नवजोत सिंह शेरगिल

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विदेश से वापिस आकर पंजाब में स्ट्रॉबेरी की खेती के साथ नाम बनाने वाला नौजवान किसान

जिंदगी में हर एक इंसान किसी भी क्षेत्र में प्रगति और कुछ अलग करने के बारे में सोचता है और यह विविधता इंसान को धरती से उठाकर आसमान तक ले जाती है। यदि बात करें विविधता की तो यह बात खेती के क्षेत्र में भी लागू होती है क्योंकि कामयाब हुए किसान की सफलता का सेहरा पारंपरिक तरीके का प्रयोग न कर कुछ नया करने की भावना ही रही है।

यह कहानी एक ऐसे ही नौजवान की है, जिसने पारंपरिक खेती को न अपना कर ऐसी खेती करने के बारे में सोचा जिसके बारे में बहुत कम किसानों को जानकारी थी। इस नौजवान किसान का नाम है नवजोत सिंह शेरगिल जो पटियाला ज़िले के गांव मजाल खुर्द का निवासी है, नवजोत सिंह द्वारा अपनाई गई खेती विविधता ऐसी मिसाल बनकर किसानों के सामने आई कि सभी के मनों में एक अलग अस्तित्व बन गया।

मेरा हमेशा से सपना था जब कभी भी खेती के क्षेत्र जाऊ तो कुछ ऐसा करूं कि लोग मुझे मेरे नाम से नहीं बल्कि मेरे काम से जानें, इसलिए मैंने कुछ नया करने का निर्णय किया -नवजोत सिंह शेरगिल

नवजोत सिंह शेरगिल का जन्म और पालन-पोषण UK में हुआ है, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उन्हें अपने अंदर एक कमी महसूस होने लगी, जोकि उसकी मातृभूमि की मिट्टी की खुशबू के साथ थी। इस कमी को पूरा करने के लिए, वह पंजाब, भारत लौट आया। फिर उन्होंने आकर पहले MBA की पढ़ाई पूरी की और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद निर्णय किया कि कृषि को बड़े पैमाने पर किया जाए, उन्होंने कृषि से संबंधित व्यवसाय शुरू करने के उद्देश्य से ईमू फार्मिंग की खेती करनी शुरू कर दी, लेकिन पंजाब में ईमू फार्मिंग का मंडीकरण न होने के कारण, वह इस पेशे में सफल नहीं हुए, असफल होने पर वह निराश भी हुए, लेकिन नवजोत सिंह शेरगिल ने हार नहीं मानी, इस समय नवजोत सिंह शेरगिल को उनके भाई गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने प्रोत्साहित किया, जो एक प्रगतिशील किसान हैं।जिन्हें पंजाब में फूलों के शहनशाह के नाम के साथ जाना जाता है, जिन्होंने पंजाब में फूलों की खेती कर खेतीबाड़ी में क्रांति लेकर आए थे। जो कोई भी सोच नहीं सकता था उन्होंने वह साबित कर दिया था।

नवजोत सिंह शेरगिल ने अपने भाई के सुझावों का पालन करते हुए स्ट्रॉबेरी की खेती करने के बारे में सोचा, फिर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया। सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने के बाद, उन्होंने फिर वास्तविक रूप से करने के बारे में सोचा, क्योंकि खेती किसी भी तरह की हो, उसे खुद किए बिना अनुभव नहीं होता।

मैं वास्तविक देखने और अधिक जानकारी लेने के लिए पुणे, महाराष्ट्र गया, वहां जाकर मैंने बहुत से फार्म पर गया और बहुत से किसानों को मिलकर आया -नवजोत सिंह शेरगिल

वहाँ उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में बहुत कुछ सीखा, जैसे स्ट्रॉबेरी के विकास और फलने के लिए आवश्यक तापमान, एक पौधे से दूसरे पौधे कैसे उगाए जाते हैं, और इसका मुख्य पौधा कौन-सा है और यह भारत में कहाँ से आता है।

हमारे भारत में, मदर प्लांट कैलिफ़ोर्निया से आता है और फिर उस पौधे से दूसरे पौधे तैयार किए जाते हैं -नवजोत सिंह शेरगिल

पुणे से आकर, उन्होंने पंजाब में स्ट्रॉबेरी के मुख्य पहलुओं पर पूरी तरह से जाँच पड़ताल की। जांच के बाद, वे फिर से पुणे से 14,000 से 15,000 पौधे लाए और आधे एकड़ में लगाए थे, जिसकी कुल लागत 2 से 3 लाख रुपये आई थी, उन्हें यह काम करने में ख़ुशी तो थी पर डर इस बात का था कि फिर मंडीकरण की समस्या न आ जाए, लेकिन जब फल पक कर तैयार हुआ और मंडियों में ले जाया गया, तो वहां फलों की मांग को देखकर और बहुत अधिक मात्रा में फल की बिक्री हुई और जो उनके लिए एक समस्या की तरह थी वह अब ख़ुशी में तब्दील हो गई।

मैं बहुत खुश हुआ कि मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि जो लोग मुझे स्ट्रॉबेरी की खेती करने से रोकते थे, आज वे मेरी तारीफ़ करते नहीं थकते, क्योंकि इस पेशे के लिए पैसा और समय दोनों चाहिए -नवजोत सिंह शेरगिल

जब स्ट्रॉबेरी की खेती सफलतापूर्वक की जा रही थी, तो नवजोत सिंह शेरगिल ने देखा कि जब फल पकते थे, तो उनमें से कुछ छोटे रह जाते थे, जिससे बाजार में फलों की कीमत बहुत कम हो जाती थी। इसलिए इसका समाधान करना बहुत महत्वपूर्ण था।

एक कहावत है, जब कोई व्यक्ति गिर कर उठता है, तो वह ऊंची मंजिलों पर सफलता प्राप्त करता है।

बाद में उन्होंने सोचा कि क्यों न इसकी प्रोसेसिंग की जाए, फिर उन्होंने छोटे फलों की प्रोसेसिंग करनी शुरू की।

प्रोसेसिंग से पहले मैंने कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से ट्रेनिंग लेकर फिर मैंने 2 से 3 उत्पाद बनाना शुरू किया -नवजोत सिंह शेरगिल

जब फल पक कर तैयार हो जाते थे तो उन्हें तोड़ने के लिए मजदूर की जरुरत होती थी, फिर उन्होंने गांव के लड़के और लड़कियों को खेतों में फल की तुड़ाई और छांट छंटाई के लिए रखा। जिससे उनके गांव के लड़के और लड़कियों को रोजगार मिल गया। जिसमें वे छोटे फलों को अलग करते हैं और उन्हें साफ करते हैं और फिर फलों की प्रोसेसिंग करते हैं।फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न उत्पाद बनाने के लिए एक छोटे पैमाने की मशीन स्थापित की जाए, मशीन को स्थापित करने के बाद उन्होंने स्ट्रॉबेरी उत्पाद बनाना शुरू किया। उनके ब्रांड का नाम Coco-Orchard रखा गया।

वे जो उत्पाद बनाते हैं, वे इस प्रकार हैं-

  • स्ट्रॉबेरी क्रश
  • स्ट्रॉबेरी जैम
  • स्ट्रॉबेरी की बर्फी।

वे प्रोसेसिंग से लेकर पैकिंग तक का काम स्वयं देखते हैं। उन्होंने पैकिंग के लिए कांच की बोतलों में जैम और क्रश पैक किए हैं और जैसा कि स्ट्रॉबेरी पंजाब के बाहर किसी अन्य राज्य में जाती हैं वे उसे गत्ते के डिब्बे में पैक करते हैं, जो 2 किलो की ट्रे है उनका रेट कम से कम 500 रुपये से 600 रुपये है। स्ट्रॉबेरी के 2 किलो के पैक में 250-250 ग्राम पनट बने होते हैं।

मैंने फिर से किसान मेलों में जाना शुरू किया और स्टाल लगाना शुरू कर दिया -नवजोत सिंह शेरगिल

किसान मेलों में स्टाल लगाने के साथ, उनकी मार्केटिंग में इतनी अच्छी तरह से पहचान हो गई कि वे आगामी मेलों में उनका इंतजार करने लगे। मेलों के दौरान, उन्होंने कृषि विभाग के एक डॉक्टर से मुलाकात की, जो उनके लिए बहुत कीमती क्षण था।जब कृषि विभाग के एक डॉक्टर ने उनसे जैम के बारे में पूछा कि लोगों को तो स्ट्रॉबेरी के बारे में अधिक जानकारी नहीं हैं, पर आपने तो इसका जैम भी तैयार कर दिया है। उनका फेसबुक पर Coco-Orchard नाम से एक पेज भी है, जहां वे सोशल मीडिया के जरिए लोगों को स्ट्रॉबेरी और स्ट्रॉबेरी उत्पादों के बारे में जानकारी देते हैं।

आज नवजोत सिंह शेरगिल एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां वे मार्केटिंग में इतने मशहूर हो गए हैं कि उनकी स्ट्रॉबेरी और उनके उत्पादों की बिक्री हर दिन इतनी बढ़ गई है कि उन्हें अपने उत्पादों या स्ट्रॉबेरी को के लिए मार्केटिंग में जाने की जरूरत नहीं पड़ती।

भविष्य की योजना

वे अपने स्ट्रॉबेरी व्यवसाय को बड़े पैमाने पर लेकर जाना चाहते हैं और 4 एकड़ में खेती करना चाहते हैं। वे दुबई में मध्य पूर्व में अपने उत्पाद को पहुंचाने की सोच रहे हैं, क्योंकि स्ट्रॉबेरी की मांग विदेशों में अधिक हैं।

संदेश

“सभी किसान जो स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं, उन्हें पहले स्ट्रॉबेरी के बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए और फिर इसकी खेती करनी चाहिए, क्योंकि स्ट्रॉबेरी की खेती निस्संदेह महंगी है और इसलिए समय लगता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक ऐसी फसल है जिसे बिना देखभाल के नहीं उगाया जा सकता है।”

जसकरन सिंह

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इस किसान ने साबित किया कि एक आम किसान भी कर सकता है कुछ विशेष, कुछ नया

भीड़ में चलने से कभी किसी की पहचान नहीं बनती, पहचान बनाने के लिए कुछ नया करना पड़ता है। जहां हर कोई एक दूसरे के पीछे लगकर काम कर रहा था, एक किसान ने लिया कुछ नया करने का फैसला। यह किसान स. बलदेव सिंह का पुत्र गांव कौणी तहसील गिदड़बाहा जिला मुक्तसर साहिब, पंजाब का रहने वाला है, जिसका नाम है — स. जसकरन सिंह।

स. बलदेव जी 27 एकड़ में रवायती खेती करते थे। पारिवारिक व्यवसाय, खेती होने के कारण बलदेव जी ने अपने पुत्र जसकरन को भी बहुत छोटी उम्र में ही खेतों में अपने साथ काम करवाना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया गया और पढ़ाई बीच में ही रह गई। 17—18 वर्ष की उम्र में जब खेतों में पैर रखा तो मिट्टी के साथ एक अलौकिक रिश्ता बन गया। शुरू से ही उनके पिता जी गेहूं—चने की रवायती खेती करते थे पर जसकरन सिंह जी के मन में कुछ और ही चल रहा था।

जब मैं बाहर देखता था कि रवायती खेती के अलावा खेती की जाती है, तो मेरा मन भी चाहता था कि कुछ अलग किया जाए कुछ नया किया जाए।— स. जसकरन सिंह

यही सोच मन में रखकर जसकरन जी ने स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फैसला किया। जसकरन जी के इस फैसले ने उनके पिता जी को बहुत निराश कर दिया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि एक ऐसी फसल लगानी जिसकी जानकारी ना हो एक बहुत बड़ा कदम था। पर उन्होंने अपने पिता जी को समझाकर अपने 2 दोस्तों के साथ मिलकर 8 एकड़ में स्ट्रॉबेरी का फार्म लगा लिया। मन में एक डर भी बना हुआ था कि जानकारी ना होने के कारण कहीं नुकसान ना हो जाए, पर एक विश्वास भी था कि मेहनत की हुई कभी व्यर्थ नहीं जाती। इसलिए खेती शुरू करने से पहले उन्होंने बागबानी से संबंधित ट्रेनिंग भी ली।

स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने में उन्हें ज्यादा कोई रूकावट नहीं आई। अपने दोस्तों से सलाह करके, उन्होंने पहले वर्ष दिल्ली से स्ट्रॉबेरी का बीज लिया। मजदूर ज्यादा लगने और मेहनत ज्यादा होने के कारण किसान यह खेती करना पसंद नहीं करते। पर थोड़े समय के बाद ही उनके दोस्तों को यह महसूस हुआ कि स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में कोई जानकारी ना होने के कारण उनके एक दोस्त ने इसके साथ ही अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए साथ ही और व्यापार करना शुरू कर दिया और दूसरा दोस्त जाने के प्रयास करने लग गया। पर जसकरन जी ने अपने मन में पक्का इरादा किया हुआ था कि कुछ भी हो जाए पर वे स्ट्रॉबेरी की खेती ज़रूर करेंगे।

बाहर की रंग—बिरंगी दुनिया नौजवानों को बहुत आकर्षित करती है, और नौजवान भी अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए बाहर को भाग रहे हैं। मैं चाहता था कि विदेश जाने की बजाए, यहां अपने देश में रहकर ही कुछ ऐसा किया जाए जिससे पंजाब और नई पीढ़ी की सोच में भी बदलाव आए और वे अपना भविष्य यहीं सुरक्षित कर सकें। — स. जसकरन सिंह

पहले वर्ष जसकरन जी को उम्मीद से ज्यादा फायदा हुआ। जिस कारण उन्होंने इस खेती की तरफ अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर दिया। उसके बाद उन्होंने हिमाचल की एक किस्म भी लगायी और अब वे पूणे जिसे स्ट्रॉबेरी का हाथ कहा जाता है, वहां से बीज लाकर स्ट्रॉबेरी लगाते हैं। जसकरन जी बठिंडा,  मुक्तसर साहिब और मलोट की मंडी में स्ट्रॉबेरी बेचते हैं।

स्ट्रॉबेरी के साथ साथ जसकरन जी खरबूजा और खीरा भी उगाते हैं। अब उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करते हुए 4—5 वर्ष हो गए हैं और वे इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अपनी मेहनत से जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की नर्सरी लगा चुके हैं और इस नर्सरी में वे सब्जियां उगाते हैं।

हर वर्ष पानी का स्तर नीचे जा रहा है। इसलिए हमें तुपका सिंचाई का इस्तेमाल करना चाहिए। — जसकरन सिंह

भविष्य की योजना

भविष्य में जसकरन जी स्ट्रॉबेरी की प्रोसेसिंग करके उससे उत्पाद तैयार करके मार्केटिंग करना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी इसके बारे में प्रेरित करना चाहते हैं।

संदेश
“मैं यही कहना चाहता हूं कि किसानों के खर्चे बढ़ रहे हैं पर गेहूं धान के मूल्य में कुछ ज्यादा फर्क नहीं आ रहा, इसलिए किसान भाइयों को रवायती खेती के साथ साथ कुछ अलग करना पड़ेगा। आज के समय में हमें पंजाब में फसली—विभिन्नता लाने की जरूरत है।”

गुरदीप सिंह बराड़

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एक व्यक्ति का जागृत परिवर्तन- रासायनिक खेती से जैविक खेती की तरफ

लोगों की जागृति का मुख्य कारण यह है कि जो चीज़ें उन्हें संतुष्ट नहीं करती हैं उन पर उन्होंने सहमति देना बंद कर दिया है। यह कहा जाता है कि जब व्यक्ति सही रास्ता चुनता है तो उसे उस पर अकेले ही चलना पड़ता है वह बहुत अकेला महसूस करता है और इसके साथ ही उसे उन चीज़ों और आदतों को छोड़ना पड़ता है जिसकी उसे आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही एक व्यक्ति गुरदीप सिंह बराड़ हैं, जिन्होंने सामाजिक प्रवृत्ति के विपरीत जाकर, जागृत होकर रासायनिक खेती को छोड़ जैविक खेती को अपनाया।

गुरदीप सिंह बराड़ गांव मेहमा सवाई जिला बठिंडा के निवासी हैं। 17 वर्ष पहले श्री गुरदीप सिंह के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया जिसने उनके विचारों और खेती करने के ढंगों को पूरी तरह बदल दिया। आज गुरदीप सिंह एक सफल किसान हैं और बठिंडा में जैविक किसान के नाम से जाने जाते हैं और उनकी कमायी भी अन्य किसानों के मुकाबले ज्यादा हैं जो पारंपरिक या रासायनिक खेती करते हैं।

जैविक खेती करने से पहले गुरदीप सिंह बराड़ एक साधारण किसान थे जो कि वही काम करते थे जो वे बचपन से देखते आ रहे थे। उनके पास केवल 2 एकड़ की भूमि थी जिस पर वे खेती करते थे और उनकी आय सिर्फ गुज़ारा करने योग्य थी।

1995 में वे किसान सलाहकार सेवा केंद्र के माहिरों के संपर्क में आये। वहां वे अपने खेती संबंधित समस्याओं के बारे में बातचीत करते थे और उनका समाधान और जवाब पाते थे। वे के वी के बठिंडा ब्रांच के माहिरों से भी जुड़े थे। कुछ समय बाद किसान सलाहकार केंद्र ने उन्हें सब्जियों के बीजों की किट उपलब्ध करवाकर क्षेत्र के 1 कनाल में एक छोटी सी घरेलु बगीची लगाने के लिए प्रेरित किया। जब घरेलु बगीची का विचार सफल हुआ तो उन्होंने 1 कनाल क्षेत्र को 2 कनाल में फैला दिया और सब्जियों का अच्छा उत्पादन करना शुरू किया।

सिर्फ चार वर्ष बाद 1999 में वे अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के संपर्क में आये। उन्होने उनके साथ मिलकर काम किया और कई विभिन्न खेतों का दौरा भी किया।

उनमें से कुछ हैं
• नाभा ऑरगैनिक फार्म
• गंगानगर में भगत पूर्ण सिंह फार्म
• ऑरगैनिक फार्म

इन सभी विभिन्न खेतों का दौरा करने के बाद वे जैविक खेती की तरफ प्रेरित हुए और उसके बाद उन्होंने सब्जियों के साथ मौसमी फल उगाने शुरू किए। वे बीज उपचार, कीटों के नियंत्रण और जैविक खाद तक तैयार करने के लिए जैविक तरीकों का प्रयोग करते थे। बीज उपचार के लिए वे नीम का पानी, गाय का मूत्र, चूने के पानी का मिश्रण और हींग के पानी के मिश्रण का प्रयोग करते हैं। वे सब्जियों की उपज को स्वस्थ और रसायन मुक्त बनाने के लिए घर पर तैयार जीव अमृत का प्रयोग करते हैं। कीटों के हमले के नियंत्रण के लिए वे खेतों में लस्सी का प्रयोग करते हैं। वे पानी के प्रबंधन की तरफ भी बहुत ध्यान देते हैं। इसलिए वे सिंचाई के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करते हैं।

गुरदीप सिंह ने अपने फार्म पर वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी लगाई है ताकि वे सब्जियों और फलों के लिए शुद्ध जैविक खाद उपलब्ध कर सकें। उन्होंने प्रत्येक कनाल में दो गड्ढे बनाये हैं जहां पर वे गाय का गोबर, भैंस का गोबर और पोल्टरी खाद डालते हैं।

खेती के साथ साथ वे कद्दू, करेले और काली तोरी के बीज घर पर ही तैयार करते हैं। जिससे उन्हें बाज़ार जाकर सब्जियों के बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कद्दू की मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए वे विशेष तौर पर कद्दू की बेलों को उचित सहारा देने के लिए रस्सी का प्रयोग करते हैं।

आज उनकी सब्जियां इतनी प्रसिद्ध हैं कि बठिंडा, गोनियाना मंडी और अन्य नज़दीक के लोग विशेष तौर पर सब्जियों खरीदने के लिए उनके फार्म का दौरा करने आते हैं। जब बात सब्जियों के मंडीकरण की आती है तो वे कभी तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं होते। वे 500 ग्राम के पैकेट बनाकर उत्पादों को स्वंय बेचते हैं और आज की तारीख में वे इससे अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

खेती की तकनीकों और ढंगों के लिए उन्हें कई स्थानीय पुरस्कार मिले हैं और वे कई खेती संस्थाओं और संगठनों के सदस्य भी हैं। 2015 में उन्होंने पी ए यू से सुरजीत सिंह ढिल्लों पुरस्कार प्राप्त किया। उस इंसान के लिए इस स्तर पर पहुंचना जो कभी स्कूल नहीं गया बहुत महत्तव रखता है। वर्तमान में वे अपनी माता, पत्नी और पुत्र के साथ अपने गांव में रह रहे है। भविष्य में वे जैविक खेती को जारी रखना चाहते हैं और समाज को स्वस्थ और रासायन मुक्त भोजन उपलब्ध करवाना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के कारण आज लोगों में कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं। मैं ये नहीं कहता कि किसानों को खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए लेकिन उन्हें इनका प्रयोग कम कर देना चाहिए और जैविक खेती का अपनाना चाहिए। इस तरह वे मिट्टी और जल प्रदूषण को बचा सकते हैं और कैंसर जैसी अन्य बीमारियों को रोक सकते हैं।

हिंदपाल सिंह

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राजस्थान के जोजोबा की खेती करने वाले किसान से मिलें, जिसने आई एच एम पूसा दिल्ली से होटल मैनजमेंट की डिगरी हासिल की, पर अपने पिता के नक्शेकदम पर चले

खेतीबाड़ी ना कभी आसान थी और ना ही आसान होगी। लेकिन कई लोगों के लिए जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता, उनके लिए खेती ही एकमात्र विकल्प होता है। इसलिए आज के कई किसान अपने बच्चों को स्कूल और कॉलेज में भेजते हैं ताकि वे जो चाहते हैं उसे चुने और जो बनना चाहते हैं वे बनें। लेकिन एक ऐसे इंसान हिंद पाल सिंह औलख जिनके पास अच्छा व्यवसाय चुनने का मौका था, लेकिन उन्होंने खेती को चुना।

हिंद पाल सिंह का जन्म राजस्थान के गंगानगर जिले में एक विशिष्ट कृषि परिवार में हुआ, लेकिन वे एक बहुत ही अलग आधुनिक वातावरण में पले बढ़े। अपने पिता से अलग पेशा चुनने के उद्देश्य से उन्होंने आई एच एम पूसा, दिल्ली से होटल मैनेजमेंट में बैचलर की डिग्री ली।

“लेकिन शायद हिंद पाल सिंह की किस्मत में, इसी क्षेत्र में अपना व्यवसाय जारी रखना नहीं था। उनके पिता किसान थे और कृषि में उनकी अत्याधिक रूचि थी। उनके पिता ने उन्हें खेतीबाड़ी शुरू करने के लिए प्रेरित किया।”

अपने पिता का खेती की तरफ इतना रूझान देखकर उन्होंने उनकी सहायता करने का फैसला किया। उन्होंने खेतीबाड़ी से संबंधित मैगज़ीन जैसे चंगी खेती आदि पढ़ना शुरू किया। उनमें से एक मैगज़ीन में उन्होंने जोजोबा की खेती के बारे में पढ़ा और इसे शुरू करने के बारे में सोचा। उन्होंने जयपुर का दौरा किया और वहां जोजोबा की खेती की ट्रेनिंग ली। श्री सैनी ट्रेनिंग स्टाफ के एक मैंबर थे, जिन्होंने जोजोबा की खेती में उनकी मदद की और निर्देशित किया और विशेष रूप से अपने शहर में स्थित अपने फार्म का दौरा भी करवाया।

शुरू में हिंद पाल सिंह जोजोबा की खेती शुरू करने के लिए थोड़ा घबराये हुए थे लेकिन अब 12 वर्ष से वे जोजोबा की खेती कर रहे हैं और उपज और लाभ से काफी खुश हैं। वे जोजोबा के पौधे राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से खरीदते हैं क्योंकि जोजोबा के पौधे को 10:1 रेशो में उगाया जाता है जहां 10 पौधे मादा जोजोबा के होते हैं और 1 पौधा नर जोजोबा का होता है और एक उचित एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी या माहिर ही सही जोजोबा के पौधे उपलब्ध करवा सकते हैं क्योंकि आम लोग फूल निकलने से पहले (तीन वर्ष के हो जाने पर) नर और मादा पौधों की पहचान नहीं कर सकते।

“नर पौधों के प्रजनन द्वारा मादा पौधे फूलों से बीजों का उत्पादन करते हैं, बीज उत्पादन के लिए मादा पौधे नर पौधों पर निर्भर होते हैं।”

हिंद पाल सिंह के लिए जोजोबा की खेती और बिजाई आसान नहीं थी। उन्होंने दीमक और फंगस जैसी कई समस्याओं का सामना किया, लेकिन उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से इनका सामना किया। वे हमेशा माहिर से सलाह लेते हैं और खेती के लिए माइक्रो फूड और प्राथमिक खादों का प्रयोग करते हैं। बिजाई के बाद 6 से 7 वर्ष तक जोजोबा का पौधा फल देना शुरू करता है।

“एक समय निवेश – राजस्थान जैसे क्षेत्र जहां पानी की हमेशा कमी रहती है, में जोजोबा की खेती करने की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे सिंचाई के लिए बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है (2 वर्षों तक बिना पानी के यह पौधा रह सकता है) इसके अलावा पौधे की उम्र 100 वर्ष तक होती है।”

शुरूआत में, जब जोजोबा के पौधे छोटे होते हैं, अंतरफसली भी किया जा सकता है क्योंकि 6 से 7 वर्ष तक ये बीज पैदा नहीं करते। उन्होंने उपज के मंडीकरण में भी कुछ समस्याओं का सामना किया, लेकिन सरकार से कोई सहायता नहीं ली। कॉस्मेटिक कंपनियों को फेस क्रीम, तेल, फेस वॉश और कई सौंदर्य उत्पाद बनाने के लिए जोजोबा के बीजों की आवश्यकता होती है। इसलिए उन्होंने उपभोक्ताओं को जल्दी ही ढूंढा और लाभ कमाना शुरू किया।

“जोजोबा के तेल में विस्कोसिटी इंडेक्स के कारण इसका ईंधन तेल के रूप में वैकल्पिक उपयोग होता है। इसे हाई स्पीड मशीनरी या उच्च तापमान पर चलने वाली मशीनों के लिए ट्रांसफार्मर तेल या लुबरीकेंट के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।”

इसके अलावा वे जोजोबा की खेती लगभग 5 एकड़ में करते हैं। बाकी की 65 एकड़ भूमि में वे कपास, गेहूं, मौसमी सब्जियां, सरसों, किन्नू और अन्य फसलें उगाते हैं। वे अच्छी खेती के लिए सभी आधुनिक खेती मशीनरी जैसे ट्रैक्टर, ट्रॉली, कल्टीवेटर, लेवलर, डिस्क हैरो और तुपका सिंचाई का प्रयोग करते हैं। वे भविष्य में इस काम को बढ़ाना चाहते हैं, जो वे अभी कर रहे हैं और जोजोबा के बीजों के वफादार और मुनाफे वाले उपभोक्ताओं को आकर्षित करना चाहते हैं। 45 हज़ार के निवेश के साथ आज वे लाखों कमा रहे हैं। इसके अलावा जोजोबा एक बीमारी रहित और आग के प्रतिरोधक पौधा है, जिसे एक बार विकसित हो जाने के बाद बहुत कम देखभाल की जरूरत पड़ती है।

किसानों को संदेश
किसानों को आत्मनिर्भर होना चाहिए और यदि खेतीबाड़ी से लाभ कमाना चाहते हैं तो कुछ अलग सोचना शुरू करना चाहिए। एक और बात किसानों को अपने लाभों को जो भी वे कमाते हैं उसका हिसाब रखना चाहिए और यदि वे कुछ अलग शुरू करते हैं तो उसमें अपना 100 प्रतिशत देना चाहिए।