इंदर सिंह सिद्धू

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पंजाब में स्थित एक फार्म की सफलता की कहानी जो हरी क्रांति के प्रभाव से अछूता रह गया

एक किसान, जिसका पूरा जीवन चक्र फसल की पैदावार पर ही निर्भर करता है, उसके लिए एक बार भी फसल की पैदावार में हानि का सामना करना तबाही वाली स्थिति हो सकती है। इस स्थिति से निकलने के लिए हर किसान ने अपनी क्षमता के अनुसार बचाव के उपाय किए हैं, ताकि नुकसान से बचा जा सके। और इसी तरह ही कृषि क्षेत्र अधिक पैदावार लेने की दौड़ में हरी क्रांति को अपनाकर नवीनीकरण की तरफ आगे बढ़ा। पर पंजाब में स्थित एक फार्म ऐसा है जो हरी क्रांति के प्रभाव से बिल्कुल ही अछूता रह गया।

यह एक व्यक्ति — इंदर सिंह सिद्धू की कहानी है जिनकी उम्र 89 वर्ष है और उनका परिवार – बंगला नैचुरल फूड फार्म चला रहा है। यह कहानी तब शुरू हुई जब हरी क्रांति भारत में आई। यह उस समय की बात है जब कीटनाशकों और खादों के रूप में किसानों के हाथों में हानिकारक रसायन पकड़ा दिए गए। इंदर सिंह सिद्धू भी उन किसानों में से एक थे जिन्होंने कुछ असाधारण घटनाओं का सामना किया, जिस कारण उन्हें कीटनाशकों के प्रयोग से नफरत हो गई।

“गन्ने के खेत में कीड़े मारने के लिए एक स्प्रे की गई थी और उस समय किसानों को चेतावनी दी गई थी कि उस जगह से अपने पशुओं के लिए चारा इक्ट्ठा ना करें। इस किस्म की प्रक्रिया ज्वार के खेत में भी की गई और यह स्प्रे बहुत ज्यादा ज़हरीली थी, जिससे चूहे और अन्य कई छोटे कीट भी मर गए।”

इन दोनों घटनाओं को देखने के बाद, इंदर सिंह सिद्धू ने सोचा कि यदि ये स्प्रे पशुओं और कीटों के लिए हानिकारक है, तो ये हमें भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। स. सिद्धू ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए, वे इन ज़हरीली चीज़ों को अपने खेतों में नहीं आने देंगे और इस तरह उन्होंने पारम्परिक खेती के अभ्यासों, फार्म में तैयार खाद और वातावरण अनुकूल विधियों के प्रयोग से बंगला नैचुरल फूड फार्म को मौत देने वाली स्प्रे से बचाया।

खैर,इंदर सिंह सिद्धू अकले नहीं थे, उनके पुत्र हरजिंदर पाल सिंह सिद्धू और बहू — मधुमीत कौर दोनों उनकी मदद करते हैं। रसोई से लेकर बगीची तक और बगीची से खेत तक, मधुमीत कौर हर काम में दिलचस्पी लेती हैं और अपने पति और ससुर के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं ।

पहले, जब अंग्रेजों ने भारत पर हुकूमत की थी, उस समय फाज़िलका को बंगलोअ (बंगला) कहते थे, इस कारण मेरे ससुर जी ने फार्म का नाम बंगला नैचुरल फूड्स रखा। – मधुमीत कौर ने मुस्कुराते हुए कहा।

इंदर सिंह सिद्धू पारंपरिक खेती के अभ्यास में विश्वास रखते हैं पर वे कभी भी आधुनिक पर्यावरण अनुकूल खेती तकनीकें अपनाने से झिझके नहीं। वे अपने फार्म पर सभी आधुनिक मशीनरी को किराये पर लेकर प्रयोग करते हैं और खाद तैयार करने के लिए अपनी बहू की सिफारिश पर वे वेस्ट डीकंपोज़र का भी प्रयोग करते हैं। वे कीटनाशकों के स्थान पर खट्टी लस्सी, नीम और अन्य पदार्थों का प्रयोग करते हैं जो हानिकारक कीटों को फसलों से दूर रखते हैं।

वे मुख्य फसल जिसके लिए बंगला नैचुरल फूड फार्म को जाना जाता है, वह है गेहूं की सबसे पुरानी किस्म बंसी। बंसी गेहूं भारत की 2500 वर्ष पुरानी देसी किस्म है, जिसमें विटामिनों की अधिक मात्रा होती है और यह भोजन के लिए भी अच्छी मानी जाती है।

“जब हम कुदरती तौर पर उगाए जाने वाले और प्रोसेस किए बंसी के आटे को गूंधते हैं तो यह अगले दिन भी सफेद और ताजा दिखाई देता है, पर जब हम बाज़ार से खरीदा गेहूं का आटा देखें तो यह कुछ घंटों के बाद काला हो जाता है— मधुमीत कौर ने कहा।”

गेहूं के अलावा स. सिद्धू गन्ना, लहसुन, प्याज, हल्दी, दालें, मौसमी सब्जियां पैदा करते हैं और उन्होंने 7 एकड़ में मिश्रित फलों का बाग भी लगाया है। स. सिद्धू 89 वर्ष की उम्र में भी बिल्कुल तंदरूस्त हैं, वे कभी भी फार्म से छुट्टी नहीं करते और कुछ कर्मचारियों की मदद से फार्म के सभी कामों की निगरानी करते हैं। गांव के बहुत सारे लोग इंदर सिंह सिद्धू के प्रयत्नों की आलोचना करते थे और कहते थे “यह बुज़ुर्ग आदमी क्या कर रहा है…” पर अब बहुत सारे आलोचक ग्राहकों में बदल गए हैं। और बंगला नैचुरल फूड फार्म से सब्जियां और तैयार किए उत्पाद खरीदना पसंद करते हैं।

इंदर सिंह सिद्धू की बहू खेती करने के अलावा खेती उत्पादों जैसे सेवियां, दलियां, चावल से तैयाार सेवियां, अमरूद का जूस और लहसुन पाउडर आदि उत्पाद भी तैयार करती हैं। ज्यादातर तैयार किए उत्पाद और फसलें घरेलु उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती हैं या दोस्तों और रिश्तेदारों के बांट दी जाती हैं।

उनकी 50 एकड़ ज़मीन को 3 प्लाट में बांटा गया है, जिसमें से इंदर सिंह सिद्धू के पास 1 प्लाट है, जिसमें पिछले 30 वर्षों से कुदरती तौर पर खेती की जा रही है और 36 एकड़ ज़मीन अन्य किसानों को ठेके पर दी है। कुदरती खेती करने के लिए खेती विरासत मिशन की तरफ से उन्हें प्रमाण पत्र भी मिला है।

यह परिवार पारंपरिक और विरासती ढंग के जीवन को संभाल कर रखने में यकीन रखता है। वे भोजन पकाने के लिए मिट्टी के बर्तनों (मटकी, घड़ा आदि) का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा वे घर में दरियां, संदूक और मंजी आदि का ही प्रयोग करते हैं।

हर वर्ष उनके फार्म पर बहुत लोग घूमने और देखने के लिए आते हैं, जिनमें कृषि छात्र, विदेशी आविष्कारी और कुछ वे लोग होते हैं जो विरासत और कृषि जीवन को कुछ दिनों के लिए जीना चाहते हैं।

भविष्य की योजना
फसल और तैयार किए उत्पाद बेचने के लिए वे अपने फार्म पर कुछ अन्य किसानों के साथ मिलकर एक छोटा सी दुकान खोलने की योजना बना रहे हैं और अपने फार्म को एक पर्यटक स्थान में बदलना चाहते हैं।
संदेश

“जैसे कि हम जानते हैं कि यदि कीटों के लिए रसायन जानलेवा हैं तो ये कुदरत के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं, इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम ऐसी चीज़ों का प्रयोग करने से बचें जो भविष्य में नुकसान दे सकती हैं। इसके अलावा, ज्यादातर कीड़े — मकौड़े हमारे लिए सहायक होते हैं और उन्हें कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से मारना फसलों के साथ साथ वातावरण के लिए भी बुरा सिद्ध होता है। किसान को मित्र कीटों और दुश्मन कीटों की जानकारी होनी चाहिए और सबसे महत्तवपूर्ण बात यह है कि यदि आप अपने काम से संतुष्ट हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं।”

 

खैर, अच्छी सेहत और जीवन ढंग दिखाता है कि सख्त मेहनत और कुदरती खेती के प्रति समर्पण ने इंदर सिंह सिद्धू जी को अच्छा मुनाफा दिया है और उनकी शख्सियत और खेती के अभ्यासों ने उन्हें नज़दीक के इलाकों में पहले से ही प्रसिद्ध कर दिया है।

किसान को लोगों की आलोचनाओं से प्रभावित नहीं होनी चाहिए और वही करना चाहिए जो कुदरती खेती के लिए अच्छा है और आज हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है। इंदर सिंह सिद्धू और उन जैसे प्रगतिशील किसानों को हमारा सलाम है।

अमरजीत सिंह

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किसान जंकश्न- एक व्यक्ति जिसने अपनी जॉब को छोड़ दिया और खेती विभिन्नता के माध्यम से खेतीप्रेन्योर बन गए

आज कल हर किसी का एक सम्माननीय नौकरी के द्वारा अच्छे पेशे का सपना है और हो भी क्यों ना। हमें हमेशा यह बताया गया है कि सेवा क्षेत्र में एक अच्छी नौकरी करके ही जीवन में खुशी और संतुष्टि प्राप्त की जाती है। बहुत कम लोग हैं जो खुद को मिट्टी में रखना चाहते हैं और इससे आजीविका कमाना चाहते हैं। ऐसे एक इंसान हैं जिन्होंने अपनी नौकरी को छोड़कर मिट्टी को चुना और सफलतापूर्वक कुदरती खेती कर रहे हैं।

श्री अमरजीत सिंह एक खेतीप्रेन्योर हैं, जो सक्रिय रूप से जैविक खेती और डेयरी फार्मिंग के काम में शामिल हैं और एक रेस्टोरेंट भी चला रहे हैं। जिसका नाम किसान जंकश्न है, जो घड़ुंआ में स्थित है। उन्होंने 2007 में खेती करनी शुरू की। उस समय उनके दिमाग में कोई ठोस योजना नहीं थी, बस उनके पास अपने जीवन में कुछ करने का विश्वास था।

खेती करने से पहले अमरजीत सिंह ट्रेनिंग के लिए पी.ए.यू. गए और विभिन्न राज्यों का भी दौरा किया जहां पर उन्होंने किसानों को बिना रासायनों का प्रयोग किए खेती करते देखा। वे हल्दी की खेती और प्रोसैसिंग की ट्रेनिंग के लिए कालीकट और केरला भी गए।

अपने राज्य के दौरे और प्रशिक्षण से उन्हें पता चला कि खाद्य पदार्थों में बहुत मिलावट होती है जो कि हम रोज़ उपभोग करते हैं और इसके बाद उन्होंने कुदरती तरीके से खेती करने का निर्णय लिया ताकि वह बिना किसी रसायनों के खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर सकें। पिछले दो वर्षों से वे अपने खेत में खाद और कीटनाशी का प्रयोग किए बिना जैविक खाद का प्रयोग करके कुदरती खेती कर रहे हैं। खेती के प्रति उनका इतना जुनून है कि उनके पास केवल 1.5 एकड़ ज़मीन हैं और उसी में ही वेगन्ना, गेहूं, धान, हल्दी, आम, तरबूज, मसाले, हर्बल पौधे और अन्य मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं।

पी.ए.यू. में डॉ. रमनदीप सिंह का एक खास व्यक्तित्व है जिनसे अमरजीत सिंह प्रेरित हुए और अपने जीवन को एक नया मोड़ देने का फैसला किया। डॉ. रमनदीप सिंह ने उन्हें ऑन फार्म मार्किट का विचार दिया जो कि किसान जंकश्न पर आधारित था। आज अमरजीत सिंह किसान जंकश्न चला रहे हैं जो कि उनके फार्म के साथ चंडीगढ़-लुधियाना राजमार्ग पर स्थित है। किसान जंकश्न का मुख्य मकसद किसानों को उनके प्रोसेस किए गए उत्पादों को उसके माध्यम से बाज़ार तक पहुंचाने में मदद करना है। उन्होंने 2007 में इसे शुरू किया और खुद के ऑन फार्म मार्किट की स्थापना के लिए उन्हें 9 वर्ष लग गए। पिछले साल ही उन्होंने उसी जगह पर किसान जंकश्न फार्म से फॉर्क तक नाम का रेस्टोरेंट खोला है।

अमरजीत सिंह सिर्फ 10वीं पास है और आज 45 वर्ष की उम्र में आकर उन्हें पता चला है कि उन्हें क्या करना है। इसलिए उनके जैसे अन्य किसानों के मार्गदर्शन के लिए उन्होंने घड़ुआं में श्री धन्ना भगत किसान क्लब नामक ग्रुप बनाया है। वे इस ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं और खेती के अलावा वे ग्रुप मीटिंग के लिए हमेशा समय निकालते हैं। उनके ग्रुप में कुल 18 सदस्य हैं और उनके ग्रुप का मुख्य कार्य बीजों के बारे में चर्चा करना है कि किस्म का बीज खरीदना चाहिए और प्रयोग करना चाहिए, आधुनिक तरीके से खेती को कैसे करें आदि। उन्होंने ग्रुप के नाम पर गेहूं की बिजाई, कटाई के लिए और अन्य प्रकार की मशीनें खरीदी हैं। इनका प्रयोग सभी ग्रुप के मैंबर कर सकते हैं और अपने गांव के अन्य किसानों को कम और उचित कीमतों पर उधार भी दे सकते हैं।

अमरजीत सिंह का दूसरा सबसे महत्तवपूर्ण पेशा डेयरी फार्मिंग का है उनके पास कुल 8 भैंसे हैं और जो उनसे दूध प्राप्त होता है वे उनसे दूध, पनीर, खोया, मक्खन, लस्सी आदि बनाते हैं। वे सभी डेयरी उत्पादों को अपने ऑन फॉर्म मार्किट किसान जंकश्न में बेचते हैं। उनमें से एक प्रसिद्ध व्यंजन है जो उनमें रेस्टोरेंट में बिकती है वह है खोया-बर्फी जो कि खोया और गुड़ का प्रयोग करके बनाई होती है।

उनके रेस्टोरेंट में ताजा और पौष्टिक भोजन, खुला हवादार, उचित कूलिंग सिस्टम और ऑन रोड फार्म मार्किट है जो ग्राहकों को आकर्षित करती हैं। उन्होंने ग्रीन नेट और ईंटों का प्रयोग करके रेस्टोरेंट की दीवारें बनाई हैं जो रेस्टोरेंट के अंदर हवा का उचित वेंटिलेशन सुनिश्चित करते हैं।

वर्तमान प्रवृत्ति और कृषि प्रथाओं पर चर्चा करने के बाद उन्होंने हमें अपने विचारों के बारे में बताया-

लोगों की बहुत गलत मानसिकता है, उन्हें लगता है कि खेती में कोई लाभ नहीं है और उन्हें अपनी आजीविका के लिए खेती नहीं करनी चाहिए। पर यह सच नहीं है। बच्चों के मन में खेती के प्रति गलत सोच और गलत विचारों को भरा जाता है कि केवल अशिक्षित और अनपढ़ लोग ही खेती करते हैं और इस वजह से युवा पीढ़ी, खेती को एक जर्जर और अपमानपूर्ण पेशे के रूप में देखती है।आज कल बच्चे 10000 रूपये की नौकरी के पीछे दौड़ते हैं और यह चीज़ उन्हें उनकी ज़िंदगी में निराश कर देती है। अपने बच्चों के दिमाग में खेती के प्रति गलत विचार भरने से अच्छा है कि उन्हें खेती के उपयोग और खेती करने से होने वाले लाभों के बारे में बताया जाये। खेतीबाड़ी एक विभिन्नतापूर्ण क्षेत्र है और यदि एक बच्चा खेतीबाड़ी को चुनता है तो वह अपने भविष्य में चमत्कार कर सकता है।”

अमरजीत सिंह जी ने अपने नौकरी छोड़ने और खेती शुरू करने का जोखिम उठाया और खेतीबाड़ी में अपनी कड़ी मेहनत और जुनून की कारण उन्होंने इस जोखिम का अच्छे से भुगतान किया है। किसान जंकश्न हब के पीछे अमरजीत सिंह के मुख्य उद्देश्य हैं।

• किसानों को अपनी दुकान के माध्यम से अपने उत्पाद बेचने में मदद करना।

• ताजा और रसायन मुक्त सब्जियां और फल उगाना।

• ग्राहकों को ताजा, वास्तविक और कुदरती खाद्य उत्पाद उपलब्ध करवाना।

• रेस्टोरेंट में ताजा उपज का उपयोग करना और ग्राहकों को स्वस्थ और ताजा भोजन प्रदान करना।

• किसानों को प्रोसैस, ब्रांडिंग और स्वंय उत्पादन करने के लिए गाइड करना।

खैर, यह अंत नहीं है, वे आई ए एस की परीक्षा के लिए संस्थागत ट्रेनिंग भी देते हैं और निर्देशक भी उनके फार्म का दौरा करते हैं। अपने ऑन रोड फार्म मार्किट व्यापार को बढ़ाना और अन्य किसानों को खेतीबाड़ी के बारे में बताना कि कैसे वे खेती से लाभ और मुनाफा कमा सकते हैं, उनके भविष्य की योजनाएं हैं। खेतीबाड़ी के क्षेत्र में सहायता के लिए आने वाले हर किसान का वे हमेशा स्वागत करते हैं।

अमरजीत सिंह द्वारा संदेश
कृषि क्षेत्र प्रमुख कठिनाइयों से गुजर रहा है और किसान हमेशा अपने अधिकारों के बारे में बात करते हैं ना कि अपनी जिम्मेदारियों के बारे में। सरकार हर बार किसानों की मदद के लिए आगे नहीं आयेगी। किसान को आगे आना चाहिए और अपनी मदद स्वंय करनी चाहिए। पी ए यू में 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें खेत की तैयारी से लेकर बिजाई और उत्पाद की मार्किटिंग के बारे में बताया जाता है। इसलिए किसान यदि खेतीबाड़ी से अच्छी आजीविका प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें अपने कंधों पर जिम्मेदारी लेनी होगी।

मोहिंदर सिंह गरेवाल

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एक ऐसे इंसान की कहानी जिसने कृषि विज्ञान में महारत हासिल की और खेती विभिन्नता के क्षेत्र में अपने कौशल दिखाए

हर कोई सोच सकता है और सपने देख सकता है, पर ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो अपनी सोच पर खड़े रहते हैं और पूरी लग्न के साथ उसे पूरा करते हैं। ऐसे ही दृढ़ संकल्प वाले एक जल सेना के फौजी ने अपना पेशा बदलकर खेतीबाड़ी की तरफ आने का फैसला किया। उस इंसान के दिमाग में बहु उदेशी खेती का ख्याल आया और अपनी मेहनत और जोश से आज विश्व भर में वह किसान पूरे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है।

मोहिंदर सिंह गरेवाल पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पहले सलाहकार किसान के तौर पर चुने गए, जिनके पास 42 अलग अलग तरह की फसलें उगाने का 53 वर्ष का तर्ज़ुबा है। उन्होंने इज़रायल जैसे देशों से हाइब्रिड बीज उत्पादन और खेती की आधुनिक तकनीकों की सिखलाई हासिल की। अब तक वे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में अपने काम के लिए 5 अंतरराष्ट्रीय, 7 राष्ट्रीय और 16 राज्य स्तरीय पुरस्कार जीत चुके हैं।

स. गरेवाल जी का जन्म 1 दिसंबर 1937 में लायलपुर, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ। उनके पिता का नाम अर्जन सिंह और माता का नाम जागीर कौर है। यदि हम मोहिंदर सिंह गरेवाल की पूरी ज़िंदगी देखें तो उनकी पूरी ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी और उन्होंने हर संघर्ष और मुश्किल को चुनौती के रूप में समझा। पूरी लग्न और मेहनत से उन्होंने अपने और अपने परिवार के सपने पूरे किये।

अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में, मोहिंदर सिंह गरेवाल बड़े उत्साह से फुटबॉल खेलते थे और बहुत सारे स्कूलों की टीमों के कप्तान भी रहे। वे एक अच्छे एथलीट भी थे, जिस कारण उन्हें भारतीय जल सेना में पक्के तौर पर नौकरी मिल गई। 1962 में INS नाम के समुंद्री जहाज पर मोहिंदर सिंह गरेवाल काले पानी अंडेमान निकोबार द्वीप समूह, मलेशिया, सिंगापुर और इंडोनेशिया की यात्रा की। इंडोनेशिया में मैच खेलते समय उनके दायीं जांघ पर गंभीर चोट लगी। इस चोट और परिवार के दबाव के कारण उन्होंने 1963 में भारतीय जल सेना की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद कुछ देर के लिए उनकी ज़िंदगी में ठहराव आ गया।

नौकरी छोड़ने के बाद उनके पास अपने विरासती व्यवसाय खेतीबाड़ी के अलावा कोई ओर अन्य विकल्प नहीं था। उन्होंने शुरूआती 4 वर्षों में गेहूं और मक्की की खेती की। मोहिंदर सिंह जी ने अपनी पत्नी जसबीर कौर के साथ मिलकर खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए एक ठोस योजना बनाई और आज वे अपनी खेती क्रियाओं के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध इंसान हैं। हालांकि उनके पास 12 एकड़ का एक छोटा सा खेत है, पर फसल चक्र के प्रयोग से वे इससे अधिक लाभ ले रहे हैं। मोहिंदर सिंह गरेवाल जी अपने खेतों में लगभग 42 तरह की फसलें उगाने में सक्षम हैं और अच्छी क्वालिटी की पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। उनके कौशल अकेले पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में जाने जाते हैं।

बहुत सारी जानी पहचानी कमेटियों और कौंसल के साथ काम करके मोहिंदर सिंह गरेवाल जी के काम को और अधिक प्रसिद्धि मिली। राज्य स्तर पर उन्हें गवर्निंग बोर्ड के मैंबर, पंजाब राज्य बीज सर्टीफिकेशन अथॉरिटी, पी ए यू पब्लीकेशन कमेटी और पी ए यू फार्मज़ एडवाइज़री कमेटी के तौर पर काम किया। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कमिश्न फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड पराइसिस के मैंबर, भारत सरकार, सीड एक्ट सब-कमेटी के मैंबर, भारत सरकार एडवाइज़री कमेटी के मैंबर, प्रसार भारतीय, जालंधर, पंजाब और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शूगरकेन रिसर्च लखनउ के मैंबर के तौर पर काम किया।

इस समय वे एग्रीकल्चर और हॉर्टीकल्चर कमेटी, पी ए यू, गवर्निंग बोर्ड, एग्रीकल्चर टैक्नोलोजी मैनेजमैंट एजंसी के मैंबर हैं। वे पंजाब फार्मरज़ कल्ब, पी ए यू के संस्थापक और चार्टर प्रधान भी हैं।

खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए उन्हें इंगलैंड, मैक्सिको, इथियोपिया और थाइलैंड जैसे देशों के द्वारा सम्मानित किया गया और वे अलग अलग स्तर पर 75 से ज्यादा पुरस्कार जीत चुके हैं। उन्हें 1996 में ऑटोबायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट, यू एस ए की तरफ से मैन ऑफ द ईयर पुरस्कार के साथ और 15 अगस्त 1999 को श्री गुरू गोबिंद सिंह स्टेडियम, जालंधर में माननीय गवर्नर एस एस राय द्वारा गोल्ड मैडल और लोई से सम्मानित किया। उन्हें पश्चिमी पंजाब के लोगों को खेती में से ज्यादा लाभ लेने और पाकिस्तान में एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को फसली विभिन्नता के बारे में सिखाने के लिए फार्मरज़ इंस्टीट्यूट, पाकिस्तान की तरफ से दो बार निमंत्रण भेजा गया। उनकी ज्यादा ज़िंदगी यात्रा में ही गुज़री और वे बहुत सारे देशों जैसे कि यू एस ए, कैनेडा, मैक्सिको, थाइलैंड, इंगलैंड और पाकिस्तान में वैज्ञानिक किसान और प्रतीनिधि मैंबर के तौर पर गये और जब भी वे गये उन्होंने स्थानीय किसानों को टैक्नीकल जानकारी दी।

स. मोहिंदर सिंह गरेवाल एक बढ़िया लेखक भी हैं और उन्होंने खेतीबाड़ी की सफलता की कुंजी, तेरे बगैर ज़िंदगी कविताएं, रंग ज़िंदगी के स्वै जीवनी, ज़िंदगी एक दरिया और सक्सेसफुल साइंटिफिक फार्मिंग आदि शीर्षक के अधीन पांच किताबें लिखीं। उनके लेखन विदेशी अखबारों, नैशनल डेली, राज्य स्तरीय अखबार, खेतीबाड़ी मैगनीज़ और रोटरी मैगनीज़ आदि में छप चुकी हैं। उन्होंने मुफ्त आंखों का चैकअप कैंप, रोड सेफ्टी, खून दान कैंप, वृक्ष लगाओ, फील्ड डेज़ और मिट्टी टैस्ट जैसे प्रोजैक्टों का हिस्सा बनकर उन्होंने समाज सेवा में भी अपना हिस्सा डाला।

खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मोहिंदर सिंह गरेवाल जी ने बहुत सफलता हासिल की और खेती के लिए ऊंचे मियार बनाये। उनकी प्राप्तियां अन्य किसानों के लिए जानकारी और प्रेरणा का स्त्रोत हैं।