करमजीत सिंह

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बब्बनपुर में गुड़ उत्पादन को पुनर्जीवित करके किसानों के लिए बना एक मिसाल: करमजीत सिंह

करमजीत सिंह उत्तर भारत के मध्य में स्थित गांव बब्बनपुर के निवासी हैं जो अपने समर्पण, नवीनता (इनोवेशन) और गुणवत्ता के माध्यम से गुड़ उत्पादन और बिक्री में क्रांति लेकर आए। गन्ने की खेती के पारिवारिक विरासत को करमजीत जी एक नई ऊंचाइयों तक ले गए और उन्होंने गुड़ के नए-नए उत्पाद तैयार किये और जिसके बाद सीमाओं के पार भी अपने उत्पाद पहुंचाए। आज करमजीत न केवल निर्यात में उत्तम होने की इच्छा रखते हैं, बल्कि पंजाबी व्यंजनों को बढ़ावा देने का भी सपना देखते हैं। उनकी सफलता की कहानी साथी किसानों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शक का काम करती है।

करमजीत सिंह का गुड़ उत्पादन एक लाभदायक व्यवसाय साबित हुआ है क्योंकि मंडियों में पारंपरिक फसल की बिक्री के मुकाबले उनके द्वारा तैयार किये गए उत्पाद में अधिक मुनाफा प्राप्त हुआ। एक स्टैंडर्ड सेट-अप स्थापित करने के लिए लगभग 18 लाख रुपये की आवश्यकता होती है। करमजीत ने दृढ़ संकल्प और सावधानीपूर्वक योजना के तहत 25 से 30 एकड़ में गन्ने की खेती करनी शुरू की और अपनी पूरी फसल को गुड़ उत्पादन करने में समर्पित किया। फसल को मिल में भेजने के बजाय, वह सभी कच्चे माल को अपने प्रोसेसिंग यूनिट में भेजते हैं, जिससे उत्पादों और गुणवत्ता पर पूर्ण नियंत्रण होता है।

करमजीत सिंह ने पारंपरिक फसल की बिक्री की तुलना में गुड़ उत्पादन से अधिक मुनाफा प्राप्त किया। उनके गुड़ और उससे बने उत्पादों की मांग की वृद्धि ने उनकी कुल कमाई में 40% का इज़ाफ़ा किया। इस उघमी बदलाव ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाया है बल्कि क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित की। कृषि के क्षेत्र में करमजीत जी की सफलता की कहानी विविधता और मूल्यवर्धन की क्षमता को दर्शाती है।

करमजीत जी के द्वारा गुड़ उत्पादन को प्राथमिकता देने और आवश्यक बुनियादी चीज़ों में निवेश करने का निर्णय उनके लिए फलदायी साबित हुआ। मंडियों में कच्चा गन्ना बेचने से मिलने वाले अनिश्चित आमदन पर भरोसा करने की बजाए, उन्होंने लाभदायक गुड़ उत्पादन और उसके विभिन्न स्वादों के लिए लाभदायक बाजार में कदम रखा । उनके इस कदम ने न केवल बेहतर वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित की, बल्कि करमजीत को उद्योग में अपनी पहचान स्थापित करने में भी सक्षम बनाया।

गुड़ उत्पादन के कार्य में करमजीत जी का सफर उनके दादा के साथ शुरू हुआ, जिन्होंने गन्ने की खेती शुरू की और पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना से कई प्रशंसाएं हासिल कीं। दादा जी की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, करमजीत के पिता जी ने 11 साल पहले गन्ने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की, जिसने करमजीत के भविष्य में करने वाले उद्यम की नींव रखी गई।

करमजीत जी ने अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग ली और पी.ए.यू. से मार्गदर्शन प्राप्त किया। अपनी नई विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, उन्होंने अपने गुड़ उत्पादन में पंद्रह तरह के फ्लेवर पेश किए। शुरुआत में, करमजीत जी को अपने गांव के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी लगन और उत्पादों की उच्च गुणवत्ता, अपग्रेड मशीनरी के साथ करमजीत जी ने धीरे-धीरे गाँव वालों का दिल जीत लिया। आज गांव के लोग न केवल उनके उत्पादों की सराहना करते हैं बल्कि उनकी उपलब्धियों पर भी गर्व करते हैं।

मार्केटिंग पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ करमजीत ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को अपनाया और किसान मेलों में हिस्सा लिया, जो व्यवसाय में उनका नाम स्थापित करने में सहायक साबित हुआ। इन इवेंट के माध्यम से उन्होंने अपने द्वारा पेश किए गए विभिन्न प्रकार के फ्लेवर को प्रदर्शित किया, जिससे दूर-दूर से आये ग्राहक आकर्षित हुए। उनके गुड़ उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मार्किट में भी जगह मिली, जो उनकी उद्यमशीलता यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

करमजीत सिंह ने गुड़ उत्पादन में बेमिसाल सफलताएं हासिल की। खेतबाड़ी के क्षेत्र में अपने ज्ञान और समर्पण की वजह से अनेकों पुरस्कार प्राप्त किए, जिससे उन्हें पंजाब डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) में शामिल होने का अवसर मिला। 2019 में, करमजीत जी के शानदार प्रयासों से उन्हें पंजाब खेतीबाड़ी यूनीवर्सिटी से पहला पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा, खेती के तरीकों में उनके अनुभवों ने उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित शीर्ष पांच किसानों में शामिल किया। उनकी प्रतिभा को नैशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) करनाल से पुरस्कार से भी मान्यता मिली।

करमजीत के आगे बढ़ने का काम डेयरी फार्मिंग पर ही नहीं रुका। कृषि के लिए उनके जुनून ने उन्हें अपने प्रयासों में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया। गन्ने की खेती के अलावा, वह अपनी 25 एकड़ ज़मीन पर मक्का और कपास की खेती करते हैं। करमजीत ने अपने गन्ना उत्पादन के उप-उत्पादों को एक मूल्यवान स्रोत के रूप में उपयोग किया। इसके अपशिष्ट का भी दोहरे उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है, इसका उपयोग नवीकरणीय ईंधन स्रोत और पोषक तत्वों से भरपूर जैविक उर्वरक दोनों के रूप में किया जाता है। करमजीत सिंह जी ने डेयरी फार्मिंग में प्रशंसा पत्र भी हासिल किए हैं। वर्तमान में, उनके पशु पालन में उनके पास पाँच गाय और पाँच भैंस हैं, जो उनके बढ़ते कृषि उद्योग में योगदान देती हैं।

करमजीत को कार्य करते समय अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निरंतरता और उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए श्रम की कड़ी निगरानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पादों की प्रभावी ढंग से मार्केटिंग करने के लिए रचनात्मक योजना और निरंतर जुड़ाव की आवश्यकता होती है। हालाँकि, दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के साथ, करमजीत ने इन बाधाओं को पार किया और बाजार में मजबूत पकड़ बनाई।

करमजीत की सफलता उनके संयुक्त परिवार के अटूट सहयोग के बिना संभव नहीं थी। उनकी दृष्टि, समर्पण और परिवार के विश्वास ने उनके सफर को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, करमजीत के बच्चों ने भी उनके काम में काफी रुचि दिखाई है, जिससे उनके उज्ज्वल भविष्य का मार्ग साफ़ हुआ है।

करमजीत जी का लक्ष्य अपने निर्यात व्यवसाय का बढ़ाने और प्रामाणिक पंजाबी व्यंजनों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना है, जिसमें मक्की की रोटी, सरसों का साग और मक्खन आदि शामिल हैं। वह अपने क्षेत्र के समृद्ध स्वादों को उजागर करते हुए उन्हें दुनिया के हर कोने में ले जाने की कल्पना करते हैं। इसके अलावा, करमजीत अपनी अधिक ज़मीन पर मक्की और कपास की खेती करते हुए विविध खेती अभ्यासों में शामिल होते रहना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश

करमजीत जी गुड़ उत्पादन में उद्यम करने की इच्छा रखने वाले लोगों का मार्गदर्शन करने की इच्छा रखते हैं। वह किसानों से शुरूआती उत्पादन स्थापित करने से लेकर अंतिम उत्पादों के मंडीकरण तक, अपने कार्यों को बारीकी से जानने के लिए प्रेरित करते हैं। करमजीत का मानना है कि कृषि समुदाय की वृद्धि और समृद्धि के लिए ज्ञान और अनुभव सांझा करना महत्वपूर्ण है।

धर्मबीर कंबोज

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रिक्शा चालक से सफल इनोवेटर बनने तक का सफर

धर्मबीर कंबोज, एक रिक्शा चालक से सफल इनोवेटर का जन्म 1963 में हरियाणा के दामला गांव में हुआ। वह पांच भाई-बहन में से सबसे छोटे हैं। अपनी छोटी उम्र के दौरान, धर्मबीर जी को अपने परिवार को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी। धर्मबीर कंबोज, जो किसी समय गुज़ारा करने के लिए संघर्ष करते थे, अब वे अपनी पेटेंट वाली मशीनें 15 देशों में बेचते हैं और उससे सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं।
80 दशक की शुरुआत में, धर्मबीर कांबोज उन हज़ारों लोगों में से एक थे, जो अपने गांवों को छोड़कर अच्छे जीवन की तलाश में दिल्ली चले गए थे। उनके प्रयास व्यर्थ थे क्योंकि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी, इसलिए उन्होंने गुज़ारा करने के लिए छोटे-छोटे काम किए।
धर्मबीर सिंह कंबोज की कहानी सब दृढ़ता के बारे में है जिसके कारण वह एक किसान-उद्यमी बन गए हैं जो अब लाखों में कमा रहे हैं। 59 वर्षीय धर्मबीर कंबोज के जीवन में मेहनत और खुशियां दोनों रंग लाई।
धर्मबीर कंबोज जिन्होनें सफलता के मार्ग में आई कई बाधाओं को पार किया, इनके अनुसार जिंदगी कमज़ोरियों पर जीत प्राप्त करने और कड़ी मेहनत को जारी रखने के बारे में है। कंबोज अपनी बहुउद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन के लिए काफी जाने जाते हैं, जो किसानों को छोटे पैमाने पर कई प्रकार के कृषि उत्पादों को प्रोसेस करने की अनुमति देता है।
दिल्ली में एक साल तक रिक्शा चालक के रूप में काम करने के बाद, धर्मबीर को पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक पब्लिक लाइब्रेरी मिली। वह इस लाइब्रेरी में अपने खाली समय में, वह खेती के विषयों जैसे ब्रोकोली, शतावरी, सलाद, और शिमला मिर्च उगाने के बारे में पढ़ते थे। वे कहते हैं, ”दिल्ली में उन्होंने ने बहुत कुछ सीखा और बहुत अच्छा अनुभव था। हालाँकि, दिल्ली में एक दुर्घटना के बाद, वह हरियाणा में अपने गाँव चले गए।
दुर्घटना में घायल होने के बाद वह स्वस्थ होकर अपने गांव आ गए। 6 महीने के लिए, उन्होंने कृषि में सुधार करने के बारे में अधिक जानने के लिए ग्राम विकास समाज द्वारा चलाए जा रहे एक ट्रेनिंग कार्यक्रम में भाग लिया।
2004 में हरियाणा बागवानी विभाग ने उन्हें राजस्थान जाने का मौका दिया। इस दौरान, धर्मबीर ने औषधीय महत्व वाले उत्पाद एलोवेरा और इसके अर्क के बारे में जानने के लिए किसानों के साथ बातचीत की।
धर्मबीर राजस्थान से वापिस आये और एलोवेरा के साथ अन्य प्रोसेस्ड उत्पादों को फायदेमंद व्यापार के रूप में बाजार में लाने के तरीकों की तलाश में लगे। 2002 में, उनकी मुलाकात एक बैंक मैनेजर से हुई, जिसने उन्हें फ़ूड प्रोसेसिंग के लिए मशीनरी के बारे में बताया, लेकिन मशीन के लिए उन्हें 5 लाख रुपये तक का खर्चा बताया।
धर्मबीर जी ने एक इंटरव्यू में कहा कि, “मशीन की कीमत बहुत अधिक थी।” बहु-उद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन का मेरा पहला प्रोटोटाइप 25,000 रुपये के निवेश और आठ महीने के प्रयास के बाद पूरा हुआ।
कंबोज की बहु-उद्देश्यीय मशीन सिंगल-फेज़ मोटर वाली एक पोर्टेबल मशीन है जो कई प्रकार के फलों, जड़ी-बूटियों और बीजों को प्रोसेस कर सकती है।
यह तापमान नियंत्रण और ऑटो-कटऑफ सुविधा के साथ एक बड़े प्रेशर कुकर के रूप में भी काम करती है।
मशीन की क्षमता 400 लीटर है। एक घंटे में यह 200 लीटर एलोवेरा को प्रोसेस कर सकती है। मशीन हल्की और पोर्टेबल है और उसे कहीं पर भी लेकर जा सकते हैं। यह एक मोटर द्वारा काम करती है। यह एक तरह की अलग मशीन है जो चूर्ण बनाने, मिक्स करने, भाप देने, प्रेशर कुकिंग और जूस, तेल या जेल्ल निकालने का काम करती है।
धर्मबीर की बहु-उद्देश्यीय प्रोसेसिंग मशीन बहुत प्रचलित हुई है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने उन्हें इस मशीन के लिए पेटेंट भी दिया। यह मशीन धर्मबीर कंबोज द्वारा अमेरिका, इटली, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, केन्या, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे और युगांडा सहित 15 देशों में बेची जाती है।
2009 में, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया (NIF) ने उन्हें पांचवें राष्ट्रीय दो-वर्षीय पुरस्कार समारोह में बहु-उद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन के आविष्कार के लिए हरियाणा राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया।
धर्मबीर ने बताया, “जब मैंने पहली बार अपने प्रयोग शुरू किए तो लोगों ने सहयोग देने की बजाए मेरा मज़ाक बनाया।” उन्हें मेरे काम में कभी दिलचस्पी नहीं थी। “जब मैं कड़ी मेहनत और अलग-अलग प्रयोग कर रहा था, तो मेरे पिता जी को लगा कि मैं अपना समय बर्बाद कर रहा हूं।”
‘किसान धर्मबीर’ के नाम से मशहूर धर्मबीर कंबोज को 2013 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। कांबोज, जो राष्ट्रपति के अतिथि के रूप में चुने गए पांच इनोवेटर्स में से एक थे, जिन्होनें फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन बनाई, जो प्रति घंटे 200 किलो टमाटर से गुद्दा निकाल सकती है।
वह राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अतिथि के रूप में रुके थे, यह सम्मान उन्हें एक बहु-उद्देश्यीय फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन बनाने के लिए दिया गया था जो जड़ी बूटियों से रस निकाल सकती है।
धर्मवीर कंबोज की कहानी बॉलीवुड फिल्म की तरह लगती है, जिसमें अंत में हीरो की जीत होती है।
धर्मबीर की फूड प्रोसेसिंग मशीन 2020 में भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मदद करने के लिए पॉवरिंग लाइवलीहुड्स प्रोग्राम के लिए विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन एंड काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) द्वारा चुनी गई छह कंपनियों में से एक थी। प्रोग्राम की शुरुआत मोके पर CEEW के एक बयान के अनुसार 22 करोड़ रुपये का कार्य, जिसमें स्वच्छ ऊर्जा आधारित आजीविका समाधानों पर काम कर रहे भारतीय उद्यमों को पूंजी और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। इन 6 कंपनियों को COVID संकट से निपटने में मदद करने के लिए कुल 1 करोड़ रुपये की फंडिंग भी प्रदान की।
“इस प्रोग्राम से पहले, धर्मवीर का उत्पादन बहुत कम था।” अब इनका कार्य एक महीने में चार मशीनों से बढ़कर 15-20 मशीनों तक चला गया है। आमदनी भी तेजी से बढ़ने लगी। इस कार्य ने कंबोज और उनके बेटे प्रिंस को मार्गदर्शन दिया कि सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीनों जैसे तरीकों का उपयोग करके उत्पादन को बढ़ाने और मार्गदर्शन करने में सहायता की। विलग्रो ने कोविड के दौरान धर्मवीर प्रोसेसिंग कंपनी को लगभग 55 लाख रुपये भी दिए। धर्मबीर और उनके बेटे प्रिंस कई लोगों को मशीन चलाने के बारे में जानकारी देते और सोशल मीडिया के माध्यम से रोजगार पैदा करते है।

भविष्य की योजनाएं

यह कंपनी आने वाले पांच सालों में अपनी फ़ूड प्रोसेसिंग मशीनों को लगभग 100 देशों में निर्यात करने की योजना बना रही है जिसका लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष में 2 करोड़ रुपये और वित्तीय वर्ष 27 तक लगभग 10 करोड़ तक ले जाना है। अब तक कंबोज जी ने लगभग 900 मशीनें बेच दी हैं जिससे लगभग 8000 हज़ार लोगों को रोज़गार मिला है।

संदेश

धर्मबीर सिंह का मानना है कि किसानों को अपने उत्पाद को प्रोसेस करने के योग्य होना चाहिए जिससे वह अधिक आमदनी कमा सके। सरकारी योजनाओं और ट्रेनिंग को लागू किया जाना चाहिए, ताकि किसान समय-समय पर सीखकर खुद को ओर बेहतर बना सकें और उन अवसरों का लाभ उठा सकें जो उनके भविष्य को सुरक्षित करने में मदद करेंगे।

दीपक सिंगला और डॉ. रोज़ी सिंगला

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प्रकृति के प्रति उत्साह की कहानी

यह एक ऐसे जोड़े की कहानी है जो पंजाब का दिल कहे जाने वाले शहर पटियाला में रहते थे और एक-दूसरे के सपनों को हवा देते थे। इंजीनियर दीपक सिंगला पेशे से एक सिविल इंजीनियर हैं और शोध-उन्मुख है इसके साथ ही अच्छी बात यह है कि उनकी पत्नी, डॉ. रोज़ी सिंगला एक खाद्य वैज्ञानिक हैं। दोनों ने फलों और सब्जियों के कचरे पर काफी रिसर्च किया और ऑर्गेनिक तरल खाद का आविष्कार किया, जो हमारे समाज के लिए वरदान है।
एक पर्यावरणविद् और एक सिविल इंजीनियर होने के नाते, उन्होंने हमेशा एक ऐसा उत्पाद बनाने के बारे में सोचा जो हमारे समाज की कई समस्याओं को हल कर सके और स्वच्छ भारत अभियान ने इसे हरी झंडी दे दी। यह उत्पाद फल और सब्जी के कचरे से तैयार किया जाता है, जो कचरे को कम करने में मदद करता है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है, जो पंजाब और भारत में दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है।
 दीपक और उनकी पत्नी रोज़ी ने 2016 में अच्छी किस्म के हर्बल, जैविक और पौष्टिक-औषधीय उत्पादों को the brand Ogron: Organic Plant Growth Nutrient Solution के तहत जारी किया ।
उनका मानना है कि जैविक पदार्थों के इस्तेमाल से रासायनिक आयात कम होगा और हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह रसायनों और कीटनाशकों के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को हल करेगा। जैविक उत्पादों का प्रयोग होने पर वायु, जल और मिटटी प्रदूषण की रोकथाम भी की जा सकेगी।
प्रोफेसर दीपक ने किसानों को एक प्राकृतिक उत्पाद देकर उनकी समस्याओं को हल करने की कोशिश की, जो उनकी भूमि के उर्वरता स्तर को बढ़ा सकता है। कीटनाशकों के अवशेषों को कम कर सकता है, और इसके निरंतर उपयोग से तीन से चार वर्षों में इसे जैविक भूमि में परिवर्तित कर सकता है। यह सभी प्रकार के पौधों और फसलों के विकास को बढ़ावा देता है। यह एक प्राकृतिक जैविक खाद है और जैव उपचार में भी मदद करता है।
यह उत्पाद तरल रूप में है, इसलिए पौधे द्वारा ग्रहण करना आसान है। उन दोनों ने एक समान दृष्टि और कुछ मूल्यों को आधार बना रखा था जो एक-दूसरे के व्यावसायिक जुनून को बढ़ावा देने में उनका सबसे शक्तिशाली उपकरण बन गया। उनका उद्देश्य यह था की वो ऐसे ब्रांड को जारी करे जिसका प्राथमिक कार्य मानकीकृत जड़ी-बूटियों और जैविक कचरे का प्रयोग करके उनको सबसे अच्छे उर्वरकों की श्रेणी में शामिल किया जा सके।
उनकी प्रेरक शक्ति कैंसर, लैक्टोज असहिष्णुता और गेहूं की एलर्जी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को कम करना था जिनका लोगों द्वारा आमतौर पर सामना किया जा रहा है, जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अधिक से अधिक उपयोग के कारण दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। साथ ही, उन्होंने जैविक उत्पादों का विकास किया जो पर्यावरण के अनुकूल और प्रकृति के अनुरूप हैं, इस प्रकार आने वाली पीढ़ियों के लिए भूमि, पानी और हवा का संरक्षण किया जा सकता हैं।
इससे उन्हें कचरे का उपयोग करने के साथ-साथ पौधों के विकास और किचन गार्डन के लिए रसायनों का उपयोग करने के जगह एक स्वस्थ विकल्प के साथ समाज की सेवा करने में मदद मिली।
अब तक, इस जोड़ी ने 30 टन कचरे को सफलतापूर्वक कम किया है। आस-पास के क्षेत्रों और नर्सरी के जैविक किसानों से लगभग उन्हें 15000/- प्रति माह से अधिक की बिक्री दे रहे हैं और जागरूकता के साथ बिक्री में और भी वृद्धि हो रही हैं ।
साल 2021 में डॉ. रोज़ी सिंगला ने सोचा, क्यों ना अच्छे खाने की आदत  से समाज की सेवा की जाए? एक स्वस्थ आहार समग्र दवा का एक रूप है जो आपके शरीर और दिमाग के बीच संतुलन को बढ़ावा देने पर केंद्रित होता है। फिर वह 15 साल के मूल्यवान अनुभव और ढेर सारे शोध और कड़ी मेहनत के साथ रोज़ी फूड्स की परिकल्पना की।
एक फूड टेक्नोलॉजिस्ट होने के नाते और खाद्य पदार्थों के रसायन के बारे में अत्यधिक ज्ञान होने के कारण, वह हमेशा लोगों को सही आहार सन्तुलन के साथ उनके स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का इलाज करने में मदद करने के लिए उत्सुक रहती थीं। उसने खाद्य प्रौद्योगिकी पर काफी शोध किया है, और उनके पति एक पर्यावरणविद् होने के नाते हमेशा उनका समर्थन करते थे। हालाँकि नौकरी के साथ प्रबंधन करना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन उनके पति ने उनका समर्थन किया और उन्हें मिल्लेट्स आधारित खाद्य उत्पाद शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उसने दो फर्मों के लिए परामर्श किया और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए भी आहार की योजना बनाई।
उत्पादों की सूचि:
  • चनाओट्स
  • रागी पिन्नी:
  • चिया प्रोटीन लड्डू
  • न्यूट्रा बेरी डिलाइट (आंवला चटनी)
  • मैंगो बूस्ट (आम पन्ना)
  • नाशपाती चटका
  • सोया क्रंच
  • हनी चॉको नट बॉल्स
  • रागी चकली
  • बाजरे के लड्डू
  • प्राकृतिक पौधा प्रोटीन पाउडर
  • मिल्लेट्स दिलकश
सरकार द्वारा जारी विभिन्न योजनाओं जैसे आत्मानिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और कई अन्य ने रोजी फूड्स को बढ़ावा देने के लिए मुख्य रूप में काम किया है।
इस विचार का मुख्य काम पंजाब के लोगों और भारतीयों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करना है। हलाकि  डॉ. रोज़ी का दृढ़ विश्वास है कि एक आहार में कई बीमारियों को ठीक करने की शक्ति होती है। इसलिए वो हमेशा ऐसा कहती है की “Thy Medicine, Thy Food.”
डॉ रोज़ी इन मुद्दों को अधिक विस्तार से संबोधित करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने ऐसे खाद्य पदार्थों को निर्माण किया जो उनके उदेश्य को पूरा करें
  • बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं में भी कुपोषण,
  • समाज की सेवा के लिए एक स्वस्थ विकल्प के रूप में परित्यक्त अनाज (मिल्लेट्स) का उपयोग करना।
  • लोगों के विशिष्ट समूहों, जैसे मधुमेह रोगियों और हृदय रोगियों के लिए चिकित्सीय प्रभाव वाले खाद्य पदार्थ तैयार करना।
  • बाजरे के उपयोग से पर्यावरण संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए, जैसे मिट्टी में पानी का स्तर और कीटनाशक की आवश्यकता।
डॉ रोज़ी ने सफलतापूर्वक एक पंजीकृत कार्यालय सह स्टोर ग्रीन कॉम्प्लेक्स मार्केट, भादसों रोड, पटियाला में में खोला है। ग्राहकों की सहूलियत और  के लिए वे अपने उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री शुरू करेंगे।

इंजीनियर दीपक सिंगला की तरफ से किसानों के लिए सन्देश

लम्बे समय तक चलने वाली बीमारियाँ अधिक प्रचलित हो रही हैं। मुख्य कारणों में से एक रासायनिक खेती है, जिसने फसल की पैदावार में कई गुना वृद्धि की है, लेकिन इस प्रक्रिया में हमारे सभी खाद्य उत्पादों को जहरीला बना दिया है। हालाँकि, वर्तमान में रासायनिक खेती के लिए कोई तत्काल प्रतिस्थापन नहीं है जो किसानों को जबरदस्त फसल की पैदावार प्राप्त करने और दुनिया की खाद्य जरूरतों को पूरा करने की अनुमति देगा। भारत की आबादी 1.27 अरब है। लेकिन एक और मुद्दा जो हम सभी को प्रभावित करता है वह है चिकित्स्य रगों में तेजी से वृद्धि। हमें इस मामले को बेहद गंभीरता से लेना चाहिए। सबसे अच्छा विकल्प जैविक खेती हो सकती है। यह सबसे सस्ती तकनीक है क्योंकि जैविक खाद के उत्पादन के लिए सबसे कम संसाधनों और श्रम की आवश्यकता होती है।

डॉक्टर रोज़ी सिंगला द्वारा किसानों के लिए सन्देश

2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मिल्लेट्स ईयर होने के आलोक में मिल्लेट्स और मिल्लेट्स आधारित उत्पादों के लिए मूल्य श्रृंखला, विशेष रूप से खाने के लिए झटपट तैयार होने वाली श्रेणी को बढ़ावा देने और मजबूत करने की आवश्यकता है। मिल्लेट्स महत्वपूर्ण पोषण और स्वास्थ्य लाभों के साथ जलवायु-स्मार्ट फसलों के रूप में प्रसिद्ध हो रहे हैं। पारिस्थितिक संतुलन और आबादी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए, मिल्लेट्स की खेती को अधिक व्यापक रूप से अभ्यास करने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है। हमारा राज्य वर्तमान में चावल के उत्पादन द्वारा लाए गए जल स्तर में तेज गिरावट के कारण गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। चावल की तुलना में मिल्लेट्स द्वारा टनों के हिसाब से अनाज पैदा करने के लिए बहुत कम पानी का उपयोग करता है।
मिल्लेट्स हमारे लिए , ग्रह के लिए और  किसान के लिए भी अच्छा है।

संगीता तोमर

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जैविक गुड़ बेच कर बहन-भाई को जोड़ी ने चखा सफलता का स्वाद

बेशक आपने भाई-बहनों को लड़ते हुए देखा है लेकिन क्या आपने उन्हें एक साथ बिजनेस चलाने के लिए एक साथ काम करते देखा है?
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश की संगीता तोमर जी और भूपिंदर सिंह जी भाई-बहन बिजनेस पार्टनर्स का एक आदर्श उदाहरण हैं, जिन्होंने एक साथ बिजनेस शुरू किया और अपने दृढ़ संकल्प और जुनून के साथ सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचे। संगीता जी और भूपिंदर जी का जन्म और पालन पोषण मुजफ्फरनगर में हुआ, संगीता जिनका विवाह नजदीकी गांव में हुआ था वहअपने नए परिवार के साथ अच्छी तरह से सेटल हैं। उत्तर प्रदेश राज्य की आगे वाली बेल्ट सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले गन्ने के लिए जाने जाती है, हालांकि यह फसल अन्य राज्यों में भी उगाई जाती है लेकिन गन्ना गुणवत्ता और स्वाद में अलग होता है। दोनों ने अपनी 9.5 एकड़ जमीन पर गन्ना उगाने के बारे में सोचा और 2019 में उन्होंने ‘किसान एग्रो-प्रोडक्ट्स’ नाम से गन्ना उत्पादों की प्रोसेसिंग शुरू किया।

उत्पादों की सूची

  • गुड़
  • शक़्कर
  • देसी चीनी
  • जामुन का सिरका
जैविक फलों से बने गुड़ से विभिन्न स्वादों वाले कुल 12 उत्पाद तैयार किए जाते हैं। वे फ्लेवर्ड चॉकलेट, आम, सौंफ, इलायची, अदरक, मिक्स, अजवाइन, सूखे मेवे और मूंगफली का गुड़ में शामिल करने से परहेज करते हैं।
भूपिंदर सिंह जी ने इस क्षेत्र में कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली था लेकिन उनके पूर्वज पंजाब में गन्ने की खेती करते थे। वह इस अभ्यास के साथ-साथ आज के उपभोक्ताओं की आवश्यकता को भी समझते थे जो अपने भोजन के बाद मीठे में चीनी खाना पसंद करते हैं। उन्होंने गुड़ को छोटे-छोटे टुकड़ों में बनाने के बारे में सोचा। उन्होंने गुड़ को बर्फी के रूप में बनाने के बारे में सोचा जहां 1 टुकड़े का वजन लगभग 22gm है, जोकि भोजन या दूध के साथ एक बार में खाना आसान था, जैविक था और चीनी से कहीं बढ़िया था।
“अच्छी गुणवत्ता और स्वादिष्ट गुड़ पैदा करने की तकनीक हमारे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है” भूपिंदर सिंह
संगीता जी मार्केटिंग का काम देखते हैं और प्लांट में शरीरक रूप से मौजूद न होने पर भी नियमित निरीक्षण करते हैं। स्टील-इनफ्यूज्ड मशीनरी का उपयोग प्रोसेसिंग के लिए किया जाता है जिसे किसी भी प्रदूषण से बचाने के लिए अच्छी तरह से कवर किया जाता है। क्योंकि सभी उत्पाद मशीन द्वारा बनाए जाते हैं, इसलिए स्वाद में कोई बदलाव नहीं होता है। भूपिंदर जी, संगीता जी और उनकी टीम दिल्ली के 106 सरकारी स्टोर और 37 निजी स्टोर में अपने उत्पाद पहुंचाती है।
प्रतिदिन उपयोग किए जाने वाले गन्ने की मात्रा 125 क्विंटल है और इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्हें अपने गाँव के अन्य किसानों से इस फसल को खरीदने की आवश्यकता है। गुड़ का उत्पादन आमतौर पर सितंबर से मई तक होता है लेकिन जब उपज मौसमी कारकों से प्रभावित होती है तो यह सितंबर से अप्रैल तक ही होती है।

प्रारंभिक जीवन

भूपिंदर सिंह जी 2009 में भारतीय सेना से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के रूप में सेवानिवृत्त हुए और फिर खाद्य उद्योग में अनुभव हासिल करने के लिए एक फाइव स्टार होटल में काम किया। 2019 में, उन्होंने अपने गाँव में सीखी गई पारंपरिक प्रथाओं से कुछ बड़ा करने का फैसला किया। उन्होंने अपने उत्पादन पलांट और अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए रोजगार भी पैदा किया और अन्य किसानों से गन्ना खरीदकर किसानों को आय का एक स्रोत भी प्रदान किया।
संगीता तोमर, जिन्होंने अंग्रेजी मेजर में मास्टर डिग्री पूरी की है, एक स्वतंत्र महिला हैं। उनके सभी बच्चे विदेश में बसे हुए हैं लेकिन वह अपने गांव में रह कर खेती करना चाहते हैं।

चुनौतियां

एक अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद की पहचान एक ऐसे उपभोक्ता द्वारा की जा सकती है जो जैविक उत्पाद और डुप्लिकेट उत्पाद के बीच का अंतर जानता हो। उनके गांव में ऐसे किसान हैं जो जुलाई में भी चीनी और केमिकल से गुड़ बना रहे हैं. यह किसान अपना उत्पाद कम कीमत पर बेचते हैं जो खरीदार को रासायनिक रूप से बने गुड़ की ओर आकर्षित करता है।

प्राप्तियां

  • लखनऊ में गुड़ महोत्सव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।
  • मुजफ्फरनगर के गुड़ महोत्सव में सम्मानित किया गया।

किसानों के लिए संदेश

वह चाहते हैं कि लोग खेती की ओर वापिस आएं। आज के दौर में नौकरी के लिए आवेदनकर्ता अधिक हैं लेकिन नौकरी कम। इसलिए बेरोजगार होने के बजाय अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का समय आ गया है। इसके अलावा, कृषि में विभिन्न क्षेत्र हैं जिन्हें कोई भी अपनी रुचि के अनुसार चुन सकता है।

योजनाएं

भूपिंदर सिंह जी बिचौलियों के बिना अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं को बेचना चाहते हैं, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और उपभोक्ता भी कम कीमत पर जैविक उत्पाद खरीद सकेंगे।

श्रीमती मधुलिका रामटेके

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एक सामाजिक कार्यकर्ता से उद्यमी बनी एक महिला जिन्होंने बाकि महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए प्रेरित किया।

ऐसा माना जाता है कि केवल पुरुष ही आर्थिक रूप से घर का नेतृत्व कर सकते हैं लेकिन कुछ महिलाएं रूढ़िवादी विचारधारा को तोड़ती हैं और खुद को साबित करती हैं कि वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं बल्कि समान रूप से सक्षम हैं। यह कहानी छत्तीसगढ़ के राजनांद गांव की एक ऐसी ही सामाजिक कार्यकर्ता की है।

श्रीमती मधुलिका रामटेके एक ऐसे समुदाय से आती हैं, जहाँ जातिगत भेदभाव अभी भी गहराई से निहित है। उन्हें इस जातिगत भेदभाव का एहसास छोटी उम्र में ही हो गया था जब उन्हें बाकि बच्चों के साथ खेलने की अनुमति नहीं मिलती थी। तब उनके पिता ने उन्हें डॉ. बी.आर. अंबेडकर जी का उदाहरण दिया कि कैसे उन्होंने शिक्षा के माध्यम से अपना जीवन बदल दिया और वह सम्मान अर्जित किया जिसके वे हकदार थे। मधुलिका ने तब उनके कदमों और उनकी शिक्षाओं का पालन किया। वह अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान एक उज्ज्वल छात्रा रही और अन्य माता-पिता को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित भी करती थी। उन्होंने पहले अपने माता-पिता को पढ़ना-लिखना सिखाया और फिर अपने घर के आस-पास की अन्य अनपढ़ लड़कियों की मदद की।

श्रीमती मधुलिका जी ने फिर एक और कदम उठाया जहाँ उन्होंने अपने गाँव की अन्य महिलाओं के साथ एक सेल्फ हेल्प समूह बनाया और गाँव की सेवा करना शुरू कर दिया, जिसका गाँव में रहने वाले पुरुषों ने बहुत विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि महिलाएँ गाँव की भलाई के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने शिक्षा, पुरुष नसबंदी, स्वच्छता, नशीली दवाओं के उपयोग, जल संरक्षण आदि जैसे गंभीर मुद्दों पर कई शिविरों का आयोजन भी किया।

2001 में, उन्होंने और उनकी महिला साथियों ने एक बैंक शुरू किया जिसमें उन्होंने सारी बचत जमा की और इसका नाम ‘माँ बम्लेश्वरी बैंक’ रखा। यह बैंक पूरी तरह से महिलाओं द्वारा चलाया जाता है। इस बैंक ने महिलाओं को सशक्त महसूस करवाया और जब भी महिलाओं को किसी कार्य के लिए पैसों की जरूरत पड़ती थी तो वह बैंक में जमा राशि में से कुछ राशि का प्रयोग कर सकती है। इस बैंक में आज कुल राशि ₹40 करोड़ है।

एकता बहुत शक्तिशाली है, अकेले रहना मुश्किल है लेकिन समूह में शक्ति है। मैं आज जो कुछ भी हूँ अपने ग्रुप की वजह से हूँ – मधुलिका

वर्ष 2016 में मधुलिका जी और उनके सेल्फ-हेल्प समूह ने 3 सोसाइटीयों का निर्माण किया। पहली सोसाइटी के अंतर्गत दूध उत्पादन का काम  शुरू किया और उसमें 1000 लीटर दूध का उत्पादन हुआ।  उन्होंने इस दूध को स्थानीय स्तर पर और होटल, रेस्टोरेंट्स में बेचना शुरू किया। दूसरी सोसाइटी के अंतर्गत उन्होंने हरा-बहेड़ा की खेती जो एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है उसका उत्पादन शुरू किया। यह जड़ी-बूटी  खांसी, सर्दी को ठीक करने में मदद करती है और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। इसके साथ ही उन्होंने चावल की खेती भी की लेकिन कम मात्रा में। तीसरी सोसाइटी के अंतर्गत  उन्होंने सीताफल की खेती की शुरुआत की और आइस क्रीम की प्रोसेसिंग करनी भी शुरू की। इन सबके पीछे उनका मुख्य उद्देश्य अन्य महिलाओं को स्वतंत्र बनाना और उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाना था। उन्होंने हमेशा न केवल खुद को बल्कि अपने आसपास की महिलाओं को भी सशक्त बनाने के बारे में सोचा।
नाबार्ड की आजीविका और उद्यम विकास कार्यक्रम (एल.ई.डी.पी) की योजना के तहत, मधुलिका सहित 10 महिलाओं ने 10,000 ₹ प्रत्येक के योगदान के साथ एक कंपनी की स्थापना की और इसका नाम बमलेश्वरी महिला निर्माता कंपनी लिमिटेड रखा। कंपनी के पास अब ₹100-₹10,000 की शेयर रेंज है। यह कंपनी वर्मीकम्पोस्ट और वर्मीवाश बनाती है, ये दोनों जैविक खाद हैं जो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा कर फसल की उपज बढ़ाते हैं और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डालते हैं। मधुलिका ने एक बार 2 खेतों में एक प्रयोग किया था, जिसमें उन्होंने एक खेत में रासायनिक उर्वरक और दूसरे में वर्मीकम्पोस्ट डाला और उन्होंने देखा कि उत्पाद की गुणवत्ता और स्वाद उस क्षेत्र में बेहतर था जिसमें वर्मीकम्पोस्ट डाला गया था। इसके इलावा इस कंपनी में अन्य उत्पाद भी बनाये जाते हैं पर कम मात्रा में उनमें से कुछ प्रोडक्ट्स है जैसे अगरबत्ती, पलाश के फूलों से बना हर्बल गुलाल। यह सारे प्रोडक्ट 100% हर्बल है।
हम अपने लिए कमा रहे हैं लेकिन रासायनिक छिड़काव वाला भोजन खाने से सभी पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं और हमारी मेहनत की कमाई उन दवाओं पर बर्बाद हो जाती है जो उर्वरकों के अति प्रयोग से होती हैं“-मधुलिका रामटेके
                                                      उपलब्धियां:
  • नारी शक्ति पुरस्कार, 2021 भारत के राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविंद द्वारा प्रदान किया गया
  • अखिल भारतीय महिला क्रांति परिषद- 2017
  • राज्य महिला सम्मान – 2014
                                                    भविष्य की योजनाएं:
वह ‘गाँववाली’ नाम से एक नया ब्रांड खोलना चाहती हैं जिसमें वह खुद और सेल्फ हेल्प समूह पहले हल्दी, मिर्ची, धनिया का निर्माण करेंगे और फिर बड़े पैमाने पर अन्य मसालों का निर्माण करेंगे।
                                               किसानों के लिए संदेश:
आज की कृषि पद्धतियों को देखते हुए जिसमें कुछ भी शामिल नहीं है, रसायनों के उपयोग से बचना चाहिए, बल्कि अन्य किसानों को जैविक खादों का उपयोग करना चाहिए। वह बच्चों को अपने बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम में डालने की बात को भी गलत बताती है। ये वही माता-पिता हैं जिन्होंने बचपन में हमारा पालन-पोषण किया था और अब जब उन्हें बुढ़ापे में मदद की ज़रूरत है, तो उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए, बल्कि उसी तरह दुलारना चाहिए जैसे हम उनके साथ थे।

उडीकवान सिंह

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कम उम्र में मुश्किलों को पार कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाला 20 वर्षीय युवा किसान

“छोटी उम्र बड़ी छलांग” मुहावरा तो सभी ने सुना होगा पर किसी ने भी मुहावरे का पालन करने की कोशिश नहीं की, लेकिन बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो कि ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते।

लेकिन यहां इस मुहावरे की बात एक ऐसे युवक पर बिल्कुल फिट बैठती है जिसने इस मुहावरे को सच साबित कर दिया है और बाकि लोगों के लिए भी एक मिसाल कायम की है। इन्होंने ठेके पर जमीन ली और कम उम्र में सब्जी की खेती की और बुलंदियों को हासिल कर परिवार और गांव का नाम रोशन किया है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि हर इंसान का कुछ न कुछ करने का लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करता है। आज हम जिस युवक की हम बात करने वाले हैं, शुरू से ही उनकी दिलचस्पी खेती में थी और पढ़ाई में उनका ज़रा भी मन नहीं लगता था। इनका नाम उडीकवान सिंह है जो ज़िला फरीदकोट के गांव लालेयाणा के रहने वाले है। स्कूल में भी उनके मन में यही बात घूमती रहती थी कि कब वह घर जाकर अपने पिता जी के साथ खेत का दौरा करके आएंगे, मतलब कि उनका सारा ध्यान खेतों में ही रहता था।

उनके पिता मनजीत सिंह जी, जो मॉडर्न क्रॉप केयर केमिकल्स में कृषि सलाहकार के रूप में काम करते हैं, उनको हमेशा इस बात की चिंता रहती थी कि उनका एकलौता बेटा पढ़ाई को छोड़कर खेती के कामों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है लेकिन वह इसे बुरा नहीं कह रहे थे। उनका मानना था कि “बच्चे को खेत से जुड़ा रहना चाहिए पर अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और पढ़ाई छोड़नी नहीं चाहिए।”

लेकिन उनके पिता को क्या पता था कि एक दिन यह बेटा अपना नाम मशहूर करेगा, उडीकवान जी को बचपन से ही खेतों से लगाव था लेकिन इस प्यार के पीछे उनकी विशाल सोच थी जो हमेशा सवाल पूछती थी और फिर वह यह सवाल दूसरे किसानों से पूछते थे। जब उनके पिता खुद खेती करते थे और फसल बेचने के लिए बाजार जाते थे तो उडीकवान जी दूसरे किसनों से सवाल पूछने लग जाते थे कि अगर हम इस फसल को इस विधि से उगाएं तो इससे कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, जिस पर किसान हंसने लगते थे जो कि उडीकवान जी की सफलता का कारण बना।

इसके बाद उडीकवान जी के पिता मनजीत सिंह जी हमेशा काम के सिलसिले में दिन भर बाहर रहने लगे जिससे उनका ध्यान खेतों की तरफ कम होने लगा। तब उडीकवान जी ने खेती के कार्यों की तरफ ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और वह रोज़ाना खेतों में जाकर काम करने लगे। उस समय उडीकवान जी को लगा कि अब कुछ ऐसा करने का समय आ गया है जिसका उनको काफी लंबे समय से इंतज़ार था।

उस समय उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी। फिर उन्होंने खेती से जुड़े बड़े काम करने भी शुरू कर दिए और अपने पिता के कहने अनुसार पढ़ाई भी नहीं छोड़ी। लंबे समय तक उन्होंने पारम्परिक खेती की और महसूस किया कि कुछ अलग करना होगा।

उन्होंने इस मामले पर अपने पिता से चर्चा की और सब्जियों की खेती शुरू कर दी जिसमें मूल रूप से खाने वाली सब्ज़ियां ही हैं। वह अपने मन में आने वाले सवाल पूछते रहते थे और जब भी उडीकवान जी को खेती के कार्यों में कोई समस्या आती थी तो उनके पिता जी उनकी मदद करते थे और खेती के कई अन्य तरीकों से भी अवगत करवाते थे। वह हमेशा खेतों में अपने तरीकों का इस्तेमाल करते थे लेकिन परिणाम उन्हें थोड़े समय बाद मिला जब सब्जियां पककर तैयार हुईं। जिसमें से उनकी कद्दू की फसल काफी मशहूर हुई जिसमें से एक कद्दू 18 से 20 किलो का हुआ। अभी तक उडीकवान जी के सभी तरीके सब्ज़ियों की खेती में खरे उतरते आ रहे हैं जिनसे उनके पिता जी काफ़ी खुश हैं। इसके बाद उडीकवान जी ने खुद ही सब्ज़ियों को मंडी में बेचा। वह जिन सब्ज़ियों की मूल रूप से खेती करते थे उनके पकने पर वह सुबह उन्हें ले जाते थे और उन्होंने मंडी में उनकी मार्केटिंग करनी शुरू कर दी। उन्हें इस काम में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि मार्केटिंग करनी कैसे है।

लंबे समय तक सब्जियों की मार्केटिंग नहीं होने से उडीकवान जी काफ़ी निराश रहने लगे और उन्होंने बाजार में सब्जियां न बेचने का मन बनाकर मार्केटिंग बंद करने का फैसला किया। इस दौरान उनकी मुलाकात डॉ. अमनदीप केशव जी से हुई जो कि आत्मा में प्रोजेक्ट निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं और कृषि के बारे में किसानों को बहुत जागरूक करते हैं और उनकी काफी मदद भी करते हैं। इसलिए उन्होंने उडीकवान जी से पहले सब कुछ पूछा और खुश भी हुए क्योंकि कोई ही होगा जो इतनी छोटी उम्र में खेती के प्रति यह बातें सोच सकता है।

पूरी बात सुनने के बाद डॉ.अमनदीप ने उडीकवान जी को मार्केटिंग के कुछ तरीके बताये और उडीकवान जी के सोशल मीडिया और ग्रुप्स के ज़रिये खुद मदद की। जिससे उडीकवान जी की मार्केटिंग का सिलसिला शुरू हो गया जिससे उडीकवान जी काफ़ी खुश हुए।

इस बीच आत्मा किसान कल्याण विभाग ने आत्मा किसान बाजार खोला और उडीकवान जी को सूचित किया और उन्हें फरीदकोट में हर गुरुवार और रविवार को होने वाली सब्जियों को बाजार में बेचने के लिए कहा। तब उडीकवान जी हर गुरुवार और रविवार को सब्जी लेकर जाने लगे जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होने लगा और हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानने लगा और इस मंडी में उनकी मार्केटिंग भी अच्छे से होने लगी और 2020 तक आते-आते उनका सब्ज़ियों की मार्केटिंग में काफ़ी ज्यादा प्रसार हो गया और अभी वह इससे काफ़ी ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं और उनकी सफलता का राज उनके पिता मनजीत सिंह और आत्मा किसान कल्याण विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ.अमनदीप केशव जी हैं।

उडीकवान सिंह जी जिन्होंने 20 साल की उम्र में साबित कर दिया था कि सफलता के लिए उम्र जरूरी नहीं, इसके लिए केवल समर्पण और कड़ी मेहनत ज़रूरी है, भले ही उम्र छोटी ही क्यों न हो। 20 साल की उम्र में वह सोचते हैं कि आगे क्या करना है।

उडीकवान जी अब घरेलू उपयोग के लिए सब्ज़ियों की खेती कर रहे हैं जिसमें वह मल्चिंग विधि द्वारा भी सब्ज़ियां उगा रहे हैं।

भविष्य की योजनाएं

वह सब्जियों की संख्या बढ़ाकर और अंतरफसल पद्धति अपनाकर और अधिक प्रयोग करना चाहते हैं।

संदेश

यदि कोई व्यक्ति सब्जियों की खेती करना चाहता है, तो उसे सबसे पहले उन सब्जियों की खेती और विपणन करना चाहिए जो बुनियादी स्तर पर खाई जाती हैं, जिससे खेती के साथ-साथ आय भी होगी।

प्रदीप नत्त

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छोटी उम्र में ही कन्धों पर पड़ी जिम्मेवारियों को अपनाकर उन ऊपर जीत हांसिल करने वाला नौजवान

जिंदगी का सफर बहुत ही लंबा है जोकि पूरी जिंदगी काम करते हुए भी कभी खत्म नहीं होता, इस जिंदगी के सफर में हर एक इंसान का कोई न कोई मुसाफिर या साथी ऐसा होता है जोकि उसके साथ हमेशा रहता है, जैसे किसी के लिए दफ्तर में सहायता करने वाला कोई कर्मचारी, जैसे किसी पक्षी की थकावट दूर करने वाली पौधे की टहनी, इस तरह हर एक इंसान की जिंदगी में कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आज जिनके बारे में बात करने जा रहे हैं उनकी जिंदगी की पूरी कहानी इस कथन के साथ मिलती सी है, क्योंकि यदि एक साथ देने वाला इंसान जो आपके अच्छे या बुरे समय में आपके साथ रहता था, तो यदि वह अचानक से आपका साथ छोड़ दे तो हर एक काम जो पहले आसान लगता था वह बाद में अकेले करना मुश्किल हो जाता है, दूसरा आपको उस काम के बारे में कोई जानकारी नहीं होती।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान प्रदीप नत्त, जोकि गांव नत्त का रहने वाला है, जिसने छोटी आयु में अकेले ही कामयाबी की मंजिलों पर जीत पाई और अपने ज़िले बठिंडे में ऑर्गनिक तरीके के साथ सब्जियों की खेत और खुद ही मार्केटिंग करके नाम चमकाया।

साल 2018 की बात है जब प्रदीप अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेती करने लगा और उन्होंने शुरू से ही किसी के नीचे काम करने की बजाए खुद का काम करने के बारे में सोच रखा था, इसलिए वह खेती करने लगे और धीरे धीरे अपने पिता जी के बताएं अनुसार खेती करने लगे और लोग उन्हें खेतों का बेटा कहने लगे।

जब प्रदीप को फसल और खाद के बारे में जानकारी होने लगी उस समय 2018 में प्रदीप के पिता का देहांत हो गया जो उनके हर काम में उनके साथ रहते थे। जिससे घर की पूरी जिम्मेदारी प्रदीप जी पर आ गई और दूसरा उनकी आयु भी कम थी। प्रदीप ने हिम्मत नहीं हारी और खेती करने के जैविक तरीकों को अपनाया।

2018 में उन्‍होंने एक एकड़ में जैविक तरीके के साथ खेती करनी शुरू कर दी, बहुत से लोगों ने उसे इस काम को करने से रोका, पर उन्होनें किसी की न सुनी, उन्‍होंने सोचा कि अभी तक रसायनिक ही खा रहे हैं और पता नहीं कितनी बीमारियों को अपने साथ लगा लिया है, तो अभी शुद्ध और जैविक खाए जिससे कई बीमारियों से बचाव किया जा सके।

जैविक तरीके के साथ खेती करना 2018 से शुरू कर दिया था और जब जैविक खेती के बारे में पूरी जानकारी हो गई तो प्रदीप ने सोचा कि क्यों न कुछ अलग किया जाए और उनका ख्याल पारंपरिक खेती से हट कर सब्जियों की खेती करने का विचार आया। सितम्बर महीने की शुरुआत में उनहोंने कुछ मात्रा में भिंडी, शिमला मिर्च, गोभी आदि लगा दी और जैविक तरीके के साथ उनकी देखरेख करने लगे और जब समय पर सब्जियां पक कर तैयार हो जाए तो सबसे पहले प्रदीप ने घर में बना कर देखी और जब खाई तो स्वाद बहुत अलग था क्योंकि जैविक और रसायनिक तरीके के साथ उगाई गई फसल में जमीन आसमान का फर्क होता है।

फिर प्रदीप ने सब्जी बेचने के बारे में सोचा पर ख्याल आया कि लोग रसायनिक देख कर जैविक सब्जी को कैसे खरीदेंगे। फिर प्रदीप ने खुद मार्किट करने के बारे में सोचा और गांव गांव जाकर सब्जियां बेचने लगे और लोगों को जैविक के फायदे के बारे में बताने लगे जिससे लोगों को उस पर विश्वास होने लगा।

फिर रोजाना प्रदीप सब्जी बेचने मोटरसाइकिल पर जाता और शाम को घर वापिस आ जाता।एक बार वह अपने साथ नर्सरी के कार्ड छपवा कर ले गए और सब्जी के साथ देने लगे

फिर प्रदीप ने सोचा कि क्यों न बठिंडा शहर जाकर सब्जी बेचीं जाए और उसने इस तरह ही किया और शहर में लोगो की प्रतिक्रिया अच्छी थी जिसे देखकर वह खुद हुए और साथ साथ मुनाफा भी कमाने लगे।

इस तरह से 1 साल निकल गया और 2020 आते प्रदीप को पूरी तरह से सफलता मिल गई। जो प्रदीप ने 1 एकड़ से काम शुरू किया था उसे धीरे धीरे 5 एकड़ में फैला रहे थे जिसमें उनहोंने सब्जियों की खेती में विकास तो किया उसके साथ ही नरमे की खेती भी जैविक तरीके के साथ करनी शुरू की।

आज प्रदीप को घर बैठे ही सब्जियां खरीदने के लिए फ़ोन आते हैं और प्रदीप अपने ठेले पर सब्जी बेचने चले जाते हैं जिसमें सबसे अधिक फोन बठिंडे शहर से आते हैं जहां पर उनकी मार्केटिंग बहुत होती है और बहुत अधिक मुनाफा कमा रहे हैं।

छोटी आयु में ही प्रदीप ने बड़ा मुकाम पा लिया था, किसी को भी मुश्किलों से भागना नहीं चाहिए, बल्कि उसका मुकाबला करना चाहिए, जिसमें आयु कभी भी मायने नहीं रखती, जिसने मंजिलों को पाना होता है वह छोटी आयु में ही पा लेते हैं।

भविष्य की योजना

वह अपनी पूरी जमीन को जैविक में बदलना चाहते हैं और खेती जो रसायनिक खादों में बर्बाद की है उसे जैविक खादों द्वारा शक्तिशाली बनाना चाहते हैं।

संदेश

किसान चाहे बड़ा हो या छोटा हो हमेशा पहल जैविक खेती को देनी चाहिए, क्योंकि अपनी सेहत से अच्छा कुछ भी नहीं है और मुनाफा न देखकर अपने और दूसरों के बारे में सोच कर शुरू करें, आप भी शुद्ध चीजें खाएं और दूसरों को भी खिलाएं।

सिकंदर सिंह बराड़

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कृषि विभिन्ता को अपनाकर एक सफल किसान बनने वाले व्यक्ति की कहानी

कुछ अलग करने की इच्छा इंसान को धरती से आसमान तक ले जाती है। पर उसके मन में हमेश आगे बढ़ाने के इच्छा होनी चाहिए। आप चाहे किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हो, अपनी इच्छा और सोचा को हमेशा जागृत रखना चाहिए।

इस सोच के साथ चलने वाले सरदार सिकंदर सिंह बराड़, जोकि बलिहार महिमा, बठिंडा में रहते हैं और जिनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता सरदार बूटा सिंह पारंपरिक तरीके के साथ खेतीबाड़ी कर रहे हैं, जैसे गेहूं,धान आदि। क्या इस तरह नहीं हो सकता कि खेतीबाड़ी में कुछ नया या विभिन्ता लेकर आई जाए।

मेरे कहने का मतलब यह है कि हम खेती करते हैं पर हर बार हर साल वही फसलें उगाने की बजाए कुछ नया क्यों नहीं करते- सिकंदर सिंह बराड़

वह हमेशा खेतीबाड़ी में कुछ अलग करने के बारे में सोचा करते थे, जिसकी प्रेरणा उन्हें अपने नानके गांव से मिली। उनके नानके गांव वाले लोग आलू की खेती बहुत अलग तरीके के साथ करते थे, जिससे उनकी फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती थी।

जब मैं मामा के गांव की खेती के तरीकों को देखता था तो मैं बहुत ज्यादा प्रभवित होता था – सिकंदर सिंह बराड़

जब सिकंदर सिंह ने 1983 में सिरसा में डी. फार्मेसी की पढ़ाई शुरू की उस समय एस. शमशेर सिंह जो कि उनके बड़े भाई हैं, पशु चिकित्सा निरीक्षक थे और अपने पिता के बाद खेती का काम संभालते थे। उस समय जब दोनों भाइयों ने पहली बार खेतीबाड़ी में एक अलग ढंग को अपनाया और उनके द्वारा अपनाये गए इस तकनिकी हुनर के कारण उनके परिवार को काफी अच्छा मुनाफ़ा हुआ।

जब अलग तरीके अपनाने के साथ मुनाफा हुआ तो मैंने 1984 में D फार्मेसी छोड़ने का फैसला कर लिया और खेतबाड़ी की तरह रुख किया- सिकंदर सिंह बराड़

1984 में D फार्मेसी छोड़ने के बाद उन्होंने खेतीबाड़ी करनी शुरू कर दी। उन्होंने सबसे पहले नरमे की अधिक उपज वाली किस्म की खेती करनी शुरू की।

इस तरह छोटे छोटे कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए वह सब्जियों की खेती ही करते रहे, जहां पर उन्होंने 1987 में टमाटर की खेती आधे एकड़ में की और फिर बहुत सी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किए और अपने इस व्यवसाय को आगे से आगे बढ़ाते रहे।

1990 में विवाह के बाद उन्होंने आलू की खेती बड़े स्तर पर करनी शुरू की और विभिन्ता अपनाने के लिए 1997 में 5000 लेयर मुर्गियों के साथ पोल्ट्री फार्मिंग की शुरुआत की, जिसमें काफी सफलता हासिल हुई। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के 5 ओर किसानों को पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय को सहायक व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के लिए उत्साहित किया, जिसके साथ उन किसानों को स्व निर्भर बनने में सहायता मिली। 2005 में उन्होंने 5 रकबे में किन्नू का बाग लगाया। इसके इलावा उन्होंने नैशनल सीड कारपोरेशन लिमिटेड के लिए 15 एकड़ जमीन में 50 एकड़ रकबे के लिए गेहूं के बीज तैयार किया।

मुझे हमेशा कीटनाशकों और नुकसानदेह रसायन के प्रयोग से नफरत थी, क्योंकि इसका प्रयोग करने के साथ शरीर को बहुत नुक्सान पहुंचता है- सिकंदर सिंह बराड़

सिकंदर सिंह बराड़ अपनी फसलों के लिए अधिकतर जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। वह अब 20 एकड़ में आलू, 5 एकड़ में किन्नू और 30 एकड़ में गेहूं के बीजों का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही 2 एकड़ में 35000 पक्षियों वाला पोल्ट्री फार्म चलाते हैं।

बड़ी बड़ी कंपनी जिसमें पेप्सिको,नेशनल सीड कारपोरेशन आदि शामिल है, के साथ साथ काम कर सकते हैं, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना की तरफ से प्रमुख पोल्ट्री फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया। उन्हें बहुत से टेलीविज़न और रेडियो चैनल में आमंत्रित किया गया, ताकि खेती समाज में बदलाव, खोज, मंडीकरण और प्रबंधन संबंधी जानकारी ओर किसानों तक भी पहुँच सके।

वे राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खेती मेले और संस्था का दौरा कर चुके हैं।

भविष्य की योजना

सिकंदर सिंह बराड़ भविष्य में भी अपने परिवार के साथ साथ अपने काम को ओर आगे लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें नए नए बदलाव आते रहेंगे।

संदेश

जो भी नए किसान खेतीबाड़ी में कुछ नया करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि कुछ भी शुरू करने से पहले उससे संबंधित माहिर या संस्था से ट्रेनिंग ओर सलाह ली जाए। उसके बाद ही काम शुरू किया जाए। इसके इलावा जितना हो सके कीटनाशकों और रसायन से बचना चाहिए और जैविक खेती को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

करनबीर सिंह

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अन्नदाता फूड्स के नाम से किसान हट चलाने वाला प्रगतिशील किसान

आज के समय में हर कोई दूसरों के बारे में नहीं बल्कि अपने फायदे के बारे में सोचता है पर कुछ इंसान ऐसे होते हैं जिन्हें भगवान ने लोगों की सहायता करने के लिए भेजा होता है, वह दूसरे का भला सोचता भी है और इस तरह के इंसान बहुत ही कम देखने को मिलते हैं।

इस बात को सही साबित करने वाले करनबीर सिंह जो गांव साफूवाला, जिला मोगा के रहने वाले हैं जिन्होंने MSC फ़ूड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की हुई है और प्राइवेट कंपनी में काम करते थे और नौकरी छोड़ कर खेत और फ़ूड प्रोसेसिंग करने के बारे में सोचा और उसमें सफल होकर दिखाया।

साल 2014 की बात है जब करनबीर एक कंपनी में काम करते थे और जिस कंपनी में काम करते थे वहां क्या देखते हैं कि किस तरह किसानों से कम कीमत पर वस्तु लेकर अधिक कीमतों पर बेचा जा रहा है और जिसके बारे में किसानों को जानकारी नहीं थी। बहुत समय वह इस तरह ही चलता रहा पर उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी क्योंकि जो ऊगा रहे थे वह कमा नहीं रहे थे और जो कमा रहे थे वह पहले से ही बड़े लोग थे।

यह सब देखकर करनबीर को बहुत दुःख हुआ और करनबीर ने आखिर में नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और खुद आकर घर खेती और प्रोसेसिंग करने लगा। करनबीर के परिवार वाले शुरू से ही फसली विभिन्ता को अपनाते हुए खेती करते थे और इसके इलावा करनबीर के लिए फायदेमंद बात यह थी कि करनबीर के पिता सरदार गुरप्रीत सिंह गिल जोकि KVK मोगा और PAU लुधियाना के साथ पिछले कई सालों से जुड़े हुए हैं, जो किसानों को फसलों से संबंधित सलाह देते रहते थे।

फिर करनबीर ने अपने पिता के नक्शे कदम पर चलकर खेती माहिरों द्वारा बताएं गए तरीके के साथ खेती करनी शुरू की और कई तरह की फसलों की खेती करनी शुरू कर दी। फिर करनबीर के दिमाग में ख्याल आया कि जब फसल पककर तैयार होगी तो इसकी मार्केटिंग किस तरह की जाए।

फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न पहले छोटे स्तर पर मार्केटिंग की जाए, उसके बाद जब करनबीर गांव से बाहर जाते तो अपने साथ प्रोसेसिंग की अपनी वस्तुएं साथ ले जाते जहां छोटे-छोटे समूह के लोग दिखाई देते उन्हें फिर वह अपने उत्पादों के बारे में बताता और उत्पाद बेचता। उनके दोस्त नवजोत सिंह और शिव प्रीत ने इस काम में उनका पूरा साथ दे रहे हैं ।

फिर उन्होंने इसकी मार्केटिंग बड़े स्तर पर करने के बारे में सोचा और 2016 में “फ्रेंड्स ट्रेडिंग” नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई और ट्रेडिंग का काम शुरू कर दिया, जहां पर वह अपनी फसल तो मार्किट ले जाते, साथ ही ओर किसानों की फसल भी ले जानी शुरू कर दी, जोकि खेती माहिरों की सलाह से उगाई गई थी। इस तरीके के साथ उगाई गई फसल की पैदावार अधिक और बढ़िया होने के करने इसकी मांग बढ़ी जिससे करनबीर और किसानों को बहुत मुनाफा हुआ। जिसके साथ वह बहुत खुश हुए।

इस दौरान ही उनकी मुलाकात खेती व्यापार विषय के माहिर प्रोफेसर रमनदीप सिंह जी के साथ हुई जोकि हर एक किसान की बहुत सहायता करते हैं और उन्हें मार्केटिंग करने के तरीके के बारे में जागरूक करवाते रहते हैं और इसे दिमाग में रखते हुए फिर मार्केटिंग करने के तरीके को बदलने के बारे में सोचा।

फिर दिमाग में आया कि पैदा की फसल की प्राथमिक स्तर पर प्रोसेसिंग करके अगर मार्केटिंग की जाए तो क्या पता इससे बढ़िया लाभ मिल सकता है। फिर उन्होंने शुरू में जिस फसल की प्रोसेसिंग हो सकती थी प्रोसेसिंग करके उन्हें बेचने का काम शुरू कर दिया, जिसकी शुरुआत उन्होंने किसान मेले से की और उनको लोगों की अच्छी प्रतिकिर्या मिली।

इसे आगे चलाने के लिए करनबीर सिंह जी ने एक किसान हट खोलने के बारे में सोचा जहां पर उनकी फसलों की प्रोसेसिंग और किसानों की फसलों की प्रोसेसिंग का सामान रख कर बेचा जा सके, जिसका मुनाफा सीधा किसान के खाते में ही जाए न कि बिचौलिए के हाथ और जिसके साथ उसकी मार्केटिंग बनी रहेगी और दूसरा लोगों को साफ-सफाई और बढ़िया वस्तुएं मिलती रहेगी।

फिर 2019 में करनबीर ने अन्नदाता फूड्स नाम से ब्रांड रजिस्टर्ड करवा कर मोगा शहर में अपनी किसान हट खोली और प्रोसेसिंग किया हुआ सामान रख दिया। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया, वैसे ही लोग सामान लेने आते रहे।

जिस में बाकि किसान द्वारा प्रोसेसिंग किया सामान जैसे शहद, दाल, GSC 7 कनोला सरसों का तेल, चने आदि बहुत वस्तुएं रख कर बेचते हैं।

बहुत कम समय में मार्केटिंग में प्रसार हुआ और लोग उन्हें अन्नदाता फूड्स के नाम से जानने लगे। इस तरह 2019 में वह सफल हुए जिसमें उनकी सफलता का मुख्य श्रेय GSC 7 कनोला सरसों का तेल को जाता है क्योंकि तेल की मांग इतनी अधिक है कि मांग को पूरा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि यह तेल बाकि तेल से अलग है क्योंकि इस तेल में बहुत मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है और जिससे उन्हें मुनाफा तो होता पर उनके साथ ओर किसानों को भी हो रहा है।

मेरा मानना है कि यदि हम किसान और ग्राहक में से बिचौलीए को निकाल दें तो हर इंसान बढ़िया और साफ-सफाई की वस्तुएं खा सकता है दूसरा किसान को अपनी फसल का सही मूल्य भी मिल जाएगा- करनबीर सिंह

भविष्य की योजना

वह चाहते हैं कि किसानों का समूह बनाकर वही फसलें उगाएं जिसकी खपत राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत मांग है।

संदेश

यदि कोई किसान खेती करता है तो उन्हें चाहिए कि खेती माहिरों द्वारा दिए गए दिशा निर्देश पर चल कर ही रेह स्प्रे का प्रयोग करें, जितनी फसल के विकास के लिए जरुरत है।

चरणजीत सिंह

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एक ऐसा किसान जो मुश्किलों से लड़ा और औरों को लड़ना भी सिखाया

किसान को हमेशा अन्नदाता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि किसान का काम अन्न उगाना और देश का पेट भरना होता हैं पर आज के समय में किसान को उगाने के साथ-साथ फसल की प्रोसेसिंग और बेचना आना भी बहुत जरुरी है। पर जब मंडीकरण की बात आती है तो किसान को कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है, क्योंकि मन में डर होता है कहीं अपनी किसानी के अस्तित्व को कायम रखने में कमजोर न हो जाए।

किसान का नाम चरणजीत सिंह जिसने अपने आप पर भरोसा किया और आगे बढ़ा और आज कामयाब भी हुआ जो गांव गहिल मजारी, नवांशहर के रहने वाले हैं। वैसे तो चरणजीत सिंह शुरू से ही खेती करते हैं जिसमें उन्होंने अपनी अधिक रूचि गन्ने की खेती की तरफ दिखाई है। जिसमें वह 145 एकड़ में 70 से 80 एकड़ में सिर्फ गन्ने की खेती करते थे और बाकि जमीन में पारंपरिक खेती ही करते थे और कर रहे हैं।

गन्ने की खेती में अच्छा अनुभव हो गया, लेकिन कुछ कारणों के कारण उन्हें 80 से कम करके 45 एकड़ में खेती करनी पड़ी, क्योंकि जब गन्ने की फसल उग जाती थी तो पहले तो यह सीधी मिल में चली जाती थी पर एक दिन ऐसा आया कि उनकी फसल की कटाई के लिए मज़दूर ही नहीं मिल रहे थे, पर जब मज़दूर मिलने लगे तब फसल बिकने के लिए मिल में चली जाती थी और फसल का मूल्य बहुत कम मिलता था। पहले आसमान को छू रहे थे और फिर वे आकर जमीन पर गिर गए जैसे कि उनकी मंजिल के पंख ही काट दिए गए हों।

वह बहुत परेशान रहने लगे और इसके बारे में सोचने लगे और फैसला लिया यदि मुझे सफल होना तो यहीं काम करके होना है और काम करने लगे।

“वह समय और वह फैसला लेना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि 145 एकड़ में आधा में गन्ने की खेती कर रहा था जहां से मुझे आमदन हो रही थी- चरणजीत सिंह

जब उन्होंने फैसला लिया तो 45 एकड़ में ही गन्ने की खेती करनी शुरू कर दी। अनुभव भी उनके पास पहले से ही था पर उस अनुभव को उपयोग करने की जरुरत थी। फिर धीरे-धीरे चरणजीत ने खेत में ही बेलना लगा लिया और उन्होंने पारंपरिक तरीके से गुड़ निकालना जारी रखा।

वह गुड़ बना रहे थे और गुड़ बिक भी रहा था पर चरणजीत को काम करके ख़ुशी नहीं मिल रही थी।

परिणामस्वरूप, गुड़ बनाने में उनकी रुचि कम होने लगी। फिर उन्हें पुराने दिन और बातें याद आती जो उन्होंने उस दिन काम करने के बारे में सोची थी और वह उन्हें होंसला देती थी।

बहुत सोचने के बाद उन्होंने बहुत सी जगह पर जाना शुरू किया और प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी इक्क्ट्ठी करनी शुरू कर दी। जैसे-जैसे जानकारी मिलती रही काम करने की इच्छा जागती रही पर फिर भी संतुष्ट न हो पाए, क्योंकि उन्हें किसान तो मिले पर कुछ किसान ही थे जो साधारण गुड़ बनाने के इलावा कुछ ख़ास बनाने की कोशिश कर रहे थे जोकि यह बात उनके मन में बैठ गई। फिर उन्होंने ट्रेनिंग करने के बारे में सोचा।

मैंने PAU लुधियाना से ट्रेनिंग प्राप्त की- चरणजीत सिंह

ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने फिर प्रोसेसिंग पर काम करना शुरू कर दिया। अधिक समय काम करने के बाद फिर चरणजीत ने 2019 में नए तरीके से शुरुआत की और सिंपल गुड़ और शक्कर के साथ-साथ मसाले वाला गुड़ भी बनाना शुरू कर दिया। मसाले वाले गुड़ में वह कई तरह की वस्तुओं का प्रयोग करते थे।

वह प्रोसेसिंग का पूरा काम अपने ही फार्म पर करते हैं और देखरेख उनके पुत्र सनमदीप सिंह जी करते हैं जो अपने पिता जी के साथ मिलकर काम करते हैं। जिससे उनका काम साफ़ सुथरा और देखरेख से बिना किसी परेशानी से हो जाता है।

उन्होंने 12 कनाल में अपना फार्म जिसमें 2 कनाल में वेलन और बाकि के 10 कनाल में सूखी लकड़ियां बिछाई हैं जो बंगे से मुकंदपुर रोड पर स्तिथ है। गुड़ बनाने के लिए उन्होंने अपनी खुद के मज़दूर रखे हुए हैं जिन्हे अनुभव हो चूका है और फार्म पर वही गुड़ निकालते हैं और बनाने हैं। उनके द्वारा 3 से 4 तरह के उत्पाद तैयार किये जाते हैं। जिसके अलग-अलग रेट हैं जिसमें मसाले वाले गुड़ की मांग बहुत अधिक है।

उनके द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पाद

  • गुड़
  • शक्कर
  • मसाले वाला गुड़ आदि।

जिसकी मार्केटिंग करने के लिए उन्हें कहीं भी बाहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि उनके द्वारा बनाये गुड़ की मांग इतनी अधिक है कि उन्हें गुड़ के आर्डर आते हैं। जिनमें अधिकतर शहर के लोगों द्वारा आर्डर किया जाता है।

रोज़ाना उनका 70 से 80 किलो गुड़ बिक जाता है और आज अपने इसी काम से बहुत मुनाफा कमा रहे हैं। वह खुद हैं जो उन्होंने सोचा था वह करके दिखाया। इसके साथ-साथ वह गन्ने के बीज भी तैयार करते हैं और बाकि की जमीन में मौसमी फसलें उगाते हैं और मंडीकरण करते हैं।

भविष्य की योजना

वह अपने इस गन्ने के व्यापार को दोगुना करना चाहते हैं और फार्म को बड़े स्तर पर बनाना चाहते हैं और आधुनिक तरीके के साथ काम करने की सोच रहे हैं।

संदेश

किसी भी नौजवान को बाहर देश जाने की जरुरत नहीं है यदि वह यहीं रह कर मन लगा कर काम करना शुरू कर दें तो उनके लिए यही जन्नत है, बाकि सरकार को नौजवानों को सही दिशा में जाने के लिए और खेती के लिए भी प्रेरित करना चाहिए।

राजविंदर सिंह खोसा

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अपाहिज होने के बाद भी बिना किसी सरकारी सहायता से कामयाबी हासिल करने वाला यह किसान

नए रास्ते में बाधाएं आती हैं, लेकिन उनका समाधान भी जरूर होता है।

आज आप जिस किसान की कहानी पढ़ेंगे वह शारीरिक रूप से विकलांग है, लेकिन उसका साहस और जज्बा ऐसा है कि वह दुनिया को जीतने का दम रखता है।

जिला फरीदकोट के गांव धूड़कोट का साहसी किसान राजविंदर सिंह खोसा जिसने बारहवीं, कंप्यूटर, B.A और सरकारी आई टी आई फरीदकोट से शार्ट हैंड स्टेनो पंजाबी टाइपिंग का कोर्स करने के बाद नौकरी की तलाश की, पर कहीं पर भी नौकरी न मिली और हार कर वह अपने गांव में गेहूं/धान की खेती करने लगे।

यह बात साल 2009 की है जब राजविंदर सिंह खोसा पारंपरिक खेती ही करते थे और इसके साथ-साथ अपने घर खाने के लिए ही सब्जियों की खेती करते थे जिसमें वह सिर्फ कम मात्रा में ही थोड़ी बहुत सब्जियां ही लगाते और बहुत बार जैसे गांव वाले आकर ले जाते थे पर उन्होंने कभी सब्जियों के पैसे तक नहीं लिए थे।

यह बहुत दिनों तक चलता रहा और वे सब्जियों की खेती करते रहे, लेकिन कम मात्रा में, लेकिन 2019 में कोविड की वजह से लॉकडाउन के कारण दुनिया को सरकार के आदेश के अनुसार अपने घरों तक ही सीमित रहना पड़ा और खाने-पीने की समस्या हो गई। खाना या सब्जी कहाँ से लेकर आए तो इसे देखते हुए जब राजविंदर खोसा जी घर आए तो वह सोच रहे थे कि यदि पूरी दुनिया घर बैठ गई तो खाना-पीना कैसे होगा और इसमें सबसे जरुरी था शरीर की इम्युनिटी बनाना और वह तब ही मजबूत हो सकती थी यदि खाना-पीना सही हो और इसमें सब्जियों की बहुत महत्ता है।

इसे देखते हुए राजविंदर ने सोचा और सब्जी के काम को बढ़ाने के बारे में सोचा। धीरे-धीरे राजविंदर ने 12 मरले में सब्जियों की खेती में जैसे भिंडी, तोरी, कद्दू, चप्पन कद्दू, आदि की सब्जियों की गिनती बढ़ानी शुरू कर दी और जो सब्जियां अगेती लगा और थोड़े समय में पक कर तैयार हो जाती है, सबसे पहले उन्होनें वहां से शुरू किया।

जब समय पर सब्जियां पक कर तैयार हुई तो उन्होनें सोचा कि इसे मंडी में बेच कर आया जाए पर साथ ही मन में ख्याल आया कि क्यों न इसका मंडीकरण खुद ही किया जाए जो पैसा बिचौलिए कमा रहे हैं वह खुद ही कमाया जाए।

फिर राजविंदर जी ने अपनी मारुती कार सब्जियों में लगा दी, सब्जियां कार में रख कर फरीदकोट शहर के नजदीकी लगती नहरों के पास सुबह जाकर सब्जियां बेचने लगे, पर एक दो दिन वहां बहुत कम लोग सब्जी खरीदने आए और घर वापिस निराश हो कर आए, लेकिन उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और सोचा कल किसी ओर जगह लगा कर देखा जाए जहां पर लोगों का आना जाना हो। जैसे राजविंदर जी कार में बैठ कर जाने लगे तो पीछे जसपाल सिंह नाम के व्यक्ति ने आवाज लगाई कि सुबह-सुबह लोग डेयरी से दूध और दही लेने के लिए आते हैं क्या पता तेरी सब्जी वाली कार देखकर सब्जी खरीदने लग जाए, सुबह के समय सब्जी बेच कर देखें।

राजविंदर सिंह जी उसकी बात मानते फिर DC रिहाइश के पास डेयरी के सामने सुबह 6 बजे जाकर सब्जी बेचने लगे, जिससे कुछ लोगों ने सब्जी खरीदी। राजविंदर सिंह खोसा को थोड़ी ख़ुशी भी हुई और अंदर एक उम्मीद की रौशनी जगने लगी और अगले दिन सुबह 6 बजे जाकर फिर सब्जी बेचने लगे और कल से आज सब्जी की खरीद अधिक हुई देखकर बहुत खुश हुए।

राजविंदर जी ने सुबह 6 बजे से सुबह 9 बजे तक का समय रख लिया और इस समय भी वह सब्जियों को बेचते थे। ऐसा करते-करते उनकी लोगों के साथ जान-पहचान बन गई जिसके साथ उनकी सब्जियों की मार्केटिंग में दिनों दिन प्रसार होने लगा।

राजविंदर सिंह जी ने देखा कि मार्केटिंग में प्रसार हो रहा है तो अगस्त 2020 खत्म होते उनके 12 मरले से शुरू किए काम को धीरे-धीरे एक एकड़ में फैला लिया और बहुत सी नई सब्जियां लगाई, जिसमें गोभी, बंदगोभी, मटर, मिर्च, मूली, साग, पालक, धनिया, मेथी, अचार, शहद आदि के साथ-साथ राजविंदर सिंह विदेशी सब्जियां भी पैदा करने लगे, जैसे पेठा, सलाद पत्ता, शलगम, और कई सब्जियां लगा दी और उनकी मार्केटिंग करने लगे।

वैसे तो राजविंदर जी सफल तो तभी हो गए थे जब उनके पास एक औरत सब्जी खरीदने के लिए आई और कहने लगी, मेरे बच्चे सेहतमंद चीजें जैसे मूलियां आदि नहीं खाते, तो राजविंदर ने कहा, एक बार आप मेरी जैविक बगीची से उगाई मूली अपने बच्चों को खिला कर देखें, औरत ने ऐसा किया और उसके बच्चे मूली स्वाद से खाने लगे। जब औरत ने राजविंदर को बताया तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई। फिर शहर के लोग उनसे जुड़े और सब्जी का इंतजार करने लगे।

इसके साथ साथ वह पिछले बहुत अधिक समय से धान की सीधी बिजाई भी करते आ रहे हैं ।

आज उनकी मार्केटिंग में इतना अधिक प्रसार हो चूका है कि फरीदकोट के सफल किसानों की सूची में राजविंदर का नाम भी चमकता है ।

राजविंदर खेती का पूरा काम खुद ही देखते हैं, सब्जियों के साथ वह ओर खेती उत्पाद जैसे शहद, अचार का खुद मंडीकरण कर रहे है, जिससे उनके बहुत से लिंक बन गए हैं और मंडीकरण में उन्हें कोई समस्या नहीं आती ।

खास बात यह भी है कि उन्होंने यह सारी सफलता बिना किसी सरकारी सहायता से अपनी मेहनत द्वारा हासिल की है।

सिर्फ मेहनत ही नहीं राजविंदर सिंह खोसा टेक्नोलॉजी के मामले भी अप टू डेट रहते है, क्योंकि सोशल मीडिया का सही प्रयोग करके अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करते हैं।

भविष्य की योजना

वे सब्जियों की खेती तो कर रहे हैं पर वह सब्जियों की मात्रा ओर बढ़ाना चाहते हैं ताकि लोगों को साफ सब्जी जोकि जहर मुक्त पैदा करके शहर के लोगों को प्रदान की जाए, जिससे खुद को स्वास्थ्य बनाया जाए।

कम खर्चे और कड़ी मेहनत करने वाले राजविंदर सिंह जी अच्छे मान-सम्मान के पात्र है।

संदेश

यदि कोई छोटा किसान है तो उसने पारंपरिक खेती के साथ-साथ कोई ओर छोटे स्तर पर सब्जियों की खेती करनी है तो वह जैविक तरीके के साथ ही शुरू करनी चाहिए और सब्जियों को मंडी में बेचें की बजाए खुद ही जाकर बेचे तो इससे बड़ी बात कोई भी नहीं, क्योंकि व्यवसाय कोई भी हो हमें काम करने के समय शर्म नहीं महसूस होनी चाहिए, बल्कि अपने आप पर गर्व होना चाहिए।

हरभजन सिंह

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एक किसान जो एक ही फार्म पर 5 अलग-अलग व्यवसाय करने में सफल रहा और इसलिए वह किसानों के शक्तिमान के रूप में जाना जाता है

इस तेजी से बदल रही, तेजी से भागती दुनिया में सफल परिणाम प्राप्त करने के लिए विविधीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसे अपनाना मुश्किल है लेकिन आजकल बहुत ज़रूरी है क्योंकि पूरी दुनिया में हर कोई कुछ अनोखा और विशिष्ट करने के लिए आया है। हालाँकि, बहुत से लोग परिवर्तन से डरते हैं और इसलिए, वे विविधीकरण पर अपने विचारों को रोकते हैं। केवल कुछ लोग ही अपने अनोखेपन को महसूस कर सकते हैं और दुनिया को बदलने के लिए उचाईयों तक पहुंच सकते हैं। यह कहानी एक ऐसे ही व्यक्ति की है।

जहां ज़्यादातर किसान गेहूं और धान की खेती के पारंपरिक तरीके से चलते हैं, वहीं मानसा के मलकपुर गांव के एक किसान हरभजन सिंह कृषि में विविधता की दिशा में अपने प्रयासों में योगदान देते हैं। वह अपनी 11 एकड़ जमीन पर सफलतापूर्वक एकीकृत फार्म चला रहे हैं जहाँ पर वह मछली, सुअर, मुर्गियां, बकरी और बटेर आदि का पालन करते हैं। इसके अलावा उन्होंने 55 एकड़ पंचायती जमीन भी किराए पर ली हुई है जिसमें वह मछली पालन करते हैं।

हरभजन सिंह जी ने 1981 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक मैकेनिकल वर्कशॉप शुरू की और वह इसके साथ ही अपने परिवार की कृषि कार्य में सहायता करते थे। उस समय हरभजन सिंह जी के दोस्त ने उन्हें मछली पालन शुरू करने का सुझाव दिया। इसलिए उन्होंने मछली पालन की प्रक्रिया पर रिसर्च करना शुरू कर दिया और जल्द ही मछली पालन करने के लिए किराए पर गाँव का तालाब ले लिया।

मछली पालन करके मैंने बहुत मुनाफा कमाया और इसलिए मैंने अपनी खुद की ज़मीन पर काम करने का फैसला किया- हरभजन सिंह

इस काम से उन्हें फायदा हुआ, इसलिए 1995 में उन्होंने पंजाब राज्य मछली पालन बोर्ड, मानसा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और अपनी ज़मीन पर अधिक बढ़िया ढंग से काम करना शुरू कर दिया। हरभजन सिंह जी ने अपनी ज़मीन पर 2.5 एकड़ में एक तालाब तैयार किया और बाद में अपने तालाब के नज़दीक में 2.5 एकड़ जमीन खरीदी। उस समय उनका मछली उत्पादन 6 टन प्रति हेक्टेयर था।

बाद में, उन्होंने उत्पादन को बढ़ाने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, ओडिशा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और मछली की 6 नस्लें (रोहू, कतला, मुराख़, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प और सिल्वर कार्प) और 3 एरेटर भी खरीदे। इन एरेटर पर सरकार ने आधी सब्सिडी भी प्रदान की। एरेटर के उपयोग के बाद मछली की उत्पादकता बढ़कर 8 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।

मुझे सरकारी हैचरी से मछली के बीज खरीदने पड़े, जो एक महंगी प्रक्रिया थी, इसलिए मैंने अपनी खुद की एक हैचरी तैयार की- हरभजन सिंह

उन्होंने मछली पालन के साथ-साथ मछली के सीड पैदा करने के लिए एक हैचरी तैयार की क्योंकि अन्य हैचरी से बीज खरीदना महंगा था। आमतौर पर हैचरी सरकार द्वारा बनाई जाती है, लेकिन हरभजन सिंह इतने मेहनती और सक्षम थे कि उन्होंने अपनी खुद की हैचरी की शुरुआत बड़े निवेश के साथ की। हैचरी मछलियों को प्रजनन में मदद करने के लिए कृत्रिम वर्षा प्रदान करती है। उन्होंने हैचरी में लगभग 20 लाख उंगली के आकार के मछली के बच्चे तैयार किए और उन्हें 50 पैसे से 1 रुपये प्रति बीज के हिसाब से बेचा।

समय के साथ-साथ उन्होंने 2009 में Large White Yorkshire नस्ल के 50 सुअरों के साथ सुअर पालन का काम शुरू किया और उन्हें जीवित बेचने का फैसला किया। इस प्रकार की मार्केटिंग ज़्यादा सफल नहीं थी, इसलिए उन्होंने सुअर के मीट की प्रोसेसिंग शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने CIPHET, पीएयू और गड़वासु से मीट उत्पादों में ट्रेनिंग ली और सुअर के मीट को आचार में प्रोसेस किया। मीट के आचार की मार्केटिंग एक बड़ी सफलता थी, पर उनकी आमदनी लगभग दोगुनी हो गई।

वर्तमान में, हरभजन जी के पास लगभग 150 सुअर हैं और वह सुअर के व्यर्थ पदार्थों का उपयोग मछलियों को खिलाने के लिए करते हैं। इससे उनकी लागत का 50-60% बच गया और मछलियों का उत्पादन लगभग 20% बढ़ गया। अब वह प्रति हेक्टेयर 10 टन मछली का उत्पादन करते हैं।

उन्होंने फिश पोर्क प्रोसेसिंग सेल्फ हेल्प ग्रुप 11 मेंबर का शुरू किया। इससे कई लोगों को रोज़गार मिला और उनकी आय में वृद्धि हुई। हरभजन सिंह को एकीकृत खेती में उनकी सफलता के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया गया था।

बात यहीं नहीं रुकी! उनको रास्ता लंबा तय करना है। जैसे-जैसे पानी की कमी बढ़ती जा रही, तो हरभजन जी ने पानी को रिसाइकिल करके प्रकृति को बचाने का एक तरीका खोजा। वह सुअरों को नहलाने के लिए पहले पानी का उपयोग करके उसको दोबारा फिर उपयोग करते हैं। फिर उसी पानी को मछली के तालाब में डाला जाता है और मछली तालाब के अपशिष्ट जल का उपयोग खेतों में फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है। यह पानी जैविक होता है और फसलों को उर्वरक प्रदान करता है; इसलिए उर्वरकों की केवल आधी मात्रा को कृत्रिम रूप से देने की आवश्यकता होती है। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जी ने हरभजन सिंह जी के यत्नों से प्रभावित होकर उनके खेत का दौरा किया।

बकरी पालन शुरू करने के लिए मुझे केवीके, मानसा से ट्रेनिंग मिली- हरभजन सिंह

इसके अलावा, उन्होंने अपनी फार्मिंग में बकरियों को शामिल करने का फैसला किया, इसलिए उन्होंने केवीके, मानसा से ट्रेनिंग प्राप्त की और शुरुआत में बीटल और सिरोही के साथ 30 बकरियों के साथ काम करना शुरू किया और वर्तमान में हरभजन के पास 150 बकरियां हैं। 2017 के बाद उन्होंने पीएयू के किसान मेले का दौरा करना शुरू किया, जहाँ से उन्हें बटेर और मुर्गी पालन की प्रेरणा मिली। इसलिए, उन्होंने चंडीगढ़ से 2000 बटेर और 150 कड़कनाथ मुर्गियाँ खरीदी। यह मुर्गियां खुलेआम घूम सकती हैं और अन्य जानवरों के चारे के बचे हुए भोजन से अपना चारा खोज लेती हैं। वह इस समय अपने खेत में 3000 बटेर का पालन करते हैं।

पशुओं/जानवरों के लिए सारा चारा उनके द्वारा मशीनों की मदद से खेत में तैयार किया जाता है। आज हरभजन सिंह जी अपने दो बेटों के साथ सफलतापूर्वक अपने खेत पर काम करते हैं और वह खेत के कार्यों में उनकी मदद करते हैं। वह केवल एक सहायक की सहायता से पूरी खेती का प्रबंधन करते है। वह मछली के बच्चे 2 रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से बेचते हैं। इसके अलावा वह बकरा ईद के अवसर पर मलेरकोटला में बकरियों को बेचते हैं और बकरी के मीट से अचार तैयार करते हैं। कड़कनाथ मुर्गी के अंडे 15-20 रुपये और मुर्गे का मीट 700-800 रुपये में बिकता है। इसके बाद हरभजन जी ने ICAR-CIFE, कोलकाता से मछली का आचार, मछली का सूप आदि बनाने की ट्रेनिंग ली और घरेलू बाजार में उत्पाद का विपणन किया। वह अपना उत्पाद “ख़िआला पोर्क एंड फिश प्रोडक्ट्स” के नाम से बेचते हैं।

सभी उत्पादों की मार्केटिंग मेरे फार्म पर ही होती है- हरभजन सिंह

उनके फार्म पर ही मार्केटिंग की सारी प्रक्रिया की जाती है, उनको अपने उत्पाद बेचने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं। उन्होंने बहुत से युवा किसानों को प्रेरित किया और वे एकीकृत खेती के बारे में उनकी सलाह लेने के लिए उनसे मिलने जाते हैं। वह दूसरों के लिए प्रेरणा बने और कई अन्य लोगों को खेती की एकीकृत खेती करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

भविष्य की योजना

हरभजन सिंह जी अपनी आमदन बढ़ाना चाहते हैं और अपनी खेती को उच्च स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं। वह एकीकृत खेती में और भी अधिक सफल होना चाहता है और लोगों को जैविक और विविध खेती के फायदों के बारे में सिखाना चाहता है।

संदेश

हरभजन सिंह जी युवा किसानों को जैविक खेती करने की सलाह देते हैं। यदि कोई किसान एकीकृत खेती शुरू करना चाहता है तो उसकी शुरुआत छोटे स्तर से करनी चाहिए और धीरे-धीरे अन्य पहलुओं को अपने व्यवसाय में जोड़ना चाहिए।

बबलू शर्मा

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2 कनाल से किया था शुरू और आज 2 एकड़ में फैल चूका है इस नौजवान प्रगतिशील किसान का पनीरी बेचने का काम

मुश्किलें किस काम में नहीं आती, कोई भी काम ऐसा नहीं होगा जो बिना मुश्किलों के पूरा हो सके।इसलिए हर इंसान को मुश्किलों से भरी नाव पर सवार होना चाहिए और किनारे तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करे, जिस दिन नाव किनारे लग जाए समझो इंसान कामयाब हो गया है।

मुक्तसर जिले के गांव खुन्नन कलां के एक युवा किसान बबलू शर्मा ने भी इसी जुनून के साथ एक पेशा अपनाया, जिसके बारे में वे थोड़ा-बहुत जानते थे और थोड़ा-सा ज्ञान उनके लिए एक अनुभव बन गया और आखिर में कामयाब हो कर दिखाया, उन्होंने हार नहीं मानी, बस अपने काम में लगे रहे और आजकल हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानता है।

साल 2012 की बात है जब बबलू शर्मा के पास कोई नौकरी नहीं थी और वह किसी के पास जाकर कुछ न कुछ सीखा करते थे, लेकिन यह कब तक चलने वाला था। एक न एक दिन अपने पैरों पर खड़ा होना ही था। एक दिन वह बैठे हुए थे तो अपने पिता जी के साथ बात करने लगे कि पिता जी ऐसा कौन-सा काम हो सकता है जोकि खेती का हो और दूसरा आमदन भी हो। पिता जी को तो खेती में पहले से ही अनुभव था क्योंकि वह पहले से ही खेती करते आ रहे हैं और अब भी कर रहे हैं । अपने आसपास के किसानों को देखते हुए बबलू ने अपने पिता जी के साथ सलाह करके सब्जियों की पनीरी का काम शुरू करने के बारे में सोचा।

काम तो शुरू हो गया लेकिन पैसा लगाने के बाद भी फेल होने का डर था- बबलू शर्मा

पिता पवन कुमार जी ने कहा, बिना कुछ सोचे काम शुरू कर, जब बबलू शर्मा ने सब्जी की पनीरी का काम पहली बार शुरू किया तो उनका कम से कम 35,000 रुपये तक का खर्चा आ गया था जिसमें उन्होंने प्याज, मिर्च, टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन आदि की पनीरी से जो 2 कनाल में शुरू की थी, पर जानकारी कम होने के कारण बब्लू के सामने समस्या आ खड़ी हुई, पर जैसे-जैसे पता चलता रहा, वह काम करते रहे हैं और इसमें बब्लू के पिता जी ने भी उनका पूरा साथ दिया।

जब समय अनुसार पनीरी तैयार हुई तो उसके बाद मुश्किल थी कि इसे कहाँ पर बेचना है और कौन इसे खरीदेगा। चाहे पनीरी को संभाल कर रख सकते हैं पर थोड़े समय के लिए ही, यह बात की चिंता होने लगी।

शाम को जब बबलू घर आया तो उसके दिमाग में एक ही बात आती थी कि कैसे क्या कर सकते हैं। उन्होंने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए बहुत रिसर्च की और उस समय इंटरनेट इतना नहीं था, फिर बहुत सोचने के बाद उनके मन में आया कि क्यों न गांवों में जाकर खुद ही बेचा जाए।

पिता ने यह कहते हुए सहमति व्यक्त की, “बेटा, जैसा तुम्हें ठीक लगे वैसा करो।” उसके बाद बबलू अपने गांव के पास के गांवों में ऑटो, छोटे हाथियों जैसे छोटे वाहनों में पनीरी बेचना शुरू किया। कभी गुरद्वारे द्वारा तो कभी किसी ओर तरह से पनीरी के बारे में लोगों को बताना, 3 से 4 साल लगातार ऐसा करने से पनीरी की मार्केटिंग भी होने लगी, जिससे लोगों को भी पता चलने लगा और मुनाफा भी होने लगा, पर बब्लू जी खुश नहीं थे, कि इस तरह से कब तक करेंगे, कोई ऐसा तरीका हो जिससे लोग खुद उनके पैसा पनीरी लेने के लिए आये और वह भी नर्सरी में बैठ कर ही पनीरी को बेचें।

इस बार जब बबलू पहले की तरह पनीरी बेचने गया तो कहीं से किसी ने उसे शर्मा नर्सरी के नाम से बुलाया, जिसे सुनकर बबलू बहुत खुश हुआ और जब पनीरी बेचकर वापस आया तो उसके मन में यही बात थी। उन्होंने इसके बारे में ध्यान से सोचा, फिर बबलू ने अपने पिता जी से सलाह ली और शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने का विचार किया। शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने के लिए दे दिए, उस पर हर एक जानकारी जैसे गांव का नाम, फ़ोन नंबर और जिस भी सब्जी की पनीरी उनके द्वारा लगाई जाती है, के बारे में कार्ड पर लिखवाया गया।

जब वह पनीरी बेचने के लिए गए तो वह बनवाये कार्ड वह अपने साथ ले गए। जब वह पनीरी किसे ग्राहक को बेच रहे थे तो साथ-साथ कार्ड भी देने शुरू कर दिए और इस तरह बनवाये कार्ड कई जगह पर बांटे गए।

जब वह घर वापस आए तो वह इंतजार कर रहे थे कोई कार्ड को देखकर फोन करेगा।कई दिन ऐसे ही बीत गए लेकिन वह दिन आया जब सफलता ने फोन पर दस्तक दी। जब उसने फोन उठाया तो एक किसान उससे पनीरी मांग रहा था, जिससे वह बहुत खुश हुए और धीरे-धीरे ऐसे ही उनकी मार्केटिंग होनी शुरू हो गई। फिर उन्होंने गांव-गांव जाकर पनीरी बेचनी बंद कर दिया और उनके कार्ड जब गांव से बाहर श्री मुक्तसर में किसी को मिले तो वहां भी लोगों ने पनीरी मंगवानी शुरू कर दी जिसे वह बस या गाडी द्वारा पहुंचा देते हैं। इस तरह उन्हें फ़ोन पर ही पनीरी के लिए आर्डर आने लगे फिर और उनके पास एक मिनट के लिए भी समय नहीं मिलता और आखिर उन्हें 2018 में सफलता हासिल हुई ।

जब वह पूरी तरह से सफल हो गए और काम करते करते अनुभव हो गया तो उन्होंने धीरे-धीरे करते 2 कनाल से शुरू किए काम को 2020 तक 2 एकड़ में और नर्सरी को बड़े स्तर पर तैयार कर लिया, जिसमें उन्होंने बाद में कद्दू, तोरी, करेला, खीरा, पेठा, जुगनी पेठा आदि की भी पनीरी लगा दी और पनीरी में क्वालिटी में भी सुधार लाये और देसी तरीके के साथ पनीरी पर काम करना शुरू कर दिया।

जिससे उनकी मार्केटिंग का प्रचार हुआ और आज उन्हें मार्केटिंग के लिए कहीं नहीं जाना पड़ता, फ़ोन पर आर्डर आते हैं और साथ के गांव वाले खुद आकर ले जाते हैं। जिससे उन्हें बैठे बैठे बहुत मुनाफा हो रहा है। इस कामयाबी के लिए वह अपने पिता पवन कुमार जी का धन्यवाद करते हैं।

भविष्य की योजना

वह नर्सरी में तुपका सिंचाई प्रणाली और सोलर सिस्टम के साथ काम करना चाहते हैं।

संदेश

काम हमेशा मेहनत और लगन के साथ करना चाहिए यदि आप में जज्बा है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं जो आपने पाने के लिए सोचा है।

तरनजीत संधू

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एक किसान जिसने अपने जीवन के 25 साल संघर्ष करते हुए और बागवानी के साथ-साथ अन्य सहायक व्यवसायों में कामयाब हुए- तरनजीत संधू

जीवन का संघर्ष बहुत विशाल है, हर मोड़ पर ऐसी कठिनाइयाँ आती हैं कि उन कठिनाइयों का सामना करते हुए चाहे कितने भी वर्ष बीत जाएँ,पता नहीं चलता। उनमें से कुछ ऐसे इंसान हैं जो मुश्किलों का सामना करते हैं लेकिन मन ही मन में हारने का डर बैठा होता है, लेकिन फिर भी साहस के साथ जीवन की गति के साथ पानी की तरह चलते रहते हैं, कभी न कभी मेहनत के समुद्र से निकल कर बुलबुले बन कर किसी के लिए एक उदाहरण बनेंगे।

जिंदगी के मुकाम तक पहुँचने के लिए ऐसे ही एक किसान तरनजीत संधू, गांव गंधड़, जिला श्री मुक्तसर के रहने वाले हैं, जो लगातार चलते पानी की तरह मुश्किलों से लड़ रहे हैं, पर साहस नहीं कम हुआ और पूरे 25 सालों बाद कामयाब हुए और आज तरनजीत सिंह संधू ओर किसानों और लोगों को मुश्किलों से लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

साल 1992 की बार है तरनजीत की आयु जब छोटी थी और दसवीं कक्षा में पड़ते थे, उस दौरान उनके परिवार में एक ऐसी घटना घटी जिससे तरनजीत को छोटी आयु में ही घर की पूरी जिम्मेवारी संभालने के लिए मजबूर कर दिया, जोकि एक 17-18 साल के बच्चे के लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि उस समय उनके पिता जी का निधन हो गया था और उनके बाद घर संभालने वाला कोई नहीं था। जिससे तरनजीत पर बहुत सी मुश्किलें आ खड़ी हुई।

वैसे तरनजीत के पिता शुरू से ही पारंपरिक खेती करते थे पर जब तरनजीत को समझ आई तो कुछ अलग करने के बारे में सोचा कि पारंपरिक खेती से हट कर कुछ अलग किया जाए और कुछ अलग पहचान बनाई जाए। उन्होंने सोच रखा था कि जिंदगी में कुछ ऐसा करना है जिससे अलग पहचान बने।

तरनजीत के पास कुल 50 एकड़ जमीन है पर अलग क्या उगाया जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था, कुछ दिन सोचने के बाद ख्याल आया कि क्यों न बागवानी में ही कामयाबी हासिल की जाए। फिर तरनजीत जी ने बेर के पौधे मंगवा कर 16 एकड़ में उसकी खेती तो कर दी, पर उसके लाभ हानि के बारे में नहीं जानते थे, बेशक समझ तो थी पर जल्दबाजी ने अपना असर थोड़े समय बाद दिखा दिया।

उन्होंने न कोई ट्रेनिंग ली थी और न ही पौधों के बारे में जानकारी थी, जिस तरह से आये थे उसी तरह लगा दिए, उन्हें न पानी, न खाद किसी चीज के बारे में जानकारी नहीं थी। जिसका नुक्सान बाद में उठाना पड़ा क्योंकि कोई भी समझाने वाला नहीं था। चाहे नुक्सान हुआ और दुःख भी बहुत सहा पर हार नहीं मानी।

बेर में असफलता हासिल करने के बाद फिर किन्नू के पौधे लाकर बाग़ में लगा दिए, पर इस बार हर बात का ध्यान रखा और जब पौधे को फल लगना शुरू हुआ तो वह बहुत खुश हुए।

पर यह ख़ुशी कुछ समय के लिए ही थी क्योंकि उन्हें इस तरह लगा कि अब सब कुछ सही चल रहा है क्यों न एक बार में पूरी जमीन को बाग़ में बदल दिया जाए और यह चीज उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव लेकर आई जिससे उन्हें बहुत मुश्किल समय में से गुजरना पड़ा।

बात यह थी कि उन्होंने सोचा इस तरह यदि एक-एक फल के पौधे लगाने लगा तो बहुत समय निकल जाएगा। फिर उन्होंने हर तरह के फल के पौधे जिसमें अमरुद, मौसमी फल, अर्ली गोल्ड माल्टा, बेर, कागजी नींबू, जामुन के पौधे भरपूर मात्रा में लगा दिए। इसमें उनका बहुत खर्चा हुआ क्योंकि पौधे लगा तो लिए थे पर उनकी देख-रेख उस तरीके से करने लिए बैंक से काफी कर्जा लेना पड़ा। एक समय ऐसा आया कि उनके पास खर्चे के लिए भी पैसे नहीं थे। ऊपर से बच्चे की स्कूल की फीस, घर संभालना उन्हीं पर था।

कुछ समय ऐसा ही चलता रहा और समय निकलने पर फल लगने शुरू हुए तो उन्हें वह संतुष्ट हुए पर जब उन्होंने अपने किन्नू के बाग़ ठेके पर दे दिए तो बस एक फल के पीछे 2 से 3 रुपए मिल रहे थे।

16 साल तक ऐसे ही चलता रहा और आर्थिक तौर पर उन्हें मुनाफा नहीं हो रहा था। साल 2011 में जब समय अनुसार फल पक रहे तो उनके दिमाग में आया इस बार बाग़ ठेके पर न देकर खुद मार्किट में बेच कर आना है। जब वह जिला मुक्तसर साहिब की मार्किट में बेचने गए तो उन्हें बहुत मुनाफा हुआ और वह बहुत खुश हुए।

तरनजीत ने जब इस तरह से पहली बार मार्किट की तो उन्हें यह तरीका बहुत बढ़िया लगा, इसके बाद उन्होंने ठेके पर दिया बाग़ वापिस ले लिया और खुद निश्चित रूप से मार्केटिंग करने के बारे में सोचा। फिर सोचा मार्केटिंग आसानी से कैसे हो सकती है, फिर सोचा क्यों न एक गाडी इसी के लिए रखी जाए जिसमें फल रख कर मार्किट जाया जाए। फिर साल 2011 से वह गाडी में फल रख कर मार्किट में लेकर जाने लगे, जिससे उन्हें दिन प्रतिदिन मुनाफा होने लगा, जब यह सब सही चलने लगा तो उन्होंने इसे बड़े स्तर पर करने के लिए अपने साथ पक्के बंदे रख लिए, जो फल की तुड़ाई और मार्किट में पहुंचाते भी है।

जो फल की मार्केटिंग श्री मुक्तसर साहिब से शुरू हुई थी आज वह चंडीगढ़, लुधियाना, बीकानेर, दिल्ली आदि बड़े बड़े शहरों में अपना प्रचार कर चुकी है जिससे फल बिकते ही पैसे अकाउंट में आ जाते हैं और आज वह बाग़ की देख रेखन करते हैं और घर बैठे ही मुनाफा कमा रहे हैं जो उनके रोजाना आमदन का साधन बन चुकी है।

तरनजीत ने सिर्फ बागवानी के क्षेत्र में ही कामयाबी हासिल नहीं की, बल्कि साथ-साथ ओर सहायक व्यवसाय जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन में भी कामयाब हुए हैं और मीट के अचार बना कर बेच रहे हैं। इसके इलावा सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं जोकि जैविक तरीके के साथ कर रहे हैं। उनके फार्म पर 30 से 35 आदमी काम करते हैं, जो उनके परिवार के लिए रोजगार का जरिया भी बने हैं। उसके साथ वह टूरिस्ट पॉइंट प्लेस भी चला रहे हैं।

इस काम के लिए उन्हें PAU, KVK और कई संस्था की तरफ से उन्हें बहुत से अवार्ड द्वारा सम्मानित किया जा चूका है।

यदि तरनजीत आज कामयाब हुए हैं तो उसके पीछे उनकी 25 साल की मेहनत है और किसी भी समय उन्होंने कभी हार नहीं मानी और मन में एक इच्छा थी कि कभी न कभी कामयाबी मिलेगी।

भविष्य की योजना

वह बागवानी को पूरी जमीन में फैलाना चाहते हैं और मार्केटिंग को ओर बड़े स्तर पर करना चाहते हैं, जहां भारत के कुछ भाग में फल बिक रहा है, वह भारत के हर एक भाग में फल पहुंचना चाहते हैं।

संदेश

यदि मुश्किलें आती है तो कुछ अच्छे के लिए आती है, खेती में सिर्फ पारंपरिक खेती नहीं है, इसके इलावा ओर भी कई सहायक व्यवसाय है जिसे कर कामयाब हुआ जा सकता है।

संदीप सिंह

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नौकरी छोड़ कर अपने पिता के रास्ते पर चलकर आधुनिक खेती कर कामयाब हुआ एक नौजवान किसान- संदीप सिंह

एक ऊँचा और सच्चा नाम खेती, लेकिन कभी भी किसी ने कृषि के पन्नों को खोलकर नहीं देखा यदि हर कोई खेती के पन्नों को खोलकर देखना शुरू कर दें तो उन्हें खेती के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त हो जाएगी और हर कोई खेती में सफल हो सकता है। सफल खेती वह है जिसमें नए-नए तरीकों से खेती करके ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा सकते है।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं, संदीप सिंह जो गाँव भदलवड, ज़िला संगरूर के रहने वाले हैं और M Tech की हुई है जो अपने पिता के बताए हुए रास्ते पर चलकर और एक अच्छी नौकरी छोड़कर खेती में आज इस मुकाम पर पहुंच चुके है, यहाँ हर कोई उनसे कृषि के तरीकों के बारे में जानकारी लेने आता है। छोटी आयु में सफलता प्राप्त करने का सारा श्रेय अपने पिता हरविंदर सिंह जी को देते हैं, क्योंकि उनके पिता जी पिछले 40 सालों से खेती कर रहे हैं और खेती में काफी अनुभव होने से प्रेरणा अपने पिता से ही मिली है।

उनके पिता हरविंदर सिंह जो 2005 से खेती में बिना कोई अवशेष जलाए खेती करते आ रहे हैं। उसके बाद 2007 से 2011 तक धान के पुआल को आग न लगाकर सीधी बिजाई की थी, जिसमें वे कामयाब हुए और उससे खेती की उपजाऊ शक्ति में बढ़ावा हुआ और साथ ही खर्चे में कमी आई है। हमेशा संदीप अपने पिता को काम करते हुए देखा करता था और खेती के नए-नए तरीकों के बारे जानकारी प्रदान करता था।

2012 में जब संदीप ने M Tech की पढ़ाई पूरी की तब उन्हें अच्छी आय देने वाले नौकरी मिल रही थी लेकिन उनके पिता ने संदीप को बोला, तुम नौकरी छोड़कर खेती कर जो नुस्खे तुम मुझे बताते थे अब उनका खेतों में प्रयोग करना। संदीप अपने पिता की बात मानते हुऐ खेती करने लगे।

मुझे नहीं पता था कि एक दिन यह खेती मेरी ज़िंदगी में बदलाव करेगी- संदीप सिंह

जब संदीप परंपरागत खेती कर रहा था तो सभी कुछ अच्छे तरीके से चल रहा था और पिता हरविंदर ने बोला, बेटा, खेती तो कब से ही करते आ रहे हैं, क्यों न बीजों पर भी काम किया जाए। इस बात के ऊपर हाँ जताते हुए संदीप बीजों वाले काम के बारे में सोचने लगा और बीजों के ऊपर पहले रिसर्च की, जब रिसर्च पूरी हुई तो संदीप ने बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का फैसला लिया।

फिर मैंने देरी न करते हुए के.वी.के. खेड़ी में बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स पूरा किया- संदीप सिंह

2012 में ही फिर उन्होंने गेहूं, चावल, गन्ना, चने, सरसों और अन्य कई प्रकार के बीजों के ऊपर काम करना शुरू कर दिया जिसकी पैकिंग और प्रोसेसिंग का सारा काम अपने तेग सीड प्लांट नाम से चला रहे फार्म में ही करते थे और उसकी मार्केटिंग धूरी और संगरूर की मंडी में जाकर और दुकानों में थोक के रूप में बेचने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा।

संदीप ने बीजों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम तो करना शुरू किया था तो उसका बीजों के कारण और PAU के किसान क्लब के मेंबर होने के कारण पिछले 4 सालों से PAU में आना जाना लगा रहता था। लेकिन जब सूरज ने चढ़ना है तो उसने रौशनी हर उस स्थान पर करनी है, यहाँ पर अंधेरा छाया हुआ होता है।

साल 2016 में जब वह बीजों के काम के दौरान PAU में गए थे तो अचानक उनकी मुलाकात प्लांट ब्रीडिंग के मैडम सुरिंदर कौर संधू जी से हुई, उनकी बातचीत के दौरान मैडम ने पूछा, आप GSC 7 सरसों की किस्म का क्या करते है, तो संदीप ने बोला, मार्केटिंग, मैडम ने बोला, ठीक है बेटा। इस समय संदीप को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैडम कहना क्या चाहते हैं। तब मैडम ने बोला, बेटा आप एग्रो प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स करके, सरसों का तेल बनाकर बेचना शुरू करें, जो आपके लिए बहुत फायदेमंद है।

जब संदीप सिंह ने बोला सरसों का तेल तो बना लेंगे पर मार्केटिंग कैसे करेंगे, इस के ऊपर मैडम ने बोला, इसकी चिंता तुम मत करो, जब भी तैयार हो, मुझे बता देना।

जब संदीप घर पहुंचा और इसके बारे में बहुत सोचने लगा, कि अब सरसों का तेल बनाकर बेचेंगे, पर दिमाग में कहीं न कहीं ये भी चल रहा था कि मैडम ने कुछ सोच समझकर ही बोला होगा। फिर संदीप ने इसके बारे पिता हरविंदर जी से बात की और बहुत सोचने के बाद पिता जी ने बोला, चलो एक बार करके देख ही लेते हैं। फिर संदीप ने के.वी.के. खेड़ी में सरसों के तेल की प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स किया।

2017 में जब ट्रेनिंग लेकर संदीप सरसों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम करने लगे तो यह नहीं पता चल रहा था कि सरसों की प्रोसेसिंग कहाँ पर करेंगे, थोड़ा सोचने के बाद विचार आया कि के.वी.के. खेड़ी में ही प्रोसेसिंग कर सकते हैं। फिर देरी न करते हुए उन्होंने सरसों के बीजों का तेल बनाना शुरू कर दिया और घर में पैकिंग करके रख दी। लेकिन मार्केटिंग की मुश्किल सामने आकर खड़ी हो गई, बेशक मैडम ने बोला था।

PAU में हर साल जैसे किसान मेला लगता था, इस बार भी किसान मेला आयोजित होना था और मैडम ने संदीप की मेले में ही अपने आप ही स्टाल की बुकिंग कर दी और बोला, बस अपने प्रोडक्ट को लेकर पहुँच जाना।

हमने अपनी गाड़ी में तेल की बोतलें रखकर लेकर चले गए और मेले में स्टाल पर जाकर लगा दी- संदीप सिंह

देखते ही देखते 100 से 150 लीटर के करीब कनोला सरसों तेल 2 घंटों में बिक गया और यह देखकर संदीप हैरान हो गया कि जिस वस्तु को व्यर्थ समझ रहा था वे तो एक दम ही बिक गया। वे दिन संदीप के लिए एक न भूलने वाला सपना बन गया, जिसको सिर्फ सोचा ही था और वह पूरा भी हो गया।

फिर संदीप ने यहां-यहां पर भी किसान मेले, किसान हट, आत्मा किसान बाज़ार में जाना शुरू कर दिया, लेकिन इन मेलों में जाने से पहले उन्होंने कनोला तेल के ब्रैंड के नाम के बारे में सोचा जो ग्राहकों को आकर्षित करेगा। फिर वह कनोला आयल को तेग कनोला आयल ब्रैंड नाम से रजिस्टर्ड करके बेचने लगे।

धीरे-धीरे मेलों में जाने से ग्राहक उनसे सरसों का तेल लेने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा और बहुत से ग्राहक ऐसे थे जो उनके पक्के ग्राहक बन गए। वह ग्राहक आगे से आगे मार्केटिंग कर रहे थे जिससे संदीप को मोबाइल पर ऑर्डर आते हैं और ऑर्डर को पूरा करते हैं। आज उनको कहीं पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि घर बैठे ही आर्डर पूरा करते हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जिस का सारा श्रेय वे अपने पिता हरविंदर को देते हैं। बाकि मार्केटिंग वह संगरूर, लुधियाना शहर में कर रहे हैं।

आज मैं जो भी हूँ, अपने पिता के कारण ही हूँ- संदीप सिंह

इस काम में उनका साथ पूरा परिवार देता है और पैकिंग बगेरा वे अपने घर में ही करते हैं, लेकिन प्रोसेसिंग का काम पहले के.वी.के. खेड़ी में ही करते थे, अब वे नज़दीकी गांव में किराया देकर काम करते हैं।

इसके साथ वे गन्ने की भी प्रोसेसिंग करके उसकी मार्केटिंग भी करते हैं और जिसका सारा काम अपने फार्म में ही करते हैं और 38 एकड़ ज़मीन में 23 एकड़ में गन्ने की खेती, सरसों, परंपरागत खेती, सब्जियां की खेती करते हैं, जिसमें वह खाद का उपयोग PAU के बताए गए तरीकों से ही करते हैं और बाकि की ज़मीन ठेके पर दी हुई है।

उनको किसान मेले में कनोला सरसों आयल में पहला स्थान प्राप्त हुआ है, इसके साथ-साथ उनको अन्य बहुत से पुरस्कारों से सन्मानित किया जा चूका है।

भविष्य की योजना

वे प्रोसेसिंग का काम अपने फार्म में ही बड़े स्तर पर लगाकर तेल का काम करना चाहते हैं और रोज़गार प्रदान करवाना चाहते हैं।

संदेश

हर एक किसान को चाहिए कि वह प्रोसेसिंग की तरफ ध्यान दें, ज़रूरी नहीं सरसों की, अन्य भी बहुत सी फसलें हैं जिसकी प्रोसेसिंग करके आप खेती में मुनाफा कमा सकते हैं।

गुरप्रीत सिंह

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अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ते हुऐ इस किसान ने बनाया ऐसा उत्पाद जो इसकी सफलता का कारण बना- गुरप्रीत सिंह

जिंदगी हर पहलू पर सीखने और सिखाने का अवसर है, पर यदि समय पर प्राकृतिक के इशारे को समझ जाए तो इंसान हर वह असंभव वस्तु को संभव कर सकता है। बस उसे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, चाहे वह खेती व्यवसाय हो या फिर कोई ओर व्यवसाय। उसका हमेशा एक ही जुनून होना चाहिए।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान गुरप्रीत सिंह हैं जो गांव मुल्लांपुर के रहने वाले हैं। जिनके पास अपनी जमीन न होते हुए भी सोयाबीन के प्रोडक्ट्स बना कर Daily Fresh नाम से बेच रहे हैं और उनके साथ एक ऐसा हादसा हुआ जिसने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी और एक लाभकारी प्रोडक्ट मार्किट में लेकर आये, जिसके बारे में सभी को पता था पर उसके फायदे के बारे में कोई-कोई ही जानता था।

साल 2017 की बात है, गुरप्रीत सिंह जी को पीलिया हुआ था जोकि बहुत ही अधिक बढ़ गया और ठीक नहीं हो रहा था।

मैं गांव के डॉक्टर के पास अपना चेकअप करवाने के लिए चल गया- गुरप्रीत सिंह

जब उन्होंने ने चेकअप करवाया तो डॉक्टर ने कमज़ोरी को देखते ही ताकत के टीके लगवा दिए, जिसका सीधा असर लिवर पर पड़ा और लिवर में इन्फेक्शन हो गया क्योंकि पीलिया के कारण पहले ही अंदर गर्मी होती है, दूसरा ताकत के टीके ने अंदर ओर गर्मी पैदा कर दी थी।

जब हालत में सुधार नहीं हुआ और सेहत दिन-ब-दिन बिगड़ती गई तो उन्होंने बड़े अस्पताल में जाने का फैसला किया और जब वहां डॉक्टर ने देखा तो उनके होश उड़ गए और गर्मी का कारण जानने के लिए टेस्ट करवाने के लिए भेज दिया। जब गुरप्रीत ने टेस्ट करवाया तो डॉक्टर बोला आप शराब पीते हो तो गुरप्रीत जी ने कहा कि “अमृतधारी हूँ, इन सभी चीजों से दूर रहता हूँ” जब रिपोर्ट आई तो डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में भर्ती किया और इलाज शुरू हो गया।

जब वह अस्पताल में थे तो खाली समय में फोन का प्रयोग करने लगे और सोचा कि देसी तरीके के साथ कैसे ठीक हो सकते है इस पर रिसर्च की जाए। फिर रिसर्च करते समय सबसे ऊपर Wheat Grass आया और उनके मन में उसके बारे में रिसर्च करने की इच्छा जागरूक होने लगी और अच्छी तरह जाँच पड़ताल की और उसके फायदे के बारे में जानकर हैरान हो गए।

अस्पताल के बैड पर बैठ कर की रिसर्च मेरी जिंदगी में बदलाव लेकर आने का पहला पड़ाव था- गुरप्रीत सिंह

रिसर्च तो उन्होंने अस्तपाल में कर ली थी पर उसे प्रयोग करके उसके फायदे देखना बाकी था। इस दौरान अपनी पत्नी को बताया और घर में ही कुछ गमलों में गेहूं के बीज लगा दिए। जिसका फायदा यह है कि 12 से 15 दिन में तैयार हो जाती है।

थोड़ा ठीक होकर गुरप्रीत जी घर आये तो उनकी पत्नी ने रोज Wheat Grass का जूस बना कर उन्हें पिलाना शुरू कर दिया, जैसे-जैसे वह जूस का सेवन करते रहे दिन प्रतिदिन सेहत में फर्क आने लगा और बहुत कम समय में बिलकुल स्वाथ्य हो गए।

उन्होंने सोचा कि यदि इसके अनेक फायदे हैं और बी.पी, शुगर और ओर बहुत सी बीमारियों को खत्म करता है और इम्यूनिटी को मजबूत बनाता है तो क्यों न इसके बारे में ओर लोगों को बताया जाए और उनके पास प्रोडक्ट के रूप में पहुँचाया जाए। उसे मार्किट में लाने के लिए फिर से रिसर्च करने लगे ताकि ओर लोगों की भी सहायता हो सके।

मैंने परिवार के साथ इसके बारे में बात की- गुरप्रीत सिंह

घरवालों से बात करने के बाद उन्होंने सोचा कि इसे पाउडर के रूप में बनाकर लोगों तक पहुँचाया जाए। जिससे एक तो पाउडर खराब नहीं होगा दूसरा उनके पास सही से पहुंचेगा। पर यह नहीं पता था कि पाउडर कैसे बनाया जाए।

इस दौरान मैंने PAU के डॉक्टर रमनदीप सिंह जी के साथ संम्पर्क किया, जो अग्रि बिज़नेस विषय के माहिर हैं और हमेशा ही किसानों की सहायता के लिए तैयार रहते हैं। जिन्होंने प्रोडक्ट बनाने से लेकर मार्केटिंग में लाने तक बहुत सहायता की। आखिर उन्होंने Wheat Grass की प्रोसेसिंग अपने फार्म पर की जो वह मौसम के दौरान घर के गमलों में उगाई हुई थी जहां पर वह पहले ही सोयाबीन के प्रोडक्ट तैयार करते हैं, फिर उन्होंने Wheat Grass का पाउडर बनाकर उसे चैक करवाने के लिए रिसर्च केंद्र ले गए और जब रिपोर्ट आई तो उनका दिल ख़ुशी से भर गया, क्योंकि पाउडर की क्वालिटी जैविक और शुद्ध आई थी।

फिर मैंने सोचा मार्किट में लाने से पहले क्यों न अपने नज़दीकी रिश्तेदार में सैंपल के तौर पर दिया जाए- गुरप्रीत सिंह

जब प्रोडक्ट सैंपल के तौर पर भेजे तो उन्हें अनेक फायदे मिलने लगे और उनसे बहुत होंसला मिला।

होंसला मिलते ही देरी न करते हुए इसे मार्किट में लेकर आने का फैसला किया, इस दौरान उनके सामने एक बड़ी मुश्किल यह आई कि अब तो मौसम के अनुसार उग जाती है जब इसका मौसम नहीं होगा तो क्या करेंगे, फिर उन्होंने सोचा कि हैदराबाद में उनके रिश्तेदार है जो पहले से ही Wheat Grass का काम कर रहे हैं और वहां के मौसम में बदलाव होने के कारण क्यों न वहां से ही मंगवाया जाए इस तरह इस मुश्किल का समाधान हो गया, पर मन में अभी भी डर था लोगों को इसके फायदे के बारे में कैसे बताया जाए, जोकि सबसे बड़ी मुश्किल बन कर सामने आई। बस फिर भगवान को याद करते हुए उन्होंने दुकानदार और मेडिकल स्टोर वालों से जाकर बात की और मेडिकल स्टोर और दुकानदार को Wheat Grass के फायदे के बारे में ग्राहक को बताने के लिए कहा।

कुछ समय वह ऐसे ही मार्किटिंग करते रहे और जब उन्हें लगा कि मार्कटिंग सही से हो रही है, तो सोचा इसे ब्रांड का नाम देकर बेचा जाए, जिससे इसकी अलग पहचान बनेगी। इस दौरान श्री दरबार साहिब जाकर हुक्मनामे के पहले शब्द “” से Perfect Nutrition ब्रांड नाम रखा और उसकी पैकिंग करके बढ़िया तरीके से मार्कटिंग में बेचने लगे।

गुरप्रीत जी किसान मेलों में जाकर, गांव और शहरों में कैनोपी लगाकर इसके फायदे के बारे में बताने लगे और मार्कटिंग करने लगे जिससे उनकी मार्केटिंग में बहुत अधिक प्रसार हुआ।

2019 में वह पक्के तौर पर Wheat Grass पर काम करने लगे और लोगों को कम ही इसके फायदे के बारे में बताना पड़ता है और पाउडर बेचने के लिए मार्किट में नहीं जाना पड़ता बल्कि आजकल इतनी मांग बढ़ गई है कि उन्हें थोड़े समय के लिए भी फ्री समय नहीं मिलता। आज पाउडर की मार्केटिंग पूरे लुधियाना शहर में कर रहे हैं और साथ-साथ मार्कटिंग सोशल मीडिया के द्वारा भी करते हैं जिसमें कोरोना के समय Wheat Grass पाउडर की बहुत मांग बढ़ी और बहुत मुनाफा हुआ।

भविष्य की योजना

वह अपने प्रोडक्ट को बड़े स्तर पर और लोगों को इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी देना चाहते हैं ताकि कोई भी रह न जाए और आजकल जो बीमारियां शरीर को लग रही है उसे बचाव किया जा सके।

संदेश

हर एक इंसान को चाहिए वह अच्छा उगाये और अच्छा खाए, क्योंकि बीमारियों से तभी बचेंगे जब खाना पीना शुद और साफ होगा और इम्यूनिटी मज़बूत रहेगी।

लिंगारेडी प्रसाद

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सफल किसान होना ही काफी नहीं, साथ साथ दूसरे किसानों को सफल करना इस व्यवसायी का सूपना था और इसे सच करके दिखाया- लिंगारेडी प्रसाद

खेती की कीमत वही जानता है जो खुद खेती करता है, फसलों को उगाने और उनकी देखभाल करने के समय धरती मां के साथ एक अलग रिश्ता बन जाता है, यदि हर एक इंसान में खेती के प्रति प्यार हो तो वह हर चीज को प्रकृति के अनुसार ही बना कर रखने की कोशिश करता है और सफल भी हो जाता है। हर एक को चाहिए वह रसायनिक खेती न कर प्रकृति खेती को पहल दे और फिर प्रकृति भी उसकी जिंदगी को खुशियों से भर देती है।

ऐसा ही एक उद्यमी है किसान, जो कृषि से इतना लगाव रखते हैं कि वह खेती को सिर्फ खेती ही नहीं, बल्कि प्रकृति की देन मानते हैं। इस उपहार ने उन्हें बहुत प्रसिद्ध बना दिया। उस उद्यमी किसान का नाम लिंगारेड़ी प्रशाद है, जो चितूर, आंध्रा प्रदेश के रहने वाले हैं। पूरा परिवार शुरू से ही खेती में लगा हुआ था और जैविक खेती कर रहा था पर लिंगारेड़ी प्रशाद कुछ अलग करना चाहते थे, लिंगारेड़ी प्रशाद सोचते थे कि वह खुद को तब सफल मानेंगे जब उन्हें देखकर ओर किसान भी सफल होंगे। पारंपरिक खेती में वह सफलतापूर्वक आम के बाग, सब्जियां, हल्दी ओर कई फसलों की खेती कर रहे थे।

फसली विभिन्ता पर्याप्त नहीं थी क्योंकि यह तो सभी करते हैं- लिंगारेड़ी प्रशाद

एक दिन वे बैठे पुराने दिनों के बारे में सोच रहे थे, सोचते-सोचते उनका ध्यान बाजरे की तरफ गया क्योंकि उन्हें पता था कि उनके पूर्वज बाजरे की खेती करते थे जोकि सेहत के लिए भी फायदेमंद है ओर पशुओं के लिए भी बढ़िया आहार होने के साथ अनेक फायदे हैं। आखिर में उन्होंने बाजरे की खेती करने का फैसला किया क्योंकि जहां पर वह रहते थे, वहां बाजरे की खेती के बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे, दूसरा इसके साथ गायब हो चुकी परंपरा को पुनर्जीवित करने की सोच रहे था।

शुरू में लिंगारेड़ी प्रशाद को यह नहीं पता था कि इस फसल के लिए तापमान कितना चाहिए, कितने समय में पक कर तैयार होती है, बीज कहाँ से मिलते है, और कैसे तैयार किये जाते है। फिर बिना समय बर्बाद किए उन्होंने सोशल मीडिया की मदद से मिल्ट पर रिसर्च करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने गांव में एक बुजुर्ग से बात की और उनसे बहुत सी जानकरी प्राप्त हुई और बुजुर्ग ने बिजाई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी के बारे में लिंगारेड़ी प्रशाद को बताया। जितनी जानकारी मिलती रही वह बाजरे के प्रति मोहित होते रहे और पूरी जानकारी इकट्ठा करने में उन्हें एक साल का समय लग गया था। उसके बाद वह तेलंगाना से 4 से 5 किस्मों के बीज (परल मिलट, फिंगर मिलट, बरनयार्ड मिलट आदि) लेकर आए और अपने खेत में इसकी बिजाई कर दी।

फसल के विकास के लिए जो कुछ भी चाहिए होता था वह फसल को डालते रहते थे और वह फसल पकने के इंतजार में थे। जब फसल पक कर तैयार हो गई थी तो उस समय वह बहुत खुश थे क्योंकि जिस दिन का इंतजार था वह आ गया था और आगे क्या करना है बारे में पहले ही सोच रखा था।

फिर लिंगारेड़ी प्रशाद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बाजरे की खेती के साथ उन्होंने प्रोसेसिंग करने के बारे में सोचा और उस पर काम करना शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्होंने फसल के बीज लेकर मिक्सी में डालकर प्रोसेसिंग करके एक छोटी सी कोशिश की जोकि सफल हुई और इससे जो आटा बनाया (उत्पाद ) उन्हें लोगों तक पहुंचाया। फायदा यह हुआ कि लोगों को उत्पाद बहुत पसंद आया और हौसला बढ़ा।

जब उन्हें महसूस हुआ कि वह इस काम में सफल होने लग गए हैं तो उन्होंने काम को बड़े स्तर पर करना शुरू कर दिया। आज के समय में उन्हें मार्केटिंग के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता क्योंकि ग्राहक पहले से ही सीधा उनके साथ जुड़े हुए हैं क्योंकि आम और हल्दी की खेती करके उनकी पहचान बनी हुई थी।

लिंगारेड़ी प्रशाद के मंडीकरण का तरीका था कि वह लोगों को पहले मिलट के फायदे के बारे में बताया करते थे और फिर लोग मिलट का आटा खरीदने लगे और मार्किट बड़ी होती गई।

साल 2019 में उन्होंने देसी बीज का काम करना शुरू कर दिया और मार्केटिंग करने लगे। सफल होने पर भी वह कुछ ओर करने के बारे में सोचा और आज वह अन्य सहायक व्यवसाय में भी सफल किसान के तौर पर जाने जाते हैं।

नौकरी के बावजूद वे अपने खेत में एक वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, मछली पालन भी चला रहे हैं। उन्हें उनकी सफलता के लिए वहां की यूनिवर्सिटी द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। उनके पास 2 रंग वाली मछली है। अपनी सफलता का श्रेय वह अपनी खेती एप को भी मानते हैं, क्योंकि वह अपनी खेती एप के जरिये उन्हें नई-नई तकनीकों के बारे में पता चलता रहता है।

उन्होंने अपने खेत के मॉडल को इस तरह का बना लिया है कि अब वह पूरा वर्ष घर बैठ कर आमदन कमा रहे हैं।

भविष्य की योजना

वह मुर्गी पालन और झींगा मछली पालन का व्यवसाय करने के बारे में भी योजना बना रहे हैं जिससे वह हर एक व्यवसाय में माहिर बन जाए और देसी बीज पर काम करना चाहते हैं।

संदेश

यदि किसान अपनी परंपरा को फिर से पुर्नजीवित करना चाहता है तो उसे जैविक खेती करनी चाहिए जिससे धरती सुरक्षित रहेगी और दूसरा इंसानों की सेहत भी स्वास्थ्य रहेगी।

अमरजीत शर्मा

पूरी कहानी पढ़ें

ऐसा उद्यमी किसान जो प्रकृति के हिसाब से चलकर एक खेत में से लेता है 40 फसलें

प्रकृति हमारे जीवन का वह अभिन्न अंग है, जिसके बिना कोई भी जीव चाहे वह इंसान है, चाहे पक्षी, चाहे जानवर है, हर कोई अपना पूरा जीवन प्रकृति के साथ ही बिताता है और प्रकृति के साथ उसका प्यार पड़ जाता है। पर कुछ लोग यह भूल जाते हैं और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से नहीं कतराते और इस तरह से खिलवाड़ करते हैं जो सीधा सेहत पर असर करती है।

आज जिस इंसान की कहानी आप पढ़ेंगे यह सभी बातें उस इंसान के दिल और दिमाग में रह गई और फिर शुरू हुआ प्रकृति के साथ उसका प्यार। इस उद्यमी किसान का नाम है “अमरजीत शर्मा” जो गांव चैना, जैतो मंडी, ज़िला फरीदकोट के रहने वाले हैं। लगभग 50 साल के अमरजीत शर्मा का प्रकृति के साथ खेती का सफर 20 साल से ऊपर है। इतना अधिक अनुभव है कि ऐसा लगता है जैसे अपने खेतों से बातें करते हों। साल 1990 से पहले वह नरमे की खेती करते थे, उस समय उन्हें एक एकड़ में 15 से 17 क्विंटल के लगभग फसल प्राप्त हो जाती थी, पर थोड़े समय के बाद उन्हें नरमे की फसल में नुक्सान होना शुरू हो गया और 2 से 3 साल तक ऐसे ही चलता रहा जिसके कारण वह बहुत परेशान हो गए और नरमे की खेती न करने का निर्णय लिया क्योंकि एक तो उन्हें फसल का मूल्य नहीं मिल रहा दूसरा सरकार भी साथ नहीं दे रही थी जिसके कारण वह बहुत दुखी हुए थे।

वह थक कर फिर से परंपरागत खेती करने लग गए, पर उन्होंने शुरू से ही गेहूं की फसल को पहल दी और आजतक धान की फसल नहीं उगाई और ना ही वह उगाना चाहते हैं। उनके पास 4 एकड़ जमीन है जिसमें उन्होंने रासायनिक तरीके से गेहूं और सब्जियों की खेती करनी शुरू कर दी। जब वह रासायनिक खेती कर रहे थे तो उन्हें प्रकृति खेती करने के बारे में सुनने को मिला और उसके बारे में पूरी जानकारी लेने के लिए पता करने लगे।

धीरे-धीरे मुझे प्रकृति खेती के बारे में पता चला- अमरजीत शर्मा

वैसे तो वह बचपन से ही प्रकृति खेती के बारे में सुनते आए थे पर उन्हें यह नहीं पता था कि प्रकृति खेती कैसे की जाती है क्योंकि उस समय सोशल मीडिया नहीं होता था जिससे पता चल सके पर उन्होंने पूरी तरह से जाँच पड़ताल करनी शुरू की।

कहा जाता है कि हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए क्योंकि यदि हम निराश होकर बैठ जाए तो भगवान भी साथ नहीं देता।

वह कोशिश करते रहे और एक दिन कामयाबी उनकी तरफ आ गई, जब अमरजीत सिंह प्रकृति खेती के बारे में जानकारी लेने के लिए जांच पड़ताल करने लगे तो उन्होंने कोई भी अखबार नहीं छोड़ा जो न पढ़ा हो ताकि कोई जानकारी रह न जाए और एक दिन जब वह अखबार पढ़ रहे थे तो उन्होंने खेती विरासत मिशन संस्था के बारे में छपे आर्टिकल को पढ़ना शुरू किया।

जब मैंने आर्टिकल पढ़ना शुरू किया तो मैं बहुत खुश हुआ- अमरजीत शर्मा

उस आर्टिकल को पढ़ते वक्त उन्होंने देखा कि खेती विरासत मिशन नाम की एक संस्था है, जो किसानों को प्रकृति खेती के बारे में जानकारी प्रदान और ट्रेनिंग भी करवाती है, फिर अमरजीत जी ने खेती विरासत मिशन द्वारा उमेन्द्र दत्त जी के साथ संम्पर्क किया।

उस समय खेती विरासत मिशन वाले गांव-गांव जाकर किसानों को प्रकृति खेती के बारे में ट्रेनिंग देते थे और अभी भी ट्रेनिंग देते हैं। इसका फायदा उठाते हुए अमरजीत ने ट्रेनिंग लेनी शुरू की। बहुत समय तक वह ट्रेनिंग लेते रहे, जब धीरे-धीरे समझ आने लगा तो अपने खेतों में आकर तरीके अपनाने लगे। फसल पर इसका फायदा कुछ समय बाद हुआ जिसे देखकर वह बहुत खुश हुए ।

धीरे-धीरे वह पूरी तरह से प्रकृति खेती करने लगे और प्रकृति खेती को पहल देने लगे। जब वह प्रकृति खेती करके फसल की बढ़िया पैदावार लेने लगे तो उन्होंने सोचा कि इसे ओर बड़े स्तर पर ले कर जाया जाए।

मैंने कुछ ओर नया करने के बारे में सोचा -अमरजीत शर्मा

फिर उन्होंने बहु-फसली विधि अपनाने के बारे में सोचा, पर उनकी यह विधि औरों से अलग थी क्योंकि जो उन्होंने किया वह किसी ने सोचा भी नहीं था।

जिस तरह कहा जाता है “एक पंथ दो काज” को सच साबित करके दिखाया। क्योंकि उन्होंने वृक्ष के नीचे उसे पानी हवा पहुंचाने वाली ओर फसलों की खेती करनी शुरू कर दी, जिसके चलते उन्होंने एक जगह पर कई फसलें उगाई और लाभ कमाया।

जब अमरजीत की तकनीकों के बारे में लोगों को पता चला तो लोग उन्हें मिलने के लिए आने लगे, जिसका फायदा यह हुआ कि एक तो उन्हें पहचान मिल गई, दूसरा वह ओर किसानों को प्रकृति खेती के बारे में जानकारी देने में सफल हुए।

अमरजीत जी ने बहुत मेहनत की, क्योंकि 1990 से अब तक का सफर चाहे मुश्किलों वाला था पर उन्होंने होंसला नहीं छोड़ा और आगे बढ़ते रहे।

जब उन्हें लगा कि वह पूरी तरह से सफल हो गए हैं तो फिर स्थायी रूप से 2005 में प्रकृति खेती के साथ देसी बीजों पर काम करना शुरू कर दिया और आज वह देसी बीज जैसे कद्दू, अल, तोरी, पेठा, भिंडी, खखड़ी, चिब्बड़ अदि भी बेच रहे हैं। किसानों तक इन्हे पहुंचाने लगे, जिससे बाहर से किसी भी किसान को कोई रासायनिक वस्तु न लेकर खानी पड़े, बल्कि खुद अपने खेतों में उगाए और खाएं।

आज अमरजीत शर्मा जी इस मुकाम पर पहुँच गए हैं कि हर कोई उनके गांव को उनके नाम “अमरजीत” के नाम से जानते हैं, उनकी इस कामयाबी के कारण खेती विरासत मिशन और ओर संस्था की तरफ से अमरजीत को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

भविष्य की योजना

वह प्रकृति खेती के बारे में लोगों को जानकारी प्रदान करवाना चाहते हैं ताकि इस रस्ते पर चल कर खेती को बचाया जा सके।

संदेश

यदि आपके पास जमीन है तो आप रासायनिक नहीं प्रकृति खेती को पहल दें बेशक कम है, लेकिन जितना खाना है वे कम से कम साफ तो खाएं।

विवेक उनियाल

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देश की सेवा करने के बाद धरती मां की सेवा कर रहा देश का जवान और किसान

हम सभी अपने घरों में चैन की नींद सोते हैं, क्योंकि हमें पता है कि देश की सरहद पर हमारी सुरक्षा के लिए फौज और जवान तैनात हैं, जो कि पूरी रात जागते हैं। जैसे देश के जवान देश की सुरक्षा के लिए अपने सीने पर गोली खाते हैं, उसी तरह किसान धरती का सीना चीरकर अनाज पैदा करके सब के पेट की भूख मिटाते हैं। इसीलिए हमेशा कहा जाता है — “जय जवान जय किसान”

हमारे देश का ऐसा ही नौजवान है जिसने पहले अपने देश की सेवा की और अब धरती मां की सेवा कर रहा है। नसीब वालों को ही देश की सेवा करने का मौका मिलता है। देहरादून के विवेक उनियाल जी ने फौज में भर्ती होकर पूरी ईमानदारी से देश और देशवासियों की सेवा की।

एक अरसे तक देश की सेवा करने के बाद फौज से सेवा मुक्त होकर विवेक जी ने धरती मां की सेवा करने का फैसला किया। विवेक जी के पारिवारिक मैंबर खेती करते थे। इसलिए उनकी रूचि खेती में भी थी। फौज से सेवा मुक्त होने के बाद उन्होंने उत्तराखंड पुलिस में 2 वर्ष नौकरी की और साथ साथ अपने खाली समय में भी खेती करते थे। फिर अचानक उनकी मुलाकात मशरूम फार्मिंग करने वाले एक किसान दीपक उपाध्याय से हुई, जो जैविक खेती भी करते हैं। दीपक जी से विवेक को मशरूम की किस्मों  ओइस्टर, मिल्की और बटन के बारे में पता लगा।

“दीपक जी ने मशरूम फार्मिंग शुरू करने में मेरा बहुत सहयोग दिया। मुझे जहां भी कोई दिक्कत आई वहां दीपक जी ने अपने तजुर्बे से हल बताया” — विवेक उनियाल

इसके बाद मशरूम फार्मिंग में उनकी दिलचस्पी पैदा हुई। जब इसके बारे में उन्होंने अपने परिवार में बात की तो उनकी बहन कुसुम ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। दोनों बहन — भाई ने पारिवारिक सदस्यों के साथ सलाह करके मशरूम की खेती करने के लिए सोलन, हिमाचल प्रदेश से ओइस्टर मशरूम का बीज खरीदा और एक कमरे में मशरूम उत्पादन शुरू किया।

मशरूम फार्मिंग शुरू करने के बाद उन्होंने अपने ज्ञान में वृद्धि और इस काम में महारत हासिल करने के लिए उन्होंने मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग भी ली। एक कमरे में शुरू किए मशरूम उत्पादन से उन्होंने काफी बढ़िया परिणाम मिले और बाज़ार में लोगों को यह मशरूम बहुत पसंद आए। इसके बाद उन्होंने एक कमरे से 4 कमरों में बड़े स्तर पर मशरूम उत्पादन शुरू कर दिया और ओइस्टर  के साथ साथ मिल्की बटन मशरूम उत्पादन भी शुरू कर दिया। इसके साथ ही विवेक ने मशरूम के लिए कंपोस्टिंग प्लांट भी लगाया है जिसका उद्घाटन उत्तराखंड के कृषि मंत्री ने किया।

मशरूम फार्मिंग के साथ ही विवेक जैविक खेती की तरफ भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। पिछले 2 वर्षों से वे जैविक खेती कर रहे हैं।

“जैसे हम अपनी मां की देखभाल और सेवा करते हैं, ठीक उसी तरह हमें धरती मां के प्रति अपने फर्ज़ को भी समझना चाहिए। किसानों को रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए ” — विवेक उनियाल

विवेक अन्य किसानों को जैविक खेती और मशरूम उत्पादन के लिए उत्साहित करने के लिए अलग अलग गांवों में जाते रहते हैं और अब तक वे किसानों के साथ मिलकर लगभग 45 मशरूम प्लांट लगा चुके हैं। उनके पास कृषि यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी  मशरूम उत्पादन के बारे में जानकारी लेने और किसान मशरूम उत्पादन प्लांट लगाने के लिए उनके पास सलाह लेने के लिए आते रहते हैं। विवेक भी उनकी मदद करके अपने आपको भाग्यशाली महसूस करते हैं।

“मशरूम उत्पादन एक ऐसा व्यवसाय है जिससे पूरे परिवार को रोज़गार मिलता है” — विवेक उनियाल

भविष्य की योजना
विवेक जी आने वाले समय में मशरूम से कई तरह के उत्पाद जैसे आचार, बिस्किट, पापड़ आदि तैयार करके इनकी मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश
“किसानों को अपनी आय को बढ़ाने के लिए खेती के साथ साथ कोई ना कोई सहायक व्यवसाय भी करना चाहिए। पर छोटे स्तर पर काम शुरू करना चाहिए ताकि इसके होने वाले फायदों और नुकसानों के बारे में पहले ही पता चल जाए और भविष्य में कोई मुश्किल ना आए।”

अमितेश त्रिपाठी और अरूणेश त्रिपाठी

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अपने पिता के केले के खेती के व्यवसाय को जारी रखते हुए उनके सपने को पूरा कर रहे दो भाइयों की कहानी

कहा जाता है कि यदि परिवार का साथ हो तो इंसान सब कुछ कर सकता है, फिर चाहे वह कुछ नया करने के बारे में हो या फिर पहले से शुरू किए किसी काम को सफलता की बुलंदियों पर लेकर जाने की बात हो।

ऐसी ही एक कहानी है दो भाइयों की जिन्होंने विरासत में मिली केले की खेती को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने के लिए खूब मेहनत की और अपनी एक अलग पहचान बनाई। अपने पिता हरी सहाय त्रिपाठी की तरफ से शुरू की हुई केले की खेती करते हुए दोनों भाइयों ने अपनी मेहनत से पूरे शहर में अपने पिता का नाम रोशन किया।

उत्तर प्रदेश में बहराइच के रहने वाले अमितेश और अरूणेश के पिता गांव के प्रधान थे और अपनी 65 बीघा ज़मीन में वे रवायती खेती के साथ साथ केले की खेती भी करते थे। अपने गांव में केले की खेती शुरू करने वाले पहले किसान त्रिपाठी जी थे। उस समय दोनों भाई पढ़ाई करते थे। अमितेश (बड़ा भाई) बी एस सी एग्रीकल्चर की पढ़ाई करके किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे और अरूणेश भी बी एस सी बायोलोजी की पढ़ाई के साथ SSC की तैयारी कर रहे थे। इसी समय दौरान हरी सहाय त्रिपाठी जी का देहांत हो गया।

इस मुश्किल समय में परिवार का साथ देने के लिए दोनों भाई अपने गांव वापिस आ गए। गांव के प्रधान होने के कारण, गांव के लोगों ने त्रिपाठी के बड़े पुत्र अमितेश को गांव का प्रधान बनाने का फैसला किया। इसके साथ ही उन्होंने अपने पिता के द्वारा शुरू की हुई केले की खेती को संभालने का फैसला किया। पर इस दौरान गांव में तूफान आने के कारण पहले से लगी केले की सारी फसल नष्ट हो गई। इस मुश्किल की घड़ी में दोनों भाइयों ने हिम्मत नहीं हारी और कोशिश करने के बाद उन्हें सरकार के द्वारा प्रभावित फसल का मुआवज़ा मिल गया।

इस हादसे के बाद दोनों ने इस मुआवज़े की राशि से एक नई शुरूआत करने का फैसला किया। दोनों ने अपने पिता की तरफ से लगाई जाती केले की जी 9 किस्म लगाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी 30 बीघा ज़मीन में केले की खेती शुरू की और बाकी 35 बीघा में रवायती खेती जारी रखी।

इस दौरान जहां भी कोई दिक्कत आई हमने केले की खेती के माहिरों से सलाह लेकर मुश्किलों का हल किया। — अरूणेश त्रिपाठी

दोनों भाइयों के द्वारा की गई इस नई शुरूआत के कारण उनकी फसल का उत्पादन काफी बढ़िया हुआ, जो कि लगभग 1 लाख प्रति बीघा था। उनके खेत में तैयार हुई केले की फसल की गुणवत्ता काफी बढ़िया थी, जिसके परिणामस्वरूप कई कंपनियों वाले उनसे सीधा व्यापार करने के लिए संपर्क करने लगे।

केला सदाबहार, पौष्टिक फल है। केले की मार्केटिंग करने में हमें कोई मुश्किल नहीं आती, क्योंकि व्यापारी सीधे हमारे खेतों में आकर केले लेकर जाते हैं।केले की खेती के साथ साथ हम गेहूं की पैदावार भी बड़े स्तर पर करते हैं। — अमितेश त्रिपाठी

दोनों भाइयों ने अपनी मेहनत और सोच समझ से अपने पिता की तरफ से शुरू, की हुई केले की खेती के कारोबार को बड़े स्तर पर लेकर जाने के सपने को सच कर दिखाया।

किसान होने के साथ साथ अमितेश गांव के प्रधान होने के कारण अपने फर्ज़ों को भी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। इसी कारण पूरे शहर के अच्छे किसानों में दोनों भाइयों का नाम काफी प्रसिद्ध है।

भविष्य की योजना

आने वाले समय में दोनों भाई मिलकर अपने फैक्टरी लगाकर केले के पौधे खुद तैयार करना चाहते हैं और अपने पिता की तरह एक सफल किसान बनना चाहते हैं।

संदेश
“यदि हम रवायती खेती के साथ साथ खेती के क्षेत्र में कुछ अलग करते हैं तो हम खेती से भी बढ़िया मुनाफा ले सकते हैं। हमारी नौजवान पीढ़ी को खेती के क्षेत्र में अपनी सोच समझ से नई खोजें करनी चाहिए, ताकि घाटे का सौदा कही जाने वाली खेती से भी बढ़िया मुनाफा लिया जा सके।”

जसवंत सिंह सिद्धू

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जसवंत सिंह सिद्धू फूलों की खेती से जैविक खेती को प्रफुल्लित कर रहे हैं

जसवंत सिंह जी को फूलों की खेती करने के लिए प्रेरणा और दिलचस्पी उनके दादा जी से मिली और आज जसवंत सिंह जी ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जो जैविक तरीके से फूलों की खेती कर रहे हैं। खेतीबाड़ी के क्षेत्र में जसवंत सिंह जी की यात्रा बहुत छोटी उम्र में ही शुरू हुई, जब उनके दादा जी अक्सर उन्हें बगीची की देख—रेख में मदद करने के लिए कहा करते थे। इस तरह धीरे—धीरे जसवंत जी की दिलचस्पी फूलों की खेती की तरफ बढ़ी। पर व्यापारिक स्तर पर उनके पूर्वजों की तरह ही उनके पिता भी गेहूं—धान की ही खेती करते थे और उनके पिता जी कम ज़मीन और परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण कोई नया काम शुरू करके किसी भी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहते थे।

परिवार के हलातों से परिचित होने के बावजूद भी 12वीं की पढ़ाई के बाद जसवंत सिंह जी ने पी ए यू की तरफ से आयोजित बागबानी की ट्रेनिंग में भाग लिया। हालांकि उन्होंने बागबानी की ट्रेनिंग ले ली थी, पर फिर भी फूलों की खेती में असफलता और नुकसान के डर से उनके पिता जी ने जसवंत सिंह जी को अपनी ज़मीन पर फूलों की खेती करने की आज्ञा ना दी। फिर कुछ समय के लिए जसवंत सिंह जी ने गेहूं—धान की खेती जारी रखी, पर जल्दी ही उन्होंने अपने पिता जी को फूलों की खेती (गेंदा, गुलदाउदी, ग्लेडियोलस, गुलाब और स्थानीय गुलाब) के लिए मना लिया और 1998 में उन्होंने इसकी शुरूआत ज़मीन के छोटे से टुकड़े (2 मरला = 25.2929 वर्ग मीटर) पर की।

“जब मेरे पिता जी सहमत हुए, उस समय मेरा दृढ़ निश्चय था कि मैं फूलों की खेती वाले क्षेत्र को धीरे धीरे बढ़ाकर इससे अच्छा मुनाफा हासिल करूंगा। हालांकि हमारे नज़दीक फूल बेचने के लिए कोई अच्छी मंडी नहीं थी, पर फिर भी मैंने पीछे हटने के बारे में नहीं सोचा।”

जब फूलों की तुड़ाई का समय आया, तो जसवंत सिंह जी ने नज़दीक के क्षेत्रों में शादी या और खुशी के समागमों वाले घरों में जाना शुरू किया ओर वहां फूलों से कार और घर सजाने के कॉन्ट्रेक्ट लेने शुरू किए। इस तरीके से उन्होंने आय में 8000 से 9000 रूपये का मुनाफा कमाया। जसवंत सिंह जी की तरक्की देखकर उनके पिता जी और बाकी परिवार के सदस्य बहुत खुश हुए और इससे जसवंत सिंह जी की हिम्मत बढ़ी। धीरे धीरे उन्होंने फूलों की खेती का विस्तार 2½ एकड़ तक कर लिया और इस समय वे 3 एकड़ में फूलों की खेती कर रहे हैं। समय के साथ साथ जसवंत सिंह जी अपने फार्म पर अलग अलग किस्मों के पौधे और फूल लाते रहते हैं। अब उन्होंने फूलों की नर्सरी तैयार करनी भी शुरू की है, जिससे वे बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं और अब मंडीकरण वाला काम भी खुद संभाल रहे हैं।

खैर जसवंत सिंह जी की मेहनत व्यर्थ नहीं गई और उनके प्रयत्नों के लिए उन्हें सुरजीत सिंह ढिल्लो पुरस्कार 2014 से सम्मानित किया गया।

भविष्य की योजना

भविष्य में जसवंत सिंह जी फूलों की खेती का विस्तार करना चाहते हैं और ज़मीन किराए पर लेकर पॉलीहाउस के क्षेत्र में प्रयास करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
सरकारी योजनाएं और सब्सिडियों पर निर्भर होने की बजाए किसानों को खेतीबाड़ी के लिए स्वंय प्रयत्न करने चाहिए।

मुकेश देवी

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मीठी सफलता की गूंज — मिलिए एक ऐसी महिला से जो शहद के व्यवसाय से 70 लाख की वार्षिक आय के साथ मधुमक्खीपालन की दुनिया में आगे बढ़ रही है

“ऐसा माना जाता है कि भविष्य उन लोगों से संबंधित होता है जो अपने सपने की सुंदरता पर विश्वास करते हैं।”

हरियाणा के जिला झज्जर में एक छोटा सा गांव है मिल्कपुर, जो कि अभी तक अच्छे तरीके से मुख्य सड़क से जुड़ा हुआ नहीं है और यहां सीधी बस सेवा की कोई सुविधा नहीं है। किसी व्यक्ति के लिए ऐसी जगह पर रहने के दौरान किसी भी खेती संबंधित गतिविधि या व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोचना भी असंभव सा लगता है। लेकिन मधुमक्खीपालन के क्षेत्र में मुकेश देवी के सफल प्रयासों ने साबित कर दिया है कि यदि आपके पास कुछ भी करने का जुनून है तो कुछ भी असंभव नहीं है। मधुमक्खियों के दर्दनाक जहरीले डंक से पीड़ित होने के बाद भी मुकेश देवी और उनके पति ने कभी भी रूकने का नहीं सोचा और उन्होंने उत्तरी भारत में सर्वश्रेष्ठ शहद उत्पादन करने का अपना जुनून जारी रखा।

वर्ष 1999 में, मुकेश देवी के पति — जगपाल फोगाट ने अपने रिश्तेदारों से प्रेरित होकर मधुमक्खीपालन की शुरूआत की, जो मधुमक्खीपालन कर रहे थे। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान की गई ट्रेनिंग की सहायता से मुकेश देवी भी 2001 में अपने पति के उद्यम में शामिल हो गईं। जिस काम को उन्होंने कुछ मधुमक्खियों के साथ शुरू किया, धीरे धीरे वह काम समय के साथ बढ़ने लगा और अब वह दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली के क्षेत्रों में भी विस्तृत हो गया है।

स्वास्थ्य लाभ और शहद के लिए बढ़ती बाज़ार की मांग को देखते हुए, अब मुकेश देवी ने अपने ही ब्रांड- नेचर फ्रेश के तहत शहद बेचना शुरू कर दिया है। वर्तमान में, उनके पास शहद के संग्रह के लिए मधुमक्खियों के 2000 बक्से हैं।

मुकेश देवी ने ना केवल अपने परिवार की स्थिति को वित्तीय रूप से स्थिर बनाया बल्कि उन्होंने 30 से अधिक लोगों को रोज़गार भी प्रदान किया है। अपने नियोजित कार्यबल की सहायता से 5 अलग अलग राज्यों में मधुमक्खियों के बक्से भेजकर मुकेश देवी और उनके पति वार्षिक 600 से 700 क्विंटल शहद इक्ट्ठा करते हैं, और शहद से, इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्वाद का साधारण शहद है बल्कि उनके पास 7 से अधिक विभिन्न फ्लेवर में शहद है जो तुलसी, अजवायन, धनिया, शीशम, सफेदा, इलायची, नीम, सरसों और अरहर के पौधों से एकत्र किए जाते हैं। तुलसी का शहद उनकी विस्तृत बाज़ार मूल्यों के साथ सबसे अच्छे शहद में से एक है।

जब शहद इक्ट्ठा करने की बात आती है तब यह पति पत्नी का जोड़ा विभिन्न राज्यों के समय और मौसम पर विशेष ध्यान देते हैं और उनके अनुसार उन्होंने अपने मधुमक्खियों के बक्सों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया है। जैविक शहद के लिए बक्सों को विभिन्न राज्यों में जंगलों में भेजा जाता है,विभिन्न स्थानों से शहद इक्ट्ठा करने के कुछ समय काल नीचे दिए गए हैं—

  • तुलसी शहद के लिए — बक्सों को मध्यप्रदेश के जंगलों में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • अजवायन शहद के लिए — बक्सों को राजस्थान के जंगलों में दिसंबर से जनवरी में भेजा जाता है।
  • अजवायन के लिए — बक्सों को जम्मू कश्मीर और पंजाब में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • और फरवरी से अप्रैल में बक्सों को हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया जाता है।

इसके अलावा, इस जोड़ी की आय शहद उत्पादन और इसकी बिक्री तक ही सीमित नहीं है बल्कि वे कॉम्ब हनी, हनी आंवला मुरब्बा, हनी कैरट मुरब्बा, बी पॉलन, बी वैक्स, प्रोपोलिस और बी वीनॉम भी बेचते हैं जो बाज़ार में अच्छे दामों में बिक जाते हैं।

वर्तमान में, मुकेश देवी और उनके पति सिर्फ मधुमक्खीपालन से ही लगभग 70 लाख वार्षिक आय कमा रहे हैं।

मुकेश देवी और जगपाल फोगाट के प्रयासों को कई संगठनों और अधिकारिकों द्वारा सराहा गया है उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं—

  • 2016 में IARI,नई दिल्ली,राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेले में मधुमक्खीपालन और विभिन्न तरह के शहद उत्पादन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • मुकेश देवी और जगपाल फोगाट को सूरजकुंड, फरीदाबाद में एग्री लीडरशिप पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह द्वारा अच्छे शहद उत्पादन के लिए सम्मानित किया गया।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्री, परषोत्तम खोदाभाई रूपला द्वारा सम्मानित किया गया।
  • उनकी उपलब्धियों को प्रगतिशील किसान अधीता और अभिनव किसान नामक पत्रिका में अन्य 39 प्रगतिशील किसानों के साथ प्रकाशित किया गया।

मुकेश देवी एक प्रगतिशील मधुमक्खी पालनकर्ता हैं और उनकी पहल ने अन्य महिला उद्यमियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। कि यदि आपके प्रयास सही दिशा में हैं यहां तक कि मधुमक्खीपालन के व्यवसाय में भी तो आप करोड़पति बन सकते हैं।

भविष्य की योजनाएं

मुकेश देवी और उनके पति ने अपने गांव में ज़मीन खरीदी है जहां पर वे बाज़ार की मांग के अनुसार अपने उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, किसानों को बेहतर वित्तीय स्थिरता के लिए रवायती खेती के साथ संबंधित कृषि गतिविधियों को आगे बढ़ाना चाहिए।

शमशेर सिंह संधु

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जानिये क्या होता है जब नर्सरी तैयार करने का उद्यम कृषि के क्षेत्र में अच्छा लाभ देता है

जब कृषि की बात आती है तो किसान को भेड़ चाल नहीं चलना चाहिए और वह काम करना चाहिए जो वास्तव में उन्हें अपने बिस्तर से उठकर, खेतों जाने के लिए प्रेरित करता है, फिर चाहे वह सब्जियों की खेती हो, पोल्टरी, सुअर पालन, फूलों की खेती, फूड प्रोसेसिंग या उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना हो। क्योंकि इस तरह एक किसान कृषि में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है।

जाटों की धरती—हरियाणा से एक ऐसे प्रगतिशील किसान शमशेर सिंह संधु ने अपने विचारों और सपनों को पूरा करने के लिए कृषि के क्षेत्र में अपने रास्तों को श्रेष्ठ बनाया। अन्य किसानों के विपरीत, श्री संधु मुख्यत: बीज की तैयारी करते हैं जो उन्हें रासायनिक खेती तकनीकों की तुलना में अच्छा मुनाफा दे रहा है।

कृषि के क्षेत्र में अपने पिता की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, शमशेर सिंह ने 1979 में अपनी पढ़ाई (बैचलर ऑफ आर्ट्स) पूरी करने के बाद खेती को अपनाने का फैसला किया और अगले वर्ष उन्होंने शादी भी कर ली। लेकिन गेहूं, धान और अन्य रवायती फसलों की खेती करने वाले अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना उनके लिए मुश्किल था और वे अभी भी अपने पेशे को लेकर उलझन में थे।

हालांकि, कृषि क्षेत्र इतने सारे क्षेत्र और अवसरों के साथ एक विस्तृत क्षेत्र है, इसलिए 1985 में उन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के युवा किसान ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में पता चला, यह प्रोग्राम 3 महीने का था जिसके अंतर्गत डेयरी जैसे 12 विषय थे जैसे डेयरी, बागबानी, पोल्टरी और कई अन्य विषय। उन्होंने इसमें भाग लिया। ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उन्होंने बीज तैयार करने शुरू किए और बिना सब्जी मंडी या कोई अन्य दुकान खोले बिना उन्होंने घर पर बैठकर ही बीज तैयार करने के व्यवसाय से अच्छी कमाई की।

कृषि गतिविधियों के अलावा, शमशेर सिंह सुधु एक सामाजिक पहल में भी शामिल हैं जिसके माध्यम से वे ज़रूरतमंदों को कपड़े दान करके उनकी मदद करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से अवांछित कपड़े इक्ट्ठे करने और अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करने के लिए किसानों का एक समूह बनाया है।

बीज की तैयारी के लिए, शमशेर सिंह संधु पहले स्वंय यूनिवर्सिटी से बीज खरीदते, उनकी खेती करते, पूरी तरह पकने की अवस्था पर पहुंच कर इसकी कटाई करते और बाद में दूसरे किसानों को बेचने से पहले अर्ध जैविक तरीके से इसका उपचार करते। इस तरीके से वे इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं उनका उद्यम इतना सफल है कि उन्हें 2015 और 2018 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और फैलो फार्मर अवार्ड के साथ आई.ए.आर.आई ने उत्कृष्ट प्रयासों के लिए दो बार सम्मानित किया है।

वर्तमान में शमशेर सिंह संधु बीज की तैयारी के साथ, ग्वार, गेहूं, जौ, कपास और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इससे अच्छे लाभ कमा रहे हैं। भविष्य में वे अपने संधु बीज फार्म के काम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि अन्य पड़ोसी राज्यों में भी बीज की आपूर्ति कर सकें।

संदेश
किसानों को अन्य बीज आपूर्तिकर्ताओं के बीज भी इस्तेमाल करके देखने चाहिए ताकि वे अच्छे सप्लायर और बुरे के बीच का अंतर जान सकें और सर्वोत्तम का चयन कर फसलों की बेहतर उपज ले सकें।

नारायण लाल धाकड़

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जानिये कैसे यह 19 वर्षीय युवा किसानों को स्थायी खेती के तरीकों को सिखाने के लिए यूट्यूब और फेसबुक का उपयोग कर रहा है

युवा किसान कृषि का भविष्य हैं और इस 19 वर्षीय लड़के ने खेती की ओर अपने जुनून को दिखाकर सही साबित किया है। नारायण लाल धाकड़ राजाओं, विरासत, पर्यटन, और समृद्ध संस्कृति की भूमि— राजस्थान के एक नौजवान हैं और उनका व्यक्तित्व भी उनकी मातृभूमि की तरह ही विशिष्ट है।

आजकल, हम कई उदाहरण देख रहे हैं जहां भारत के शिक्षित लोग अपने कार्यस्थल के रूप में कृषि का चयन कर रहे हैं और एक स्वतंत्र कृषि उद्यमी के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं, वैसे ही नारायण लाल धाकड़ हैं। बुनियादी सुविधाओं और पर्यटन संसाधनों की कमी के बावजूद, इस युवा ने कृषि समाज की सहायता के लिए ज्ञान का प्रसार करने के लिए युट्यूब और फेसबुक को माध्यम चुना। वर्तमान में उनके 60000 यूट्यूब सबस्क्राइबर और 30000 फेसबुक फोलोअर है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस लड़के के पास वीडियो एडिट करने के लिए कोई लैपटॉप, कंप्यूटर सिस्टम और किसी प्रकार का वीडियो एडिटिंग उपकरण नहीं है। अपने स्मार्टफोन की मदद से वे कृषि की सूचनात्मक वीडियो बनाते हैं।

“मेरे जन्म से कुछ दिन पहले ही मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी और यह मेरे परिवार के लिए एक बहुत ही विकट स्थिति थी। मेरे परिवार को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन फिर भी मेरी मां ने खेती और मजदूरी दोनों काम करके हमें अच्छे से बड़ा किया। पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए, मैनें बहुत कम उम्र में खेती शुरू की और इसे बहुत जल्दी सीख लिया” — नारायण

गुज़ारे योग्य स्थिति में रहकर नारायण ने महसूस किया कि दैनिक आम कीट और खेत की समस्याओं से निपटने के लिए संसाधनों का आसान नुस्खों से प्रयोग करना सबसे अच्छी बात हैं। नारायण ने यह भी स्वीकार किया कि खेती के खर्च का बड़ा हिस्सा सिर्फ खादों और कीटनाशकों के उपयोग के कारण है और यही कारण है कि किसानों पर कर्ज़े का एक बड़ा पहाड़ बनाता है।

“जब बात जैविक खेती को अपनाने की आती है, तो हर किसान सफलतापूर्वक ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि इसमें उत्पादकता कम होती है और दूरदराज के स्थानों पर जैविक स्प्रे और उत्पाद आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।” — नारायण

अपने क्षेत्र की समस्या को समझते हुए, नारायण ने नीलगाय, कीट और फसल की बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए कई आसान तकनीकों का आविष्कार किया। नारायण द्वारा विकसित सभी तकनीकें सफल रहीं और वे इतनी सस्ती है कि कोई भी किसान इन्हें आसानी से अपना सकता है और हर तकनीक को उपलब्ध करवाने के लिए वे अपने फोन में वीडियो बनाते हैं इसमें सब कुछ समझाते हैं और इसे यूट्यूब और फेसबुक पर शेयर करते हैं।अपने फोन द्वारा वीडियो बनाने में आई कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद उन्होंने किसानों की मदद करने के अपने विचार को कभी नहीं छोड़ा। नारायण अपने क्षेत्र के कई किसानों तक पहुंचते हैं और कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि वैज्ञानिकों तक पहुंचकर उनकी समस्या हल कर देते हैं।

नारायण लाल धाकड़ ने 19 वर्ष की उम्र में अपनी सफलता की कहानी लिखी। सतत कृषि तकनीकों के प्रति सामंज्सयपूर्ण तरीके से काम करने के अपने जुनून और दृढ़ संकल्प को देखते हुए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने उन्हें 2018 में कृषि पुरस्कार के लिए नामांकित किया है।

आज, नारायण लाल धाकड़ भारत में उभरती हुई आवाज़ बन गए हैं जिसमें किसानों की खराब परिस्थितियों को बदलने की क्षमता है।


संदेश
“किसानों को जैविक खेती को अपनाना चाहिए क्योंकि उनके खेत में रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है बल्कि उनके अपने लोगों को भी नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा, जैविक खेती करने वाले किसान कीटनाशकों और नदीननाशकों पर बिना खर्च किए स्वस्थ उपज ले सकते हैं।”

इंदर सिंह

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जानिये कैसे आलू और पुदीने की खेती से इस किसान को कृषि के क्षेत्र में सफलता के साथ आगे बढ़ने में मदद मिल रही है

पंजाब के जालंधर शहर के 67 वर्षीय इंदर सिंह एक ऐसे किसान है जिन्होंने आलू और पुदीने की खेती को अपनाकर अपना कृषि व्यवसाय शुरू किया।

19 वर्ष की कम उम्र में, इंदर सिंह ने खेती में अपना कदम रखा और तब से वे खेती कर रहे हैं। 8वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ने के बाद, उन्होंने आलू, गेहूं और धान उगाने का फैसला किया। लेकिन गेहूं और धान की खेती वर्षों से करने के बाद भी लाभ ज्यादा नहीं मिला।

इसलिए समय के साथ लाभ में वृद्धि के लिए वे रवायती फसलों से जुड़े रहने की बजाय लाभपूर्ण फसलों की खेती करने लगे। एक अमेरिकी कंपनी—इंडोमिट की सिफारिश पर, उन्होंने आलू की खेती करने के साथ तेल निष्कर्षण के लिए पुदीना उगाना शुरू कर दिया।

“1980 में, इंडोमिट कंपनी (अमेरिकी) के कुछ श्रमिकों ने हमारे गांव का दौरा किया और मुझे तेल निकालने के लिए पुदीना उगाने की सलाह दी।”

1986 में, जब इंडोमिट कंपनी के प्रमुख ने भारत का दौरा किया, वे इंदर सिंह द्वारा पुदीने का उत्पादन देखकर बहुत खुश हुए। इंदर सिंह ने एक एकड़ की फसल से लगभग 71 लाख टन पुदीने का तेल निकालने में दूसरा स्थान हासिल किया और वे प्रमाणपत्र और नकद पुरस्कार से सम्मानित हुए। इससे श्री इंदर सिंह के प्रयासों को बढ़ावा मिला और उन्होंने 13 एकड़ में पुदीने की खेती का विस्तार किया।

पुदीने के साथ, वे अभी भी आलू की खेती करते हैं। दो बुद्धिमान व्यक्तियों डॉ. परमजीत सिंह और डॉ. मिन्हस की सिफारिश पर उन्होंने विभिन्न तरीकों से आलू के बीज तैयार करना शुरू कर दिया है। उनके द्वारा तैयार किए गए बीज, गुणवत्ता में इतने अच्छे थे कि ये गुजरात, बंगाल, इंदौर और भारत के कई अन्य शहरों में बेचे जाते हैं।

“डॉ. परमजीत ने मुझे आलू के बीज तैयार करने का सुझाव दिया जब वे पूरी तरह से पक जाये और इस तकनीक से मुझे बहुत मदद मिली।”

2016 में इंदर सिंह को आलू के बीज की तैयारी के लिए पंजाब सरकार से लाइसेंस प्राप्त हुआ।

वर्तमान में इंदर सिंह पुदीना (पिपरमिंट और कोसी किस्म), आलू (सरकारी किस्में: ज्योती, पुखराज, प्राइवेट किस्म:1533 ), मक्की, तरबूज और धान की खेती करते हैं। अपने लगातार वर्षों से कमाये पैसों को उन्होंने मशीनरी और सर्वोत्तम कृषि तकनीकों में निवेश किया। आज, इंदर सिंह के पास उनकी फार्म पर सभी आधुनिक कृषि उपकरण हैं और इसके लिए वे सारा श्रेय पुदीने और आलू की खेती को अपनाने को देते हैं।

इंदर सिंह को अपने सभी उत्पादों के लिए अच्छी कीमत मिल रही है क्योंकि मंडीकरण में कोई समस्या नहीं है क्योंकि तरबूज फार्म पर बेचा जाता है और पुदीने को तेल निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है जो उन्हें 500 प्रति लीटर औसतन रिटर्न देता है। उनके तैयार किए आलू के बीज भारत के विभिन्न शहरों में बेचे जाते हैं।

कृषि के क्षेत्र में उनके जबरदस्त प्रयासों के लिए, उन्हें 1 फरवरी 2018 को पंजाब कृषि विश्वद्यिालय द्वारा सम्मानित किया गया है।

भविष्य की योजना
भविष्य में इंदर सिंह आलू के चिप्स का अपना प्रोसेसिंग प्लांट खोलने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
“खादों, कीटनाशकों और अन्य कृषि इनपुट के बढ़ते रेट की वजह से कृषि दिन प्रतिदिन महंगी हो रही है इसलिए किसान को सर्वोत्तम उपज लेने के लिए स्थायी कृषि तकनीकों और तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।”

प्रतीक बजाज

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बरेली के नौजवान ने सिर्फ देश की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने और किसानों को दोहरी आमदन कमाने में मदद करने के लिए सी ए की पढ़ाई छोड़कर वर्मीकंपोस्टिंग को चुना

प्रतीक बजाज, अपने प्रयासों के योगदान द्वारा अपनी मातृभूमि को पोषित करने और देश की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने में कृषि समाज के लिए एक उज्जवल उदाहरण है। दृष्टि और आविष्कार के अपने सुंदर क्षेत्र के साथ, आज वे देश की कचरा प्रबंधन समस्याओं को बड़े प्रयासों के साथ हल कर रहे हैं और किसानों को भी वर्मीकंपोस्टिंग तकनीक को अपनाने और अपने खेती को हानिकारक सौदे की बजाय एक लाभदायक उद्यम बनाने में मदद कर रहे हैं।

भारत के प्रसिद्ध शहरों में से एक — बरेली शहर, और एक बिज़नेस क्लास परिवार से आते हुए, प्रतीक बजाज हमेशा सी.ए. बनने का सपना देखते थे ताकि बाद में वे अपने पिता के रियल एस्टेट कारोबार को जारी रख सकें। लेकिन 19 वर्ष की छोटी उम्र में, इस लड़के ने रातों रात अपना मन बदल लिया और वर्मीकंपोस्टिंग का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया।

वर्मीकंपोस्टिंग का विचार प्रतीक बजाज के दिमाग में 2015 में आया जब एक दिन उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, आई.वी.आर.आई, इज्ज़तनगर में अपने बड़े भाई के साथ डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग में भाग लिया जिन्होंने हाल ही में डेयरी फार्मिंग शुरू की थी। उस समय, प्रतीक बजाज ने पहले से ही अपनी सी.पी.टी की परीक्षा पास की थी और सी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे और अपनी महत्वाकांक्षी भावना के साथ वे सी.ए. भी पास कर सकते थे लेकिन एक बार ट्रेनिंग में भाग लेने के बाद, उन्हें वर्मीकंपोस्टिंग और बायोवेस्ट की मूल बातों के बारे में पता चला। उन्हें वर्मीकंपोस्टिंग का विचार इतना दिलचस्प लगा कि उन्होंने अपने करियर लक्ष्यों को छोड़कर जैव कचरा प्रबंधन को अपनी भविष्य की योजना के रूप में अपनाने का फैसला किया।

“मैंने सोचा कि क्यों हम अपने भाई के डेयरी फार्म से प्राप्त पूरे गाय के गोबर और मूत्र को छोड़ देते हैं जबकि हम इसका बेहतर तरीके से उपयोग कर सकते हैं — प्रतीक बजाज ने कहा 

उन्होंने आई.वी.आर.आई से अपनी ट्रेनिंग पूरी की और वहां मौजूद शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों से कंपोस्टिंग की उन्नत विधि सीखी और सफल वर्मीकंपोस्टिंग के लिए आवश्यक सभी जानकारी प्राप्त की।

लगभग, छ: महीने बाद, प्रतीक ने अपने परिवार के साथ अपनी योजना सांझा की,यह पहले से ही समझने योग्य था कि उस समय उनके पिता सी.ए. छोड़ने के प्रतीक के फैसले को अस्वीकार कर देंगे। लेकिन जब पहली बार प्रतीक ने वर्मीकंपोस्ट तैयार किया और इसे बाजार में बेचा तो उनके पिता ने अपने बेटे के फैसले को खुले दिल से स्वीकार कर लिया और उनके काम की सराहना की।

मेरे लिए सी ए बनना कुछ मुश्किल नहीं था, मैं घंटों तक पढ़ाई कर सकता था और सभी परीक्षाएं पास कर सकता था, लेकिन मैं वही कर रहा हूं जो मुझे पसंद है बेशक कंपोस्टिंग प्लांट में काम करते 24 घंटे लग जाते हैं लेकिन इससे मुझे खुशी महसूस होती है। इसके अलावा, मुझे किसी भी काम के बीज किसी भी अंतराल की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि मेरा जुनून ही मेरा करियर है और यह मेरे काम को अधिक मज़ेदार बनाता है — प्रतीक बजाज ने कहा।

जब प्रतीक का परिवार उसकी भविष्य की योजना से सहमत हो गया तो प्रतीक ने नज़दीक के पर्धोली गांव में सात बीघा कृषि भूमि में निवेश किया और उसी वर्ष 2015 में वर्मीकंपोस्टिंग शुरू की और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

वर्मीकंपोस्टिंग की नई यूनिट खोलने के दौरान प्रतीक ने फैसला किया कि इसके माध्यम से वे देश के कचरा प्रबंधन समस्याओं से निपटेंगे और किसान की कृषि गतिविधियों को पर्यावरण अनुकूल और आर्थिक तरीके से प्रबंधित करने में भी मदद करेंगे।

अपनी कंपोस्ट को और समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने एक अलग तरीके से समाज के कचरे का विभिन्न तकनीकों के साथ उपयोग किया। उन्होंने मंदिर से फूल, सब्जियों का कचरा, चीनी का अवशिष्ट पदार्थ इस्तेमाल किया और उन्होंने वर्मीकंपोस्ट में नीम के पत्तों को शामिल किया, जिसमें एंटीबायोटिक गुण भरपूर होते हैं।

खैर, इस उद्यम को एक पूर्ण लाभप्रद परियोजना में बदल दिया गया, प्रतीक ने गांव में कुछ और ज़मीन खरीदकर वहां जैविक खेती भी शुरू की। और अपनी वर्मीकंपोस्टिंग और जैविक खेती तकनीकों से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यदि गाय मूत्र और नीम के पत्तों का एक निश्चित मात्रा में उपयोग किया जाये तो मिट्टी को कम खाद की आवश्यकता होती है। दूसरी तरफ यह फसल की उपज को भी प्रभावित नहीं करती। कंपोस्ट में नीम की पत्तियों को शामिल करने से फसल पर कीटों का कम हमला होता है और इससे फसल की उपज बेहतर होती है और मिट्टी अधिक उपजाऊ बनती है।


अपने वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट में, प्रतीक दो प्रकार के कीटों का उपयोग करते हैं जय गोपाल और एसेनिया फोएटाइडा, जिसमें से जय गोपाल आई.वी.आर.आई द्वारा प्रदान किया जाता है और यह कंपोस्टिंग विधि को और बेहतर बनाने में बहुत अच्छा है।

अपनी रचनात्मक भावना से प्रतीक ज्ञान को प्रसारित करने में विश्वास करते हैं और इसलिए वे किसान को मुफ्त वर्मीकंपोस्टिंग की ट्रेनिंग देते हैं जिसमें से वे छोटे स्तर से खाद बनाने के एक छोटे मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते हैं। शुरूआत में, उनसे छ: किसानों ने संपर्क किया और उनकी तकनीक को अपनाया लेकिन आज लगभग 42 किसान है जो इससे लाभ ले रहे हैं। और सभी किसानों ने प्रतीक की प्रगति को देखकर इस तकनीक को अपनाया है।

प्रतीक किसानों को यह दावे से कहते हैं कि वर्मीकंपोस्टिंग और जैविक खेती में निवेश करके एक किसान अधिक आर्थिक रूप से अपनी ज़मीन को उपजाऊ बना सकता है और खेती के जहरीले तरीकों की तुलना में बेहतर उपज भी ले सकता है। और जब बात मार्किटिंग की आती है जो जैविक उत्पादों का हमेशा बाजार में बेहतर मूल्य होता है।

उन्होंने खुद रासायनिक रूप से उगाए गेहूं की तुलना में बाजार में जैविक गेहूं बेचने का अनुभव सांझा किया। अंतत: जैविक खेती और वर्मीकंपोस्टिंग को अपनाना किसानों के लिए एक लाभदायक सौदा है।


प्रतीक ने अपना अनुभव बताते हुए हमारे साथ ज्ञान का एक छोटा सा अंश भी सांझा किया — वर्मीकंपोस्टिंग में गाय का गोबर उपयोग करने से पहले दो मुख्य चीज़ों का ध्यान रखना पड़ता है —गाय का गोबर 15—20 दिन पुराना होना चाहिए और पूरी तरह से सूखा होना चाहिए।

वर्तमान में, 22 वर्षीय प्रतीक बजाज सफलतापूर्वक अपना सहयोगी बायोटेक प्लांट चला रहे हैं और नोएडा, गाजियाबाद, बरेली और उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखंड के कई अन्य शहरों में ब्रांड नाम येलो खाद के तहत कंपोस्ट बेच रहे हैं। प्रतीक अपने उत्पाद को बेचने के लिए कई अन्य तरीकों को भी अपनाते हैं।

मिट्टी को साफ करने और इसे अधिक उपजाऊ बनाने के दृढ़ संकल्प के साथ, प्रतीक हमेशा कंपोस्ट में विभिन्न बैक्टीरिया और इनपुट घटकों के साथ प्रयोग करते रहते हैं। प्रतीक इस पौष्टिक नौकरी का हिस्सा होने का विशेषाधिकार प्राप्त और आनंदित महसूस करते हैं जिसके माध्यम से वे ना केवल किसानों की मदद कर रहे हैं बल्कि धरती को भी बेहतर स्थान बना रहे हैं।

प्रतीक अपना योगदान दे रहे हैं। लेकिन क्या आप अपना योगदान कर रहे हैं? प्रतीक बजाज जैसे प्रगतिशील किसानों की और प्रेरणादायक कहानियां पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर पर जाकर अपनी खेती एप डाउनलोड करें।

गुरप्रीत सिंह अटवाल

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जानिये कैसे ये किसान जैविक खेती को सरल तरीके से करके सफलता हासिल कर रहे हैं

35 वर्षीय गुरप्रीत सिंह अटवाल एक प्रगतिशील जैविक किसान है जो जिला जालंधर (पंजाब) के एक छोटे से नम्र और मेहनती परिवार से आये हैं। लेकिन सफलता के इस स्तर पर पहुंचने से पहले और अपने समाज के अन्य किसानों को प्रेरणा देने से पहले, श्री अटवाल भी अपने पिता और आसपास के अन्य किसानों की तरह रासायनिक खेती करते थे।

12वीं के बाद श्री गुरप्रीत सिंह अटवाल ने कॉलेज की पढ़ाई करने का फैसला किया, उन्होंने स्वंय जालंधर के खालसा कॉलेज में बी. ए. में दाखिला लिया। लेकिन जल्दी ही दिमाग में कुछ अन्य विचारों के कारण उन्होंने पहले वर्ष में ही कॉलेज छोड़ दिया और अपने चाचा और पिता के साथ खेतीबाड़ी करने लगे। खेती के साथ साथ वे 2006 में युवा अकाली दल के प्रधान के चुनाव में भी खड़े हुए और इसे जीत भी लिया। समय के साथ श्री अटवाल, 2015 में जिला स्तर पर उसी संगठन के प्रधान से वरिष्ठ प्रधान बन गए।

लेकिन शायद खेती में,किस्मत उनके साथ नहीं थी और उन्हें लगातार नुकसान और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। धान और ग्वार की खेती में उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा था इसलिए 2014 में उन्होंने हल्दी की खेती करने का फैसला किया लेकिन वह भी उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। क्योंकि वे बाज़ार में उचित तरीके से अपनी फसल को बेचने में सक्षम नहीं थे। अंत में, उन्होंने हल्दी से हल्दी पाउडर बनाया और गुरूद्वारों और मंदिरों में मुफ्त में बांट दिया। इस तरह की स्थिति का सामना करने के बाद, गुरप्रीत सिंह अटवाल ने फैसला किया कि वे खुद सभी उत्पादों का मंडीकरण करेंगे और बिचौलिये पर निर्भर नहीं रहेंगे।

उसी वर्ष, गुरप्रीत सिंह अटवाल को अपने पड़ोसी गांव के भंगु फार्म के बारे में पता चला। भंगु फार्म का दौरा श्री अटवाल के लिए इतना प्रेरणादायक था कि उन्होंने जैविक खेती करने का फैसला किया। हालांकि भंगु फार्म में गन्ने की खेती और प्रोसेसिंग होती थी लेकिन वहां से जैविक कृषि तकनीकों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हुई और उसी आधार पर, उन्होंने अपने परिवार के लिए 2.5 एकड़ भूमि पर सब्जियों की जैविक खेती शुरू की।

अब गुरप्रीत सिंह अटवाल ने अपने फार्म पर लगभग जैविक खेती शुरू कर दी है और उपज भी पहले से बेहतर है। वे मक्की, गेहूं, धान, गन्ना और मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं और भविष्य में वे गेहूं का आटा और मक्की का आटा प्रोसेस करने की योजना बना रहे हैं। इसी बीच, श्री अटवाल ने भोगपुर शहर में 2 किलोमीटर के क्षेत्र में फार्म में उत्पादित ताजा सब्जियों की होम डिलीवरी शुरू की है।

जैविक खेती के अलावा, गुरप्रीत सिंह अटवाल डेयरी फार्मिंग में भी सक्रिय रूप से शामिल है। उन्होंने घरेलु उपयोग के लिए गायें और भैंसों की स्वदेशी नस्लें रखी हुई है और अधिक दूध गांव में बेच देते हैं।

भविष्य की योजना
गुरप्रीत सिंह अटवाल पंजाब स्तर पर और फिर भारत स्तर पर एक जैविक स्टोर खोलने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
प्रत्येक किसान को जैविक खेती करनी चाहिए यदि बड़े स्तर तक संभव ना हो तो इसे कम से कम घर के उद्देश्य के लिए छोटे क्षेत्र में करने की कोशिश करनी चाहिए। इस तरह, वे अपनी ज़िंदगी में एक अंतर बना सकते हैं और इसे बेहतर बना सकते हैं।

गुरप्रीत सिंह अटवाल एक प्रगतिशील किसान है जो ना केवल अपने फार्म पर जैविक खेती कर रहे हैं बल्कि अपने गांव के अन्य किसानों को इसे अपनाने की प्रेरणा भी दे रहे हैं। वे डीकंपोज़र की सहायता से कुदरती कीटनाशक और खादें तैयार करते हैं और इसे किसानों में भी बांटते हैं अपने कार्यों से गुरप्रीत अटवाल ने यह साबित कर दिया है कि वे दूर की सोच रखते हैं और वर्तमान और कठिन समय का डट कर सामना करते हैं और सफलता हासिल करते हैं।

संतवीर सिंह बाजवा

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जानिये कैसे एक वकील पॉलीहाउस में फूलों की खेती करके कृषि को एक सफल उद्यम बना रहा है

आपके पास केवल ज़मीन का होना भारी कर्ज़े और रासायनिक खेती के दुष्चक्र से बचने का एकमात्र साधन नहीं है क्योंकि यह दिन प्रतिदिन किसानों को अपाहिज बना रहा है। किसान को एक ऐसा व्यक्ति माना जाता है जिसे भविष्य के परिणामों को ध्यान में रखकर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और यदि भविष्य के परिणामों में से कोई भी विफल रहता है तो किसान को अन्य विकल्पों के साथ तैयार भी रहना पड़ता है। और केवल वे किसान जो आधुनिक तकनीकों, आदर्श मंडीकरण रणनीतियों और निश्चित रूप से कड़ी मेहनत की मदद से अपने आप को टूटने नहीं देते और खेती के सही तरीके को समझते हैं, सिर्फ उनकी अगली पीढ़ी ही इस पेशे को खुशी से अपनाती है।
यह कहानी है होशियारपुर स्थित वकील संतवीर सिंह बाजवा की जो बागबानी के क्षेत्र में अपने पिता जतिंदर सिंह लल्ली बाजवा की सफलता को देखने के बाद सफल युवा किसान बने। अपने पिता के समान उन्होंने पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने का फैसला किया और इस उद्यम को सफल भी बनाया।

संतवीर सिंह बाजवा अपने विचार साझा करते हुए — वर्तमान में अगर हम आज के युवाओं को देखे तो हमें एक स्पष्ट चीज़ का पता चल सकता है कि या तो आजकल के नौजवान विदेश जा रहे हैं या फिर वे खेती के अलावा कोई और पेशे का चयन कर रहे हैं और इसके पीछे का मुख्य कारण कृषि में कोई निश्चित आय ना होना है, और तो और इसमें नुकसान का डर भी रहता है। इसके अलावा मौसम और सरकारी योजना भी किसान को ढंग से सहारा नहीं दे पाता।

अपने पिता के समान कौशल जिन्होंने विवधीकरण को सफलतापूर्वक अपनाया और महलांवाली गांव में एक सुंदर फलों के बाग की स्थापना की , संतवीर सिंह ने भी अपना फूलों की खेती के पॉलीहाउस की स्थापना की जहां पर उन्होंने जरबेरा की खेती शुरू की। सजावटी फूलों के बाजार की मांग के बारे में अवगत होने के कारण, संतवीर ने गुलाब ओर कारनेशन की खेती भी शुरू कर दी जिससे उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त हुआ।

पॉलीहाउस में खेती करने के अपने अनुभव से, मैं अन्य किसानों के साथ एक महत्तवपूर्ण जानकारी साझा करना चाहता हूं कि पॉलीहाउस में काश्त की फसलों और उचित कृषि तकनीकों की देखभाल करने की आवश्यकता होती है, केवल तभी आप अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से फूलों के विशेषज्ञयों और प्रगतिशील किसानों से परामर्श करता हूं और अपना सर्वश्रेष्ठ कोशिश देन के लिए इंटरनेट से भी मदद लेता हूं। — संतवीर सिंह बाजवा।

अब भी संतवीर सिंह बाजवा अपने पिता की नई मंडीकरण रणनीतियों से मदद कर रहे हैं और फलों की खेती से भी अच्छा लाभ कमा रहे हैं।
संदेश
यदि किसान कृषि तकनीकों से अच्छी प्रकार से अवगत हैं तो पॉलीहाउस में खेती करना एक बहुत ही लाभदायक उद्यम है। युवा किसानों को पॉलीहाउस में खेती करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में उनके लिए बहुत संभावनाएं हैं और वे इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं 

दविंदर सिंह मुशकाबाद

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भारत में विदेशी कृषि के मॉडल को लागू करके सफलता प्राप्त करता यह किसान

भारतीयों में विदेश जाने और वहां बसने की बढ़ रही मानसिकता सामान्य है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें वहां जाकर क्या करना है, भले ही वह एक सफाई कर्मचारी की नौकरी हो या अन्य मजदूर वाली नौकरी। लेकिन यदि उन्हें वही काम अपने देश में करना पड़े तो उन्हें शर्म महसूस होती है। हां, यह तथ्य सच है कि वहां विदेश में काम करने में अधिक पैसा है लेकिन क्या होगा यदि हम विदेशी टैक्नोलोजी को अपने देश में लाएं और अपने व्यवसाय को लाभदायक उद्यम बनाएं। यह कहानी है मालवा क्षेत्र के, 46 वर्षीय किसान दविंदर सिंह की, जिन्होंने विदेश जाने के अवसर का बहुत अच्छी तरह से उपयोग किया और विदेशी कृषि मॉडल को पंजाब में लेकर आये।

1992 में दविंदर सिंह ने विदेश जाने की योजना बनाई, पर वे अपने प्रयत्नों में असफल रहे और आखिर में उन्होंने खेतीबाड़ी शुरू करने का फैसला किया। उस समय वे इस तथ्य से अनजान थे कि विदेश में रहना आसान नहीं था क्योंकि वहां रहने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, पर खेतीबाड़ी से बढ़िया लाभ प्राप्त करना आसान नहीं है क्योंकि खेतीबाड़ी खून और पसीने की मांग करती है। उन्होंने खेती करनी शुरू की लेकिन जब वे मार्किटिंग में आए तब मध्यस्थों से धोखा खाने के डर से उन्होंने खुद अपने हाथ में तराजू लेने का फैसला किया।

“मैं मां की दी सफेद दरी, तराजू और हरी मिर्च की बोरी के साथ लिए चंडीगढ़ के सेक्टर 42 की सब्जी मंडी के दौरे के अपने पहले अनुभव को कभी नहीं भूल सकता, मैं वहां पूरा दिन बैठा रहा, मैं इतना परेशान और संकुचित सा महसूस कर रहा था कि ग्राहक से पैसे लूं या नहीं। समझ नहीं आ रहा था। मुझे ऐसा देखने के बाद, मेरे कुछ किसान भाइयों ने मुझे बताया कि यहां इस तरह काम नहीं चलेगा आपको अपने ग्राहकों को बुलाना होगा और अपनी फसल की बिक्री कीमत पर ज़ोर देना होगा। इस तरह से मैंने सब्जियों को बेचना सीखा।”

उस समय लड़खड़ाते कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए, दविंदर सिंह ने अपनी पहली फसल से 45 हज़ार रूपये कमाए और वे इससे बहुत खुश थे, खैर, उस समय तक दविंदर सिंह पहले ही जान चुके थे कि खेतीबाड़ी का मार्ग बहुत मजबूती और दृढ़ संकल्प की मांग करता है। वापिस मुड़े बिना, दविंदर सिंह ने कड़ी मेहनत और जुनून से काम करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे जब उन्होंने अपने खेती क्षेत्र का विस्तार किया और अपने कौशल को और बढ़ाने के लिए 2007 में अपने एक दोस्त के साथ एक ट्रेनिंग कैंप के लिए स्पेन का दौरा किया।

स्पेन में उन्होंने कृषि मॉडल को देखा और इससे वे बहुत चकित हुए। छोटी सी छोटी जानकारी को बिना खोए दविंदर सिंह ने सब कुछ अपने नोट्स में लिखा।

“मैंने देखा कि इटली में प्रचलित कृषि मॉडल भारत से बहुत अलग है। इटली के कृषि मॉडल में किसान समूह में काम करते हैं और वहां बिचौलिये नहीं है। मैंने यह भी देखा कि इटली की जलवायु स्थिति भारत की तुलना में कृषि के अनुकूल नहीं थी, फिर भी वे अपने खेतों से उच्च उत्पादकता ले रहे थे। लोग अपनी फसल की वृद्धि और विकास के लिए फसलों को उच्च वातावरण देने के लिए पॉलीहाउस का उपयोग कर रहे थे। यह सब देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। ”

उत्कृष्ट कृषि तकनीकों की खोज करने के बाद, दविंदर सिंह ने फैसला किया कि वे पॉलीहाउस का तरीका अपनाएंगे। शुरूआत में, उन्हें पॉलीहाउस का निर्माण करने के लिए कोई सहायता नहीं मिली, इसलिए उन्होंने इसे स्वंय बनाने का फैसला किया। बांस की सहायता से उन्होंने 500 वर्ग मीटर में अपना पॉलीहाउस स्थापित किया और इसमें सब्जियां उगानी शुरू की। जब आस पास के लोगों को इसके बारे में पता चला तो कई विशेषज्ञों ने भी उनके फार्म का दौरा किया लेकिन वे नकारात्मक प्रतिक्रिया देकर वापिस चले आये और कहा कि यह पॉलीहाउस सफल नहीं होगा। लेकिन फिर भी, दविंदर सिंह ने अपनी कड़ी मेहनत और उत्साहित भाव से इसे सफल बनाया और इससे अच्छी उपज ली।

उनके काम से खुश होकर, राष्ट्रीय बागबानी मिशन ने उन्हें पॉलीहाउस में सहायता करने और निर्माण करने में उनकी मदद करने का फैसला किया। जब कृषि विभाग उस समय दविंदर सिंह के पक्ष में था तब उनके पिता सुखदेव सिंह उनके पक्ष में नहीं थे। उनके पिता ने अपनी ज़मीन नहीं देना चाहते थे क्योंकि पॉलीहाउस तकनीक नई थी और उन्हें यकीन नहीं था कि इससे लाभ मिलेगा या नहीं और किसी मामले में ऋृण का भुगतान नहीं किया गया तो बैंक उनकी ज़मीन छीन लेगा।

अपने परिवार पर निर्भर हुए बिना, दविंदर सिंह ने पॉलीहाउस स्थापित करने के लिए एक एकड़ भूमि पर 30 लाख रूपये का ऋृण लेकर अपने दोस्त के साथ साझेदारी में अपना उद्यम शुरू करने का फैसला किया। उस वर्ष उन्होंने अपने पॉलीहाउस में रंग बिरंगी शिमला मिर्च उगाई उत्पादनऔर गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि उन्होंने एक वर्ष के अंदर अंदर अपनी कमाई से ऋृण का भुगतान कर दिया।

अगला चरण, जिस पर दविंदर सिंह ने कदम रखा। 2010 में उन्होंने एक समूह बनाया, उन्होंने धीरे धीरे उन लोगों और समूहों में काम का विस्तार किया जो एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह के तहत पॉलीहाउस तकनीक सीखने के लायक थे। दविंदर सिंह का यह कदम एक बहुत ही अच्छा कदम था क्योंकि उनके समूह ने बीज, खाद और अन्य आवश्यक कृषि इनपुट 25 से 30 प्रतिशत सब्सिडी दर पर लेकर शुरूआत की। इसके अलावा सभी किसान जो समूह के सदस्य हैं अब कृषि इनपुट इकट्ठा करने के लिए विभिन्न दरवाजों पर दस्तक नहीं देते उन्हें सब कुछ एक ही छत के नीचे मिल जाता है। समूह निर्माण ने किसानों को परिवहन शुल्क, मंडीकरण, पैकेजिंग और अधिकतम लाभ प्रदान किए और इसका परिणाम यह हुआ कि एक किसान ज्यादा खर्चे के बोझ से परेशान नहीं होता। एग्री मार्ट ब्रांड नाम है जिसके तहत समूह द्वारा उत्पादित फसलों को चंडीगढ़ और दिल्ली की सब्जी मंडी में बेचा जाता है, लोग उनके ब्रांड पर भरोसा करते हैं और मंडीकरण के लिए उन्हें अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता।

जब मैं अकेला था उस समय मंडीकरण का स्तर अलग था लेकिन आज हमारे पास एक समूह है और समूह में मंडीकरण करना आसान है लेकिन समूह की गुणवत्ता का अपना स्थान है। समूह एक बहुत शक्तिशाली चीज़ है क्योंकि लाभ को छोड़कर समूह में सब कुछ साझा किया जाता है — दविंदर सिंह मुशकाबाद ने कहा।

20 वर्ष की अवधि में, दविंदर सिंह के प्रयासों ने उन्हें एक साधारण विक्रता से एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह का प्रमुख बना दिया, जिसके तहत वर्तमान में 230 किसान उस समूह में हैं। एक छोटे से क्षेत्र से शुरूआत करके, वर्तमान में उन्होंने अपने खेती क्षेत्र को बड़े पैमाने पर विस्तारित किया जिसमें से साढ़े पांच एकड़ में पॉलीहाउस खेती की जाती है और इसके अलावा उन्होंने कुछ आधुनिक कृषि तकनीकों जैसे तुपका सिंचाई, स्प्रिंकलर को पानी वितरण के उचित प्रबंधन के लिए मशीनीकृत किया है। अपनी इस सफलता के लिए वे पी ए यू, लुधियाना और उनके संगठित कार्यक्रमों और समारोह को भारी श्रेय देते हैं जिन्होंने उन्हें अच्छे ज्ञान स्रोत के रूप में समर्थन दिया।

आज दविंदर सिंह का समूह नवीन तकनीकों और स्थायी कृषि तरीकों से कृषि क्षेत्र में विवधीकरण का मॉडल बन गया है। बागबानी के क्षेत्र में उनके जबरदस्त प्रयासों के लिए, दविंदर सिंह को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है और उन्होंने विदेशों में कई प्रतिनिधिमंडल में भाग लिया है।

• 2008 में उजागर सिंह धालीवाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
• 2009 में पूसा कृषि विज्ञान मेले में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा मुख्यमंत्री पुरस्कार प्राप्त हुआ।
• 2014 में पंजाब सरकार द्वारा प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ।
• 2014 में डॉ. मोहिंदर सिंह रंधावा मेमोरियल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
• पंजाब कृषि विश्वविद्यालय वैज्ञानिक सलाहकार समिती के लिए नॉमिनेट हुए।
• पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में, अनुसंधान परिषद के सदस्य बने।
• अप्रैल 2013 में, कृषि विभाग द्वारा डेलीगेशन प्रायोजित के सदस्य बनकर उन नौजवान किसानों के लिए एग्रो आधारित मलेशिया और मंत्रालय का दौरा किया।

• अक्तूबर 2016 में कृषि मंत्रालय, पंजाब सरकार के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल के प्रगतिशील किसान सदस्य के रूप में बाकी, अज़रबैजान का भी दौरा किया।

संदेश
“एक किसान के लिए मुश्किलों का सामना करना अनिवार्य है, क्योंकि जितना अधिक आप कठिनाइयों का सामना करते हैं, उतनी ही आपको सफलता मिलती है। मुश्किलें व्यक्ति को तैयार करती हैं, इसलिए मुश्किल परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए बल्कि इनसे सीखना चाहिए। हमेशा अपने आप को प्रेरित करें और सकारात्मक सोचें। क्योंकि सब कुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है।

जब जल प्रबंधन की बात आती है तो जल कृषि में प्रमुख भूमिका निभाता है। किसान को अपने पानी की जांच करवानी चाहिए और उसके बाद नहर के पानी से अपना टैंक स्थापित करना चाहिए और फिर उसे पॉलीहाउस में इस्तेमाल करना चाहिए, इसके परिणामस्वरूप 25—30 प्रतिशत आय में वृद्धि होती है।”

भविष्य की योजनाएं

उपभोक्ताओं को होम डिलीवरी प्रदान करने की योजना है ताकि वे कम रसायनों वाले पोषक तत्वों से समृद्ध ताजी सब्जियां खा सकें।

अपनी खेती के साथ अपने कृषि के अनुभव को साझा करते समय, दविंदर सिंह ने हमारे साथ अपनी ज़िंदगी का एक सुखद क्षण सांझा किया—
इससे पहले मैं विदेश जाने का सपना देखता था, बिना जाने कि मुझे वहां वास्तव में क्या करना है। लेकिन बाद में, जब मैंने मलेशिया और अन्य देशों के प्रतिनिधिमंडल टीम के सदस्य के रूप में दौरा किया तो मुझे बहुत खुशी और गर्व महसूस हुआ,यह सपना सच होने के जैसा था। मुझे “श्रमिक कार्य करने के लिए विदेश जाना” और “प्रतिनिधिमंडल टीम के सदस्य के रूप में विदेश जाने” के बीच के अंतर का एहसास हुआ।

शर्मिंदगी महसूस किए बिना, दविंदर सिंह ने अपने खेतों में किए गए प्रयासों के फलस्वरूप, परिणाम हर किसी के सामने हैं। वर्तमान में, वे अपने एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह के तहत 230 किसानों का मार्गदर्शन कर रहे हैं और कृषि तकनीकों में अच्छे बदलाव कर रहे हैं। दविंदर सिंह संघर्ष कर रहे किसानों के लिए एक महान उदाहरण और प्रेरणा हैं। यदि उनकी कहानी पढ़कर आप प्रेरित महसूस करते हैं और अपने उद्यम में उससे जुड़ना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके उनसे संपर्क कर सकते हैं।

नवदीप बल्ली और गुरशरन सिंह

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 मालवा क्षेत्र के दो युवा किसान कृषि को फूड प्रोसेसिंग के साथ जोड़कर कमा रहे दोगुना लाभ

भोजन जीवन की मूल आवश्यकता है, लेकिन क्या होगा जब आपका भोजन उत्पादन के दौरान बहुत ही बुनियादी स्तर पर मिलावटी और दूषित हो जाये!

आज, भारत में भोजन में मिलावट एक प्रमुख मुद्दा है,जब गुणवत्ता की बात आती है तो उत्पादक/निर्माता अंधे हो जाते हैं और वे केवल मात्रा पर ध्यान केंद्रित करते हैं,जो ना केवल भोजन के स्वाद और पोषण को प्रभावित करता है बल्कि उपभोक्ता के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। लेकिन पंजाब के मालवा क्षेत्र के ऐसे दो युवा किसानों ने, समाज को केवल शुद्ध भोजन प्रदान करना अपना लक्ष्य बना लिया।

यह नवदीप बल्ली और गुरशरण सिंह की कहानी है जिन्होंने अपने अनूठे उत्पादन कच्ची हल्दी के आचार के साथ बाजार में प्रवेश किया और थोड़े समय में ही लोकप्रिय हो गए। एक अच्छी शिक्षित पृष्ठभूमि से आते हुए इन दो युवा पुरूषों ने समाज के लिए क्या, अच्छा प्रदान करने का फैसला किया। यह सब तब शुरू हुआ जब उन्होंने कच्ची हल्दी के कई लाभ और घरेलू नुस्खों की खोज की जो खराब कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, त्वचा की बीमारियों, एलर्जी और घावों को ठीक करने में मदद करते हैं, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी और कई अन्य बीमारियों को रोकने में मदद करते हैं।

शुरू से ही दोनों दोस्तों ने कुछ अलग करने का फैसला किया था, इसलिए उन्होंने हल्दी की खेती शुरू की और 80-90 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने अपनी फसल को स्वंय प्रोसेस करने और उसे कच्ची हल्दी के आचार के रूप में मार्किट में बेचने का फैसला किया।पहला स्थान जहां उनके उत्पाद को लोगों के बीच प्रसिद्धी मिली वह था बठिंडा की रविवार वाली मंडी और अब उन्होंने शहर के कई स्थानों पर इसे बेचना शुरू कर दिया है।

फूड प्रोसेसिंग व्यवसाय में प्रवेश करने से पहले नवदीप और गुरशरण ने जिले के वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ डॉ. परमेश्वर सिंह से खेती पर परामर्श लिया। आज, स्वंय डॉक्टर भी स्वयं पर गर्व महसूस करते हैं, कि उनकी सलाह का पालन करके ये युवा खाद्य प्रसंस्करण मार्किट में अच्छा कर रहे हैं और रसोई में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किए जाने वाले अधिक बुनियादी शुद्ध संसाधित खाद्य उत्पादों को बना रहे हैं।

कच्ची हल्दी के आचार की सफलता के बाद, नवदीप और गुरशरण को रामपुर में स्थापित प्रोसेसिंग प्लांट मिला और वर्तमान में उनकी उत्पाद सूची में 10 से अधिक वस्तुएं हैं, जिनमें कच्ची हल्दी, कच्ची हल्दी का आचार, हल्दी पाउडर, मिर्च पाउडर, सब्जी मसाला, धनिया पाउडर, लस्सी, दहीं, चाट मसाला, लहसुन का आचार, जीरा, बेसन, चाय का मसाला आदि।

ये दोनों ना केवल फूड प्रोसेसिंग को एक लाभदायक उद्यम बना रहे हैं। बल्कि अन्य किसानों को बेहतर राजस्व हासिल करने के लिए खेती के साथ फूड प्रोसेसिंग को अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।

भविष्य की योजनाएं: वे भविष्य में अपने उत्पादों को पोषक समृद्ध बनाने के लिए फसल विविधीकरण को अपनाने और अधिक किफायती खेती करने की योजना बना रहे हैं। अपने संसाधित उत्पादों को आगे के क्षेत्रों में बेचने और लोगों को मिलावटी भोजन और स्वास्थय की महत्तव के बारे में जागरूक करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
यदि किसान कृषि से बेहतर लाभ चाहते हैं तो उन्हें खेती के साथ फूड प्रोसेसिंग का कार्य शुरू करना चाहिए।

सपिंदर सिंह

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सपिंदर सिंह ने सुअर पालन के साथ मछली पालन को समेकित कर पंजाब में कृषि संबंधित गतिविधियो को अगले स्तर तक पहुंचाया

भारत के अधिकांश भागों में, किसान अपनी घरेलु आर्थिकता को समर्थन देने के लिए समेकित कृषि संबंधित गतिविधियों को अपना रहे हैं और अपनाये भी क्यों ना । समेकित कृषि प्रणाली ना सिर्फ ग्रामीण समुदाय को उचित आजीविका प्रदान करती है बल्कि एक व्यवसाय में किसी कारणवश हानि होने पर अतिरिक्त व्यवसाय के रूप में समर्थन प्रदान करती है। इस उदाहरण के साथ संगरूर के प्रगतिशील किसान सपिंदर सिंह ने सुअर पालन के साथ मछली पालन को अपनाकर पंजाब के अन्य किसानों के लिए उदाहरण स्थापित किया है।

यह कहानी एक रिटायर्ड व्यक्ति— सपिंदर सिंह की है, जिन्होंने अपने 18 वर्ष मिल्टिरी इंजीनियरिंग सर्विस को समर्पित करने के बाद वापिस पंजाब आने का फैसला किया और अपना बाकी का जीवन खेतीबाड़ी को समर्पित कर दिया। कृषि पृष्ठभूमि से आने के कारण, सपिंदर सिंह के लिए दोबारा खेतीबाड़ी शुरू करना कुछ मुश्किल नहीं था। लेकिन मुख्य फसलें गेहू और धान उगाना उनके लिए लाभदायक उद्यम नहीं था। जिसका एक कारण उनका संबंधित कृषि गतिविधियों की तरफ प्रभावित होना था।

इस समय के दौरान, एक बार सपिंदर सिंह कुछ व्यक्तिगत कामों के लिए संगरूर शहर गए और वहां पर उन्होंने एक मछली बीज फार्म में मछली बीज उत्पादन की प्रक्रिया के बारे में पता चला। मछली फार्म में श्रमिकों से बात करने पर उन्हें पता चला कि महीने में एक बार उन अभिलाषी किसानों की ट्रेनिंग के लिए 5 दिनों का ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किया जाता है। जो कि मछली पालन के व्यवसाय को अपने करियर के रूप में अपनाना चाहते हैं।

“और यह तब हुआ जब मैंने मछली पालन करने का फैसला किया। मेरी मां और मैंने अक्तूबर 2013 में पांच दिनों की ट्रेनिंग ली। वहां से मुझे पता चला कि मछली का बच्चा केवल मार्च से अगस्त तक ही प्रदान किया जाता है।”

ट्रेनिंग के बाद एक भी पल बिना गंवाए सपिंदर सिंह ने अपना स्वंय का प्री कल्चर टैंक (नर्सरी टैंक) तैयार करने और उसमें मछली के पूंग संग्रहित करने का फैसला किया। टैंक की तैयारी के लिए उन्होंने मिट्टी और पानी की जांच के तहत अपनी ज़मीन की जांच के बाद अपनी ज़मीन पर एक तालाब खोदा। मछली पालन विभाग ने उन्हें लोन एप्लेकेशन में भी मदद की और सपिंदर सिंह के लिए लोन की किश्तों की प्रक्रिया बहुत ही आसान थीं।

“मछली पालन के लिए मैंने 4.50 लाख रूपये के लोन के लिए आवेदन किया और कुछ समय बाद 1.50 लाख रूपये पहली लोन की किश्त प्राप्त हुई। समय पर लोन भी चुकाया गया था, जिसके कारण मुझे अपना मछली फार्म स्थापित करने के दौरान किसी भी प्रकार की वित्तीय समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।”

मछली पालन के अधिकारियों ने सपिंदर सिंह को सही समय पर जानकारी देने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने श्री सिंह को एकीकृत खेती का सुझाव दिया ओर फिर सपिंदर सिंह ने सुअर पालन का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। ट्रेनिंग लेने के बाद सपिंदर सिंह ने पिग्गरी शैड स्थापित करने के लिए 4.90 लाख रूपये के लोन के लिए आवेदन किया।

वर्तमान में, सपिंदर सिंह 200 सुअरों के साथ 3.25 एकड़ में मछली पालन कर रहे हैं। सुअर पालन के साथ मछली पालन की समेकित कृषि प्रणाली से उन्हें 8 लाख का शुद्ध लाभ मिलता है। मछली पालन और पशु पालन दोनों विभागों ने 1.95 लाख और 1.50 लाख की सब्सिडी दी। दोनों विभागों और जिला प्रशासन दोनों ने उन्हें अपना उद्यम बढ़ाने में पूरी सहयोग और सभी अवसर उन्हें प्रदान किए।

वर्तमान में, सपिंदर सिंह अपने फार्म को सफलतापूर्वक चला रहे हैं और जब भी उन्हें मौका मिलता है तो वे किसानों को उचित कृषि ज्ञान हासिल करने के लिए द्वारा आयोजित के वी के ट्रेनिंग कैंप में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करते हैं।

अपनी तीव्र जिज्ञासा के साथ वे हमेशा एक कदम आगे रहना चाहते हैं सपिंदर सिंह ये भी जानते है। कि उन्नति के लिए उनका अगला कदम क्या होना चाहिए और यही कारण है कि वे सुअर — मछली युनिट के प्रोसेसिंग प्लांट में निवेश करने की योजना बना रहे हैं।

सपिंदर सिंह एक आधुनिक प्रगतिशील किसान हैं जिन्होंने आधुनिक पद्धति के अनुसार अपने खेती करने के तरीकों को बदला और प्रत्येक अवसर का लाभ उठाया। अन्य किसान यदि कृषि क्षेत्र में प्रगति करना चाहते हैं तो उन्हें सपिंदर सिंह के दृष्टिकोण को समझना होगा।

संदेश

यदि किसान अच्छी कमाई करना चाहते हैं और आर्थिक रूप से घरेलु स्थिति में सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें फसल की खेती के साथ कृषि संबंधी व्यवसायों को अपनाना चाहिए।

सरबीरइंदर सिंह सिद्धू

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पंजाब -मालवा क्षेत्र के किसान ने कृषि को मशीनीकरण तकनीक से जोड़ा, क्या आपने कभी इसे आज़माया है…

44 वर्षीय सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को लागू किया जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है और प्रकृति के साथ मिलकर काम करने का यह विचार उनके दिमाग में तब आया जब वे बहुत दूर विदेश में थे।

खेतीबाड़ी, जैसे कि हम जानते हैं कि यह एक पुरानी पद्धति है जिसे हमारे पूर्वजों और उनके पूर्वजों ने भोजन उत्पादित करने और जीवन जीने के लिए अपनाया। लेकिन मांगों में वृद्धि और परिवर्तन के साथ, आज कृषि का एक लंबा इतिहास बन चुका है। हां, आधुनिक कृषि पद्धतियों के कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं लेकिन अब न केवल कृषि समुदाय बल्कि शहर के बहुत से लोग स्थाई कृषि पद्धतियों के लिए पहल कर रहे हैं।

सरबीरइंदर सिंह सिद्धू उन व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने विदेश में रहते हुए महसूस किया कि उन्होंने अपनी धरती के लिए कुछ भी नहीं किया जिसने उन्हें उनके बचपन में सबकुछ प्रदान किया। यद्यपि वे विदेश में बहुत सफल जीवन जी रहे थे, नई खेती तकनीकों, मशीनरी के बारे में सीख रहे थे और समाज की सेवा कर रहे थे, लेकिन फिर भी वे निराश महसूस करते थे और तब उन्होंने विदेश छोड़ने का फैसला किया और अपनी मातृभूमि पंजाब (भारत) वापिस आ गए।

“पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं उच्च शिक्षा के लिए कैनेडा चला गया और बाद में वहीं पर बस गया, लेकिन 5-6 वर्षों के बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे वहां पर वापिस जाने की जरूरत है जहां से मैं हूं।”

विदेशी कृषि पद्धतियों से पहले से ही अवगत सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने खेती के अपने तरीके को मशीनीकृत करने का फैसला किया और उन्होंने व्यापारिक खेती और कृषि तकनीक को इक्ट्ठे जोड़ा। इसके अलावा, उन्होंने गेहूं और धान की बजाय किन्नू की खेती शुरू करने का फैसला किया।

“गेहूं और धान पंजाब की रवायती फसले हैं जिन्हें ज़मीन में केवल 4-5 महीने श्रम की आवश्यकता होती है। गेहूं और धान के चक्र में फंसने की बजाय, किसानों को बागबानी फसलों और अन्य कृषि संबंधित गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए जो साल भर की जा सकती हैं।”

श्री सिंह ने एक मशीन तैयार की जिसे बगीचे में ट्रैक्टर के साथ जोड़ा जा सकता है और यह मशीन किन्नू को 6 अलग-अलग आकारों में ग्रेड कर सकती है। मशीन में 9 सफाई करने वाले ब्रश और 4 सुखाने वाले ब्रश शामिल हैं। मशीन के मशीनीकरण ने इस स्तर तक श्रम की लागत को लगभग शून्य कर दिया है।

“मेरे द्वारा डिज़ाइन की गई मशीन एक घंटे में लगभग 1-1 ½ टन किन्नू ग्रेड कर सकती है और इस मशीन की लागत 10 लीटर डीज़ल प्रतिदिन है।”

श्री सिंह के मुताबिक- शुरूआत में जो मुख्य बाधा थी वह थी किन्नुओं के मंडीकरण के दौरान, किन्नुओं का रख रखाव, तुड़ाई में लगने वाली श्रम लागत जिसमें बहुत समय जाता था और जो बिल्कुल भी आर्थिक नहीं थी। श्री सिंह द्वारा विकसित की ग्रेडिंग मशीन के द्वारा, तुड़ाई और ग्रेडिंग की समस्या आधी हल हो गई थी।

छ: अलग अलग आकारों में किन्नुओं की ग्रेडिंग करने का यह मशीनीकृत तरीके ने बाजार में श्री सिंह की फसल के लिए एक मूल्यवान जगह बनाई, क्योंकि इससे उन्हें अधिक प्राथमिकता और निवेश पर प्रतिफल मिलता है। किन्नुओं की ग्रेडिंग के लिए इस मशीनीकृत तरीके का उपयोग करना “सिद्धू मॉडल फार्म” के लिए एक मूल्यवान जोड़ है और पिछले 2 वर्षों से श्री सिंह द्वारा उत्पादित फल सिट्रस शो में राज्य स्तर पर पहला और दूसरा पुरस्कार प्राप्त किए हैं।

सिर्फ यही दृष्टिकोण नहीं था जिसे श्री सिंह अपना रहे थे, बल्कि ड्रिप सिंचाई, फसल अपशिष्ट प्रबंधन, हरी खाद, बायोगैस प्लांट, वर्मी कंपोस्टिंग, सब्जियों, अनाज, फल और गेहूं का जैविक उत्पादन के माध्यम से वे कृषि के रवायती ढंगों के हानिकारक प्रभावों को कम कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र में सरबीरइंदर सिंह सिद्धू के योगदान ने उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त करवाये हैं जिनमें से ये दो मुख्य हैं।
• पंजाब के अबोहर में राज्य स्तरीय सिट्रस शो जीता
• अभिनव खेती के लिए पूसा दिल्ली पुरस्कार प्राप्त हुआ
कृषि के साथ श्री सिंह सिर्फ अपने शौंक की वजह से अन्य पशु पालन और कृषि संबंधित गतिविधियों के भी माहिर हैं। उन्होंने डेयरी पशु, पोल्टरी पक्षी, कुत्ते, बकरी और मारवाड़ी घोड़े पाले हुए हैं। उन्होंने आधे एकड़ में मछली तालाब और जंगलात बनाया हुआ है जिसमें 7000 नीलगिरी के वृक्ष और 25 बांस की झाड़ियां हैं।
कृषि क्षेत्र में अपने 12 वर्ष के अनुभव के साथ, श्री सिंह ने कुछ महत्तवपूर्ण मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और इन मुद्दों के माध्यम से वे समाज को संदेश देना चाहते हैं जो पंजाब में प्रमुख चिंता के विषय हैं:

सब्सिडी और कृषि योजनाएं
किसान मानते हैं कि सरकार सब्सिडी देकर और विभिन्न कृषि योजनाएं बनाकर हमारी मदद कर रही है, लेकिन यह सच नहीं है, यह किसानों को विकलांग बनाने और भूमि हथियाने का एक तरीका है। किसानों को अपने अच्छे और बूरे को समझना होगा क्योंकि कृषि इतना व्यापक क्षेत्र है कि यदि इसे दृढ़ संकल्प से किया जाए तो यह किसी को भी अमीर बना सकती है।

आजकल के युवा पीढ़ी की सोच
आजकल युवा पीढ़ी विदेश जाने या शहर में बसने के लिए तैयार है, उन्हें परवाह नहीं है कि उन्हें वहां किस प्रकार का काम करना है, उनके लिए खेती एक गंदा व्यवसाय है। शिक्षा और रोजगार में सरकार के पैसे निवेश करने का क्या फायदा जब अंतत: प्रतिभा पलायन हो जाती है। आजकल की नौजवान पीढ़ी इस बात से अनजान है कि खेतीबाड़ी का क्षेत्र इतना समृद्ध और विविध है कि विदेश में जीवन व्यतीत करने के जो फायदे, लाभ और खुशी है उससे कहीं ज्यादा यहां रहकर भी वे हासिल कर सकते हैं।

कृषि क्षेत्र में मंडीकरण – आज, किसानों को बिचौलियों को खेती- मंडीकरण प्रणाली से हटाकर स्वंय विक्रेता बनना पड़ेगा और यही एक तरीका है जिससे किसान अपना खोया हुआ स्थान समाज में दोबारा हासिल कर सकता है। किसानों को आधुनिक पर्यावरण अनुकूल पद्धतियां अपनानी पड़ेंगी जो कि उन्हें स्थायी कृषि के परिणाम की तरफ ले जायेंगी।

सभी को यह याद रखना चाहिए कि-
“ज़िंदगी में एक बार सबको डॉक्टर, वकील, पुलिस अधिकारी और एक उपदेशक की जरूरत पड़ती है पर किसान की जरूरत एक दिन में तीन बार पड़ती है।”

मोहन सिंह

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एक व्यक्ति की कहानी जिसने अपने बचपन के जुनून खेतीबाड़ी को अपनी रिटायरमेंट के बाद पूरा किया

जुनून एक अद्भुत भावना है या फिर ये कह सकते हैं कि ऐसा जज्बा है जो कि इंसान को कुछ भी करने के लिए प्रेरित कर सकता है और मोहन सिंह जी के बारे में पता चलने पर जुनून से जुड़ी हर सकारात्मक सोच सच्ची प्रतीत होती है। पिछले दो वर्षों से ये रिटायर्ड व्यक्ति – मोहन सिंह, अपना हर एक पल बचपन के जुनून या फिर कह सकते हैं कि शौंक को पूरा करने में जुटे हुए हैं आगे कहानी पढ़िए और जानिये कैसे..

तीन दशकों से भी अधिक समय से BCAM की सेवा करने के बाद मोहन सिंह आखिर में 2015 में संस्था से जनरल मेनेजर के तौर से रिटायर हुए और फिर उन सपनों को पूरा करने के लिए खेती के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया जिसे करने की इच्छा बरसों पहले उनके दिल में रह गई थी ।

एक शिक्षित पृष्ठभूमि से आने पर, जहां उनके पिता मिलिटरी में थे मोहन सिंह कभी व्यवसाय विकल्पों के लिए सीमित नहीं थे उनके पास उनके सपनों को पूरा करने की पूरी स्वतंत्रता थी। अपने बचपन के वर्षों में मोहन सिंह को खेती ने इतना ज्यादा प्रभावित किया कि इसके बारे में वे खुद ही नहीं जानते थे।

बड़े होने पर मोहन सिंह अक्सर अपने परिवार के छोटे से 5 एकड़ के फार्म में जाते थे जिसे उनका परिवार घरेलू उद्देश्य के लिए गेहूं, धान और कुछ मौसमी सब्जियां उगाने के लिए प्रयोग करता था। लेकिन जैसे ही वे बड़े हुए उनकी ज़िंदगी अधिक जटिल हो गई पहले शिक्षा प्रणाली, नौकरी की जिम्मेदारी और बाद में परिवार की ज़िम्मेदारी।

2015 में रिटायर होने के बाद मोहन सिंह ने प्रकाश आयरन फाउंडरी, आगरा में एक सलाहकार के तौर पर पार्ट टाइम जॉब की। वे एक महीने में एक या दो बार यहां आते हैं 2015 में ही उन्होंने अपने बचपन की इच्छा की तरफ अपना पहला कदम रखा और उन्होंने काले प्याज और मिर्च की नर्सरी तैयार करनी शुरू कर दी।

उन्होंने 100 मिट्टी के क्यारियों से शुरूआत की और धीरे धीरे इस क्षेत्र को 200 मिट्टी के क्यारियों तक बढ़ा दिया और फिर उन्होंने इसे 1 एकड़ में 1000 मिट्टी के क्यारियों में विस्तारित किया। उन्होंने ऑन रॉड स्टॉल लगाकर अपने उत्पादों की मार्किटिंग शुरू की। उन्हें इससे अच्छा रिटर्न मिला जिससे प्रेरित होकर उन्होंने सब्जियों की नर्सरी भी तैयार करनी शुरू कर दी। अपने उद्यम को अगले स्तर तक ले जाने के लिए एक व्यक्ति के साथ कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग शुरू की जिसमें उन्होंने मिर्च की पिछेती किस्म उगानी शुरू की जिससे उन्हें अधिक लाभ हुआ।

काले प्याज की फसल मुख्य फसल है जो प्याज की पुरानी किस्मों की तुलना में उन्हें अधिक मुनाफा दे रही है। क्योंकि इसके गलने की अवधि कम है और इसकी भंडारण क्षमता काफी अधिक है। कुछ मज़दूरों की सहायता से वे अपने पूरे फार्म को संभालते हैं और इसके साथ ही प्रकाश आयरन फाउंडरी में सलाहकार के तौर पर काम भी करते हैं। उनके पास सभी आधुनिक तकनीकें हैं जो उन्होने अपने फार्म पर लागू की हुई हैं जैसे ट्रैक्टर, हैरो, टिल्लर और लेवलर।

वैसे तो मोहन सिंह का सफर खेती के क्षेत्र में कुछ समय पहले ही शुरू हुआ है पर अच्छी गुणवत्ता वाले बीज और जैविक खाद का सही ढंग से इस्तेमाल करके उन्होंने सफलता और संतुष्टि दोनों ही प्राप्त की है।

वर्तमान में, मोहन सिंह, मोहाली के अपने गांव देवीनगर अबरावन में एक सुखी किसानी जीवन जी रहे हैं और भविष्य में स्थाई खेतीबाड़ी करने के लिए खेतीबाड़ी क्षेत्र में अपनी पहुंच को बढ़ा रहे हैं।

मोहन सिंह के लिए, अपनी पत्नी, अच्छे से व्यवस्थित दो पुत्र (एक वैटनरी डॉक्टर है और दूसरा इलैक्ट्रोनिक्स के क्षेत्र में सफलतापूर्वक काम कर रहा है), उनकी पत्नियां और बच्चों के साथ रहते हुए खेती कभी बोझ नहीं बनीं, वे खेतीबाड़ी को खुशी से करना पसंद करते हैं।उनके पास 3 मुर्रा भैंसे है जो उन्होंने घर के उद्देश्य के लिए रखी हुई है और उनका पुत्र जो कि वैटनरी डॉक्टर है उनकी देखभाल करने में उनकी मदद करता है।

संदेश

“किसानों को नई पर्यावरण अनुकूलित तकनीकें अपनानी चाहिए और सब्सिडी पर निर्भर होने की बजाये उन ग्रुपों में शामिल होना चाहिए जो उनकी एग्रीकल्चर क्षेत्र में मदद कर सकें। यदि किसान दोहरा लाभ कमाना चाहते हैं और फसल हानि के समय अपने वित्त का प्रबंधन करना चाहते हैं तो उन्हें फसलों की खेती के साथ साथ आधुनिक खेती गतीविधियों को भी अपनाना चाहिए।”

 

यह बुज़ुर्ग रिटायर्ड व्यक्ति लाखों नौजवानों के लिए एक मिसाल है, जो शहर की चकाचौंध को देखकर उलझे हुए हैं।

रवि शर्मा

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कैसे एक दर्जी बना मधुमक्खी पालक और शहद का व्यापारी

मक्खी पालन एक उभरता हुआ व्यवसाय है जो सिर्फ कृषि समाज के लोगों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि भविष्य के लाभ के कारण अलग अलग क्षेत्र के लोगों को भी आकर्षित करता है। एक ऐसे ही व्यक्ति हैं- रवि शर्मा, जो कि मक्खीपालन का विस्तार करके अपने गांव को एक औषधीय पॉवरहाउस स्त्रोत बना रहे हैं।

1978 से 1992 तक रवि शर्मा, जिला मोहाली के एक छोटे से गांव गुडाना में दर्जी का काम करते थे और अपने अधीन काम कर रहे 10 लोगों को भी गाइड करते थे। गांव की एक छोटी सी दुकान में उनका दर्जी का काम तब तक अच्छा चल रहा था जब तक वे राजपुरा, पटियाला नहीं गए और डॉ. वालिया (एग्री इंस्पैक्टर) से नहीं मिले।

डॉ. वालिया ने रवि शर्मा के लिए मक्खी पालन की तरफ एक मार्गदर्शक के तौर पर काम किया। ये वही व्यक्ति थे जिन्होंने रवि शर्मा को मक्खीपालन की तरफ प्रेरित किया और उन्हें यह व्यवसाय आसानी से अपनाने में मदद की।

शुरूआत में श्री शर्मा ने 5 मधुमक्खी बॉक्स पर 50 प्रतिशत सब्सिडी प्राप्त की और स्वंय 5700 रूपये निवेश किए। जिनसे वे 1 ½ क्विंटल शहद प्राप्त करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। पहली कमाई ने रवि शर्मा को अपना काम 100 मधुमक्खी बक्सों के साथ विस्तारित करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह उनका काम मक्खीपालन में परिवर्तित हुआ और उन्होंने 1994 में दर्जी का काम पूरी तरह छोड़ दिया।

1997 में रेवाड़ी, हरियाणा में एक खेतीबाड़ी प्रोग्राम के दौरे ने मधुमक्खी पालन की तरफ श्री शर्मा के मोह को और बढ़ाया और फिर उन्होंने मधुमक्खियों के बक्सों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया। अब उनके फार्म पर मधुमक्खियों के विभिन्न 350-400 बक्से हैं।

2000 में, श्री रवि ने 15 गायों के साथ डेयरी फार्मिंग करने की कोशिश भी की, लेकिन यह मक्खीपालन से अधिक सफल नहीं था। मज़दूरों की समस्या होने के कारण उन्होंने इसे बंद कर दिया। अब उनके पास घरेलु उद्देश्य के लिए केवल 4 एच. एफ. नसल की गाय हैं और एक मुर्रा नसल की भैंस हैं और कई बार वे उनका दूध मार्किट में भी बेच देते हैं। इसी बीच मक्खी पालन का काम बहुत अच्छे से चल रहा था।

लेकिन मक्खीपालन की सफलता की यात्रा इतनी आसान नहीं थी। 2007-08 में उनकी मौन कॉलोनी में एक कीट के हमले के कारण सारे बक्से नष्ट हो गए और सिर्फ 35 बक्से ही रह गए। इस घटना से रवि शर्मा का मक्खी पालन का व्यवसाय पूरी तरह से नष्ट हो गया।

लेकिन इस समय ने उन्हें और ज्यादा मजबूत और अधिक शक्तिशाली बना दिया और थोड़े समय में ही उन्होंने मधुमक्खी फार्म को सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया। उनकी सफलता देखकर कई अन्य लोग उनसे मक्खीपालन व्यवसाय के लिए सलाह लेने आये। उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को 20-30 मधुमक्खी के बक्से बांटे और इस तरह से उन्होंने एक औषधीय स्त्रोत बनाया।

“एक समय ऐसा भी आया जब मधुमक्खी के बक्सों की गिणती 4000 तक पहुंच गई और वे लोग जिनके पास इनकी मलकीयत थी उन्होंने भी मक्खी पालन के उद्यम में मेरी सफलता को देखते हुए मक्खीपालन शुरू कर दिया।”

आज रवि मधुमक्खी फार्म में, फार्म के काम के लिए दो श्रमिक हैं। मार्किटिंग भी ठीक है क्योंकि रवि शर्मा ने एक व्यक्ति के साथ समझौता किया हुआ है जो उनसे सारा शहद खरीदता है और कई बार रवि शर्मा आनंदपुर साहिब के नज़दीक एक सड़क के किनारे दुकान पर 4-5 क्विंटल शहद बेचते हैं जहां से वे अच्छी आमदन कमा लेते हैं।

मक्खीपालन रवि शर्मा के लिए आय का एकमात्र स्त्रोत है जिसके माध्यम से वे अपने परिवार के 6 सदस्यों जिनमें पत्नी, माता, दो बेटियां और एक बेटा है, का खर्चा पानी उठा रहे हैं।

“मक्खी पालन व्यवसाय के शुरूआत से ही मेरी पत्नी श्रीमती ज्ञान देवी, मक्खीपालन उद्यम की शुरूआत से ही मेरा आधार स्तम्भ रही। उनके बिना मैं अपनी ज़िंदगी के इस स्तर तक नहीं पहुंच पाता।”

वर्तमान में, रवि मधुमक्खी फार्म में शहद और बी वैक्स दो मुख्य उत्पाद है।

भविष्य की योजनाएं:
अभी तक मैंने अपने गांव और कुछ रिश्तेदारों में मक्खीपालन के काम का विस्तार किया है लेकिन भविष्य में, मैं इससे बड़े क्षेत्र में मक्खीपालन का विस्तार करना चाहता हूं।

संदेश
“एक व्यक्ति अगर अपने काम को दृड़ इरादे से करे और इन तीन शब्दों “ईमानदारी, ज्ञान, ध्यान” को अपने प्रयासों में शामिल करे तो जो वह चाहता है उसे प्राप्त कर सकता है।”

श्री रवि शर्मा के प्रयासों के कारण आज गुडाना गांव शहद उत्पादन का एक स्त्रोत बन चुका है और मक्खीपालन को और अधिक प्रभावकारी व्यवसाय बनाने के लिए वे अपने काम का विस्तार करते रहेंगे।

विपिन यादव

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एक किसान और एक कंप्यूटर इंजीनियर विपिन यादव की कहानी, जिसने क्रांति लाने के लिए पारंपरिक खेती के तरीके को छोड़कर हाइड्रोपोनिक खेती को चुना

आज का युग ऐसा युग है जहां किसानों के पास उपजाऊ भूमि या ज़मीन ही नहीं है, फिर भी वे खेती कर सकते हैं और इसलिए भारतीय किसानों को अपनी पहल को वापिस लागू करना पड़ेगा और पारंपरिक खेती को छोड़ना पड़ेगा।

टैक्नोलोजी खेतीबाड़ी को आधुनिक स्तर पर ले आई है। ताकि कीट या बीमारी जैसी रूकावटें फसलों की पैदावार पर असर ना कर सके और यह खेतीबाड़ी क्षेत्र में सकारात्मक विकास है। किसान को तरक्की से दूर रखने वाली एक ही चीज़ है और वह है उनका डर – टैक्नोलोजी में निवेश डूब जाने का डर और यदि इस काम में कामयाबी ना मिले और बड़े नुकसान का डर।

पर इस 20 वर्ष के किसान ने खेतीबाड़ी के क्षेत्र में तरक्की की, समय की मांग को समझा और अब पारंपरिक खेती से अलग कुछ और कर रहे हैं।

“हाइड्रोपोनिक्स विधि खेतीबाड़ी की अच्छी विधि है क्योंकि इसमें कोई भी बीमारी पौधों को प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि इस विधि में मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा, हम पॉलीहाउस में पौधे तैयार करते हैं, इसलिए कोई वातावरण की बीमारी भी पौधों को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर सकती। मैं खेती की इस विधि से खुश हूं और मैं चाहता हूं कि दूसरे किसान भी हाइड्रोपोनिक तकनीक अपनाएं।”विपिन यादव

कंप्यूटर साइंस में अपनी इंजीनियरिंग डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी औरवेतन से असंतुष्टी के कारण विपिन ने खेती शुरू करने का फैसला किया, पर निश्चित तौर पर अपने पिता की तरह नहीं, जो परंपरागत खेती तरीकों से खेती कर रहे थे।

एक जिम्मेवार और जागरूक नौजवान की तरह, उन्होंने गुरूग्राम से ऑनलाइन ट्रेनिंग ली। शुरूआती ऑनलाइन योग्यता टेस्ट पास करने के बाद वे गुरूग्राम के मुख्य सिखलाई केंद्र में गए।

20 उम्मीदवारों में से सिर्फ 16 ही हाइड्रोपोनिक्स की प्रैक्टीकल सिखलाई हासिल करने के लिए पास हुए और विपिन यादव भी उनमें से एक थे। उन्होंने अपने हुनर को और सुधारने के लिए के.वी.के. शिकोहपुर से भी सुरक्षित खेती की सिखलाई ली।

“2015 में, मैंने अपने पिता को मिट्टी रहित खेती की नई तकनीक के बारे में बताया, जबकि खेती के लिए मिट्टी ही एकमात्र आधार थी। विपिन यादव

सिखलाई के दौरान उन्होंने जो सीखा उसे लागू करने के लिए उन्होंने 5000 से 7000 रूपये के निवेश से सिर्फ दो मुख्य किस्मों के छोटे पौधों वाली केवल 50 ट्रे से शुरूआत की।

“मैंने हार्डनिंग यूनिट के लिए 800 वर्ग फुट क्षेत्र निर्धारित किया और 1000 वर्ग फुट पौधे तैयार करने के लिए गुरूग्राम में किराये पर जगह ली और इसमें पॉलीहाउस भी बनाया। – विपिन यादव

हाइड्रोपोनिक्स की 50 ट्रे के प्रयोग से उन्हें बड़ी सफलता मिली, जिसने बड़े स्तर पर इस विधि को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हाइड्रोपोनिक खेती शुरू करने के लिए उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों की सहायता से अगला बड़ा निवेश 25000 रूपये का किया।

“इस समय मैं ऑर्डर के मुताबिक 250000 या अधिक पौधे तैयार कर सकता हूं।”

गर्म मौसमी स्थितियों के कारण अप्रैल से मध्य जुलाई तक हाइड्रोपोनिक खेती नहीं की जाती, पर इसमें होने वाला मुनाफा इस अंतराल की पूर्ती के लिए काफी है। विपिन यादव अपने हाइड्रोपोनिक फार्म में हर तरह की फसलें उगाते हैं – अनाज, तेल बीज फसलें, सब्जियां और फूल। खेती को आसान बनाने के लिए स्प्रिंकलर और फोगर जैसी मशीनरी प्रयोग की जाती है। इनके फूलों की क्वालिटी अच्छी है और इनकी पैदावार भी काफी है, जिस कारण ये राष्ट्रपति सेक्ट्रीएट को भी भेजे गए हैं।

मिट्टी रहित खेती के लिए, वे 3:1:1 के अनुपात में तीन चीज़ों का प्रयोग करते हैं कोकोपिट, परलाइट और वर्मीक्लाइट। 35-40 दिनों में पौधे तैयार हो जाते हैं और फिर इन्हें 1 हफ्ते के लिए हार्डनिंग यूनिट में रखा जाता है। NPK, जिंक, मैगनीशियम और कैलशियम जैसे तत्व पौधों को पानी के ज़रिये दिए जाते हैं। हाइड्रोपोनिक्स में कीटनाशक दवाइयों का कोई प्रयोग नहीं क्योंकि खेती के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता, जो आसानी से घर में तैयार की जा सकती है।

भविष्य की योजना:
मेरी भविष्य की योजना है कि कैकटस, चिकित्सक और सजावटी पौधों की और किस्में, हाइड्रोपोनिक फार्म में बेहतर आय के लिए उगायी जायें।

विपिन यादव एक उदाहरण है कि कैसे भारत के नौजवान आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके खेतीबाड़ी के भविष्य को बचा रहे हैं।

संदेश

“खेतीबाड़ी के क्षेत्र में कुछ भी नया शुरू करने से पहले, किसानों को अपने हुनर को बढ़ाने के लिए के.वी.के. से सिखलाई लेनी चाहिए और अपने आप को शिक्षित बनाना चाहिए।”

देश को बेहतर आर्थिक विकास के लिए खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मेहनत करने वाले और नौजवानों एवं रचनात्मक दिमाग की जरूरत है और यदि हम विपिन यादव जैसे नौजवानों को मिलना जारी रखते हैं तो यह भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

दीपकभाई भवनभाई पटेल

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गुजरात के एक किसान ने आम की विभिन्न किस्मों की खेती करके अच्छा लाभ कमाया

आज, यदि हम प्रगतिशील खेती और किसानों के तथ्यों को देखें तो, तो टेक्नोलोजी की तरफ एक स्पष्ट इशारा दिखाई देता है। किसान की सफलता और उसके फार्म को अच्छा बनाने के लिए टेक्नोलोजी की प्रमुख भूमिका है। यह कहानी है गुजरात के एक किसान – दीपकभाई भवनभाई पटेल की, जिन्होंने कृषि से अच्छी उत्पादकता लेने के लिए अपने आशावादी व्यवहार के साथ कृषि की आधुनिक तकनीकों को अपनाया और अपने प्रयत्नों के साथ उन्होंने उन सभी मुश्किलों का सामना किया जो उनके पिता और दादा-पड़दादा को खेती करते समय आती थी।

आम वह फल है, जिसने गुजरात में नवसारी जिले के काचियावाड़ी गांव में दीपकभाई को बागों का बादशाह बना दिया। दीपकभाई को 1991 में, अपने पिता से 20 एकड़ ज़मीन विरासत में मिली थी, वे अलग-अलग तरह के आम जैसे कि जंबो केसर, लंगड़ा, राजापुरी, एलफोन्ज़ो, दशहरी और तोतापुरी उगाते हैं। समय के साथ धीरे-धीरे उन्होंने खेती के क्षेत्र को बढ़ा लिया और आज उनके आम के बगीचे में 125 एकड़ ज़मीन पर 3000 से 3200 आम के वृक्ष हैं, जिसमें से 65 एकड़ ज़मीन उनकी अपनी है और 70 एकड़ ज़मीन ठेके पर है।

शुरूआती खेती की पद्धती और लागूकरन:

खैर, शुरूआत में दीपक भाई के लिए रास्ता थोड़ा मुश्किल था। उन्होंने सब्जियों और आम का अंतरफसली करके अपना खेताबड़ी उद्यम शुरू किया लेकिन मज़दूरों की कमी और आय कम होने के कारण उन्होने सिर्फ आम की खेती की तरफ पूरा ध्यान देने का फैसला किया।

दीपकभाई कहते हैं – खेती करते हुए मुझे जहां भी एहसास होता है अपनी गल्तियों का, मैं उन्हें सुधारने की पूरी कोशिश करता हूं। ज्ञान और अनुभव की कमी के कारण, मैंने आम के वृक्षों में पानी और खाद की ज्यादा मात्रा प्रयोग की और बागों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया। लेकिन एक बार जब मैं रिसर्च और एग्रीकल्चर सेंटर के संपर्क में आया तब मुझे ज्ञान और खेती करने के सही तरीकों के बारे में पता चल गया।”

सही कृषि पद्धतियों का पालन करने के परिणाम प्राप्त करने के बाद, दीपक भाई ने काफी मेहनत करके अपने आप को आम का माहिर बना लिया है, और यही वो वक्त था जब उन्होंने आम की खेती करने को अपनी आय का मुख्य स्त्रोत बनाने का फैसला किया। और उसके बाद उन्होंने किताबें पढ़नी शुरू कर दी, और उन निर्देशों और सलाहों का पालन किया जो खेतीबाड़ी संस्थाओं द्वारा दी जाती थी।

“मैंने अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए अलग अलग समारोह में हिस्सा लिया, जिनमें से कुछ को औरंगाबाद के गन्ना रिसर्च केंद्र, दिल्ली कृषि रिसर्च केंद्र, जयपुर कृषि यूनिवर्सिटी आदि द्वारा आयोजित किया गया था। इन प्रोग्रामों से मैंने अलग-अलग फलों, सब्जियों और अन्य फसलों जैसे कि केला, अनार, आम, चीकू, अमरूद, आंवला, अनाज, गेहूं और सब्जियां उगाने की अधिक जानकारी प्राप्त की।”

दीपक ने ना केवल खेती की आधुनिक तकनीकों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया बल्कि पैसों का प्रबंधन करना भी सीखा जो कि एक किसान के लिए बहुत महत्तवपूर्ण होता है। उन्होंने अपनी आमदन और खर्चों का रिकॉर्ड रखना शुरू कर दिया। जो भी दीपक भाई बचत करते थे वे उसे नई ज़मीन खरीदने के लिए प्रयोग कर लेते थे।

मंडीकरण:

शुरूआत में मंडीकरण एक छोटी सी समस्या थी क्योंकि दीपकभाई के पास आमों के कारोबार का कोई बाज़ार नहीं थी। बिचोलिये और व्यापारी आम के उत्पादन के लिए बहुत कम कीमत देते थे, जो दीपकभाई को स्वीकार नहीं थी। लेकिन कुछ समय बाद, दीपक साहाकारी मंडली के संपर्क में आये और फिर उन्होंने आम के जूस की पैकिंग के लिए सहकारी फैडरेशन के साथ जुड़ने का फैसला किया। उन्होंने उत्पाद की सही कीमत दीपक भाई को पेश की, जिससे दीपकभाई की आमदन में बहुत अधिक वृद्धि हुई।

आम के साथ, दीपकभाई ने फार्म के किनारों पर केला, 250 कालीपट्टी चीकू और नारियल के वृक्ष भी लगाये जिससे उनकी आमदन में काफी वृद्धि हुई।

“आम के वृक्ष को बहुत देखभाल की जरूरत होती है जिसमें सही मात्रा में पानी, खाद और कीटनाशक शामिल करने होते हैं। इसके अलावा, इस बार मैंने अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए यूनिवर्सिटी द्वारा सिफारिश की गई बढ़िया पैदावार वाले वृक्ष लगाए हैं। बीमारियों को नियंत्रण करने के लिए, यूनिवर्सिटियों द्वारा सिफारिश की गई दवाइयों का प्रयोग करता हूं। मैं समय समय पर वृक्षों को अच्छा आकार देने के लिए वृक्ष की शाखाओं की कांट छांट भी करता हूं। मैं पानी की जांच भी करता हूं और सभी कमियों को सुधारता भी हूं।”

दीपकभाई की सफलता को देखने के बाद, बहुत सारे किसान यह जानने के लिए उनके फार्म का दौरा करने के लिए आते हैं कि उन्होंने किस आधुनिक तकनीक या ढंग को अपने फार्म पर लागू किया है। कई किसान दीपकभाई से सलाह भी लेते हैं।

दीपकभाई ने नवसारी खेतीबाड़ी विभाग और आत्मा प्रोजेक्ट को उनके समर्थन और मार्गदर्शन के लिए प्रमुख श्रेय दिया है। उनकी सहायता से दीपकभाई ने आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों को अपने फार्म पर लागू किया। उन्होंने खेती के ज्ञान को इक्ट्ठा करने के लिए जानकारी का एक भी स्त्रोत नहीं छोड़ा।

“तुपका सिंचाई जल बचत करने की एक ऐसी खेती विधि है जिसे मैंने अपने फार्म पर स्थापित किया और यह पानी को बड़े स्तर पर बचाने में मदद करती है। अब अनावश्यक खर्चे कम हो गए हैं और ज़मीन अधिक उपजाऊ और नम हो गई है।”

इस पूरे समय के दौरान दीपकभाई पटेल के जीवन में बुरा समय भी आया। 2013 में दीपक भाई को पता चला कि वे जीभ के कैंसर से ग्रस्त हैं। इसे ठीक करने के लिए उन्होंने ऑप्रेशन करवाया और सर्जरी के दौरान उनका ज़ुबानी भाग हटा दिया गया। उन्होंने अपनी बोलने की क्षमता को खो दिया।

“पर उन्होंने कभी भी अपनी विकलांगता को अपने जीवन की अक्षमता में परिवर्तित नहीं होने दिया।”

2017 में, उन्होंने दूसरा ऑप्रेशन करवाया जिसमें कैंसर को उनके शरीर से पूरी तरह से हटा दिया गया था और आज वे अपने सपनों को हासिल करने के लिए मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ स्वस्थ व्यक्ति हैं।

पुरस्कार और उपलब्धियां:
वर्ष 2014-15 में दीपकभाई को “ATMA Best Farmer of Gujarat” के तौर पर सम्मानित किया गया।

खैर, उल्लेख करने के लिए यह सिर्फ एक पुरस्कार है, बागबानी के क्षेत्र में उनकी सफलता ने उन्हें 19 पुरस्कार, प्रमाण पत्र, नकद पुरस्कार और राज्य स्तरीय ट्रॉफी जिताये हैं।

संदेश
“यूनिवर्सिटियों द्वारा दिए गए सही ढंगों का पालन करके बागबानी करना आय का एक अच्छा स्त्रोत है। यदि किसान अपना भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं तो उन्हें बागबानी में निवेश करना चाहिए।”

मनजिंदर सिंह और स्वर्ण सिंह

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सफल पोल्टरी फार्मिंग उद्यम जो कि पिता द्वारा स्थापित किया गया और बेटे द्वारा नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया

भारत में हर कोई वर्ष 1984 के इतिहास को जानता है, यह पूरे पंजाब में मनहूस समय था जब सिख नरसंहार का प्रमुख लक्ष्य थे। यह कहानी है एक साधारण किसान स्वर्ण सिंह की, जो अपने पुराने हालातों को सुधारने के लिए और उन्हीं हालातों से उभरने के लिए, सिर्फ 2.5 एकड़ ज़मीन के साथ ही संघर्ष करके अपनी आगे की ज़िंदगी की तरफ बढ़ रहे थे । स्वर्ण सिंह के भी कुछ सपने थे जिन्हें वे पूरा करना चाहते थे और उसके लिए उन्होंने 12 वीं और बी.ए के बाद वे उच्च शिक्षा (मास्टर्स) के लिए गए। लेकिन उनकी नियति में कुछ और लिखा गया था। वर्ष 1983 में, जब पंजाब के युवावर्ग लोकतंत्र के खिलाफ क्रांति के मूड की चरम सीमा पर थे, उस समय हालात साधारण लोगों के लिए आसान नहीं थे और स्वर्ण सिंह ने अपनी उच्च शिक्षा (मास्टर्स) को बीच में ही छोड़ दिया और घर रहकर कुछ नया शुरू करने का फैसला किया।

जब दंगे फसाद शांत हो रहे थे उस समय स्वर्ण सिंह अपनी ज़िंदगी के व्यावसायकि करियर को स्थिरता देने के लिए हर तरह की जॉब हासिल करने की कोशिश की, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। आखिरकार उन्होंने अपने पडोस में अन्य पोल्टरी किसानों से प्रेरित होकर पोल्टरी फार्मिंग शुरू करने का फैसला किया और 1990 में लगभग 2 दशक पहले सहोता पोल्टरी ब्रीडिंग फार्म स्थापित हुआ। उन्होंने अपना उद्यम 1000 पक्षियों से शुरू किया और 50 फुट लंबाई और 35 फुट चौड़ाई का एक चार मंज़िला शैड बनाया। उन्होंने उस समय एक लोन लेकर 1000 पक्षियों पर 70000 रूपये का निवेश किया, जिस पर उन्हें सरकार की तरफ से 25 प्रतिशत की सब्सिडी मिली। उसके बाद आज तक उन्होंने सरकार से कोई लोन और कोई सब्सिडी नहीं ली।

1991 में उनकी शादी हुई और उनका पोल्टरी उद्यम अच्छे से शुरू हुआ। उन्होंने हैचरी में भी निवेश किया। धीरे-धीरे समय के साथ जब उनका पुत्र – मनजिंदर सिंह बड़ा हुआ तब उसने अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाने का फैसला किया। उसने अपनी 12वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और अपने पिता के व्यापार को संभाला। पोल्टरी व्यापार में मनजिंदर के शामिल होने का मतलब ये नहीं था कि स्वर्ण सिंह ने रिटायरमेंट ले ली। स्वर्ण सिंह पोल्टरी फार्म का काम संभालने के लिए हमेशा अपने बेटे के साथ खड़े रहे और उसका मार्गदर्शन करते रहे।

स्वर्ण सिंह – “अपने परिवार के समर्थन के बिना मैं अपने जीवन में कभी इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता। पोल्टरी एक अच्छा अनुभव है और मैं पोल्टरी से महीने में पचास से साठ हज़ार तक का अच्छा मुनाफा कमा लेता हूं। एक किसान आसानी से पोल्टरी फार्मिंग को अपना सकता है और अच्छा लाभ कमा सकता है।”

वर्तमान में मनजिंदर सिंह (27वर्षीय) अपने पिता और 2 श्रमिकों के साथ पूरे फार्म को संभालते हैं। वे अपनी ज़मीन पर सब्जियां, गेहूं, मक्की, धान और चारा स्वंय उगाते हैं। चारे की फसल से वे चूज़ों के लिए फीड तैयार करते हैं और कई बार बाज़ार से चूज़ों के लिए “संपूर्ण” नाम का ब्रांड चिक फीड खरीदते हैं। उनके पास घर के प्रयोग के लिए 2 भैंसे भी हैं।

मनजिंदर – “हानि और कुदरती आफतों से बचने के लिए हम चूज़ों और शैड का उचित ध्यान रखते हैं। शैड में किसी भी किस्म की बीमारी से बचने के लिए हम समय-समय पर नए पक्षियों का टीकाकरण करवाते हैं। हम जैव सुरक्षा का भी ध्यान रखते हैं क्योंकि यही वह मुख्य कारण है जिसपर पोल्टरी फार्मिंग आधारित है।”

(मशीनरी) यंत्र:
वर्तमान में सहोता पोल्टरी फार्म के पास 3 चिक्स इनक्यूबेटर है। एक हाथों द्वारा निर्मित मशीनरी है जिसे स्वर्ण सिह ने शाहकोट से स्वंय डिज़ाइन किया है। वे चूज़ों के लिए प्रतिदिन 2.5 क्विंटल फीड तैयार करते हैं। उनके पास 2 जेनरेटर, फीड्रज़ और ड्रिंकर्ज़ भी हैं।

मार्किटिंग और बिज़नेस

मार्किटिंग उनके लिए मुश्किल नहीं है। वे प्रत्येक चार दिनों के बाद 4000 पक्षियों को बेचते हैं। एक पक्षी वार्षिक 200 अंडे देता है और वे एक साल बाद हर अंडा देने वाले पक्षी को स्थानांतरित करते हैं। प्रति चूज़े का बिक्री रेट 25 रूपये है जो कि उन्हें पर्याप्त लाभ देता है।

भविष्य की योजनाएं:

वे भविष्य में पशु पालन शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
“आप कृषि के क्षेत्र में जो भी कर रहे हैं उसे पूरे समर्पण के साथ करें क्योंकि मेहनत हमेशा अच्छा रंग लाती है।”

कैप्टन ललित

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कैसे एक व्यक्ति ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुना और बागबानी को अपनी रिटायरमेंट योजना के रूप में चुना

राजस्थान की सूखी भूमि पर अनार उगाना, एक मज़ाकिया और असफल विचार लगता है लेकिन अपने मजबूत दृढ़ संकल्प, जिद और उच्च घनता वाली खेती तकनीक से कैप्टन ललित ने इसे संभव बनाया।

कई क्षेत्रों में माहिर होने और अपने जीवन में कई व्यवसायों का अनुभव करने के बाद, आखिर में कैप्टन ललित ने बागबानी को अपनी रिटायरमेंट योजना के रूप में चुना और राजस्थान के गंगानगर जिले में अपने मूल स्थान- 11 Eea में वापिस आ गए। खैर, कई शहरों में रह रहे लोगों के लिए, खेतीबाड़ी एक अच्छी रिटारमेंट योजना नहीं होती, लेकिन श्री ललित ने अपनी अंर्तात्मा की आवाज़ को सही में सुना और खेतीबाड़ी जैसे महान और मूल व्यवसाय को एक अवसर देने के बारे में सोचा।

शुरूआती जीवन-
श्री ललित शुरू से ही सक्रिय और उत्साही व्यक्ति थे, उन्होंने कॉलेज में पढ़ाई के साथ ही अपना पेशेवर व्यवसाय शुरू कर दिया था। अपनी ग्रेजुऐशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने व्यापारिक पायलेट का लाइसेंस भी प्राप्त किया और पायलेट का पेशा अपनाया। लेकिन यह सब कुछ नहीं था जो उन्होंने किया। एक समय था जब कंप्यूटर की शिक्षा भारत में हर जगह शुरू की गई थी, इसलिए इस अवसर को ना गंवाते हुए उन्होंने एक नया उद्यम शुरू किया और जयपुर शहर में एक कंप्यूटर शिक्षा केंद्र खोला। जल्दी ही कुछ समय के बाद उन्होंने ओरेकल टेस्ट पास किया और एक ओरेकल प्रमाणित कंप्यूटर ट्रेनर बन गए। उनका कंप्यूटर शिक्षा केंद्र कुछ वर्षों तक अच्छा चला लेकिन लोगों में कंप्यूटर की कम होती दिलचस्पी के कारण इस व्यवसाय से मिलने वाला मुनाफा कम होने के कारण उन्होंने अपने इस उद्यम को बंद कर दिया।

उनके कैरियर के विकल्पों को देखते हुए यह तो स्पष्ट है कि शुरूआत से ही वे एक अनोखा पेशा चुनने में दिलचस्पी रखते थे जिसमें कि कुछ नई चीज़ें शामिल थी फिर चाहे वह प्रवृत्ति, तकनीकी या अन्य चीज़ के बारे में हो और अगला काम जो षुरू किया, उन्होंने जयपुर शहर में किराये पर एक छोटी सी ज़मीन लेकर विदेशी सब्जियों और फूलों की खेती व्यापारिक उद्देश्य के लिए की और कई पांच सितारा होटलों ने उनसे उनके उत्पादन को खरीदा।

“जब मैंने विदेशी सब्जियां जैसे थाईम, बेबी कॉर्न, ब्रोकली, लेट्स आदि को उगाया उस समय इलाके के लोग मेरा मज़ाक बनाते थे क्योंकि उनके लिए ये विदेशी सब्जियां नई थी और वे मक्की के छोटे रूप और फूल गोभी के हरे रूप को देखकर हैरान होते थे। लेकिन आज वे पिज्ज़ा, बर्गर और सलाद में उन सब्जियों को खा रहे हैं।”

जब विचार अस्तित्व में आया-
जब वे विदेशी सब्जियों की खेती कर रहे थे उस समय के दौरान उन्होंने महसूस किया कि खेतीबाड़ी में निवेश करना सबसे अच्छा है और उन्हें इसे बड़े स्तर पर करना चाहिए। क्योंकि उनके पास पहले से ही अपने मूल स्थान में एक पैतृक संपत्ति (12 बीघा भूमि) थी इसलिए उन्होंने इस पर किन्नू की खेती शुरू करने का फैसला किया वे किन्नू की खेती शुरू करने के विचार को लेकर अपने गांव वापिस आ गए लेकिन कईं किसानों से बातचीत करने के बाद उन्हे लगा कि प्रत्येक व्यक्ति एक ही चीज़ कर रहा है और उन्हें कुछ अलग करना चाहिए।

और यह वह समय था जब उन्होंने विभिन्न फलों पर रिसर्च करना शुरू किया और विभिन्न शहरों में अलग -अलग खेतों का दौरा किया। अपनी रिसर्च से उन्होंने एक उत्कृष्ट और एक आम फल को उगाने का निष्कर्ष निकाला। उन्होंने (केंद्रीय उपोष्ण बागबानी लखनऊ) से परामर्श लिया और 2015 में अनार और अमरूद की खेती शुरू की। उन्होंने 6 बीघा क्षेत्र में अनार (सिंदूरी किस्म) और अन्य 6 बीघा क्षेत्र में अमरूद की खेती शुरू की। रिसर्च और सहायता के लिए उन्होंने मोबाइल और इंटरनेट को अपनी किताब और टीचर बनाया।

“शुरू में, मैंने राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से भी परामर्श लिया लेकिन उन्होंने कहा कि राजस्थान में अनार की खेती संभव नहीं है और मेरा मज़ाक बनाया।”

खेती करने के ढंग और तकनीक-
उन्होंने अनार की उच्च गुणवत्ता और उच्च मात्रा का उत्पादन करने के लिए उच्च घनता वाली तकनीक को अपनाया। खेतीबाड़ी की इस तकनीक में उन्होंने कैनोपी प्रबंधन को अपनाया और 20 मीटर x 20 मीटर के क्षेत्र में अनार के 7 पौधे उगाए। ऐसा करने से, एक पौधा एक मौसम में 20 किलो फल देता है और 7 पौधे 140 किलो फल देते हैं। इस तरीके से उन्होंने कम क्षेत्र में अधिक वृक्ष लगाए हैं और इससे भविष्य में वे अच्छा कमायेंगे। इसके अलावा, उच्च घनता वाली खेती के कारण, वृक्षों का कद और चौड़ाई कम होती है जिसके कारण उन्हें पूरे फार्म के रख रखाव के लिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

कैप्टन ललित ने अपनी खेती के तरीकों को बहुत मशीनीकृत किया है। बेहतर उपज और प्रभावी परिणाम के लिए उन्होंने स्वंय एक टैंक- कम- मशीन बनाई है और इसके साथ एक कीचड़ पंप को जोड़ा है इसके अंदर घूमने के लिए एक शाफ्ट लगाया है और फार्म में सलरी और जीवअमृत आसानी से फैला दी जाती है। फार्म के अंदर इसे चलाने के लिए वे एक छोटे ट्रैक्टर का उपयोग करते हैं। जब इसे किफायती बनाने की बात आती है तो वे बाज़ार से जैविक खाद की सिर्फ एक बोतल खरीदकर सभी खादों, फिश अमीनो एसिड खाद, जीवाणु और फंगस इन सभी को अपने फार्म पर स्वंय तैयार करते हैं।

उन्होंने राठी नसल की दो गायों को भी अपनाया जिनकी देख रेख करने वाला कोई नहीं था और अब वे उन गायों का उपयोग जीवअमृत और खाद बनाने के लिए करते हैं। एक अहम चीज़ – “अग्निहोत्र भभूति”, जिसका उपयोग वे खाद में करते हैं। यह वह राख होती है जो कि हवन से प्राप्त होती है।

“अग्निहोत्र भभूति का उपयोग करने का कारण यह है कि यह वातावरण को शुद्ध करने में मदद करती है और यह आध्यात्मिक खेती का एक तरीका है। आध्यात्मिक का अर्थ है खेती का वह तरीका जो भगवान से संबंधित है।”

उन्होंने 50 मीटर x 50 मीटर के क्षेत्र में बारिश का पानी बचाने के लिए और इससे खेत को सिंचित करने के लिए एक जलाशय भी बनाया है। शुरूआत में उनका फार्म पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल था क्योंकि वे सब कुछ प्रबंधित करने के लिए सोलर ऊर्जा का प्रयोग करते थे लेकिन अब उन्हें सरकार से बिजली मिल रही है।

सरकार की भूमिका-
उनका अनार और अमरूद की खेती का पूरा प्रोजेक्ट राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया गया है और उन्हें उनसे सब्सिडी मिलती है।

उपलब्धियां-
उनके खेती के प्रयास की सराहना कई लोगों द्वारा की जाती है।
जिस यूनिवर्सिटी ने उनका मज़ाक बनाया था वह अब उन्हें अपने समारोह में अतिथि के रूप में आमंत्रित करती है और उनसे उच्च घनता वाली खेती और कांट-छांट की तकनीकों के लिए परामर्श भी लेती है।

वर्तमान स्थिति-
आज उन्होंने 12 बीघा क्षेत्र में 5000 पौधे लगाए हैं और पौधों की उम्र 2 वर्ष 4 महीने है। उच्च घनता वाली खेती के द्वारा अनार के पौधों ने फल देना शुरू भी कर दिया है, लेकिन वे अगले वर्ष वास्तविक व्यापारिक उपज की उम्मीद कर रहे हैं।

“अपनी रिसर्च के दौरान मैंने कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों का भी दौरा किया और वहां पर पहले से ही उच्च घनता वाली खेती की जा रही है। उत्तर भारत के किसानों को भी इस तकनीक का पालन करना चाहिए क्योंकि यह सभी पहलुओं में फायदेमंद हैं।”

यह सब शुरू करने से पहले, उन्हें उच्च घनता वाली खेती के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान था, लेकिन उनके पास व्यावहारिक अनुभव नहीं था, लेकिन धीरे धीरे समय के साथ वह इसे भी प्राप्त कर रहे हैं उनके पास 2 श्रमिक हैं और उनकी सहायता से वे अपने फार्म का प्रबंधन करते हैं।

उनके विचार-
जब एक किसान खेती करना शुरू करता है तो उसे उद्योग की तरह निवेश करना शुरू कर देना चाहिए तभी वे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा आज हर किसान को मशीनीकृत होने की ज़रूरत है यदि वे खेती में कुशल होना चाहते हैं।

किसानों को संदेश-
“जब तक किसान पारंपरिक खेती करना नहीं छोड़ते तब तक वे सशक्त और स्वतंत्र नहीं हो सकते। विशेषकर वे किसान जिनके पास कम भूमि है उन्हें स्वंय पहल करनी पड़ेगी और उनहें बागबानी में निवेश करना चाहिए। उन्हें सिर्फ सही दिशा का पालन करना चाहिए।”

रविंदर सिंह और शाहताज संधु

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कैसे संधु भाइयों ने अपने पारंपरिक आख्यान को जारी रखा और पोल्टरी के व्यवसाय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया

यह कहानी सिर्फ मुर्गियों और अंडो के बारे में ही नहीं है। यह कहानी है भाइयों के दृढ़ संकल्प की, जिन्होंने अपने छोटे परिवार के उद्यम को कई बाधाओं का सामना करने के बाद एक करोड़पति परियोजना में बदल दिया।

खैर, कौन जानता था कि एक साधारण किसान- मुख्तियार सिंह संधु द्वारा शुरू किया गया पोल्टरी फार्मिंग का सहायक उद्यम उनकी अगली पीढ़ी द्वारा नए मुकाम तक पहुंचाया जायेगा।

तो, पोलटरी व्यवसाय की नींव कैसे रखी गई…

यह 1984 की बात है जब मुख्तियार सिंह संधु ने खेतीबाड़ी के साथ पोल्टरी फार्मिंग में निवेश करने का फैसला किया। श्री संधु ने वैकल्पिक आय के अच्छे स्त्रोत के रूप में मुर्गी पालन के व्यवसाय को अपनाया और परिवार की बढ़ती हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें खेतीबाड़ी के साथ यह उपयुक्त विकल्प लगा। उन्होंने 5000 ब्रॉयलर मुर्गियों से शुरूआत की और धीरे-धीरे समय और आय के साथ इस व्यवसाय का विस्तार किया।

उनके भतीजे का इस व्यवसाय में शामिल होना…

समय बीतने के साथ मुख्तियार सिंह ने इस व्यवसाय में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और 1993 में उनके भतीजे रविंदर सिंह संधु (लाडी) ने अपने चाचा जी के व्यवसाय में शामिल होने और ब्रॉयलर उद्यम को नई ऊंचाइयों तक लेकर जाने का फैसला किया।

जब बर्ड फ्लू की मार मार्किट पर पड़ी और कई पोल्टरी व्यवसाय प्रभावित हुए…

2003-04 वर्ष में बर्ड फ्लू फैलने से पोल्टरी उद्योग को एक बड़ा नुकसान हुआ। मुर्गी पालकों ने अपनी मुर्गियां नदी में फेंक दी और पोल्टरी उद्यम शुरू करने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। संधु पोल्टरी को भी इस बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा लेकिन रविंदर सिंह संधु बहुत दृढ़ थे और वे किसी भी कीमत पर अपने व्यवसाय को शुरू करना चाहते थे। वे थोड़ा डरे हुए भी थे क्योंकि उनका कारोबार बंद हो जाएगा, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और लक्ष्य के बीच कुछ भी खड़ा नहीं रहा। उन्होंने बैंक से लोन लिया और मुर्गी पालन दोबारा शुरू किया।

“पोल्टरी उद्योग दोबारा शुरू करने का कारण यह था कि मेरे चाचा जी (मुख्तियार सिंह) का इस उद्योग से काफी लगाव था क्योंकि इस व्यवसाय को शुरू करने वाले वे पहले व्यक्ति थे।इसके अलावा हमारे परिवार में प्रत्येक सदस्य की शिक्षा (प्राथमिक से उच्च शिक्षा) का खर्च और परिवार के प्रत्येक सदस्य का खर्च इसी उद्यम से लिया गया। आज मेरी एक बहन कैलिफोर्निया में सरकारी अफसर के रूप में कार्यरत है। एक बहन करनाल के सरकारी हाई स्कूल में लैक्चरार है। कुछ वर्षों पहले शाहताज सिंह (रविंदर सिंह का चचेरा भाई) ने फ्लोरिडा की यूनिवर्सिटी से मकैनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स पूरी की है। दोनों बेटी और बेटे की शादी का खर्च … सब कुछ पोल्टरी फार्म की आमदन से किया गया है।”

बहुत कम लोगों ने फिर से अपना पोल्टरी व्यवसाय शुरू किया और रविंदर सिंह संधु उनमें से एक थे। व्यवसाय दोबारा खड़ा करने के बाद संधु पोल्टरी फार्म जोश के साथ वापिस आए और पोल्टरी व्यवसाय से अच्छे लाभ कमाये।

व्यापार का विस्तार…

2010 तक, रविंदर ने अपने अंकल के साथ फार्म की उत्पादकता 2.5 लाख मुर्गियों तक बढ़ा दी। उसी वर्ष में, उन्होंने 40000 पक्षियों की क्षमता के साथ एक हैचरी की स्थापना की जिसमें से उन्होंने रोजाना औसतन 15000 पक्षी प्राप्त करने शुरू किए।

जब शाहताज व्यवसाय में शामिल हुए…

2012 में, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, शाहताज सिंह संधु अपने चचेरे भाई (रविंदर उर्फ लाडी पाजी) और पिता (मुख्तियार सिंह) के पोल्टरी व्यवसाय में शामिल हुए। पहले वे दूसरी कंपनियों से खरीदी गई फीड का प्रयोग करते थे लेकिन कुछ समय बाद दोनों भाई संधु पोल्टरी फार्म को नई ऊंचाइयों पर लेकर गए और संधु फीड्स की स्थापना की। संधु पोल्टरी फार्म और संधु फीड दोनों ही अधिकृत संगठन के तहत पंजीकृत हैं।

वर्तमान में उनके पास जींद रोड, असंध (हरियाणा) में स्थित, 22 एकड़ में पोल्टरी फार्म की 7-8 यूनिट, 4 एकड़ में हैचरी, 4 एकड़ में फीड प्लांट हैं और 30 एकड़ में वे फसलों की खेती करते हैं। अपने फार्म को हरे रंग के परिदृश्य और ताजा वातावरण देने के लिए उन्होंने 5000 से अधिक वृक्ष लगाए हैं। फीड प्लांट का उचित प्रबंधन 2 लोगों को सौंपा गया है और इसके अलावा पोल्टरी फार्म के कार्य के लिए 100 कर्मचारी हैं जिनमें से 40 आधिकारिक कर्मचारी हैं।

जब बात स्वच्छता और फार्म की स्थिति की आती है तो यह संधु भाइयों की कड़ी निगरानी के तहत बनाकर रखी जाती है। पक्षियों के प्रत्येक बैच की निकासी के बाद, पूरे पोल्टरी फार्म को धोया जाता है और साफ किया जाता है और उसके बाद मुर्गियों के बच्चों को ताजा और सूखा वातावरण प्रदान करने के लिए धान की भूसी की एक मोटी परत (3-3.5 इंच) ज़मीन पर फैला दी जाती है। तापमान बनाकर रखना दूसरा कारक है जो पोल्टरी फार्म को चलाने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए उन्होंने गर्मियों के मौसम में फार्म को हवादार बनाए रखने के लिए कूलर लगाए हुए हैं और सर्दियों के मौसम के दौरान पोल्टरी के अंदर भट्ठी के साथ ताप बनाकर रखा जाता है।

“एक छोटी सी अनदेखी से काफी बड़ा नुकसान हो सकता है इसलिए हम हमेशा मुर्गियों की स्वच्छता और स्वस्थ स्थिति बनाकर रखने को पहल देते हैं। हम सरकारी पशु चिकित्सा हस्पताल और कभी कभी विशेष पोल्टरी हस्पतालों में रेफर करते हैं जिनकी फीस बहुत मामूली है।”

मंडीकरण

पोल्टरी उद्योग में 24 वर्षों के अनुभव के साथ रविंदर संधु और 5 वर्षों के अनुभव के साथ शाहताज संधु ने अपने ही राज्य के साथ-साथ पड़ोसी राज्य जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में एक मजबूत मार्किटिंग नेटवर्क स्थापित किया है। वे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में विभिन्न डीलरों के माध्यम से और कभी कभी सीधे ही किसानों को मुर्गियां और उनके चूज़ों को बेचते हैं।

“यदि कोई पोल्टरी फार्म शुरू करने में दिलचस्पी रखता है तो उसे कम से कम 10000 पक्षियों के साथ इसे शुरू करना चाहिए शुरूआत में यह लागत 200 रूपये प्रति पक्षी और एक पक्षी तैयार करने के लिए 130 रूपये लगते हैं। आपका खर्चा लगभग 30 -35 लाख के बीच होगा और यदि फार्म किराये पर है तो 10000 पक्षियों के बैच के लिए 13-1400000 लगते हैं – यह संधु भाइयों का कहना है।”

भविष्य की योजनाएं

“फार्म का विस्तार करना और अधिक पक्षी तैयार करना हमारी चैकलिस्ट में पहले से ही है लेकिन एक नई चीज़ जो हम भविष्य में करने की योजना बना रहे हैं वो है पोल्टरी के उत्पादों की फुटकर बिक्री के उद्योग में निवेश करना।”
भाईचारे के अपने अतुल मजबूत बंधन के साथ दोनों भाई अपने परिवार के व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं और वे इसे भविष्य में भी जारी रखेंगे।

संदेश
पोल्टरी व्यवसाय आय का एक अच्छा वैकल्पिक स्त्रोत है जिसमें किसानों को निवेश करना चाहिए यदि वे खेती के साथ अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं। कुछ चीज़ें हैं जो हर पोल्टरी किसान को ध्यान में रखनी चाहिए यदि वे अपने पोल्टरी के कारोबार को सफलतापूर्वक चलाना चाहते हैं जैसे -स्वच्छता, तापमान बनाकर रखना और अच्छी गुणवत्ता वाले मुर्गी के चूज़े और फीड।

लवप्रीत सिंह

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कैसे इस B.Tech ग्रेजुएट युवा की बढ़ती हुई दिलचस्पी ने उसे कृषि को अपना फुल टाइम रोज़गार चुनने के लिए प्रेरित किया

मिलिए लवप्रीत सिंह से, एक युवा जिसके हाथ में B.Tech. की डिग्री के बावजूद उसने डेस्क जॉब और आरामदायक शहरी जीवन जीने की बजाय गांव में रहकर कृषि से समृद्धि हासिल करने को चुना।

संगरूर के जिला हैडक्वार्टर से 20 किलोमीटर की दूरी पर भवानीगढ़ तहसील में स्थित गांव कपियाल जहां लवप्रीत सिंह अपने पिता, दादा जी, माता और बहन के साथ रहते हैं।

2008-09 में लवप्रीत ने कृषि क्षेत्र में अपनी बढ़ती दिलचस्पी के कारण केवल 1 एकड़ की भूमि पर गेहूं की जैविक खेती शुरू कर दी थी, बाकी की भूमि अन्य किसानों को दे दी थी। क्योंकि लवप्रीत के परिवार के लिए खेतीबाड़ी आय का प्राथमिक स्त्रोत कभी नहीं था। इसके अलावा लवप्रीत के पिता जी, संत पाल सिंह दुबई में बसे हुए थे और उनके पास परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अच्छी नौकरी और आय दोनों ही थी।

जैसे ही समय बीतता गया, लवप्रीत की दिलचस्पी और बढ़ी और उनकी मातृभूमि ने उन्हें वापिस बुला लिया। जल्दी ही अपनी डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने खेती की तरफ बड़ा कदम उठाने के बारे में सोचा। उन्होंने पंजाब एग्रो (Punjab Agro) द्वारा अपनी भूमि की मिट्टी की जांच करवायी और किसानों से अपनी सारी ज़मीन वापिस ली।

अगली फसल जिसकी लवप्रीत ने अपनी भूमि पर जैविक रूप से खेती की वह थी हल्दी और साथ में उन्होंने खुद ही इसकी प्रोसेसिंग भी शुरू की। एक एकड़ पर हल्दी और 4 एकड़ पर गेहूं-धान। लेकिन लवप्रीत के परिवार द्वारा पूरी तरह से जैविक खेती को अपनाना स्वीकार्य नहीं था। 2010 में जब उनके पिता दुबई से लौट आए तो वे जैविक खेती के खिलाफ थे क्योंकि उनके विचार में जैविक उपज की कम उत्पादकता थी लेकिन कई आलोचनाओं और बुरे शब्दों में लवप्रीत के दृढ़ संकल्प को हिलाने की शक्ति नहीं थी।

अपनी आय को बढ़ाने के लिए लवप्रीत ने गेहूं की बजाये बड़े स्तर पर हल्दी की खेती करने का फैसला किया। हल्दी की प्रोसेसिंग में उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया क्योंकि उनके पास इसका कोई ज्ञान और अनुभव नहीं था। लेकिन अपने प्रयासों और माहिर की सलाह के साथ वे कई मुश्किलों को हल करने के काबिल हुए। उन्होंने उत्पादकता और फसल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए गाय और भैंस के गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया।

परिणाम देखने के बाद उनके पिता ने भी उन्हें खेती में मदद करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्होंने पंजाब एग्रो से भी हल्दी पाउडर को जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संपर्क किया और इस वर्ष के अंत तक उन्हें यह प्राप्त हो जाएगा। वर्तमान में वे सक्रिय रूप से हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग में शामिल हैं। जब भी उन्हें समय मिलता है, वे PAU का दौरा करते हैं और यूनीवर्सिटी के माहिरों द्वारा सुझाई गई पुस्तकों को पढ़ते हैं ताकि उनकी खेती में सकारात्मक परिणाम आये। पंजाब एग्रो उन्हें आवश्यक जानकारी देकर भी उनकी मदद करता है और उन्हें अन्य प्रगतिशील किसानों के साथ भी मिलाता है जो जैविक खेती में सक्रिय रूप से शामिल हैं। हल्दी के अलावा वे गेहूं, धान, तिपतिया घास (दूब), मक्की, बाजरा की खेती भी करते हैं लेकिन छोटे स्तर पर।

भविष्य की योजनाएं:
वे भविष्य में हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग के काम का विस्तार करना चाहते हैं और जैविक खेती कर रहे किसानों का एक ग्रुप बनाना चाहते हैं। ग्रुप के प्रयोग के लिए सामान्य मशीनें खरीदना चाहते हैं और जैविक खेती करने वाले किसानों का समर्थन करना चाहते हैं।

संदेश

एक संदेश जो मैं किसानों को देना चाहता हूं वह है पर्यावरण को बचाने के लिए जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है। सभी को जैविक खेती करनी चाहिए और जैविक खाना चाहिए, इस प्रकार प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।

करमजीत कौर दानेवालिया

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कैसे एक महिला ने शादी के बाद अपने खेती के प्रति जुनून को पूरा किया और आज सफलतापूर्वक इस व्यवसाय को चला रही है

आमतौर पर भारत में जब बेटियों की शादी कर दी जाती है और उन्हें अपने पति के घर भेज दिया जाता है तो वे शादी के बाद अपनी ज़िंदगी में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वे अपनी रूचि और अपने शौंक के बारे में भूल ही जाती हैं। वे घर की चारदिवारी में बंध कर रह जाती हैं। लेकिन एक ऐसी महिला हैं – श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया । जिसने शादी के बाद भी अपने जुनून को आगे बढ़ाया । घर में रहने की बजाय उन्होंने घर के बाहर कदम रखा और बागबानी के अपने शौंक को पूरा किया।

श्री मती करमजीत कौर दानेवालिया एक ऐसी महिला है जिन्होंने एक छोटे से गांव के एक ठेठ पंजाबी किसान के परिवार में जन्म लिया। खेती की पृष्ठभूमि से होने पर श्री मती करमजीत हमेशा खेती के प्रति आकर्षित थी और खेतों में अपने पिता की मदद करने में भी रूचि रखती थी। लेकिन शादी से पहले उन्हें कभी खेती में अपने पिता की मदद करने का मौका नहीं मिला।

जल्दी ही उनकी शादी एक बिजनेस क्लास परिवार के श्री जसबीर सिंह से हो गई। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि शादी के बाद उन्हें अपने सपनों को पूरा करने और इन्हें अपने व्यवसाय के रूप में करने का अवसर मिलेगा। शादी के कुछ वर्ष बाद 1975 में अपने पति के समर्थन से उन्होंने फलों का बाग लगाने का फैसला किया और अपनी दिलचस्पी को एक मौका दिया। लेवलर मशीन और मजदूरों की सहायता से, उन्होंने 45 एकड़ की भूमि को समतल किया और इसे बागबानी करने के लिए तैयार किया। उन्होंने 20 एकड़ की भूमि पर किन्नू उगाए और 10 एकड़ की भूमि पर आलूबुखारा, नाशपाति, आड़ू, अमरूद, केला आदि उगाए और बाकी की 5 एकड़ भूमि पर वे सर्दियों में गेहूं और गर्मियों में कपास उगाती हैं।

उनका शौंक जुनून में बदल गया और उन्होंने इसे जारी रखने का फैसला किया। 1990 में उन्होंने एक तालाब बनाया और इसमें बारिश के पानी को स्टोर किया। वे इससे बाग की सिंचाई करती थी। लेकिन उसके बाद उन्होंने इसमें मछली पालन शुरू किया और इसे दोनों मंतवों मछली पालन और सिंचाई के लिए प्रयोग किया। अपने व्यापार को एक कदम और बढ़ाने के लिए उन्होंने नए पौधे स्वंय तैयार करने का फैसला किया।

2001 में उन्होंने भारत में किन्नू के उत्पादन का एक रिकॉर्ड बनाया और किन्नू के बाग के व्यापार को और सफल बनाने के लिए, किन्नू की पैकेजिंग और प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग के लिए वे विशेष तौर पर 2003 में कैलीफॉर्निया गई। वापिस आने के बाद उन्होंने उस ट्रेनिंग को लागू किया और इससे काफी लाभ कमाया। जिस वर्ष से उन्होने किन्नू की खेती शुरू की तब से उनके किन्नुओं की गुणवत्ता प्रतिवर्ष जिला स्तर और राज्य स्तर पर नंबर 1 पर रही है और किन्नू उत्पादन में बढ़ती लोकप्रियता के कारण 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने उन्हें ‘किन्नुओं की रानी’ के नाम से नवाज़ा।

खेती के उद्देश्य के लिए, आधुनिक तकनीक के हर प्रकार के खेतीबाड़ी यंत्र और मशीनरी उनके फार्म पर मौजूद है। बागबानी के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्धि ने उन्हें कई प्रतिष्ठित समुदायों का सदस्य बनाया और कई पुरस्कार दिलवाए। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।

• 2001-02 में कृषि मंत्री श्री गुलज़ार रानीका द्वारा राज्य स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2004 में शाही मेमोरियल इंटरनेशनल सेवा सोसाइटी, लुधियाना में रवी चोपड़ा द्वारा देश सेवा रत्व पुरस्कार से पुरस्कृत हुईं।
• 2004 में पंजाब के पूर्व मुख्य मंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा ‘किन्नुओं की रानी’ का शीर्षक मिला।
• 2005 में कृषि मंत्री श्री जगजीत सिंह रंधावा द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक पुरस्कार मिला।
• 2012 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2012 में जिला स्तरीय सिटरस शो में पहला पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में जिला स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010-11 में राज्य स्तरीय सिटरस शो में दूसरा पुरस्कार मिला।
• 2010 में कृषि मंत्री श्री सुचा सिंह लंगाह द्वारा सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक महिला का पुरस्कार मिला।
• 2012 में श्री शरनजीत सिंह ढिल्लों और वी.सी पी ए यू, लुधियाना द्वारा किसान मेले में अभिनव महिला किसान के रूप में राज्य स्तरीय पुरस्कार मिला।
• 2012 में कृषि मंत्री श्री शरद पवार -भारत सरकार द्वारा 7th National conference on KVK at PAU, लुधियाना में उत्कृष्टता के लिए चैंपियन महिला किसान पुरस्कार मिला।
• 2013 में पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा अमृतसर में 64वें गणतंत्र दिवस पर प्रगतिशील महिला किसान के सम्मान में पुरस्कार मिला।
• 2013 में कृषि मंत्री Dr. R.R Hanchinal, Chairperson PPUFRA- भारत सरकार द्वारा indian agriculture at global agri connect (NSFI) IARI, नई दिल्ली में भारतीय कृषि में अभिनव सहयोग के लिए प्रशंसा पत्र मिला।
• 2012 में में पंजाब की सर्वश्रेष्ठ किन्नू उत्पादक के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
• 2013 में तामिलनाडू और आसाम के गवर्नर डॉ. भीष्म नारायण सिंह द्वारा कृषि में सराहनीय सेवा, शानदार प्रदर्शन और उल्लेखनीय भूमिका के लिए भारत ज्योति पुरस्कार मिला।
• 2015 में नई दिल्ली में पंजाब के पूर्व गवर्नर जस्टिस ओ पी वर्मा द्वारा भारत का गौरव बढ़ाने के लिए उनके द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों को देखते हुए भारत गौरव पुरस्कार मिला।
• कृषि मंत्री श्री तोता सिंह और कैबिनेट मंत्री श्री गुलज़ार सिह रानीका और ज़ी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल के संपादक श्री दिनेश शर्मा द्वारा बागबानी के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट सहयोग और किन्नू की खेती को बढ़ावा देने के लिए Zee Punjab/Haryana/Himachal एग्री पुरस्कार मिला।
• श्रीमती करमजीत पी ए यू किसान क्लब की सदस्या हैं।
• वे पंजाब AGRO की स्दस्या हैं
• वे पंजाब बागबानी विभाग की सदस्या हैं।
• मंडी बोर्ड की सदस्या हैं।
• चंगी खेती की सदस्या हैं।
• किन्नू उत्पादक संस्था की सदस्या हैं।
• Co-operative Society की सदस्या हैं।
• किसान सलाहकार कमेटी की सदस्या हैं।
• PAU, Ludhiana Board of Management की सदस्या हैं।

इतने सारे पुरस्कार और प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद, वे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए उत्सुक हैं और यही वजह है कि वे कभी भी किसी भी जिला स्तर के कृषि मेलों और मीटिंगों में भाग लेना नहीं छोड़ती । वे कुछ नया सीखने के लिए और ज्ञान प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से उन किसानों के खेतों का दौरा करती हैं जो पी ए यू और हिसार कृषि विश्वविद्लाय से जुड़े हैं।

आज वे प्रति हेक्टेयर में 130 टन किन्नुओं की तुड़ाई कर रही हैं और इससे 1 लाख 65 हज़ार आय कमा रही हैं। अन्य फलों के बागों से और गेहूं और कपास की फसलों से वे प्रत्येक मौसम में 1 लाख आय कमा रही हैं।

अपनी सभी सफलताओं के पीछे का सारा श्रेय वे अपने पति को देती हैं जिन्होंने उनके सपनों का साथ दिया और इन सभी वर्षों में खेती करने में उनकी मदद की। खेती के अलावा वे समाज के लिए एक बहुत अच्छे कार्य में सहयोग दे रही हैं। वे गरीब लड़कियों को वित्तीय सहायता और शादी की अन्य सामग्री प्रदान कर उनकी शादी में मदद भी करती हैं उनकी भविष्य योजना है – खेतीबाड़ी को और लाभदायक व्यापारिक उद्यम बनाना है।

किसानों को संदेश –
किसानों को अपने खर्चों को अच्छी तरह बनाकर रखना शुरू करना होगा और जो उनके पास नहीं है, उन्हें उसका दिखावा बंद करना होगा। आज, कृषि क्षेत्र को अधिक ध्यान की आवश्यकता है इसलिए युवा बच्चों को जिनमें बेटियों को भी शामिल किया जाना चाहिए और इस क्षेत्र के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए और हर किसी को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि कृषि के क्षेत्रा में हर इंसान पहले एक किसान है और फिर एक व्यापारी।

प्रेम राज सैनी

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कैसे उत्तर प्रदेश के एक किसान ने फूलों की खेती से अपने व्यापार को बढ़ाया

फूलों की खेती एक लाभदायक आजीविका पसंद व्यवसाय है और यह देश के कई किसानों की आजीविका को बढ़ा रहा है। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के पीर नगर गांव के श्री प्रेम राज सैनी एक उभरते हुए पुष्पविज्ञानी हैं और हमारे समाज के अन्य किसानों के लिए एक आदर्श उदाहरण हैं।

प्रेम राज के पुष्पविज्ञानी होने के पीछे उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा उनके पिता है। यह 70 के दशक की बात है जब उनके पिता दिल्ली से फूलों के विभिन्न प्रकार के बीज अपने खेत में उगाने के लिए लाये थे। वे अपने पिता को बहुत बारीकी से देखते थे और उस समय से ही वे फूलों की खेती से संबंधित कुछ करना चाहते थे। हालांकि प्रेम राज सैनी B.Sc ग्रेजुएट हैं और वे खेती के अलावा विभिन्न व्यवसाय का चयन कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपने सपने के पीछे जाने को चुना।

20 मई 2007 को उनके पिता का देहांत हो गया और उसके बाद ही प्रेम राज ने उस कार्य को शुरू करने का फैसला किया जो उनके पिता बीच में छोड़ गये थे। उस समय उनका परिवार आर्थिक रूप से स्थायी था और उनके भाई भी स्थापित हो चुके थे। उन्होंने खेती करनी शुरू की और उनके बड़े भाई ने एक थोक फूलों की दुकान खोली जिसके माध्यम से वे अपनी खेती के उत्पाद बेचेंगे। अन्य दो छोटे भाई नौकरी कर रहे थे लेकिन बाद में वे भी प्रेम राज और बड़े भाई के उद्यम में शामिल हो गए।

प्रेम राज द्वारा की गई एक पहल ने पूरे परिवार को एक धागे में जोड़ दिया। सबसे बड़े भाई कांजीपुर फूल मंडी में फूलों की दो दुकानों को संभालते हैं। प्रेम राज स्वंय पूरे फार्म का काम संभालते हैं और दो छोटे भाई नोयडा की संब्जी मंडी में अपनी दुकान संभाल रहे हैं। इस तरह उन्होंने अपने सभी कामों को बांट दिया है जिसके फलस्वरूप उनकी आय में वृद्धि हुई है। उन्होंने केवल एक स्थायी मजदूर रखा है और कटाई के मौसम में वे अन्य श्रमिकों को भी नियुक्त कर लेते हैं।

प्रेम राज के फार्म में मौसम के अनुसार हर तरह के फूल और सब्जियां हैं। अच्छी उपज के लिए वे नेटहाउस और बेड फार्मिंग के ढंगों को अपनाते हैं। दूसरे शब्दों में वे अच्छी गुणवत्ता वाली उपज के लिए रसायनों का उपयोग नहीं करते हैं और आवश्यकतानुसार ही बहुत कम नदीननाशक का प्रयोग करते हैं। इस तरह उनके खर्चे भी आधे रह जाते हैं। वे अपने फार्म में आधुनिक खेती यंत्रों जैसे ट्रैक्टर और रोटावेटर का प्रयोग करते हैं।

भविष्य की योजनाएं-
सैनी भाई अच्छी आमदन के लिए विभिन्न स्थानों पर और अधिक दुकानें खोलने की योजनाएं बना रहे हैं। वे भविष्य में अपने खेती के क्षेत्र और व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं।

परिवार-
वर्तमान में वे अपने संपूर्ण परिवार (माता, पत्नी, दो पुत्र और एक बेटी) के साथ अपने गांव में रह रहे हैं। वे काफी खुले विचारों वाले इंसान हैं और अपने बच्चों पर कभी भी अपनी सोच नहीं डालते। फूलों की खेती के व्यापार और आमदन के साथ आज प्रेम राज सैनी और उनके भाई अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा कर रहे हैं।

संदेश-
वर्तमान में नौकरियों की बहुत कमी है, क्योंकि अगर एक जॉब वेकेंसी है तो वहीं आवेदन भरने के लिए कई आवेदक हैं। इसलिए यदि आपके पास ज़मीन है तो इससे अच्छा है कि आप खेती शुरू करें और इससे लाभ कमायें। खेतीबाड़ी को निचले स्तर का व्यवसाय के बजाय अपनी जॉब के तौर पर लें।

हरबीर सिंह पंडेर

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कैसे एक पिता ने मक्खी पालन में निवेश करके भविष्य में अपने पुत्र को ज्यादा मुनाफा कमाने में मदद की

पंडेर परिवार के युवा पीढ़ी हरबीर सिंह पंडेर ने ना सिर्फ अपने पिता के मक्खीपालन के व्यापार को आगे बढ़ाया, बल्कि अपने विचारों और प्रयासों से इसे लाभदायक उद्यम भी बनाया।

हरबीर सिंह, कुहली खुर्द, लुधियाना के निवासी हैं। जिनके पास सिविल में इंजीनियर की डिग्री होते हुए भी, उन्होंने अपने पिता के व्यवसाय को आगे बढ़ाने का फैसला किया और अपने नए विचारों से उसे आगे बढ़ाया।

जब पंडेर परिवार ने मक्खी पालन शुरू किया….
गुरमेल सिंह पंडेर – हरबीर सिंह के पिता ने तकरीबन 35 वर्ष पहले बिना किसी ट्रेनिंग के मक्खी पालन का व्यापार शुरू किया था। 80 के दशक में जब किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि मक्खी पालन भी एक लाभदायक स्त्रोत हो सकता है, गुरमेल सिंह का भविष्यवादी दिमाग एक अलग दिशा में चला गया। उस समय उसने मधु मक्खियों के दो बक्सों के साथ मक्खी पालन शुरू किया और आज उसके पुत्र ने उसके काम को मधु मक्खी के 700 बक्सों के साथ एक उत्कृष्ट प्रयास में बदल दिया।

हालांकि, हरबीर के पिता मधुमक्खी पालन के काम से अच्छा मुनाफा कमा रहे थे लेकिन यह मार्किटिंग के दृष्टिकोण से कम था। जिसके कारण वे उचित मार्किट को कवर नहीं कर पा रहे थे। इसलिए हरबीर सिंह ने सोचा कि वे अपनी योजना और सोच के साथ इस स्थानीय व्यापार को आगे बढ़ाएंगे। हरबीर ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद ही अपने पिता के व्यापार को संभाल लिया। अपनी पिता के व्यापार का चयन करना हरबीर के लिए मजबूरी नहीं था यह उनका काम को जारी रखने का जुनून था जिसे उन्होंने अपने पूरे बचपन में अपने पिता को करते देखा था।

अपने पिता के काम को संभालते ही हरबीर ने अपने पिता के व्यापार को ‘रॉयल हनी’ ब्रांड का नाम दिया। हरबीर अच्छी तरह से जानते थे कि व्यापार को बड़े स्तर पर बढ़ावा देने के लिए ब्रांडिंग बहुत महत्तवपूर्ण है। इसलिए उन्होंने अपने व्यवसाय को ब्रांड नाम के तहत पंजीकृत करवाया। अपने काम को अधिक व्यवसायी बनाने के लिए हरबीर विशेष रूप से मक्खी पालन की ट्रेनिंग के लिए 2011 में पी ए यू गए।

वर्ष 2013 में उन्होंने अपने उत्पादों को AGMARK के तहत भी पंजीकृत किया और आज वे पैकेजिंग से लेकर मार्किटिंग का काम सब कुछ स्वंय करते हैं। वे मुख्य तौर पर दो उत्पादों शहद और बी वैक्स पर ध्यान देते हैं।

हरबीर के पास उनके फार्म पर मुख्यत: इटेलियन मक्खियां हैं और शहद की उच्च गुणवत्ता बनाए रखने के लिए वे मौसम से मौसम, पंजाब के आस पास के राज्यों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। उन्होंने इस काम के लिए 7 श्रमिकों को रोज़गार दिया है। मुख्यत: वे अपने बक्सों को चितौड़गढ़ (कैरम के बीजों के खेत में), कोटा (सरसों के खेत में), हिमाचल प्रदेश (विभिन्न फूलों), मलोट (सूरजमुखी के खेत) और राजस्थान (बाजरा और तुआर के खेत) में क्षेत्र किराये पर लेकर छोड़ देते हैं। शहद को हाथों से निकालने की प्रक्रिया द्वारा वे शहद निकालते हैं और फिर अपने उत्पादों की पेकेजिंग और मार्किटिंग करते हैं।

मक्खी पालन के अलावा हरबीर और उसका परिवार खेती और डेयरी फार्मिंग भी करता है। उनके पास 7 एकड़ भूमि है जिस पर वे घर के लिए धान और गेहूं उगाते हैं और उनके पास 15 भैंसे हैं जिनका दूध वे गांव में बेचते हैं और इसमें से कुछ अपने लिए भी रखते हैं।

वर्तमान में हरबीर अपने पारिवारिक व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं और अपने अतिरिक्त समय में वे मक्खी पालन के व्यवसाय के बारे में अन्य लोगों को गाइड भी करते हैं। हरबीर भविष्य में अपने व्यापार को और बढ़ाना चाहते हैं और मार्किटिंग के लिए पूरी तरह से आत्म निर्भर होना चाहते हैं।

किसानों को संदेश

आजकल के दिनों में किसानों को सिर्फ खेती पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें खेती के साथ साथ अन्य एग्रीबिज़नेस को भी अपनाना चाहिए ताकि अगर एक विकल्प फेल हो जाए तो आखिर में आपके पास दूसरा विकल्प हो। मक्खीपालन एक बहुत ही लाभदायक व्यापार है और किसानों को इसके लाभों के बारे में जानने का प्रयास करना चाहिए।

अंग्रेज सिंह भुल्लर

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कैसे इस किसान के बिगड़ते स्वास्थ्य ने उसे अपनी गल्ती सुधारने और जैविक खेती को अपनाने के लिए उकसाया

गिदड़बाहा के इस 53 वर्षीय किसान- अंग्रेज सिंह भुल्लर ने अपनी गल्तियों को पहचानने के बाद कि उसने क्या बनाया और कैसे यह उसके स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, अपने जीवन का सबसे प्रबुद्ध फैसला लिया।

4 वर्ष की युवा उम्र में अंग्रेज सिंह भुल्लर ने अपने पिता को खो दिया। उसके परिवार की स्थितियां दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी क्योंकि उनके परिवार में कोई रोटी कमाने वाला नहीं था। उन्हें पैसे भी रिश्तेदारों को अपनी ज़मीन किराये पर देकर मिल रहे थे। परिवार में उनकी दो बड़ी बहनें थी और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करना उनकी मां के लिए दिन प्रतिदिन बहुत मुश्किल हो रहा था। बिगड़ती वित्तीय परिस्थितियों के कारण, अंग्रेज सिंह को 9वीं कक्षा तक शैक्षिक योग्यता प्राप्त हुई और उनकी बहनें कभी स्कूल नहीं गई।

स्कूल छोड़ने के बाद अंग्रेज सिंह ने कुछ समय अपने अंकल के फार्म पर बिताया और उनसे खेती की कुछ तकनीकें सीखीं। 1989 तक ज़मीन रिश्तेदारों के पास किराये पर थी। लेकिन उसके बाद अंग्रेज सिंह ने परिवार की ज़िम्मेदारी लेने का बड़ा फैसला लिया। इसलिए उन्होंने अपनी ज़मीन वापिस लेने का निर्णय लिया और इस पर खेती शुरू की।

अपने अंकल से उन्होंने जो कुछ सीखा और गांव के अन्य किसानों को देखकर उन्होंने रासायनिक खेती शुरू की। उन्होंने अच्छी कमाई करनी शुरू की और अपने परिवार की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ। जल्दी ही कुछ समय बाद उन्होंने शादी की और एक सुखी परिवार का जीवन जी रहे थे।

लेकिन 2006 में वे बीमार पड़ गये और प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो गए। इससे पहले वे इस समस्या को हल्के ढंग से लेते थे लेकिन डॉक्टर की जांच के बाद उन्हें पता चला कि उनकी आंत में सोजिश आ गई है जो कि भविष्य में गंभीर समस्या बन सकती है। उस समय बहुत से लोग उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछने के लिए आते थे और किसी ने उन्हें बताया कि स्वास्थ्य बिगड़ने का कारण खेती में रसायन का उपयोग करना है और आपको जैविक खेती शुरू करनी चाहिए।

हालांकि कई लोगों ने उन्हें इलाज के लिए काफी चीज़ें करने को कहा लेकिन एक बात जिसने मजबूती से उनके दिमाग में दस्तक दी वह थी जैविक खेती शुरू करना। उन्होंने इस मसले को काफी गंभीरता से लिया और 2006 में 2.5 एकड़ की भूमि पर जैविक खेती शुरू की उन्होंने गेहूं, सब्जियां, फल, नींबू, अमरूद, गन्ना और धान उगाना शुरू किया और इससे अच्छा लाभ प्राप्त किया। अपने लाभ को दोगुना करने के लिए उन्होंने स्वंय ही उत्पादों की प्रोसेसिंग शुरू की और बाद में उन्होंने गन्ने से गुड़ बनाना शुरू किया । उन्होंने हाथों से ही गुड़ बनाने की विधि को अपनाया क्योंकि वह इस उद्यम को अपने दम पर शुरू कर रहे थे। शुरूआत में वे अनिश्चित थे कि उन्हें इसका कैसा फायदा होगा लेकिन धीरे धीरे गांव के लोगों ने गुड़ को पसंद करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे गुड़ की मांग एक स्तर तक बढ़ी जिससे उन्होंने एडवांस बुकिंग पर गुड़ बनाना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने अपने खेत में वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट लगाया ताकि वे घर पर बनी खाद से अच्छी उपज ले सकें।

उन्होंने कई पुरस्कार, उपलब्धियां प्राप्त की और कई ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लिया| उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
• 1979 में 15 से 18 नवंबर के बीच उन्होंने जिला मुक्तसर विज्ञान मेले में भाग लिया।
• 1985 में वेरका प्लांट बठिंडा द्वारा आयोजित Artificial Insemination के 90 दिनों की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• 1988 में पी.ए.यू, लुधियाना द्वारा आयोजित हाइब्रिड बीजों की तैयारी के 3 दिनों की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• पतंजली योग समिती में 9 जुलाई से 14 जुलाई 2009 में भाग लेने के लिए योग शिक्षक की ट्रेनिंग के लिए प्रमाण पत्र मिला।
• 28 सितंबर 2012 में खेतीबाड़ी विभाग, पंजाब के निदेशक से प्रशंसा पत्र मिला।
• 9 से 10 सितंबर 2013 को आयोजित Vibrant Gujarat Global Agricultural सम्मेलन में भाग लिया।
• कुदरती खेती और पर्यावरण मेले के लिए प्रशंसा पत्र मिला जिसमें 26 जुलाई 2013 को खेती विरासत मिशन द्वारा मदद की गई थी।
• खेतीबाड़ी विभाग जिला श्री मुक्तसर साहिब पंजाब द्वारा आयोजित Rabi Crops Farmer Training Camp में भाग लेने के लिए 21 सितंबर 2014 को Agricultural Technology Management Agency (ATMA) द्वारा राज्य स्तर पर प्रशंसा पत्र प्राप्त किया।
• 21 सितंबर 2014 को खेतीबाड़ी विभाग, श्री मुक्तसर साहिब द्वारा State Level Farmer Training Camp के लिए प्रशंसा पत्र मिला।
• 12 -14 अक्तूबर 2014 को पी ए यू द्वारा आयोजित Advance training course of Bee Breeding 7 Mass Bee Rearing Technique में भाग लिया।
• Sarkari Murgi Sewa Kendra, Kotkapura में पशु पालन विभाग, पंजाब द्वारा आयोजित 2 सप्ताह की पोल्टरी फार्मिंग ट्रेनिंग में भाग लिया।
• National Bee Board द्वारा मक्खीपालक के तौर पर पंजीकृत हुए।
• CRI पुरस्कार मिला|
• KVK, गोनिआना द्वारा आयोजित Kharif Crop Farming के 1 दिन की ट्रेनिंग कैंप में भाग लिया।
• PAU Ludhiana द्वारा आयोजित 10 दिनों की मक्खी पालन की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• KVK, गोनिआना द्वारा आयोजित 1 दिन की Pest Control in Grains stored in Storehouse की ट्रेनिंग में भाग लिया।
• Department of Rural Development, NITTTR, Chandigarh द्वारा आयोजित Organic & Herbal Products Mela में भाग लिया।
• PAMETI (Punjab Agriculture Management & Extension Training Institute), PAU द्वारा आयोजित workshop training programme- “MARKET LED EXTENSION” में भाग लिया।
अंग्रेज सिंह भुल्लर पंजाब के वे भविष्यवादी किसान है जो जैविक खेती की महत्तता को समझते हैं। आज खराब पर्यावरण परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें उनके जैसे अधिक किसानों की जरूरत है।

किसानों को संदेश

यदि हम अब जैविक खेती शुरू नहीं करते है तो यह हमारी भविष्य की पीढ़ी के लिए बड़ी समस्या होगी।

पूजा शर्मा

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एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाली महिला की कहानी जिसने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती के माध्यम से अपने पति का साथ दिया

हमारे भारतीय समाज में एक धारणा को जड़ दिया गया है कि महिला को घर पर होना चाहिए और पुरूषों को कमाना चाहिए। लेकिन फिर भी ऐसी कई महिलाएं हैं जो रोटी अर्जित के टैग को बहुत ही आत्मविश्वास से सकारात्मक तरीके से पेश करती हैं और अपने पतियों की घर चलाने और घर की जरूरतों को पूरा करने में मदद करती हैं। ऐसी ही एक महिला हैं – पूजा शर्मा, जो अपने घर की जरूरतों को पूरा करने में अपने पति की सहायता कर रही हैं।

श्री मती पूजा शर्मा जाटों की धरती- हरियाणा की एक उभरती हुई एग्रीप्रेन्योर हैं और वर्तमान में वे क्षितिज सेल्फ हेल्प ग्रुप की अध्यक्ष भी हैं और उनके गांव (चंदू) की प्रगतिशील महिलाएं उनके अधीन काम करती हैं। अभिनव खेती की तकनीकों का प्रयोग करके वे सोयाबीन, गेहूं, मक्का, बाजरा और मक्की से 11 किस्मों का खाना तैयार करती हैं, जिन्हें आसानी से बनाया जा सकता है और सीधे तौर पर खाया जा सकता है।

खेती के क्षेत्र में जाने का निर्णय 2012 में तब लिया गया, जब श्री मती पूजा शर्मा (तीन बच्चों की मां) को एहसास हुआ कि उनके घर की जरूरतें उनके पति (सरकारी अनुबंध कर्मचारी) की कमाई से पूरी नहीं हो रही हैं और अब ये उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने पति को सहारा दें।

वे KVK शिकोपूर में शामिल हुई और उन्हें उन चीज़ों को सीखने के लिए कहा गया जो उनकी आजीविका कमाने में मदद करेंगे। उन्होंने वहां से ट्रेनिंग ली और खेती की नई तकनीकें सीखीं। उन्होंने वहां सोयाबीन और अन्य अनाज की प्रक्रिया को सीखा ताकि इसे सीधा खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सके और यह ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपने पड़ोस और गांव की अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

2013 में उन्होंने अपने घर पर भुनी हुई सोयाबीन की अपनी एक छोटी निर्माण यूनिट स्थापित की और अपने उद्यम में अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी शामिल किया और धीरे-धीरे अपने व्यवसाय का विस्तार किया। उन्होंने एक क्षितिज SHG के नाम से एक सेल्फ हेल्प ग्रुप भी बनाया और अपने गांव की और महिलाओं को इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। ग्रुप की सभी महिलाओं की बचत को इकट्ठा करके उन्होंने और तीन भुनाई की मशीने खरीदीं और कुछ समय बाद उन्होंने और पैसा इकट्ठा किया और दो और मशीने खरीदीं। वर्तमान में उनके ग्रुप के पास निर्माण के लिए 7 मशीनें हैं। ये मशीनें उनके बजट के मुताबिक काफी महंगी हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने सब प्रबंध किया और इन मशीनों की लागत 16000 और 20000 के लगभग प्रति मशीन है। उनके पास 1.25 एकड़ की भूमि है और वे सक्रिय रूप से खेती में भी शामिल हैं। वे ज्यादातर दालों और अनाज की उन फसलों की खेती करती हैं जिन्हें प्रोसेस किया जा सके और बाद में बेचने के लिए प्रयोग किया जा सके। वे अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी यही सिखाती हैं कि उन्हें अपनी भूमि का प्रभावी ढंग से प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें भविष्य में फायदा हो सकता है।

11 महिलाओं की टीम के साथ आज वे प्रोसेसिंग कर रही है और 11 से ज्यादा किस्मों के उत्पादों (बाजरे की खिचड़ी, बाजरे के लड्डू, भुने हुए गेहूं के दाने, भुनी हुई ज्वार, भुनी हुई सोयाबीन, भुने हुए काले चने) जो कि खाने और बनाने के लिए तैयार हैं, को राज्यों और देश में बेच रही हैं। पूजा शर्मा की इच्छा शक्ति ने गांव की अन्य महिलाओं को आत्म निर्भरता और आत्म विश्वास हासिल करने में मदद की है।

उनके लिए यह काफी लंबी यात्रा थी जहां वे आज पहुंची हैं और उन्होंने कई चुनौतियों का सामना भी किया। अब उन्होंने अपने घर पर ही मशीनों को स्थापित किया है ताकि महिलाएं इन्हें चला सकें जब भी वे खाली हों और उनके गांव में बिजली की कटौती भी काफी होती हैं इसलिए उन्होंने उनके काम को उसी के अनुसार बांटा हुआ है। कुछ महिलायें बीन्स को सुखाती हैं, कुछ साफ करती है और बाकी की महिलायें उन्हें भूनती और पीसती हैं।

वर्तमान में कई बार पूजा शर्मा और उनका ग्रुप अंग्रेजी भाषा की समस्या का सामना करता है क्योंकि जब बड़ी कंपनियों के साथ संवाद करने की बात आती है तो उन्हें पता है कि किस कौशल में उनकी सबसे ज्यादा कमी है और वह है शिक्षा। लेकिन वे इससे निराश नहीं हैं और इस पर काम करने की कोशिश कर रही हैं। खाद्य वस्तुओं के निर्माण के अलावा वे सिलाई, खेती और अन्य गतिविधियों में ट्रेनिंग लेने में भी महिलाओं की मदद कर रही हैं, जिसमें वे रूचि रखती हैं।

उनके भविष्य की योजनाएं अपने व्यवसाय का विस्तार करना और अधिक महिलाओं को प्रेरित करना और उन्हें आत्म निर्भर बनाना ताकि उन्हें पैसों के लिए दूसरों पर निर्भर ना रहना पड़े। ज़ोन 2 के अंतर्गत राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली राज्यों से उन्हें उनके उत्साही काम और प्रयासों के लिए और अभिनव खेती की तकनीकों के लिए पंडित दीनदयाल उपध्याय कृषि पुरस्कार के साथ 50000 रूपये की नकद राशि और प्रमाण पत्र भी मिला। वे ATMA SCHEME की मैंबर भी हैं और उन्हें गवर्नर कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा उच्च प्रोटीन युक्त भोजन बनाने के लिए प्रशंसा पत्र भी मिला।

किसानों को संदेश
जहां भी किसान अनाज, दालों और किसी भी फसल की खेती करते हैं वहां उन्हें उन महिलाओं का एक समूह बनाना चाहिए जो सिर्फ घरेलू काम कर रही हैं और उन्हें उत्पादित फसलों से प्रोसेसिंग द्वारा अच्छी चीजें बनाने के लिए ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि वे उन चीज़ों को मार्किट में बेच सकें और इसके लिए अच्छी कीमत प्राप्त कर सकें।”

 

सत्या रानी

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सत्या रानी: अपनी मेहनत से सफल एक महिला, जो फूड प्रोसेसिंड उदयोग में सूर्य की तरह उभर रही हैं

जब बात विकास की आती है तो इसमें कोई शक नहीं है कि महिलाएं भारत के युवा दिमागों को आकार देने और मार्गदर्शन करने में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। यहां तक कि खेतीबाड़ी के क्षेत्र में भी महिलायें पीछे नहीं हैं वे टिकाऊ और जैविक खेती के मार्ग का नेतृत्व कर रही हैं। आज, कई ग्रामीण और शहरी महिलायें खेतीबाड़ी में प्रयोग होने वाले रसायनों के प्रति जागरूक हैं और वे इस कारण इस क्षेत्र में काम भी कर रही हैं। सत्या रानी उन महिलाओं में से एक हैं जो जैविक खेती कर रही हैं और फूड प्रोसेसिंग के व्यापार में भी क्रियाशील हैं।

बढ़ते स्वास्थ्य मुद्दों और जलवायु परिर्वतन के साथ, खाद्य सुरक्षा से निपटना एक बड़ी चुनौती बन गई है और सत्या रानी एक उभरती हुई एग्रीप्रेन्योर हैं जो इस मुद्दे पर काम कर रही हैं। कृषि के क्षेत्र में योगदान करना और प्राकृति को उसका दिया वापिस देना सत्या का बचपन का सपना था। शुरू से ही उसके माता पिता ने उसे हमेशा इसकी तरफ निर्देशित और प्रेरित किया और अंतत: एक छोटी लड़की का सपना एक महिला का दृष्टिगोचर बन गया।

सत्या के जीवन में एक बुरा समय भी आया जिसमें अगर कोई अन्य लड़की होती तो वह अपना आत्म विश्वास और उम्मीद आसानी से खो देती। सत्या के माता पिता ने उन्हें वित्तीय समस्याओं के कारण 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई रोकने के लिए कहा। लेकिन उसका अपने भविष्य के प्रति इतना दृढ़ संकल्प था कि उसने अपने माता-पिता से कहा कि वह अपनी उच्च शिक्षा का प्रबंधन खुद करेगी। उसने खाद्य उत्पाद जैसे आचार और चटनी बनाने का और इसे बेचने का काम शुरू किया।

इस समय के दौरान उसने कई नई चीज़ें सीखीं और उसकी रूचि फूड प्रोसेसिंग व्यापार में बढ़ गई। हिंदू गर्ल्स कॉलेज, जगाधरी से अपनी बी ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे उसी कॉलेज में होम साइंस ट्रेनर की जॉब मिल गई। इसके तुरंत बाद उसने 2004 में राजिंदर कुमार कंबोज से शादी की, लेकिन शादी के बाद भी उसने अपना काम नहीं छोड़ा। उसने अपने फूड प्रोसेसिंग के काम को जारी रखा और कई नये उत्पाद जैसे आम के लड्डू, नारियल के लड्डू, आचार, फ्रूट जैम, मुरब्बा और भी लड्डुओं की कई किस्में विकसित की। उसकी निपुणता समय के साथ बढ़ गई जिसके परिणाम स्वरूप उसके उत्पादों की गुणवत्ता अच्छी हुई और बड़ी संख्या में उसका ग्राहक आधार बना।

खैर, फूड प्रोसेसिंग ही ऐसा एकमात्र क्षेत्र नहीं है जिसमें उसने उत्कृष्टा हासिल की। अपने स्कूल के समय से वह खेल में बहुत सक्रिय थीं और कबड्डी टीम की कप्तान थी। वह अपने पेशे और काम के प्रति बहुत उत्साही थी। यहां तक कि उसने हिंदू गर्ल्स कॉलेज से सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग पुरस्कार भी प्राप्त किया। वर्तमान में वह एक एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती कर रही है और डेयरी फार्मिंग में भी सक्रिय रूप से शामिल है। वह अपने पति की सहायता से हर तरह की मौसमी सब्जियां उगाती है। सत्या ऑरगैनिक ब्रांड नाम है जिसके तहत वह अपने प्रोसेस किए उत्पादों (विभिन्न तरह के लड्डू, आचार, जैम और मुरब्बा ) को बेच रही है।

आने वाले समय में वह अपने काम को बढ़ाने और इससे अधिक आमदन कमाने की योजना बना रही है वह समाज में अन्य लड़कियों और महिलाओं को फूड प्रोसेसिंग और जैविक खेती के प्रति प्रेरित करना चाहती है ताकि वे आत्म निर्भर हो सकें।

किसानों को संदेश
यदि आपको भगवान ने सब कुछ दिया है अच्छा स्वास्थ्य और मानसिक रूप से तंदरूस्त दिमाग तो आपको एक रचनात्मक दिशा में काम करना चाहिए और एक सकारात्मक तरीके से शक्ति का उपयोग करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को स्वंय में छिपी प्रतिभा को पहचानना चाहिए ताकि वे उस दिशा में काम कर सके जो समाज के लिए लाभदायक हो।

अमरीक सिंह ढिल्लो

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जानें कैसे इस जुगाड़ी किसान के जुगाड़ खेती में लाभदायक सिद्ध हुए

कहा जाता है कि अक्सर ज़रूरतें और मजबूरियों ही इनसान को नए आविष्कार करने की तरफ ले जाती हैं और इसी तरह ही नई खोजें संभव होती हैं।

ऐसे ही एक व्यक्ति की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मजबूरियों और जरूरतों को मुख्य रखते हुए नए-नए जुगाड़ लगाकर आविष्कार किए और उनका नाम है- अमरीक सिंह ढिल्लो।

अमरीक सिंह ढिल्लो जी गांव गियाना, तहसील तलवंडी (बठिंडा) के रहने वाले हैं। उनके पिता जी (सरदार मोलन सिंह) को खेतीबाड़ी का व्यवसाय विरासत में मिला और उन्हें देखते हुए अमरीक सिंह जी भी खेतीबाड़ी में रूचि दिखाने लगे। उनके पास कुल 14 एकड ज़मीन है, जिस पर वे पारंपरिक खेती करते हैं।

जैसे कि बचपन से ही उनकी रूचि खेती में ज्यादा थी, इसलिए सन 2000 में उन्होंने दसवीं पास की और पढ़ाई छोड़ दी और खेती में अपने पिता का साथ देने का फैसला किया। साथ की साथ वे अपने खाली समय का उचित तरीके से लाभ उठाने के लिए अपने दोस्त की मोबाइल रिपेयर वाली दुकान पर काम करने लगे। पर कुछ समय बाद उन्हें एहसास हुआ कि बारहवीं तक की पढ़ाई जरूरी है, क्योंकि यह एक प्राथमिक शिक्षा है, जो सभी को अपनी ज़िंदगी में हासिल करनी चाहिए और यह इंसान का आत्म विश्वास भी बढ़ाती है। इसलिए उन्होंने प्राइवेट बारहवीं पास की।

वे बचपन से ही हर काम को करने के लिए अलग, आसान और कुशल तरीका ढूंढ लेते थे, जिस कारण उन्हें गांव में जुगाड़ी कह कर बुलाया जाता था। इसी कला को उन्होंने बड़े होकर भी प्रयोग किया और अपने दोस्त के साथ मिल कर किसानों के लिए बहुत सारे लाभदायक उपकरण बनाये।

यह उपकरण बनाने का सिलसिला उस समय शुरू हुआ, जब एक दिन वे अपने दोस्त के साथ मोबाइल रिपेयर वाली दुकान पर बैठे थे और उनके दिमाग में मोटरसाइकल चोरी होने से बचाने के लिए कोई उपकरण बनाने का विचार आया। कुछ ही दिनों में उन्होंने जुगाड़ लगा कर एक उपकरण तैयार किया जो नकली चाबी या ताला तोड़ कर मोटरसाइकल चलाने पर मोटरसाइकल को चलने नहीं देता और साथ की साथ फोन पर कॉल भी करता है। इस उपकरण में सफल होने के कारण उनकी हिम्मत और भी बढ़ गई।

इसी सिलसिले को उन्होंने आगे भी जारी रखा। उन्हें आस पास से ट्रांसफार्म चोरी होने की खबरें सुनने को मिली, तो अचानक उनके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों ना मोटरसाइकिल की तरह ट्रांसफार्म को भी चोरी होने से बचाने के लिए कोई उपकरण बनाया जाये आखिर इस उपकरण के जुगाड़ में भी वे सफल हुए, जिससे किसानों को बड़ी राहत मिली।

उनके इलाके में खेतों के लिए मोटरों की बिजली बहुत कम आती है और कई बार तो बिजली के आने का पता भी नहीं लगता। इस समस्या को समझते हुए उन्होंने फिर से अपने जुगाड़ी दिमाग का प्रयोग किया और एक उपकरण तैयार किया, जो बिजली आने पर फोन पर कॉल करता है।

उनके द्वारा तैयार किए उपकरणों को किसान बहुत पसंद कर रहे हैं और इन उपकरणों का मुल्य आम लोगों की पहुंच में होने के कारण बहुत सारे लोग इसे खरीद कर प्रयोग कर रहे हैं।

उनका कहना है कि वे कोई उपकरण बनाने से पहले कोई योजना नहीं बनाते, बल्कि आवश्यकतानुसार उपकरण की जरूरत होती है, उस पर वे काम करते हैं और भविष्य में भी वे लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे उपकरण बनाते रहेंगे।

कौशल सिंह

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जानें कैसे इस युवा छात्र ने खेती के क्षेत्र में अन्य नौजवानों के लिए लक्ष्य स्थापित किए

गुरदासपुर का यह युवा छात्र दूसरे छात्रों से विपरीत नहीं है वह अकेला नहीं है जिसने खेती का चयन किया क्योंकि उसके पिता खेती करते थे और उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था। लेकिन कौशल ने खेतीबाड़ी को चुना, क्योंकि वह अपनी पढ़ाई के साथ खेतीबाड़ी में कुछ नया सीखना चाहता था।

मिलिए कौशल सिंह – एक आकांक्षी छात्र से, जिसने 22 वर्ष की उज्जवल युवा उम्र में अपना एग्री बिज़नेस स्थापित किया। जी, सिर्फ 22 की उम्र में। इस विकसित होने वाली उम्र में जहां ज्यादातर युवा अपने करियर विकल्प को लेकर दुविधा में रहते हैं, वहीं कौशल सिंह ने अपने उत्पादों को ब्रांड नाम बनाया और बाज़ार में उत्पादों की मार्किटिंग भी शुरू की।

कौशल ज़मीदारों के परिवार से हैं और वे अन्य किसानों को अपनी ज़मीन किराये पर देते हैं। इससे पहले इन पर उनके पूर्वज खेती करते थे। लेकिन वर्तमान पीढ़ी खेती से दूर जाना पसंद करती है पर कौन जानता था कि परिवार की सबसे छोटी पीढ़ी अपनी यात्रा खेती के साथ शुरू करेगी।

“CANE FARMS” तक कौशल सिंह की यात्रा स्पष्ट और आसान नहीं थी। पंजाब के अन्य युवाओं की तरह कौशल सिंह अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने बड़े भाई के पास विदेश जाने की योजना बना रहे थे। यहां तक कि उनका ऑस्ट्रेलिया का वीज़ा भी तैयार था। लेकिन अंत में उनके पूरे परिवार को एक बहुत ही दुखी खबर से धक्का लगा। कौशल सिंह की मां को कैंसर था जिसके कारण कौशल सिंह ने अपने विदेश जाने की योजना रद्द कर दी थी।

यद्पि कौशल की मां कैंसर का मुकाबला नहीं कर सकीं। लेकिन फिर कौशल ने भारत में रहकर अपने गांव में ही कुछ नया करने का फैसला किया। सभी मुश्किल समय में कौशल ने अपनी उम्मीद नहीं खोयी और पढ़ाई से जुड़े रहे। उन्होंने B.Sc. एग्रीकल्चर में दाखिला लिया और सोचा –

“मैंने सोचा कि हमारे पास पर्याप्त पैसा है और यहां पंजाब में 12 एकड़ ज़मीन है तो क्यों ना इसका उचित प्रयोग किया जाये।”

इसलिए उन्होनें किरायेदारों से अपनी ज़मीन वापिस ली और जैविक तरीके से गन्ने की खेती शुरू की। 2015 में उन्होंने गन्ने से गुड़ और शक्कर का उत्पादन किया। हालांकि शुरू में उन्हें मार्किटिंग का कोई ज्ञान नहीं था इसलिए उन्होंने बिना पैकिंग और ब्रांडिंग के इसे खुला ही बेचना शुरू किया लेकिन कौशल को उनके उद्यम में बहुत बड़ा नुकसान हुआ।

लेकिन कहते हैं ना कि उड़ने वाले को कोई नहीं रोक सकता। इसलिए कौशल ने अपने दोस्त हरिंदर सिंह से पार्टनरशिप करने का फैसला किया। उसके साथ कौशल ने अपने 10 एकड़ की भूमि और हरिंदर की 20 एकड़ की भूमि पर गन्ने की खेती की। इस बार कौशल बहुत सतर्क था और उसने डॉ रमनदीप सिंह- पंजाब एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी में माहिर, से सलाह ली।

डॉ रमनदीप सिंह ने कौशल को प्रेरित किया और कौशल से कहा कि वह अपने उत्पादों को मार्किट में बेचने से पहले उनकी पैकिंग करें और उन्हें ब्रांड नाम दे। कौशल ने ऐसा ही किया। उसने अपने उत्पादों को गांव के नज़दीक की मार्किट में बेचना शुरू किया। उसने सफलता और असफलता दोनों का सामना किया । कुछ दुकानदार बहुत प्रसन्नता से उसके उत्पादों को स्वीकार कर लेते थे लेकिन कुछ नहीं। लेकिन धीरे धीरे कौशल ने अपने पांव मार्किट में जमा लिए और उसने अच्छे परिणाम पाने शुरू किए। कौशल ने पंजीकृत करने से पहले SWEET GOLD ब्रांड नाम दिया लेकिन बाद में उसने इसे बदलकर CANE FARMS कर दिया क्योंकि इस नाम की उपलब्धता नहीं थी।

आज कौशल और उसके दोस्त ने फार्मिंग से लेकर मार्किटिंग तक का सब काम स्वंय संभाला हुआ है और वे पूरे पंजाब में अपने उत्पादों को बेच रहे हैं। उन्होंने अपने ब्रांड का लोगो (logo) भी डिज़ाइन किया है। पहले वे मार्किट से बक्से और स्टिकर खरीदते थे लेकिन अब कौशल ने अपने स्तर पर सब चीज़ें करनी शुरू की हैं।

भविष्य की योजना
भविष्य में हम उत्पाद बेचने के लिए अपने उद्यम में हर जैविक किसान को जोड़ने की योजना बना रहे हैं। ताकि अन्य किसान जो हमारे ब्रांड के बारे में अनजान हैं वे आधुनिक एग्रीबिज़नेस के रूझान के बारे में जानें और इससे लाभ ले सकें।

कौशल के लिए यह सिर्फ शुरूआत है और भविष्य में वह एग्रीकल्चर से अधिक लाभ लेने के लिए और उज्जवल विचारों के साथ आएंगे।

किसानों को संदेश :
यह संदेश उन किसानों के लिए है जो 18-20 वर्ष की आयु में सोचते हैं कि खेती एक सब कुछ खो देने वाला व्यापार है। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि खेती क्या है क्योंकि यदि वे हमारी तरह कुछ नया करने का सोचना शुरू कर देंगे तो वे हमारे साथ एकजुट होकर काम कर सकते हैं।

श्री कट्टा रामकृष्ण

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जानिये कैसे कट्टा रामकृष्ण ने उच्च घनत्व में रोपाई की तकनीक से कपास की खेती को और दिलचस्प बनाया

कट्टा रामकृष्ण आंध्र प्रदेश राज्य के प्रकाशम जिले में नागुलूप्पलडु के नज़दीक ओबन्न पलेम गांव के एक प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों के सुझाव अनुसार अपने कपास के खेत में उच्च घनत्व रोपाई तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया जिसके परिणामस्वरूप बेहतर उत्पादकता के साथ उच्च पैदावार प्राप्त की।

कट्टा रामकृष्ण की एक छोटे से क्षेत्र में अधिक पौधों को लगाने के लिए इस अभिनव पहल ने अंतत: उपज में वृद्धि की। इस कदम से उन्होंने 10 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन किया जिसने उन्हें भारतीय कृषि परिषद से राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करवाई और उन्हें 2013 में “बाबू जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

बाद में, जिला कृषि सलाहकार और ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलोजी सेंटर के मार्गदर्शन से, कट्टा रामकृष्ण ने एक एकड़ में 12500 पौधे लगाए और इसे अपने 5 एकड़ प्लॉट में लागू किया और एक एकड़ से 22 क्विंटल उपज प्राप्त की।

“मेरे द्वारा निवेश की गई हर राशि के लिए, मुझे बदले में लाभ के बराबर राशि मिली”

— कट्टा रामकृष्ण ने गर्व से अपना पुरस्कार दिखाकर कहा जो उन्हें नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन से प्राप्त किया।

“सामान्यत: एक किसान एक एकड़ में 8000 कपास के पौधे लगाता है और 10 से 15 क्विंटल उपज प्राप्त करता है लेकिन वे नहीं जानते कि पौधे की घनता में वृद्धि कपास की उपज में वृद्धि कर सकती है”

— डी ओ टी सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक वरप्रसाद राव ने कहा।

सफेद सोने की अच्छी उत्पादकता से उत्साहित होकर कट्टा रामकृष्ण ने कहा कि

– “आने वाले समय में मैं 16000 पौधे प्रति एकड़ में लगाकर 25 से 20 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकता हूं।”

उपलब्धियां

• उन्हें विभिन्न राज्यों और राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है।

• श्री रामकृष्ण ने कपास की सघन रोपाई अपनाई जिसमें 90 सैं.मी. x 30 सैं.मी. का फासला रखा (90 सैं.मी. x 45 सैं.मी. के स्थान पर), जिसके फलस्वरूप बारानी परिस्थितियों में अच्छी उपज (45.10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर) प्राप्त हुई है।

• कपास के खेत में अधिकतम जल संरक्षण के लिए हाइड्रोजैल तकनीक कोअपनाया, जिसके फलस्वरूप उपज में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

• उन्होंने अपने खेतों में चना, उड़द, मूंग के प्रक्षेत्र परीक्षण लगाए, जिसके परिणामस्वरूप प्रकाशम जिले में किसानों के खेतों के लिए उपयुक्त प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिली।

• चने की फसल में जैविक खादों जैसे राइजोबियम और फॉस्फोबैक्टीरिया का प्रयोग किया जिससे उपज में बढ़ोत्तरी हुई।

• वे खेती के लिए जैविक खादों और हरी खाद को पहल देते हैं।

• कीटों की नियंत्रण के लिए वे नीम के बीजों का प्रयोग करते हैं।

• उन्होंने सी.टी.आर.आई कंडुकर प्रकाशम जिले के सहयोग से तंबाकू के व्यर्थ पदार्थ को अपने खेतों में खाद के रूप में प्रयोग करके नई तकनीक विकसित की।

• उन्होंने सीड कम फर्टिलाइजर को मॉडीफाई किया, ताकि बीज और खाद को मिट्टी की विभिन्न गहराई पर एक समय में बोया जा सके। यह मॉडीफाइड सीड कम फर्टीलाइज़र ड्रिल स्थानीय किसानों के लिए सभी प्रकार की दालों की बिजाई के लिए उपयुक्त है।

• उनके द्वारा तैयार की गई आविष्कारी तकनीकें और संशोधित पैकेज प्रैक्टिसिज़ स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित हैं। इसके अलावा, उनके फार्म पर होने वाले अनुभवों की अलग अलग रेडियो और सार्वजनिक मीटिंगों में चर्चा की जाती है।

• वे अपने क्षेत्र में दूसरे किसानों के लिए आदर्श मॉडल और प्रेरणा बन गए हैं।

संदेश
“फसल के बेहतर विकास के लिए किसानों को मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन करने के लिए विशेषज्ञों से अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए और इसी तरीके से वे कम रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके कीट प्रबंधन के सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।”

 

हरिमन शर्मा

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एक किसान की कहानी जिसने अपना कर्म करते हुए, अपनी मेहनत से सफलता का स्वाद चखा

ऐसा कहा जाता है कि मानव इच्छा शक्ति के आगे कोई भी चीज़ टिकी नहीं रह सकती। ऐसी ही इच्छा और शक्ति के साथ एक ऐसे व्यक्ति आये जिन्होंने अपने निरंतर प्रयास के साथ उस ज़मीन पर सेब की एक नई किस्म का विकास किया, जहां पर यह लगभग असंभव था।

श्री हरिमन शर्मा एक सफल किसान हैं जिनके पास  सेब, आम, आडू, कॉफी, लीची और अनार के बगीचे हैं। एक उष्णकटिबंधीय स्थान (गांव पनीला कोठी, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश), जहां तापमान 45 डिग्री तक बढ़ जाता है और भूमि में 80 %चट्टानें हैं और 20% मिट्टी है। यहां पर सेब उगाना लगभग असंभव था लेकिन हरिमन शार्मा की लगातार कोशिशों ने इसे संभव किया।

इससे पहले हरिमन शर्मा एक किसान नहीं थे और जो सफलता उन्होंने आज हासिल की है उसके लिए उन्हें अपने जीवन में कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 1971 से 1982 तक वे मजदूर थे, 1983 से 1990 तक उन्होंने पत्थर तोड़ने का और सब्जियों की खेती का काम किया। 1991 से 1998 तक उन्होंने सब्जी की खेती के साथ-साथ आम के बाग भी लगाए।

1999 में एक मोड़ ऐसा आया जब उन्होंने अपने आंगन में एक सेब का बीज अंकुरित होते देखा।उन्होंने उस अंकुर को संरक्षित किया और अपने खेती के अनुभव के दौरान प्राप्त ज्ञान से इसका पोषन करना शुरू कर दिया। क्वालिटी को सुधारने के लिए उन्होंने आलूबुखारा के वृक्ष के तने पर सेब के वृक्ष की शाखा की ग्राफ्टिंग कर दी और इसका परिणाम असाधारण था। दो वर्ष बाद सेब के पेड़ ने फल देना शुरू कर दिया। आखिरकार उन्होंने एक अलग प्रकार का सेब विकसित किया, जो कि गर्म जलवायु के साथ बहुत कम पहाड़ियों पर व्यापारिक रूप से उगाया जा सकता है।

धीरे-धीरे समय के साथ हरिमन शर्मा के द्वारा खोजी गई सेब की नई किस्म की बात फैल गई। अधिकांश लोगों ने इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया और कुछ आश्चर्यचकित हुए। लेकिन 7 जुलाई 2008 को हरिमन शर्मा शिमला गए और उन्होंने उनके द्वारा विकसित किए गए सेब की एक टोकरी की पेशकश की, जो हिमाचल के मुख्यमंत्री के लिए थी। मुख्यमंत्री ने तुरंत अपने मंत्रीमंडल के सहयोगियों को इकट्ठा किया और उन सभी ने उन सेबों को चखा और जल्द ही मुख्यमंत्री ने इस सेब को हरिमन नाम दिया। बागबानी विश्वविद्यालय और विभाग के कई विशेषज्ञ विशेष रूप से उनके बगीचे में गए और वास्तव में आश्चर्यचकित और उनके काम से आश्वस्त हुए।

उन्होंने एक ही किस्म के सेब के 8 वृक्ष विकसित किए हैं जो कि बाग में आम के वृक्ष के साथ बढ़ रहे हैं और अब तक अच्छी उपज दे रहे हैं। हरिमन शर्मा द्वारा विकसित की गई किस्म का नाम उन्हीं के नाम पर HRMN-99  है। उन्होंने देश भर में किसानों, माली, उद्यमियों और सरकारी संगठनों को 3 लाख से अधिक पौधों को विकसित और वितरित किया है और HRMN-99  किस्म के 55 सेब के पौधे राष्ट्रपति भवन में लगाए हैं। उन्होंने आम, लीची, अनार, कॉफी और आड़ू फलों के बाग भी बनाए हैं।

हरिमन शर्मा द्वारा विकसित सेब की किस्म को कम  तापमान की जरूरत होती है और उप उष्णकटिबंधीय मैदानों में फूलों और फलों का उत्पादन होता है। उनकी उपलब्धि बागबानी के क्षेत्र में बहुत महत्तव रखती है, आज समाज में हरिमन शर्मा का योगदान केवल महान ही नहीं बल्कि दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी है।

आज हरिमन एप्पल को भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में उगाया और पोषित किया जाता है। उनकी कड़ी मेहनत ने साबित कर दिया है कि गर्म जलवायु के साथ बहुत कम पहाड़ियों पर सेब को व्यापारिक तौर पर उगाया जा सकता है।  श्री शर्मा अपनी बेहतर तकनीकों को अपने किसान साथियों के साथ शेयर कर रहे हैं और फैला रहे हैं।

कृषि के क्षेत्र में हरिमन शर्मा को उनके काम के लिए कई पुरस्कार और प्रशंसा मिली है उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

• भारतीय कृशि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली में प्रगतिशील किसान के रूप में सम्मानित किया गया।

• राष्ट्रपति भवन में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के प्रोग्राम में अपनी नई खोज के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त किया।

• 2010 के सर्वश्रेष्ठ हिमाचली किसान शीर्षक से सम्मानित।

• 15 अगस्त 2009 में प्रेरणा स्त्रोत सम्मान पुरस्कार।

• 15 अगस्त 2008 में राज्य स्तरीय सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार।

• ऊना (2011 में) सेब का सफलतापूर्वक उत्पादन पुरस्कार।

• 19 जनवरी 2017 को कृषि पंडित पुरस्कार।

• इफको की जयंति के शुभ अवसर पर 29.4.2017 को उत्कृष्ट कृषक पुरस्कार।

• पूसा भवन दिल्ली केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री द्वारा 17.3.2-10 में IARI Fellow Award

• 21 मार्च 2016 में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री भारत सरकार – राधा मोहन सिंह द्वारा राष्ट्रीय नवोन्मेषी कृषक सम्मान।

• सेब उत्पादन के लिए 3 फरवरी 2016 को हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल द्वारा।

• नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित, 4 मार्च 2017 को राष्ट्रीय द्वितीय अवार्ड।

• 9 मार्च 2017 को राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ वैटर्नरी एंड एनीमल साइंसिज़ बीकानेर द्वारा फार्मर साइंटिस्ट अवार्ड।

हरिमन शर्मा द्वारा दिया गया संदेश
कर्म मनुष्य का अधिकार है फल को प्राप्त करने के लिए कर्म नहीं किया जाता। एक खेत में किसान का काम बीज बोना है, लेकिन अनाज का बढ़ना किसान के हाथों में नहीं है। किसान को अपना काम कभी भी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए और उसे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। मैंने उस सेब के अंकुर को विकसित करने और उसके साथ कुछ नया करने की कोशिश की। यही कारण है कि मैं यहां हूं और यही कारण है कि सेब की किस्म का नाम मेरे नाम पर है। हर किसान को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए और कर्म करते रहना चाहिए।

स. राजमोहन सिंह कालेका

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एक व्यक्ति की कहानी जिसे पंजाब में विष रहित फसल उगाने के लिए जाना जाता है

एक कृषक परिवार में जन्मे, सरदार राजमोहन सिंह कालेका गांव बिशनपुर, पटियाला के एक सफल प्रगतिशील किसान हैं। किसी भी तरह के रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग किए बिना वे 20 एकड़ की भूमि पर गेहूं और धान का उत्पादन करते हैं और इससे अच्छी उत्पादकता (35 क्विंटल धान और गेहूं 22 क्विंटल प्रति एकड़) प्राप्त कर रहे हैं।

वे पराली जलाने के विरूद्ध हैं और कभी भी फसल के बचे कुचे (पराली) को नहीं जलाते। उनके विष रहित खेती और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों के ढंग ने उन्हें पंजाब के अन्य किसानों के रॉल मॉडल के रूप में मान्यता दी है।

इसके अलावा वे जिला पटियाला की प्रोडक्शन कमेटी के सदस्य भी हैं। वे हमेशा प्रगतिशील किसानों, वैज्ञानिकों, अधिकारियों और कृषि के माहिरों से जुड़े रहते हैं यह एक बड़ी प्राप्ति है जो उन्होंने हासिल की है। कई कृषि वैज्ञानिक और अधिकारी अक्सर उनके फार्म में रिसर्च और अन्वेषण के लिए आते हैं।

अपनी नौकरी और कृषि के साथ वे सक्रिय रूप से डेयरी फार्मिंग में भी शामिल है, उन्होंने साहिवाल नसल की कुछ गायों को रखा है इसके अलावा उन्होंने अपने खेत में बायो गैस प्लांट भी स्थापित किया है उनके अनुसार वे आज जहां तक पहुंचे हैं, उसके पीछे का कारण सिर्फ KVK और IARI के कृषि माहिरों द्वारा दिए गए परामर्श हैं।

अपने अतिरिक्त समय में, राजमोहन सिंह को कृषि से संबंधित किताबे पढ़ना पसंद है क्योंकि इससे उन्हें कुदरती खेती करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।

उनके पुरस्कार और उपलब्धियां…

उनके अच्छे काम और विष रहित खेतीबाड़ी करने की पहल के लिए उन्हें कई प्रसिद्ध लोगों से सम्मान और पुरस्कार मिले हैं:

• राज्य स्तरीय पुरस्कार

• राष्ट्रीय पुरस्कार

• पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना से धालीवाल पुरस्कार

• उन्हें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा सम्मानित किया गया।

• उन्हें पंजाब और हरियाणा के राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया।

• उन्हें कृषि मंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।

श्री राजमोहन ने ना सिर्फ पुरस्कार प्राप्त किए, बल्कि विभिन्न सरकारी अधिकारियों से विशेष रूप से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त किए हैं जो उन्हें गर्व महसूस करवाते हैं।

• मुख्य संसदीय सचिव, कृषि, पंजाब

• कृषि पंजाब के निदेशक

• डिप्टी कमिशनर पटियाला

• मुख्य कृषि अधिकारी, पटियाला

• मुख्य निदेशक, IARI

संदेश
“किसानों को विष रहित खेती करने की ओर कदम उठाने चाहिए क्योंकि यह बेहतर जीवन बनाए रखने का एकमात्र तरीका है। आज, किसान को वर्तमान ज़रूरतों को समझना चाहिए और अपनी मौद्रिक जरूरतों को पूरा करने की बजाये कृषि करने के सार्थक और टिकाऊ तरीके ढूंढने चाहिए।”

 

सरदार भरपूर सिंह

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भरपूर सिंह ने कृषि से लाभ कमाने के लिए फूलों की खेती का चयन किया

कृषि एक विविध क्षेत्र है और किसान कम भूमि में भी इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं, उन्हें सिर्फ खेती के आधुनिक ढंग और इसे करने के सही तरीकों से अवगत होने की अवश्यकता है। यह पटियाला के खेड़ी मल्लां गांव के एक साधारण किसान भरपूर सिंह की कहानी है, जो हमेशा गेहूं और धान की खेती से कुछ अलग करना चाहते थे।

भरपूर सिंह ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता सरदार रणजीत सिंह की खेती में मदद करने का फैसला किया, लेकिन बाकी किसानों की तरह वे गेहूं धान के चक्कर से संतुष्ट नहीं थे। हालांकि उन्होंने खेतों में अपने पिता की मदद की, लेकिन उनका दिमाग और आत्मा कुछ अलग करना चाहते थे।

1999 में, उन्होंने अपने परिवार के साथ गुरुद्वारा राड़ा साहिब का दौरा किया और गुलदाउदी के फूलों के कुछ बीज खरीदे और यही वह समय था जब उन्होंने फूलों की खेती के क्षेत्र में प्रवेश किया। शुरुआत में, उन्होंने जमीन के एक छोटे टुकड़े पर गुलदाउदी उगाना शुरू किया और समय के साथ उन्होंने पाया कि उनका उद्यम लाभदायक है इसलिए उन्होंने फूलों के खेती के क्षेत्र का विस्तार करने का फैसला किया।

समय के साथ, जैसे ही उनके बेटे बड़े हुए, तो वे अपने पिता के व्यवसाय में रुचि लेने लगे। अब भरपूर सिंह के दोनों पुत्र फूलों की खेती के व्यवसाय में समान रूप से व्यस्त रहते हैं।

फूलों की खेती
वर्तमान में, उन्होंने अपने खेत में चार प्रकार के फूल उगाए हैं – गुलदाउदी, गेंदा, जाफरी और ग्लैडियोलस। वे अपनी भूमि पर सभी आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते हैं। वे 10 एकड़ में फूलों की खेती करते हैं। और कभी-कभी वे अन्य फसलों की खेती के लिए ज़मीन किराए पर भी ले लेते हैं।

बीज की तैयारी
खेती के अलावा उन्होंने जाफरी और गुलदाउदी के फूलों के बीज स्वंय तैयार करने शुरू किये, और वे हॉलैंड से ग्लैडियोलस और कोलकाता से गेंदे के बीज सीधे आयात करते हैं। बीज की तैयारी उन्हें एक अच्छा लाभ बनाने में मदद करती है, कभी-कभी वे फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बीज भी प्रदान करते हैं।

बागवानी में निवेश और लाभ
एक एकड़ में ग्लेडियोलस की खेती के लिए उन्होंने 2 लाख रूपये का निवेश किया है और बदले में उन्हें एक एकड़ ग्लैडियोलस से 4-5 लाख रुपये मिल जाते हैं, जिसका अर्थ लगभग 50% लाभ या उससे अधिक है।

मंडीकरण
वे मंडीकरण के लिए तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं हैं। वे पटियाला, नभा, समाना, संगरूर, बठिंडा और लुधियाना मंडी में अपनी उपज का मंडीकरण करते हैं। उनका ब्रांड नाम निर्माण फ्लावर फार्म है। कृषि से संबंधित कई कैंप बागवानी विभाग द्वारा उनके फार्म में आयोजित किए जाते हैं जिसमें कई प्रगतिशील किसान भाग लेते हैं और नियमित किसानों को फूलों की खेती के बारे में ट्रेनिंग प्रदान की जाती है।

सरदार भरपूर सिंह डॉ.संदीप सिंह गरेवाल (बागवानी विभाग, पटियाला), डॉ कुलविंदर सिंह और डॉ.रणजीत सिंह (पी.ए.यू) को अपने सफल कृषि उद्यम का अधिकांश श्रेय देते हैं क्योंकि वे उनकी मदद और सलाह के बिना अपने जीवन में इस मुकाम तक न पहुँचते।

उन्होंने किसानों को एक संदेश दिया कि उन्हें अन्य किसानों के साथ मुकाबला करने के लिए कृषि का चयन नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें खुद के लिए और पूर्ण रुचि के साथ कृषि का चयन करना चाहिए, तभी वे मुनाफा कमाने में सक्षम होंगे।

एक छोटे से स्तर से शुरू करना और जीवन में सफलता को हासिल करना, भरपूर सिंह ने किसानों के लिए एक आदर्श मॉडल के रूप में एक उदाहरण स्थापित की है जो फूलों की खेती को अपनाने की सोच रहे हैं।

संदेश
“मेरा किसानों को यह संदेश है कि उन्हें विविधीकरण के लाभों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। गेहूं और धान की खेती के दुष्चक्र से किसान बहुत सारे कर्जों में फंस गए हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है और किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक रसायनों का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। विविधीकरण ही एकमात्र तरीका है जिसके द्वारा किसान सफलता प्राप्त कर सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठा सकते हैं। इसके अलावा, किसानों को अन्य किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए कृषि का चयन नहीं करना चाहिए, बल्कि खुद के लिए और पूरी दिलचस्पी से कृषि का चयन करना चाहिए तभी वे अपनी इच्छा अनुसार मुनाफा कमाने के सक्षम होंगे।”

मोहिंदर सिंह गरेवाल

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एक ऐसे इंसान की कहानी जिसने कृषि विज्ञान में महारत हासिल की और खेती विभिन्नता के क्षेत्र में अपने कौशल दिखाए

हर कोई सोच सकता है और सपने देख सकता है, पर ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो अपनी सोच पर खड़े रहते हैं और पूरी लग्न के साथ उसे पूरा करते हैं। ऐसे ही दृढ़ संकल्प वाले एक जल सेना के फौजी ने अपना पेशा बदलकर खेतीबाड़ी की तरफ आने का फैसला किया। उस इंसान के दिमाग में बहु उदेशी खेती का ख्याल आया और अपनी मेहनत और जोश से आज विश्व भर में वह किसान पूरे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है।

मोहिंदर सिंह गरेवाल पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पहले सलाहकार किसान के तौर पर चुने गए, जिनके पास 42 अलग अलग तरह की फसलें उगाने का 53 वर्ष का तर्ज़ुबा है। उन्होंने इज़रायल जैसे देशों से हाइब्रिड बीज उत्पादन और खेती की आधुनिक तकनीकों की सिखलाई हासिल की। अब तक वे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में अपने काम के लिए 5 अंतरराष्ट्रीय, 7 राष्ट्रीय और 16 राज्य स्तरीय पुरस्कार जीत चुके हैं।

स. गरेवाल जी का जन्म 1 दिसंबर 1937 में लायलपुर, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ। उनके पिता का नाम अर्जन सिंह और माता का नाम जागीर कौर है। यदि हम मोहिंदर सिंह गरेवाल की पूरी ज़िंदगी देखें तो उनकी पूरी ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी और उन्होंने हर संघर्ष और मुश्किल को चुनौती के रूप में समझा। पूरी लग्न और मेहनत से उन्होंने अपने और अपने परिवार के सपने पूरे किये।

अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में, मोहिंदर सिंह गरेवाल बड़े उत्साह से फुटबॉल खेलते थे और बहुत सारे स्कूलों की टीमों के कप्तान भी रहे। वे एक अच्छे एथलीट भी थे, जिस कारण उन्हें भारतीय जल सेना में पक्के तौर पर नौकरी मिल गई। 1962 में INS नाम के समुंद्री जहाज पर मोहिंदर सिंह गरेवाल काले पानी अंडेमान निकोबार द्वीप समूह, मलेशिया, सिंगापुर और इंडोनेशिया की यात्रा की। इंडोनेशिया में मैच खेलते समय उनके दायीं जांघ पर गंभीर चोट लगी। इस चोट और परिवार के दबाव के कारण उन्होंने 1963 में भारतीय जल सेना की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद कुछ देर के लिए उनकी ज़िंदगी में ठहराव आ गया।

नौकरी छोड़ने के बाद उनके पास अपने विरासती व्यवसाय खेतीबाड़ी के अलावा कोई ओर अन्य विकल्प नहीं था। उन्होंने शुरूआती 4 वर्षों में गेहूं और मक्की की खेती की। मोहिंदर सिंह जी ने अपनी पत्नी जसबीर कौर के साथ मिलकर खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए एक ठोस योजना बनाई और आज वे अपनी खेती क्रियाओं के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध इंसान हैं। हालांकि उनके पास 12 एकड़ का एक छोटा सा खेत है, पर फसल चक्र के प्रयोग से वे इससे अधिक लाभ ले रहे हैं। मोहिंदर सिंह गरेवाल जी अपने खेतों में लगभग 42 तरह की फसलें उगाने में सक्षम हैं और अच्छी क्वालिटी की पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। उनके कौशल अकेले पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में जाने जाते हैं।

बहुत सारी जानी पहचानी कमेटियों और कौंसल के साथ काम करके मोहिंदर सिंह गरेवाल जी के काम को और अधिक प्रसिद्धि मिली। राज्य स्तर पर उन्हें गवर्निंग बोर्ड के मैंबर, पंजाब राज्य बीज सर्टीफिकेशन अथॉरिटी, पी ए यू पब्लीकेशन कमेटी और पी ए यू फार्मज़ एडवाइज़री कमेटी के तौर पर काम किया। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कमिश्न फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड पराइसिस के मैंबर, भारत सरकार, सीड एक्ट सब-कमेटी के मैंबर, भारत सरकार एडवाइज़री कमेटी के मैंबर, प्रसार भारतीय, जालंधर, पंजाब और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शूगरकेन रिसर्च लखनउ के मैंबर के तौर पर काम किया।

इस समय वे एग्रीकल्चर और हॉर्टीकल्चर कमेटी, पी ए यू, गवर्निंग बोर्ड, एग्रीकल्चर टैक्नोलोजी मैनेजमैंट एजंसी के मैंबर हैं। वे पंजाब फार्मरज़ कल्ब, पी ए यू के संस्थापक और चार्टर प्रधान भी हैं।

खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए उन्हें इंगलैंड, मैक्सिको, इथियोपिया और थाइलैंड जैसे देशों के द्वारा सम्मानित किया गया और वे अलग अलग स्तर पर 75 से ज्यादा पुरस्कार जीत चुके हैं। उन्हें 1996 में ऑटोबायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट, यू एस ए की तरफ से मैन ऑफ द ईयर पुरस्कार के साथ और 15 अगस्त 1999 को श्री गुरू गोबिंद सिंह स्टेडियम, जालंधर में माननीय गवर्नर एस एस राय द्वारा गोल्ड मैडल और लोई से सम्मानित किया। उन्हें पश्चिमी पंजाब के लोगों को खेती में से ज्यादा लाभ लेने और पाकिस्तान में एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को फसली विभिन्नता के बारे में सिखाने के लिए फार्मरज़ इंस्टीट्यूट, पाकिस्तान की तरफ से दो बार निमंत्रण भेजा गया। उनकी ज्यादा ज़िंदगी यात्रा में ही गुज़री और वे बहुत सारे देशों जैसे कि यू एस ए, कैनेडा, मैक्सिको, थाइलैंड, इंगलैंड और पाकिस्तान में वैज्ञानिक किसान और प्रतीनिधि मैंबर के तौर पर गये और जब भी वे गये उन्होंने स्थानीय किसानों को टैक्नीकल जानकारी दी।

स. मोहिंदर सिंह गरेवाल एक बढ़िया लेखक भी हैं और उन्होंने खेतीबाड़ी की सफलता की कुंजी, तेरे बगैर ज़िंदगी कविताएं, रंग ज़िंदगी के स्वै जीवनी, ज़िंदगी एक दरिया और सक्सेसफुल साइंटिफिक फार्मिंग आदि शीर्षक के अधीन पांच किताबें लिखीं। उनके लेखन विदेशी अखबारों, नैशनल डेली, राज्य स्तरीय अखबार, खेतीबाड़ी मैगनीज़ और रोटरी मैगनीज़ आदि में छप चुकी हैं। उन्होंने मुफ्त आंखों का चैकअप कैंप, रोड सेफ्टी, खून दान कैंप, वृक्ष लगाओ, फील्ड डेज़ और मिट्टी टैस्ट जैसे प्रोजैक्टों का हिस्सा बनकर उन्होंने समाज सेवा में भी अपना हिस्सा डाला।

खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मोहिंदर सिंह गरेवाल जी ने बहुत सफलता हासिल की और खेती के लिए ऊंचे मियार बनाये। उनकी प्राप्तियां अन्य किसानों के लिए जानकारी और प्रेरणा का स्त्रोत हैं।

राजवीर सिंह

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करनाल के एक छोटे डेयरी फार्म की सफलता की कहानी जो प्रतिदिन 800 लीटर दूध का उत्पादन करते हैं

यह राजवीर सिंह के डेयरी फार्म की उपलब्धियों और उनकी सफलता की कहानी है। करनाल जिले (हरियाणा) के एक छोटे से गांव से होने के कारण राजवीर सिंह ने कभी सोचा नहीं कि उनकी एच.एफ नस्ल की गाय लक्ष्मी को उच्च दूध उत्पादन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।

राजवीर सिंह की लक्ष्मी गाय होल्स्टीन फ्रिसियन नस्ल की है जिस के दूध उत्पादन की क्षमता प्रति दिन 60 लीटर है जो अन्य एच.एफ नस्ल की गायों की तुलना में अधिक है। लक्ष्मी ने न केवल अपने उच्च दूध उत्पादन क्षमता के लिए पुरस्कार जीते हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर कई पशु मेलों में अपनी सुंदरता के लिए भी पुरस्कार प्राप्त किए हैं। वह पंजाब नेशनल डेयरी फार्मिंग समारोह में एक ब्यूट चैंपियन रही है।

खैर, श्री राजवीर के फार्म पर लक्ष्मी सिर्फ एक उच्च दूध उत्पादक गाय है। उनके फार्म में कुल मिलाकर 75 पशु हैं, जिनसे राजवीर सिंह वार्षिक लगभग 15 लाख का लाभ कमा रहे हैं। उनका पूरा फार्म 1.5 एकड़ भूमि में बनाया गया है और विस्तारित किया गया है, जिस में आप 60 एच.एफ गाय, 10 जर्सी गाय, 5 साहीवाल गाय के अद्भुत दृश्य देख सकते है।

राजवीर सिंह के डेयरी फार्म पर दूध उत्पादन की कुल क्षमता 800 लीटर प्रति दिन की है। जिनमें से वे कुछ दूध बाजार में बेचते हैं और शेष अमूल डेयरी को बेचते हैं । उन्हें 8 साल हो गए है डेयरी फार्मिंग में सक्रिय रूप से शामिल हुए और अपने सभी प्रयासों और विशेषज्ञता के साथ वह अपनी गायों का ख्याल रखने की कोशिश करते है।

कोई भी कीमत राजवीर सिंह और उनकी गायों के बंधन को कमज़ोर नहीं बना सकती…

राजवीर सिंह अपनी गायें और डेयरी काम से बहुत जुड़े हुए है। एक बार उन्होंने बैंगलोर से आए एक बड़े व्यवसायी को 5 लाख रुपये में अपनी गाय लक्ष्मी बेचने से इनकार कर दिया। व्यवसायी ने गाय खरीदने के लिए राजवीर सिंह के फार्म का दौरा किया और लक्ष्मी के बदले में वह कोई भी राशि की देने के लिए तैयार थे, लेकिन लेकिन वे अपने फैसले पर अडिग थे और उन्होने उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।

राजवीर सिंह द्वारा लक्ष्मी को प्रदान की जाने वाली फ़ीड और देखभाल…

लक्ष्मी का जन्म राजवीर सिंह के फार्म में हुआ था, जिसके कारण राजवीर उससे बहुत जुड़े थे। लक्ष्मी आम तौर पर प्रति दिन 50 किलो हरा चारा, 2 किलो सूखा चारा और 14 किलो अनाज खाती है। फार्म में लक्ष्मी और अन्य जानवरों की देखभाल में लगभग 6 कर्मचारी रखे हुए हैं।

संदेश
“गायों की देखभाल एक बच्चे की तरह की जानी चाहिए। गायों को जो प्यार और देखभाल दी जाती है उसके प्रति वे बहुत प्रतिक्रियाशील रहती हैं। डेयरी किसानों को गायों की हर जरूरत का ख्याल रखना चाहिए, फिर ही वे अच्छा दूध उत्पादन प्राप्त कर सकते है।”

 

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”

कांता देष्टा

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एक किसान महिला जिसे यह अहसास हुआ कि किस तरह वह रासायनिक खेती से दूसरों में बीमारी फैला रही है और फिर उसने जैविक खेती का चयन करके एक अच्छा फैसला लिया

यह कहा जाता है, कि यदि हम कुछ भी खा रहे हैं और हमें किसानों का हमेशा धन्यवादी रहना चाहिए, क्योंकि यह सब एक किसान की मेहनत और खून पसीने का नतीजा है, जो वह खेतों में बहाता है, पर यदि वही किसान बीमारियां फैलाने का एक कारण बन जाए तो क्या होगा।

आज के दौर में रासायनिक खेती पैदावार बढ़ाने के लिए एक रूझान बन चुकी है। बुनियादी भोजन की जरूरत को पूरा करने की बजाय खेतीबाड़ी एक व्यापार बन गई है। उत्पादक और भोजन के खप्तकार दोनों ही खेतीबाड़ी के उद्देश्य को भूल गए हैं।

इस स्थिति को, एक मशहूर खेतीबाड़ी विज्ञानी मासानुबो फुकुओका ने अच्छी तरह जाना और लिखते हैं।

“खेती का अंतिम लक्ष्य फसलों को बढ़ाना नहीं है, बल्कि मानवता के लिए खेती और पूर्णता है।”

इस स्थिति से गुज़रते हुए, एक महिला- कांता देष्टा ने इसे अच्छी तरह समझा और जाना कि वह भी रासायनिक खेती कर बीमारियां फैलाने का एक साधन बन चुकी है और उसने जैविक खेती करने का एक फैसला किया।

कांता देष्टा समाला गांव की एक आम किसान थी जो कि सब्जियों और फलों की खेती करके कई बार उसे अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों में बांटती थी। पर एक दिन उसे रासायनिक खादों के प्रयोग से पैदा हुए फसलों के हानिकारक प्रभावों के बारे में पता लगा तो उसे बहुत बुरा महसूस हुआ। उस दिन से उसने फैसला किया कि वह रसायनों का प्रयोग बंद करके जैविक खेती को अपनाएगी।

जैविक खेती के प्रति उसके कदम को और प्रभावशाली बनाने के लिए वह 2004 में मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग द्वारा चलाए जा रहे एक प्रोग्राम में शामिल हो गई। उसने कई तरह के फल, सब्जियां, अनाज और मसाले जैसे कि सेब, नाशपाति, बेर, आड़ू, जापानी खुबानी, कीवी, गिरीदार, मटर, फलियां, बैंगन, गोभी, मूली, काली मिर्च, प्याज, गेहूं, उड़द, मक्की और जौं आदि को उगाना शुरू किया।

जैविक खेती को अपनाने पर उसकी आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और यह बढ़कर वार्षिक 4 से 5 लाख रूपये हुई। केवल यही नहीं, मोरारका फाउंडेशन की मदद से कांता देष्टा ने अपने गांव में महिलाओं का एक ग्रुप बनाया और उन्हें जैविक खेती के बारे में जानकारी प्रदान की, और उन्हें उसी फाउंडेशन के तहत रजिस्टर भी करवाया।

“मैं मानती हूं कि एक ग्रुप में लोगों को ज्ञान प्रदान करना बेहतर है क्योंकि इसकी कीमत कम है और हम एक समय में ज्यादा लोगों को ध्यान दे सकते हैं।”

आज उसका नाम सफल जैविक किसानों की सूची में आता है उसके पास 31 बीघा सिंचित ज़मीन है जिस पर वह खेती कर रही है और लाखों में लाभ कमा रही है। बाद में वह NONI यूनिवर्सिटी , दिल्ली, जयपुर और बैंगलोर में भी गई, ताकि जैविक खेती के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके और हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा उसे उसके प्रयत्नों के लिए दो बार सरकारी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। शिमला में बेस्ट फार्मर अवार्ड के तौर पर सम्मानित किया गया और 13 जून 2013 को उसे जैविक खेती के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रशंसा और सम्मान भी मिला।

एक बड़े स्तर पर इतनी प्रशंसा मिलने के बावजूद यह महिला अपने आप पूरा श्रेय नहीं लेती और यह मानती है कि उनकी सफलता का सारा श्रेय मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग को जाता है। जिसने उसे सही रास्ता दिखाया और नेतृत्व किया।

खेती के अलावा, कांता के पास दो गायें और 3 भैंसें भी हैं और उसके खेतों में 30x8x10 का एक वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट भी है जिस में वह पशुओं के गोबर और खेती के बचे कुचे को खाद के तौर पर प्रयोग करती है। वह भूमि की स्थितियों में सुधार लाने के लिए और खर्चों को कम करने के लिए कीटनाशकों के स्थान पर हर्बल स्प्रे, एप्रेचर वॉश, जीव अमृत और NSDL का प्रयोग करती है।

अब, कांता अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में सब्जियां और फल बांटने के दौरान खुशी महसूस करती है क्योंकि वह जानती है कि जो वह बांट रही है वह नुकसानदायक रसायनों से मुक्त है और इसे खाकर उसके रिश्तेदार और दोस्त सेहतमंद रहेंगे।

कांता देष्टा की तरफ से संदेश –
“यदि हम अपने पर्यावरण को साफ रखना चाहते हैं तो जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है।”

 

गुरदीप सिंह नंबरदार

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मशरूम की खेती में गुरदीप सिंह जी की सफलता की कहानी

गांव गुराली, जिला फिरोजपुर (पंजाब) में स्थित पूरे परिवार की सांझी कोशिश और सहायता से, गुरदीप सिंह नंबरदार ने मशरूम के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। अपने सारे स्त्रोतों और दृढ़ता को एकत्र कर, उन्होंने 2003 में मशरूम की खेती शुरू की थी और अब तक इस सहायक व्यवसाय ने 60 परिवारों को रोज़गार दिया है।

वे इस व्यवसाय को छोटे स्तर पर शुरू करके धीरे धीरे उच्च स्तर की तरफ बढ़ा रहे हैं, आज गुरदीप सिंह जी ने एक सफल मशरूम उत्पादक की पहचान बना ली है और इसके साथ उन्होंने एक बड़ा मशरूम फार्म भी बनाया है। मशरूम के सफल किसान होने के अलावा वे 20 वर्ष तक अपने गांव के सरपंच भी रहे।

उन्होंने इस उद्यम की शुरूआत पी.ए.यू. द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार की और शुरू में उन्हें लगभग 20 क्विंटल तूड़ी का खर्चा आया। आज 2003 के मुकाबले उनका फार्म बहुत बड़ा है और अब उन्हें वार्षिक लगभग 7 हज़ार क्विंटल तूड़ी का खर्चा आता है।

उनके गांव के कई किसान उनकी पहलकदमी से प्रेरित हुए हैं। मशरूम की खेती में उनकी सफलता के लिए उन्हें जिला प्रशासन के सहयोग से खेतीबाड़ी विभाग, फिरोजपुर द्वारा उनके गांव में आयोजित प्रगतिशील किसान मेले में उच्च तकनीक खेती द्वारा मशरूम उत्पादन के लिए जिला स्तरीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

संदेश
“मशरूम की खेती कम निवेश वाला लाभदायक उद्यम है। यदि किसान बढ़िया कमाई करना चाहते हैं तो उन्हें मशरूम की खेती में निवेश करना चाहिए।”

 

बलदेव सिंह बराड़

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बलदेव सिंह बराड़ जो 80 वर्ष के हैं लेकिन उनका दिल और दिमाग 25 वर्षीय युवा का है

वर्ष 1960 का समय था जब अर्जन सिंह के पुत्र बलदेव सिंह बराड़ ने खेतीबाड़ी शुरू की थी और यह वही समय था जब हरी क्रांति अपने चरम समय पर थी। तब से ही खेती के लिए ना तो उनका उत्साह कम हुआ और ना ही उनका जुनून कम हुआ।

गांव सिंघावाला, तहसील मोगा, पंजाब की धरती पर जन्मे और पले बढ़े बलदेव सिंह बराड़ ने कृषि के क्षेत्र में काफी उपलब्धियां हासिल की और खेतीबाड़ी विभाग, फिरोजपुर से कई पुरस्कार जीते।

उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, मोगा पंजाब के कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेते हुए पहल के आधार पर खेती करने का फैसला किया। उनका मुख्य ध्यान विशेष रूप से गेहूं और ग्वार की खेती की तरफ था। और कुछ समय बाद धान को स्थानांतरित करते हुए उनका ध्यान पोपलर और पपीते की खेती की तरफ बढ़ गया। अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए 1985 में 9 एकड़ में किन्नुओं की खेती और 3 एकड़ में अंगूर की खेती करके उनका ध्यान बागबानी की तरफ भी बढ़ा। घरेलु उद्देश्य के लिए उन्होंने अलग से फल और सब्जियां उगायीं। कुल मिलाकर उनके पास 37 एकड़ ज़मीन है जिसमें से 27 एकड़ उनकी अपनी है और 10 एकड़ ज़मीन उन्होंने ठेके पर ली है।

उनकी उपलब्धियां:

बलदेव सिंह बराड़ की दिलचस्पी सिर्फ खेती की तरफ ही नहीं थी परंतु खेतीबाड़ी पद्धति को आसान बनाने के लिए मशीनीकरण की तरफ भी थी। एक बार उन्होंनें मोगा की इंडस्ट्रियल युनिट को कम लागत पर धान की कद्दू करने वाली मशीन विकसित करने के लिए तकनीकी सलाह भी दी और वह मशीन आज बहुत प्रसिद्ध है।

उन्होंने एक शक्तिशाली स्प्रिंग कल्टीवेटर भी विकसित किया जिसमें कटाई के बाद धान के खेतों में सख्त परत को तोड़ने की क्षमता होती है।

वैज्ञानिकों की सलाह मान कर उसे लागू करना उनका अब तक का सबसे अच्छा कार्य रहा है जिसके द्वारा वो अब अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। वे हमेशा अपनी आय और खर्चे का पूरा दस्तावेज रखते हैं। और उन्होंने कभी अपनी जिज्ञासा को खत्म नहीं होने दिया। कृषि के क्षेत्र में होने वाले नए आविष्कार और नई तकनीकों को जानने के लिए वे हमेशा किसान मेलों में जाते हैं। अच्छे परिणामों के लिए वैज्ञानिक खेती की तरफ वे दूसरे किसानों को भी प्रेरित करते हैं।

संदेश
“एक किसान राष्ट्र का निर्माण करता है। इसलिए उसे कठिनाइयों के समय में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और ना ही निराश होना चाहिए। एक किसान को आधुनिक पर्यावरण अनुकूलित तकनीकों को अपनाना चाहिए तभी वह प्रगति कर सकता है और अपनी ज़मीन से अच्छी उपज प्राप्त कर सकता है।”

रत्ती राम

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एक उम्मीद की किरण जिसने रत्ती राम की खेतीबाड़ी को एक लाभदायक उद्यम में बदल दिया

रत्ती राम मध्य प्रदेश के हिनोतिया गांव के एक साधारण सब्जियां उगाने वाले किसान हैं। उन्नत तकनीकों और सरकारी स्कीमों का लाभ लेकर उन्होंने अपना सब्जियों का फार्म स्थापित किया जिससे कि आज वे करोड़ों में लाभ कमा रहे हैं। लेकिन यदि हम पहले की बात करें तो रत्ती राम एक हारे हुए किसान थे जिनके लिए जूते खरीदना भी मुश्किल काम था। आज उनके पास अपनी बाइक है जिसे वे गर्व से अपने गांव में चलाते हैं।

हालांकि रत्ती राम के पास खेती के लिए कम भूमि थी लेकिन जल संसाधनों की कमी ने उनके प्रयासों और भूमि के बीच प्रमुख हस्तक्षेप का काम किया। बारिश के मौसम में जब वे खेती करने की कोशिश करते थे तब अत्याधिक बारिश उनकी फसलों को खराब कर देती थी। ये सभी जलवायु परिस्थितियों और अन्य खमियां उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने का मुख्य कारण थी।

कम आमदन जो उन्हें खेती से प्राप्त होती थी उसे वे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में खर्च कर देते थे और ये स्थितियां कई वित्तीय समस्याओं को जन्म दे रही थीं लेकिन एक दिन रत्ती राम को बागबानी विभाग के बारे में पता चला और वे नंगे पांव अपने गांव हिनोतिया के कलेक्टर राजेश जैन के ऑफिस जिला मुख्यालय (Head Quarter) की तरफ चल दिए। जब कलेक्टर ने रत्ती राम को देखा तो उन्होंने उनके दर्द को महसूस किया और अगला कदम जो उन्होंने उठाया, उसने रत्ती राम की ज़िंदगी को बदल दिया।

कलेक्टर ने रत्ती राम को बागबानी विभाग के अधिकारी के पास भेजा, जहां श्री रत्ती को विभिन्न बागबानी योजनाओं के बारे में पता चला। उन्होंने अमरूद, आंवला, हाइब्रिड टमाटर, भिंडी, आलू, लहसुन, मिर्च आदि के बीज लिए और बागबानी योजनाओं और सब्सिडी की मदद से उन्होंने ड्रिप सिंचाई प्रणाली, स्प्रेयर, बिजली स्प्रे पंप, पावर ड्रिलर की भी स्थापना की। इसके अलावा, कलेक्टर ने उन्हें सब्सिडी दर के तहत एक पैक हाउस लगाने में मदद की।

रत्ती राम ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती शुरू कर दी और एक साल में रत्ती राम ने 1 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया जिससे उन्होंने मैटाडोर वैन, दो बाइक और दो ट्रैक्टर खरीदे। वाहनों में निवेश करने के अलावा उन्होंने अन्य संसाधनों में भी निवेश किया और 3 पानी के कुएं बनवाए, 12 ट्यूबवैल और 4 घर विभिन्न स्थानों पर खरीदे। उन्होंने खेती के लिए 20 एकड़ भूमि खरीदकर अपनी खेती के क्षेत्र का विस्तार किया और किराये पर 100 एकड़ ज़मीन ली। आज वे अपने परिवार के साथ खुशी से रह रहे हैं और कुछ समय पहले उन्होंने अपने दो बेटों और एक बेटी की शादी भी धूमधाम से की।

रत्ती राम भारत में उन सभी किसानों के लिए एक आदर्श हैं जो खुद को असहाय और अकेला महसूस करते हैं और उम्मीदों को खो बैठते हैं, क्योंकि रत्ती राम ने अपने मुश्किल समय में कभी भी अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ा।

सरदार गुरमेल सिंह

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जानिये कैसे गुरमेल सिंह ने अपने आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती में लाभ कमाया

गुरमेल सिंह एक और प्रगतिशील किसान पंजाब के गाँव उच्चागाँव (लुधियाना),के रहने वाले हैं। कम जमीन होने के बावजूद भी वे पिछले 23 सालों से सब्जियों की खेती करके बहुत लाभ कमा रहे हैं। उनके पास 17.5 एकड़ जमीन है जिसमें 11 एकड़ जमीन अपनी है और 6 .5 एकड़ ठेके पर ली हुई है।

आधुनिक खेती तकनीकें ड्रिप सिंचाई, स्प्रे सिंचाई, और लेज़र लेवलर जैसे कई पावर टूल्स उनके पास हैं जो इन्हें कुशल खेती और पानी का संरक्षण करने में सहायता करते हैं। और जब बात कीटनाशक दवाइयों की आती है तो वे बहुत बुद्धिमानी से काम लेते हैं। वे सिर्फ पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की सिफारिश की गई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे अच्छी पैदावार के लिए अपने खेतों में हरी कुदरती खाद का इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी आधुनिक तकनीक जो वह सब्जियों के विकास के लिए 6 एकड़ में हल्की सुरंग का सही उपयोग कर रहे हैं। कुछ फसलों जैसे धान, गेहूं, लौंग, गोभी, तरबूज, टमाटर, बैंगन, खीरा, मटर और करेला आदि की खेती वे विशेष रूप से करते हैं। अपने कृषि के व्यवसाय को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सोया के हाइब्रिड बीज तैयार करने और अन्य सहायक गतिविधियां जैसे कि मधुमक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग आदि की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से हासिल की।

मंडीकरण
उनके अनुभव के विशाल क्षेत्र में ना सिर्फ विभिन्न फसलों को लाभदायक रूप से उगाना शामिल है, बल्कि इसी दौरान उन्होंने अपने मंडीकरण के कौशल को भी बढ़ाया है और आज उनके पास “आत्मा किसान हट (पटियाला)” पर अपना स्वंय का बिक्री आउटलेट है। उनके प्रासेसड किए उत्पादों की गुणवत्ता उनकी बिक्री को दिन प्रति दिन बढ़ा रही है। उन्होंने 2012 में ब्रांड नाम “स्मार्ट” के तहत एक सोया प्लांट भी स्थापित किया है और प्लांट के तहत वे, सोया दूध, पनीर, आटा ओर गिरियों जैसे उत्पादों को तैयार करते और बेचते हैं।

उपलब्धियां
वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और जल्दी ही उन्हें CRI पम्प अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

संदेश:
“यदि वह सेहतमंद ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो किसानों को अपने खेत में कम कीटनाशक और रसायनों का उपयोग करना चाहिए और तभी वे भविष्य में धरती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं।”

 

हरजीत सिंह बराड़

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कई मुश्किलों का सामना करने के बावजूद भी इस नींबू वर्गीय संपदा के मालिक ने सर्वश्रेष्ठ किन्नुओं के उत्पादन में सफल बने रहने के लिए अपना एक नया तरीका खोजा

फसल खराब होना, कीड़े/मकौड़ों का हमला, बारानी भूमि, आर्थिक परिस्थितियां कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो किसानों को कभी-कभी असहाय और अपंग बना देती हैं और यही परिस्थितियां किसानों को आत्महत्या, भुखमरी और निरक्षरता की तरफ ले जाती हैं। लेकिन कुछ किसान इतनी आसानी से अपनी असफलता को स्वीकार नहीं करते और अपनी इच्छा शक्ति और प्रयासों से अपनी परिस्थितियों पर काबू पाते हैं। डेलियांवाली गांव (फरीदकोट) से ऐसे ही एक किसान है जिनकी प्रसिद्धि किन्नू की खेती के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध है।

श्री बराड़ को किन्नू की खेती करने की प्रेरणा अबुल खुराना गांव में स्थित सरदार बलविंदर सिंह टीका के बाग का दौरा करने से मिली। शुरूआत में उन्होंने कई समस्याओं जैसे सिटरस सिल्ला, पत्ते का सुरंगी कीट और बीमारियां जैसे फाइटोपथोरा, जड़ गलन आदि का सामना किया लेकिन उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं लिए और ना ही अपने किन्नू की खेती के फैसले से निराश हुए। बल्कि धीरे-धीरे समय के साथ उन्होंने सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त की और अपने बाग का विस्तार 6 एकड़ से 70 एकड़ तक कर दिखाया।

बाग की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने उच्च घनता वाली खेती की तकनीक को लागू किया। किन्नू की खेती के बारे में अधिक जानने के लिए पूरी निष्ठा और जिज्ञासा के साथ उन्होंने सभी समस्याओं को समाधान किया और अपने उद्यम से अधिक लाभ कमाना शुरू किया।

अपनी खेतीबाड़ी के कौशल में चमक लाने और इसे बेहतर पेशेवर स्पर्श देने के लिए उन्होंने पी.ए.यू., के.वी.के फरीदकोट और बागबानी के विभाग से ट्रेनिंग ली।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जुनून:
वे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति बहुत ही उत्साही हैं वे हमेशा उन खेती तकनीकों को लागू करने की कोशिश करते हैं जिसके माध्यम से वे संसाधनों को बचा सकते हैं। पी.ए.यू के माहिरों के मार्गदर्शन के साथ उन्होंने तुपका सिंचाई प्रणाली (drip irrigation system) स्थापित किया और 42 लाख लीटर क्षमता वाले पानी का भंडारण टैंक बनाया, जहां वे नहर के पानी का भंडारण करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने सौर ऊर्जा के संरक्षण के लिए सौर पैनल में भी निवेश किया ताकि इसके प्रयोग से वे भंडारित पानी को अपने बगीचों तक पहुंचा सके। उन्होंने अधिक गर्मी के महीनों के दौरान मिट्टी में नमी के संरक्षण के लिए मलचिंग भी की।

मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए वे हरी खाद का उपयोग करते हैं और अन्य किसानों को भी इसका प्रयोग करने की सिफारिश करते हैं। उन्होंने किन्नू की खेती के लिए लगभग 20 मीटर x 10 मीटर और 20 मीटर x 15 मीटर के मिट्टी के बैड तैयार किए हैं।

कैसे करते हैं कीटों का नियंत्रण…
सिटरस सिल्ला, सफेद मक्खी और पत्तों के सुरंगी के हमले को रोकने के लिए उन्होंने विशेष रूप से स्वदेशी एरोब्लास्ट स्प्रे पंप लागू किया है जिसकी मदद से वे कीटनाशक और नदीननाशक की स्प्रे एकसमान कर सकते हैं।

अभिनव प्रवृत्तियों को अपनाना…
जब भी उन्हें कोई नई प्रवृत्ति या तकनीक अपनाने का अवसर मिलता है, तो वे कभी भी उसे नहीं गंवाते। एक बार उन्होंने गुरराज सिंह विर्क- एक प्रतिष्ठित बागबानी करने वाले किसान से, एक नया विचार लिया और कम लागत वाली किन्नू क्लीनिंग कम ग्रेडिंग मशीन (साफ करने वाली और छांटने वाली) (क्षमता 2 टन प्रति एकड़) डिज़ाइन की और अब 2 टन फलों की सफाई और छंटाई के लिए सिर्फ 125 रूपये खर्चा आता है जिसका एक बहुत बड़ा लाभ यह है कि वे इससे 1000 रूपये बचाते हैं। आज वे अपने बागबानी उद्यम से बहुत लाभ कमा रहे हैं। वे अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा हैं।

संदेश
“हर किसान, चाहे वे जैविक खेती कर रहे हों या परंपरागत खेती उन्हें मिट्टी का उपजाऊपन बनाए रखने के लिए तत्काल और दृढ़ उपाय करने चाहिए। किन्नू की खेती के लिए, किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए।” 

मंजुला संदेश पदवी

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इस महिला ने अकेले ही साबित किया कि जैविक खेती समाज और उसके परिवार के लिए कैसे लाभदायक है

मंजुला संदेश पदवी दिखने में एक साधारण किसान हैं लेकिन जैविक खेती से संबंधित ज्ञान और उनके जीवन का संघर्ष इससे कहीं अधिक है। महाराष्ट्र के जिला नंदूरबार के एक छोटे से गांव वागसेपा में रहते हुए उन्होंने ना सिर्फ जैविक तरीके से खेती की, बल्कि अपने परिवार की ज़रूरतों को भी पूरा किया और अपने फार्म की आय से अपने बेटी को भी शिक्षित किया।

मंजुला के पति ने उन्हें 10 साल पहले ही छोड़ दिया था, उस समय उनके पास दो विकल्प थे, पहला उस समय की परिस्थितियों को लेकर बुरा महसूस करना, सहानुभूति हासिल करना और किसी अन्य व्यक्ति की तलाश करना। और दूसरा विकल्प था स्वंय अपने पैरों पर खड़े होना और खुद का सहारा बनना। उन्होंने दूसरा विकल्प चुना और आज वे एक आत्मनिर्भर जैविक किसान हैं।

उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उनकी सेहत इतनी खराब हो गई कि उनके लिए चलना फिरना मुश्किल हो गया था। उस समय, उनके दिल का इलाज चल रहा था जिसमें उनके दिल का वाल्व बदला गया था। लेकिन उन्होंने कभी उम्मीद नहीं खोयी। सर्जरी के बाद ठीक होने पर उन्होंने बचत समूह (saving group) से लोन लिया और अपने खेत में एक मोटर पंप लगाया। मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए, उन्होंने रासायनिक खादों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खादों को चुना।

विभिन्न सरकारी नीतियों से मिली राशि उनके लिए अच्छी रकम थी और उन्होंने इसे बैलों की एक जोड़ी खरीदकर बुद्धिमानी से खर्च किया और अब वे अपने खेत की जोताई के लिए बैलों का प्रयोग करती हैं। उन्होंने मक्की और ज्वार की फसल उगायी और इससे उन्हें अच्छी उपज भी मिली।

मंजुला कहती हैं – “आस-पास के खेतों की पैदावार मेरे खेत से कम है पिछले वर्ष हमने मक्की की फसल उगायी लेकिन हमारी उपज अन्य खेतों की उपज के मुकाबले बहुत अच्छी थी क्योंकि मैं जैविक खादों का प्रयोग करती हूं और अन्य किसान रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं। इस वर्ष भी मैं मक्की और ज्वार उगा रही हूं। ”

नंदूरबार जिले में स्थित सार्वजनिक सेवा प्रणाली ने मंजुला की उसके खेती उद्यम में काफी सहायता की उन्होंने अपने क्षेत्र में 15 बचत समूह बनाए हैं और इन समूहों के माध्यम से वे पैसे इकट्ठा करते हैं और जरूरत के मुताबिक किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। वे विशेष रूप से गैर रासायनिक और जैविक खेती को प्रोत्साहित करते हैं। एक और ग्रुप है जिससे मंजुला लाभ ले रही हैं वह स्वदेशी बीज बैंक है। वे इस समूह के माध्यम से बीज लेती हैं और सब्जियों, फलों और अनाजों की विविध खेती करती हैं। मंजुला की बेटी मनिका को अपनी मां पर गर्व है और वह हमेशा उनकी सहायता करती है।

आज, महिलायें खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बीजों की बिजाई से लेकर फसलों के रख-रखाव और भंडारण में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन जब खेती मशीनीकृत हो जाती है तो महिलायें इस श्रेणी से बाहर हो जाती हैं। लेकिन मंजुला संदेश पदवी ने खुद को कभी विकलांग नहीं बनाया और अपनी कमज़ोरी को ही अपनी ताकत में बदल दिया। उन्होंने अकेले ही अपने फार्म की देखभाल की और अपनी बेटी और अपने घर की ज़रूरतों को पूरा किया। आज उनकी बेटी ने उच्च शिक्षा हासिल की है और आज वह इतना कमा रही है कि अच्छा जीवन व्यतीत कर सके। वर्तमान में उनकी बेटी मनिका जलगांव में नर्स के रूप में काम कर रही है।

मंजुला संदेश पदवी जैसी महिलायें ग्रामीण भारत के लिए एक पावरहाउस के रूप में काम करती हैं, इनके जैसी महिलायें अन्य महिलाओं को भी मजबूत बनाती है और अपने बेहतर भविष्य के लिए टिकाऊ खेती का चुनाव करती हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारे भविष्य की पीढ़ी स्वस्थ जीवन जिये और उन्हें किसी चीज़ की कमी ना हो। तो आज हमें और मंजुला संदेश पदवी जैसी महिलाओं की जरूरत है।

समय को सतत खेती की जरूरत है क्योंकि रसायन भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं और भूमिगत जीवन को प्रदूषित करते हैं। इसके अलावा रसायन खेती के खर्चे को भी बढ़ाते हैं जिससे कि किसानों पर कर्ज़ा बढ़ता है और किसान आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाते हैं।

हमें मंजुला से सीखना चाहिए कि जैविक खेती अपनाकर पानी, मिट्टी और वातावरण को कैसे बचाया जा सकता है।