कुलवंत कौर

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“हर सफल औरत के पीछे वह स्वंय होती हैं।”
-कैसे कुलवंत कौर ने इस उद्धरण को सही साबित किया

भारत में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो असाधारण व्यक्तित्व रखती हैं, जिनका दिखने का उद्धरण नहीं, लेकिन उनका कौशल और आत्म विश्वास उन्हें दूसरों से अद्भुत बनाता है। कोई भी चीज़ उन्हें उनके उद्देश्य को पूरा करने से रोक नहीं सकती और उनके इस अद्वितीय व्यक्तित्व के पीछे उनकी स्वंय की प्रेरणा होती है।

ऐसी ही एक महिला – कुलवंत कौर, जिन्होंने अपने अंदर की पुकार को सुना और एग्रीव्यापार को अपने भविष्य की योजना के तौर पर चुना। खेती की पृष्ठभूमि से आने के कारण कुलवंत कौर और उनके पति जसविंदर सिंह, धान और गेहूं की खेती करते थे और डेयरी फार्मिंग में भी निष्क्रिय रूप से शामिल थे। शुरू से ही परिवार का ध्यान मुख्य तौर पर डेयरी बिज़नेस पर था क्योंकि वे 2.5 एकड़ भूमि के मालिक थे और जरूरत पड़ने पर भूमि को किराये पर दे सकते थे। डेयरी फार्म में 30 भैंसों के साथ, उनका दूध व्यवसाय बहुत अच्छे से विकास कर रहा था और खेती की तुलना में बहुत अधिक लाभदायक था।

कुलवंत कौर की खेतीबाड़ी में बहुत रूचि थी और इससे संबंधित व्यापार भी करते थे और एक दिन उन्होंने के वी के फतेहगढ़ साहिब के बारे में पढ़ा और इसमें शामिल होने का फैसला किया। उन्होंने 2011 में वहां से फलों और सब्जियों के प्रबंधन की 5 दिन की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग के आखिरी दिन उन्होंने एक प्रतियोगिता में भाग लिया और सेब की जैम और हल्दी का आचार बनाने में पहला पुरस्कार जीता। उनकी ज़िंदगी में यह पहला पुरस्कार था, जो उन्होंने जीता और इस उपलब्धि ने उन्हें इतना दृढ़ और प्रेरित किया कि उन्होंने यह काम अपने आप शुरू करने का फैसला किया। उनके उत्पाद इतने अच्छे थे कि जल्द ही उन्हें एक अच्छा ग्राहक आधार मिला।

धीरे-धीरे उनके काम की गति, निपुणता और उत्पाद की गुणवत्ता समय के साथ बेहतर हो गई और हल्दी का आचार उनके उत्पादों में सबसे अधिक मांग वाला उत्पाद बन गया। उसके बाद अपने कौशल को बढ़ाने के लिए फिनाइल, साबुन, आंवला जूस, चटनी और आचार की ट्रेनिंग के लिए वे के वी के समराला में शामिल हो गए। अपनी ली गई ट्रेनिंग का प्रयोग करने के लिए वे विशेष तौर पर आंवला जूस की मशीन खरीदने के लिए दिल्ली गई। बहुत ही जल्दी उन्होंने एक ही मशीन से एलोवेरा जूस, शैंपू, जैल और हैंड वॉश बनाने की तकनीक को समझा और उत्पादों की प्रक्रिया देखने के बाद वे बहुत उत्साहित हुई और उन्होंने आत्मविश्वास हासिल किया।

ये उनका आत्मविश्वास और उपलब्धियां ही थी, जिन्होंने कुलवंत कौर को और ज्यादा काम करने के लिए प्रेरित किया। आखिर में उन्होंने उत्पादों का विनिर्माण घर पर ही शुरू किया और उनकी मंडीकरण भी स्वंय किया। एग्रीबिज़नेस की तरफ उनकी रूचि ने उन्हें इस क्षेत्र की तरफ और बढ़ावा दिया। 2012 में वे पी ए यू किसान क्लब की मैंबर बनी। उन्होंने उनके द्वारा दी जाने वाली हर ट्रेनिंग ली। खेतीबाड़ी की तरफ उनकी रूचि बढ़ती चली गई और धीरे धीरे उन्होंने डेयरी फार्म का काम कम कर दिया।

धान और गेहूं के अलावा, अब कुलवंत कौर और उनके पति ने मूंग, गन्ना, चारे की फसल, हल्दी, एलोवेरा, तुलसी और स्टीविया भी उगाने शुरू किए। हल्दी से वे , हल्दी का पाउडर, हल्दी का आचार और पंजीरी (चना पाउडर, आटा, घी से बना मीठा सूखा पाउडर) पंजीरी और हल्दी के आचार उनके सबसे ज्यादा मांग वाले उत्पाद हैं।

खैर, उनकी यात्रा आसान नहीं थी, उन्होंने कई समस्याओं का भी सामना किया। उन्होंने स्टीविया के 1000 पौधे उगाए जिनमें से केवल आधे ही बचे। हालांकि वे जानती थीं कि स्टीविया की कीमत बहुत ही ज्यादा है (1500 रूपये प्रति किलो), जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर है। इसलिए उन्होंने इसे बेचने का एक अलग तरीका खोजा। उन्होंने मार्किट से ग्रीन टी खरीदी और स्टीविया को इसमें मिक्स कर दिया और इसे 150 रूपये प्रति ग्राम के हिसाब से बेचना शुरू किया क्योंकि शूगर के मरीजों के लिए स्टीविया के काफी स्वास्थ्य लाभ हैं इसलिए कई स्थानीय लोगों और अन्य ग्राहकों द्वारा भी टी को खरीदा गया।

वर्तमान में वे 40 उत्पादों का निर्माण कर रही है और नज़दीक की मार्किट और पी ए यू के मेलों में बेच रही हैं। उनका एक और उत्पाद है जिसे सत्र कहा जाता है (तुलसी, सेब का सिरका, शहद, अदरक, लहसुन, एलोवेरा और आंवला से बनता है) विशेषकर दिल के रोगियों के लिए है और बहुत प्रभावशाली है।

कौशल के साथ, कुलवंत कौर सभी नवीनतम कृषि मशीनरी और उपकरणों से अपडेट रहती हैं। उनके पास सभी खेती मशीनरी हैं और वे खेतों में लेज़र लेवलर का प्रयोग करती हैं। उनका पूरा परिवार उनकी मदद कर रहा है विशेषकर उनके पति उनके साथ काम कर रहे हैं। उनकी बेटी सरकारी नौकरी कर रही है और उनका बेटा उनके व्यापार में उनकी मदद कर रहा है। वर्तमान में उनके परिवार का मुख्य ध्यान मार्किटिंग पर है और उसके बाद कृषि पर है। कृषि व्यवसाय क्षेत्र में अपने प्रयासों से उन्होंने हल्दी उत्पादों के लिए पटियाला में किसान मेले में पहला पुरस्कार जीता है। इसके अलावा उन्होंने (2013 में पंजाब एग्रीकल्चर लुधियाना द्वारा आयोजित) किसान मेले में सरदारनी जगबीर कौर गरेवाल मेमोरियल अवार्ड भी प्राप्त किया।

आज कुलवंत कौर ने जो भी हासिल किया है वह सिर्फ अपने विश्वास पर किया है। भविष्य में वे अपने सभी उत्पादों की मार्किटिंग स्वंय करना चाहती हैं। वे समाज में अन्य महिलाओं को भी ट्रेनिंग प्रदान करना चाहती हैं ताकि वे अपने दम पर खड़े हो सकें और आत्मनिर्भर हो सकें।

किसानों को संदेश
महिलाओं को अपने व्यर्थ के समय में उत्पादक होना चाहिए क्योंकि यह घर की आर्थिक स्थिति को प्रभावी रूप से प्रबंध करने में मदद करता है। उन्हें फूड प्रोसेसिंग का लाभ लेना चाहिए और कृषि व्यवसाय के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए। कृषि क्षेत्र बहुत ही लाभदायक उद्यम है, जिसमें लोग बिना किसी बड़े निवेश के पैसे कमा सकते हैं।

मंजुला संदेश पदवी

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इस महिला ने अकेले ही साबित किया कि जैविक खेती समाज और उसके परिवार के लिए कैसे लाभदायक है

मंजुला संदेश पदवी दिखने में एक साधारण किसान हैं लेकिन जैविक खेती से संबंधित ज्ञान और उनके जीवन का संघर्ष इससे कहीं अधिक है। महाराष्ट्र के जिला नंदूरबार के एक छोटे से गांव वागसेपा में रहते हुए उन्होंने ना सिर्फ जैविक तरीके से खेती की, बल्कि अपने परिवार की ज़रूरतों को भी पूरा किया और अपने फार्म की आय से अपने बेटी को भी शिक्षित किया।

मंजुला के पति ने उन्हें 10 साल पहले ही छोड़ दिया था, उस समय उनके पास दो विकल्प थे, पहला उस समय की परिस्थितियों को लेकर बुरा महसूस करना, सहानुभूति हासिल करना और किसी अन्य व्यक्ति की तलाश करना। और दूसरा विकल्प था स्वंय अपने पैरों पर खड़े होना और खुद का सहारा बनना। उन्होंने दूसरा विकल्प चुना और आज वे एक आत्मनिर्भर जैविक किसान हैं।

उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उनकी सेहत इतनी खराब हो गई कि उनके लिए चलना फिरना मुश्किल हो गया था। उस समय, उनके दिल का इलाज चल रहा था जिसमें उनके दिल का वाल्व बदला गया था। लेकिन उन्होंने कभी उम्मीद नहीं खोयी। सर्जरी के बाद ठीक होने पर उन्होंने बचत समूह (saving group) से लोन लिया और अपने खेत में एक मोटर पंप लगाया। मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए, उन्होंने रासायनिक खादों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खादों को चुना।

विभिन्न सरकारी नीतियों से मिली राशि उनके लिए अच्छी रकम थी और उन्होंने इसे बैलों की एक जोड़ी खरीदकर बुद्धिमानी से खर्च किया और अब वे अपने खेत की जोताई के लिए बैलों का प्रयोग करती हैं। उन्होंने मक्की और ज्वार की फसल उगायी और इससे उन्हें अच्छी उपज भी मिली।

मंजुला कहती हैं – “आस-पास के खेतों की पैदावार मेरे खेत से कम है पिछले वर्ष हमने मक्की की फसल उगायी लेकिन हमारी उपज अन्य खेतों की उपज के मुकाबले बहुत अच्छी थी क्योंकि मैं जैविक खादों का प्रयोग करती हूं और अन्य किसान रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं। इस वर्ष भी मैं मक्की और ज्वार उगा रही हूं। ”

नंदूरबार जिले में स्थित सार्वजनिक सेवा प्रणाली ने मंजुला की उसके खेती उद्यम में काफी सहायता की उन्होंने अपने क्षेत्र में 15 बचत समूह बनाए हैं और इन समूहों के माध्यम से वे पैसे इकट्ठा करते हैं और जरूरत के मुताबिक किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। वे विशेष रूप से गैर रासायनिक और जैविक खेती को प्रोत्साहित करते हैं। एक और ग्रुप है जिससे मंजुला लाभ ले रही हैं वह स्वदेशी बीज बैंक है। वे इस समूह के माध्यम से बीज लेती हैं और सब्जियों, फलों और अनाजों की विविध खेती करती हैं। मंजुला की बेटी मनिका को अपनी मां पर गर्व है और वह हमेशा उनकी सहायता करती है।

आज, महिलायें खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बीजों की बिजाई से लेकर फसलों के रख-रखाव और भंडारण में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन जब खेती मशीनीकृत हो जाती है तो महिलायें इस श्रेणी से बाहर हो जाती हैं। लेकिन मंजुला संदेश पदवी ने खुद को कभी विकलांग नहीं बनाया और अपनी कमज़ोरी को ही अपनी ताकत में बदल दिया। उन्होंने अकेले ही अपने फार्म की देखभाल की और अपनी बेटी और अपने घर की ज़रूरतों को पूरा किया। आज उनकी बेटी ने उच्च शिक्षा हासिल की है और आज वह इतना कमा रही है कि अच्छा जीवन व्यतीत कर सके। वर्तमान में उनकी बेटी मनिका जलगांव में नर्स के रूप में काम कर रही है।

मंजुला संदेश पदवी जैसी महिलायें ग्रामीण भारत के लिए एक पावरहाउस के रूप में काम करती हैं, इनके जैसी महिलायें अन्य महिलाओं को भी मजबूत बनाती है और अपने बेहतर भविष्य के लिए टिकाऊ खेती का चुनाव करती हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारे भविष्य की पीढ़ी स्वस्थ जीवन जिये और उन्हें किसी चीज़ की कमी ना हो। तो आज हमें और मंजुला संदेश पदवी जैसी महिलाओं की जरूरत है।

समय को सतत खेती की जरूरत है क्योंकि रसायन भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं और भूमिगत जीवन को प्रदूषित करते हैं। इसके अलावा रसायन खेती के खर्चे को भी बढ़ाते हैं जिससे कि किसानों पर कर्ज़ा बढ़ता है और किसान आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाते हैं।

हमें मंजुला से सीखना चाहिए कि जैविक खेती अपनाकर पानी, मिट्टी और वातावरण को कैसे बचाया जा सकता है।