जगदीप सिंह

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जानें कैसे इस किसान की व्यावहारिक पहल ने पंजाब को पराली जलाने के लिए ना कहने में मदद की

पराली जलाना और कीटनाशकों का प्रयोग करना पुरानी पद्धतियां हैं जिनका पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव आज हम देख रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के कारण भारत के उत्तरी भागों को वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कई वर्षों में वायु की गुणवत्ता खराब हो गई है और यह कई गंभीर श्वास और त्वचा की समस्याओं को जन्म दे रही है।

हालांकि सरकार ने पराली जलाने की समस्या को रोकने के लिए कई प्रमुख कदम उठाए हैं फिर भी वे किसानों को पराली जलाने से रोक नहीं पा रहे। किसानों में ज्ञान और जागरूकता की कमी के कारण पंजाब में पराली जलाना एक बड़ा मुद्दा बन रहा है। लेकिन एक ऐसे किसान जगदीप सिंह ने ना केवल अपने क्षेत्र में पराली जलाने से किसानों को रोका बल्कि उन्हें जैविक खेती की तरफ प्रोत्साहित किया।

जगदीप सिंह पंजाब के संगरूर जिले के एक उभरते हुए किसान हैं। अपनी मातृभूमि और मिट्टी के प्रति उनका स्नेह बचपन में ही बढ़ गया था। मिट्टी प्रेमी के रूप में उनकी यात्रा उनके बचपन से ही शुरू हुई। जन्म के तुरंत बाद उनके चाचा ने उन्हें गोद लिया जिनका व्यवसाय खेतीबाड़ी था। उनके चाचा उन्हें शुरू से ही फार्म पर ले जाते थे और इसी तरह खेती की दिशा में जगदीप की रूचि बढ़ गई।

बढ़ती उम्र के साथ उनका दिमाग भी विकासशील रहा और पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्राथमिकता खेती को ही दी। अपनी 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और खेती में अपने पिता मुख्तियार सिंह की मदद करनी शुरू की। खेती के प्रति उनकी जिज्ञासा दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी, इसलिए अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए उन्होंने 1989 से 1990 के बीच उन्होंने पी ए यू का दौरा किया। पी ए यू का दौरा करने के बाद जगदीप सिंह को पता चला कि उनकी खेती की मिट्टी का बुनियादी स्तर बहुत अधिक है जो कई मिट्टी और फसलों के मुद्दे को जन्म दे रहा है और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए दो ही उपाय थे या तो रूड़ी की खाद का प्रयोग करना या खेतों में हरी खाद का प्रयोग करना।

इस समस्या का निपटारा करने के लिए जगदीप एक अच्छे समाधान के साथ आये क्योंकि रूड़ी की खाद में निवेश करना उनके लिए महंगा था। 1990 से 1991 के बीच उन्होंने पी ए यू के समर्थन से happy seeder का प्रयोग करना शुरू किया। happy seeder के प्रयोग से वे खेत में से धान की पराली को बिना निकाले मिट्टी में बीजों को रोपित करने के योग्य हुए। उन्होंने अपने खेत में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए धान की पराली को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया। धीरे-धीरे जगदीप ने अपनी इस पहल में 37 किसानों को इकट्ठा किया और उन्हें happy seeder प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया और पराली जलाने से परहेज करने को कहा। उन्होंने इस अभियान को पूरे संगरूर में चलाया जिसके तहत उन्होंने 350 एकड़ से अधिक ज़मीन को कवर किया।

2014 में मैंने IARI (Indian Agricultural Research Institute) से पुरस्कार प्राप्त किया और उसके बाद मैनें अपने गांव में ‘Shaheed Baba Sidh Sweh Shaita Group’ नाम का ग्रुप बनाया। इस ग्रुप के तहत हम किसानों को हवा प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए, पराली ना जलाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इन दिनों वे 40 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से 32 एकड़ भूमि उन्होंने किराये पर दी है और 4 एकड़ की भूमि पर वे जैविक खेती कर रहे हैं और बाकी की भूमि पर वे बहुत कम मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उनका मुख्य मंतव जैविक की तरफ जाना है। वर्तमान में वे अपने पिता, माता, पत्नी और दो बेटों के साथ कनोई गांव में रह रहे हैं।

जगदीप सिंह के व्यक्तित्व के बारे में सबसे आकर्षक चीज़ यह है कि वे बहुत व्यावहारिक हैं और हमेशा खेतीबाड़ी के बारे में नई चीज़ें सीखने के लिए इच्छुक रहते हैं। वे पशु पालन में भी बहुत दिलचस्पी रखते हैं और घर के उद्देश्य के लिए उनके पास 8 भैंसे हैं। वे भैंस के दूध का प्रयोग सिर्फ घर के लिए करते हैं और कई बार इसे अपने पड़ोसियों या गांव वालों को भी बेचते हैं खेतीबाड़ी और दूध की बिक्री से वह अपने परिवार के खर्चों को काफी अच्छे से संभाल रहे हैं और भविष्य में वे अच्छे मुनाफे के लिए अपनी उत्पादकता की मार्किटिंग शुरू करना चाहते हैं।

संदेश
दूसरे किसानों के लिए जगदीप सिंह का संदेश यह है कि उन्हें अपने बच्चों को खेती के बारे में सिखाना चाहिए और उनके मन में खेती के बारे में नकारात्मक विचार ना डालें अन्यथा वे अपने जड़ों के बारे में भूल जाएंगे।

शेर बाज सिंह संधु

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शेरबाज़ सिंह संधु, भैंस की सर्वश्रेष्ठ नसल – मुर्रा, के साथ पंजाब में सफेद क्रांति ला रहे हैं

यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसने पशु पालन में अपनी दिलचस्पी को जारी रखा और इसे एक सफल डेयरी बिज़नेस – लक्ष्मी डेयरी फार्म में बदला।

कई अन्य किसानों के विपरीत, शेर बाज सिंह संधु ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में नौकरी ढूंढने की बजाय अपना दिमाग काफी छोटी उम्र में ही पशु पालन की तरफ मोड़ लिया था। पशु पालन में उनकी दिलचस्पी का मुख्य कारण उनकी माता -हरपाल कौर संधु थी।

शेर बाज सिंह संधु को पशु पालन की तरफ झुकाव की प्रेरणा उनकी मां के परिवार की ओर से मिली। काफी समय पहले शेर बाज सिंह संधु जी के नाना जी को सर्वोत्तम नसल के पशु पालने का शौंक था और यही शौंक शादी के बाद उनकी बेटी ने भी अपनाया और इसी शौंक को देखते हुए शेर बाज सिंह संधु का झुकाव पशु पालन की तरफ हुआ।
2002 में श्रीमती हरपाल कौर का निधन हो गया। हां, यह श्री संधु के लिए बहुत दुखद क्षण था, लेकिन अपनी माता की मृत्यु के बाद उन्हें एक बेहतर तरीके से पशु पालन करने की प्रेरणा मिली और तब उन्होंने पशु पालन व्यापार में प्रवेश करने का फैसला किया। श्री संधु ने पुराने पशुओं को बेच दिया और हरियाणा के एक क्षेत्र से 52000 रूपये में मुर्रा नसल की एक नई भैंस को खरीदा। उस समय वह भैंस 15-16 किलो दूध प्रतिदिन देती थी।
2003 में उन्होंने उसी नसल की एक नई भैंस 80000 रूपये में खरीदी और यह भैंस उस समय 25 किलो दूध देती थी।

फिर 2004 में उन्होंने पूरे परिवार की जांच करते हुए 75000 रूपये में भैंस के एक कटड़े को खरीदा (उसकी मां 20 किलो दूध देती थी और उसने इसके लिए एक पुरस्कार भी जीता था)।

और इस तरह उन्होंने अपने फार्म में भैंसों की नसल को सुधारा और अपने फार्म पर अच्छी गुणवत्ता वाली भैंसो की संख्या में वृद्धि की।

एक बार, उनकी भैंस लक्ष्मी ने मुक्तसर मेले में सर्वश्रेष्ठ नस्ल चैंपियनशिप का खिताब जीता और उसके बाद से ही उन्होंने अपने फार्म का नाम – “लक्ष्मी डेयरी फार्म” रख दिया।

ना केवल लक्ष्मी बल्कि कई अन्य भैंस और सांड हैं जैसे धन्नो, रानी, सिकंदर जिन्होंने श्री शेर बाज सिंह को गर्व महसूस करवाया और किसान मेलों और दूध उत्पादन और नसल चैंपियनशिप में बार-बार पुरस्कार जीतकर सारे रिकॉर्ड भी तोड़ दिए।

उनके कुछ पुरस्कार और उपलब्धियों का उल्लेख नीचे दिया गया है:
• लक्ष्मी डेयरी फार्म में भैंस के दूध के लए राष्ट्रीय रिकॉर्ड हैं।
• शेर बाज सिंह को मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा “State Award for excellent services in Dairy Farming” पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
• उनकी भैंस आठवें राष्ट्रीय पशुधन चैंपियनशिप में पहले स्थान पर आई।
• माघी मेले में सरदार गुलज़ार सिंह द्वारा सम्मानित किया गया।
• उनकी भैंस ने 2008 में मुक्तसर में दूध उत्पादन प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार जीता।
• 2008 में PDFA मेले में उनकी भैंस ने पहला पुरसकार जीता।
• 2015 में उनकी भैंस धन्नों ने 25 किलो दूध देकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
• जनवरी 2016 में मुक्तसर मेले में उनकी मुर्रा भैंस ने सभी पुरस्कार जीते।
• उनके सांड सिकंदर ने मुक्तसर मेले में दूसरा पुरस्कार जीता।
• रानी भैंस ने 26 किलो 357 ग्राम दूध देकर एक नया रिकॉर्ड बनाया और पहला पुरस्कार जीता।
• धन्नो भैंस ने 26 किलो दूध दिया और उसी प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर आई।
• उनके कई लेख, अखबार में advisory magazine में प्रकाशित किए गए हैं।

आज, उनके पास 1 एकड़ में फैले उनके फार्म में कुल 50 भैंसे हैं और वे सारा दूध शहर के कई दुकानों में बेचते हैं। श्री संधु स्वंय चारा उगाना पसंद करते हैं, उनके पास कुल 40 एकड़ भूमि हैं जिसमें वे गेहूं, धान और चारा उगाते हैं।

श्री संधु का बेटा – बरिंदर सिंह संधु जो पेशे से वकील हैं और उनकी पत्नी कुलविंदर कौर संधु, लक्ष्मी डेयरी फार्म के प्रबंधन में बहुत सहायक हैं। उनके बेटे ने फार्म के नाम पर एक फेसबुक पेज बनाया है जिसमें कि उनके साथ 3.5 लाख के करीब लोग जुड़े हैं और वे 2022-23 तक इस संख्या को बढ़कार 10 लाख करना चाहते हैं क्योंकि उनके फार्म की लोकप्रियता इतनी है कि, कई लोग यहां तक कि विदेशों से भी आकर उनसे भैंसों को खरीदते हैं।

श्री संधु हमेशा किसानों की पशु पालन में सहायता करते हैं और इसमें प्रगति के लिए प्रेरित करते हैं। वे किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाला सीमेन (वीर्य) और दूध भी प्रदान करते हैं।

भविष्य की योजनाएं: उनके भविष्य की योजना है कि फार्म के क्षेत्र को बढ़ाना और सिर्फ अच्छी गुणवत्ता वाली भैंसों को रखना और अच्छी गुणवत्ता वाला सीमेन और दूध किसानों को उपलब्ध करवाना।

संदेश:

आजकल के किसानों की स्थानीय नसलों की बजाय विदेशी नसलों के पालन में अधिक रूचि है। उन्हें लगता है कि विदेशी नसलें उन्हें अधिक लाभ दे सकती हैं पर यह सच नहीं है। क्योंकि विदेशों नसलों को एक अलग जलवायु और परिस्थितियों की जरूरत होती है जो कि भारत में संभव नहीं है। इसके अलावा, विदेशी नसल के पालन में स्थानीय नसल की तुलना में अधिक खर्चे की आवश्यकता होती है। जिसके लिए साधारण किसान प्रबंधन करने में सक्षम नहीं होते। जिसके कारण कुछ समय बाद किसान स्थानीय नसलों को पालने लग जाते हैं या फिर वे पूरी तरह से पशु पालन के कार्य को बंद कर देते हैं।
किसानों को यह समझना चाहिए कि अब भारत में अच्छी नसलें उपलब्ध हैं जो प्रतिदिन 20-25 किलो दूध का उत्पादन कर सकती हैं। किसानों को खेती के साथ-साथ पशु पालन व्यवसाय का चयन करना चाहिए क्योंकि यह आय बढ़ाने में मदद करता है। इस तरह किसान बेरोजगारी की समस्या से निपट सकते हैं और भारत पशु पालन में प्रगति कर सकता है।

अल्ताफ

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एक ऐसे इन्सान की कहानी जिसके बकरी पालन के प्रति प्यार ने उसे बकरी पालन का सफल किसान बना दिया

अधिकतर लोग सोचते हैं कि आज की कामकाजी दुनिया में सफलता के लिए कॉलेज की शिक्षा महत्तवपूर्ण है। हां, ये सच है कि कॉलेज की शिक्षा आवश्यक है क्योंकि शिक्षा व्यक्ति को अपडेट करने में मदद करती है लेकिन सफलता के पीछे एक ओर प्रेरणा शक्ति होती है और वह है जुनून। आपका जुनून ही आपको पैसा कमाने में मदद करता है और जुनून, व्यक्ति में एक विशेष चीज के प्रति रूचि होने पर ही आता है।

ऐसे एक व्यक्ति हैं अल्ताफ, जो कम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अपना बकरी पालन का व्यापार व्यापारिक स्तर पर अच्छे से चला रहे हैं। इसमें उनकी बचपन से ही दिलचस्पी थी जिससे उन्होंने बकरी पालन को अपने पेशे के रूप में अपनाया और यह उनका जुनून ही था जिससे वे सफल बनें।

अल्ताफ राजस्थान के फतेहपुर सिकरी शहर में बहुत अच्छे परिवार में पैदा हुए। अल्ताफ के पिता, श्री अयूब खोकर एक मजदूर थे और वे अपना घर चलाने के लिए छोटे स्तर पर खेती भी करते थे। उनके पास दूध के लिए चार बकरियां थी। बचपन में अल्ताफ को बकरियों का बहुत शौंक था और वे हमेशा उनकी देखभाल करते थे लेकिन जैसे कि अल्ताफ के पिता के पास कोई स्थाई काम नहीं था, इसलिए कोई नियमित आय नहीं थी, परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जिस कारण अल्ताफ को 7वीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन बकरी पालन के प्रति उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ और 2013 में उन्होंने बकरी पालन का बड़ा कारोबार शुरू किया।

शुरू में, अल्ताफ ने सिर्फ 20 बकरियों से बकरी पालन का कारोबार शुरू किया और धीरे -धीरे समय के साथ अपने व्यवसाय को 300 बकरियों के साथ बढ़ाया। उन्होंने बकरी पालन के लिए किसी तरह की ट्रेनिंग नहीं ली। वे सिर्फ बचपन से ही अपने पिता को देखकर सीखते रहे। इन वर्षों में उन्होंने समझा कि बकरियों की देखभाल कैसे करें। उनके फार्म में बकरी की विभिन्न प्रकार की नस्लें और प्रजातियां हैं। आज इनके फार्म में बने मीट को इसकी सर्वोत्तम गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। वे अपनी बकरियों को कोई भी दवाई या किसी भी प्रकार की बनावटी खुराक नहीं देते। वे हमेशा बकरियों को प्राकृतिक चारा देना ही पसंद करते हैं और ध्यान देते हैं कि उनकी सभी बकरियां बीमारी रहित हो। अभी तक वे बड़े स्तर पर मंडीकरण कर चुके हैं। उन्होंने यू पी, बिहार, राजस्थान और मुंबई में अपने फार्म में निर्मित मीट को बेचा है। उनके फार्म में बने मीट की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि इसकी मुंबई से विशेष मांग की जाती है। इसके अलावा वे खेत के सभी कामों का प्रबंधन करते हैं और जब भी उन्हें अतिरिक्त मजदूरों की आवश्यकता होती है, वे मजदूरों को नियुक्त कर लेते हैं।

आज 24 वर्ष की आयु में अल्ताफ ने अपना बकरी पालन का कारोबार व्यापारिक रूप में स्थापित किया है और बहुत आसानी से प्रबंधित कर रहे हैं और जैसे कि हम जानते हैं कि भारत में बकरी, मीट उत्पादन के लिए सबसे अच्छा जानवर माना जाता है इसलिए बकरी पालन के लिए आर्थिक संभावनाएं बहुत अच्छी हैं लेकिन इस स्तर तक पहुंचना अल्ताफ के लिए इतना आसान नहीं था। बहुत मुश्किलों और प्रयासों के बाद, उन्होंने 300 बकरियों के समूह को बनाए रखा है।

भविष्य की योजना:
भविष्य में वे अपने कारोबार को और अधिक बड़ा करने की योजना बना रहे हैं। वे विभिन्न शहरों में मौजूद ग्राहकों के साथ संबंधों को मजबूत कर रहे हैं और अपने फार्म में बकरी की विभिन्न नस्लों को भी शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।


अल्ताफ द्वारा दिया गया संदेश

अल्ताफ के अनुसार, एक किसान को कभी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि भगवान हर किसी को मौका देते हैं बस आपको उसे हाथ से जाने नहीं देना है। अपने खुद के बल का प्रयोग करें और अपने काम की शुरूआत करें। आपका कौशल आपको ये तय करने में मदद करता है कि भविष्य में आपको क्या करना है।”