जगमोहन सिंह नागी

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पंजाब का मक्की की फसल का राजा

जगमोहन सिंह नागी, जो पंजाब के बटाला से हैं, उनकी हमेशा से ही कृषि और खाद्य उद्योग में बहुत रुचि रही है। उनके पिता आटा चक्कियों की मुरम्मत करते थे और चाहते थे कि उनका बेटा खाद्य उद्योग में काम करे।

जगमोहन (63), जो 300 एकड़ ज़मीन पर एक कॉन्ट्रैक्ट फार्मर के रूप में काम करते हैं, जिसमें मक्की, सरसों, गेहूं जैसी फसलें और गाजर, फूलगोभी, टमाटर और चुकंदर जैसी सब्जियां उगाते हैं।

वह पंजाब और हिमाचल प्रदेश में 300 किसानों के साथ मिलकर काम करते हैं और पेप्सिको, केलॉग्स (Kellogg’s) और डोमिनोज़ पिज़्ज़ा को उत्पाद की आपूर्ति करते हैं। वह उपज को इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, दुबई और हांगकांग को भी भेजते हैं।

बँटवारा से पहले उनका परिवार कराची में रहता था। जगमोहन जी के पिता नागी, पंजाब में रहने से पहले मुंबई आ गए। अधिक मांग के बावजूद, उस समय आटा चक्की की मुरम्मत का काम करने वाले बहुत कम लोग थे। इसलिए, उनके पिता ने इस मौके का लाभ उठाया।

जगमोहन जी के पिता की इच्छा थी कि वह फूड इंडस्ट्री में काम करें। हालाँकि, उस समय पंजाब में कोई कोर्स उपलब्ध न होने के कारण, उन्होंने यूनाइटेड किंगडम, बर्मिंघम विश्वविद्यालय में फ़ूड और अनाज मिलिंग और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।

भारत लौटने के बाद, उन्होंने एक कृषि व्यवसाय, कुलवंत न्यूट्रीशन की स्थापना की। उनकी शुरुआत खराब रही क्योंकि उन्हें मक्के की अच्छी फसल लेने के लिए मदद की ज़रूरत थी। कुलवंत न्यूट्रीशन, जिसकी शुरुआत 1989 में एक पौधे और मक्के की फसल से हुई थी, अब यह कंपनी साल का 7 करोड़ रुपये से अधिक कमाने वाली कंपनी बन गई है।

जगमोहन ने एक प्लांट शुरू किया, लेकिन पंजाब में तब मक्का की फसल अच्छी नहीं थी। इसलिए, उन्होंने हिमाचल प्रदेश से मक्का मंगवाना शुरू किया, लेकिन लाने के लिए आवाजाई लागत बहुत अधिक थी। बाद में, उन्होंने अच्छी फसल सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय-उद्योग लिंक के माध्यम से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के साथ सहयोग किया। श्री नागी ने कहा “विश्वविद्यालय किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज देगा, और मैं उनके उत्पाद खरीदूंगा”।

जैसा कि वे कहते हैं, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। उनका पहला क्लाइंट केलॉग्स था।

जगमोहन ने 1991 में ठेके पर खेती करनी शुरू की, वह खुद फसल उगाना चाहते थे, और धीरे-धीरे खुद से ही उत्पादन करना शुरू कर दिया।

1992 में, उन्होंने पेप्सिको के लिए काम करना शुरू किया, उनके स्नैक, कुरकुरे के लिए मक्की की सप्प्लाई की। उनका दावा है कि हर महीने करीब 1000 मीट्रिक टन मक्की की मांग होती है। 1994 में, उन्होंने डोमिनोज पिज़्ज़ा की भी आपूर्ति शुरू की। 2013 में, उन्होंने डिब्बाबंद खाद्य व्यवसाय में प्रवेश किया और अन्य सब्जियां भी उगाना शुरू किया।

जब उनका व्यवसाय बहुत फलता-फूलता नज़र आ रहा था, तब महामारी इस कृषि उद्यमी के लिए कई चुनौतियां लेकर आई।

दुनिया भर में महामारी की चपेट में आने के बाद, COVID का इस पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। जबकि कई कारखाने और व्यवसाय बंद हो गए, किराना स्टोर खुले रहे क्योंकि उन चीजों की सभी को ज़रुरत होती है। परिणामस्वरूप, जगमोहन सिंह ने जैविक गेहूं और मक्की के आटे जैसी किराना वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। जगमोहन कहते हैं, ”मेरी योजना सरसों के तेल की प्रोसेसिंग शुरू करने और इसे बढ़ाने के लिए चावल और चिया के बीज उगाने की है।

अपनी कंपनी के माध्यम से, वह 70 लोगों को रोजगार देते हैं और कृषि छात्रों और किसानों को मुफ्त में ट्रेनिंग प्रदान करते हैं। वह किसानों को उन्नत कृषि तकनीक सिखाते हैं और उन्हें अपनी उपज को लाभकारी तरीके से बेचने के तरीके भी बताते हैं। फलस्वरूप दूध को घी या दही में परिवर्तित करना अधिक लाभदायक होगा।

जगनमोहन कहते हैं, ”युवाओं को खेती के लिए प्रेरित करने के लिए सरकार को स्थानीय स्तर पर प्रोत्साहन देना चाहिए और कृषि आधारित व्यवसायों को बढ़ावा देना चाहिए। “उन्हें खाद्य सुरक्षा और कृषि तकनीक को भी बढ़ावा देना चाहिए।”

वह किसानों को अच्छे परिणाम प्राप्त करने और नुकसान से बचने के लिए दिशा-निर्देश का सख्ती से पालन करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।

वे कहते हैं “किसानों को उन फसलों का चयन करना चाहिए जो उनके क्षेत्र में अच्छी तरह से विकसित होती हैं”, “इससे उन्हें पैसा बनाने में मदद मिलेगी”।

संदेश

श्री नेगी किसानों को खेती के अलग-अलग पहलुओं के बारे में प्रयोग करने और खुद को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। किसानों को नकदी फसलों पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए बाजरा, सब्जियां और फलदार पौधों को अपने खेतों के चारों ओर रखना चाहिए। वह किसानों को कच्चा दूध बेचने के बजाए दूध वाले उत्पाद बनाने की सलाह देते हैं; बल्कि उन्हें दूध से बनी बर्फी और अन्य भारतीय मिठाइयों को बेचना चाहिए।

अंकुर सिंह और अंकिता सिंह

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सिम्बॉयसिस से ग्रेजुएटड इस पति-पत्नी की जोड़ी ने पशु पालन के लिए उनकी एक नई अवधारणा के साथ एग्रीबिज़नेस की नई परिभाषा दी

भारत की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से एग्रीबिज़नेस में एम बी ए करने के बाद आप कौन से जीवन की कल्पना करते हैं। शायद एक कृषि विश्लेषक, खेत मूल्यांकक, बाजार विश्लेषक, गुणवत्ता नियंत्रक या एग्रीबिजनेस मार्केटिंग कोऑर्डिनेटर की।

खैर, एम.बी.ए (MBA) कृषि स्नातकों के लिए ये जॉब प्रोफाइल सपने सच होने जैसा है, और यदि आपने एम.बी.ए (MBA) किसी सम्मानित यूनिवर्सिटी से की है तो ये तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी। लेकिन बहुत कम लोग होते हें जो एक मल्टीनेशनल संगठन का हिस्सा बनने की बजाय, एक शुरूआती उद्यमी के रूप में उभरना पसंद करते हैं जो उनके कौशल और पर्याप्तता को सही अर्थ देता है।

अरबन डेयरी- कच्चे रूप में दूध बेचने के अपने विशिष्ट विचार के साथ पशु पालन की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने के लिए एक उद्देश्य के साथ इस प्रतिभाशाली जोड़ी- अंकुर और अंकिता की यह एक पहल है। यह फार्म कानपुर शहर से 55 किलोमीटर की दूरी पर उन्नाव जिले में स्थित है।

इस दूध उद्यम को शुरू करने से पहले, अंकुर विभिन्न कंपनियों में एक बायो टैक्नोलोजिस्ट और कृषक के रूप में काम कर रहे थे (कुल काम का अनुभव 2 वर्ष) और 2014 में अंकुर अपनी दोस्त अंकिता के साथ शादी के बंधन में बंधे, उन्होंने उनके साथ पुणे से एम.बी.ए (MBA) की थी।

खैर, कच्चा दूध बेचने का यह विचार सिद्ध हुआ, अंकुर के भतीजे के भारत आने पर। क्योंकि वह पहली बार भारत आया था तो अंकुर ने उसके इस अनुभव को कुछ खास बनाने का फैसला किया।

अंकुन ने विशेष रूप से गाय की स्वदेशी नसल -साहिवाल खरीदी और उसे दूध लेने के उद्देश्य से पालना शुरू किया, हालांकि यह उद्देश्य सिर्फ उसके भतीजे के लिए ही था लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास हुआ कि गाय का दूध, पैक किए दूध से ज्यादा स्वस्थ और स्वादिष्ट है। धीरे-धीरे पूरे परिवार को गाय का दूध पसंद आने लगा और सबने उसे पीना शुरू कर दिया।

अंकुर को बचपन से ही पशुओं का शौंक था लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने सोचा कि स्वास्थ्य के साथ क्यों समझौता करना, और 2015 में दोनों पति – पत्नी (अंकुर और अंकिता) ने पशु पालन शुरू करने का फैसला किया। अंकुर ने पशु पालन शुरू करने से पहले NDRI करनाल से छोटी सी ट्रेनिंग ली और इस बीच उनकी पत्नी अंकिता ने खेत के सभी निर्माण कार्यों की देख-रेख की। उन्होंने 6 होलस्टिन से प्रजनित गायों से शुरूआत की और अब 3 वर्ष बाद उनके पास उनके गोशाला में 34 होलस्टीन/जर्सी प्रजनित गायें और 7 स्वदेशी गायें (साहिवाल, रेड सिंधी, थारपारकर) हैं।

अरबन डेयरी वह नाम था जिसे उन्होंने अपने ब्रांड का नाम रखने के बारे में सोचा, जो कि ग्रामीण विषय को शहरी विषय में सम्मिलित करता है, दो ऐसे क्षेत्रों को जोड़ता है जो कि एक दूसरे से बिल्कुल ही विपरीत हैं।

उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए डेयरी फार्म के प्रबंधन से लेकर उत्पाद की मार्किटिंग और उसका विकास करने के लिए एक भी कदम नहीं छोड़ा । पूरे खेत का निर्माण 4 एकड़ में किया गया है और उसके रख-रखाव के लिए 7 कर्मचारी हैं। पशुओं को नहलाना, भोजन करवाना, गायों की स्वच्छता बनाए रखना और अन्य फार्म से संबंधित कार्य कर्मचारियों द्वारा हाथों से किए जाते हैं और गाय की सुविधा देखकर दूध, मशीन और हाथों से निकाला जाता है। अंकुर और अंकिता दोनों ही बिना एक दिन छोड़े दिन में एक बार फार्म जाते ही हैं। वे अपने खेत में अधिकतर समय बिताना पसंद ही नहीं करते बल्कि कर्मचारियों को अपने काम को अच्छे ढंग से करने में मदद भी करते हैं।

“अंकुर: हम गाय की फीड खुद तैयार करते हैं क्योंकि दूध की उपज और गाय का स्वास्थ्य पूरी तरह से फीड पर ही निर्भर करता है और हम इस पर कभी भी समझौता नहीं करते। गाय की फीड का फॉर्मूला जो हम अपनाते हैं वह है – 33% प्रोटीन, 33% औद्योगिक व्यर्थ पदार्थ (चोकर), 33% अनाज (मक्की, चने) और अतिरिक्त खनिज पदार्थ।

पशु पालन के अलावा वे सब्जियों की जैविक खेती में भी सक्रिय रूप से शामिल हैं। उन्होंने अतिरिक्त 4 एकड़ की भूमि किराये पर ली है। इससे पहले अंकिता ने उस भूमि का प्रयोग एक घरेलु बगीची के रूप में किया था। उन्होंने गाय के गोबर के अलावा उस भूमि पर किसी भी खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया। अब वह भूमि पूरी तरह से जैविक बन गई है। जिसका इस्तेमाल गेहूं, चना, गाजर, लहसुन, मिर्च, धनिया और अन्य मौसमी सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है। वे कृषि फसलों का प्रयोग गाय के चारे और घर के उद्देश्य के लिए करते हैं।

शुरूआत में, मेरी HF प्रजनित गाय 12 लीटर दूध देती थी, दूसरे ब्यांत के बाद उसने 18 लीटर दूध देना शुरू किया और अब वह तीसरे ब्यांत पर हैं और हम 24 लीटर दूध की उम्मीद कर रहे हैं। दूध उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी की संभावना है।

मार्किटिंग:

दूध को एक बड़े दूध के कंटेनर में भरने और एक पुराने दूध मापने वाले यंत्र की बजाय वे अपने उत्पादन की छवि को बढ़ाने के लिए एक नई अवधारणा के साथ आए। वे कच्चे दूध को छानने के बाद सीधा कांच की बोतलों में भरते हैं और फिर सीधे ग्राहकों तक पहुंचाते हैं।

लोगों ने खुली बाहों से उनके उत्पाद को स्वीकार किया है आज तक अर्थात् 3 साल उन्होंने अपने उत्पादों की बिक्री के लिए कोई योजना नहीं बनाई और ना ही लोगों को उत्पाद का प्रयोग करने के लिए कोई विज्ञापन दिया। जितना भी उन्होंने अब तक ग्राहक जोड़ा है। वह सब अन्य लोगों द्वारा उनके मौजूदा ग्राहकों से उनके उत्पाद की प्रशंसा सुनकर प्रभावित हुए हैं। इस प्रतिक्रिया ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि उन्होंने पनीर, घी और अन्य दूध आधारित डेयरी उत्पादों का उत्पादन शुरू कर दिया है। ग्राहकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उनकी बिक्री में वृद्धि हुई है।

दूध की बिक्री के लिए उनके शहर में उनका अपना वितरण नेटवर्क है और उनकी उन्नति देखकर यह समय के साथ और ज्यादा बढ़ जायेगा।

भविष्य की योजनाएं:

स्वदेशी गाय की नस्ल की दूध उत्पादन क्षमता इतनी अधिक नहीं होती और वे प्रजनित स्वदेशी गायों द्वारा गाय की एक नई नसल को विकसित करना चाहते हैं जिसकी दूध उत्पादन की क्षमता ज्यादा हो क्योंकि स्वदेशी नसल के गाय की दूध की गुणवत्ता ज्यादा बेहतर होती है और मुनष्यों के लिए इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी साबित हुए हैं।

उनके अनुसार, स्वस्थ हालातों में दूध को एक हफ्ते के लिए 2 डिगरी सेंटीग्रेड पर रखा जा सकता है और इस प्रयोजन के लिए वे आने वाले समय में दूध को लंबे समय तक स्टोर करने के लिए एक चिल्लर स्टोरेज में निवेश करना चाहते हैं ताकि वे दूध को बहु प्रयोजन के लिए प्रयोग कर सकें।

संदेश:
“पशु पालकों को उनकी गायों की स्वच्छता और देखभाल को अनदेखा नहीं करना चाहिए, उन्हें उनका वैसा ही ध्यान रखना चाहिए जैसा कि वे अपने स्वास्थ्य का रखते हैं और पशु पालन शुरू करने से पहले हर किसान को ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और बेहतर भविष्य के लिए मौजूदा पशु पालन पद्धतियों से खुद को अपडेट रखना चाहिए। पशु पालन केवल तभी लाभदायक हो सकता है जब आपके फार्म के पशु खुश हों। आपके उत्पाद का बिक्री मुल्य आपको मुनाफा कमाने से नहीं मिलेगा लेकिन एक खुश पशु आपको अच्छा मुनाफा कमाने में मदद कर सकता है।”

कुनाल गहलोट

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जानें कैसे एक ग्रामीण किसान सब्जियों की विविध खेती से लाखों कमा रहा है

जैसे कि हम जानते हैं कि समय सभी के लिए एक सीमित वस्तु है, और कड़ी मेहनत से किसी व्यक्ति को करोड़पति प्रतियोगियों से मुकाबला करने में मदद नहीं मिलेगी क्योंकि यदि कड़ी मेहनत करके भाग्य प्राप्त करना संभव है तो आज के किसान इस देश के सबसे बड़े करोड़पति होंगे।

जो चीज़ आपके काम को अधिक प्रभावकारी और उत्पादक बनाती है वह है होशियारी। यह कहानी है दिल्ली के बाहरी गांव – टिगी पुर के एक साधारण किसान की, जो कि खेतीबाड़ी की आधुनिक तकनीक से सब्जियों की खेती में लाखों कमा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास कोई उच्च तकनीक वाली मशीनरी या उपकरण है या वे खाद की जगह सोने का प्रयोग करते हैं, यह सिर्फ उनका बुद्धिमत्तापूर्ण नज़रिया है जो वे अपने खेतों में लागू कर रहे हैं।

कुनाल गहलोट द्वारा अपनाई गई तकनीक….

कुनाल गहलोट 2004 से फसल विवधीकरण और खेती विविधीकरण से जुड़े हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 10 वर्षों में उनके खेत की आमदन में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जी हां, आप सही पढ़ रहे हैं! 2004 में उनके खेत की आय 5 लाख थी और 2015 में यह 3500000 लाख हो गई।

6 अंको की आय को 7 अंको में बदलना सिर्फ कुनाल गहलोट के लिए ही संभव था क्योंकि वे नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करते हैं। अन्य किसानों के विपरीत उन्होंने फसलों, पौधों और बागबानी उत्पादों जैसे मशरूम की खेती और सब्जी की गहन खेती के उत्पादन में वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाया। इस पहल से, उन्होंने सिर्फ 4 महीनों में 3.60 लाख प्रति हेक्टेयर अर्जित किया।

कैसे मार्किटिंग ने उनकी खेतीबाड़ी को अगले स्तर तक पहुंचाया….

मंडी की मांगों के मुताबिक,कृषि उत्पादों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई और कई नए प्रभावी लिंक मंडीकरण के लिए बनाए गए, जिससे कुनाल गहलोट को जरूरतों के मुताबिक संभावित बाजारों की पहचान करने में मदद मिली।

कृषि उत्पाद की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर वर्मीकंपोस्ट प्लांट की स्थापना की और बेहतर खेती और कटाई प्रक्रिया के लिए खेत में मशीनों का इस्तेमाल किया। वर्तमान में वे गेहूं (HD-2967 and PB-1509), धान, मूली, पालक, सरसों, शलगम, फूल गोभी, टमाटर, गाजर आदि उगा रहे हैंऔर इसके साथ ही वे सब्जी के बीजों को भी तैयार करते हैं। ये थी कुनाल गहलोट की कुछ उपलब्धियां उल्लेख करने के लिए।

उन्होंने खीरे की खेती, बंद गोभी की रोपाई, गेंदे का मूली के साथ अंतरीफसली में भी सुधार किया।

अपने काम के लिए, उन्हें विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों से कई पुरस्कार और मान्यता मिली है। वे हमेशा अपने क्षेत्र के साथी किसानों के बीच अपने ज्ञान और आविष्कारों को सांझा करने की कोशिश करते हैं और कृषि क्षेत्र के सुधार में भी योगदान करते हैं।

खैर, अच्छी तरह से किया गया होशियारी वाला काम एक आदमी को कहीं भी ले जा सकता है। यह उसके ऊपर है कि वह किस दिशा में जाना चाहता है। यदि आप कृषि विविधीकरण या सब्जियों की गहन खेती करना चाहते हैं तो ‘अपनी खेती’ मोबाइल एप डाउनलोड करें और स्वंय को खेतीबाड़ी की सभी आधुनिक तकनीकों से अपडेट रखें और इसे लागू करें।

हरतेज सिंह मेहता

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जैविक खेती के लिए दूसरों को प्रोत्साहित करके बेहतर भविष्य के लिए एक आधार स्थापित कर रहे हैं

पहले जैविक एक ऐसा शब्द था जिसका प्रयोग बहुत कम किया जाता था। बहुत कम किसान थे जो जैविक खेती करते थे और वह भी घरेलु उद्देश्य के लिए। लेकिन समय के साथ लोगों को पता चला कि हर चमकीली सब्जी या फल अच्छा दिखता है लेकिन वह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।

यह कहानी है – हरतेज सिंह मेहता की जिन्होंने 10 वर्ष पहले एक बुद्धिमानी वाला निर्णय लिया और वे इसके लिए बहुत आभारी भी हैं। हरतेज सिंह मेहता के लिए, जैविक खेती को जारी रखने का निर्णय उनके द्वारा लिया गया एक सर्वश्रेष्ठ निर्णय था और आज वे अपने क्षेत्र (मेहता गांव – बठिंडा) में जैविक खेती करने वाले एक प्रसिद्ध किसान हैं।

पंजाब के मालवा क्षेत्र, जहां पर किसान अच्छी उत्पादकता प्राप्त करने के लिए कीटनाशक और रसायनों का प्रयोग बहुत उच्च मात्रा में करते हैं। वहीं, हरतेज सिंह मेहता ने प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रखने को चुना। वे बचपन से ही अपने पैतृक व्यवसायों के प्रति समर्पित है और उनके लिए अपनी उपलब्धियों के बारे में फुसफुसाने से अच्छा, एक साधारण जीवन व्यतीत करना है।

उच्च योग्यता (एम.ए. पंजाबी, एम.ए. पॉलिटिकल साइंस) होने के बावजूद, उन्होंने शहरी जीवन और सरकारी नौकरी की बजाय जैविक खेती करने को चुना। वर्तमान में उनके पास 11 एकड़ ज़मीन है जिसमें वे कपास, गेहूं, सरसों, गन्ना, मसूर, पालक , मेथी, गाजर, मूली, प्याज, लहसुन और लगभग सभी सब्जियां उगाते हैं। वे हमेशा अपने खेतों को कुदरती तरीकों से तैयार करना पसंद करते हैं जिसमें कपास (F 1378), गेहूं (1482) और बंसी नाम के बीज अच्छे परिणाम देते हैं।

“अंसतोष, निरक्षरता और किसानों की उच्च उत्पादकता की इच्छा रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है, जिसके कारण किसान जो कि उद्धारकर्त्ता के रूप में जाने जाते हैं वे अब समाज को विष दे रहे हैं। आजकल किसान कीट प्रबंधन के लिए कीटनाशकों और रसायनों का इस्तेमाल करते हैं जो मिट्टी के मित्र कीटों और उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाते हैं। वे इस बात से अवगत नहीं हैं कि वे अपने खेत में रसायनों को उपयोग करके पूरी खाद्य श्रंख्ला को विषाक्त बना रहे हैं। इसके अलावा, रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके वे ना केवल पर्यावरण की स्थिति को बिगाड़ रहे हैं बल्कि कर्ज में बढ़ोतरी के कारण प्रमुख आर्थिक नुकसान का भी सामना कर रहे हैं।”– हरतेज सिंह ने कहा।

मेहता जी हमेशा खेती के लिए कुदरती ढंग को अपनाते हैं और जब भी उन्हें कुदरती खेती के बारे में जानकारी की आवश्यकता होती है तो वे अमृतसर के पिंगलवाड़ा सोसाइटी और एग्रीकल्चर हेरीटेज़ मिशन से संपर्क करते हैं। वे आमतौर पर गाय के मूत्र और पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिए करते हैं और यह मिट्टी के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण अनुकूलन भी है।

मेहता जी के अनुसार कुदरती तरीके से उगाए गए भोजन के उपभोग ने उन्हें और उनके परिवार को पूरी तरह से स्वस्थ और रोगों से दूर रखा है। इसी कारण श्री मेहता का मानना है कि वे जैविक खेती के प्रति प्रेरित हैं और भविष्य में भी इसे जारी रखेंगे।

संदेश
“मैं देश भर के किसानों को एक ही संदेश देना चाहता हूं कि हमें निजी कंपनियों के बंधनों से बाहर आना चाहिए और समाज को स्वस्थ बनाने के लिए स्वस्थ भोजन प्रदान करने का वचन देना चाहिए।”