जसवंत सिंह सिद्धू

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जसवंत सिंह सिद्धू फूलों की खेती से जैविक खेती को प्रफुल्लित कर रहे हैं

जसवंत सिंह जी को फूलों की खेती करने के लिए प्रेरणा और दिलचस्पी उनके दादा जी से मिली और आज जसवंत सिंह जी ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जो जैविक तरीके से फूलों की खेती कर रहे हैं। खेतीबाड़ी के क्षेत्र में जसवंत सिंह जी की यात्रा बहुत छोटी उम्र में ही शुरू हुई, जब उनके दादा जी अक्सर उन्हें बगीची की देख—रेख में मदद करने के लिए कहा करते थे। इस तरह धीरे—धीरे जसवंत जी की दिलचस्पी फूलों की खेती की तरफ बढ़ी। पर व्यापारिक स्तर पर उनके पूर्वजों की तरह ही उनके पिता भी गेहूं—धान की ही खेती करते थे और उनके पिता जी कम ज़मीन और परिवार की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण कोई नया काम शुरू करके किसी भी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहते थे।

परिवार के हलातों से परिचित होने के बावजूद भी 12वीं की पढ़ाई के बाद जसवंत सिंह जी ने पी ए यू की तरफ से आयोजित बागबानी की ट्रेनिंग में भाग लिया। हालांकि उन्होंने बागबानी की ट्रेनिंग ले ली थी, पर फिर भी फूलों की खेती में असफलता और नुकसान के डर से उनके पिता जी ने जसवंत सिंह जी को अपनी ज़मीन पर फूलों की खेती करने की आज्ञा ना दी। फिर कुछ समय के लिए जसवंत सिंह जी ने गेहूं—धान की खेती जारी रखी, पर जल्दी ही उन्होंने अपने पिता जी को फूलों की खेती (गेंदा, गुलदाउदी, ग्लेडियोलस, गुलाब और स्थानीय गुलाब) के लिए मना लिया और 1998 में उन्होंने इसकी शुरूआत ज़मीन के छोटे से टुकड़े (2 मरला = 25.2929 वर्ग मीटर) पर की।

“जब मेरे पिता जी सहमत हुए, उस समय मेरा दृढ़ निश्चय था कि मैं फूलों की खेती वाले क्षेत्र को धीरे धीरे बढ़ाकर इससे अच्छा मुनाफा हासिल करूंगा। हालांकि हमारे नज़दीक फूल बेचने के लिए कोई अच्छी मंडी नहीं थी, पर फिर भी मैंने पीछे हटने के बारे में नहीं सोचा।”

जब फूलों की तुड़ाई का समय आया, तो जसवंत सिंह जी ने नज़दीक के क्षेत्रों में शादी या और खुशी के समागमों वाले घरों में जाना शुरू किया ओर वहां फूलों से कार और घर सजाने के कॉन्ट्रेक्ट लेने शुरू किए। इस तरीके से उन्होंने आय में 8000 से 9000 रूपये का मुनाफा कमाया। जसवंत सिंह जी की तरक्की देखकर उनके पिता जी और बाकी परिवार के सदस्य बहुत खुश हुए और इससे जसवंत सिंह जी की हिम्मत बढ़ी। धीरे धीरे उन्होंने फूलों की खेती का विस्तार 2½ एकड़ तक कर लिया और इस समय वे 3 एकड़ में फूलों की खेती कर रहे हैं। समय के साथ साथ जसवंत सिंह जी अपने फार्म पर अलग अलग किस्मों के पौधे और फूल लाते रहते हैं। अब उन्होंने फूलों की नर्सरी तैयार करनी भी शुरू की है, जिससे वे बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं और अब मंडीकरण वाला काम भी खुद संभाल रहे हैं।

खैर जसवंत सिंह जी की मेहनत व्यर्थ नहीं गई और उनके प्रयत्नों के लिए उन्हें सुरजीत सिंह ढिल्लो पुरस्कार 2014 से सम्मानित किया गया।

भविष्य की योजना

भविष्य में जसवंत सिंह जी फूलों की खेती का विस्तार करना चाहते हैं और ज़मीन किराए पर लेकर पॉलीहाउस के क्षेत्र में प्रयास करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
सरकारी योजनाएं और सब्सिडियों पर निर्भर होने की बजाए किसानों को खेतीबाड़ी के लिए स्वंय प्रयत्न करने चाहिए।

गुरदीप सिंह नंबरदार

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मशरूम की खेती में गुरदीप सिंह जी की सफलता की कहानी

गांव गुराली, जिला फिरोजपुर (पंजाब) में स्थित पूरे परिवार की सांझी कोशिश और सहायता से, गुरदीप सिंह नंबरदार ने मशरूम के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। अपने सारे स्त्रोतों और दृढ़ता को एकत्र कर, उन्होंने 2003 में मशरूम की खेती शुरू की थी और अब तक इस सहायक व्यवसाय ने 60 परिवारों को रोज़गार दिया है।

वे इस व्यवसाय को छोटे स्तर पर शुरू करके धीरे धीरे उच्च स्तर की तरफ बढ़ा रहे हैं, आज गुरदीप सिंह जी ने एक सफल मशरूम उत्पादक की पहचान बना ली है और इसके साथ उन्होंने एक बड़ा मशरूम फार्म भी बनाया है। मशरूम के सफल किसान होने के अलावा वे 20 वर्ष तक अपने गांव के सरपंच भी रहे।

उन्होंने इस उद्यम की शुरूआत पी.ए.यू. द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार की और शुरू में उन्हें लगभग 20 क्विंटल तूड़ी का खर्चा आया। आज 2003 के मुकाबले उनका फार्म बहुत बड़ा है और अब उन्हें वार्षिक लगभग 7 हज़ार क्विंटल तूड़ी का खर्चा आता है।

उनके गांव के कई किसान उनकी पहलकदमी से प्रेरित हुए हैं। मशरूम की खेती में उनकी सफलता के लिए उन्हें जिला प्रशासन के सहयोग से खेतीबाड़ी विभाग, फिरोजपुर द्वारा उनके गांव में आयोजित प्रगतिशील किसान मेले में उच्च तकनीक खेती द्वारा मशरूम उत्पादन के लिए जिला स्तरीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

संदेश
“मशरूम की खेती कम निवेश वाला लाभदायक उद्यम है। यदि किसान बढ़िया कमाई करना चाहते हैं तो उन्हें मशरूम की खेती में निवेश करना चाहिए।”