मनजिंदर सिंह और स्वर्ण सिंह

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सफल पोल्टरी फार्मिंग उद्यम जो कि पिता द्वारा स्थापित किया गया और बेटे द्वारा नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया

भारत में हर कोई वर्ष 1984 के इतिहास को जानता है, यह पूरे पंजाब में मनहूस समय था जब सिख नरसंहार का प्रमुख लक्ष्य थे। यह कहानी है एक साधारण किसान स्वर्ण सिंह की, जो अपने पुराने हालातों को सुधारने के लिए और उन्हीं हालातों से उभरने के लिए, सिर्फ 2.5 एकड़ ज़मीन के साथ ही संघर्ष करके अपनी आगे की ज़िंदगी की तरफ बढ़ रहे थे । स्वर्ण सिंह के भी कुछ सपने थे जिन्हें वे पूरा करना चाहते थे और उसके लिए उन्होंने 12 वीं और बी.ए के बाद वे उच्च शिक्षा (मास्टर्स) के लिए गए। लेकिन उनकी नियति में कुछ और लिखा गया था। वर्ष 1983 में, जब पंजाब के युवावर्ग लोकतंत्र के खिलाफ क्रांति के मूड की चरम सीमा पर थे, उस समय हालात साधारण लोगों के लिए आसान नहीं थे और स्वर्ण सिंह ने अपनी उच्च शिक्षा (मास्टर्स) को बीच में ही छोड़ दिया और घर रहकर कुछ नया शुरू करने का फैसला किया।

जब दंगे फसाद शांत हो रहे थे उस समय स्वर्ण सिंह अपनी ज़िंदगी के व्यावसायकि करियर को स्थिरता देने के लिए हर तरह की जॉब हासिल करने की कोशिश की, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। आखिरकार उन्होंने अपने पडोस में अन्य पोल्टरी किसानों से प्रेरित होकर पोल्टरी फार्मिंग शुरू करने का फैसला किया और 1990 में लगभग 2 दशक पहले सहोता पोल्टरी ब्रीडिंग फार्म स्थापित हुआ। उन्होंने अपना उद्यम 1000 पक्षियों से शुरू किया और 50 फुट लंबाई और 35 फुट चौड़ाई का एक चार मंज़िला शैड बनाया। उन्होंने उस समय एक लोन लेकर 1000 पक्षियों पर 70000 रूपये का निवेश किया, जिस पर उन्हें सरकार की तरफ से 25 प्रतिशत की सब्सिडी मिली। उसके बाद आज तक उन्होंने सरकार से कोई लोन और कोई सब्सिडी नहीं ली।

1991 में उनकी शादी हुई और उनका पोल्टरी उद्यम अच्छे से शुरू हुआ। उन्होंने हैचरी में भी निवेश किया। धीरे-धीरे समय के साथ जब उनका पुत्र – मनजिंदर सिंह बड़ा हुआ तब उसने अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाने का फैसला किया। उसने अपनी 12वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और अपने पिता के व्यापार को संभाला। पोल्टरी व्यापार में मनजिंदर के शामिल होने का मतलब ये नहीं था कि स्वर्ण सिंह ने रिटायरमेंट ले ली। स्वर्ण सिंह पोल्टरी फार्म का काम संभालने के लिए हमेशा अपने बेटे के साथ खड़े रहे और उसका मार्गदर्शन करते रहे।

स्वर्ण सिंह – “अपने परिवार के समर्थन के बिना मैं अपने जीवन में कभी इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता। पोल्टरी एक अच्छा अनुभव है और मैं पोल्टरी से महीने में पचास से साठ हज़ार तक का अच्छा मुनाफा कमा लेता हूं। एक किसान आसानी से पोल्टरी फार्मिंग को अपना सकता है और अच्छा लाभ कमा सकता है।”

वर्तमान में मनजिंदर सिंह (27वर्षीय) अपने पिता और 2 श्रमिकों के साथ पूरे फार्म को संभालते हैं। वे अपनी ज़मीन पर सब्जियां, गेहूं, मक्की, धान और चारा स्वंय उगाते हैं। चारे की फसल से वे चूज़ों के लिए फीड तैयार करते हैं और कई बार बाज़ार से चूज़ों के लिए “संपूर्ण” नाम का ब्रांड चिक फीड खरीदते हैं। उनके पास घर के प्रयोग के लिए 2 भैंसे भी हैं।

मनजिंदर – “हानि और कुदरती आफतों से बचने के लिए हम चूज़ों और शैड का उचित ध्यान रखते हैं। शैड में किसी भी किस्म की बीमारी से बचने के लिए हम समय-समय पर नए पक्षियों का टीकाकरण करवाते हैं। हम जैव सुरक्षा का भी ध्यान रखते हैं क्योंकि यही वह मुख्य कारण है जिसपर पोल्टरी फार्मिंग आधारित है।”

(मशीनरी) यंत्र:
वर्तमान में सहोता पोल्टरी फार्म के पास 3 चिक्स इनक्यूबेटर है। एक हाथों द्वारा निर्मित मशीनरी है जिसे स्वर्ण सिह ने शाहकोट से स्वंय डिज़ाइन किया है। वे चूज़ों के लिए प्रतिदिन 2.5 क्विंटल फीड तैयार करते हैं। उनके पास 2 जेनरेटर, फीड्रज़ और ड्रिंकर्ज़ भी हैं।

मार्किटिंग और बिज़नेस

मार्किटिंग उनके लिए मुश्किल नहीं है। वे प्रत्येक चार दिनों के बाद 4000 पक्षियों को बेचते हैं। एक पक्षी वार्षिक 200 अंडे देता है और वे एक साल बाद हर अंडा देने वाले पक्षी को स्थानांतरित करते हैं। प्रति चूज़े का बिक्री रेट 25 रूपये है जो कि उन्हें पर्याप्त लाभ देता है।

भविष्य की योजनाएं:

वे भविष्य में पशु पालन शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
“आप कृषि के क्षेत्र में जो भी कर रहे हैं उसे पूरे समर्पण के साथ करें क्योंकि मेहनत हमेशा अच्छा रंग लाती है।”

भगत सिंह

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दो भाइयों की मिलकर की गई कोशिश ने उनके पिता के छोटे से पोल्टरी फार्म को लाखों के कारोबार में बदल दिय: जगजीत पोल्टरी ब्रीडिंग फार्म

एक व्यक्ति द्वारा 15000 रूपये से एक कारोबार शुरू हुआ उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि भविष्य में उनके बेटे इस कारोबार को लाखों का बना देंगे। ऐसा कहा जाता है कि हर बड़ी चीज़ की छोटे से ही शुरूआत होती है। ये दो बेटों की कहानी है जो शिक्षा के बाद अपने पिता के नक्शे कदम पर चले और कारोबार को अधिक मात्रा में विस्तारित किया।

सरदार भगत सिंह पंजाब के तरनतारन शहर के पट्टी शहर के एक छोटे से किसान थे, उन्होंने 1962 में केवल 400 मुर्गियों के साथ एक पोल्टरी फार्म का कारोबार शुरू किया। उन्होंने यह कारोबार उस समय शुरू किया जब इस कारोबार के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। उन्होंने अपने पोल्टरी फार्म को जगजीत पोल्टरी फार्म का नाम दिया, ‘जग’ उनकी पत्नी का नाम (जगदीश) से लिया गया और ‘जीत’ उनका अपना उपनाम था। भगत सिंह ने पोल्टरी व्यवसाय शुरू किया क्योंकि यह उनका सपना भी था और उनकी ऐसा करने में रूचि भी थी, लेकिन उन्होंने अपने शब्दों और व्यवसायों को कभी अपने बच्चों पर थोपा नहीं। उनके दो बेटे हैं- मनदीप सिंह और रमनदीप सिंह । दोनों को अपनी प्राथमिक और उच्च शिक्षा के लिए स्कूल और कॉलेज भेज दिया गया ताकि वे अपने करयिर में जो करना चाहें, करें। लेकिन दोनों बेटों ने अपने पिता के व्यवसाय में शामिल होने और इसे ओर बढ़ाने का फैसला किया।

दोनों भाइयों, मनदीप सिंह और रमनदीप सिंह ने 2012 में अपने पिता की मौत के तुरंत बाद कारोबार को संभाल लिया और धीरे धीरे समय पर अपने फार्म को 3.5 एकड़ क्षेत्र में बढ़ा दिया। पहले सिर्फ पोल्टरी फार्म था, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने प्रजनन (ब्रीडिंग) का काम भी शुरू किया और उन्होने अपने फार्म को जगजीत पोल्ट्री प्रजनन फार्म का नाम दिया, लेकिन गांव के सभी लोग उस समय से अब तक भगत सिंह के नाम पर ही पोल्टरी फार्म को जानते थे। फार्म के नाम में ज्यादा अंतर नहीं है यह दोनों भाइयों का प्रयास है जिन्होंने पूरे पोल्टरी व्यवसाय का नक्शा ही बदल दिया।

उनके पास प्रजनन के लिए 1.5 एकड़ ज़मीन और व्यापारिक उद्देश्य के लिए 2 एकड़ ज़मीन है। आज उनके प्रजनन फार्म में 12000 मुर्गे और व्यापारिक फार्म में 18-20,000 मुर्गियां हैं।

अपने फार्म के कामकाज को आसान और स्वचालित बनाने के लिए धीरे-धीरे उन्होंने 8 मशीनों को स्थापित किया और प्रत्येक मशीन की लागत लगभग 3 लाख थी। उन्होंने लगभग 25 मज़दूरों को अपने फार्म और मशीनों का प्रबंधन करने के लिए काम पर लगाया। मनदीप सिंह और रमनदीप, विशेष रूप से पोल्टरी फार्म की सफाई का ध्यान रखते हैं। यहां तक कि मनदीप सिंह के बेटे डॉ. जसदीप सिंह भी पोल्टरी फार्म कारोबार से जुड़े हैं। पशु चिकित्सक के रूप में, जसदीप सिंह चिकन के स्वास्थ्य की व्यक्तिगत देखभाल करते हैं, वे ये सुनिश्चित करते हैं कि मुर्गी उत्पादों की अच्छी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए हर चिकन स्वस्थ और बीमारी रहित हो। वे आवश्यकतानुसार टीकाकरण देते हैं और बीमार या बीमारी के लक्षण वाले चिकन को अलग करते हैं।

7 साल पहले दो भाइयों द्वारा किए गए संयुक्त प्रयास ने छोटे पोल्टरी खेत के व्यवसाय मुल्य को लाखों में बदल दिया। आज वे अपने पोल्टरी उत्पादों को पंजाब और उत्तर प्रदेश के आस पास सप्लाई करते हैं। जो लोग अपना स्वंय का पोल्टरी फार्म खोलना चाहते हैं वे उन लोगों को ट्रेनिंग और निर्देशित भी करते हैं और डॉ. जसदीप सिंह मुर्गियों के खाद्य और टीकाकरण के बारे में बताकर लोगों की मदद भी करते हैं ताकि वे मुर्गी उत्पादों की गुणवत्ता को बनाए रख सकें। भविष्य में दोनों भाई पुत्र अपने कारोबार में वृद्धि करने और अपने पोल्टरी फार्म उत्पादों को आगे के क्षेत्रों में उपलब्ध करवाने की योजना बना रहे हैं।

भगत सिंह व् उनके पुत्रों द्वारा दिया गया संदेश
आजकल किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें यह सोचना चाहिए कि उनके बाद उनके परिवार का क्या होगा, उनका परिवार उन पर निर्भर है और यह अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाने का कोई तरीका नहीं है। किसानों को यह सोचना चाहिए कि कैसे वे अपने कौशल का उपयोग करें और अपने कामों की प्रक्रिया कैसे करें ताकि वो आने वाले समय में मुनाफा दे सकें। अब, किसानों को बुद्धिमानी से खेती शुरू करनी चाहिए और अपनी फसलों का सही मूल्य प्राप्त करने के लिए उत्पादों को स्वंय बेचना चाहिए।”