नवजोत सिंह शेरगिल

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विदेश से वापिस आकर पंजाब में स्ट्रॉबेरी की खेती के साथ नाम बनाने वाला नौजवान किसान

जिंदगी में हर एक इंसान किसी भी क्षेत्र में प्रगति और कुछ अलग करने के बारे में सोचता है और यह विविधता इंसान को धरती से उठाकर आसमान तक ले जाती है। यदि बात करें विविधता की तो यह बात खेती के क्षेत्र में भी लागू होती है क्योंकि कामयाब हुए किसान की सफलता का सेहरा पारंपरिक तरीके का प्रयोग न कर कुछ नया करने की भावना ही रही है।

यह कहानी एक ऐसे ही नौजवान की है, जिसने पारंपरिक खेती को न अपना कर ऐसी खेती करने के बारे में सोचा जिसके बारे में बहुत कम किसानों को जानकारी थी। इस नौजवान किसान का नाम है नवजोत सिंह शेरगिल जो पटियाला ज़िले के गांव मजाल खुर्द का निवासी है, नवजोत सिंह द्वारा अपनाई गई खेती विविधता ऐसी मिसाल बनकर किसानों के सामने आई कि सभी के मनों में एक अलग अस्तित्व बन गया।

मेरा हमेशा से सपना था जब कभी भी खेती के क्षेत्र जाऊ तो कुछ ऐसा करूं कि लोग मुझे मेरे नाम से नहीं बल्कि मेरे काम से जानें, इसलिए मैंने कुछ नया करने का निर्णय किया -नवजोत सिंह शेरगिल

नवजोत सिंह शेरगिल का जन्म और पालन-पोषण UK में हुआ है, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उन्हें अपने अंदर एक कमी महसूस होने लगी, जोकि उसकी मातृभूमि की मिट्टी की खुशबू के साथ थी। इस कमी को पूरा करने के लिए, वह पंजाब, भारत लौट आया। फिर उन्होंने आकर पहले MBA की पढ़ाई पूरी की और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद निर्णय किया कि कृषि को बड़े पैमाने पर किया जाए, उन्होंने कृषि से संबंधित व्यवसाय शुरू करने के उद्देश्य से ईमू फार्मिंग की खेती करनी शुरू कर दी, लेकिन पंजाब में ईमू फार्मिंग का मंडीकरण न होने के कारण, वह इस पेशे में सफल नहीं हुए, असफल होने पर वह निराश भी हुए, लेकिन नवजोत सिंह शेरगिल ने हार नहीं मानी, इस समय नवजोत सिंह शेरगिल को उनके भाई गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने प्रोत्साहित किया, जो एक प्रगतिशील किसान हैं।जिन्हें पंजाब में फूलों के शहनशाह के नाम के साथ जाना जाता है, जिन्होंने पंजाब में फूलों की खेती कर खेतीबाड़ी में क्रांति लेकर आए थे। जो कोई भी सोच नहीं सकता था उन्होंने वह साबित कर दिया था।

नवजोत सिंह शेरगिल ने अपने भाई के सुझावों का पालन करते हुए स्ट्रॉबेरी की खेती करने के बारे में सोचा, फिर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया। सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने के बाद, उन्होंने फिर वास्तविक रूप से करने के बारे में सोचा, क्योंकि खेती किसी भी तरह की हो, उसे खुद किए बिना अनुभव नहीं होता।

मैं वास्तविक देखने और अधिक जानकारी लेने के लिए पुणे, महाराष्ट्र गया, वहां जाकर मैंने बहुत से फार्म पर गया और बहुत से किसानों को मिलकर आया -नवजोत सिंह शेरगिल

वहाँ उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में बहुत कुछ सीखा, जैसे स्ट्रॉबेरी के विकास और फलने के लिए आवश्यक तापमान, एक पौधे से दूसरे पौधे कैसे उगाए जाते हैं, और इसका मुख्य पौधा कौन-सा है और यह भारत में कहाँ से आता है।

हमारे भारत में, मदर प्लांट कैलिफ़ोर्निया से आता है और फिर उस पौधे से दूसरे पौधे तैयार किए जाते हैं -नवजोत सिंह शेरगिल

पुणे से आकर, उन्होंने पंजाब में स्ट्रॉबेरी के मुख्य पहलुओं पर पूरी तरह से जाँच पड़ताल की। जांच के बाद, वे फिर से पुणे से 14,000 से 15,000 पौधे लाए और आधे एकड़ में लगाए थे, जिसकी कुल लागत 2 से 3 लाख रुपये आई थी, उन्हें यह काम करने में ख़ुशी तो थी पर डर इस बात का था कि फिर मंडीकरण की समस्या न आ जाए, लेकिन जब फल पक कर तैयार हुआ और मंडियों में ले जाया गया, तो वहां फलों की मांग को देखकर और बहुत अधिक मात्रा में फल की बिक्री हुई और जो उनके लिए एक समस्या की तरह थी वह अब ख़ुशी में तब्दील हो गई।

मैं बहुत खुश हुआ कि मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि जो लोग मुझे स्ट्रॉबेरी की खेती करने से रोकते थे, आज वे मेरी तारीफ़ करते नहीं थकते, क्योंकि इस पेशे के लिए पैसा और समय दोनों चाहिए -नवजोत सिंह शेरगिल

जब स्ट्रॉबेरी की खेती सफलतापूर्वक की जा रही थी, तो नवजोत सिंह शेरगिल ने देखा कि जब फल पकते थे, तो उनमें से कुछ छोटे रह जाते थे, जिससे बाजार में फलों की कीमत बहुत कम हो जाती थी। इसलिए इसका समाधान करना बहुत महत्वपूर्ण था।

एक कहावत है, जब कोई व्यक्ति गिर कर उठता है, तो वह ऊंची मंजिलों पर सफलता प्राप्त करता है।

बाद में उन्होंने सोचा कि क्यों न इसकी प्रोसेसिंग की जाए, फिर उन्होंने छोटे फलों की प्रोसेसिंग करनी शुरू की।

प्रोसेसिंग से पहले मैंने कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से ट्रेनिंग लेकर फिर मैंने 2 से 3 उत्पाद बनाना शुरू किया -नवजोत सिंह शेरगिल

जब फल पक कर तैयार हो जाते थे तो उन्हें तोड़ने के लिए मजदूर की जरुरत होती थी, फिर उन्होंने गांव के लड़के और लड़कियों को खेतों में फल की तुड़ाई और छांट छंटाई के लिए रखा। जिससे उनके गांव के लड़के और लड़कियों को रोजगार मिल गया। जिसमें वे छोटे फलों को अलग करते हैं और उन्हें साफ करते हैं और फिर फलों की प्रोसेसिंग करते हैं।फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न उत्पाद बनाने के लिए एक छोटे पैमाने की मशीन स्थापित की जाए, मशीन को स्थापित करने के बाद उन्होंने स्ट्रॉबेरी उत्पाद बनाना शुरू किया। उनके ब्रांड का नाम Coco-Orchard रखा गया।

वे जो उत्पाद बनाते हैं, वे इस प्रकार हैं-

  • स्ट्रॉबेरी क्रश
  • स्ट्रॉबेरी जैम
  • स्ट्रॉबेरी की बर्फी।

वे प्रोसेसिंग से लेकर पैकिंग तक का काम स्वयं देखते हैं। उन्होंने पैकिंग के लिए कांच की बोतलों में जैम और क्रश पैक किए हैं और जैसा कि स्ट्रॉबेरी पंजाब के बाहर किसी अन्य राज्य में जाती हैं वे उसे गत्ते के डिब्बे में पैक करते हैं, जो 2 किलो की ट्रे है उनका रेट कम से कम 500 रुपये से 600 रुपये है। स्ट्रॉबेरी के 2 किलो के पैक में 250-250 ग्राम पनट बने होते हैं।

मैंने फिर से किसान मेलों में जाना शुरू किया और स्टाल लगाना शुरू कर दिया -नवजोत सिंह शेरगिल

किसान मेलों में स्टाल लगाने के साथ, उनकी मार्केटिंग में इतनी अच्छी तरह से पहचान हो गई कि वे आगामी मेलों में उनका इंतजार करने लगे। मेलों के दौरान, उन्होंने कृषि विभाग के एक डॉक्टर से मुलाकात की, जो उनके लिए बहुत कीमती क्षण था।जब कृषि विभाग के एक डॉक्टर ने उनसे जैम के बारे में पूछा कि लोगों को तो स्ट्रॉबेरी के बारे में अधिक जानकारी नहीं हैं, पर आपने तो इसका जैम भी तैयार कर दिया है। उनका फेसबुक पर Coco-Orchard नाम से एक पेज भी है, जहां वे सोशल मीडिया के जरिए लोगों को स्ट्रॉबेरी और स्ट्रॉबेरी उत्पादों के बारे में जानकारी देते हैं।

आज नवजोत सिंह शेरगिल एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां वे मार्केटिंग में इतने मशहूर हो गए हैं कि उनकी स्ट्रॉबेरी और उनके उत्पादों की बिक्री हर दिन इतनी बढ़ गई है कि उन्हें अपने उत्पादों या स्ट्रॉबेरी को के लिए मार्केटिंग में जाने की जरूरत नहीं पड़ती।

भविष्य की योजना

वे अपने स्ट्रॉबेरी व्यवसाय को बड़े पैमाने पर लेकर जाना चाहते हैं और 4 एकड़ में खेती करना चाहते हैं। वे दुबई में मध्य पूर्व में अपने उत्पाद को पहुंचाने की सोच रहे हैं, क्योंकि स्ट्रॉबेरी की मांग विदेशों में अधिक हैं।

संदेश

“सभी किसान जो स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं, उन्हें पहले स्ट्रॉबेरी के बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए और फिर इसकी खेती करनी चाहिए, क्योंकि स्ट्रॉबेरी की खेती निस्संदेह महंगी है और इसलिए समय लगता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक ऐसी फसल है जिसे बिना देखभाल के नहीं उगाया जा सकता है।”

गुरमेल सिंह

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कैसे इस किसान ने कृषि को स्थायी कृषि प्रथाओं के साथ वास्तव में लाभदायक व्यवसाय में बदल दिया

खैर, खेती के बारे में हर कोई सोचता है कि यह एक कठिन पेशा है, जहां किसानों को तेज धूप और बारिश में घंटों तक काम करना पड़ता है लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गुरमेल सिंह को जैविक खेती में शांति और जीवन की संतुष्टि मिलती है।

68 वर्षीय, गुरमेल सिंह ने 2000 मे खेती शुरू की और तब से वे उसी काम को आगे बढ़ा रहे हैं । लेकिन जैविक खेती से पहले उन्होनें मोटर मकैनिक, इलेक्ट्रीशियन जैसे कई व्यवसायों पर हाथ आज़माया और फेब्रिकेशन और वेल्डिंग का काम भी सीखा, लेकिन कोई भी नौकरी उन्हें उपयुक्त नहीं लगी क्योंकि इन्हें करने से ना उन्हें संतुष्टि मिल रही थी और ना ही खुशी ।

2000, में जब उनकी पुश्तैनी ज़मीन उनके और उनके भाई में बंटी, उस समय उन्हें भी 6 एकड़ भूमि यानि संपत्ति का 1 तिहाई हिस्सा मिला। खेती करने के बारे में सोचते हुए उन्होंने दोबारा अपनी इलेक्ट्रीशियन की नौकरी छोड़ दी और गेहूं और धान की रवायिती खेती करनी शुरू की। गुरमेल सिंह ने अपने क्षेत्र में पूरी निष्ठा के साथ हर वो चीज़ की जिसे करने में वे सक्षम थे, लेकिन उपज कभी संतोषजनक नहीं थी। 2007 तक, रवायिती खेती को करने के लिए जो निवेश चाहिए था उसे पूरा करने के कारण वे इतना कर्जे में डूब गए थे कि इससे बाहर आना उनके लिए लगभग असंभव था। अंतत: वे खेती के व्यवसाय से भी निराश हुए।

लेकिन 2007 में अमुत छकने (अमृत संचार-एक सिख अनुष्ठान प्रक्रिया) के बाद उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ जिसकी वजह से उनकी खेती की धारणा पूरी तरह बदल गई उन्होंने 1 एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती शुरू करने का फैसला किया और धीरे धीरे पूरे क्षेत्र में इसे बढ़ाने का फैसला किया। गुरमेल सिहं के जैविक खेती के इरादे को जानने के बाद उनके परिवार ने उनका साथ छोड़ दिया और उन्होंने अकेले रहना शुरू कर दिया।

एक ऐसी भूमि पर जैविक खेती करना जहां पर पहले से रासायनिक खेती की जा रही हो, एक बहुत मुश्किल काम है। परिणामस्वरूप उपज कम हुई, लेकिन जैविक खेती के लिए गुरमेल सिंह के इरादे एक शक्तिशाली पहाड़ की तरह मजबूत थे। शुरूआत में सुभाष पालेकर की वीडियो से उन्हें बहुत मदद मिली और उसके बाद 2009 में उन्होंने खेती विरासत मिशन, नाभा फाउंडेशन और NITTTR, जैसे कई संगठनों में शामिल हुए, जिन्होंने उन्हें जैविक खेती के सर्वोत्तम उपयुक्त परिणाम और मंडीकरण के विषयों के बारे में शिक्षित किया। गुरमेल सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर कई समारोह और कार्यक्रमों में हिस्सा लिया जिन्होंने उन्हें वैश्विक स्तर पर जैविक खेती के ढंगों से अवगत करवाया। धीरे धीरे समय के साथ उपज भी बेहतर हो गई और उन्हें अपने उत्पादन को एक अच्छे स्तर पर बेचने का अवसर भी मिला। 2014 में NITTTR की मदद से, गुरमेल सिंह को चंडीगढ़ सब्जी मंडी में अपना खुद का स्टॉल मिला, जहां वे हर शनिवार को अपना उत्पादन बेच सकते थे। 2015 में, मार्कफेड के सहयोग से उन्हें अपने उत्पादन को बेचने का एक और अवसर मिला।

“समय के साथ मैनें अपने परिवार का विश्वास जीत लिया और वे मेरे खेती करने के तरीके से खुश थे। 2010 में, मेरा बेटा भी मेरे उद्यम में शामिल हो गया और उस दिन से वह मेरे खेती जीवन के हर कदम पर मेरे साथ है।”

वे अपने फार्म की 20 से अधिक स्वंय की उगायी हुई फसलों को बेचते हैं, जिसमें मटर, गन्ना, बाजरा, ज्वार, सरसों, आलू, हरी मूंगी, अरहर,मक्की, लहसुन, प्याज, धनिया और बहुत कुछ शामिल हैं। खेती के अलावा, गुरमेल सिंह ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से 1 महीने की बेकरी की ट्रेनिंग लेने के बाद खाद्य प्रसंस्करण की प्रोसेसिंग शुरू की।

गुरमेल सिंह ना केवल स्वंय की उपज की प्रोसेसिंग करते हैं बल्कि नाभा फाउंडेशन के अन्य समूह सदस्यों को उनकी उपज की प्रोसेसिंग करने में भी मदद करते हैं। आटा, मल्टीग्रेन आटा, पिन्नियां, सरसों का साग और मक्की की रोटी उनके कुछ संसाधित खाद्य पदार्थ हैं जो वे सब्जियों के साथ बेचते हैं।

जब बात मंडीकरण की आती है तो अधिकारियों और संगठन के सदस्यों में, दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत और प्रसिद्ध व्यक्तित्व के कारण यह हमेशा गुरमेल सिंह के लिए एक आसान बात रही। वर्तमान में, वे अपने परिवार के साथ नाभा के गांव में रह रहे हैं, जहां 4—5 श्रमिकों की मदद से, वे फार्म में सभी श्रमिकों के कामों का प्रबंधन करते हैं, और प्रोसेसिंग के लिए उन्हें आवश्यकतानुसार 1—2 श्रमिकों को नियुक्त करते हैं।

भविष्य की योजनाए:
भविष्य में, गुरमेल सिंह एक नया समूह बनाने की योजना बना रहे हैं, जहां सभी सदस्य जैविक खेती, प्रोसेसिंग और मंडीकरण करेंगे।
संदेश
“किसानों को समझना होगा कि किसी चीज़ की गुणवत्ता उसकी मात्रा से ज्यादा मायने रखती है, और जिस दिन वे इस बात को समझ जायेंगे उस दिन उपज, मंडीकरण और अन्य मसले भी सुलझ जायेंगे। और आज किसान को बिना किसी उदृदेश्य के रवायिती फसलें उगाने की बजाय मांग और सप्लाई पर ध्यान देना चाहिए।”
 

शुरूआत में, गुरमेल सिंह ने कई समस्याओं का सामना किया इसके अलावा उनके परिवार ने भी उनका साथ छोड़ दिया, लोग उन्हें जैविक खेती अपनाने के लिए पागल कहते थे, लेकिन कुछ अलग करने की इच्छा ने उन्हें अपने जीवन में सफलता प्राप्त करवायी। वे उन शालीन लोगों में से एक हैं जिनके लिए पुरस्कार या प्रशंसा कभी मायने नहीं रखती, उनके लिए उनके काम का परिणाम ही पुरस्कार हैं।

गुरमेल सिंह खुश हैं कि वे अपने जीवन की भूमिका को काफी अच्छे से निभा रहे हैं और वे चाहते हैं कि दूसरे किसान भी ऐसा करें।

करमजीत सिंह भंगु

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मिलिए आधुनिक किसान से, जो समय की नज़ाकत को समझते हुए फसलें उगा रहा है

करमजीत सिंह के लिए किसान बनना एक धुंधला सपना था, पर हालात सब कुछ बदल देते हैं। पिछले सात वर्षों में, करमजीत सिंह की सोच खेती के प्रति पूरी तरह बदल गई है और अब वे जैविक खेती की तरफ पूरी तरह मुड़ गए हैं।

अन्य नौजवानों की तरह करमजीत सिंह भी आज़ाद पक्षी की तरह सारा दिन क्रिकेट खेलना पसंद करते थे, वे स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंट में भी हिस्सा लेते थे। उनका जीवन स्कूल और खेल के मैदान तक ही सीमित था। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी ज़िंदगी एक नया मोड़ लेगी। 2003 में जब वे स्कूल में ही थे उस दौरान उनके पिता जी का देहांत हो गया और कुछ समय बाद ही, 2005 में उनकी माता जी का भी देहांत हो गया। उसके बाद सिर्फ उनके दादा – दादी ही उनके परिवार में रह गए थे। उस समय हालात उनके नियंत्रण में नहीं थे, इसलिए उन्होंने 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और अपने परिवार की मदद करने के बारे में सोचा।

उनका विवाह बहुत छोटी उम्र में हो गया और उनके पास विदेश जाने और अपने जीवन की एक नई शुरूआत करने का अवसर भी था पर उन्होंने अपने दादा – दादी के पास रहने का फैसला किया। वर्ष 2011 में उन्होंने खेती के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने छोटे रकबे में घरेलु प्रयोग के लिए अनाज, दालें, दाने और अन्य जैविक फसलों की काश्त करनी शुरू की। उन्होंने अपने क्षेत्र के दूसरे किसानों से प्रेरणा ली और धीरे धीरे खेती का विस्तार किया। समय और तज़ुर्बे से उनका विश्वास और दृढ़ हुआ और फिर करमजीत सिंह ने अपनी ज़मीन ठेके पर से वापिस ले ली।
उन्होंने टिंडे, गोभी, भिंडी, मटर, मिर्च, मक्की, लौकी और बैंगन आदि जैसी अन्य सब्जियों में वृद्धि की और उन्होंने मिर्च, टमाटर, शिमला मिर्च और अन्य सब्जियों की नर्सरी भी तैयार की।

खेतीबाड़ी में दिख रहे मुनाफे ने करमजीत सिंह की हिम्मत बढ़ाई और 2016 में उन्होंने 14 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का फैसला किया और इस तरह उन्होंने अपने रोज़गार में ही खुशहाल ज़िंदगी हासिल कर ली।

आज भी करमजीत सिंह खेती के क्षेत्र में एक अनजान व्यक्ति की तरह और जानने और अन्य काम करने की दिलचस्पी रखने वाला जीवन जीना पसंद करते हैं। इस भावना से ही वे वर्ष 2017 में बागबानी की तरफ बढ़े और गेंदे के फूलों से ग्लैडियोलस के फूलों की अंतर-फसली शुरू की।

करमजीत सिंह जी को ज़िंदगी में अशोक कुमार जी जैसे इंसान भी मिले। अशोक कुमार जी ने उन्हें मित्र कीटों और दुश्मन कीटों के बारे में बताया और इस तरह करमजीत सिंह जी ने अपने खेतों में कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया।

करमजीत सिंह जी ने खेतीबाड़ी के बारे में कुछ नया सीखने के तौर पर हर अवसर का फायदा उठाया और इस तरह ही उन्होंने अपने सफलता की तरफ कदम बढ़ाए।

इस समय करमजीत सिंह जी के फार्म पर सब्जियों के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली और पैक हाउस उपलब्ध है। वे हर संभव और कुदरती तरीकों से सब्जियों को प्रत्येक पौष्टिकता देते हैं। मार्किटिंग के लिए, वे खेत से घर वाले सिद्धांत पर ताजा-कीटनाशक-रहित-सब्जियां घर तक पहुंचाते हैं और वे ऑन फार्म मार्किट स्थापित करके भी अच्छी आय कमा रहे हैं।

ताजा कीटनाशक रहित सब्जियों के लिए उन्हें 1 फरवरी को पी ए यू किसान क्लब के द्वारा सम्मानित किया गया और उन्हें पटियाला बागबानी विभाग की तरफ से 2014 में बेहतरीन गुणवत्ता के मटर उत्पादन के लिए दूसरे दर्जे का सम्मान मिला।

करमजीत सिंह की पत्नी- प्रेमदीप कौर उनके सबसे बड़ी सहयोगी हैं, वे लेबर और कटाई के काम में उनकी मदद करती हैं और करमजीत सिंह खुद मार्किटिंग का काम संभालते हैं। शुरू में, मार्किटिंग में कुछ समस्याएं भी आई थी, पर धीरे धीरे उन्होने अपनी मेहनत और उत्साह से सभी रूकावटें पार कर ली। वे रसायनों और खादों के स्थान पर घर में ही जैविक खाद और स्प्रे तैयार करते हैं। हाल ही में करमजीत सिंह जी ने अपने फार्म पर किन्नू, अनार, अमरूद, सेब, लोकाठ, निंबू, जामुन, नाशपाति और आम के 200 पौधे लगाए हैं और भविष्य में वे अमरूद के बाग लगाना चाहते हैं।

संदेश

“आत्म हत्या करना कोई हल नहीं है। किसानों को खेतीबाड़ी के पारंपरिक चक्र में से बाहर आना पड़ेगा, केवल तभी वे लंबे समय तक सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा किसानों को कुदरत के महत्तव को समझकर पानी और मिट्टी को बचाने के लिए काम करना चाहिए।”

 

इस समय 28 वर्ष की उम्र में, करमजीत सिंह ने जिला पटियाला की तहसील नाभा में अपने गांव कांसूहा कला में जैविक कारोबार की स्थापना की है और जिस भावना से वे जैविक खेती में सफलता प्राप्त कर रहे हैं, उससे पता लगता है कि भविष्य में उनके परिवार और आस पास का माहौल और भी बेहतर होगा। करमजीत सिंह एक प्रगतिशील किसान और उन नौजवानों के लिए एक मिसाल हैं, जो अपने रोज़गार के विकल्पों की उलझन में फंसे हुए हैं हमें करमजीत सिंह जैसे और किसानों की जरूरत है।

भूपिंदर सिंह संधा

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प्रगतिशील किसान भूपिंदर सिंह संधा से मिलें जो मधुमक्खीपालन के प्रचार में मधुमक्खियों के जितना ही व्यस्त और कुशल हैं।

मधुमक्खी के डंक को याद करके, आमतौर पर ज्यादातर लोग आस-पास की मधुमक्खियों से नफरत करते हैं। इस तथ्य से अनजान होते हुए कि ये मशगूल छोटी मधुमक्खियां ना केवल शहद से बल्कि कई अन्य मधुमक्खी उत्पादों के द्वारा आपको एक अविश्वसनीय लाभ कमाने में मदद कर सकती हैं।

लेकिन यह कभी धन नहीं था जिसके लिए भूपिंदर सिंह संधा ने मधु मक्खी पालन शुरू किया, भूपिंदर सिंह को मधु मक्खियों की भनभनाहट, उनकी शहद बनाने की कला और मक्खीपालन के लाभों ने इस उद्यम की तरफ उन्हें आकर्षित किया।

1993 का समय था जब भूपिंदर सिंह संधा को कृषि विभाग द्वारा आयोजित राजपुरा में मधुमक्खी फार्म की दौरे के समय मक्खीपालन की प्रक्रिया के बारे में पता चला। मधुमक्खियों के काम को देखकर भूपिंदर सिंह इतना प्रेरित हुए कि उन्होंने केवल 5 अनुदानित मधुमक्खी बक्सों के साथ मक्खी पालन शुरू करने का फैसला किया।

कहने के लिए, भूपिंदर सिंह संधा फार्मासिस्ट थे और उनके पास फार्मेसी की डिग्री थी लेकिन उनका जीवन आस-पास भिनकती मक्खियां और शहद की मिठास से घिरा हुआ था।

1994 में भूपिंदर सिंह संधा ने एक फार्मा स्टोर भी खोला और उसे तैयार शहद बेचने के लिए प्रयोग किया और इससे उनका मक्खीपालन का व्यवसाय भी लगातार बढ़ रहा था। उनका फार्मेसी में आने का उद्देश्य लोगों की मदद करना था, पर बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वे सिर्फ निर्धारित की गई दवाइयां बेच रहे हैं, जो वास्तव में वे नहीं हैं जो उन्होंने सोचा था। उन्होंने 1997 में, बाजार अनुसंधान की और विश्लेषण किया कि मक्खीपालन वह क्षेत्र है जिस पर उन्हें ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसलिए 5 साल फार्मा स्टोर चलाने के बाद उन्होंने चिकित्सक लाइन को छोड़ दिया और मधुमक्खियों पर पूरी तरह ध्यान देने का फैसला किया।

और यह कहा जाता है- जब आप अपनी पसंद का कोई काम चुनते हैं तो आप ज़िंदगी में वास्तविक खुशी महसूस करते हैं।

भूपिंदर सिंह संधा के साथ भी यही था उन्होंने मक्खीपालन में अपनी वास्तविक खुशी को ढूंढा। 1999 में उन्होंने 500 बक्सों से मक्खीपालन का विस्तार किया और 6 तरह की शहद की किस्मों के साथ आए जैसे हिमालयन, अजवायन, तुलसी, कश्मीरी, सफेदा, लीची आदि। शहद के अलावा वे बी पोलन, बी वैक्स और भुने हुए फ्लैक्स सीड पाउडर भी बेचते हैं। अपने मधुमक्खी उत्पादों के प्रतिनिधित्व के लिए उन्होंने जो ब्रांड नाम चुना वह है अमोलक और वर्तमान में, पंजाब में इसकी अच्छी मार्किट है। 10 श्रमिकों के समूह के साथ वे पूरे बी फार्म का काम संभालते हैं और उनकी पत्नी भी उनके उद्यम में उनका समर्थन करती है।

भूपिंदर सिंह संधा के लिए मधुमक्खीपालन उनके जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है ना केवल इसलिए कि यह आय का स्त्रोत है बल्यि इसलिए भी कि वे मधुमक्खियों को काम करते देखना पसंद करते हैं और यह कुदरत के अनोखे अजूबे का अनुभव करने के लिए एक बेहतरीन तरीका है। मधुमक्खी पालन के माध्यम से, वे विभिन्न क्षेत्रों में अन्य किसानों के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। वे उन किसानों को भी गाइड करते हैं जो उनके फार्म पर शहद इक्ट्ठा करना, रानी मक्खी तैयार करना और उत्पादों की पैकेजिंग की प्रैक्टीकल ट्रेनिंग के लिए आते हैं। रेडियो प्रोग्राम और प्रिंट मीडिया के माध्यम से वे समाज और मक्खीपालन के विस्तार और इसकी विभिन्नता में अपना सर्वोत्तम सहयोग देने की कोशिश करते हैं।

भूपिंदर सिंह संधा का फार्म उनके गांव टिवाणा, पटियाला में स्थित है जहां पर उन्होंने 10 एकड़ ज़मीन किराये पर ली है। वे आमतौर पर 900-1000 मधुमक्खी बक्से रखते हैं और बाकी को बेच देते हैं। उनकी पत्नी उनकी दूसरी व्यापारिक भागीदार है और हर कदम पर उनका समर्थन करती है। अपने काम को और सफल बनाने के लिए और अपने कौशल को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने कई ट्रेनिंग में हिस्सा लिया है और पूरे विश्व में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर अपने काम को प्रदर्शित किया है। उन्होंने मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों द्वारा कई प्रशंसा पत्र प्राप्त किए है। ATMA स्कीम के तहत अमोलक नाम के द्वारा उनके पास अपनी ATMA किसान हट है जहां पर वे अपने तैयार उत्पादों को बेचते हैं।

भविष्य की योजना:

भविष्य में वे मधुमक्खियों के एक और उत्पाद के साथ आने की योजना बना रहे हैं और वह है प्रोपोलिस। मक्खीपालन के अलावा वे अमोलक ब्रांड के तहत रसायन मुक्त जैविक शक्कर से पहचान करवाना चाहते हैं। उनके पास कई अन्य महान योजनाएं हैं जिनपर वे अभी काम कर रहे हैं और बाद में समय आने पर सबके साथ सांझा करेंगे।

संदेश

“मक्खीपालकों के लिए शहद का स्वंय मंडीकरण करना सबसे अच्छी बात है क्योंकि इस तरह से वे मिलावटी और मध्यस्थों की भूमिका को कम कर सकते हैं जो कि अधिकतर मुनाफे को जब्त कर लेते हैं।”

भूपिंदर सिंह संधा ने मक्खीपालन में अपने जुनून के साथ उद्यम शुरू किया और भविष्य में वे समाज के कल्याण के लिए मक्खीपालन क्षेत्र में छिपी संभावनाओं को पता लगाने की कोशिश करेंगे। यदि भूपिंदर सिंह संधा की कहानी ने आपको मधुमक्खी पालन के बारे में अधिक जानने के लिए उत्साहित किया है तो अधिक जानने के लिए आप उनसे संपर्क कर सकते हैं।

स. राजमोहन सिंह कालेका

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एक व्यक्ति की कहानी जिसे पंजाब में विष रहित फसल उगाने के लिए जाना जाता है

एक कृषक परिवार में जन्मे, सरदार राजमोहन सिंह कालेका गांव बिशनपुर, पटियाला के एक सफल प्रगतिशील किसान हैं। किसी भी तरह के रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग किए बिना वे 20 एकड़ की भूमि पर गेहूं और धान का उत्पादन करते हैं और इससे अच्छी उत्पादकता (35 क्विंटल धान और गेहूं 22 क्विंटल प्रति एकड़) प्राप्त कर रहे हैं।

वे पराली जलाने के विरूद्ध हैं और कभी भी फसल के बचे कुचे (पराली) को नहीं जलाते। उनके विष रहित खेती और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों के ढंग ने उन्हें पंजाब के अन्य किसानों के रॉल मॉडल के रूप में मान्यता दी है।

इसके अलावा वे जिला पटियाला की प्रोडक्शन कमेटी के सदस्य भी हैं। वे हमेशा प्रगतिशील किसानों, वैज्ञानिकों, अधिकारियों और कृषि के माहिरों से जुड़े रहते हैं यह एक बड़ी प्राप्ति है जो उन्होंने हासिल की है। कई कृषि वैज्ञानिक और अधिकारी अक्सर उनके फार्म में रिसर्च और अन्वेषण के लिए आते हैं।

अपनी नौकरी और कृषि के साथ वे सक्रिय रूप से डेयरी फार्मिंग में भी शामिल है, उन्होंने साहिवाल नसल की कुछ गायों को रखा है इसके अलावा उन्होंने अपने खेत में बायो गैस प्लांट भी स्थापित किया है उनके अनुसार वे आज जहां तक पहुंचे हैं, उसके पीछे का कारण सिर्फ KVK और IARI के कृषि माहिरों द्वारा दिए गए परामर्श हैं।

अपने अतिरिक्त समय में, राजमोहन सिंह को कृषि से संबंधित किताबे पढ़ना पसंद है क्योंकि इससे उन्हें कुदरती खेती करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।

उनके पुरस्कार और उपलब्धियां…

उनके अच्छे काम और विष रहित खेतीबाड़ी करने की पहल के लिए उन्हें कई प्रसिद्ध लोगों से सम्मान और पुरस्कार मिले हैं:

• राज्य स्तरीय पुरस्कार

• राष्ट्रीय पुरस्कार

• पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना से धालीवाल पुरस्कार

• उन्हें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा सम्मानित किया गया।

• उन्हें पंजाब और हरियाणा के राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया।

• उन्हें कृषि मंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।

श्री राजमोहन ने ना सिर्फ पुरस्कार प्राप्त किए, बल्कि विभिन्न सरकारी अधिकारियों से विशेष रूप से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त किए हैं जो उन्हें गर्व महसूस करवाते हैं।

• मुख्य संसदीय सचिव, कृषि, पंजाब

• कृषि पंजाब के निदेशक

• डिप्टी कमिशनर पटियाला

• मुख्य कृषि अधिकारी, पटियाला

• मुख्य निदेशक, IARI

संदेश
“किसानों को विष रहित खेती करने की ओर कदम उठाने चाहिए क्योंकि यह बेहतर जीवन बनाए रखने का एकमात्र तरीका है। आज, किसान को वर्तमान ज़रूरतों को समझना चाहिए और अपनी मौद्रिक जरूरतों को पूरा करने की बजाये कृषि करने के सार्थक और टिकाऊ तरीके ढूंढने चाहिए।”

 

सरदार भरपूर सिंह

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भरपूर सिंह ने कृषि से लाभ कमाने के लिए फूलों की खेती का चयन किया

कृषि एक विविध क्षेत्र है और किसान कम भूमि में भी इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं, उन्हें सिर्फ खेती के आधुनिक ढंग और इसे करने के सही तरीकों से अवगत होने की अवश्यकता है। यह पटियाला के खेड़ी मल्लां गांव के एक साधारण किसान भरपूर सिंह की कहानी है, जो हमेशा गेहूं और धान की खेती से कुछ अलग करना चाहते थे।

भरपूर सिंह ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता सरदार रणजीत सिंह की खेती में मदद करने का फैसला किया, लेकिन बाकी किसानों की तरह वे गेहूं धान के चक्कर से संतुष्ट नहीं थे। हालांकि उन्होंने खेतों में अपने पिता की मदद की, लेकिन उनका दिमाग और आत्मा कुछ अलग करना चाहते थे।

1999 में, उन्होंने अपने परिवार के साथ गुरुद्वारा राड़ा साहिब का दौरा किया और गुलदाउदी के फूलों के कुछ बीज खरीदे और यही वह समय था जब उन्होंने फूलों की खेती के क्षेत्र में प्रवेश किया। शुरुआत में, उन्होंने जमीन के एक छोटे टुकड़े पर गुलदाउदी उगाना शुरू किया और समय के साथ उन्होंने पाया कि उनका उद्यम लाभदायक है इसलिए उन्होंने फूलों के खेती के क्षेत्र का विस्तार करने का फैसला किया।

समय के साथ, जैसे ही उनके बेटे बड़े हुए, तो वे अपने पिता के व्यवसाय में रुचि लेने लगे। अब भरपूर सिंह के दोनों पुत्र फूलों की खेती के व्यवसाय में समान रूप से व्यस्त रहते हैं।

फूलों की खेती
वर्तमान में, उन्होंने अपने खेत में चार प्रकार के फूल उगाए हैं – गुलदाउदी, गेंदा, जाफरी और ग्लैडियोलस। वे अपनी भूमि पर सभी आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते हैं। वे 10 एकड़ में फूलों की खेती करते हैं। और कभी-कभी वे अन्य फसलों की खेती के लिए ज़मीन किराए पर भी ले लेते हैं।

बीज की तैयारी
खेती के अलावा उन्होंने जाफरी और गुलदाउदी के फूलों के बीज स्वंय तैयार करने शुरू किये, और वे हॉलैंड से ग्लैडियोलस और कोलकाता से गेंदे के बीज सीधे आयात करते हैं। बीज की तैयारी उन्हें एक अच्छा लाभ बनाने में मदद करती है, कभी-कभी वे फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बीज भी प्रदान करते हैं।

बागवानी में निवेश और लाभ
एक एकड़ में ग्लेडियोलस की खेती के लिए उन्होंने 2 लाख रूपये का निवेश किया है और बदले में उन्हें एक एकड़ ग्लैडियोलस से 4-5 लाख रुपये मिल जाते हैं, जिसका अर्थ लगभग 50% लाभ या उससे अधिक है।

मंडीकरण
वे मंडीकरण के लिए तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं हैं। वे पटियाला, नभा, समाना, संगरूर, बठिंडा और लुधियाना मंडी में अपनी उपज का मंडीकरण करते हैं। उनका ब्रांड नाम निर्माण फ्लावर फार्म है। कृषि से संबंधित कई कैंप बागवानी विभाग द्वारा उनके फार्म में आयोजित किए जाते हैं जिसमें कई प्रगतिशील किसान भाग लेते हैं और नियमित किसानों को फूलों की खेती के बारे में ट्रेनिंग प्रदान की जाती है।

सरदार भरपूर सिंह डॉ.संदीप सिंह गरेवाल (बागवानी विभाग, पटियाला), डॉ कुलविंदर सिंह और डॉ.रणजीत सिंह (पी.ए.यू) को अपने सफल कृषि उद्यम का अधिकांश श्रेय देते हैं क्योंकि वे उनकी मदद और सलाह के बिना अपने जीवन में इस मुकाम तक न पहुँचते।

उन्होंने किसानों को एक संदेश दिया कि उन्हें अन्य किसानों के साथ मुकाबला करने के लिए कृषि का चयन नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें खुद के लिए और पूर्ण रुचि के साथ कृषि का चयन करना चाहिए, तभी वे मुनाफा कमाने में सक्षम होंगे।

एक छोटे से स्तर से शुरू करना और जीवन में सफलता को हासिल करना, भरपूर सिंह ने किसानों के लिए एक आदर्श मॉडल के रूप में एक उदाहरण स्थापित की है जो फूलों की खेती को अपनाने की सोच रहे हैं।

संदेश
“मेरा किसानों को यह संदेश है कि उन्हें विविधीकरण के लाभों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। गेहूं और धान की खेती के दुष्चक्र से किसान बहुत सारे कर्जों में फंस गए हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है और किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक रसायनों का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। विविधीकरण ही एकमात्र तरीका है जिसके द्वारा किसान सफलता प्राप्त कर सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठा सकते हैं। इसके अलावा, किसानों को अन्य किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए कृषि का चयन नहीं करना चाहिए, बल्कि खुद के लिए और पूरी दिलचस्पी से कृषि का चयन करना चाहिए तभी वे अपनी इच्छा अनुसार मुनाफा कमाने के सक्षम होंगे।”

गुरप्रीत शेरगिल

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जानिये कैसे ये किसान पंजाब में फूलों की खेती में क्रांति ला रहे हैं

हाल के वर्षों में, भारत में उभरते कृषि व्यवसाय के रूप में फूलों की खेती उभर कर आई है और निर्यात में 20 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि फूलों के उद्योग में देखी गई है। यह भारत में कृषि क्षेत्र के विकास का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अच्छा संकेत है जो कुछ महान प्रगतिशील किसानों के योगदान के कारण ही संभव हुआ है।

1996 वह वर्ष था जब पंजाब में फूलों की खेती में क्रांति लाने वाले किसान गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने फूलों की खेती की तरफ अपना पहला कदम रखा और आज वे कई प्रतिष्ठित निकायों से जुड़ें फूलों की पहचान करने वाले प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

गुरप्रीत सिंह शेरगिल – “1993 में मकैनीकल इंजीनियरिंग में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, मैं अपने पेशे के चयन को लेकर उलझन में था। मैं हमेशा से ऐसा काम करता चाहता था जो मुझे खुशी दे ना कि वह काम जो मुझे सांसारिक सुख दे।”

गुरप्रीत सिंह शेरगिल ने कृषि के क्षेत्र का चयन किया और साथ ही उन्होंने डेयरी फार्मिंग अपने पूर्ण कालिक पेशे के रूप में शुरू किया। वे कभी भी अपने काम से संतुष्टि नहीं महसूस करते थे जिसने उन्हें अधिक मेहनती और गहराई से सोचने वाला बनाया। यह तब हुआ जब उन्हें एहसास हुआ कि वे गेहूं — धान के चक्र में फंसने के लिए यहां नहीं है और इसे समझने में उन्हें 3 वर्ष लग गए। फूलों ने हमेशा ही उन्हें मोहित किया इसलिए अपने पिता बलदेव सिंह शेरगिल की विशेषज्ञ सलाह और भाई किरनजीत सिंह शेरगिल के समर्थन से उन्होंने फूलों की खेती करने का फैसला किया। गेंदे के फूलों की उपज उनकी पहली सफल उपज थी जो उन्होंने उस सीज़न में प्राप्त की थी।

उसके बाद कोई भी उन्हें वह प्राप्त करने से रोक नहीं पाया जो वे चाहते थे… एक मुख्य व्यक्ति जिसे गुरप्रीत सिंह पिता और भाई के अलावा मुख्य श्रेय देते हैं वे हैं उनकी पत्नी। वे उनके खेती उद्यम में उनकी मुख्य स्तंभ है।

गेंदे के उत्पादन के बाद उन्होंने ग्लैडियोलस, गुलज़ाफरी, गुलाब, स्टेटाइस और जिप्सोफिला फूलों का उत्पादन किया। इस तरह वे आम किसान से प्रगतिशील किसान बन गए।

उनके विदेशी यात्राओं के कुछ आंकड़े

2002 में, जानकारी के लिए उनके सवाल उन्हें हॉलैंड ले गए, जहां पर उन्होंने फ्लोरीएड (हर 10 वर्षों के बाद आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फूल प्रदर्शनी) में भाग लिया।

उन्होंने आलसमीर, हॉलैंड में ताजा फूलों के लिए दुनिया की सबसे बड़ी नीलामी केंद्र का भी दौरा किया।

2003 में ग्लासगो, यू.के. में विश्व गुलाब सम्मेलन में भी भाग लिया।

कैसे उन्होंने अपनी खेती की गतिविधियों को विभिन्नता दी

अपने बढ़ते फूलों की खेती के कार्य के साथ, उन्होंने वर्मीकंपोस्ट प्लांट की स्थापना की और अपनी खेती गतिविधियों में मछली पालन को शामिल किया।

वर्मीकंपोस्ट प्लांट उन्हें दो तरह से समर्थन दे रहा है— वे अपने खेतों में खाद का प्रयोग करने के साथ साथ इसे बाजार में भी बेच रहे हैं।

उन्होंने अपने उत्पादों की श्रृंख्ला बनाई है जिसमें गुलाब जल, गुलाब शर्बत, एलोवेरा और आंवला रस शामिल हैं। कंपोस्ट और रोज़वॉटर ब्रांड नाम “बाल्सन” और रोज़ शर्बत, एलोवेरा और आंवला रस “शेरगिल फार्म फ्रेश” ब्रांड नाम के तहत बेचे जाते हैं।

अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ उन्होंने कृषि के लिए अपने जुनून को एक सफल व्यवसाय में बदल दिया।

कृषि से संबंधित सरकारी निकायों ने जल्दी ही उनके प्रयत्नों को पहचाना और उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जिनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं:

• 2011 में पी.ए.यू लुधियाना द्वारा पंजाब मुख्य मंत्री पुरस्कार

• 2012 में आई.सी.ए.आर, नई दिल्ली द्वारा जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार

• 2014 में आई.सी.ए.आर, नई दिल्ली द्वारा एन जी रंगा किसान पुरस्कार

• 2015 में आई.ए.आर.आई, नई दिल्ली द्वारा अभिनव किसान पुरस्कार

• 2016 में आई.ए.आर.आई, नई दिल्ली द्वारा किसान के प्रोग्राम के लिए राष्ट्रीय सलाहकार पैनल के सदस्य के लिए नामांकित हुए।

यहां तक कि, बहुत कुछ हासिल करने के बाद, गुरप्रीत सिंह शेरगिल अपनी उपलब्धियों को लेकर कभी शेखी नहीं मारते। वे एक बहुत ही स्पष्ट व्यक्ति हैं जो हमेशा ज्ञान प्राप्त करने के लिए विभिन्न सूचना स्त्रोतों की तलाश करते हैं और इसे अपनी कृषि तकनीकों में जोड़ते हैं। इस समय, वे आधुनिक खेती,फ्लोरीक्लचर टूडे, खेती दुनिया आदि जैसी कृषि पत्रिकाओं को पढ़ना पसंद करते हैं। वे कृषि मेलों और समारोह में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे ज्ञान को सांझा करने में विश्वास रखते हैं और जो किसान उनके पास मदद के लिए आता है उसे कभी भी निराश नहीं करते। किसान समुदाय की मदद के लिए वे अपने ज्ञान का योगदान करके अपनी खेती विशेषज्ञ के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

गुरप्रीत शेरगिल ने यह करके दिखाया है कि यदि कोई व्यक्ति काम के प्रति समर्पित और मेहनती है तो वह कोई भी सफलता प्राप्त कर सकता है और आज के समय में जब किसान घाटों और कर्ज़ों की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं तो वे पूरे कृषि समाज के लिए एक मिसाल के रूप में खड़े हैं, यह दर्शाकर कि विविधीकरण समय की जरूरत है और साथ ही साथ कृषि समाज के लिए बेहतर भविष्य का मार्ग भी है।

उनके विविध कृषि व्यवसाय के बारे में और जानने के लिए उनकी वैबसाइट पर जायें।

सरदार गुरमेल सिंह

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जानिये कैसे गुरमेल सिंह ने अपने आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती में लाभ कमाया

गुरमेल सिंह एक और प्रगतिशील किसान पंजाब के गाँव उच्चागाँव (लुधियाना),के रहने वाले हैं। कम जमीन होने के बावजूद भी वे पिछले 23 सालों से सब्जियों की खेती करके बहुत लाभ कमा रहे हैं। उनके पास 17.5 एकड़ जमीन है जिसमें 11 एकड़ जमीन अपनी है और 6 .5 एकड़ ठेके पर ली हुई है।

आधुनिक खेती तकनीकें ड्रिप सिंचाई, स्प्रे सिंचाई, और लेज़र लेवलर जैसे कई पावर टूल्स उनके पास हैं जो इन्हें कुशल खेती और पानी का संरक्षण करने में सहायता करते हैं। और जब बात कीटनाशक दवाइयों की आती है तो वे बहुत बुद्धिमानी से काम लेते हैं। वे सिर्फ पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की सिफारिश की गई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे अच्छी पैदावार के लिए अपने खेतों में हरी कुदरती खाद का इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी आधुनिक तकनीक जो वह सब्जियों के विकास के लिए 6 एकड़ में हल्की सुरंग का सही उपयोग कर रहे हैं। कुछ फसलों जैसे धान, गेहूं, लौंग, गोभी, तरबूज, टमाटर, बैंगन, खीरा, मटर और करेला आदि की खेती वे विशेष रूप से करते हैं। अपने कृषि के व्यवसाय को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सोया के हाइब्रिड बीज तैयार करने और अन्य सहायक गतिविधियां जैसे कि मधुमक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग आदि की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से हासिल की।

मंडीकरण
उनके अनुभव के विशाल क्षेत्र में ना सिर्फ विभिन्न फसलों को लाभदायक रूप से उगाना शामिल है, बल्कि इसी दौरान उन्होंने अपने मंडीकरण के कौशल को भी बढ़ाया है और आज उनके पास “आत्मा किसान हट (पटियाला)” पर अपना स्वंय का बिक्री आउटलेट है। उनके प्रासेसड किए उत्पादों की गुणवत्ता उनकी बिक्री को दिन प्रति दिन बढ़ा रही है। उन्होंने 2012 में ब्रांड नाम “स्मार्ट” के तहत एक सोया प्लांट भी स्थापित किया है और प्लांट के तहत वे, सोया दूध, पनीर, आटा ओर गिरियों जैसे उत्पादों को तैयार करते और बेचते हैं।

उपलब्धियां
वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और जल्दी ही उन्हें CRI पम्प अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

संदेश:
“यदि वह सेहतमंद ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो किसानों को अपने खेत में कम कीटनाशक और रसायनों का उपयोग करना चाहिए और तभी वे भविष्य में धरती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं।”