विवेक उनियाल

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देश की सेवा करने के बाद धरती मां की सेवा कर रहा देश का जवान और किसान

हम सभी अपने घरों में चैन की नींद सोते हैं, क्योंकि हमें पता है कि देश की सरहद पर हमारी सुरक्षा के लिए फौज और जवान तैनात हैं, जो कि पूरी रात जागते हैं। जैसे देश के जवान देश की सुरक्षा के लिए अपने सीने पर गोली खाते हैं, उसी तरह किसान धरती का सीना चीरकर अनाज पैदा करके सब के पेट की भूख मिटाते हैं। इसीलिए हमेशा कहा जाता है — “जय जवान जय किसान”

हमारे देश का ऐसा ही नौजवान है जिसने पहले अपने देश की सेवा की और अब धरती मां की सेवा कर रहा है। नसीब वालों को ही देश की सेवा करने का मौका मिलता है। देहरादून के विवेक उनियाल जी ने फौज में भर्ती होकर पूरी ईमानदारी से देश और देशवासियों की सेवा की।

एक अरसे तक देश की सेवा करने के बाद फौज से सेवा मुक्त होकर विवेक जी ने धरती मां की सेवा करने का फैसला किया। विवेक जी के पारिवारिक मैंबर खेती करते थे। इसलिए उनकी रूचि खेती में भी थी। फौज से सेवा मुक्त होने के बाद उन्होंने उत्तराखंड पुलिस में 2 वर्ष नौकरी की और साथ साथ अपने खाली समय में भी खेती करते थे। फिर अचानक उनकी मुलाकात मशरूम फार्मिंग करने वाले एक किसान दीपक उपाध्याय से हुई, जो जैविक खेती भी करते हैं। दीपक जी से विवेक को मशरूम की किस्मों  ओइस्टर, मिल्की और बटन के बारे में पता लगा।

“दीपक जी ने मशरूम फार्मिंग शुरू करने में मेरा बहुत सहयोग दिया। मुझे जहां भी कोई दिक्कत आई वहां दीपक जी ने अपने तजुर्बे से हल बताया” — विवेक उनियाल

इसके बाद मशरूम फार्मिंग में उनकी दिलचस्पी पैदा हुई। जब इसके बारे में उन्होंने अपने परिवार में बात की तो उनकी बहन कुसुम ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। दोनों बहन — भाई ने पारिवारिक सदस्यों के साथ सलाह करके मशरूम की खेती करने के लिए सोलन, हिमाचल प्रदेश से ओइस्टर मशरूम का बीज खरीदा और एक कमरे में मशरूम उत्पादन शुरू किया।

मशरूम फार्मिंग शुरू करने के बाद उन्होंने अपने ज्ञान में वृद्धि और इस काम में महारत हासिल करने के लिए उन्होंने मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग भी ली। एक कमरे में शुरू किए मशरूम उत्पादन से उन्होंने काफी बढ़िया परिणाम मिले और बाज़ार में लोगों को यह मशरूम बहुत पसंद आए। इसके बाद उन्होंने एक कमरे से 4 कमरों में बड़े स्तर पर मशरूम उत्पादन शुरू कर दिया और ओइस्टर  के साथ साथ मिल्की बटन मशरूम उत्पादन भी शुरू कर दिया। इसके साथ ही विवेक ने मशरूम के लिए कंपोस्टिंग प्लांट भी लगाया है जिसका उद्घाटन उत्तराखंड के कृषि मंत्री ने किया।

मशरूम फार्मिंग के साथ ही विवेक जैविक खेती की तरफ भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। पिछले 2 वर्षों से वे जैविक खेती कर रहे हैं।

“जैसे हम अपनी मां की देखभाल और सेवा करते हैं, ठीक उसी तरह हमें धरती मां के प्रति अपने फर्ज़ को भी समझना चाहिए। किसानों को रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए ” — विवेक उनियाल

विवेक अन्य किसानों को जैविक खेती और मशरूम उत्पादन के लिए उत्साहित करने के लिए अलग अलग गांवों में जाते रहते हैं और अब तक वे किसानों के साथ मिलकर लगभग 45 मशरूम प्लांट लगा चुके हैं। उनके पास कृषि यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी  मशरूम उत्पादन के बारे में जानकारी लेने और किसान मशरूम उत्पादन प्लांट लगाने के लिए उनके पास सलाह लेने के लिए आते रहते हैं। विवेक भी उनकी मदद करके अपने आपको भाग्यशाली महसूस करते हैं।

“मशरूम उत्पादन एक ऐसा व्यवसाय है जिससे पूरे परिवार को रोज़गार मिलता है” — विवेक उनियाल

भविष्य की योजना
विवेक जी आने वाले समय में मशरूम से कई तरह के उत्पाद जैसे आचार, बिस्किट, पापड़ आदि तैयार करके इनकी मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश
“किसानों को अपनी आय को बढ़ाने के लिए खेती के साथ साथ कोई ना कोई सहायक व्यवसाय भी करना चाहिए। पर छोटे स्तर पर काम शुरू करना चाहिए ताकि इसके होने वाले फायदों और नुकसानों के बारे में पहले ही पता चल जाए और भविष्य में कोई मुश्किल ना आए।”

हरजिंदर कौर रंधावा

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कैसे इस 60 वर्षीय महिला ने अमृतसर में मशरूम की खेती व्यवसाय की स्थापना की और उनके बेटों में इसे सफल बनाया

पंजाब में जहां आज भी लोग पारंपरिक खेती के चक्र में फंसे हुए हैं वहां कुछ किसान ऐसे हैं, जिन्होंने इस चक्र को तोड़ा और खेती की अभिनव तकनीक को लेकर आये, जो कि प्रकृति के जरूरी संसाधन जैसे पानी आदि को बचाने में मदद करते हैं।

यह कहानी एक परिवार के प्रयासों की कहानी है। रंधावा परिवार धार्मिक शहर पंजाब अमृतसर से है, जो अमृत सरोवर (पवित्र जल तालाब) से घिरा हुआ अद्भुत पाक शैली, संस्कृति और शांत स्वर्ण मंदिर के लिए जाना जाता है। यह परिवार ना केवल मशुरूम की खेती में क्रांति ला रहा है, बल्कि आधुनिक, किफायती तकनीकों की तरफ अन्य किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है।

हरजिंदर कौर रंधावा अमृतसर की प्रसिद्ध मशरूम महिला हैं। उन्होंने मशरूम की खेती सिर्फ एक अतिरिक्त काम के तौर पर शुरू की या हम कह सकते हैं कि यह उनका शौंक था लेकिन कौन जानता था कि श्री मती हरजिंदर कौर का यह शौंक, भविष्य में उनके बेटों द्वारा एक सफल व्यापार में बदल दिया जायेगा।

यह कैसे शुरू हुआ…
अस्सी नब्बे के दशक में पंजाब पुलिस में सेवा करने वाले राजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी होने के नाते, घर में कोई कमी नहीं थी, जो श्री मती हरजिंदर कौर को वैकल्पिक धन कमाई स्त्रोत की तलाश में असुरक्षित बनाती।

कैसे एक गृहिणी की रूचि ने परिवार के भविष्य के लिए नींव रखी…
लेकिन 1989 में हरजिंदर कौर ने कुछ अलग करने का सोचा और अपने अतिरिक्त समय का कुशल तरीके से इस्तेमाल करने का विचार किया, इसलिए उन्होंने अपने घर के बरामदे में मशरूम की खेती शुरू की। मशरूम की खेती शुरू करने से पहले उनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं थी, लेकिन उनके समर्पण ने उनके कामों में सच्चे रंग लाए। धीरे-धीरे उन्होंने मशरूम की खेती के काम को बढ़ाया और मशरूम से खाद्य पदार्थ बनाने शुरू कर दिए।

जब बेटे अपनी मां का सहारा बने…
जब उनके बेटे बड़े हो गए और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली, तो चार बेटों मे से तीन बेटे (मनजीत, मनदीप और हरप्रीत) मशरूम की खेती के व्यवसाय में अपनी मां की मदद करने का फैसला किया। तीनों बेटे विशेष रूप से ट्रेनिंग के लिए डायरेक्टोरेट ऑफ मशरूम रिसर्च, सोलन गए। वहां पर उन्होंने मशरूम की अलग-अलग किस्मों जैसे बटन, मिल्की और ओइस्टर के बारे में सीखा। उन्होंने मशरूम की खेती पर पी ए यू द्वारा दी गई अन्य व्यवसायिक ट्रेनिंग में भी भाग लिया। जबकि तीसरा बेटा (जगदीप सिंह) अन्य फसलों की खेती करने में अधिक रूचि रखता था और बाद में वह ऑस्ट्रेलिया गया और गन्ने और केले की खेती शुरू की।समय के साथ-साथ, हरजिंदर कौर के बेटे मशरूम की खेती के काम का विस्तार करते रहते हैं और उन्होंने व्यापारिक उद्देश्य के लिए मशरूम के उत्पादों जैसे आचार, पापड़, पाउडर, बड़ियां, नमकीन और बिस्किट का प्रोसेस भी शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ, श्री राजिंदर सिंह रंधावा भी रिटायरमेंट के बाद अन्य सदस्यों के साथ मशरूम की खेती के व्यवसाय में शामिल हुए।

आज रंधावा परिवार एक सफल मशरूम उत्पादक हैं और मशरूम के उत्पादों का एक सफल निर्माता है। बीज की तैयारी से लेकर मार्किटिंग तक का काम परिवार के सदस्य सब कुछ स्वंय करते हैं। हरजिंदर कौर के बाद, एक अन्य सदस्य मनदीप सिंह (दूसरा बेटा), जिसने इस व्यापार को अधिक गंभीरता से लिया और उसका विस्तार करने की दिशा में काम किया। वे विशेष रूप से सभी उत्पादों का निर्माण और उनके मार्किटिंग का प्रबंधन करते हैं। मुख्य रूप से वे अपनी दुकान (रंधावा मशरूम फार्म) के माध्यम से काम करते हैं जो कि बटाला जालंधर रोड पर स्थित है।

अन्य दो बेटे (मनजीत सिंह और हरप्रीत सिंह) भी रंधावा मशरूम फार्म चलाने में एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मशरूम की खेती, कटाई और व्यवसाय से संबंधित अन्य कामों का प्रबंधन करते हैं।

हालांकि, परिवार के बेटे अब सभी कामों का प्रबंधन कर रहे हैं फिर भी हरजिंदर कौर बहुत सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और व्यक्तिगत तौर पर खेती और निर्माण स्थान पर जाते हैं और उस पर काम कर रहे अन्य लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। वे मुख्य व्यक्ति हैं जो उनके द्वारा निर्मित उत्पादों की स्वच्छता और गुणवत्ता का ध्यान रखते हैं ।

हरजिंदर कौर अपने आने वाले भविष्य में अपनी तीसरी पीढ़ी को देखना चाहती हैं …

“ मैं चाहती हूं कि मेरी तीसरी पीढ़ी भी हमारे व्यापार का हिस्सा हो, उनमें से कुछ यह समझने योग्य हैं कि क्या हो रहा है उन्होंने पहले से ही मशरूम की खेती व्यापार में दिलचस्पी दिखाना शुरू कर दिया है। हम अपने पोते (मनजीत सिंह का पुत्र, जो अभी 10वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है ), को मशरूम रिसर्च में उच्च शिक्षा प्राप्त करने और इस पर पी एच डी करने के लिए विदेश भेजने की योजना बना रहे हैं।

मार्किट में छाप स्थापित करना…
रंधावा मशरूम फार्म ने पहले ही अपने उत्पादन की गुणवत्ता के साथ बाजार में बड़े पैमाने पर अपनी मौजूदगी दर्ज की। वर्तमान में 70 प्रतिशत उत्पाद (ताजा मशरूम और संसाधित मशरूम खाद्य पदार्थ) उनकी अपनी दुकान के माध्यम से बेचे जाते हैं और शेष 30 प्रतिशत आस-पास के बड़े शहरों जैसे जालंधर, अमृतसर, बटाला और गुरदासपुर के सब्जी मंडी में भेजे जाते हैं।चूंकि वे मशरूम की तीन किस्मों मिल्की, बटन और ओइस्टर उगाते हैं इसलिए इनकी आमदन भी अच्छी होती है। इन तीनों किस्मों में निवेश कम होता है और आमदन 70 से 80 रूपये (कच्ची मशरूम) प्रति किलो के बीच होती है। कटाई के लिए तैयार होने के लिए बटन मशरूम फसल को 20 से 50 दिन लगते हैं, जबकि ओइस्टर (नवंबर-अप्रैल) और मिल्की (मई-अक्तूबर) कटाई के लिए तैयार होने में 6 महीने लगते हैं। फसलों के तैयार होने और कटाई के समय के कारण इनका व्यापार कभी भी बेमौसम नहीं होता।

रंधावा परिवार…
बहुओं सहित पूरा परिवार व्यापार में बहुत ज्यादा शामिल है और वे घर पर सभी उत्पादों को स्वंय तैयार करते हैं। दूसरा बेटा मनदीप सिंह अपने परिवार के व्यवसाय के मार्किटिंग विभाग को संभालने के अलावा एक और पेशे में अपनी सेवा दे रहे हैं। वे 2007 से जगबाणी अखबार में एक रिपोर्टर के रूप में काम कर रहे हैं और अमृतसर जिले को कवर करते हैं। कभी कभी उनकी उपस्थिति में श्री राजिंदर सिंह रंधावा दुकान को संभालते हैं।आजकल सरकार और कृषि विभाग, किसानों को उन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है और मशरूम इन फसलों में से एक हैं, जिसे सिंचाई के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए मशरूम की खेती में प्रयासों के कारण, रंधावा परिवार को दो बार जिला स्तरीय पुरस्कार और समारोह और मेलों में तहसील स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हाल ही में 10 सितंबर 2017 को रंधावा परिवार के प्रयासों को देश भर में मशरूम रिसर्च सोलन के निदेशालय द्वारा सराहा गया, जहां उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

किसानों को संदेश
रंधावा परिवार एक साथ होने में विश्वास करता है और उनका संदेश किसानों के लिए सबसे अनोखा और प्रेरणादायक संदेश है।

जो परिवार एक साथ रहता है, वह सफलता को बहुत आसानी से प्राप्त करता है। आज कल किसान को एकता की शक्ति को समझना चाहिए और परिवार के सदस्यों के बीच उनकी ज़मीन और संपत्ति को विभाजित करने की बजाय उन्हें एकता में रहकर काम करना चाहिए। एक और बात यह है कि किसान को मार्किटिंग का काम स्वंय शुरू करना चाहिए क्योंकि यह आत्मविश्वास कमाने और अपनी फसल का सही मुल्य अर्जित करने का सबसे आसान तरीका है।