गुरराज सिंह विर्क

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एक किसान, जिसने अपने मुश्किल समय में अपने कौशल को अपनी ताकत बनाया और भविष्यवादी कृषक के रूप में उभरकर आए

यह देखा गया है की भारत में आम तौर पर ज्यादातर किसान अपनी घरेलू आर्थिक एवं और मुश्किलों का सामना सबर और मेहनत से करने की बजाए, हार मान लेते हैं। यहां तक कि कुछ किसान आत्महत्या का रास्ता भी अपनाते हैं। पर आज हम एक ऐसे किसान कि बात करने जा रहे हैं, जिसने न केवल अपनी घरेलू एवं आर्थिक मुश्किलों का सामना किया बल्कि अपनी मेहनत से बागबानी कि खेती में सफलता प्राप्त करके उच्च स्तरीय इनाम भी हांसिल किये और उस किसान का नाम है- गुरराज सिंह विर्क, जो पिछले 30 सालों से किन्नू कि खेती कर रहे हैं।

गुरराज सिंह का जन्म 1 अक्टूबर 1954 को एक आम परिवार में हुआ और वे मोहल्ला सुरगापुरी , कोटकपूरा, जिला फरीदकोट के निवासी हैं। उन्होंने खुद बाहरवीं तक ही पढ़ाई की है, पर उन्होंने अपनी हिम्मत व् आत्मविश्वास से न केवल बागबानी के क्षेत्र में सफल मुकाम हांसिल किया बल्कि अपने काम को आसान एवं प्रभावशाली बनाने के लिए देसी तरीके से कई मशीनों की खोज भी की।पर उनको यह मुकाम हांसिल करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा।

जीवन का प्राथमिक संघर्ष
शुरुआत में वे कपास की खेती करते थे पर 1990 में बीमारियों का हमला होने की वजह से उनको यह खेती बंद करनी पड़ी क्योंकि बैंको और बिचौलियों का कर्जा बढ़ता जा रहा था उन कुछ समय बाद गन्ने की खेती शुरू की लेकिन फरीदकोट में गन्ना मिल बंद हो जाने की वजह से उन्हें इससे भी ख़ास मुनाफा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने धान की खेती करने का फैसला किया, पर इसमें भी ज्यादा मुनाफा नहीं था क्योंकि जमीन में पानी का स्तर समान्य नहीं था।

जीवन का अहम मोड़
आखिर उन्होंने 1983 में बागबानी विभाग फरीदकोट और पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सहयोग से प्रशिक्षण हांसिल करके किन्नू का बाग़ लगाया। बाग़ लगाए को अभी 2 साल भी नहीं हुए थे कि उनके पिता जी सरदार सरवन सिंह का देहांत हो गया, जिससे पुरे परिवार को बहुत गहरा धक्का लगा। हालाँकि इसमें बहुत समय लगा पर वे सबर एवं मेहनत और विश्वास के साथ जिंदगी को सही रहते पर ले आये। अभी परिवार पिछले दुखों को भुला भी नहीं पाया था कि1999 में उनकी माता जी सरदारनी मोहिंदर कौर का भी देहांत हो गया और परिवार फिर से शोक में चला गया। पर इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्होंने हौंसला नहीं हारा और अपने काम को जारी रखा।

मेहनत का फल
कहा जाता है कि सब्र का फल मीठा होता है इसी तरह किन्नू के पौधों ने भी फल देना शुरू किया और अच्छे दिन वापिस आने लगे। इस मुनाफे से हुए पैसों को व्यर्थ न करते हुए उन्होंने बड़ी सूझ-बूझ से बाग़ का क्षेत्र आगे बढ़ाया और एक ट्यूबवेल लगवाया। अब पानी सिंचाई योग्य होने कि वजह से धान से भी मुनाफा शुरू हो गया। उन्होंने २०५ एकड़ में अंगूर का बाग़ भी लगाया जो एक लाख प्रति एकड़ के हिसाब दे आमदन देता था।

पर सफलता का रास्ता इतना भी आसान नहीं होता बाग़ लगाने के 15 साल बाद दीमक के गंभीर हमले कि वजह से बाग़ उखाड़ना पड़ा, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और किन्नू के साथ साथ धान कि खेती को आगे बढ़ाया।

स. विर्क मौजूदा समय कि आधुनिक तकनीकों के साथ अपडेट रहते हैं और जरूरत पड़ने पर उन्हें अपने खेतो में लागू भी करते हैं।आज उनके पास 41 एकड़ जमीन हैं जिसमे से 21 एकड़ पर किन्नू का बाग़ है 20 एकड़ पर वे गेहूं, धान की खेती कर रहे हैं। उनके बाग़ में किन्नू के पौधों के अलावा कहीं कहीं पर नींबू, ग्रेप फ्रूट, मौसमी, माल्टा रेड, माल्टा जाफ़ा, नागपुरी संगतरा, नारंगी, आलू-बुखारा, अनार, अंगूर, अमरुद, आंवला, जामुन, फालसा, चीकू आदि के भी हैं। वे पानी कि बचत के लिए बाग़ में तुपका सिंचाई और गर्मियों में मिट्टी कि नमी बनाये रखने के लिए मल्चिंग तकनीक का भी इस्तेमाल करते हैं। वे कुदरती स्त्रोतों के रख-रखाव में भी निपुण हैं। ज्यादातर किन्नू के नए पौधों वाली मिट्टी के उपजाऊपन को ठीक रखने के लिए वे हमेशा हरी खाद के पक्ष में रहते हैं। वे पारम्परिक ढंग के साथ साथ अधिक घनत्व वाले तरीके से भी खेती करते हैं।

खोजें एवं रचनाएँ
अपने काम को और आसान बनाने के लिए उन्होंने बहुत सारी खोजें भी की। उन्होंने कई तरह की मशीनें बनाई, जो ज्यादा उच्च स्तरीय यां महंगी नहीं हैं बल्कि साधारण एवं देसी तरीके से तैयार की गयी हैं। ये मशीनें पैसा और समय दोनों की बचत करती हैं। उन्होंने एक देसी स्प्रे पंप और पेड़ों की कटाई- छंटाई वाला यंत्र भी तैयार किया। इसके आलावा उन्होंने एक किन्नू की सफाई और ग्रेडिंग वाली मशीन भी बनाई, जो एक घंटे में २ टन तक किन्नू साफ़ करती है। २ टन फल साफ़ करने और छांटने में १२५ रूपये तक का खर्चा आता है जबकि हाथों से यही काम करने में १००० रूपये तक खर्चा आता है। मशीन से छंटे हुए फलों का मार्किट में अच्छा भाव मिलता है।

ऊपर लिखी हुई खोजों के आलावा गुरराज सिंह विर्क ने साहित्य कला में भी अपना योगदान दिया, उन्होंने किन्नू की खेती पर 7 मशहूर लेख एवं एक किताब भी लिखी।

उपलब्धियां
स. गुरराज सिंह विर्क को उनकी मेहनत एवं सफलता के लिए बहुत सारे समारोह में सम्मानित किया गया। उनमे से कुछ उपलब्धियां नीचे लिखी गयी हैं:

उनके किन्नुओं को राज्य और जिला स्तर पर बहुत सरे इनाम मिले हैं।उनको 2010-2011 और 2011-12 साल में सर्वोत्तम किन्नू लगाने वाले किसान के तौर पर राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड की तरफ से सम्मानित किया गया।

मार्च 2012 में मासिक खेतीबाड़ी मैगज़ीन ” एडवाइजर” की तरफ से लगाए गए मेले में भी सम्मानित किया गया।

गुरराज सिंह विर्क जी ने कई उच्च स्तरीय समितियों जैसे की पी. ए. यू. की “फल और सब्जियां उगाऊ सलाहकार समिति” और मालवा फल और सब्जियां उगाऊ समिति” में भीअपनी ख़ास जगह बनाई है।

बहुत सारे विभागों की तरफ से किसानो को विर्क के खेतो में सफल ढंग से खेती करने की जानकारी देने के लिए ले जाया जाता है।

गुरराज सिंह विर्क ने जिले में लगभग १५० एकड़ पर किन्नू की खेती कर्म में किसानो की मदद की है।

वे किन्नू उत्पादन में सफल होने और अपनी सभी उपलब्धियों के लिए के. वी. के. फरीदकोट और राज्य बागबानी विभाग से मिले प्रशिक्षण के लिए आभार व्यक्त करते हैं।

पारिवारिक जीवन
स. विर्क ने बहुत सारी मुश्किलों और कम पढ़ाई होने के बावजूद भी बड़े स्तर पर उपलब्धियां हासिल की और आज यही सब उनके बच्चे भी करके दिखा रहे हैं। उनकी पत्नी जगमीत कौर एक घरेलू औरत हैं। उनके 5 बच्चों में से एक बेटा कनाडा में इंजिनियर, एक बेटा अमरीका में डॉक्टर, एक बेटी कनाडा और दूसरी बेटी पंजाब में डॉक्टर है और उनकी एक बेटी कनेडा में नर्स है। उनके सभी बच्चे अपने परिवारों के साथ ख़ुशी से जीवन व्यतीत कर रहे हैं और गुरराज सिंह विर्क उनसे मिलने के लिए कनेडा और अमरीका जाते रहते हैं।

किसानों के लिए सन्देश
“किसानो को छोटे-मोटे नुकसान और खेती में आने वाली मुश्किलों के कारन अपना आत्म विश्वास टूटने नहीं देना चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए। किसानो को पारम्परिक खेती से अलग भी सोचना चाहिए। खेतीबाड़ी में आज भी बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं जिनमे कम निवेश से भी बहुत मुनाफा कमाया जा सकता है। बागबानी भी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमे किसान आसानी से लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं, पर शुरुआती समय में बहुत सब्र रखने की जरूरत होती है। मै खुद भी बागबानी के क्षेत्र में मेहनत करके आज अच्छी आमदन ले रहा हूँ और भविष्य में यही चाहता हूँ कि किसान पारम्परिक खेती के साथ-साथ बागबानी को भी अपनाएं और आगे लेकर आएं। 

हरजीत सिंह बराड़

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कई मुश्किलों का सामना करने के बावजूद भी इस नींबू वर्गीय संपदा के मालिक ने सर्वश्रेष्ठ किन्नुओं के उत्पादन में सफल बने रहने के लिए अपना एक नया तरीका खोजा

फसल खराब होना, कीड़े/मकौड़ों का हमला, बारानी भूमि, आर्थिक परिस्थितियां कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो किसानों को कभी-कभी असहाय और अपंग बना देती हैं और यही परिस्थितियां किसानों को आत्महत्या, भुखमरी और निरक्षरता की तरफ ले जाती हैं। लेकिन कुछ किसान इतनी आसानी से अपनी असफलता को स्वीकार नहीं करते और अपनी इच्छा शक्ति और प्रयासों से अपनी परिस्थितियों पर काबू पाते हैं। डेलियांवाली गांव (फरीदकोट) से ऐसे ही एक किसान है जिनकी प्रसिद्धि किन्नू की खेती के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध है।

श्री बराड़ को किन्नू की खेती करने की प्रेरणा अबुल खुराना गांव में स्थित सरदार बलविंदर सिंह टीका के बाग का दौरा करने से मिली। शुरूआत में उन्होंने कई समस्याओं जैसे सिटरस सिल्ला, पत्ते का सुरंगी कीट और बीमारियां जैसे फाइटोपथोरा, जड़ गलन आदि का सामना किया लेकिन उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं लिए और ना ही अपने किन्नू की खेती के फैसले से निराश हुए। बल्कि धीरे-धीरे समय के साथ उन्होंने सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त की और अपने बाग का विस्तार 6 एकड़ से 70 एकड़ तक कर दिखाया।

बाग की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने उच्च घनता वाली खेती की तकनीक को लागू किया। किन्नू की खेती के बारे में अधिक जानने के लिए पूरी निष्ठा और जिज्ञासा के साथ उन्होंने सभी समस्याओं को समाधान किया और अपने उद्यम से अधिक लाभ कमाना शुरू किया।

अपनी खेतीबाड़ी के कौशल में चमक लाने और इसे बेहतर पेशेवर स्पर्श देने के लिए उन्होंने पी.ए.यू., के.वी.के फरीदकोट और बागबानी के विभाग से ट्रेनिंग ली।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जुनून:
वे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति बहुत ही उत्साही हैं वे हमेशा उन खेती तकनीकों को लागू करने की कोशिश करते हैं जिसके माध्यम से वे संसाधनों को बचा सकते हैं। पी.ए.यू के माहिरों के मार्गदर्शन के साथ उन्होंने तुपका सिंचाई प्रणाली (drip irrigation system) स्थापित किया और 42 लाख लीटर क्षमता वाले पानी का भंडारण टैंक बनाया, जहां वे नहर के पानी का भंडारण करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने सौर ऊर्जा के संरक्षण के लिए सौर पैनल में भी निवेश किया ताकि इसके प्रयोग से वे भंडारित पानी को अपने बगीचों तक पहुंचा सके। उन्होंने अधिक गर्मी के महीनों के दौरान मिट्टी में नमी के संरक्षण के लिए मलचिंग भी की।

मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए वे हरी खाद का उपयोग करते हैं और अन्य किसानों को भी इसका प्रयोग करने की सिफारिश करते हैं। उन्होंने किन्नू की खेती के लिए लगभग 20 मीटर x 10 मीटर और 20 मीटर x 15 मीटर के मिट्टी के बैड तैयार किए हैं।

कैसे करते हैं कीटों का नियंत्रण…
सिटरस सिल्ला, सफेद मक्खी और पत्तों के सुरंगी के हमले को रोकने के लिए उन्होंने विशेष रूप से स्वदेशी एरोब्लास्ट स्प्रे पंप लागू किया है जिसकी मदद से वे कीटनाशक और नदीननाशक की स्प्रे एकसमान कर सकते हैं।

अभिनव प्रवृत्तियों को अपनाना…
जब भी उन्हें कोई नई प्रवृत्ति या तकनीक अपनाने का अवसर मिलता है, तो वे कभी भी उसे नहीं गंवाते। एक बार उन्होंने गुरराज सिंह विर्क- एक प्रतिष्ठित बागबानी करने वाले किसान से, एक नया विचार लिया और कम लागत वाली किन्नू क्लीनिंग कम ग्रेडिंग मशीन (साफ करने वाली और छांटने वाली) (क्षमता 2 टन प्रति एकड़) डिज़ाइन की और अब 2 टन फलों की सफाई और छंटाई के लिए सिर्फ 125 रूपये खर्चा आता है जिसका एक बहुत बड़ा लाभ यह है कि वे इससे 1000 रूपये बचाते हैं। आज वे अपने बागबानी उद्यम से बहुत लाभ कमा रहे हैं। वे अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा हैं।

संदेश
“हर किसान, चाहे वे जैविक खेती कर रहे हों या परंपरागत खेती उन्हें मिट्टी का उपजाऊपन बनाए रखने के लिए तत्काल और दृढ़ उपाय करने चाहिए। किन्नू की खेती के लिए, किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए।”