बलविंदर कौर

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एक ऐसी गृहणी की कहानी, जो अपने हुनर का बाखूबी इस्तेमाल कर रही है

हमारे समाज की शुरू से ही यही सोच रही है कि शादी के बाद महिला को बस अपनी घरेलू ज़िंदगी की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए। पर एक गृहणी भी उस समय अपने हुनर का बाखूबी इस्तेमाल कर सकती है जब उसके परिवार को उसकी ज़रूरत हो।

ऐसी ही एक गृहणी है पंजाब के बठिंडा जिले की बलविंदर कौर। एम.ए. पंजाबी की पढ़ाई करने वाली बलविंदर कौर एक साधारण परिवार से संबंध रखती हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी शादी सरदार गुरविंदर सिंह से हो गई, जो कि एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे पर कुछ कारणों से, उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने घर की आर्थिक हालत में सहयोग देने के लिए बलविंदर जी ने काम करने का फैसला किया और उनके पति ने भी उनके इस फैसले में उनका पूरा साथ दिया। जैसे कि कहा ही जाता है कि यदि पत्नी पति के कंधे से कंधा मिलाकर चले तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। अपने पति की सहमति से बलविंदर जी ने घर में पी.जी. का काम शुरू किया। पहले—पहल तो यह पी.जी. का काम सही चलता रहा पर कुछ समय के बाद यह काम उन्हें बंद करना पड़ा। फिर उन्होंने अपना बुटीक खोलने के बारे में सोचा पर यह सोच भी सही साबित नहीं हुई। 2008—09 में उन्होंने ब्यूटीशन का कोर्स किया पर इसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी।

शुरू से ही मेरी दिलचस्पी खाना बनाने में थी सभी रिश्तेदार भी जानते थे कि मैं एक बढ़िया कुक हूं, इसलिए वे हमेशा मेरे बनाए खाने को पसंद करते थे आखिरमें मैंने अपने इस शौंक को व्यवसाय बनाने के बारे में सोचा — बलविंदर कौर

बलविंदर जी के रिश्तेदार उनके हाथ के बने आचार की बहुत तारीफ करते थे और हमेशा उनके द्वारा तैयार किए आचार की मांग करते थे।

अपने इस हुनर को और निखारने के लिए बलविंदर जी ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फूड प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी, लिआसन ऑफिस बठिंडा से आचार और चटनी बनाने की ट्रेनिंग ली। यहीं उनकी मुलाकात डॉ. गुरप्रीत कौर ढिल्लो से हुई, जिन्होंने बलविंदर जी को गाइड किया और अपने इस काम को बढ़ाने के लिए और उत्साहित किया।

आज—कल बाहर की मिलावटी चीज़ें खाकर लोगों की सेहत बिगड़ रही है मैंने सोचा क्यों ना घर में सामान तैयार करवाकर लोग को शुद्ध खाद्य उत्पाद उपलब्ध करवाए जाएं — बलविंदर कौर

मार्केटिंग की महत्तता को समझते हुए इसके बाद उन्होंने मैडम सतविंदर कौर और मैडम हरजिंदर कौर से पैकिंग और लेबलिंग की ट्रेनिंग ली।

के.वी.के. बठिंडा से स्क्वैश बनाने की ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपना काम घर से ही शुरू किया। उन्होंने एक सैल्फ हेल्प ग्रुप बनाया जिसमें 12 महिलाएं शामिल हैं। ये महिलाएं उनकी सामान काटने और तैयार सामान की पैकिंग में मदद करती हैं।

इस सैल्फ हेल्प ग्रुप से जहां मेरी काम में बहुत मदद होती है वहीं महिलाओं को भी रोज़गार हासिल हुआ है, जो कि मेरे दिल को एक सुकून देता है — बलविंदर कौर

हुनर तो पहले ही बलविंदर जी में था, ट्रेनिंग हासिल करने के बाद उनका हुनर और भी निखर गया।

मुझे आज भी जहां कहीं मुश्किल या दिक्कत आती है, उसी समय मैं फूड प्रोसेसिंग आफिस चली जाती हूं जहां डॉ. गुरप्रीत कौर ढिल्लों जी मेरी पूरी मदद करती हैं — बलविंदर कौर
बलविंदर कौर के द्वारा तैयार किए जाने वाले उत्पाद
  • आचार — मिक्स, मीठा, नमकीन, आंवला (सभी तरह का आचार)
  • चटनी — आंवला, टमाटर, सेब, नींबू, घीया, आम
  • स्क्ववैश — आम, अमरूद
  • शरबत — सेब, लीची, गुलाब, मिक्स
हम इन उत्पादों को गांव में ही बेचते हैं और गांव से बाहर फ्री होम डिलीवरी की जाती है —बलविंदर कौर

बलविंदर जी Zebra smart food नाम के ब्रांड के तहत अपने उत्पाद तैयार करती हैं और बेचती हैं।

इन उत्पादों को बेचने के लिए उन्होंने एक व्हॉट्स एप ग्रुप भी बनाया है जिसमें ग्राहक आर्डर पर सामान प्राप्त कर सकते हैं।

भविष्य की योजना

बलविंदर जी भविष्य में अपने उत्पादों को दुनिया भर में मशहूर करवाना चाहती हैं।

संदेश
“हमें जैविक तौर पर तैयार की चीज़ों का इस्तेमाल करना चाहिए और अपने बच्चों की सेहत का ध्यान रखना चाहिए।
इसके साथ ही जो बहनें कुछ करने का सोचती हैं वे अपने सपनों को हकीकत में बदलें। खाली बैठकर समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। यह ज़रूरी नहीं कि वे कुकिंग ही करें, जिस काम में भी आपकी दिलचस्पी है आपको वही काम करना चाहिए। परमात्मा में विश्वास रखें और मेहनत करते रहें।”

अमरनाथ सिंह

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अमरनाथ सिंह जी के जीवन पर जैविक खेती ने कैसे अच्छा प्रभाव डाला और कैसे उन्हें इस काम की तरफ आगे ले जाने के लिए प्रेरित कर रही है।

स्वस्थ भोजन खाने और रासायन- मुक्त जीवन जीने की इच्छा बहुत सारे किसानों को जैविक खेती की तरफ लेकर गई है। बठिंडे से एक ऐसे किसान अमरनाथ सिंह जो जैविक खेती को अपनाकर सफलतापूर्वक अपने खेतों में से अच्छा मुनाफा ले रहे हैं।

खेतीबाड़ी में आने से पहले अमरनाथ जी ने 5 वर्ष (2005-2010) ICICI  जीवन बीमा सलाहकार के तौर पर काम किया और विरासत में मिली ज़मीन अन्य किसानों को किराये पर दी हुई थी। इस ज़मीन की विरासती कहानी इतनी ही नहीं है। सब कुछ बढ़िया चल रहा था, अमरनाथ जी के पिता — निर्भय सिंह जी ने 1984 तक इस ज़मीन पर खेती की। 1984 में हालात बहुत बिगड़ चुके थे और पंजाब के कई क्षेत्रों में यह मामला बहुत बढ़ चुका था। उस समय अमरनाथ जी के पिता ने रामपुरा फूल, जो बठिंडा जिले का कस्बा है, को छोड़ने का फैसला किया और वे बरनाला जिले के तपा मंडी कस्बे में जाकर बस गए, जो अमरनाथ जी के पिता के नाना का गांव था।

निर्भय सिंह का अपनी ज़मीन से बहुत लगाव था, इसलिए रामपुरा फूल छोड़ने के बाद भी वे तपा मंडी से रोज़ अपने खेतों की तरफ चक्कर लगाने जाते थे। पर एक दिन (वर्ष 2000) जब निर्भय सिंह जी अपने खेतों से वापिस आ रहे थे तो एक हादसे में उनकी मौत हो गई। तब से ही अमरनाथ जी अपने परिवार और ज़मीन की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं।

2010 में ज़मीन के किराए का मूल्य कम हो जाने के कारण ज़मीन का सही मूल्य नहीं मिलने लगा। इसलिए उन्होंने स्वंय खेती करने का फैसला किया। इसके अलावा 2007 में जब वे खेती करने की सोच रहे थे, तब उनके मित्र निर्मल सिंह ने उन्हें जैविक खेती करने वाले प्रगतिशील किसानों के बारे में बताया।

राजीव दिक्षित वे व्यक्ति थे, जिन्होंने अमरनाथ जी को खेती करने के लिए बहुत प्रेरित किया। और मदद लेने के लिए 2012 में अमरनाथ जी खेती विरासत मिशन में शामिल हुए और उन्होंने सभी कैंपों में उपस्थित होना शुरू किया, जहां से खेती संबंधित जानकारी, भरपूर सूचना हासिल की।

शुरू में अमरनाथ जी ने व्यापारिक तौर पर नरमे और धान की खेती की और घरेलु उद्देश्य के लिए कुछ सब्जियां भी उगायीं। 2012 में उन्होंने 11 एकड़ में खरीफ की फसल ग्वारा उगायी, जिसमें से उन्हें ज्यादा मुनाफा हुआ, पर इससे प्राप्त आय उनके घरेलु और खेती खर्चों को पूरा करने के लिए काफी थी। धीरे-धीरे समय के साथ अमरनाथ जी ने कीटनाशकों का प्रयोग कम कर दिया और 2013 में उन्होंने पूरी तरह कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दिया। 2015 में उन्होंने रासायनिक खादों का प्रयोग भी कम करना शुरू कर दिया। पूरी ज़मीन (36 एकड़) में से वे 26 एकड़ में स्वंय खेती करते हैं और बाकी ज़मीन किराए पर दी है।

“अमरनाथ — रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग बंद करने के बाद मैं अपने और अपने परिवार के जीवन में आया सकारात्मक बदलाव देख सकता हूं।”

इसके फलस्वरूप 2017 में अमरनाथ जी ने अपने वास्तविक गांव वापिस आने का फैसला किया और आज वे अपने परिवार के साथ खुशियों से भरपूर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उन्होंने फार्म का नाम अपने पिता के नाम पर निर्भय फार्म रखा, ताकि उन्हें इस फार्म द्वारा हमेशा याद रखा जा सके।

जैविक खेती को और प्रफुल्लित करने के लिए अमरनाथ जी घर में स्वंय ही डीकंपोज़र और कुदरती कीटनाशक तैयार करके मुफ्त में अन्य किसानों को बांटते हैं आज अमरनाथ जी ने जो कुछ भी हासिल किया है, यह सब उनकी अपनी मेहनत और दृढ़ इरादे का परिणाम है।

भविष्य की योजना

आने वाले समय में मैं अपने बच्चों को खेती अपनाने के लिए प्रेरित करने की योजना बना रहा हूं। मैं चाहता हूं कि वे मेरे साथ खड़े रहें और खेती में मेरी मदद करें।

संदेश
मेरा संदेश नई पीढ़ी के लिए है, आज कल नई पीढ़ी सोशल मीडिया साइट जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हॉट्स एप आदि से बहुत प्रभावित हुई है। उन्हें सोशल मीडिया को, व्यर्थ समय गंवाने की बजाय खेती संबंधित जानकारी हासिल करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।

शहनाज़ कुरेशी

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जानें कैसे इस महिला ने फूड प्रोसेसिंग और एग्रीबिज़नेस के माध्यम से स्वस्थ भोजन के रहस्यों को प्रत्यक्ष किया

बहुत कम परोपकारी लोग होते हैं जो समाज के कल्याण के बारे में सोचते हैं और कृषि के रास्ते पर अपने भविष्य को निर्देशित करते हैं क्योंकि कृषि से संबंधित रास्ते पर मुनाफा कमाना आसान नहीं है। लेकिन हमारे आस -पास कई अवसर हैं जिनका लाभ उठाना हमें सीखना होगा। ऐसी ही एक महिला है श्री मती शहनाज कुरेशी जो कि अपने अभिनव सपनों और कृषि के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित करने की सोच रही थी।
बहुत कम उम्र में शादी करने के बावजूद शहनाज़ कुरेशी ने कभी सपने देखना नहीं छोड़ा। शादी के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और फैशन डिज़ाइनिंग में M.Sc भी की। उन्हें विदेशों से नौकरी के कई प्रस्ताव मिले लेकिन उन्होंने अपने देश में रह कर, समाज के लिए कुछ अच्छा करने का फैसला किया।

इन सभी चीज़ों के दौरान उनके माता पिता के स्वास्थ्य ने खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता की ओर उनका नज़रिया बदल दिया। उनके माता-पिता दोनों ही गठिया, डायबिटिज़ और किडनी की समस्या से पीड़ित थे। उन्होंने सोचा कि यदि भोजन इन समस्याओं के पीछे का कारण है तो भोजन ही इनका एकमात्र इलाज होगा। उन्होंने अपने परिवार की खाने की आदतों को बदल दिया और केवल अच्छी और ताजी सब्जियां चीज़ें खानी शुरू कर दीं। इस आदत ने उनके माता-पिता के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ। इसी बड़े सुधार को देखते हुए उन्होंने फूड प्रोसेसिंग व्यापार में दाखिल होने का फैसला लिया। इसके अलावा वे खाली बैठने के लिए नहीं बनी थी इसलिए उन्होंने एग्रीबिज़नेस के क्षेत्र में अपने कदम रखे और जरूरतमंद किसानों की मदद करने का फैसला किया।

एग्रीबिज़नेस के क्षेत्र में कदम रखने का उनका फैसला सिर्फ सफलता का पहला चरण था और पूरा बठिंडा उनके बारे में जानने लगा। उन्होंने और उनके परिवार ने, के वी के बठिंडा से मधु मक्खी पालन की ट्रेनिंग ली और 200 मधुमक्खी बक्सों के साथ व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने मार्किटिंग की और उनके पति ने प्रोसेसिंग का काम संभाला। व्यवसाय से अधिक लाभ लेने के लिए उन्होंने शहद के फेस वॉश, साबुन और बॉडी सक्रब बनाना शुरू किया। ग्राहकों ने इन्हें पसंद करना शुरू किया और उनकी सिफारिश और होने लगी। कुछ समय के बाद उन्होंने सब्जियों और फलों की खेती की ट्रेनिंग ली और इसे चटनी, मुरबा और आचार बनाकर लागू करना शुरू किया।
एक समय था जब उनके पति ने काम के लिए उनकी आलोचना की क्योंकि वे व्यवसाय से होने वाले लाभों को लेकर अनिश्चित थे। इसके अलावा उन्होंने यह भी सोचा कि ये उत्पाद पहले से ही बाज़ार में उपलब्ध हैं जो इन उत्पादों को लोग क्यों खरीदेंगे। लेकिन वे कभी भी इन बातों से वंचित नहीं हुई क्योंकि उनके पास उनके बच्चों का समर्थन हमेशा था। कुछ महान शख्सियतों जैसे ए पी जे अब्दुल कलाम, बिल गेट्स, अकबर और स्वामी विवेकानंद से वे प्रेरित हुई। खाली समय में वे उनके बारे में किताबें पढ़ना पसंद करती थी।

समय के साथ-साथ उन्होंने अपने उत्पादों को बढ़ाया और इनसे काफी लाभ कमाना शुरू किया। जल्दी ही उन्होंने फल के स्क्वैश, चने के आटे की बड़ियां और पकौड़े और भी काफी चीज़े बनानी शुरू की। अंकुरित मेथी का आचार उनके प्रसिद्ध उत्पादों मे से एक है क्योंकि अदभुत स्वास्थ्य लाभों के कारण इसकी मांग फरीदकोट, लुधियाना और अन्य जगहों में पी ए यू द्वारा करवाये जाते मेलों और समारोह में हमेशा रहती है। उन्होंने मार्किट में अपने उत्पादों की एक अलग जगह बनाई है जिसके चलते उन्होंने व्यापक स्तर पर अच्छे ग्राहकों को अपने साथ जोड़ा है।

2014 में उन्होंने बठिंडा के नज़दीक महमा सरजा गांव में किसान सैल्फ हैल्प ग्रुप बनाया और इस ग्रुप के द्वारा उन्होंने अन्य किसानों के उत्पादों को बढ़ावा दिया। कभी कभी वे उन किसानों की मदद और समर्थन करने के लिए अपने मुनाफे की अनदेखी कर देती थीं, जिनके पास आत्मविश्वास और संसाधन नहीं थे। 2015 में उन्होंने FRESH HUB नाम की एक फर्म बनायी और वहां अपने उत्पादों को बेचना शुरू किया। आज उनके कलेक्शन में कुल 40-45 उत्पाद हैं जिसका कच्चा माल वे खुद खरीदती हैं, प्रोसेस करती हैं, पैक करती हैं और मंडीकरण करती हैं। ये सब वे उत्पादों की शुद्धता और स्वस्थता सुनिश्चित करने के लिए करती हैं ताकि ग्राहक के स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव ना हो। यहां तक कि जब वे आचार तैयार करती हैं तब भी वे घटिया सिरके का इस्तेमाल नहीं करती और अच्छी गुणवत्ता के लिए हमेशा सेब के सिरके का प्रयोग करती हैं।

2016 में उन्होंने सिरके की भी ट्रेनिंग ली और बहुत जल्द इसे लागू भी करेंगी। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष 10 लाख लाभ कमा रही हैं। एक चीज़ जो उन्होंने बहुत जल्दी समझी और उसे लागू किया। वह थी उन्होने हमेशा मात्रा या स्वाद को ध्यान ना देकर गुणवत्ता की ओर ध्यान दिया। मंडीकरण के लिए वे आधुनिक तकनीकों जैसे व्हाट्स एप द्वारा किसानों और अन्य आवश्यक विवरणों के साथ जुड़ती हैं। खरीदने से पहले वे हमेशा सुनिश्चित करती हैं कि रासायनिक मुक्त सब्जियां ही खरीदें और किसानों को वे जैविक खेती शुरू करने के लिए प्रोत्साहित भी करती हैं। उनके काम में सिर्फ प्रोसेसिंग और मंडीकरण ही शामिल नहीं हैं बल्कि वे अन्य महिलाओं को अपनी तकनीक के बारे में जानकारी भी देती हैं। क्योंकि वे चाहती हैं कि अन्य लोग भी प्रगति करें और समाज के लिए कुछ अच्छा करें।

शुरू से ही शहनाज़ कुरेशी की मानसिकता उनके काम के लिए बहुत सपष्ट थी। वे चाहती हैं कि समाज में प्रत्येक इंसान आत्म निर्भर और आत्मविश्वासी बनें। उन्होंने अपने बच्चों को ऐसी परवरिश दी कि उन्हें किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता, सभी को अपनी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए आत्म निर्भर होना चाहिए। वर्तमान में उनका मुख्य ध्यान युवाओं, विशेष रूप से लड़कियों पर है। उन्होंने अपनी सोच और कौशल को अखबार और रेडियो के माध्यम से अधिक लोगों तक पहुंचाती हैं वे इनके माध्यम से ट्रेनिंग और जानकारी भी देती हैं। वे व्यक्तिगत तौर पर किसान ट्रेनिंग कार्यक्रमों और मीटिंग का दौरा करती हैं, विशेषकर कौशल प्रदान करती हैं। 2016 में उन्होंने कॉलेज के छात्रों के लिए टिफिन सेवा भी शुरू की। आज उनके काम ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया है कि उनका अपना रेडियो शो है जो हर शुक्रवार को दोपहर के 1 से 2 तक प्रसारित होता है, जहां पर वे लोगों को पानी के प्रबंधन, हेल्थ फूड रेसिपी और भी बहुत कुछ, के बारे में सुझाव देती हैं।

जन्म से कश्मीरी होने के कारण शहनाज़ हमेशा अपने काम और उत्पादों में अपने मूल स्थान का एक सार लाने की कोशिश करती हैं। उन्होंने “शाह के कश्मीरी और मुगलई चिकन” नाम से बठिंडा में एक रेस्टोरेंट भी खोला है और वहीं पर एक ग्रामीण कश्मीरी इंटीरियर देने और अपने रेस्टोरेंट में कश्मीरी क्रॉकरी सेट का उपयोग करने की भी योजना बना रही है। यहां तक कि उनका एक प्रसिद्ध उत्पाद है, कश्मीरी चाय जो कि कश्मीरी परंपरा और व्यंजनों के मूल को दर्शाता है। वे हर स्वस्थ, फायदेमंद और पारंपरिक नुस्खा सांझा करना चाहती हैं जो उन्होंने अपने उत्पादों, रेस्टोरेंट और ट्रेनिंग के माध्यम से जाना है। कश्मीर में उनके बाग भी है जो उनकी गैर मौजूदगी में उनके चचेरे भाई की देख रेख में है। बाग में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने और अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए वे जैविक तरीकों का पालन करती हैं।

शहनाज़ कुरेशी की ये सिर्फ कुछ ही उपलब्धियां थी। आने वाले समय में वे समाज के हित में और ज्यादा काम करेंगी। उनके प्रयासों को कई संगठनों द्वारा प्रशंसा मिली है और उन्हें मुक्तसर साहिब के फूड प्रोसेसिंग विभाग द्वारा सम्मानित भी किया गया है। इसके अलावा 2015 में उन्हें पी ए यू द्वारा जगबीर कौर मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।

किसानों को संदेश

हर समय सरकार को दोष नहीं देना चाहिए क्योंकि जिन समस्याओं का आज हम सामना कर रहे हैं उनके लिए सिर्फ हम ही जिम्मेदार हैं। आजकल किसानों को पता ही नहीं है कि अवसरों का लाभ कैसे उठाया जाए, क्योंकि यदि किसान आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें अपनी सोच को बदलना होगा। इसके अलावा इसका पालन करना आवश्यक नहीं है। आप दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा हो सकते हैं। किसानों को यह समझना होगा कि कच्चे माल की तुलना में फूड प्रोसेसिंग में अधिक मुनाफा है।

गुरदीप सिंह बराड़

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एक व्यक्ति का जागृत परिवर्तन- रासायनिक खेती से जैविक खेती की तरफ

लोगों की जागृति का मुख्य कारण यह है कि जो चीज़ें उन्हें संतुष्ट नहीं करती हैं उन पर उन्होंने सहमति देना बंद कर दिया है। यह कहा जाता है कि जब व्यक्ति सही रास्ता चुनता है तो उसे उस पर अकेले ही चलना पड़ता है वह बहुत अकेला महसूस करता है और इसके साथ ही उसे उन चीज़ों और आदतों को छोड़ना पड़ता है जिसकी उसे आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही एक व्यक्ति गुरदीप सिंह बराड़ हैं, जिन्होंने सामाजिक प्रवृत्ति के विपरीत जाकर, जागृत होकर रासायनिक खेती को छोड़ जैविक खेती को अपनाया।

गुरदीप सिंह बराड़ गांव मेहमा सवाई जिला बठिंडा के निवासी हैं। 17 वर्ष पहले श्री गुरदीप सिंह के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया जिसने उनके विचारों और खेती करने के ढंगों को पूरी तरह बदल दिया। आज गुरदीप सिंह एक सफल किसान हैं और बठिंडा में जैविक किसान के नाम से जाने जाते हैं और उनकी कमायी भी अन्य किसानों के मुकाबले ज्यादा हैं जो पारंपरिक या रासायनिक खेती करते हैं।

जैविक खेती करने से पहले गुरदीप सिंह बराड़ एक साधारण किसान थे जो कि वही काम करते थे जो वे बचपन से देखते आ रहे थे। उनके पास केवल 2 एकड़ की भूमि थी जिस पर वे खेती करते थे और उनकी आय सिर्फ गुज़ारा करने योग्य थी।

1995 में वे किसान सलाहकार सेवा केंद्र के माहिरों के संपर्क में आये। वहां वे अपने खेती संबंधित समस्याओं के बारे में बातचीत करते थे और उनका समाधान और जवाब पाते थे। वे के वी के बठिंडा ब्रांच के माहिरों से भी जुड़े थे। कुछ समय बाद किसान सलाहकार केंद्र ने उन्हें सब्जियों के बीजों की किट उपलब्ध करवाकर क्षेत्र के 1 कनाल में एक छोटी सी घरेलु बगीची लगाने के लिए प्रेरित किया। जब घरेलु बगीची का विचार सफल हुआ तो उन्होंने 1 कनाल क्षेत्र को 2 कनाल में फैला दिया और सब्जियों का अच्छा उत्पादन करना शुरू किया।

सिर्फ चार वर्ष बाद 1999 में वे अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के संपर्क में आये। उन्होने उनके साथ मिलकर काम किया और कई विभिन्न खेतों का दौरा भी किया।

उनमें से कुछ हैं
• नाभा ऑरगैनिक फार्म
• गंगानगर में भगत पूर्ण सिंह फार्म
• ऑरगैनिक फार्म

इन सभी विभिन्न खेतों का दौरा करने के बाद वे जैविक खेती की तरफ प्रेरित हुए और उसके बाद उन्होंने सब्जियों के साथ मौसमी फल उगाने शुरू किए। वे बीज उपचार, कीटों के नियंत्रण और जैविक खाद तक तैयार करने के लिए जैविक तरीकों का प्रयोग करते थे। बीज उपचार के लिए वे नीम का पानी, गाय का मूत्र, चूने के पानी का मिश्रण और हींग के पानी के मिश्रण का प्रयोग करते हैं। वे सब्जियों की उपज को स्वस्थ और रसायन मुक्त बनाने के लिए घर पर तैयार जीव अमृत का प्रयोग करते हैं। कीटों के हमले के नियंत्रण के लिए वे खेतों में लस्सी का प्रयोग करते हैं। वे पानी के प्रबंधन की तरफ भी बहुत ध्यान देते हैं। इसलिए वे सिंचाई के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करते हैं।

गुरदीप सिंह ने अपने फार्म पर वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी लगाई है ताकि वे सब्जियों और फलों के लिए शुद्ध जैविक खाद उपलब्ध कर सकें। उन्होंने प्रत्येक कनाल में दो गड्ढे बनाये हैं जहां पर वे गाय का गोबर, भैंस का गोबर और पोल्टरी खाद डालते हैं।

खेती के साथ साथ वे कद्दू, करेले और काली तोरी के बीज घर पर ही तैयार करते हैं। जिससे उन्हें बाज़ार जाकर सब्जियों के बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कद्दू की मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए वे विशेष तौर पर कद्दू की बेलों को उचित सहारा देने के लिए रस्सी का प्रयोग करते हैं।

आज उनकी सब्जियां इतनी प्रसिद्ध हैं कि बठिंडा, गोनियाना मंडी और अन्य नज़दीक के लोग विशेष तौर पर सब्जियों खरीदने के लिए उनके फार्म का दौरा करने आते हैं। जब बात सब्जियों के मंडीकरण की आती है तो वे कभी तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं होते। वे 500 ग्राम के पैकेट बनाकर उत्पादों को स्वंय बेचते हैं और आज की तारीख में वे इससे अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

खेती की तकनीकों और ढंगों के लिए उन्हें कई स्थानीय पुरस्कार मिले हैं और वे कई खेती संस्थाओं और संगठनों के सदस्य भी हैं। 2015 में उन्होंने पी ए यू से सुरजीत सिंह ढिल्लों पुरस्कार प्राप्त किया। उस इंसान के लिए इस स्तर पर पहुंचना जो कभी स्कूल नहीं गया बहुत महत्तव रखता है। वर्तमान में वे अपनी माता, पत्नी और पुत्र के साथ अपने गांव में रह रहे है। भविष्य में वे जैविक खेती को जारी रखना चाहते हैं और समाज को स्वस्थ और रासायन मुक्त भोजन उपलब्ध करवाना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के कारण आज लोगों में कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं। मैं ये नहीं कहता कि किसानों को खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए लेकिन उन्हें इनका प्रयोग कम कर देना चाहिए और जैविक खेती का अपनाना चाहिए। इस तरह वे मिट्टी और जल प्रदूषण को बचा सकते हैं और कैंसर जैसी अन्य बीमारियों को रोक सकते हैं।

अमरीक सिंह ढिल्लो

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जानें कैसे इस जुगाड़ी किसान के जुगाड़ खेती में लाभदायक सिद्ध हुए

कहा जाता है कि अक्सर ज़रूरतें और मजबूरियों ही इनसान को नए आविष्कार करने की तरफ ले जाती हैं और इसी तरह ही नई खोजें संभव होती हैं।

ऐसे ही एक व्यक्ति की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मजबूरियों और जरूरतों को मुख्य रखते हुए नए-नए जुगाड़ लगाकर आविष्कार किए और उनका नाम है- अमरीक सिंह ढिल्लो।

अमरीक सिंह ढिल्लो जी गांव गियाना, तहसील तलवंडी (बठिंडा) के रहने वाले हैं। उनके पिता जी (सरदार मोलन सिंह) को खेतीबाड़ी का व्यवसाय विरासत में मिला और उन्हें देखते हुए अमरीक सिंह जी भी खेतीबाड़ी में रूचि दिखाने लगे। उनके पास कुल 14 एकड ज़मीन है, जिस पर वे पारंपरिक खेती करते हैं।

जैसे कि बचपन से ही उनकी रूचि खेती में ज्यादा थी, इसलिए सन 2000 में उन्होंने दसवीं पास की और पढ़ाई छोड़ दी और खेती में अपने पिता का साथ देने का फैसला किया। साथ की साथ वे अपने खाली समय का उचित तरीके से लाभ उठाने के लिए अपने दोस्त की मोबाइल रिपेयर वाली दुकान पर काम करने लगे। पर कुछ समय बाद उन्हें एहसास हुआ कि बारहवीं तक की पढ़ाई जरूरी है, क्योंकि यह एक प्राथमिक शिक्षा है, जो सभी को अपनी ज़िंदगी में हासिल करनी चाहिए और यह इंसान का आत्म विश्वास भी बढ़ाती है। इसलिए उन्होंने प्राइवेट बारहवीं पास की।

वे बचपन से ही हर काम को करने के लिए अलग, आसान और कुशल तरीका ढूंढ लेते थे, जिस कारण उन्हें गांव में जुगाड़ी कह कर बुलाया जाता था। इसी कला को उन्होंने बड़े होकर भी प्रयोग किया और अपने दोस्त के साथ मिल कर किसानों के लिए बहुत सारे लाभदायक उपकरण बनाये।

यह उपकरण बनाने का सिलसिला उस समय शुरू हुआ, जब एक दिन वे अपने दोस्त के साथ मोबाइल रिपेयर वाली दुकान पर बैठे थे और उनके दिमाग में मोटरसाइकल चोरी होने से बचाने के लिए कोई उपकरण बनाने का विचार आया। कुछ ही दिनों में उन्होंने जुगाड़ लगा कर एक उपकरण तैयार किया जो नकली चाबी या ताला तोड़ कर मोटरसाइकल चलाने पर मोटरसाइकल को चलने नहीं देता और साथ की साथ फोन पर कॉल भी करता है। इस उपकरण में सफल होने के कारण उनकी हिम्मत और भी बढ़ गई।

इसी सिलसिले को उन्होंने आगे भी जारी रखा। उन्हें आस पास से ट्रांसफार्म चोरी होने की खबरें सुनने को मिली, तो अचानक उनके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों ना मोटरसाइकिल की तरह ट्रांसफार्म को भी चोरी होने से बचाने के लिए कोई उपकरण बनाया जाये आखिर इस उपकरण के जुगाड़ में भी वे सफल हुए, जिससे किसानों को बड़ी राहत मिली।

उनके इलाके में खेतों के लिए मोटरों की बिजली बहुत कम आती है और कई बार तो बिजली के आने का पता भी नहीं लगता। इस समस्या को समझते हुए उन्होंने फिर से अपने जुगाड़ी दिमाग का प्रयोग किया और एक उपकरण तैयार किया, जो बिजली आने पर फोन पर कॉल करता है।

उनके द्वारा तैयार किए उपकरणों को किसान बहुत पसंद कर रहे हैं और इन उपकरणों का मुल्य आम लोगों की पहुंच में होने के कारण बहुत सारे लोग इसे खरीद कर प्रयोग कर रहे हैं।

उनका कहना है कि वे कोई उपकरण बनाने से पहले कोई योजना नहीं बनाते, बल्कि आवश्यकतानुसार उपकरण की जरूरत होती है, उस पर वे काम करते हैं और भविष्य में भी वे लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे उपकरण बनाते रहेंगे।

हरतेज सिंह मेहता

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जैविक खेती के लिए दूसरों को प्रोत्साहित करके बेहतर भविष्य के लिए एक आधार स्थापित कर रहे हैं

पहले जैविक एक ऐसा शब्द था जिसका प्रयोग बहुत कम किया जाता था। बहुत कम किसान थे जो जैविक खेती करते थे और वह भी घरेलु उद्देश्य के लिए। लेकिन समय के साथ लोगों को पता चला कि हर चमकीली सब्जी या फल अच्छा दिखता है लेकिन वह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।

यह कहानी है – हरतेज सिंह मेहता की जिन्होंने 10 वर्ष पहले एक बुद्धिमानी वाला निर्णय लिया और वे इसके लिए बहुत आभारी भी हैं। हरतेज सिंह मेहता के लिए, जैविक खेती को जारी रखने का निर्णय उनके द्वारा लिया गया एक सर्वश्रेष्ठ निर्णय था और आज वे अपने क्षेत्र (मेहता गांव – बठिंडा) में जैविक खेती करने वाले एक प्रसिद्ध किसान हैं।

पंजाब के मालवा क्षेत्र, जहां पर किसान अच्छी उत्पादकता प्राप्त करने के लिए कीटनाशक और रसायनों का प्रयोग बहुत उच्च मात्रा में करते हैं। वहीं, हरतेज सिंह मेहता ने प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रखने को चुना। वे बचपन से ही अपने पैतृक व्यवसायों के प्रति समर्पित है और उनके लिए अपनी उपलब्धियों के बारे में फुसफुसाने से अच्छा, एक साधारण जीवन व्यतीत करना है।

उच्च योग्यता (एम.ए. पंजाबी, एम.ए. पॉलिटिकल साइंस) होने के बावजूद, उन्होंने शहरी जीवन और सरकारी नौकरी की बजाय जैविक खेती करने को चुना। वर्तमान में उनके पास 11 एकड़ ज़मीन है जिसमें वे कपास, गेहूं, सरसों, गन्ना, मसूर, पालक , मेथी, गाजर, मूली, प्याज, लहसुन और लगभग सभी सब्जियां उगाते हैं। वे हमेशा अपने खेतों को कुदरती तरीकों से तैयार करना पसंद करते हैं जिसमें कपास (F 1378), गेहूं (1482) और बंसी नाम के बीज अच्छे परिणाम देते हैं।

“अंसतोष, निरक्षरता और किसानों की उच्च उत्पादकता की इच्छा रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है, जिसके कारण किसान जो कि उद्धारकर्त्ता के रूप में जाने जाते हैं वे अब समाज को विष दे रहे हैं। आजकल किसान कीट प्रबंधन के लिए कीटनाशकों और रसायनों का इस्तेमाल करते हैं जो मिट्टी के मित्र कीटों और उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाते हैं। वे इस बात से अवगत नहीं हैं कि वे अपने खेत में रसायनों को उपयोग करके पूरी खाद्य श्रंख्ला को विषाक्त बना रहे हैं। इसके अलावा, रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके वे ना केवल पर्यावरण की स्थिति को बिगाड़ रहे हैं बल्कि कर्ज में बढ़ोतरी के कारण प्रमुख आर्थिक नुकसान का भी सामना कर रहे हैं।”– हरतेज सिंह ने कहा।

मेहता जी हमेशा खेती के लिए कुदरती ढंग को अपनाते हैं और जब भी उन्हें कुदरती खेती के बारे में जानकारी की आवश्यकता होती है तो वे अमृतसर के पिंगलवाड़ा सोसाइटी और एग्रीकल्चर हेरीटेज़ मिशन से संपर्क करते हैं। वे आमतौर पर गाय के मूत्र और पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिए करते हैं और यह मिट्टी के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण अनुकूलन भी है।

मेहता जी के अनुसार कुदरती तरीके से उगाए गए भोजन के उपभोग ने उन्हें और उनके परिवार को पूरी तरह से स्वस्थ और रोगों से दूर रखा है। इसी कारण श्री मेहता का मानना है कि वे जैविक खेती के प्रति प्रेरित हैं और भविष्य में भी इसे जारी रखेंगे।

संदेश
“मैं देश भर के किसानों को एक ही संदेश देना चाहता हूं कि हमें निजी कंपनियों के बंधनों से बाहर आना चाहिए और समाज को स्वस्थ बनाने के लिए स्वस्थ भोजन प्रदान करने का वचन देना चाहिए।”

यादविंदर सिंह

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पंजाब के इस किसान ने गेहूं-धान की पारंपरिक खेती के स्थान पर एक सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना और इससे दोहरा लाभ कमा रहे हैं

पंजाब में जहां आज भी धान और गेहूं की खेती जारी है वहीं कुछ किसानों के पास अभी भी विकल्पों की कमी है। किसानों के पास भूमि का एक छोटा टुकड़ा होता है और कम जागरूकता वाले किसान अभी भी गेहूं और धान के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। लेकिन बठिंडा जिले के चक बख्तू गांव के यादविंदर सिंह ने खेतीबाड़ी की पुरानी पद्धति को छोड़कर नर्सरी की तैयारी और सब्जियों की जैविक खेती शुरू की।

अपने लाखों सपनों को पूरा करने की इच्छा रखने वाले एक युवा यादविंदर सिंह ने अपनी ग्रेजुएशन के बाद होटल मैनेजमेंट में अपना डिप्लोमा पूरा किया और उसके बाद दो साल के लिए सिंगापुर में एक प्रतिष्ठित शेफ रहे। लेकिन वे अपने काम से खुश नहीं थे और सब कुछ होने के बावजूद भी अपने जीवन में कुछ कमी महसूस करते थे। इसलिए वे वापिस पंजाब आ गए और पूरे निश्चय के साथ खेतीबाड़ी के क्षेत्र में प्रवेश करने का फैसला किया।

2015 में उन्होंने अपना जैविक उद्यम शुरू किया लेकिन इससे पहले उन्होंने भविष्य के नुकसान से बचने के लिए बुद्धिमानी से काम लिया। अपनी चतुराई का प्रयोग करते हुए उन्होंने इंटरनेट की मदद ली और किसान मेलों में भाग लिया और जैविक सब्जियों को नर्सरी में तैयार करना शुरू किया। अपने ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए यादविंदर ने अपने व्यापार का लोगो (LOGO) भी डिज़ाइन किया।

अपने खेतीबाड़ी उद्यम के पहले वर्ष उन्होंने 1 लाख कमाया और आज वे सिर्फ 2 कनाल (5 एकड़) से 2.5 लाख से भी ज्यादा कमा रहे हैं। खेतीबाड़ी के साथ उन्होंने नर्सरी प्रबंधन भी शुरू किया जिसमें कि बीज की तैयारी, मिट्टी प्रबंधन शामिल है। यहां तक कि उन्हें नए पौधे बेचने के लिए मार्किट जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पौधे खरीदने के लिए किसान स्वंय उनके फार्म का दौरा करते हैं।

आज यादविंदर सिंह अपने व्यवसाय और अपनी आमदन से बहुत खुश हैं। भविष्य में वे अपनी खेतीबाड़ी के व्यवसाय को बढ़ाना चाहते हैं और अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कुछ और फसलें उगाना चाहते हैं।

संदेश:
“हम जानते हैं कि सरकार साधारण किसानों के समर्थन के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करती। लेकिन किसानों को निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि मजबूत दृढ़ संकल्प और सही दृष्टिकोण से वे जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं।”

गुरचरन सिंह मान

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जानें कैसे गुरचरन सिंह मान ने विविध खेती और अन्य सहायक गतिविधियों के द्वारा अपनी ज़मीन से अधिकतम उत्पादकता ली

भारत में विविध खेती का रूझान इतना आम नहीं है। गेहूं, धान और अन्य पारंपरिक फसलें जैसे जौं आदि मुख्य फसलें हैं जिन्हें किसान उगाने के लिए पहल देते हैं। वे इस तथ्य से अनजान है कि परंपरागत खेती ना केवल मिट्टी के उपजाऊपन को प्रभावित करती है बल्कि किसान को भी प्रभावित करती है और कभी कभी यह उन्हें कमज़ोर भी बना देती है। दूसरी ओर विविध खेती को यदि सही ढंग से किया जाए तो इससे किसान की आय में बढ़ोतरी होती है। एक ऐसे ही किसान – गुरचरन सिंह संधु जिन्होंने विविध खेती की उपयोगिता को पहचाना और इसे उस समय लागू करके लाभ कमाया जब उनकी आर्थिक स्थिति बिल्कुल ही खराब थी।

गुरचरन सिंह संधु बठिंडा जिले के तुंगवाली गांव के एक साधारण से किसान थे। जिस स्थान से वे थे वह बहुत ही शुष्क और अविकसित क्षेत्र था लेकिन उनकी मजबूत इच्छा शक्ति के सामने ये बाधाएं कुछ भी नहीं थी।

1992 में युवा उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खेती करनी शुरू की। उनके पास पहले से ही 42 एकड़ ज़मीन थी लेकिन वे इससे कभी संतुष्ट नहीं थे। शुष्क क्षेत्र होने के कारण गेहूं और धान उगाना उनके लिए एक सफल उद्यम नहीं था। कई कोशिश करने के बाद जब गुरचरन पारंपरिक और रवायती खेती में सफल नहीं हुए तो उन्होंने खेती के ढंगों में बदलाव लाने का फैसला किया। उन्होंने विविध खेती को अपनाया और इस पहल के कारण उन्हें Punjab Agriculture University के द्वारा वर्ष का सर्वश्रेष्ठ किसान चुना गया और विविध खेती अपनाने के लिए उन्हें PAU के पूर्व अध्यापक मनिंदरजीत सिंह संधु द्वारा “Parwasi Bharti Puraskar” से सम्मानित किया गया।

आज 42 एकड़ में से उनके पास 10 एकड़ में बाग हैं, 2.5 एकड़ में सब्जियों की खेती, 10 एकड़ में मछली फार्म और आधे एकड़ में बरगद के वृक्ष हैं। हालांकि उनके लिए विविध खेती के अलावा वास्तविक खेल प्रवर्त्तक, जिसने सब कुछ बदल दिया वह था मधु मक्खी पालन। उन्होंने मक्खीपालन की सिर्फ मक्खियों के 7 बक्से से शुरूआत की और आज उनके पास 1800 से भी अधिक मधुमक्खियों के बक्से हैं जिनसे प्रत्येक वर्ष एक हज़ार क्विंटल शहद का उत्पादन होता है।

श्री गुरचरन अपने काम में इतने परिपूर्ण हैं कि उनके द्वारा निर्मित शहद की गुणवत्ता अति उत्तम हैं और कई देशों में मान्यता प्राप्त है। मक्खीपालन में उनकी सफलता ने उनके गांव में शहद प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने के लिए जिला प्रशासन का नेतृत्व किया और इस प्लांट ने 15 लोगों को रोजगार दिया जो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। उनका मधुमक्खी पालन व्यवसाय ना केवल उन्हें लाभ देता है बल्कि कई अन्य लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।

श्री गुरचरन ने विभिन्नता के वास्तविक अर्थ को समझा और इसे ना केवल सब्जियों की खेती पर लागू किया बल्कि अपने व्यवसाय पर भी इसे लागू किया। उनके पास बागान, मछली फार्म, डेयरी फार्म हैं और इसके अलावा वे जैविक खेती में भी निष्क्रिय रूप से शामिल हैं। मधुमक्खी पालन व्यवसाय से उन्होंने मधुमक्खी बक्से बनाने और मोमबत्ती बनाने जैसी अन्य गतिविधियों को शुरू किया है।

“एक चीज़ जो प्रत्येक किसान को करनी चाहिए वह है मिट्टी और पानी की जांच और दूसरी चीज़ किसानों को यह समझना चाहिए कि यदि एक किसान आलू उगा रहा है तो दूसरे को लहसुन उगाना चाहिए उन्हें कभी किसी की नकल नहीं करनी चाहिए।”

मधुमक्खी पालन अब उनका प्राथमिक व्यवसाय बन चुका है इसलिए उनके फार्म का नाम “Mann Makhi Farm” है और शहद के अलावा वे जैम, आचार, मसाले जैसे हल्दी पाउडर और लाल मिर्च पाउडर आदि भी बनाते हैं। वे इन सभी उत्पादों का मंडीकरण “Maan” नाम के तहत करते हैं।

वर्तमान में उनका फार्म आस पास के वातावरण और मनमोहक दृश्य के कारण Punjab Tourism के अंतर्गत आता है उनका फार्म वृक्षों की 5000 से भी ज्यादा प्रजातियों से घिरा हुआ है और वहां का दृश्य प्रकृति के नज़दीक होने का वास्तविक अर्थ देता है।

उनके अनुसार आज उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया वह सिर्फ PAU के कारण। शुरूआत से उन्होंने वही किया जिसकी PAU के माहिरों द्वारा सिफारिश की गई। अपने काम में अधिक व्यावसायिकता लाने के लिए उन्होंने उच्च शिक्षा भी हासिल की और बाद में technical and scientific inventions में ग्रेजुएशेन की।

गुरचरन सिंह की सफलता की कुंजी है उत्पादन लागत कम करना, उत्पादों को स्वंय मंडी में लेकर जाना और सरकार पर कम से कम निर्भर रहना। इन तीनों चीज़ें अपनाकर वे अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

उन्होंने खेती के प्रति सरकार की पहल से संबंधित अपने विचारों पर भी चर्चा की –

“ सरकार को खेतीबाड़ी में परिवर्तन को और उत्साहित करने की तरफ ध्यान देना चाहिए। रिसर्च के लिए और फंड निर्धारित करने चाहिए और नकदी फसलों के लिए सहयोग मुल्य पक्का करना चाहिए तभी किसान खेतीबाड़ी में परिवर्तन को आसानी से अपनाएंगे।”

संदेश
किसानों को इस प्रवृत्ति का पालन नहीं करना चाहिए कि अन्य किसान क्या कर रहे हैं उन्हें वह काम करना चाहिए जिसमें उन्हें लाभ मिले और अगर उन्हें मदद की जरूरत है तो कृषि विशेषज्ञों से मदद ले सकते हैं। फिर चाहे वे पी ए यू के हों या किसी अन्य यूनिवर्सिटी के क्योंकि वे हमेशा अच्छा सुझाव देंगे।