उडीकवान सिंह

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कम उम्र में मुश्किलों को पार कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाला 20 वर्षीय युवा किसान

“छोटी उम्र बड़ी छलांग” मुहावरा तो सभी ने सुना होगा पर किसी ने भी मुहावरे का पालन करने की कोशिश नहीं की, लेकिन बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो कि ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते।

लेकिन यहां इस मुहावरे की बात एक ऐसे युवक पर बिल्कुल फिट बैठती है जिसने इस मुहावरे को सच साबित कर दिया है और बाकि लोगों के लिए भी एक मिसाल कायम की है। इन्होंने ठेके पर जमीन ली और कम उम्र में सब्जी की खेती की और बुलंदियों को हासिल कर परिवार और गांव का नाम रोशन किया है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि हर इंसान का कुछ न कुछ करने का लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करता है। आज हम जिस युवक की हम बात करने वाले हैं, शुरू से ही उनकी दिलचस्पी खेती में थी और पढ़ाई में उनका ज़रा भी मन नहीं लगता था। इनका नाम उडीकवान सिंह है जो ज़िला फरीदकोट के गांव लालेयाणा के रहने वाले है। स्कूल में भी उनके मन में यही बात घूमती रहती थी कि कब वह घर जाकर अपने पिता जी के साथ खेत का दौरा करके आएंगे, मतलब कि उनका सारा ध्यान खेतों में ही रहता था।

उनके पिता मनजीत सिंह जी, जो मॉडर्न क्रॉप केयर केमिकल्स में कृषि सलाहकार के रूप में काम करते हैं, उनको हमेशा इस बात की चिंता रहती थी कि उनका एकलौता बेटा पढ़ाई को छोड़कर खेती के कामों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है लेकिन वह इसे बुरा नहीं कह रहे थे। उनका मानना था कि “बच्चे को खेत से जुड़ा रहना चाहिए पर अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और पढ़ाई छोड़नी नहीं चाहिए।”

लेकिन उनके पिता को क्या पता था कि एक दिन यह बेटा अपना नाम मशहूर करेगा, उडीकवान जी को बचपन से ही खेतों से लगाव था लेकिन इस प्यार के पीछे उनकी विशाल सोच थी जो हमेशा सवाल पूछती थी और फिर वह यह सवाल दूसरे किसानों से पूछते थे। जब उनके पिता खुद खेती करते थे और फसल बेचने के लिए बाजार जाते थे तो उडीकवान जी दूसरे किसनों से सवाल पूछने लग जाते थे कि अगर हम इस फसल को इस विधि से उगाएं तो इससे कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, जिस पर किसान हंसने लगते थे जो कि उडीकवान जी की सफलता का कारण बना।

इसके बाद उडीकवान जी के पिता मनजीत सिंह जी हमेशा काम के सिलसिले में दिन भर बाहर रहने लगे जिससे उनका ध्यान खेतों की तरफ कम होने लगा। तब उडीकवान जी ने खेती के कार्यों की तरफ ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और वह रोज़ाना खेतों में जाकर काम करने लगे। उस समय उडीकवान जी को लगा कि अब कुछ ऐसा करने का समय आ गया है जिसका उनको काफी लंबे समय से इंतज़ार था।

उस समय उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी। फिर उन्होंने खेती से जुड़े बड़े काम करने भी शुरू कर दिए और अपने पिता के कहने अनुसार पढ़ाई भी नहीं छोड़ी। लंबे समय तक उन्होंने पारम्परिक खेती की और महसूस किया कि कुछ अलग करना होगा।

उन्होंने इस मामले पर अपने पिता से चर्चा की और सब्जियों की खेती शुरू कर दी जिसमें मूल रूप से खाने वाली सब्ज़ियां ही हैं। वह अपने मन में आने वाले सवाल पूछते रहते थे और जब भी उडीकवान जी को खेती के कार्यों में कोई समस्या आती थी तो उनके पिता जी उनकी मदद करते थे और खेती के कई अन्य तरीकों से भी अवगत करवाते थे। वह हमेशा खेतों में अपने तरीकों का इस्तेमाल करते थे लेकिन परिणाम उन्हें थोड़े समय बाद मिला जब सब्जियां पककर तैयार हुईं। जिसमें से उनकी कद्दू की फसल काफी मशहूर हुई जिसमें से एक कद्दू 18 से 20 किलो का हुआ। अभी तक उडीकवान जी के सभी तरीके सब्ज़ियों की खेती में खरे उतरते आ रहे हैं जिनसे उनके पिता जी काफ़ी खुश हैं। इसके बाद उडीकवान जी ने खुद ही सब्ज़ियों को मंडी में बेचा। वह जिन सब्ज़ियों की मूल रूप से खेती करते थे उनके पकने पर वह सुबह उन्हें ले जाते थे और उन्होंने मंडी में उनकी मार्केटिंग करनी शुरू कर दी। उन्हें इस काम में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि मार्केटिंग करनी कैसे है।

लंबे समय तक सब्जियों की मार्केटिंग नहीं होने से उडीकवान जी काफ़ी निराश रहने लगे और उन्होंने बाजार में सब्जियां न बेचने का मन बनाकर मार्केटिंग बंद करने का फैसला किया। इस दौरान उनकी मुलाकात डॉ. अमनदीप केशव जी से हुई जो कि आत्मा में प्रोजेक्ट निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं और कृषि के बारे में किसानों को बहुत जागरूक करते हैं और उनकी काफी मदद भी करते हैं। इसलिए उन्होंने उडीकवान जी से पहले सब कुछ पूछा और खुश भी हुए क्योंकि कोई ही होगा जो इतनी छोटी उम्र में खेती के प्रति यह बातें सोच सकता है।

पूरी बात सुनने के बाद डॉ.अमनदीप ने उडीकवान जी को मार्केटिंग के कुछ तरीके बताये और उडीकवान जी के सोशल मीडिया और ग्रुप्स के ज़रिये खुद मदद की। जिससे उडीकवान जी की मार्केटिंग का सिलसिला शुरू हो गया जिससे उडीकवान जी काफ़ी खुश हुए।

इस बीच आत्मा किसान कल्याण विभाग ने आत्मा किसान बाजार खोला और उडीकवान जी को सूचित किया और उन्हें फरीदकोट में हर गुरुवार और रविवार को होने वाली सब्जियों को बाजार में बेचने के लिए कहा। तब उडीकवान जी हर गुरुवार और रविवार को सब्जी लेकर जाने लगे जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होने लगा और हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानने लगा और इस मंडी में उनकी मार्केटिंग भी अच्छे से होने लगी और 2020 तक आते-आते उनका सब्ज़ियों की मार्केटिंग में काफ़ी ज्यादा प्रसार हो गया और अभी वह इससे काफ़ी ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं और उनकी सफलता का राज उनके पिता मनजीत सिंह और आत्मा किसान कल्याण विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ.अमनदीप केशव जी हैं।

उडीकवान सिंह जी जिन्होंने 20 साल की उम्र में साबित कर दिया था कि सफलता के लिए उम्र जरूरी नहीं, इसके लिए केवल समर्पण और कड़ी मेहनत ज़रूरी है, भले ही उम्र छोटी ही क्यों न हो। 20 साल की उम्र में वह सोचते हैं कि आगे क्या करना है।

उडीकवान जी अब घरेलू उपयोग के लिए सब्ज़ियों की खेती कर रहे हैं जिसमें वह मल्चिंग विधि द्वारा भी सब्ज़ियां उगा रहे हैं।

भविष्य की योजनाएं

वह सब्जियों की संख्या बढ़ाकर और अंतरफसल पद्धति अपनाकर और अधिक प्रयोग करना चाहते हैं।

संदेश

यदि कोई व्यक्ति सब्जियों की खेती करना चाहता है, तो उसे सबसे पहले उन सब्जियों की खेती और विपणन करना चाहिए जो बुनियादी स्तर पर खाई जाती हैं, जिससे खेती के साथ-साथ आय भी होगी।

बबलू शर्मा

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2 कनाल से किया था शुरू और आज 2 एकड़ में फैल चूका है इस नौजवान प्रगतिशील किसान का पनीरी बेचने का काम

मुश्किलें किस काम में नहीं आती, कोई भी काम ऐसा नहीं होगा जो बिना मुश्किलों के पूरा हो सके।इसलिए हर इंसान को मुश्किलों से भरी नाव पर सवार होना चाहिए और किनारे तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करे, जिस दिन नाव किनारे लग जाए समझो इंसान कामयाब हो गया है।

मुक्तसर जिले के गांव खुन्नन कलां के एक युवा किसान बबलू शर्मा ने भी इसी जुनून के साथ एक पेशा अपनाया, जिसके बारे में वे थोड़ा-बहुत जानते थे और थोड़ा-सा ज्ञान उनके लिए एक अनुभव बन गया और आखिर में कामयाब हो कर दिखाया, उन्होंने हार नहीं मानी, बस अपने काम में लगे रहे और आजकल हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानता है।

साल 2012 की बात है जब बबलू शर्मा के पास कोई नौकरी नहीं थी और वह किसी के पास जाकर कुछ न कुछ सीखा करते थे, लेकिन यह कब तक चलने वाला था। एक न एक दिन अपने पैरों पर खड़ा होना ही था। एक दिन वह बैठे हुए थे तो अपने पिता जी के साथ बात करने लगे कि पिता जी ऐसा कौन-सा काम हो सकता है जोकि खेती का हो और दूसरा आमदन भी हो। पिता जी को तो खेती में पहले से ही अनुभव था क्योंकि वह पहले से ही खेती करते आ रहे हैं और अब भी कर रहे हैं । अपने आसपास के किसानों को देखते हुए बबलू ने अपने पिता जी के साथ सलाह करके सब्जियों की पनीरी का काम शुरू करने के बारे में सोचा।

काम तो शुरू हो गया लेकिन पैसा लगाने के बाद भी फेल होने का डर था- बबलू शर्मा

पिता पवन कुमार जी ने कहा, बिना कुछ सोचे काम शुरू कर, जब बबलू शर्मा ने सब्जी की पनीरी का काम पहली बार शुरू किया तो उनका कम से कम 35,000 रुपये तक का खर्चा आ गया था जिसमें उन्होंने प्याज, मिर्च, टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन आदि की पनीरी से जो 2 कनाल में शुरू की थी, पर जानकारी कम होने के कारण बब्लू के सामने समस्या आ खड़ी हुई, पर जैसे-जैसे पता चलता रहा, वह काम करते रहे हैं और इसमें बब्लू के पिता जी ने भी उनका पूरा साथ दिया।

जब समय अनुसार पनीरी तैयार हुई तो उसके बाद मुश्किल थी कि इसे कहाँ पर बेचना है और कौन इसे खरीदेगा। चाहे पनीरी को संभाल कर रख सकते हैं पर थोड़े समय के लिए ही, यह बात की चिंता होने लगी।

शाम को जब बबलू घर आया तो उसके दिमाग में एक ही बात आती थी कि कैसे क्या कर सकते हैं। उन्होंने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए बहुत रिसर्च की और उस समय इंटरनेट इतना नहीं था, फिर बहुत सोचने के बाद उनके मन में आया कि क्यों न गांवों में जाकर खुद ही बेचा जाए।

पिता ने यह कहते हुए सहमति व्यक्त की, “बेटा, जैसा तुम्हें ठीक लगे वैसा करो।” उसके बाद बबलू अपने गांव के पास के गांवों में ऑटो, छोटे हाथियों जैसे छोटे वाहनों में पनीरी बेचना शुरू किया। कभी गुरद्वारे द्वारा तो कभी किसी ओर तरह से पनीरी के बारे में लोगों को बताना, 3 से 4 साल लगातार ऐसा करने से पनीरी की मार्केटिंग भी होने लगी, जिससे लोगों को भी पता चलने लगा और मुनाफा भी होने लगा, पर बब्लू जी खुश नहीं थे, कि इस तरह से कब तक करेंगे, कोई ऐसा तरीका हो जिससे लोग खुद उनके पैसा पनीरी लेने के लिए आये और वह भी नर्सरी में बैठ कर ही पनीरी को बेचें।

इस बार जब बबलू पहले की तरह पनीरी बेचने गया तो कहीं से किसी ने उसे शर्मा नर्सरी के नाम से बुलाया, जिसे सुनकर बबलू बहुत खुश हुआ और जब पनीरी बेचकर वापस आया तो उसके मन में यही बात थी। उन्होंने इसके बारे में ध्यान से सोचा, फिर बबलू ने अपने पिता जी से सलाह ली और शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने का विचार किया। शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने के लिए दे दिए, उस पर हर एक जानकारी जैसे गांव का नाम, फ़ोन नंबर और जिस भी सब्जी की पनीरी उनके द्वारा लगाई जाती है, के बारे में कार्ड पर लिखवाया गया।

जब वह पनीरी बेचने के लिए गए तो वह बनवाये कार्ड वह अपने साथ ले गए। जब वह पनीरी किसे ग्राहक को बेच रहे थे तो साथ-साथ कार्ड भी देने शुरू कर दिए और इस तरह बनवाये कार्ड कई जगह पर बांटे गए।

जब वह घर वापस आए तो वह इंतजार कर रहे थे कोई कार्ड को देखकर फोन करेगा।कई दिन ऐसे ही बीत गए लेकिन वह दिन आया जब सफलता ने फोन पर दस्तक दी। जब उसने फोन उठाया तो एक किसान उससे पनीरी मांग रहा था, जिससे वह बहुत खुश हुए और धीरे-धीरे ऐसे ही उनकी मार्केटिंग होनी शुरू हो गई। फिर उन्होंने गांव-गांव जाकर पनीरी बेचनी बंद कर दिया और उनके कार्ड जब गांव से बाहर श्री मुक्तसर में किसी को मिले तो वहां भी लोगों ने पनीरी मंगवानी शुरू कर दी जिसे वह बस या गाडी द्वारा पहुंचा देते हैं। इस तरह उन्हें फ़ोन पर ही पनीरी के लिए आर्डर आने लगे फिर और उनके पास एक मिनट के लिए भी समय नहीं मिलता और आखिर उन्हें 2018 में सफलता हासिल हुई ।

जब वह पूरी तरह से सफल हो गए और काम करते करते अनुभव हो गया तो उन्होंने धीरे-धीरे करते 2 कनाल से शुरू किए काम को 2020 तक 2 एकड़ में और नर्सरी को बड़े स्तर पर तैयार कर लिया, जिसमें उन्होंने बाद में कद्दू, तोरी, करेला, खीरा, पेठा, जुगनी पेठा आदि की भी पनीरी लगा दी और पनीरी में क्वालिटी में भी सुधार लाये और देसी तरीके के साथ पनीरी पर काम करना शुरू कर दिया।

जिससे उनकी मार्केटिंग का प्रचार हुआ और आज उन्हें मार्केटिंग के लिए कहीं नहीं जाना पड़ता, फ़ोन पर आर्डर आते हैं और साथ के गांव वाले खुद आकर ले जाते हैं। जिससे उन्हें बैठे बैठे बहुत मुनाफा हो रहा है। इस कामयाबी के लिए वह अपने पिता पवन कुमार जी का धन्यवाद करते हैं।

भविष्य की योजना

वह नर्सरी में तुपका सिंचाई प्रणाली और सोलर सिस्टम के साथ काम करना चाहते हैं।

संदेश

काम हमेशा मेहनत और लगन के साथ करना चाहिए यदि आप में जज्बा है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं जो आपने पाने के लिए सोचा है।

राजा राम जाखड़

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राजस्थान के भविष्यवादी किसान, जो घीकवार की खेती से पारंपरिक खेती में परिवर्तन ला रहे हैं

बेशक, राजस्थान आज भी पारंपरिक खेती वाले ढंगों के लिए जाना जाता है और यहां की मुख्यफसलें बाजरा, ग्वार और ज्वार हैं। बहुत सारे किसान तरक्की कर रहे हैं, पर आज भी बहुत किसान ऐसे हैं, जो अपनी पारंपरिक खेती की रूढ़ीवादी सोच से बाहर निकलकर कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं और खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं।

राजस्थान की धरती पर राजा राम सिंह जी जन्मे और पले बढ़े हैं। उन्होंने बी एस सी एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन की और उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी, ताकि वे खेती के प्रति अपने जुनून को पूरा कर सकें। उन्होंने मौके का फायदा लेना और उससे लाभ कमाना भी सीखा। आज वे राजस्थान में घीकवार के सफल किसान हैं, जो अपनी उपज के मंडीकरण के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं हैं, क्योंकि उनकी उपज केवल खेत से ही खप्तकारों को बेची जाती है।

राजा राम जाखड़ जी का परिवार बचपन से ही खेतीबाड़ी से जुड़ा है और उन्होंने अपने बचपन से ही अपने परिवार के सभी सदस्यों को खेती करते देखा। पर 1980 में उन्होंने डी ए वी कॉलेज संघरिया (राजस्थान) से बी एस सी एग्रीकल्चर की डिग्री पूरी की और उन्हें एक अलग पेशे में नौकरी (सैंट्रल स्टेट फार्म, सूरतगढ़ में सुपरवाइज़र) का मौका मिला। पर वे 3-4 महीनों से ज्यादा, वहां काम नहीं कर सके क्योंकि उनकी इस काम में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने घर वापिस आकर पिता प्रधान व्यवसाय -जो कि खेती था, इसे अपनाने का फैसला किया।

उन्होंने अपने बुज़ुर्गों वाले ढंग से ही खेती करनी शुरू की, पर इसमें कुछ विशेष लाभ नहीं मिल रहा था। धीरे-धीरे उनके परिवार की रोज़ी रोटी चलनी भी मुश्किल हो रही थी, क्योंकि उनका मुनाफा केवल गुज़ारे योग्य ही था। पर उस समय उन्होंने पतंजली ब्रांड और इसके एलोवेरा उत्पादों के बारे में सुना। उन्हें यह भी सुनने को मिला कि इन उत्पादों को बनाने के लिए पतंजली में एलोवेरा की बहुत मात्रा में उपज की जरूरत है। इसलिए इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने केवल 15000 रूपये के निवेश से 1 एकड़ एलोवेरा की खेती Babie Densis नाम की किस्म से शुरू की।

इन सब के चलते, एक बार तो उनका परिवार भी उनके विरूद्ध हो गया, क्योंकि वे जो भी काम कर रहे थे, उस पर परिवार को कोई यकीन नहीं था और उस समय अपने क्षेत्र (जिला गंगानगर) में एलोवेरा की खेती करने वाले वे पहले किसान थे। पर राजा राम जी ने अपना मन नहीं बदला, क्योंकि उन्हें खुद पर यकीन था। एक वर्ष बाद, आखिर जब एलोवेरा के पौधे पककर तैयार हो गए, कुछ खरीददारों ने उनकी उपज खरीदने के लिए संपर्क किया और तब से ही वे अपनी उपज फार्म से ही बेचते हैं, वो भी बिना कोई प्रयत्न किए। वे एक वर्ष में एक एकड़ से एक लाख रूपये तक का मुनाफा लेते हैं।

जैसे कि राजस्थान में एलोवेरा के उत्पाद तैयार करने वाली बहुत फैक्टरियां हैं, इसलिए हर 50 दिन बाद खरीददारों के द्वारा दो ट्रक उनके फार्म पर भेजे जाते हैं, और उनका काम केवल मजदूरों की मदद से ट्रकों को लोड करना होता है। अब उन्होंने अधिक मुनाफा लेने के लिए अंतर फसली विधि द्वारा एलोवेरा के खेतों में मोरिंगा पौधे भी लगाए हैं।

इस समय वे खुशी खुशी अपने परिवार (पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र) के साथ रह रहे हैं और पूरे फार्म का काम काज खुद ही संभालते हैं। उनके पास खेती के लिए एक ट्यूबवैल और ट्रैक्टर है। वे अपने खेतों में एलोवेरा, मोरिंगा और कपास की खेती के लिए केवल जैविक खेती तकनीक ही अपनाते हैं। इन तीन फसलों के अलावा वे भिंडी, तोरी, खीरा, लौकी, ग्वार की फलियां और अन्य मौसमी सब्जियों की खेती घरेलू उपयोग के लिए करते हैं।

राजा राम जाखड़ जी ने अंतर फली के लिए मोरिंगा के पौधों को इस लिए चुना, क्योंकि इसमें बहुत सारे चिकित्सक गुण होते हैं और इसे बहुत कम देखभाल करके भी आसानी से उगाया जा सकता है। अब उन्होंने पौधे बेचने का काम भी शुरू किया है और जो किसान एलोवेरा की खेती के लिए ट्रेनिंग लेना चाहते हैं, उन्हें मुफ्त सिखलाई भी देते हैं। राजा राम जी अपने भविष्यवादी विचारों से खेतीबाड़ी के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाना चाहते हैं। अभी तक कभी भी उन्होंने सरकार या किसी अन्य स्त्रोत से मदद नहीं ली और जो कुछ किया खुद से ही किया। वे भविष्य में अपने काम को और बढ़ाना चाहते हैं और अन्य किसानों को भी एलोवेरा की खेती के प्रति जागरूक करवाना चाहते हैं।


किसानों के लिए संदेश
“कुछ भी नया करने से पहले, किसानों को मंडीकरण के बारे में सोचना चाहिए ओर फिर खेती करनी चाहिए। किसानों को बहुत सारे मौके मिलते रहते हैं, बस उन्हें इन मौकों का फायदा उठाना चाहिए और इन्हें खोना नहीं चाहिए।”