संगीता तोमर

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जैविक गुड़ बेच कर बहन-भाई को जोड़ी ने चखा सफलता का स्वाद

बेशक आपने भाई-बहनों को लड़ते हुए देखा है लेकिन क्या आपने उन्हें एक साथ बिजनेस चलाने के लिए एक साथ काम करते देखा है?
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश की संगीता तोमर जी और भूपिंदर सिंह जी भाई-बहन बिजनेस पार्टनर्स का एक आदर्श उदाहरण हैं, जिन्होंने एक साथ बिजनेस शुरू किया और अपने दृढ़ संकल्प और जुनून के साथ सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचे। संगीता जी और भूपिंदर जी का जन्म और पालन पोषण मुजफ्फरनगर में हुआ, संगीता जिनका विवाह नजदीकी गांव में हुआ था वहअपने नए परिवार के साथ अच्छी तरह से सेटल हैं। उत्तर प्रदेश राज्य की आगे वाली बेल्ट सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले गन्ने के लिए जाने जाती है, हालांकि यह फसल अन्य राज्यों में भी उगाई जाती है लेकिन गन्ना गुणवत्ता और स्वाद में अलग होता है। दोनों ने अपनी 9.5 एकड़ जमीन पर गन्ना उगाने के बारे में सोचा और 2019 में उन्होंने ‘किसान एग्रो-प्रोडक्ट्स’ नाम से गन्ना उत्पादों की प्रोसेसिंग शुरू किया।

उत्पादों की सूची

  • गुड़
  • शक़्कर
  • देसी चीनी
  • जामुन का सिरका
जैविक फलों से बने गुड़ से विभिन्न स्वादों वाले कुल 12 उत्पाद तैयार किए जाते हैं। वे फ्लेवर्ड चॉकलेट, आम, सौंफ, इलायची, अदरक, मिक्स, अजवाइन, सूखे मेवे और मूंगफली का गुड़ में शामिल करने से परहेज करते हैं।
भूपिंदर सिंह जी ने इस क्षेत्र में कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली था लेकिन उनके पूर्वज पंजाब में गन्ने की खेती करते थे। वह इस अभ्यास के साथ-साथ आज के उपभोक्ताओं की आवश्यकता को भी समझते थे जो अपने भोजन के बाद मीठे में चीनी खाना पसंद करते हैं। उन्होंने गुड़ को छोटे-छोटे टुकड़ों में बनाने के बारे में सोचा। उन्होंने गुड़ को बर्फी के रूप में बनाने के बारे में सोचा जहां 1 टुकड़े का वजन लगभग 22gm है, जोकि भोजन या दूध के साथ एक बार में खाना आसान था, जैविक था और चीनी से कहीं बढ़िया था।
“अच्छी गुणवत्ता और स्वादिष्ट गुड़ पैदा करने की तकनीक हमारे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है” भूपिंदर सिंह
संगीता जी मार्केटिंग का काम देखते हैं और प्लांट में शरीरक रूप से मौजूद न होने पर भी नियमित निरीक्षण करते हैं। स्टील-इनफ्यूज्ड मशीनरी का उपयोग प्रोसेसिंग के लिए किया जाता है जिसे किसी भी प्रदूषण से बचाने के लिए अच्छी तरह से कवर किया जाता है। क्योंकि सभी उत्पाद मशीन द्वारा बनाए जाते हैं, इसलिए स्वाद में कोई बदलाव नहीं होता है। भूपिंदर जी, संगीता जी और उनकी टीम दिल्ली के 106 सरकारी स्टोर और 37 निजी स्टोर में अपने उत्पाद पहुंचाती है।
प्रतिदिन उपयोग किए जाने वाले गन्ने की मात्रा 125 क्विंटल है और इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्हें अपने गाँव के अन्य किसानों से इस फसल को खरीदने की आवश्यकता है। गुड़ का उत्पादन आमतौर पर सितंबर से मई तक होता है लेकिन जब उपज मौसमी कारकों से प्रभावित होती है तो यह सितंबर से अप्रैल तक ही होती है।

प्रारंभिक जीवन

भूपिंदर सिंह जी 2009 में भारतीय सेना से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के रूप में सेवानिवृत्त हुए और फिर खाद्य उद्योग में अनुभव हासिल करने के लिए एक फाइव स्टार होटल में काम किया। 2019 में, उन्होंने अपने गाँव में सीखी गई पारंपरिक प्रथाओं से कुछ बड़ा करने का फैसला किया। उन्होंने अपने उत्पादन पलांट और अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए रोजगार भी पैदा किया और अन्य किसानों से गन्ना खरीदकर किसानों को आय का एक स्रोत भी प्रदान किया।
संगीता तोमर, जिन्होंने अंग्रेजी मेजर में मास्टर डिग्री पूरी की है, एक स्वतंत्र महिला हैं। उनके सभी बच्चे विदेश में बसे हुए हैं लेकिन वह अपने गांव में रह कर खेती करना चाहते हैं।

चुनौतियां

एक अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद की पहचान एक ऐसे उपभोक्ता द्वारा की जा सकती है जो जैविक उत्पाद और डुप्लिकेट उत्पाद के बीच का अंतर जानता हो। उनके गांव में ऐसे किसान हैं जो जुलाई में भी चीनी और केमिकल से गुड़ बना रहे हैं. यह किसान अपना उत्पाद कम कीमत पर बेचते हैं जो खरीदार को रासायनिक रूप से बने गुड़ की ओर आकर्षित करता है।

प्राप्तियां

  • लखनऊ में गुड़ महोत्सव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।
  • मुजफ्फरनगर के गुड़ महोत्सव में सम्मानित किया गया।

किसानों के लिए संदेश

वह चाहते हैं कि लोग खेती की ओर वापिस आएं। आज के दौर में नौकरी के लिए आवेदनकर्ता अधिक हैं लेकिन नौकरी कम। इसलिए बेरोजगार होने के बजाय अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का समय आ गया है। इसके अलावा, कृषि में विभिन्न क्षेत्र हैं जिन्हें कोई भी अपनी रुचि के अनुसार चुन सकता है।

योजनाएं

भूपिंदर सिंह जी बिचौलियों के बिना अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं को बेचना चाहते हैं, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और उपभोक्ता भी कम कीमत पर जैविक उत्पाद खरीद सकेंगे।

नरेश कुमार

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32 प्रकार के जैविक उत्पाद बनाता है हरियाणा का यह प्रगतीशील किसान

हम अपने घरों में जो चीनी खाते हैं, वह हमारे शरीर को भीतर से नष्ट कर रही है। हमारी जीवन  की अधिकांश बीमारियां जैसे हार्मोनल असंतुलन, उच्च रक्तचाप, शुगर, मोटापा किसी न किसी रूप में शुगर से संबंधित हैं। जबकि इस समस्या को एक स्वस्थ पदार्थ से हल किया जा सकता है और वह है ‘गुड़’।
नरेश कुमार एक प्रगतिशील किसान हैं जो खड़क रामजी, जिला जींद, हरियाणा में रहते हैं और जैविक गुड़, शक़्कर, चीनी और इन तीनों से बने 32 विभिन्न उत्पादों का व्यापार करते हैं।
उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा का अध्ययन करके अपने करियर की शुरुआत की, बाद में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के अपने ज्ञान के साथ उन्होंने 2006 में नशामुक्ति के लिए एक दवा विकसित की। उन्होंने उस दवा का नाम ‘वाप्सी’ रखा जिसका मतलब होता है नशे से वापिस आना। उन्होंने ‘आपनी खेती’ टीम के साथ साझा किया कि नशे से छुटकारा पाने के लिए कई एलोपैथिक दवाएं की बजाए एक आयुर्वेदिक दवा अधिक उपयोगी है। क्योंकि आयुर्वेद सबसे पुरानी विधि है और इसमें उन बीमारियों को ठीक करने की क्षमता है जो प्राचीन काल से असंभव थी।
2018 में, उन्होंने अपना ध्यान दवाइयों से फ़ूड प्रोसेसिंग की और किया और 32 विभिन्न प्रकार के जैविक उत्पादों को पेश किया। उन्होंने उपभोक्ता की मांग के अनुसार गुड़ की कई किस्में बनाईं जैसे – चाय के लिए गुड़, पाचन के लिए गुड़, अजवाइन, इलायची, सौंफ, चॉकलेट गुड़। अन्य उत्पादों में गाजर और चुकंदर की चटनी, सेब, अनानास, आंवले का जैम शामिल हैं।
“हम अपने दैनिक जीवन में जो चीनी खाते हैं, वह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। जितनी जल्दी हम इसे समझेंगे और गुड़ का उपयोग करेंगे, यह हमारे शरीर के लिए उतना ही अच्छा होगा।” – नरेश कुमार
उन्होंने 4 एकड़ जमीन पर प्रोसेसिंग यूनिट लगा रखी है। ये सभी उत्पाद पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके बनाए गए हैं जो उन्हें 100% जैविक बनाते हैं। जब गुड़ बनाया जाता है, तो उसमें प्रोसेसिंग किये फल और सब्जियां डाली जाती हैं और फिर मिट्टी के बर्तन में जमा कर दी जाती हैं। इन उत्पादों के निर्माण में पानी या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।
एक अन्य उत्पाद जो वे पशुओं के लिए बनाते हैं वह है ‘दूध का अर्क’ जो पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है। यह बार बार रपीट होने पशुओं के लिए एक बहुत बढ़िया उत्पाद है। उन्होंने इस उत्पाद की फार्मूलेशन पहले ही कर दी थी  इसलिए उन्होंने पहले इसे लागू करने के बारे में सोचा। उन्होंने इसे किसी ओर द्वारा बनाने के बारे में भी सोचा था पर उन्हें डर था कि रासायनिक सूत्र में कुछ उतार-चढ़ाव तो न आ जाए। इस मामले में किसी पर भरोसा करना आसान नहीं था। इस शिरा की खासियत यह है कि इसे देसी खंड के राव से बनाया गया है।
जींद, में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र  पांडु , पिंडारा और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने इस व्यवसाय के शुरुआती दिनों में उनकी बहुत मदद की। इन संस्थानों से उन्होंने वह तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जिसकी उन्हें इस व्यवसाय को स्थापित करने के लिए सख्त जरूरत थी। उनका मार्गदर्शन डॉ. विक्रम ने किया, जो हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन  केंद्र (ABIC) में मार्केटिंग के मैनेजर हैं।   नरेश जी ने इसी केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त किया जिसके बाद वह RAFTAR स्कीम  के तहत अपने उत्पाद “मिल्क शीरा” को प्रमोट करने के लिए 20 लाख रुपये प्राप्त करने में कामयाब हुए।
‘वापसी ‘ दवा 2015 से बाजार में है। वे 2015 से सीधे ग्राहकों को दवा बेच रहे हैं। आज उनके मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों से 20 वितरक हैं। शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि बाजार में हर दूसरा उत्पाद नकली था जबकि उनके दाम ज्यादा थे क्योंकि उनके उत्पाद जैविक थे और जब उन्होंने शुरुआत की तो उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।  लेकिन बाद में ग्राहकों को ऑर्गेनिक और नकली उत्पादों के बीच अंतर के बारे में पता चला और अब उनके उत्पादों को ग्राहकों द्वारा सराहा जाता है। उन्होंने कहा कि लोगों को यह समझाना आसान नहीं था कि अन्य सभी उत्पाद मिलावटी हैं और शरीर के लिए अच्छे नहीं हैं। सीजन के दौरान उन्हें हर महीने 3 लाख रुपये का मुनाफा होता है।
जब सीजन में अधिक काम होता है, तो वे 15 मजदूरों को काम पर रखते हैं, जो आमतौर पर ऑफ सीजन में 5 होते हैं। यद्यपि वे उच्च मांग के कारण गन्ने की खेती करते हैं, फिर भी उन्हें जैविक किसानों से कुछ गन्ना खरीदना पड़ता है। वह पीलुखेड़ा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के सदस्य भी हैं जहां वे निदेशक के रूप में कार्य करते हैं।

उपलब्धियां

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा 2019 में प्रगतिशील किसान की उपाधि से सम्मानित किया गया।

भविष्य की योजनाएं

नरेश कुमार अपने व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं और बड़े पैमाने पर गुड़ और उसके उत्पादों का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश

वह अन्य किसानों को अपनी पैदा की फसल की प्रोसेसिंग शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं क्योंकि कच्चे माल को बेचने की तुलना में पूरे उत्पाद को बनाने में अधिक मार्जिन है। गेहूं बोने वाले किसान को गेहूं के आटे की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करनी चाहिए, सूरजमुखी की बुवाई करने वाले किसान को बीज से तेल निकालना चाहिए और अन्य सभी फसलों के लिए भी प्रोसेसिंग संभव है।

लवप्रीत सिंह

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कैसे इस B.Tech ग्रेजुएट युवा की बढ़ती हुई दिलचस्पी ने उसे कृषि को अपना फुल टाइम रोज़गार चुनने के लिए प्रेरित किया

मिलिए लवप्रीत सिंह से, एक युवा जिसके हाथ में B.Tech. की डिग्री के बावजूद उसने डेस्क जॉब और आरामदायक शहरी जीवन जीने की बजाय गांव में रहकर कृषि से समृद्धि हासिल करने को चुना।

संगरूर के जिला हैडक्वार्टर से 20 किलोमीटर की दूरी पर भवानीगढ़ तहसील में स्थित गांव कपियाल जहां लवप्रीत सिंह अपने पिता, दादा जी, माता और बहन के साथ रहते हैं।

2008-09 में लवप्रीत ने कृषि क्षेत्र में अपनी बढ़ती दिलचस्पी के कारण केवल 1 एकड़ की भूमि पर गेहूं की जैविक खेती शुरू कर दी थी, बाकी की भूमि अन्य किसानों को दे दी थी। क्योंकि लवप्रीत के परिवार के लिए खेतीबाड़ी आय का प्राथमिक स्त्रोत कभी नहीं था। इसके अलावा लवप्रीत के पिता जी, संत पाल सिंह दुबई में बसे हुए थे और उनके पास परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अच्छी नौकरी और आय दोनों ही थी।

जैसे ही समय बीतता गया, लवप्रीत की दिलचस्पी और बढ़ी और उनकी मातृभूमि ने उन्हें वापिस बुला लिया। जल्दी ही अपनी डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने खेती की तरफ बड़ा कदम उठाने के बारे में सोचा। उन्होंने पंजाब एग्रो (Punjab Agro) द्वारा अपनी भूमि की मिट्टी की जांच करवायी और किसानों से अपनी सारी ज़मीन वापिस ली।

अगली फसल जिसकी लवप्रीत ने अपनी भूमि पर जैविक रूप से खेती की वह थी हल्दी और साथ में उन्होंने खुद ही इसकी प्रोसेसिंग भी शुरू की। एक एकड़ पर हल्दी और 4 एकड़ पर गेहूं-धान। लेकिन लवप्रीत के परिवार द्वारा पूरी तरह से जैविक खेती को अपनाना स्वीकार्य नहीं था। 2010 में जब उनके पिता दुबई से लौट आए तो वे जैविक खेती के खिलाफ थे क्योंकि उनके विचार में जैविक उपज की कम उत्पादकता थी लेकिन कई आलोचनाओं और बुरे शब्दों में लवप्रीत के दृढ़ संकल्प को हिलाने की शक्ति नहीं थी।

अपनी आय को बढ़ाने के लिए लवप्रीत ने गेहूं की बजाये बड़े स्तर पर हल्दी की खेती करने का फैसला किया। हल्दी की प्रोसेसिंग में उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया क्योंकि उनके पास इसका कोई ज्ञान और अनुभव नहीं था। लेकिन अपने प्रयासों और माहिर की सलाह के साथ वे कई मुश्किलों को हल करने के काबिल हुए। उन्होंने उत्पादकता और फसल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए गाय और भैंस के गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया।

परिणाम देखने के बाद उनके पिता ने भी उन्हें खेती में मदद करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्होंने पंजाब एग्रो से भी हल्दी पाउडर को जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संपर्क किया और इस वर्ष के अंत तक उन्हें यह प्राप्त हो जाएगा। वर्तमान में वे सक्रिय रूप से हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग में शामिल हैं। जब भी उन्हें समय मिलता है, वे PAU का दौरा करते हैं और यूनीवर्सिटी के माहिरों द्वारा सुझाई गई पुस्तकों को पढ़ते हैं ताकि उनकी खेती में सकारात्मक परिणाम आये। पंजाब एग्रो उन्हें आवश्यक जानकारी देकर भी उनकी मदद करता है और उन्हें अन्य प्रगतिशील किसानों के साथ भी मिलाता है जो जैविक खेती में सक्रिय रूप से शामिल हैं। हल्दी के अलावा वे गेहूं, धान, तिपतिया घास (दूब), मक्की, बाजरा की खेती भी करते हैं लेकिन छोटे स्तर पर।

भविष्य की योजनाएं:
वे भविष्य में हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग के काम का विस्तार करना चाहते हैं और जैविक खेती कर रहे किसानों का एक ग्रुप बनाना चाहते हैं। ग्रुप के प्रयोग के लिए सामान्य मशीनें खरीदना चाहते हैं और जैविक खेती करने वाले किसानों का समर्थन करना चाहते हैं।

संदेश

एक संदेश जो मैं किसानों को देना चाहता हूं वह है पर्यावरण को बचाने के लिए जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है। सभी को जैविक खेती करनी चाहिए और जैविक खाना चाहिए, इस प्रकार प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।

अंग्रेज सिंह भुल्लर

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कैसे इस किसान के बिगड़ते स्वास्थ्य ने उसे अपनी गल्ती सुधारने और जैविक खेती को अपनाने के लिए उकसाया

गिदड़बाहा के इस 53 वर्षीय किसान- अंग्रेज सिंह भुल्लर ने अपनी गल्तियों को पहचानने के बाद कि उसने क्या बनाया और कैसे यह उसके स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, अपने जीवन का सबसे प्रबुद्ध फैसला लिया।

4 वर्ष की युवा उम्र में अंग्रेज सिंह भुल्लर ने अपने पिता को खो दिया। उसके परिवार की स्थितियां दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी क्योंकि उनके परिवार में कोई रोटी कमाने वाला नहीं था। उन्हें पैसे भी रिश्तेदारों को अपनी ज़मीन किराये पर देकर मिल रहे थे। परिवार में उनकी दो बड़ी बहनें थी और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करना उनकी मां के लिए दिन प्रतिदिन बहुत मुश्किल हो रहा था। बिगड़ती वित्तीय परिस्थितियों के कारण, अंग्रेज सिंह को 9वीं कक्षा तक शैक्षिक योग्यता प्राप्त हुई और उनकी बहनें कभी स्कूल नहीं गई।

स्कूल छोड़ने के बाद अंग्रेज सिंह ने कुछ समय अपने अंकल के फार्म पर बिताया और उनसे खेती की कुछ तकनीकें सीखीं। 1989 तक ज़मीन रिश्तेदारों के पास किराये पर थी। लेकिन उसके बाद अंग्रेज सिंह ने परिवार की ज़िम्मेदारी लेने का बड़ा फैसला लिया। इसलिए उन्होंने अपनी ज़मीन वापिस लेने का निर्णय लिया और इस पर खेती शुरू की।

अपने अंकल से उन्होंने जो कुछ सीखा और गांव के अन्य किसानों को देखकर उन्होंने रासायनिक खेती शुरू की। उन्होंने अच्छी कमाई करनी शुरू की और अपने परिवार की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ। जल्दी ही कुछ समय बाद उन्होंने शादी की और एक सुखी परिवार का जीवन जी रहे थे।

लेकिन 2006 में वे बीमार पड़ गये और प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो गए। इससे पहले वे इस समस्या को हल्के ढंग से लेते थे लेकिन डॉक्टर की जांच के बाद उन्हें पता चला कि उनकी आंत में सोजिश आ गई है जो कि भविष्य में गंभीर समस्या बन सकती है। उस समय बहुत से लोग उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछने के लिए आते थे और किसी ने उन्हें बताया कि स्वास्थ्य बिगड़ने का कारण खेती में रसायन का उपयोग करना है और आपको जैविक खेती शुरू करनी चाहिए।

हालांकि कई लोगों ने उन्हें इलाज के लिए काफी चीज़ें करने को कहा लेकिन एक बात जिसने मजबूती से उनके दिमाग में दस्तक दी वह थी जैविक खेती शुरू करना। उन्होंने इस मसले को काफी गंभीरता से लिया और 2006 में 2.5 एकड़ की भूमि पर जैविक खेती शुरू की उन्होंने गेहूं, सब्जियां, फल, नींबू, अमरूद, गन्ना और धान उगाना शुरू किया और इससे अच्छा लाभ प्राप्त किया। अपने लाभ को दोगुना करने के लिए उन्होंने स्वंय ही उत्पादों की प्रोसेसिंग शुरू की और बाद में उन्होंने गन्ने से गुड़ बनाना शुरू किया । उन्होंने हाथों से ही गुड़ बनाने की विधि को अपनाया क्योंकि वह इस उद्यम को अपने दम पर शुरू कर रहे थे। शुरूआत में वे अनिश्चित थे कि उन्हें इसका कैसा फायदा होगा लेकिन धीरे धीरे गांव के लोगों ने गुड़ को पसंद करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे गुड़ की मांग एक स्तर तक बढ़ी जिससे उन्होंने एडवांस बुकिंग पर गुड़ बनाना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने अपने खेत में वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट लगाया ताकि वे घर पर बनी खाद से अच्छी उपज ले सकें।

उन्होंने कई पुरस्कार, उपलब्धियां प्राप्त की और कई ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लिया| उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
• 1979 में 15 से 18 नवंबर के बीच उन्होंने जिला मुक्तसर विज्ञान मेले में भाग लिया।
• 1985 में वेरका प्लांट बठिंडा द्वारा आयोजित Artificial Insemination के 90 दिनों की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• 1988 में पी.ए.यू, लुधियाना द्वारा आयोजित हाइब्रिड बीजों की तैयारी के 3 दिनों की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• पतंजली योग समिती में 9 जुलाई से 14 जुलाई 2009 में भाग लेने के लिए योग शिक्षक की ट्रेनिंग के लिए प्रमाण पत्र मिला।
• 28 सितंबर 2012 में खेतीबाड़ी विभाग, पंजाब के निदेशक से प्रशंसा पत्र मिला।
• 9 से 10 सितंबर 2013 को आयोजित Vibrant Gujarat Global Agricultural सम्मेलन में भाग लिया।
• कुदरती खेती और पर्यावरण मेले के लिए प्रशंसा पत्र मिला जिसमें 26 जुलाई 2013 को खेती विरासत मिशन द्वारा मदद की गई थी।
• खेतीबाड़ी विभाग जिला श्री मुक्तसर साहिब पंजाब द्वारा आयोजित Rabi Crops Farmer Training Camp में भाग लेने के लिए 21 सितंबर 2014 को Agricultural Technology Management Agency (ATMA) द्वारा राज्य स्तर पर प्रशंसा पत्र प्राप्त किया।
• 21 सितंबर 2014 को खेतीबाड़ी विभाग, श्री मुक्तसर साहिब द्वारा State Level Farmer Training Camp के लिए प्रशंसा पत्र मिला।
• 12 -14 अक्तूबर 2014 को पी ए यू द्वारा आयोजित Advance training course of Bee Breeding 7 Mass Bee Rearing Technique में भाग लिया।
• Sarkari Murgi Sewa Kendra, Kotkapura में पशु पालन विभाग, पंजाब द्वारा आयोजित 2 सप्ताह की पोल्टरी फार्मिंग ट्रेनिंग में भाग लिया।
• National Bee Board द्वारा मक्खीपालक के तौर पर पंजीकृत हुए।
• CRI पुरस्कार मिला|
• KVK, गोनिआना द्वारा आयोजित Kharif Crop Farming के 1 दिन की ट्रेनिंग कैंप में भाग लिया।
• PAU Ludhiana द्वारा आयोजित 10 दिनों की मक्खी पालन की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• KVK, गोनिआना द्वारा आयोजित 1 दिन की Pest Control in Grains stored in Storehouse की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• Department of Rural Development, NITTTR, Chandigarh द्वारा आयोजित Organic & Herbal Products Mela में भाग लिया।
• PAMETI (Punjab Agriculture Management & Extension Training Institute), PAU द्वारा आयोजित workshop training programme- “MARKET LED EXTENSION” में भाग लिया।
अंग्रेज सिंह भुल्लर पंजाब के वे भविष्यवादी किसान है जो जैविक खेती की महत्तता को समझते हैं। आज खराब पर्यावरण परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें उनके जैसे अधिक किसानों की जरूरत है।

किसानों को संदेश

यदि हम अब जैविक खेती शुरू नहीं करते है तो यह हमारी भविष्य की पीढ़ी के लिए बड़ी समस्या होगी।

सत्या रानी

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सत्या रानी: अपनी मेहनत से सफल एक महिला, जो फूड प्रोसेसिंड उदयोग में सूर्य की तरह उभर रही हैं

जब बात विकास की आती है तो इसमें कोई शक नहीं है कि महिलाएं भारत के युवा दिमागों को आकार देने और मार्गदर्शन करने में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। यहां तक कि खेतीबाड़ी के क्षेत्र में भी महिलायें पीछे नहीं हैं वे टिकाऊ और जैविक खेती के मार्ग का नेतृत्व कर रही हैं। आज, कई ग्रामीण और शहरी महिलायें खेतीबाड़ी में प्रयोग होने वाले रसायनों के प्रति जागरूक हैं और वे इस कारण इस क्षेत्र में काम भी कर रही हैं। सत्या रानी उन महिलाओं में से एक हैं जो जैविक खेती कर रही हैं और फूड प्रोसेसिंग के व्यापार में भी क्रियाशील हैं।

बढ़ते स्वास्थ्य मुद्दों और जलवायु परिर्वतन के साथ, खाद्य सुरक्षा से निपटना एक बड़ी चुनौती बन गई है और सत्या रानी एक उभरती हुई एग्रीप्रेन्योर हैं जो इस मुद्दे पर काम कर रही हैं। कृषि के क्षेत्र में योगदान करना और प्राकृति को उसका दिया वापिस देना सत्या का बचपन का सपना था। शुरू से ही उसके माता पिता ने उसे हमेशा इसकी तरफ निर्देशित और प्रेरित किया और अंतत: एक छोटी लड़की का सपना एक महिला का दृष्टिगोचर बन गया।

सत्या के जीवन में एक बुरा समय भी आया जिसमें अगर कोई अन्य लड़की होती तो वह अपना आत्म विश्वास और उम्मीद आसानी से खो देती। सत्या के माता पिता ने उन्हें वित्तीय समस्याओं के कारण 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई रोकने के लिए कहा। लेकिन उसका अपने भविष्य के प्रति इतना दृढ़ संकल्प था कि उसने अपने माता-पिता से कहा कि वह अपनी उच्च शिक्षा का प्रबंधन खुद करेगी। उसने खाद्य उत्पाद जैसे आचार और चटनी बनाने का और इसे बेचने का काम शुरू किया।

इस समय के दौरान उसने कई नई चीज़ें सीखीं और उसकी रूचि फूड प्रोसेसिंग व्यापार में बढ़ गई। हिंदू गर्ल्स कॉलेज, जगाधरी से अपनी बी ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे उसी कॉलेज में होम साइंस ट्रेनर की जॉब मिल गई। इसके तुरंत बाद उसने 2004 में राजिंदर कुमार कंबोज से शादी की, लेकिन शादी के बाद भी उसने अपना काम नहीं छोड़ा। उसने अपने फूड प्रोसेसिंग के काम को जारी रखा और कई नये उत्पाद जैसे आम के लड्डू, नारियल के लड्डू, आचार, फ्रूट जैम, मुरब्बा और भी लड्डुओं की कई किस्में विकसित की। उसकी निपुणता समय के साथ बढ़ गई जिसके परिणाम स्वरूप उसके उत्पादों की गुणवत्ता अच्छी हुई और बड़ी संख्या में उसका ग्राहक आधार बना।

खैर, फूड प्रोसेसिंग ही ऐसा एकमात्र क्षेत्र नहीं है जिसमें उसने उत्कृष्टा हासिल की। अपने स्कूल के समय से वह खेल में बहुत सक्रिय थीं और कबड्डी टीम की कप्तान थी। वह अपने पेशे और काम के प्रति बहुत उत्साही थी। यहां तक कि उसने हिंदू गर्ल्स कॉलेज से सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग पुरस्कार भी प्राप्त किया। वर्तमान में वह एक एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती कर रही है और डेयरी फार्मिंग में भी सक्रिय रूप से शामिल है। वह अपने पति की सहायता से हर तरह की मौसमी सब्जियां उगाती है। सत्या ऑरगैनिक ब्रांड नाम है जिसके तहत वह अपने प्रोसेस किए उत्पादों (विभिन्न तरह के लड्डू, आचार, जैम और मुरब्बा ) को बेच रही है।

आने वाले समय में वह अपने काम को बढ़ाने और इससे अधिक आमदन कमाने की योजना बना रही है वह समाज में अन्य लड़कियों और महिलाओं को फूड प्रोसेसिंग और जैविक खेती के प्रति प्रेरित करना चाहती है ताकि वे आत्म निर्भर हो सकें।

किसानों को संदेश
यदि आपको भगवान ने सब कुछ दिया है अच्छा स्वास्थ्य और मानसिक रूप से तंदरूस्त दिमाग तो आपको एक रचनात्मक दिशा में काम करना चाहिए और एक सकारात्मक तरीके से शक्ति का उपयोग करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को स्वंय में छिपी प्रतिभा को पहचानना चाहिए ताकि वे उस दिशा में काम कर सके जो समाज के लिए लाभदायक हो।

बलजीत सिंह कंग

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जानें कैसे एक शिक्षक ने जैविक खेती शुरू की और कैसे वे जैविक खेती में क्रांति ला रहे हैं

मिलें बलजीत सिंह कंग से जो एक शिक्षक से जैविक किसान बन गए। जैविक खेती मुख्य विचार नहीं था जिसके कारण श्री कंग अपने शिक्षक व्यवसाय से जल्दी रिटायर हो गए। ये उनके बच्चे थे जिनकी वजह से उन्होंने जल्दी रिटायरमैंट ली और इसके साथ ही खेतीबाड़ी शुरू की।

बलजीत सिंह हमेशा कुछ अलग करना चाहते थे और नीरसता और पुरानी पद्धतियों का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे और उन्होंने जैविक खेती में कुछ अलग पाया। खेतीबाड़ी उनके परिवार का मूल व्यवसाय नहीं था क्योंकि उनके पिता और भाई पहले से ही विदेश में बस चुके थे। लेकिन बलजीत अपने देश में रहकर कुछ बड़ा करना चाहते थे।

पंजाबी में एम ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बलजीत को स्कूल में शिक्षक के तौर पर जॉब मिल गई। एक शिक्षक के तौर पर कुछ समय के लिए काम करने के बाद उन्होंने 2003-2010 में अपना रेस्टोरेंट खोला। 2010 में रेस्टोरेंट का व्यवसाय छोड़कर जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया। 2011 में उनकी शादी हुई और कुछ समय बाद उन्हें दो सुंदर बच्चों – एक बेटी और एक बेटा के साथ आशीर्वाद मिला। उनकी बेटी अब 4 वर्ष की है और पुत्र 2 वर्ष का है।

इससे पहले वे रसायनों का प्रयोग कर रहे थे लेकिन बाद  में वे जैविक खेती की तरफ मुड़ गए। उन्होंने एक एकड़ भूमि पर मक्की की फसल बोयी। लेकिन उनके गांव में हर कोई उनका मज़ाक उड़ा रहा था क्योंकि उन्होंने सर्दियों में मक्की की फसल बोयी थी। बलजीत इतने दृढ़ और आश्वस्त थे कि कभी भी बुरे शब्दों और नकारात्मकता ने उन्हें प्रभावित नहीं किया। जब कटाई का समय आया तो उन्होंने मक्की की 37 क्विंटल उपज की कटाई की और यह उनकी कल्पना से ऊपर था। इस कटाई ने उन्हें अपने खेती के काम को और बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने 1.5 एकड़ ज़मीन किराये पर ली।

रसायन से जैविक खेती की तरफ मुड़ना बलजीत के लिए एक बड़ा कदम था, लेकिन उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 6 एकड़ भूमि पर सब्जियां उगाना शुरू किया। उनके खेत में उन्होंने हर तरह के फल के वृक्ष उगाये और उन्होंने वर्मीकंपोस्ट को भी व्यवस्थित किया जिससे उन्हें काफी लाभ मिला। वे अपने काम के लिए अतिरिक्त श्रमिक नहीं रखते और जैविक खेती से वे बहुत अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

भविष्य की योजना:
वर्तमान में, वे अपने खेत में बासमती, गेहूं, सरसों और सब्जियां उगा रहे हैं। भविष्य में वे अपने स्वंय के उत्पादों को बाज़ार में लाने के लिए ‘खेती विरासत मिशन’ के भागीदार बनना चाहते हैं।
किसानों को संदेश-
किसानों को अपना काम स्वंय करना चाहिए और मार्किटिंग के लिए किसी तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। दूसरी बात यह, कि किसानों को समझना चाहिए कि बेहतर भविष्य के लिए जैविक खेती ही एकमात्र समाधान है। किसानों को रसायनों का प्रयोग करना बंद करना चाहिए और जैविक खेती को अपनाना चाहिए।

नवरूप सिंह गिल

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एक इंजीनियर की जीवन यात्रा जो किसान बन गया और कुदरत के तालमेल से मारूस्थल से भोजन प्राप्त कर रहा है

“खेती के गलत ढंगों से हम उपजाऊ भूमि को रेगिस्तान में बदल देते हैं। जब तक जैविक खेती की तरफ वापिस नहीं जाते और मिट्टी नहीं बचाते, तब तक तो हमारा कोई भविष्य नहीं” जग्गी वासुदेव

मिट्टी जीवों के लिए किसी जायदाद से कम नहीं है और सभी जीवों में से सिर्फ मनुष्य ही कुदरत की सबसे कीमती संपत्ति को प्रभावित करने या परिवर्तन करने में सक्षम है।

जग्गी वासुदेव के द्वारा बहुत सही कहा गया है कि हम खेती की गलत विधि का प्रयोग करके अपनी उपजाऊ ज़मीन को मारूस्थल में बदल रहे हैं। पर यहां हम एक व्यक्ति की कहानी को शेयर करने जा रहे हैं – नवरूप सिंह गिल, जो मिट्टी को अधिक उपजाऊ और कुदरती स्त्रोतों को कम जहरीला बनाकर मारूस्थल में से कुदरती तरीके से भोजन प्राप्त कर रहे हैं।

खेतीबाड़ी एक आशीर्वाद की तरह मनुष्य को प्राप्त हुई है, और इसे कुदरत के तालमेल से प्रयोग करके लोगों के कल्याण का खजाना हासिल किया जा सकता है। नवरूप सिंह गिल ने इस बात को बहुत अच्छी तरह समझा, बहुत समय पहले उन्होंने लोगों की तरक्की और कुदरत को बचाने के लिए कुदरती खेती की तरफ मुड़ने का फैसला किया।

नवरूप सिंह गिल विदेश में भी बहुत बढ़िया काम कर रहे थे, पर एक दिन उन्होंने भारत आकर अपने बड़े भाई के साथ खेतीबाड़ी में मदद करने का फैसला किया। जैसे ही उन्होंने जल्दी अपने आप को जीवन की समस्याओं के साथ जोड़ना शुरू किया। द्ढ़ता और आध्यात्मिक ज्ञान की लहर ने उन्हें एक नए रूप में बदल दिया।

“मेरा परिवार शुरू से ही खेतीबाड़ी के क्षेत्र में नहीं था। मेरे पिता जी कमलजीत सिंह गिल, एक बिज़नेसमैन थे और उन्होंने 1998 तक कपास की चिनाई और बुनाई की मिल चलायी। पर कुछ आर्थिक नुकसान और हालातों के कारण मिल बंद करनी पड़ी। उस समय हमने सोचा नहीं था कि यह बुरा अंत हमें एक अच्छी शुरूआत की तरफ ले जायेगा… उसके बाद मेरे पिता जी ने खेतीबाड़ी शुरू की और बड़े भाई की पढ़ाई पूरी होने के बाद, वह भी इस में शामिल हो गया। 2010 में मैं भी इस व्यवसाय में शामिल हो गया।”

पहले, नवदीप सिंह गिल कुदरती खेती करते थे, पर बड़े पैमाने पर नहीं। नवदीप ने छोटे भाई (नवरूप सिंह) की सहायता से धीरे-धीरे इसे बढ़ाना शुरू किया। एक-एक बचाया पैसा कुदरती खेती को बढ़ाने की तरफ कदम था।

एक और क्षेत्र, जिसमें नवरूप सिंह गिल जी का रूझान बना, वह था डेयरी फार्मिंग। यह उनका गायों के प्रति प्यार था। जिस कारण उन्होंने पशु पालन शुरू किया। उन्होंने शुरूआत में कुछ गायों से डेयरी फार्मिंग शुरू की और धीरे-धीरे फार्म में पशुओं की संख्या बढ़ायी।

2013 में “थार नैचुरल्ज़” का विचार दोनों भाइयों के मन में आया और फिर उन्होंने ज़मीन की तैयारी से कटाई करने तक के सभी व्यवसाय कुदरती तौर पर करने का फैसला किया। परिणामस्वरूप खेतों में रसायन और कीटनाशकों का प्रयोग करने वाले किसानों के मुकाबले उनकी फसल की पैदावार अधिक हुई। धीरे-धीरे “थार नैचुरल्ज़” प्रसिद्ध ब्रांड बन गया और गिल भाइयों ने अपने उत्पादों की सूची में और फसलें भी शामिल की।

यह नवरूप सिंह के सकारात्मक विचार और पारिवारिक सहयोग ही था, जिसने गिल परिवार को एक बार फिर शुरूआत करने में मदद की।

नवरूप सिंह और उनके परिवार के प्रयत्नों ने ही उनके कुदरती खेती के उद्यम को पहचान दिलाई और 2015 में कृषक सम्मान पुरस्कार मिला।

गिल परिवार को 2016 में भी कृषक सम्मान पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।

2016 में कमलजीत सिंह गिल के तीसरे और सबसे छोटे पुत्र (रमनदीप सिंह गिल) ने विदेश से वापिस आने का फैसला किया और अपने भाई के कारोबार में हाथ बंटाने का फैसला किया और इस तरह तिकड़ी पूरी हो गई।

नवरूप सिंह गिल – “गिल परिवार के लिए थार नैचुरल्ज़, कुदरती खेती को बड़े स्तर पर उत्साहित करने और राजस्थान के साथ-साथ अन्य राज्यों के किसानों को इससे जान पहचान करवाने का तरीका है कि कुदरती खेती के द्वारा उच्च पैदावार और अच्छी गुणवत्ता आसानी से प्राप्त की जा सकती है और थार नैचुरल्ज़ पूरे परिवार के प्रयत्नों के बिना संभव नहीं था।”

आज थार नैचुरल्ज़ में अनाज, दालें, बाजरा, फल और सब्जियों की अलग-अलग किस्में तैयार की जाती हैं। इसे चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है खेतीबाड़ी, खाद, डेयरी और बागबानी। वे हरी मूंग, काले चने, मेथी के बीज, सफेद चने, एलोवेरा, सनई के बीज और कनौला तेल आदि का भी उत्पादन करते हैं। कुछ विशेष उत्पाद, जो कुदरती खेती को उत्साहित करने के लिए वे अपने खेतों में प्रयोग करते हैं जीव अमृत, जियान, वर्मीकंपोस्ट। वे डेयरी उत्पाद भी बेचते हैं जैसे कि साहिवाल गाय का दूध और देसी घी।

इस समय नवरूप सिंह गिल अपने परिवार के साथ राजस्थान के जिला श्री गंगानगर की तहसील राये सिंह में स्थित गांव 58 आर.बी. में रहते हैं। श्री मती संदीप कौर गिल (सुपत्नी नवदीप सिंह), श्री मती गुरप्रीत कौर गिल (सुपत्नी नवरूप सिंह) और श्री मती रमनदीप कौर गिल (सुपत्नी रमनदीप सिंह) थार नैचुरल के गुप्त सहायक मैंबर हैं और घर के मुख्य अधिकारी की भूमिका निभाते हैं।

फार्म के आंकड़े

खेती तकनीक – पानी के प्रबंधन के लिए मलचिंग
उपकरण – ट्रैक्टर, ट्रॉली, हैरो और डिस्क आदि जैसी सभी ज़रूरी मशीनरी उपलब्ध है।
फसलें – ग्वार, बाजरा, मूंगी काले चने , सफेद चने, मेथी, सनई।
बागबानी फसलें – किन्नू, मौसमी सब्जियां, कनौला

डेयरी फार्मिंग – गिल परिवार के पास डेयरी फार्म में 100 से अधिक साहिवाल नसल की गायें हैं। नवरूप सिंह जी कुछ श्रमिकों की मदद से स्वंय ही डेयरी फार्म की देख-रेख करते हैं।

संदेश

“कुदरती खेती किसानों के लिए लंबे समय तक सफलता हासिल करने का एकमात्र रास्ता है।”

नवरूप सिंह गिल उन किसानों के लिए एक प्रमुख उदाहरण हैं, जो भविष्य में स्वंय को खेतीबाड़ी के क्षेत्र में सफल बनाना चाहते हैं। थार नैचुरल्ज़ एक मिसाल है कि किस तरह रसायनों और उपचारित किए बीजों वाली खेती के मुकाबले कुदरती खेती से भी समान मुनाफा लिया जा सकता है।

यादविंदर सिंह

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पंजाब के इस किसान ने गेहूं-धान की पारंपरिक खेती के स्थान पर एक सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना और इससे दोहरा लाभ कमा रहे हैं

पंजाब में जहां आज भी धान और गेहूं की खेती जारी है वहीं कुछ किसानों के पास अभी भी विकल्पों की कमी है। किसानों के पास भूमि का एक छोटा टुकड़ा होता है और कम जागरूकता वाले किसान अभी भी गेहूं और धान के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। लेकिन बठिंडा जिले के चक बख्तू गांव के यादविंदर सिंह ने खेतीबाड़ी की पुरानी पद्धति को छोड़कर नर्सरी की तैयारी और सब्जियों की जैविक खेती शुरू की।

अपने लाखों सपनों को पूरा करने की इच्छा रखने वाले एक युवा यादविंदर सिंह ने अपनी ग्रेजुएशन के बाद होटल मैनेजमेंट में अपना डिप्लोमा पूरा किया और उसके बाद दो साल के लिए सिंगापुर में एक प्रतिष्ठित शेफ रहे। लेकिन वे अपने काम से खुश नहीं थे और सब कुछ होने के बावजूद भी अपने जीवन में कुछ कमी महसूस करते थे। इसलिए वे वापिस पंजाब आ गए और पूरे निश्चय के साथ खेतीबाड़ी के क्षेत्र में प्रवेश करने का फैसला किया।

2015 में उन्होंने अपना जैविक उद्यम शुरू किया लेकिन इससे पहले उन्होंने भविष्य के नुकसान से बचने के लिए बुद्धिमानी से काम लिया। अपनी चतुराई का प्रयोग करते हुए उन्होंने इंटरनेट की मदद ली और किसान मेलों में भाग लिया और जैविक सब्जियों को नर्सरी में तैयार करना शुरू किया। अपने ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए यादविंदर ने अपने व्यापार का लोगो (LOGO) भी डिज़ाइन किया।

अपने खेतीबाड़ी उद्यम के पहले वर्ष उन्होंने 1 लाख कमाया और आज वे सिर्फ 2 कनाल (5 एकड़) से 2.5 लाख से भी ज्यादा कमा रहे हैं। खेतीबाड़ी के साथ उन्होंने नर्सरी प्रबंधन भी शुरू किया जिसमें कि बीज की तैयारी, मिट्टी प्रबंधन शामिल है। यहां तक कि उन्हें नए पौधे बेचने के लिए मार्किट जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पौधे खरीदने के लिए किसान स्वंय उनके फार्म का दौरा करते हैं।

आज यादविंदर सिंह अपने व्यवसाय और अपनी आमदन से बहुत खुश हैं। भविष्य में वे अपनी खेतीबाड़ी के व्यवसाय को बढ़ाना चाहते हैं और अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कुछ और फसलें उगाना चाहते हैं।

संदेश:
“हम जानते हैं कि सरकार साधारण किसानों के समर्थन के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करती। लेकिन किसानों को निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि मजबूत दृढ़ संकल्प और सही दृष्टिकोण से वे जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं।”