होंने अपनी खेती की गतिविधियों को विभिन्नता दी

अपने बढ़ते फूलों की खेती के कार्य के साथ, उन्होंने वर्मीकंपोस्ट प्लांट की स्थापना की और अपनी खेती गतिविधियों में मछली पालन को शामिल किया।

वर्मीकंपोस्ट प्लांट उन्हें दो तरह से समर्थन दे रहा है— वे अपने खेतों में खाद का प्रयोग करने के साथ साथ इसे बाजार में भी बेच रहे हैं।

उन्होंने अपने उत्पादों की श्रृंख्ला बनाई है जिसमें गुलाब जल, गुलाब शर्बत, एलोवेरा और आंवला रस शामिल हैं। कंपोस्ट और रोज़वॉटर ब्रांड नाम “बाल्सन” और रोज़ शर्बत, एलोवेरा और आंवला रस “शेरगिल फार्म फ्रेश” ब्रांड नाम के तहत बेचे जाते हैं।

अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ उन्होंने कृषि के लिए अपने जुनून को एक सफल व्यवसाय में बदल दिया।

कृषि से संबंधित सरकारी निकायों ने जल्दी ही उनके प्रयत्नों को पहचाना और उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जिनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं:

• 2011 में पी.ए.यू लुधियाना द्वारा पंजाब मुख्य मंत्री पुरस्कार

• 2012 में आई.सी.ए.आर, नई दिल्ली द्वारा जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार

• 2014 में आई.सी.ए.आर, नई दिल्ली द्वारा एन जी रंगा किसान पुरस्कार

• 2015 में आई.ए.आर.आई, नई दिल्ली द्वारा अभिनव किसान पुरस्कार

• 2016 में आई.ए.आर.आई, नई दिल्ली द्वारा किसान के प्रोग्राम के लिए राष्ट्रीय सलाहकार पैनल के सदस्य के लिए नामांकित हुए।

यहां तक कि, बहुत कुछ हासिल करने के बाद, गुरप्रीत सिंह शेरगिल अपनी उपलब्धियों को लेकर कभी शेखी नहीं मारते। वे एक बहुत ही स्पष्ट व्यक्ति हैं जो हमेशा ज्ञान प्राप्त करने के लिए विभिन्न सूचना स्त्रोतों की तलाश करते हैं और इसे अपनी कृषि तकनीकों में जोड़ते हैं। इस समय, वे आधुनिक खेती,फ्लोरीक्लचर टूडे, खेती दुनिया आदि जैसी कृषि पत्रिकाओं को पढ़ना पसंद करते हैं। वे कृषि मेलों और समारोह में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे ज्ञान को सांझा करने में विश्वास रखते हैं और जो किसान उनके पास मदद के लिए आता है उसे कभी भी निराश नहीं करते। किसान समुदाय की मदद के लिए वे अपने ज्ञान का योगदान करके अपनी खेती विशेषज्ञ के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

गुरप्रीत शेरगिल ने यह करके दिखाया है कि यदि कोई व्यक्ति काम के प्रति समर्पित और मेहनती है तो वह कोई भी सफलता प्राप्त कर सकता है और आज के समय में जब किसान घाटों और कर्ज़ों की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं तो वे पूरे कृषि समाज के लिए एक मिसाल के रूप में खड़े हैं, यह दर्शाकर कि विविधीकरण समय की जरूरत है और साथ ही साथ कृषि समाज के लिए बेहतर भविष्य का मार्ग भी है।

उनके विविध कृषि व्यवसाय के बारे में और जानने के लिए उनकी वैबसाइट पर जायें।