उमा सैनी

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उमा सैनी – एक ऐसी महिला जो धरती को एक बेहतर जगह बनाने के लिए अपशिष्ट पदार्थ को सॉयल फूड में बदलने की क्रांति ला रही हैं

कई वर्षों से रसायनों, खादों और ज़हरीले अवशेष पदार्थों से हमारी धरती का उपजाऊपन खराब किया जा रहा है और उसे दूषित भी किया जा रहा है। इस स्थिति को समझते हुए लुधियाना की महिला उद्यमी और एग्रीकेयर ऑरगैनिक फार्मस की मेनेजिंग डायरेक्टर उमा सैनी ने सॉयल फूड तैयार करने की पहल करने का निर्णय लिया जो कि पिछले दशकों में खोए मिट्टी के सभी पोषक तत्वों को फिर से हासिल करने में मदद कर सकते हैं। प्रकृति में योगदान करने के अलावा, ये महिला सशिक्तकरण के क्षेत्र में भी एक सशक्त नायिका की भूमिका निभा रही हैं। अपनी गतिशीलता के साथ वे पृथ्वी को बेहतर स्थान बना रही हैं और इसे भविष्य में भी जारी रखेंगी…

क्या आपने कभी कल्पना की है कि धरती पर जीवन क्या होगा जब कोई भी व्यर्थ पदार्थ विघटित नहीं होगा और वह वहीं ज़मीन पर पड़ा रहेगा!

इसके बारे में सोचकर रूह ही कांप उठती है और इस स्थिति के बारे में सोचकर आपका ध्यान मिट्टी के स्वास्थ्य पर जायेगा। मिट्टी को एक महत्तवपूर्ण तत्व माना जाता है क्योंकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लोग इस पर निर्भर रहते हैं। हरित क्रांति और शहरीकरण मिट्टी की गिरावट के दो प्रमुख कारक है और फिर भी किसान, बड़ी कीटनाशक कंपनियां और अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसे समझने में असमर्थ हैं।

रसायनों के अंतहीन उपयोग ने उमा सैनी को जैविक पद्धतियों की तरफ खींचा। यह सब शुरू हुआ 2005 में जब उमा सैनी ने जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया। खैर, जैविक खेती बहुत आसान लगती है लेकिन जब इसे करने की बात आती है तो कई विशेषज्ञों को यह भी नहीं पता होता कि कहां से शुरू करना है और इसे कैसे उपयोगी बनाना है।

“हालांकि, मैंने बड़े स्तर पर जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया लेकिन अच्छी खाद अच्छी मात्रा में कहां से प्राप्त की जाये यह सबसे बड़ी बाधा थी। इसलिए मैंने अपना वर्मीकंपोस्ट प्लांट स्थापित करने का निर्णय लिया।”

शहर के मध्य में जैविक फार्म और वर्मीकंपोस्ट की स्थापना लगभग असंभव थी, इसलिए उमा सैनी ने गांवों में छोटी ज़मीनों में निवेश करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे एग्रीकेयर ब्रांड वास्तविकता में आया। आज, उत्तरी भारत के विभिन्न हिस्सों में एग्रीकेयर के वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट और ऑरगैनिक फार्म की कई युनिट्स हैं।

“गांव के इलाके में ज़मीन खरीदना भी बहुत मुश्किल था लेकिन समय के साथ वे सारी मुश्किलें खत्म हो गई हैं। ग्रामीण लोग हमसे कई सवाल पूछते थे जैसे यहां ज़मीन खरीदने का आपका क्या मकसद है, क्या आप हमारे क्षेत्र को प्रदूषित कर देंगे आदि…”

एग्रीकेयर की उत्पादन युनिट्स में से एक , लुधियाना के छोटे से गांव सिधवां कलां में स्थापित है जहां उमा सैनी ने महिलाओं को कार्यकर्त्ता के रूप में रखा हुआ है।

“मेरा मानना है कि, एक महिला हमारे समाज में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए महिला सशिक्तकरण के उद्देश्य से, मैंने सिधवां कलां गांव और अन्य फार्म में गांव की काफी महिलाओं को नियुक्त किया है।”

महिला सशिक्तकरण की हिमायती के अलावा, उमा सैनी एक महान सलाहकार भी हैं। वे कॉलेज के छात्रों, विशेष रूप से छात्राओं को जैविक खेती, वर्मीकंपोस्टिंग और कृषि व्यवसाय के इस विकसित क्षेत्र के बारे में जागरूक करने के लिए आमंत्रित करती हैं। युवा इच्छुक महिलाओं के लिए भी उमा सैनी फ्री ट्रेनिंग सैशन आयोजित करती हैं।

“छात्र जो एग्रीकल्चर में बी.एस सी. कर रहे हैं उनके लिए कृषि के क्षेत्र में बड़ा अवसर है और विशेष रूप से उन्हें जागरूक करने के लिए मैं और मेरे पति फ्री ट्रेनिंग प्रदान करते हैं। विभिन्न कॉलेजों में अतिथि के तौर पर लैक्चर देते हैं।”

उमा सैनी ने लुधियाना के वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट में एक वर्मी हैचरी भी तैयार की है जहां वे केंचुएं के बीज तैयार करती हैं। वर्मी हैचरी एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। हम सभी जानते हैं कि केंचुएं मिट्टी को खनिज और पोषक तत्वों से समृद्ध बनाने में असली कार्यकर्त्ता हैं। इसलिए इस युनिट में जिसे Eisenia fetida या लाल कृमि (धरती कृमि की प्रजाति) के रूप में जाना जाता है को जैविक पदार्थों को गलाने के लिए रखा जाता है और इसे आगे की बिक्री के लिए तैयार किया जाता है।

एग्रीकेयर की अधिकांश वर्मीकंपोस्टिंग युनिट्स पूरी तरह से स्वचालित है, जिससे उत्पादन में अच्छी बढ़ोतरी हो रही है और इससे अच्छी बिक्री हो सकती है। इसके अलावा, उमा सैनी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में 700 से अधिक किसानों को जैविक खेती में बदलने के लिए कॉन्ट्रेक्टिंग खेती के अंदर अपने साथ जोड़ा है।

“जैविक खेती और वर्मीकंपोस्टिंग के कॉन्ट्रैक्ट से हमारा काम हो रहा है, लेकिन इसके साथ ही समाज के रोजगार और स्वस्थ स्वभाव के लाभ भी मिल रहे हैं।”

आज जैविक खाद के ब्रांड TATA जैसे प्रमुख ब्रांडों को पछाड़ कर, उत्तर भारत में एग्रीकेयर – सॉयल फूड वर्मीकंपोस्ट का सबसे बड़ा विक्रेता बन गया है। वर्तमान में हिमाचल और कश्मीर सॉयल फूड की प्रमुख मार्किट हैं। एग्रीकेयर वर्मीकंपोस्ट-सॉयल फूड के उत्पादन में नेस्ले, हिंदुस्तान लीवर, कैडबरी आदि जैसी बड़ी कंपनियों के खाद्यान अपशिष्ट प्रयोग किए जाते हैं। बड़ी-बड़ी मल्टी नेशनल कंपनियों के खाद्यान अपशिष्ट का इस्तेमाल करके एग्रीकेयर पर्यावरण को स्वस्थ बनाने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

जल्दी ही उमा सैनी और उनके पति श्री वी.के. सैनी लुधियाना में ताजी जैविक सब्जियों और फलों के लिए एक नया जैविक ब्रांड लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं जहां वे अपने उत्पादों को सीधे ही घर घर जाकर ग्राहकों तक पहुंचाएगे।

“जैविक की तरफ जाना समय की आवश्यकता है, लोगों को अपने ज़मीनी स्तर से सीखना होगा सिर्फ तभी वे प्रकृति के साथ एकता बनाए रखते हुए कृषि के क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं।”

प्रकृति के लिए काम करने की उमा सैनी की अनन्त भावना यह दर्शाती है कि प्रकृति अनुरूप काम करने की कोई सीमा नहीं है। इसके अलावा, उमा सैनी के बच्चे – बेटी और बेटा दोनों ही अपने माता – पिता के नक्शेकदम पर चलने में रूचि रखते हैं और इस क्षेत्र में काम करने के लिए वे उत्सुकता से कृषि क्षेत्र की पढ़ाई कर रहे हैं।

संदेश
“आजकल, कई बच्चे कृषि क्षेत्र में बी.एस सी. का चयन कर रहे हैं लेकिन जब वे अपनी डिग्री पूरी कर लेते हैं, उस समय उन्हें केवल किताबी ज्ञान होता है और वे उससे संतुष्ट होते हैं। लेकिन कृषि क्षेत्र में सफल होने के लिए यह काफी नहीं है जब तक कि वे मिट्टी में अपने हाथ नहीं डालते। प्रायोगिक ज्ञान बहुत आवश्यक है और युवाओं को यह समझना होगा और उसके अनुसार ही प्रगति होगी।”

अमरजीत सिंह

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किसान जंकश्न- एक व्यक्ति जिसने अपनी जॉब को छोड़ दिया और खेती विभिन्नता के माध्यम से खेतीप्रेन्योर बन गए

आज कल हर किसी का एक सम्माननीय नौकरी के द्वारा अच्छे पेशे का सपना है और हो भी क्यों ना। हमें हमेशा यह बताया गया है कि सेवा क्षेत्र में एक अच्छी नौकरी करके ही जीवन में खुशी और संतुष्टि प्राप्त की जाती है। बहुत कम लोग हैं जो खुद को मिट्टी में रखना चाहते हैं और इससे आजीविका कमाना चाहते हैं। ऐसे एक इंसान हैं जिन्होंने अपनी नौकरी को छोड़कर मिट्टी को चुना और सफलतापूर्वक कुदरती खेती कर रहे हैं।

श्री अमरजीत सिंह एक खेतीप्रेन्योर हैं, जो सक्रिय रूप से जैविक खेती और डेयरी फार्मिंग के काम में शामिल हैं और एक रेस्टोरेंट भी चला रहे हैं। जिसका नाम किसान जंकश्न है, जो घड़ुंआ में स्थित है। उन्होंने 2007 में खेती करनी शुरू की। उस समय उनके दिमाग में कोई ठोस योजना नहीं थी, बस उनके पास अपने जीवन में कुछ करने का विश्वास था।

खेती करने से पहले अमरजीत सिंह ट्रेनिंग के लिए पी.ए.यू. गए और विभिन्न राज्यों का भी दौरा किया जहां पर उन्होंने किसानों को बिना रासायनों का प्रयोग किए खेती करते देखा। वे हल्दी की खेती और प्रोसैसिंग की ट्रेनिंग के लिए कालीकट और केरला भी गए।

अपने राज्य के दौरे और प्रशिक्षण से उन्हें पता चला कि खाद्य पदार्थों में बहुत मिलावट होती है जो कि हम रोज़ उपभोग करते हैं और इसके बाद उन्होंने कुदरती तरीके से खेती करने का निर्णय लिया ताकि वह बिना किसी रसायनों के खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर सकें। पिछले दो वर्षों से वे अपने खेत में खाद और कीटनाशी का प्रयोग किए बिना जैविक खाद का प्रयोग करके कुदरती खेती कर रहे हैं। खेती के प्रति उनका इतना जुनून है कि उनके पास केवल 1.5 एकड़ ज़मीन हैं और उसी में ही वेगन्ना, गेहूं, धान, हल्दी, आम, तरबूज, मसाले, हर्बल पौधे और अन्य मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं।

पी.ए.यू. में डॉ. रमनदीप सिंह का एक खास व्यक्तित्व है जिनसे अमरजीत सिंह प्रेरित हुए और अपने जीवन को एक नया मोड़ देने का फैसला किया। डॉ. रमनदीप सिंह ने उन्हें ऑन फार्म मार्किट का विचार दिया जो कि किसान जंकश्न पर आधारित था। आज अमरजीत सिंह किसान जंकश्न चला रहे हैं जो कि उनके फार्म के साथ चंडीगढ़-लुधियाना राजमार्ग पर स्थित है। किसान जंकश्न का मुख्य मकसद किसानों को उनके प्रोसेस किए गए उत्पादों को उसके माध्यम से बाज़ार तक पहुंचाने में मदद करना है। उन्होंने 2007 में इसे शुरू किया और खुद के ऑन फार्म मार्किट की स्थापना के लिए उन्हें 9 वर्ष लग गए। पिछले साल ही उन्होंने उसी जगह पर किसान जंकश्न फार्म से फॉर्क तक नाम का रेस्टोरेंट खोला है।

अमरजीत सिंह सिर्फ 10वीं पास है और आज 45 वर्ष की उम्र में आकर उन्हें पता चला है कि उन्हें क्या करना है। इसलिए उनके जैसे अन्य किसानों के मार्गदर्शन के लिए उन्होंने घड़ुआं में श्री धन्ना भगत किसान क्लब नामक ग्रुप बनाया है। वे इस ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं और खेती के अलावा वे ग्रुप मीटिंग के लिए हमेशा समय निकालते हैं। उनके ग्रुप में कुल 18 सदस्य हैं और उनके ग्रुप का मुख्य कार्य बीजों के बारे में चर्चा करना है कि किस्म का बीज खरीदना चाहिए और प्रयोग करना चाहिए, आधुनिक तरीके से खेती को कैसे करें आदि। उन्होंने ग्रुप के नाम पर गेहूं की बिजाई, कटाई के लिए और अन्य प्रकार की मशीनें खरीदी हैं। इनका प्रयोग सभी ग्रुप के मैंबर कर सकते हैं और अपने गांव के अन्य किसानों को कम और उचित कीमतों पर उधार भी दे सकते हैं।

अमरजीत सिंह का दूसरा सबसे महत्तवपूर्ण पेशा डेयरी फार्मिंग का है उनके पास कुल 8 भैंसे हैं और जो उनसे दूध प्राप्त होता है वे उनसे दूध, पनीर, खोया, मक्खन, लस्सी आदि बनाते हैं। वे सभी डेयरी उत्पादों को अपने ऑन फॉर्म मार्किट किसान जंकश्न में बेचते हैं। उनमें से एक प्रसिद्ध व्यंजन है जो उनमें रेस्टोरेंट में बिकती है वह है खोया-बर्फी जो कि खोया और गुड़ का प्रयोग करके बनाई होती है।

उनके रेस्टोरेंट में ताजा और पौष्टिक भोजन, खुला हवादार, उचित कूलिंग सिस्टम और ऑन रोड फार्म मार्किट है जो ग्राहकों को आकर्षित करती हैं। उन्होंने ग्रीन नेट और ईंटों का प्रयोग करके रेस्टोरेंट की दीवारें बनाई हैं जो रेस्टोरेंट के अंदर हवा का उचित वेंटिलेशन सुनिश्चित करते हैं।

वर्तमान प्रवृत्ति और कृषि प्रथाओं पर चर्चा करने के बाद उन्होंने हमें अपने विचारों के बारे में बताया-

लोगों की बहुत गलत मानसिकता है, उन्हें लगता है कि खेती में कोई लाभ नहीं है और उन्हें अपनी आजीविका के लिए खेती नहीं करनी चाहिए। पर यह सच नहीं है। बच्चों के मन में खेती के प्रति गलत सोच और गलत विचारों को भरा जाता है कि केवल अशिक्षित और अनपढ़ लोग ही खेती करते हैं और इस वजह से युवा पीढ़ी, खेती को एक जर्जर और अपमानपूर्ण पेशे के रूप में देखती है।आज कल बच्चे 10000 रूपये की नौकरी के पीछे दौड़ते हैं और यह चीज़ उन्हें उनकी ज़िंदगी में निराश कर देती है। अपने बच्चों के दिमाग में खेती के प्रति गलत विचार भरने से अच्छा है कि उन्हें खेती के उपयोग और खेती करने से होने वाले लाभों के बारे में बताया जाये। खेतीबाड़ी एक विभिन्नतापूर्ण क्षेत्र है और यदि एक बच्चा खेतीबाड़ी को चुनता है तो वह अपने भविष्य में चमत्कार कर सकता है।”

अमरजीत सिंह जी ने अपने नौकरी छोड़ने और खेती शुरू करने का जोखिम उठाया और खेतीबाड़ी में अपनी कड़ी मेहनत और जुनून की कारण उन्होंने इस जोखिम का अच्छे से भुगतान किया है। किसान जंकश्न हब के पीछे अमरजीत सिंह के मुख्य उद्देश्य हैं।

• किसानों को अपनी दुकान के माध्यम से अपने उत्पाद बेचने में मदद करना।

• ताजा और रसायन मुक्त सब्जियां और फल उगाना।

• ग्राहकों को ताजा, वास्तविक और कुदरती खाद्य उत्पाद उपलब्ध करवाना।

• रेस्टोरेंट में ताजा उपज का उपयोग करना और ग्राहकों को स्वस्थ और ताजा भोजन प्रदान करना।

• किसानों को प्रोसैस, ब्रांडिंग और स्वंय उत्पादन करने के लिए गाइड करना।

खैर, यह अंत नहीं है, वे आई ए एस की परीक्षा के लिए संस्थागत ट्रेनिंग भी देते हैं और निर्देशक भी उनके फार्म का दौरा करते हैं। अपने ऑन रोड फार्म मार्किट व्यापार को बढ़ाना और अन्य किसानों को खेतीबाड़ी के बारे में बताना कि कैसे वे खेती से लाभ और मुनाफा कमा सकते हैं, उनके भविष्य की योजनाएं हैं। खेतीबाड़ी के क्षेत्र में सहायता के लिए आने वाले हर किसान का वे हमेशा स्वागत करते हैं।

अमरजीत सिंह द्वारा संदेश
कृषि क्षेत्र प्रमुख कठिनाइयों से गुजर रहा है और किसान हमेशा अपने अधिकारों के बारे में बात करते हैं ना कि अपनी जिम्मेदारियों के बारे में। सरकार हर बार किसानों की मदद के लिए आगे नहीं आयेगी। किसान को आगे आना चाहिए और अपनी मदद स्वंय करनी चाहिए। पी ए यू में 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें खेत की तैयारी से लेकर बिजाई और उत्पाद की मार्किटिंग के बारे में बताया जाता है। इसलिए किसान यदि खेतीबाड़ी से अच्छी आजीविका प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें अपने कंधों पर जिम्मेदारी लेनी होगी।

श्री कट्टा रामकृष्ण

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जानिये कैसे कट्टा रामकृष्ण ने उच्च घनत्व में रोपाई की तकनीक से कपास की खेती को और दिलचस्प बनाया

कट्टा रामकृष्ण आंध्र प्रदेश राज्य के प्रकाशम जिले में नागुलूप्पलडु के नज़दीक ओबन्न पलेम गांव के एक प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों के सुझाव अनुसार अपने कपास के खेत में उच्च घनत्व रोपाई तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया जिसके परिणामस्वरूप बेहतर उत्पादकता के साथ उच्च पैदावार प्राप्त की।

कट्टा रामकृष्ण की एक छोटे से क्षेत्र में अधिक पौधों को लगाने के लिए इस अभिनव पहल ने अंतत: उपज में वृद्धि की। इस कदम से उन्होंने 10 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन किया जिसने उन्हें भारतीय कृषि परिषद से राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करवाई और उन्हें 2013 में “बाबू जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

बाद में, जिला कृषि सलाहकार और ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलोजी सेंटर के मार्गदर्शन से, कट्टा रामकृष्ण ने एक एकड़ में 12500 पौधे लगाए और इसे अपने 5 एकड़ प्लॉट में लागू किया और एक एकड़ से 22 क्विंटल उपज प्राप्त की।

“मेरे द्वारा निवेश की गई हर राशि के लिए, मुझे बदले में लाभ के बराबर राशि मिली”

— कट्टा रामकृष्ण ने गर्व से अपना पुरस्कार दिखाकर कहा जो उन्हें नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन से प्राप्त किया।

“सामान्यत: एक किसान एक एकड़ में 8000 कपास के पौधे लगाता है और 10 से 15 क्विंटल उपज प्राप्त करता है लेकिन वे नहीं जानते कि पौधे की घनता में वृद्धि कपास की उपज में वृद्धि कर सकती है”

— डी ओ टी सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक वरप्रसाद राव ने कहा।

सफेद सोने की अच्छी उत्पादकता से उत्साहित होकर कट्टा रामकृष्ण ने कहा कि

– “आने वाले समय में मैं 16000 पौधे प्रति एकड़ में लगाकर 25 से 20 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकता हूं।”

उपलब्धियां

• उन्हें विभिन्न राज्यों और राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है।

• श्री रामकृष्ण ने कपास की सघन रोपाई अपनाई जिसमें 90 सैं.मी. x 30 सैं.मी. का फासला रखा (90 सैं.मी. x 45 सैं.मी. के स्थान पर), जिसके फलस्वरूप बारानी परिस्थितियों में अच्छी उपज (45.10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर) प्राप्त हुई है।

• कपास के खेत में अधिकतम जल संरक्षण के लिए हाइड्रोजैल तकनीक कोअपनाया, जिसके फलस्वरूप उपज में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

• उन्होंने अपने खेतों में चना, उड़द, मूंग के प्रक्षेत्र परीक्षण लगाए, जिसके परिणामस्वरूप प्रकाशम जिले में किसानों के खेतों के लिए उपयुक्त प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिली।

• चने की फसल में जैविक खादों जैसे राइजोबियम और फॉस्फोबैक्टीरिया का प्रयोग किया जिससे उपज में बढ़ोत्तरी हुई।

• वे खेती के लिए जैविक खादों और हरी खाद को पहल देते हैं।

• कीटों की नियंत्रण के लिए वे नीम के बीजों का प्रयोग करते हैं।

• उन्होंने सी.टी.आर.आई कंडुकर प्रकाशम जिले के सहयोग से तंबाकू के व्यर्थ पदार्थ को अपने खेतों में खाद के रूप में प्रयोग करके नई तकनीक विकसित की।

• उन्होंने सीड कम फर्टिलाइजर को मॉडीफाई किया, ताकि बीज और खाद को मिट्टी की विभिन्न गहराई पर एक समय में बोया जा सके। यह मॉडीफाइड सीड कम फर्टीलाइज़र ड्रिल स्थानीय किसानों के लिए सभी प्रकार की दालों की बिजाई के लिए उपयुक्त है।

• उनके द्वारा तैयार की गई आविष्कारी तकनीकें और संशोधित पैकेज प्रैक्टिसिज़ स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित हैं। इसके अलावा, उनके फार्म पर होने वाले अनुभवों की अलग अलग रेडियो और सार्वजनिक मीटिंगों में चर्चा की जाती है।

• वे अपने क्षेत्र में दूसरे किसानों के लिए आदर्श मॉडल और प्रेरणा बन गए हैं।

संदेश
“फसल के बेहतर विकास के लिए किसानों को मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन करने के लिए विशेषज्ञों से अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए और इसी तरीके से वे कम रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके कीट प्रबंधन के सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।”

 

सरदार गुरमेल सिंह

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जानिये कैसे गुरमेल सिंह ने अपने आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती में लाभ कमाया

गुरमेल सिंह एक और प्रगतिशील किसान पंजाब के गाँव उच्चागाँव (लुधियाना),के रहने वाले हैं। कम जमीन होने के बावजूद भी वे पिछले 23 सालों से सब्जियों की खेती करके बहुत लाभ कमा रहे हैं। उनके पास 17.5 एकड़ जमीन है जिसमें 11 एकड़ जमीन अपनी है और 6 .5 एकड़ ठेके पर ली हुई है।

आधुनिक खेती तकनीकें ड्रिप सिंचाई, स्प्रे सिंचाई, और लेज़र लेवलर जैसे कई पावर टूल्स उनके पास हैं जो इन्हें कुशल खेती और पानी का संरक्षण करने में सहायता करते हैं। और जब बात कीटनाशक दवाइयों की आती है तो वे बहुत बुद्धिमानी से काम लेते हैं। वे सिर्फ पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की सिफारिश की गई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे अच्छी पैदावार के लिए अपने खेतों में हरी कुदरती खाद का इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी आधुनिक तकनीक जो वह सब्जियों के विकास के लिए 6 एकड़ में हल्की सुरंग का सही उपयोग कर रहे हैं। कुछ फसलों जैसे धान, गेहूं, लौंग, गोभी, तरबूज, टमाटर, बैंगन, खीरा, मटर और करेला आदि की खेती वे विशेष रूप से करते हैं। अपने कृषि के व्यवसाय को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सोया के हाइब्रिड बीज तैयार करने और अन्य सहायक गतिविधियां जैसे कि मधुमक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग आदि की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से हासिल की।

मंडीकरण
उनके अनुभव के विशाल क्षेत्र में ना सिर्फ विभिन्न फसलों को लाभदायक रूप से उगाना शामिल है, बल्कि इसी दौरान उन्होंने अपने मंडीकरण के कौशल को भी बढ़ाया है और आज उनके पास “आत्मा किसान हट (पटियाला)” पर अपना स्वंय का बिक्री आउटलेट है। उनके प्रासेसड किए उत्पादों की गुणवत्ता उनकी बिक्री को दिन प्रति दिन बढ़ा रही है। उन्होंने 2012 में ब्रांड नाम “स्मार्ट” के तहत एक सोया प्लांट भी स्थापित किया है और प्लांट के तहत वे, सोया दूध, पनीर, आटा ओर गिरियों जैसे उत्पादों को तैयार करते और बेचते हैं।

उपलब्धियां
वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और जल्दी ही उन्हें CRI पम्प अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

संदेश:
“यदि वह सेहतमंद ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो किसानों को अपने खेत में कम कीटनाशक और रसायनों का उपयोग करना चाहिए और तभी वे भविष्य में धरती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं।”