एक ऐसे किसान जिन्होंने कम आयु में ही ऊँची मंज़िलों पर जीत हासिल की
प्रकृति के अनुसार जीना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। आज हम जो कुछ भी कर रहे हैं, खा रहे हैं या पी रहे हैं वह सभी प्रकृति की देन है। इसको ऐसे ही बनाई रखना हमारे ही ऊपर निर्भर करता है। यदि प्रकृति के अनुसार चलते है तो कभी भी बीमार नहीं होंगें।
ऐसी ही मिसाल है एक किसान परमजीत सिंह, जो लुधियाना के नज़दीक के गाँव कटहारी में रहते हैं, जो प्रकृति की तरफ से मिले उपहार को संभाल कर रख रहे हैं और बाखूबी निभा भी रहे हैं। “कहते हैं कि प्रकृति के साथ प्यार होना हर किसी के लिए संभव नहीं है, यदि प्रकृति आपको कुछ प्रदान कर रही है तो उसको वैसे ही प्रयोग करें जैसे प्रकृति चाहती है।
प्रकृति के साथ उनका इतना स्नेह बढ़ गया कि उन्होंने नौकरी छोड़कर प्रकृति की तरफ से मिली दात को समझा और उसका सही तरीके से इस्तेमाल करते हुए, बहुत से लोगों का बी.पी, शूगर आदि जैसी बहुत सी बीमारियों को दूर किया।
जब मनुष्य का मन एक काम करके खुश नहीं होता तो मनुष्य अपने काम को हास्यपूर्ण या फिर मनोरंजन तरीके के साथ करना शुरू कर देता है, ताकि उसको ख़ुशी हासिल हो। इस बात को ध्यान में रखते हुए परमजीत सिंह ने बहुत से कोर्स करने के बाद देसी बीजों का काम करना शुरू किया। देसी बीज जैसे रागी, कंगनी का काम करने से उनकी जिंदगी में इतने बदलाव आए कि आज वह सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।
जब में मिलट रिसर्च सेंटर में काम कर रहा था तो मुझे वहां रागी, कंगनी के देसी बीजों के बारे में पता चला और मैंने इनके ऊपर रिसर्च करनी शुरू कर दी -परमजीत सिंह
पारंभिक जानकारी मिलने के बाद, उन्होंने तजुर्बे के तौर पर सबसे पहले खेतों में रागी, कंगनी के बीज लगाए थे। यह काम उनके दिल को इतना छुआ कि उन्होंने देसी बीजों की तरफ ही अपना ध्यान केंद्रित किया। फिर देसी बीजों के काम के ज़रिये वह अपना रोज़गार बढ़ाने लगे और अपने स्तर पर काम करना शुरू कर दिया।
जैसे-जैसे काम बढ़ता गया, हमने मेलों में जाना शुरू कर दिया, जिसके कारण हमें अधिक लोग जानने लगे -परमजीत सिंह
इस काम में उनका साथ उनके मित्र दे रहे हैं जो एक ग्रुप बनाकर काम करते हैं और मार्केटिंग करने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं। उनके गाँव की तरफ एक रोड आते राड़ा साहिब गुरुद्वारे के पास उनकी 3 एकड़ ज़मीन है, जहां वह साथ-साथ सब्जियों की पनीरी की तरफ भी हाथ बढ़ा रहे हैं। वहां ही उनका पन्नू नेचुरल फार्म नाम का एक फार्म भी है, जहां किसान उनके पास देसी बीज के साथ-साथ सब्जियों की पनीरी भी लेकर जाते हैं।
उनके सामने सबसे बड़ी मुश्किल तब पैदा हुई जब उनको देसी बीज और जैविक खेती के बारे में लोगों को समझाना पड़ता था, उनमें कुछ लोग ऐसे होते थे जो गांव वाले थे, वह कहते थे कि “तुम आए हो हमें समझाने, हम इतने सालों से खेती कर रहे हैं क्या हमको पता नहीं”। इतनी फटकार और मुश्किलों के बावजूद भी वह पीछे नहीं हुए बल्कि अपने काम को आगे बढ़ाते गए और मार्कीटिंग करते रहे।
जब उन्होंने काम शुरू किया था तब वे बीज पंजाब के बाहर से लेकर आए थे। जिसमे वह रागी का एक पौधा लेकर आए थे और आज वही पौधा एकड़ के हिसाब से लगा हुआ है. वे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद गए थे और ट्रेनिंग लेने के बाद वापिस पंजाब आकर बीजों पर काम करना शुरू कर दिया। बीजो पर रिसर्च करने के बाद फिर उन्होंने नए बीज तैयार किये और उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। वह उत्पाद बनाने से लेकर पैकिंग तक का पूरा काम स्वंय ही देखते हैं। जहां वह उत्पाद बनाने का पूरा काम करते हैं वहां ही उनके एक मित्र ने अपनी मशीन लगाई हुई है। उन्होंने अपने डिज़ाइन भी तैयार किए हुए है।
हमने जब उप्ताद बनाने शुरू किए तो सभी ने मिलकर एक ग्रुप बना लिया और ATMA के ज़रिये उसको रजिस्टर करवा लिया -परमजीत सिंह
फिर जब उन्होंने उत्पाद बनाने शुरू किए, जिसमें ग्राहकों की मांग के अनुसार सबसे ज्यादा बिकने वाले उत्पाद जैसे बाजरे के बिस्कुट, बाजरे का दलिया और बाजरे का आटा आदि बनाए जाने लगे।
उनकी तरफ से बनाये जाने वाले उत्पाद-
- बाजरे का आटा
- बाजरे के बिस्कुट
- बाजरे का दलिया
- रागी के बिस्कुट
- हरी कंगनी के बिस्कुट
- चुकंदर का पाउडर
- देसी शक़्कर
- देसी गुड़
- सुहांजना का पाउडर
- देसी गेहूं की सेवइयां आदि।
जहां वह आज देसी बीजों के बनाये उत्पाद बेचने और खेतों में बीज से लेकर फसल तक की देखभाल स्वंय ही कर रहे हैं क्योंकि वह कहते हैं “अपने हाथ से किए हुए काम से जितना सुकून मिलता है वह अन्य किसी पर निर्भर होकर नहीं मिलता”। यदि वह चाहते तो घर बैठकर इसकी मार्केटिंग कर सकते हैं, बेशक उनकी आमदन भी बहुत हो जाती है पर वह स्वंय हाथ से काम करके सुकून से जिंदगी बिताने में विश्वास रखते हैं।
परमजीत सिंह जी आज सबके लिए एक ऐसे व्यक्तित्व बन चुके हैं, आज कल लोग उनके पास देसी बीज के बारे में पूरी जानकारी लेने आते हैं और वह लोगों को देसी बीज के साथ-साथ जैविक खेती की तरफ भी ज़ोर दे रहे हैं। आज वह ऐसे मुकाम पर पहुँच चुके हैं जहां पर लोग उनको उनके नाम से नहीं बल्कि काम से जानते हैं।
परमजीत सिंह जी के काम और मेहनत के फलस्वरूप उनको यूनिवर्सिटी की तरफ से यंग फार्मर, बढ़िया सिखलाई देने के तौर पर, ज़िला स्तर पुरस्कार और अन्य यूनिवर्सिटी की तरफ से कई पुरस्कार से निवाजा गया है। उनको बहुत सी प्रदर्शनियों में हिस्सा लेने के अवसर मिलते रहते हैं और जिनमें से सबसे प्रचलित, दक्षिण भारत में सन्मानित किया गया, क्योंकि पूरे पंजाब में परमजीत सिंह जी ने ही देसी बीजों पर ही काम करना शुरू किया और देसी बीजों की जानकारी दुनिया के सामने लेकर आए।
मैंने कभी भी रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया, केवल कुदरती खाद जो अपने आप फसल को धरती में से मिल जाती है, वह सोने पर सुहागा का काम करती है -परमजीत सिंह
उनकी इस कड़ी मेहनत ने यह साबित किया है कि प्रकृति की तरफ से मिली चीज़ को कभी व्यर्थ न जाने दें, बल्कि उस को संभालकर रखें। यदि आप बिना दवाई वाला खाना खाते है तो कभी दवा खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि प्रकृति बिना किसी मूल्य के प्रदान करती है। जो भी लोग उनसे सामान लेकर जाते हैं या फिर वह उनके द्वारा बनाये गए सामान को दवा के रूप में खाते हैं तो कई लोगों की बी पी, शुगर जैसी बीमारियों से छुटकारा मिल चुका है।
भविष्य की योजना
परमजीत सिंह जी भविष्य में अपने रोज़गार को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं और उत्पाद तैयार करने वाली प्रोसेसिंग मशीनरी लगाना चाहते हैं। जितना हो सके वह लोगों को जैविक खेती के बारे जागरूक करवाना चाहते हैं। ताकि प्रकृति के साथ रिश्ता भी जुड़ जाए और सेहत की तरफ से भी तंदरुस्त हो।
संदेश
खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए हमें जैविक खेती की तरफ ध्यान देने की जरूरत है, पर उन्हें जैविक खेती की शुरुआत छोटे स्तर से करनी चाहिए। आज कल के नौजवानों को जैविक खेती के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि रासायनिक मुक्त खेती करके मनुष्य की सेहत के साथ होने वाले नुक्सान से बचाव किया जा सके।