संतवीर सिंह बाजवा

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जानिये कैसे एक वकील पॉलीहाउस में फूलों की खेती करके कृषि को एक सफल उद्यम बना रहा है

आपके पास केवल ज़मीन का होना भारी कर्ज़े और रासायनिक खेती के दुष्चक्र से बचने का एकमात्र साधन नहीं है क्योंकि यह दिन प्रतिदिन किसानों को अपाहिज बना रहा है। किसान को एक ऐसा व्यक्ति माना जाता है जिसे भविष्य के परिणामों को ध्यान में रखकर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और यदि भविष्य के परिणामों में से कोई भी विफल रहता है तो किसान को अन्य विकल्पों के साथ तैयार भी रहना पड़ता है। और केवल वे किसान जो आधुनिक तकनीकों, आदर्श मंडीकरण रणनीतियों और निश्चित रूप से कड़ी मेहनत की मदद से अपने आप को टूटने नहीं देते और खेती के सही तरीके को समझते हैं, सिर्फ उनकी अगली पीढ़ी ही इस पेशे को खुशी से अपनाती है।
यह कहानी है होशियारपुर स्थित वकील संतवीर सिंह बाजवा की जो बागबानी के क्षेत्र में अपने पिता जतिंदर सिंह लल्ली बाजवा की सफलता को देखने के बाद सफल युवा किसान बने। अपने पिता के समान उन्होंने पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने का फैसला किया और इस उद्यम को सफल भी बनाया।

संतवीर सिंह बाजवा अपने विचार साझा करते हुए — वर्तमान में अगर हम आज के युवाओं को देखे तो हमें एक स्पष्ट चीज़ का पता चल सकता है कि या तो आजकल के नौजवान विदेश जा रहे हैं या फिर वे खेती के अलावा कोई और पेशे का चयन कर रहे हैं और इसके पीछे का मुख्य कारण कृषि में कोई निश्चित आय ना होना है, और तो और इसमें नुकसान का डर भी रहता है। इसके अलावा मौसम और सरकारी योजना भी किसान को ढंग से सहारा नहीं दे पाता।

अपने पिता के समान कौशल जिन्होंने विवधीकरण को सफलतापूर्वक अपनाया और महलांवाली गांव में एक सुंदर फलों के बाग की स्थापना की , संतवीर सिंह ने भी अपना फूलों की खेती के पॉलीहाउस की स्थापना की जहां पर उन्होंने जरबेरा की खेती शुरू की। सजावटी फूलों के बाजार की मांग के बारे में अवगत होने के कारण, संतवीर ने गुलाब ओर कारनेशन की खेती भी शुरू कर दी जिससे उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त हुआ।

पॉलीहाउस में खेती करने के अपने अनुभव से, मैं अन्य किसानों के साथ एक महत्तवपूर्ण जानकारी साझा करना चाहता हूं कि पॉलीहाउस में काश्त की फसलों और उचित कृषि तकनीकों की देखभाल करने की आवश्यकता होती है, केवल तभी आप अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से फूलों के विशेषज्ञयों और प्रगतिशील किसानों से परामर्श करता हूं और अपना सर्वश्रेष्ठ कोशिश देन के लिए इंटरनेट से भी मदद लेता हूं। — संतवीर सिंह बाजवा।

अब भी संतवीर सिंह बाजवा अपने पिता की नई मंडीकरण रणनीतियों से मदद कर रहे हैं और फलों की खेती से भी अच्छा लाभ कमा रहे हैं।
संदेश
यदि किसान कृषि तकनीकों से अच्छी प्रकार से अवगत हैं तो पॉलीहाउस में खेती करना एक बहुत ही लाभदायक उद्यम है। युवा किसानों को पॉलीहाउस में खेती करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में उनके लिए बहुत संभावनाएं हैं और वे इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं 

ननिल चौधरी

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मिलिये अगली पीढ़ी के समृद्ध किसान से जो उत्तर प्रदेश में स्थानीय रोज़गार को बढ़ावा दे रहा है

ननिल चौधरी के फार्म का दृश्य सपनों वाली सुगंधित दुनिया में किसी को भी उड़ा देगा। खैर आप सोच रहे होंगे कि वहां फसल, गायें, भैंसों, धूल और गोबर के अलावा और क्या हो सकता है? तो आप गलत हैं क्योंकि ननिल चौधरी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के एक ऐसे उभरते किसान हैं जो फूलों की खेती करते हैं और उनके फार्म में आपको केवल जरबेरा, रजनीगंधा, ग्लेडियोलस और कई अन्य रंग बिरंगे फूल देखने को मिलेंगे।

पारंपरिक खेती की पृष्ठभूमि से आने से, ननिल चौधरी की कृषि यात्रा अन्य किसानों की तरह गेहूं, बाजरा, आलू, जौं और सरसों की खेती के साथ शुरू हुई जो कि 2014-15 तक रही । यद्यपि उन्होंने एक पारंपरिक किसान की तरह शुरूआत की, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने मन में उस रूढ़िवादी सोच को सीमित नहीं रखा और वर्ष 2015—16 में उन्होंने फूलों की खेती के क्षेत्र में प्रवेश किया।

ननिल चौधरी को अलीगढ़ जिले में इग्लास तहसील के पास पॉलीहाउस में जरबेरा के बागान के बारे में पता चला। कुछ पूछताछ करने के बाद उन्हें पता चला कि इसे स्थापित करने के लिए बड़ी भूमि की आवश्यकता है। चूंकि उनकी मां श्रीमती कृष्णा कुमारी के पास काफी ज़मीन थी इसलिए उनके नाम पर परियोजना मंजूर की गई और इसी तरह कृष्णा बायोटेक की स्थापना हुई।

“जलवायु नियंत्रित पॉलीहाउस की स्थापना के लिए मैंने लगभग 1.10 करोड़ का निवेश किया जिनमें से 75 लाख रूपये RBL बैंक लिमिटेड द्वारा दिए गए और यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी मदद थी।”

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए रोज़गार पैदा करने के उद्देश्य से वे फूलों की खेती की तरफ बढ़े और आज उनके अपने दो जलवायु नियंत्रित पॉलीहाउस हैं जहां पर उन्होंने 2 एकड़ में जरबेरा के 40000 पौधे लगाए हैं। पॉलीहाउस के बाहर 6 एकड़ में उन्होंने ग्लेडियोलस, 6 एकड़ में रजनीगंधा, 1 एकड़ में ब्रासिका और 3 एकड़ में गुलदाउदी के पौधे लगाए हैं।

और कैसे ये फूल ननिल चौधरी के कारोबार को मुनाफे में बदल रहे हैं:
एक जरबेरा का पौधा एक वर्ष में 25 फूल देता है जिसके फलस्वरूप 1000000 फूलों की उत्पादन संख्या में बदल जाती है और जब यह फूलों की संख्या 2.50 रूपये के हिसाब से बेची जाती है तो एक वर्ष में 20लाख की आमदन होती है। सब खर्चों की कटौती करने के बाद ननिल चौधरी को प्रति वर्ष 6—7 लाख का शुद्ध लाभ मिलता है। यह लाभ केवल जरबेरा फूल से है। इसके अलावा रजनिगंधा प्रति एकड़ 2 लाख के लगभग मुनाफा देता है। ग्लेडियोलस 1.50 लाख प्रति एकड़ के लगभग और गुलदाउदी प्रति वर्ष 3 लाख प्रति एकड़ के लगभग मुनाफा देता है।

“श्रम शुल्कों, बैंक किश्तों और अन्य इनपुट लागतों के व्यय को छोड़कर, यह फूल उत्पादन का उद्योग मुझे प्रति वर्ष लगभग 14 लाख का लाभ प्रदान कर रहा है।”

ननिल चौधरी के लिए, शुरूआत में मंडीकरण थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि दिल्ली को फूलों की डिलीवरी करना मुश्किल था, लेकिन बाद में 2017—18 में, उत्तर प्रदेश राज्य रोडवेज़ बसें फूलों के मंडीकरण का सबसे अच्छा माध्यम थी।

कुछ लोग जो ननिल चौधरी के लिए उनकी फूलों की कृषि यात्रा के दौरान खंभे की तरह उनके साथ खड़े थे उनकी मां, डॉ. माम चंद सिंह (वैज्ञानित और आई.ए आर.आई, पूसा, नई दिल्ली में संरक्षित खेती विभाग प्रमुख) और श्री कौशल कुमार (जिला बागबानी अधिकारी, अलीगढ़)।

ज्ञान प्रसार सबसे महत्तवपूर्ण बात है जिसे ननिल चौधरी हमेशा मानते हैं और उत्तर प्रदेश के इटाह, हाथरस, मेरठ और गाज़ियाबाद जिलों के विभिन्न किसानों को फूलों की खेती के बारे में बताया है।

वर्तमान में, ननिल चौधरी के फार्म में 20—22 कुशल श्रमिक हैं जो विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए प्लांटर, ड्रिप सिंचाई प्रणाली, सौर ऊर्जा सिंचाई पंप जैसे आधुनिक उपकरणों की मदद से पूरी तरह मशीनीकृत फार्म का काम करते हैं।

भविष्य के लिए ननिल चौधरी के पास कुछ योजनाएं हैं:
• रजनीगंधा से आवश्यक तेल निकालने की संभावना का पता लगाने की योजना
• उत्तरांचल में बड़े पैमाने पर फूलों की खेती का विस्तार करना।
• व्यापारिक खेती के लिए ग्लेडियोलस कंद,रजनिगंधा कंद और गुलदाउदी नर्सरी का बड़े पैमाने पर उत्पादन।

फूल उत्पादन के उद्यम द्वारा ननिल चौधरी ने अपने क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखा है, लोगों को खेती, कटाई, पैकिंग और फूलों के परिवहन के कारण नियमित आय मिलती है, उन लोगों की आय उनके चेहरे पर वास्तविक खुशी दिखाती है … ननिल चौधरी

फूलों की खेती के क्षेत्र में जबरदस्त प्रयास करने के लिए ननिल चौधरी को सम्मानित किया गया है-
• 2016—17 में विभागीय कमिश्नर, अलीगढ़ द्वारा प्रगतिशील किसान पुरस्कार प्राप्त हुआ।
• दूरदर्शन, दिल्ली द्वारा कृष्णा बायोटेक फार्म पर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार की गई थी और 22 नवंबर 2016 को कृषि दर्शन कार्यक्रम में प्रसारित की गई थी।
• बाद में वर्ष 2017—18 में, दूरदर्शन ने एक और डॉक्यूमेंट्री तैयार की और 27 दिसंबर 2017 को डी डी कृषि दर्शन पर प्रसारित की गई।
ननिल चौधरी के दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से कृष्णा बायोटेक ने फूलों की खेती का विसतार किया जिससे उनके परिवार और फार्म में काम करने वाले लोगों के लिए एक गुणवत्ता मानिक निर्धारित हुआ।

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”