नरेंद्र और लोकेश

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दो दोस्तों की कहानी

अगर भारत की बात करें तो यहां काफी लोग पशुपालन करते हैं। जानवरों के प्रति लोगों का लगाव, उनकी देखरेख यहां देखने को मिलती है।
आपको बता दें कि दुनिया में भैंसों की संख्या के मामले में भारत का पहला स्थान है, गाय और बकरी पालन के मामले में दूसरा और भेड़ों के मामले में तीसरा स्थान है। पशुपालन से यहां हर साल करोड़ों रुपये की कमाई होती है। आज आप भारत के हरियाणा के निवासी नरेंद्र और लोकेश के बारे में जानेंगे, जिन्होंने “यदुवंशी बकरी फार्म” शुरू किया और बकरी पालन करके करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। दोनों आर्मी स्कूल में पढ़े। नरेंद्र और उसका दोस्त लोकेश हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल के रहने वाले हैं। दोनों बचपन से दोस्त थे और दोनों ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आर्मी स्कूल में पूरी की। फिर नरेंद्र ने बी.टेक. किया, जबकि उनके दोस्त लोकेश ने एम.सी.ए. की पढ़ाई पूरी की। दोनों में ऐसी दोस्ती हुई कि दोनों ने साथ में पढ़ाई पूरी की।
नरेंद्र ने बताया कि जब वह और उसका दोस्त लोकेश साथ पढ़ते थे तो दोनों बिजनेस नहीं करना चाहते थे। बाद में नौकरी करते हुए उन्होंने अपने व्यवसाय को बढ़ाने की योजना बनाई। दोनों को अपनी नौकरी पसंद थी और लाखों रुपये कमा रहे थे, लेकिन दोनों ने अपना व्यवसाय करने की योजना बनाई। इसी सोच के साथ दोनों ने बकरी पालन शुरू किया और 2016 में “यदुवंशी बकरी” फार्म की स्थापना हुई थी।
बकरियों के फार्म के बारे में बात करते हुए नरेंद्र कहते हैं कि अगर कोई बकरी पालन करने के बारे में सोच रहा है तो सबसे पहले उसके लिए एक बड़ा फार्म होना जरूरी है। नरेंद्र और लोकेश ने बकरी पालन के लिए करीब 3.5 एकड़ का कैंपस भी तैयार किया। उनके पास डेढ़ एकड़ बकरियों के लिए और 2 एकड़ बकरियों के हरे चारे के लिए है। वे विशेष रूप से बकरी की किस्म तोतापारी का व्यवसाय करते हैं।
नरेंद्र और लोकेश हरियाणा में सबसे बड़े स्टाल-फीडिंग फार्म के साथ बकरियों की नस्ल पर काम करते हैं। . नरेंद्र के खेत पर उन्होंने यहां बकरियों की उम्र के हिसाब से रहने की व्यवस्था की है। जो बकरियां युवा है उन्हें एक जगह रखा जाता है और साथ ही उनके पास एक साल की उम्र के बकरों के लिए अलग से व्यवस्था है। बकरियों को उनकी उम्र और सेहत के आधार पर रखा जाता है।
एक साल से बड़ी बकरियों के लिए भी अलग से व्यवस्था है। वे कहते हैं कि बकरियों वाले कमरों में खिड़कियां ज़मीन के थोड़ा करीब हों तो बेहतर है, क्योंकि इससे जमीन ठंडी रहती है। वह लोगों को सलाह भी देते हैं कि खिड़कियां अधिक ऊंचाई पर न रखें। यदुवंशी बकरी फार्म खोलने से पहले नरेंद्र और लोकेश ने बकरियों की विशेष देखभाल का पूरा ध्यान रखा। यदुवंशी बकरी फार्म पर बकरियों के रहने की पूरी व्यवस्था की गई है। बकरियों को लगातार छाया मिले इसके लिए फार्म के अंदर पेड़ लगाए गए हैं। फार्म के अंदर बकरियों के घूमने के साथ ही खाने और पानी का पूरा इंतजाम है। घुमाने वाला आयरन फीडिंग स्ट्रक्चर लगाया गया है और पानी पीने के लिए प्लास्टिक के छोटे-छोटे ड्रम भी लगाए गए हैं ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो।
शुरू से ही दोनों की दोस्ती बहुत गहरी रही है, उनके परिवारों को भी उनकी दोस्ती पर गर्व है और उनके उतार-चढ़ाव में उनका साथ देते हैं।
नरेंद्र और लोकेश के यदुवंशी बकरी फार्म में बकरियों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है। नरेंद्र कहते हैं कि मैं इन बकरियों की अपने बच्चों की तरह देखभाल करता हूं। जब से वे पैदा होते हैं तब से लेकर युवा होने तक, वह उनके स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होता है। जन्म के बाद उनके लिए टीके, दवाइयां और भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है।
समय-समय पर सेहत की जांच भी कराई जाती है। बकरियों को पशु चिकित्सक की देखरेख में वेक्सीनेशन करवाई जाती है, और बकरियों को संतुलित आहार भी दिया जाता है जिसमें सभी जरुरी तत्व होते हैं और उनमें रपीट की समस्या या ओर बीमारियां कम होती है।
नरेंद्र कहते हैं कि बकरियों में ब्रुसेला नाम का वायरस जल्दी होता है। यह वायरस बहुत खतरनाक है और इंसानों में फैल सकता है जिसके कारण बकरियों के खून की जाँच नियमित रूप पर की जाती है। यदुवंशी बकरी फार्म में बकरियों का चारा उनकी ग्रोथ के हिसाब दिया जाता है। इन बकरियों के पालन पोषण और रख-रखाव का विशेष ध्यान रखा जाता है।
अब उनके फार्म पर एक हजार से अधिक बकरियां हैं। यदुवंशी बकरी फार्म में बकरियों की देखरेख बहुत अच्छे से की जाती है, पहले इनकी संख्या 500-600 थी, लेकिन अब बकरियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वैसे नरेंद्र और लोकेश के बनाए फार्म पर 3000 बकरियां तक रखी जा सकती हैं।
यदुवंशी बकरी फार्म के मुनाफे की बात करें तो आज नरेंद्र और लोकेश मांस और बकरी के दूध के लिए बकरियां बेचकर करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। वह बकरियों की मेंगन से बनी खाद भी बेचते हैं, जिसकी एक ट्रॉली की कीमत गाय के गोबर की कीमत 2,000 रुपये तक होती है। इससे भी अच्छी आमदनी होती है। जिसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है और जो खेतों के लिए बहुत फायदेमंद होती है।
नरेंद्र और लोकेश बकरी पालन के साथ-साथ बकरी पालन की ट्रेनिंग भी देते हैं अगर किसी के पास पैसे की कमी है तो ऐसे लोगों को फ्री ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें बकरी पालन के बारे में सब कुछ सिखाया जाता है और बकरी पालन में आ रही दिक्कतों के बारे में भी बताया जाता है। आज कई लोग उनसे ट्रेनिंग प्राप्त कर अपना व्यवसाय खोल रहे हैं। उनके इलाके में ऐसा माना जाता है कि इन दोनों दोस्तों ने बकरी फार्म खोलकर एक मिसाल कायम की है। इन दोनों दोस्तों ने सबसे पहले अपने क्षेत्र के लोगों को बकरी पालन के बारे में जागरूक किया।
दोनों मित्र अपनी नीतियों को साझा करते हैं: बकरे का मांस तो सभी खाना चाहते हैं, लेकिन रखना कोई नहीं चाहता। अगर मांस खाना है तो बकरियों को भी ठीक से पालना होगा। बकरी पालन के लिए उनका कहना है कि यह व्यवसाय तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक बकरियों के जन्म से लेकर उनके बड़े होने तक उनकी देखभाल सही तरह से नहीं की जाती। अगर इस काम में थोड़ी सी भी कमी या लापरवाही हुई तो यह आपके बिजनेस को नुकसान पहुंचा सकता है और अगर सब कुछ सही तरीके से किया गया तो यह बिजनेस आपको करोड़ों रुपए भी दिलाएगा। बकरी पालन और इस काम में रुचि रखने वालों के लिए, वे यदुवंशी बकरी फार्म के नाम से एक YouTube चैनल चलाते हैं ताकि लोगों को बकरियों के पालन-पोषण के संबंध में जानकारी दी जा सके।

भविष्य का लक्ष्य

नरेंद्र और लोकेश अधिक लाभ कमाने के लिए अपनी बकरियों को विदेशों में निर्यात करना चाहते हैं, जहां कीमतें बहुत अधिक हैं। वे नए फार्म खोलने की भी योजना बना रहे हैं ताकि विदेशों में होने वाली बकरियों की मांग को पूरी किया जा सके।

चुनौतियों

इसमें मुख्य चुनौती मजदूर प्रबंधन है। कच्चे माल में हर साल वृद्धि के साथ लागत भी बढ़ जाती है। पहले इन्हें बकरी पालन की मार्किट के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था जो नरेंद्र और लोकेश ने अपने व्यवसाय को फलने-फूलने के लिए स्थापित किया था।

किसानों के लिए संदेश

 कोई भी पशुधन व्यवसाय शुरू करने से पहले धैर्य रखें और उचित ट्रेनिंग प्राप्त करें। साथ ही लाभ पाने के लिए बकरी पालन में कम से कम 2 साल का इंतजार करें। कृपया अपने क्षेत्र और वहां मार्किट में मांग के अनुसार एक नस्ल चुनें, सुनिश्चित करें कि आपके पास अच्छी तरह काम करने वाले मज़दूर हैं जो बकरियों पर नज़र रखें और खुद भी इस काम में पूरा ध्यान रखें।

सुखजिंदर सिंह

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शौंक को पेशे में बदलकर कामयाब होना सीखें इस इंसान से

हर इंसान की जिंदगी में एक ही कोशिश रहती है कि वह ऐसा काम करे जिससे उसकी पहचान उसके नाम की जगह उसके काम से हो, क्योंकि एक नाम जैसे तो बहुत होते हैं। ऐसी उदाहरण हर कोई दुनिया के सामने पेश करना चाहता है।

इस स्टोरी के द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं वह पहले डेयरी फार्मिंग के कार्य को संभालते थे और उसमें मुनाफा भी हो रहा था लेकिन उनका शौंक एक दिन पेशा बन जाएगा ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था और पंजाबी अपने शौंक पूरे करने के लिए ही जाने जाते हैं और उसे पूरा करके ही सांस लेते हैं। ऐसे ही सुखजिंदर सिंह जो मुक्तसर पंजाब के रहने वाले है, जिन्हें शौंक था कि क्यों ना घर में 2-3 बकरियों को रखकर देखभाल की जाए, इसलिए उन्होंने बरबरी जो देखने में बहुत सुंदर नस्ल है उसका एक बकरा और चार बकरियां ले आए ,जिसमें उनके घरवालों ने भी पूरा साथ दिया और वह उनकी देखभाल में लग गए और साथ-साथ अपना डेयरी फार्मिंग का काम भी संभालते रहे।

इस दौरान ही जब वह बकरियों की देखभाल कर रहे तो बकरियों के ब्याने के बाद जब उनके बच्चे थोड़े बड़े हुऐ तो लोग उन्हें देखने के लिए आते थे वह उनसे बच्चे लेकर जाने लगे क्योंकि बरबरी नस्ल की बकरी देखने में बहुत सुंदर और प्यारी होती है जिसे देखकर ही खरीदने का मन हो जाता है, जिससे बकरियों के बच्चे बिकने लगे लेकिन अभी भी सुखजिंदर जी बकरियों को शौंक के लिए ही रख रहे थे और उन्होंने बकरी पालन के काम के बारे में भी नहीं सोचा था।

साल 2017 के फरवरी में शुरू किए काम को धीरे-धीरे बढ़ाना शुरू किया और फार्म में बकरियों की संख्या को बढ़ाया और उनकी देखभाल करते रहे। इस दौरान उन्होंने विचार किया कि डेयरी फार्म के काम में मुनाफा नहीं हो रहा क्योंकि जितनी वह बकरियों की देखभाल कर रहे थे उससे कहीं ज्यादा डेयरी फार्म की तरफ ध्यान देते थे और इतनी मेहनत के बाद भी दूध का सही रेट नहीं मिल रहा था।

फिर उन्होंने थोड़ा समय अपने परिवार के साथ विचार करके डेयरी फार्मिंग के काम को कम करके बकरी पालन के फार्म को बढ़ाने के बारे में सोचा और 2-2, 4-4 करके उन्हें बढ़ाने लगे जिससे उनका बकरी पालन का काम सही तरीके से चलने लगा जिसमें मेहनत करते उन्हें 4 साल हो गए थे। इसके बाद उन्होंने सोचा कि डेयरी फार्म को बंद करके सिर्फ बकरी पालन के फार्म को बढ़ाएं और उसमें ही पूरे ध्यान से काम करें।

बकरी पालन को बढ़ाने से पहले वह साल 2019 में पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी से बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने चले गए ताकि बकरी पालन में कभी भी समस्या आए तो वह खुद उसका सामना कर सके, उसमें बिमारियों, खुराक और देखभाल की जानकारी दी जाती है।

साल 2019 में ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने बहुत सारे फार्मों का दौरा किया और इस काम की जानकारी लेकर बरबरी नस्ल को छोड़कर बीटल नस्ल की बकरियां लेकर आए जोकि लगभग 20 के आसपास थी। वह उनकी पूरी देखभाल करने लगे और फिर उन्होंने ब्रीडिंग की तरफ भी ध्यान देना शुरू कर दिया।

जैसे कि लोग पहले से ही उनके पास बकरियां लेने आते थे अब उससे भी ज्यादा लोग बकरियां लेकर जाने लगे जिसमें अच्छा मुनाफा होने लगा और मार्केटिंग भी होने लगी, उन्हें मार्केटिंग में ज्यादा समस्या नहीं आयी क्योंकि वह पहले भी डेयरी फार्मिंग का काम करते थे और लोग उनके पास आते जाते रहते थे फिर जब बकरी पालन का काम किया तब लोगों को जानकारी हो गई और उनसे बकरियां के बच्चे लेकर जाने लगे।

इसके साथ साथ वह मंडी में भी बकरियां लेकर जाते थे और वहां भी मार्केटिंग करते इस तरह वह साल 2019 के आखिर में इस काम में पूरी तरह कामयाब हो गए और अपने शौंक को पेशे में बदलकर लोगों को भी उदाहरण पेश की है क्योंकि यदि आप शौंक ही आपको पेशा बन जाए तो कभी भी असफलता देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

आज वह अपने फार्म में मार्केटिंग करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

भविष्य की योजना

बकरी फार्म को बढ़ाकर मार्केटिंग का प्रसार बड़े स्तर पर करना चाहते हैं जिससे पंजाब के बकरी पालकों को बकरियां पंजाब के बाहर से लाने ज़रूरत ना पड़े।

संदेश

यदि कोई नौजवान बकरी पालन का काम करना चाहता है तो सबसे पहले बकरी पालन की ट्रेनिंग और इस काम की सारी जानकारी प्राप्त करे ताकि यदि बाद में कोई समस्या आती है तो उसका खुद समाधान किया जा सके।