नरपिंदर सिंह धालीवाल

पूरी कहानी पढ़ें

एक इंसान की कहानी जो मधु मक्खी पालन के व्यवसाय की सफलता में मीठा स्वाद हासिल कर रहा है

भारत में मधु मक्खी पालन बहुत पहले से किया जा रहा है और आज़ादी के बाद इसे अलग-अलग ग्रामीण विकास प्रोग्रामों के द्वारा प्रफुल्लित किया जा रहा है, पर जब मधु मक्खी पालन को एक अगले स्तर पर उत्पादों के व्यापार की तरफ ले जाने की बात करें, तो आज भी ज्यादातर लोग इस तरह की जानकारी से रहित हैं। पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने इस व्यापार में अच्छी आमदन और सफलता हासिल की है। ऐसे एक किसान नरपिंदर सिंह धालीवाल जो पिछले 20 वर्षों से मधु मक्खी पालन में अच्छा मुनाफा ले रहे हैं।

यह कहा जाता है कि हमारा विकास आसान समय में नहीं, बल्कि उस समय होता है जब हम चुनौतियों का सामना करते हैं। नरपिंदर सिंह धालीवाल भी उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने बहुत सारी असफलताओं का सामना और सख्त मेहनत करके यह कामयाबी हासिल की। आज वे धालीवाल हनी बी फार्म के मालिक हैं। जो कि उनके ही मूल स्थान गांव चूहड़चक जिला मोगा (पंजाब) में स्थापित है और आज उनके पास लगभग मधु मक्खियों के 1000 बक्से हैं। मक्खी पालन शुरू करने से पहले नरपिंदर सिंह जी की हालत एक बेरोज़गार जैसी ही थी और वे 1500 रूपये तनख्वाह पर काम करते थे, जिसमें जरूरतों को पूरा करना मुश्किल था। उनकी पढ़ाई कम होना भी एक समस्या थी। इसलिए उन्होंने अपने पिता का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया और मक्खी पालन में मदद करने लगे। उनके पिता रिटायर्ड फौजी थे और उन्होंने 1997 में 5 बक्सों से मक्खी पालन का काम शुरू किया था। सबसे पहले उन्होंने ही मक्खी पालन को व्यापारिक स्तर पर शुरू किया। स. नरपिंदर सिंह जी ने कारोबार स्थापित करने के लिए खुद सब कुछ किया और इसमें बहुत सारी मुश्किलों का सामना भी किया। पैसे और साधनों की कमी के कारण उन्हें बहुत बार असफलताएं झेलनी पड़ी, पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मक्खी पालन के कारोबार को सही दिशा में ले जाने के लिए उन्होंने बागबानी विभाग, पी ए यू से 5 दिनों की ट्रेनिंग ली। उन्होंने बैंक से कर्ज़ा लिया और कुछ दोस्तों से भी मदद ली और आखिर परिवार और कुछ मजदूरों के पूरे सहयोग से अपने गांव में ही बी फार्म स्थापित कर लिया।

उन्होंने यह कारोबार 5 बक्सों से शुरू किया था और आज उनके पास लगभग 1000 बक्से हैं। वे शहद की अच्छी पैदावार के लिए इन बक्सों को एक जगह से दूसरी जगह भेजते रहते हैं। उनके फार्म में मुख्य तौर पर पश्चिमी मक्खियां हैं, यूरोपियन और इटालियन। वे मक्खियों को किसी भी तरह की बनावटी या अधिक खुराक नहीं देते, बल्कि कुदरती खुराक को पहल देते हैं। इसके इलावा वे कीटों की रोकथाम के लिए भी किसी तरह की कीटनाशक या रासायनिक स्प्रे का प्रयोग नहीं करते और इनकी रोकथाम और बचाव के लिए कुदरती तरीकों का प्रयोग करते हैं, क्योंकि वे सब कुछ कुदरती तरीके से करने में यकीन रखते हैं।

वैरो माईट और हॉरनैट का हमला एक मुख्य समस्या है, जिनका सामना उन्हें हमेशा करता पड़ता है और इनकी रोकथाम के लिए वे कुदरती तरीकों का प्रयोग करते हैं। कुदरती ढंगों को अपनाने के बावजूद भी वे वार्षिक आमदन ले रहे हैं। बहुत लोग मक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं, पर उनका ग्राहकों के साथ सीधे तौर पर संपर्क करना और उत्पादों का मंडीकरण खुद करना ही उन्हें मक्खी पालक साबित करता है। वे शहद तैयार करने से लेकर पैक करने और उसकी ब्रांडिंग करने तक का सारा काम 6 मजदूरों की मदद से करते हैं और किसी भी काम के लिए वे किसी पर भी निर्भर नहीं हैं। इस समय वे सरकार से अपने मधु मक्खी फार्म के लिए सब्सिडी भी ले रहे हैं।

शुरू में बहुत लोग उनके काम और शहद की आलोचना करते हैं, पर वेकभी भी निराश नहीं हुए और मक्खी पालन का पेशा जारी रखा। मक्खी पालन के अलावा वे जैविक खेती, डेयरी फार्मिंग, फलों की खेती, मुर्गी पालन और पारंपरिक खेती भी करते हैं, पर इन सब की पैदावार से वे मुख्य तौर पर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करते हैं।

नरपिंदर सिंह जी ने शहद की शुद्धता की जांच करने और अलग अलग रंगो के शहद के बारे में अपने विचार दिये:
उनके अनुसार शहद की क्वालिटी की जांच इसके रंग या तरलता से नहीं की जा सकती, क्योंकि अलग अलग पौधों के अलग अलग फूलों से प्राप्त शहद के गुण अलग अलग होते हैं। सरसों के फूलों से प्राप्त शहद सब से उत्तम किस्म का और गाढ़ा होता है। गाढ़े शहद को फरोज़न शहद भी कहा जाता है, जो मुख्य तौर पर सरसों के फूलों से प्राप्त होता है। यह सेहत के लिए भी बहुत लाभदायक होता है। इसलिए इसकी अंतरराष्ट्रीय मार्किट में भी भारी मांग है। शहद की शुद्धता की सही जांच लैबोटरी में मौजूद माहिरों या खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा करवायी जा सकती है। इसलिए यदि किसी इंसान को शहद की क्वालिटी पर कोई शक हो तो वे किसी के कुछ कहे पर यकीन करने की बजाय माहिरों से जांच करवा लें या फिर किसी प्रमाणित व्यक्ति से ही खरीदें।

नरपिंदर सिंह जी स्वंय मक्खी पालन करते हैं और लीची, सरसों और अलग-अलग फूलों से शहद तैयार करते हैं और सरसों से ज्यादातर शहद यूरोप में भेजते हैं। वे पी.ए.यू में प्रोग्रैसिव बी कीपर एसोसीएशन के भी मैंबर हैं। शहद पैदा करने के अलावा, वे शहद और हल्दी से बने कुछ उत्पाद जैसे कि बी पोलन कैप्सूल, हल्दी कैप्सूल और रोयल जैली आदि को मार्किट में लेकर आने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बी पोलन कैप्सूल के लिए पी ए यू से खास तौर पर आधुनिक ट्रेनिंग हासिल की है।

बी पोलन में महत्तवपूर्ण तत्व होते हैं, जो मानव शरीर के लिए जरूरी होते हैं और रोयल जैली भी सेहत के लिए बहुत लाभदायक है। इन दोनों उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय मार्किट में भारी मांग है और जल्दी ही इसकी मांग भारत में भी बढ़ेगी। इस समय उनका मुख्य उद्देश्यबी पोलन कैप्सूल और हल्दी कैप्सूल का मंडीकरन करना और लोगों को इनके सेहत संबंधी फायदों और प्रयोग से जागरूक करवाना है।

उन्होंने अपने काम के लिए अलग अलग किसान मेलों में बहुत सारे सम्मान और पुरस्कार हासिल किये। उन्होंने परागपुर में जट्ट एक्सपो अवार्ड जीता। उन्हें 2014 में खेतीबाड़ी विभाग की तरफ से और 2016 में विश्व शहद दिवस पर सम्मानित किया गया।

नरपिंदर सिंह धालीवाल जी द्वारा दिया गया संदेश
आज के समय में यदि किसान खेतीबाड़ी के क्षेत्र में विभिन्नता लाने के लिए तैयार है, तो भविष्य में उसकी सफलता की संभावना बहुत बढ़ जाती है। मैंने अपने फार्म में विभिन्नता लायी और आज उससे मुनाफा ले रहा हूं। मैं किसान भाइयों को यही संदेश देना चाहता हूं कि यदि आप खेतीबाड़ी में सफल होना चाहते हैं तो विभिन्नता लेकर आनी पड़ेगी। मधु मक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे किसान लंबे समय से नज़रअंदाज कर रहे हैं। यह क्षेत्र बहुत लाभदायक है और इंसान इसमें बहुत सफलता हासिल कर सकते हैं। आज कल तो सरकार भी किसानों को मक्खी पालन शुरू करने वाले व्यक्ति को 5-10 बक्सों पर सब्सिडी देती है।

बलदेव सिंह बराड़

पूरी कहानी पढ़ें

बलदेव सिंह बराड़ जो 80 वर्ष के हैं लेकिन उनका दिल और दिमाग 25 वर्षीय युवा का है

वर्ष 1960 का समय था जब अर्जन सिंह के पुत्र बलदेव सिंह बराड़ ने खेतीबाड़ी शुरू की थी और यह वही समय था जब हरी क्रांति अपने चरम समय पर थी। तब से ही खेती के लिए ना तो उनका उत्साह कम हुआ और ना ही उनका जुनून कम हुआ।

गांव सिंघावाला, तहसील मोगा, पंजाब की धरती पर जन्मे और पले बढ़े बलदेव सिंह बराड़ ने कृषि के क्षेत्र में काफी उपलब्धियां हासिल की और खेतीबाड़ी विभाग, फिरोजपुर से कई पुरस्कार जीते।

उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, मोगा पंजाब के कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेते हुए पहल के आधार पर खेती करने का फैसला किया। उनका मुख्य ध्यान विशेष रूप से गेहूं और ग्वार की खेती की तरफ था। और कुछ समय बाद धान को स्थानांतरित करते हुए उनका ध्यान पोपलर और पपीते की खेती की तरफ बढ़ गया। अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए 1985 में 9 एकड़ में किन्नुओं की खेती और 3 एकड़ में अंगूर की खेती करके उनका ध्यान बागबानी की तरफ भी बढ़ा। घरेलु उद्देश्य के लिए उन्होंने अलग से फल और सब्जियां उगायीं। कुल मिलाकर उनके पास 37 एकड़ ज़मीन है जिसमें से 27 एकड़ उनकी अपनी है और 10 एकड़ ज़मीन उन्होंने ठेके पर ली है।

उनकी उपलब्धियां:

बलदेव सिंह बराड़ की दिलचस्पी सिर्फ खेती की तरफ ही नहीं थी परंतु खेतीबाड़ी पद्धति को आसान बनाने के लिए मशीनीकरण की तरफ भी थी। एक बार उन्होंनें मोगा की इंडस्ट्रियल युनिट को कम लागत पर धान की कद्दू करने वाली मशीन विकसित करने के लिए तकनीकी सलाह भी दी और वह मशीन आज बहुत प्रसिद्ध है।

उन्होंने एक शक्तिशाली स्प्रिंग कल्टीवेटर भी विकसित किया जिसमें कटाई के बाद धान के खेतों में सख्त परत को तोड़ने की क्षमता होती है।

वैज्ञानिकों की सलाह मान कर उसे लागू करना उनका अब तक का सबसे अच्छा कार्य रहा है जिसके द्वारा वो अब अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। वे हमेशा अपनी आय और खर्चे का पूरा दस्तावेज रखते हैं। और उन्होंने कभी अपनी जिज्ञासा को खत्म नहीं होने दिया। कृषि के क्षेत्र में होने वाले नए आविष्कार और नई तकनीकों को जानने के लिए वे हमेशा किसान मेलों में जाते हैं। अच्छे परिणामों के लिए वैज्ञानिक खेती की तरफ वे दूसरे किसानों को भी प्रेरित करते हैं।

संदेश
“एक किसान राष्ट्र का निर्माण करता है। इसलिए उसे कठिनाइयों के समय में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और ना ही निराश होना चाहिए। एक किसान को आधुनिक पर्यावरण अनुकूलित तकनीकों को अपनाना चाहिए तभी वह प्रगति कर सकता है और अपनी ज़मीन से अच्छी उपज प्राप्त कर सकता है।”