नरेंद्र और लोकेश
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जहां चाह, वहां राह, वैसे ही अगर ज़िंदगी में कुछ करने का सोच लिया तो उसे पूरा करके ही चैन की सांस लें। कृषि के क्षेत्र में कुछ इंसान ऐसे होते है, जो पारंपरिक खेती को छोड़कर कुछ ऐसा करते हैं जोकि बाकि लोगों के लिए मिसाल बनकर सामने आते हैं।
वर्ष 2009 में, राजस्थान सरकार ने गुजरात में स्थित एक कंपनी के साथ समझौता किया जिसका नाम अतुल लिमिटेड है और राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में खजूर की खेती पर काम करना शुरू कर दिया, जिसके परिणाम भी सफल रहे। इसके बाद सरकार ने किसानों को खेती की नई तकनीकों को अपनाने और उत्पाद की बाजार में मांग के बारे में प्रोत्साहित करना शुरू किया। फिर सरकार द्वारा खजूर के पौधे जोधपुर के किसानों को 90 प्रतिशत की सब्सिडी पर दिए गए, जिसमें एक पौधे की कीमत ₹2500 से घटाकर ₹225 कर दी गई।
अतुल कंपनी की टीम जोधपुर के हर एक क्षेत्र का निरीक्षण करती थी और किसानों को खजूर की खेती के बारे में बताती थी। जिसमें आने वाले वर्षों में खजूर की खेती करने का क्या फायदा होगा, उसके बारे में किसानों को जागरूक करती थी। एक दिन वह जब निरीक्षण करने गए थे तो उनकी मुलाकात श्री अब्दुल रहमान से हुई जो राजस्थान के जैसलमेर के एक गाँव तवारीवाला के रहने वाले है। जो कि वर्ष 1995 से पारंपरिक खेती करते आ रहे है जिसमें वे अरंडी, सरसों, प्याज और गेहूं उगाते थे लेकिन पूरी तरह से नई तकनीकों को अपनाना इतना आसान काम नहीं होता।
अब्दुल रहमान पहले तो झिझक रहे थे लेकिन अतुल टीम ने उन्हें भरोसा दिया कि वह उनका पूरा साथ देंगे। उसके बाद उन्हें 3 हेक्टेयर भूमि में खेती के लिए 465 पौधे दिए गए, जो खजूर की उगाई जाने वाली खुनैज़ी किस्म के थे। इस किस्म की खजूरें सबसे अच्छी गुणवत्ता के साथ स्वाद में भी लाजवाब होती है। इसकी पहली कटाई 5 साल बाद की जाती है। अब्दुल ने इसकी खेती 100 प्रतिशत जैविक तरीके से की और जब खजूर थोड़ी पकने लगी तो उस स्तिथि में ही खजूरों को बेचा। खजूर के पौधों की शाखाएं से बहुत मुनाफा होता है क्योंकि एक शाखा भी 800-900 रूपये में बिकती है। जबकि एक पौधे में कम से कम 10 शाखाएं होती हैं। अब्दुल रहमान शाखाओं को बेचकर प्रति वर्ष 8-9 लाख रुपए कमा लेते हैं। साल 2016 में सरकार ने खजूर की खेती की नई तकनीकें सीखने के लिए उनको इज़रायल भेज दिया। शुरुआती दिनों में, उन्हें काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा क्योंकि खरीदने वाले कम थे और उस समय लोगों को खजूरों के फायदों के बारे में पता भी नहीं था। उन्हें निकट के जिले पोखरण जाना पड़ता था जो कि 125 किलोमीटर दूर था। इसके अलावा, पानी और बिजली जैसे अन्य महत्वपूर्ण और बुनियादी संसाधन भी पर्याप्त नहीं थे।
श्री अब्दुल ने एक फार्म तैयार किया हुआ है, जिसमें पशुपालन के साथ मुर्गी पालन, बकरी पालन और डेयरी का भी काम रहे हैं। उनके पास स्थानीय नस्ल की ही पशु है, जिसमें 4 से 5 गायें हैं जो 15-20 लीटर दूध देती हैं और इसके अलावा 70-80 बकरियां और 100 मुर्गियां भी रखी हुई हैं। उनके द्वारा फसलों के लिए किया गया जैविक कचरे का उपयोग बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। आज उनकी प्रति वर्ष आय 10-15 के करीब होती है।
उपलब्धियां
भविष्य की योजनाएं
श्री अब्दुल खजूर की खेती को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते है और उसके साथ विभिन्न किस्मों की खेती करके प्रयोग करना चाहते हैं।
संदेश
श्री अब्दुल चाहते हैं कि अन्य किसान खजूर की खेती करें क्योंकि इस खेती में कम श्रम की आवश्यकता होती है। मौसम की बदलती परिस्थितियों से पौधा प्रभावित नहीं होता बस जड़ों को पानी में डुबाने और पौधे पर धूप की आवश्यकता होती है।
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हर इंसान की जिंदगी में एक ही कोशिश रहती है कि वह ऐसा काम करे जिससे उसकी पहचान उसके नाम की जगह उसके काम से हो, क्योंकि एक नाम जैसे तो बहुत होते हैं। ऐसी उदाहरण हर कोई दुनिया के सामने पेश करना चाहता है।
इस स्टोरी के द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं वह पहले डेयरी फार्मिंग के कार्य को संभालते थे और उसमें मुनाफा भी हो रहा था लेकिन उनका शौंक एक दिन पेशा बन जाएगा ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था और पंजाबी अपने शौंक पूरे करने के लिए ही जाने जाते हैं और उसे पूरा करके ही सांस लेते हैं। ऐसे ही सुखजिंदर सिंह जो मुक्तसर पंजाब के रहने वाले है, जिन्हें शौंक था कि क्यों ना घर में 2-3 बकरियों को रखकर देखभाल की जाए, इसलिए उन्होंने बरबरी जो देखने में बहुत सुंदर नस्ल है उसका एक बकरा और चार बकरियां ले आए ,जिसमें उनके घरवालों ने भी पूरा साथ दिया और वह उनकी देखभाल में लग गए और साथ-साथ अपना डेयरी फार्मिंग का काम भी संभालते रहे।
इस दौरान ही जब वह बकरियों की देखभाल कर रहे तो बकरियों के ब्याने के बाद जब उनके बच्चे थोड़े बड़े हुऐ तो लोग उन्हें देखने के लिए आते थे वह उनसे बच्चे लेकर जाने लगे क्योंकि बरबरी नस्ल की बकरी देखने में बहुत सुंदर और प्यारी होती है जिसे देखकर ही खरीदने का मन हो जाता है, जिससे बकरियों के बच्चे बिकने लगे लेकिन अभी भी सुखजिंदर जी बकरियों को शौंक के लिए ही रख रहे थे और उन्होंने बकरी पालन के काम के बारे में भी नहीं सोचा था।
साल 2017 के फरवरी में शुरू किए काम को धीरे-धीरे बढ़ाना शुरू किया और फार्म में बकरियों की संख्या को बढ़ाया और उनकी देखभाल करते रहे। इस दौरान उन्होंने विचार किया कि डेयरी फार्म के काम में मुनाफा नहीं हो रहा क्योंकि जितनी वह बकरियों की देखभाल कर रहे थे उससे कहीं ज्यादा डेयरी फार्म की तरफ ध्यान देते थे और इतनी मेहनत के बाद भी दूध का सही रेट नहीं मिल रहा था।
फिर उन्होंने थोड़ा समय अपने परिवार के साथ विचार करके डेयरी फार्मिंग के काम को कम करके बकरी पालन के फार्म को बढ़ाने के बारे में सोचा और 2-2, 4-4 करके उन्हें बढ़ाने लगे जिससे उनका बकरी पालन का काम सही तरीके से चलने लगा जिसमें मेहनत करते उन्हें 4 साल हो गए थे। इसके बाद उन्होंने सोचा कि डेयरी फार्म को बंद करके सिर्फ बकरी पालन के फार्म को बढ़ाएं और उसमें ही पूरे ध्यान से काम करें।
बकरी पालन को बढ़ाने से पहले वह साल 2019 में पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी से बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने चले गए ताकि बकरी पालन में कभी भी समस्या आए तो वह खुद उसका सामना कर सके, उसमें बिमारियों, खुराक और देखभाल की जानकारी दी जाती है।
साल 2019 में ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने बहुत सारे फार्मों का दौरा किया और इस काम की जानकारी लेकर बरबरी नस्ल को छोड़कर बीटल नस्ल की बकरियां लेकर आए जोकि लगभग 20 के आसपास थी। वह उनकी पूरी देखभाल करने लगे और फिर उन्होंने ब्रीडिंग की तरफ भी ध्यान देना शुरू कर दिया।
जैसे कि लोग पहले से ही उनके पास बकरियां लेने आते थे अब उससे भी ज्यादा लोग बकरियां लेकर जाने लगे जिसमें अच्छा मुनाफा होने लगा और मार्केटिंग भी होने लगी, उन्हें मार्केटिंग में ज्यादा समस्या नहीं आयी क्योंकि वह पहले भी डेयरी फार्मिंग का काम करते थे और लोग उनके पास आते जाते रहते थे फिर जब बकरी पालन का काम किया तब लोगों को जानकारी हो गई और उनसे बकरियां के बच्चे लेकर जाने लगे।
इसके साथ साथ वह मंडी में भी बकरियां लेकर जाते थे और वहां भी मार्केटिंग करते इस तरह वह साल 2019 के आखिर में इस काम में पूरी तरह कामयाब हो गए और अपने शौंक को पेशे में बदलकर लोगों को भी उदाहरण पेश की है क्योंकि यदि आप शौंक ही आपको पेशा बन जाए तो कभी भी असफलता देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
आज वह अपने फार्म में मार्केटिंग करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
भविष्य की योजना
बकरी फार्म को बढ़ाकर मार्केटिंग का प्रसार बड़े स्तर पर करना चाहते हैं जिससे पंजाब के बकरी पालकों को बकरियां पंजाब के बाहर से लाने ज़रूरत ना पड़े।
संदेश
यदि कोई नौजवान बकरी पालन का काम करना चाहता है तो सबसे पहले बकरी पालन की ट्रेनिंग और इस काम की सारी जानकारी प्राप्त करे ताकि यदि बाद में कोई समस्या आती है तो उसका खुद समाधान किया जा सके।
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इस तेजी से बदल रही, तेजी से भागती दुनिया में सफल परिणाम प्राप्त करने के लिए विविधीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसे अपनाना मुश्किल है लेकिन आजकल बहुत ज़रूरी है क्योंकि पूरी दुनिया में हर कोई कुछ अनोखा और विशिष्ट करने के लिए आया है। हालाँकि, बहुत से लोग परिवर्तन से डरते हैं और इसलिए, वे विविधीकरण पर अपने विचारों को रोकते हैं। केवल कुछ लोग ही अपने अनोखेपन को महसूस कर सकते हैं और दुनिया को बदलने के लिए उचाईयों तक पहुंच सकते हैं। यह कहानी एक ऐसे ही व्यक्ति की है।
जहां ज़्यादातर किसान गेहूं और धान की खेती के पारंपरिक तरीके से चलते हैं, वहीं मानसा के मलकपुर गांव के एक किसान हरभजन सिंह कृषि में विविधता की दिशा में अपने प्रयासों में योगदान देते हैं। वह अपनी 11 एकड़ जमीन पर सफलतापूर्वक एकीकृत फार्म चला रहे हैं जहाँ पर वह मछली, सुअर, मुर्गियां, बकरी और बटेर आदि का पालन करते हैं। इसके अलावा उन्होंने 55 एकड़ पंचायती जमीन भी किराए पर ली हुई है जिसमें वह मछली पालन करते हैं।
हरभजन सिंह जी ने 1981 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक मैकेनिकल वर्कशॉप शुरू की और वह इसके साथ ही अपने परिवार की कृषि कार्य में सहायता करते थे। उस समय हरभजन सिंह जी के दोस्त ने उन्हें मछली पालन शुरू करने का सुझाव दिया। इसलिए उन्होंने मछली पालन की प्रक्रिया पर रिसर्च करना शुरू कर दिया और जल्द ही मछली पालन करने के लिए किराए पर गाँव का तालाब ले लिया।
मछली पालन करके मैंने बहुत मुनाफा कमाया और इसलिए मैंने अपनी खुद की ज़मीन पर काम करने का फैसला किया- हरभजन सिंह
इस काम से उन्हें फायदा हुआ, इसलिए 1995 में उन्होंने पंजाब राज्य मछली पालन बोर्ड, मानसा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और अपनी ज़मीन पर अधिक बढ़िया ढंग से काम करना शुरू कर दिया। हरभजन सिंह जी ने अपनी ज़मीन पर 2.5 एकड़ में एक तालाब तैयार किया और बाद में अपने तालाब के नज़दीक में 2.5 एकड़ जमीन खरीदी। उस समय उनका मछली उत्पादन 6 टन प्रति हेक्टेयर था।
बाद में, उन्होंने उत्पादन को बढ़ाने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, ओडिशा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और मछली की 6 नस्लें (रोहू, कतला, मुराख़, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प और सिल्वर कार्प) और 3 एरेटर भी खरीदे। इन एरेटर पर सरकार ने आधी सब्सिडी भी प्रदान की। एरेटर के उपयोग के बाद मछली की उत्पादकता बढ़कर 8 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।
मुझे सरकारी हैचरी से मछली के बीज खरीदने पड़े, जो एक महंगी प्रक्रिया थी, इसलिए मैंने अपनी खुद की एक हैचरी तैयार की- हरभजन सिंह
उन्होंने मछली पालन के साथ-साथ मछली के सीड पैदा करने के लिए एक हैचरी तैयार की क्योंकि अन्य हैचरी से बीज खरीदना महंगा था। आमतौर पर हैचरी सरकार द्वारा बनाई जाती है, लेकिन हरभजन सिंह इतने मेहनती और सक्षम थे कि उन्होंने अपनी खुद की हैचरी की शुरुआत बड़े निवेश के साथ की। हैचरी मछलियों को प्रजनन में मदद करने के लिए कृत्रिम वर्षा प्रदान करती है। उन्होंने हैचरी में लगभग 20 लाख उंगली के आकार के मछली के बच्चे तैयार किए और उन्हें 50 पैसे से 1 रुपये प्रति बीज के हिसाब से बेचा।
समय के साथ-साथ उन्होंने 2009 में Large White Yorkshire नस्ल के 50 सुअरों के साथ सुअर पालन का काम शुरू किया और उन्हें जीवित बेचने का फैसला किया। इस प्रकार की मार्केटिंग ज़्यादा सफल नहीं थी, इसलिए उन्होंने सुअर के मीट की प्रोसेसिंग शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने CIPHET, पीएयू और गड़वासु से मीट उत्पादों में ट्रेनिंग ली और सुअर के मीट को आचार में प्रोसेस किया। मीट के आचार की मार्केटिंग एक बड़ी सफलता थी, पर उनकी आमदनी लगभग दोगुनी हो गई।
वर्तमान में, हरभजन जी के पास लगभग 150 सुअर हैं और वह सुअर के व्यर्थ पदार्थों का उपयोग मछलियों को खिलाने के लिए करते हैं। इससे उनकी लागत का 50-60% बच गया और मछलियों का उत्पादन लगभग 20% बढ़ गया। अब वह प्रति हेक्टेयर 10 टन मछली का उत्पादन करते हैं।
उन्होंने फिश पोर्क प्रोसेसिंग सेल्फ हेल्प ग्रुप 11 मेंबर का शुरू किया। इससे कई लोगों को रोज़गार मिला और उनकी आय में वृद्धि हुई। हरभजन सिंह को एकीकृत खेती में उनकी सफलता के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया गया था।
बात यहीं नहीं रुकी! उनको रास्ता लंबा तय करना है। जैसे-जैसे पानी की कमी बढ़ती जा रही, तो हरभजन जी ने पानी को रिसाइकिल करके प्रकृति को बचाने का एक तरीका खोजा। वह सुअरों को नहलाने के लिए पहले पानी का उपयोग करके उसको दोबारा फिर उपयोग करते हैं। फिर उसी पानी को मछली के तालाब में डाला जाता है और मछली तालाब के अपशिष्ट जल का उपयोग खेतों में फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है। यह पानी जैविक होता है और फसलों को उर्वरक प्रदान करता है; इसलिए उर्वरकों की केवल आधी मात्रा को कृत्रिम रूप से देने की आवश्यकता होती है। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जी ने हरभजन सिंह जी के यत्नों से प्रभावित होकर उनके खेत का दौरा किया।
बकरी पालन शुरू करने के लिए मुझे केवीके, मानसा से ट्रेनिंग मिली- हरभजन सिंह
इसके अलावा, उन्होंने अपनी फार्मिंग में बकरियों को शामिल करने का फैसला किया, इसलिए उन्होंने केवीके, मानसा से ट्रेनिंग प्राप्त की और शुरुआत में बीटल और सिरोही के साथ 30 बकरियों के साथ काम करना शुरू किया और वर्तमान में हरभजन के पास 150 बकरियां हैं। 2017 के बाद उन्होंने पीएयू के किसान मेले का दौरा करना शुरू किया, जहाँ से उन्हें बटेर और मुर्गी पालन की प्रेरणा मिली। इसलिए, उन्होंने चंडीगढ़ से 2000 बटेर और 150 कड़कनाथ मुर्गियाँ खरीदी। यह मुर्गियां खुलेआम घूम सकती हैं और अन्य जानवरों के चारे के बचे हुए भोजन से अपना चारा खोज लेती हैं। वह इस समय अपने खेत में 3000 बटेर का पालन करते हैं।
पशुओं/जानवरों के लिए सारा चारा उनके द्वारा मशीनों की मदद से खेत में तैयार किया जाता है। आज हरभजन सिंह जी अपने दो बेटों के साथ सफलतापूर्वक अपने खेत पर काम करते हैं और वह खेत के कार्यों में उनकी मदद करते हैं। वह केवल एक सहायक की सहायता से पूरी खेती का प्रबंधन करते है। वह मछली के बच्चे 2 रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से बेचते हैं। इसके अलावा वह बकरा ईद के अवसर पर मलेरकोटला में बकरियों को बेचते हैं और बकरी के मीट से अचार तैयार करते हैं। कड़कनाथ मुर्गी के अंडे 15-20 रुपये और मुर्गे का मीट 700-800 रुपये में बिकता है। इसके बाद हरभजन जी ने ICAR-CIFE, कोलकाता से मछली का आचार, मछली का सूप आदि बनाने की ट्रेनिंग ली और घरेलू बाजार में उत्पाद का विपणन किया। वह अपना उत्पाद “ख़िआला पोर्क एंड फिश प्रोडक्ट्स” के नाम से बेचते हैं।
सभी उत्पादों की मार्केटिंग मेरे फार्म पर ही होती है- हरभजन सिंह
उनके फार्म पर ही मार्केटिंग की सारी प्रक्रिया की जाती है, उनको अपने उत्पाद बेचने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं। उन्होंने बहुत से युवा किसानों को प्रेरित किया और वे एकीकृत खेती के बारे में उनकी सलाह लेने के लिए उनसे मिलने जाते हैं। वह दूसरों के लिए प्रेरणा बने और कई अन्य लोगों को खेती की एकीकृत खेती करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।
भविष्य की योजना
हरभजन सिंह जी अपनी आमदन बढ़ाना चाहते हैं और अपनी खेती को उच्च स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं। वह एकीकृत खेती में और भी अधिक सफल होना चाहता है और लोगों को जैविक और विविध खेती के फायदों के बारे में सिखाना चाहता है।
संदेश
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जीवन का संघर्ष बहुत विशाल है, हर मोड़ पर ऐसी कठिनाइयाँ आती हैं कि उन कठिनाइयों का सामना करते हुए चाहे कितने भी वर्ष बीत जाएँ,पता नहीं चलता। उनमें से कुछ ऐसे इंसान हैं जो मुश्किलों का सामना करते हैं लेकिन मन ही मन में हारने का डर बैठा होता है, लेकिन फिर भी साहस के साथ जीवन की गति के साथ पानी की तरह चलते रहते हैं, कभी न कभी मेहनत के समुद्र से निकल कर बुलबुले बन कर किसी के लिए एक उदाहरण बनेंगे।
जिंदगी के मुकाम तक पहुँचने के लिए ऐसे ही एक किसान तरनजीत संधू, गांव गंधड़, जिला श्री मुक्तसर के रहने वाले हैं, जो लगातार चलते पानी की तरह मुश्किलों से लड़ रहे हैं, पर साहस नहीं कम हुआ और पूरे 25 सालों बाद कामयाब हुए और आज तरनजीत सिंह संधू ओर किसानों और लोगों को मुश्किलों से लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
साल 1992 की बार है तरनजीत की आयु जब छोटी थी और दसवीं कक्षा में पड़ते थे, उस दौरान उनके परिवार में एक ऐसी घटना घटी जिससे तरनजीत को छोटी आयु में ही घर की पूरी जिम्मेवारी संभालने के लिए मजबूर कर दिया, जोकि एक 17-18 साल के बच्चे के लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि उस समय उनके पिता जी का निधन हो गया था और उनके बाद घर संभालने वाला कोई नहीं था। जिससे तरनजीत पर बहुत सी मुश्किलें आ खड़ी हुई।
वैसे तरनजीत के पिता शुरू से ही पारंपरिक खेती करते थे पर जब तरनजीत को समझ आई तो कुछ अलग करने के बारे में सोचा कि पारंपरिक खेती से हट कर कुछ अलग किया जाए और कुछ अलग पहचान बनाई जाए। उन्होंने सोच रखा था कि जिंदगी में कुछ ऐसा करना है जिससे अलग पहचान बने।
तरनजीत के पास कुल 50 एकड़ जमीन है पर अलग क्या उगाया जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था, कुछ दिन सोचने के बाद ख्याल आया कि क्यों न बागवानी में ही कामयाबी हासिल की जाए। फिर तरनजीत जी ने बेर के पौधे मंगवा कर 16 एकड़ में उसकी खेती तो कर दी, पर उसके लाभ हानि के बारे में नहीं जानते थे, बेशक समझ तो थी पर जल्दबाजी ने अपना असर थोड़े समय बाद दिखा दिया।
उन्होंने न कोई ट्रेनिंग ली थी और न ही पौधों के बारे में जानकारी थी, जिस तरह से आये थे उसी तरह लगा दिए, उन्हें न पानी, न खाद किसी चीज के बारे में जानकारी नहीं थी। जिसका नुक्सान बाद में उठाना पड़ा क्योंकि कोई भी समझाने वाला नहीं था। चाहे नुक्सान हुआ और दुःख भी बहुत सहा पर हार नहीं मानी।
बेर में असफलता हासिल करने के बाद फिर किन्नू के पौधे लाकर बाग़ में लगा दिए, पर इस बार हर बात का ध्यान रखा और जब पौधे को फल लगना शुरू हुआ तो वह बहुत खुश हुए।
पर यह ख़ुशी कुछ समय के लिए ही थी क्योंकि उन्हें इस तरह लगा कि अब सब कुछ सही चल रहा है क्यों न एक बार में पूरी जमीन को बाग़ में बदल दिया जाए और यह चीज उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव लेकर आई जिससे उन्हें बहुत मुश्किल समय में से गुजरना पड़ा।
बात यह थी कि उन्होंने सोचा इस तरह यदि एक-एक फल के पौधे लगाने लगा तो बहुत समय निकल जाएगा। फिर उन्होंने हर तरह के फल के पौधे जिसमें अमरुद, मौसमी फल, अर्ली गोल्ड माल्टा, बेर, कागजी नींबू, जामुन के पौधे भरपूर मात्रा में लगा दिए। इसमें उनका बहुत खर्चा हुआ क्योंकि पौधे लगा तो लिए थे पर उनकी देख-रेख उस तरीके से करने लिए बैंक से काफी कर्जा लेना पड़ा। एक समय ऐसा आया कि उनके पास खर्चे के लिए भी पैसे नहीं थे। ऊपर से बच्चे की स्कूल की फीस, घर संभालना उन्हीं पर था।
कुछ समय ऐसा ही चलता रहा और समय निकलने पर फल लगने शुरू हुए तो उन्हें वह संतुष्ट हुए पर जब उन्होंने अपने किन्नू के बाग़ ठेके पर दे दिए तो बस एक फल के पीछे 2 से 3 रुपए मिल रहे थे।
16 साल तक ऐसे ही चलता रहा और आर्थिक तौर पर उन्हें मुनाफा नहीं हो रहा था। साल 2011 में जब समय अनुसार फल पक रहे तो उनके दिमाग में आया इस बार बाग़ ठेके पर न देकर खुद मार्किट में बेच कर आना है। जब वह जिला मुक्तसर साहिब की मार्किट में बेचने गए तो उन्हें बहुत मुनाफा हुआ और वह बहुत खुश हुए।
तरनजीत ने जब इस तरह से पहली बार मार्किट की तो उन्हें यह तरीका बहुत बढ़िया लगा, इसके बाद उन्होंने ठेके पर दिया बाग़ वापिस ले लिया और खुद निश्चित रूप से मार्केटिंग करने के बारे में सोचा। फिर सोचा मार्केटिंग आसानी से कैसे हो सकती है, फिर सोचा क्यों न एक गाडी इसी के लिए रखी जाए जिसमें फल रख कर मार्किट जाया जाए। फिर साल 2011 से वह गाडी में फल रख कर मार्किट में लेकर जाने लगे, जिससे उन्हें दिन प्रतिदिन मुनाफा होने लगा, जब यह सब सही चलने लगा तो उन्होंने इसे बड़े स्तर पर करने के लिए अपने साथ पक्के बंदे रख लिए, जो फल की तुड़ाई और मार्किट में पहुंचाते भी है।
जो फल की मार्केटिंग श्री मुक्तसर साहिब से शुरू हुई थी आज वह चंडीगढ़, लुधियाना, बीकानेर, दिल्ली आदि बड़े बड़े शहरों में अपना प्रचार कर चुकी है जिससे फल बिकते ही पैसे अकाउंट में आ जाते हैं और आज वह बाग़ की देख रेखन करते हैं और घर बैठे ही मुनाफा कमा रहे हैं जो उनके रोजाना आमदन का साधन बन चुकी है।
तरनजीत ने सिर्फ बागवानी के क्षेत्र में ही कामयाबी हासिल नहीं की, बल्कि साथ-साथ ओर सहायक व्यवसाय जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन में भी कामयाब हुए हैं और मीट के अचार बना कर बेच रहे हैं। इसके इलावा सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं जोकि जैविक तरीके के साथ कर रहे हैं। उनके फार्म पर 30 से 35 आदमी काम करते हैं, जो उनके परिवार के लिए रोजगार का जरिया भी बने हैं। उसके साथ वह टूरिस्ट पॉइंट प्लेस भी चला रहे हैं।
इस काम के लिए उन्हें PAU, KVK और कई संस्था की तरफ से उन्हें बहुत से अवार्ड द्वारा सम्मानित किया जा चूका है।
यदि तरनजीत आज कामयाब हुए हैं तो उसके पीछे उनकी 25 साल की मेहनत है और किसी भी समय उन्होंने कभी हार नहीं मानी और मन में एक इच्छा थी कि कभी न कभी कामयाबी मिलेगी।
भविष्य की योजना
वह बागवानी को पूरी जमीन में फैलाना चाहते हैं और मार्केटिंग को ओर बड़े स्तर पर करना चाहते हैं, जहां भारत के कुछ भाग में फल बिक रहा है, वह भारत के हर एक भाग में फल पहुंचना चाहते हैं।
संदेश
यदि मुश्किलें आती है तो कुछ अच्छे के लिए आती है, खेती में सिर्फ पारंपरिक खेती नहीं है, इसके इलावा ओर भी कई सहायक व्यवसाय है जिसे कर कामयाब हुआ जा सकता है।
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बकरी पालन का व्यवसाय बहुत लाभकारी व्यवसाय है क्योंकि इसमें बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है, यदि बात करें पशु—पालन के व्यवसाय की, तो ज्यादातर पशु पालन डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय से संबंधित हैं। पर आज कल बकरी पालन का व्यवसाय, पशु पालन में सबसे सफल व्यवसाय माना जाता है और बहुत सारे नौजवान भी इस व्यवसाय में सफलता हासिल कर रहे हैं। यह कहानी है ऐसे ही दो नौजवानों की, जिन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बकरी पालन का व्यवसाय शुरू किया और सफलता हासिल करने के साथ साथ अन्य किसानों को भी इससे संबंधित ट्रेनिंग दे रहे हैं।
हरियाणा के जिला सिरसा के गांव तारूआणा के रहने वाले संदीप सिंह और राजप्रीत सिंह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद नौकरी करने की बजाय अपना कोई कारोबार करना चाहते थे। राजप्रीत ने एम.एस.सी. एग्रीकलचर की पढ़ाई की हुई थी, इसलिए राजप्रीत के सुझाव पर दोनों दोस्तों ने खेती या पशु पालन का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने पहले पॉलीहाउस लगाने के बारे में सोचा पर किसी कारण इसमें वे सफल नहीं हो पाए।
इसके बाद उन्होंने पशु पालन का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने पशु पालन के माहिरों से मुलाकात की, तो माहिरों ने उन्हें बकरी पालन का व्यवसाय अपनाने की सलाह दी।
माहिरों की सलाह से उन्होंने बकरी पालन का व्यवसाय शुरू करने से पहले ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग लेने के लिए वे मथुरा गए और 15 दिनों की ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने तारूआणा गांव में 2 कनाल जगह में SR COMMERCIAL बकरी फार्म शुरू किया।
आज कल यह धारणा आम है कि यदि कोई व्यवसाय शुरू करना है तो बैंक से लोन लेकर आसानी से काम शुरू किया जा सकता है पर संदीप और राजप्रीत ने बिना किसी वित्तीय सहायता के अपने पारिवारिक सदस्यों की मदद से वर्ष 2017 में बकरी फार्म शुरू किया।
जैसे कहा ही जाता है कि किसी की सलाह से रास्ते तो मिल ही जाते हैं पर मंज़िल पाने के लिए मेहनत खुद ही करनी पड़ती है।
इसलिए इस व्यवसाय में सफलता हासिल करने के लिए उन दोनों ने भी मेहनत करनी शुरू कर दी। उन्होंने समझदारी से छोटे स्तर पर सिर्फ 10 बकरियों के साथ बकरी फार्म शुरू किया था, ये सभी बकरियां बीटल नस्ल की थी। इन बकरियों को वे पंजाब के लुधियाना,रायकोट,मोगा आदि की मंडियों से लेकर आए थे। धीरे धीरे उन्हें बकरी पालन में आने वाली मुश्किलों के बारे में पता लगा। फिर उन्होंने इन मुश्किलों का हल ढूंढना शुरू कर दिया।
बकरी पालकों को जो सबसे अधिक मुश्किल आती है, वह है बकरी की नस्ल की पहचान करने की। इसलिए हमेशा ही बकरियों की पहचान करने के लिए जानकारी लेनी चाहिए। — संदीप सिंह
अपने दृढ़ संकल्प और परिवारिक सदस्यों से मिले सहयोग के कारण उन्होंने बकरी पालन के व्यवसाय को लाभदायक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संदीप और राजप्रीत ने अपने फार्म में बकरियों की नस्ल सुधार पर काम करना शुरू कर दिया। अपने मेहनत के कारण, आज 2 वर्षों के अंदर अंदर ही उन्होंने फार्म में बकरियों की गिनती 10 से 150 तक पहुंच गई है।
बकरी पालन के व्यवसाय में कभी भी लेबर पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यदि इस व्यवसाय में सफलता हासिल करनी है तो हमें खुद ही मेहनत करनी पड़ती है। — राजप्रीत सिंह
बकरी पालन में आने वाली मुश्किलों को जानने के बाद उन्होंने अन्य बकरी पालकों की मदद करने के लिए बकरी पालन की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी ताकि बकरी पालकों को इस व्यवसाय से अधिक मुनाफा हो सके। संदीप और राजप्रीत अपने फार्म पर प्रैक्टीकल ट्रेनिंग देते हैं जिससे शिक्षार्थियों को अधिक जानकारी मिलती है और वे इन तकनीकों का प्रयोग करके बकरी पालन के व्यवसाय से लाभ कमा रहे हैं।
बकरी पालन की ट्रेनिंग देने के साथ साथ SR Commercial बकरी फार्म से पंजाब और हरियाणा ही नहीं, बल्कि अलग अलग राज्यों के बकरी पालक बकरियां लेने के लिए आते हैं।
आने वाले समय में संदीप और राजप्रीत अपना बकरी पालन ट्रेनिंग स्कूल शुरू करना चाहते हैं और बकरी पालन के व्यवसाय के साथ साथ खेती के क्षेत्र में भी आगे आना चाहते हैं। इसके अलावा वे बकरी की फीड के उत्पाद बनाकर इनकी मार्केटिंग करना चाहते हैं।
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ढाडा बकरी फार्म – चार भविष्यवादी पुरूषों (बीरबल राम शर्मा, जुगराज सिंह, अमरजीत सिंह और मनजीत कुमार) द्वारा संचालित फार्म, जिन्होंने सही समय पर पंजाब में बकरी के मीट और दूध के भविष्य के बाजार को देखते हुए एक बकरी फार्महाउस स्थापित की जहां से आप न केवल दूध और मीट खरीद सकते हैं बल्कि आप बकरी पालन के लिए बकरी की विभिन्न नस्लों को भी खरीद सकते हैं।
शुरू में, बकरी फार्म की स्थापना का विचार बीरबल और उनके चाचा मनजीत कुमार का था। इससे पहले कॉलेज सुपरवाइज़र के तौर पर काम करके बीरबल ऊब गए थे और वे अपना खुद का व्यवसाय स्थापित करना चाहते थे। लेकिन कुछ भी निवेश करने से पहले बीरबल एक संपूर्ण मार्किट रिसर्च करना चाहते थे। उन्होंने पंजाब में कई फार्म का दौरा किया और मार्किट का विशलेषण करने और कुछ मार्किट ज्ञान हासिल करने के लिए वे दिल्ली भी गए।
विशलेषण के बाद, बीरबल ने पाया कि पंजाब में बहुत कम बकरी फार्म है और बकरी के मीट और दूध की मांग अधिक है। बीरबल के चाचा, मनजीत कुमार शुरू से ही व्यवसाय के भागीदार थे और इस तरह ढाडा बकरी फार्म का विचार वास्तविकता में आया। अन्य दो मुख्य साझेदार इस उद्यम में शामिल हुए, जब बीरबल एक खाली भूमि की तलाश में थे, जहां पर वे बकरी फार्म स्थापित कर सकते और फिर वे सूबेदार जुगराज सिंह और अमरजीत सिंह से मिले। वे दोनों ही मिल्ट्री से रिटायर्ड व्यक्ति थे। बकरी फार्म के विचार के बारे में जानकर जुगराज सिंह और अमरजीत सिंह ने इस उद्यम में दिलचस्पी दिखाई। जुगराज सिंह ने बीरबल को 10 वर्ष के लिए 4 एकड़ भूमि ठेके पर दी। अंत में, जुलाई 2015 में 23 लाख के निवेश के साथ ढाडा बकरी फार्म की स्थापना हुई।
फार्म 70 पशुओं (40 मादा बकरी, 5 नर बकरी और 25 मेमनों) से शुरू हुआ, बाद में उनहोंने 60 पशु और खरीदे। अपने उद्यम को अच्छा प्रबंधन और संरक्षण देने के लिए, चारों सदस्यों ने GADVASU से 5 दिन की बकरी फार्म की ट्रेनिंग ली।
खैर, ढाडा बकरी फार्म चलाना इतना आसान नहीं था, उन्हें कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। थोक में बकरियों को खरीदने के दौरान उन्होंने स्थानीय बकरी किसानों से बिना किसी उचित टीकाकरण के कुछ बकरियां खरीदीं। जिससे बकरियों को PPR रोग हुआ और परिणामस्वरूप बकरियों की मौत हो गई। इस घटना से, उन्होंने अपनी गल्तियों से सीखा और फिर पशु चिकित्सक सरबजीत से अपने खेत की बकरियों का उचित टीकाकरण शुरू करवाया।
डॉ. सरबजीत ने उन्हें एक बीमारी मुक्त स्वस्थ बकरी फार्म की स्थापना करने में बहुत मदद की, वे हर हफ्ते ढाडा बकरी फार्म जाते थे और उनका मार्गदर्शन करते। वर्तमान में, बकरियों की गिनती 400 से अधिक हो गई है। बीटल, सिरोही, बारबरी, तोतापरी और जखराना बकरी की नस्लें हैं जो ढाडा बकरी फार्म में मौजूद हैं। वे बाजार में बकरी का दूध, बकरी के गोबर से तैयार खाद बेचते हैं। अच्छा लाभ कमाने के लिए बकरीद के दौरान, वे नर बकरियों को भी बेचते हैं।
फीड सबसे महत्तवपूर्ण चीज़ है जिसका वे खास ध्यान रखते हैं। गर्मियों में वे बकरियों को हरी घास और पत्तियां, हरे चनों और हरी मूंग के पौधों का मिश्रण और सर्दियों में बरसीम, सरसों, गुआर और मूंगफली की घास देते हैं। फार्म में दो स्थायी श्रमिक हैं जो बकरी फार्म का प्रबंधन करने में मदद करते हैं। बेहतर फीड तैयार करने के लिए चारा घर में उगाया जाता है। बकरी की जरूरतों का उचित ध्यान रखने के लिए उन्होंने बकरियों के स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए 4 कनाल क्षेत्र भी रखा है। डीवॉर्मिंग गन, चारा पीसने के लिए मशीन, चिकित्सक किट और दवाइयां कुछ आवश्यक चीज़ें हैं जिनका उपयोग बीरबल और अन्य सदस्य बकरी पालन की प्रक्रिया को आसान और सरल बनाने के लिए करते हैं।
बकरी फार्म से लगभग 750000 का औसतन लाभ वार्षिक कमाया जाता है जो ढाडा बकरी फार्म के सभी चार सदस्यों में विभाजित होता है। इस तरह बकरी फार्म उद्यम अच्छे से चलाने के बाद भी, ढाडा बकरी फार्म का कोई भी सदस्य अपनी सफलता के लिए शेखी नहीं मारता और जब भी कोई किसान मदद के लिए या मार्गदर्शन के लिए उनके फार्म का दौरा करता है तो वे पूरे दिल से उनकी मदद करते हैं।
पुरस्कार और उपलब्धियां:
बकरी पालन में सफलता के लिए, श्री जुगराज सिंह को ढाडा बकरी के लिए 23 मार्च 2018 को मुख्यमंत्री पुरस्कार भी मिला।
भविष्य की योजना:
भविष्य में, ढाडा बकरी फार्म के भविष्यवादी पुरूष अपनी बकरियों की गिनती को 1000 तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं।
“बकरी पालन एक सहायक गतिविधि है जो कोई भी किसान फसलों की खेती के साथ अपना सकता है और इससे अच्छा लाभ कमा सकता है। किसानों को इस व्यवसाय की प्रमुख सीमाओं और इसके लाभ के बारे में पता होना चाहिए।”
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अधिकतर लोग सोचते हैं कि आज की कामकाजी दुनिया में सफलता के लिए कॉलेज की शिक्षा महत्तवपूर्ण है। हां, ये सच है कि कॉलेज की शिक्षा आवश्यक है क्योंकि शिक्षा व्यक्ति को अपडेट करने में मदद करती है लेकिन सफलता के पीछे एक ओर प्रेरणा शक्ति होती है और वह है जुनून। आपका जुनून ही आपको पैसा कमाने में मदद करता है और जुनून, व्यक्ति में एक विशेष चीज के प्रति रूचि होने पर ही आता है।
ऐसे एक व्यक्ति हैं अल्ताफ, जो कम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अपना बकरी पालन का व्यापार व्यापारिक स्तर पर अच्छे से चला रहे हैं। इसमें उनकी बचपन से ही दिलचस्पी थी जिससे उन्होंने बकरी पालन को अपने पेशे के रूप में अपनाया और यह उनका जुनून ही था जिससे वे सफल बनें।
अल्ताफ राजस्थान के फतेहपुर सिकरी शहर में बहुत अच्छे परिवार में पैदा हुए। अल्ताफ के पिता, श्री अयूब खोकर एक मजदूर थे और वे अपना घर चलाने के लिए छोटे स्तर पर खेती भी करते थे। उनके पास दूध के लिए चार बकरियां थी। बचपन में अल्ताफ को बकरियों का बहुत शौंक था और वे हमेशा उनकी देखभाल करते थे लेकिन जैसे कि अल्ताफ के पिता के पास कोई स्थाई काम नहीं था, इसलिए कोई नियमित आय नहीं थी, परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जिस कारण अल्ताफ को 7वीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन बकरी पालन के प्रति उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ और 2013 में उन्होंने बकरी पालन का बड़ा कारोबार शुरू किया।
शुरू में, अल्ताफ ने सिर्फ 20 बकरियों से बकरी पालन का कारोबार शुरू किया और धीरे -धीरे समय के साथ अपने व्यवसाय को 300 बकरियों के साथ बढ़ाया। उन्होंने बकरी पालन के लिए किसी तरह की ट्रेनिंग नहीं ली। वे सिर्फ बचपन से ही अपने पिता को देखकर सीखते रहे। इन वर्षों में उन्होंने समझा कि बकरियों की देखभाल कैसे करें। उनके फार्म में बकरी की विभिन्न प्रकार की नस्लें और प्रजातियां हैं। आज इनके फार्म में बने मीट को इसकी सर्वोत्तम गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। वे अपनी बकरियों को कोई भी दवाई या किसी भी प्रकार की बनावटी खुराक नहीं देते। वे हमेशा बकरियों को प्राकृतिक चारा देना ही पसंद करते हैं और ध्यान देते हैं कि उनकी सभी बकरियां बीमारी रहित हो। अभी तक वे बड़े स्तर पर मंडीकरण कर चुके हैं। उन्होंने यू पी, बिहार, राजस्थान और मुंबई में अपने फार्म में निर्मित मीट को बेचा है। उनके फार्म में बने मीट की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि इसकी मुंबई से विशेष मांग की जाती है। इसके अलावा वे खेत के सभी कामों का प्रबंधन करते हैं और जब भी उन्हें अतिरिक्त मजदूरों की आवश्यकता होती है, वे मजदूरों को नियुक्त कर लेते हैं।
आज 24 वर्ष की आयु में अल्ताफ ने अपना बकरी पालन का कारोबार व्यापारिक रूप में स्थापित किया है और बहुत आसानी से प्रबंधित कर रहे हैं और जैसे कि हम जानते हैं कि भारत में बकरी, मीट उत्पादन के लिए सबसे अच्छा जानवर माना जाता है इसलिए बकरी पालन के लिए आर्थिक संभावनाएं बहुत अच्छी हैं लेकिन इस स्तर तक पहुंचना अल्ताफ के लिए इतना आसान नहीं था। बहुत मुश्किलों और प्रयासों के बाद, उन्होंने 300 बकरियों के समूह को बनाए रखा है।
भविष्य की योजना:
भविष्य में वे अपने कारोबार को और अधिक बड़ा करने की योजना बना रहे हैं। वे विभिन्न शहरों में मौजूद ग्राहकों के साथ संबंधों को मजबूत कर रहे हैं और अपने फार्म में बकरी की विभिन्न नस्लों को भी शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
अल्ताफ द्वारा दिया गया संदेश
“अल्ताफ के अनुसार, एक किसान को कभी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि भगवान हर किसी को मौका देते हैं बस आपको उसे हाथ से जाने नहीं देना है। अपने खुद के बल का प्रयोग करें और अपने काम की शुरूआत करें। आपका कौशल आपको ये तय करने में मदद करता है कि भविष्य में आपको क्या करना है।”