इंदर सिंह सिद्धू

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पंजाब में स्थित एक फार्म की सफलता की कहानी जो हरी क्रांति के प्रभाव से अछूता रह गया

एक किसान, जिसका पूरा जीवन चक्र फसल की पैदावार पर ही निर्भर करता है, उसके लिए एक बार भी फसल की पैदावार में हानि का सामना करना तबाही वाली स्थिति हो सकती है। इस स्थिति से निकलने के लिए हर किसान ने अपनी क्षमता के अनुसार बचाव के उपाय किए हैं, ताकि नुकसान से बचा जा सके। और इसी तरह ही कृषि क्षेत्र अधिक पैदावार लेने की दौड़ में हरी क्रांति को अपनाकर नवीनीकरण की तरफ आगे बढ़ा। पर पंजाब में स्थित एक फार्म ऐसा है जो हरी क्रांति के प्रभाव से बिल्कुल ही अछूता रह गया।

यह एक व्यक्ति — इंदर सिंह सिद्धू की कहानी है जिनकी उम्र 89 वर्ष है और उनका परिवार – बंगला नैचुरल फूड फार्म चला रहा है। यह कहानी तब शुरू हुई जब हरी क्रांति भारत में आई। यह उस समय की बात है जब कीटनाशकों और खादों के रूप में किसानों के हाथों में हानिकारक रसायन पकड़ा दिए गए। इंदर सिंह सिद्धू भी उन किसानों में से एक थे जिन्होंने कुछ असाधारण घटनाओं का सामना किया, जिस कारण उन्हें कीटनाशकों के प्रयोग से नफरत हो गई।

“गन्ने के खेत में कीड़े मारने के लिए एक स्प्रे की गई थी और उस समय किसानों को चेतावनी दी गई थी कि उस जगह से अपने पशुओं के लिए चारा इक्ट्ठा ना करें। इस किस्म की प्रक्रिया ज्वार के खेत में भी की गई और यह स्प्रे बहुत ज्यादा ज़हरीली थी, जिससे चूहे और अन्य कई छोटे कीट भी मर गए।”

इन दोनों घटनाओं को देखने के बाद, इंदर सिंह सिद्धू ने सोचा कि यदि ये स्प्रे पशुओं और कीटों के लिए हानिकारक है, तो ये हमें भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। स. सिद्धू ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए, वे इन ज़हरीली चीज़ों को अपने खेतों में नहीं आने देंगे और इस तरह उन्होंने पारम्परिक खेती के अभ्यासों, फार्म में तैयार खाद और वातावरण अनुकूल विधियों के प्रयोग से बंगला नैचुरल फूड फार्म को मौत देने वाली स्प्रे से बचाया।

खैर,इंदर सिंह सिद्धू अकले नहीं थे, उनके पुत्र हरजिंदर पाल सिंह सिद्धू और बहू — मधुमीत कौर दोनों उनकी मदद करते हैं। रसोई से लेकर बगीची तक और बगीची से खेत तक, मधुमीत कौर हर काम में दिलचस्पी लेती हैं और अपने पति और ससुर के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं ।

पहले, जब अंग्रेजों ने भारत पर हुकूमत की थी, उस समय फाज़िलका को बंगलोअ (बंगला) कहते थे, इस कारण मेरे ससुर जी ने फार्म का नाम बंगला नैचुरल फूड्स रखा। – मधुमीत कौर ने मुस्कुराते हुए कहा।

इंदर सिंह सिद्धू पारंपरिक खेती के अभ्यास में विश्वास रखते हैं पर वे कभी भी आधुनिक पर्यावरण अनुकूल खेती तकनीकें अपनाने से झिझके नहीं। वे अपने फार्म पर सभी आधुनिक मशीनरी को किराये पर लेकर प्रयोग करते हैं और खाद तैयार करने के लिए अपनी बहू की सिफारिश पर वे वेस्ट डीकंपोज़र का भी प्रयोग करते हैं। वे कीटनाशकों के स्थान पर खट्टी लस्सी, नीम और अन्य पदार्थों का प्रयोग करते हैं जो हानिकारक कीटों को फसलों से दूर रखते हैं।

वे मुख्य फसल जिसके लिए बंगला नैचुरल फूड फार्म को जाना जाता है, वह है गेहूं की सबसे पुरानी किस्म बंसी। बंसी गेहूं भारत की 2500 वर्ष पुरानी देसी किस्म है, जिसमें विटामिनों की अधिक मात्रा होती है और यह भोजन के लिए भी अच्छी मानी जाती है।

“जब हम कुदरती तौर पर उगाए जाने वाले और प्रोसेस किए बंसी के आटे को गूंधते हैं तो यह अगले दिन भी सफेद और ताजा दिखाई देता है, पर जब हम बाज़ार से खरीदा गेहूं का आटा देखें तो यह कुछ घंटों के बाद काला हो जाता है— मधुमीत कौर ने कहा।”

गेहूं के अलावा स. सिद्धू गन्ना, लहसुन, प्याज, हल्दी, दालें, मौसमी सब्जियां पैदा करते हैं और उन्होंने 7 एकड़ में मिश्रित फलों का बाग भी लगाया है। स. सिद्धू 89 वर्ष की उम्र में भी बिल्कुल तंदरूस्त हैं, वे कभी भी फार्म से छुट्टी नहीं करते और कुछ कर्मचारियों की मदद से फार्म के सभी कामों की निगरानी करते हैं। गांव के बहुत सारे लोग इंदर सिंह सिद्धू के प्रयत्नों की आलोचना करते थे और कहते थे “यह बुज़ुर्ग आदमी क्या कर रहा है…” पर अब बहुत सारे आलोचक ग्राहकों में बदल गए हैं। और बंगला नैचुरल फूड फार्म से सब्जियां और तैयार किए उत्पाद खरीदना पसंद करते हैं।

इंदर सिंह सिद्धू की बहू खेती करने के अलावा खेती उत्पादों जैसे सेवियां, दलियां, चावल से तैयाार सेवियां, अमरूद का जूस और लहसुन पाउडर आदि उत्पाद भी तैयार करती हैं। ज्यादातर तैयार किए उत्पाद और फसलें घरेलु उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती हैं या दोस्तों और रिश्तेदारों के बांट दी जाती हैं।

उनकी 50 एकड़ ज़मीन को 3 प्लाट में बांटा गया है, जिसमें से इंदर सिंह सिद्धू के पास 1 प्लाट है, जिसमें पिछले 30 वर्षों से कुदरती तौर पर खेती की जा रही है और 36 एकड़ ज़मीन अन्य किसानों को ठेके पर दी है। कुदरती खेती करने के लिए खेती विरासत मिशन की तरफ से उन्हें प्रमाण पत्र भी मिला है।

यह परिवार पारंपरिक और विरासती ढंग के जीवन को संभाल कर रखने में यकीन रखता है। वे भोजन पकाने के लिए मिट्टी के बर्तनों (मटकी, घड़ा आदि) का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा वे घर में दरियां, संदूक और मंजी आदि का ही प्रयोग करते हैं।

हर वर्ष उनके फार्म पर बहुत लोग घूमने और देखने के लिए आते हैं, जिनमें कृषि छात्र, विदेशी आविष्कारी और कुछ वे लोग होते हैं जो विरासत और कृषि जीवन को कुछ दिनों के लिए जीना चाहते हैं।

भविष्य की योजना
फसल और तैयार किए उत्पाद बेचने के लिए वे अपने फार्म पर कुछ अन्य किसानों के साथ मिलकर एक छोटा सी दुकान खोलने की योजना बना रहे हैं और अपने फार्म को एक पर्यटक स्थान में बदलना चाहते हैं।
संदेश

“जैसे कि हम जानते हैं कि यदि कीटों के लिए रसायन जानलेवा हैं तो ये कुदरत के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं, इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम ऐसी चीज़ों का प्रयोग करने से बचें जो भविष्य में नुकसान दे सकती हैं। इसके अलावा, ज्यादातर कीड़े — मकौड़े हमारे लिए सहायक होते हैं और उन्हें कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से मारना फसलों के साथ साथ वातावरण के लिए भी बुरा सिद्ध होता है। किसान को मित्र कीटों और दुश्मन कीटों की जानकारी होनी चाहिए और सबसे महत्तवपूर्ण बात यह है कि यदि आप अपने काम से संतुष्ट हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं।”

 

खैर, अच्छी सेहत और जीवन ढंग दिखाता है कि सख्त मेहनत और कुदरती खेती के प्रति समर्पण ने इंदर सिंह सिद्धू जी को अच्छा मुनाफा दिया है और उनकी शख्सियत और खेती के अभ्यासों ने उन्हें नज़दीक के इलाकों में पहले से ही प्रसिद्ध कर दिया है।

किसान को लोगों की आलोचनाओं से प्रभावित नहीं होनी चाहिए और वही करना चाहिए जो कुदरती खेती के लिए अच्छा है और आज हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है। इंदर सिंह सिद्धू और उन जैसे प्रगतिशील किसानों को हमारा सलाम है।

अंकुर सिंह और अंकिता सिंह

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सिम्बॉयसिस से ग्रेजुएटड इस पति-पत्नी की जोड़ी ने पशु पालन के लिए उनकी एक नई अवधारणा के साथ एग्रीबिज़नेस की नई परिभाषा दी

भारत की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से एग्रीबिज़नेस में एम बी ए करने के बाद आप कौन से जीवन की कल्पना करते हैं। शायद एक कृषि विश्लेषक, खेत मूल्यांकक, बाजार विश्लेषक, गुणवत्ता नियंत्रक या एग्रीबिजनेस मार्केटिंग कोऑर्डिनेटर की।

खैर, एम.बी.ए (MBA) कृषि स्नातकों के लिए ये जॉब प्रोफाइल सपने सच होने जैसा है, और यदि आपने एम.बी.ए (MBA) किसी सम्मानित यूनिवर्सिटी से की है तो ये तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी। लेकिन बहुत कम लोग होते हें जो एक मल्टीनेशनल संगठन का हिस्सा बनने की बजाय, एक शुरूआती उद्यमी के रूप में उभरना पसंद करते हैं जो उनके कौशल और पर्याप्तता को सही अर्थ देता है।

अरबन डेयरी- कच्चे रूप में दूध बेचने के अपने विशिष्ट विचार के साथ पशु पालन की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने के लिए एक उद्देश्य के साथ इस प्रतिभाशाली जोड़ी- अंकुर और अंकिता की यह एक पहल है। यह फार्म कानपुर शहर से 55 किलोमीटर की दूरी पर उन्नाव जिले में स्थित है।

इस दूध उद्यम को शुरू करने से पहले, अंकुर विभिन्न कंपनियों में एक बायो टैक्नोलोजिस्ट और कृषक के रूप में काम कर रहे थे (कुल काम का अनुभव 2 वर्ष) और 2014 में अंकुर अपनी दोस्त अंकिता के साथ शादी के बंधन में बंधे, उन्होंने उनके साथ पुणे से एम.बी.ए (MBA) की थी।

खैर, कच्चा दूध बेचने का यह विचार सिद्ध हुआ, अंकुर के भतीजे के भारत आने पर। क्योंकि वह पहली बार भारत आया था तो अंकुर ने उसके इस अनुभव को कुछ खास बनाने का फैसला किया।

अंकुन ने विशेष रूप से गाय की स्वदेशी नसल -साहिवाल खरीदी और उसे दूध लेने के उद्देश्य से पालना शुरू किया, हालांकि यह उद्देश्य सिर्फ उसके भतीजे के लिए ही था लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास हुआ कि गाय का दूध, पैक किए दूध से ज्यादा स्वस्थ और स्वादिष्ट है। धीरे-धीरे पूरे परिवार को गाय का दूध पसंद आने लगा और सबने उसे पीना शुरू कर दिया।

अंकुर को बचपन से ही पशुओं का शौंक था लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने सोचा कि स्वास्थ्य के साथ क्यों समझौता करना, और 2015 में दोनों पति – पत्नी (अंकुर और अंकिता) ने पशु पालन शुरू करने का फैसला किया। अंकुर ने पशु पालन शुरू करने से पहले NDRI करनाल से छोटी सी ट्रेनिंग ली और इस बीच उनकी पत्नी अंकिता ने खेत के सभी निर्माण कार्यों की देख-रेख की। उन्होंने 6 होलस्टिन से प्रजनित गायों से शुरूआत की और अब 3 वर्ष बाद उनके पास उनके गोशाला में 34 होलस्टीन/जर्सी प्रजनित गायें और 7 स्वदेशी गायें (साहिवाल, रेड सिंधी, थारपारकर) हैं।

अरबन डेयरी वह नाम था जिसे उन्होंने अपने ब्रांड का नाम रखने के बारे में सोचा, जो कि ग्रामीण विषय को शहरी विषय में सम्मिलित करता है, दो ऐसे क्षेत्रों को जोड़ता है जो कि एक दूसरे से बिल्कुल ही विपरीत हैं।

उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए डेयरी फार्म के प्रबंधन से लेकर उत्पाद की मार्किटिंग और उसका विकास करने के लिए एक भी कदम नहीं छोड़ा । पूरे खेत का निर्माण 4 एकड़ में किया गया है और उसके रख-रखाव के लिए 7 कर्मचारी हैं। पशुओं को नहलाना, भोजन करवाना, गायों की स्वच्छता बनाए रखना और अन्य फार्म से संबंधित कार्य कर्मचारियों द्वारा हाथों से किए जाते हैं और गाय की सुविधा देखकर दूध, मशीन और हाथों से निकाला जाता है। अंकुर और अंकिता दोनों ही बिना एक दिन छोड़े दिन में एक बार फार्म जाते ही हैं। वे अपने खेत में अधिकतर समय बिताना पसंद ही नहीं करते बल्कि कर्मचारियों को अपने काम को अच्छे ढंग से करने में मदद भी करते हैं।

“अंकुर: हम गाय की फीड खुद तैयार करते हैं क्योंकि दूध की उपज और गाय का स्वास्थ्य पूरी तरह से फीड पर ही निर्भर करता है और हम इस पर कभी भी समझौता नहीं करते। गाय की फीड का फॉर्मूला जो हम अपनाते हैं वह है – 33% प्रोटीन, 33% औद्योगिक व्यर्थ पदार्थ (चोकर), 33% अनाज (मक्की, चने) और अतिरिक्त खनिज पदार्थ।

पशु पालन के अलावा वे सब्जियों की जैविक खेती में भी सक्रिय रूप से शामिल हैं। उन्होंने अतिरिक्त 4 एकड़ की भूमि किराये पर ली है। इससे पहले अंकिता ने उस भूमि का प्रयोग एक घरेलु बगीची के रूप में किया था। उन्होंने गाय के गोबर के अलावा उस भूमि पर किसी भी खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया। अब वह भूमि पूरी तरह से जैविक बन गई है। जिसका इस्तेमाल गेहूं, चना, गाजर, लहसुन, मिर्च, धनिया और अन्य मौसमी सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है। वे कृषि फसलों का प्रयोग गाय के चारे और घर के उद्देश्य के लिए करते हैं।

शुरूआत में, मेरी HF प्रजनित गाय 12 लीटर दूध देती थी, दूसरे ब्यांत के बाद उसने 18 लीटर दूध देना शुरू किया और अब वह तीसरे ब्यांत पर हैं और हम 24 लीटर दूध की उम्मीद कर रहे हैं। दूध उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी की संभावना है।

मार्किटिंग:

दूध को एक बड़े दूध के कंटेनर में भरने और एक पुराने दूध मापने वाले यंत्र की बजाय वे अपने उत्पादन की छवि को बढ़ाने के लिए एक नई अवधारणा के साथ आए। वे कच्चे दूध को छानने के बाद सीधा कांच की बोतलों में भरते हैं और फिर सीधे ग्राहकों तक पहुंचाते हैं।

लोगों ने खुली बाहों से उनके उत्पाद को स्वीकार किया है आज तक अर्थात् 3 साल उन्होंने अपने उत्पादों की बिक्री के लिए कोई योजना नहीं बनाई और ना ही लोगों को उत्पाद का प्रयोग करने के लिए कोई विज्ञापन दिया। जितना भी उन्होंने अब तक ग्राहक जोड़ा है। वह सब अन्य लोगों द्वारा उनके मौजूदा ग्राहकों से उनके उत्पाद की प्रशंसा सुनकर प्रभावित हुए हैं। इस प्रतिक्रिया ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि उन्होंने पनीर, घी और अन्य दूध आधारित डेयरी उत्पादों का उत्पादन शुरू कर दिया है। ग्राहकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उनकी बिक्री में वृद्धि हुई है।

दूध की बिक्री के लिए उनके शहर में उनका अपना वितरण नेटवर्क है और उनकी उन्नति देखकर यह समय के साथ और ज्यादा बढ़ जायेगा।

भविष्य की योजनाएं:

स्वदेशी गाय की नस्ल की दूध उत्पादन क्षमता इतनी अधिक नहीं होती और वे प्रजनित स्वदेशी गायों द्वारा गाय की एक नई नसल को विकसित करना चाहते हैं जिसकी दूध उत्पादन की क्षमता ज्यादा हो क्योंकि स्वदेशी नसल के गाय की दूध की गुणवत्ता ज्यादा बेहतर होती है और मुनष्यों के लिए इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी साबित हुए हैं।

उनके अनुसार, स्वस्थ हालातों में दूध को एक हफ्ते के लिए 2 डिगरी सेंटीग्रेड पर रखा जा सकता है और इस प्रयोजन के लिए वे आने वाले समय में दूध को लंबे समय तक स्टोर करने के लिए एक चिल्लर स्टोरेज में निवेश करना चाहते हैं ताकि वे दूध को बहु प्रयोजन के लिए प्रयोग कर सकें।

संदेश:
“पशु पालकों को उनकी गायों की स्वच्छता और देखभाल को अनदेखा नहीं करना चाहिए, उन्हें उनका वैसा ही ध्यान रखना चाहिए जैसा कि वे अपने स्वास्थ्य का रखते हैं और पशु पालन शुरू करने से पहले हर किसान को ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और बेहतर भविष्य के लिए मौजूदा पशु पालन पद्धतियों से खुद को अपडेट रखना चाहिए। पशु पालन केवल तभी लाभदायक हो सकता है जब आपके फार्म के पशु खुश हों। आपके उत्पाद का बिक्री मुल्य आपको मुनाफा कमाने से नहीं मिलेगा लेकिन एक खुश पशु आपको अच्छा मुनाफा कमाने में मदद कर सकता है।”

खुशदीप सिंह बैंस

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कैसे एक 26 वर्षीय नौजवान लड़के ने सब्जी की खेती करके अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी को हासिल किया

भारत के पास दूसरी सबसे बड़ी कृषि भूमि है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव बहुत बड़ा है। लेकिन फिर भी आज अगर हम युवाओं से उनकी भविष्य की योजना के बारे में पूछेंगे तो बहुत कम युवा होंगे जो खेतीबाड़ी या एग्रीबिज़नेस कहेंगे।

हरनामपुरा, लुधियाना के 26 वर्षीय युवा- खुशदीप सिंह बैंस, जिसने दो विभिन्न कंपनियों में दो वर्ष काम करने के बाद खेती करने का फैसला किया और आज वह 28 एकड़ की भूमि पर सिर्फ सब्जियों की खेती कर रहा है।

खैर, खुशदीप ने क्यों अपनी अच्छी कमाई वाली और आरामदायक जॉब छोड़ दी और खेतीबाड़ी शुरू की। यह एग्रीकल्चर की तरफ खुशदीप की दिलचस्पी थी।

खुशदीप सिंह बैंस उस परिवार की पृष्ठभूमि से आते हैं जहां उनके पिता सुखविंदर सिंह मुख्यत: रियल एसटेट का काम करते थे और घर के लिए छोटे स्तर पर गेहूं और धान की खेती करते थे। खुशदीप के पिता हमेशा चाहते थे कि उनका पुत्र एक आरामदायक जॉब करे, जहां उसे काम करने के लिए एक कुर्सी और मेज दी जाए। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उनका पुत्र धूप और मिट्टी में काम करेगा। लेकिन जब खुशदीप ने अपनी जॉब छोड़ी और खेतीबाड़ी शुरू की उस समय उनके पिता उनके फैसले के बिल्कुल विरूद्ध थे  क्योंकि उनके विचार से खेतीबाड़ी एक ऐसा व्यवसाय है जहां बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती है और यह वह काम नहीं है जो पढ़े लिखे और साक्षर लोगों को करना चाहिए।

लेकिन किसी भी नकारात्मक सोच को बदलने के लिए आपको सिर्फ एक शक्तिशाली सकारात्मक परिणाम की आवश्यकता होती है और यह वह परिणाम था जिसे खुशदीप अपने साथ लेकर आये।

यह कैसे शुरू हुआ…

जब खुशदीप ईस्टमैन में काम कर रहे थे उस समय वे नए पौधे तैयार करते थे और यही वह समय था जब वे खेती की तरफ आकर्षित हुए। 1 वर्ष और 8 महीने काम करने के बाद उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) के साथ काम करना शुरू किया। लेकिन वहां भी उन्होंने 2-3 महीने काम किया। वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और वे कुछ और करना चाहते थे। इसलिए ईस्टमैन और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) कंपनी में 2 वर्ष काम करने के बाद खुशदीप ने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया।

उन्होंने आधे – आधे एकड़ में कद्दू, तोरी और भिंडी की रोपाई की। वे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे और अपनी कल्पना से अधिक फसल की तुड़ाई करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने खेती के क्षेत्र को बढ़ाया और सब्जियों की अन्य किस्में उगायी। उन्होंने हर तरह की सब्जी उगानी शुरू की। चाहे वह मौसमी हो और चाहे बे मौसमी। उन्होंने मटर और मक्की की फसल के लिए Pagro Foods Ltd. से कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किया और उससे काफी लाभ प्राप्त किया। उसके बाद 2016 में उन्होंने धान, फलियां, आलू, प्याज, लहसुन, मटर, शिमला मिर्च, फूल गोभी, मूंग की फलियां और बासमती को बारी-बारी से उसी खेत में उगाया।

खेतीबाड़ी के साथ खुशदीप ने बीज और लहसुन और कई अन्य फसलों के नए पौधे तैयार करने शुरू किए और इस सहायक काम से उन्होंने काफी लाभ प्राप्त किया। पिछले तीन वर्षों से वे बीज की तैयारी को पी ए यू लुधियाना किसान मेले में दिखा रहे हैं और हर बार उन्हें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

आज खुशदीप के पिता और माता दोनों को अपने पुत्र की उपलब्धियों पर गर्व है। खुशदीप अपने काम से बहुत खुश है और दूसरे किसानों को इसकी तरफ प्रेरित भी करते हैं। वर्तमान में वे सब्जियों की खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं और भविष्य में वे अपनी नर्सरी और फूड प्रोसेसिंग का व्यापार शुरू करना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों को अपने मंडीकरण के लिए किसी तीसरे इंसान पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें अपना काम स्वंय करना चाहिए। एक और बात जिसका किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें किसी एक के पीछे नहीं जाना चाहिए। उन्हें वो काम करना चाहिए जो वे करना चाहते हैं।
किसानों को विविधता वाली खेती के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें एक से ज्यादा फसलों को उगाना चाहिए क्योंकि यदि एक फसल नष्ट हो जाये तो आखिर में उनके पास सहारे के लिए दूसरी फसल तो हो। हर बार एक या दो माहिरों से सलाह लेनी चाहिए और उसके बाद ही अपना नया उद्यम शुरू करना चाहिए।

मोहिंदर सिंह गरेवाल

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एक ऐसे इंसान की कहानी जिसने कृषि विज्ञान में महारत हासिल की और खेती विभिन्नता के क्षेत्र में अपने कौशल दिखाए

हर कोई सोच सकता है और सपने देख सकता है, पर ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो अपनी सोच पर खड़े रहते हैं और पूरी लग्न के साथ उसे पूरा करते हैं। ऐसे ही दृढ़ संकल्प वाले एक जल सेना के फौजी ने अपना पेशा बदलकर खेतीबाड़ी की तरफ आने का फैसला किया। उस इंसान के दिमाग में बहु उदेशी खेती का ख्याल आया और अपनी मेहनत और जोश से आज विश्व भर में वह किसान पूरे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है।

मोहिंदर सिंह गरेवाल पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पहले सलाहकार किसान के तौर पर चुने गए, जिनके पास 42 अलग अलग तरह की फसलें उगाने का 53 वर्ष का तर्ज़ुबा है। उन्होंने इज़रायल जैसे देशों से हाइब्रिड बीज उत्पादन और खेती की आधुनिक तकनीकों की सिखलाई हासिल की। अब तक वे खेतीबाड़ी के क्षेत्र में अपने काम के लिए 5 अंतरराष्ट्रीय, 7 राष्ट्रीय और 16 राज्य स्तरीय पुरस्कार जीत चुके हैं।

स. गरेवाल जी का जन्म 1 दिसंबर 1937 में लायलपुर, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ। उनके पिता का नाम अर्जन सिंह और माता का नाम जागीर कौर है। यदि हम मोहिंदर सिंह गरेवाल की पूरी ज़िंदगी देखें तो उनकी पूरी ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी और उन्होंने हर संघर्ष और मुश्किल को चुनौती के रूप में समझा। पूरी लग्न और मेहनत से उन्होंने अपने और अपने परिवार के सपने पूरे किये।

अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में, मोहिंदर सिंह गरेवाल बड़े उत्साह से फुटबॉल खेलते थे और बहुत सारे स्कूलों की टीमों के कप्तान भी रहे। वे एक अच्छे एथलीट भी थे, जिस कारण उन्हें भारतीय जल सेना में पक्के तौर पर नौकरी मिल गई। 1962 में INS नाम के समुंद्री जहाज पर मोहिंदर सिंह गरेवाल काले पानी अंडेमान निकोबार द्वीप समूह, मलेशिया, सिंगापुर और इंडोनेशिया की यात्रा की। इंडोनेशिया में मैच खेलते समय उनके दायीं जांघ पर गंभीर चोट लगी। इस चोट और परिवार के दबाव के कारण उन्होंने 1963 में भारतीय जल सेना की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद कुछ देर के लिए उनकी ज़िंदगी में ठहराव आ गया।

नौकरी छोड़ने के बाद उनके पास अपने विरासती व्यवसाय खेतीबाड़ी के अलावा कोई ओर अन्य विकल्प नहीं था। उन्होंने शुरूआती 4 वर्षों में गेहूं और मक्की की खेती की। मोहिंदर सिंह जी ने अपनी पत्नी जसबीर कौर के साथ मिलकर खेतीबाड़ी में सफलता हासिल करने के लिए एक ठोस योजना बनाई और आज वे अपनी खेती क्रियाओं के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध इंसान हैं। हालांकि उनके पास 12 एकड़ का एक छोटा सा खेत है, पर फसल चक्र के प्रयोग से वे इससे अधिक लाभ ले रहे हैं। मोहिंदर सिंह गरेवाल जी अपने खेतों में लगभग 42 तरह की फसलें उगाने में सक्षम हैं और अच्छी क्वालिटी की पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। उनके कौशल अकेले पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में जाने जाते हैं।

बहुत सारी जानी पहचानी कमेटियों और कौंसल के साथ काम करके मोहिंदर सिंह गरेवाल जी के काम को और अधिक प्रसिद्धि मिली। राज्य स्तर पर उन्हें गवर्निंग बोर्ड के मैंबर, पंजाब राज्य बीज सर्टीफिकेशन अथॉरिटी, पी ए यू पब्लीकेशन कमेटी और पी ए यू फार्मज़ एडवाइज़री कमेटी के तौर पर काम किया। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कमिश्न फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड पराइसिस के मैंबर, भारत सरकार, सीड एक्ट सब-कमेटी के मैंबर, भारत सरकार एडवाइज़री कमेटी के मैंबर, प्रसार भारतीय, जालंधर, पंजाब और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शूगरकेन रिसर्च लखनउ के मैंबर के तौर पर काम किया।

इस समय वे एग्रीकल्चर और हॉर्टीकल्चर कमेटी, पी ए यू, गवर्निंग बोर्ड, एग्रीकल्चर टैक्नोलोजी मैनेजमैंट एजंसी के मैंबर हैं। वे पंजाब फार्मरज़ कल्ब, पी ए यू के संस्थापक और चार्टर प्रधान भी हैं।

खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए उन्हें इंगलैंड, मैक्सिको, इथियोपिया और थाइलैंड जैसे देशों के द्वारा सम्मानित किया गया और वे अलग अलग स्तर पर 75 से ज्यादा पुरस्कार जीत चुके हैं। उन्हें 1996 में ऑटोबायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट, यू एस ए की तरफ से मैन ऑफ द ईयर पुरस्कार के साथ और 15 अगस्त 1999 को श्री गुरू गोबिंद सिंह स्टेडियम, जालंधर में माननीय गवर्नर एस एस राय द्वारा गोल्ड मैडल और लोई से सम्मानित किया। उन्हें पश्चिमी पंजाब के लोगों को खेती में से ज्यादा लाभ लेने और पाकिस्तान में एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को फसली विभिन्नता के बारे में सिखाने के लिए फार्मरज़ इंस्टीट्यूट, पाकिस्तान की तरफ से दो बार निमंत्रण भेजा गया। उनकी ज्यादा ज़िंदगी यात्रा में ही गुज़री और वे बहुत सारे देशों जैसे कि यू एस ए, कैनेडा, मैक्सिको, थाइलैंड, इंगलैंड और पाकिस्तान में वैज्ञानिक किसान और प्रतीनिधि मैंबर के तौर पर गये और जब भी वे गये उन्होंने स्थानीय किसानों को टैक्नीकल जानकारी दी।

स. मोहिंदर सिंह गरेवाल एक बढ़िया लेखक भी हैं और उन्होंने खेतीबाड़ी की सफलता की कुंजी, तेरे बगैर ज़िंदगी कविताएं, रंग ज़िंदगी के स्वै जीवनी, ज़िंदगी एक दरिया और सक्सेसफुल साइंटिफिक फार्मिंग आदि शीर्षक के अधीन पांच किताबें लिखीं। उनके लेखन विदेशी अखबारों, नैशनल डेली, राज्य स्तरीय अखबार, खेतीबाड़ी मैगनीज़ और रोटरी मैगनीज़ आदि में छप चुकी हैं। उन्होंने मुफ्त आंखों का चैकअप कैंप, रोड सेफ्टी, खून दान कैंप, वृक्ष लगाओ, फील्ड डेज़ और मिट्टी टैस्ट जैसे प्रोजैक्टों का हिस्सा बनकर उन्होंने समाज सेवा में भी अपना हिस्सा डाला।

खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मोहिंदर सिंह गरेवाल जी ने बहुत सफलता हासिल की और खेती के लिए ऊंचे मियार बनाये। उनकी प्राप्तियां अन्य किसानों के लिए जानकारी और प्रेरणा का स्त्रोत हैं।

हरतेज सिंह मेहता

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जैविक खेती के लिए दूसरों को प्रोत्साहित करके बेहतर भविष्य के लिए एक आधार स्थापित कर रहे हैं

पहले जैविक एक ऐसा शब्द था जिसका प्रयोग बहुत कम किया जाता था। बहुत कम किसान थे जो जैविक खेती करते थे और वह भी घरेलु उद्देश्य के लिए। लेकिन समय के साथ लोगों को पता चला कि हर चमकीली सब्जी या फल अच्छा दिखता है लेकिन वह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।

यह कहानी है – हरतेज सिंह मेहता की जिन्होंने 10 वर्ष पहले एक बुद्धिमानी वाला निर्णय लिया और वे इसके लिए बहुत आभारी भी हैं। हरतेज सिंह मेहता के लिए, जैविक खेती को जारी रखने का निर्णय उनके द्वारा लिया गया एक सर्वश्रेष्ठ निर्णय था और आज वे अपने क्षेत्र (मेहता गांव – बठिंडा) में जैविक खेती करने वाले एक प्रसिद्ध किसान हैं।

पंजाब के मालवा क्षेत्र, जहां पर किसान अच्छी उत्पादकता प्राप्त करने के लिए कीटनाशक और रसायनों का प्रयोग बहुत उच्च मात्रा में करते हैं। वहीं, हरतेज सिंह मेहता ने प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रखने को चुना। वे बचपन से ही अपने पैतृक व्यवसायों के प्रति समर्पित है और उनके लिए अपनी उपलब्धियों के बारे में फुसफुसाने से अच्छा, एक साधारण जीवन व्यतीत करना है।

उच्च योग्यता (एम.ए. पंजाबी, एम.ए. पॉलिटिकल साइंस) होने के बावजूद, उन्होंने शहरी जीवन और सरकारी नौकरी की बजाय जैविक खेती करने को चुना। वर्तमान में उनके पास 11 एकड़ ज़मीन है जिसमें वे कपास, गेहूं, सरसों, गन्ना, मसूर, पालक , मेथी, गाजर, मूली, प्याज, लहसुन और लगभग सभी सब्जियां उगाते हैं। वे हमेशा अपने खेतों को कुदरती तरीकों से तैयार करना पसंद करते हैं जिसमें कपास (F 1378), गेहूं (1482) और बंसी नाम के बीज अच्छे परिणाम देते हैं।

“अंसतोष, निरक्षरता और किसानों की उच्च उत्पादकता की इच्छा रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है, जिसके कारण किसान जो कि उद्धारकर्त्ता के रूप में जाने जाते हैं वे अब समाज को विष दे रहे हैं। आजकल किसान कीट प्रबंधन के लिए कीटनाशकों और रसायनों का इस्तेमाल करते हैं जो मिट्टी के मित्र कीटों और उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाते हैं। वे इस बात से अवगत नहीं हैं कि वे अपने खेत में रसायनों को उपयोग करके पूरी खाद्य श्रंख्ला को विषाक्त बना रहे हैं। इसके अलावा, रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके वे ना केवल पर्यावरण की स्थिति को बिगाड़ रहे हैं बल्कि कर्ज में बढ़ोतरी के कारण प्रमुख आर्थिक नुकसान का भी सामना कर रहे हैं।”– हरतेज सिंह ने कहा।

मेहता जी हमेशा खेती के लिए कुदरती ढंग को अपनाते हैं और जब भी उन्हें कुदरती खेती के बारे में जानकारी की आवश्यकता होती है तो वे अमृतसर के पिंगलवाड़ा सोसाइटी और एग्रीकल्चर हेरीटेज़ मिशन से संपर्क करते हैं। वे आमतौर पर गाय के मूत्र और पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद बनाने के लिए करते हैं और यह मिट्टी के लिए भी अच्छा है और पर्यावरण अनुकूलन भी है।

मेहता जी के अनुसार कुदरती तरीके से उगाए गए भोजन के उपभोग ने उन्हें और उनके परिवार को पूरी तरह से स्वस्थ और रोगों से दूर रखा है। इसी कारण श्री मेहता का मानना है कि वे जैविक खेती के प्रति प्रेरित हैं और भविष्य में भी इसे जारी रखेंगे।

संदेश
“मैं देश भर के किसानों को एक ही संदेश देना चाहता हूं कि हमें निजी कंपनियों के बंधनों से बाहर आना चाहिए और समाज को स्वस्थ बनाने के लिए स्वस्थ भोजन प्रदान करने का वचन देना चाहिए।”

रत्ती राम

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एक उम्मीद की किरण जिसने रत्ती राम की खेतीबाड़ी को एक लाभदायक उद्यम में बदल दिया

रत्ती राम मध्य प्रदेश के हिनोतिया गांव के एक साधारण सब्जियां उगाने वाले किसान हैं। उन्नत तकनीकों और सरकारी स्कीमों का लाभ लेकर उन्होंने अपना सब्जियों का फार्म स्थापित किया जिससे कि आज वे करोड़ों में लाभ कमा रहे हैं। लेकिन यदि हम पहले की बात करें तो रत्ती राम एक हारे हुए किसान थे जिनके लिए जूते खरीदना भी मुश्किल काम था। आज उनके पास अपनी बाइक है जिसे वे गर्व से अपने गांव में चलाते हैं।

हालांकि रत्ती राम के पास खेती के लिए कम भूमि थी लेकिन जल संसाधनों की कमी ने उनके प्रयासों और भूमि के बीच प्रमुख हस्तक्षेप का काम किया। बारिश के मौसम में जब वे खेती करने की कोशिश करते थे तब अत्याधिक बारिश उनकी फसलों को खराब कर देती थी। ये सभी जलवायु परिस्थितियों और अन्य खमियां उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने का मुख्य कारण थी।

कम आमदन जो उन्हें खेती से प्राप्त होती थी उसे वे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में खर्च कर देते थे और ये स्थितियां कई वित्तीय समस्याओं को जन्म दे रही थीं लेकिन एक दिन रत्ती राम को बागबानी विभाग के बारे में पता चला और वे नंगे पांव अपने गांव हिनोतिया के कलेक्टर राजेश जैन के ऑफिस जिला मुख्यालय (Head Quarter) की तरफ चल दिए। जब कलेक्टर ने रत्ती राम को देखा तो उन्होंने उनके दर्द को महसूस किया और अगला कदम जो उन्होंने उठाया, उसने रत्ती राम की ज़िंदगी को बदल दिया।

कलेक्टर ने रत्ती राम को बागबानी विभाग के अधिकारी के पास भेजा, जहां श्री रत्ती को विभिन्न बागबानी योजनाओं के बारे में पता चला। उन्होंने अमरूद, आंवला, हाइब्रिड टमाटर, भिंडी, आलू, लहसुन, मिर्च आदि के बीज लिए और बागबानी योजनाओं और सब्सिडी की मदद से उन्होंने ड्रिप सिंचाई प्रणाली, स्प्रेयर, बिजली स्प्रे पंप, पावर ड्रिलर की भी स्थापना की। इसके अलावा, कलेक्टर ने उन्हें सब्सिडी दर के तहत एक पैक हाउस लगाने में मदद की।

रत्ती राम ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती शुरू कर दी और एक साल में रत्ती राम ने 1 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया जिससे उन्होंने मैटाडोर वैन, दो बाइक और दो ट्रैक्टर खरीदे। वाहनों में निवेश करने के अलावा उन्होंने अन्य संसाधनों में भी निवेश किया और 3 पानी के कुएं बनवाए, 12 ट्यूबवैल और 4 घर विभिन्न स्थानों पर खरीदे। उन्होंने खेती के लिए 20 एकड़ भूमि खरीदकर अपनी खेती के क्षेत्र का विस्तार किया और किराये पर 100 एकड़ ज़मीन ली। आज वे अपने परिवार के साथ खुशी से रह रहे हैं और कुछ समय पहले उन्होंने अपने दो बेटों और एक बेटी की शादी भी धूमधाम से की।

रत्ती राम भारत में उन सभी किसानों के लिए एक आदर्श हैं जो खुद को असहाय और अकेला महसूस करते हैं और उम्मीदों को खो बैठते हैं, क्योंकि रत्ती राम ने अपने मुश्किल समय में कभी भी अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ा।