मोहम्मद गफूर

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1 बीघा ज़मीन से शुरू करके 65 एकड़ ज़मीन तक का खेती सफरमोहम्मद गफूर

पंजाब के नामी शहर पटियाला के एक बहुत ही प्रतिभाशाली किसान मोहम्मद गफूर, जो अपनी कड़ी मेहनत से खुद का खेती व्यवसाय स्थापित करने में सफल हुए। केवल 1 बीघा ज़मीन से शुरुआत करके, उन्होंने अब अपने खेती व्यवसाय को 65 एकड़ तक बढ़ा लिया है। आज, गफूर जी खेती की बारीकियों में विशेषज्ञ हैं, और अपने दृढ़ संकल्प और अटूट भावना के माध्यम से उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर रहे हैं।

मलेरकोटला शहर के रहने वाले मोहम्मद गफूर के पिता की 1983 में अचानक ही मृत्यु हो गई और परिवार की पूरी जिम्मेदारी का बोझ गफूर के युवा कंधो पर गया। जिस वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और अपने परिवार का पालनपोषण करने का रास्ता खोजना पड़ा। सब्जियों की एक छोटी नर्सरी से गफूर के कृषि सफर की शुरूआत हुई। जल्दी ही उन्हें यह एहसास हुआ कि शायद यही वो रास्ता है जिस पर चलकर वे अपनी सभी जिम्मेदारियां पूरी कर सकते हैं।

खेती में गफूर जी की उन्नति असाधारण थी। 1992 में उन्हें खालसा कॉलेज की 6 से 7 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का मौका मिला, जो उनके कृषि सफर के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ। वर्ष 2000 में, गफूर ने अपनी खेती के काम को 20 एकड़ तक बढ़ाया और 2004 तक, उन्होंने अपनी ज़मीन बढ़ाकर 31 एकड़ कर ली। अपनी अपार मेहनत और प्रयासों से उन्हें बहुत अच्छे परिणाम मिले और 2017 में उनकी ज़मीन 41 एकड़ से बढ़कर 65 एकड़ हो गई और आज वे गर्व से गर्व सेठेके पर ली गई 65 एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं।

खेती की समस्याओं को अनुभव के माध्यम से समझने की योग्यता गफूर को दूसरों से अलग करती है। उन्हें किसी भी कृषि संस्थान से कोई औपचारिक ट्रेनिंग या मार्गदर्शन नहीं मिला। समय के साथ, उन्होंने खेती की कला में महारत हासिल कर ली और विभिन्न कृषि तकनीकों में निपुण हो गए। गफूर की सफलता, खेती में उनके अनुभव और अथक मेहनत का परिणाम है।

पूरे वर्षों में, गफूर ने उत्पादन बढ़ाने विभिन्न फसलों और सिंचाई तकनीकों का प्रयोग किया। शुरूआती दिनों में वे संगरूर नेहरू मार्केट और मोगा में काम करते थे जहां पर वे पनीरी बेचते थे। 1991 में वे राजपुरा गए और अंतत: पटियाला में बस गए। इसी समय के दौरान गफूर ने मल्चिंग सिंचाई ढंग का उपयोग करना शुरू किया, जिसका उपयोग वह पिछले 5 वर्षों से कर रहे हैं। इसके अलावा, वह अपनी 15 एकड़ ज़मीन पर ड्रिप प्रणाली का उपयोग करते हैं और इस पहल के लिए उन्हें पटियाला के अधिकारियों और केंद्र सरकार दोनों की तरफ से सब्सिडी भी मिलती है।

गफूर की विशेषज्ञता केवल खेती तक बल्कि फसल योजना तक भी फैली हुई है। गफूर जी ने सब्जियों के लिए 15 एकड़, गेहूं के लिए 5 एकड़ और धान के लिए 25 एकड़ जमीन आरक्षित रखी है। खेती में अधिक ज्ञान होने के कारण उन्हें साथी किसानों से सम्मान मिला, जो अक्सर उनकी सलाह और सहायता चाहते हैं। गफूर जी दूसरे किसानों की सब्जी की खेती करने में मदद करते हैं और दवाओं और स्प्रे के नामों के बारे में मार्गदर्शन करते रहते हैं।

मोहम्मद गफूर के परिवार ने उनके कृषि के सफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके तीन भाई सक्रिय रूप से खेती में लगे हुए हैं, और बाकी भाईबहनों ने बीज की दुकानें स्थापित की हैं। 2000 में, गफूर एक आर्मी के सब्जी ठेकेदार बन गए और उन्हें अपनी 10 एकड़ की उपज बेचनी शुरू कर दी। यह समझौता जारी है और इससे दोनों पक्षों को लाभ होता है। भविष्य में गफूर जब तक संभव हो खुद खेती करना चाहते हैं। वर्तमान में, उनके बच्चे अपने खुद के सफल व्यवसायों में शामिल हैं और सीधे तौर पर खेती से जुड़े हुए नहीं हैं।

गफूर की खेती के प्रयास लाभदायक रहे। अनुबंधित ज़मीन पर गेहूं और धान की खेती से प्रति एकड़ लगभग 10,000 से 15,000 रुपये की कमाई होती है। सब्जियों की खेती से और भी अधिक 50,000 से 100,000 रुपये प्रति एकड़ मुनाफा कमाने की क्षमता है। हालांकि, गफूर सिर्फ इन आंकड़ों पर निर्भर रहने के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि बाजार दरों में उतारचढ़ाव होता रहता है। वह किसानों को सलाह देते हैं कि वे अपने निवेश पर सावधानीपूर्वक विचार करें और छोटे पैमाने से शुरुआत करें, धीरेधीरे अपना काम बढ़ाएं।

खेती में मदद के लिए, गफूर सीज़न के दौरान 40 से 50 श्रमिकों को रोज़गार देते हैं। जैसेजैसे सीज़न ख़त्म होता है, संख्या घटकर लगभग 20 हो जाती है। गफूर अपने फार्म के प्रति समर्पित है और भविष्य में रिटायर होने की उनकी कोई योजना नहीं है। वह विनम्र और ज़मीन से जुड़े रहना चाहते हैं और इसके लिए किसी भी पुरस्कार को स्वीकार नहीं करना चाहते। गफूर का खेती से प्रेम, त्याग और कड़ी मेहनत पूरे क्षेत्र के किसानों को प्रेरित करती है। गफूर की विरासत निस्संदेह किसानों की नई पीढ़ी को चुनौतियों का सामना करने और कृषि के क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रेरित करेगी।

किसानों को संदेश

साथी किसानों के लिए गफूर जी का संदेश स्पष्ट है: केवल दूसरों पर निर्भर रहें, छोटी शुरुआत करें, अनुभव हासिल करें और लगातार बढ़ते रहें।

जगमोहन सिंह नागी

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पंजाब का मक्की की फसल का राजा

जगमोहन सिंह नागी, जो पंजाब के बटाला से हैं, उनकी हमेशा से ही कृषि और खाद्य उद्योग में बहुत रुचि रही है। उनके पिता आटा चक्कियों की मुरम्मत करते थे और चाहते थे कि उनका बेटा खाद्य उद्योग में काम करे।

जगमोहन (63), जो 300 एकड़ ज़मीन पर एक कॉन्ट्रैक्ट फार्मर के रूप में काम करते हैं, जिसमें मक्की, सरसों, गेहूं जैसी फसलें और गाजर, फूलगोभी, टमाटर और चुकंदर जैसी सब्जियां उगाते हैं।

वह पंजाब और हिमाचल प्रदेश में 300 किसानों के साथ मिलकर काम करते हैं और पेप्सिको, केलॉग्स (Kellogg’s) और डोमिनोज़ पिज़्ज़ा को उत्पाद की आपूर्ति करते हैं। वह उपज को इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, दुबई और हांगकांग को भी भेजते हैं।

बँटवारा से पहले उनका परिवार कराची में रहता था। जगमोहन जी के पिता नागी, पंजाब में रहने से पहले मुंबई आ गए। अधिक मांग के बावजूद, उस समय आटा चक्की की मुरम्मत का काम करने वाले बहुत कम लोग थे। इसलिए, उनके पिता ने इस मौके का लाभ उठाया।

जगमोहन जी के पिता की इच्छा थी कि वह फूड इंडस्ट्री में काम करें। हालाँकि, उस समय पंजाब में कोई कोर्स उपलब्ध न होने के कारण, उन्होंने यूनाइटेड किंगडम, बर्मिंघम विश्वविद्यालय में फ़ूड और अनाज मिलिंग और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।

भारत लौटने के बाद, उन्होंने एक कृषि व्यवसाय, कुलवंत न्यूट्रीशन की स्थापना की। उनकी शुरुआत खराब रही क्योंकि उन्हें मक्के की अच्छी फसल लेने के लिए मदद की ज़रूरत थी। कुलवंत न्यूट्रीशन, जिसकी शुरुआत 1989 में एक पौधे और मक्के की फसल से हुई थी, अब यह कंपनी साल का 7 करोड़ रुपये से अधिक कमाने वाली कंपनी बन गई है।

जगमोहन ने एक प्लांट शुरू किया, लेकिन पंजाब में तब मक्का की फसल अच्छी नहीं थी। इसलिए, उन्होंने हिमाचल प्रदेश से मक्का मंगवाना शुरू किया, लेकिन लाने के लिए आवाजाई लागत बहुत अधिक थी। बाद में, उन्होंने अच्छी फसल सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय-उद्योग लिंक के माध्यम से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के साथ सहयोग किया। श्री नागी ने कहा “विश्वविद्यालय किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज देगा, और मैं उनके उत्पाद खरीदूंगा”।

जैसा कि वे कहते हैं, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। उनका पहला क्लाइंट केलॉग्स था।

जगमोहन ने 1991 में ठेके पर खेती करनी शुरू की, वह खुद फसल उगाना चाहते थे, और धीरे-धीरे खुद से ही उत्पादन करना शुरू कर दिया।

1992 में, उन्होंने पेप्सिको के लिए काम करना शुरू किया, उनके स्नैक, कुरकुरे के लिए मक्की की सप्प्लाई की। उनका दावा है कि हर महीने करीब 1000 मीट्रिक टन मक्की की मांग होती है। 1994 में, उन्होंने डोमिनोज पिज़्ज़ा की भी आपूर्ति शुरू की। 2013 में, उन्होंने डिब्बाबंद खाद्य व्यवसाय में प्रवेश किया और अन्य सब्जियां भी उगाना शुरू किया।

जब उनका व्यवसाय बहुत फलता-फूलता नज़र आ रहा था, तब महामारी इस कृषि उद्यमी के लिए कई चुनौतियां लेकर आई।

दुनिया भर में महामारी की चपेट में आने के बाद, COVID का इस पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। जबकि कई कारखाने और व्यवसाय बंद हो गए, किराना स्टोर खुले रहे क्योंकि उन चीजों की सभी को ज़रुरत होती है। परिणामस्वरूप, जगमोहन सिंह ने जैविक गेहूं और मक्की के आटे जैसी किराना वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। जगमोहन कहते हैं, ”मेरी योजना सरसों के तेल की प्रोसेसिंग शुरू करने और इसे बढ़ाने के लिए चावल और चिया के बीज उगाने की है।

अपनी कंपनी के माध्यम से, वह 70 लोगों को रोजगार देते हैं और कृषि छात्रों और किसानों को मुफ्त में ट्रेनिंग प्रदान करते हैं। वह किसानों को उन्नत कृषि तकनीक सिखाते हैं और उन्हें अपनी उपज को लाभकारी तरीके से बेचने के तरीके भी बताते हैं। फलस्वरूप दूध को घी या दही में परिवर्तित करना अधिक लाभदायक होगा।

जगनमोहन कहते हैं, ”युवाओं को खेती के लिए प्रेरित करने के लिए सरकार को स्थानीय स्तर पर प्रोत्साहन देना चाहिए और कृषि आधारित व्यवसायों को बढ़ावा देना चाहिए। “उन्हें खाद्य सुरक्षा और कृषि तकनीक को भी बढ़ावा देना चाहिए।”

वह किसानों को अच्छे परिणाम प्राप्त करने और नुकसान से बचने के लिए दिशा-निर्देश का सख्ती से पालन करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।

वे कहते हैं “किसानों को उन फसलों का चयन करना चाहिए जो उनके क्षेत्र में अच्छी तरह से विकसित होती हैं”, “इससे उन्हें पैसा बनाने में मदद मिलेगी”।

संदेश

श्री नेगी किसानों को खेती के अलग-अलग पहलुओं के बारे में प्रयोग करने और खुद को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। किसानों को नकदी फसलों पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए बाजरा, सब्जियां और फलदार पौधों को अपने खेतों के चारों ओर रखना चाहिए। वह किसानों को कच्चा दूध बेचने के बजाए दूध वाले उत्पाद बनाने की सलाह देते हैं; बल्कि उन्हें दूध से बनी बर्फी और अन्य भारतीय मिठाइयों को बेचना चाहिए।

सिकंदर सिंह बराड़

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कृषि विभिन्ता को अपनाकर एक सफल किसान बनने वाले व्यक्ति की कहानी

कुछ अलग करने की इच्छा इंसान को धरती से आसमान तक ले जाती है। पर उसके मन में हमेश आगे बढ़ाने के इच्छा होनी चाहिए। आप चाहे किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हो, अपनी इच्छा और सोचा को हमेशा जागृत रखना चाहिए।

इस सोच के साथ चलने वाले सरदार सिकंदर सिंह बराड़, जोकि बलिहार महिमा, बठिंडा में रहते हैं और जिनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता सरदार बूटा सिंह पारंपरिक तरीके के साथ खेतीबाड़ी कर रहे हैं, जैसे गेहूं,धान आदि। क्या इस तरह नहीं हो सकता कि खेतीबाड़ी में कुछ नया या विभिन्ता लेकर आई जाए।

मेरे कहने का मतलब यह है कि हम खेती करते हैं पर हर बार हर साल वही फसलें उगाने की बजाए कुछ नया क्यों नहीं करते- सिकंदर सिंह बराड़

वह हमेशा खेतीबाड़ी में कुछ अलग करने के बारे में सोचा करते थे, जिसकी प्रेरणा उन्हें अपने नानके गांव से मिली। उनके नानके गांव वाले लोग आलू की खेती बहुत अलग तरीके के साथ करते थे, जिससे उनकी फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती थी।

जब मैं मामा के गांव की खेती के तरीकों को देखता था तो मैं बहुत ज्यादा प्रभवित होता था – सिकंदर सिंह बराड़

जब सिकंदर सिंह ने 1983 में सिरसा में डी. फार्मेसी की पढ़ाई शुरू की उस समय एस. शमशेर सिंह जो कि उनके बड़े भाई हैं, पशु चिकित्सा निरीक्षक थे और अपने पिता के बाद खेती का काम संभालते थे। उस समय जब दोनों भाइयों ने पहली बार खेतीबाड़ी में एक अलग ढंग को अपनाया और उनके द्वारा अपनाये गए इस तकनिकी हुनर के कारण उनके परिवार को काफी अच्छा मुनाफ़ा हुआ।

जब अलग तरीके अपनाने के साथ मुनाफा हुआ तो मैंने 1984 में D फार्मेसी छोड़ने का फैसला कर लिया और खेतबाड़ी की तरह रुख किया- सिकंदर सिंह बराड़

1984 में D फार्मेसी छोड़ने के बाद उन्होंने खेतीबाड़ी करनी शुरू कर दी। उन्होंने सबसे पहले नरमे की अधिक उपज वाली किस्म की खेती करनी शुरू की।

इस तरह छोटे छोटे कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए वह सब्जियों की खेती ही करते रहे, जहां पर उन्होंने 1987 में टमाटर की खेती आधे एकड़ में की और फिर बहुत सी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किए और अपने इस व्यवसाय को आगे से आगे बढ़ाते रहे।

1990 में विवाह के बाद उन्होंने आलू की खेती बड़े स्तर पर करनी शुरू की और विभिन्ता अपनाने के लिए 1997 में 5000 लेयर मुर्गियों के साथ पोल्ट्री फार्मिंग की शुरुआत की, जिसमें काफी सफलता हासिल हुई। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के 5 ओर किसानों को पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय को सहायक व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के लिए उत्साहित किया, जिसके साथ उन किसानों को स्व निर्भर बनने में सहायता मिली। 2005 में उन्होंने 5 रकबे में किन्नू का बाग लगाया। इसके इलावा उन्होंने नैशनल सीड कारपोरेशन लिमिटेड के लिए 15 एकड़ जमीन में 50 एकड़ रकबे के लिए गेहूं के बीज तैयार किया।

मुझे हमेशा कीटनाशकों और नुकसानदेह रसायन के प्रयोग से नफरत थी, क्योंकि इसका प्रयोग करने के साथ शरीर को बहुत नुक्सान पहुंचता है- सिकंदर सिंह बराड़

सिकंदर सिंह बराड़ अपनी फसलों के लिए अधिकतर जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। वह अब 20 एकड़ में आलू, 5 एकड़ में किन्नू और 30 एकड़ में गेहूं के बीजों का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही 2 एकड़ में 35000 पक्षियों वाला पोल्ट्री फार्म चलाते हैं।

बड़ी बड़ी कंपनी जिसमें पेप्सिको,नेशनल सीड कारपोरेशन आदि शामिल है, के साथ साथ काम कर सकते हैं, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना की तरफ से प्रमुख पोल्ट्री फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया। उन्हें बहुत से टेलीविज़न और रेडियो चैनल में आमंत्रित किया गया, ताकि खेती समाज में बदलाव, खोज, मंडीकरण और प्रबंधन संबंधी जानकारी ओर किसानों तक भी पहुँच सके।

वे राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खेती मेले और संस्था का दौरा कर चुके हैं।

भविष्य की योजना

सिकंदर सिंह बराड़ भविष्य में भी अपने परिवार के साथ साथ अपने काम को ओर आगे लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें नए नए बदलाव आते रहेंगे।

संदेश

जो भी नए किसान खेतीबाड़ी में कुछ नया करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि कुछ भी शुरू करने से पहले उससे संबंधित माहिर या संस्था से ट्रेनिंग ओर सलाह ली जाए। उसके बाद ही काम शुरू किया जाए। इसके इलावा जितना हो सके कीटनाशकों और रसायन से बचना चाहिए और जैविक खेती को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

संदीप सिंह

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नौकरी छोड़ कर अपने पिता के रास्ते पर चलकर आधुनिक खेती कर कामयाब हुआ एक नौजवान किसान- संदीप सिंह

एक ऊँचा और सच्चा नाम खेती, लेकिन कभी भी किसी ने कृषि के पन्नों को खोलकर नहीं देखा यदि हर कोई खेती के पन्नों को खोलकर देखना शुरू कर दें तो उन्हें खेती के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त हो जाएगी और हर कोई खेती में सफल हो सकता है। सफल खेती वह है जिसमें नए-नए तरीकों से खेती करके ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा सकते है।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं, संदीप सिंह जो गाँव भदलवड, ज़िला संगरूर के रहने वाले हैं और M Tech की हुई है जो अपने पिता के बताए हुए रास्ते पर चलकर और एक अच्छी नौकरी छोड़कर खेती में आज इस मुकाम पर पहुंच चुके है, यहाँ हर कोई उनसे कृषि के तरीकों के बारे में जानकारी लेने आता है। छोटी आयु में सफलता प्राप्त करने का सारा श्रेय अपने पिता हरविंदर सिंह जी को देते हैं, क्योंकि उनके पिता जी पिछले 40 सालों से खेती कर रहे हैं और खेती में काफी अनुभव होने से प्रेरणा अपने पिता से ही मिली है।

उनके पिता हरविंदर सिंह जो 2005 से खेती में बिना कोई अवशेष जलाए खेती करते आ रहे हैं। उसके बाद 2007 से 2011 तक धान के पुआल को आग न लगाकर सीधी बिजाई की थी, जिसमें वे कामयाब हुए और उससे खेती की उपजाऊ शक्ति में बढ़ावा हुआ और साथ ही खर्चे में कमी आई है। हमेशा संदीप अपने पिता को काम करते हुए देखा करता था और खेती के नए-नए तरीकों के बारे जानकारी प्रदान करता था।

2012 में जब संदीप ने M Tech की पढ़ाई पूरी की तब उन्हें अच्छी आय देने वाले नौकरी मिल रही थी लेकिन उनके पिता ने संदीप को बोला, तुम नौकरी छोड़कर खेती कर जो नुस्खे तुम मुझे बताते थे अब उनका खेतों में प्रयोग करना। संदीप अपने पिता की बात मानते हुऐ खेती करने लगे।

मुझे नहीं पता था कि एक दिन यह खेती मेरी ज़िंदगी में बदलाव करेगी- संदीप सिंह

जब संदीप परंपरागत खेती कर रहा था तो सभी कुछ अच्छे तरीके से चल रहा था और पिता हरविंदर ने बोला, बेटा, खेती तो कब से ही करते आ रहे हैं, क्यों न बीजों पर भी काम किया जाए। इस बात के ऊपर हाँ जताते हुए संदीप बीजों वाले काम के बारे में सोचने लगा और बीजों के ऊपर पहले रिसर्च की, जब रिसर्च पूरी हुई तो संदीप ने बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का फैसला लिया।

फिर मैंने देरी न करते हुए के.वी.के. खेड़ी में बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स पूरा किया- संदीप सिंह

2012 में ही फिर उन्होंने गेहूं, चावल, गन्ना, चने, सरसों और अन्य कई प्रकार के बीजों के ऊपर काम करना शुरू कर दिया जिसकी पैकिंग और प्रोसेसिंग का सारा काम अपने तेग सीड प्लांट नाम से चला रहे फार्म में ही करते थे और उसकी मार्केटिंग धूरी और संगरूर की मंडी में जाकर और दुकानों में थोक के रूप में बेचने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा।

संदीप ने बीजों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम तो करना शुरू किया था तो उसका बीजों के कारण और PAU के किसान क्लब के मेंबर होने के कारण पिछले 4 सालों से PAU में आना जाना लगा रहता था। लेकिन जब सूरज ने चढ़ना है तो उसने रौशनी हर उस स्थान पर करनी है, यहाँ पर अंधेरा छाया हुआ होता है।

साल 2016 में जब वह बीजों के काम के दौरान PAU में गए थे तो अचानक उनकी मुलाकात प्लांट ब्रीडिंग के मैडम सुरिंदर कौर संधू जी से हुई, उनकी बातचीत के दौरान मैडम ने पूछा, आप GSC 7 सरसों की किस्म का क्या करते है, तो संदीप ने बोला, मार्केटिंग, मैडम ने बोला, ठीक है बेटा। इस समय संदीप को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैडम कहना क्या चाहते हैं। तब मैडम ने बोला, बेटा आप एग्रो प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स करके, सरसों का तेल बनाकर बेचना शुरू करें, जो आपके लिए बहुत फायदेमंद है।

जब संदीप सिंह ने बोला सरसों का तेल तो बना लेंगे पर मार्केटिंग कैसे करेंगे, इस के ऊपर मैडम ने बोला, इसकी चिंता तुम मत करो, जब भी तैयार हो, मुझे बता देना।

जब संदीप घर पहुंचा और इसके बारे में बहुत सोचने लगा, कि अब सरसों का तेल बनाकर बेचेंगे, पर दिमाग में कहीं न कहीं ये भी चल रहा था कि मैडम ने कुछ सोच समझकर ही बोला होगा। फिर संदीप ने इसके बारे पिता हरविंदर जी से बात की और बहुत सोचने के बाद पिता जी ने बोला, चलो एक बार करके देख ही लेते हैं। फिर संदीप ने के.वी.के. खेड़ी में सरसों के तेल की प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स किया।

2017 में जब ट्रेनिंग लेकर संदीप सरसों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम करने लगे तो यह नहीं पता चल रहा था कि सरसों की प्रोसेसिंग कहाँ पर करेंगे, थोड़ा सोचने के बाद विचार आया कि के.वी.के. खेड़ी में ही प्रोसेसिंग कर सकते हैं। फिर देरी न करते हुए उन्होंने सरसों के बीजों का तेल बनाना शुरू कर दिया और घर में पैकिंग करके रख दी। लेकिन मार्केटिंग की मुश्किल सामने आकर खड़ी हो गई, बेशक मैडम ने बोला था।

PAU में हर साल जैसे किसान मेला लगता था, इस बार भी किसान मेला आयोजित होना था और मैडम ने संदीप की मेले में ही अपने आप ही स्टाल की बुकिंग कर दी और बोला, बस अपने प्रोडक्ट को लेकर पहुँच जाना।

हमने अपनी गाड़ी में तेल की बोतलें रखकर लेकर चले गए और मेले में स्टाल पर जाकर लगा दी- संदीप सिंह

देखते ही देखते 100 से 150 लीटर के करीब कनोला सरसों तेल 2 घंटों में बिक गया और यह देखकर संदीप हैरान हो गया कि जिस वस्तु को व्यर्थ समझ रहा था वे तो एक दम ही बिक गया। वे दिन संदीप के लिए एक न भूलने वाला सपना बन गया, जिसको सिर्फ सोचा ही था और वह पूरा भी हो गया।

फिर संदीप ने यहां-यहां पर भी किसान मेले, किसान हट, आत्मा किसान बाज़ार में जाना शुरू कर दिया, लेकिन इन मेलों में जाने से पहले उन्होंने कनोला तेल के ब्रैंड के नाम के बारे में सोचा जो ग्राहकों को आकर्षित करेगा। फिर वह कनोला आयल को तेग कनोला आयल ब्रैंड नाम से रजिस्टर्ड करके बेचने लगे।

धीरे-धीरे मेलों में जाने से ग्राहक उनसे सरसों का तेल लेने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा और बहुत से ग्राहक ऐसे थे जो उनके पक्के ग्राहक बन गए। वह ग्राहक आगे से आगे मार्केटिंग कर रहे थे जिससे संदीप को मोबाइल पर ऑर्डर आते हैं और ऑर्डर को पूरा करते हैं। आज उनको कहीं पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि घर बैठे ही आर्डर पूरा करते हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जिस का सारा श्रेय वे अपने पिता हरविंदर को देते हैं। बाकि मार्केटिंग वह संगरूर, लुधियाना शहर में कर रहे हैं।

आज मैं जो भी हूँ, अपने पिता के कारण ही हूँ- संदीप सिंह

इस काम में उनका साथ पूरा परिवार देता है और पैकिंग बगेरा वे अपने घर में ही करते हैं, लेकिन प्रोसेसिंग का काम पहले के.वी.के. खेड़ी में ही करते थे, अब वे नज़दीकी गांव में किराया देकर काम करते हैं।

इसके साथ वे गन्ने की भी प्रोसेसिंग करके उसकी मार्केटिंग भी करते हैं और जिसका सारा काम अपने फार्म में ही करते हैं और 38 एकड़ ज़मीन में 23 एकड़ में गन्ने की खेती, सरसों, परंपरागत खेती, सब्जियां की खेती करते हैं, जिसमें वह खाद का उपयोग PAU के बताए गए तरीकों से ही करते हैं और बाकि की ज़मीन ठेके पर दी हुई है।

उनको किसान मेले में कनोला सरसों आयल में पहला स्थान प्राप्त हुआ है, इसके साथ-साथ उनको अन्य बहुत से पुरस्कारों से सन्मानित किया जा चूका है।

भविष्य की योजना

वे प्रोसेसिंग का काम अपने फार्म में ही बड़े स्तर पर लगाकर तेल का काम करना चाहते हैं और रोज़गार प्रदान करवाना चाहते हैं।

संदेश

हर एक किसान को चाहिए कि वह प्रोसेसिंग की तरफ ध्यान दें, ज़रूरी नहीं सरसों की, अन्य भी बहुत सी फसलें हैं जिसकी प्रोसेसिंग करके आप खेती में मुनाफा कमा सकते हैं।

शमशेर सिंह संधु

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जानिये क्या होता है जब नर्सरी तैयार करने का उद्यम कृषि के क्षेत्र में अच्छा लाभ देता है

जब कृषि की बात आती है तो किसान को भेड़ चाल नहीं चलना चाहिए और वह काम करना चाहिए जो वास्तव में उन्हें अपने बिस्तर से उठकर, खेतों जाने के लिए प्रेरित करता है, फिर चाहे वह सब्जियों की खेती हो, पोल्टरी, सुअर पालन, फूलों की खेती, फूड प्रोसेसिंग या उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना हो। क्योंकि इस तरह एक किसान कृषि में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है।

जाटों की धरती—हरियाणा से एक ऐसे प्रगतिशील किसान शमशेर सिंह संधु ने अपने विचारों और सपनों को पूरा करने के लिए कृषि के क्षेत्र में अपने रास्तों को श्रेष्ठ बनाया। अन्य किसानों के विपरीत, श्री संधु मुख्यत: बीज की तैयारी करते हैं जो उन्हें रासायनिक खेती तकनीकों की तुलना में अच्छा मुनाफा दे रहा है।

कृषि के क्षेत्र में अपने पिता की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, शमशेर सिंह ने 1979 में अपनी पढ़ाई (बैचलर ऑफ आर्ट्स) पूरी करने के बाद खेती को अपनाने का फैसला किया और अगले वर्ष उन्होंने शादी भी कर ली। लेकिन गेहूं, धान और अन्य रवायती फसलों की खेती करने वाले अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना उनके लिए मुश्किल था और वे अभी भी अपने पेशे को लेकर उलझन में थे।

हालांकि, कृषि क्षेत्र इतने सारे क्षेत्र और अवसरों के साथ एक विस्तृत क्षेत्र है, इसलिए 1985 में उन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के युवा किसान ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में पता चला, यह प्रोग्राम 3 महीने का था जिसके अंतर्गत डेयरी जैसे 12 विषय थे जैसे डेयरी, बागबानी, पोल्टरी और कई अन्य विषय। उन्होंने इसमें भाग लिया। ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उन्होंने बीज तैयार करने शुरू किए और बिना सब्जी मंडी या कोई अन्य दुकान खोले बिना उन्होंने घर पर बैठकर ही बीज तैयार करने के व्यवसाय से अच्छी कमाई की।

कृषि गतिविधियों के अलावा, शमशेर सिंह सुधु एक सामाजिक पहल में भी शामिल हैं जिसके माध्यम से वे ज़रूरतमंदों को कपड़े दान करके उनकी मदद करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से अवांछित कपड़े इक्ट्ठे करने और अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करने के लिए किसानों का एक समूह बनाया है।

बीज की तैयारी के लिए, शमशेर सिंह संधु पहले स्वंय यूनिवर्सिटी से बीज खरीदते, उनकी खेती करते, पूरी तरह पकने की अवस्था पर पहुंच कर इसकी कटाई करते और बाद में दूसरे किसानों को बेचने से पहले अर्ध जैविक तरीके से इसका उपचार करते। इस तरीके से वे इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं उनका उद्यम इतना सफल है कि उन्हें 2015 और 2018 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और फैलो फार्मर अवार्ड के साथ आई.ए.आर.आई ने उत्कृष्ट प्रयासों के लिए दो बार सम्मानित किया है।

वर्तमान में शमशेर सिंह संधु बीज की तैयारी के साथ, ग्वार, गेहूं, जौ, कपास और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इससे अच्छे लाभ कमा रहे हैं। भविष्य में वे अपने संधु बीज फार्म के काम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि अन्य पड़ोसी राज्यों में भी बीज की आपूर्ति कर सकें।

संदेश
किसानों को अन्य बीज आपूर्तिकर्ताओं के बीज भी इस्तेमाल करके देखने चाहिए ताकि वे अच्छे सप्लायर और बुरे के बीच का अंतर जान सकें और सर्वोत्तम का चयन कर फसलों की बेहतर उपज ले सकें।

कुलविंदर सिंह नागरा

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अच्छे वर्तमान और भविष्य की उम्मीद से कुलविंदर सिंह नागरा मुड़े कुदरती खेती के तरीकों की ओर

उम्मीद एकमात्र सकारात्मक भावना है जो किसी व्यक्ति को भविष्य के बारे में सोचने की ताकत देती है, भले ही इसके बारे में सुनिश्चित न हो। और हम जानते हैं कि जब हम बेहतर भविष्य के बारे में सोचते है तो कुछ नकारात्मक परिणामों को जानने के बावजूद भी हमारे कार्य स्वचालित रूप से जल्दी हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ जिंला संगरूर के गांव नागरा के एक प्रगतिशील किसान कुलविंदर सिंह नागरा के साथ हुआ जिनकी उम्मीद ने उन्हें कुदरती खेती की तरफ बढ़ाया।

“जैविक खेती में करने से पहले, मुझे पता था कि मुझे लगातार दो साल तक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इस स्थिति से अवगत होने के बाद भी मैंने कुदरती ढंगों को अपनाने का फैसला किया। क्योंकि मेरे लिए मेरा परिवार और आसपास का वातावरण पैसे कमाने से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, मैं अपने परिवार और खुद के लिए कमा रहा हूं, क्या होगा यदि इतने पैसे कमाने के बाद भी मैं अपने परिवार को स्वस्थ रखने में योग्य नहीं… तब सब कुछ व्यर्थ है।”

खेती की पृष्ठभूमि से आने पर कुलविंदर सिंह नागरा ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने का का फैसला किया। 1997 में, अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार की पुरानी तकनीकों को अपनाकर धान और गेहूं की खेती करनी शुरू की। 2000 तक, उन्होंने 10 एकड़ भूमि में गेहूं और धान की खेती जारी रखी और एक एकड़ में मटर, प्याज, लहसुन और लौकी जैसी कुछ सब्ज़ियां उगायी । लेकिन वह गेहूं और धान से संतुष्ट नहीं थे। इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने सब्जी की खेती के क्षेत्र को एक एकड़ से 7 एकड़ तक और किन्नू और अमरूद को 1½ एकड़ में उगाना शुरू किया।

“किन्नू कम सफल था लेकिन अमरूद ने अच्छा मुनाफा दिया और मैं इसे भविष्य में भी जारी रखूगा।”

बागवानी में सफलता के अनुभव ने कुलविंदर सिंह नागरा के आत्मविश्वास को बढ़ाया और तेजी से उन्होंने अपनी कृषि गतिविधियों को, और अधिक लाभ कमाने के लिए विस्तारित किया। उन्होंने सब्जी की खेती से लेकर नर्सरी की तैयारी तक सब कुछ करना शुरू कर दिया। 2008-2009 में उन्होंने शाहबाद मारकंडा , सिरसा और पंजाब के बाहर विभिन्न किसान मेलों में मिर्च, प्याज, हलवा कद्दू, करेला, लौकी, टमाटर और बेल की नर्सरी बेचना शुरू कर दिया।

2009 में उन्होंने अपनी खेती तकनीकों को जैविक में बदलने का विचार किया, इसलिए उन्होंने कुदरती खेती की ट्रेनिंग पिंगलवाड़ा से ली, जहां पर किसानों को ज़ीरो बजट पर कुदरती खेती की मूल बातें सिखाई गईं। एक सुरक्षित और स्थिर शुरुआत को ध्यान में रखते हुए कुलविंदर सिंह नागरा ने 5 एकड़ के साथ कुदरती खेती शुरू की।

वह इस तथ्य से अच्छी तरह से अवगत थे कि कीटनाशक और रासायनिक उपचार भूमि को जैविक में परिवर्तित करने में काफी समय लग सकता है और वह शुरुआत में कोई लाभ नहीं कमाएंगे। लेकिन उन्होंने कभी भी शुरुआत करने से कदम पीछे नहीं उठाया, उन्होंने अपने खेती कौशल को बढ़ाने का फैसला किया और उन्होंने फूड प्रोसेसिंग, मिर्च और खीरे के हाइब्रिड बीज उत्पादन, सब्जियों की नैट हाउस में खेती और ग्रीन हाउस प्रबंधन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ट्रेनिंग ली । लगभग दो वर्षों के बाद, उन्होंने न्यूनतम लाभ प्राप्त करना शुरू किया।

“मंडीकरण मुख्य समस्या थी जिस का मैंने सबसे ज्यादा सामना किया था चूंकि मैं नौसिखिया था इसलिए मंडीकरण तकनीकों को समझने में कुछ समय लगा। 2012 में, मैंने सही मंडीकरण तकनीकों को अपनाया और फिर सब्जियों को बेचना मेरे लिए आसान हो गया।”

कुलविंदर सिंह नागरा ने प्रकृति के लिए एक और कदम उठाया वह था पराली जलाना बंद करना। आज पराली को जलाना प्रमुख समस्याओ में से एक है जिस का पंजाब सामना कर रहा है और यह विश्व स्तर का प्रमुख मुद्दा भी है। पंजाब और हरियाणा में किसान धन बचाने के लिए पराली जला रहे है, पर कुलविंदर सिंह नागरा ने पराली जलाने की बजाय इस की मल्चिंग और खाद बनाने के लिए इस्लेमाल किया।

कुलविंदर सिंह नागरा खेती के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए हैप्पी सीडर, किसान, बैड्ड, हल, रीपर और रोटावेटर जैसे आधुनिक और नवीनतम पर्यावरण-अनुकूल उपकरणों को पहल देते हैं।

वर्तमान में, वे 3 एकड़ पर गेहूं, 2 एकड़ पर चारे वाली फसलें, सब्जियां (मिर्च, शिमला मिर्च, खीरा, पेठा, तरबूज, लौकी, प्याज, बैंगन और लहसुन) 6 एकड़ पर और और फल जैसे आड़ू, आंवला और 1 एकड़ पर किन्नू की खेती करते हैं। वह अपने खेत पर पानी का सही उपयोग करने के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं।

वे अपनी कृषि गतिविधियों का समर्थन करने के लिए डेयरी फार्मिंग भी कर रहे है। उनके पास उनके बाड़े में 12 पशू हैं, जिनमें मुर्रा भैंस, नीली रावी और साहीवाल शामिल है। इनका दूध उत्पादन प्रति दिन 90 से 100 किलो है, जिससे वह बाजार में 70-75 किलोग्राम दूध बेचते हैं और शेष घर पर इस्तेमाल करते हैं । अब, मंडीकरण एक बड़ी समस्या नहीं है, वे संगरूर, सुनाम और समाना मंडी में सभी जैविक सब्जियां बेचते हैं। व्यापारी फल खरीदने के लिए उनके फार्म पर आते हैं और इस प्रकार वे अपने फसल उत्पादों की अच्छी कीमत कमा रहे हैं।

वे अपनी सभी उपलब्धियों का श्रेय पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी और अपने परिवार को देते हैं। आज, वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरों को अपनी कुदरती सब्जियों की खेती के कौशल के साथ प्रेरित करते है और उन्हें इस पर गर्व है। सब्जियों की कुदरती खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए, उन्हें कई पुरस्कार और प्रशंसा मिली, और उनमें से कुछ है…

• 19 फरवरी 2015 को सूरतगढ़ (राजस्थान) में भारत के माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रगतिशील किसान का कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त किया।

• संगरूर के डिप्टी कमिश्नर श्री कुमार राहुल द्वारा ब्लॉक लेवल अवॉर्ड प्राप्त किया।

• पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना से पुरस्कार प्राप्त किया।

• कृषि निदेशक, पंजाब से पुरस्कार प्राप्त किया।

• सर्वोत्तम सब्जी की किस्म की खेती में कई बार पहला और दूसरा स्थान हासिल किया।

खैर, ये पुरस्कार उनकी उपलब्धियों को उल्लेख करने के लिए कुछ ही हैं। कृषि समाज में उन्हें मुख्य रूप से उनके काम के लिए जाना जाता है।

कृषि के क्षेत्र में किसानों को मार्गदर्शन करने के लिए अक्सर उनके फार्म हाउस पर वे के वी के और पी ए यू के माहिरों को आमंत्रित करते हैं कि वे फार्म पर आये और कृषि संबंधित उपयोगी जानकारी सांझा करें, साथ ही साथ किसानों के बीच में वार्तालाप भी करवाते हैं ताकि किसान एक दूसरे से सीख सकें। उन्होंने वर्मीकंपोस्ट प्लांट भी स्थापित किया है वे अंतर फसली और लो टन्नल तकनीक अपनाते हैं, मधुमक्खीपालन करते हैं। कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बिजाई बैड पर करते हैं। नो टिल ड्रिल हैपी सीडर का इस्तेमाल करके गेहूं की खेती करते हैं, धान की रोपाई से पहले ज़मीन को लेज़र लेवलर से समतल करते हैं, मशीनीकृत रोपाई करते हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन और एकीकृत निमाटोड प्रबंधन करते हैं।

कृषि तकनीकों को अपनाने का प्रभाव:

विभिन्न कृषि तकनीकों को लागू करने के बाद, उनके गेहूं उत्पादन ने देश भर में उच्चतम गेहूं उत्पादन का रिकॉर्ड बनाया जो कुदरती खेती के तरीकों से 2014 में प्रति हेक्टेयर 6456 किलोग्राम था और इस उपलब्धि के लिए उन्हें कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनके आस पास रहने वाले किसानों के लिए वे प्रेरक हैं और वातावरण अनुकूलन तकनीकों को अपनाने के लिए किसान अक्सर उनकी सलाह लेते है।

भविष्य की योजना:
भविष्य में, कुलविंदर सिंह नागरा सब्जियों को विदेशों निर्यात करने की बना रहे हैं।
संदेश
“जो किसान अपने कर्ज और जिम्मेदारियों के बोझ से राहत पाने के लिए आत्मघाती पथ लेने का विकल्प चुनते हैं उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहिए। भगवान ने हमारे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई अवसर और क्षमताओं को दिया है और हमें इस अवसर को कभी भी छोड़ना चाहिए।”

प्रतीक बजाज

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बरेली के नौजवान ने सिर्फ देश की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने और किसानों को दोहरी आमदन कमाने में मदद करने के लिए सी ए की पढ़ाई छोड़कर वर्मीकंपोस्टिंग को चुना

प्रतीक बजाज, अपने प्रयासों के योगदान द्वारा अपनी मातृभूमि को पोषित करने और देश की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने में कृषि समाज के लिए एक उज्जवल उदाहरण है। दृष्टि और आविष्कार के अपने सुंदर क्षेत्र के साथ, आज वे देश की कचरा प्रबंधन समस्याओं को बड़े प्रयासों के साथ हल कर रहे हैं और किसानों को भी वर्मीकंपोस्टिंग तकनीक को अपनाने और अपने खेती को हानिकारक सौदे की बजाय एक लाभदायक उद्यम बनाने में मदद कर रहे हैं।

भारत के प्रसिद्ध शहरों में से एक — बरेली शहर, और एक बिज़नेस क्लास परिवार से आते हुए, प्रतीक बजाज हमेशा सी.ए. बनने का सपना देखते थे ताकि बाद में वे अपने पिता के रियल एस्टेट कारोबार को जारी रख सकें। लेकिन 19 वर्ष की छोटी उम्र में, इस लड़के ने रातों रात अपना मन बदल लिया और वर्मीकंपोस्टिंग का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया।

वर्मीकंपोस्टिंग का विचार प्रतीक बजाज के दिमाग में 2015 में आया जब एक दिन उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, आई.वी.आर.आई, इज्ज़तनगर में अपने बड़े भाई के साथ डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग में भाग लिया जिन्होंने हाल ही में डेयरी फार्मिंग शुरू की थी। उस समय, प्रतीक बजाज ने पहले से ही अपनी सी.पी.टी की परीक्षा पास की थी और सी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे और अपनी महत्वाकांक्षी भावना के साथ वे सी.ए. भी पास कर सकते थे लेकिन एक बार ट्रेनिंग में भाग लेने के बाद, उन्हें वर्मीकंपोस्टिंग और बायोवेस्ट की मूल बातों के बारे में पता चला। उन्हें वर्मीकंपोस्टिंग का विचार इतना दिलचस्प लगा कि उन्होंने अपने करियर लक्ष्यों को छोड़कर जैव कचरा प्रबंधन को अपनी भविष्य की योजना के रूप में अपनाने का फैसला किया।

“मैंने सोचा कि क्यों हम अपने भाई के डेयरी फार्म से प्राप्त पूरे गाय के गोबर और मूत्र को छोड़ देते हैं जबकि हम इसका बेहतर तरीके से उपयोग कर सकते हैं — प्रतीक बजाज ने कहा 

उन्होंने आई.वी.आर.आई से अपनी ट्रेनिंग पूरी की और वहां मौजूद शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों से कंपोस्टिंग की उन्नत विधि सीखी और सफल वर्मीकंपोस्टिंग के लिए आवश्यक सभी जानकारी प्राप्त की।

लगभग, छ: महीने बाद, प्रतीक ने अपने परिवार के साथ अपनी योजना सांझा की,यह पहले से ही समझने योग्य था कि उस समय उनके पिता सी.ए. छोड़ने के प्रतीक के फैसले को अस्वीकार कर देंगे। लेकिन जब पहली बार प्रतीक ने वर्मीकंपोस्ट तैयार किया और इसे बाजार में बेचा तो उनके पिता ने अपने बेटे के फैसले को खुले दिल से स्वीकार कर लिया और उनके काम की सराहना की।

मेरे लिए सी ए बनना कुछ मुश्किल नहीं था, मैं घंटों तक पढ़ाई कर सकता था और सभी परीक्षाएं पास कर सकता था, लेकिन मैं वही कर रहा हूं जो मुझे पसंद है बेशक कंपोस्टिंग प्लांट में काम करते 24 घंटे लग जाते हैं लेकिन इससे मुझे खुशी महसूस होती है। इसके अलावा, मुझे किसी भी काम के बीज किसी भी अंतराल की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि मेरा जुनून ही मेरा करियर है और यह मेरे काम को अधिक मज़ेदार बनाता है — प्रतीक बजाज ने कहा।

जब प्रतीक का परिवार उसकी भविष्य की योजना से सहमत हो गया तो प्रतीक ने नज़दीक के पर्धोली गांव में सात बीघा कृषि भूमि में निवेश किया और उसी वर्ष 2015 में वर्मीकंपोस्टिंग शुरू की और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

वर्मीकंपोस्टिंग की नई यूनिट खोलने के दौरान प्रतीक ने फैसला किया कि इसके माध्यम से वे देश के कचरा प्रबंधन समस्याओं से निपटेंगे और किसान की कृषि गतिविधियों को पर्यावरण अनुकूल और आर्थिक तरीके से प्रबंधित करने में भी मदद करेंगे।

अपनी कंपोस्ट को और समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने एक अलग तरीके से समाज के कचरे का विभिन्न तकनीकों के साथ उपयोग किया। उन्होंने मंदिर से फूल, सब्जियों का कचरा, चीनी का अवशिष्ट पदार्थ इस्तेमाल किया और उन्होंने वर्मीकंपोस्ट में नीम के पत्तों को शामिल किया, जिसमें एंटीबायोटिक गुण भरपूर होते हैं।

खैर, इस उद्यम को एक पूर्ण लाभप्रद परियोजना में बदल दिया गया, प्रतीक ने गांव में कुछ और ज़मीन खरीदकर वहां जैविक खेती भी शुरू की। और अपनी वर्मीकंपोस्टिंग और जैविक खेती तकनीकों से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यदि गाय मूत्र और नीम के पत्तों का एक निश्चित मात्रा में उपयोग किया जाये तो मिट्टी को कम खाद की आवश्यकता होती है। दूसरी तरफ यह फसल की उपज को भी प्रभावित नहीं करती। कंपोस्ट में नीम की पत्तियों को शामिल करने से फसल पर कीटों का कम हमला होता है और इससे फसल की उपज बेहतर होती है और मिट्टी अधिक उपजाऊ बनती है।


अपने वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट में, प्रतीक दो प्रकार के कीटों का उपयोग करते हैं जय गोपाल और एसेनिया फोएटाइडा, जिसमें से जय गोपाल आई.वी.आर.आई द्वारा प्रदान किया जाता है और यह कंपोस्टिंग विधि को और बेहतर बनाने में बहुत अच्छा है।

अपनी रचनात्मक भावना से प्रतीक ज्ञान को प्रसारित करने में विश्वास करते हैं और इसलिए वे किसान को मुफ्त वर्मीकंपोस्टिंग की ट्रेनिंग देते हैं जिसमें से वे छोटे स्तर से खाद बनाने के एक छोटे मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते हैं। शुरूआत में, उनसे छ: किसानों ने संपर्क किया और उनकी तकनीक को अपनाया लेकिन आज लगभग 42 किसान है जो इससे लाभ ले रहे हैं। और सभी किसानों ने प्रतीक की प्रगति को देखकर इस तकनीक को अपनाया है।

प्रतीक किसानों को यह दावे से कहते हैं कि वर्मीकंपोस्टिंग और जैविक खेती में निवेश करके एक किसान अधिक आर्थिक रूप से अपनी ज़मीन को उपजाऊ बना सकता है और खेती के जहरीले तरीकों की तुलना में बेहतर उपज भी ले सकता है। और जब बात मार्किटिंग की आती है जो जैविक उत्पादों का हमेशा बाजार में बेहतर मूल्य होता है।

उन्होंने खुद रासायनिक रूप से उगाए गेहूं की तुलना में बाजार में जैविक गेहूं बेचने का अनुभव सांझा किया। अंतत: जैविक खेती और वर्मीकंपोस्टिंग को अपनाना किसानों के लिए एक लाभदायक सौदा है।


प्रतीक ने अपना अनुभव बताते हुए हमारे साथ ज्ञान का एक छोटा सा अंश भी सांझा किया — वर्मीकंपोस्टिंग में गाय का गोबर उपयोग करने से पहले दो मुख्य चीज़ों का ध्यान रखना पड़ता है —गाय का गोबर 15—20 दिन पुराना होना चाहिए और पूरी तरह से सूखा होना चाहिए।

वर्तमान में, 22 वर्षीय प्रतीक बजाज सफलतापूर्वक अपना सहयोगी बायोटेक प्लांट चला रहे हैं और नोएडा, गाजियाबाद, बरेली और उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखंड के कई अन्य शहरों में ब्रांड नाम येलो खाद के तहत कंपोस्ट बेच रहे हैं। प्रतीक अपने उत्पाद को बेचने के लिए कई अन्य तरीकों को भी अपनाते हैं।

मिट्टी को साफ करने और इसे अधिक उपजाऊ बनाने के दृढ़ संकल्प के साथ, प्रतीक हमेशा कंपोस्ट में विभिन्न बैक्टीरिया और इनपुट घटकों के साथ प्रयोग करते रहते हैं। प्रतीक इस पौष्टिक नौकरी का हिस्सा होने का विशेषाधिकार प्राप्त और आनंदित महसूस करते हैं जिसके माध्यम से वे ना केवल किसानों की मदद कर रहे हैं बल्कि धरती को भी बेहतर स्थान बना रहे हैं।

प्रतीक अपना योगदान दे रहे हैं। लेकिन क्या आप अपना योगदान कर रहे हैं? प्रतीक बजाज जैसे प्रगतिशील किसानों की और प्रेरणादायक कहानियां पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर पर जाकर अपनी खेती एप डाउनलोड करें।

गुरप्रीत सिंह अटवाल

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जानिये कैसे ये किसान जैविक खेती को सरल तरीके से करके सफलता हासिल कर रहे हैं

35 वर्षीय गुरप्रीत सिंह अटवाल एक प्रगतिशील जैविक किसान है जो जिला जालंधर (पंजाब) के एक छोटे से नम्र और मेहनती परिवार से आये हैं। लेकिन सफलता के इस स्तर पर पहुंचने से पहले और अपने समाज के अन्य किसानों को प्रेरणा देने से पहले, श्री अटवाल भी अपने पिता और आसपास के अन्य किसानों की तरह रासायनिक खेती करते थे।

12वीं के बाद श्री गुरप्रीत सिंह अटवाल ने कॉलेज की पढ़ाई करने का फैसला किया, उन्होंने स्वंय जालंधर के खालसा कॉलेज में बी. ए. में दाखिला लिया। लेकिन जल्दी ही दिमाग में कुछ अन्य विचारों के कारण उन्होंने पहले वर्ष में ही कॉलेज छोड़ दिया और अपने चाचा और पिता के साथ खेतीबाड़ी करने लगे। खेती के साथ साथ वे 2006 में युवा अकाली दल के प्रधान के चुनाव में भी खड़े हुए और इसे जीत भी लिया। समय के साथ श्री अटवाल, 2015 में जिला स्तर पर उसी संगठन के प्रधान से वरिष्ठ प्रधान बन गए।

लेकिन शायद खेती में,किस्मत उनके साथ नहीं थी और उन्हें लगातार नुकसान और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। धान और ग्वार की खेती में उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा था इसलिए 2014 में उन्होंने हल्दी की खेती करने का फैसला किया लेकिन वह भी उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। क्योंकि वे बाज़ार में उचित तरीके से अपनी फसल को बेचने में सक्षम नहीं थे। अंत में, उन्होंने हल्दी से हल्दी पाउडर बनाया और गुरूद्वारों और मंदिरों में मुफ्त में बांट दिया। इस तरह की स्थिति का सामना करने के बाद, गुरप्रीत सिंह अटवाल ने फैसला किया कि वे खुद सभी उत्पादों का मंडीकरण करेंगे और बिचौलिये पर निर्भर नहीं रहेंगे।

उसी वर्ष, गुरप्रीत सिंह अटवाल को अपने पड़ोसी गांव के भंगु फार्म के बारे में पता चला। भंगु फार्म का दौरा श्री अटवाल के लिए इतना प्रेरणादायक था कि उन्होंने जैविक खेती करने का फैसला किया। हालांकि भंगु फार्म में गन्ने की खेती और प्रोसेसिंग होती थी लेकिन वहां से जैविक कृषि तकनीकों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हुई और उसी आधार पर, उन्होंने अपने परिवार के लिए 2.5 एकड़ भूमि पर सब्जियों की जैविक खेती शुरू की।

अब गुरप्रीत सिंह अटवाल ने अपने फार्म पर लगभग जैविक खेती शुरू कर दी है और उपज भी पहले से बेहतर है। वे मक्की, गेहूं, धान, गन्ना और मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं और भविष्य में वे गेहूं का आटा और मक्की का आटा प्रोसेस करने की योजना बना रहे हैं। इसी बीच, श्री अटवाल ने भोगपुर शहर में 2 किलोमीटर के क्षेत्र में फार्म में उत्पादित ताजा सब्जियों की होम डिलीवरी शुरू की है।

जैविक खेती के अलावा, गुरप्रीत सिंह अटवाल डेयरी फार्मिंग में भी सक्रिय रूप से शामिल है। उन्होंने घरेलु उपयोग के लिए गायें और भैंसों की स्वदेशी नस्लें रखी हुई है और अधिक दूध गांव में बेच देते हैं।

भविष्य की योजना
गुरप्रीत सिंह अटवाल पंजाब स्तर पर और फिर भारत स्तर पर एक जैविक स्टोर खोलने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
प्रत्येक किसान को जैविक खेती करनी चाहिए यदि बड़े स्तर तक संभव ना हो तो इसे कम से कम घर के उद्देश्य के लिए छोटे क्षेत्र में करने की कोशिश करनी चाहिए। इस तरह, वे अपनी ज़िंदगी में एक अंतर बना सकते हैं और इसे बेहतर बना सकते हैं।

गुरप्रीत सिंह अटवाल एक प्रगतिशील किसान है जो ना केवल अपने फार्म पर जैविक खेती कर रहे हैं बल्कि अपने गांव के अन्य किसानों को इसे अपनाने की प्रेरणा भी दे रहे हैं। वे डीकंपोज़र की सहायता से कुदरती कीटनाशक और खादें तैयार करते हैं और इसे किसानों में भी बांटते हैं अपने कार्यों से गुरप्रीत अटवाल ने यह साबित कर दिया है कि वे दूर की सोच रखते हैं और वर्तमान और कठिन समय का डट कर सामना करते हैं और सफलता हासिल करते हैं।

सरबीरइंदर सिंह सिद्धू

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पंजाब -मालवा क्षेत्र के किसान ने कृषि को मशीनीकरण तकनीक से जोड़ा, क्या आपने कभी इसे आज़माया है…

44 वर्षीय सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को लागू किया जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है और प्रकृति के साथ मिलकर काम करने का यह विचार उनके दिमाग में तब आया जब वे बहुत दूर विदेश में थे।

खेतीबाड़ी, जैसे कि हम जानते हैं कि यह एक पुरानी पद्धति है जिसे हमारे पूर्वजों और उनके पूर्वजों ने भोजन उत्पादित करने और जीवन जीने के लिए अपनाया। लेकिन मांगों में वृद्धि और परिवर्तन के साथ, आज कृषि का एक लंबा इतिहास बन चुका है। हां, आधुनिक कृषि पद्धतियों के कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं लेकिन अब न केवल कृषि समुदाय बल्कि शहर के बहुत से लोग स्थाई कृषि पद्धतियों के लिए पहल कर रहे हैं।

सरबीरइंदर सिंह सिद्धू उन व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने विदेश में रहते हुए महसूस किया कि उन्होंने अपनी धरती के लिए कुछ भी नहीं किया जिसने उन्हें उनके बचपन में सबकुछ प्रदान किया। यद्यपि वे विदेश में बहुत सफल जीवन जी रहे थे, नई खेती तकनीकों, मशीनरी के बारे में सीख रहे थे और समाज की सेवा कर रहे थे, लेकिन फिर भी वे निराश महसूस करते थे और तब उन्होंने विदेश छोड़ने का फैसला किया और अपनी मातृभूमि पंजाब (भारत) वापिस आ गए।

“पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं उच्च शिक्षा के लिए कैनेडा चला गया और बाद में वहीं पर बस गया, लेकिन 5-6 वर्षों के बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे वहां पर वापिस जाने की जरूरत है जहां से मैं हूं।”

विदेशी कृषि पद्धतियों से पहले से ही अवगत सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने खेती के अपने तरीके को मशीनीकृत करने का फैसला किया और उन्होंने व्यापारिक खेती और कृषि तकनीक को इक्ट्ठे जोड़ा। इसके अलावा, उन्होंने गेहूं और धान की बजाय किन्नू की खेती शुरू करने का फैसला किया।

“गेहूं और धान पंजाब की रवायती फसले हैं जिन्हें ज़मीन में केवल 4-5 महीने श्रम की आवश्यकता होती है। गेहूं और धान के चक्र में फंसने की बजाय, किसानों को बागबानी फसलों और अन्य कृषि संबंधित गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए जो साल भर की जा सकती हैं।”

श्री सिंह ने एक मशीन तैयार की जिसे बगीचे में ट्रैक्टर के साथ जोड़ा जा सकता है और यह मशीन किन्नू को 6 अलग-अलग आकारों में ग्रेड कर सकती है। मशीन में 9 सफाई करने वाले ब्रश और 4 सुखाने वाले ब्रश शामिल हैं। मशीन के मशीनीकरण ने इस स्तर तक श्रम की लागत को लगभग शून्य कर दिया है।

“मेरे द्वारा डिज़ाइन की गई मशीन एक घंटे में लगभग 1-1 ½ टन किन्नू ग्रेड कर सकती है और इस मशीन की लागत 10 लीटर डीज़ल प्रतिदिन है।”

श्री सिंह के मुताबिक- शुरूआत में जो मुख्य बाधा थी वह थी किन्नुओं के मंडीकरण के दौरान, किन्नुओं का रख रखाव, तुड़ाई में लगने वाली श्रम लागत जिसमें बहुत समय जाता था और जो बिल्कुल भी आर्थिक नहीं थी। श्री सिंह द्वारा विकसित की ग्रेडिंग मशीन के द्वारा, तुड़ाई और ग्रेडिंग की समस्या आधी हल हो गई थी।

छ: अलग अलग आकारों में किन्नुओं की ग्रेडिंग करने का यह मशीनीकृत तरीके ने बाजार में श्री सिंह की फसल के लिए एक मूल्यवान जगह बनाई, क्योंकि इससे उन्हें अधिक प्राथमिकता और निवेश पर प्रतिफल मिलता है। किन्नुओं की ग्रेडिंग के लिए इस मशीनीकृत तरीके का उपयोग करना “सिद्धू मॉडल फार्म” के लिए एक मूल्यवान जोड़ है और पिछले 2 वर्षों से श्री सिंह द्वारा उत्पादित फल सिट्रस शो में राज्य स्तर पर पहला और दूसरा पुरस्कार प्राप्त किए हैं।

सिर्फ यही दृष्टिकोण नहीं था जिसे श्री सिंह अपना रहे थे, बल्कि ड्रिप सिंचाई, फसल अपशिष्ट प्रबंधन, हरी खाद, बायोगैस प्लांट, वर्मी कंपोस्टिंग, सब्जियों, अनाज, फल और गेहूं का जैविक उत्पादन के माध्यम से वे कृषि के रवायती ढंगों के हानिकारक प्रभावों को कम कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र में सरबीरइंदर सिंह सिद्धू के योगदान ने उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त करवाये हैं जिनमें से ये दो मुख्य हैं।
• पंजाब के अबोहर में राज्य स्तरीय सिट्रस शो जीता
• अभिनव खेती के लिए पूसा दिल्ली पुरस्कार प्राप्त हुआ
कृषि के साथ श्री सिंह सिर्फ अपने शौंक की वजह से अन्य पशु पालन और कृषि संबंधित गतिविधियों के भी माहिर हैं। उन्होंने डेयरी पशु, पोल्टरी पक्षी, कुत्ते, बकरी और मारवाड़ी घोड़े पाले हुए हैं। उन्होंने आधे एकड़ में मछली तालाब और जंगलात बनाया हुआ है जिसमें 7000 नीलगिरी के वृक्ष और 25 बांस की झाड़ियां हैं।
कृषि क्षेत्र में अपने 12 वर्ष के अनुभव के साथ, श्री सिंह ने कुछ महत्तवपूर्ण मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और इन मुद्दों के माध्यम से वे समाज को संदेश देना चाहते हैं जो पंजाब में प्रमुख चिंता के विषय हैं:

सब्सिडी और कृषि योजनाएं
किसान मानते हैं कि सरकार सब्सिडी देकर और विभिन्न कृषि योजनाएं बनाकर हमारी मदद कर रही है, लेकिन यह सच नहीं है, यह किसानों को विकलांग बनाने और भूमि हथियाने का एक तरीका है। किसानों को अपने अच्छे और बूरे को समझना होगा क्योंकि कृषि इतना व्यापक क्षेत्र है कि यदि इसे दृढ़ संकल्प से किया जाए तो यह किसी को भी अमीर बना सकती है।

आजकल के युवा पीढ़ी की सोच
आजकल युवा पीढ़ी विदेश जाने या शहर में बसने के लिए तैयार है, उन्हें परवाह नहीं है कि उन्हें वहां किस प्रकार का काम करना है, उनके लिए खेती एक गंदा व्यवसाय है। शिक्षा और रोजगार में सरकार के पैसे निवेश करने का क्या फायदा जब अंतत: प्रतिभा पलायन हो जाती है। आजकल की नौजवान पीढ़ी इस बात से अनजान है कि खेतीबाड़ी का क्षेत्र इतना समृद्ध और विविध है कि विदेश में जीवन व्यतीत करने के जो फायदे, लाभ और खुशी है उससे कहीं ज्यादा यहां रहकर भी वे हासिल कर सकते हैं।

कृषि क्षेत्र में मंडीकरण – आज, किसानों को बिचौलियों को खेती- मंडीकरण प्रणाली से हटाकर स्वंय विक्रेता बनना पड़ेगा और यही एक तरीका है जिससे किसान अपना खोया हुआ स्थान समाज में दोबारा हासिल कर सकता है। किसानों को आधुनिक पर्यावरण अनुकूल पद्धतियां अपनानी पड़ेंगी जो कि उन्हें स्थायी कृषि के परिणाम की तरफ ले जायेंगी।

सभी को यह याद रखना चाहिए कि-
“ज़िंदगी में एक बार सबको डॉक्टर, वकील, पुलिस अधिकारी और एक उपदेशक की जरूरत पड़ती है पर किसान की जरूरत एक दिन में तीन बार पड़ती है।”

अंकुर सिंह और अंकिता सिंह

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सिम्बॉयसिस से ग्रेजुएटड इस पति-पत्नी की जोड़ी ने पशु पालन के लिए उनकी एक नई अवधारणा के साथ एग्रीबिज़नेस की नई परिभाषा दी

भारत की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से एग्रीबिज़नेस में एम बी ए करने के बाद आप कौन से जीवन की कल्पना करते हैं। शायद एक कृषि विश्लेषक, खेत मूल्यांकक, बाजार विश्लेषक, गुणवत्ता नियंत्रक या एग्रीबिजनेस मार्केटिंग कोऑर्डिनेटर की।

खैर, एम.बी.ए (MBA) कृषि स्नातकों के लिए ये जॉब प्रोफाइल सपने सच होने जैसा है, और यदि आपने एम.बी.ए (MBA) किसी सम्मानित यूनिवर्सिटी से की है तो ये तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी। लेकिन बहुत कम लोग होते हें जो एक मल्टीनेशनल संगठन का हिस्सा बनने की बजाय, एक शुरूआती उद्यमी के रूप में उभरना पसंद करते हैं जो उनके कौशल और पर्याप्तता को सही अर्थ देता है।

अरबन डेयरी- कच्चे रूप में दूध बेचने के अपने विशिष्ट विचार के साथ पशु पालन की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने के लिए एक उद्देश्य के साथ इस प्रतिभाशाली जोड़ी- अंकुर और अंकिता की यह एक पहल है। यह फार्म कानपुर शहर से 55 किलोमीटर की दूरी पर उन्नाव जिले में स्थित है।

इस दूध उद्यम को शुरू करने से पहले, अंकुर विभिन्न कंपनियों में एक बायो टैक्नोलोजिस्ट और कृषक के रूप में काम कर रहे थे (कुल काम का अनुभव 2 वर्ष) और 2014 में अंकुर अपनी दोस्त अंकिता के साथ शादी के बंधन में बंधे, उन्होंने उनके साथ पुणे से एम.बी.ए (MBA) की थी।

खैर, कच्चा दूध बेचने का यह विचार सिद्ध हुआ, अंकुर के भतीजे के भारत आने पर। क्योंकि वह पहली बार भारत आया था तो अंकुर ने उसके इस अनुभव को कुछ खास बनाने का फैसला किया।

अंकुन ने विशेष रूप से गाय की स्वदेशी नसल -साहिवाल खरीदी और उसे दूध लेने के उद्देश्य से पालना शुरू किया, हालांकि यह उद्देश्य सिर्फ उसके भतीजे के लिए ही था लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास हुआ कि गाय का दूध, पैक किए दूध से ज्यादा स्वस्थ और स्वादिष्ट है। धीरे-धीरे पूरे परिवार को गाय का दूध पसंद आने लगा और सबने उसे पीना शुरू कर दिया।

अंकुर को बचपन से ही पशुओं का शौंक था लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने सोचा कि स्वास्थ्य के साथ क्यों समझौता करना, और 2015 में दोनों पति – पत्नी (अंकुर और अंकिता) ने पशु पालन शुरू करने का फैसला किया। अंकुर ने पशु पालन शुरू करने से पहले NDRI करनाल से छोटी सी ट्रेनिंग ली और इस बीच उनकी पत्नी अंकिता ने खेत के सभी निर्माण कार्यों की देख-रेख की। उन्होंने 6 होलस्टिन से प्रजनित गायों से शुरूआत की और अब 3 वर्ष बाद उनके पास उनके गोशाला में 34 होलस्टीन/जर्सी प्रजनित गायें और 7 स्वदेशी गायें (साहिवाल, रेड सिंधी, थारपारकर) हैं।

अरबन डेयरी वह नाम था जिसे उन्होंने अपने ब्रांड का नाम रखने के बारे में सोचा, जो कि ग्रामीण विषय को शहरी विषय में सम्मिलित करता है, दो ऐसे क्षेत्रों को जोड़ता है जो कि एक दूसरे से बिल्कुल ही विपरीत हैं।

उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए डेयरी फार्म के प्रबंधन से लेकर उत्पाद की मार्किटिंग और उसका विकास करने के लिए एक भी कदम नहीं छोड़ा । पूरे खेत का निर्माण 4 एकड़ में किया गया है और उसके रख-रखाव के लिए 7 कर्मचारी हैं। पशुओं को नहलाना, भोजन करवाना, गायों की स्वच्छता बनाए रखना और अन्य फार्म से संबंधित कार्य कर्मचारियों द्वारा हाथों से किए जाते हैं और गाय की सुविधा देखकर दूध, मशीन और हाथों से निकाला जाता है। अंकुर और अंकिता दोनों ही बिना एक दिन छोड़े दिन में एक बार फार्म जाते ही हैं। वे अपने खेत में अधिकतर समय बिताना पसंद ही नहीं करते बल्कि कर्मचारियों को अपने काम को अच्छे ढंग से करने में मदद भी करते हैं।

“अंकुर: हम गाय की फीड खुद तैयार करते हैं क्योंकि दूध की उपज और गाय का स्वास्थ्य पूरी तरह से फीड पर ही निर्भर करता है और हम इस पर कभी भी समझौता नहीं करते। गाय की फीड का फॉर्मूला जो हम अपनाते हैं वह है – 33% प्रोटीन, 33% औद्योगिक व्यर्थ पदार्थ (चोकर), 33% अनाज (मक्की, चने) और अतिरिक्त खनिज पदार्थ।

पशु पालन के अलावा वे सब्जियों की जैविक खेती में भी सक्रिय रूप से शामिल हैं। उन्होंने अतिरिक्त 4 एकड़ की भूमि किराये पर ली है। इससे पहले अंकिता ने उस भूमि का प्रयोग एक घरेलु बगीची के रूप में किया था। उन्होंने गाय के गोबर के अलावा उस भूमि पर किसी भी खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया। अब वह भूमि पूरी तरह से जैविक बन गई है। जिसका इस्तेमाल गेहूं, चना, गाजर, लहसुन, मिर्च, धनिया और अन्य मौसमी सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है। वे कृषि फसलों का प्रयोग गाय के चारे और घर के उद्देश्य के लिए करते हैं।

शुरूआत में, मेरी HF प्रजनित गाय 12 लीटर दूध देती थी, दूसरे ब्यांत के बाद उसने 18 लीटर दूध देना शुरू किया और अब वह तीसरे ब्यांत पर हैं और हम 24 लीटर दूध की उम्मीद कर रहे हैं। दूध उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी की संभावना है।

मार्किटिंग:

दूध को एक बड़े दूध के कंटेनर में भरने और एक पुराने दूध मापने वाले यंत्र की बजाय वे अपने उत्पादन की छवि को बढ़ाने के लिए एक नई अवधारणा के साथ आए। वे कच्चे दूध को छानने के बाद सीधा कांच की बोतलों में भरते हैं और फिर सीधे ग्राहकों तक पहुंचाते हैं।

लोगों ने खुली बाहों से उनके उत्पाद को स्वीकार किया है आज तक अर्थात् 3 साल उन्होंने अपने उत्पादों की बिक्री के लिए कोई योजना नहीं बनाई और ना ही लोगों को उत्पाद का प्रयोग करने के लिए कोई विज्ञापन दिया। जितना भी उन्होंने अब तक ग्राहक जोड़ा है। वह सब अन्य लोगों द्वारा उनके मौजूदा ग्राहकों से उनके उत्पाद की प्रशंसा सुनकर प्रभावित हुए हैं। इस प्रतिक्रिया ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि उन्होंने पनीर, घी और अन्य दूध आधारित डेयरी उत्पादों का उत्पादन शुरू कर दिया है। ग्राहकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उनकी बिक्री में वृद्धि हुई है।

दूध की बिक्री के लिए उनके शहर में उनका अपना वितरण नेटवर्क है और उनकी उन्नति देखकर यह समय के साथ और ज्यादा बढ़ जायेगा।

भविष्य की योजनाएं:

स्वदेशी गाय की नस्ल की दूध उत्पादन क्षमता इतनी अधिक नहीं होती और वे प्रजनित स्वदेशी गायों द्वारा गाय की एक नई नसल को विकसित करना चाहते हैं जिसकी दूध उत्पादन की क्षमता ज्यादा हो क्योंकि स्वदेशी नसल के गाय की दूध की गुणवत्ता ज्यादा बेहतर होती है और मुनष्यों के लिए इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी साबित हुए हैं।

उनके अनुसार, स्वस्थ हालातों में दूध को एक हफ्ते के लिए 2 डिगरी सेंटीग्रेड पर रखा जा सकता है और इस प्रयोजन के लिए वे आने वाले समय में दूध को लंबे समय तक स्टोर करने के लिए एक चिल्लर स्टोरेज में निवेश करना चाहते हैं ताकि वे दूध को बहु प्रयोजन के लिए प्रयोग कर सकें।

संदेश:
“पशु पालकों को उनकी गायों की स्वच्छता और देखभाल को अनदेखा नहीं करना चाहिए, उन्हें उनका वैसा ही ध्यान रखना चाहिए जैसा कि वे अपने स्वास्थ्य का रखते हैं और पशु पालन शुरू करने से पहले हर किसान को ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और बेहतर भविष्य के लिए मौजूदा पशु पालन पद्धतियों से खुद को अपडेट रखना चाहिए। पशु पालन केवल तभी लाभदायक हो सकता है जब आपके फार्म के पशु खुश हों। आपके उत्पाद का बिक्री मुल्य आपको मुनाफा कमाने से नहीं मिलेगा लेकिन एक खुश पशु आपको अच्छा मुनाफा कमाने में मदद कर सकता है।”

लवप्रीत सिंह

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कैसे इस B.Tech ग्रेजुएट युवा की बढ़ती हुई दिलचस्पी ने उसे कृषि को अपना फुल टाइम रोज़गार चुनने के लिए प्रेरित किया

मिलिए लवप्रीत सिंह से, एक युवा जिसके हाथ में B.Tech. की डिग्री के बावजूद उसने डेस्क जॉब और आरामदायक शहरी जीवन जीने की बजाय गांव में रहकर कृषि से समृद्धि हासिल करने को चुना।

संगरूर के जिला हैडक्वार्टर से 20 किलोमीटर की दूरी पर भवानीगढ़ तहसील में स्थित गांव कपियाल जहां लवप्रीत सिंह अपने पिता, दादा जी, माता और बहन के साथ रहते हैं।

2008-09 में लवप्रीत ने कृषि क्षेत्र में अपनी बढ़ती दिलचस्पी के कारण केवल 1 एकड़ की भूमि पर गेहूं की जैविक खेती शुरू कर दी थी, बाकी की भूमि अन्य किसानों को दे दी थी। क्योंकि लवप्रीत के परिवार के लिए खेतीबाड़ी आय का प्राथमिक स्त्रोत कभी नहीं था। इसके अलावा लवप्रीत के पिता जी, संत पाल सिंह दुबई में बसे हुए थे और उनके पास परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अच्छी नौकरी और आय दोनों ही थी।

जैसे ही समय बीतता गया, लवप्रीत की दिलचस्पी और बढ़ी और उनकी मातृभूमि ने उन्हें वापिस बुला लिया। जल्दी ही अपनी डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने खेती की तरफ बड़ा कदम उठाने के बारे में सोचा। उन्होंने पंजाब एग्रो (Punjab Agro) द्वारा अपनी भूमि की मिट्टी की जांच करवायी और किसानों से अपनी सारी ज़मीन वापिस ली।

अगली फसल जिसकी लवप्रीत ने अपनी भूमि पर जैविक रूप से खेती की वह थी हल्दी और साथ में उन्होंने खुद ही इसकी प्रोसेसिंग भी शुरू की। एक एकड़ पर हल्दी और 4 एकड़ पर गेहूं-धान। लेकिन लवप्रीत के परिवार द्वारा पूरी तरह से जैविक खेती को अपनाना स्वीकार्य नहीं था। 2010 में जब उनके पिता दुबई से लौट आए तो वे जैविक खेती के खिलाफ थे क्योंकि उनके विचार में जैविक उपज की कम उत्पादकता थी लेकिन कई आलोचनाओं और बुरे शब्दों में लवप्रीत के दृढ़ संकल्प को हिलाने की शक्ति नहीं थी।

अपनी आय को बढ़ाने के लिए लवप्रीत ने गेहूं की बजाये बड़े स्तर पर हल्दी की खेती करने का फैसला किया। हल्दी की प्रोसेसिंग में उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया क्योंकि उनके पास इसका कोई ज्ञान और अनुभव नहीं था। लेकिन अपने प्रयासों और माहिर की सलाह के साथ वे कई मुश्किलों को हल करने के काबिल हुए। उन्होंने उत्पादकता और फसल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए गाय और भैंस के गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया।

परिणाम देखने के बाद उनके पिता ने भी उन्हें खेती में मदद करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्होंने पंजाब एग्रो से भी हल्दी पाउडर को जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संपर्क किया और इस वर्ष के अंत तक उन्हें यह प्राप्त हो जाएगा। वर्तमान में वे सक्रिय रूप से हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग में शामिल हैं। जब भी उन्हें समय मिलता है, वे PAU का दौरा करते हैं और यूनीवर्सिटी के माहिरों द्वारा सुझाई गई पुस्तकों को पढ़ते हैं ताकि उनकी खेती में सकारात्मक परिणाम आये। पंजाब एग्रो उन्हें आवश्यक जानकारी देकर भी उनकी मदद करता है और उन्हें अन्य प्रगतिशील किसानों के साथ भी मिलाता है जो जैविक खेती में सक्रिय रूप से शामिल हैं। हल्दी के अलावा वे गेहूं, धान, तिपतिया घास (दूब), मक्की, बाजरा की खेती भी करते हैं लेकिन छोटे स्तर पर।

भविष्य की योजनाएं:
वे भविष्य में हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग के काम का विस्तार करना चाहते हैं और जैविक खेती कर रहे किसानों का एक ग्रुप बनाना चाहते हैं। ग्रुप के प्रयोग के लिए सामान्य मशीनें खरीदना चाहते हैं और जैविक खेती करने वाले किसानों का समर्थन करना चाहते हैं।

संदेश

एक संदेश जो मैं किसानों को देना चाहता हूं वह है पर्यावरण को बचाने के लिए जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है। सभी को जैविक खेती करनी चाहिए और जैविक खाना चाहिए, इस प्रकार प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।

मनि कलेर

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कैसे फूलों की बिखर रही खुशबू ने पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र को स्थापित किया

फूलों की खेती में निवेश एक बढ़िया तरक्की का विकल्प है जिसमें किसान अधिक रूचि ले रहे हैं। कई सफल पुष्पहारिक हैं जो ग्लैडियोलस, गुलाब, गेंदे और कई अन्य फूलों की सुगंध बिखेर रहे हैं और पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र का निर्माण कर रहे हैं। एक पुष्पवादी जो फूलों और सब्जियों के व्यापार से अधिक लाभ कमा रहे हैं, वे हैं – मनि कलेर

अन्य ज़मींदारों की तरह, कलेर परिवार अपनी ज़मीन अन्य किसानों को किराये पर देने के लिए उपयोग करता था और एक छोटे से ज़मीन के टुकड़े पर वे घरेलु प्रयोजन के लिए गेहूं और धान का उत्पादन करते थे। लेकिन जब मनि कलेर ने अपनी शिक्षा पूरी की तो उन्होंने बागबानी के व्यवसाय में कदम रखने का फैसला किया। मनि ने भूमि का आधा हिस्सा (20 एकड़) वापिस ले लिया जो उन्होंने किराये पर दिया था और उस पर खेती करनी शुरू की।

कुछ समय बाद, एक रिश्तेदार की सहायता से, मनि को RTS Flower व्यापार के बारे में पता चला जो कि गुरविंदर सिंह सोही द्वारा सफलतापूर्वक चलाया जाता है। इसलिए RTS Flower के मालिक से प्रेरित होने के बाद मनि ने अंतत: अपना फूलों का उद्यम शुरू कर दिया और पेटुनिया, बारबिना ओर मेस्टेसियम आदि जैसे पांच से छ: प्रकार के फूलों को उगाना शुरू किया।

शुरूआत में उन्होंने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में भी कोशिश की लेकिन कॉन्ट्रेक्टड कंपनी के साथ एक कड़वे अनुभव के बाद उन्होंने उनसे अलग होने का फैसला किया।

फूलों की खेती के दूसरे वर्ष में उन्होंने गुरविंदर सिंह सोही से 1 लाख रूपये के बीज खरीदे। उन्होंने 2 कनाल में ग्लेडियोलस की खेती शुरू की और आज 2 वर्ष बाद उन्होंने 5 एकड़ में फार्म का विस्तार किया है।

वर्तमान में वे 20 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से वे 4 एकड़ का प्रयोग सब्जियों की लो टन्नल फार्मिंग के लिए कर रहे हैं जिसमें वे करेला, कद्दू, बैंगन, खीरा, खरबूजा, लहसुन (1/2 एकड़) और प्याज (1/2 एकड़) उगाते हैं। घरेलु उद्देश्य के लिए वे धान और गेहूं उगाते हैं। कुछ समय से उन्होंने प्याज के बीज तैयार करना भी शुरू किया है।

कड़ी मेहनत और विविध खेती तकनीक के कारण उनकी आय में वृद्धि हुई है। अब तक उन्होंने सरकार से कोई सब्सिडी नहीं ली। वे संपूर्ण मार्किटिंग का अपने दम पर प्रबंधन करते हैं और फूलों को दिल्ली और कुरूक्षेत्र की मार्किट में बेचते हैं। हालांकि वे सब्जियों और फूलों की खेती के व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें फूलों की खेती में कुछ समस्याएं आती हैं लेकिन वे अपनी उम्मीद को कभी नहीं खोने देते और हमेशा मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ अपना काम जारी रखते हैं।

मनि के परिवार ने हमेशा उनका समर्थन किया और कृषि क्षेत्र में जो वे करना चाहते हैं उसे करने से कभी नहीं रोका। वर्तमान में वे अपने पिता मदन सिंह और बड़े भाई राजू कलेर के साथ अपने गांव संगरूर जिले के राय धरियाना गांव में रह रहे हैं। दूध के प्रयोजन के लिए उन्होंने 7 गायें और 2 मुर्रा भैंसे रखी हैं। वे पशुओं की देखभाल और फीड के साथ कभी समझौता नहीं करते। वे जैविक रूप से उगाए धान, गेहूं और चारे की फसलों से स्वंय फीड तैयार करते हैं। अतिरिक्त समय में वे गन्ने के रस से गुड़ बनाते हैं और गांव वालों को बेचते हैं।

भविष्य की योजना:

भविष्य में वे अपने, फूलों की खेती के उद्यम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश

आजकल के किसान धान और गेहूं के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। उन्हें सोचना शुरू करना चाहिए और इस चक्र से बाहर निकलकर काम करना चाहिए यदि वे अच्छा कमाना चाहते हैं।

शेर बाज सिंह संधु

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शेरबाज़ सिंह संधु, भैंस की सर्वश्रेष्ठ नसल – मुर्रा, के साथ पंजाब में सफेद क्रांति ला रहे हैं

यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसने पशु पालन में अपनी दिलचस्पी को जारी रखा और इसे एक सफल डेयरी बिज़नेस – लक्ष्मी डेयरी फार्म में बदला।

कई अन्य किसानों के विपरीत, शेर बाज सिंह संधु ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में नौकरी ढूंढने की बजाय अपना दिमाग काफी छोटी उम्र में ही पशु पालन की तरफ मोड़ लिया था। पशु पालन में उनकी दिलचस्पी का मुख्य कारण उनकी माता -हरपाल कौर संधु थी।

शेर बाज सिंह संधु को पशु पालन की तरफ झुकाव की प्रेरणा उनकी मां के परिवार की ओर से मिली। काफी समय पहले शेर बाज सिंह संधु जी के नाना जी को सर्वोत्तम नसल के पशु पालने का शौंक था और यही शौंक शादी के बाद उनकी बेटी ने भी अपनाया और इसी शौंक को देखते हुए शेर बाज सिंह संधु का झुकाव पशु पालन की तरफ हुआ।
2002 में श्रीमती हरपाल कौर का निधन हो गया। हां, यह श्री संधु के लिए बहुत दुखद क्षण था, लेकिन अपनी माता की मृत्यु के बाद उन्हें एक बेहतर तरीके से पशु पालन करने की प्रेरणा मिली और तब उन्होंने पशु पालन व्यापार में प्रवेश करने का फैसला किया। श्री संधु ने पुराने पशुओं को बेच दिया और हरियाणा के एक क्षेत्र से 52000 रूपये में मुर्रा नसल की एक नई भैंस को खरीदा। उस समय वह भैंस 15-16 किलो दूध प्रतिदिन देती थी।
2003 में उन्होंने उसी नसल की एक नई भैंस 80000 रूपये में खरीदी और यह भैंस उस समय 25 किलो दूध देती थी।

फिर 2004 में उन्होंने पूरे परिवार की जांच करते हुए 75000 रूपये में भैंस के एक कटड़े को खरीदा (उसकी मां 20 किलो दूध देती थी और उसने इसके लिए एक पुरस्कार भी जीता था)।

और इस तरह उन्होंने अपने फार्म में भैंसों की नसल को सुधारा और अपने फार्म पर अच्छी गुणवत्ता वाली भैंसो की संख्या में वृद्धि की।

एक बार, उनकी भैंस लक्ष्मी ने मुक्तसर मेले में सर्वश्रेष्ठ नस्ल चैंपियनशिप का खिताब जीता और उसके बाद से ही उन्होंने अपने फार्म का नाम – “लक्ष्मी डेयरी फार्म” रख दिया।

ना केवल लक्ष्मी बल्कि कई अन्य भैंस और सांड हैं जैसे धन्नो, रानी, सिकंदर जिन्होंने श्री शेर बाज सिंह को गर्व महसूस करवाया और किसान मेलों और दूध उत्पादन और नसल चैंपियनशिप में बार-बार पुरस्कार जीतकर सारे रिकॉर्ड भी तोड़ दिए।

उनके कुछ पुरस्कार और उपलब्धियों का उल्लेख नीचे दिया गया है:
• लक्ष्मी डेयरी फार्म में भैंस के दूध के लए राष्ट्रीय रिकॉर्ड हैं।
• शेर बाज सिंह को मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा “State Award for excellent services in Dairy Farming” पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
• उनकी भैंस आठवें राष्ट्रीय पशुधन चैंपियनशिप में पहले स्थान पर आई।
• माघी मेले में सरदार गुलज़ार सिंह द्वारा सम्मानित किया गया।
• उनकी भैंस ने 2008 में मुक्तसर में दूध उत्पादन प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार जीता।
• 2008 में PDFA मेले में उनकी भैंस ने पहला पुरसकार जीता।
• 2015 में उनकी भैंस धन्नों ने 25 किलो दूध देकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
• जनवरी 2016 में मुक्तसर मेले में उनकी मुर्रा भैंस ने सभी पुरस्कार जीते।
• उनके सांड सिकंदर ने मुक्तसर मेले में दूसरा पुरस्कार जीता।
• रानी भैंस ने 26 किलो 357 ग्राम दूध देकर एक नया रिकॉर्ड बनाया और पहला पुरस्कार जीता।
• धन्नो भैंस ने 26 किलो दूध दिया और उसी प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर आई।
• उनके कई लेख, अखबार में advisory magazine में प्रकाशित किए गए हैं।

आज, उनके पास 1 एकड़ में फैले उनके फार्म में कुल 50 भैंसे हैं और वे सारा दूध शहर के कई दुकानों में बेचते हैं। श्री संधु स्वंय चारा उगाना पसंद करते हैं, उनके पास कुल 40 एकड़ भूमि हैं जिसमें वे गेहूं, धान और चारा उगाते हैं।

श्री संधु का बेटा – बरिंदर सिंह संधु जो पेशे से वकील हैं और उनकी पत्नी कुलविंदर कौर संधु, लक्ष्मी डेयरी फार्म के प्रबंधन में बहुत सहायक हैं। उनके बेटे ने फार्म के नाम पर एक फेसबुक पेज बनाया है जिसमें कि उनके साथ 3.5 लाख के करीब लोग जुड़े हैं और वे 2022-23 तक इस संख्या को बढ़कार 10 लाख करना चाहते हैं क्योंकि उनके फार्म की लोकप्रियता इतनी है कि, कई लोग यहां तक कि विदेशों से भी आकर उनसे भैंसों को खरीदते हैं।

श्री संधु हमेशा किसानों की पशु पालन में सहायता करते हैं और इसमें प्रगति के लिए प्रेरित करते हैं। वे किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाला सीमेन (वीर्य) और दूध भी प्रदान करते हैं।

भविष्य की योजनाएं: उनके भविष्य की योजना है कि फार्म के क्षेत्र को बढ़ाना और सिर्फ अच्छी गुणवत्ता वाली भैंसों को रखना और अच्छी गुणवत्ता वाला सीमेन और दूध किसानों को उपलब्ध करवाना।

संदेश:

आजकल के किसानों की स्थानीय नसलों की बजाय विदेशी नसलों के पालन में अधिक रूचि है। उन्हें लगता है कि विदेशी नसलें उन्हें अधिक लाभ दे सकती हैं पर यह सच नहीं है। क्योंकि विदेशों नसलों को एक अलग जलवायु और परिस्थितियों की जरूरत होती है जो कि भारत में संभव नहीं है। इसके अलावा, विदेशी नसल के पालन में स्थानीय नसल की तुलना में अधिक खर्चे की आवश्यकता होती है। जिसके लिए साधारण किसान प्रबंधन करने में सक्षम नहीं होते। जिसके कारण कुछ समय बाद किसान स्थानीय नसलों को पालने लग जाते हैं या फिर वे पूरी तरह से पशु पालन के कार्य को बंद कर देते हैं।
किसानों को यह समझना चाहिए कि अब भारत में अच्छी नसलें उपलब्ध हैं जो प्रतिदिन 20-25 किलो दूध का उत्पादन कर सकती हैं। किसानों को खेती के साथ-साथ पशु पालन व्यवसाय का चयन करना चाहिए क्योंकि यह आय बढ़ाने में मदद करता है। इस तरह किसान बेरोजगारी की समस्या से निपट सकते हैं और भारत पशु पालन में प्रगति कर सकता है।

भूपिंदर सिंह बरगाड़ी

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जानें कैसे एक बेटे ने अपने पिता के कदमों पर चलकर उनके गुड़ व्यापार को महान स्तर तक पहुंचाया

यह कहानी है- कैसे एक बेटे (भूपिंदर सिंह बरगाड़ी) ने अपने पिता (सुखदेव सिंह बरगारी) के व्यवसाय को समृद्ध तरीके से चलाया और वह पंजाब में गुड़ के प्रसिद्ध ब्रांड – BARGARI के नाम से आया।

एक समय था जब निकाले गए गन्ने के रस से गुड़ बनाने के लिए बैल का प्रयोग किया जाता था। लेकिन समय के साथ इस कार्य के लिए मशीनों का प्रयोग होने लगा। इसके अलावा गुड़ बनाने के लिए रासायनिक और रंग का प्रयोग होने के कारण इस स्वीटनर ने अपना सारा आकर्षण खो दिया और धीर धीरे लोग सफेद चीनी की तरफ आकर्षित होने लग गए।

लेकिन फिर भी कई परिवार चीनी की बजाय गुड़ को पसंद करते हैं और वे गन्ने के रस से गुड़ बनाने के लिए रवायिती ढंग का प्रयोग करते हैं। यह कहानी है सुखदेव सिंह बरगारी और उनके पुत्र भूपिंदर सिंह बरगाड़ी की। 1972 में सुखदेव सिंह औज़ारों और किसानों के उपकरणों को तीखा करने का काम करते थे और बदले में वे अनाज, सब्जियां या जो कुछ भी किसान उन्हें देते थे, वे मजदूरी के रूप में ले लेते थे। कुछ समय बाद उन्होंने ने एक इंजन खरीदा और इससे गुड़ बनाना शुरू किया। गुड़ निकालने के उनके शुद्ध पारंपरिक ढंग और बिना किसी रसायन का प्रयोग करके बनाए गुड़ ने उन्हें प्रसिद्ध कर दिया और कई गांव वालों ने उन्हें गुड़ बनाने के लिए गन्ने की फसल देनी शुरू कर दी। सुखदेव मुख्य रूप से इस काम को नवंबर से लेकर मार्च तक करते थे।

एक समय ऐसा आया जब सुखदेव की मेहनत रंग लायी और उनके गुड़ की मांग कई गुना बढ़ गई। यह 2011 की बात है जब उनकी बेटी की शादी थी। उस समय उन्होंने सभी रिश्तेदारों और मित्रों को शादी के निमंत्रण कार्डों के साथ गुड़, देसी घी और कई सारे मेवे से बनी हुई मिठाई वितरित की। हर किसी को वह मिठाई बहुत पसंद आई और उन्होंने इसे उनके लिए बनाने की मांग सुखदेव सिंह से की और उस समय उनके बेटे भूपिंदर सिंह ने अपने पिता के काम को करने और इसे एक उच्च स्तर तक विस्तृत करने का फैसला किया। इस घटना के बाद पिता पुत्र दोनों ने दो तरह के गुड बनाना शुरू किया एक मेवों के साथ और दूसरा बिना मेवे के।

बरगाड़ी परिवार के गन्ने के रस को साफ करने के लिए भिंडी की लेस के इस्तेमाल के पारंपरिक ढंग ने उनके गुड़ को, रसायनों और रंग का प्रयोग करके तैयार किए गए गुड़ से बेहतर बनाया। गुड़ बनाने के इस शुद्ध और साफ ढंग ने सुखदेव सिंह और भूपिंदर सिंह को प्रसिद्ध बना दिया और लोग उन्हें उनके काम से पहचानने लगे।

भूपिंदर सिंह सिर्फ अपने पिता के नक्शे कदम पर ही नहीं चले बल्कि उनके पास B.Ed. और MA की डिग्री थी और उसके बाद उन्होंने ETT Teacher Exam को भी पास किया और वे स्कूल टीचर के रूप में भी काम करते हैं और अपने पेशे से फ्री होने पर वे हर रोज गुड़ बनाने के लिए समय भी निकालते हैं।

इस पारंपरिक स्वीटनर को और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए, भूपिंदर ने 2 एकड़ क्षेत्र में गन्ने की C085 किस्म भी उगानी शुरू की और एक ग्रुप भी बनाया जिसमें वे ग्रुप के किसान सदस्यों को गन्ना उगाने के लिए प्रेरित भी करते हैं। भूपिंदर सिंह के इस कदम का परिणाम यह हुआ कि गन्ने की उतनी ही खेती की जाती थी जितनी की आवश्यक थी। जिसके परिणामस्वरूप किसानों को भी अधिक लाभ मिला और उसके साथ साथ बरगारी परिवार को भी फायदा हुआ।

पिछले 5 वर्षों से बरगारी परिवार द्वारा उत्पादित गुड़ ने PAU द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में 4 बार पहला पुरस्कार जीता है और एक बार दूसरा पुरस्कार जीता है। 2014 में अच्छी गुणवत्ता वाले गुड़ के लिए उद्यमी किसान राज्य पुरस्कार (Udami Kisan State Award) भी जीता। भूपिंदर सिंह लखनऊ भी गए जहां उन्होंने अपनी मंडीकरण की तकनीकों के बारे में राष्ट्रीय गुड़ सम्मेलन (National Jaggery Sammelan) में चर्चा की। उन्होंने गुड़ की मार्किटिंग के लिए जागरूकता फैलाने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि किसानों को मार्किटिंग की तकनीकों के बारे में जागरूक करवाने के लिए मार्च में आयोजित PAU सम्मेलन में भाग भी लिया।

अपना प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करना…

गुड़ प्रोसेसिंग प्लांट

वर्तमान में, कोटकपुरा – बठिंडा रोड पर उनका अपना गुड़ प्रोसेसिंग प्लांट है जहां पर वे अपने पारंपरिक ढंग से शुद्ध गुड़ बनाते हैं। गुड़ और शक्कर की मांग सर्दियों में ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि शुद्ध गुड़ से बनी चाय के सेहत पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होते। यहां तक कि उस क्षेत्र के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (पेट के डॉक्टर) के विशेषज्ञ भी अपने मरीज़ों को बरगारी परिवार द्वारा बनाया गया गुड़ खाने की सलाह देते हैं।

अनाज की फसलों का प्रोसेसिंग प्लांट

इसके अलावा भूपिंदर सिंह के पास उसी स्थान पर अनाज का प्रोसेसिंग प्लांट भी है जहां पर वे सेल्फ हेल्प ग्रुप द्वारा उगाए गए गेहूं, मक्की, जौं, ज्वार और सरसों की प्रोसेसिंग करते हैं। प्रोसेसिंग प्लांट के साथ साथ उन्होंने एक स्टोर भी खोला है जहां पर वे अपने प्रोसेसिंग किए उत्पादों को बेचते हैं।

ब्रांड नाम कैसे दिया गया:

अपने गुड़ की डॉक्टरों द्वारा सिफारिश किए जाने के बारे में जानकर वे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपने ब्रांड का नाम “बरगाड़ी गुड़” रखने का फैसला किया।

भूपिंदर का “बरगाड़ी गुड़” के नाम से फेसबुक पेज भी है जिसके माध्यम से वे अपने आदर्श ग्राहकों के साथ विचार विमर्श करते हैं उन्होंने फेसबुक पेज के माध्यम से गुड़ बनाने की पूरी प्रक्रिया पर भी चर्चा की है।

वे हमेशा अपने व्यवसाय में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के फूड टैक्नोलोजी और फूड प्रोसेसिंग और इंजीनियरिंग विभागों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखते हैं।

आज, जो कुछ भी भूपिंदर सिंह ने अपने जीवन में हासिल किया है उसका सारा श्रेय वे अपने पिता श्री सुखदेव सिंह बरगाड़ी को देते हैं। सफल व्यवसाय चलाने के अलावा, भूपिंदर सिंह बरगाड़ी एक अच्छे शिक्षक भी हैं और फरीदकोट जिले के कोठे कहर सिंह गांव के लोगों और बच्चों की मदद कर रहे हैं। उनके अच्छे कार्यो के बारे में कई लेख, स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किए गए हैं। वह ना केवल किसानों की मदद करना चाहते हैं बल्कि अपने काम और ज्ञान से लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं और उनकी सहायता भी करना चाहते हैं।

खैर, पिता-पुत्र की यह जोड़ी सफलतापूर्वक काम कर रही है और सिर्फ दोनों के बीच की समझ के कारण ही इस स्तर तक पहुंची है। भविष्य में भी भूपिंदर सिंह बरगाड़ी अपने इस अच्छे काम को जारी रखेंगे और यूवा पीढ़ी के किसानों को अपने ज्ञान से प्रेरित करेंगे।

संदेश


मैं चाहता हूं कि किसान खेती के साथ फूड प्रोसेसिंग व्यवसाय में भी शामिल हों। इस तरीके से वे अपने व्यवसाय में अच्छा लाभ कमा सकते हैं। आज, किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों के साथ अपडेट रहने की जरूरत है तभी वे आगे बढ़ सकते हैं और अपने क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।

 

करमजीत कौर दानेवालिया

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कैसे एक महिला ने शादी के बाद अपने खेती के प्रति जुनून को पूरा किया और आज सफलतापूर्वक इस व्यवसाय को चला रही है

आमतौर पर भारत में जब बेटियों की शादी कर दी जाती है और उन्हें अपने पति के घर भेज दिया जाता है तो वे शादी के बाद अपनी ज़िंदगी में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वे अपनी रूचि और अपने शौंक के बारे में भूल ही जाती हैं। वे घर की चारदिवारी में बंध कर रह जाती हैं। लेकिन एक ऐसी महिला हैं – श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया । जिसने शादी के बाद भी अपने जुनून को आगे बढ़ाया । घर में रहने की बजाय उन्होंने घर के बाहर कदम रखा और बागबानी के अपने शौंक को पूरा किया।

श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया एक ऐसी महिला है जिन्होंने एक छोटे से गांव के एक ठेठ पंजाबी किसान के परिवार में जन्म लिया। खेती की पृष्ठभूमि से होने पर श्री मती करमजीत हमेशा खेती के प्रति आकर्षित थी और खेतों में अपने पिता की मदद करने में भी रूचि रखती थी। लेकिन शादी से पहले उन्हें कभी खेती में अपने पिता की मदद करने का मौका नहीं मिला।

जल्दी ही उनकी शादी एक बिजनेस क्लास परिवार के श्री जसबीर सिंह से हो गई। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि शादी के बाद उन्हें अपने सपनों को पूरा करने और इन्हें अपने व्यवसाय के रूप में करने का अवसर मिलेगा। शादी के कुछ वर्ष बाद 1975 में अपने पति के समर्थन से उन्होंने फलों का बाग लगाने का फैसला किया और अपनी दिलचस्पी को एक मौका दिया। लेवलर मशीन और मजदूरों की सहायता से, उन्होंने 45 एकड़ की भूमि को समतल किया और इसे बागबानी करने के लिए तैयार किया। उन्होंने 20 एकड़ की भूमि पर किन्नू उगाए और 10 एकड़ की भूमि पर आलूबुखारा, नाशपाति, आड़ू, अमरूद, केला आदि उगाए और बाकी की 5 एकड़ भूमि पर वे सर्दियों में गेहूं और गर्मियों में कपास उगाती हैं।

उनका शौंक जुनून में बदल गया और उन्होंने इसे जारी रखने का फैसला किया। 1990 में उन्होंने एक तालाब बनाया और इसमें बारिश के पानी को स्टोर किया। वे इससे बाग की सिंचाई करती थी। लेकिन उसके बाद उन्होंने इसमें मछली पालन शुरू किया और इसे दोनों मंतवों मछली पालन और सिंचाई के लिए प्रयोग किया। अपने व्यापार को एक कदम और बढ़ाने के लिए उन्होंने नए पौधे स्वंय तैयार करने का फैसला किया।

2001 में उन्होंने भारत में किन्नू के उत्पादन का एक रिकॉर्ड बनाया और किन्नू के बाग के व्यापार को और सफल बनाने के लिए, किन्नू की पैकेजिंग और प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग के लिए वे विशेष तौर पर 2003 में कैलीफॉर्निया गई। वापिस आने के बाद उन्होंने उस ट्रेनिंग को लागू किया और इससे काफी लाभ कमाया। जिस वर्ष से उन्होने किन्नू की खेती शुरू की तब से उनके किन्नुओं की गुणवत्ता प्रतिवर्ष जिला स्तर और राज्य स्तर पर नंबर 1 पर रही है और किन्नू उत्पादन में बढ़ती लोकप्रियता के कारण 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने उन्हें ‘किन्नुओं की रानी’ के नाम से नवाज़ा।

खेती के उद्देश्य के लिए, आधुनिक तकनीक के हर प्रकार के खेतीबाड़ी यंत्र और मशीनरी उनके फार्म पर मौजूद है। बागबानी के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्धि ने उन्हें कई प्रतिष्ठित समुदायों का सदस्य बनाया और कई पुरस्कार दिलवाए। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।

• 2001-02 में कृषि मंत्री श्री गुलज़ार रानीका द्वारा राज्य स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2004 में शाही मेमोरियल इंटरनेशनल सेवा सोसाइटी, लुधियाना में रवी चोपड़ा द्वारा देश सेवा रत्व पुरस्कार से पुरस्कृत हुईं।
• 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्य मंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा ‘किन्नुओं की रानी’ का शीर्षक मिला।
• 2005 में कृषि मंत्री श्री जगजीत सिंह रंधावा द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक पुरस्कार मिला।
• 2012 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2012 में जिला स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में जिला स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010 में कृषि मंत्री श्री सुचा सिंह लंगाह द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक महिला का पुरस्कार मिला।
• 2012 में श्री शरनजीत सिंह ढिल्लों और वी.सी पी ए यू, लुधियाना द्वारा किसान मेले में अभिनव महिला किसान के रूप में राज्य स्तरीय पुरस्कार मिला।
• 2012 में कृषि मंत्री श्री शरद पवार -भारत सरकार द्वारा 7th National conference on KVK at PAU, लुधियाना में उत्कृष्टता के लिए चैंपियन महिला किसान पुरस्कार मिला।
• 2013 में पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा अमृतसर में 64वें गणतंत्र दिवस पर प्रगतिशील महिला किसान के सम्मान में पुरस्कार मिला।
• 2013 में कृषि मंत्री Dr. R.R Hanchinal, Chairperson PPUFRA- भारत सरकार द्वारा indian agriculture at global agri connect (NSFI) IARI, नई दिल्ली में भारतीय कृषि में अभिनव सहयोग के लिए प्रशंसा पत्र मिला।
• 2012 में में पंजाब की सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
• 2013 में तामिलनाडू और आसाम के गवर्नर डॉ. भीष्म नारायण सिंह द्वारा कृषि में सराहनीय सेवा, शानदार प्रदर्शन और उल्लेखनीय भूमिका के लिए भारत ज्योति पुरस्कार मिला।
• 2015 में नई दिल्ली में पंजाब के पूर्व गवर्नर जस्टिस ओ पी वर्मा द्वारा भारत का गौरव बढ़ाने के लिए उनके द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों को देखते हुए भारत गौरव पुरस्कार मिला।
• कृषि मंत्री श्री तोता सिंह और कैबिनेट मंत्री श्री गुलज़ार सिह रानीका और ज़ी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल के संपादक श्री दिनेश शर्मा द्वारा बागबानी के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट सहयोग और किन्नू की खेती को बढ़ावा देने के लिए Zee Punjab/Haryana/Himachal एग्री पुरस्कार मिला।
• श्रीमती करमजीत पी ए यू किसान क्लब की सदस्या हैं।
• वे पंजाब AGRO की स्दस्या हैं
• वे पंजाब बागबानी विभाग की सदस्या हैं।
• मंडी बोर्ड की सदस्या हैं।
• चंगी खेती की सदस्या हैं।
• किन्नू उत्पादक संस्था की सदस्या हैं।
• Co-operative Society की सदस्या हैं।
• किसान सलाहकार कमेटी की सदस्या हैं।
• PAU, Ludhiana Board of Management की सदस्या हैं।

इतने सारे पुरस्कार और प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद, वे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए उत्सुक हैं और यही वजह है कि वे कभी भी किसी भी जिला स्तर के कृषि मेलों और मीटिंगों में भाग लेना नहीं छोड़ती । वे कुछ नया सीखने के लिए और ज्ञान प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से उन किसानों के खेतों का दौरा करती हैं जो पी ए यू और हिसार कृषि विश्वविद्लाय से जुड़े हैं।

आज वे प्रति हेक्टेयर में 130 टन किन्नुओं की तुड़ाई कर रही हैं और इससे 1 लाख 65 हज़ार आय कमा रही हैं। अन्य फलों के बागों से और गेहूं और कपास की फसलों से वे प्रत्येक मौसम में 1 लाख आय कमा रही हैं।

अपनी सभी सफलताओं के पीछे का सारा श्रेय वे अपने पति को देती हैं जिन्होंने उनके सपनों का साथ दिया और इन सभी वर्षों में खेती करने में उनकी मदद की। खेती के अलावा वे समाज के लिए एक बहुत अच्छे कार्य में सहयोग दे रही हैं। वे गरीब लड़कियों को वित्तीय सहायता और शादी की अन्य सामग्री प्रदान कर उनकी शादी में मदद भी करती हैं उनकी भविष्य योजना है – खेतीबाड़ी को और लाभदायक व्यापारिक उद्यम बनाना है।

किसानों को संदेश –
किसानों को अपने खर्चों को अच्छी तरह बनाकर रखना शुरू करना होगा और जो उनके पास नहीं है, उन्हें उसका दिखावा बंद करना होगा। आज, कृषि क्षेत्र को अधिक ध्यान की आवश्यकता है इसलिए युवा बच्चों को जिनमें बेटियों को भी शामिल किया जाना चाहिए और इस क्षेत्र के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए और हर किसी को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि कृषि के क्षेत्रा में हर इंसान पहले एक किसान है और फिर एक व्यापारी।

प्रेम राज सैनी

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कैसे उत्तर प्रदेश के एक किसान ने फूलों की खेती से अपने व्यापार को बढ़ाया

फूलों की खेती एक लाभदायक आजीविका पसंद व्यवसाय है और यह देश के कई किसानों की आजीविका को बढ़ा रहा है। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के पीर नगर गांव के श्री प्रेम राज सैनी एक उभरते हुए पुष्पविज्ञानी हैं और हमारे समाज के अन्य किसानों के लिए एक आदर्श उदाहरण हैं।

प्रेम राज के पुष्पविज्ञानी होने के पीछे उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा उनके पिता है। यह 70 के दशक की बात है जब उनके पिता दिल्ली से फूलों के विभिन्न प्रकार के बीज अपने खेत में उगाने के लिए लाये थे। वे अपने पिता को बहुत बारीकी से देखते थे और उस समय से ही वे फूलों की खेती से संबंधित कुछ करना चाहते थे। हालांकि प्रेम राज सैनी B.Sc ग्रेजुएट हैं और वे खेती के अलावा विभिन्न व्यवसाय का चयन कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपने सपने के पीछे जाने को चुना।

20 मई 2007 को उनके पिता का देहांत हो गया और उसके बाद ही प्रेम राज ने उस कार्य को शुरू करने का फैसला किया जो उनके पिता बीच में छोड़ गये थे। उस समय उनका परिवार आर्थिक रूप से स्थायी था और उनके भाई भी स्थापित हो चुके थे। उन्होंने खेती करनी शुरू की और उनके बड़े भाई ने एक थोक फूलों की दुकान खोली जिसके माध्यम से वे अपनी खेती के उत्पाद बेचेंगे। अन्य दो छोटे भाई नौकरी कर रहे थे लेकिन बाद में वे भी प्रेम राज और बड़े भाई के उद्यम में शामिल हो गए।

प्रेम राज द्वारा की गई एक पहल ने पूरे परिवार को एक धागे में जोड़ दिया। सबसे बड़े भाई कांजीपुर फूल मंडी में फूलों की दो दुकानों को संभालते हैं। प्रेम राज स्वंय पूरे फार्म का काम संभालते हैं और दो छोटे भाई नोयडा की संब्जी मंडी में अपनी दुकान संभाल रहे हैं। इस तरह उन्होंने अपने सभी कामों को बांट दिया है जिसके फलस्वरूप उनकी आय में वृद्धि हुई है। उन्होंने केवल एक स्थायी मजदूर रखा है और कटाई के मौसम में वे अन्य श्रमिकों को भी नियुक्त कर लेते हैं।

प्रेम राज के फार्म में मौसम के अनुसार हर तरह के फूल और सब्जियां हैं। अच्छी उपज के लिए वे नेटहाउस और बेड फार्मिंग के ढंगों को अपनाते हैं। दूसरे शब्दों में वे अच्छी गुणवत्ता वाली उपज के लिए रसायनों का उपयोग नहीं करते हैं और आवश्यकतानुसार ही बहुत कम नदीननाशक का प्रयोग करते हैं। इस तरह उनके खर्चे भी आधे रह जाते हैं। वे अपने फार्म में आधुनिक खेती यंत्रों जैसे ट्रैक्टर और रोटावेटर का प्रयोग करते हैं।

भविष्य की योजनाएं-
सैनी भाई अच्छी आमदन के लिए विभिन्न स्थानों पर और अधिक दुकानें खोलने की योजनाएं बना रहे हैं। वे भविष्य में अपने खेती के क्षेत्र और व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं।

परिवार-
वर्तमान में वे अपने संपूर्ण परिवार (माता, पत्नी, दो पुत्र और एक बेटी) के साथ अपने गांव में रह रहे हैं। वे काफी खुले विचारों वाले इंसान हैं और अपने बच्चों पर कभी भी अपनी सोच नहीं डालते। फूलों की खेती के व्यापार और आमदन के साथ आज प्रेम राज सैनी और उनके भाई अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा कर रहे हैं।

संदेश-
वर्तमान में नौकरियों की बहुत कमी है, क्योंकि अगर एक जॉब वेकेंसी है तो वहीं आवेदन भरने के लिए कई आवेदक हैं। इसलिए यदि आपके पास ज़मीन है तो इससे अच्छा है कि आप खेती शुरू करें और इससे लाभ कमायें। खेतीबाड़ी को निचले स्तर का व्यवसाय के बजाय अपनी जॉब के तौर पर लें।

पूजा शर्मा

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एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाली महिला की कहानी जिसने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती के माध्यम से अपने पति का साथ दिया

हमारे भारतीय समाज में एक धारणा को जड़ दिया गया है कि महिला को घर पर होना चाहिए और पुरूषों को कमाना चाहिए। लेकिन फिर भी ऐसी कई महिलाएं हैं जो रोटी अर्जित के टैग को बहुत ही आत्मविश्वास से सकारात्मक तरीके से पेश करती हैं और अपने पतियों की घर चलाने और घर की जरूरतों को पूरा करने में मदद करती हैं। ऐसी ही एक महिला हैं – पूजा शर्मा, जो अपने घर की जरूरतों को पूरा करने में अपने पति की सहायता कर रही हैं।

श्री मती पूजा शर्मा जाटों की धरती- हरियाणा की एक उभरती हुई एग्रीप्रेन्योर हैं और वर्तमान में वे क्षितिज सेल्फ हेल्प ग्रुप की अध्यक्ष भी हैं और उनके गांव (चंदू) की प्रगतिशील महिलाएं उनके अधीन काम करती हैं। अभिनव खेती की तकनीकों का प्रयोग करके वे सोयाबीन, गेहूं, मक्का, बाजरा और मक्की से 11 किस्मों का खाना तैयार करती हैं, जिन्हें आसानी से बनाया जा सकता है और सीधे तौर पर खाया जा सकता है।

खेती के क्षेत्र में जाने का निर्णय 2012 में तब लिया गया, जब श्री मती पूजा शर्मा (तीन बच्चों की मां) को एहसास हुआ कि उनके घर की जरूरतें उनके पति (सरकारी अनुबंध कर्मचारी) की कमाई से पूरी नहीं हो रही हैं और अब ये उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने पति को सहारा दें।

वे KVK शिकोपूर में शामिल हुई और उन्हें उन चीज़ों को सीखने के लिए कहा गया जो उनकी आजीविका कमाने में मदद करेंगे। उन्होंने वहां से ट्रेनिंग ली और खेती की नई तकनीकें सीखीं। उन्होंने वहां सोयाबीन और अन्य अनाज की प्रक्रिया को सीखा ताकि इसे सीधा खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सके और यह ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपने पड़ोस और गांव की अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

2013 में उन्होंने अपने घर पर भुनी हुई सोयाबीन की अपनी एक छोटी निर्माण यूनिट स्थापित की और अपने उद्यम में अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी शामिल किया और धीरे-धीरे अपने व्यवसाय का विस्तार किया। उन्होंने एक क्षितिज SHG के नाम से एक सेल्फ हेल्प ग्रुप भी बनाया और अपने गांव की और महिलाओं को इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। ग्रुप की सभी महिलाओं की बचत को इकट्ठा करके उन्होंने और तीन भुनाई की मशीने खरीदीं और कुछ समय बाद उन्होंने और पैसा इकट्ठा किया और दो और मशीने खरीदीं। वर्तमान में उनके ग्रुप के पास निर्माण के लिए 7 मशीनें हैं। ये मशीनें उनके बजट के मुताबिक काफी महंगी हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने सब प्रबंध किया और इन मशीनों की लागत 16000 और 20000 के लगभग प्रति मशीन है। उनके पास 1.25 एकड़ की भूमि है और वे सक्रिय रूप से खेती में भी शामिल हैं। वे ज्यादातर दालों और अनाज की उन फसलों की खेती करती हैं जिन्हें प्रोसेस किया जा सके और बाद में बेचने के लिए प्रयोग किया जा सके। वे अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी यही सिखाती हैं कि उन्हें अपनी भूमि का प्रभावी ढंग से प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें भविष्य में फायदा हो सकता है।

11 महिलाओं की टीम के साथ आज वे प्रोसेसिंग कर रही है और 11 से ज्यादा किस्मों के उत्पादों (बाजरे की खिचड़ी, बाजरे के लड्डू, भुने हुए गेहूं के दाने, भुनी हुई ज्वार, भुनी हुई सोयाबीन, भुने हुए काले चने) जो कि खाने और बनाने के लिए तैयार हैं, को राज्यों और देश में बेच रही हैं। पूजा शर्मा की इच्छा शक्ति ने गांव की अन्य महिलाओं को आत्म निर्भरता और आत्म विश्वास हासिल करने में मदद की है।

उनके लिए यह काफी लंबी यात्रा थी जहां वे आज पहुंची हैं और उन्होंने कई चुनौतियों का सामना भी किया। अब उन्होंने अपने घर पर ही मशीनों को स्थापित किया है ताकि महिलाएं इन्हें चला सकें जब भी वे खाली हों और उनके गांव में बिजली की कटौती भी काफी होती हैं इसलिए उन्होंने उनके काम को उसी के अनुसार बांटा हुआ है। कुछ महिलायें बीन्स को सुखाती हैं, कुछ साफ करती है और बाकी की महिलायें उन्हें भूनती और पीसती हैं।

वर्तमान में कई बार पूजा शर्मा और उनका ग्रुप अंग्रेजी भाषा की समस्या का सामना करता है क्योंकि जब बड़ी कंपनियों के साथ संवाद करने की बात आती है तो उन्हें पता है कि किस कौशल में उनकी सबसे ज्यादा कमी है और वह है शिक्षा। लेकिन वे इससे निराश नहीं हैं और इस पर काम करने की कोशिश कर रही हैं। खाद्य वस्तुओं के निर्माण के अलावा वे सिलाई, खेती और अन्य गतिविधियों में ट्रेनिंग लेने में भी महिलाओं की मदद कर रही हैं, जिसमें वे रूचि रखती हैं।

उनके भविष्य की योजनाएं अपने व्यवसाय का विस्तार करना और अधिक महिलाओं को प्रेरित करना और उन्हें आत्म निर्भर बनाना ताकि उन्हें पैसों के लिए दूसरों पर निर्भर ना रहना पड़े। ज़ोन 2 के अंतर्गत राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली राज्यों से उन्हें उनके उत्साही काम और प्रयासों के लिए और अभिनव खेती की तकनीकों के लिए पंडित दीनदयाल उपध्याय कृषि पुरस्कार के साथ 50000 रूपये की नकद राशि और प्रमाण पत्र भी मिला। वे ATMA SCHEME की मैंबर भी हैं और उन्हें गवर्नर कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा उच्च प्रोटीन युक्त भोजन बनाने के लिए प्रशंसा पत्र भी मिला।

किसानों को संदेश
जहां भी किसान अनाज, दालों और किसी भी फसल की खेती करते हैं वहां उन्हें उन महिलाओं का एक समूह बनाना चाहिए जो सिर्फ घरेलू काम कर रही हैं और उन्हें उत्पादित फसलों से प्रोसेसिंग द्वारा अच्छी चीजें बनाने के लिए ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि वे उन चीज़ों को मार्किट में बेच सकें और इसके लिए अच्छी कीमत प्राप्त कर सकें।”

 

राजिंदर पाल सिंह

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एक इंसान की कहानी जिसने अपनी गल्तियों से सीखकर बुद्धिमता के रास्ते को चुना – जैविक खेती

प्राकृति हमारे सबसे महान शिक्षकों में से एक है और वह कभी भी हमें सिखाने से रूकी नहीं है, जिसकी हमें जानने की जरूरत होती है। आज हम धरती पर इस तरीके से रह रहे हैं कि जैसे हमारे पास एक और ग्रह भी है। हम इस बात से अवगत नहीं है कि हम प्राकृति के संतुलन को कैसे परेशान कर रहे हैं और यह हमें कैसे प्रतिकूल प्रभाव दे सकती है। आजकल हम मनुष्यों और जानवरों में बीमारियों, असमानताओं और कमियों के कई मामलों को देख रहे हैं। लेकिन फिर भी ज्यादातर लोग गल्तियों की पहचान करने में सक्षम नहीं हैं वे आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे हैं। जैसे कि कुछ गलत हो ही नहीं रहा। पर इनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो कि अपनी गल्तियों से सीखते हैं और समाज में एक बड़ा बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसा कहा जाता है कि गल्तियों में आपको पहले से अच्छा बनाने की शक्ति होती है और एक ऐसे व्यक्ति हैं राजिंदर पाल सिंह जो कि बेहतर दिशा में अपना रास्ता बना रहे हैं और आज वे जैविक खेती के क्षेत्र में एक सफल शख्सियत हैं। उनके उत्पादों की प्रशंसा और अधिक मांग केवल भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, कैनेडा और यहां तक कि लंदन के शाही परिवार में भी है।

खैर, एक सफल यात्रा के पीछे हमेशा एक कहानी होती है।राजिंदरपाल सिंह जिला बठिंडा के गांव कलालवाला के वसनीक; एक समय में ऐसे किसान थे जो कि पारंपरिक खेती करते थे लेकिन रसायनों और कीटनाशकों के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वे रसायनों का प्रयोग करके अपने पर्यावरण और अपनी सेहत को प्रभावित कर रहे हैं। वे फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते थे, लेकिन एक दिन उस स्प्रे ने उनके नर्वस सिस्टम को प्रभावित किया और ऐसा ही उनके एक रिश्तेदार के साथ हुआ। उस दिन से उन्होंने रसायनों के प्रयोग को छोड़कर कृषि के लिए जैविक तरीका अपनाया।

शुरूआत में उन्होंने और उनके चाचा जी ने 4 एकड़ भूमि में जैविक खेती करनी शुरू की और धीरे धीरे इस क्षेत्र को बढ़ाया 2001 में वे उत्तर प्रदेश से गुलाब के पौधे खरीद कर लाये और तब से वे अन्य फसलों के साथ गुलाब की खेती भी कर रहे हैं। उन्होंने जैविक खेती के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं ली। उनके चाचा जी ने किताबों से सभी जानकारी इकट्ठा करके जैविक खेती करने में उनकी मदद की। वर्तमान में वे अपने संयुक्त परिवार अपनी पत्नी, बच्चे, चाचा, चाची और भाइयों के साथ रह रहे हैं और अपनी सफलता के पीछे का पूरा श्रेय अपने परिवार को देते हैं।

वे बठिंडा के मालवा क्षेत्र के पहले किसान हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर जैविक खेती को चुना। जब उन्होंने जैविक खेती शुरू की, उस समय उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया और कई लोगों ने उन्हें यह कहते हुए भी निराश किया कि वे सिर्फ पैसा बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन आज उनके उत्पाद एडवांस बुकिंग में बिक रहे हैं और वे पंजाब के पहले किसान भी हैं जिन्होंने अपने फार्म पर गुलाब का तेल बनाया और 2010 में फतेहगढ़ साहिब के समारोह में प्रिंस चार्ल्स और उनकी पत्नी को दिया था।

वे जो काम कर रहे हैं उसके लिए उन्हें फूलों का राजा नामक टाइटल भी दिया गया है। उनके पास गुलाब की सबसे अच्छी किस्म है जिसे Damascus कहा जाता है और आप गुलाबों की सुगंध उनके गुलाब के खेतों की कुछ ही दूरी पर से ले सकते हैं जो कि 6 एकड़ की भूमि पर फैला हुआ है। उन्होंने अपने फार्म में तेल निकालने का प्रोजैक्ट भी स्थापित किया है जहां पर वे अपने फार्म के गुलाबों का प्रयोग करके गुलाब का तेल बनाते हैं। गुलाब की खेती के अलावा वे मूंग दाल, मसूर, मक्की, सोयाबीन, मूंगफली, चने, गेहूं, बासमती, ग्वार और अन्य मौसमी सब्जियां उगाते हैं। 12 एकड़ में वे बासमती उगाते हैं और बाकी की भूमि में वे उपरोक्त फसलें उगाते हैं।

राजिंदरपाल सिंह जिन गुलाबों की खेती करते हैं वे वर्ष में एक बार दिसंबर महीने में खिलते हैं और इनकी कटाई मार्च और अप्रैल तक पूरी कर ली जाती है। एक एकड़ खेत में वे 12 से 18 क्विंटल गुलाब उगाते हैं और आज एक एकड़ गुलाब के खेतों से उनका वार्षिक मुनाफा 1.25 लाख रूपये है। उनके उत्पादों की मांग अमेरिका, कैनेडा और अन्य देशों में है। यहां तक कि उनके द्वारा बनाये गये गुलाब के तेल को भी निर्यातकों द्वारा अच्छी कीमत पर खरीदा जाता हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि वे तेल, शुद्ध जैविक गुलाबों से बनाते हैं। बेमौसम में वे गुलाब की अन्य किस्में उगाते हैं और उनसे गुलकंद बनाते हैं और उसे नज़दीक के ग्रोसरी स्टोर में बेचते हैं। गुलाब का तेल, रॉज़ वॉटर और गुलकंद के इलावा अन्य फसलें जैविक मसूर, गेहूं, मक्की, धान को भी बेचते हैं। सभी उत्पाद उनके द्वारा बनाये जाते है और उनके ब्रांड नाम भाकर जैविक फार्म के नाम से बेचे जाते हैं।

आज राजिंदर पाल सिंह जैविक खेती से बहुत संतुष्ट हैं। हां उनके उत्पादों की उपज कम होती है लेकिन उनके उत्पादों की कीमत, पारंपरिक खेती का प्रयोग करके उगाई अन्य फसलों की कीमत से ज्यादा होती है। वे अपने खेतों में सिर्फ गाय की खाद और नदी के पानी का प्रयोग करते हैं और बाज़ार से किसी भी तरह की खाद या कंपोस्ट नहीं खरीदते। जैविक खेती करके वे मिट्टी के पोषक तत्व और उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने में सक्षम हैं। शुरूआत में उन्होंने अपने उत्पादों के मंडीकरण में छोटी सी समस्या का सामना किया लेकिन जल्दी ही लोगों ने उनके उन्पादों की क्वालिटी को मान्यता दी, फिर उन्होंने अपने काम में गति प्राप्त करनी शुरू की और वे जैविक खेती करके अपनी फसलों में बहुत ही कम बीमारियों का सामना कर रहे हैं।

अब उनके पुरस्कार और प्राप्तियों पर आते हैं। ATMA स्कीम के तहत केंद्र सरकार द्वारा उनकी सराहना की गई और देश के अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में प्रस्तुत किया गया। वे भूमि वरदान फाउंडेशन के मैंबर भी हैं जो कि रोयल प्रिंस ऑफ वेलस के नेतृत्व में होता है और उनके सभी उत्पाद इस फाउंउेशन के द्वारा प्रमाणित हैं। उन्होंने पटियाला के पंजाब एग्रीकल्चर विभाग से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त किया और यहां तक कि पंजाब के पूर्व कृषि मंत्री श्री तोता सिंह ने उन्हें प्रगतिशील किसान के तौर पर पुरस्कृत किया।

भविष्य की योजना
भविष्य में वे जैविक खेती के क्षेत्र में अपने काम को जारी रखना चाहते हैं और जैविक खेती के बारे में ज्यादा से ज्यादा किसानों को जागरूक करना चाहते हैं ताकि वे जैविक खेती करने के लिए प्रेरित हो सकें।

राजिंदर पाल सिंह द्वारा दिया गया संदेश-
आज हमारी धरती को हमारी जरूरत है और किसान के तौर पर धरती को प्रदूषन से बचाने के लिए हम सबस अधिक जिम्मेदार व्यक्ति हैं। हां, जैविक खेती करने से कम उपज होती है लेकिन आने वाले समय में जैविक उत्पादों की मांग बहुत अधिक होगी, सिर्फ इसलिए नहीं कि ये स्वास्थ्यवर्धक हैं अपितु इसलिए क्योंकि यह समय की आवश्यकता बन जाएगी। इसके अलावा जैविक खेती स्थायी है और इसे कम वित्तीय की आवश्यकता होती है। इसे सिर्फ श्रमिकों की आवश्यकता होती है और यदि एक किसान जैविक खेती करने में रूचि रखता है तो वह इसे बहुत आसानी से कर सकता है।

 

अमरजीत सिंह

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किसान जंकश्न- एक व्यक्ति जिसने अपनी जॉब को छोड़ दिया और खेती विभिन्नता के माध्यम से खेतीप्रेन्योर बन गए

आज कल हर किसी का एक सम्माननीय नौकरी के द्वारा अच्छे पेशे का सपना है और हो भी क्यों ना। हमें हमेशा यह बताया गया है कि सेवा क्षेत्र में एक अच्छी नौकरी करके ही जीवन में खुशी और संतुष्टि प्राप्त की जाती है। बहुत कम लोग हैं जो खुद को मिट्टी में रखना चाहते हैं और इससे आजीविका कमाना चाहते हैं। ऐसे एक इंसान हैं जिन्होंने अपनी नौकरी को छोड़कर मिट्टी को चुना और सफलतापूर्वक कुदरती खेती कर रहे हैं।

श्री अमरजीत सिंह एक खेतीप्रेन्योर हैं, जो सक्रिय रूप से जैविक खेती और डेयरी फार्मिंग के काम में शामिल हैं और एक रेस्टोरेंट भी चला रहे हैं। जिसका नाम किसान जंकश्न है, जो घड़ुंआ में स्थित है। उन्होंने 2007 में खेती करनी शुरू की। उस समय उनके दिमाग में कोई ठोस योजना नहीं थी, बस उनके पास अपने जीवन में कुछ करने का विश्वास था।

खेती करने से पहले अमरजीत सिंह ट्रेनिंग के लिए पी.ए.यू. गए और विभिन्न राज्यों का भी दौरा किया जहां पर उन्होंने किसानों को बिना रासायनों का प्रयोग किए खेती करते देखा। वे हल्दी की खेती और प्रोसैसिंग की ट्रेनिंग के लिए कालीकट और केरला भी गए।

अपने राज्य के दौरे और प्रशिक्षण से उन्हें पता चला कि खाद्य पदार्थों में बहुत मिलावट होती है जो कि हम रोज़ उपभोग करते हैं और इसके बाद उन्होंने कुदरती तरीके से खेती करने का निर्णय लिया ताकि वह बिना किसी रसायनों के खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर सकें। पिछले दो वर्षों से वे अपने खेत में खाद और कीटनाशी का प्रयोग किए बिना जैविक खाद का प्रयोग करके कुदरती खेती कर रहे हैं। खेती के प्रति उनका इतना जुनून है कि उनके पास केवल 1.5 एकड़ ज़मीन हैं और उसी में ही वेगन्ना, गेहूं, धान, हल्दी, आम, तरबूज, मसाले, हर्बल पौधे और अन्य मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं।

पी.ए.यू. में डॉ. रमनदीप सिंह का एक खास व्यक्तित्व है जिनसे अमरजीत सिंह प्रेरित हुए और अपने जीवन को एक नया मोड़ देने का फैसला किया। डॉ. रमनदीप सिंह ने उन्हें ऑन फार्म मार्किट का विचार दिया जो कि किसान जंकश्न पर आधारित था। आज अमरजीत सिंह किसान जंकश्न चला रहे हैं जो कि उनके फार्म के साथ चंडीगढ़-लुधियाना राजमार्ग पर स्थित है। किसान जंकश्न का मुख्य मकसद किसानों को उनके प्रोसेस किए गए उत्पादों को उसके माध्यम से बाज़ार तक पहुंचाने में मदद करना है। उन्होंने 2007 में इसे शुरू किया और खुद के ऑन फार्म मार्किट की स्थापना के लिए उन्हें 9 वर्ष लग गए। पिछले साल ही उन्होंने उसी जगह पर किसान जंकश्न फार्म से फॉर्क तक नाम का रेस्टोरेंट खोला है।

अमरजीत सिंह सिर्फ 10वीं पास है और आज 45 वर्ष की उम्र में आकर उन्हें पता चला है कि उन्हें क्या करना है। इसलिए उनके जैसे अन्य किसानों के मार्गदर्शन के लिए उन्होंने घड़ुआं में श्री धन्ना भगत किसान क्लब नामक ग्रुप बनाया है। वे इस ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं और खेती के अलावा वे ग्रुप मीटिंग के लिए हमेशा समय निकालते हैं। उनके ग्रुप में कुल 18 सदस्य हैं और उनके ग्रुप का मुख्य कार्य बीजों के बारे में चर्चा करना है कि किस्म का बीज खरीदना चाहिए और प्रयोग करना चाहिए, आधुनिक तरीके से खेती को कैसे करें आदि। उन्होंने ग्रुप के नाम पर गेहूं की बिजाई, कटाई के लिए और अन्य प्रकार की मशीनें खरीदी हैं। इनका प्रयोग सभी ग्रुप के मैंबर कर सकते हैं और अपने गांव के अन्य किसानों को कम और उचित कीमतों पर उधार भी दे सकते हैं।

अमरजीत सिंह का दूसरा सबसे महत्तवपूर्ण पेशा डेयरी फार्मिंग का है उनके पास कुल 8 भैंसे हैं और जो उनसे दूध प्राप्त होता है वे उनसे दूध, पनीर, खोया, मक्खन, लस्सी आदि बनाते हैं। वे सभी डेयरी उत्पादों को अपने ऑन फॉर्म मार्किट किसान जंकश्न में बेचते हैं। उनमें से एक प्रसिद्ध व्यंजन है जो उनमें रेस्टोरेंट में बिकती है वह है खोया-बर्फी जो कि खोया और गुड़ का प्रयोग करके बनाई होती है।

उनके रेस्टोरेंट में ताजा और पौष्टिक भोजन, खुला हवादार, उचित कूलिंग सिस्टम और ऑन रोड फार्म मार्किट है जो ग्राहकों को आकर्षित करती हैं। उन्होंने ग्रीन नेट और ईंटों का प्रयोग करके रेस्टोरेंट की दीवारें बनाई हैं जो रेस्टोरेंट के अंदर हवा का उचित वेंटिलेशन सुनिश्चित करते हैं।

वर्तमान प्रवृत्ति और कृषि प्रथाओं पर चर्चा करने के बाद उन्होंने हमें अपने विचारों के बारे में बताया-

लोगों की बहुत गलत मानसिकता है, उन्हें लगता है कि खेती में कोई लाभ नहीं है और उन्हें अपनी आजीविका के लिए खेती नहीं करनी चाहिए। पर यह सच नहीं है। बच्चों के मन में खेती के प्रति गलत सोच और गलत विचारों को भरा जाता है कि केवल अशिक्षित और अनपढ़ लोग ही खेती करते हैं और इस वजह से युवा पीढ़ी, खेती को एक जर्जर और अपमानपूर्ण पेशे के रूप में देखती है।आज कल बच्चे 10000 रूपये की नौकरी के पीछे दौड़ते हैं और यह चीज़ उन्हें उनकी ज़िंदगी में निराश कर देती है। अपने बच्चों के दिमाग में खेती के प्रति गलत विचार भरने से अच्छा है कि उन्हें खेती के उपयोग और खेती करने से होने वाले लाभों के बारे में बताया जाये। खेतीबाड़ी एक विभिन्नतापूर्ण क्षेत्र है और यदि एक बच्चा खेतीबाड़ी को चुनता है तो वह अपने भविष्य में चमत्कार कर सकता है।”

अमरजीत सिंह जी ने अपने नौकरी छोड़ने और खेती शुरू करने का जोखिम उठाया और खेतीबाड़ी में अपनी कड़ी मेहनत और जुनून की कारण उन्होंने इस जोखिम का अच्छे से भुगतान किया है। किसान जंकश्न हब के पीछे अमरजीत सिंह के मुख्य उद्देश्य हैं।

• किसानों को अपनी दुकान के माध्यम से अपने उत्पाद बेचने में मदद करना।

• ताजा और रसायन मुक्त सब्जियां और फल उगाना।

• ग्राहकों को ताजा, वास्तविक और कुदरती खाद्य उत्पाद उपलब्ध करवाना।

• रेस्टोरेंट में ताजा उपज का उपयोग करना और ग्राहकों को स्वस्थ और ताजा भोजन प्रदान करना।

• किसानों को प्रोसैस, ब्रांडिंग और स्वंय उत्पादन करने के लिए गाइड करना।

खैर, यह अंत नहीं है, वे आई ए एस की परीक्षा के लिए संस्थागत ट्रेनिंग भी देते हैं और निर्देशक भी उनके फार्म का दौरा करते हैं। अपने ऑन रोड फार्म मार्किट व्यापार को बढ़ाना और अन्य किसानों को खेतीबाड़ी के बारे में बताना कि कैसे वे खेती से लाभ और मुनाफा कमा सकते हैं, उनके भविष्य की योजनाएं हैं। खेतीबाड़ी के क्षेत्र में सहायता के लिए आने वाले हर किसान का वे हमेशा स्वागत करते हैं।

अमरजीत सिंह द्वारा संदेश
कृषि क्षेत्र प्रमुख कठिनाइयों से गुजर रहा है और किसान हमेशा अपने अधिकारों के बारे में बात करते हैं ना कि अपनी जिम्मेदारियों के बारे में। सरकार हर बार किसानों की मदद के लिए आगे नहीं आयेगी। किसान को आगे आना चाहिए और अपनी मदद स्वंय करनी चाहिए। पी ए यू में 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें खेत की तैयारी से लेकर बिजाई और उत्पाद की मार्किटिंग के बारे में बताया जाता है। इसलिए किसान यदि खेतीबाड़ी से अच्छी आजीविका प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें अपने कंधों पर जिम्मेदारी लेनी होगी।

कुनाल गहलोट

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जानें कैसे एक ग्रामीण किसान सब्जियों की विविध खेती से लाखों कमा रहा है

जैसे कि हम जानते हैं कि समय सभी के लिए एक सीमित वस्तु है, और कड़ी मेहनत से किसी व्यक्ति को करोड़पति प्रतियोगियों से मुकाबला करने में मदद नहीं मिलेगी क्योंकि यदि कड़ी मेहनत करके भाग्य प्राप्त करना संभव है तो आज के किसान इस देश के सबसे बड़े करोड़पति होंगे।

जो चीज़ आपके काम को अधिक प्रभावकारी और उत्पादक बनाती है वह है होशियारी। यह कहानी है दिल्ली के बाहरी गांव – टिगी पुर के एक साधारण किसान की, जो कि खेतीबाड़ी की आधुनिक तकनीक से सब्जियों की खेती में लाखों कमा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास कोई उच्च तकनीक वाली मशीनरी या उपकरण है या वे खाद की जगह सोने का प्रयोग करते हैं, यह सिर्फ उनका बुद्धिमत्तापूर्ण नज़रिया है जो वे अपने खेतों में लागू कर रहे हैं।

कुनाल गहलोट द्वारा अपनाई गई तकनीक….

कुनाल गहलोट 2004 से फसल विवधीकरण और खेती विविधीकरण से जुड़े हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 10 वर्षों में उनके खेत की आमदन में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जी हां, आप सही पढ़ रहे हैं! 2004 में उनके खेत की आय 5 लाख थी और 2015 में यह 3500000 लाख हो गई।

6 अंको की आय को 7 अंको में बदलना सिर्फ कुनाल गहलोट के लिए ही संभव था क्योंकि वे नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करते हैं। अन्य किसानों के विपरीत उन्होंने फसलों, पौधों और बागबानी उत्पादों जैसे मशरूम की खेती और सब्जी की गहन खेती के उत्पादन में वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाया। इस पहल से, उन्होंने सिर्फ 4 महीनों में 3.60 लाख प्रति हेक्टेयर अर्जित किया।

कैसे मार्किटिंग ने उनकी खेतीबाड़ी को अगले स्तर तक पहुंचाया….

मंडी की मांगों के मुताबिक,कृषि उत्पादों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई और कई नए प्रभावी लिंक मंडीकरण के लिए बनाए गए, जिससे कुनाल गहलोट को जरूरतों के मुताबिक संभावित बाजारों की पहचान करने में मदद मिली।

कृषि उत्पाद की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर वर्मीकंपोस्ट प्लांट की स्थापना की और बेहतर खेती और कटाई प्रक्रिया के लिए खेत में मशीनों का इस्तेमाल किया। वर्तमान में वे गेहूं (HD-2967 and PB-1509), धान, मूली, पालक, सरसों, शलगम, फूल गोभी, टमाटर, गाजर आदि उगा रहे हैंऔर इसके साथ ही वे सब्जी के बीजों को भी तैयार करते हैं। ये थी कुनाल गहलोट की कुछ उपलब्धियां उल्लेख करने के लिए।

उन्होंने खीरे की खेती, बंद गोभी की रोपाई, गेंदे का मूली के साथ अंतरीफसली में भी सुधार किया।

अपने काम के लिए, उन्हें विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों से कई पुरस्कार और मान्यता मिली है। वे हमेशा अपने क्षेत्र के साथी किसानों के बीच अपने ज्ञान और आविष्कारों को सांझा करने की कोशिश करते हैं और कृषि क्षेत्र के सुधार में भी योगदान करते हैं।

खैर, अच्छी तरह से किया गया होशियारी वाला काम एक आदमी को कहीं भी ले जा सकता है। यह उसके ऊपर है कि वह किस दिशा में जाना चाहता है। यदि आप कृषि विविधीकरण या सब्जियों की गहन खेती करना चाहते हैं तो ‘अपनी खेती’ मोबाइल एप डाउनलोड करें और स्वंय को खेतीबाड़ी की सभी आधुनिक तकनीकों से अपडेट रखें और इसे लागू करें।

स. राजमोहन सिंह कालेका

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एक व्यक्ति की कहानी जिसे पंजाब में विष रहित फसल उगाने के लिए जाना जाता है

एक कृषक परिवार में जन्मे, सरदार राजमोहन सिंह कालेका गांव बिशनपुर, पटियाला के एक सफल प्रगतिशील किसान हैं। किसी भी तरह के रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग किए बिना वे 20 एकड़ की भूमि पर गेहूं और धान का उत्पादन करते हैं और इससे अच्छी उत्पादकता (35 क्विंटल धान और गेहूं 22 क्विंटल प्रति एकड़) प्राप्त कर रहे हैं।

वे पराली जलाने के विरूद्ध हैं और कभी भी फसल के बचे कुचे (पराली) को नहीं जलाते। उनके विष रहित खेती और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों के ढंग ने उन्हें पंजाब के अन्य किसानों के रॉल मॉडल के रूप में मान्यता दी है।

इसके अलावा वे जिला पटियाला की प्रोडक्शन कमेटी के सदस्य भी हैं। वे हमेशा प्रगतिशील किसानों, वैज्ञानिकों, अधिकारियों और कृषि के माहिरों से जुड़े रहते हैं यह एक बड़ी प्राप्ति है जो उन्होंने हासिल की है। कई कृषि वैज्ञानिक और अधिकारी अक्सर उनके फार्म में रिसर्च और अन्वेषण के लिए आते हैं।

अपनी नौकरी और कृषि के साथ वे सक्रिय रूप से डेयरी फार्मिंग में भी शामिल है, उन्होंने साहिवाल नसल की कुछ गायों को रखा है इसके अलावा उन्होंने अपने खेत में बायो गैस प्लांट भी स्थापित किया है उनके अनुसार वे आज जहां तक पहुंचे हैं, उसके पीछे का कारण सिर्फ KVK और IARI के कृषि माहिरों द्वारा दिए गए परामर्श हैं।

अपने अतिरिक्त समय में, राजमोहन सिंह को कृषि से संबंधित किताबे पढ़ना पसंद है क्योंकि इससे उन्हें कुदरती खेती करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।

उनके पुरस्कार और उपलब्धियां…

उनके अच्छे काम और विष रहित खेतीबाड़ी करने की पहल के लिए उन्हें कई प्रसिद्ध लोगों से सम्मान और पुरस्कार मिले हैं:

• राज्य स्तरीय पुरस्कार

• राष्ट्रीय पुरस्कार

• पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना से धालीवाल पुरस्कार

• उन्हें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा सम्मानित किया गया।

• उन्हें पंजाब और हरियाणा के राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया।

• उन्हें कृषि मंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।

श्री राजमोहन ने ना सिर्फ पुरस्कार प्राप्त किए, बल्कि विभिन्न सरकारी अधिकारियों से विशेष रूप से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त किए हैं जो उन्हें गर्व महसूस करवाते हैं।

• मुख्य संसदीय सचिव, कृषि, पंजाब

• कृषि पंजाब के निदेशक

• डिप्टी कमिशनर पटियाला

• मुख्य कृषि अधिकारी, पटियाला

• मुख्य निदेशक, IARI

संदेश
“किसानों को विष रहित खेती करने की ओर कदम उठाने चाहिए क्योंकि यह बेहतर जीवन बनाए रखने का एकमात्र तरीका है। आज, किसान को वर्तमान ज़रूरतों को समझना चाहिए और अपनी मौद्रिक जरूरतों को पूरा करने की बजाये कृषि करने के सार्थक और टिकाऊ तरीके ढूंढने चाहिए।”

 

मोहिंदर सिंह गरेवाल

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एक ऐसे इंसान की कहानी जिसने कृषि विज्ञान में महारत हासिल की और खेती विभिन्नता के क्षेत्र में अपने कौशल दिखाए

हर कोई सोच सकता है और सपने देख सकता है, पर ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो अपनी सोच पर खड़े रहते हैं और पूरी लग्न के साथ उसे पूरा करते हैं। ऐसे ही दृढ़ संकल्प वाले एक जल सेना के फौजी ने अपना पेशा बदलकर खेतीबाड़ी की तरफ आने का फैसला किया। उस इंसान के दिमाग में बहु उदेशी खेती का ख्याल आया और अपनी मेहनत और जोश से आज विश्व भर में वह किसान पूरे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है।

मोहिंदर सिंह गरेवाल पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पहले सलाहकार किसान के तौर पर चुने गए, जिनके पास 42 अलग अलग तरह की फसलें उगाने का 53 वर्ष का तर्ज़ुबा है। उन्होंने इज़रायल जैसे देशों से हाइब्रिड बीज उत्पादन और खेती की आधुनिक तकनीकों की सिखलाई हासिल की। अब तक वे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में अपने काम के लिए 5 अंतरराष्ट्रीय, 7 राष्ट्रीय और 16 राज्य स्तरीय पुरस्कार जीत चुके हैं।

स. गरेवाल जी का जन्म 1 दिसंबर 1937 में लायलपुर, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ। उनके पिता का नाम अर्जन सिंह और माता का नाम जागीर कौर है। यदि हम मोहिंदर सिंह गरेवाल की पूरी ज़िंदगी देखें तो उनकी पूरी ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी और उन्होंने हर संघर्ष और मुश्किल को चुनौती के रूप में समझा। पूरी लग्न और मेहनत से उन्होंने अपने और अपने परिवार के सपने पूरे किये।

अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में, मोहिंदर सिंह गरेवाल बड़े उत्साह से फुटबॉल खेलते थे और बहुत सारे स्कूलों की टीमों के कप्तान भी रहे। वे एक अच्छे एथलीट भी थे, जिस कारण उन्हें भारतीय जल सेना में पक्के तौर पर नौकरी मिल गई। 1962 में INS नाम के समुंद्री जहाज पर मोहिंदर सिंह गरेवाल काले पानी अंडेमान निकोबार द्वीप समूह, मलेशिया, सिंगापुर और इंडोनेशिया की यात्रा की। इंडोनेशिया में मैच खेलते समय उनके दायीं जांघ पर गंभीर चोट लगी। इस चोट और परिवार के दबाव के कारण उन्होंने 1963 में भारतीय जल सेना की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद कुछ देर के लिए उनकी ज़िंदगी में ठहराव आ गया।

नौकरी छोड़ने के बाद उनके पास अपने विरासती व्यवसाय खेतीबाड़ी के अलावा कोई ओर अन्य विकल्प नहीं था। उन्होंने शुरूआती 4 वर्षों में गेहूं और मक्की की खेती की। मोहिंदर सिंह जी ने अपनी पत्नी जसबीर कौर के साथ मिलकर खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए एक ठोस योजना बनाई और आज वे अपनी खेती क्रियाओं के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध इंसान हैं। हालांकि उनके पास 12 एकड़ का एक छोटा सा खेत है, पर फसल चक्र के प्रयोग से वे इससे अधिक लाभ ले रहे हैं। मोहिंदर सिंह गरेवाल जी अपने खेतों में लगभग 42 तरह की फसलें उगाने में सक्षम हैं और अच्छी क्वालिटी की पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। उनके कौशल अकेले पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में जाने जाते हैं।

बहुत सारी जानी पहचानी कमेटियों और कौंसल के साथ काम करके मोहिंदर सिंह गरेवाल जी के काम को और अधिक प्रसिद्धि मिली। राज्य स्तर पर उन्हें गवर्निंग बोर्ड के मैंबर, पंजाब राज्य बीज सर्टीफिकेशन अथॉरिटी, पी ए यू पब्लीकेशन कमेटी और पी ए यू फार्मज़ एडवाइज़री कमेटी के तौर पर काम किया। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कमिश्न फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड पराइसिस के मैंबर, भारत सरकार, सीड एक्ट सब-कमेटी के मैंबर, भारत सरकार एडवाइज़री कमेटी के मैंबर, प्रसार भारतीय, जालंधर, पंजाब और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शूगरकेन रिसर्च लखनउ के मैंबर के तौर पर काम किया।

इस समय वे एग्रीकल्चर और हॉर्टीकल्चर कमेटी, पी ए यू, गवर्निंग बोर्ड, एग्रीकल्चर टैक्नोलोजी मैनेजमैंट एजंसी के मैंबर हैं। वे पंजाब फार्मरज़ कल्ब, पी ए यू के संस्थापक और चार्टर प्रधान भी हैं।

खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए उन्हें इंगलैंड, मैक्सिको, इथियोपिया और थाइलैंड जैसे देशों के द्वारा सम्मानित किया गया और वे अलग अलग स्तर पर 75 से ज्यादा पुरस्कार जीत चुके हैं। उन्हें 1996 में ऑटोबायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट, यू एस ए की तरफ से मैन ऑफ द ईयर पुरस्कार के साथ और 15 अगस्त 1999 को श्री गुरू गोबिंद सिंह स्टेडियम, जालंधर में माननीय गवर्नर एस एस राय द्वारा गोल्ड मैडल और लोई से सम्मानित किया। उन्हें पश्चिमी पंजाब के लोगों को खेती में से ज्यादा लाभ लेने और पाकिस्तान में एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को फसली विभिन्नता के बारे में सिखाने के लिए फार्मरज़ इंस्टीट्यूट, पाकिस्तान की तरफ से दो बार निमंत्रण भेजा गया। उनकी ज्यादा ज़िंदगी यात्रा में ही गुज़री और वे बहुत सारे देशों जैसे कि यू एस ए, कैनेडा, मैक्सिको, थाइलैंड, इंगलैंड और पाकिस्तान में वैज्ञानिक किसान और प्रतीनिधि मैंबर के तौर पर गये और जब भी वे गये उन्होंने स्थानीय किसानों को टैक्नीकल जानकारी दी।

स. मोहिंदर सिंह गरेवाल एक बढ़िया लेखक भी हैं और उन्होंने खेतीबाड़ी की सफलता की कुंजी, तेरे बगैर ज़िंदगी कविताएं, रंग ज़िंदगी के स्वै जीवनी, ज़िंदगी एक दरिया और सक्सेसफुल साइंटिफिक फार्मिंग आदि शीर्षक के अधीन पांच किताबें लिखीं। उनके लेखन विदेशी अखबारों, नैशनल डेली, राज्य स्तरीय अखबार, खेतीबाड़ी मैगनीज़ और रोटरी मैगनीज़ आदि में छप चुकी हैं। उन्होंने मुफ्त आंखों का चैकअप कैंप, रोड सेफ्टी, खून दान कैंप, वृक्ष लगाओ, फील्ड डेज़ और मिट्टी टैस्ट जैसे प्रोजैक्टों का हिस्सा बनकर उन्होंने समाज सेवा में भी अपना हिस्सा डाला।

खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मोहिंदर सिंह गरेवाल जी ने बहुत सफलता हासिल की और खेती के लिए ऊंचे मियार बनाये। उनकी प्राप्तियां अन्य किसानों के लिए जानकारी और प्रेरणा का स्त्रोत हैं।

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”

हरतेज सिंह मेहता

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जैविक खेती के लिए दूसरों को प्रोत्साहित करके बेहतर भविष्य के लिए एक आधार स्थापित कर रहे हैं

पहले जैविक एक ऐसा शब्द था जिसका प्रयोग बहुत कम किया जाता था। बहुत कम किसान थे जो जैविक खेती करते थे और वह भी घरेलु उद्देश्य के लिए। लेकिन समय के साथ लोगों को पता चला कि हर चमकीली सब्जी या फल अच्छा दिखता है लेकिन वह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।

यह कहानी है – हरतेज सिंह मेहता की जिन्होंने 10 वर्ष पहले एक बुद्धिमानी वाला निर्णय लिया और वे इसके लिए बहुत आभारी भी हैं। हरतेज सिंह मेहता के लिए, जैविक खेती को जारी रखने का निर्णय उनके द्वारा लिया गया एक सर्वश्रेष्ठ निर्णय था और आज वे अपने क्षेत्र (मेहता गांव – बठिंडा) में जैविक खेती करने वाले एक प्रसिद्ध किसान हैं।

पंजाब के मालवा क्षेत्र, जहां पर किसान अच्छी उत्पादकता प्राप्त करने के लिए कीटनाशक और रसायनों का प्रयोग बहुत उच्च मात्रा में करते हैं। वहीं, हरतेज सिंह मेहता ने प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रखने को चुना। वे बचपन से ही अपने पैतृक व्यवसायों के प्रति समर्पित है और उनके लिए अपनी उपलब्धियों के बारे में फुसफुसाने से अच्छा, एक साधारण जीवन व्यतीत करना है।

उच्च योग्यता (एम.ए. पंजाबी, एम.ए. पॉलिटिकल साइंस) होने के बावजूद, उन्होंने शहरी जीवन और सरकारी नौकरी की बजाय जैविक खेती करने को चुना। वर्तमान में उनके पास 11 एकड़ ज़मीन है जिसमें वे कपास, गेहूं, सरसों, गन्ना, मसूर, पालक , मेथी, गाजर, मूली, प्याज, लहसुन और लगभग सभी सब्जियां उगाते हैं। वे हमेशा अपने खेतों को कुदरती तरीकों से तैयार करना पसंद करते हैं जिसमें कपास (F 1378), गेहूं (1482) और बंसी नाम के बीज अच्छे परिणाम देते हैं।

“अंसतोष, निरक्षरता और किसानों की उच्च उत्पादकता की इच्छा रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है, जिसके कारण किसान जो कि उद्धारकर्त्ता के रूप में जाने जाते हैं वे अब समाज को विष दे रहे हैं। आजकल किसान कीट प्रबंधन के लिए कीटनाशकों और रसायनों का इस्तेमाल करते हैं जो मिट्टी के मित्र कीटों और उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाते हैं। वे इस बात से अवगत नहीं हैं कि वे अपने खेत में रसायनों को उपयोग करके पूरी खाद्य श्रंख्ला को विषाक्त बना रहे हैं। इसके अलावा, रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके वे ना केवल पर्यावरण की स्थिति को बिगाड़ रहे हैं बल्कि कर्ज में बढ़ोतरी के कारण प्रमुख आर्थिक नुकसान का भी सामना कर रहे हैं।”– हरतेज सिंह ने कहा।

मेहता जी हमेशा खेती के लिए कुदरती ढंग को अपनाते हैं और जब भी उन्हें कुदरती खेती के बारे में जानकारी की आवश्यकता होती है तो वे अमृतसर के पिंगलवाड़ा सोसाइटी और एग्रीकल्चर हेरीटेज़ मिशन से संपर्क करते हैं। वे आमतौर पर गाय के मूत्र और पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिए करते हैं और यह मिट्टी के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण अनुकूलन भी है।

मेहता जी के अनुसार कुदरती तरीके से उगाए गए भोजन के उपभोग ने उन्हें और उनके परिवार को पूरी तरह से स्वस्थ और रोगों से दूर रखा है। इसी कारण श्री मेहता का मानना है कि वे जैविक खेती के प्रति प्रेरित हैं और भविष्य में भी इसे जारी रखेंगे।

संदेश
“मैं देश भर के किसानों को एक ही संदेश देना चाहता हूं कि हमें निजी कंपनियों के बंधनों से बाहर आना चाहिए और समाज को स्वस्थ बनाने के लिए स्वस्थ भोजन प्रदान करने का वचन देना चाहिए।”

बलदेव सिंह बराड़

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बलदेव सिंह बराड़ जो 80 वर्ष के हैं लेकिन उनका दिल और दिमाग 25 वर्षीय युवा का है

वर्ष 1960 का समय था जब अर्जन सिंह के पुत्र बलदेव सिंह बराड़ ने खेतीबाड़ी शुरू की थी और यह वही समय था जब हरी क्रांति अपने चरम समय पर थी। तब से ही खेती के लिए ना तो उनका उत्साह कम हुआ और ना ही उनका जुनून कम हुआ।

गांव सिंघावाला, तहसील मोगा, पंजाब की धरती पर जन्मे और पले बढ़े बलदेव सिंह बराड़ ने कृषि के क्षेत्र में काफी उपलब्धियां हासिल की और खेतीबाड़ी विभाग, फिरोजपुर से कई पुरस्कार जीते।

उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, मोगा पंजाब के कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेते हुए पहल के आधार पर खेती करने का फैसला किया। उनका मुख्य ध्यान विशेष रूप से गेहूं और ग्वार की खेती की तरफ था। और कुछ समय बाद धान को स्थानांतरित करते हुए उनका ध्यान पोपलर और पपीते की खेती की तरफ बढ़ गया। अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए 1985 में 9 एकड़ में किन्नुओं की खेती और 3 एकड़ में अंगूर की खेती करके उनका ध्यान बागबानी की तरफ भी बढ़ा। घरेलु उद्देश्य के लिए उन्होंने अलग से फल और सब्जियां उगायीं। कुल मिलाकर उनके पास 37 एकड़ ज़मीन है जिसमें से 27 एकड़ उनकी अपनी है और 10 एकड़ ज़मीन उन्होंने ठेके पर ली है।

उनकी उपलब्धियां:

बलदेव सिंह बराड़ की दिलचस्पी सिर्फ खेती की तरफ ही नहीं थी परंतु खेतीबाड़ी पद्धति को आसान बनाने के लिए मशीनीकरण की तरफ भी थी। एक बार उन्होंनें मोगा की इंडस्ट्रियल युनिट को कम लागत पर धान की कद्दू करने वाली मशीन विकसित करने के लिए तकनीकी सलाह भी दी और वह मशीन आज बहुत प्रसिद्ध है।

उन्होंने एक शक्तिशाली स्प्रिंग कल्टीवेटर भी विकसित किया जिसमें कटाई के बाद धान के खेतों में सख्त परत को तोड़ने की क्षमता होती है।

वैज्ञानिकों की सलाह मान कर उसे लागू करना उनका अब तक का सबसे अच्छा कार्य रहा है जिसके द्वारा वो अब अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। वे हमेशा अपनी आय और खर्चे का पूरा दस्तावेज रखते हैं। और उन्होंने कभी अपनी जिज्ञासा को खत्म नहीं होने दिया। कृषि के क्षेत्र में होने वाले नए आविष्कार और नई तकनीकों को जानने के लिए वे हमेशा किसान मेलों में जाते हैं। अच्छे परिणामों के लिए वैज्ञानिक खेती की तरफ वे दूसरे किसानों को भी प्रेरित करते हैं।

संदेश
“एक किसान राष्ट्र का निर्माण करता है। इसलिए उसे कठिनाइयों के समय में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और ना ही निराश होना चाहिए। एक किसान को आधुनिक पर्यावरण अनुकूलित तकनीकों को अपनाना चाहिए तभी वह प्रगति कर सकता है और अपनी ज़मीन से अच्छी उपज प्राप्त कर सकता है।”

सरदार गुरमेल सिंह

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जानिये कैसे गुरमेल सिंह ने अपने आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती में लाभ कमाया

गुरमेल सिंह एक और प्रगतिशील किसान पंजाब के गाँव उच्चागाँव (लुधियाना),के रहने वाले हैं। कम जमीन होने के बावजूद भी वे पिछले 23 सालों से सब्जियों की खेती करके बहुत लाभ कमा रहे हैं। उनके पास 17.5 एकड़ जमीन है जिसमें 11 एकड़ जमीन अपनी है और 6 .5 एकड़ ठेके पर ली हुई है।

आधुनिक खेती तकनीकें ड्रिप सिंचाई, स्प्रे सिंचाई, और लेज़र लेवलर जैसे कई पावर टूल्स उनके पास हैं जो इन्हें कुशल खेती और पानी का संरक्षण करने में सहायता करते हैं। और जब बात कीटनाशक दवाइयों की आती है तो वे बहुत बुद्धिमानी से काम लेते हैं। वे सिर्फ पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की सिफारिश की गई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे अच्छी पैदावार के लिए अपने खेतों में हरी कुदरती खाद का इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी आधुनिक तकनीक जो वह सब्जियों के विकास के लिए 6 एकड़ में हल्की सुरंग का सही उपयोग कर रहे हैं। कुछ फसलों जैसे धान, गेहूं, लौंग, गोभी, तरबूज, टमाटर, बैंगन, खीरा, मटर और करेला आदि की खेती वे विशेष रूप से करते हैं। अपने कृषि के व्यवसाय को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सोया के हाइब्रिड बीज तैयार करने और अन्य सहायक गतिविधियां जैसे कि मधुमक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग आदि की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से हासिल की।

मंडीकरण
उनके अनुभव के विशाल क्षेत्र में ना सिर्फ विभिन्न फसलों को लाभदायक रूप से उगाना शामिल है, बल्कि इसी दौरान उन्होंने अपने मंडीकरण के कौशल को भी बढ़ाया है और आज उनके पास “आत्मा किसान हट (पटियाला)” पर अपना स्वंय का बिक्री आउटलेट है। उनके प्रासेसड किए उत्पादों की गुणवत्ता उनकी बिक्री को दिन प्रति दिन बढ़ा रही है। उन्होंने 2012 में ब्रांड नाम “स्मार्ट” के तहत एक सोया प्लांट भी स्थापित किया है और प्लांट के तहत वे, सोया दूध, पनीर, आटा ओर गिरियों जैसे उत्पादों को तैयार करते और बेचते हैं।

उपलब्धियां
वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और जल्दी ही उन्हें CRI पम्प अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

संदेश:
“यदि वह सेहतमंद ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो किसानों को अपने खेत में कम कीटनाशक और रसायनों का उपयोग करना चाहिए और तभी वे भविष्य में धरती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं।”