खुशी राम

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सीखने के ईशुक व्यक्ति के लिए कोई सीमा नहीं

खुशी राम जी उत्तराखंड के टिहरी के रहने वाले हैं और यह है उनका आम किसान से प्रगतिशील किसान बनने एक अनोखा सफ़र।

शुरुआत

उनके माता-पिता पारंपरिक खेती करते थे और फिर खुशी राम जी ने अपने बड़ों के अनुभव को वैज्ञानिक तकनीकों के साथ जोड़ा जिसका प्रशिक्षण उन्होंने के.वी.के., रानीचौरी से प्राप्त किया। उन्होंने 2002 तक खेती को एक पेशे के रूप में शुरू करने की योजना नहीं बनाई थी, लेकिन खुशी राम जी को अपने माता-पिता के बिगड़ते स्वास्थ्य और पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के कारण यह जिम्मेदारी उठानी पड़ी। बाद में उन्हें खेती पसंद आने लगी और कुछ ही समय में वे प्रकृति के दीवाने हो गए और अपने खेत में अलग-अलग फसलें उगाने के प्रयोग करने लगे।

फसल उत्पादन और टेक्नोलॉजी

उनके पास कुल 4 एकड़ जमीन है, जिसमें वह तरह-तरह की सब्जियां और फल उगाते हैं, जिनमें टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, बैगन, मशरूम, गेहूं, राजमा, स्ट्रॉबेरी और कीवी कुछ प्रमुख फसलें हैं। उन्होंने 5 पॉलीहाउस बनाए हैं, जिनमें से वे दो पॉलीहाउस में टमाटर उगाते हैं, एक पॉलीहाउस में उनकी नर्सरी है और अन्य दो में वह खीरे और शिमला मिर्च उगाते हैं।
वे ब्रोकोली और केल,पार्सले और मिजुना की जापानी किस्में भी उगाते हैं। इसके अलावा उन्होंने अपनी जमीन पर 350 आड़ू के पेड़ भी लगाए हैं। वह छोटे पैमाने पर एक्वाकल्चर और पोल्ट्री फार्मिंग भी करते हैं। वह आम तौर पर जैविक खेती का अभ्यास करते हैं जहां वह अपने खेत में मवेशियों के मलमूत्र, ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास जैसे जैविक उर्वरकों का उपयोग करते हैं, लेकिन कभी-कभी उन्हें कीट प्रबंधन के लिए आवश्यक कीटनाशकों का भी उपयोग करना पड़ता है।
खुशी राम जी ऐसे इलाके में रहते हैं जहां पानी की कमी है। इस समस्या से निपटने के लिए, उन्होंने वर्षा जल संचयन, ड्रिप सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, प्लास्टिक मल्चिंग और सूक्ष्म सिंचाई सहित कई उन्नत तकनीकों को अपनाया है।
उन्होंने कभी भी सीखना बंद नहीं किया और कृषि के विशाल क्षेत्र में सीखे गए नए ज्ञान के साथ प्रयोग करना जारी रखा। उनका मुख्य उद्देश्य उनकी आय में वृद्धि करना था और इस प्रकार उन्होंने मुर्गी पालन शुरू किया जो सफल नहीं रहा और बाद में उन्होंने मशरूम की खेती करने का फैसला किया जिससे उन्होंने काफ़ी लाभ कमाया।

एक उदाहरण स्थापित की

उनकी सफलता दूसरों के लिए एक उदाहरण बन गई जिसने अन्य किसानों को कड़ी मेहनत करने और सफल होने के लिए प्रेरित किया। कटाई के सीज़न में जब काम का बोझ बढ़ जाता है तो वे अपने गांव की महिलाओं की मदद लेते हैं। खुशी राम जी महिलाओं के लिए रोज़गार पैदा करते हैं और उन्हें काम करने और खुद कमाने के लिए स्वतंत्र बनाते हैं। पिछले सीज़न में काम करने वाली महिलाएं अपने व्यस्त शेड्यूल के कारण अगले सीज़न में काम नहीं कर पाती हैं, तो एक नया ग्रुप ता है और ख़ुशी राम जी उन्हें ट्रेनिंग देते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं।

सहायक स्तंभ

वह सरकार की किसानों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद करने वाली सभी योजनाओं के आभारी हैं। उनके सभी पॉलीहाउस और कृषि मशीनरी 80% सब्सिडी के आधीन हैं और उन्हें केवल 24000 रुपये प्रति पॉलीहाउस का भुगतान करना पड़ा है। कृषि विज्ञान केंद्र, रानीचौरी ने शुरू से ही उन्हें कृषि योजनाओं को समझने और कृषि में नई तकनीकों को पेश करने में मदद की है। उन्होंने बागवानी विभाग की मदद से अपने खेत में 500 सेब के पेड़ लगाए हैं। कुछ वर्षों से उनके इलाके में बर्फ कम पद रही है इस लिए उन्होने अपने क्षेत्र में सेब की एम-9 और एम-26 किस्मों की खेती कर रहे हैं, वे अपने क्षेत्र में इन किस्मों को उगाने वाले पहले किसान हैं और वह उपज को देखते हुए भविष्य में इसकी खेती को लेकर काफ़ी सकारात्मक हैं।

चुनौतियां

सबसे पहले उनके क्षेत्र में उत्पादन जंगली जानवरों के कारण होने वाले विनाश से प्रभावित होता है।  दिन में बंदरों से और रात में सूअरों से खेत का निरीक्षण करने के लिए एक व्यक्ति ऐसा चाहिए होता है जो के हर पल खेती की देखभाल कर सके। उनके सामने एक और चुनौती ‘मार्किट लिंकेज’ है क्योंकि उनका क्षेत्र छोटा है और उनकी व्यापार सिर्फ चंबा, ऋषिकेश और देहरादून तक सीमित है। वार्षिक लाभ 7 लाख रूपये प्रति वर्ष तक जाता है लेकिन प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, बादल फटने आदि के कारण नुकसान ज्यादातर कमाई से अधिक होता है।

उपलब्धियां

  • 2022 में ICAR – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा अभिनव किसान पुरस्कार से रूप में सम्मानित किया गया
  • मशरूम की खेती के क्षेत्र में निरंतर प्रयासों के लिए उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह द्वारा 2022 में सराहना की गई।
  • 2019 में ISHRD देव भूमि बगवानी पुरस्कार (2014-2018) से सम्मानित किया गया।

किसानों के लिए संदेश

उन्होंने किसानों को रासायनिक खाद का प्रयोग कम करने की सलाह दी। उनका कहना है कि इन विषाक्त पदार्थों के उपयोग को कम करके या जैविक खेती की ओर मुड़कर व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकता है।

भविष्य की योजनाएं

उनका मुख्य उद्देश्य अपनी उपज को नज़दीकी और दूर के बाजारों में ले जाना और एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाकर अपनी आय में वृद्धि करना है।

गुरविंदर सिंह सोही

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एक युवा खेतीप्रेन्योर की कहानी, जो हॉलैंड ग्लैडियोलस की खेती से पंजाब में फूलों के व्यापार में आगे बढ़ा

यह कहा जाता है कि सफलता आसानी से प्राप्त नहीं होती। आपको असफलता का स्वाद काफी बार चखना पड़ता है तभी आप सफलता के असली स्वाद का मज़ा ले सकते हो। ऐसा ही गुरविंदर सिंह सोही के साथ हुआ। वे एक सामान्य विद्यार्थी, जिसने खेतीबाड़ी का चयन उस समय किया जब वे पंजाब जे ई टी की परीक्षा में सफल नहीं हो पाये।

उन्होंने शुरू से ही निर्धारित किया था कि वे भेड़ की तरह काम नहीं करेंगे, ना ही अपने परिवार के व्यवसाय की तरह गेहूं-धान की खेती करेंगे। इसलिए उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की लेकिन इसमें सफल नहीं हो सके। जल्दी ही उन्होंने नज़दीक के शहर खमानो में अपनी मिठाई की दुकान स्थापित की। लेकिन वे शायद इसके लिए भी नहीं बने थे। इसलिए उन्होंने घोड़े के प्रजनन का व्यवसाय शुरू किया और बाद में उन्होंने अपना व्यवसाय बदलकर जीप का काम शुरू किया।

इन सभी नौकरियों को छोड़ने के बाद 2008 में उन्हें एक खबर के बारे में पता चला कि पंजाब बागबानी विभाग हॉलैंड ग्लैडियोलस के बीजों पर सब्सिडी दे रहा है और फिर गुरविंदर सिंह सोही का वास्तविक खेल शुरू हुआ। उन्होंने 2 कनाल में ग्लैडियोलस को उगाया शुरू किया और धीरे धीरे एक ही फूल की खेती कई एकड़ में करनी शुरू की। फूल की स्थानीय किस्मों की तुलना में उन्हें उच्च मुल्य प्राप्त होना शुरू हो गया और अनकी आमदन में वृद्धि हुई।

एरिया बढ़कर 8 एकड़ से 18 एकड़ हो गया जिनमें से 9 उनके अपने थे और 9 ठेके पर थे। उन्होंने ग्लैडियोलस के लिए 10 एकड़, गेंदे के फूल के लिए 1 एकड़ और बाकी का क्षेत्र दालों, धान (मुख्यत: बासमती), गेंहू, मक्का और हरा चारा के लिए प्रयोग किया। ग्लैडियोलस की खेती में 7-8 महीने का समय लगता है इसकी बिजाई (सितंबर-अक्तूबर) और कटाई (जनवरी-फरवरी) में की जाती है। जबकि धान और गेहूं की बिजाई और कटाई इसके विपरीत होती है। इसलिए एक वर्ष में एक ही भूमि से आमदन होती है। इसके अलावा शादी के दिनों में ग्लैडियोलस की एक डंडी 7 रूपये मे बिकती है और 3 रूपये औसतन होता है। इस तरीके से वे एक वर्ष में अपनी आमदन बचा लेते हैं।

ग्लैडियोलस की फसल खजाना लूटने की तरह है क्योंकि हॉलैंड के बीजों का एक समय में 1.6 लाख प्रति एकड़ निवेश होता है जो कि बाद में 2 रूपये के हिसाब से एक फूल (बल्ब) बिकता है और उसी फसल से अगले वर्ष पौधे भी तैयार किए जा सकते हैं। हालांकि यह एक समय का निवेश होता है, पर बिजाई से लेकर बीज निकालने के लिए अप्रैल से मई महीने में ज्यादा श्रमिकों की आवश्यकता होती है। जिनका खर्चा लगभग 40000 रूपये एक एकड़ में आता है।

गेंदे की फसल भी ज्यादा लाभ देने वाली फसल है और इससे प्रत्येक मौसम में लगभग 1.25 लाख से 1.3 लाख रूपये लाभ होता है और यह लाभ गेंहू और धान से कहीं ज्यादा अच्छा है। इसके अलावा भूमि ठेके पर लेने, श्रमिक और अन्य निवेश लागत का खर्चा कुल लाभ में से निकालकर जो उनके पास बचता है वो भी उनके लिए काफी होता है।

उनका स्टार्टअप RTS फूलों के नाम से हुआ और यह कई शहरों जैसे पंजाब, चंडीगढ़, लुधियाना और पटियाला में तेजी से बढ़ गया। हालांकि उन्होंने उच्च शिक्षा नहीं ली, लेकिन वे समय समय पर अपने आपको अपडेट करते रहते हैं ताकि मंडीकरण में निपुण हो सकें और आज वे अपने ग्लैडियोलस के उत्पादन को अपने फर्म के फेसबुक पेज और अन्य ऑनलाइन वैबसाइट जैसे इंडियामार्ट के माध्यम से पूरे देश में बेच रहे हैं।

नए आधुनिक मार्किटिंग कौशल और प्रगति के साथ, गुरविंदर ने खुद को एग्री मार्किटिंग के बारे में भी अपडेट किया है और उनका काम फार्म टू फॉर्क के सिद्धांत पर प्रगति पर है। उन्होने और उनके 12 दोस्तों ने सरकारी विभागों की मदद से ड्रिप सिंचाई, सोलर पंप और अन्य कृषि यंत्र स्थापित किए हैं और किसान वेलफेयर कल्ब भी स्थापित किया है जिसकी मैंबरशिप 5000 रूपये प्रत्येक के लिए है ताकि भविष्य में अन्य मशीनरी जैसे रोटावेटर, पावर स्प्रे, और सीड ड्रिल खरीद सकें और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए ग्रुप के सदस्यों ने हल्दी, दालें, मक्की और बासमती जैविक रूप से उगानी शुरू की है और अपने जैविक खाद्य उद्योग की मार्किट को बढ़ाने के लिए, उन्होंने व्हाट्स एप ग्रुप के माध्यम से ग्राहकों को सीधे उत्पादों का मंडीकरण शुरू कर दिया है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्राहक और किसान दोनों को उचित उत्पाद मिल जाए, वे मोहाली में सीधे 30 घरों में अपने उत्पाद बेचते हैं और जल्द ही वे वेबसाइट के माध्यम से अपनी सेवा शुरू करेंगे।

गुरविंदर सिंह सोही के युवा दिमाग ने सपने देखना बंद नहीं किया और जल्दी ही वे अपने उज्जवल विचारों के साथ आगे आएंगे।

किसानों को संदेश
किसानों को छोटे समूह बनाकर एकता में काम करना चाहिए, क्योंकि इस तरीके से कृषि मशीनरी को खरीदना और प्रयोग करना आसान होता हैं एक समूह में मशीनों का प्रयोग करने से खर्चा भी कम होता है जिसके परिणामस्वरूप एक लाभदायक उद्यम होता है। मैं भी ऐसे ही करता हूं। मैंने भी एक समूह बनाया है जिसमें समूह के नाम से मशीनों को खरीदा जाता है और समूह के सभी मैंबर इसका उपयोग कर सकते हैं।”