नवदीप बल्ली और गुरशरन सिंह

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 मालवा क्षेत्र के दो युवा किसान कृषि को फूड प्रोसेसिंग के साथ जोड़कर कमा रहे दोगुना लाभ

भोजन जीवन की मूल आवश्यकता है, लेकिन क्या होगा जब आपका भोजन उत्पादन के दौरान बहुत ही बुनियादी स्तर पर मिलावटी और दूषित हो जाये!

आज, भारत में भोजन में मिलावट एक प्रमुख मुद्दा है,जब गुणवत्ता की बात आती है तो उत्पादक/निर्माता अंधे हो जाते हैं और वे केवल मात्रा पर ध्यान केंद्रित करते हैं,जो ना केवल भोजन के स्वाद और पोषण को प्रभावित करता है बल्कि उपभोक्ता के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। लेकिन पंजाब के मालवा क्षेत्र के ऐसे दो युवा किसानों ने, समाज को केवल शुद्ध भोजन प्रदान करना अपना लक्ष्य बना लिया।

यह नवदीप बल्ली और गुरशरण सिंह की कहानी है जिन्होंने अपने अनूठे उत्पादन कच्ची हल्दी के आचार के साथ बाजार में प्रवेश किया और थोड़े समय में ही लोकप्रिय हो गए। एक अच्छी शिक्षित पृष्ठभूमि से आते हुए इन दो युवा पुरूषों ने समाज के लिए क्या, अच्छा प्रदान करने का फैसला किया। यह सब तब शुरू हुआ जब उन्होंने कच्ची हल्दी के कई लाभ और घरेलू नुस्खों की खोज की जो खराब कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, त्वचा की बीमारियों, एलर्जी और घावों को ठीक करने में मदद करते हैं, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी और कई अन्य बीमारियों को रोकने में मदद करते हैं।

शुरू से ही दोनों दोस्तों ने कुछ अलग करने का फैसला किया था, इसलिए उन्होंने हल्दी की खेती शुरू की और 80-90 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने अपनी फसल को स्वंय प्रोसेस करने और उसे कच्ची हल्दी के आचार के रूप में मार्किट में बेचने का फैसला किया।पहला स्थान जहां उनके उत्पाद को लोगों के बीच प्रसिद्धी मिली वह था बठिंडा की रविवार वाली मंडी और अब उन्होंने शहर के कई स्थानों पर इसे बेचना शुरू कर दिया है।

फूड प्रोसेसिंग व्यवसाय में प्रवेश करने से पहले नवदीप और गुरशरण ने जिले के वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ डॉ. परमेश्वर सिंह से खेती पर परामर्श लिया। आज, स्वंय डॉक्टर भी स्वयं पर गर्व महसूस करते हैं, कि उनकी सलाह का पालन करके ये युवा खाद्य प्रसंस्करण मार्किट में अच्छा कर रहे हैं और रसोई में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किए जाने वाले अधिक बुनियादी शुद्ध संसाधित खाद्य उत्पादों को बना रहे हैं।

कच्ची हल्दी के आचार की सफलता के बाद, नवदीप और गुरशरण को रामपुर में स्थापित प्रोसेसिंग प्लांट मिला और वर्तमान में उनकी उत्पाद सूची में 10 से अधिक वस्तुएं हैं, जिनमें कच्ची हल्दी, कच्ची हल्दी का आचार, हल्दी पाउडर, मिर्च पाउडर, सब्जी मसाला, धनिया पाउडर, लस्सी, दहीं, चाट मसाला, लहसुन का आचार, जीरा, बेसन, चाय का मसाला आदि।

ये दोनों ना केवल फूड प्रोसेसिंग को एक लाभदायक उद्यम बना रहे हैं। बल्कि अन्य किसानों को बेहतर राजस्व हासिल करने के लिए खेती के साथ फूड प्रोसेसिंग को अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।

भविष्य की योजनाएं: वे भविष्य में अपने उत्पादों को पोषक समृद्ध बनाने के लिए फसल विविधीकरण को अपनाने और अधिक किफायती खेती करने की योजना बना रहे हैं। अपने संसाधित उत्पादों को आगे के क्षेत्रों में बेचने और लोगों को मिलावटी भोजन और स्वास्थय की महत्तव के बारे में जागरूक करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
यदि किसान कृषि से बेहतर लाभ चाहते हैं तो उन्हें खेती के साथ फूड प्रोसेसिंग का कार्य शुरू करना चाहिए।

इंदर सिंह सिद्धू

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पंजाब में स्थित एक फार्म की सफलता की कहानी जो हरी क्रांति के प्रभाव से अछूता रह गया

एक किसान, जिसका पूरा जीवन चक्र फसल की पैदावार पर ही निर्भर करता है, उसके लिए एक बार भी फसल की पैदावार में हानि का सामना करना तबाही वाली स्थिति हो सकती है। इस स्थिति से निकलने के लिए हर किसान ने अपनी क्षमता के अनुसार बचाव के उपाय किए हैं, ताकि नुकसान से बचा जा सके। और इसी तरह ही कृषि क्षेत्र अधिक पैदावार लेने की दौड़ में हरी क्रांति को अपनाकर नवीनीकरण की तरफ आगे बढ़ा। पर पंजाब में स्थित एक फार्म ऐसा है जो हरी क्रांति के प्रभाव से बिल्कुल ही अछूता रह गया।

यह एक व्यक्ति — इंदर सिंह सिद्धू की कहानी है जिनकी उम्र 89 वर्ष है और उनका परिवार – बंगला नैचुरल फूड फार्म चला रहा है। यह कहानी तब शुरू हुई जब हरी क्रांति भारत में आई। यह उस समय की बात है जब कीटनाशकों और खादों के रूप में किसानों के हाथों में हानिकारक रसायन पकड़ा दिए गए। इंदर सिंह सिद्धू भी उन किसानों में से एक थे जिन्होंने कुछ असाधारण घटनाओं का सामना किया, जिस कारण उन्हें कीटनाशकों के प्रयोग से नफरत हो गई।

“गन्ने के खेत में कीड़े मारने के लिए एक स्प्रे की गई थी और उस समय किसानों को चेतावनी दी गई थी कि उस जगह से अपने पशुओं के लिए चारा इक्ट्ठा ना करें। इस किस्म की प्रक्रिया ज्वार के खेत में भी की गई और यह स्प्रे बहुत ज्यादा ज़हरीली थी, जिससे चूहे और अन्य कई छोटे कीट भी मर गए।”

इन दोनों घटनाओं को देखने के बाद, इंदर सिंह सिद्धू ने सोचा कि यदि ये स्प्रे पशुओं और कीटों के लिए हानिकारक है, तो ये हमें भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। स. सिद्धू ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए, वे इन ज़हरीली चीज़ों को अपने खेतों में नहीं आने देंगे और इस तरह उन्होंने पारम्परिक खेती के अभ्यासों, फार्म में तैयार खाद और वातावरण अनुकूल विधियों के प्रयोग से बंगला नैचुरल फूड फार्म को मौत देने वाली स्प्रे से बचाया।

खैर,इंदर सिंह सिद्धू अकले नहीं थे, उनके पुत्र हरजिंदर पाल सिंह सिद्धू और बहू — मधुमीत कौर दोनों उनकी मदद करते हैं। रसोई से लेकर बगीची तक और बगीची से खेत तक, मधुमीत कौर हर काम में दिलचस्पी लेती हैं और अपने पति और ससुर के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं ।

पहले, जब अंग्रेजों ने भारत पर हुकूमत की थी, उस समय फाज़िलका को बंगलोअ (बंगला) कहते थे, इस कारण मेरे ससुर जी ने फार्म का नाम बंगला नैचुरल फूड्स रखा। – मधुमीत कौर ने मुस्कुराते हुए कहा।

इंदर सिंह सिद्धू पारंपरिक खेती के अभ्यास में विश्वास रखते हैं पर वे कभी भी आधुनिक पर्यावरण अनुकूल खेती तकनीकें अपनाने से झिझके नहीं। वे अपने फार्म पर सभी आधुनिक मशीनरी को किराये पर लेकर प्रयोग करते हैं और खाद तैयार करने के लिए अपनी बहू की सिफारिश पर वे वेस्ट डीकंपोज़र का भी प्रयोग करते हैं। वे कीटनाशकों के स्थान पर खट्टी लस्सी, नीम और अन्य पदार्थों का प्रयोग करते हैं जो हानिकारक कीटों को फसलों से दूर रखते हैं।

वे मुख्य फसल जिसके लिए बंगला नैचुरल फूड फार्म को जाना जाता है, वह है गेहूं की सबसे पुरानी किस्म बंसी। बंसी गेहूं भारत की 2500 वर्ष पुरानी देसी किस्म है, जिसमें विटामिनों की अधिक मात्रा होती है और यह भोजन के लिए भी अच्छी मानी जाती है।

“जब हम कुदरती तौर पर उगाए जाने वाले और प्रोसेस किए बंसी के आटे को गूंधते हैं तो यह अगले दिन भी सफेद और ताजा दिखाई देता है, पर जब हम बाज़ार से खरीदा गेहूं का आटा देखें तो यह कुछ घंटों के बाद काला हो जाता है— मधुमीत कौर ने कहा।”

गेहूं के अलावा स. सिद्धू गन्ना, लहसुन, प्याज, हल्दी, दालें, मौसमी सब्जियां पैदा करते हैं और उन्होंने 7 एकड़ में मिश्रित फलों का बाग भी लगाया है। स. सिद्धू 89 वर्ष की उम्र में भी बिल्कुल तंदरूस्त हैं, वे कभी भी फार्म से छुट्टी नहीं करते और कुछ कर्मचारियों की मदद से फार्म के सभी कामों की निगरानी करते हैं। गांव के बहुत सारे लोग इंदर सिंह सिद्धू के प्रयत्नों की आलोचना करते थे और कहते थे “यह बुज़ुर्ग आदमी क्या कर रहा है…” पर अब बहुत सारे आलोचक ग्राहकों में बदल गए हैं। और बंगला नैचुरल फूड फार्म से सब्जियां और तैयार किए उत्पाद खरीदना पसंद करते हैं।

इंदर सिंह सिद्धू की बहू खेती करने के अलावा खेती उत्पादों जैसे सेवियां, दलियां, चावल से तैयाार सेवियां, अमरूद का जूस और लहसुन पाउडर आदि उत्पाद भी तैयार करती हैं। ज्यादातर तैयार किए उत्पाद और फसलें घरेलु उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती हैं या दोस्तों और रिश्तेदारों के बांट दी जाती हैं।

उनकी 50 एकड़ ज़मीन को 3 प्लाट में बांटा गया है, जिसमें से इंदर सिंह सिद्धू के पास 1 प्लाट है, जिसमें पिछले 30 वर्षों से कुदरती तौर पर खेती की जा रही है और 36 एकड़ ज़मीन अन्य किसानों को ठेके पर दी है। कुदरती खेती करने के लिए खेती विरासत मिशन की तरफ से उन्हें प्रमाण पत्र भी मिला है।

यह परिवार पारंपरिक और विरासती ढंग के जीवन को संभाल कर रखने में यकीन रखता है। वे भोजन पकाने के लिए मिट्टी के बर्तनों (मटकी, घड़ा आदि) का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा वे घर में दरियां, संदूक और मंजी आदि का ही प्रयोग करते हैं।

हर वर्ष उनके फार्म पर बहुत लोग घूमने और देखने के लिए आते हैं, जिनमें कृषि छात्र, विदेशी आविष्कारी और कुछ वे लोग होते हैं जो विरासत और कृषि जीवन को कुछ दिनों के लिए जीना चाहते हैं।

भविष्य की योजना
फसल और तैयार किए उत्पाद बेचने के लिए वे अपने फार्म पर कुछ अन्य किसानों के साथ मिलकर एक छोटा सी दुकान खोलने की योजना बना रहे हैं और अपने फार्म को एक पर्यटक स्थान में बदलना चाहते हैं।
संदेश

“जैसे कि हम जानते हैं कि यदि कीटों के लिए रसायन जानलेवा हैं तो ये कुदरत के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं, इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम ऐसी चीज़ों का प्रयोग करने से बचें जो भविष्य में नुकसान दे सकती हैं। इसके अलावा, ज्यादातर कीड़े — मकौड़े हमारे लिए सहायक होते हैं और उन्हें कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से मारना फसलों के साथ साथ वातावरण के लिए भी बुरा सिद्ध होता है। किसान को मित्र कीटों और दुश्मन कीटों की जानकारी होनी चाहिए और सबसे महत्तवपूर्ण बात यह है कि यदि आप अपने काम से संतुष्ट हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं।”

 

खैर, अच्छी सेहत और जीवन ढंग दिखाता है कि सख्त मेहनत और कुदरती खेती के प्रति समर्पण ने इंदर सिंह सिद्धू जी को अच्छा मुनाफा दिया है और उनकी शख्सियत और खेती के अभ्यासों ने उन्हें नज़दीक के इलाकों में पहले से ही प्रसिद्ध कर दिया है।

किसान को लोगों की आलोचनाओं से प्रभावित नहीं होनी चाहिए और वही करना चाहिए जो कुदरती खेती के लिए अच्छा है और आज हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है। इंदर सिंह सिद्धू और उन जैसे प्रगतिशील किसानों को हमारा सलाम है।