लिंगारेडी प्रसाद

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सफल किसान होना ही काफी नहीं, साथ साथ दूसरे किसानों को सफल करना इस व्यवसायी का सूपना था और इसे सच करके दिखाया- लिंगारेडी प्रसाद

खेती की कीमत वही जानता है जो खुद खेती करता है, फसलों को उगाने और उनकी देखभाल करने के समय धरती मां के साथ एक अलग रिश्ता बन जाता है, यदि हर एक इंसान में खेती के प्रति प्यार हो तो वह हर चीज को प्रकृति के अनुसार ही बना कर रखने की कोशिश करता है और सफल भी हो जाता है। हर एक को चाहिए वह रसायनिक खेती न कर प्रकृति खेती को पहल दे और फिर प्रकृति भी उसकी जिंदगी को खुशियों से भर देती है।

ऐसा ही एक उद्यमी है किसान, जो कृषि से इतना लगाव रखते हैं कि वह खेती को सिर्फ खेती ही नहीं, बल्कि प्रकृति की देन मानते हैं। इस उपहार ने उन्हें बहुत प्रसिद्ध बना दिया। उस उद्यमी किसान का नाम लिंगारेड़ी प्रशाद है, जो चितूर, आंध्रा प्रदेश के रहने वाले हैं। पूरा परिवार शुरू से ही खेती में लगा हुआ था और जैविक खेती कर रहा था पर लिंगारेड़ी प्रशाद कुछ अलग करना चाहते थे, लिंगारेड़ी प्रशाद सोचते थे कि वह खुद को तब सफल मानेंगे जब उन्हें देखकर ओर किसान भी सफल होंगे। पारंपरिक खेती में वह सफलतापूर्वक आम के बाग, सब्जियां, हल्दी ओर कई फसलों की खेती कर रहे थे।

फसली विभिन्ता पर्याप्त नहीं थी क्योंकि यह तो सभी करते हैं- लिंगारेड़ी प्रशाद

एक दिन वे बैठे पुराने दिनों के बारे में सोच रहे थे, सोचते-सोचते उनका ध्यान बाजरे की तरफ गया क्योंकि उन्हें पता था कि उनके पूर्वज बाजरे की खेती करते थे जोकि सेहत के लिए भी फायदेमंद है ओर पशुओं के लिए भी बढ़िया आहार होने के साथ अनेक फायदे हैं। आखिर में उन्होंने बाजरे की खेती करने का फैसला किया क्योंकि जहां पर वह रहते थे, वहां बाजरे की खेती के बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे, दूसरा इसके साथ गायब हो चुकी परंपरा को पुनर्जीवित करने की सोच रहे था।

शुरू में लिंगारेड़ी प्रशाद को यह नहीं पता था कि इस फसल के लिए तापमान कितना चाहिए, कितने समय में पक कर तैयार होती है, बीज कहाँ से मिलते है, और कैसे तैयार किये जाते है। फिर बिना समय बर्बाद किए उन्होंने सोशल मीडिया की मदद से मिल्ट पर रिसर्च करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने गांव में एक बुजुर्ग से बात की और उनसे बहुत सी जानकरी प्राप्त हुई और बुजुर्ग ने बिजाई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी के बारे में लिंगारेड़ी प्रशाद को बताया। जितनी जानकारी मिलती रही वह बाजरे के प्रति मोहित होते रहे और पूरी जानकारी इकट्ठा करने में उन्हें एक साल का समय लग गया था। उसके बाद वह तेलंगाना से 4 से 5 किस्मों के बीज (परल मिलट, फिंगर मिलट, बरनयार्ड मिलट आदि) लेकर आए और अपने खेत में इसकी बिजाई कर दी।

फसल के विकास के लिए जो कुछ भी चाहिए होता था वह फसल को डालते रहते थे और वह फसल पकने के इंतजार में थे। जब फसल पक कर तैयार हो गई थी तो उस समय वह बहुत खुश थे क्योंकि जिस दिन का इंतजार था वह आ गया था और आगे क्या करना है बारे में पहले ही सोच रखा था।

फिर लिंगारेड़ी प्रशाद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बाजरे की खेती के साथ उन्होंने प्रोसेसिंग करने के बारे में सोचा और उस पर काम करना शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्होंने फसल के बीज लेकर मिक्सी में डालकर प्रोसेसिंग करके एक छोटी सी कोशिश की जोकि सफल हुई और इससे जो आटा बनाया (उत्पाद ) उन्हें लोगों तक पहुंचाया। फायदा यह हुआ कि लोगों को उत्पाद बहुत पसंद आया और हौसला बढ़ा।

जब उन्हें महसूस हुआ कि वह इस काम में सफल होने लग गए हैं तो उन्होंने काम को बड़े स्तर पर करना शुरू कर दिया। आज के समय में उन्हें मार्केटिंग के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता क्योंकि ग्राहक पहले से ही सीधा उनके साथ जुड़े हुए हैं क्योंकि आम और हल्दी की खेती करके उनकी पहचान बनी हुई थी।

लिंगारेड़ी प्रशाद के मंडीकरण का तरीका था कि वह लोगों को पहले मिलट के फायदे के बारे में बताया करते थे और फिर लोग मिलट का आटा खरीदने लगे और मार्किट बड़ी होती गई।

साल 2019 में उन्होंने देसी बीज का काम करना शुरू कर दिया और मार्केटिंग करने लगे। सफल होने पर भी वह कुछ ओर करने के बारे में सोचा और आज वह अन्य सहायक व्यवसाय में भी सफल किसान के तौर पर जाने जाते हैं।

नौकरी के बावजूद वे अपने खेत में एक वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, मछली पालन भी चला रहे हैं। उन्हें उनकी सफलता के लिए वहां की यूनिवर्सिटी द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। उनके पास 2 रंग वाली मछली है। अपनी सफलता का श्रेय वह अपनी खेती एप को भी मानते हैं, क्योंकि वह अपनी खेती एप के जरिये उन्हें नई-नई तकनीकों के बारे में पता चलता रहता है।

उन्होंने अपने खेत के मॉडल को इस तरह का बना लिया है कि अब वह पूरा वर्ष घर बैठ कर आमदन कमा रहे हैं।

भविष्य की योजना

वह मुर्गी पालन और झींगा मछली पालन का व्यवसाय करने के बारे में भी योजना बना रहे हैं जिससे वह हर एक व्यवसाय में माहिर बन जाए और देसी बीज पर काम करना चाहते हैं।

संदेश

यदि किसान अपनी परंपरा को फिर से पुर्नजीवित करना चाहता है तो उसे जैविक खेती करनी चाहिए जिससे धरती सुरक्षित रहेगी और दूसरा इंसानों की सेहत भी स्वास्थ्य रहेगी।

अमरजीत शर्मा

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ऐसा उद्यमी किसान जो प्रकृति के हिसाब से चलकर एक खेत में से लेता है 40 फसलें

प्रकृति हमारे जीवन का वह अभिन्न अंग है, जिसके बिना कोई भी जीव चाहे वह इंसान है, चाहे पक्षी, चाहे जानवर है, हर कोई अपना पूरा जीवन प्रकृति के साथ ही बिताता है और प्रकृति के साथ उसका प्यार पड़ जाता है। पर कुछ लोग यह भूल जाते हैं और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से नहीं कतराते और इस तरह से खिलवाड़ करते हैं जो सीधा सेहत पर असर करती है।

आज जिस इंसान की कहानी आप पढ़ेंगे यह सभी बातें उस इंसान के दिल और दिमाग में रह गई और फिर शुरू हुआ प्रकृति के साथ उसका प्यार। इस उद्यमी किसान का नाम है “अमरजीत शर्मा” जो गांव चैना, जैतो मंडी, ज़िला फरीदकोट के रहने वाले हैं। लगभग 50 साल के अमरजीत शर्मा का प्रकृति के साथ खेती का सफर 20 साल से ऊपर है। इतना अधिक अनुभव है कि ऐसा लगता है जैसे अपने खेतों से बातें करते हों। साल 1990 से पहले वह नरमे की खेती करते थे, उस समय उन्हें एक एकड़ में 15 से 17 क्विंटल के लगभग फसल प्राप्त हो जाती थी, पर थोड़े समय के बाद उन्हें नरमे की फसल में नुक्सान होना शुरू हो गया और 2 से 3 साल तक ऐसे ही चलता रहा जिसके कारण वह बहुत परेशान हो गए और नरमे की खेती न करने का निर्णय लिया क्योंकि एक तो उन्हें फसल का मूल्य नहीं मिल रहा दूसरा सरकार भी साथ नहीं दे रही थी जिसके कारण वह बहुत दुखी हुए थे।

वह थक कर फिर से परंपरागत खेती करने लग गए, पर उन्होंने शुरू से ही गेहूं की फसल को पहल दी और आजतक धान की फसल नहीं उगाई और ना ही वह उगाना चाहते हैं। उनके पास 4 एकड़ जमीन है जिसमें उन्होंने रासायनिक तरीके से गेहूं और सब्जियों की खेती करनी शुरू कर दी। जब वह रासायनिक खेती कर रहे थे तो उन्हें प्रकृति खेती करने के बारे में सुनने को मिला और उसके बारे में पूरी जानकारी लेने के लिए पता करने लगे।

धीरे-धीरे मुझे प्रकृति खेती के बारे में पता चला- अमरजीत शर्मा

वैसे तो वह बचपन से ही प्रकृति खेती के बारे में सुनते आए थे पर उन्हें यह नहीं पता था कि प्रकृति खेती कैसे की जाती है क्योंकि उस समय सोशल मीडिया नहीं होता था जिससे पता चल सके पर उन्होंने पूरी तरह से जाँच पड़ताल करनी शुरू की।

कहा जाता है कि हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए क्योंकि यदि हम निराश होकर बैठ जाए तो भगवान भी साथ नहीं देता।

वह कोशिश करते रहे और एक दिन कामयाबी उनकी तरफ आ गई, जब अमरजीत सिंह प्रकृति खेती के बारे में जानकारी लेने के लिए जांच पड़ताल करने लगे तो उन्होंने कोई भी अखबार नहीं छोड़ा जो न पढ़ा हो ताकि कोई जानकारी रह न जाए और एक दिन जब वह अखबार पढ़ रहे थे तो उन्होंने खेती विरासत मिशन संस्था के बारे में छपे आर्टिकल को पढ़ना शुरू किया।

जब मैंने आर्टिकल पढ़ना शुरू किया तो मैं बहुत खुश हुआ- अमरजीत शर्मा

उस आर्टिकल को पढ़ते वक्त उन्होंने देखा कि खेती विरासत मिशन नाम की एक संस्था है, जो किसानों को प्रकृति खेती के बारे में जानकारी प्रदान और ट्रेनिंग भी करवाती है, फिर अमरजीत जी ने खेती विरासत मिशन द्वारा उमेन्द्र दत्त जी के साथ संम्पर्क किया।

उस समय खेती विरासत मिशन वाले गांव-गांव जाकर किसानों को प्रकृति खेती के बारे में ट्रेनिंग देते थे और अभी भी ट्रेनिंग देते हैं। इसका फायदा उठाते हुए अमरजीत ने ट्रेनिंग लेनी शुरू की। बहुत समय तक वह ट्रेनिंग लेते रहे, जब धीरे-धीरे समझ आने लगा तो अपने खेतों में आकर तरीके अपनाने लगे। फसल पर इसका फायदा कुछ समय बाद हुआ जिसे देखकर वह बहुत खुश हुए ।

धीरे-धीरे वह पूरी तरह से प्रकृति खेती करने लगे और प्रकृति खेती को पहल देने लगे। जब वह प्रकृति खेती करके फसल की बढ़िया पैदावार लेने लगे तो उन्होंने सोचा कि इसे ओर बड़े स्तर पर ले कर जाया जाए।

मैंने कुछ ओर नया करने के बारे में सोचा -अमरजीत शर्मा

फिर उन्होंने बहु-फसली विधि अपनाने के बारे में सोचा, पर उनकी यह विधि औरों से अलग थी क्योंकि जो उन्होंने किया वह किसी ने सोचा भी नहीं था।

जिस तरह कहा जाता है “एक पंथ दो काज” को सच साबित करके दिखाया। क्योंकि उन्होंने वृक्ष के नीचे उसे पानी हवा पहुंचाने वाली ओर फसलों की खेती करनी शुरू कर दी, जिसके चलते उन्होंने एक जगह पर कई फसलें उगाई और लाभ कमाया।

जब अमरजीत की तकनीकों के बारे में लोगों को पता चला तो लोग उन्हें मिलने के लिए आने लगे, जिसका फायदा यह हुआ कि एक तो उन्हें पहचान मिल गई, दूसरा वह ओर किसानों को प्रकृति खेती के बारे में जानकारी देने में सफल हुए।

अमरजीत जी ने बहुत मेहनत की, क्योंकि 1990 से अब तक का सफर चाहे मुश्किलों वाला था पर उन्होंने होंसला नहीं छोड़ा और आगे बढ़ते रहे।

जब उन्हें लगा कि वह पूरी तरह से सफल हो गए हैं तो फिर स्थायी रूप से 2005 में प्रकृति खेती के साथ देसी बीजों पर काम करना शुरू कर दिया और आज वह देसी बीज जैसे कद्दू, अल, तोरी, पेठा, भिंडी, खखड़ी, चिब्बड़ अदि भी बेच रहे हैं। किसानों तक इन्हे पहुंचाने लगे, जिससे बाहर से किसी भी किसान को कोई रासायनिक वस्तु न लेकर खानी पड़े, बल्कि खुद अपने खेतों में उगाए और खाएं।

आज अमरजीत शर्मा जी इस मुकाम पर पहुँच गए हैं कि हर कोई उनके गांव को उनके नाम “अमरजीत” के नाम से जानते हैं, उनकी इस कामयाबी के कारण खेती विरासत मिशन और ओर संस्था की तरफ से अमरजीत को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

भविष्य की योजना

वह प्रकृति खेती के बारे में लोगों को जानकारी प्रदान करवाना चाहते हैं ताकि इस रस्ते पर चल कर खेती को बचाया जा सके।

संदेश

यदि आपके पास जमीन है तो आप रासायनिक नहीं प्रकृति खेती को पहल दें बेशक कम है, लेकिन जितना खाना है वे कम से कम साफ तो खाएं।

परमजीत सिंह

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एक ऐसे किसान जिन्होंने कम आयु में ही ऊँची मंज़िलों पर जीत हासिल की

प्रकृति के अनुसार जीना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। आज हम जो कुछ भी कर रहे हैं, खा रहे हैं या पी रहे हैं वह सभी प्रकृति की देन है। इसको ऐसे ही बनाई रखना हमारे ही ऊपर निर्भर करता है। यदि प्रकृति के अनुसार चलते है तो कभी भी बीमार नहीं होंगें।

ऐसी ही मिसाल है एक किसान परमजीत सिंह, जो लुधियाना के नज़दीक के गाँव कटहारी में रहते हैं, जो प्रकृति की तरफ से मिले उपहार को संभाल कर रख रहे हैं और बाखूबी निभा भी रहे हैं। “कहते हैं कि प्रकृति के साथ प्यार होना हर किसी के लिए संभव नहीं है, यदि प्रकृति आपको कुछ प्रदान कर रही है तो उसको वैसे ही प्रयोग करें जैसे प्रकृति चाहती है।

प्रकृति के साथ उनका इतना स्नेह बढ़ गया कि उन्होंने नौकरी छोड़कर प्रकृति की तरफ से मिली दात को समझा और उसका सही तरीके से इस्तेमाल करते हुए, बहुत से लोगों का बी.पी, शूगर आदि जैसी बहुत सी बीमारियों को दूर किया।

जब मनुष्य का मन एक काम करके खुश नहीं होता तो मनुष्य अपने काम को हास्यपूर्ण या फिर मनोरंजन तरीके के साथ करना शुरू कर देता है, ताकि उसको ख़ुशी हासिल हो। इस बात को ध्यान में रखते हुए परमजीत सिंह ने बहुत से कोर्स करने के बाद देसी बीजों का काम करना शुरू किया। देसी बीज जैसे रागी, कंगनी का काम करने से उनकी जिंदगी में इतने बदलाव आए कि आज वह सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।

जब में मिलट रिसर्च सेंटर में काम कर रहा था तो मुझे वहां रागी, कंगनी के देसी बीजों के बारे में पता चला और मैंने इनके ऊपर रिसर्च करनी शुरू कर दी -परमजीत सिंह

पारंभिक जानकारी मिलने के बाद, उन्होंने तजुर्बे के तौर पर सबसे पहले खेतों में रागी, कंगनी के बीज लगाए थे। यह काम उनके दिल को इतना छुआ कि उन्होंने देसी बीजों की तरफ ही अपना ध्यान केंद्रित किया। फिर देसी बीजों के काम के ज़रिये वह अपना रोज़गार बढ़ाने लगे और अपने स्तर पर काम करना शुरू कर दिया।

जैसे-जैसे काम बढ़ता गया, हमने मेलों में जाना शुरू कर दिया, जिसके कारण हमें अधिक लोग जानने लगे -परमजीत सिंह

इस काम में उनका साथ उनके मित्र दे रहे हैं जो एक ग्रुप बनाकर काम करते हैं और मार्केटिंग करने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं। उनके गाँव की तरफ एक रोड आते राड़ा साहिब गुरुद्वारे के पास उनकी 3 एकड़ ज़मीन है, जहां वह साथ-साथ सब्जियों की पनीरी की तरफ भी हाथ बढ़ा रहे हैं। वहां ही उनका पन्नू नेचुरल फार्म नाम का एक फार्म भी है, जहां किसान उनके पास देसी बीज के साथ-साथ सब्जियों की पनीरी भी लेकर जाते हैं।

उनके सामने सबसे बड़ी मुश्किल तब पैदा हुई जब उनको देसी बीज और जैविक खेती के बारे में लोगों को समझाना पड़ता था, उनमें कुछ लोग ऐसे होते थे जो गांव वाले थे, वह कहते थे कि “तुम आए हो हमें समझाने, हम इतने सालों से खेती कर रहे हैं क्या हमको पता नहीं”। इतनी फटकार और मुश्किलों के बावजूद भी वह पीछे नहीं हुए बल्कि अपने काम को आगे बढ़ाते गए और मार्कीटिंग करते रहे।

जब उन्होंने काम शुरू किया था तब वे बीज पंजाब के बाहर से लेकर आए थे। जिसमे वह रागी का एक पौधा लेकर आए थे और आज वही पौधा एकड़ के हिसाब से लगा हुआ है. वे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद गए थे और ट्रेनिंग लेने के बाद वापिस पंजाब आकर बीजों पर काम करना शुरू कर दिया। बीजो पर रिसर्च करने के बाद फिर उन्होंने नए बीज तैयार किये और उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। वह उत्पाद बनाने से लेकर पैकिंग तक का पूरा काम स्वंय ही देखते हैं। जहां वह उत्पाद बनाने का पूरा काम करते हैं वहां ही उनके एक मित्र ने अपनी मशीन लगाई हुई है। उन्होंने अपने डिज़ाइन भी तैयार किए हुए है।

हमने जब उप्ताद बनाने शुरू किए तो सभी ने मिलकर एक ग्रुप बना लिया और ATMA के ज़रिये उसको रजिस्टर करवा लिया -परमजीत सिंह

फिर जब उन्होंने उत्पाद बनाने शुरू किए, जिसमें ग्राहकों की मांग के अनुसार सबसे ज्यादा बिकने वाले उत्पाद जैसे बाजरे के बिस्कुट, बाजरे का दलिया और बाजरे का आटा आदि बनाए जाने लगे।

उनकी तरफ से बनाये जाने वाले उत्पाद-

  • बाजरे का आटा
  • बाजरे के बिस्कुट
  • बाजरे का दलिया
  • रागी के बिस्कुट
  • हरी कंगनी के बिस्कुट
  • चुकंदर का पाउडर
  • देसी शक़्कर
  • देसी गुड़
  • सुहांजना का पाउडर
  • देसी गेहूं की सेवइयां आदि।

जहां वह आज देसी बीजों के बनाये उत्पाद बेचने और खेतों में बीज से लेकर फसल तक की देखभाल स्वंय ही कर रहे हैं क्योंकि वह कहते हैं “अपने हाथ से किए हुए काम से जितना सुकून मिलता है वह अन्य किसी पर निर्भर होकर नहीं मिलता”। यदि वह चाहते तो घर बैठकर इसकी मार्केटिंग कर सकते हैं, बेशक उनकी आमदन भी बहुत हो जाती है पर वह स्वंय हाथ से काम करके सुकून से जिंदगी बिताने में विश्वास रखते हैं।

परमजीत सिंह जी आज सबके लिए एक ऐसे व्यक्तित्व बन चुके हैं, आज कल लोग उनके पास देसी बीज के बारे में पूरी जानकारी लेने आते हैं और वह लोगों को देसी बीज के साथ-साथ जैविक खेती की तरफ भी ज़ोर दे रहे हैं। आज वह ऐसे मुकाम पर पहुँच चुके हैं जहां पर लोग उनको उनके नाम से नहीं बल्कि काम से जानते हैं।

परमजीत सिंह जी के काम और मेहनत के फलस्वरूप उनको यूनिवर्सिटी की तरफ से यंग फार्मर, बढ़िया सिखलाई देने के तौर पर, ज़िला स्तर पुरस्कार और अन्य यूनिवर्सिटी की तरफ से कई पुरस्कार से निवाजा गया है। उनको बहुत सी प्रदर्शनियों में हिस्सा लेने के अवसर मिलते रहते हैं और जिनमें से सबसे प्रचलित, दक्षिण भारत में सन्मानित किया गया, क्योंकि पूरे पंजाब में परमजीत सिंह जी ने ही देसी बीजों पर ही काम करना शुरू किया और देसी बीजों की जानकारी दुनिया के सामने लेकर आए।

मैंने कभी भी रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया, केवल कुदरती खाद जो अपने आप फसल को धरती में से मिल जाती है, वह सोने पर सुहागा का काम करती है -परमजीत सिंह

उनकी इस कड़ी मेहनत ने यह साबित किया है कि प्रकृति की तरफ से मिली चीज़ को कभी व्यर्थ न जाने दें, बल्कि उस को संभालकर रखें। यदि आप बिना दवाई वाला खाना खाते है तो कभी दवा खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि प्रकृति बिना किसी मूल्य के प्रदान करती है। जो भी लोग उनसे सामान लेकर जाते हैं या फिर वह उनके द्वारा बनाये गए सामान को दवा के रूप में खाते हैं तो कई लोगों की बी पी, शुगर जैसी बीमारियों से छुटकारा मिल चुका है।

भविष्य की योजना

परमजीत सिंह जी भविष्य में अपने रोज़गार को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं और उत्पाद तैयार करने वाली प्रोसेसिंग मशीनरी लगाना चाहते हैं। जितना हो सके वह लोगों को जैविक खेती के बारे जागरूक करवाना चाहते हैं। ताकि प्रकृति के साथ रिश्ता भी जुड़ जाए और सेहत की तरफ से भी तंदरुस्त हो।

संदेश

खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए हमें जैविक खेती की तरफ ध्यान देने की जरूरत है, पर उन्हें जैविक खेती की शुरुआत छोटे स्तर से करनी चाहिए। आज कल के नौजवानों को जैविक खेती के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि रासायनिक मुक्त खेती करके मनुष्य की सेहत के साथ होने वाले नुक्सान से बचाव किया जा सके।