करनबीर सिंह

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अन्नदाता फूड्स के नाम से किसान हट चलाने वाला प्रगतिशील किसान

आज के समय में हर कोई दूसरों के बारे में नहीं बल्कि अपने फायदे के बारे में सोचता है पर कुछ इंसान ऐसे होते हैं जिन्हें भगवान ने लोगों की सहायता करने के लिए भेजा होता है, वह दूसरे का भला सोचता भी है और इस तरह के इंसान बहुत ही कम देखने को मिलते हैं।

इस बात को सही साबित करने वाले करनबीर सिंह जो गांव साफूवाला, जिला मोगा के रहने वाले हैं जिन्होंने MSC फ़ूड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की हुई है और प्राइवेट कंपनी में काम करते थे और नौकरी छोड़ कर खेत और फ़ूड प्रोसेसिंग करने के बारे में सोचा और उसमें सफल होकर दिखाया।

साल 2014 की बात है जब करनबीर एक कंपनी में काम करते थे और जिस कंपनी में काम करते थे वहां क्या देखते हैं कि किस तरह किसानों से कम कीमत पर वस्तु लेकर अधिक कीमतों पर बेचा जा रहा है और जिसके बारे में किसानों को जानकारी नहीं थी। बहुत समय वह इस तरह ही चलता रहा पर उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी क्योंकि जो ऊगा रहे थे वह कमा नहीं रहे थे और जो कमा रहे थे वह पहले से ही बड़े लोग थे।

यह सब देखकर करनबीर को बहुत दुःख हुआ और करनबीर ने आखिर में नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और खुद आकर घर खेती और प्रोसेसिंग करने लगा। करनबीर के परिवार वाले शुरू से ही फसली विभिन्ता को अपनाते हुए खेती करते थे और इसके इलावा करनबीर के लिए फायदेमंद बात यह थी कि करनबीर के पिता सरदार गुरप्रीत सिंह गिल जोकि KVK मोगा और PAU लुधियाना के साथ पिछले कई सालों से जुड़े हुए हैं, जो किसानों को फसलों से संबंधित सलाह देते रहते थे।

फिर करनबीर ने अपने पिता के नक्शे कदम पर चलकर खेती माहिरों द्वारा बताएं गए तरीके के साथ खेती करनी शुरू की और कई तरह की फसलों की खेती करनी शुरू कर दी। फिर करनबीर के दिमाग में ख्याल आया कि जब फसल पककर तैयार होगी तो इसकी मार्केटिंग किस तरह की जाए।

फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न पहले छोटे स्तर पर मार्केटिंग की जाए, उसके बाद जब करनबीर गांव से बाहर जाते तो अपने साथ प्रोसेसिंग की अपनी वस्तुएं साथ ले जाते जहां छोटे-छोटे समूह के लोग दिखाई देते उन्हें फिर वह अपने उत्पादों के बारे में बताता और उत्पाद बेचता। उनके दोस्त नवजोत सिंह और शिव प्रीत ने इस काम में उनका पूरा साथ दे रहे हैं ।

फिर उन्होंने इसकी मार्केटिंग बड़े स्तर पर करने के बारे में सोचा और 2016 में “फ्रेंड्स ट्रेडिंग” नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई और ट्रेडिंग का काम शुरू कर दिया, जहां पर वह अपनी फसल तो मार्किट ले जाते, साथ ही ओर किसानों की फसल भी ले जानी शुरू कर दी, जोकि खेती माहिरों की सलाह से उगाई गई थी। इस तरीके के साथ उगाई गई फसल की पैदावार अधिक और बढ़िया होने के करने इसकी मांग बढ़ी जिससे करनबीर और किसानों को बहुत मुनाफा हुआ। जिसके साथ वह बहुत खुश हुए।

इस दौरान ही उनकी मुलाकात खेती व्यापार विषय के माहिर प्रोफेसर रमनदीप सिंह जी के साथ हुई जोकि हर एक किसान की बहुत सहायता करते हैं और उन्हें मार्केटिंग करने के तरीके के बारे में जागरूक करवाते रहते हैं और इसे दिमाग में रखते हुए फिर मार्केटिंग करने के तरीके को बदलने के बारे में सोचा।

फिर दिमाग में आया कि पैदा की फसल की प्राथमिक स्तर पर प्रोसेसिंग करके अगर मार्केटिंग की जाए तो क्या पता इससे बढ़िया लाभ मिल सकता है। फिर उन्होंने शुरू में जिस फसल की प्रोसेसिंग हो सकती थी प्रोसेसिंग करके उन्हें बेचने का काम शुरू कर दिया, जिसकी शुरुआत उन्होंने किसान मेले से की और उनको लोगों की अच्छी प्रतिकिर्या मिली।

इसे आगे चलाने के लिए करनबीर सिंह जी ने एक किसान हट खोलने के बारे में सोचा जहां पर उनकी फसलों की प्रोसेसिंग और किसानों की फसलों की प्रोसेसिंग का सामान रख कर बेचा जा सके, जिसका मुनाफा सीधा किसान के खाते में ही जाए न कि बिचौलिए के हाथ और जिसके साथ उसकी मार्केटिंग बनी रहेगी और दूसरा लोगों को साफ-सफाई और बढ़िया वस्तुएं मिलती रहेगी।

फिर 2019 में करनबीर ने अन्नदाता फूड्स नाम से ब्रांड रजिस्टर्ड करवा कर मोगा शहर में अपनी किसान हट खोली और प्रोसेसिंग किया हुआ सामान रख दिया। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया, वैसे ही लोग सामान लेने आते रहे।

जिस में बाकि किसान द्वारा प्रोसेसिंग किया सामान जैसे शहद, दाल, GSC 7 कनोला सरसों का तेल, चने आदि बहुत वस्तुएं रख कर बेचते हैं।

बहुत कम समय में मार्केटिंग में प्रसार हुआ और लोग उन्हें अन्नदाता फूड्स के नाम से जानने लगे। इस तरह 2019 में वह सफल हुए जिसमें उनकी सफलता का मुख्य श्रेय GSC 7 कनोला सरसों का तेल को जाता है क्योंकि तेल की मांग इतनी अधिक है कि मांग को पूरा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि यह तेल बाकि तेल से अलग है क्योंकि इस तेल में बहुत मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है और जिससे उन्हें मुनाफा तो होता पर उनके साथ ओर किसानों को भी हो रहा है।

मेरा मानना है कि यदि हम किसान और ग्राहक में से बिचौलीए को निकाल दें तो हर इंसान बढ़िया और साफ-सफाई की वस्तुएं खा सकता है दूसरा किसान को अपनी फसल का सही मूल्य भी मिल जाएगा- करनबीर सिंह

भविष्य की योजना

वह चाहते हैं कि किसानों का समूह बनाकर वही फसलें उगाएं जिसकी खपत राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत मांग है।

संदेश

यदि कोई किसान खेती करता है तो उन्हें चाहिए कि खेती माहिरों द्वारा दिए गए दिशा निर्देश पर चल कर ही रेह स्प्रे का प्रयोग करें, जितनी फसल के विकास के लिए जरुरत है।

धरमजीत सिंह

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एक सफल अध्यापक के साथ साथ एक सफल किसान बनने तक का सफर

कोई भी पेशा आसान नहीं होता, मुश्किलें हर क्षेत्र में आती हैं। चाहे वह क्षेत्र कृषि हो या कोई और व्यवसाय। अपने रोज़ाना के काम को छोड़ना और दूसरे पेशे को अपनाना एक चुनौती ही होती है, जिसने चट्टान की तरह चुनौतियों का सामना किया है, आखिरकार वही जीतता है।

इस कहानी के माध्यम से हम एक प्रगतिशील किसान के बारे में बात करेंगे, जो एक स्कूल शिक्षक के रूप में एक तरफ बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर रहें है और दूसरी तरफ जैविक खेती के माध्यम से लोगों के जीवन को स्वास्थ्य कर रहे हैं, क्योंकि कोई कोई ही ऐसा होता है जो खुद का नहीं, दूसरों का भला सोचता है।

ऐसे ही किसानों में से एक “धर्मजीत सिंह” हैं, जो गांव माजरी, फतेहगढ़ साहिब के निवासी हैं। जैसा कि कहा जाता है, “जैसे नाम वैसा काम” अर्थ कि जिस तरह का धरमजीत सिंह जी का नाम है वे उस तरह का ही काम करते हैं। दुनिया में इस तरह के बहुत कम देखने को मिलते हैं।

काम की सुंदरता उस व्यक्ति पर निर्भर करती है जिसके लिए उसे सौंपा गया है। ऐसा काम, जिनके बारे में वे जानते भी नहीं थे और न कभी सुना था।

जब सूरज चमकता है, तो हर उस जगह को रोशन कर देता है जहां केवल अंधेरा होता है। उसी तरह से, धर्मजीत सिंह के जीवन पर यह बात लागू होती है क्योंकि बेशक वे उस रास्ते से जा रहे थे, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं थी, वह खेती तो कर रहे थे लेकिन जैविक नहीं।

जब समय आता है, वह पूछ कर नहीं आता, वह बस आ जाता है। एक ऐसा समय तब आया जब उन्हें रिश्तेदार उनसे मिलने आये थे। एक दूसरे से बात करते हुए, अचानक, कृषि से संबंधित बात होने लगी। बात करते करते उनके रिश्तेदारों ने जैविक खेती के बारे में बात की, तो धर्मजीत सिंह जी जैविक खेती का नाम सुनकर आश्चर्यचकित थे। जैविक और रासायनिक खेती में क्या अंतर है, खेती तो आखिर खेती है। तब उनके रिश्तेदार ने कहा, “जैविक खेती बिना छिड़काव, दवाई, रसायनिक खादों के बिना की जाती है और प्राकृतिक से मिले तोहफे को प्रयोग कर जैसे केंचए की खाद, जीव अमृत आदि बहुत से तरीके से की जाती है।

पर मैंने तो कभी जैविक खेती की ही नहीं यदि मैंने अब जैविक खेती करनी हो तो कैसे कर सकता हूँ- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने एक अभ्यास के रूप में एक एकड़ में गेहूं की फसल लगाई। उन्होंने फसल की काश्त तो कर दी और रिश्तेदार चले गए, लेकिन वे दोनों चिंतित थे और फसल के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे, कि फसल की कितनी पैदावार होगी। वे इस बात से परेशान थे।

जब फसल पक चुकी थी, तो उसका आधा हिस्सा उसके रिश्तेदारों ने ले लिया और बाकी घर ले आए। लेकिन पैदावार उनकी उम्मीद से कम थी।

जब मैंने और मेरे परिवार ने फसल का प्रयोग किया तो चिंता ख़ुशी में बदल गई- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने मन बनाया कि अगर खेती करनी है, तो जैविक खेती करनी है। इसलिए उन्होंने मौसम के अनुसार फिर से खेती शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने 11 एकड़ में जैविक खेती शुरू की।

जैविक खेती उनके लिए एक चुनौती जैसी थी जिसका सामना करते समय उन्हें कठिनाइयां भी आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस साहस को ध्यान में रखते हुए, वह अपने रस्ते पर चलते रहे और जैविक खेती के बारे में जानकारी लेते रहे और सीखते रहें। जब फसल पक गई और कटाई के लिए तैयार हो गई तो वह बहुत खुश थे।

फसल की पैदावार कम हुई थी, जिससे ग्रामीणों ने मजाक उड़ाया कि यह रासायनिक खेती से लाभ कमा रहा था और अब यह नुकसान कर रहा है।

जब मैं अकेला बैठ कर सोचता था, तो मुझे लगा कि मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं- धर्मजीत सिंह

एक ओर वे परेशान थे और दूसरी ओर वे सोच रहे थे कि कम से कम वह किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे। जो भोजन मैं स्वयं खाता हूं और दूसरों को खिलाता हूं वह शुद्ध और स्वच्छ होता है।

ऐसा करते हुए, उन्होंने पहले 4 वर्षों बहु-फसल विधि को अपनाने के साथ-साथ जैविक खेती सीखना शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने गन्ना, दलहन और अन्य मौसमी फसलों की खेती शुरू की।

अच्छी तरह से सीखने के बाद, उन्होंने पिछले 4 वर्षों में मंडीकरण करना भी शुरू किया। वैसे, वे 8 वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं। जैविक खेती के साथ-साथ उन्होंने जैविक खाद बनाना भी शुरू किया, जिसमें वर्तमान में केवल केंचए की खाद और जीव अमृत का उपयोग करते हैं।

इसके बाद उन्होंने सोचा कि प्रोसेसिंग भी की जाए, धीरे-धीरे प्रोसेसिंग करने के साथ उत्पाद बनाना शुरू कर दिया। जिसमें वे लगभग 7 से 8 प्रकार के उत्पाद बनाते हैं जो बहुत शुद्ध और देसी होते हैं।

उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद-

  • गेहूं का आटा
  • सरसों का तेल
  • दलहन
  • बासमती चावल
  • गुड़
  • शक़्कर
  • हल्दी

जिसका मंडीकरण गाँव के बाहर किया जाता है और अब पिछले कई वर्षों से जैविक मंडी चंडीगढ़ में कर रहे है। वे मार्केटिंग के माध्यम से जो कमा रहे हैं उससे संतुष्ट हैं क्योंकि वे कहते हैं कि “थोड़ा खाएं, लेकिन साफ खाएं”। इस काम में केवल उनका परिवार उनका साथ दे रहा है।

अगर अच्छा उगाएंगे, तो हम अच्छा खाएंगे

भविष्य की योजना

वह अन्य किसानों को जैविक खेती के महत्व के बारे में बताना चाहते हैं और उन किसानों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जो जैविक खेती न कर रासायनिक खेती कर रहे हैं। वे अपने काम को बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं, क्योंकि वे यह बताना चाहते हैं कि जैविक खेती एक सौदा नहीं है, बल्कि शरीर को स्वस्थ रखने का राज है।

संदेश

हर किसान जो खेती करता है, जब वह खेती कर रहा होता है, तो उसे सबसे पहले खुद को और अपने परिवार को देखना चाहिए, जो वे ऊगा रहे हैं वह सही और शुद्ध उगा रहे है, तभी खेती करनी चाहिए।

गुरविंदर सिंह सोही

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एक युवा खेतीप्रेन्योर की कहानी, जो हॉलैंड ग्लैडियोलस की खेती से पंजाब में फूलों के व्यापार में आगे बढ़ा

यह कहा जाता है कि सफलता आसानी से प्राप्त नहीं होती। आपको असफलता का स्वाद काफी बार चखना पड़ता है तभी आप सफलता के असली स्वाद का मज़ा ले सकते हो। ऐसा ही गुरविंदर सिंह सोही के साथ हुआ। वे एक सामान्य विद्यार्थी, जिसने खेतीबाड़ी का चयन उस समय किया जब वे पंजाब जे ई टी की परीक्षा में सफल नहीं हो पाये।

उन्होंने शुरू से ही निर्धारित किया था कि वे भेड़ की तरह काम नहीं करेंगे, ना ही अपने परिवार के व्यवसाय की तरह गेहूं-धान की खेती करेंगे। इसलिए उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की लेकिन इसमें सफल नहीं हो सके। जल्दी ही उन्होंने नज़दीक के शहर खमानो में अपनी मिठाई की दुकान स्थापित की। लेकिन वे शायद इसके लिए भी नहीं बने थे। इसलिए उन्होंने घोड़े के प्रजनन का व्यवसाय शुरू किया और बाद में उन्होंने अपना व्यवसाय बदलकर जीप का काम शुरू किया।

इन सभी नौकरियों को छोड़ने के बाद 2008 में उन्हें एक खबर के बारे में पता चला कि पंजाब बागबानी विभाग हॉलैंड ग्लैडियोलस के बीजों पर सब्सिडी दे रहा है और फिर गुरविंदर सिंह सोही का वास्तविक खेल शुरू हुआ। उन्होंने 2 कनाल में ग्लैडियोलस को उगाया शुरू किया और धीरे धीरे एक ही फूल की खेती कई एकड़ में करनी शुरू की। फूल की स्थानीय किस्मों की तुलना में उन्हें उच्च मुल्य प्राप्त होना शुरू हो गया और अनकी आमदन में वृद्धि हुई।

एरिया बढ़कर 8 एकड़ से 18 एकड़ हो गया जिनमें से 9 उनके अपने थे और 9 ठेके पर थे। उन्होंने ग्लैडियोलस के लिए 10 एकड़, गेंदे के फूल के लिए 1 एकड़ और बाकी का क्षेत्र दालों, धान (मुख्यत: बासमती), गेंहू, मक्का और हरा चारा के लिए प्रयोग किया। ग्लैडियोलस की खेती में 7-8 महीने का समय लगता है इसकी बिजाई (सितंबर-अक्तूबर) और कटाई (जनवरी-फरवरी) में की जाती है। जबकि धान और गेहूं की बिजाई और कटाई इसके विपरीत होती है। इसलिए एक वर्ष में एक ही भूमि से आमदन होती है। इसके अलावा शादी के दिनों में ग्लैडियोलस की एक डंडी 7 रूपये मे बिकती है और 3 रूपये औसतन होता है। इस तरीके से वे एक वर्ष में अपनी आमदन बचा लेते हैं।

ग्लैडियोलस की फसल खजाना लूटने की तरह है क्योंकि हॉलैंड के बीजों का एक समय में 1.6 लाख प्रति एकड़ निवेश होता है जो कि बाद में 2 रूपये के हिसाब से एक फूल (बल्ब) बिकता है और उसी फसल से अगले वर्ष पौधे भी तैयार किए जा सकते हैं। हालांकि यह एक समय का निवेश होता है, पर बिजाई से लेकर बीज निकालने के लिए अप्रैल से मई महीने में ज्यादा श्रमिकों की आवश्यकता होती है। जिनका खर्चा लगभग 40000 रूपये एक एकड़ में आता है।

गेंदे की फसल भी ज्यादा लाभ देने वाली फसल है और इससे प्रत्येक मौसम में लगभग 1.25 लाख से 1.3 लाख रूपये लाभ होता है और यह लाभ गेंहू और धान से कहीं ज्यादा अच्छा है। इसके अलावा भूमि ठेके पर लेने, श्रमिक और अन्य निवेश लागत का खर्चा कुल लाभ में से निकालकर जो उनके पास बचता है वो भी उनके लिए काफी होता है।

उनका स्टार्टअप RTS फूलों के नाम से हुआ और यह कई शहरों जैसे पंजाब, चंडीगढ़, लुधियाना और पटियाला में तेजी से बढ़ गया। हालांकि उन्होंने उच्च शिक्षा नहीं ली, लेकिन वे समय समय पर अपने आपको अपडेट करते रहते हैं ताकि मंडीकरण में निपुण हो सकें और आज वे अपने ग्लैडियोलस के उत्पादन को अपने फर्म के फेसबुक पेज और अन्य ऑनलाइन वैबसाइट जैसे इंडियामार्ट के माध्यम से पूरे देश में बेच रहे हैं।

नए आधुनिक मार्किटिंग कौशल और प्रगति के साथ, गुरविंदर ने खुद को एग्री मार्किटिंग के बारे में भी अपडेट किया है और उनका काम फार्म टू फॉर्क के सिद्धांत पर प्रगति पर है। उन्होने और उनके 12 दोस्तों ने सरकारी विभागों की मदद से ड्रिप सिंचाई, सोलर पंप और अन्य कृषि यंत्र स्थापित किए हैं और किसान वेलफेयर कल्ब भी स्थापित किया है जिसकी मैंबरशिप 5000 रूपये प्रत्येक के लिए है ताकि भविष्य में अन्य मशीनरी जैसे रोटावेटर, पावर स्प्रे, और सीड ड्रिल खरीद सकें और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए ग्रुप के सदस्यों ने हल्दी, दालें, मक्की और बासमती जैविक रूप से उगानी शुरू की है और अपने जैविक खाद्य उद्योग की मार्किट को बढ़ाने के लिए, उन्होंने व्हाट्स एप ग्रुप के माध्यम से ग्राहकों को सीधे उत्पादों का मंडीकरण शुरू कर दिया है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्राहक और किसान दोनों को उचित उत्पाद मिल जाए, वे मोहाली में सीधे 30 घरों में अपने उत्पाद बेचते हैं और जल्द ही वे वेबसाइट के माध्यम से अपनी सेवा शुरू करेंगे।

गुरविंदर सिंह सोही के युवा दिमाग ने सपने देखना बंद नहीं किया और जल्दी ही वे अपने उज्जवल विचारों के साथ आगे आएंगे।

किसानों को संदेश
किसानों को छोटे समूह बनाकर एकता में काम करना चाहिए, क्योंकि इस तरीके से कृषि मशीनरी को खरीदना और प्रयोग करना आसान होता हैं एक समूह में मशीनों का प्रयोग करने से खर्चा भी कम होता है जिसके परिणामस्वरूप एक लाभदायक उद्यम होता है। मैं भी ऐसे ही करता हूं। मैंने भी एक समूह बनाया है जिसमें समूह के नाम से मशीनों को खरीदा जाता है और समूह के सभी मैंबर इसका उपयोग कर सकते हैं।”

अमरजीत सिंह भट्ठल

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जानें एक रिटायर्ड फौजी के बारे में, जो एग्रीप्रेन्योर बन गए और एग्री बिज़नेस के क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं

आज कल बहुत कम लोग अपने भविष्य में खेतीबाड़ी के क्षेत्र में जाने के बारे में सोचते हैं। जिस दौर में हम रह रहे हैं, इसमें ज्यादातर लोग बड़े शहरों का हिस्सा बनना चाहते हैं और सेवा मुक्ति के बाद की ज़िंदगी को लोग आमतौर पर आसान और आरामदायक तरीके से जीना चाहते हैं, जिसमें उनके पास कोई काम ना होना, घर में खाली बैठना, अखबार पढ़ना, बच्चों के साथ समय बिताना और थोड़ी बहुत कसरत करना आदि शामिल हो। बहुत कम लोग होते हैं, जो कुदरत की चिंता करते हैं और अपनी जिम्मेदारियां निभाते हैं और अपने जीवन में उन्होंने मिट्टी से जो कुछ हासिल किया, उसे वापिस देने की कोशिश करते हैं।

स. अमरजीत सिंह भट्ठल एक रिटायर्ड फौजी हैं, जो कुदरत के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और इस जिम्मेदारी को उन्होंने अपना शौंक और आराम का तरीका बना लिया। वे आराम वाली ज़िंदगी को छोड़कर लुधियाना में स्थित अपने गांव में अपने पिता और पत्नी सहित रह रहे हैं और जट्ट सौदा के नाम से एक दुकान चला रहे हैं।

सड़क के साथ लगती और भी दुकानें और रिटेल स्टोर हैं, पर जट्ट सौदे में खास क्या है दुकान के पीछे स्वंय के खेत में उगाई जैविक सब्जियां, दालें, फल और मसाले आदि जट्ट सौदे को दूसरों से अलग और विलक्षण बनाते हैं। वास्तव में उनकी ऑन रोड फार्म मार्किट है, जहां पर आप सब कुछ ताजा और जैविक खरीद सकते हैं। इसके अलावा उनके पास एक छोटा पॉल्टरी फार्म भी है, जहां उनके पास लगभग 100 देसी मुर्गियां हैं। मुर्गियों की गिनती कम ज्यादा होती रहती है, पर देसी अंडों की मांग कभी भी नहीं घटती और स्टोर में पहुंचने के साथ-साथ ही सारे अंडे बिक जाते हैं।

उन्होंने विरासत मिशन से ट्रेनिंग लेने के बाद दिसंबर 2012 में जैविक खेती शुरू की। उस दिन से लेकर आज तक वे खेती का काम पूरी लगन से कर रहे हैं। वे सुबह से शाम तक का समय अपने फार्म स्टोर पर ही व्यतीत करते हैं, जहां उनके पिता भी उनका साथ देते हैं। ये पिता-पुत्र अपनी ज़मीन के छोटे से हिस्से को अपने पुत्र की तरह पालते हैं।

उन्होंने अपनी दुकान की दिखावट ग्रामीण तरीके से तैयार की है, जिसके एक ओर आप ताज़ी मौसमी सब्जियां डिस्पले पर लगी देख सकते हैं और छत से नीचे लटकती लहसुन की गांठे देख सकते हैं। दुकान के बीच में से एक रास्ता पीछे बने फार्म की तरफ जाता है, जहां आपको भिंडी, टमाटर, करेले, अरहर अलग अलग तरह के लैट्टस (सलाद पत्ता) की किस्में और अन्य बहुत तरह की सब्जियां मिलती हैं। उनके अनुसार फार्म देखने के लिए सबसे उचित समय जल्दी सुबह से शाम तक का होता है क्योंकि उस समय आप बहुत अच्छे कुदरत के रंगों को फार्म की खूबसूरती से मिलते देख सकते हैं। फार्म के एक कोने पर पोल्टरी फार्म बना है जहां आप किल्ली से बंधा कुत्ता देख सकते हैं। सब कुछ मिलाकर यह फार्म एक संपूर्ण फार्म का दीदार करवाता है। उनके पास खेती के कामों के लिए 2-3 मजदूर हैं।

अमरजीत सिंह जी ने पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से एम एस सी की डिग्री पूरी की और देश की सेवा करना उनके द्वारा चुना गया पेशा था। खेती से पहले, स. अमरजीत सिंह एक इमीग्रेशन कंपनी में सलाहकार के तौर पर भी काम करते थे, जहां वे बच्चों के साथ बात करके भविष्य की ज़िंदगी के लक्ष्यों और उद्देश्यों के बारे में चर्चा करते थे और उन्हें सलाह देते थे। इसके अलावा वे पंजाब के मुख्य मंत्री अमरिंदर सिंह जी के भी प्रसिद्ध सलाहकार रहे हैं। अपनी ज़िंदगी में इतने मशहूर पद हासिल करने के बाद भी आज वे किसी भी चीज़ का घमंड नहीं करते। वे सादा जीवन व्यतीत करने में यकीन रखते हैं और कुदरत की इज्ज़त भी करते हैं। वे जैविक खेती के द्वारा कुदरत को बचाने और समाज को तंदरूस्त भोजन देने की कोशिश कर रहे हैं। अमरजीत सिंह जी का एक छिपा हुआ गुण भी है। उनके कॉलेज के समय से ही वे साहित्य में रूचि रखते थे और उन्हें लियो टॉलस्टॉये को पढ़ने का बहुत शौंक था। वे बहुत बढ़िया लेखक भी हैं और अब भी जब खेती के कामों से समय मिलता है तो अपने विचारों और सोच को शब्दों में लिखते हैं।

उनसे बातचीत करने के बाद उन्होंने ग्राहकों की मांग बारे में चर्चा की और उनके अनुसार आज कल ग्राहकों की मांग स्वास्थ्य के हित में नहीं है। आधुनिक तकनीकों और नए तरीकों से खाना बचाकर आज आप गर्मियों में मटर और गाजर और सर्दियों में लौकी खा सकते हैं। जैसे कि हम सब जानते हैं कि सब्जियां मानवी पाचन क्रिया में मुख्य हिस्सा है और प्रत्येक मौसम हमें बहुत सारी ताजी उपज प्रदान करता है। इसलिए यदि आप अपने भोजन में अन्य जैविक, मौसमी फल और सब्जियों को शामिल करते हैं, तो यह और भी ज्यादा लाभदायक होगा, क्योंकि खुराक में मौसमी फल शामिल करने से आप अधिक तत्वों वाली सब्जियां, जो कि बिना किसी रसायनों से होती हैं, उनका अच्छा स्वाद ले सकते हैं। यह भोजन आपके शरीर के लिए भी मौसम के अनुसार सहायक होगा। उन्होंने यह भी कहा कि जिस दिन ग्राहकों को जैविक भोजन के फायदों के बारे में पता लगेगा, उस दिन से जैविक सब्जियों और फलों की मांग अपने आप बढ़ जायेगी और जागरूकता बढ़ाने के लिए किसानों और ग्राहकों में संपर्क होना बहुत जरूरी है।

वे स्वंय लोगों को जैविक खेती के बारे में जागरूक करने की कोशिश करते हैं और उन्होंने स्कूल के बच्चों को जैविक खेती और भोजन की महत्वत्ता पर प्रैज़ैनटेशन भी दी। इस समय वे जैविक खेती को जारी रखने और अन्य लोगों को जैविक खेती के फायदों से जागरूक करवाने की योजना बना रहे हैं।

भविष्य में उनकी योजनाएं इस प्रकार हैं:

• अपनी ऑन रोड मार्किट के ढांचे को अपग्रेड करना

• 2000 गज में नैट हाउस बनाना

• अपने फार्म में फसलों को संरक्षित वातावरण प्रदान करना

• सिंचाई का हाइब्रिड सिस्टम लगाना

• पानी की स्टोरेज बढ़ाना

अमरजीत सिंह भट्ठल जी के द्वारा दिया गया संदेश
“उन्होंने आज के किसानों को बड़ी समझदारी वाला संदेश दिया कि आप उत्पाद का मुल्य नियंत्रण नहीं कर सकते, क्योंकि वह सरकार पर निर्भर करता है, आपको वह करना चाहिए, जो आप कर सकते हैं। किसानों को लागत मुल्य पर नियंत्रण करना चाहिए और जैविक खेती करनी चाहिए, क्योंकि इससे ज्यादा खर्चा नहीं आता। एक समय आयेगा, जब लोगों को अहसास होगा कि पारंपरिक खेती उनकी मांगों को पूरा नहीं कर रही है। इसलिए अच्छा होगा, यदि हम समय की जरूरत को समझ लें और इसके अनुसार ही काम करें।”

कांता देष्टा

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एक किसान महिला जिसे यह अहसास हुआ कि किस तरह वह रासायनिक खेती से दूसरों में बीमारी फैला रही है और फिर उसने जैविक खेती का चयन करके एक अच्छा फैसला लिया

यह कहा जाता है, कि यदि हम कुछ भी खा रहे हैं और हमें किसानों का हमेशा धन्यवादी रहना चाहिए, क्योंकि यह सब एक किसान की मेहनत और खून पसीने का नतीजा है, जो वह खेतों में बहाता है, पर यदि वही किसान बीमारियां फैलाने का एक कारण बन जाए तो क्या होगा।

आज के दौर में रासायनिक खेती पैदावार बढ़ाने के लिए एक रूझान बन चुकी है। बुनियादी भोजन की जरूरत को पूरा करने की बजाय खेतीबाड़ी एक व्यापार बन गई है। उत्पादक और भोजन के खप्तकार दोनों ही खेतीबाड़ी के उद्देश्य को भूल गए हैं।

इस स्थिति को, एक मशहूर खेतीबाड़ी विज्ञानी मासानुबो फुकुओका ने अच्छी तरह जाना और लिखते हैं।

“खेती का अंतिम लक्ष्य फसलों को बढ़ाना नहीं है, बल्कि मानवता के लिए खेती और पूर्णता है।”

इस स्थिति से गुज़रते हुए, एक महिला- कांता देष्टा ने इसे अच्छी तरह समझा और जाना कि वह भी रासायनिक खेती कर बीमारियां फैलाने का एक साधन बन चुकी है और उसने जैविक खेती करने का एक फैसला किया।

कांता देष्टा समाला गांव की एक आम किसान थी जो कि सब्जियों और फलों की खेती करके कई बार उसे अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों में बांटती थी। पर एक दिन उसे रासायनिक खादों के प्रयोग से पैदा हुए फसलों के हानिकारक प्रभावों के बारे में पता लगा तो उसे बहुत बुरा महसूस हुआ। उस दिन से उसने फैसला किया कि वह रसायनों का प्रयोग बंद करके जैविक खेती को अपनाएगी।

जैविक खेती के प्रति उसके कदम को और प्रभावशाली बनाने के लिए वह 2004 में मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग द्वारा चलाए जा रहे एक प्रोग्राम में शामिल हो गई। उसने कई तरह के फल, सब्जियां, अनाज और मसाले जैसे कि सेब, नाशपाति, बेर, आड़ू, जापानी खुबानी, कीवी, गिरीदार, मटर, फलियां, बैंगन, गोभी, मूली, काली मिर्च, प्याज, गेहूं, उड़द, मक्की और जौं आदि को उगाना शुरू किया।

जैविक खेती को अपनाने पर उसकी आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और यह बढ़कर वार्षिक 4 से 5 लाख रूपये हुई। केवल यही नहीं, मोरारका फाउंडेशन की मदद से कांता देष्टा ने अपने गांव में महिलाओं का एक ग्रुप बनाया और उन्हें जैविक खेती के बारे में जानकारी प्रदान की, और उन्हें उसी फाउंडेशन के तहत रजिस्टर भी करवाया।

“मैं मानती हूं कि एक ग्रुप में लोगों को ज्ञान प्रदान करना बेहतर है क्योंकि इसकी कीमत कम है और हम एक समय में ज्यादा लोगों को ध्यान दे सकते हैं।”

आज उसका नाम सफल जैविक किसानों की सूची में आता है उसके पास 31 बीघा सिंचित ज़मीन है जिस पर वह खेती कर रही है और लाखों में लाभ कमा रही है। बाद में वह NONI यूनिवर्सिटी , दिल्ली, जयपुर और बैंगलोर में भी गई, ताकि जैविक खेती के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके और हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा उसे उसके प्रयत्नों के लिए दो बार सरकारी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। शिमला में बेस्ट फार्मर अवार्ड के तौर पर सम्मानित किया गया और 13 जून 2013 को उसे जैविक खेती के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रशंसा और सम्मान भी मिला।

एक बड़े स्तर पर इतनी प्रशंसा मिलने के बावजूद यह महिला अपने आप पूरा श्रेय नहीं लेती और यह मानती है कि उनकी सफलता का सारा श्रेय मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग को जाता है। जिसने उसे सही रास्ता दिखाया और नेतृत्व किया।

खेती के अलावा, कांता के पास दो गायें और 3 भैंसें भी हैं और उसके खेतों में 30x8x10 का एक वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट भी है जिस में वह पशुओं के गोबर और खेती के बचे कुचे को खाद के तौर पर प्रयोग करती है। वह भूमि की स्थितियों में सुधार लाने के लिए और खर्चों को कम करने के लिए कीटनाशकों के स्थान पर हर्बल स्प्रे, एप्रेचर वॉश, जीव अमृत और NSDL का प्रयोग करती है।

अब, कांता अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में सब्जियां और फल बांटने के दौरान खुशी महसूस करती है क्योंकि वह जानती है कि जो वह बांट रही है वह नुकसानदायक रसायनों से मुक्त है और इसे खाकर उसके रिश्तेदार और दोस्त सेहतमंद रहेंगे।

कांता देष्टा की तरफ से संदेश –
“यदि हम अपने पर्यावरण को साफ रखना चाहते हैं तो जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है।”