मोटा राम शर्मा

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एक ऐसा किसान जिसने मशरूम से किया कैंसर जैसी ला—इलाज बीमारी का इलाज

खेती तो सभी किसान ही करते हैं, पर जिस किसान की बात आज हम करने जा रहे हैं वह बाकी किसानों से अलग है। पर खेती के साथ साथ रोगियों का इलाज करने के बारे में शायद ही किसी किसान ने सोचा होगा। यह एक ऐसा किसान है जो मशरूम की खेती करने के कारण डॉक्टर बना।

मशरूम मैन के नाम से प्रसिद्ध मोटा राम शर्मा जी आज से लगभग 24 वर्ष पहले डेयरी फार्मिंग के साथ साथ अपनी 5 बीघा ज़मीन में मशरूम की खेती करते थे। उस समय राजस्थान में मशरूम फार्मिंग का कोई ज्यादा रूझान नहीं था। सबसे पहले उन्होंने ओइस्टर मशरूम उगानी शुरू की थी। उस समय ज्यादातर किसान सिर्फ बटन मशरूम के बारे में ही जानते थे। इसलिए मोटा राम की तरफ से काफी मात्रा में ओइस्टर मशरूम तैयार की गई थी, तो इसकी ज्यादा मार्केटिंग ना होने के कारण उन्होंने मशरूम का पाउडर तैयार करके पशुओं को खिलाना शुरू कर दिया। इस पाउडर को खाने से गायों में मैसटाइटिस जैसी ला—इलाज बीमारी खत्म हो गई। इस सफलता के बाद मोटा राम जी ने बड़े स्तर पर ओइस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू कर दिया जब इसके बारे में खेती अधिकारियों को पता लगा तो उन्होंने मोटा राम शर्मा को ट्रेनिंग लेने की सलाह दी। उसके बाद मोटा राम जी ट्रेनिंग लेने के लिए सोलन और जयपुर गए। मशरूम के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद मोटा राम जी ने बटन और शिटाके मशरूम उगानी शुरू की। बटन मशरूम की मार्केटिंग उन्होने दिल्ली मंडी में करनी शुरू कर दी, इससे उन्हें बढ़िया कमाई होने लग गई। मोटा राम शर्मा जी मशरूम फार्मिंग बिना ए.सी. से करते हैं।

समय व्यतीत होने पर अपनी तरफ से की खोज के आधार पर मुझे पता लगा कि मशरूम को हम कई बीमारियां रोकने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मशरूम की कई किस्में हैं जो मानवी जीवन के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है — मोटा राम शर्मा

मशरूम उत्पादन करते करते मोटा राम जी ने मशरूम का बीज तैयार करना भी शुरू कर दिया और अब वह 16 अलग अलग किस्मों की मशरूम उगाते हैं।

वर्ष 2010 में वे भारत में गैनोडरमा मशरूम उगाने वाले सबसे पहले किसान बने, जिस कारण उन्हें मशरूम किंग आफ इंडिया का अवार्ड मिला। इस गैनोडरमा मशरूम का इस्तेमाल वे कैंसर की दवाई बनाने के लिए करते हैं।

अपने द्वारा तैयार की दवाइयों के साथ हम दिल के मरीज़ों और कैंसर के मरीज़ों का इलाज करते हैं अब तक हमने 90 प्रतिशत केसों में सफलता हासिल की है — मोटा राम शर्मा

बिना किसी डिग्री से पांचवी पास मोटा राम शर्मा के इस कारनामे के कारण कई लोग हैरत में हैं।

अपनी खोज के समय के दौरान उन्हें पता लगा कि मनुष्य में कैंसर होने का कारण शरीर में विटामिन 17 की कमी होना है और गैनोडरमा मशरूम में विटामिन 17 मौजूद होते हैं।

अब मोटा राम जी मशरूम से कई तरह की दवाइयां बनाते हैं, जिनसे वे कैंसर पीड़ित मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं।

अपने पांच बीघा के फार्म के आस पास उन्होंने अशोका वृक्ष, एलोवेरा, शतावरी और गिलोय के पौधे भी लगाए हुए हैं, जिनका इस्तेमाल वे दवाइयां बनाने के लिए करते हैं।

मोटा राम शर्मा जी के दोनों पुत्र डॉक्टर हैं, पर अब वे भी अपने पिता के साथ मिलकर मशरूम फार्मिंग करते हैं।

शर्मा जी अब 16 तरह की अलग अलग किस्मों की मशरूम उगाते हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं:
  • गैनोडरमा मशरूम
  • ऋषि मशरूम
  • पिंक मशरूम
  • साजर काजू
  • काबुल अंजाई
  • ब्लैक ईयर
  • बटन मशरूम
  • ओइस्टर मशरूम
  • ढींगरी मशरूम
  • डीजेमोर
  • सिट्रो मशरूम
  • शीटाके
  • सागर काजू सरीखी
  • पनीर मशरूम
  • फ्लोरीडा मशरूम
  • कोडी शैफ मशरूम

मशरूम फार्मिंग के क्षेत्र में किए अपने इन प्रयत्नों और खोजों के कारण मोटा राम शर्मा जी को कई अवार्ड भी मिले हैं, जो कि निम्नलिखित अनुसार है:

  • बेस्ट मशरूम फार्मर अवार्ड 2010
  • कृषि रत्न 2010
  • कृषि सम्राट 2011
  • मशरूम किंग आफ इंडिया 2018
  • राष्ट्रीय मशरूम बोर्ड के मैंबर

मोटा राम शर्मा जी के फार्म पर कई किसान भी मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए आते हैं।

भविष्य की योजना

मोटा राम जी आने वाले समय में किसानों की इसी तरह मदद करके, अपने तज़ुर्बे से उनकी मुश्किलों का हल करना चाहते हैं और मशरूम उत्पादन में और नई खोजें करना चाहते हैं।

संदेश
“किसानों को खेती के क्षेत्र में आने वाली मुश्किलों के हल के लिए माहिरों की सलाह लेते रहना चाहिए। हर क्षेत्र में नई खोजें करने के लिए तत्पर रहें।”

हरजिंदर कौर रंधावा

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कैसे इस 60 वर्षीय महिला ने अमृतसर में मशरूम की खेती व्यवसाय की स्थापना की और उनके बेटों में इसे सफल बनाया

पंजाब में जहां आज भी लोग पारंपरिक खेती के चक्र में फंसे हुए हैं वहां कुछ किसान ऐसे हैं, जिन्होंने इस चक्र को तोड़ा और खेती की अभिनव तकनीक को लेकर आये, जो कि प्रकृति के जरूरी संसाधन जैसे पानी आदि को बचाने में मदद करते हैं।

यह कहानी एक परिवार के प्रयासों की कहानी है। रंधावा परिवार धार्मिक शहर पंजाब अमृतसर से है, जो अमृत सरोवर (पवित्र जल तालाब) से घिरा हुआ अद्भुत पाक शैली, संस्कृति और शांत स्वर्ण मंदिर के लिए जाना जाता है। यह परिवार ना केवल मशुरूम की खेती में क्रांति ला रहा है, बल्कि आधुनिक, किफायती तकनीकों की तरफ अन्य किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है।

हरजिंदर कौर रंधावा अमृतसर की प्रसिद्ध मशरूम महिला हैं। उन्होंने मशरूम की खेती सिर्फ एक अतिरिक्त काम के तौर पर शुरू की या हम कह सकते हैं कि यह उनका शौंक था लेकिन कौन जानता था कि श्री मती हरजिंदर कौर का यह शौंक, भविष्य में उनके बेटों द्वारा एक सफल व्यापार में बदल दिया जायेगा।

यह कैसे शुरू हुआ…
अस्सी नब्बे के दशक में पंजाब पुलिस में सेवा करने वाले राजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी होने के नाते, घर में कोई कमी नहीं थी, जो श्री मती हरजिंदर कौर को वैकल्पिक धन कमाई स्त्रोत की तलाश में असुरक्षित बनाती।

कैसे एक गृहिणी की रूचि ने परिवार के भविष्य के लिए नींव रखी…
लेकिन 1989 में हरजिंदर कौर ने कुछ अलग करने का सोचा और अपने अतिरिक्त समय का कुशल तरीके से इस्तेमाल करने का विचार किया, इसलिए उन्होंने अपने घर के बरामदे में मशरूम की खेती शुरू की। मशरूम की खेती शुरू करने से पहले उनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं थी, लेकिन उनके समर्पण ने उनके कामों में सच्चे रंग लाए। धीरे-धीरे उन्होंने मशरूम की खेती के काम को बढ़ाया और मशरूम से खाद्य पदार्थ बनाने शुरू कर दिए।

जब बेटे अपनी मां का सहारा बने…
जब उनके बेटे बड़े हो गए और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली, तो चार बेटों मे से तीन बेटे (मनजीत, मनदीप और हरप्रीत) मशरूम की खेती के व्यवसाय में अपनी मां की मदद करने का फैसला किया। तीनों बेटे विशेष रूप से ट्रेनिंग के लिए डायरेक्टोरेट ऑफ मशरूम रिसर्च, सोलन गए। वहां पर उन्होंने मशरूम की अलग-अलग किस्मों जैसे बटन, मिल्की और ओइस्टर के बारे में सीखा। उन्होंने मशरूम की खेती पर पी ए यू द्वारा दी गई अन्य व्यवसायिक ट्रेनिंग में भी भाग लिया। जबकि तीसरा बेटा (जगदीप सिंह) अन्य फसलों की खेती करने में अधिक रूचि रखता था और बाद में वह ऑस्ट्रेलिया गया और गन्ने और केले की खेती शुरू की।समय के साथ-साथ, हरजिंदर कौर के बेटे मशरूम की खेती के काम का विस्तार करते रहते हैं और उन्होंने व्यापारिक उद्देश्य के लिए मशरूम के उत्पादों जैसे आचार, पापड़, पाउडर, बड़ियां, नमकीन और बिस्किट का प्रोसेस भी शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ, श्री राजिंदर सिंह रंधावा भी रिटायरमेंट के बाद अन्य सदस्यों के साथ मशरूम की खेती के व्यवसाय में शामिल हुए।

आज रंधावा परिवार एक सफल मशरूम उत्पादक हैं और मशरूम के उत्पादों का एक सफल निर्माता है। बीज की तैयारी से लेकर मार्किटिंग तक का काम परिवार के सदस्य सब कुछ स्वंय करते हैं। हरजिंदर कौर के बाद, एक अन्य सदस्य मनदीप सिंह (दूसरा बेटा), जिसने इस व्यापार को अधिक गंभीरता से लिया और उसका विस्तार करने की दिशा में काम किया। वे विशेष रूप से सभी उत्पादों का निर्माण और उनके मार्किटिंग का प्रबंधन करते हैं। मुख्य रूप से वे अपनी दुकान (रंधावा मशरूम फार्म) के माध्यम से काम करते हैं जो कि बटाला जालंधर रोड पर स्थित है।

अन्य दो बेटे (मनजीत सिंह और हरप्रीत सिंह) भी रंधावा मशरूम फार्म चलाने में एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मशरूम की खेती, कटाई और व्यवसाय से संबंधित अन्य कामों का प्रबंधन करते हैं।

हालांकि, परिवार के बेटे अब सभी कामों का प्रबंधन कर रहे हैं फिर भी हरजिंदर कौर बहुत सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और व्यक्तिगत तौर पर खेती और निर्माण स्थान पर जाते हैं और उस पर काम कर रहे अन्य लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। वे मुख्य व्यक्ति हैं जो उनके द्वारा निर्मित उत्पादों की स्वच्छता और गुणवत्ता का ध्यान रखते हैं ।

हरजिंदर कौर अपने आने वाले भविष्य में अपनी तीसरी पीढ़ी को देखना चाहती हैं …

“ मैं चाहती हूं कि मेरी तीसरी पीढ़ी भी हमारे व्यापार का हिस्सा हो, उनमें से कुछ यह समझने योग्य हैं कि क्या हो रहा है उन्होंने पहले से ही मशरूम की खेती व्यापार में दिलचस्पी दिखाना शुरू कर दिया है। हम अपने पोते (मनजीत सिंह का पुत्र, जो अभी 10वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है ), को मशरूम रिसर्च में उच्च शिक्षा प्राप्त करने और इस पर पी एच डी करने के लिए विदेश भेजने की योजना बना रहे हैं।

मार्किट में छाप स्थापित करना…
रंधावा मशरूम फार्म ने पहले ही अपने उत्पादन की गुणवत्ता के साथ बाजार में बड़े पैमाने पर अपनी मौजूदगी दर्ज की। वर्तमान में 70 प्रतिशत उत्पाद (ताजा मशरूम और संसाधित मशरूम खाद्य पदार्थ) उनकी अपनी दुकान के माध्यम से बेचे जाते हैं और शेष 30 प्रतिशत आस-पास के बड़े शहरों जैसे जालंधर, अमृतसर, बटाला और गुरदासपुर के सब्जी मंडी में भेजे जाते हैं।चूंकि वे मशरूम की तीन किस्मों मिल्की, बटन और ओइस्टर उगाते हैं इसलिए इनकी आमदन भी अच्छी होती है। इन तीनों किस्मों में निवेश कम होता है और आमदन 70 से 80 रूपये (कच्ची मशरूम) प्रति किलो के बीच होती है। कटाई के लिए तैयार होने के लिए बटन मशरूम फसल को 20 से 50 दिन लगते हैं, जबकि ओइस्टर (नवंबर-अप्रैल) और मिल्की (मई-अक्तूबर) कटाई के लिए तैयार होने में 6 महीने लगते हैं। फसलों के तैयार होने और कटाई के समय के कारण इनका व्यापार कभी भी बेमौसम नहीं होता।

रंधावा परिवार…
बहुओं सहित पूरा परिवार व्यापार में बहुत ज्यादा शामिल है और वे घर पर सभी उत्पादों को स्वंय तैयार करते हैं। दूसरा बेटा मनदीप सिंह अपने परिवार के व्यवसाय के मार्किटिंग विभाग को संभालने के अलावा एक और पेशे में अपनी सेवा दे रहे हैं। वे 2007 से जगबाणी अखबार में एक रिपोर्टर के रूप में काम कर रहे हैं और अमृतसर जिले को कवर करते हैं। कभी कभी उनकी उपस्थिति में श्री राजिंदर सिंह रंधावा दुकान को संभालते हैं।आजकल सरकार और कृषि विभाग, किसानों को उन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है और मशरूम इन फसलों में से एक हैं, जिसे सिंचाई के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए मशरूम की खेती में प्रयासों के कारण, रंधावा परिवार को दो बार जिला स्तरीय पुरस्कार और समारोह और मेलों में तहसील स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हाल ही में 10 सितंबर 2017 को रंधावा परिवार के प्रयासों को देश भर में मशरूम रिसर्च सोलन के निदेशालय द्वारा सराहा गया, जहां उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

किसानों को संदेश
रंधावा परिवार एक साथ होने में विश्वास करता है और उनका संदेश किसानों के लिए सबसे अनोखा और प्रेरणादायक संदेश है।

जो परिवार एक साथ रहता है, वह सफलता को बहुत आसानी से प्राप्त करता है। आज कल किसान को एकता की शक्ति को समझना चाहिए और परिवार के सदस्यों के बीच उनकी ज़मीन और संपत्ति को विभाजित करने की बजाय उन्हें एकता में रहकर काम करना चाहिए। एक और बात यह है कि किसान को मार्किटिंग का काम स्वंय शुरू करना चाहिए क्योंकि यह आत्मविश्वास कमाने और अपनी फसल का सही मुल्य अर्जित करने का सबसे आसान तरीका है।