रशपाल सिंह

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एक ऐसा किसान जिसकी किस्मत मशरुम ने बदली और मंजिलों के रास्ते पर पहुंचाया

खेती वह नहीं जो हम खेत में हल के साथ जुताई करना, बीज, पानी लगाना बाद में फसल पकने पर उसकी कटाई करते हैं, पर हर एक के मन में खेती को लेकर यही विचारधारा बनी हुई है, खेती में ओर बहुत सी खेती आ जाती है जोकि खेत को छोड़ कर बगीचा, छत, कमरे में भी खेती कर सकते हैं पर उसके लिए ज़मीनी खेती से ऊपर उठकर इंसान को सोचना पड़ेगा तभी खेती के अलग-अलग विषय के बारे में पढ़कर महारत हासिल कर सकता है।

ऐसे किसान जो शुरू से खेती के साथ जुड़े हुए हैं पर उन्होंने खेती से ऊपर होकर कुछ ओर करने के बारे में सोचा और कामयाब होकर अपने गांव में नहीं बल्कि अपने शहर में भी नाम बनाया। जिन्होनें जो भी व्यवसाय को करने के बारे में सोचा उसे पूरा किया जो असंभव लगता था पर परमात्मा मेहनत करने वालों का साथ हमेशा देता है।

इस स्टोरी द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं उनका नाम रशपाल सिंह है जोकि गांव बल्लू के, ज़िला बरनाला के रहने वाले हैं। रशपाल जी अपने गांव के ऐसे इंसान थे जिन्होनें अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद फ्री बैठने की बजाए कुछ करने के बारे में सोचा और इसकी तैयारी करनी शुरू कर दी।

साल 2012 की बात है रशपाल को बहुत-सी जगह पर मशरुम की खेती के बारे में सुनने को मिलता था पर कभी भी इस बात पर गौर नहीं किया पर जब फिर मशरुम के बारे में सुना तो मन में सवाल आया यह कौन सी खेती है, क्या पता था एक दिन यदि खेती किस्मत बदल देगी। उसके बारे रशपाल जी ने मशरुम की खेती के बारे में जानकारी इक्क्ठी करनी शुरू की।क्योंकि उस समय किसी किसी को ही इसके बारे में जानकारी थी, उनके गांव बल्लू के, के लिए यह नई बात थी। बहुत समय बिताने के बाद रशपाल जी ने पूरी जानकारी इक्क्ठी कर ली और बीज लेने के लिए हिमाचल प्रदेश चले गए, पर वहां किस्मत में मशरुम की खेती के साथ साथ स्ट्रॉबेरी की खेती का नाम भी सुनहरी अक्षरों में लिखा हुआ था।

जब मशरुम के बीज लेने लगे तो किसी ने कहा “आपको स्ट्रॉबेरी की खेती भी करनी चाहिए” सुनकर रशपाल बहुत हैरान हुआ और सोचने लगा यह भी काम नया है जिसके बारे में लोगों को कम ही पता था, मशरुम के बीज लेने गए रशपाल जी स्ट्रॉबेरी के पौधे भी ले साथ आए और मशरुम के बीज एक छोटी सी झोंपड़ी बना कर उसमें लगा दिए और इसके साथ खेत में स्ट्रॉबेरी के पौधे भी लगा दिए।

मशरुम लगाने के बाद देखरेख की और जब मशरुम तैयार होने लगा तो खुश हुए पर पर ख़ुशी अधिक समय के लिए नहीं थी, क्योंकि एक साल दिन रात मेहनत करने के बाद यह परिणाम निकला कि मशरुम की खेती बहुत समय मांगती है और देखरेख अधिक करनी पड़ती है । वह बटन मशरुम की खेती करते थे और आखिर उन्होनें साल 2013 में बटन मशरुम की खेती छोड़ने का फैसला किया और बाद में स्ट्रॉबेरी की खेती पर पूरा ध्यान देने लगे।

बटन मशरुम में असफलता का कारण यह भी था कि उन्होनें किसी प्रकार की ट्रेनिंग नहीं ली थी।

2013 के बाद स्ट्रॉबेरी की खेती को लगातार बरकरार रखते हुए “बल्लू स्ट्रॉबेरी” नाम के ब्रांड से बरनाला में बड़े स्तर पर मार्केटिंग करने लग गए जोकि 2017 तक पहुंचते-पहुंचते पूरे पंजाब में फैल गई, पर सफल तो इस काम में भी हुए पर भगवान ने किस्मत में कुछ ओर ही लिखा हुआ था जो 2013 में अधूरा काम छोड़ा था उसे पूरा करने के लिए।

रशपाल ने देरी न करते हुए 2017 में अपने शहर के नजदीक के वी के से मशरुम की ट्रेनिंग के बारे में पता किया जिसमें मशरुम की हर किस्म के बारे में अच्छी तरह से जानकारी और ट्रेनिंग दी जाती है, उस समय वह ऑइस्टर मशरुम की ट्रेनिंग लेने के लिए गए थे जोकि 5 दिनों का ट्रेनिंग प्रोग्राम था, जब वह ट्रेनिंग ले रहे थे तो उसमें मशरुम की बहुत से किस्मों के बारे में जानकारी दी गई पर जब उन्होनें कीड़ा जड़ी मशरुम के बारे में सुना जोकि एक मेडिसनल मशरुम है जिसके साथ कई तरह की बीमारियां जैसे कैंसर, शुगर, दिल का दौरा, चमड़ी आदि के रोगो को ठीक किया जा सकता है। जिसकी कीमत हजारों से शुरू और लाखों में खत्म होती है, जैसे 10 ग्राम एक हज़ार, 100 ग्राम 10 हज़ार, के हिसाब से बिकती है।

जब रशपाल को कीड़ा जड़ी मशरुम के फायदे के बारे में पता लगा तो उसने मन बना लिया कि कीड़ा जड़ी मशरुम की खेती ही करनी है, जिसके लिए रिसर्च करनी शुरू कर दी और बाद में पता लगा कि इसके बीज यहां नहीं थाईलैंड देश में मिलते है, पर यहां आकर रशपाल के लिए मुश्किल खड़ी हो गई क्योंकि कोई भी उसे जानने वाला बाहर देश में नहीं था जो उसकी सहायता कर सकता था। पर रशपाल जी ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और मेहनत करके बाहर देश में किसी के साथ संम्पर्क बनाया और फिर पूरी बात की।

जब रशपाल को बरोसा हुआ तो उन्होनें थाईलैंड से बीज मंगवाए जिसमें उनका खर्चा 2 लाख के नजदीक हुआ था। उन्होनें रिसर्च तो की थी और सब कुछ पहले से त्यार किया हुआ था जो मशरुम लगाने और उसे बढ़ने के लिए जरुरी थी और 2 अलग-अलग कमरे इस तरह से तैयार किये थे जहां पर मशरुम को हर समय आवश्यकता अनुसार तापमान मिलता रहे और मशरुम को डिब्बे में डालकर उसका ध्यान रखते।

रशपाल जी पहले ही बटन मशरुम और स्ट्रॉबेरी की खेती करते थे जिसके बाद उन्होनें कीड़ा जड़ी नामक मशरुम की खेती करनी शुरू कर दी। जब कीड़ा जड़ी मशरुम पकने पर आई तो नजदीकी गांव वालों को पता चला कि नजदीकी गांव में कोई मेडिसनल मशरुम की खेती कर रहा है, क्योंकि उनके नजदीक इस नाम के मशरुम की खेती कोई नहीं करता था, जिसके कारण लोगों में जानने के लिए उत्सुकता पैदा हो गई, जब वह रशपाल से मशरुम और इसके फायदे के बारे में पूछने लगे तो उन्होनें बहुत से अच्छे से उसके अनेकों फायदे के बारे में बताया, वैसे उन्होनें इसकी खेती घर के लिए ही की थी पर उन्हें क्या पता था कि एक दिन यही मशरुम की खेती व्यापार का रास्ता बन जाएगी।

सबसे पहले मशरुम का ट्रायल अपने और परिवार वालों पर किया और ट्रायल में सफल होने पर बाद में इसे बेचने के बारे में सोची और धीरे-धीरे लोग खरीदने लगे जिसका परिणाम थोड़े समय में मिलने लगा बहुत कम समय में मशरुम बिकने लगे।

जिसके साथ मार्केटिंग में इतनी जल्दी प्रसार हुआ, फिर उन्होनें मार्केटिंग करने के तरीके को बदला और मशरुम को एक ब्रांड के द्वारा बेचने के बारे में सोचा जिसे cordyceps barnala के ब्रांड नाम से रजिस्टर्ड करवा कर, खुद प्रोसेसिंग करके और पैकिंग करके मार्केटिंग करनी शुरू कर दी जिससे ओर लोग जुड़ने लगे और मार्केटिंग बरनाला शहर से शुरू हुई पूरे पंजाब में फैल गई, जिससे थोड़े समय में मुनाफा होने लगा। जिसमें वह 10 ग्राम 1000 रुपए के हिसाब से मशरुम बेचने लगे।

उन्होनें जहां से मशरुम उत्पादन की शुरुआत 10×10 से की थी इस तरह करते वह 2017 में प्राप्ति के शिखर पर थे, आज उनकी मशरुम की इतनी मांग है की उन्हें मशरुम खरीदने के लिए फोन आते हैं और बिलकुल भी खाली समय नहीं मिलता। अधिकतर उनकी मशरुम खिलाड़ियों की तरफ से खरीदी जाती है।

उन्हें इस काम के लिए आत्मा, के वी के और ओर बहुत सी संस्था की तरफ से इनाम भी प्रपात हो चुके हैं।

भविष्य जी योजना

वह 2 कमरे से शुरू किए इस काम को ओर बड़े स्तर पर करके अलग अलग कमरे तैयार करके मार्केटिंग करना चाहते हैं।

संदेश

यदि किसी छोटे किसान ने कीड़ा जड़ी मशरुम की खेती करनी है तो पैसे लगाने से पहले उसके ऊपर अच्छे से रिसर्च करें जानकारी लें और ट्रेनिंग ले कर ही इस काम शुरू करना चाहिए।

मोटा राम शर्मा

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एक ऐसा किसान जिसने मशरूम से किया कैंसर जैसी ला—इलाज बीमारी का इलाज

खेती तो सभी किसान ही करते हैं, पर जिस किसान की बात आज हम करने जा रहे हैं वह बाकी किसानों से अलग है। पर खेती के साथ साथ रोगियों का इलाज करने के बारे में शायद ही किसी किसान ने सोचा होगा। यह एक ऐसा किसान है जो मशरूम की खेती करने के कारण डॉक्टर बना।

मशरूम मैन के नाम से प्रसिद्ध मोटा राम शर्मा जी आज से लगभग 24 वर्ष पहले डेयरी फार्मिंग के साथ साथ अपनी 5 बीघा ज़मीन में मशरूम की खेती करते थे। उस समय राजस्थान में मशरूम फार्मिंग का कोई ज्यादा रूझान नहीं था। सबसे पहले उन्होंने ओइस्टर मशरूम उगानी शुरू की थी। उस समय ज्यादातर किसान सिर्फ बटन मशरूम के बारे में ही जानते थे। इसलिए मोटा राम की तरफ से काफी मात्रा में ओइस्टर मशरूम तैयार की गई थी, तो इसकी ज्यादा मार्केटिंग ना होने के कारण उन्होंने मशरूम का पाउडर तैयार करके पशुओं को खिलाना शुरू कर दिया। इस पाउडर को खाने से गायों में मैसटाइटिस जैसी ला—इलाज बीमारी खत्म हो गई। इस सफलता के बाद मोटा राम जी ने बड़े स्तर पर ओइस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू कर दिया जब इसके बारे में खेती अधिकारियों को पता लगा तो उन्होंने मोटा राम शर्मा को ट्रेनिंग लेने की सलाह दी। उसके बाद मोटा राम जी ट्रेनिंग लेने के लिए सोलन और जयपुर गए। मशरूम के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद मोटा राम जी ने बटन और शिटाके मशरूम उगानी शुरू की। बटन मशरूम की मार्केटिंग उन्होने दिल्ली मंडी में करनी शुरू कर दी, इससे उन्हें बढ़िया कमाई होने लग गई। मोटा राम शर्मा जी मशरूम फार्मिंग बिना ए.सी. से करते हैं।

समय व्यतीत होने पर अपनी तरफ से की खोज के आधार पर मुझे पता लगा कि मशरूम को हम कई बीमारियां रोकने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मशरूम की कई किस्में हैं जो मानवी जीवन के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है — मोटा राम शर्मा

मशरूम उत्पादन करते करते मोटा राम जी ने मशरूम का बीज तैयार करना भी शुरू कर दिया और अब वह 16 अलग अलग किस्मों की मशरूम उगाते हैं।

वर्ष 2010 में वे भारत में गैनोडरमा मशरूम उगाने वाले सबसे पहले किसान बने, जिस कारण उन्हें मशरूम किंग आफ इंडिया का अवार्ड मिला। इस गैनोडरमा मशरूम का इस्तेमाल वे कैंसर की दवाई बनाने के लिए करते हैं।

अपने द्वारा तैयार की दवाइयों के साथ हम दिल के मरीज़ों और कैंसर के मरीज़ों का इलाज करते हैं अब तक हमने 90 प्रतिशत केसों में सफलता हासिल की है — मोटा राम शर्मा

बिना किसी डिग्री से पांचवी पास मोटा राम शर्मा के इस कारनामे के कारण कई लोग हैरत में हैं।

अपनी खोज के समय के दौरान उन्हें पता लगा कि मनुष्य में कैंसर होने का कारण शरीर में विटामिन 17 की कमी होना है और गैनोडरमा मशरूम में विटामिन 17 मौजूद होते हैं।

अब मोटा राम जी मशरूम से कई तरह की दवाइयां बनाते हैं, जिनसे वे कैंसर पीड़ित मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं।

अपने पांच बीघा के फार्म के आस पास उन्होंने अशोका वृक्ष, एलोवेरा, शतावरी और गिलोय के पौधे भी लगाए हुए हैं, जिनका इस्तेमाल वे दवाइयां बनाने के लिए करते हैं।

मोटा राम शर्मा जी के दोनों पुत्र डॉक्टर हैं, पर अब वे भी अपने पिता के साथ मिलकर मशरूम फार्मिंग करते हैं।

शर्मा जी अब 16 तरह की अलग अलग किस्मों की मशरूम उगाते हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं:
  • गैनोडरमा मशरूम
  • ऋषि मशरूम
  • पिंक मशरूम
  • साजर काजू
  • काबुल अंजाई
  • ब्लैक ईयर
  • बटन मशरूम
  • ओइस्टर मशरूम
  • ढींगरी मशरूम
  • डीजेमोर
  • सिट्रो मशरूम
  • शीटाके
  • सागर काजू सरीखी
  • पनीर मशरूम
  • फ्लोरीडा मशरूम
  • कोडी शैफ मशरूम

मशरूम फार्मिंग के क्षेत्र में किए अपने इन प्रयत्नों और खोजों के कारण मोटा राम शर्मा जी को कई अवार्ड भी मिले हैं, जो कि निम्नलिखित अनुसार है:

  • बेस्ट मशरूम फार्मर अवार्ड 2010
  • कृषि रत्न 2010
  • कृषि सम्राट 2011
  • मशरूम किंग आफ इंडिया 2018
  • राष्ट्रीय मशरूम बोर्ड के मैंबर

मोटा राम शर्मा जी के फार्म पर कई किसान भी मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए आते हैं।

भविष्य की योजना

मोटा राम जी आने वाले समय में किसानों की इसी तरह मदद करके, अपने तज़ुर्बे से उनकी मुश्किलों का हल करना चाहते हैं और मशरूम उत्पादन में और नई खोजें करना चाहते हैं।

संदेश
“किसानों को खेती के क्षेत्र में आने वाली मुश्किलों के हल के लिए माहिरों की सलाह लेते रहना चाहिए। हर क्षेत्र में नई खोजें करने के लिए तत्पर रहें।”

हरजिंदर कौर रंधावा

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कैसे इस 60 वर्षीय महिला ने अमृतसर में मशरूम की खेती व्यवसाय की स्थापना की और उनके बेटों में इसे सफल बनाया

पंजाब में जहां आज भी लोग पारंपरिक खेती के चक्र में फंसे हुए हैं वहां कुछ किसान ऐसे हैं, जिन्होंने इस चक्र को तोड़ा और खेती की अभिनव तकनीक को लेकर आये, जो कि प्रकृति के जरूरी संसाधन जैसे पानी आदि को बचाने में मदद करते हैं।

यह कहानी एक परिवार के प्रयासों की कहानी है। रंधावा परिवार धार्मिक शहर पंजाब अमृतसर से है, जो अमृत सरोवर (पवित्र जल तालाब) से घिरा हुआ अद्भुत पाक शैली, संस्कृति और शांत स्वर्ण मंदिर के लिए जाना जाता है। यह परिवार ना केवल मशुरूम की खेती में क्रांति ला रहा है, बल्कि आधुनिक, किफायती तकनीकों की तरफ अन्य किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है।

हरजिंदर कौर रंधावा अमृतसर की प्रसिद्ध मशरूम महिला हैं। उन्होंने मशरूम की खेती सिर्फ एक अतिरिक्त काम के तौर पर शुरू की या हम कह सकते हैं कि यह उनका शौंक था लेकिन कौन जानता था कि श्री मती हरजिंदर कौर का यह शौंक, भविष्य में उनके बेटों द्वारा एक सफल व्यापार में बदल दिया जायेगा।

यह कैसे शुरू हुआ…
अस्सी नब्बे के दशक में पंजाब पुलिस में सेवा करने वाले राजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी होने के नाते, घर में कोई कमी नहीं थी, जो श्री मती हरजिंदर कौर को वैकल्पिक धन कमाई स्त्रोत की तलाश में असुरक्षित बनाती।

कैसे एक गृहिणी की रूचि ने परिवार के भविष्य के लिए नींव रखी…
लेकिन 1989 में हरजिंदर कौर ने कुछ अलग करने का सोचा और अपने अतिरिक्त समय का कुशल तरीके से इस्तेमाल करने का विचार किया, इसलिए उन्होंने अपने घर के बरामदे में मशरूम की खेती शुरू की। मशरूम की खेती शुरू करने से पहले उनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं थी, लेकिन उनके समर्पण ने उनके कामों में सच्चे रंग लाए। धीरे-धीरे उन्होंने मशरूम की खेती के काम को बढ़ाया और मशरूम से खाद्य पदार्थ बनाने शुरू कर दिए।

जब बेटे अपनी मां का सहारा बने…
जब उनके बेटे बड़े हो गए और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली, तो चार बेटों मे से तीन बेटे (मनजीत, मनदीप और हरप्रीत) मशरूम की खेती के व्यवसाय में अपनी मां की मदद करने का फैसला किया। तीनों बेटे विशेष रूप से ट्रेनिंग के लिए डायरेक्टोरेट ऑफ मशरूम रिसर्च, सोलन गए। वहां पर उन्होंने मशरूम की अलग-अलग किस्मों जैसे बटन, मिल्की और ओइस्टर के बारे में सीखा। उन्होंने मशरूम की खेती पर पी ए यू द्वारा दी गई अन्य व्यवसायिक ट्रेनिंग में भी भाग लिया। जबकि तीसरा बेटा (जगदीप सिंह) अन्य फसलों की खेती करने में अधिक रूचि रखता था और बाद में वह ऑस्ट्रेलिया गया और गन्ने और केले की खेती शुरू की।समय के साथ-साथ, हरजिंदर कौर के बेटे मशरूम की खेती के काम का विस्तार करते रहते हैं और उन्होंने व्यापारिक उद्देश्य के लिए मशरूम के उत्पादों जैसे आचार, पापड़, पाउडर, बड़ियां, नमकीन और बिस्किट का प्रोसेस भी शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ, श्री राजिंदर सिंह रंधावा भी रिटायरमेंट के बाद अन्य सदस्यों के साथ मशरूम की खेती के व्यवसाय में शामिल हुए।

आज रंधावा परिवार एक सफल मशरूम उत्पादक हैं और मशरूम के उत्पादों का एक सफल निर्माता है। बीज की तैयारी से लेकर मार्किटिंग तक का काम परिवार के सदस्य सब कुछ स्वंय करते हैं। हरजिंदर कौर के बाद, एक अन्य सदस्य मनदीप सिंह (दूसरा बेटा), जिसने इस व्यापार को अधिक गंभीरता से लिया और उसका विस्तार करने की दिशा में काम किया। वे विशेष रूप से सभी उत्पादों का निर्माण और उनके मार्किटिंग का प्रबंधन करते हैं। मुख्य रूप से वे अपनी दुकान (रंधावा मशरूम फार्म) के माध्यम से काम करते हैं जो कि बटाला जालंधर रोड पर स्थित है।

अन्य दो बेटे (मनजीत सिंह और हरप्रीत सिंह) भी रंधावा मशरूम फार्म चलाने में एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मशरूम की खेती, कटाई और व्यवसाय से संबंधित अन्य कामों का प्रबंधन करते हैं।

हालांकि, परिवार के बेटे अब सभी कामों का प्रबंधन कर रहे हैं फिर भी हरजिंदर कौर बहुत सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और व्यक्तिगत तौर पर खेती और निर्माण स्थान पर जाते हैं और उस पर काम कर रहे अन्य लोगों का मार्गदर्शन करते हैं। वे मुख्य व्यक्ति हैं जो उनके द्वारा निर्मित उत्पादों की स्वच्छता और गुणवत्ता का ध्यान रखते हैं ।

हरजिंदर कौर अपने आने वाले भविष्य में अपनी तीसरी पीढ़ी को देखना चाहती हैं …

“ मैं चाहती हूं कि मेरी तीसरी पीढ़ी भी हमारे व्यापार का हिस्सा हो, उनमें से कुछ यह समझने योग्य हैं कि क्या हो रहा है उन्होंने पहले से ही मशरूम की खेती व्यापार में दिलचस्पी दिखाना शुरू कर दिया है। हम अपने पोते (मनजीत सिंह का पुत्र, जो अभी 10वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है ), को मशरूम रिसर्च में उच्च शिक्षा प्राप्त करने और इस पर पी एच डी करने के लिए विदेश भेजने की योजना बना रहे हैं।

मार्किट में छाप स्थापित करना…
रंधावा मशरूम फार्म ने पहले ही अपने उत्पादन की गुणवत्ता के साथ बाजार में बड़े पैमाने पर अपनी मौजूदगी दर्ज की। वर्तमान में 70 प्रतिशत उत्पाद (ताजा मशरूम और संसाधित मशरूम खाद्य पदार्थ) उनकी अपनी दुकान के माध्यम से बेचे जाते हैं और शेष 30 प्रतिशत आस-पास के बड़े शहरों जैसे जालंधर, अमृतसर, बटाला और गुरदासपुर के सब्जी मंडी में भेजे जाते हैं।चूंकि वे मशरूम की तीन किस्मों मिल्की, बटन और ओइस्टर उगाते हैं इसलिए इनकी आमदन भी अच्छी होती है। इन तीनों किस्मों में निवेश कम होता है और आमदन 70 से 80 रूपये (कच्ची मशरूम) प्रति किलो के बीच होती है। कटाई के लिए तैयार होने के लिए बटन मशरूम फसल को 20 से 50 दिन लगते हैं, जबकि ओइस्टर (नवंबर-अप्रैल) और मिल्की (मई-अक्तूबर) कटाई के लिए तैयार होने में 6 महीने लगते हैं। फसलों के तैयार होने और कटाई के समय के कारण इनका व्यापार कभी भी बेमौसम नहीं होता।

रंधावा परिवार…
बहुओं सहित पूरा परिवार व्यापार में बहुत ज्यादा शामिल है और वे घर पर सभी उत्पादों को स्वंय तैयार करते हैं। दूसरा बेटा मनदीप सिंह अपने परिवार के व्यवसाय के मार्किटिंग विभाग को संभालने के अलावा एक और पेशे में अपनी सेवा दे रहे हैं। वे 2007 से जगबाणी अखबार में एक रिपोर्टर के रूप में काम कर रहे हैं और अमृतसर जिले को कवर करते हैं। कभी कभी उनकी उपस्थिति में श्री राजिंदर सिंह रंधावा दुकान को संभालते हैं।आजकल सरकार और कृषि विभाग, किसानों को उन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है और मशरूम इन फसलों में से एक हैं, जिसे सिंचाई के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए मशरूम की खेती में प्रयासों के कारण, रंधावा परिवार को दो बार जिला स्तरीय पुरस्कार और समारोह और मेलों में तहसील स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हाल ही में 10 सितंबर 2017 को रंधावा परिवार के प्रयासों को देश भर में मशरूम रिसर्च सोलन के निदेशालय द्वारा सराहा गया, जहां उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

किसानों को संदेश
रंधावा परिवार एक साथ होने में विश्वास करता है और उनका संदेश किसानों के लिए सबसे अनोखा और प्रेरणादायक संदेश है।

जो परिवार एक साथ रहता है, वह सफलता को बहुत आसानी से प्राप्त करता है। आज कल किसान को एकता की शक्ति को समझना चाहिए और परिवार के सदस्यों के बीच उनकी ज़मीन और संपत्ति को विभाजित करने की बजाय उन्हें एकता में रहकर काम करना चाहिए। एक और बात यह है कि किसान को मार्किटिंग का काम स्वंय शुरू करना चाहिए क्योंकि यह आत्मविश्वास कमाने और अपनी फसल का सही मुल्य अर्जित करने का सबसे आसान तरीका है।

अशोक वशिष्ट

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मशरूम की जैविक खेती और मशरूम के उत्पादों से पैसा बनाने वाले एक किसान की उत्साहजनक कहानी

बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने के लिए कृषि का विज्ञान परिष्कृत और अधिक समय तक सिद्ध हुआ है और उन्नति के साथ कृषि की तकनीकों में भी बदलाव आया है। वर्तमान में ज्यादातर किसान अपनी फसलों के ज्यादा उत्पादन के लिए परंपरागत / औद्योगिक कृषि तकनीकों, रासायनिक खादों, कीटनाशकों, जी एम ओ और अन्य औद्योगिक उत्पादों पर आधारित हैं। इनमें से कुछ ही किसान रसायनों का प्रयोग किए बिना खेती करते हैं। आज हम आपकी ऐसी शख्सीयत से पहचान करवाएंगे जो पहले परंपरागत खेती करते थे लेकिन बाद में कुदरती खेती के तरीकों के लाभ जानकर, उन्होंने कुदरती खेती के ढंगो से खेती करनी शुरू की।

अशोक वशिष्ट हरियाणा गांव के साधारण किसान हैं जिन्होंने परंपरागत खेती तकनीकों को उपयोग करने की रूढ़ी सोच को छोड़कर, मशरूम की खेती के लिए जैविक ढंगो का उपयोग करना शुरू किया। मशरूम के रिसर्च सेंटर के दौरे के बाद अशोक वशिष्ट को कुदरती ढंग से मशरूम की खेती करने की प्रेरणा मिली, जहां उन्हें मुख्य वैज्ञानिक डॉ. अजय सिंह यादव ने मशरूम के फायदेमंद गुणों से अवगत कराया और इसकी खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

शुरूआत में जब उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की, तब वैज्ञानिक अजय सिंह यादव के अलावा उन्हें खेती के लिए प्रोत्साहन और सहायता करने वाली उनकी पत्नी थी। उनके परिवार के अन्य छ: सदस्यों ने भी उनकी मदद की और उनका साथ दिया।

अशोक वशिष्ट मशरूम की खेती करने के लिए महत्तवपूर्ण तीन कार्य करते हैं:

पहला कार्य: पहले वे धान की पराली, गेहूं की पराली, बाजरे की पराली आदि का उपयोग करके खाद तैयार करते हैं। वे पराली को 3 से 4 सैं.मी. काट लेते हैं और उसे पानी में भिगो देते हैं।

दूसरा  कार्य: वे घर में खाद तैयार करने के लिए पराली को 28 दिनों के लिए छोड़ देते हैं।

तीसरा कार्य: जब खाद तैयार हो जाती है, तब उनमें मशरूम के बीजों को बोया जाता है जो विशेषकर लैब में तैयार होते हैं।

मशरूम की खेती करने के लिए वे हमेशा ये तीन कार्य करते हैं और मशरूम की खेती के इलावा वे अपने खेत में गेहूं और धान की भी खेती करते हैं। योग्यता से वे सिर्फ 10वीं पास है लेकिन इस चीज़ ने उन्हें नई चीज़ों को सीखने और तलाशने में कभी भी उजागर नहीं किया। अपनी नई सोच और उत्साह के साथ वे मशरूम से अलग उत्पाद बनाने की कोशिश करते हैं और अब तक उन्होंने शहद का मुरब्बा, मशरूम का आचार, मशरूम का मुरब्बा, मशरूम की भुजिया, मशरूम के बिस्कुट, मशरूम की जलेबी और लड्डू जैसे उत्पाद बनाये हैं। उन्होंने हमेशा विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए एक बात का ध्यान रखा है वह है सेहत। इसीलिए वे मीठे व्यंजनों को मीठा बनाने के लिए स्टीविया पौधे की प्रजातियों से तैयार स्टीविया पाउडर का प्रयोग करते हैं। स्टीविया सेहत के लिए एक अच्छा मीठा पदार्थ होता है और इसमें पोषक तत्व भी होते हैं, शूगर के मरीज़ बिना किसी चिंता के स्टीविया युक्त मीठे उत्पादों का प्रयोग कर सकते हैं।

अशोक वशिष्ट की यात्रा बहुत छोटे स्तर से, लगभग शून्य से ही शुरू हुई और आज उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से अपना खुद का व्यवसाय स्थापित किया है जहां वे FSSAI द्वारा पारित घरेलू उत्पादों को बेचते हैं। महर्षि वशिष्ट मशरूम वह ब्रांड नाम है जिसके तहत वे अपने उत्पादों को बेच रहे हैं और कई विशेषज्ञ, अधिकारी, नेताओं और मीडिया उनके आविष्कार किए तरीकों और मशरूम की खेती के पीछे के विचार और स्वादिष्ट मशरूम उत्पादों के लिए समय-समय पर उनके फार्म पर जाते रहते हैं।

महर्षि वशिष्ट की उपलब्धियां इस प्रकार हैं:

• HAIC Agro Research and Development Centre की तरफ से मशरूम प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए र्स्टीफिकेट मिला।

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार की तरफ से ट्रेनिंग र्स्टीफिकेट मिला।

• 2nd Agri Leadership Summit 2017 का पुरस्कार और र्स्टीफिकेट मिला।

• आमना तरनीम, DC जींद की तरफ से प्रशंसा पुरस्कार मिला।

मशरुम का बीज:
हाल ही में अशोक जी ने मशरूम का बीज तैयार किया है, जिसे स्पान की जगह पर इस्तेमाल किया जा सकता है और ऐसा करने वाले वह देश के पहले किसान है।

खैर, अशोक वशिष्ट के बारे में उल्लेख करने के लिए ये सिर्फ कुछ पुरस्कार और उपलब्धियां ही हैं। यहां तक कि उनकी भैंस ने 23 किलो दूध देकर प्रतियोगिता जीती, जिससे उन्हें 21 हज़ार रूपये का नकद पुरस्कार मिला। उनके पास 4.5 एकड़ ज़मीन है और 6 मुर्रा भैंस हैं, जिनमें से वे सबसे अच्छी कमाई और लाभ कमाने की कोशिश करते हैं। वे विभिन्न प्रदर्शनियों और इवेंट्स में भी जाते हैं जो उनके उत्पादों को दिखाने और उनके खेती तकनीक के बारे में जागरूक करवाने में उनकी मदद करते हैं। अपनी कड़ी मेहनत और जुनून के साथ वे भविष्य में निश्चित ही खेती की क्षेत्र में अधिक सफलताएं और प्रशंसा प्राप्त करेंगे।

अशोक वशिष्ट का किसानों के लिए एक विशेष संदेश
मशरूम बेहद पौष्टिक और मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। मैंने कुदरती तरीके से मशरूम की खेती करके बहुत लाभ कमाया है। जैसे कि हम जानते हैं कि भविष्य में खाद्य उत्पाद तैयार करना एक बहुत बड़ी बात होगी, इसलिए इस अवसर का लाभ उठाएं। आने वाले समय में, मैं अपने मशरूम की खेती का विस्तार करने की योजना बना रहा हूं ताकि इनसे तैयार उत्पादों को बेचने के लिए भारी मात्रा में उत्पादों को उत्पादन किया जा सके। अन्य किसानों के लिए मेरा संदेश यह है कि उन्हें भी मशरूम की खेती करनी चाहिए और बाज़ार में मशरूम से बने विभिन्न उत्पाद बेचने चाहिए। भूमिहीन किसान भी मशरूम की खेती से बड़ी कमाई कर सकते हैं और उन्हें खेती के लिए इस क्षेत्र का चयन करना चाहिए।

गुरदीप सिंह नंबरदार

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मशरूम की खेती में गुरदीप सिंह जी की सफलता की कहानी

गांव गुराली, जिला फिरोजपुर (पंजाब) में स्थित पूरे परिवार की सांझी कोशिश और सहायता से, गुरदीप सिंह नंबरदार ने मशरूम के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। अपने सारे स्त्रोतों और दृढ़ता को एकत्र कर, उन्होंने 2003 में मशरूम की खेती शुरू की थी और अब तक इस सहायक व्यवसाय ने 60 परिवारों को रोज़गार दिया है।

वे इस व्यवसाय को छोटे स्तर पर शुरू करके धीरे धीरे उच्च स्तर की तरफ बढ़ा रहे हैं, आज गुरदीप सिंह जी ने एक सफल मशरूम उत्पादक की पहचान बना ली है और इसके साथ उन्होंने एक बड़ा मशरूम फार्म भी बनाया है। मशरूम के सफल किसान होने के अलावा वे 20 वर्ष तक अपने गांव के सरपंच भी रहे।

उन्होंने इस उद्यम की शुरूआत पी.ए.यू. द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार की और शुरू में उन्हें लगभग 20 क्विंटल तूड़ी का खर्चा आया। आज 2003 के मुकाबले उनका फार्म बहुत बड़ा है और अब उन्हें वार्षिक लगभग 7 हज़ार क्विंटल तूड़ी का खर्चा आता है।

उनके गांव के कई किसान उनकी पहलकदमी से प्रेरित हुए हैं। मशरूम की खेती में उनकी सफलता के लिए उन्हें जिला प्रशासन के सहयोग से खेतीबाड़ी विभाग, फिरोजपुर द्वारा उनके गांव में आयोजित प्रगतिशील किसान मेले में उच्च तकनीक खेती द्वारा मशरूम उत्पादन के लिए जिला स्तरीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

संदेश
“मशरूम की खेती कम निवेश वाला लाभदायक उद्यम है। यदि किसान बढ़िया कमाई करना चाहते हैं तो उन्हें मशरूम की खेती में निवेश करना चाहिए।”