बबलू शर्मा

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2 कनाल से किया था शुरू और आज 2 एकड़ में फैल चूका है इस नौजवान प्रगतिशील किसान का पनीरी बेचने का काम

मुश्किलें किस काम में नहीं आती, कोई भी काम ऐसा नहीं होगा जो बिना मुश्किलों के पूरा हो सके।इसलिए हर इंसान को मुश्किलों से भरी नाव पर सवार होना चाहिए और किनारे तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करे, जिस दिन नाव किनारे लग जाए समझो इंसान कामयाब हो गया है।

मुक्तसर जिले के गांव खुन्नन कलां के एक युवा किसान बबलू शर्मा ने भी इसी जुनून के साथ एक पेशा अपनाया, जिसके बारे में वे थोड़ा-बहुत जानते थे और थोड़ा-सा ज्ञान उनके लिए एक अनुभव बन गया और आखिर में कामयाब हो कर दिखाया, उन्होंने हार नहीं मानी, बस अपने काम में लगे रहे और आजकल हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानता है।

साल 2012 की बात है जब बबलू शर्मा के पास कोई नौकरी नहीं थी और वह किसी के पास जाकर कुछ न कुछ सीखा करते थे, लेकिन यह कब तक चलने वाला था। एक न एक दिन अपने पैरों पर खड़ा होना ही था। एक दिन वह बैठे हुए थे तो अपने पिता जी के साथ बात करने लगे कि पिता जी ऐसा कौन-सा काम हो सकता है जोकि खेती का हो और दूसरा आमदन भी हो। पिता जी को तो खेती में पहले से ही अनुभव था क्योंकि वह पहले से ही खेती करते आ रहे हैं और अब भी कर रहे हैं । अपने आसपास के किसानों को देखते हुए बबलू ने अपने पिता जी के साथ सलाह करके सब्जियों की पनीरी का काम शुरू करने के बारे में सोचा।

काम तो शुरू हो गया लेकिन पैसा लगाने के बाद भी फेल होने का डर था- बबलू शर्मा

पिता पवन कुमार जी ने कहा, बिना कुछ सोचे काम शुरू कर, जब बबलू शर्मा ने सब्जी की पनीरी का काम पहली बार शुरू किया तो उनका कम से कम 35,000 रुपये तक का खर्चा आ गया था जिसमें उन्होंने प्याज, मिर्च, टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन आदि की पनीरी से जो 2 कनाल में शुरू की थी, पर जानकारी कम होने के कारण बब्लू के सामने समस्या आ खड़ी हुई, पर जैसे-जैसे पता चलता रहा, वह काम करते रहे हैं और इसमें बब्लू के पिता जी ने भी उनका पूरा साथ दिया।

जब समय अनुसार पनीरी तैयार हुई तो उसके बाद मुश्किल थी कि इसे कहाँ पर बेचना है और कौन इसे खरीदेगा। चाहे पनीरी को संभाल कर रख सकते हैं पर थोड़े समय के लिए ही, यह बात की चिंता होने लगी।

शाम को जब बबलू घर आया तो उसके दिमाग में एक ही बात आती थी कि कैसे क्या कर सकते हैं। उन्होंने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए बहुत रिसर्च की और उस समय इंटरनेट इतना नहीं था, फिर बहुत सोचने के बाद उनके मन में आया कि क्यों न गांवों में जाकर खुद ही बेचा जाए।

पिता ने यह कहते हुए सहमति व्यक्त की, “बेटा, जैसा तुम्हें ठीक लगे वैसा करो।” उसके बाद बबलू अपने गांव के पास के गांवों में ऑटो, छोटे हाथियों जैसे छोटे वाहनों में पनीरी बेचना शुरू किया। कभी गुरद्वारे द्वारा तो कभी किसी ओर तरह से पनीरी के बारे में लोगों को बताना, 3 से 4 साल लगातार ऐसा करने से पनीरी की मार्केटिंग भी होने लगी, जिससे लोगों को भी पता चलने लगा और मुनाफा भी होने लगा, पर बब्लू जी खुश नहीं थे, कि इस तरह से कब तक करेंगे, कोई ऐसा तरीका हो जिससे लोग खुद उनके पैसा पनीरी लेने के लिए आये और वह भी नर्सरी में बैठ कर ही पनीरी को बेचें।

इस बार जब बबलू पहले की तरह पनीरी बेचने गया तो कहीं से किसी ने उसे शर्मा नर्सरी के नाम से बुलाया, जिसे सुनकर बबलू बहुत खुश हुआ और जब पनीरी बेचकर वापस आया तो उसके मन में यही बात थी। उन्होंने इसके बारे में ध्यान से सोचा, फिर बबलू ने अपने पिता जी से सलाह ली और शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने का विचार किया। शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने के लिए दे दिए, उस पर हर एक जानकारी जैसे गांव का नाम, फ़ोन नंबर और जिस भी सब्जी की पनीरी उनके द्वारा लगाई जाती है, के बारे में कार्ड पर लिखवाया गया।

जब वह पनीरी बेचने के लिए गए तो वह बनवाये कार्ड वह अपने साथ ले गए। जब वह पनीरी किसे ग्राहक को बेच रहे थे तो साथ-साथ कार्ड भी देने शुरू कर दिए और इस तरह बनवाये कार्ड कई जगह पर बांटे गए।

जब वह घर वापस आए तो वह इंतजार कर रहे थे कोई कार्ड को देखकर फोन करेगा।कई दिन ऐसे ही बीत गए लेकिन वह दिन आया जब सफलता ने फोन पर दस्तक दी। जब उसने फोन उठाया तो एक किसान उससे पनीरी मांग रहा था, जिससे वह बहुत खुश हुए और धीरे-धीरे ऐसे ही उनकी मार्केटिंग होनी शुरू हो गई। फिर उन्होंने गांव-गांव जाकर पनीरी बेचनी बंद कर दिया और उनके कार्ड जब गांव से बाहर श्री मुक्तसर में किसी को मिले तो वहां भी लोगों ने पनीरी मंगवानी शुरू कर दी जिसे वह बस या गाडी द्वारा पहुंचा देते हैं। इस तरह उन्हें फ़ोन पर ही पनीरी के लिए आर्डर आने लगे फिर और उनके पास एक मिनट के लिए भी समय नहीं मिलता और आखिर उन्हें 2018 में सफलता हासिल हुई ।

जब वह पूरी तरह से सफल हो गए और काम करते करते अनुभव हो गया तो उन्होंने धीरे-धीरे करते 2 कनाल से शुरू किए काम को 2020 तक 2 एकड़ में और नर्सरी को बड़े स्तर पर तैयार कर लिया, जिसमें उन्होंने बाद में कद्दू, तोरी, करेला, खीरा, पेठा, जुगनी पेठा आदि की भी पनीरी लगा दी और पनीरी में क्वालिटी में भी सुधार लाये और देसी तरीके के साथ पनीरी पर काम करना शुरू कर दिया।

जिससे उनकी मार्केटिंग का प्रचार हुआ और आज उन्हें मार्केटिंग के लिए कहीं नहीं जाना पड़ता, फ़ोन पर आर्डर आते हैं और साथ के गांव वाले खुद आकर ले जाते हैं। जिससे उन्हें बैठे बैठे बहुत मुनाफा हो रहा है। इस कामयाबी के लिए वह अपने पिता पवन कुमार जी का धन्यवाद करते हैं।

भविष्य की योजना

वह नर्सरी में तुपका सिंचाई प्रणाली और सोलर सिस्टम के साथ काम करना चाहते हैं।

संदेश

काम हमेशा मेहनत और लगन के साथ करना चाहिए यदि आप में जज्बा है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं जो आपने पाने के लिए सोचा है।

जसकरन सिंह

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इस किसान ने साबित किया कि एक आम किसान भी कर सकता है कुछ विशेष, कुछ नया

भीड़ में चलने से कभी किसी की पहचान नहीं बनती, पहचान बनाने के लिए कुछ नया करना पड़ता है। जहां हर कोई एक दूसरे के पीछे लगकर काम कर रहा था, एक किसान ने लिया कुछ नया करने का फैसला। यह किसान स. बलदेव सिंह का पुत्र गांव कौणी तहसील गिदड़बाहा जिला मुक्तसर साहिब, पंजाब का रहने वाला है, जिसका नाम है — स. जसकरन सिंह।

स. बलदेव जी 27 एकड़ में रवायती खेती करते थे। पारिवारिक व्यवसाय, खेती होने के कारण बलदेव जी ने अपने पुत्र जसकरन को भी बहुत छोटी उम्र में ही खेतों में अपने साथ काम करवाना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया गया और पढ़ाई बीच में ही रह गई। 17—18 वर्ष की उम्र में जब खेतों में पैर रखा तो मिट्टी के साथ एक अलौकिक रिश्ता बन गया। शुरू से ही उनके पिता जी गेहूं—चने की रवायती खेती करते थे पर जसकरन सिंह जी के मन में कुछ और ही चल रहा था।

जब मैं बाहर देखता था कि रवायती खेती के अलावा खेती की जाती है, तो मेरा मन भी चाहता था कि कुछ अलग किया जाए कुछ नया किया जाए।— स. जसकरन सिंह

यही सोच मन में रखकर जसकरन जी ने स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फैसला किया। जसकरन जी के इस फैसले ने उनके पिता जी को बहुत निराश कर दिया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि एक ऐसी फसल लगानी जिसकी जानकारी ना हो एक बहुत बड़ा कदम था। पर उन्होंने अपने पिता जी को समझाकर अपने 2 दोस्तों के साथ मिलकर 8 एकड़ में स्ट्रॉबेरी का फार्म लगा लिया। मन में एक डर भी बना हुआ था कि जानकारी ना होने के कारण कहीं नुकसान ना हो जाए, पर एक विश्वास भी था कि मेहनत की हुई कभी व्यर्थ नहीं जाती। इसलिए खेती शुरू करने से पहले उन्होंने बागबानी से संबंधित ट्रेनिंग भी ली।

स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने में उन्हें ज्यादा कोई रूकावट नहीं आई। अपने दोस्तों से सलाह करके, उन्होंने पहले वर्ष दिल्ली से स्ट्रॉबेरी का बीज लिया। मजदूर ज्यादा लगने और मेहनत ज्यादा होने के कारण किसान यह खेती करना पसंद नहीं करते। पर थोड़े समय के बाद ही उनके दोस्तों को यह महसूस हुआ कि स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में कोई जानकारी ना होने के कारण उनके एक दोस्त ने इसके साथ ही अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए साथ ही और व्यापार करना शुरू कर दिया और दूसरा दोस्त जाने के प्रयास करने लग गया। पर जसकरन जी ने अपने मन में पक्का इरादा किया हुआ था कि कुछ भी हो जाए पर वे स्ट्रॉबेरी की खेती ज़रूर करेंगे।

बाहर की रंग—बिरंगी दुनिया नौजवानों को बहुत आकर्षित करती है, और नौजवान भी अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए बाहर को भाग रहे हैं। मैं चाहता था कि विदेश जाने की बजाए, यहां अपने देश में रहकर ही कुछ ऐसा किया जाए जिससे पंजाब और नई पीढ़ी की सोच में भी बदलाव आए और वे अपना भविष्य यहीं सुरक्षित कर सकें। — स. जसकरन सिंह

पहले वर्ष जसकरन जी को उम्मीद से ज्यादा फायदा हुआ। जिस कारण उन्होंने इस खेती की तरफ अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया। उसके बाद उन्होंने हिमाचल की एक किस्म भी लगायी और अब वे पूणे जिसे स्ट्रॉबेरी का हाथ कहा जाता है, वहां से बीज लाकर स्ट्रॉबेरी लगाते हैं। जसकरन जी बठिंडा,  मुक्तसर साहिब और मलोट की मंडी में स्ट्रॉबेरी बेचते हैं।

स्ट्रॉबेरी के साथ साथ जसकरन जी खरबूजा और खीरा भी उगाते हैं। अब उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करते हुए 4—5 वर्ष हो गए हैं और वे इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अपनी मेहनत से जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की नर्सरी लगा चुके हैं और इस नर्सरी में वे सब्जियां उगाते हैं।

हर वर्ष पानी का स्तर नीचे जा रहा है। इसलिए हमें तुपका सिंचाई का इस्तेमाल करना चाहिए। — जसकरन सिंह

भविष्य की योजना

भविष्य में जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की प्रोसेसिंग करके उससे उत्पाद तैयार करके मार्केटिंग करना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी इसके बारे में प्रेरित करना चाहते हैं।

संदेश
“मैं यही कहना चाहता हूं कि किसानों के खर्चे बढ़ रहे हैं पर गेहूं धान के मूल्य में कुछ ज्यादा फर्क नहीं आ रहा, इसलिए किसान भाइयों को रवायती खेती के साथ साथ कुछ अलग करना पड़ेगा। आज के समय में हमें पंजाब में फसली—विभिन्नता लाने की जरूरत है।”

कुलविंदर सिंह नागरा

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अच्छे वर्तमान और भविष्य की उम्मीद से कुलविंदर सिंह नागरा मुड़े कुदरती खेती के तरीकों की ओर

उम्मीद एकमात्र सकारात्मक भावना है जो किसी व्यक्ति को भविष्य के बारे में सोचने की ताकत देती है, भले ही इसके बारे में सुनिश्चित न हो। और हम जानते हैं कि जब हम बेहतर भविष्य के बारे में सोचते है तो कुछ नकारात्मक परिणामों को जानने के बावजूद भी हमारे कार्य स्वचालित रूप से जल्दी हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ जिंला संगरूर के गांव नागरा के एक प्रगतिशील किसान कुलविंदर सिंह नागरा के साथ हुआ जिनकी उम्मीद ने उन्हें कुदरती खेती की तरफ बढ़ाया।

“जैविक खेती में करने से पहले, मुझे पता था कि मुझे लगातार दो साल तक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इस स्थिति से अवगत होने के बाद भी मैंने कुदरती ढंगों को अपनाने का फैसला किया। क्योंकि मेरे लिए मेरा परिवार और आसपास का वातावरण पैसे कमाने से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, मैं अपने परिवार और खुद के लिए कमा रहा हूं, क्या होगा यदि इतने पैसे कमाने के बाद भी मैं अपने परिवार को स्वस्थ रखने में योग्य नहीं… तब सब कुछ व्यर्थ है।”

खेती की पृष्ठभूमि से आने पर कुलविंदर सिंह नागरा ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने का का फैसला किया। 1997 में, अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार की पुरानी तकनीकों को अपनाकर धान और गेहूं की खेती करनी शुरू की। 2000 तक, उन्होंने 10 एकड़ भूमि में गेहूं और धान की खेती जारी रखी और एक एकड़ में मटर, प्याज, लहसुन और लौकी जैसी कुछ सब्ज़ियां उगायी । लेकिन वह गेहूं और धान से संतुष्ट नहीं थे। इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने सब्जी की खेती के क्षेत्र को एक एकड़ से 7 एकड़ तक और किन्नू और अमरूद को 1½ एकड़ में उगाना शुरू किया।

“किन्नू कम सफल था लेकिन अमरूद ने अच्छा मुनाफा दिया और मैं इसे भविष्य में भी जारी रखूगा।”

बागवानी में सफलता के अनुभव ने कुलविंदर सिंह नागरा के आत्मविश्वास को बढ़ाया और तेजी से उन्होंने अपनी कृषि गतिविधियों को, और अधिक लाभ कमाने के लिए विस्तारित किया। उन्होंने सब्जी की खेती से लेकर नर्सरी की तैयारी तक सब कुछ करना शुरू कर दिया। 2008-2009 में उन्होंने शाहबाद मारकंडा , सिरसा और पंजाब के बाहर विभिन्न किसान मेलों में मिर्च, प्याज, हलवा कद्दू, करेला, लौकी, टमाटर और बेल की नर्सरी बेचना शुरू कर दिया।

2009 में उन्होंने अपनी खेती तकनीकों को जैविक में बदलने का विचार किया, इसलिए उन्होंने कुदरती खेती की ट्रेनिंग पिंगलवाड़ा से ली, जहां पर किसानों को ज़ीरो बजट पर कुदरती खेती की मूल बातें सिखाई गईं। एक सुरक्षित और स्थिर शुरुआत को ध्यान में रखते हुए कुलविंदर सिंह नागरा ने 5 एकड़ के साथ कुदरती खेती शुरू की।

वह इस तथ्य से अच्छी तरह से अवगत थे कि कीटनाशक और रासायनिक उपचार भूमि को जैविक में परिवर्तित करने में काफी समय लग सकता है और वह शुरुआत में कोई लाभ नहीं कमाएंगे। लेकिन उन्होंने कभी भी शुरुआत करने से कदम पीछे नहीं उठाया, उन्होंने अपने खेती कौशल को बढ़ाने का फैसला किया और उन्होंने फूड प्रोसेसिंग, मिर्च और खीरे के हाइब्रिड बीज उत्पादन, सब्जियों की नैट हाउस में खेती और ग्रीन हाउस प्रबंधन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ट्रेनिंग ली । लगभग दो वर्षों के बाद, उन्होंने न्यूनतम लाभ प्राप्त करना शुरू किया।

“मंडीकरण मुख्य समस्या थी जिस का मैंने सबसे ज्यादा सामना किया था चूंकि मैं नौसिखिया था इसलिए मंडीकरण तकनीकों को समझने में कुछ समय लगा। 2012 में, मैंने सही मंडीकरण तकनीकों को अपनाया और फिर सब्जियों को बेचना मेरे लिए आसान हो गया।”

कुलविंदर सिंह नागरा ने प्रकृति के लिए एक और कदम उठाया वह था पराली जलाना बंद करना। आज पराली को जलाना प्रमुख समस्याओ में से एक है जिस का पंजाब सामना कर रहा है और यह विश्व स्तर का प्रमुख मुद्दा भी है। पंजाब और हरियाणा में किसान धन बचाने के लिए पराली जला रहे है, पर कुलविंदर सिंह नागरा ने पराली जलाने की बजाय इस की मल्चिंग और खाद बनाने के लिए इस्लेमाल किया।

कुलविंदर सिंह नागरा खेती के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए हैप्पी सीडर, किसान, बैड्ड, हल, रीपर और रोटावेटर जैसे आधुनिक और नवीनतम पर्यावरण-अनुकूल उपकरणों को पहल देते हैं।

वर्तमान में, वे 3 एकड़ पर गेहूं, 2 एकड़ पर चारे वाली फसलें, सब्जियां (मिर्च, शिमला मिर्च, खीरा, पेठा, तरबूज, लौकी, प्याज, बैंगन और लहसुन) 6 एकड़ पर और और फल जैसे आड़ू, आंवला और 1 एकड़ पर किन्नू की खेती करते हैं। वह अपने खेत पर पानी का सही उपयोग करने के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं।

वे अपनी कृषि गतिविधियों का समर्थन करने के लिए डेयरी फार्मिंग भी कर रहे है। उनके पास उनके बाड़े में 12 पशू हैं, जिनमें मुर्रा भैंस, नीली रावी और साहीवाल शामिल है। इनका दूध उत्पादन प्रति दिन 90 से 100 किलो है, जिससे वह बाजार में 70-75 किलोग्राम दूध बेचते हैं और शेष घर पर इस्तेमाल करते हैं । अब, मंडीकरण एक बड़ी समस्या नहीं है, वे संगरूर, सुनाम और समाना मंडी में सभी जैविक सब्जियां बेचते हैं। व्यापारी फल खरीदने के लिए उनके फार्म पर आते हैं और इस प्रकार वे अपने फसल उत्पादों की अच्छी कीमत कमा रहे हैं।

वे अपनी सभी उपलब्धियों का श्रेय पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी और अपने परिवार को देते हैं। आज, वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरों को अपनी कुदरती सब्जियों की खेती के कौशल के साथ प्रेरित करते है और उन्हें इस पर गर्व है। सब्जियों की कुदरती खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए, उन्हें कई पुरस्कार और प्रशंसा मिली, और उनमें से कुछ है…

• 19 फरवरी 2015 को सूरतगढ़ (राजस्थान) में भारत के माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रगतिशील किसान का कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त किया।

• संगरूर के डिप्टी कमिश्नर श्री कुमार राहुल द्वारा ब्लॉक लेवल अवॉर्ड प्राप्त किया।

• पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना से पुरस्कार प्राप्त किया।

• कृषि निदेशक, पंजाब से पुरस्कार प्राप्त किया।

• सर्वोत्तम सब्जी की किस्म की खेती में कई बार पहला और दूसरा स्थान हासिल किया।

खैर, ये पुरस्कार उनकी उपलब्धियों को उल्लेख करने के लिए कुछ ही हैं। कृषि समाज में उन्हें मुख्य रूप से उनके काम के लिए जाना जाता है।

कृषि के क्षेत्र में किसानों को मार्गदर्शन करने के लिए अक्सर उनके फार्म हाउस पर वे के वी के और पी ए यू के माहिरों को आमंत्रित करते हैं कि वे फार्म पर आये और कृषि संबंधित उपयोगी जानकारी सांझा करें, साथ ही साथ किसानों के बीच में वार्तालाप भी करवाते हैं ताकि किसान एक दूसरे से सीख सकें। उन्होंने वर्मीकंपोस्ट प्लांट भी स्थापित किया है वे अंतर फसली और लो टन्नल तकनीक अपनाते हैं, मधुमक्खीपालन करते हैं। कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बिजाई बैड पर करते हैं। नो टिल ड्रिल हैपी सीडर का इस्तेमाल करके गेहूं की खेती करते हैं, धान की रोपाई से पहले ज़मीन को लेज़र लेवलर से समतल करते हैं, मशीनीकृत रोपाई करते हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन और एकीकृत निमाटोड प्रबंधन करते हैं।

कृषि तकनीकों को अपनाने का प्रभाव:

विभिन्न कृषि तकनीकों को लागू करने के बाद, उनके गेहूं उत्पादन ने देश भर में उच्चतम गेहूं उत्पादन का रिकॉर्ड बनाया जो कुदरती खेती के तरीकों से 2014 में प्रति हेक्टेयर 6456 किलोग्राम था और इस उपलब्धि के लिए उन्हें कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनके आस पास रहने वाले किसानों के लिए वे प्रेरक हैं और वातावरण अनुकूलन तकनीकों को अपनाने के लिए किसान अक्सर उनकी सलाह लेते है।

भविष्य की योजना:
भविष्य में, कुलविंदर सिंह नागरा सब्जियों को विदेशों निर्यात करने की बना रहे हैं।
संदेश
“जो किसान अपने कर्ज और जिम्मेदारियों के बोझ से राहत पाने के लिए आत्मघाती पथ लेने का विकल्प चुनते हैं उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहिए। भगवान ने हमारे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई अवसर और क्षमताओं को दिया है और हमें इस अवसर को कभी भी छोड़ना चाहिए।”

बलविंदर सिंह संधु

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एक किसान की कहानी जिसने खेतीबाड़ी के पुरानी ढंगों को छोड़कर कुदरती तरीकों को अपनाया

आज, किसान ही सिर्फ वे व्यक्ति हैं जो अन्य किसानों को खेतीबाड़ी के जैविक ढंगों की तरफ प्रेरित कर सकते हैं और बलविंदर सिंह उन किसानों में से एक हैं जिन्होंने प्रगतिशील किसान से प्रेरित होकर पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हाल ही के वर्षों में जैविक खेती को अपनाया।

खैर, जैविक की तरफ मुड़ना उन किसानों के लिए आसान नहीं होता जो रवायती ढंग से खेती करते हैं और अच्छी उपज प्राप्त करते हैं। लेकिन बलविंदर सिंह संधु ने अपनी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से इस बाधा को पार किया।

इससे पहले, 1982 से 1983 में, वे कपास, सरसों और ग्वार फसलों की खेती करते थे लेकिन 1997 से उन्होंने कपास की फसल पर बॉलवार्म कीट के हमले का सामना किया जिस कारण उन्हें आगे चल कर बार बार बड़ी हानि का सामना करना पड़ा। इसलिए उसके बाद उन्होंने धान की खेती शुरू करने का फैसला किया लेकिन फिर भी वे पहले जितना मुनाफा नहीं कमा पाये। जैविक खेती की तरफ उन्होंने अपना पहला कदम 2011 में उठाया। जब उन्होंने मनमोहन सिंह के जैविक सब्जी फार्म का दौरा किया।

इस दौरे के बाद, बलविंदर सिंह का नज़रिया काफी विस्तृत हुआ और उन्होंने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने मिर्च से शुरूआत की। पहली गल्तियों को सुधारने के लिए वे कपास के अच्छी किस्म के बीजों को खरीदने के लिए गुजरात तक गए और वहां उन्होंने बीजरहित खीरे, स्ट्रॉबेरी और तरबूज की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। लगातार 3 वर्षों से वे अपनी भूमि पर कीटनाशकों के प्रयोग को कम कर रहे हैं।

उस वर्ष, मिर्च की फसल की उपज बहुत अच्छी हुई अैर उन्होंने 2 एकड़ से 500000 रूपये का लाभ कमाया। बलविंदर सिंह ने अपने फार्म की जगह का भी लाभ उठाया। उनका फार्म रोड पर था इसलिए उन्होंने सड़क के किनारे एक छोटी सी दुकान खोल ली जहां पर उन्होंने सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने मिर्च की प्रोसेसिंग करके मिर्च पाउडर बनाना भी शुरू कर दिया।

“जब मैंने मिर्च पाउडर की प्रोसेसिंग शुरू की तो बहुत से लोग शिकायत करते थे कि आपका मिर्च पाउडर का रंग लाल नहीं है। तब मैंने उन्हें समझाया कि मिर्च पाउडर कभी भी लाल रंग का नहीं होता। आमतौर पर बाजार से खरीदे जाने वाले पाउडर में अशुद्धता और रंग की मिलावट होती है।”

2013 में, बलविंदर सिंह ने खीरे, टमाटर, कद्दू और शिमला मिर्च जैसी सब्जियों की खेती शुरू कर दी।

“ज्यादा फसलों को ज्यादा क्षेत्र की आवश्यकता होती है इसलिए खेती के क्षेत्र को बढ़ाने के लिए मैंने अपने चचेरे और सगे भाइयों से ठेके पर 40 एकड़ ज़मीन ली। शुरूआत में सब्जियों का मंडीकरण करना एक बड़ी समस्या थी लेकिन समय के साथ इस समस्या का भी हल हो गया।”

वर्तमान में, बलविंदर सिंह 8-9 एकड़ में सब्जियों की और एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की और बाकी की ज़मीन पर धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं। इसके अलावा उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्होंने सभी आधुनिक कृषि उपकरणों और पर्यावरणीय अनुकूल तकनीकों जैसे ट्रैक्टर, बैड प्लांटर, रोटावेटर, कल्टीवेटर, लेवलर, सीडर, तुपका सिंचाई, मलचिंग, कीटनाशकों के स्थान पर घर पर तैयार जैविक खाद और खट्टी लस्सी  स्प्रे को अपनाया है।

पिछले चार वर्षों से वे 2 एकड़ भूमि पर पूरी तरह से जैविक खेती कर रहे हैं और शेष भूमि पर कीटनाशक और फंगसनाशी का प्रयोग कम कर रहे हैं। बलविंदर सिंह की कड़ी मेहनत ने कई लोगों को प्रभावित किया, यहां तक कि उनके क्षेत्र के डी. सी. (DC) ने भी उनके फार्म का दौरा किया। विभिन्न प्रिंट मीडिया में उनके काम के बारे में कई लेख प्रकाशित किए गए हैं और जिस गति से वे प्रगति कर रहे ऐसा प्रतीत होता है कि भविष्य में भी उनकी अलग ही पहचान साबित होगी ।

संदेश
“अब किसानों को लाभ कमाने के लिए अपने उत्पादन बेचने के लिए तराजू को अपने हाथों में लेना होगा, क्योंकि यदि वे अपनी फसल बेचने के लिए बिचौलियों या डीलरों पर निर्भर रहेंगे तो वे प्रगति नहीं कर पायेंगे और बार बार ठगों से धोखा खाएंगे। बिचौलिये उन सभी लाभों को दूर कर देते हैं जिन पर किसान का अधिकार होता है।”

विपिन यादव

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एक किसान और एक कंप्यूटर इंजीनियर विपिन यादव की कहानी, जिसने क्रांति लाने के लिए पारंपरिक खेती के तरीके को छोड़कर हाइड्रोपोनिक खेती को चुना

आज का युग ऐसा युग है जहां किसानों के पास उपजाऊ भूमि या ज़मीन ही नहीं है, फिर भी वे खेती कर सकते हैं और इसलिए भारतीय किसानों को अपनी पहल को वापिस लागू करना पड़ेगा और पारंपरिक खेती को छोड़ना पड़ेगा।

टैक्नोलोजी खेतीबाड़ी को आधुनिक स्तर पर ले आई है। ताकि कीट या बीमारी जैसी रूकावटें फसलों की पैदावार पर असर ना कर सके और यह खेतीबाड़ी क्षेत्र में सकारात्मक विकास है। किसान को तरक्की से दूर रखने वाली एक ही चीज़ है और वह है उनका डर – टैक्नोलोजी में निवेश डूब जाने का डर और यदि इस काम में कामयाबी ना मिले और बड़े नुकसान का डर।

पर इस 20 वर्ष के किसान ने खेतीबाड़ी के क्षेत्र में तरक्की की, समय की मांग को समझा और अब पारंपरिक खेती से अलग कुछ और कर रहे हैं।

“हाइड्रोपोनिक्स विधि खेतीबाड़ी की अच्छी विधि है क्योंकि इसमें कोई भी बीमारी पौधों को प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि इस विधि में मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा, हम पॉलीहाउस में पौधे तैयार करते हैं, इसलिए कोई वातावरण की बीमारी भी पौधों को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर सकती। मैं खेती की इस विधि से खुश हूं और मैं चाहता हूं कि दूसरे किसान भी हाइड्रोपोनिक तकनीक अपनाएं।”विपिन यादव

कंप्यूटर साइंस में अपनी इंजीनियरिंग डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी औरवेतन से असंतुष्टी के कारण विपिन ने खेती शुरू करने का फैसला किया, पर निश्चित तौर पर अपने पिता की तरह नहीं, जो परंपरागत खेती तरीकों से खेती कर रहे थे।

एक जिम्मेवार और जागरूक नौजवान की तरह, उन्होंने गुरूग्राम से ऑनलाइन ट्रेनिंग ली। शुरूआती ऑनलाइन योग्यता टेस्ट पास करने के बाद वे गुरूग्राम के मुख्य सिखलाई केंद्र में गए।

20 उम्मीदवारों में से सिर्फ 16 ही हाइड्रोपोनिक्स की प्रैक्टीकल सिखलाई हासिल करने के लिए पास हुए और विपिन यादव भी उनमें से एक थे। उन्होंने अपने हुनर को और सुधारने के लिए के.वी.के. शिकोहपुर से भी सुरक्षित खेती की सिखलाई ली।

“2015 में, मैंने अपने पिता को मिट्टी रहित खेती की नई तकनीक के बारे में बताया, जबकि खेती के लिए मिट्टी ही एकमात्र आधार थी। विपिन यादव

सिखलाई के दौरान उन्होंने जो सीखा उसे लागू करने के लिए उन्होंने 5000 से 7000 रूपये के निवेश से सिर्फ दो मुख्य किस्मों के छोटे पौधों वाली केवल 50 ट्रे से शुरूआत की।

“मैंने हार्डनिंग यूनिट के लिए 800 वर्ग फुट क्षेत्र निर्धारित किया और 1000 वर्ग फुट पौधे तैयार करने के लिए गुरूग्राम में किराये पर जगह ली और इसमें पॉलीहाउस भी बनाया। – विपिन यादव

हाइड्रोपोनिक्स की 50 ट्रे के प्रयोग से उन्हें बड़ी सफलता मिली, जिसने बड़े स्तर पर इस विधि को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हाइड्रोपोनिक खेती शुरू करने के लिए उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों की सहायता से अगला बड़ा निवेश 25000 रूपये का किया।

“इस समय मैं ऑर्डर के मुताबिक 250000 या अधिक पौधे तैयार कर सकता हूं।”

गर्म मौसमी स्थितियों के कारण अप्रैल से मध्य जुलाई तक हाइड्रोपोनिक खेती नहीं की जाती, पर इसमें होने वाला मुनाफा इस अंतराल की पूर्ती के लिए काफी है। विपिन यादव अपने हाइड्रोपोनिक फार्म में हर तरह की फसलें उगाते हैं – अनाज, तेल बीज फसलें, सब्जियां और फूल। खेती को आसान बनाने के लिए स्प्रिंकलर और फोगर जैसी मशीनरी प्रयोग की जाती है। इनके फूलों की क्वालिटी अच्छी है और इनकी पैदावार भी काफी है, जिस कारण ये राष्ट्रपति सेक्ट्रीएट को भी भेजे गए हैं।

मिट्टी रहित खेती के लिए, वे 3:1:1 के अनुपात में तीन चीज़ों का प्रयोग करते हैं कोकोपिट, परलाइट और वर्मीक्लाइट। 35-40 दिनों में पौधे तैयार हो जाते हैं और फिर इन्हें 1 हफ्ते के लिए हार्डनिंग यूनिट में रखा जाता है। NPK, जिंक, मैगनीशियम और कैलशियम जैसे तत्व पौधों को पानी के ज़रिये दिए जाते हैं। हाइड्रोपोनिक्स में कीटनाशक दवाइयों का कोई प्रयोग नहीं क्योंकि खेती के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता, जो आसानी से घर में तैयार की जा सकती है।

भविष्य की योजना:
मेरी भविष्य की योजना है कि कैकटस, चिकित्सक और सजावटी पौधों की और किस्में, हाइड्रोपोनिक फार्म में बेहतर आय के लिए उगायी जायें।

विपिन यादव एक उदाहरण है कि कैसे भारत के नौजवान आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके खेतीबाड़ी के भविष्य को बचा रहे हैं।

संदेश

“खेतीबाड़ी के क्षेत्र में कुछ भी नया शुरू करने से पहले, किसानों को अपने हुनर को बढ़ाने के लिए के.वी.के. से सिखलाई लेनी चाहिए और अपने आप को शिक्षित बनाना चाहिए।”

देश को बेहतर आर्थिक विकास के लिए खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मेहनत करने वाले और नौजवानों एवं रचनात्मक दिमाग की जरूरत है और यदि हम विपिन यादव जैसे नौजवानों को मिलना जारी रखते हैं तो यह भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

मनि कलेर

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कैसे फूलों की बिखर रही खुशबू ने पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र को स्थापित किया

फूलों की खेती में निवेश एक बढ़िया तरक्की का विकल्प है जिसमें किसान अधिक रूचि ले रहे हैं। कई सफल पुष्पहारिक हैं जो ग्लैडियोलस, गुलाब, गेंदे और कई अन्य फूलों की सुगंध बिखेर रहे हैं और पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र का निर्माण कर रहे हैं। एक पुष्पवादी जो फूलों और सब्जियों के व्यापार से अधिक लाभ कमा रहे हैं, वे हैं – मनि कलेर

अन्य ज़मींदारों की तरह, कलेर परिवार अपनी ज़मीन अन्य किसानों को किराये पर देने के लिए उपयोग करता था और एक छोटे से ज़मीन के टुकड़े पर वे घरेलु प्रयोजन के लिए गेहूं और धान का उत्पादन करते थे। लेकिन जब मनि कलेर ने अपनी शिक्षा पूरी की तो उन्होंने बागबानी के व्यवसाय में कदम रखने का फैसला किया। मनि ने भूमि का आधा हिस्सा (20 एकड़) वापिस ले लिया जो उन्होंने किराये पर दिया था और उस पर खेती करनी शुरू की।

कुछ समय बाद, एक रिश्तेदार की सहायता से, मनि को RTS Flower व्यापार के बारे में पता चला जो कि गुरविंदर सिंह सोही द्वारा सफलतापूर्वक चलाया जाता है। इसलिए RTS Flower के मालिक से प्रेरित होने के बाद मनि ने अंतत: अपना फूलों का उद्यम शुरू कर दिया और पेटुनिया, बारबिना ओर मेस्टेसियम आदि जैसे पांच से छ: प्रकार के फूलों को उगाना शुरू किया।

शुरूआत में उन्होंने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में भी कोशिश की लेकिन कॉन्ट्रेक्टड कंपनी के साथ एक कड़वे अनुभव के बाद उन्होंने उनसे अलग होने का फैसला किया।

फूलों की खेती के दूसरे वर्ष में उन्होंने गुरविंदर सिंह सोही से 1 लाख रूपये के बीज खरीदे। उन्होंने 2 कनाल में ग्लेडियोलस की खेती शुरू की और आज 2 वर्ष बाद उन्होंने 5 एकड़ में फार्म का विस्तार किया है।

वर्तमान में वे 20 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से वे 4 एकड़ का प्रयोग सब्जियों की लो टन्नल फार्मिंग के लिए कर रहे हैं जिसमें वे करेला, कद्दू, बैंगन, खीरा, खरबूजा, लहसुन (1/2 एकड़) और प्याज (1/2 एकड़) उगाते हैं। घरेलु उद्देश्य के लिए वे धान और गेहूं उगाते हैं। कुछ समय से उन्होंने प्याज के बीज तैयार करना भी शुरू किया है।

कड़ी मेहनत और विविध खेती तकनीक के कारण उनकी आय में वृद्धि हुई है। अब तक उन्होंने सरकार से कोई सब्सिडी नहीं ली। वे संपूर्ण मार्किटिंग का अपने दम पर प्रबंधन करते हैं और फूलों को दिल्ली और कुरूक्षेत्र की मार्किट में बेचते हैं। हालांकि वे सब्जियों और फूलों की खेती के व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें फूलों की खेती में कुछ समस्याएं आती हैं लेकिन वे अपनी उम्मीद को कभी नहीं खोने देते और हमेशा मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ अपना काम जारी रखते हैं।

मनि के परिवार ने हमेशा उनका समर्थन किया और कृषि क्षेत्र में जो वे करना चाहते हैं उसे करने से कभी नहीं रोका। वर्तमान में वे अपने पिता मदन सिंह और बड़े भाई राजू कलेर के साथ अपने गांव संगरूर जिले के राय धरियाना गांव में रह रहे हैं। दूध के प्रयोजन के लिए उन्होंने 7 गायें और 2 मुर्रा भैंसे रखी हैं। वे पशुओं की देखभाल और फीड के साथ कभी समझौता नहीं करते। वे जैविक रूप से उगाए धान, गेहूं और चारे की फसलों से स्वंय फीड तैयार करते हैं। अतिरिक्त समय में वे गन्ने के रस से गुड़ बनाते हैं और गांव वालों को बेचते हैं।

भविष्य की योजना:

भविष्य में वे अपने, फूलों की खेती के उद्यम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश

आजकल के किसान धान और गेहूं के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। उन्हें सोचना शुरू करना चाहिए और इस चक्र से बाहर निकलकर काम करना चाहिए यदि वे अच्छा कमाना चाहते हैं।

राजा राम जाखड़

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राजस्थान के भविष्यवादी किसान, जो घीकवार की खेती से पारंपरिक खेती में परिवर्तन ला रहे हैं

बेशक, राजस्थान आज भी पारंपरिक खेती वाले ढंगों के लिए जाना जाता है और यहां की मुख्यफसलें बाजरा, ग्वार और ज्वार हैं। बहुत सारे किसान तरक्की कर रहे हैं, पर आज भी बहुत किसान ऐसे हैं, जो अपनी पारंपरिक खेती की रूढ़ीवादी सोच से बाहर निकलकर कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं और खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं।

राजस्थान की धरती पर राजा राम सिंह जी जन्मे और पले बढ़े हैं। उन्होंने बी एस सी एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन की और उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी, ताकि वे खेती के प्रति अपने जुनून को पूरा कर सकें। उन्होंने मौके का फायदा लेना और उससे लाभ कमाना भी सीखा। आज वे राजस्थान में घीकवार के सफल किसान हैं, जो अपनी उपज के मंडीकरण के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं हैं, क्योंकि उनकी उपज केवल खेत से ही खप्तकारों को बेची जाती है।

राजा राम जाखड़ जी का परिवार बचपन से ही खेतीबाड़ी से जुड़ा है और उन्होंने अपने बचपन से ही अपने परिवार के सभी सदस्यों को खेती करते देखा। पर 1980 में उन्होंने डी ए वी कॉलेज संघरिया (राजस्थान) से बी एस सी एग्रीकल्चर की डिग्री पूरी की और उन्हें एक अलग पेशे में नौकरी (सैंट्रल स्टेट फार्म, सूरतगढ़ में सुपरवाइज़र) का मौका मिला। पर वे 3-4 महीनों से ज्यादा, वहां काम नहीं कर सके क्योंकि उनकी इस काम में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने घर वापिस आकर पिता प्रधान व्यवसाय -जो कि खेती था, इसे अपनाने का फैसला किया।

उन्होंने अपने बुज़ुर्गों वाले ढंग से ही खेती करनी शुरू की, पर इसमें कुछ विशेष लाभ नहीं मिल रहा था। धीरे-धीरे उनके परिवार की रोज़ी रोटी चलनी भी मुश्किल हो रही थी, क्योंकि उनका मुनाफा केवल गुज़ारे योग्य ही था। पर उस समय उन्होंने पतंजली ब्रांड और इसके एलोवेरा उत्पादों के बारे में सुना। उन्हें यह भी सुनने को मिला कि इन उत्पादों को बनाने के लिए पतंजली में एलोवेरा की बहुत मात्रा में उपज की जरूरत है। इसलिए इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने केवल 15000 रूपये के निवेश से 1 एकड़ एलोवेरा की खेती Babie Densis नाम की किस्म से शुरू की।

इन सब के चलते, एक बार तो उनका परिवार भी उनके विरूद्ध हो गया, क्योंकि वे जो भी काम कर रहे थे, उस पर परिवार को कोई यकीन नहीं था और उस समय अपने क्षेत्र (जिला गंगानगर) में एलोवेरा की खेती करने वाले वे पहले किसान थे। पर राजा राम जी ने अपना मन नहीं बदला, क्योंकि उन्हें खुद पर यकीन था। एक वर्ष बाद, आखिर जब एलोवेरा के पौधे पककर तैयार हो गए, कुछ खरीददारों ने उनकी उपज खरीदने के लिए संपर्क किया और तब से ही वे अपनी उपज फार्म से ही बेचते हैं, वो भी बिना कोई प्रयत्न किए। वे एक वर्ष में एक एकड़ से एक लाख रूपये तक का मुनाफा लेते हैं।

जैसे कि राजस्थान में एलोवेरा के उत्पाद तैयार करने वाली बहुत फैक्टरियां हैं, इसलिए हर 50 दिन बाद खरीददारों के द्वारा दो ट्रक उनके फार्म पर भेजे जाते हैं, और उनका काम केवल मजदूरों की मदद से ट्रकों को लोड करना होता है। अब उन्होंने अधिक मुनाफा लेने के लिए अंतर फसली विधि द्वारा एलोवेरा के खेतों में मोरिंगा पौधे भी लगाए हैं।

इस समय वे खुशी खुशी अपने परिवार (पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र) के साथ रह रहे हैं और पूरे फार्म का काम काज खुद ही संभालते हैं। उनके पास खेती के लिए एक ट्यूबवैल और ट्रैक्टर है। वे अपने खेतों में एलोवेरा, मोरिंगा और कपास की खेती के लिए केवल जैविक खेती तकनीक ही अपनाते हैं। इन तीन फसलों के अलावा वे भिंडी, तोरी, खीरा, लौकी, ग्वार की फलियां और अन्य मौसमी सब्जियों की खेती घरेलू उपयोग के लिए करते हैं।

राजा राम जाखड़ जी ने अंतर फली के लिए मोरिंगा के पौधों को इस लिए चुना, क्योंकि इसमें बहुत सारे चिकित्सक गुण होते हैं और इसे बहुत कम देखभाल करके भी आसानी से उगाया जा सकता है। अब उन्होंने पौधे बेचने का काम भी शुरू किया है और जो किसान एलोवेरा की खेती के लिए ट्रेनिंग लेना चाहते हैं, उन्हें मुफ्त सिखलाई भी देते हैं। राजा राम जी अपने भविष्यवादी विचारों से खेतीबाड़ी के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाना चाहते हैं। अभी तक कभी भी उन्होंने सरकार या किसी अन्य स्त्रोत से मदद नहीं ली और जो कुछ किया खुद से ही किया। वे भविष्य में अपने काम को और बढ़ाना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी एलोवेरा की खेती के प्रति जागरूक करवाना चाहते हैं।


किसानों के लिए संदेश
“कुछ भी नया करने से पहले, किसानों को मंडीकरण के बारे में सोचना चाहिए ओर फिर खेती करनी चाहिए। किसानों को बहुत सारे मौके मिलते रहते हैं, बस उन्हें इन मौकों का फायदा उठाना चाहिए और इन्हें खोना नहीं चाहिए।”

 

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”

सरदार गुरमेल सिंह

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जानिये कैसे गुरमेल सिंह ने अपने आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती में लाभ कमाया

गुरमेल सिंह एक और प्रगतिशील किसान पंजाब के गाँव उच्चागाँव (लुधियाना),के रहने वाले हैं। कम जमीन होने के बावजूद भी वे पिछले 23 सालों से सब्जियों की खेती करके बहुत लाभ कमा रहे हैं। उनके पास 17.5 एकड़ जमीन है जिसमें 11 एकड़ जमीन अपनी है और 6 .5 एकड़ ठेके पर ली हुई है।

आधुनिक खेती तकनीकें ड्रिप सिंचाई, स्प्रे सिंचाई, और लेज़र लेवलर जैसे कई पावर टूल्स उनके पास हैं जो इन्हें कुशल खेती और पानी का संरक्षण करने में सहायता करते हैं। और जब बात कीटनाशक दवाइयों की आती है तो वे बहुत बुद्धिमानी से काम लेते हैं। वे सिर्फ पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की सिफारिश की गई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे अच्छी पैदावार के लिए अपने खेतों में हरी कुदरती खाद का इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी आधुनिक तकनीक जो वह सब्जियों के विकास के लिए 6 एकड़ में हल्की सुरंग का सही उपयोग कर रहे हैं। कुछ फसलों जैसे धान, गेहूं, लौंग, गोभी, तरबूज, टमाटर, बैंगन, खीरा, मटर और करेला आदि की खेती वे विशेष रूप से करते हैं। अपने कृषि के व्यवसाय को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सोया के हाइब्रिड बीज तैयार करने और अन्य सहायक गतिविधियां जैसे कि मधुमक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग आदि की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से हासिल की।

मंडीकरण
उनके अनुभव के विशाल क्षेत्र में ना सिर्फ विभिन्न फसलों को लाभदायक रूप से उगाना शामिल है, बल्कि इसी दौरान उन्होंने अपने मंडीकरण के कौशल को भी बढ़ाया है और आज उनके पास “आत्मा किसान हट (पटियाला)” पर अपना स्वंय का बिक्री आउटलेट है। उनके प्रासेसड किए उत्पादों की गुणवत्ता उनकी बिक्री को दिन प्रति दिन बढ़ा रही है। उन्होंने 2012 में ब्रांड नाम “स्मार्ट” के तहत एक सोया प्लांट भी स्थापित किया है और प्लांट के तहत वे, सोया दूध, पनीर, आटा ओर गिरियों जैसे उत्पादों को तैयार करते और बेचते हैं।

उपलब्धियां
वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और जल्दी ही उन्हें CRI पम्प अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

संदेश:
“यदि वह सेहतमंद ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो किसानों को अपने खेत में कम कीटनाशक और रसायनों का उपयोग करना चाहिए और तभी वे भविष्य में धरती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं।”