नवरीत कौर

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खाना बनाने के शौक को व्यवसाय में बदलने वाली एक सफल महिला किसान

जिन्होंने मंजिल तक पहुंचना होता है वह मुश्किलों की परवाह नहीं करते, क्योंकि मंजिल भी उन्हीं तक पहुंचती है जिन्होंने मेहनत की होती है। सभी को अपनी काबिलियत पहचानने की जरुरत होती है. जिसने अपनी काबिलियत और खुद पर भरोसा कर लिया, मंजिल खुद ही उनकी तरफ आ जाती है।

इस स्टोरी में हम बात करेंगे एक महिला के बारे में जो अपने आप में गर्व वाली बात है, क्योंकि आजकल ऐसा समय है जहाँ औरत आदमी के साथ मिलकर काम करती है। पहले से ही औरत पढ़ाई, डॉक्टर, विज्ञान आदि के क्षेत्र में काम करती है लेकिन आज के समय में कृषि के क्षेत्र में भी अपना नाम बना रही है।

एक ऐसी महिला किसान “नवरीत कौर” जो जिला संगरूर के “मिमसा” गांव के रहने वाले हैं। जिन्होंने MA, M.ED की पढ़ाई की है। जो कॉलेज में पढ़ाते थे, पर कहते हैं कि परमात्मा ने इंसान को धरती पर जिस काम के लिए भेजा होता है, वह उसके हाथों से ही होना होता है।

यह बात नवरीत कौर जी पर लागू होती है, जिनके मन में कृषि के क्षेत्र में कुछ अलग करने का इरादा था और इस इरादे को दृढ़ निश्चय बनाने वाले उनके पति परगट सिंह रंधावा जी ने उनका बहुत साथ था। उनके पति ने M.Tech की हुई हैं, जोकि हिन्दुस्तान यूनीलिवर लिमिटेड, नाभा में सीनियर मैनेजर हैं और PAU किसान क्लब के सदस्य भी हैं। उनके पति नौकरी के साथ साथ कृषि नहीं कर सकते हैं थे इसलिए उन्होंने खुद खेती करनी शुरू की जिसमें उनके पति ने उनका साथ दिया।

खेती करना मुख्य व्यवसाय तो था पर मैं सोचती थी कि परंपरागत खेती को छोड़ कर कुछ नया किया जाए- नवरीत कौर

उन्होंने 2007 में निश्चित रूप से जैविक खेती करना शुरू कर दिया और 4 एकड़ में दालें और देसी फसल के साथ शुरुआत की। कुछ समय बाद ही यह समस्या आई कि इतनी फसल की खेती कर तो ली है लेकिन इसका मंडीकरण कैसे किया जाए। उनके पति के इलावा इस काम में उनके साथ में कोई नहीं था, क्योंकि परिवार का मुख्य व्यवसाय परंपरागत खेती ही था, पर परंपरागत खेती से अलग कुछ ऐसा करना जिसका कोई अनुभव नहीं था। यदि परंपरागत खेती कामयाब नहीं हुई तो परिवार वाले क्या बोलेंगे।

मुझे जब भी कहीं खेती में मुश्किलें आईं वे हर समय मेरे साथ होते थे- नवरीत कौर

उन्होंने सबसे पहले घर में खाने वाली दालों से शुरुआत की, जो आसान था। इसके इलावा तेल बीज वाली फसलें और इसके साथ मंडीकरण की तरफ भी ध्यान देना शुरू किया।

मुझे खाना बनाने का शोक था, फिर मैंने सोचा क्यों न देसी गेहूं, चावल, तेल बीज, गन्ने की प्रोसेसिंग और मंडीकरण किया जाए- नवरीत कौर

जब उन्होंने ने अच्छे से खेती करना सीख लिया तो उनका अगला काम प्रोसेसिंग करना था, प्रोसेसिंग करने से पहले उन्होंने दिल्ली IARI, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना, सोलन के साथ साथ ओर बहुत सी जगह से ट्रेनिंग ली है। ट्रेनिंग करने से प्रोसेसिंग करना शुरू कर दिया। अब वह शोक और उत्साह से प्रोसेसिंग कर रहे हैं।

2015 में उन्होंने बहुत से उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। इस समय वह घर की रसोई में ही उत्पाद तैयार करते हैं। इसके साथ गांव की महिलाओं को रोजगार भी मिल गया और प्रोसेसिंग की तरह भी ध्यान देने लगी।

उनकी तरफ से 15 तरह के उत्पादों को तैयार किया जाता है, वह सीधे तरह से बनाये गए उत्पाद को बेच रहे हैं जो इस तरह हैं:

  • देसी गेहूं की सेवइयां
  • गेहूं का दलिया
  • बिस्कुट
  • गाजर का केक
  • चावल के कुरकुरे
  • चावल के लड्डू की बड़ियां
  • मांह की बड़ियां
  • स्ट्रॉबेरी जैम
  • नींबू का अचार
  • आंवले का अचार
  • आम की चटनी
  • आम का अचार
  • मिर्च का आचार
  • च्यवनप्राश आदि।

पहले वह मंडीकरण अपने गांव और शहर में ही करते थे पर अब उनके उत्पाद कई जगह पर पहुँच गए हैं। जिसमें वह मुख्य तौर पर अपने द्वारा बनाये गए उत्पादों का मंडीकरण चंडीगढ़ आर्गेनिक मंडी में करते हैं। वह धीरे धीरे अपने उत्पादों को ऑनलइन बेचने के बारे में सोच रहे हैं।

मैं आज खुश हूं कि जिस काम को करने के बारे में सोचा था आज उसमे सफल हो गई हूं- नवरीत कौर

नवरीत कौर जी खाद भी खुद तैयार करते हैं जिसमें वर्मीकम्पोस्ट तैयार करके किसानों को दे भी रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि यदि इससे किसी का भला होता है तो बहुत बढ़िया होगा। इसके इलावा उन्हें हाथ से बनाई गई वस्तुओं के लिए MSME यूनिट्स की तरफ से इनाम भी प्राप्त है।

भविष्य की योजना

वह एक स्टोर बनाना चाहते हैं जहां पर वह अपने द्वारा तैयार किए गए उत्पाद का मंडीकरण खुद ही कर सकें। जिसमें किसी तीसरे की जरुरत न हो। किसान से उपभोक्ता तक का मंडीकरण सीधा हो। वह अपना फार्म बनाना चाहते हैं जहां पर वह प्रोसेसिंग के साथ साथ उसकी पैकिंग भी कर सकें।

संदेश

खेती कभी करते हैं, पर एक ही तरह की खेती नहीं करनी चाहिए। उसे बड़े स्तर पर ले जाने के बारे में सोचना चाहिए। जो भी फसल उगाई जाती है उसके बारे में सोच कर फिर आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें लाभ ही लाभ है। यदि हो सके तो खुद ही प्रोसेसिंग कर खुद ही उत्पादों को बेचना चाहिए।

विवेक उनियाल

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देश की सेवा करने के बाद धरती मां की सेवा कर रहा देश का जवान और किसान

हम सभी अपने घरों में चैन की नींद सोते हैं, क्योंकि हमें पता है कि देश की सरहद पर हमारी सुरक्षा के लिए फौज और जवान तैनात हैं, जो कि पूरी रात जागते हैं। जैसे देश के जवान देश की सुरक्षा के लिए अपने सीने पर गोली खाते हैं, उसी तरह किसान धरती का सीना चीरकर अनाज पैदा करके सब के पेट की भूख मिटाते हैं। इसीलिए हमेशा कहा जाता है — “जय जवान जय किसान”

हमारे देश का ऐसा ही नौजवान है जिसने पहले अपने देश की सेवा की और अब धरती मां की सेवा कर रहा है। नसीब वालों को ही देश की सेवा करने का मौका मिलता है। देहरादून के विवेक उनियाल जी ने फौज में भर्ती होकर पूरी ईमानदारी से देश और देशवासियों की सेवा की।

एक अरसे तक देश की सेवा करने के बाद फौज से सेवा मुक्त होकर विवेक जी ने धरती मां की सेवा करने का फैसला किया। विवेक जी के पारिवारिक मैंबर खेती करते थे। इसलिए उनकी रूचि खेती में भी थी। फौज से सेवा मुक्त होने के बाद उन्होंने उत्तराखंड पुलिस में 2 वर्ष नौकरी की और साथ साथ अपने खाली समय में भी खेती करते थे। फिर अचानक उनकी मुलाकात मशरूम फार्मिंग करने वाले एक किसान दीपक उपाध्याय से हुई, जो जैविक खेती भी करते हैं। दीपक जी से विवेक को मशरूम की किस्मों  ओइस्टर, मिल्की और बटन के बारे में पता लगा।

“दीपक जी ने मशरूम फार्मिंग शुरू करने में मेरा बहुत सहयोग दिया। मुझे जहां भी कोई दिक्कत आई वहां दीपक जी ने अपने तजुर्बे से हल बताया” — विवेक उनियाल

इसके बाद मशरूम फार्मिंग में उनकी दिलचस्पी पैदा हुई। जब इसके बारे में उन्होंने अपने परिवार में बात की तो उनकी बहन कुसुम ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। दोनों बहन — भाई ने पारिवारिक सदस्यों के साथ सलाह करके मशरूम की खेती करने के लिए सोलन, हिमाचल प्रदेश से ओइस्टर मशरूम का बीज खरीदा और एक कमरे में मशरूम उत्पादन शुरू किया।

मशरूम फार्मिंग शुरू करने के बाद उन्होंने अपने ज्ञान में वृद्धि और इस काम में महारत हासिल करने के लिए उन्होंने मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग भी ली। एक कमरे में शुरू किए मशरूम उत्पादन से उन्होंने काफी बढ़िया परिणाम मिले और बाज़ार में लोगों को यह मशरूम बहुत पसंद आए। इसके बाद उन्होंने एक कमरे से 4 कमरों में बड़े स्तर पर मशरूम उत्पादन शुरू कर दिया और ओइस्टर  के साथ साथ मिल्की बटन मशरूम उत्पादन भी शुरू कर दिया। इसके साथ ही विवेक ने मशरूम के लिए कंपोस्टिंग प्लांट भी लगाया है जिसका उद्घाटन उत्तराखंड के कृषि मंत्री ने किया।

मशरूम फार्मिंग के साथ ही विवेक जैविक खेती की तरफ भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। पिछले 2 वर्षों से वे जैविक खेती कर रहे हैं।

“जैसे हम अपनी मां की देखभाल और सेवा करते हैं, ठीक उसी तरह हमें धरती मां के प्रति अपने फर्ज़ को भी समझना चाहिए। किसानों को रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए ” — विवेक उनियाल

विवेक अन्य किसानों को जैविक खेती और मशरूम उत्पादन के लिए उत्साहित करने के लिए अलग अलग गांवों में जाते रहते हैं और अब तक वे किसानों के साथ मिलकर लगभग 45 मशरूम प्लांट लगा चुके हैं। उनके पास कृषि यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी  मशरूम उत्पादन के बारे में जानकारी लेने और किसान मशरूम उत्पादन प्लांट लगाने के लिए उनके पास सलाह लेने के लिए आते रहते हैं। विवेक भी उनकी मदद करके अपने आपको भाग्यशाली महसूस करते हैं।

“मशरूम उत्पादन एक ऐसा व्यवसाय है जिससे पूरे परिवार को रोज़गार मिलता है” — विवेक उनियाल

भविष्य की योजना
विवेक जी आने वाले समय में मशरूम से कई तरह के उत्पाद जैसे आचार, बिस्किट, पापड़ आदि तैयार करके इनकी मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश
“किसानों को अपनी आय को बढ़ाने के लिए खेती के साथ साथ कोई ना कोई सहायक व्यवसाय भी करना चाहिए। पर छोटे स्तर पर काम शुरू करना चाहिए ताकि इसके होने वाले फायदों और नुकसानों के बारे में पहले ही पता चल जाए और भविष्य में कोई मुश्किल ना आए।”

शमशेर सिंह संधु

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जानिये क्या होता है जब नर्सरी तैयार करने का उद्यम कृषि के क्षेत्र में अच्छा लाभ देता है

जब कृषि की बात आती है तो किसान को भेड़ चाल नहीं चलना चाहिए और वह काम करना चाहिए जो वास्तव में उन्हें अपने बिस्तर से उठकर, खेतों जाने के लिए प्रेरित करता है, फिर चाहे वह सब्जियों की खेती हो, पोल्टरी, सुअर पालन, फूलों की खेती, फूड प्रोसेसिंग या उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना हो। क्योंकि इस तरह एक किसान कृषि में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है।

जाटों की धरती—हरियाणा से एक ऐसे प्रगतिशील किसान शमशेर सिंह संधु ने अपने विचारों और सपनों को पूरा करने के लिए कृषि के क्षेत्र में अपने रास्तों को श्रेष्ठ बनाया। अन्य किसानों के विपरीत, श्री संधु मुख्यत: बीज की तैयारी करते हैं जो उन्हें रासायनिक खेती तकनीकों की तुलना में अच्छा मुनाफा दे रहा है।

कृषि के क्षेत्र में अपने पिता की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, शमशेर सिंह ने 1979 में अपनी पढ़ाई (बैचलर ऑफ आर्ट्स) पूरी करने के बाद खेती को अपनाने का फैसला किया और अगले वर्ष उन्होंने शादी भी कर ली। लेकिन गेहूं, धान और अन्य रवायती फसलों की खेती करने वाले अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना उनके लिए मुश्किल था और वे अभी भी अपने पेशे को लेकर उलझन में थे।

हालांकि, कृषि क्षेत्र इतने सारे क्षेत्र और अवसरों के साथ एक विस्तृत क्षेत्र है, इसलिए 1985 में उन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के युवा किसान ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में पता चला, यह प्रोग्राम 3 महीने का था जिसके अंतर्गत डेयरी जैसे 12 विषय थे जैसे डेयरी, बागबानी, पोल्टरी और कई अन्य विषय। उन्होंने इसमें भाग लिया। ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उन्होंने बीज तैयार करने शुरू किए और बिना सब्जी मंडी या कोई अन्य दुकान खोले बिना उन्होंने घर पर बैठकर ही बीज तैयार करने के व्यवसाय से अच्छी कमाई की।

कृषि गतिविधियों के अलावा, शमशेर सिंह सुधु एक सामाजिक पहल में भी शामिल हैं जिसके माध्यम से वे ज़रूरतमंदों को कपड़े दान करके उनकी मदद करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से अवांछित कपड़े इक्ट्ठे करने और अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करने के लिए किसानों का एक समूह बनाया है।

बीज की तैयारी के लिए, शमशेर सिंह संधु पहले स्वंय यूनिवर्सिटी से बीज खरीदते, उनकी खेती करते, पूरी तरह पकने की अवस्था पर पहुंच कर इसकी कटाई करते और बाद में दूसरे किसानों को बेचने से पहले अर्ध जैविक तरीके से इसका उपचार करते। इस तरीके से वे इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं उनका उद्यम इतना सफल है कि उन्हें 2015 और 2018 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और फैलो फार्मर अवार्ड के साथ आई.ए.आर.आई ने उत्कृष्ट प्रयासों के लिए दो बार सम्मानित किया है।

वर्तमान में शमशेर सिंह संधु बीज की तैयारी के साथ, ग्वार, गेहूं, जौ, कपास और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इससे अच्छे लाभ कमा रहे हैं। भविष्य में वे अपने संधु बीज फार्म के काम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि अन्य पड़ोसी राज्यों में भी बीज की आपूर्ति कर सकें।

संदेश
किसानों को अन्य बीज आपूर्तिकर्ताओं के बीज भी इस्तेमाल करके देखने चाहिए ताकि वे अच्छे सप्लायर और बुरे के बीच का अंतर जान सकें और सर्वोत्तम का चयन कर फसलों की बेहतर उपज ले सकें।

इंदर सिंह

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जानिये कैसे आलू और पुदीने की खेती से इस किसान को कृषि के क्षेत्र में सफलता के साथ आगे बढ़ने में मदद मिल रही है

पंजाब के जालंधर शहर के 67 वर्षीय इंदर सिंह एक ऐसे किसान है जिन्होंने आलू और पुदीने की खेती को अपनाकर अपना कृषि व्यवसाय शुरू किया।

19 वर्ष की कम उम्र में, इंदर सिंह ने खेती में अपना कदम रखा और तब से वे खेती कर रहे हैं। 8वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ने के बाद, उन्होंने आलू, गेहूं और धान उगाने का फैसला किया। लेकिन गेहूं और धान की खेती वर्षों से करने के बाद भी लाभ ज्यादा नहीं मिला।

इसलिए समय के साथ लाभ में वृद्धि के लिए वे रवायती फसलों से जुड़े रहने की बजाय लाभपूर्ण फसलों की खेती करने लगे। एक अमेरिकी कंपनी—इंडोमिट की सिफारिश पर, उन्होंने आलू की खेती करने के साथ तेल निष्कर्षण के लिए पुदीना उगाना शुरू कर दिया।

“1980 में, इंडोमिट कंपनी (अमेरिकी) के कुछ श्रमिकों ने हमारे गांव का दौरा किया और मुझे तेल निकालने के लिए पुदीना उगाने की सलाह दी।”

1986 में, जब इंडोमिट कंपनी के प्रमुख ने भारत का दौरा किया, वे इंदर सिंह द्वारा पुदीने का उत्पादन देखकर बहुत खुश हुए। इंदर सिंह ने एक एकड़ की फसल से लगभग 71 लाख टन पुदीने का तेल निकालने में दूसरा स्थान हासिल किया और वे प्रमाणपत्र और नकद पुरस्कार से सम्मानित हुए। इससे श्री इंदर सिंह के प्रयासों को बढ़ावा मिला और उन्होंने 13 एकड़ में पुदीने की खेती का विस्तार किया।

पुदीने के साथ, वे अभी भी आलू की खेती करते हैं। दो बुद्धिमान व्यक्तियों डॉ. परमजीत सिंह और डॉ. मिन्हस की सिफारिश पर उन्होंने विभिन्न तरीकों से आलू के बीज तैयार करना शुरू कर दिया है। उनके द्वारा तैयार किए गए बीज, गुणवत्ता में इतने अच्छे थे कि ये गुजरात, बंगाल, इंदौर और भारत के कई अन्य शहरों में बेचे जाते हैं।

“डॉ. परमजीत ने मुझे आलू के बीज तैयार करने का सुझाव दिया जब वे पूरी तरह से पक जाये और इस तकनीक से मुझे बहुत मदद मिली।”

2016 में इंदर सिंह को आलू के बीज की तैयारी के लिए पंजाब सरकार से लाइसेंस प्राप्त हुआ।

वर्तमान में इंदर सिंह पुदीना (पिपरमिंट और कोसी किस्म), आलू (सरकारी किस्में: ज्योती, पुखराज, प्राइवेट किस्म:1533 ), मक्की, तरबूज और धान की खेती करते हैं। अपने लगातार वर्षों से कमाये पैसों को उन्होंने मशीनरी और सर्वोत्तम कृषि तकनीकों में निवेश किया। आज, इंदर सिंह के पास उनकी फार्म पर सभी आधुनिक कृषि उपकरण हैं और इसके लिए वे सारा श्रेय पुदीने और आलू की खेती को अपनाने को देते हैं।

इंदर सिंह को अपने सभी उत्पादों के लिए अच्छी कीमत मिल रही है क्योंकि मंडीकरण में कोई समस्या नहीं है क्योंकि तरबूज फार्म पर बेचा जाता है और पुदीने को तेल निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है जो उन्हें 500 प्रति लीटर औसतन रिटर्न देता है। उनके तैयार किए आलू के बीज भारत के विभिन्न शहरों में बेचे जाते हैं।

कृषि के क्षेत्र में उनके जबरदस्त प्रयासों के लिए, उन्हें 1 फरवरी 2018 को पंजाब कृषि विश्वद्यिालय द्वारा सम्मानित किया गया है।

भविष्य की योजना
भविष्य में इंदर सिंह आलू के चिप्स का अपना प्रोसेसिंग प्लांट खोलने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
“खादों, कीटनाशकों और अन्य कृषि इनपुट के बढ़ते रेट की वजह से कृषि दिन प्रतिदिन महंगी हो रही है इसलिए किसान को सर्वोत्तम उपज लेने के लिए स्थायी कृषि तकनीकों और तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।”

संतवीर सिंह बाजवा

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जानिये कैसे एक वकील पॉलीहाउस में फूलों की खेती करके कृषि को एक सफल उद्यम बना रहा है

आपके पास केवल ज़मीन का होना भारी कर्ज़े और रासायनिक खेती के दुष्चक्र से बचने का एकमात्र साधन नहीं है क्योंकि यह दिन प्रतिदिन किसानों को अपाहिज बना रहा है। किसान को एक ऐसा व्यक्ति माना जाता है जिसे भविष्य के परिणामों को ध्यान में रखकर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और यदि भविष्य के परिणामों में से कोई भी विफल रहता है तो किसान को अन्य विकल्पों के साथ तैयार भी रहना पड़ता है। और केवल वे किसान जो आधुनिक तकनीकों, आदर्श मंडीकरण रणनीतियों और निश्चित रूप से कड़ी मेहनत की मदद से अपने आप को टूटने नहीं देते और खेती के सही तरीके को समझते हैं, सिर्फ उनकी अगली पीढ़ी ही इस पेशे को खुशी से अपनाती है।
यह कहानी है होशियारपुर स्थित वकील संतवीर सिंह बाजवा की जो बागबानी के क्षेत्र में अपने पिता जतिंदर सिंह लल्ली बाजवा की सफलता को देखने के बाद सफल युवा किसान बने। अपने पिता के समान उन्होंने पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने का फैसला किया और इस उद्यम को सफल भी बनाया।

संतवीर सिंह बाजवा अपने विचार साझा करते हुए — वर्तमान में अगर हम आज के युवाओं को देखे तो हमें एक स्पष्ट चीज़ का पता चल सकता है कि या तो आजकल के नौजवान विदेश जा रहे हैं या फिर वे खेती के अलावा कोई और पेशे का चयन कर रहे हैं और इसके पीछे का मुख्य कारण कृषि में कोई निश्चित आय ना होना है, और तो और इसमें नुकसान का डर भी रहता है। इसके अलावा मौसम और सरकारी योजना भी किसान को ढंग से सहारा नहीं दे पाता।

अपने पिता के समान कौशल जिन्होंने विवधीकरण को सफलतापूर्वक अपनाया और महलांवाली गांव में एक सुंदर फलों के बाग की स्थापना की , संतवीर सिंह ने भी अपना फूलों की खेती के पॉलीहाउस की स्थापना की जहां पर उन्होंने जरबेरा की खेती शुरू की। सजावटी फूलों के बाजार की मांग के बारे में अवगत होने के कारण, संतवीर ने गुलाब ओर कारनेशन की खेती भी शुरू कर दी जिससे उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त हुआ।

पॉलीहाउस में खेती करने के अपने अनुभव से, मैं अन्य किसानों के साथ एक महत्तवपूर्ण जानकारी साझा करना चाहता हूं कि पॉलीहाउस में काश्त की फसलों और उचित कृषि तकनीकों की देखभाल करने की आवश्यकता होती है, केवल तभी आप अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से फूलों के विशेषज्ञयों और प्रगतिशील किसानों से परामर्श करता हूं और अपना सर्वश्रेष्ठ कोशिश देन के लिए इंटरनेट से भी मदद लेता हूं। — संतवीर सिंह बाजवा।

अब भी संतवीर सिंह बाजवा अपने पिता की नई मंडीकरण रणनीतियों से मदद कर रहे हैं और फलों की खेती से भी अच्छा लाभ कमा रहे हैं।
संदेश
यदि किसान कृषि तकनीकों से अच्छी प्रकार से अवगत हैं तो पॉलीहाउस में खेती करना एक बहुत ही लाभदायक उद्यम है। युवा किसानों को पॉलीहाउस में खेती करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में उनके लिए बहुत संभावनाएं हैं और वे इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं 

ननिल चौधरी

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मिलिये अगली पीढ़ी के समृद्ध किसान से जो उत्तर प्रदेश में स्थानीय रोज़गार को बढ़ावा दे रहा है

ननिल चौधरी के फार्म का दृश्य सपनों वाली सुगंधित दुनिया में किसी को भी उड़ा देगा। खैर आप सोच रहे होंगे कि वहां फसल, गायें, भैंसों, धूल और गोबर के अलावा और क्या हो सकता है? तो आप गलत हैं क्योंकि ननिल चौधरी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के एक ऐसे उभरते किसान हैं जो फूलों की खेती करते हैं और उनके फार्म में आपको केवल जरबेरा, रजनीगंधा, ग्लेडियोलस और कई अन्य रंग बिरंगे फूल देखने को मिलेंगे।

पारंपरिक खेती की पृष्ठभूमि से आने से, ननिल चौधरी की कृषि यात्रा अन्य किसानों की तरह गेहूं, बाजरा, आलू, जौं और सरसों की खेती के साथ शुरू हुई जो कि 2014-15 तक रही । यद्यपि उन्होंने एक पारंपरिक किसान की तरह शुरूआत की, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने मन में उस रूढ़िवादी सोच को सीमित नहीं रखा और वर्ष 2015—16 में उन्होंने फूलों की खेती के क्षेत्र में प्रवेश किया।

ननिल चौधरी को अलीगढ़ जिले में इग्लास तहसील के पास पॉलीहाउस में जरबेरा के बागान के बारे में पता चला। कुछ पूछताछ करने के बाद उन्हें पता चला कि इसे स्थापित करने के लिए बड़ी भूमि की आवश्यकता है। चूंकि उनकी मां श्रीमती कृष्णा कुमारी के पास काफी ज़मीन थी इसलिए उनके नाम पर परियोजना मंजूर की गई और इसी तरह कृष्णा बायोटेक की स्थापना हुई।

“जलवायु नियंत्रित पॉलीहाउस की स्थापना के लिए मैंने लगभग 1.10 करोड़ का निवेश किया जिनमें से 75 लाख रूपये RBL बैंक लिमिटेड द्वारा दिए गए और यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी मदद थी।”

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए रोज़गार पैदा करने के उद्देश्य से वे फूलों की खेती की तरफ बढ़े और आज उनके अपने दो जलवायु नियंत्रित पॉलीहाउस हैं जहां पर उन्होंने 2 एकड़ में जरबेरा के 40000 पौधे लगाए हैं। पॉलीहाउस के बाहर 6 एकड़ में उन्होंने ग्लेडियोलस, 6 एकड़ में रजनीगंधा, 1 एकड़ में ब्रासिका और 3 एकड़ में गुलदाउदी के पौधे लगाए हैं।

और कैसे ये फूल ननिल चौधरी के कारोबार को मुनाफे में बदल रहे हैं:
एक जरबेरा का पौधा एक वर्ष में 25 फूल देता है जिसके फलस्वरूप 1000000 फूलों की उत्पादन संख्या में बदल जाती है और जब यह फूलों की संख्या 2.50 रूपये के हिसाब से बेची जाती है तो एक वर्ष में 20लाख की आमदन होती है। सब खर्चों की कटौती करने के बाद ननिल चौधरी को प्रति वर्ष 6—7 लाख का शुद्ध लाभ मिलता है। यह लाभ केवल जरबेरा फूल से है। इसके अलावा रजनिगंधा प्रति एकड़ 2 लाख के लगभग मुनाफा देता है। ग्लेडियोलस 1.50 लाख प्रति एकड़ के लगभग और गुलदाउदी प्रति वर्ष 3 लाख प्रति एकड़ के लगभग मुनाफा देता है।

“श्रम शुल्कों, बैंक किश्तों और अन्य इनपुट लागतों के व्यय को छोड़कर, यह फूल उत्पादन का उद्योग मुझे प्रति वर्ष लगभग 14 लाख का लाभ प्रदान कर रहा है।”

ननिल चौधरी के लिए, शुरूआत में मंडीकरण थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि दिल्ली को फूलों की डिलीवरी करना मुश्किल था, लेकिन बाद में 2017—18 में, उत्तर प्रदेश राज्य रोडवेज़ बसें फूलों के मंडीकरण का सबसे अच्छा माध्यम थी।

कुछ लोग जो ननिल चौधरी के लिए उनकी फूलों की कृषि यात्रा के दौरान खंभे की तरह उनके साथ खड़े थे उनकी मां, डॉ. माम चंद सिंह (वैज्ञानित और आई.ए आर.आई, पूसा, नई दिल्ली में संरक्षित खेती विभाग प्रमुख) और श्री कौशल कुमार (जिला बागबानी अधिकारी, अलीगढ़)।

ज्ञान प्रसार सबसे महत्तवपूर्ण बात है जिसे ननिल चौधरी हमेशा मानते हैं और उत्तर प्रदेश के इटाह, हाथरस, मेरठ और गाज़ियाबाद जिलों के विभिन्न किसानों को फूलों की खेती के बारे में बताया है।

वर्तमान में, ननिल चौधरी के फार्म में 20—22 कुशल श्रमिक हैं जो विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए प्लांटर, ड्रिप सिंचाई प्रणाली, सौर ऊर्जा सिंचाई पंप जैसे आधुनिक उपकरणों की मदद से पूरी तरह मशीनीकृत फार्म का काम करते हैं।

भविष्य के लिए ननिल चौधरी के पास कुछ योजनाएं हैं:
• रजनीगंधा से आवश्यक तेल निकालने की संभावना का पता लगाने की योजना
• उत्तरांचल में बड़े पैमाने पर फूलों की खेती का विस्तार करना।
• व्यापारिक खेती के लिए ग्लेडियोलस कंद,रजनिगंधा कंद और गुलदाउदी नर्सरी का बड़े पैमाने पर उत्पादन।

फूल उत्पादन के उद्यम द्वारा ननिल चौधरी ने अपने क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखा है, लोगों को खेती, कटाई, पैकिंग और फूलों के परिवहन के कारण नियमित आय मिलती है, उन लोगों की आय उनके चेहरे पर वास्तविक खुशी दिखाती है … ननिल चौधरी

फूलों की खेती के क्षेत्र में जबरदस्त प्रयास करने के लिए ननिल चौधरी को सम्मानित किया गया है-
• 2016—17 में विभागीय कमिश्नर, अलीगढ़ द्वारा प्रगतिशील किसान पुरस्कार प्राप्त हुआ।
• दूरदर्शन, दिल्ली द्वारा कृष्णा बायोटेक फार्म पर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार की गई थी और 22 नवंबर 2016 को कृषि दर्शन कार्यक्रम में प्रसारित की गई थी।
• बाद में वर्ष 2017—18 में, दूरदर्शन ने एक और डॉक्यूमेंट्री तैयार की और 27 दिसंबर 2017 को डी डी कृषि दर्शन पर प्रसारित की गई।
ननिल चौधरी के दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से कृष्णा बायोटेक ने फूलों की खेती का विसतार किया जिससे उनके परिवार और फार्म में काम करने वाले लोगों के लिए एक गुणवत्ता मानिक निर्धारित हुआ।

गुरप्रीत शेरगिल

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जानिये कैसे ये किसान पंजाब में फूलों की खेती में क्रांति ला रहे हैं

हाल के वर्षों में, भारत में उभरते कृषि व्यवसाय के रूप में फूलों की खेती उभर कर आई है और निर्यात में 20 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि फूलों के उद्योग में देखी गई है। यह भारत में कृषि क्षेत्र के विकास का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अच्छा संकेत है जो कुछ महान प्रगतिशील किसानों के योगदान के कारण ही संभव हुआ है।

1996 वह वर्ष था जब पंजाब में फूलों की खेती में क्रांति लाने वाले किसान गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने फूलों की खेती की तरफ अपना पहला कदम रखा और आज वे कई प्रतिष्ठित निकायों से जुड़ें फूलों की पहचान करने वाले प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

गुरप्रीत सिंह शेरगिल – “1993 में मकैनीकल इंजीनियरिंग में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, मैं अपने पेशे के चयन को लेकर उलझन में था। मैं हमेशा से ऐसा काम करता चाहता था जो मुझे खुशी दे ना कि वह काम जो मुझे सांसारिक सुख दे।”

गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने कृषि के क्षेत्र का चयन किया और साथ ही उन्होंने डेयरी फार्मिंग अपने पूर्ण कालिक पेशे के रूप में शुरू किया। वे कभी भी अपने काम से संतुष्टि नहीं महसूस करते थे जिसने उन्हें अधिक मेहनती और गहराई से सोचने वाला बनाया। यह तब हुआ जब उन्हें एहसास हुआ कि वे गेहूं — धान के चक्र में फंसने के लिए यहां नहीं है और इसे समझने में उन्हें 3 वर्ष लग गए। फूलों ने हमेशा ही उन्हें मोहित किया इसलिए अपने पिता बलदेव सिंह शेरगिल की विशेषज्ञ सलाह और भाई किरनजीत सिंह शेरगिल के समर्थन से उन्होंने फूलों की खेती करने का फैसला किया। गेंदे के फूलों की उपज उनकी पहली सफल उपज थी जो उन्होंने उस सीज़न में प्राप्त की थी।

उसके बाद कोई भी उन्हें वह प्राप्त करने से रोक नहीं पाया जो वे चाहते थे… एक मुख्य व्यक्ति जिसे गुरप्रीत सिंह पिता और भाई के अलावा मुख्य श्रेय देते हैं वे हैं उनकी पत्नी। वे उनके खेती उद्यम में उनकी मुख्य स्तंभ है।

गेंदे के उत्पादन के बाद उन्होंने ग्लैडियोलस, गुलज़ाफरी, गुलाब, स्टेटाइस और जिप्सोफिला फूलों का उत्पादन किया। इस तरह वे आम किसान से प्रगतिशील किसान बन गए।

उनके विदेशी यात्राओं के कुछ आंकड़े

2002 में, जानकारी के लिए उनके सवाल उन्हें हॉलैंड ले गए, जहां पर उन्होंने फ्लोरीएड (हर 10 वर्षों के बाद आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फूल प्रदर्शनी) में भाग लिया।

उन्होंने आलसमीर, हॉलैंड में ताजा फूलों के लिए दुनिया की सबसे बड़ी नीलामी केंद्र का भी दौरा किया।

2003 में ग्लासगो, यू.के. में विश्व गुलाब सम्मेलन में भी भाग लिया।

कैसे उन्होंने अपनी खेती की गतिविधियों को विभिन्नता दी

अपने बढ़ते फूलों की खेती के कार्य के साथ, उन्होंने वर्मीकंपोस्ट प्लांट की स्थापना की और अपनी खेती गतिविधियों में मछली पालन को शामिल किया।

वर्मीकंपोस्ट प्लांट उन्हें दो तरह से समर्थन दे रहा है— वे अपने खेतों में खाद का प्रयोग करने के साथ साथ इसे बाजार में भी बेच रहे हैं।

उन्होंने अपने उत्पादों की श्रृंख्ला बनाई है जिसमें गुलाब जल, गुलाब शर्बत, एलोवेरा और आंवला रस शामिल हैं। कंपोस्ट और रोज़वॉटर ब्रांड नाम “बाल्सन” और रोज़ शर्बत, एलोवेरा और आंवला रस “शेरगिल फार्म फ्रेश” ब्रांड नाम के तहत बेचे जाते हैं।

अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ उन्होंने कृषि के लिए अपने जुनून को एक सफल व्यवसाय में बदल दिया।

कृषि से संबंधित सरकारी निकायों ने जल्दी ही उनके प्रयत्नों को पहचाना और उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जिनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं:

• 2011 में पी.ए.यू लुधियाना द्वारा पंजाब मुख्य मंत्री पुरस्कार

• 2012 में आई.सी.ए.आर, नई दिल्ली द्वारा जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार

• 2014 में आई.सी.ए.आर, नई दिल्ली द्वारा एन जी रंगा किसान पुरस्कार

• 2015 में आई.ए.आर.आई, नई दिल्ली द्वारा अभिनव किसान पुरस्कार

• 2016 में आई.ए.आर.आई, नई दिल्ली द्वारा किसान के प्रोग्राम के लिए राष्ट्रीय सलाहकार पैनल के सदस्य के लिए नामांकित हुए।

यहां तक कि, बहुत कुछ हासिल करने के बाद, गुरप्रीत सिंह शेरगिल अपनी उपलब्धियों को लेकर कभी शेखी नहीं मारते। वे एक बहुत ही स्पष्ट व्यक्ति हैं जो हमेशा ज्ञान प्राप्त करने के लिए विभिन्न सूचना स्त्रोतों की तलाश करते हैं और इसे अपनी कृषि तकनीकों में जोड़ते हैं। इस समय, वे आधुनिक खेती,फ्लोरीक्लचर टूडे, खेती दुनिया आदि जैसी कृषि पत्रिकाओं को पढ़ना पसंद करते हैं। वे कृषि मेलों और समारोह में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे ज्ञान को सांझा करने में विश्वास रखते हैं और जो किसान उनके पास मदद के लिए आता है उसे कभी भी निराश नहीं करते। किसान समुदाय की मदद के लिए वे अपने ज्ञान का योगदान करके अपनी खेती विशेषज्ञ के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

गुरप्रीत शेरगिल ने यह करके दिखाया है कि यदि कोई व्यक्ति काम के प्रति समर्पित और मेहनती है तो वह कोई भी सफलता प्राप्त कर सकता है और आज के समय में जब किसान घाटों और कर्ज़ों की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं तो वे पूरे कृषि समाज के लिए एक मिसाल के रूप में खड़े हैं, यह दर्शाकर कि विविधीकरण समय की जरूरत है और साथ ही साथ कृषि समाज के लिए बेहतर भविष्य का मार्ग भी है।

उनके विविध कृषि व्यवसाय के बारे में और जानने के लिए उनकी वैबसाइट पर जायें।