सिकंदर सिंह बराड़

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कृषि विभिन्ता को अपनाकर एक सफल किसान बनने वाले व्यक्ति की कहानी

कुछ अलग करने की इच्छा इंसान को धरती से आसमान तक ले जाती है। पर उसके मन में हमेश आगे बढ़ाने के इच्छा होनी चाहिए। आप चाहे किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हो, अपनी इच्छा और सोचा को हमेशा जागृत रखना चाहिए।

इस सोच के साथ चलने वाले सरदार सिकंदर सिंह बराड़, जोकि बलिहार महिमा, बठिंडा में रहते हैं और जिनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता सरदार बूटा सिंह पारंपरिक तरीके के साथ खेतीबाड़ी कर रहे हैं, जैसे गेहूं,धान आदि। क्या इस तरह नहीं हो सकता कि खेतीबाड़ी में कुछ नया या विभिन्ता लेकर आई जाए।

मेरे कहने का मतलब यह है कि हम खेती करते हैं पर हर बार हर साल वही फसलें उगाने की बजाए कुछ नया क्यों नहीं करते- सिकंदर सिंह बराड़

वह हमेशा खेतीबाड़ी में कुछ अलग करने के बारे में सोचा करते थे, जिसकी प्रेरणा उन्हें अपने नानके गांव से मिली। उनके नानके गांव वाले लोग आलू की खेती बहुत अलग तरीके के साथ करते थे, जिससे उनकी फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती थी।

जब मैं मामा के गांव की खेती के तरीकों को देखता था तो मैं बहुत ज्यादा प्रभवित होता था – सिकंदर सिंह बराड़

जब सिकंदर सिंह ने 1983 में सिरसा में डी. फार्मेसी की पढ़ाई शुरू की उस समय एस. शमशेर सिंह जो कि उनके बड़े भाई हैं, पशु चिकित्सा निरीक्षक थे और अपने पिता के बाद खेती का काम संभालते थे। उस समय जब दोनों भाइयों ने पहली बार खेतीबाड़ी में एक अलग ढंग को अपनाया और उनके द्वारा अपनाये गए इस तकनिकी हुनर के कारण उनके परिवार को काफी अच्छा मुनाफ़ा हुआ।

जब अलग तरीके अपनाने के साथ मुनाफा हुआ तो मैंने 1984 में D फार्मेसी छोड़ने का फैसला कर लिया और खेतबाड़ी की तरह रुख किया- सिकंदर सिंह बराड़

1984 में D फार्मेसी छोड़ने के बाद उन्होंने खेतीबाड़ी करनी शुरू कर दी। उन्होंने सबसे पहले नरमे की अधिक उपज वाली किस्म की खेती करनी शुरू की।

इस तरह छोटे छोटे कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए वह सब्जियों की खेती ही करते रहे, जहां पर उन्होंने 1987 में टमाटर की खेती आधे एकड़ में की और फिर बहुत सी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किए और अपने इस व्यवसाय को आगे से आगे बढ़ाते रहे।

1990 में विवाह के बाद उन्होंने आलू की खेती बड़े स्तर पर करनी शुरू की और विभिन्ता अपनाने के लिए 1997 में 5000 लेयर मुर्गियों के साथ पोल्ट्री फार्मिंग की शुरुआत की, जिसमें काफी सफलता हासिल हुई। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के 5 ओर किसानों को पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय को सहायक व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के लिए उत्साहित किया, जिसके साथ उन किसानों को स्व निर्भर बनने में सहायता मिली। 2005 में उन्होंने 5 रकबे में किन्नू का बाग लगाया। इसके इलावा उन्होंने नैशनल सीड कारपोरेशन लिमिटेड के लिए 15 एकड़ जमीन में 50 एकड़ रकबे के लिए गेहूं के बीज तैयार किया।

मुझे हमेशा कीटनाशकों और नुकसानदेह रसायन के प्रयोग से नफरत थी, क्योंकि इसका प्रयोग करने के साथ शरीर को बहुत नुक्सान पहुंचता है- सिकंदर सिंह बराड़

सिकंदर सिंह बराड़ अपनी फसलों के लिए अधिकतर जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। वह अब 20 एकड़ में आलू, 5 एकड़ में किन्नू और 30 एकड़ में गेहूं के बीजों का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही 2 एकड़ में 35000 पक्षियों वाला पोल्ट्री फार्म चलाते हैं।

बड़ी बड़ी कंपनी जिसमें पेप्सिको,नेशनल सीड कारपोरेशन आदि शामिल है, के साथ साथ काम कर सकते हैं, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना की तरफ से प्रमुख पोल्ट्री फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया। उन्हें बहुत से टेलीविज़न और रेडियो चैनल में आमंत्रित किया गया, ताकि खेती समाज में बदलाव, खोज, मंडीकरण और प्रबंधन संबंधी जानकारी ओर किसानों तक भी पहुँच सके।

वे राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खेती मेले और संस्था का दौरा कर चुके हैं।

भविष्य की योजना

सिकंदर सिंह बराड़ भविष्य में भी अपने परिवार के साथ साथ अपने काम को ओर आगे लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें नए नए बदलाव आते रहेंगे।

संदेश

जो भी नए किसान खेतीबाड़ी में कुछ नया करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि कुछ भी शुरू करने से पहले उससे संबंधित माहिर या संस्था से ट्रेनिंग ओर सलाह ली जाए। उसके बाद ही काम शुरू किया जाए। इसके इलावा जितना हो सके कीटनाशकों और रसायन से बचना चाहिए और जैविक खेती को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

हरभजन सिंह

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एक किसान जो एक ही फार्म पर 5 अलग-अलग व्यवसाय करने में सफल रहा और इसलिए वह किसानों के शक्तिमान के रूप में जाना जाता है

इस तेजी से बदल रही, तेजी से भागती दुनिया में सफल परिणाम प्राप्त करने के लिए विविधीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसे अपनाना मुश्किल है लेकिन आजकल बहुत ज़रूरी है क्योंकि पूरी दुनिया में हर कोई कुछ अनोखा और विशिष्ट करने के लिए आया है। हालाँकि, बहुत से लोग परिवर्तन से डरते हैं और इसलिए, वे विविधीकरण पर अपने विचारों को रोकते हैं। केवल कुछ लोग ही अपने अनोखेपन को महसूस कर सकते हैं और दुनिया को बदलने के लिए उचाईयों तक पहुंच सकते हैं। यह कहानी एक ऐसे ही व्यक्ति की है।

जहां ज़्यादातर किसान गेहूं और धान की खेती के पारंपरिक तरीके से चलते हैं, वहीं मानसा के मलकपुर गांव के एक किसान हरभजन सिंह कृषि में विविधता की दिशा में अपने प्रयासों में योगदान देते हैं। वह अपनी 11 एकड़ जमीन पर सफलतापूर्वक एकीकृत फार्म चला रहे हैं जहाँ पर वह मछली, सुअर, मुर्गियां, बकरी और बटेर आदि का पालन करते हैं। इसके अलावा उन्होंने 55 एकड़ पंचायती जमीन भी किराए पर ली हुई है जिसमें वह मछली पालन करते हैं।

हरभजन सिंह जी ने 1981 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक मैकेनिकल वर्कशॉप शुरू की और वह इसके साथ ही अपने परिवार की कृषि कार्य में सहायता करते थे। उस समय हरभजन सिंह जी के दोस्त ने उन्हें मछली पालन शुरू करने का सुझाव दिया। इसलिए उन्होंने मछली पालन की प्रक्रिया पर रिसर्च करना शुरू कर दिया और जल्द ही मछली पालन करने के लिए किराए पर गाँव का तालाब ले लिया।

मछली पालन करके मैंने बहुत मुनाफा कमाया और इसलिए मैंने अपनी खुद की ज़मीन पर काम करने का फैसला किया- हरभजन सिंह

इस काम से उन्हें फायदा हुआ, इसलिए 1995 में उन्होंने पंजाब राज्य मछली पालन बोर्ड, मानसा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और अपनी ज़मीन पर अधिक बढ़िया ढंग से काम करना शुरू कर दिया। हरभजन सिंह जी ने अपनी ज़मीन पर 2.5 एकड़ में एक तालाब तैयार किया और बाद में अपने तालाब के नज़दीक में 2.5 एकड़ जमीन खरीदी। उस समय उनका मछली उत्पादन 6 टन प्रति हेक्टेयर था।

बाद में, उन्होंने उत्पादन को बढ़ाने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, ओडिशा से ट्रेनिंग लेने का फैसला किया और मछली की 6 नस्लें (रोहू, कतला, मुराख़, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प और सिल्वर कार्प) और 3 एरेटर भी खरीदे। इन एरेटर पर सरकार ने आधी सब्सिडी भी प्रदान की। एरेटर के उपयोग के बाद मछली की उत्पादकता बढ़कर 8 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।

मुझे सरकारी हैचरी से मछली के बीज खरीदने पड़े, जो एक महंगी प्रक्रिया थी, इसलिए मैंने अपनी खुद की एक हैचरी तैयार की- हरभजन सिंह

उन्होंने मछली पालन के साथ-साथ मछली के सीड पैदा करने के लिए एक हैचरी तैयार की क्योंकि अन्य हैचरी से बीज खरीदना महंगा था। आमतौर पर हैचरी सरकार द्वारा बनाई जाती है, लेकिन हरभजन सिंह इतने मेहनती और सक्षम थे कि उन्होंने अपनी खुद की हैचरी की शुरुआत बड़े निवेश के साथ की। हैचरी मछलियों को प्रजनन में मदद करने के लिए कृत्रिम वर्षा प्रदान करती है। उन्होंने हैचरी में लगभग 20 लाख उंगली के आकार के मछली के बच्चे तैयार किए और उन्हें 50 पैसे से 1 रुपये प्रति बीज के हिसाब से बेचा।

समय के साथ-साथ उन्होंने 2009 में Large White Yorkshire नस्ल के 50 सुअरों के साथ सुअर पालन का काम शुरू किया और उन्हें जीवित बेचने का फैसला किया। इस प्रकार की मार्केटिंग ज़्यादा सफल नहीं थी, इसलिए उन्होंने सुअर के मीट की प्रोसेसिंग शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने CIPHET, पीएयू और गड़वासु से मीट उत्पादों में ट्रेनिंग ली और सुअर के मीट को आचार में प्रोसेस किया। मीट के आचार की मार्केटिंग एक बड़ी सफलता थी, पर उनकी आमदनी लगभग दोगुनी हो गई।

वर्तमान में, हरभजन जी के पास लगभग 150 सुअर हैं और वह सुअर के व्यर्थ पदार्थों का उपयोग मछलियों को खिलाने के लिए करते हैं। इससे उनकी लागत का 50-60% बच गया और मछलियों का उत्पादन लगभग 20% बढ़ गया। अब वह प्रति हेक्टेयर 10 टन मछली का उत्पादन करते हैं।

उन्होंने फिश पोर्क प्रोसेसिंग सेल्फ हेल्प ग्रुप 11 मेंबर का शुरू किया। इससे कई लोगों को रोज़गार मिला और उनकी आय में वृद्धि हुई। हरभजन सिंह को एकीकृत खेती में उनकी सफलता के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया गया था।

बात यहीं नहीं रुकी! उनको रास्ता लंबा तय करना है। जैसे-जैसे पानी की कमी बढ़ती जा रही, तो हरभजन जी ने पानी को रिसाइकिल करके प्रकृति को बचाने का एक तरीका खोजा। वह सुअरों को नहलाने के लिए पहले पानी का उपयोग करके उसको दोबारा फिर उपयोग करते हैं। फिर उसी पानी को मछली के तालाब में डाला जाता है और मछली तालाब के अपशिष्ट जल का उपयोग खेतों में फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है। यह पानी जैविक होता है और फसलों को उर्वरक प्रदान करता है; इसलिए उर्वरकों की केवल आधी मात्रा को कृत्रिम रूप से देने की आवश्यकता होती है। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जी ने हरभजन सिंह जी के यत्नों से प्रभावित होकर उनके खेत का दौरा किया।

बकरी पालन शुरू करने के लिए मुझे केवीके, मानसा से ट्रेनिंग मिली- हरभजन सिंह

इसके अलावा, उन्होंने अपनी फार्मिंग में बकरियों को शामिल करने का फैसला किया, इसलिए उन्होंने केवीके, मानसा से ट्रेनिंग प्राप्त की और शुरुआत में बीटल और सिरोही के साथ 30 बकरियों के साथ काम करना शुरू किया और वर्तमान में हरभजन के पास 150 बकरियां हैं। 2017 के बाद उन्होंने पीएयू के किसान मेले का दौरा करना शुरू किया, जहाँ से उन्हें बटेर और मुर्गी पालन की प्रेरणा मिली। इसलिए, उन्होंने चंडीगढ़ से 2000 बटेर और 150 कड़कनाथ मुर्गियाँ खरीदी। यह मुर्गियां खुलेआम घूम सकती हैं और अन्य जानवरों के चारे के बचे हुए भोजन से अपना चारा खोज लेती हैं। वह इस समय अपने खेत में 3000 बटेर का पालन करते हैं।

पशुओं/जानवरों के लिए सारा चारा उनके द्वारा मशीनों की मदद से खेत में तैयार किया जाता है। आज हरभजन सिंह जी अपने दो बेटों के साथ सफलतापूर्वक अपने खेत पर काम करते हैं और वह खेत के कार्यों में उनकी मदद करते हैं। वह केवल एक सहायक की सहायता से पूरी खेती का प्रबंधन करते है। वह मछली के बच्चे 2 रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से बेचते हैं। इसके अलावा वह बकरा ईद के अवसर पर मलेरकोटला में बकरियों को बेचते हैं और बकरी के मीट से अचार तैयार करते हैं। कड़कनाथ मुर्गी के अंडे 15-20 रुपये और मुर्गे का मीट 700-800 रुपये में बिकता है। इसके बाद हरभजन जी ने ICAR-CIFE, कोलकाता से मछली का आचार, मछली का सूप आदि बनाने की ट्रेनिंग ली और घरेलू बाजार में उत्पाद का विपणन किया। वह अपना उत्पाद “ख़िआला पोर्क एंड फिश प्रोडक्ट्स” के नाम से बेचते हैं।

सभी उत्पादों की मार्केटिंग मेरे फार्म पर ही होती है- हरभजन सिंह

उनके फार्म पर ही मार्केटिंग की सारी प्रक्रिया की जाती है, उनको अपने उत्पाद बेचने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं। उन्होंने बहुत से युवा किसानों को प्रेरित किया और वे एकीकृत खेती के बारे में उनकी सलाह लेने के लिए उनसे मिलने जाते हैं। वह दूसरों के लिए प्रेरणा बने और कई अन्य लोगों को खेती की एकीकृत खेती करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

भविष्य की योजना

हरभजन सिंह जी अपनी आमदन बढ़ाना चाहते हैं और अपनी खेती को उच्च स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं। वह एकीकृत खेती में और भी अधिक सफल होना चाहता है और लोगों को जैविक और विविध खेती के फायदों के बारे में सिखाना चाहता है।

संदेश

हरभजन सिंह जी युवा किसानों को जैविक खेती करने की सलाह देते हैं। यदि कोई किसान एकीकृत खेती शुरू करना चाहता है तो उसकी शुरुआत छोटे स्तर से करनी चाहिए और धीरे-धीरे अन्य पहलुओं को अपने व्यवसाय में जोड़ना चाहिए।

तरनजीत संधू

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एक किसान जिसने अपने जीवन के 25 साल संघर्ष करते हुए और बागवानी के साथ-साथ अन्य सहायक व्यवसायों में कामयाब हुए- तरनजीत संधू

जीवन का संघर्ष बहुत विशाल है, हर मोड़ पर ऐसी कठिनाइयाँ आती हैं कि उन कठिनाइयों का सामना करते हुए चाहे कितने भी वर्ष बीत जाएँ,पता नहीं चलता। उनमें से कुछ ऐसे इंसान हैं जो मुश्किलों का सामना करते हैं लेकिन मन ही मन में हारने का डर बैठा होता है, लेकिन फिर भी साहस के साथ जीवन की गति के साथ पानी की तरह चलते रहते हैं, कभी न कभी मेहनत के समुद्र से निकल कर बुलबुले बन कर किसी के लिए एक उदाहरण बनेंगे।

जिंदगी के मुकाम तक पहुँचने के लिए ऐसे ही एक किसान तरनजीत संधू, गांव गंधड़, जिला श्री मुक्तसर के रहने वाले हैं, जो लगातार चलते पानी की तरह मुश्किलों से लड़ रहे हैं, पर साहस नहीं कम हुआ और पूरे 25 सालों बाद कामयाब हुए और आज तरनजीत सिंह संधू ओर किसानों और लोगों को मुश्किलों से लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

साल 1992 की बार है तरनजीत की आयु जब छोटी थी और दसवीं कक्षा में पड़ते थे, उस दौरान उनके परिवार में एक ऐसी घटना घटी जिससे तरनजीत को छोटी आयु में ही घर की पूरी जिम्मेवारी संभालने के लिए मजबूर कर दिया, जोकि एक 17-18 साल के बच्चे के लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि उस समय उनके पिता जी का निधन हो गया था और उनके बाद घर संभालने वाला कोई नहीं था। जिससे तरनजीत पर बहुत सी मुश्किलें आ खड़ी हुई।

वैसे तरनजीत के पिता शुरू से ही पारंपरिक खेती करते थे पर जब तरनजीत को समझ आई तो कुछ अलग करने के बारे में सोचा कि पारंपरिक खेती से हट कर कुछ अलग किया जाए और कुछ अलग पहचान बनाई जाए। उन्होंने सोच रखा था कि जिंदगी में कुछ ऐसा करना है जिससे अलग पहचान बने।

तरनजीत के पास कुल 50 एकड़ जमीन है पर अलग क्या उगाया जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था, कुछ दिन सोचने के बाद ख्याल आया कि क्यों न बागवानी में ही कामयाबी हासिल की जाए। फिर तरनजीत जी ने बेर के पौधे मंगवा कर 16 एकड़ में उसकी खेती तो कर दी, पर उसके लाभ हानि के बारे में नहीं जानते थे, बेशक समझ तो थी पर जल्दबाजी ने अपना असर थोड़े समय बाद दिखा दिया।

उन्होंने न कोई ट्रेनिंग ली थी और न ही पौधों के बारे में जानकारी थी, जिस तरह से आये थे उसी तरह लगा दिए, उन्हें न पानी, न खाद किसी चीज के बारे में जानकारी नहीं थी। जिसका नुक्सान बाद में उठाना पड़ा क्योंकि कोई भी समझाने वाला नहीं था। चाहे नुक्सान हुआ और दुःख भी बहुत सहा पर हार नहीं मानी।

बेर में असफलता हासिल करने के बाद फिर किन्नू के पौधे लाकर बाग़ में लगा दिए, पर इस बार हर बात का ध्यान रखा और जब पौधे को फल लगना शुरू हुआ तो वह बहुत खुश हुए।

पर यह ख़ुशी कुछ समय के लिए ही थी क्योंकि उन्हें इस तरह लगा कि अब सब कुछ सही चल रहा है क्यों न एक बार में पूरी जमीन को बाग़ में बदल दिया जाए और यह चीज उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव लेकर आई जिससे उन्हें बहुत मुश्किल समय में से गुजरना पड़ा।

बात यह थी कि उन्होंने सोचा इस तरह यदि एक-एक फल के पौधे लगाने लगा तो बहुत समय निकल जाएगा। फिर उन्होंने हर तरह के फल के पौधे जिसमें अमरुद, मौसमी फल, अर्ली गोल्ड माल्टा, बेर, कागजी नींबू, जामुन के पौधे भरपूर मात्रा में लगा दिए। इसमें उनका बहुत खर्चा हुआ क्योंकि पौधे लगा तो लिए थे पर उनकी देख-रेख उस तरीके से करने लिए बैंक से काफी कर्जा लेना पड़ा। एक समय ऐसा आया कि उनके पास खर्चे के लिए भी पैसे नहीं थे। ऊपर से बच्चे की स्कूल की फीस, घर संभालना उन्हीं पर था।

कुछ समय ऐसा ही चलता रहा और समय निकलने पर फल लगने शुरू हुए तो उन्हें वह संतुष्ट हुए पर जब उन्होंने अपने किन्नू के बाग़ ठेके पर दे दिए तो बस एक फल के पीछे 2 से 3 रुपए मिल रहे थे।

16 साल तक ऐसे ही चलता रहा और आर्थिक तौर पर उन्हें मुनाफा नहीं हो रहा था। साल 2011 में जब समय अनुसार फल पक रहे तो उनके दिमाग में आया इस बार बाग़ ठेके पर न देकर खुद मार्किट में बेच कर आना है। जब वह जिला मुक्तसर साहिब की मार्किट में बेचने गए तो उन्हें बहुत मुनाफा हुआ और वह बहुत खुश हुए।

तरनजीत ने जब इस तरह से पहली बार मार्किट की तो उन्हें यह तरीका बहुत बढ़िया लगा, इसके बाद उन्होंने ठेके पर दिया बाग़ वापिस ले लिया और खुद निश्चित रूप से मार्केटिंग करने के बारे में सोचा। फिर सोचा मार्केटिंग आसानी से कैसे हो सकती है, फिर सोचा क्यों न एक गाडी इसी के लिए रखी जाए जिसमें फल रख कर मार्किट जाया जाए। फिर साल 2011 से वह गाडी में फल रख कर मार्किट में लेकर जाने लगे, जिससे उन्हें दिन प्रतिदिन मुनाफा होने लगा, जब यह सब सही चलने लगा तो उन्होंने इसे बड़े स्तर पर करने के लिए अपने साथ पक्के बंदे रख लिए, जो फल की तुड़ाई और मार्किट में पहुंचाते भी है।

जो फल की मार्केटिंग श्री मुक्तसर साहिब से शुरू हुई थी आज वह चंडीगढ़, लुधियाना, बीकानेर, दिल्ली आदि बड़े बड़े शहरों में अपना प्रचार कर चुकी है जिससे फल बिकते ही पैसे अकाउंट में आ जाते हैं और आज वह बाग़ की देख रेखन करते हैं और घर बैठे ही मुनाफा कमा रहे हैं जो उनके रोजाना आमदन का साधन बन चुकी है।

तरनजीत ने सिर्फ बागवानी के क्षेत्र में ही कामयाबी हासिल नहीं की, बल्कि साथ-साथ ओर सहायक व्यवसाय जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन में भी कामयाब हुए हैं और मीट के अचार बना कर बेच रहे हैं। इसके इलावा सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं जोकि जैविक तरीके के साथ कर रहे हैं। उनके फार्म पर 30 से 35 आदमी काम करते हैं, जो उनके परिवार के लिए रोजगार का जरिया भी बने हैं। उसके साथ वह टूरिस्ट पॉइंट प्लेस भी चला रहे हैं।

इस काम के लिए उन्हें PAU, KVK और कई संस्था की तरफ से उन्हें बहुत से अवार्ड द्वारा सम्मानित किया जा चूका है।

यदि तरनजीत आज कामयाब हुए हैं तो उसके पीछे उनकी 25 साल की मेहनत है और किसी भी समय उन्होंने कभी हार नहीं मानी और मन में एक इच्छा थी कि कभी न कभी कामयाबी मिलेगी।

भविष्य की योजना

वह बागवानी को पूरी जमीन में फैलाना चाहते हैं और मार्केटिंग को ओर बड़े स्तर पर करना चाहते हैं, जहां भारत के कुछ भाग में फल बिक रहा है, वह भारत के हर एक भाग में फल पहुंचना चाहते हैं।

संदेश

यदि मुश्किलें आती है तो कुछ अच्छे के लिए आती है, खेती में सिर्फ पारंपरिक खेती नहीं है, इसके इलावा ओर भी कई सहायक व्यवसाय है जिसे कर कामयाब हुआ जा सकता है।

मनजिंदर सिंह और स्वर्ण सिंह

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सफल पोल्टरी फार्मिंग उद्यम जो कि पिता द्वारा स्थापित किया गया और बेटे द्वारा नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया

भारत में हर कोई वर्ष 1984 के इतिहास को जानता है, यह पूरे पंजाब में मनहूस समय था जब सिख नरसंहार का प्रमुख लक्ष्य थे। यह कहानी है एक साधारण किसान स्वर्ण सिंह की, जो अपने पुराने हालातों को सुधारने के लिए और उन्हीं हालातों से उभरने के लिए, सिर्फ 2.5 एकड़ ज़मीन के साथ ही संघर्ष करके अपनी आगे की ज़िंदगी की तरफ बढ़ रहे थे । स्वर्ण सिंह के भी कुछ सपने थे जिन्हें वे पूरा करना चाहते थे और उसके लिए उन्होंने 12 वीं और बी.ए के बाद वे उच्च शिक्षा (मास्टर्स) के लिए गए। लेकिन उनकी नियति में कुछ और लिखा गया था। वर्ष 1983 में, जब पंजाब के युवावर्ग लोकतंत्र के खिलाफ क्रांति के मूड की चरम सीमा पर थे, उस समय हालात साधारण लोगों के लिए आसान नहीं थे और स्वर्ण सिंह ने अपनी उच्च शिक्षा (मास्टर्स) को बीच में ही छोड़ दिया और घर रहकर कुछ नया शुरू करने का फैसला किया।

जब दंगे फसाद शांत हो रहे थे उस समय स्वर्ण सिंह अपनी ज़िंदगी के व्यावसायकि करियर को स्थिरता देने के लिए हर तरह की जॉब हासिल करने की कोशिश की, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। आखिरकार उन्होंने अपने पडोस में अन्य पोल्टरी किसानों से प्रेरित होकर पोल्टरी फार्मिंग शुरू करने का फैसला किया और 1990 में लगभग 2 दशक पहले सहोता पोल्टरी ब्रीडिंग फार्म स्थापित हुआ। उन्होंने अपना उद्यम 1000 पक्षियों से शुरू किया और 50 फुट लंबाई और 35 फुट चौड़ाई का एक चार मंज़िला शैड बनाया। उन्होंने उस समय एक लोन लेकर 1000 पक्षियों पर 70000 रूपये का निवेश किया, जिस पर उन्हें सरकार की तरफ से 25 प्रतिशत की सब्सिडी मिली। उसके बाद आज तक उन्होंने सरकार से कोई लोन और कोई सब्सिडी नहीं ली।

1991 में उनकी शादी हुई और उनका पोल्टरी उद्यम अच्छे से शुरू हुआ। उन्होंने हैचरी में भी निवेश किया। धीरे-धीरे समय के साथ जब उनका पुत्र – मनजिंदर सिंह बड़ा हुआ तब उसने अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाने का फैसला किया। उसने अपनी 12वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और अपने पिता के व्यापार को संभाला। पोल्टरी व्यापार में मनजिंदर के शामिल होने का मतलब ये नहीं था कि स्वर्ण सिंह ने रिटायरमेंट ले ली। स्वर्ण सिंह पोल्टरी फार्म का काम संभालने के लिए हमेशा अपने बेटे के साथ खड़े रहे और उसका मार्गदर्शन करते रहे।

स्वर्ण सिंह – “अपने परिवार के समर्थन के बिना मैं अपने जीवन में कभी इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता। पोल्टरी एक अच्छा अनुभव है और मैं पोल्टरी से महीने में पचास से साठ हज़ार तक का अच्छा मुनाफा कमा लेता हूं। एक किसान आसानी से पोल्टरी फार्मिंग को अपना सकता है और अच्छा लाभ कमा सकता है।”

वर्तमान में मनजिंदर सिंह (27वर्षीय) अपने पिता और 2 श्रमिकों के साथ पूरे फार्म को संभालते हैं। वे अपनी ज़मीन पर सब्जियां, गेहूं, मक्की, धान और चारा स्वंय उगाते हैं। चारे की फसल से वे चूज़ों के लिए फीड तैयार करते हैं और कई बार बाज़ार से चूज़ों के लिए “संपूर्ण” नाम का ब्रांड चिक फीड खरीदते हैं। उनके पास घर के प्रयोग के लिए 2 भैंसे भी हैं।

मनजिंदर – “हानि और कुदरती आफतों से बचने के लिए हम चूज़ों और शैड का उचित ध्यान रखते हैं। शैड में किसी भी किस्म की बीमारी से बचने के लिए हम समय-समय पर नए पक्षियों का टीकाकरण करवाते हैं। हम जैव सुरक्षा का भी ध्यान रखते हैं क्योंकि यही वह मुख्य कारण है जिसपर पोल्टरी फार्मिंग आधारित है।”

(मशीनरी) यंत्र:
वर्तमान में सहोता पोल्टरी फार्म के पास 3 चिक्स इनक्यूबेटर है। एक हाथों द्वारा निर्मित मशीनरी है जिसे स्वर्ण सिह ने शाहकोट से स्वंय डिज़ाइन किया है। वे चूज़ों के लिए प्रतिदिन 2.5 क्विंटल फीड तैयार करते हैं। उनके पास 2 जेनरेटर, फीड्रज़ और ड्रिंकर्ज़ भी हैं।

मार्किटिंग और बिज़नेस

मार्किटिंग उनके लिए मुश्किल नहीं है। वे प्रत्येक चार दिनों के बाद 4000 पक्षियों को बेचते हैं। एक पक्षी वार्षिक 200 अंडे देता है और वे एक साल बाद हर अंडा देने वाले पक्षी को स्थानांतरित करते हैं। प्रति चूज़े का बिक्री रेट 25 रूपये है जो कि उन्हें पर्याप्त लाभ देता है।

भविष्य की योजनाएं:

वे भविष्य में पशु पालन शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
“आप कृषि के क्षेत्र में जो भी कर रहे हैं उसे पूरे समर्पण के साथ करें क्योंकि मेहनत हमेशा अच्छा रंग लाती है।”