मुकेश देवी

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मीठी सफलता की गूंज — मिलिए एक ऐसी महिला से जो शहद के व्यवसाय से 70 लाख की वार्षिक आय के साथ मधुमक्खीपालन की दुनिया में आगे बढ़ रही है

“ऐसा माना जाता है कि भविष्य उन लोगों से संबंधित होता है जो अपने सपने की सुंदरता पर विश्वास करते हैं।”

हरियाणा के जिला झज्जर में एक छोटा सा गांव है मिल्कपुर, जो कि अभी तक अच्छे तरीके से मुख्य सड़क से जुड़ा हुआ नहीं है और यहां सीधी बस सेवा की कोई सुविधा नहीं है। किसी व्यक्ति के लिए ऐसी जगह पर रहने के दौरान किसी भी खेती संबंधित गतिविधि या व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोचना भी असंभव सा लगता है। लेकिन मधुमक्खीपालन के क्षेत्र में मुकेश देवी के सफल प्रयासों ने साबित कर दिया है कि यदि आपके पास कुछ भी करने का जुनून है तो कुछ भी असंभव नहीं है। मधुमक्खियों के दर्दनाक जहरीले डंक से पीड़ित होने के बाद भी मुकेश देवी और उनके पति ने कभी भी रूकने का नहीं सोचा और उन्होंने उत्तरी भारत में सर्वश्रेष्ठ शहद उत्पादन करने का अपना जुनून जारी रखा।

वर्ष 1999 में, मुकेश देवी के पति — जगपाल फोगाट ने अपने रिश्तेदारों से प्रेरित होकर मधुमक्खीपालन की शुरूआत की, जो मधुमक्खीपालन कर रहे थे। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान की गई ट्रेनिंग की सहायता से मुकेश देवी भी 2001 में अपने पति के उद्यम में शामिल हो गईं। जिस काम को उन्होंने कुछ मधुमक्खियों के साथ शुरू किया, धीरे धीरे वह काम समय के साथ बढ़ने लगा और अब वह दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली के क्षेत्रों में भी विस्तृत हो गया है।

स्वास्थ्य लाभ और शहद के लिए बढ़ती बाज़ार की मांग को देखते हुए, अब मुकेश देवी ने अपने ही ब्रांड- नेचर फ्रेश के तहत शहद बेचना शुरू कर दिया है। वर्तमान में, उनके पास शहद के संग्रह के लिए मधुमक्खियों के 2000 बक्से हैं।

मुकेश देवी ने ना केवल अपने परिवार की स्थिति को वित्तीय रूप से स्थिर बनाया बल्कि उन्होंने 30 से अधिक लोगों को रोज़गार भी प्रदान किया है। अपने नियोजित कार्यबल की सहायता से 5 अलग अलग राज्यों में मधुमक्खियों के बक्से भेजकर मुकेश देवी और उनके पति वार्षिक 600 से 700 क्विंटल शहद इक्ट्ठा करते हैं, और शहद से, इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्वाद का साधारण शहद है बल्कि उनके पास 7 से अधिक विभिन्न फ्लेवर में शहद है जो तुलसी, अजवायन, धनिया, शीशम, सफेदा, इलायची, नीम, सरसों और अरहर के पौधों से एकत्र किए जाते हैं। तुलसी का शहद उनकी विस्तृत बाज़ार मूल्यों के साथ सबसे अच्छे शहद में से एक है।

जब शहद इक्ट्ठा करने की बात आती है तब यह पति पत्नी का जोड़ा विभिन्न राज्यों के समय और मौसम पर विशेष ध्यान देते हैं और उनके अनुसार उन्होंने अपने मधुमक्खियों के बक्सों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया है। जैविक शहद के लिए बक्सों को विभिन्न राज्यों में जंगलों में भेजा जाता है,विभिन्न स्थानों से शहद इक्ट्ठा करने के कुछ समय काल नीचे दिए गए हैं—

  • तुलसी शहद के लिए — बक्सों को मध्यप्रदेश के जंगलों में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • अजवायन शहद के लिए — बक्सों को राजस्थान के जंगलों में दिसंबर से जनवरी में भेजा जाता है।
  • अजवायन के लिए — बक्सों को जम्मू कश्मीर और पंजाब में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • और फरवरी से अप्रैल में बक्सों को हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया जाता है।

इसके अलावा, इस जोड़ी की आय शहद उत्पादन और इसकी बिक्री तक ही सीमित नहीं है बल्कि वे कॉम्ब हनी, हनी आंवला मुरब्बा, हनी कैरट मुरब्बा, बी पॉलन, बी वैक्स, प्रोपोलिस और बी वीनॉम भी बेचते हैं जो बाज़ार में अच्छे दामों में बिक जाते हैं।

वर्तमान में, मुकेश देवी और उनके पति सिर्फ मधुमक्खीपालन से ही लगभग 70 लाख वार्षिक आय कमा रहे हैं।

मुकेश देवी और जगपाल फोगाट के प्रयासों को कई संगठनों और अधिकारिकों द्वारा सराहा गया है उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं—

  • 2016 में IARI,नई दिल्ली,राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेले में मधुमक्खीपालन और विभिन्न तरह के शहद उत्पादन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • मुकेश देवी और जगपाल फोगाट को सूरजकुंड, फरीदाबाद में एग्री लीडरशिप पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह द्वारा अच्छे शहद उत्पादन के लिए सम्मानित किया गया।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्री, परषोत्तम खोदाभाई रूपला द्वारा सम्मानित किया गया।
  • उनकी उपलब्धियों को प्रगतिशील किसान अधीता और अभिनव किसान नामक पत्रिका में अन्य 39 प्रगतिशील किसानों के साथ प्रकाशित किया गया।

मुकेश देवी एक प्रगतिशील मधुमक्खी पालनकर्ता हैं और उनकी पहल ने अन्य महिला उद्यमियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। कि यदि आपके प्रयास सही दिशा में हैं यहां तक कि मधुमक्खीपालन के व्यवसाय में भी तो आप करोड़पति बन सकते हैं।

भविष्य की योजनाएं

मुकेश देवी और उनके पति ने अपने गांव में ज़मीन खरीदी है जहां पर वे बाज़ार की मांग के अनुसार अपने उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, किसानों को बेहतर वित्तीय स्थिरता के लिए रवायती खेती के साथ संबंधित कृषि गतिविधियों को आगे बढ़ाना चाहिए।

भूपिंदर सिंह संधा

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प्रगतिशील किसान भूपिंदर सिंह संधा से मिलें जो मधुमक्खीपालन के प्रचार में मधुमक्खियों के जितना ही व्यस्त और कुशल हैं।

मधुमक्खी के डंक को याद करके, आमतौर पर ज्यादातर लोग आस-पास की मधुमक्खियों से नफरत करते हैं। इस तथ्य से अनजान होते हुए कि ये मशगूल छोटी मधुमक्खियां ना केवल शहद से बल्कि कई अन्य मधुमक्खी उत्पादों के द्वारा आपको एक अविश्वसनीय लाभ कमाने में मदद कर सकती हैं।

लेकिन यह कभी धन नहीं था जिसके लिए भूपिंदर सिंह संधा ने मधु मक्खी पालन शुरू किया, भूपिंदर सिंह को मधु मक्खियों की भनभनाहट, उनकी शहद बनाने की कला और मक्खीपालन के लाभों ने इस उद्यम की तरफ उन्हें आकर्षित किया।

1993 का समय था जब भूपिंदर सिंह संधा को कृषि विभाग द्वारा आयोजित राजपुरा में मधुमक्खी फार्म की दौरे के समय मक्खीपालन की प्रक्रिया के बारे में पता चला। मधुमक्खियों के काम को देखकर भूपिंदर सिंह इतना प्रेरित हुए कि उन्होंने केवल 5 अनुदानित मधुमक्खी बक्सों के साथ मक्खी पालन शुरू करने का फैसला किया।

कहने के लिए, भूपिंदर सिंह संधा फार्मासिस्ट थे और उनके पास फार्मेसी की डिग्री थी लेकिन उनका जीवन आस-पास भिनकती मक्खियां और शहद की मिठास से घिरा हुआ था।

1994 में भूपिंदर सिंह संधा ने एक फार्मा स्टोर भी खोला और उसे तैयार शहद बेचने के लिए प्रयोग किया और इससे उनका मक्खीपालन का व्यवसाय भी लगातार बढ़ रहा था। उनका फार्मेसी में आने का उद्देश्य लोगों की मदद करना था, पर बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वे सिर्फ निर्धारित की गई दवाइयां बेच रहे हैं, जो वास्तव में वे नहीं हैं जो उन्होंने सोचा था। उन्होंने 1997 में, बाजार अनुसंधान की और विश्लेषण किया कि मक्खीपालन वह क्षेत्र है जिस पर उन्हें ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसलिए 5 साल फार्मा स्टोर चलाने के बाद उन्होंने चिकित्सक लाइन को छोड़ दिया और मधुमक्खियों पर पूरी तरह ध्यान देने का फैसला किया।

और यह कहा जाता है- जब आप अपनी पसंद का कोई काम चुनते हैं तो आप ज़िंदगी में वास्तविक खुशी महसूस करते हैं।

भूपिंदर सिंह संधा के साथ भी यही था उन्होंने मक्खीपालन में अपनी वास्तविक खुशी को ढूंढा। 1999 में उन्होंने 500 बक्सों से मक्खीपालन का विस्तार किया और 6 तरह की शहद की किस्मों के साथ आए जैसे हिमालयन, अजवायन, तुलसी, कश्मीरी, सफेदा, लीची आदि। शहद के अलावा वे बी पोलन, बी वैक्स और भुने हुए फ्लैक्स सीड पाउडर भी बेचते हैं। अपने मधुमक्खी उत्पादों के प्रतिनिधित्व के लिए उन्होंने जो ब्रांड नाम चुना वह है अमोलक और वर्तमान में, पंजाब में इसकी अच्छी मार्किट है। 10 श्रमिकों के समूह के साथ वे पूरे बी फार्म का काम संभालते हैं और उनकी पत्नी भी उनके उद्यम में उनका समर्थन करती है।

भूपिंदर सिंह संधा के लिए मधुमक्खीपालन उनके जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है ना केवल इसलिए कि यह आय का स्त्रोत है बल्यि इसलिए भी कि वे मधुमक्खियों को काम करते देखना पसंद करते हैं और यह कुदरत के अनोखे अजूबे का अनुभव करने के लिए एक बेहतरीन तरीका है। मधुमक्खी पालन के माध्यम से, वे विभिन्न क्षेत्रों में अन्य किसानों के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। वे उन किसानों को भी गाइड करते हैं जो उनके फार्म पर शहद इक्ट्ठा करना, रानी मक्खी तैयार करना और उत्पादों की पैकेजिंग की प्रैक्टीकल ट्रेनिंग के लिए आते हैं। रेडियो प्रोग्राम और प्रिंट मीडिया के माध्यम से वे समाज और मक्खीपालन के विस्तार और इसकी विभिन्नता में अपना सर्वोत्तम सहयोग देने की कोशिश करते हैं।

भूपिंदर सिंह संधा का फार्म उनके गांव टिवाणा, पटियाला में स्थित है जहां पर उन्होंने 10 एकड़ ज़मीन किराये पर ली है। वे आमतौर पर 900-1000 मधुमक्खी बक्से रखते हैं और बाकी को बेच देते हैं। उनकी पत्नी उनकी दूसरी व्यापारिक भागीदार है और हर कदम पर उनका समर्थन करती है। अपने काम को और सफल बनाने के लिए और अपने कौशल को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने कई ट्रेनिंग में हिस्सा लिया है और पूरे विश्व में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर अपने काम को प्रदर्शित किया है। उन्होंने मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों द्वारा कई प्रशंसा पत्र प्राप्त किए है। ATMA स्कीम के तहत अमोलक नाम के द्वारा उनके पास अपनी ATMA किसान हट है जहां पर वे अपने तैयार उत्पादों को बेचते हैं।

भविष्य की योजना:

भविष्य में वे मधुमक्खियों के एक और उत्पाद के साथ आने की योजना बना रहे हैं और वह है प्रोपोलिस। मक्खीपालन के अलावा वे अमोलक ब्रांड के तहत रसायन मुक्त जैविक शक्कर से पहचान करवाना चाहते हैं। उनके पास कई अन्य महान योजनाएं हैं जिनपर वे अभी काम कर रहे हैं और बाद में समय आने पर सबके साथ सांझा करेंगे।

संदेश

“मक्खीपालकों के लिए शहद का स्वंय मंडीकरण करना सबसे अच्छी बात है क्योंकि इस तरह से वे मिलावटी और मध्यस्थों की भूमिका को कम कर सकते हैं जो कि अधिकतर मुनाफे को जब्त कर लेते हैं।”

भूपिंदर सिंह संधा ने मक्खीपालन में अपने जुनून के साथ उद्यम शुरू किया और भविष्य में वे समाज के कल्याण के लिए मक्खीपालन क्षेत्र में छिपी संभावनाओं को पता लगाने की कोशिश करेंगे। यदि भूपिंदर सिंह संधा की कहानी ने आपको मधुमक्खी पालन के बारे में अधिक जानने के लिए उत्साहित किया है तो अधिक जानने के लिए आप उनसे संपर्क कर सकते हैं।