कैप्टन ललित

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कैसे एक व्यक्ति ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुना और बागबानी को अपनी रिटायरमेंट योजना के रूप में चुना

राजस्थान की सूखी भूमि पर अनार उगाना, एक मज़ाकिया और असफल विचार लगता है लेकिन अपने मजबूत दृढ़ संकल्प, जिद और उच्च घनता वाली खेती तकनीक से कैप्टन ललित ने इसे संभव बनाया।

कई क्षेत्रों में माहिर होने और अपने जीवन में कई व्यवसायों का अनुभव करने के बाद, आखिर में कैप्टन ललित ने बागबानी को अपनी रिटायरमेंट योजना के रूप में चुना और राजस्थान के गंगानगर जिले में अपने मूल स्थान- 11 Eea में वापिस आ गए। खैर, कई शहरों में रह रहे लोगों के लिए, खेतीबाड़ी एक अच्छी रिटारमेंट योजना नहीं होती, लेकिन श्री ललित ने अपनी अंर्तात्मा की आवाज़ को सही में सुना और खेतीबाड़ी जैसे महान और मूल व्यवसाय को एक अवसर देने के बारे में सोचा।

शुरूआती जीवन-
श्री ललित शुरू से ही सक्रिय और उत्साही व्यक्ति थे, उन्होंने कॉलेज में पढ़ाई के साथ ही अपना पेशेवर व्यवसाय शुरू कर दिया था। अपनी ग्रेजुऐशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने व्यापारिक पायलेट का लाइसेंस भी प्राप्त किया और पायलेट का पेशा अपनाया। लेकिन यह सब कुछ नहीं था जो उन्होंने किया। एक समय था जब कंप्यूटर की शिक्षा भारत में हर जगह शुरू की गई थी, इसलिए इस अवसर को ना गंवाते हुए उन्होंने एक नया उद्यम शुरू किया और जयपुर शहर में एक कंप्यूटर शिक्षा केंद्र खोला। जल्दी ही कुछ समय के बाद उन्होंने ओरेकल टेस्ट पास किया और एक ओरेकल प्रमाणित कंप्यूटर ट्रेनर बन गए। उनका कंप्यूटर शिक्षा केंद्र कुछ वर्षों तक अच्छा चला लेकिन लोगों में कंप्यूटर की कम होती दिलचस्पी के कारण इस व्यवसाय से मिलने वाला मुनाफा कम होने के कारण उन्होंने अपने इस उद्यम को बंद कर दिया।

उनके कैरियर के विकल्पों को देखते हुए यह तो स्पष्ट है कि शुरूआत से ही वे एक अनोखा पेशा चुनने में दिलचस्पी रखते थे जिसमें कि कुछ नई चीज़ें शामिल थी फिर चाहे वह प्रवृत्ति, तकनीकी या अन्य चीज़ के बारे में हो और अगला काम जो षुरू किया, उन्होंने जयपुर शहर में किराये पर एक छोटी सी ज़मीन लेकर विदेशी सब्जियों और फूलों की खेती व्यापारिक उद्देश्य के लिए की और कई पांच सितारा होटलों ने उनसे उनके उत्पादन को खरीदा।

“जब मैंने विदेशी सब्जियां जैसे थाईम, बेबी कॉर्न, ब्रोकली, लेट्स आदि को उगाया उस समय इलाके के लोग मेरा मज़ाक बनाते थे क्योंकि उनके लिए ये विदेशी सब्जियां नई थी और वे मक्की के छोटे रूप और फूल गोभी के हरे रूप को देखकर हैरान होते थे। लेकिन आज वे पिज्ज़ा, बर्गर और सलाद में उन सब्जियों को खा रहे हैं।”

जब विचार अस्तित्व में आया-
जब वे विदेशी सब्जियों की खेती कर रहे थे उस समय के दौरान उन्होंने महसूस किया कि खेतीबाड़ी में निवेश करना सबसे अच्छा है और उन्हें इसे बड़े स्तर पर करना चाहिए। क्योंकि उनके पास पहले से ही अपने मूल स्थान में एक पैतृक संपत्ति (12 बीघा भूमि) थी इसलिए उन्होंने इस पर किन्नू की खेती शुरू करने का फैसला किया वे किन्नू की खेती शुरू करने के विचार को लेकर अपने गांव वापिस आ गए लेकिन कईं किसानों से बातचीत करने के बाद उन्हे लगा कि प्रत्येक व्यक्ति एक ही चीज़ कर रहा है और उन्हें कुछ अलग करना चाहिए।

और यह वह समय था जब उन्होंने विभिन्न फलों पर रिसर्च करना शुरू किया और विभिन्न शहरों में अलग -अलग खेतों का दौरा किया। अपनी रिसर्च से उन्होंने एक उत्कृष्ट और एक आम फल को उगाने का निष्कर्ष निकाला। उन्होंने (केंद्रीय उपोष्ण बागबानी लखनऊ) से परामर्श लिया और 2015 में अनार और अमरूद की खेती शुरू की। उन्होंने 6 बीघा क्षेत्र में अनार (सिंदूरी किस्म) और अन्य 6 बीघा क्षेत्र में अमरूद की खेती शुरू की। रिसर्च और सहायता के लिए उन्होंने मोबाइल और इंटरनेट को अपनी किताब और टीचर बनाया।

“शुरू में, मैंने राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से भी परामर्श लिया लेकिन उन्होंने कहा कि राजस्थान में अनार की खेती संभव नहीं है और मेरा मज़ाक बनाया।”

खेती करने के ढंग और तकनीक-
उन्होंने अनार की उच्च गुणवत्ता और उच्च मात्रा का उत्पादन करने के लिए उच्च घनता वाली तकनीक को अपनाया। खेतीबाड़ी की इस तकनीक में उन्होंने कैनोपी प्रबंधन को अपनाया और 20 मीटर x 20 मीटर के क्षेत्र में अनार के 7 पौधे उगाए। ऐसा करने से, एक पौधा एक मौसम में 20 किलो फल देता है और 7 पौधे 140 किलो फल देते हैं। इस तरीके से उन्होंने कम क्षेत्र में अधिक वृक्ष लगाए हैं और इससे भविष्य में वे अच्छा कमायेंगे। इसके अलावा, उच्च घनता वाली खेती के कारण, वृक्षों का कद और चौड़ाई कम होती है जिसके कारण उन्हें पूरे फार्म के रख रखाव के लिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

कैप्टन ललित ने अपनी खेती के तरीकों को बहुत मशीनीकृत किया है। बेहतर उपज और प्रभावी परिणाम के लिए उन्होंने स्वंय एक टैंक- कम- मशीन बनाई है और इसके साथ एक कीचड़ पंप को जोड़ा है इसके अंदर घूमने के लिए एक शाफ्ट लगाया है और फार्म में सलरी और जीवअमृत आसानी से फैला दी जाती है। फार्म के अंदर इसे चलाने के लिए वे एक छोटे ट्रैक्टर का उपयोग करते हैं। जब इसे किफायती बनाने की बात आती है तो वे बाज़ार से जैविक खाद की सिर्फ एक बोतल खरीदकर सभी खादों, फिश अमीनो एसिड खाद, जीवाणु और फंगस इन सभी को अपने फार्म पर स्वंय तैयार करते हैं।

उन्होंने राठी नसल की दो गायों को भी अपनाया जिनकी देख रेख करने वाला कोई नहीं था और अब वे उन गायों का उपयोग जीवअमृत और खाद बनाने के लिए करते हैं। एक अहम चीज़ – “अग्निहोत्र भभूति”, जिसका उपयोग वे खाद में करते हैं। यह वह राख होती है जो कि हवन से प्राप्त होती है।

“अग्निहोत्र भभूति का उपयोग करने का कारण यह है कि यह वातावरण को शुद्ध करने में मदद करती है और यह आध्यात्मिक खेती का एक तरीका है। आध्यात्मिक का अर्थ है खेती का वह तरीका जो भगवान से संबंधित है।”

उन्होंने 50 मीटर x 50 मीटर के क्षेत्र में बारिश का पानी बचाने के लिए और इससे खेत को सिंचित करने के लिए एक जलाशय भी बनाया है। शुरूआत में उनका फार्म पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल था क्योंकि वे सब कुछ प्रबंधित करने के लिए सोलर ऊर्जा का प्रयोग करते थे लेकिन अब उन्हें सरकार से बिजली मिल रही है।

सरकार की भूमिका-
उनका अनार और अमरूद की खेती का पूरा प्रोजेक्ट राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया गया है और उन्हें उनसे सब्सिडी मिलती है।

उपलब्धियां-
उनके खेती के प्रयास की सराहना कई लोगों द्वारा की जाती है।
जिस यूनिवर्सिटी ने उनका मज़ाक बनाया था वह अब उन्हें अपने समारोह में अतिथि के रूप में आमंत्रित करती है और उनसे उच्च घनता वाली खेती और कांट-छांट की तकनीकों के लिए परामर्श भी लेती है।

वर्तमान स्थिति-
आज उन्होंने 12 बीघा क्षेत्र में 5000 पौधे लगाए हैं और पौधों की उम्र 2 वर्ष 4 महीने है। उच्च घनता वाली खेती के द्वारा अनार के पौधों ने फल देना शुरू भी कर दिया है, लेकिन वे अगले वर्ष वास्तविक व्यापारिक उपज की उम्मीद कर रहे हैं।

“अपनी रिसर्च के दौरान मैंने कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों का भी दौरा किया और वहां पर पहले से ही उच्च घनता वाली खेती की जा रही है। उत्तर भारत के किसानों को भी इस तकनीक का पालन करना चाहिए क्योंकि यह सभी पहलुओं में फायदेमंद हैं।”

यह सब शुरू करने से पहले, उन्हें उच्च घनता वाली खेती के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान था, लेकिन उनके पास व्यावहारिक अनुभव नहीं था, लेकिन धीरे धीरे समय के साथ वह इसे भी प्राप्त कर रहे हैं उनके पास 2 श्रमिक हैं और उनकी सहायता से वे अपने फार्म का प्रबंधन करते हैं।

उनके विचार-
जब एक किसान खेती करना शुरू करता है तो उसे उद्योग की तरह निवेश करना शुरू कर देना चाहिए तभी वे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा आज हर किसान को मशीनीकृत होने की ज़रूरत है यदि वे खेती में कुशल होना चाहते हैं।

किसानों को संदेश-
“जब तक किसान पारंपरिक खेती करना नहीं छोड़ते तब तक वे सशक्त और स्वतंत्र नहीं हो सकते। विशेषकर वे किसान जिनके पास कम भूमि है उन्हें स्वंय पहल करनी पड़ेगी और उनहें बागबानी में निवेश करना चाहिए। उन्हें सिर्फ सही दिशा का पालन करना चाहिए।”

हरजिंदर कौर रंधावा

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कैसे इस 60 वर्षीय महिला ने अमृतसर में मशरूम की खेती व्यवसाय की स्थापना की और उनके बेटों में इसे सफल बनाया

पंजाब में जहां आज भी लोग पारंपरिक खेती के चक्र में फंसे हुए हैं वहां कुछ किसान ऐसे हैं, जिन्होंने इस चक्र को तोड़ा और खेती की अभिनव तकनीक को लेकर आये, जो कि प्रकृति के जरूरी संसाधन जैसे पानी आदि को बचाने में मदद करते हैं।

यह कहानी एक परिवार के प्रयासों की कहानी है। रंधावा परिवार धार्मिक शहर पंजाब अमृतसर से है, जो अमृत सरोवर (पवित्र जल तालाब) से घिरा हुआ अद्भुत पाक शैली, संस्कृति और शांत स्वर्ण मंदिर के लिए जाना जाता है। यह परिवार ना केवल मशुरूम की खेती में क्रांति ला रहा है, बल्कि आधुनिक, किफायती तकनीकों की तरफ अन्य किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है।

हरजिंदर कौर रंधावा अमृतसर की प्रसिद्ध मशरूम महिला हैं। उन्होंने मशरूम की खेती सिर्फ एक अतिरिक्त काम के तौर पर शुरू की या हम कह सकते हैं कि यह उनका शौंक था लेकिन कौन जानता था कि श्री मती हरजिंदर कौर का यह शौंक, भविष्य में उनके बेटों द्वारा एक सफल व्यापार में बदल दिया जायेगा।

यह कैसे शुरू हुआ…
अस्सी नब्बे के दशक में पंजाब पुलिस में सेवा करने वाले राजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी होने के नाते, घर में कोई कमी नहीं थी, जो श्री मती हरजिंदर कौर को वैकल्पिक धन कमाई स्त्रोत की तलाश में असुरक्षित बनाती।

कैसे एक गृहिणी की रूचि ने परिवार के भविष्य के लिए नींव रखी…
लेकिन 1989 में हरजिंदर कौर ने कुछ अलग करने का सोचा और अपने अतिरिक्त समय का कुशल तरीके से इस्तेमाल करने का विचार किया, इसलिए उन्होंने अपने घर के बरामदे में मशरूम की खेती शुरू की। मशरूम की खेती शुरू करने से पहले उनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं थी, लेकिन उनके समर्पण ने उनके कामों में सच्चे रंग लाए। धीरे-धीरे उन्होंने मशरूम की खेती के काम को बढ़ाया और मशरूम से खाद्य पदार्थ बनाने शुरू कर दिए।

जब बेटे अपनी मां का सहारा बने…
जब उनके बेटे बड़े हो गए और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली, तो चार बेटों मे से तीन बेटे (मनजीत, मनदीप और हरप्रीत) मशरूम की खेती के व्यवसाय में अपनी मां की मदद करने का फैसला किया। तीनों बेटे विशेष रूप से ट्रेनिंग के लिए डायरेक्टोरेट ऑफ मशरूम रिसर्च, सोलन गए। वहां पर उन्होंने मशरूम की अलग-अलग किस्मों जैसे बटन, मिल्की और ओइस्टर के बारे में सीखा। उन्होंने मशरूम की खेती पर पी ए यू द्वारा दी गई अन्य व्यवसायिक ट्रेनिंग में भी भाग लिया। जबकि तीसरा बेटा (जगदीप सिंह) अन्य फसलों की खेती करने में अधिक रूचि रखता था और बाद में वह ऑस्ट्रेलिया गया और गन्ने और केले की खेती शुरू की।समय के साथ-साथ, हरजिंदर कौर के बेटे मशरूम की खेती के काम का विस्तार करते रहते हैं और उन्होंने व्यापारिक उद्देश्य के लिए मशरूम के उत्पादों जैसे आचार, पापड़, पाउडर, बड़ियां, नमकीन और बिस्किट का प्रोसेस भी शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ, श्री राजिंदर सिंह रंधावा भी रिटायरमेंट के बाद अन्य सदस्यों के साथ मशरूम की खेती के व्यवसाय में शामिल हुए।

आज रंधावा परिवार एक सफल मशरूम उत्पादक हैं और मशरूम के उत्पादों का एक सफल निर्माता है। बीज की तैयारी से लेकर मार्किटिंग तक का काम परिवार के सदस्य सब कुछ स्वंय करते हैं। हरजिंदर कौर के बाद, एक अन्य सदस्य मनदीप सिंह (दूसरा बेटा), जिसने इस व्यापार को अधिक गंभीरता से लिया और उसका विस्तार करने की दिशा में काम किया। वे विशेष रूप से सभी उत्पादों का निर्माण और उनके मार्किटिंग का प्रबंधन करते हैं। मुख्य रूप से वे अपनी दुकान (रंधावा मशरूम फार्म) के माध्यम से काम करते हैं जो कि बटाला जालंधर रोड पर स्थित है।

अन्य दो बेटे (मनजीत सिंह और हरप्रीत सिंह) भी रंधावा मशरूम फार्म चलाने में एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मशरूम की खेती, कटाई और व्यवसाय से संबंधित अन्य कामों का प्रबंधन करते हैं।

हालांकि, परिवार के बेटे अब सभी कामों का प्रबंधन कर रहे हैं फिर भी हरजिंदर कौर बहुत सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और व्यक्तिगत तौर पर खेती और निर्माण स्थान पर जाते हैं और उस पर काम कर रहे अन्य लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। वे मुख्य व्यक्ति हैं जो उनके द्वारा निर्मित उत्पादों की स्वच्छता और गुणवत्ता का ध्यान रखते हैं ।

हरजिंदर कौर अपने आने वाले भविष्य में अपनी तीसरी पीढ़ी को देखना चाहती हैं …

“ मैं चाहती हूं कि मेरी तीसरी पीढ़ी भी हमारे व्यापार का हिस्सा हो, उनमें से कुछ यह समझने योग्य हैं कि क्या हो रहा है उन्होंने पहले से ही मशरूम की खेती व्यापार में दिलचस्पी दिखाना शुरू कर दिया है। हम अपने पोते (मनजीत सिंह का पुत्र, जो अभी 10वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है ), को मशरूम रिसर्च में उच्च शिक्षा प्राप्त करने और इस पर पी एच डी करने के लिए विदेश भेजने की योजना बना रहे हैं।

मार्किट में छाप स्थापित करना…
रंधावा मशरूम फार्म ने पहले ही अपने उत्पादन की गुणवत्ता के साथ बाजार में बड़े पैमाने पर अपनी मौजूदगी दर्ज की। वर्तमान में 70 प्रतिशत उत्पाद (ताजा मशरूम और संसाधित मशरूम खाद्य पदार्थ) उनकी अपनी दुकान के माध्यम से बेचे जाते हैं और शेष 30 प्रतिशत आस-पास के बड़े शहरों जैसे जालंधर, अमृतसर, बटाला और गुरदासपुर के सब्जी मंडी में भेजे जाते हैं।चूंकि वे मशरूम की तीन किस्मों मिल्की, बटन और ओइस्टर उगाते हैं इसलिए इनकी आमदन भी अच्छी होती है। इन तीनों किस्मों में निवेश कम होता है और आमदन 70 से 80 रूपये (कच्ची मशरूम) प्रति किलो के बीच होती है। कटाई के लिए तैयार होने के लिए बटन मशरूम फसल को 20 से 50 दिन लगते हैं, जबकि ओइस्टर (नवंबर-अप्रैल) और मिल्की (मई-अक्तूबर) कटाई के लिए तैयार होने में 6 महीने लगते हैं। फसलों के तैयार होने और कटाई के समय के कारण इनका व्यापार कभी भी बेमौसम नहीं होता।

रंधावा परिवार…
बहुओं सहित पूरा परिवार व्यापार में बहुत ज्यादा शामिल है और वे घर पर सभी उत्पादों को स्वंय तैयार करते हैं। दूसरा बेटा मनदीप सिंह अपने परिवार के व्यवसाय के मार्किटिंग विभाग को संभालने के अलावा एक और पेशे में अपनी सेवा दे रहे हैं। वे 2007 से जगबाणी अखबार में एक रिपोर्टर के रूप में काम कर रहे हैं और अमृतसर जिले को कवर करते हैं। कभी कभी उनकी उपस्थिति में श्री राजिंदर सिंह रंधावा दुकान को संभालते हैं।आजकल सरकार और कृषि विभाग, किसानों को उन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है और मशरूम इन फसलों में से एक हैं, जिसे सिंचाई के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए मशरूम की खेती में प्रयासों के कारण, रंधावा परिवार को दो बार जिला स्तरीय पुरस्कार और समारोह और मेलों में तहसील स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हाल ही में 10 सितंबर 2017 को रंधावा परिवार के प्रयासों को देश भर में मशरूम रिसर्च सोलन के निदेशालय द्वारा सराहा गया, जहां उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

किसानों को संदेश
रंधावा परिवार एक साथ होने में विश्वास करता है और उनका संदेश किसानों के लिए सबसे अनोखा और प्रेरणादायक संदेश है।

जो परिवार एक साथ रहता है, वह सफलता को बहुत आसानी से प्राप्त करता है। आज कल किसान को एकता की शक्ति को समझना चाहिए और परिवार के सदस्यों के बीच उनकी ज़मीन और संपत्ति को विभाजित करने की बजाय उन्हें एकता में रहकर काम करना चाहिए। एक और बात यह है कि किसान को मार्किटिंग का काम स्वंय शुरू करना चाहिए क्योंकि यह आत्मविश्वास कमाने और अपनी फसल का सही मुल्य अर्जित करने का सबसे आसान तरीका है।