नवनूर कौर

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गुड़ से भरा चम्मच- नवनूर कौर

नवनूर की जिज्ञासा ने उन्हें गुड़ बनने वाले स्थानों का दौरा करने के लिए प्रेरित किया, जहां उन्हें साथ ही गन्ने के रस की सफाई की प्रक्रिया में रसायनों के उपयोग के साथ-साथ बाज़ार में मिलावटी और बिना ब्रांडेड गुड़ के होने के बारे में पता चला।
पर जब से स्वस्थ जीवन की दिशा में अचानक बदलाव आया है, तब से उन्होंने जीवन को स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए चीनी की जगह गुड़ शुरुआत की। हालांकि, दूसरों को यह समझाना एक चुनौती थी कि यह स्वास्थ्य है।
साल 2019 में, नवनूर ने अपने ब्रांड “जैगरकेन” का विचार बनाया और उन्होंने 2021 में अपने ब्रांड के नमूनों का परीक्षण शुरू किया। अच्छी प्रतिक्रिया मिलने के बाद, उन्होंने अपने ब्रांड की प्रोसेसिंग और बिक्री करनी शुरू की। उनकी योजना लोगों को गुड़ का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना था, जो एक अधिक पौष्टिक और खाने में स्वादिष्ट है, जिसका थोड़ी मात्रा में सेवन करने पर व्यक्ति को तीस प्रतिशत तक आयरन प्रदान करता है।
नवनूर और उनके सह-संस्थापक, कौशल सिंह, जिन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से कृषि व्यवसाय से एम.बी.ए. की है, और इनका सपना था कि स्टोर में पड़े गुड़ को “सैड पैक गुड” से एक ट्रेंडी गुड में बदलना था। जो लोगों की नज़रों में आए और लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ले। नवनूर ने कौशल सिंह जी के फार्म का दौरा किया और देखा कि यह तो बहुत ही हाइजेनिक है।
नवनूर और कौशल जी का कहना है कि गुड़ को आधार के रूप में उपयोग करते हुए, हम नट्स और बीजों जैसे पौष्टिक मूल्य परिवर्धन को जोड़कर उत्पाद के लाभों को बढ़ाते हैं।
वह गुणवत्ता को महत्त्व देते हैं और सुनिश्चित करते है कि उनका उत्पाद उनके सामान्य काम करने वालों की तुलना में उत्तम है, क्योंकि उनकी प्रकिर्या में सफाई के तरीके और गन्ने की सफाई के लिए भिंडी की जड़ों का उपयोग किया जाता है।
उनके पोल के परिणाम ने उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुंचाया है कि अधिकतर व्यक्ति गुड़ का स्वाद पसंद नहीं करते। जैगरकेन ऐसे उत्पाद बनाता है जिनका मूल्य अधिक है पर स्वादिष्ट, स्टाइलिश और नए युग के सभी उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त हैं। इन वस्तुओं का सेवन नियमित रूप से स्नेक्स के रूप में भी किया जा सकता है।
नवनूर और कौशल जी की इच्छा चीनी को गुड़ से बदलने की है।
दोनों ने ध्यान दिया कि वह दो रास्तों के माध्यम से आमदनी कमा सकते हैं: व्यापार-से-व्यापार और सीधा उपभोक्ता के साथ।
अन्य व्यवसायों को बेचने से हमें उसी समय भुगतान प्राप्त करने में मदद मिलती है, जैसे कि व्हाइट लेबलिंग। हम उस पैसे का उपयोग अपने ब्रांड को बनाने के लिए सीधे उपभोक्ता तक मार्केट में करते हैं, जो अपने दम पर करना मेहंगा है।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि “भले ही हम चाय और कॉफी में बेहतर मीठे विकल्पों का उपयोग करेंगे, फिर भी स्टाटर्स में चीनी शामिल होगी।
इसके अलावा, जैगरकेन कई प्रकार के स्वादिष्ट उत्पाद प्रदान करता है जो आयरन और प्रोटीन से भरपूर होते हैं और आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा होने के साथ-साथ कुछ मीठा खाने की आपकी लालसा को पूरा कर सकते हैं।

खास उत्पाद

  • ऑर्गैनिक गुड़ के टुकड़े
  • ऑर्गैनिक गुड़ पाउडर
  • बादाम इलाइची गुड़ के टुकड़े
  • कद्दू बीज गुड़ के टुकड़े
  • कुरकुरे गुड़ ग्रेनोला
  • नारियल गुड़ के टुकड़े
कंपनी एक सामाजिक प्रभाव-संचालित व्यवसाय मॉडल के आधार पर काम करती है, और इसके नेतृत्व में उद्देश्य-संचालित महिलाएं शामिल हैं। इसके आलावा ज़्यादातर कंपनी के उत्पाद के उत्पादन और पैकेजिंग की ज़िम्मेदारी के लिए महिलाएं शामिल हैं।
दूसरी तरफ पंजाब के मुख्यमंत्री, भगवंत मान द्वारा जैगरकेन को पंजाब राज्य में उभरते स्टार्टअप्स के रूप में मान्यता दी गई। अब पंजाब में बढ़ रहे व्यवसायों में से एक जैगरकेन भी है।

चुनौतियां

नवनूर जी किसी व्यावसायिक पृष्ठभूमि से नहीं थे, जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो उन्हें समस्यायों का सामना करना पड़ा, क्योंकि मार्केटिंग और प्रोसेसिंग के साथ जुडी वित्ति खर्चे महत्वपूर्ण थे।

संदेश

आज कृषि कार्य के सभी पहलुओं में सुधार की काफी गुंजाइश है। इन दिनों लोगों का अपने मूल स्थान पर वापस जाने का विचार है। लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए किसानों को अपना पूरा विश्वास एम.एस.पी. पर नहीं लगाना चाहिए, बल्कि इसके बजाए कुछ नए समाधान विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।

चरणजीत सिंह

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एक ऐसा किसान जो मुश्किलों से लड़ा और औरों को लड़ना भी सिखाया

किसान को हमेशा अन्नदाता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि किसान का काम अन्न उगाना और देश का पेट भरना होता हैं पर आज के समय में किसान को उगाने के साथ-साथ फसल की प्रोसेसिंग और बेचना आना भी बहुत जरुरी है। पर जब मंडीकरण की बात आती है तो किसान को कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है, क्योंकि मन में डर होता है कहीं अपनी किसानी के अस्तित्व को कायम रखने में कमजोर न हो जाए।

किसान का नाम चरणजीत सिंह जिसने अपने आप पर भरोसा किया और आगे बढ़ा और आज कामयाब भी हुआ जो गांव गहिल मजारी, नवांशहर के रहने वाले हैं। वैसे तो चरणजीत सिंह शुरू से ही खेती करते हैं जिसमें उन्होंने अपनी अधिक रूचि गन्ने की खेती की तरफ दिखाई है। जिसमें वह 145 एकड़ में 70 से 80 एकड़ में सिर्फ गन्ने की खेती करते थे और बाकि जमीन में पारंपरिक खेती ही करते थे और कर रहे हैं।

गन्ने की खेती में अच्छा अनुभव हो गया, लेकिन कुछ कारणों के कारण उन्हें 80 से कम करके 45 एकड़ में खेती करनी पड़ी, क्योंकि जब गन्ने की फसल उग जाती थी तो पहले तो यह सीधी मिल में चली जाती थी पर एक दिन ऐसा आया कि उनकी फसल की कटाई के लिए मज़दूर ही नहीं मिल रहे थे, पर जब मज़दूर मिलने लगे तब फसल बिकने के लिए मिल में चली जाती थी और फसल का मूल्य बहुत कम मिलता था। पहले आसमान को छू रहे थे और फिर वे आकर जमीन पर गिर गए जैसे कि उनकी मंजिल के पंख ही काट दिए गए हों।

वह बहुत परेशान रहने लगे और इसके बारे में सोचने लगे और फैसला लिया यदि मुझे सफल होना तो यहीं काम करके होना है और काम करने लगे।

“वह समय और वह फैसला लेना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि 145 एकड़ में आधा में गन्ने की खेती कर रहा था जहां से मुझे आमदन हो रही थी- चरणजीत सिंह

जब उन्होंने फैसला लिया तो 45 एकड़ में ही गन्ने की खेती करनी शुरू कर दी। अनुभव भी उनके पास पहले से ही था पर उस अनुभव को उपयोग करने की जरुरत थी। फिर धीरे-धीरे चरणजीत ने खेत में ही बेलना लगा लिया और उन्होंने पारंपरिक तरीके से गुड़ निकालना जारी रखा।

वह गुड़ बना रहे थे और गुड़ बिक भी रहा था पर चरणजीत को काम करके ख़ुशी नहीं मिल रही थी।

परिणामस्वरूप, गुड़ बनाने में उनकी रुचि कम होने लगी। फिर उन्हें पुराने दिन और बातें याद आती जो उन्होंने उस दिन काम करने के बारे में सोची थी और वह उन्हें होंसला देती थी।

बहुत सोचने के बाद उन्होंने बहुत सी जगह पर जाना शुरू किया और प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी इक्क्ट्ठी करनी शुरू कर दी। जैसे-जैसे जानकारी मिलती रही काम करने की इच्छा जागती रही पर फिर भी संतुष्ट न हो पाए, क्योंकि उन्हें किसान तो मिले पर कुछ किसान ही थे जो साधारण गुड़ बनाने के इलावा कुछ ख़ास बनाने की कोशिश कर रहे थे जोकि यह बात उनके मन में बैठ गई। फिर उन्होंने ट्रेनिंग करने के बारे में सोचा।

मैंने PAU लुधियाना से ट्रेनिंग प्राप्त की- चरणजीत सिंह

ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने फिर प्रोसेसिंग पर काम करना शुरू कर दिया। अधिक समय काम करने के बाद फिर चरणजीत ने 2019 में नए तरीके से शुरुआत की और सिंपल गुड़ और शक्कर के साथ-साथ मसाले वाला गुड़ भी बनाना शुरू कर दिया। मसाले वाले गुड़ में वह कई तरह की वस्तुओं का प्रयोग करते थे।

वह प्रोसेसिंग का पूरा काम अपने ही फार्म पर करते हैं और देखरेख उनके पुत्र सनमदीप सिंह जी करते हैं जो अपने पिता जी के साथ मिलकर काम करते हैं। जिससे उनका काम साफ़ सुथरा और देखरेख से बिना किसी परेशानी से हो जाता है।

उन्होंने 12 कनाल में अपना फार्म जिसमें 2 कनाल में वेलन और बाकि के 10 कनाल में सूखी लकड़ियां बिछाई हैं जो बंगे से मुकंदपुर रोड पर स्तिथ है। गुड़ बनाने के लिए उन्होंने अपनी खुद के मज़दूर रखे हुए हैं जिन्हे अनुभव हो चूका है और फार्म पर वही गुड़ निकालते हैं और बनाने हैं। उनके द्वारा 3 से 4 तरह के उत्पाद तैयार किये जाते हैं। जिसके अलग-अलग रेट हैं जिसमें मसाले वाले गुड़ की मांग बहुत अधिक है।

उनके द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पाद

  • गुड़
  • शक्कर
  • मसाले वाला गुड़ आदि।

जिसकी मार्केटिंग करने के लिए उन्हें कहीं भी बाहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि उनके द्वारा बनाये गुड़ की मांग इतनी अधिक है कि उन्हें गुड़ के आर्डर आते हैं। जिनमें अधिकतर शहर के लोगों द्वारा आर्डर किया जाता है।

रोज़ाना उनका 70 से 80 किलो गुड़ बिक जाता है और आज अपने इसी काम से बहुत मुनाफा कमा रहे हैं। वह खुद हैं जो उन्होंने सोचा था वह करके दिखाया। इसके साथ-साथ वह गन्ने के बीज भी तैयार करते हैं और बाकि की जमीन में मौसमी फसलें उगाते हैं और मंडीकरण करते हैं।

भविष्य की योजना

वह अपने इस गन्ने के व्यापार को दोगुना करना चाहते हैं और फार्म को बड़े स्तर पर बनाना चाहते हैं और आधुनिक तरीके के साथ काम करने की सोच रहे हैं।

संदेश

किसी भी नौजवान को बाहर देश जाने की जरुरत नहीं है यदि वह यहीं रह कर मन लगा कर काम करना शुरू कर दें तो उनके लिए यही जन्नत है, बाकि सरकार को नौजवानों को सही दिशा में जाने के लिए और खेती के लिए भी प्रेरित करना चाहिए।

धरमजीत सिंह

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एक सफल अध्यापक के साथ साथ एक सफल किसान बनने तक का सफर

कोई भी पेशा आसान नहीं होता, मुश्किलें हर क्षेत्र में आती हैं। चाहे वह क्षेत्र कृषि हो या कोई और व्यवसाय। अपने रोज़ाना के काम को छोड़ना और दूसरे पेशे को अपनाना एक चुनौती ही होती है, जिसने चट्टान की तरह चुनौतियों का सामना किया है, आखिरकार वही जीतता है।

इस कहानी के माध्यम से हम एक प्रगतिशील किसान के बारे में बात करेंगे, जो एक स्कूल शिक्षक के रूप में एक तरफ बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर रहें है और दूसरी तरफ जैविक खेती के माध्यम से लोगों के जीवन को स्वास्थ्य कर रहे हैं, क्योंकि कोई कोई ही ऐसा होता है जो खुद का नहीं, दूसरों का भला सोचता है।

ऐसे ही किसानों में से एक “धर्मजीत सिंह” हैं, जो गांव माजरी, फतेहगढ़ साहिब के निवासी हैं। जैसा कि कहा जाता है, “जैसे नाम वैसा काम” अर्थ कि जिस तरह का धरमजीत सिंह जी का नाम है वे उस तरह का ही काम करते हैं। दुनिया में इस तरह के बहुत कम देखने को मिलते हैं।

काम की सुंदरता उस व्यक्ति पर निर्भर करती है जिसके लिए उसे सौंपा गया है। ऐसा काम, जिनके बारे में वे जानते भी नहीं थे और न कभी सुना था।

जब सूरज चमकता है, तो हर उस जगह को रोशन कर देता है जहां केवल अंधेरा होता है। उसी तरह से, धर्मजीत सिंह के जीवन पर यह बात लागू होती है क्योंकि बेशक वे उस रास्ते से जा रहे थे, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं थी, वह खेती तो कर रहे थे लेकिन जैविक नहीं।

जब समय आता है, वह पूछ कर नहीं आता, वह बस आ जाता है। एक ऐसा समय तब आया जब उन्हें रिश्तेदार उनसे मिलने आये थे। एक दूसरे से बात करते हुए, अचानक, कृषि से संबंधित बात होने लगी। बात करते करते उनके रिश्तेदारों ने जैविक खेती के बारे में बात की, तो धर्मजीत सिंह जी जैविक खेती का नाम सुनकर आश्चर्यचकित थे। जैविक और रासायनिक खेती में क्या अंतर है, खेती तो आखिर खेती है। तब उनके रिश्तेदार ने कहा, “जैविक खेती बिना छिड़काव, दवाई, रसायनिक खादों के बिना की जाती है और प्राकृतिक से मिले तोहफे को प्रयोग कर जैसे केंचए की खाद, जीव अमृत आदि बहुत से तरीके से की जाती है।

पर मैंने तो कभी जैविक खेती की ही नहीं यदि मैंने अब जैविक खेती करनी हो तो कैसे कर सकता हूँ- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने एक अभ्यास के रूप में एक एकड़ में गेहूं की फसल लगाई। उन्होंने फसल की काश्त तो कर दी और रिश्तेदार चले गए, लेकिन वे दोनों चिंतित थे और फसल के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे, कि फसल की कितनी पैदावार होगी। वे इस बात से परेशान थे।

जब फसल पक चुकी थी, तो उसका आधा हिस्सा उसके रिश्तेदारों ने ले लिया और बाकी घर ले आए। लेकिन पैदावार उनकी उम्मीद से कम थी।

जब मैंने और मेरे परिवार ने फसल का प्रयोग किया तो चिंता ख़ुशी में बदल गई- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने मन बनाया कि अगर खेती करनी है, तो जैविक खेती करनी है। इसलिए उन्होंने मौसम के अनुसार फिर से खेती शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने 11 एकड़ में जैविक खेती शुरू की।

जैविक खेती उनके लिए एक चुनौती जैसी थी जिसका सामना करते समय उन्हें कठिनाइयां भी आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस साहस को ध्यान में रखते हुए, वह अपने रस्ते पर चलते रहे और जैविक खेती के बारे में जानकारी लेते रहे और सीखते रहें। जब फसल पक गई और कटाई के लिए तैयार हो गई तो वह बहुत खुश थे।

फसल की पैदावार कम हुई थी, जिससे ग्रामीणों ने मजाक उड़ाया कि यह रासायनिक खेती से लाभ कमा रहा था और अब यह नुकसान कर रहा है।

जब मैं अकेला बैठ कर सोचता था, तो मुझे लगा कि मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं- धर्मजीत सिंह

एक ओर वे परेशान थे और दूसरी ओर वे सोच रहे थे कि कम से कम वह किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे। जो भोजन मैं स्वयं खाता हूं और दूसरों को खिलाता हूं वह शुद्ध और स्वच्छ होता है।

ऐसा करते हुए, उन्होंने पहले 4 वर्षों बहु-फसल विधि को अपनाने के साथ-साथ जैविक खेती सीखना शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने गन्ना, दलहन और अन्य मौसमी फसलों की खेती शुरू की।

अच्छी तरह से सीखने के बाद, उन्होंने पिछले 4 वर्षों में मंडीकरण करना भी शुरू किया। वैसे, वे 8 वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं। जैविक खेती के साथ-साथ उन्होंने जैविक खाद बनाना भी शुरू किया, जिसमें वर्तमान में केवल केंचए की खाद और जीव अमृत का उपयोग करते हैं।

इसके बाद उन्होंने सोचा कि प्रोसेसिंग भी की जाए, धीरे-धीरे प्रोसेसिंग करने के साथ उत्पाद बनाना शुरू कर दिया। जिसमें वे लगभग 7 से 8 प्रकार के उत्पाद बनाते हैं जो बहुत शुद्ध और देसी होते हैं।

उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद-

  • गेहूं का आटा
  • सरसों का तेल
  • दलहन
  • बासमती चावल
  • गुड़
  • शक़्कर
  • हल्दी

जिसका मंडीकरण गाँव के बाहर किया जाता है और अब पिछले कई वर्षों से जैविक मंडी चंडीगढ़ में कर रहे है। वे मार्केटिंग के माध्यम से जो कमा रहे हैं उससे संतुष्ट हैं क्योंकि वे कहते हैं कि “थोड़ा खाएं, लेकिन साफ खाएं”। इस काम में केवल उनका परिवार उनका साथ दे रहा है।

अगर अच्छा उगाएंगे, तो हम अच्छा खाएंगे

भविष्य की योजना

वह अन्य किसानों को जैविक खेती के महत्व के बारे में बताना चाहते हैं और उन किसानों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जो जैविक खेती न कर रासायनिक खेती कर रहे हैं। वे अपने काम को बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं, क्योंकि वे यह बताना चाहते हैं कि जैविक खेती एक सौदा नहीं है, बल्कि शरीर को स्वस्थ रखने का राज है।

संदेश

हर किसान जो खेती करता है, जब वह खेती कर रहा होता है, तो उसे सबसे पहले खुद को और अपने परिवार को देखना चाहिए, जो वे ऊगा रहे हैं वह सही और शुद्ध उगा रहे है, तभी खेती करनी चाहिए।

भूपिंदर सिंह संधा

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प्रगतिशील किसान भूपिंदर सिंह संधा से मिलें जो मधुमक्खीपालन के प्रचार में मधुमक्खियों के जितना ही व्यस्त और कुशल हैं।

मधुमक्खी के डंक को याद करके, आमतौर पर ज्यादातर लोग आस-पास की मधुमक्खियों से नफरत करते हैं। इस तथ्य से अनजान होते हुए कि ये मशगूल छोटी मधुमक्खियां ना केवल शहद से बल्कि कई अन्य मधुमक्खी उत्पादों के द्वारा आपको एक अविश्वसनीय लाभ कमाने में मदद कर सकती हैं।

लेकिन यह कभी धन नहीं था जिसके लिए भूपिंदर सिंह संधा ने मधु मक्खी पालन शुरू किया, भूपिंदर सिंह को मधु मक्खियों की भनभनाहट, उनकी शहद बनाने की कला और मक्खीपालन के लाभों ने इस उद्यम की तरफ उन्हें आकर्षित किया।

1993 का समय था जब भूपिंदर सिंह संधा को कृषि विभाग द्वारा आयोजित राजपुरा में मधुमक्खी फार्म की दौरे के समय मक्खीपालन की प्रक्रिया के बारे में पता चला। मधुमक्खियों के काम को देखकर भूपिंदर सिंह इतना प्रेरित हुए कि उन्होंने केवल 5 अनुदानित मधुमक्खी बक्सों के साथ मक्खी पालन शुरू करने का फैसला किया।

कहने के लिए, भूपिंदर सिंह संधा फार्मासिस्ट थे और उनके पास फार्मेसी की डिग्री थी लेकिन उनका जीवन आस-पास भिनकती मक्खियां और शहद की मिठास से घिरा हुआ था।

1994 में भूपिंदर सिंह संधा ने एक फार्मा स्टोर भी खोला और उसे तैयार शहद बेचने के लिए प्रयोग किया और इससे उनका मक्खीपालन का व्यवसाय भी लगातार बढ़ रहा था। उनका फार्मेसी में आने का उद्देश्य लोगों की मदद करना था, पर बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वे सिर्फ निर्धारित की गई दवाइयां बेच रहे हैं, जो वास्तव में वे नहीं हैं जो उन्होंने सोचा था। उन्होंने 1997 में, बाजार अनुसंधान की और विश्लेषण किया कि मक्खीपालन वह क्षेत्र है जिस पर उन्हें ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसलिए 5 साल फार्मा स्टोर चलाने के बाद उन्होंने चिकित्सक लाइन को छोड़ दिया और मधुमक्खियों पर पूरी तरह ध्यान देने का फैसला किया।

और यह कहा जाता है- जब आप अपनी पसंद का कोई काम चुनते हैं तो आप ज़िंदगी में वास्तविक खुशी महसूस करते हैं।

भूपिंदर सिंह संधा के साथ भी यही था उन्होंने मक्खीपालन में अपनी वास्तविक खुशी को ढूंढा। 1999 में उन्होंने 500 बक्सों से मक्खीपालन का विस्तार किया और 6 तरह की शहद की किस्मों के साथ आए जैसे हिमालयन, अजवायन, तुलसी, कश्मीरी, सफेदा, लीची आदि। शहद के अलावा वे बी पोलन, बी वैक्स और भुने हुए फ्लैक्स सीड पाउडर भी बेचते हैं। अपने मधुमक्खी उत्पादों के प्रतिनिधित्व के लिए उन्होंने जो ब्रांड नाम चुना वह है अमोलक और वर्तमान में, पंजाब में इसकी अच्छी मार्किट है। 10 श्रमिकों के समूह के साथ वे पूरे बी फार्म का काम संभालते हैं और उनकी पत्नी भी उनके उद्यम में उनका समर्थन करती है।

भूपिंदर सिंह संधा के लिए मधुमक्खीपालन उनके जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है ना केवल इसलिए कि यह आय का स्त्रोत है बल्यि इसलिए भी कि वे मधुमक्खियों को काम करते देखना पसंद करते हैं और यह कुदरत के अनोखे अजूबे का अनुभव करने के लिए एक बेहतरीन तरीका है। मधुमक्खी पालन के माध्यम से, वे विभिन्न क्षेत्रों में अन्य किसानों के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। वे उन किसानों को भी गाइड करते हैं जो उनके फार्म पर शहद इक्ट्ठा करना, रानी मक्खी तैयार करना और उत्पादों की पैकेजिंग की प्रैक्टीकल ट्रेनिंग के लिए आते हैं। रेडियो प्रोग्राम और प्रिंट मीडिया के माध्यम से वे समाज और मक्खीपालन के विस्तार और इसकी विभिन्नता में अपना सर्वोत्तम सहयोग देने की कोशिश करते हैं।

भूपिंदर सिंह संधा का फार्म उनके गांव टिवाणा, पटियाला में स्थित है जहां पर उन्होंने 10 एकड़ ज़मीन किराये पर ली है। वे आमतौर पर 900-1000 मधुमक्खी बक्से रखते हैं और बाकी को बेच देते हैं। उनकी पत्नी उनकी दूसरी व्यापारिक भागीदार है और हर कदम पर उनका समर्थन करती है। अपने काम को और सफल बनाने के लिए और अपने कौशल को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने कई ट्रेनिंग में हिस्सा लिया है और पूरे विश्व में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर अपने काम को प्रदर्शित किया है। उन्होंने मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों द्वारा कई प्रशंसा पत्र प्राप्त किए है। ATMA स्कीम के तहत अमोलक नाम के द्वारा उनके पास अपनी ATMA किसान हट है जहां पर वे अपने तैयार उत्पादों को बेचते हैं।

भविष्य की योजना:

भविष्य में वे मधुमक्खियों के एक और उत्पाद के साथ आने की योजना बना रहे हैं और वह है प्रोपोलिस। मक्खीपालन के अलावा वे अमोलक ब्रांड के तहत रसायन मुक्त जैविक शक्कर से पहचान करवाना चाहते हैं। उनके पास कई अन्य महान योजनाएं हैं जिनपर वे अभी काम कर रहे हैं और बाद में समय आने पर सबके साथ सांझा करेंगे।

संदेश

“मक्खीपालकों के लिए शहद का स्वंय मंडीकरण करना सबसे अच्छी बात है क्योंकि इस तरह से वे मिलावटी और मध्यस्थों की भूमिका को कम कर सकते हैं जो कि अधिकतर मुनाफे को जब्त कर लेते हैं।”

भूपिंदर सिंह संधा ने मक्खीपालन में अपने जुनून के साथ उद्यम शुरू किया और भविष्य में वे समाज के कल्याण के लिए मक्खीपालन क्षेत्र में छिपी संभावनाओं को पता लगाने की कोशिश करेंगे। यदि भूपिंदर सिंह संधा की कहानी ने आपको मधुमक्खी पालन के बारे में अधिक जानने के लिए उत्साहित किया है तो अधिक जानने के लिए आप उनसे संपर्क कर सकते हैं।

कौशल सिंह

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जानें कैसे इस युवा छात्र ने खेती के क्षेत्र में अन्य नौजवानों के लिए लक्ष्य स्थापित किए

गुरदासपुर का यह युवा छात्र दूसरे छात्रों से विपरीत नहीं है वह अकेला नहीं है जिसने खेती का चयन किया क्योंकि उसके पिता खेती करते थे और उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था। लेकिन कौशल ने खेतीबाड़ी को चुना, क्योंकि वह अपनी पढ़ाई के साथ खेतीबाड़ी में कुछ नया सीखना चाहता था।

मिलिए कौशल सिंह – एक आकांक्षी छात्र से, जिसने 22 वर्ष की उज्जवल युवा उम्र में अपना एग्री बिज़नेस स्थापित किया। जी, सिर्फ 22 की उम्र में। इस विकसित होने वाली उम्र में जहां ज्यादातर युवा अपने करियर विकल्प को लेकर दुविधा में रहते हैं, वहीं कौशल सिंह ने अपने उत्पादों को ब्रांड नाम बनाया और बाज़ार में उत्पादों की मार्किटिंग भी शुरू की।

कौशल ज़मीदारों के परिवार से हैं और वे अन्य किसानों को अपनी ज़मीन किराये पर देते हैं। इससे पहले इन पर उनके पूर्वज खेती करते थे। लेकिन वर्तमान पीढ़ी खेती से दूर जाना पसंद करती है पर कौन जानता था कि परिवार की सबसे छोटी पीढ़ी अपनी यात्रा खेती के साथ शुरू करेगी।

“CANE FARMS” तक कौशल सिंह की यात्रा स्पष्ट और आसान नहीं थी। पंजाब के अन्य युवाओं की तरह कौशल सिंह अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने बड़े भाई के पास विदेश जाने की योजना बना रहे थे। यहां तक कि उनका ऑस्ट्रेलिया का वीज़ा भी तैयार था। लेकिन अंत में उनके पूरे परिवार को एक बहुत ही दुखी खबर से धक्का लगा। कौशल सिंह की मां को कैंसर था जिसके कारण कौशल सिंह ने अपने विदेश जाने की योजना रद्द कर दी थी।

यद्पि कौशल की मां कैंसर का मुकाबला नहीं कर सकीं। लेकिन फिर कौशल ने भारत में रहकर अपने गांव में ही कुछ नया करने का फैसला किया। सभी मुश्किल समय में कौशल ने अपनी उम्मीद नहीं खोयी और पढ़ाई से जुड़े रहे। उन्होंने B.Sc. एग्रीकल्चर में दाखिला लिया और सोचा –

“मैंने सोचा कि हमारे पास पर्याप्त पैसा है और यहां पंजाब में 12 एकड़ ज़मीन है तो क्यों ना इसका उचित प्रयोग किया जाये।”

इसलिए उन्होनें किरायेदारों से अपनी ज़मीन वापिस ली और जैविक तरीके से गन्ने की खेती शुरू की। 2015 में उन्होंने गन्ने से गुड़ और शक्कर का उत्पादन किया। हालांकि शुरू में उन्हें मार्किटिंग का कोई ज्ञान नहीं था इसलिए उन्होंने बिना पैकिंग और ब्रांडिंग के इसे खुला ही बेचना शुरू किया लेकिन कौशल को उनके उद्यम में बहुत बड़ा नुकसान हुआ।

लेकिन कहते हैं ना कि उड़ने वाले को कोई नहीं रोक सकता। इसलिए कौशल ने अपने दोस्त हरिंदर सिंह से पार्टनरशिप करने का फैसला किया। उसके साथ कौशल ने अपने 10 एकड़ की भूमि और हरिंदर की 20 एकड़ की भूमि पर गन्ने की खेती की। इस बार कौशल बहुत सतर्क था और उसने डॉ रमनदीप सिंह- पंजाब एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी में माहिर, से सलाह ली।

डॉ रमनदीप सिंह ने कौशल को प्रेरित किया और कौशल से कहा कि वह अपने उत्पादों को मार्किट में बेचने से पहले उनकी पैकिंग करें और उन्हें ब्रांड नाम दे। कौशल ने ऐसा ही किया। उसने अपने उत्पादों को गांव के नज़दीक की मार्किट में बेचना शुरू किया। उसने सफलता और असफलता दोनों का सामना किया । कुछ दुकानदार बहुत प्रसन्नता से उसके उत्पादों को स्वीकार कर लेते थे लेकिन कुछ नहीं। लेकिन धीरे धीरे कौशल ने अपने पांव मार्किट में जमा लिए और उसने अच्छे परिणाम पाने शुरू किए। कौशल ने पंजीकृत करने से पहले SWEET GOLD ब्रांड नाम दिया लेकिन बाद में उसने इसे बदलकर CANE FARMS कर दिया क्योंकि इस नाम की उपलब्धता नहीं थी।

आज कौशल और उसके दोस्त ने फार्मिंग से लेकर मार्किटिंग तक का सब काम स्वंय संभाला हुआ है और वे पूरे पंजाब में अपने उत्पादों को बेच रहे हैं। उन्होंने अपने ब्रांड का लोगो (logo) भी डिज़ाइन किया है। पहले वे मार्किट से बक्से और स्टिकर खरीदते थे लेकिन अब कौशल ने अपने स्तर पर सब चीज़ें करनी शुरू की हैं।

भविष्य की योजना
भविष्य में हम उत्पाद बेचने के लिए अपने उद्यम में हर जैविक किसान को जोड़ने की योजना बना रहे हैं। ताकि अन्य किसान जो हमारे ब्रांड के बारे में अनजान हैं वे आधुनिक एग्रीबिज़नेस के रूझान के बारे में जानें और इससे लाभ ले सकें।

कौशल के लिए यह सिर्फ शुरूआत है और भविष्य में वह एग्रीकल्चर से अधिक लाभ लेने के लिए और उज्जवल विचारों के साथ आएंगे।

किसानों को संदेश :
यह संदेश उन किसानों के लिए है जो 18-20 वर्ष की आयु में सोचते हैं कि खेती एक सब कुछ खो देने वाला व्यापार है। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि खेती क्या है क्योंकि यदि वे हमारी तरह कुछ नया करने का सोचना शुरू कर देंगे तो वे हमारे साथ एकजुट होकर काम कर सकते हैं।