करमजीत सिंह

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बब्बनपुर में गुड़ उत्पादन को पुनर्जीवित करके किसानों के लिए बना एक मिसाल: करमजीत सिंह

करमजीत सिंह उत्तर भारत के मध्य में स्थित गांव बब्बनपुर के निवासी हैं जो अपने समर्पण, नवीनता (इनोवेशन) और गुणवत्ता के माध्यम से गुड़ उत्पादन और बिक्री में क्रांति लेकर आए। गन्ने की खेती के पारिवारिक विरासत को करमजीत जी एक नई ऊंचाइयों तक ले गए और उन्होंने गुड़ के नए-नए उत्पाद तैयार किये और जिसके बाद सीमाओं के पार भी अपने उत्पाद पहुंचाए। आज करमजीत न केवल निर्यात में उत्तम होने की इच्छा रखते हैं, बल्कि पंजाबी व्यंजनों को बढ़ावा देने का भी सपना देखते हैं। उनकी सफलता की कहानी साथी किसानों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शक का काम करती है।

करमजीत सिंह का गुड़ उत्पादन एक लाभदायक व्यवसाय साबित हुआ है क्योंकि मंडियों में पारंपरिक फसल की बिक्री के मुकाबले उनके द्वारा तैयार किये गए उत्पाद में अधिक मुनाफा प्राप्त हुआ। एक स्टैंडर्ड सेट-अप स्थापित करने के लिए लगभग 18 लाख रुपये की आवश्यकता होती है। करमजीत ने दृढ़ संकल्प और सावधानीपूर्वक योजना के तहत 25 से 30 एकड़ में गन्ने की खेती करनी शुरू की और अपनी पूरी फसल को गुड़ उत्पादन करने में समर्पित किया। फसल को मिल में भेजने के बजाय, वह सभी कच्चे माल को अपने प्रोसेसिंग यूनिट में भेजते हैं, जिससे उत्पादों और गुणवत्ता पर पूर्ण नियंत्रण होता है।

करमजीत सिंह ने पारंपरिक फसल की बिक्री की तुलना में गुड़ उत्पादन से अधिक मुनाफा प्राप्त किया। उनके गुड़ और उससे बने उत्पादों की मांग की वृद्धि ने उनकी कुल कमाई में 40% का इज़ाफ़ा किया। इस उघमी बदलाव ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाया है बल्कि क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित की। कृषि के क्षेत्र में करमजीत जी की सफलता की कहानी विविधता और मूल्यवर्धन की क्षमता को दर्शाती है।

करमजीत जी के द्वारा गुड़ उत्पादन को प्राथमिकता देने और आवश्यक बुनियादी चीज़ों में निवेश करने का निर्णय उनके लिए फलदायी साबित हुआ। मंडियों में कच्चा गन्ना बेचने से मिलने वाले अनिश्चित आमदन पर भरोसा करने की बजाए, उन्होंने लाभदायक गुड़ उत्पादन और उसके विभिन्न स्वादों के लिए लाभदायक बाजार में कदम रखा । उनके इस कदम ने न केवल बेहतर वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित की, बल्कि करमजीत को उद्योग में अपनी पहचान स्थापित करने में भी सक्षम बनाया।

गुड़ उत्पादन के कार्य में करमजीत जी का सफर उनके दादा के साथ शुरू हुआ, जिन्होंने गन्ने की खेती शुरू की और पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना से कई प्रशंसाएं हासिल कीं। दादा जी की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, करमजीत के पिता जी ने 11 साल पहले गन्ने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की, जिसने करमजीत के भविष्य में करने वाले उद्यम की नींव रखी गई।

करमजीत जी ने अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग ली और पी.ए.यू. से मार्गदर्शन प्राप्त किया। अपनी नई विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, उन्होंने अपने गुड़ उत्पादन में पंद्रह तरह के फ्लेवर पेश किए। शुरुआत में, करमजीत जी को अपने गांव के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी लगन और उत्पादों की उच्च गुणवत्ता, अपग्रेड मशीनरी के साथ करमजीत जी ने धीरे-धीरे गाँव वालों का दिल जीत लिया। आज गांव के लोग न केवल उनके उत्पादों की सराहना करते हैं बल्कि उनकी उपलब्धियों पर भी गर्व करते हैं।

मार्केटिंग पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ करमजीत ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को अपनाया और किसान मेलों में हिस्सा लिया, जो व्यवसाय में उनका नाम स्थापित करने में सहायक साबित हुआ। इन इवेंट के माध्यम से उन्होंने अपने द्वारा पेश किए गए विभिन्न प्रकार के फ्लेवर को प्रदर्शित किया, जिससे दूर-दूर से आये ग्राहक आकर्षित हुए। उनके गुड़ उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मार्किट में भी जगह मिली, जो उनकी उद्यमशीलता यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

करमजीत सिंह ने गुड़ उत्पादन में बेमिसाल सफलताएं हासिल की। खेतबाड़ी के क्षेत्र में अपने ज्ञान और समर्पण की वजह से अनेकों पुरस्कार प्राप्त किए, जिससे उन्हें पंजाब डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) में शामिल होने का अवसर मिला। 2019 में, करमजीत जी के शानदार प्रयासों से उन्हें पंजाब खेतीबाड़ी यूनीवर्सिटी से पहला पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा, खेती के तरीकों में उनके अनुभवों ने उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित शीर्ष पांच किसानों में शामिल किया। उनकी प्रतिभा को नैशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) करनाल से पुरस्कार से भी मान्यता मिली।

करमजीत के आगे बढ़ने का काम डेयरी फार्मिंग पर ही नहीं रुका। कृषि के लिए उनके जुनून ने उन्हें अपने प्रयासों में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया। गन्ने की खेती के अलावा, वह अपनी 25 एकड़ ज़मीन पर मक्का और कपास की खेती करते हैं। करमजीत ने अपने गन्ना उत्पादन के उप-उत्पादों को एक मूल्यवान स्रोत के रूप में उपयोग किया। इसके अपशिष्ट का भी दोहरे उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है, इसका उपयोग नवीकरणीय ईंधन स्रोत और पोषक तत्वों से भरपूर जैविक उर्वरक दोनों के रूप में किया जाता है। करमजीत सिंह जी ने डेयरी फार्मिंग में प्रशंसा पत्र भी हासिल किए हैं। वर्तमान में, उनके पशु पालन में उनके पास पाँच गाय और पाँच भैंस हैं, जो उनके बढ़ते कृषि उद्योग में योगदान देती हैं।

करमजीत को कार्य करते समय अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निरंतरता और उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए श्रम की कड़ी निगरानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पादों की प्रभावी ढंग से मार्केटिंग करने के लिए रचनात्मक योजना और निरंतर जुड़ाव की आवश्यकता होती है। हालाँकि, दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के साथ, करमजीत ने इन बाधाओं को पार किया और बाजार में मजबूत पकड़ बनाई।

करमजीत की सफलता उनके संयुक्त परिवार के अटूट सहयोग के बिना संभव नहीं थी। उनकी दृष्टि, समर्पण और परिवार के विश्वास ने उनके सफर को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, करमजीत के बच्चों ने भी उनके काम में काफी रुचि दिखाई है, जिससे उनके उज्ज्वल भविष्य का मार्ग साफ़ हुआ है।

करमजीत जी का लक्ष्य अपने निर्यात व्यवसाय का बढ़ाने और प्रामाणिक पंजाबी व्यंजनों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना है, जिसमें मक्की की रोटी, सरसों का साग और मक्खन आदि शामिल हैं। वह अपने क्षेत्र के समृद्ध स्वादों को उजागर करते हुए उन्हें दुनिया के हर कोने में ले जाने की कल्पना करते हैं। इसके अलावा, करमजीत अपनी अधिक ज़मीन पर मक्की और कपास की खेती करते हुए विविध खेती अभ्यासों में शामिल होते रहना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश

करमजीत जी गुड़ उत्पादन में उद्यम करने की इच्छा रखने वाले लोगों का मार्गदर्शन करने की इच्छा रखते हैं। वह किसानों से शुरूआती उत्पादन स्थापित करने से लेकर अंतिम उत्पादों के मंडीकरण तक, अपने कार्यों को बारीकी से जानने के लिए प्रेरित करते हैं। करमजीत का मानना है कि कृषि समुदाय की वृद्धि और समृद्धि के लिए ज्ञान और अनुभव सांझा करना महत्वपूर्ण है।

नरेश कुमार

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32 प्रकार के जैविक उत्पाद बनाता है हरियाणा का यह प्रगतीशील किसान

हम अपने घरों में जो चीनी खाते हैं, वह हमारे शरीर को भीतर से नष्ट कर रही है। हमारी जीवन  की अधिकांश बीमारियां जैसे हार्मोनल असंतुलन, उच्च रक्तचाप, शुगर, मोटापा किसी न किसी रूप में शुगर से संबंधित हैं। जबकि इस समस्या को एक स्वस्थ पदार्थ से हल किया जा सकता है और वह है ‘गुड़’।
नरेश कुमार एक प्रगतिशील किसान हैं जो खड़क रामजी, जिला जींद, हरियाणा में रहते हैं और जैविक गुड़, शक़्कर, चीनी और इन तीनों से बने 32 विभिन्न उत्पादों का व्यापार करते हैं।
उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा का अध्ययन करके अपने करियर की शुरुआत की, बाद में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के अपने ज्ञान के साथ उन्होंने 2006 में नशामुक्ति के लिए एक दवा विकसित की। उन्होंने उस दवा का नाम ‘वाप्सी’ रखा जिसका मतलब होता है नशे से वापिस आना। उन्होंने ‘आपनी खेती’ टीम के साथ साझा किया कि नशे से छुटकारा पाने के लिए कई एलोपैथिक दवाएं की बजाए एक आयुर्वेदिक दवा अधिक उपयोगी है। क्योंकि आयुर्वेद सबसे पुरानी विधि है और इसमें उन बीमारियों को ठीक करने की क्षमता है जो प्राचीन काल से असंभव थी।
2018 में, उन्होंने अपना ध्यान दवाइयों से फ़ूड प्रोसेसिंग की और किया और 32 विभिन्न प्रकार के जैविक उत्पादों को पेश किया। उन्होंने उपभोक्ता की मांग के अनुसार गुड़ की कई किस्में बनाईं जैसे – चाय के लिए गुड़, पाचन के लिए गुड़, अजवाइन, इलायची, सौंफ, चॉकलेट गुड़। अन्य उत्पादों में गाजर और चुकंदर की चटनी, सेब, अनानास, आंवले का जैम शामिल हैं।
“हम अपने दैनिक जीवन में जो चीनी खाते हैं, वह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। जितनी जल्दी हम इसे समझेंगे और गुड़ का उपयोग करेंगे, यह हमारे शरीर के लिए उतना ही अच्छा होगा।” – नरेश कुमार
उन्होंने 4 एकड़ जमीन पर प्रोसेसिंग यूनिट लगा रखी है। ये सभी उत्पाद पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके बनाए गए हैं जो उन्हें 100% जैविक बनाते हैं। जब गुड़ बनाया जाता है, तो उसमें प्रोसेसिंग किये फल और सब्जियां डाली जाती हैं और फिर मिट्टी के बर्तन में जमा कर दी जाती हैं। इन उत्पादों के निर्माण में पानी या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।
एक अन्य उत्पाद जो वे पशुओं के लिए बनाते हैं वह है ‘दूध का अर्क’ जो पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है। यह बार बार रपीट होने पशुओं के लिए एक बहुत बढ़िया उत्पाद है। उन्होंने इस उत्पाद की फार्मूलेशन पहले ही कर दी थी  इसलिए उन्होंने पहले इसे लागू करने के बारे में सोचा। उन्होंने इसे किसी ओर द्वारा बनाने के बारे में भी सोचा था पर उन्हें डर था कि रासायनिक सूत्र में कुछ उतार-चढ़ाव तो न आ जाए। इस मामले में किसी पर भरोसा करना आसान नहीं था। इस शिरा की खासियत यह है कि इसे देसी खंड के राव से बनाया गया है।
जींद, में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र  पांडु , पिंडारा और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने इस व्यवसाय के शुरुआती दिनों में उनकी बहुत मदद की। इन संस्थानों से उन्होंने वह तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जिसकी उन्हें इस व्यवसाय को स्थापित करने के लिए सख्त जरूरत थी। उनका मार्गदर्शन डॉ. विक्रम ने किया, जो हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन  केंद्र (ABIC) में मार्केटिंग के मैनेजर हैं।   नरेश जी ने इसी केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त किया जिसके बाद वह RAFTAR स्कीम  के तहत अपने उत्पाद “मिल्क शीरा” को प्रमोट करने के लिए 20 लाख रुपये प्राप्त करने में कामयाब हुए।
‘वापसी ‘ दवा 2015 से बाजार में है। वे 2015 से सीधे ग्राहकों को दवा बेच रहे हैं। आज उनके मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों से 20 वितरक हैं। शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि बाजार में हर दूसरा उत्पाद नकली था जबकि उनके दाम ज्यादा थे क्योंकि उनके उत्पाद जैविक थे और जब उन्होंने शुरुआत की तो उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।  लेकिन बाद में ग्राहकों को ऑर्गेनिक और नकली उत्पादों के बीच अंतर के बारे में पता चला और अब उनके उत्पादों को ग्राहकों द्वारा सराहा जाता है। उन्होंने कहा कि लोगों को यह समझाना आसान नहीं था कि अन्य सभी उत्पाद मिलावटी हैं और शरीर के लिए अच्छे नहीं हैं। सीजन के दौरान उन्हें हर महीने 3 लाख रुपये का मुनाफा होता है।
जब सीजन में अधिक काम होता है, तो वे 15 मजदूरों को काम पर रखते हैं, जो आमतौर पर ऑफ सीजन में 5 होते हैं। यद्यपि वे उच्च मांग के कारण गन्ने की खेती करते हैं, फिर भी उन्हें जैविक किसानों से कुछ गन्ना खरीदना पड़ता है। वह पीलुखेड़ा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के सदस्य भी हैं जहां वे निदेशक के रूप में कार्य करते हैं।

उपलब्धियां

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा 2019 में प्रगतिशील किसान की उपाधि से सम्मानित किया गया।

भविष्य की योजनाएं

नरेश कुमार अपने व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं और बड़े पैमाने पर गुड़ और उसके उत्पादों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश

वह अन्य किसानों को अपनी पैदा की फसल की प्रोसेसिंग शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं क्योंकि कच्चे माल को बेचने की तुलना में पूरे उत्पाद को बनाने में अधिक मार्जिन है। गेहूं बोने वाले किसान को गेहूं के आटे की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करनी चाहिए, सूरजमुखी की बुवाई करने वाले किसान को बीज से तेल निकालना चाहिए और अन्य सभी फसलों के लिए भी प्रोसेसिंग संभव है।

चरणजीत सिंह

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एक ऐसा किसान जो मुश्किलों से लड़ा और औरों को लड़ना भी सिखाया

किसान को हमेशा अन्नदाता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि किसान का काम अन्न उगाना और देश का पेट भरना होता हैं पर आज के समय में किसान को उगाने के साथ-साथ फसल की प्रोसेसिंग और बेचना आना भी बहुत जरुरी है। पर जब मंडीकरण की बात आती है तो किसान को कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है, क्योंकि मन में डर होता है कहीं अपनी किसानी के अस्तित्व को कायम रखने में कमजोर न हो जाए।

किसान का नाम चरणजीत सिंह जिसने अपने आप पर भरोसा किया और आगे बढ़ा और आज कामयाब भी हुआ जो गांव गहिल मजारी, नवांशहर के रहने वाले हैं। वैसे तो चरणजीत सिंह शुरू से ही खेती करते हैं जिसमें उन्होंने अपनी अधिक रूचि गन्ने की खेती की तरफ दिखाई है। जिसमें वह 145 एकड़ में 70 से 80 एकड़ में सिर्फ गन्ने की खेती करते थे और बाकि जमीन में पारंपरिक खेती ही करते थे और कर रहे हैं।

गन्ने की खेती में अच्छा अनुभव हो गया, लेकिन कुछ कारणों के कारण उन्हें 80 से कम करके 45 एकड़ में खेती करनी पड़ी, क्योंकि जब गन्ने की फसल उग जाती थी तो पहले तो यह सीधी मिल में चली जाती थी पर एक दिन ऐसा आया कि उनकी फसल की कटाई के लिए मज़दूर ही नहीं मिल रहे थे, पर जब मज़दूर मिलने लगे तब फसल बिकने के लिए मिल में चली जाती थी और फसल का मूल्य बहुत कम मिलता था। पहले आसमान को छू रहे थे और फिर वे आकर जमीन पर गिर गए जैसे कि उनकी मंजिल के पंख ही काट दिए गए हों।

वह बहुत परेशान रहने लगे और इसके बारे में सोचने लगे और फैसला लिया यदि मुझे सफल होना तो यहीं काम करके होना है और काम करने लगे।

“वह समय और वह फैसला लेना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि 145 एकड़ में आधा में गन्ने की खेती कर रहा था जहां से मुझे आमदन हो रही थी- चरणजीत सिंह

जब उन्होंने फैसला लिया तो 45 एकड़ में ही गन्ने की खेती करनी शुरू कर दी। अनुभव भी उनके पास पहले से ही था पर उस अनुभव को उपयोग करने की जरुरत थी। फिर धीरे-धीरे चरणजीत ने खेत में ही बेलना लगा लिया और उन्होंने पारंपरिक तरीके से गुड़ निकालना जारी रखा।

वह गुड़ बना रहे थे और गुड़ बिक भी रहा था पर चरणजीत को काम करके ख़ुशी नहीं मिल रही थी।

परिणामस्वरूप, गुड़ बनाने में उनकी रुचि कम होने लगी। फिर उन्हें पुराने दिन और बातें याद आती जो उन्होंने उस दिन काम करने के बारे में सोची थी और वह उन्हें होंसला देती थी।

बहुत सोचने के बाद उन्होंने बहुत सी जगह पर जाना शुरू किया और प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी इक्क्ट्ठी करनी शुरू कर दी। जैसे-जैसे जानकारी मिलती रही काम करने की इच्छा जागती रही पर फिर भी संतुष्ट न हो पाए, क्योंकि उन्हें किसान तो मिले पर कुछ किसान ही थे जो साधारण गुड़ बनाने के इलावा कुछ ख़ास बनाने की कोशिश कर रहे थे जोकि यह बात उनके मन में बैठ गई। फिर उन्होंने ट्रेनिंग करने के बारे में सोचा।

मैंने PAU लुधियाना से ट्रेनिंग प्राप्त की- चरणजीत सिंह

ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने फिर प्रोसेसिंग पर काम करना शुरू कर दिया। अधिक समय काम करने के बाद फिर चरणजीत ने 2019 में नए तरीके से शुरुआत की और सिंपल गुड़ और शक्कर के साथ-साथ मसाले वाला गुड़ भी बनाना शुरू कर दिया। मसाले वाले गुड़ में वह कई तरह की वस्तुओं का प्रयोग करते थे।

वह प्रोसेसिंग का पूरा काम अपने ही फार्म पर करते हैं और देखरेख उनके पुत्र सनमदीप सिंह जी करते हैं जो अपने पिता जी के साथ मिलकर काम करते हैं। जिससे उनका काम साफ़ सुथरा और देखरेख से बिना किसी परेशानी से हो जाता है।

उन्होंने 12 कनाल में अपना फार्म जिसमें 2 कनाल में वेलन और बाकि के 10 कनाल में सूखी लकड़ियां बिछाई हैं जो बंगे से मुकंदपुर रोड पर स्तिथ है। गुड़ बनाने के लिए उन्होंने अपनी खुद के मज़दूर रखे हुए हैं जिन्हे अनुभव हो चूका है और फार्म पर वही गुड़ निकालते हैं और बनाने हैं। उनके द्वारा 3 से 4 तरह के उत्पाद तैयार किये जाते हैं। जिसके अलग-अलग रेट हैं जिसमें मसाले वाले गुड़ की मांग बहुत अधिक है।

उनके द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पाद

  • गुड़
  • शक्कर
  • मसाले वाला गुड़ आदि।

जिसकी मार्केटिंग करने के लिए उन्हें कहीं भी बाहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि उनके द्वारा बनाये गुड़ की मांग इतनी अधिक है कि उन्हें गुड़ के आर्डर आते हैं। जिनमें अधिकतर शहर के लोगों द्वारा आर्डर किया जाता है।

रोज़ाना उनका 70 से 80 किलो गुड़ बिक जाता है और आज अपने इसी काम से बहुत मुनाफा कमा रहे हैं। वह खुद हैं जो उन्होंने सोचा था वह करके दिखाया। इसके साथ-साथ वह गन्ने के बीज भी तैयार करते हैं और बाकि की जमीन में मौसमी फसलें उगाते हैं और मंडीकरण करते हैं।

भविष्य की योजना

वह अपने इस गन्ने के व्यापार को दोगुना करना चाहते हैं और फार्म को बड़े स्तर पर बनाना चाहते हैं और आधुनिक तरीके के साथ काम करने की सोच रहे हैं।

संदेश

किसी भी नौजवान को बाहर देश जाने की जरुरत नहीं है यदि वह यहीं रह कर मन लगा कर काम करना शुरू कर दें तो उनके लिए यही जन्नत है, बाकि सरकार को नौजवानों को सही दिशा में जाने के लिए और खेती के लिए भी प्रेरित करना चाहिए।

भूपिंदर सिंह बरगाड़ी

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जानें कैसे एक बेटे ने अपने पिता के कदमों पर चलकर उनके गुड़ व्यापार को महान स्तर तक पहुंचाया

यह कहानी है- कैसे एक बेटे (भूपिंदर सिंह बरगाड़ी) ने अपने पिता (सुखदेव सिंह बरगारी) के व्यवसाय को समृद्ध तरीके से चलाया और वह पंजाब में गुड़ के प्रसिद्ध ब्रांड – BARGARI के नाम से आया।

एक समय था जब निकाले गए गन्ने के रस से गुड़ बनाने के लिए बैल का प्रयोग किया जाता था। लेकिन समय के साथ इस कार्य के लिए मशीनों का प्रयोग होने लगा। इसके अलावा गुड़ बनाने के लिए रासायनिक और रंग का प्रयोग होने के कारण इस स्वीटनर ने अपना सारा आकर्षण खो दिया और धीर धीरे लोग सफेद चीनी की तरफ आकर्षित होने लग गए।

लेकिन फिर भी कई परिवार चीनी की बजाय गुड़ को पसंद करते हैं और वे गन्ने के रस से गुड़ बनाने के लिए रवायिती ढंग का प्रयोग करते हैं। यह कहानी है सुखदेव सिंह बरगारी और उनके पुत्र भूपिंदर सिंह बरगाड़ी की। 1972 में सुखदेव सिंह औज़ारों और किसानों के उपकरणों को तीखा करने का काम करते थे और बदले में वे अनाज, सब्जियां या जो कुछ भी किसान उन्हें देते थे, वे मजदूरी के रूप में ले लेते थे। कुछ समय बाद उन्होंने ने एक इंजन खरीदा और इससे गुड़ बनाना शुरू किया। गुड़ निकालने के उनके शुद्ध पारंपरिक ढंग और बिना किसी रसायन का प्रयोग करके बनाए गुड़ ने उन्हें प्रसिद्ध कर दिया और कई गांव वालों ने उन्हें गुड़ बनाने के लिए गन्ने की फसल देनी शुरू कर दी। सुखदेव मुख्य रूप से इस काम को नवंबर से लेकर मार्च तक करते थे।

एक समय ऐसा आया जब सुखदेव की मेहनत रंग लायी और उनके गुड़ की मांग कई गुना बढ़ गई। यह 2011 की बात है जब उनकी बेटी की शादी थी। उस समय उन्होंने सभी रिश्तेदारों और मित्रों को शादी के निमंत्रण कार्डों के साथ गुड़, देसी घी और कई सारे मेवे से बनी हुई मिठाई वितरित की। हर किसी को वह मिठाई बहुत पसंद आई और उन्होंने इसे उनके लिए बनाने की मांग सुखदेव सिंह से की और उस समय उनके बेटे भूपिंदर सिंह ने अपने पिता के काम को करने और इसे एक उच्च स्तर तक विस्तृत करने का फैसला किया। इस घटना के बाद पिता पुत्र दोनों ने दो तरह के गुड बनाना शुरू किया एक मेवों के साथ और दूसरा बिना मेवे के।

बरगाड़ी परिवार के गन्ने के रस को साफ करने के लिए भिंडी की लेस के इस्तेमाल के पारंपरिक ढंग ने उनके गुड़ को, रसायनों और रंग का प्रयोग करके तैयार किए गए गुड़ से बेहतर बनाया। गुड़ बनाने के इस शुद्ध और साफ ढंग ने सुखदेव सिंह और भूपिंदर सिंह को प्रसिद्ध बना दिया और लोग उन्हें उनके काम से पहचानने लगे।

भूपिंदर सिंह सिर्फ अपने पिता के नक्शे कदम पर ही नहीं चले बल्कि उनके पास B.Ed. और MA की डिग्री थी और उसके बाद उन्होंने ETT Teacher Exam को भी पास किया और वे स्कूल टीचर के रूप में भी काम करते हैं और अपने पेशे से फ्री होने पर वे हर रोज गुड़ बनाने के लिए समय भी निकालते हैं।

इस पारंपरिक स्वीटनर को और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए, भूपिंदर ने 2 एकड़ क्षेत्र में गन्ने की C085 किस्म भी उगानी शुरू की और एक ग्रुप भी बनाया जिसमें वे ग्रुप के किसान सदस्यों को गन्ना उगाने के लिए प्रेरित भी करते हैं। भूपिंदर सिंह के इस कदम का परिणाम यह हुआ कि गन्ने की उतनी ही खेती की जाती थी जितनी की आवश्यक थी। जिसके परिणामस्वरूप किसानों को भी अधिक लाभ मिला और उसके साथ साथ बरगारी परिवार को भी फायदा हुआ।

पिछले 5 वर्षों से बरगारी परिवार द्वारा उत्पादित गुड़ ने PAU द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में 4 बार पहला पुरस्कार जीता है और एक बार दूसरा पुरस्कार जीता है। 2014 में अच्छी गुणवत्ता वाले गुड़ के लिए उद्यमी किसान राज्य पुरस्कार (Udami Kisan State Award) भी जीता। भूपिंदर सिंह लखनऊ भी गए जहां उन्होंने अपनी मंडीकरण की तकनीकों के बारे में राष्ट्रीय गुड़ सम्मेलन (National Jaggery Sammelan) में चर्चा की। उन्होंने गुड़ की मार्किटिंग के लिए जागरूकता फैलाने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि किसानों को मार्किटिंग की तकनीकों के बारे में जागरूक करवाने के लिए मार्च में आयोजित PAU सम्मेलन में भाग भी लिया।

अपना प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करना…

गुड़ प्रोसेसिंग प्लांट

वर्तमान में, कोटकपुरा – बठिंडा रोड पर उनका अपना गुड़ प्रोसेसिंग प्लांट है जहां पर वे अपने पारंपरिक ढंग से शुद्ध गुड़ बनाते हैं। गुड़ और शक्कर की मांग सर्दियों में ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि शुद्ध गुड़ से बनी चाय के सेहत पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होते। यहां तक कि उस क्षेत्र के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (पेट के डॉक्टर) के विशेषज्ञ भी अपने मरीज़ों को बरगारी परिवार द्वारा बनाया गया गुड़ खाने की सलाह देते हैं।

अनाज की फसलों का प्रोसेसिंग प्लांट

इसके अलावा भूपिंदर सिंह के पास उसी स्थान पर अनाज का प्रोसेसिंग प्लांट भी है जहां पर वे सेल्फ हेल्प ग्रुप द्वारा उगाए गए गेहूं, मक्की, जौं, ज्वार और सरसों की प्रोसेसिंग करते हैं। प्रोसेसिंग प्लांट के साथ साथ उन्होंने एक स्टोर भी खोला है जहां पर वे अपने प्रोसेसिंग किए उत्पादों को बेचते हैं।

ब्रांड नाम कैसे दिया गया:

अपने गुड़ की डॉक्टरों द्वारा सिफारिश किए जाने के बारे में जानकर वे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपने ब्रांड का नाम “बरगाड़ी गुड़” रखने का फैसला किया।

भूपिंदर का “बरगाड़ी गुड़” के नाम से फेसबुक पेज भी है जिसके माध्यम से वे अपने आदर्श ग्राहकों के साथ विचार विमर्श करते हैं उन्होंने फेसबुक पेज के माध्यम से गुड़ बनाने की पूरी प्रक्रिया पर भी चर्चा की है।

वे हमेशा अपने व्यवसाय में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के फूड टैक्नोलोजी और फूड प्रोसेसिंग और इंजीनियरिंग विभागों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखते हैं।

आज, जो कुछ भी भूपिंदर सिंह ने अपने जीवन में हासिल किया है उसका सारा श्रेय वे अपने पिता श्री सुखदेव सिंह बरगाड़ी को देते हैं। सफल व्यवसाय चलाने के अलावा, भूपिंदर सिंह बरगाड़ी एक अच्छे शिक्षक भी हैं और फरीदकोट जिले के कोठे कहर सिंह गांव के लोगों और बच्चों की मदद कर रहे हैं। उनके अच्छे कार्यो के बारे में कई लेख, स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किए गए हैं। वह ना केवल किसानों की मदद करना चाहते हैं बल्कि अपने काम और ज्ञान से लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं और उनकी सहायता भी करना चाहते हैं।

खैर, पिता-पुत्र की यह जोड़ी सफलतापूर्वक काम कर रही है और सिर्फ दोनों के बीच की समझ के कारण ही इस स्तर तक पहुंची है। भविष्य में भी भूपिंदर सिंह बरगाड़ी अपने इस अच्छे काम को जारी रखेंगे और यूवा पीढ़ी के किसानों को अपने ज्ञान से प्रेरित करेंगे।

संदेश


मैं चाहता हूं कि किसान खेती के साथ फूड प्रोसेसिंग व्यवसाय में भी शामिल हों। इस तरीके से वे अपने व्यवसाय में अच्छा लाभ कमा सकते हैं। आज, किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों के साथ अपडेट रहने की जरूरत है तभी वे आगे बढ़ सकते हैं और अपने क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।